Sunday, April 27, 2014

बदनाम रिश्ते--राजन के कारनामे--2

FUN-MAZA-MASTI
बदनाम रिश्ते--राजन के कारनामे--2


 चूँकि कमरे में सामन लाने - ले जाने के लिए रुक-रूककर आवाजाही थी इसलिए दरवाजा सिर्फ भिड़ा दिया था , सोचा था जब सब शांत हो जाएगा तब दरवाजा बंद कर लूँगा | लेकिन लेटते ही जाने कब मुझे नींद आ गयी | हाँ , अर्ध-निद्रा में मुझे चूड़ियों की खनक और महिलायों के बोलने की आवाज आ रही थी लेकिन मेरी चेतना नहीं थी | एकाएक कुत्तों के भूंकने से मेरी नींद हलकी खुली तो मुझे चोरों का ख़याल आया , मेरा अर्धचेतन मन तुरंत सक्रिय हुआ और दरवाजे का ख़याल आया | मैंने पेन-टॉर्च निकालकर दरवाजे पर फोकस किया , दरवाजा अन्दर से बंद था | मुझे अच्छी तरह से याद था की मैंने दरवाजा बंद नहीं किया था फिर ये दरवाजा बंद हुआ तो हुआ कैसे ? फिर मै उठकर बैठ गया और बेड पर निगाह केन्द्रित किया तो मुझे कोई सोया जान पड़ा , वो कोई स्त्री थी | वो चित लेटी थी फिर मैंने टॉर्च जलाकर चेहरा देखा , वो मेरी बड़ी ममेरी बहन रागनी थी | शायद बिस्तर पर जगह देखकर और मुझे बच्चा समझकर मामी ने उसे भेज दिया था |

उनका दायाँ पैर ( मेरी तरफ वाला ) मुड़ा हुआ था और साडी घुटनों तक उठी हुई थी , दूसरा पैर बिलकुल सीधा था जो जांघो तक नंगी थी | मैंने तुरंत टॉर्च बंद कर दिया और लेट गया | लेकिन चिकनी जांघो के झलक मात्र से नींद मेरी आँखों से कोसो दूर जा चुकी थी , मुझे बुआ याद आ रही थी | फिर मै अपनी ममेरी बहन रागनी के बारे में सोचना शुरू किया | वो २२ साल की थी और ६ साल पहले उनकी शादी हुई थी |२ साल पहले उनका २ साल का एकमात्र लड़का बिमारी की वजह से मर गया था | जीजाजी तक़रीबन एक साल से गल्फ में नौकरी करने चले गए थे |मैंने अपनी घडी देखा उससमय रात का १:१० बजा था | थोड़ी देर बाद मै उठकर पेशाब करने बाहर निकला , आँगन में कई सारी औरते अस्त-व्यस्त हालत में सो रही थी | चांदनी रात की चांदनी में ढेर सारी नंगी चिकनी जांघे और पिंडलियाँ देखकर मेरा लंड फनफना उठा ,पर उतने सारे औरतो के बीच नंगी अधेड़ जवानियों को देखने के लिए टॉर्च जलाने की हिम्मत नहीं पड़ी |


