FUN-MAZA-MASTI
खुराक भी जरूरी है-3
दोस्तो, मेरी पिछली कहानी में मैंने बताया था कि कैसे मेरा ठिकाना लखनऊ में हुआ और फिर यहाँ जो ननद-भाभी की चूत के दर्शन सुलभ हुए तो वारे न्यारे हो गए और बाद में जब दोनों के बीच सब कुछ साफ़ हो गया तो मेरी उँगलियाँ समझो कि घी में तैर गईं।
दोनों ने समझौता कर लिया था और अब यह होता था कि भाई साहब ने बीवी और बहन को समझो, मेरे हवाले कर दिया था और अब एक रात मेरे साथ ज़रीना सोती थी तो एक रात निदा। ऐसे ही महीना गुज़र गया।
इस बीच कम्पनी के गुड़गांव ऑफिस से एक मेरी ही उम्र का लड़का नितिन लखनऊ शिफ्ट हुआ था और हफ्ते भर में ही मेरी उससे बड़ी अच्छी छनने लगी थी। दोनों ही अपने घरों से दूर एक नए शहर में अकेले थे तो दोस्ती हो जाना कोई बड़ी बात नहीं थी और हमारे बीच अंतरंग बातें भी साझा होने लगी।
वह भी एक नंबर का चोदू था लेकिन यहाँ उसके पास कोई जुगाड़ नहीं था और वो मुझे उकसाता था कि मैं ही उसके लिए कुछ जुगाड़ करूँ।
मैंने डरते-डरते ज़रीना से उसके लिए बात की तो मुझे सीधे धमकी सुनने को मिल गई कि अगर मैं किसी दोस्त को इस नियत से घर भी लाया तो समझो मेरा पत्ता यहाँ से कटा। फिर मैंने निदा से बात की तो जैसे तूफ़ान ही आ गया। वह तो ऐसे भड़की जैसे मैंने पता नहीं कौन सा गुनाह कर दिया।
बकौल उसके यह उसकी मज़बूरी थी कि वो मेरे साथ सो रही थी लेकिन मैं इससे आगे ऐसा सोच भी कैसे सकता हूँ और वो भी एक दूसरे धर्म लड़के के साथ? छि: छि: …
और वो मुझे लटी-पटी सुना कर ऐसे गई कि तीन दिन तो अपनी शकल ही न दिखाई और करीब सात-आठ दिन मुझे उसकी चूत के दर्शन भी न हुए।
इस बीच तीन बार ज़रीना से काम चलाया।
लेकिन कहते हैं न एक बार जब चूत को लंड की लत लग गई तो चुदाई का तय वक़्त होते ही उसमें अपने आप ‘चुल्ल’ मचने लगती है और फिर कुछ सही गलत, अच्छा बुरा नहीं दिखता।
आठ दिन जैसे तैसे गुज़ार कर आखिरकार फिर वो मेरे पास वापस आ ही गई, लेकिन नितिन से चुदने को अब भी तैयार नहीं थी और अपनी जीत होते देख मैंने भी इस प्रकरण को एंड नहीं किया और उसे लैपटॉप और मोबाइल पर ‘एमएमऍफ़’ यानि दो मर्द और एक औरत की चुदाई वाली फ़िल्में दिखा-दिखा कर उस अकूत आनन्द के बारे में बता-बता कर उसकी कल्पनाओं को अपने मनमाफिक उड़ान देता रहा।
कहते हैं न कि बात चाहे कितनी भी गन्दी और घिनौनी क्यों न हो लेकिन बार-बार कानों में पड़ती है तो मन को उसे सुनने की आदत हो जाती है और फिर विरोध भी शनै: शनै: क्षीण हो कर ख़त्म हो जाता है और ऐसा ही निदा के साथ भी हुआ।
जो बात पहली बार सुन कर वो आगबबूला हो गई थी करीब पंद्रह दिन के बाद उसी बात पर उसने यह पूछ लिया कि वो (नितिन) पूरी दुनिया को बताएगा तो नहीं?
