FUN-MAZA-MASTI
होली का असली मजा--18
चूसते हुए उन्हें दिखा के घप से मैंने दो उँगलियाँ मम्मी की बुर में पेल दिन और देर तक गोल गोल घुमाती रही। जब वो रस से बुरी तरह गीली हो गयी , तो अब एक बार फिर , मम्मी की गांड फैला के उन्हें दिखा के , गांड की दरार में मैं ऊँगली आगे पीछे कर रही थी।
अब उनसे नहीं रहा गयी और चुपके से आके वो मेरे सर ( और मम्मी के हिप्स ) की ओर बैठ गए।
मेरी उँगलियाँ अभी भी गांड की दरार में आगे पीछे हो रही थीं।
और फिर अचानक मैंने एक ऊँगली अंदर घुसेड़ दी। घुसी वो मम्मी की गांड में लेकिन सिसकारी उनकी निकली।
थोड़ी देर अंदर बाहर कर के वो ऊँगली मैंने उनकी ओर जब की , तो झट से उन्होंने मुंह मुंह खोल के गप्प कर लिया और लॉलीपॉप की तरह उसे चूसने लगे , फिर मेरी एक और ऊँगली मुंह के अंदर घुसेड़ और उस भी सक करने लगे।
मैं उनका इशारा समझ गयी और अगली बार वो दोनों उँगलियाँ अंदर गयीं , वो भी जड़ तक।
और बिना बाहर निकाले , मैं देर तक गोल गोल घुमाती रही , गांड की दीवालों से सटा के करोते हुए , और वो एक नदीदे बच्चे की तरह उसे देखते रहे , और चार पांच मिनट में जो ऊँगली निकली तो उन्होंने , गप्प कर ली , बिना मेरे कुछ किये और दिवानो की तरह चाट चूट के साफ कर दिया।
मैं भी मम्मी की बुर चाटते , चाटते बीच बीच में इनके मोटे खड़े पगलाये लंड को भी मुंह में ले के चूस लेती थी।
लेकिन उनके लंड को अभी मेरे ओंठ नहीं बल्कि कुछ और चाहिए था , और वो मौका मिल गया।
मैंने मम्मी की अब क्लिट जोर जोर से चूसनी शुरू कर दी और जैसे ही मैंने उसे हलके से बाइट किया , एकदम एक्सप्लोजन हुआ , मम्मी जोर जोर से झड़ने लगीं और साथ में मैं भी।
सारी दुनिया से बेखबर आंधी में पत्ते की तरह वो काँप रही थी।
और उस मौके का उन्होेंने पूरा फायदा उठाया।
मैेने अपनी लम्बी टाँगे मम्मी की पीठ पे पूरी तरह कैंची की स्टाइल में जकड रखी थी। वो जरा भी हिल दुल नहीं सकती थीं और साथ ही में मेरे दोनों हाथ खूब जोर लगा के उनकी गांड का छेद फैलाये हये थे।
बस उन्होंने सुपाड़ा सटाया और हचक के पेल दिया गांड में।
मम्मी कुछ रिएक्ट करतीं की मेरे होंठों ने फिर एक बार क्लिट की बाइट ले ली और जोर जोर से चूसना शुरू कर दिया। और वो एक बार फिर झड़ने लगी।
बस उन्होंने अपने दोनों हाथों से मम्मी के नितम्बो को थोडा सा उठाया और एक और करारा धक्का मारा।
गांड का छल्ला पार हो गया था और अब मम्मी की गांड ने खुद उनके लंड को दबोच रखा था।
वो लाख कोशिश करें लंड निकल नहीं सकता था।
हम दोनों एक दूसरे को देख के मुस्कराये और आँखों ही आँखों में हाई फाइव किया।
थोड़ी देर वो हम दोनों के बीच फंसी रही , फिर मैं निकल आयी और जिस कुर्सी पे थोड़ी देर पहले थे बैठे थे वहाँ बैठ के मजे से देखने लगी।
क्या धुंआधार पेलाई थी।
एक बार तो वो अभी कुछ देर पहले ही झड़े थे वो इसलिये कम से कम आधे घंटे तक नान स्टाप,
और वही हुआ। जैसे कोई धुनिया रुई धुनें , बस उसी तरह। लेकिन मम्मी भी कम नहीं थीं , धक्के का जवाब धक्के से दे रही थी।
थोड़ी देर तक तो मैं देखती रही फिर मुझसे नहीं रहा गया , और मैं भी खेल तमाशे में शामिल हो गयी