कमरे में आकर दरवाजा आहिस्ते से बंद किया एवं बाहर वाली खिड़की के पल्लो को सटा दिया और रागिनी दीदी के पैर के पास खड़ा हो गया | फिर मैंने टॉर्च के शीशे के ऊपर हाथ रखकर जलाया ताकि रौशनी कम हो और चारो तरफ न फैले और उसका फोकस दीदी के पैर के बीच कर दिया | उनका बायाँ पैर जो बिलकुल सीधा था तक़रीबन जाँघों तक बिलकुल नंगी था और दायाँ पैर जो मुड़ा हुआ था वहाँ से साडी के नीचे एक गैप बन रहा था | मैंने टॉर्च उस गैप में बिलकुल साडी के नीचे कर दिया और बिस्तर के साइड में जमीन पर घुटनों के बल बैठकर अन्दर झाकने लगा | आह .... क्या नजारा था ... दीदी ने तो पैंटी भी नहीं पहना था ,जांघो के जोड़ के पास नीचे चुतर का थोडा उभार था जो उनके चूतरों के भी सौलिड होने की चुगली कर रहा था और उसके ऊपर बुर की हलकी दरारें दिख रही थी ,बस पेटीकोट का आखरी हिस्सा ऊपर से लटककर बुर के खुले दर्शन में व्यवधान डाल रहा था | मुझे डर भी लग रहा था आखिर रिश्तेदारी वाली बात थी पर दीदी की बुर देखने का यह सुनहला मौका हाथ से जाने भी नहीं देना चाहता था | फिर मैंने साडी को पेटीकोट समेत थोडा ऊपर करने की कोशिश की लेकिन जैसे ही मैंने थोडा खींचा वैसे ही दीदी थोडा कुनमुनाई | डर से कलेजा मेरे मुह में आ गया , मैंने फट से टॉर्च बंद कर दिया और हाथ बाहर खींच लिया और वहीँ बैठकर अपनी भारी चल रही साँसों को व्यवस्थित करने लगा | थोड़ी देर बाद उठकर बिस्तर पर अपने जगह पर जाकर लेट गया और सोंचने लगा कि अब क्या करूँ ?