मुझे तो जैसे मुँह-मांगी मुराद मिल गई। मैंने उसे भरोसा दिलाया कि वो मेरा खास दोस्त था और बेहद भरोसे का इंसान था और वैसे भी वो परदेसी है एकाध महीने के बाद वापस गुड़गांव चला जाएगा तो किसी को बता कर भी क्या हासिल कर लेगा।
फिर मैंने यह खुशखबरी नितिन को सुनाई…
वह पट्ठा भी सुन कर प्रसन्न हो गया कि चलो उसके लंड के लिए कुछ जुगाड़ तो हुआ।
मैंने निदा को स्कीम समझाई और ज़रीना को भी पटाया कि अब रात का सेक्स बहुत हो चुका, मैंने दिन के उजाले में निदा को देख-देख कर चोदना चाहता हूँ। वह ऐसा करे कि किसी दिन अपने परिवार को लेकर अपने मायके, जो चौक में था, वहाँ चली जाए और रात को ही वापस लौटे।
पहले तो मानी नहीं, लेकिन जब थोड़ा गुस्सा दिखाया और चले जाने को कहा तो लंड हाथ से निकलते देख फ़ौरन तैयार हो गई और रविवार के दिन का प्लान बना लिया।
फिर वह मुरादों वाला रविवार भी आया।
ज़रीना सुबह ही अपने परिवार को लेकर निकल गई और दस बजे मैंने नितिन को बुला लिया।
वह जब आया तो हम दोनों नीचे ही बैठे थे। दिखने में बंदा मुझसे भी हैंडसम था और उसे प्रथम दृष्टया देख कर निदा की आँखों में डर, अरुचि, मज़बूरी या अप्रियता के भाव न आए, बल्कि उसकी आँखें शर्म से झुक गईं तो मुझे तसल्ली हुई कि अब ऐन मौके पे पट्ठी बिदकेगी नहीं। उधर निदा को देख कर नितिन भी गदगद हो गया। इसमें भी कोई शक नहीं कि वह ज़बरदस्त माल थी।
बहरहाल, निदा को मैं नीचे ही छोड़ कर उसे ऊपर अपने कमरे में ले आया और हम इधर-उधर की बातें करने लगे। नितिन उतावला हो रहा था लेकिन मैं निदा को मानसिक रूप से तैयार होने के लिए थोड़ा समय देना चाहता था।
करीब आधे घंटे बाद मैंने उसे आवाज़ देकर ऊपर बुलाया।
उसने मेरी पुकार का उत्तर तो दिया, लेकिन ऊपर न आई…
मैंने दो बार और बुलाया लेकिन वह ऊपर न आई तो मैंने नितिन से कहा- नीचे ही चलना पड़ेगा बेटा।
इसके बाद अपने प्रोग्राम के लिए मैंने जो नीचे जुगाड़ करके रखी थी वो सम्भाले नितिन के साथ नीचे पहुँचा तो वह अपने कमरे में पहुँच चुकी थी।
जिस वक़्त हम दरवाज़े की चौखट पर पहुँचे वह अपने बेड के पायताने बैठी अपने पांव के अंगूठे से फर्श को कुरेद रही थी और चेहरा नीचे झुका रखा था। दुपट्टा कायदे से सीने पर व्यवस्थित था।
मैं उसके पास आ बैठा और उसे अपने कंधे से लगा कर उसका सर सहलाने लगा।
मेरे इशारा करने पर नितिन भी निदा के दूसरी तरफ उसके पास आ बैठा और उसकी वजह से निदा जैसे और भी सिमट गई।
मैंने उसके पहलू से हाथ अन्दर घुसा कर उसकी एक चूची सहलानी शुरू की और दूसरे हाथ से उसका चेहरा थाम कर उसके होंठ चूसने लगा। नितिन ने यह देख उसकी जाँघ पर हाथ रखा लेकिन उसने झटक दिया। नितिन ने मुझे देखा तो मैंने आँखों के इशारे से उसे कोशिश करते रहने को कहा और खुद अपने हाथ से उसका दुपट्टा हटा कर अलग फेंक दिया।
नितिन ने फिर उसकी जाँघ पर हाथ रखा… निदा ने फिर उसका हाथ झटकना चाहा, लेकिन इस बार मैंने थोड़ी फुर्ती दिखाते हुए अपने दोनों हाथ उसकी बगलों में घुसा कर ऊपर किए तो उसके दोनों हाथ स्वमेव ही मेरे कन्धों पर आ गए और फिर मैंने अपने होठों से उसके होंठ समेट लिए और उसकी ज़ुबान से किलोल करने लगा।