मैं चुपके से उनके पीछे पहुँच गयी और अपने उभार उनके पीठ पे गड़ाने लगी।
मेरे होंठ कभी उनके इयर लोब्स को चूम लेते काट लेते तो कभी जीभ की नोक मैं उनके कान में डाल देती। मेरे हाथ भी खाली नहीं थे कभी उनकी छाती सहलाते तो कभी उनके टिट्स को स्क्रैच कर देते।
बिचारे वो , उनके हाथ तो मम्मी के उभारों पे थे और ताकत सारी मम्मी की गांड में ,
और मेरी छेड़खानी का असर ये हुआ की वो दूने जोश से ,
आधे घंटे के बाद ही झड़े और हम तीनो निढाल हो के पड़ गए।
सुबह के पहले एक राउंड और उनका हुआ , मम्मी के साथ।
और जब सुबह की पहली किरण आ ही रही थी , मम्मी फिर एक बार चेहरे पे बैठी , और वो जोर जोर से मम्मी की 'रसमलाई ' चूस रहे थे।
जितना मजा मम्मी को आ रहा था , उससे ज्यादा उनको आ रहा था।
मैं अधखुली आँखों से देख रही थी , मम्मी कसमसा रही थीं ,
" छोडो न , बस आ रही हूँ अभी " वो जिद कर रही थी।
लेकिन उनकी पकड़ से कौन छूट सकता है।
" क्यों "शरारत से जान के भी उन्होंने पुछा।
" आ रही , बड़ी जोर से "
" आने दीजिये न। "
" हो जायगी ,जाने दो ना "
" हो जाने दीजिये न " नटखट अंदाज में वो बोले और उनकी जीभ की टिप ठीक उसी जगह ,
सुबह की सुनहली धूप छन छन के पड़ रही थी ,
और मम्मी से नहीं रुका गया ,
एक फिर दो सुनहली बूँद,…
"अगर एक बूँद भी बाहर गयी न तो बहुत पीटूँगी। " उन्होंने छेड़ा ,
और फिर छल छल छल छल ,.... घल घल घल घल
सुनहली शराब की धार
और कुछ देर में वो दोनों लोग सो गए एक दूसरे की बांहो में चिपटे , लिपटे।
मैं उठ के किचेन में चली गयी , काम धाम के लिए।
अगला दिन शुरू हो गया था।
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होली का असली मजा--18
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अब उनसे नहीं रहा गयी और चुपके से आके वो मेरे सर ( और मम्मी के हिप्स ) की ओर बैठ गए।
मेरी उँगलियाँ अभी भी गांड की दरार में आगे पीछे हो रही थीं।
और फिर अचानक मैंने एक ऊँगली अंदर घुसेड़ दी। घुसी वो मम्मी की गांड में लेकिन सिसकारी उनकी निकली।
थोड़ी देर अंदर बाहर कर के वो ऊँगली मैंने उनकी ओर जब की , तो झट से उन्होंने मुंह मुंह खोल के गप्प कर लिया और लॉलीपॉप की तरह उसे चूसने लगे , फिर मेरी एक और ऊँगली मुंह के अंदर घुसेड़ और उस भी सक करने लगे।
मैं उनका इशारा समझ गयी और अगली बार वो दोनों उँगलियाँ अंदर गयीं , वो भी जड़ तक।
और बिना बाहर निकाले , मैं देर तक गोल गोल घुमाती रही , गांड की दीवालों से सटा के करोते हुए , और वो एक नदीदे बच्चे की तरह उसे देखते रहे , और चार पांच मिनट में जो ऊँगली निकली तो उन्होंने , गप्प कर ली , बिना मेरे कुछ किये और दिवानो की तरह चाट चूट के साफ कर दिया।
मैं भी मम्मी की बुर चाटते , चाटते बीच बीच में इनके मोटे खड़े पगलाये लंड को भी मुंह में ले के चूस लेती थी।
लेकिन उनके लंड को अभी मेरे ओंठ नहीं बल्कि कुछ और चाहिए था , और वो मौका मिल गया।
मैंने मम्मी की अब क्लिट जोर जोर से चूसनी शुरू कर दी और जैसे ही मैंने उसे हलके से बाइट किया , एकदम एक्सप्लोजन हुआ , मम्मी जोर जोर से झड़ने लगीं और साथ में मैं भी।
सारी दुनिया से बेखबर आंधी में पत्ते की तरह वो काँप रही थी।