तभी मुझे एक उपाय सुझा , मैंने अपना बायाँ पैर मोड़कर दीदी के मुड़े दायें पैर से सटा दिया | सहारा पाते ही उनका पैर मेरे पैर पर लदने लगा | फिर मैंने धीरे-धीरे अपने सटे पैर को वहां से हटाने लगा जिससे उनका पैर मुड़े -मुड़े ही बिस्तर कि तरफ झुकने लगा , फिर मैंने धीरे से अपना पैर वहां से हटा लिया |अब दीदी का एक पैर सीधा , दूसरा मुड़ा हुआ बिस्तर से सटा था और घुटने पर फंसा हुआ पेटीकोट अब कमर तक खिसक गया था | मैंने अनुमान लगाया दीदी अब पूरी नंगी है और मुझे उनकी बुर देखने में कोई परेशानी नहीं होगी | फिर मै उठकर बैठ गया और फिर टॉर्च जलाया ... हे भगवान् ! क्या सीन था ... हलकी झांटो से भरी बुर बिलकुल नंगी थी और बुर के पपोटे थोड़े खुले हुए थे | वैसे बुआ की कमसिन बुर और दीदी की खेली खायी बुर में बाहर से ज्यादा अंतर नहीं दिखाई देता था पर हलकी झांटो से भरी दीदी की सलोनी बुर बड़ी प्यारी लग रही थी | काफी देर तक मै वैसे ही बुर को निहारता रहा और पगलाता रहा | अब मुझे कंट्रोल करना मुश्किल होता जा रहा था , जी कर रहा था अभी दीदी के ऊपर चढ़ जाऊं और पेल दूँ | फिर हाथ बढाकर डरते डरते एक ऊँगली से बुर को छुआ ... जब कुछ नहीं हुआ तो हिम्मत करके ऊँगली को बुर की दरारों में फिराया | बुर मुझे काफी गरम लगी और ऊँगली में चिपचिपाहट का एहसास हुआ | टॉर्च से देखा तो बुर की दरारों से पानी निकल रहा था और रिसकर चूतरों की तरफ जा रहा था | हे भगवान् ! तो क्या दीदी जगी हुई है और मेरे क्रियाकलापों से उत्तेजित हो उठी है ,तभी तो चूत से पानी रिस रहा था | मैंने तुरंत टॉर्च को दीदी के चेहरे की तरफ जलाया | बंद आँखों में ही पलकों की हलकी मूवमेंट मैंने महसूस किया जैसे तेज रौशनी से जबरदस्ती आँखों को बंद कर रही हो | फिर ज़रा नीचे देखा , उनके ब्लाउज का ऊपर वाला हुक खुला था और गदराई बड़ी बड़ी चुंचियां आधी बाहर छलकी हुई थी और मस्त अंदाज में ऊपर नीचे हो रही थी | मैं कन्फर्म नहीं हो पाया की वो जगी या नहीं |मैंने टॉर्च बंद किया और सोंचने लगा की क्या करूँ क्योंकि अब मुझसे रहा नहीं जा रहा था | फिर मै अपने स्थान पर लेट गया और दीदी की तरफ करवट लेकर अपना एक हाथ दीदी के पेट पर रख दिया जैसे मैं नींद में होऊं | सहलाने की बड़ी इच्छा थी पर मै वैसे ही लेटा रहा, बस अपना पैंट नीचे कर लंड बाहर निकालकर उनके जांघो से थोडा दूर हटकर मुठीयाने लगा |
करीब दस मिनट बाद दीदी मेरे तरफ करवट बदली | मैंने फटाफट अपना हाथ लंड से हटा लिया | करवट बदलने के साथ ही उन्होंने एक अपना पैर मेरे पैर के ऊपर रख दिया ....आह ... अब दीदी की नंगी बुर मेरे खड़े नंगे लंड से लगभग स्पर्श कर रही थी और उनका मुंह मेरे मुंह से बस इंच भर फासले पर था और उनकी गरम साँसे मेरे चेहरे पर पड़ रही थी ,साथ ही उन्होंने एक हाथ मेरी पीठ पर रख दिया था | अब उनकी बड़ी बड़ी चुंचियों का भार मेरे सीने पर था , जिसका गुद्दाज एहसास अनोखा ही था |अब मेरे लिए रुकना मुश्किल था | मेरा एक हाथ जो पेट पर था वो उनके कमर पर आ गया था ,जिसे मैंने थोडा नीचे खिसककर उनके चूतरों पर जमा दिया | थोड़ी देर तक मै बिना हिले डुले वैसे ही पड़ा रहा | मै सोंच ही रहा था कि अब कुछ आगे बढूँ तभी मैंने महसूस किया कि दीदी अपनी बुर को मेरे खड़े लंड बहुत हल्का -हल्का रगड़ रही है , लंड के सुपाडे पर हल्का दबाब बनता और फिर हट जाता ...फिर दबाब बनता ..और ये मै उनके चूतरों पर रखे हाथ पर हो रहे हलके दोलन से भी महसूस कर रहा था | अब शक कि कोई गुंजाइश नहीं थी कि दीदी जगी हुई थी और वासना के चरम पर चुदास से भरी हुई थी, तभी अपने छोटे भाई के लंड पर अपना चूत रगड़ रही थी | समय बर्बाद करना वेवकुफी थी , मैंने अपना मुंह आगे बढाकर दीदी के होंटो पर रख दिया और उसे चूसने लगा और हाथ को और नीचे ले जाकर उनके नंगे चूतरों को सहलाने लगा और साथ ही चूतरों को अपने लंड पर दबाने लगा | अपने दुसरे हाथ से उनकी चुन्चियों को भी दबा रहा था | तभी दीदी अपने दोनों हाथो से मेरा चेहरा पकड़ कर मेरे पूरे चेहरे को चूमने लगी , वो मेरे गर्दन और छातियों को भी चूम रही थी और एक हाथ से अपनी ब्लाउज खोलकर अपनी नंगी चुंचियां मेरे मुंह में पकड़ा दिया , मै बच्चे कि तरह उसे चुसना शुरू कर दिया | अब वो सिसिया रही थी ... इ.इ.इ.श.श.श ... अब मैं उनके ऊपर चढ़ गया और एक झटके में अपने झनझनाते लंड को दीदी कि पनिआइ बुर में पेल दिया | वो चिंहुकी... आ..आ..आ..ह..हह....ज.ज..र.आ.आ..धी..रे.पेलो..भ. इ.या एक.. साल बाद चुद रही हूँ.......और तुम्हारा बहूत तगड़ा है .....ठी.क... है ..दी..दी तू..जै.से. .क..हे..गी वैसे .. ही चोदुंगा..ये कहते हुए मैंने धीरे धीरे दीदी को चोदना शुरू किया | कब मेरा पूरा लंड दीदी कि बुर में घुस गया पता ही नहीं चला , और जैसे ही मुझे पता चला कि पूरा लंड अन्दर घुस चूका है मैं आश्चर्य से भर गया और फिर मैंने जोर जोर से चोदना शुरू किया | नीचे दीदी सिसकने लगी थी .. मा..र.. डा ला आ ..रे...बहनचोद .. इतना जबरदस्त चोदु निकलेगा .... ये तो सोचा ही नहीं ,..था ..मै तो गयी.. ई ...ई ..ई | इधर मैंने भी आठ दस धक्के लगाने के बाद दीदी कि बुर में ही झड़ने लगा | दीदी ने कसकर मुझे अपने बदन से चिपका लिया और झड़ने के काफी देर बाद तक मुझे अपने बांहों में समेटे रही |