अब नितिन थोड़ा और सरक के निदा से एकदम सट गया और सीधे हाथ से उसकी जाँघें सहलाते हुए, उलटे हाथ से निदा की कमर थाम ली।
इस नए स्पर्श से निदा एकदम से सिहर गई। उसकी झुरझुरी मैंने भी महसूस की। उसने हिलने, कसमसाने की कोशिश की लेकिन हम दोनों के बंधन ऐसे सख्त थे कि फिर ढीली पड़ गई और नितिन के नए अजनबी हाथों को जैसे आत्मसात कर लिया।
नितिन ने सीधे अपने हाथ को उसके निचले तन पर फिराते हुए, दुपट्टा हटने के बाद कपड़ों के ऊपर से भी टेनिस बॉल जैसे उसके उरोज़ों पर ले आया। निदा ने फिर झुरझुरी ली, लेकिन मैंने उसे छूटने न दिया और आरम्भिक कसमसाहट के बाद जैसे अवरोध ख़त्म हो गया और नितिन बड़े प्यार से उसकी चूचियों को सहलाने, दबाने लगा।
मैंने तो निदा के हाथों को ऊपर किए अपने हाथ उसकी पीठ पर रखे। उसकी गर्दन और पीठ सख्ती से थाम रखी थी, लेकिन नितिन कुछ देर ऊपर से उन स्पंजी चूचियों का मर्दन करने के पश्चात् उसकी कुर्ती के अन्दर हाथ घुसा कर, उसकी त्वचा से स्पर्श करते हुए अब उसकी ब्रा तक पहुँच गया था और उसे ऊपर खिसकाने की कोशिश कर रहा था।
त्वचा पर उसकी गर्म हथेलियों की रगड़ ने पहले तो निदा को सिहराया, फिर इसी रगड़ ने उसे उत्तेजित करना शुरू कर दिया। जब नितिन उसकी ब्रा को ऊपर खिसका कर उसकी नग्न चूचियों तक पहुँचने में कामयाब रहा। अपने सधे हुए हाथों से उन नरम गुदाज गेंदों को सहलाते, दबाते उसके चुचूकों को मसलने और छेड़ने लगा, तो निदा के शरीर में एकाएक बढ़ी उत्तेजना मैं साफ़ अनुभव करने लगा।
उसके चुम्बन में प्रगाढ़ता और आक्रामकता आ गई।
उसकी सहायता के लिए मैंने न सिर्फ अपने हाथों को उसकी पीठ पर रखे हुए निदा की ब्रा के हुक खोल दिए बल्कि हाथ नीचे करके उसकी कुर्ती को एकदम से ऐसा ऊपर उठाया के उसकी भरी-भरी चूचियां नितिन की आँखों के आगे एकदम से अनावृत हो गईं और वह दोनों हाथों से उन पर जैसे टूट पड़ा।
उत्तेजना के अतिरेक से निदा की आँखें बंद सी हो गईं।
मैंने उसके होठों को छोड़ कर उसके गालों, गर्दन और कान को चूमते, चुभलाते और रगड़ते नितिन को संकेत किया और उसने साथ लाये सामान से शहद निकाल लिया।
यह शहद उसने निदा की दोनों भूरी-गुलाबी घुंडियों पर मल दिया और फिर एक चूची को उसने अपने मुँह में समेट लिया और ज़ुबान से उसकी घुंडी पर लगा शहद चूसने लगा। एक हाथ से न सिर्फ वह निदा की दूसरी चूची सहला रहा था, बल्कि उसकी घुंडी पर शहद भी मल रहा था।
मैं निदा के चेहरे को चूम रहा था और रगड़ रहा था, उसकी पीठ को सहला रहा था और नितिन एक-एक कर के दोनों चूचियों और घुंडियों पर शहद मल-मल कर उन्हें चूस रहा था।
निदा की सांसें उखड़ने लगी थीं।
उसके सारे शरीर में लहरें सी दौड़ने लगी थीं और साँसें भारी हो कर ‘सी-सी’ में बदल गई थीं।