और उस मौके का उन्होेंने पूरा फायदा उठाया।
मैेने अपनी लम्बी टाँगे मम्मी की पीठ पे पूरी तरह कैंची की स्टाइल में जकड रखी थी। वो जरा भी हिल दुल नहीं सकती थीं और साथ ही में मेरे दोनों हाथ खूब जोर लगा के उनकी गांड का छेद फैलाये हये थे।
बस उन्होंने सुपाड़ा सटाया और हचक के पेल दिया गांड में।
मम्मी कुछ रिएक्ट करतीं की मेरे होंठों ने फिर एक बार क्लिट की बाइट ले ली और जोर जोर से चूसना शुरू कर दिया। और वो एक बार फिर झड़ने लगी।
बस उन्होंने अपने दोनों हाथों से मम्मी के नितम्बो को थोडा सा उठाया और एक और करारा धक्का मारा।
गांड का छल्ला पार हो गया था और अब मम्मी की गांड ने खुद उनके लंड को दबोच रखा था।
वो लाख कोशिश करें लंड निकल नहीं सकता था।
हम दोनों एक दूसरे को देख के मुस्कराये और आँखों ही आँखों में हाई फाइव किया।
थोड़ी देर वो हम दोनों के बीच फंसी रही , फिर मैं निकल आयी और जिस कुर्सी पे थोड़ी देर पहले थे बैठे थे वहाँ बैठ के मजे से देखने लगी।
क्या धुंआधार पेलाई थी।
एक बार तो वो अभी कुछ देर पहले ही झड़े थे वो इसलिये कम से कम आधे घंटे तक नान स्टाप,
और वही हुआ। जैसे कोई धुनिया रुई धुनें , बस उसी तरह। लेकिन मम्मी भी कम नहीं थीं , धक्के का जवाब धक्के से दे रही थी।
थोड़ी देर तक तो मैं देखती रही फिर मुझसे नहीं रहा गया , और मैं भी खेल तमाशे में शामिल हो गयी
मैं चुपके से उनके पीछे पहुँच गयी और अपने उभार उनके पीठ पे गड़ाने लगी।
मेरे होंठ कभी उनके इयर लोब्स को चूम लेते काट लेते तो कभी जीभ की नोक मैं उनके कान में डाल देती। मेरे हाथ भी खाली नहीं थे कभी उनकी छाती सहलाते तो कभी उनके टिट्स को स्क्रैच कर देते।
बिचारे वो , उनके हाथ तो मम्मी के उभारों पे थे और ताकत सारी मम्मी की गांड में ,
और मेरी छेड़खानी का असर ये हुआ की वो दूने जोश से ,
आधे घंटे के बाद ही झड़े और हम तीनो निढाल हो के पड़ गए।
सुबह के पहले एक राउंड और उनका हुआ , मम्मी के साथ।
और जब सुबह की पहली किरण आ ही रही थी , मम्मी फिर एक बार चेहरे पे बैठी , और वो जोर जोर से मम्मी की 'रसमलाई ' चूस रहे थे।
जितना मजा मम्मी को आ रहा था , उससे ज्यादा उनको आ रहा था।
मैं अधखुली आँखों से देख रही थी , मम्मी कसमसा रही थीं ,
" छोडो न , बस आ रही हूँ अभी " वो जिद कर रही थी।
लेकिन उनकी पकड़ से कौन छूट सकता है।
" क्यों "शरारत से जान के भी उन्होंने पुछा।
" आ रही , बड़ी जोर से "
" आने दीजिये न। "
" हो जायगी ,जाने दो ना "
" हो जाने दीजिये न " नटखट अंदाज में वो बोले और उनकी जीभ की टिप ठीक उसी जगह ,
सुबह की सुनहली धूप छन छन के पड़ रही थी ,
और मम्मी से नहीं रुका गया ,
एक फिर दो सुनहली बूँद,…
"अगर एक बूँद भी बाहर गयी न तो बहुत पीटूँगी। " उन्होंने छेड़ा ,
और फिर छल छल छल छल ,.... घल घल घल घल
सुनहली शराब की धार
और कुछ देर में वो दोनों लोग सो गए एक दूसरे की बांहो में चिपटे , लिपटे।
मैं उठ के किचेन में चली गयी , काम धाम के लिए।
अगला दिन शुरू हो गया था।
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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