थोड़ी देर बाद मैंने दीदी के चुन्चियों से खेलते हुए पूछा - दीदी तुम कब जगी ?
दीदी - तुम जब बाहर से अन्दर आकर दरवाजा बंद कर रहे थे , फिर तुम जब खिड़की बंद कर रहे थे तब मेरे मन में संदेह उठा की ये लड़का क्या कर रहा है ,फिर मेरा ध्यान मेरे साडी और पेटीकोट पर गया जो मेरे जांघो तक चढ़ी हुई थी , मैं अपने कपडे ठीक करने का सोंच ही रही थी की तुम मेरे पैरों के पास आकार खड़े हो गए ,फिर तुम झुककर टॉर्च से मेरी बुर देखने लगे , जी में आया की तुम्हे थप्पर मार दूँ लेकिन टॉर्च की मध्यम रौशनी में तुम्हारा वासना से तमतमाया चेहरा देखकर मन पसीज गया , मुझे अपने ऊपर गर्व हुआ और एक साल से मेरी अनचुदी बुर मचलकर गीली होने लगी ,मेरा दिल धड़कने लगा की तुम अगर मुझे चोदोगे तो मैं कैसे प्रतिक्रिया करुँगी ,फिर तुम जब मेरी बुर को अच्छे से देखने के लिए साडी और पेटीकोट को ऊपर उठाने का प्रयास कर थे तो मैं कुनमुना कर तुम्हारा काम आसान करने की कोशिश की लेकिन तुम डरकर वापस अपने जगह पर लेट गए ,मैं सोंचने लगी ये तो बड़ा डरपोक निकला तभी तुम अपने पैरो को मेरे पैरों से सटाकर उसे गिराने लगे तो मैं समझ गए की तुम क्या चाहते हो ,मैंने अपने हांथो से साडी को कमर तक खींच लिया और दोनों जांघो को छितरा दिया ताकि तुम जब दूसरी बार उठकर देखो तो मेरी फैली चुदासी बुर का आमंत्रण ठुकरा न सको लेकिन तुम तो जैसे मेरी धर्य की परीक्षा ले रहे थे ,बस ऊँगली बुर से सटाकर हटा लिया और फिर लेटकर अपना हाथ मेरे पेट पर रख दिया, मैं इन्तजार करती रही की तुम अब हाथ नीचे लाकर मेरी बुर सहलाओगे पर तुम चुपचाप दम साधे पड़े रहे , जो की मेरे बर्दास्त से बाहर हो रहा था ,मन कर रहा था की तुम्हारे ऊपर चढ़ जाऊं और जी भरकर अपनी बुर की प्यास बुझा दू इसलिए जब मैं तुम्हारी तरफ करवट बदली और तुमने अपना पैर सीधा किया तो मैंने महसूस किया की तुम्हारा लंड खडा है और नंगा है फिर मैंने अपनी बुर को तुम्हारे लंड पर धीरे धीरे घिसना शुरू किया तब जाकर तुम्हे सिग्नल मिला और तुमने मुझे बांहों में भर लिया और मुझे जिन्दगी की सबसे मस्त चुदाई का आनंद दिया |
 
 
 