नितिन ने ही उसकी सलवार का नाड़ा खोल दिया और उसे नीचे करने की कोशिश की, लेकिन इस हाल में भी निदा ने अपनी सलवार थाम ली और उसे नीचे नहीं होने दिया। मैंने उसके हाथ फिर बांध लिए और इस बार नितिन को सफलता मिल गई। उसने सलवार नीचे कर दी और खाली हाथ से पैंटी के ऊपर से ही उसकी पाव-रोटी जैसी फूली हुई चूत पर हाथ फिराया तो निदा कांप गई। नितिन के साथ ही मैंने भी अपना हाथ वहाँ पहुँचाया, तो उसकी पैंटी गीली मिली।
नितिन तो नहीं, पर मैंने ही उसके चूतड़ों की तरफ हाथ ले जाकर उसकी पैंटी की इलास्टिक में उंगली फँसाई और उसे थोड़ा उचका कर पैंटी को नीचे खिसकाने लगा।
अवरोध डालने के लिए निदा ने ताक़त लगाई, लेकिन नितिन ने भी नीचे हाथ डाल कर उसके चूतड़ों को ऊपर उठा दिया और पैंटी चूतड़ से नीचे हो गई और फिर दोनों जाँघों पर हम दोनों ने दबाव डाल कर उसकी पैंटी को उसके घुटनों तक पहुँचा दिया।
और.. यूँ नितिन को उसकी मखमली बुर के दर्शन हुए और मुझे भी दिन के उजाले में पहली बार निदा की उस चूत के दीदार हुए, जिसे मैं रातों के अँधेरे में कई बार अपनी ज़ुबान से भी चख चुका था।
आज बुर बिल्कुल सफाचट थी। लगता था जैसे सुबह ही शेविंग की हो… यानि मन से बंदी तैयार थी इस नए अनुभव के लिए।
बालों की जगह हल्का हरापन था और चूँकि हम बैठे या यह कहो कि अधलेटी अवस्था में थे तो बुर के पूरे दर्शन तो नहीं हो पा रहे थे, लेकिन ऊपर से जो आधी दिख रही थी उतनी भी कम शानदार नहीं थी।
उत्तेजना में हल्का सा उठा छोटा मांस और नीचे रक्षा कवच जैसी क्लियोटोरिस-वाल गहरे रंग में उत्तेजना के कारण अपने पूरे वजूद में दिख रही थी। मेरे साथ नितिन भी इस नज़ारे से मस्त हो गया।
उसने अपनी उँगलियाँ नीचे ले जाकर उसकी सम्पूर्ण योनि पर फिराई तो निदा काँप कर रह गई और उधर योनि से बहा चिपचिपा पदार्थ उसकी ऊँगलियों से लग गया। उसने अपनी ऊँगलियों को नाक के पास ला कर सूंघा और ऐसा लगा जैसे उस महक से नितिन मस्त हो गया हो। नितिन की आँखें बंद हो गईं, कुछ पल के लिए और उसने अपने होंठों से निदा की घुंडी निकाल कर ज़ुबान से उस लिसलिसे कामरस को चखा और फिर उसे उसी चूची पर लगा कर फिर उस पर अपनी ज़ुबान रगड़ने लगा।
अब निदा के चेहरे गर्दन से होकर मैं भी झुकते हुए उसकी बाईं चूची पर पहुँच गया।
अब निदा पीछे की तरफ इतना झुक गई कि उसे सहारे के लिए अपने हाथ बिस्तर पर टिका देने पड़े।
और हम दोनों शहद मल-मल कर उसकी घुंडियों और चूचियों को ऐसे चूसने लगे जैसे कोई भूखे बच्चे दूध पीने में लगे हों। यूँ तो उसकी चूत अनावृत थी लेकिन अभी हम सिर्फ उसे ऊपर से ही सहला रहे थे और इतने में भी निदा की गहरी-गहरी सिसकारियाँ छूटने लगी थीं।
दोनों घुन्डियाँ उत्तेजना से एकदम कड़ी होकर रह गई थीं। फिर मैं अपने पैर समेट कर बिस्तर पर ऊपर आ गया और निदा की पीठ के पीछे होकर उसे अपने सीने से लगाते हुए ऐसे सम्भाल लिया कि एक हाथ से उसका चेहरा दबाव बना कर अपनी तरफ मोड़ लिया और उँगलियाँ शहद से भीगा कर उसके होंठ और चेहरे को गीला कर दिया और अपनी बेक़रार जीभ से उसे चाटने लगा, तो दूसरे हाथ से उसकी चूत को सहलाते हुए उसके दाने को उँगलियों से गर्म करने लगा।
और इस पोज़ीशन में नितिन अपने दोनों हाथ और मुँह से निदा की गदराई चूचियों का स्तनपान करने लगा। साथ ही उसने अपनी पैंट और चड्डी नीचे खिसका कर अपना लंड बाहर निकाल लिया था, जो उत्तेजना से कड़ा हो कर अपने पूरे आकार में फनफना रहा था।
मुझे कहने में कोई हिचक नहीं कि उसका लंड मेरे मुकाबले न सिर्फ लम्बा था, बल्कि मुझसे मोटा भी था और उसका रंग भी इतना गोरा था कि वह किसी को भी पसंद आ सकता।
जब उसने निदा का हाथ थाम कर उसे अपने लंड पर रखा तो निदा ने चौंक कर आँखें खोलीं और उसे देखा और फ़ौरन अपना हाथ वापस खींच लिया लेकिन इस एक पल में मुझे उसकी आँखों में लहराए जो भाव दिखे, वो यह सन्देश दे गए कि उसे नितिन का लंड भा गया था और फिर शर्म से उसने फिर आँख बंद कर लीं और हम फिर अपने काम में लग गए।
यहाँ भी मुझे ही नितिन की मदद करनी पड़ी। मैंने निदा का हाथ ले जाकर उसके लंड पर रख कर ऐसा दबाया कि उसे संकेत समझ कर लंड हाथ में लेना पड़ा और वो उसे पकड़े ही रहती अगर नितिन उसके हाथ को ऊपर-नीचे न करता।
बहरहाल अब मैं निदा के चेहरे और होंठों को चूसे डाल रहा था, नितिन उसकी चूचियों को मसल-मसल कर घुंडियों का हाल बेहाल किए दे रहा था और निदा खुद धीरे-धीरे नितिन के लंड को सहला और दबा रही थी।
जब ऐसे ही कुछ देर हो गई तो मैंने भी अपना लोअर नीचे खिसका कर अपना सामान बाहर निकाल लिया और निदा की गर्दन पर दबाव डाल कर उसे इतना झुका दिया कि वो अधलेटी सी हो कर बाएं करवट हो कर झुकी और मेरे लंड तक पहुँच गई। पहले तो नए शख्स के सामने शर्म के कारण चेहरा इधर-उधर हटाया, लेकिन मेरे ज़ोर डालने पर उसे मुँह में ले ही लिया और उस पर अपनी जीभ रोल करने लगी।
पर इस अवस्था में उसकी दोनों चूचियाँ नीचे हो कर नितिन के आक्रमण से सुरक्षित हो गईं।
तो नितिन ने उसके नग्न गोरे और चमकते हुए चूतड़ों पर ध्यान दिया। वो पीछे से उसके चूतड़ों के बिलकुल करीब हो कर दोनों हाथों से डबल-रोटी जैसे मुलायम और गद्देदार चूतड़ों को फैला कर पीछे से उसकी गाण्ड का गुलाबी छेद और पीछे ख़त्म होती उसकी बुर को देखने लगा, जो मुझे तो नहीं दिख रही थी लेकिन मुझे पता है कि उसके कामरस से नहायी पड़ी होगी।
उस रस से उसने अपनी उंगली अच्छे से गीली की और फिर निदा की गाण्ड के छेद को कुरेदने लगा। छेद पर उसकी ऊँगली का स्पर्श पाते ही निदा एकदम कसमसाई लेकिन मैंने उसकी पीठ पर दबाव डाल कर उसे रोक लिया।
और उसी जद्दोजहद के बीच नितिन ने अपनी चिकनाई से भरी ऊँगली उसकी गाण्ड के छेद में अन्दर उतार दी।
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दोस्तो, मेरी पिछली कहानी में मैंने बताया था कि कैसे मेरा ठिकाना लखनऊ में हुआ और फिर यहाँ जो ननद-भाभी की चूत के दर्शन सुलभ हुए तो वारे न्यारे हो गए और बाद में जब दोनों के बीच सब कुछ साफ़ हो गया तो मेरी उँगलियाँ समझो कि घी में तैर गईं।
दोनों ने समझौता कर लिया था और अब यह होता था कि भाई साहब ने बीवी और बहन को समझो, मेरे हवाले कर दिया था और अब एक रात मेरे साथ ज़रीना सोती थी तो एक रात निदा। ऐसे ही महीना गुज़र गया।