 दीदी की बात सुनकर मै फिर गरम हो रहा था और मेरा लंड तनने लगा था जिसे बड़े प्यार से दीदी सहला रही थी | वो बोली - एक बात है तुम बड़े जबरदस्त चोदु निकलोगे , मै तो सपने में भी नहीं सोंच सकती थी कि एक किशोर से लड़के का इतना बड़ा हथियार भी हो सकता है , एक ही बार में तुने मेरी बुर का हर अनछुआ कोना -कोना रगड़ दिया |
मैं बोला - दीदी मैं भी हैरान हूँ कि आपकी चूत मेरा सारा लंड गटक कैसे गयी , क्या जीजाजी का भी इतना ही बड़ा है ?
दीदी - नहीं रे ! उनका तो तुमसे छोटा ही है और उनसे दूना मोटा भी है , देख मै तेरा तो अपनी पूरी मुठ्ठी में भी नहीं पकड़ पा रही हूँ और मेरे देवर का तो तेरे सामने पिद्दी सा है , परन्तु वो लंड भी दो साल से नसीब नहीं हुआ , दो साल से मेरा देवर भी काम के सिलसिले में बाहर रहता है अपनी बीबी के साथ , साला अब मुझे याद भी नहीं करता है , पिछली दिवाली में घर आया था , मैंने अपनी बुर को चिकना करके रखा था कि रात में किसी न किसी समय आकर मेरी बुर जरूर चोदेगा ,मै सारी रात अपनी बुर सहलाती रही परन्तु वो साला , बहनचोद , बीबी का गुलाम नहीं आया फिर मैंने अपनी उँगलियों से रगड़ कर ही अपनी बुर कि खुजली शांत क़ी |
मैं - दीदी आश्चर्य है क़ी लगभग साल भर से आपकी बुर चूदी नहीं है फिर भी आपने इतनी आसानी से मेरा पूरा लौड़ा ले लिया
दीदी - हंसते हुए ..ये सब बैगन और मूलियों का कमाल है |
घर में जब कभी अकेले होती हूँ और मोटा बैगन , मूली या खीरा दीखता है तो मै जरूर उसे अपनी चूत में ले लेती हूँ |
दीदी की बातें सुनकर मेरा लंड फुफकारने लगा और मै दीदी के ऊपर चढ़ गया , दीदी ने भी अपनी पैरों को फैलाकर अडजस्ट किया और मेरा लंड पकरकर अपने हांथो से बुर के छेद पर भिड़ा दिया और मुझे चोदने केलिए बोली | मैंने जोर से ठाप मारते हुए अपना लंड दीदी की बुर में चांपा | दीदी आ ..आ ..ह .ह .ह करते हुए कराही फिर मैंने उनकी एक चूंची को अपनी हथेली में भरकर मसलने लगा और दूसरी चूंची को मुंह में भरकर चुभलाने लगा और जब मैं उनके निप्पलस को चुभलाते हुए दांतों से हलके से काटता साथ ही नीचे से जोर का ठाप मरता तो वो सिसकते हुए प्यारी झिडकी देती “ इ.इ इ.....श श श .....धी .रे ..ब..ह..न ..चो ..द. धी ..रे .. अपनी ..बहन .. को इतनी ..बे ..द अ .र .दी से .. ना ..चो ..¦द ..¦में ..री.......¦फ ..ट..जा ..आ ..इ ...गी ¦ मैंने भी दीदी को गालियाँ निकालना शुरू किया ..साली ... बुरमरानी...अपनी बूर तो पहले ही बैगन से फा ..ड़..चुकी है और ..भाई का लंड लेते हुए नखड़ा करती है ..रंडी ..आज तो मै तेरी बूर का कचूमर निकालकर ही दम लूंगा आ .आ ...गालियाँ सुनकर दीदी काफी उत्तेजित होगयी और मेरी पीठ को अपने बांहों के घेरे में कस लिया और नीचे से चुतर उठा उठा कर मेरे करारे धक्को के साथ समन्वय बिठाने लगी फिर उनका शरीर अकड़ने लगा और वो झड गयी लेकिन मै अभी झडा नहीं था , झड़ता भी कैसे अभी थोड़ी देर पहले तो मैंने अपना पूरा माल उनकी चूत में निकाला था 


इसलिए उसी रफ़्तार में उन्हें चोदता रहा |दीदी के झड़ने के कारण उनकी बूर काफी गीली हो गयी थी इसलिए मेरा लंड बिना किसी अवरोध के बुर के आख़िरी हिस्से तक चला जा रहा था और तब सुपाडे पर जो दबाब बन रहा था वो आनंद की चरम सीमा थी | कुछ ही देर में दीदी फिर गरम होकर अपना चुतर उछालने लगी थी और थोड़े पलों में ही फिर उनका शरीर अकड़ने लगा , मुझे लगा जैसे वो फिर झड रही है | चूँकि मै भी झड़ने को बेताब था इसलिए मै लगातार धकाधक पेले जा रहा था और वो लगातार अस्फुट शब्दों में बडबडबडाये जा रही थी ,उनकी आंखे बंद थी और मै उनके होंटो और गालों को चुसे जा रहा था ,वो थोड़ी देर मेरा साथ देती और फिर शांत हो जाती | फिर मेरा शरीर भी तनने लगा और मै झड़ने लगा ,मैंने अनुमान लगाया की मेरे झड़ते- झड़ते दीदी कम से कम 6/7 बार आ चुकी थी | फिर मै उनके शरीर से उतरकर चित्त लेटकर गहरी साँसे लेने लगा और दीदी अपने सूखे होंटो पर जीभ फेर रही थी फिर वो बिस्तर से उठी तो मैंने पूछा क्या हुआ ? वो बोली - पानी पीने जा रही हूँ | वो पानी पीकर कब लौटी मुझे पता नहीं चला क्योंकि मैं सो चुका था |

 मेरी नींद खुली तो मैंने अपने लंड पर दबाब महसूस किया | सुबह के 4:30 बज रहे थे और दीदी मेरे ऊपर चढ़कर मेरे लंड पर उछल -उछलकर मुझे चोद रही थी | मैंने दोनों हाथ बढ़ाकर उनकी ऊपर नीचे होती गदराई चूंचियों को अपनी हथेली में भरकर मसलना शुरू कर दिया , बड़ा मजा आ रहा था , मुझे पहली बार महसूस हुआ की नीचे लेटने का आनंद क्या है | फिर दीदी थक कर , चोदना बंद करके आगे झुक कर अपनी चुचकों को बारी -बारी से मेरे मुंह में देने लगी जिसे मै चुभलाने लगा और अपने कार्यमुक्त हाथों को दीदी के चूतरों पर जमाकर उँगलियों से उनके गांड के छेद को कुरेदना शुरू कर दिया और नीचे से अपने कमर को उठा -उठा कर दीदी को चोदना चालु कर दिया | बीच -बीच में अपनी एक ऊँगली दीदी के गांड के छेद में पेल देता तो वो चिहुंक कर सिसक उठती | बड़ा मजा आ रहा था कि तभी बाहर से आवाज आयी - रागनी !! सुबह होने वाली है , खेतों में नही जाना है क्या , सारी रात भाई से चुदाते ही रहेगी क्या ??( औरतों का हुजूम खेतों में टट्टी के लिए उजाला फैलने से पहले जा रहा था ) मै घबराया कि इनलोगों को कैसे पता चला कि दीदी मेरे से चुद रही है , फिर ध्यान आया कि वो लोग भाभियाँ है और दीदी को मजाक में गालियाँ देने के लिए ऐसा बोल रही है | दीदी भी आवाज सुनते ही झट से कूदकर मेरे ऊपर से उतर गयी | मेरा लंड फ ..क .. कि आवाज के साथ दीदी के बुर से निकला और स्प्रिंग कि तरह उछलकर खडा होकर हवा में लहराने लगा | दीदी बिस्तर के बगल में खड़ी होकर अपना कपड़ा ठीक करने लगी और मुझे लंड ढकने का इशारा करने लगी | बड़ी मुश्किल से अपने खड़े लंड को दबाकर अपने पैंट में ठुंसा तब दीदी दरवाजा खोलकर उन औरतों के साथ बाहर चली गयी |

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