इस बीच कम्पनी के गुड़गांव ऑफिस से एक मेरी ही उम्र का लड़का नितिन लखनऊ शिफ्ट हुआ था और हफ्ते भर में ही मेरी उससे बड़ी अच्छी छनने लगी थी। दोनों ही अपने घरों से दूर एक नए शहर में अकेले थे तो दोस्ती हो जाना कोई बड़ी बात नहीं थी और हमारे बीच अंतरंग बातें भी साझा होने लगी।
वह भी एक नंबर का चोदू था लेकिन यहाँ उसके पास कोई जुगाड़ नहीं था और वो मुझे उकसाता था कि मैं ही उसके लिए कुछ जुगाड़ करूँ।
मैंने डरते-डरते ज़रीना से उसके लिए बात की तो मुझे सीधे धमकी सुनने को मिल गई कि अगर मैं किसी दोस्त को इस नियत से घर भी लाया तो समझो मेरा पत्ता यहाँ से कटा। फिर मैंने निदा से बात की तो जैसे तूफ़ान ही आ गया। वह तो ऐसे भड़की जैसे मैंने पता नहीं कौन सा गुनाह कर दिया।
बकौल उसके यह उसकी मज़बूरी थी कि वो मेरे साथ सो रही थी लेकिन मैं इससे आगे ऐसा सोच भी कैसे सकता हूँ और वो भी एक दूसरे धर्म लड़के के साथ? छि: छि: …
और वो मुझे लटी-पटी सुना कर ऐसे गई कि तीन दिन तो अपनी शकल ही न दिखाई और करीब सात-आठ दिन मुझे उसकी चूत के दर्शन भी न हुए।
इस बीच तीन बार ज़रीना से काम चलाया।
लेकिन कहते हैं न एक बार जब चूत को लंड की लत लग गई तो चुदाई का तय वक़्त होते ही उसमें अपने आप ‘चुल्ल’ मचने लगती है और फिर कुछ सही गलत, अच्छा बुरा नहीं दिखता।
आठ दिन जैसे तैसे गुज़ार कर आखिरकार फिर वो मेरे पास वापस आ ही गई, लेकिन नितिन से चुदने को अब भी तैयार नहीं थी और अपनी जीत होते देख मैंने भी इस प्रकरण को एंड नहीं किया और उसे लैपटॉप और मोबाइल पर ‘एमएमऍफ़’ यानि दो मर्द और एक औरत की चुदाई वाली फ़िल्में दिखा-दिखा कर उस अकूत आनन्द के बारे में बता-बता कर उसकी कल्पनाओं को अपने मनमाफिक उड़ान देता रहा।
कहते हैं न कि बात चाहे कितनी भी गन्दी और घिनौनी क्यों न हो लेकिन बार-बार कानों में पड़ती है तो मन को उसे सुनने की आदत हो जाती है और फिर विरोध भी शनै: शनै: क्षीण हो कर ख़त्म हो जाता है और ऐसा ही निदा के साथ भी हुआ।
जो बात पहली बार सुन कर वो आगबबूला हो गई थी करीब पंद्रह दिन के बाद उसी बात पर उसने यह पूछ लिया कि वो (नितिन) पूरी दुनिया को बताएगा तो नहीं?
मुझे तो जैसे मुँह-मांगी मुराद मिल गई। मैंने उसे भरोसा दिलाया कि वो मेरा खास दोस्त था और बेहद भरोसे का इंसान था और वैसे भी वो परदेसी है एकाध महीने के बाद वापस गुड़गांव चला जाएगा तो किसी को बता कर भी क्या हासिल कर लेगा।
फिर मैंने यह खुशखबरी नितिन को सुनाई…
वह पट्ठा भी सुन कर प्रसन्न हो गया कि चलो उसके लंड के लिए कुछ जुगाड़ तो हुआ।
मैंने निदा को स्कीम समझाई और ज़रीना को भी पटाया कि अब रात का सेक्स बहुत हो चुका, मैंने दिन के उजाले में निदा को देख-देख कर चोदना चाहता हूँ। वह ऐसा करे कि किसी दिन अपने परिवार को लेकर अपने मायके, जो चौक में था, वहाँ चली जाए और रात को ही वापस लौटे।
पहले तो मानी नहीं, लेकिन जब थोड़ा गुस्सा दिखाया और चले जाने को कहा तो लंड हाथ से निकलते देख फ़ौरन तैयार हो गई और रविवार के दिन का प्लान बना लिया।
फिर वह मुरादों वाला रविवार भी आया।
ज़रीना सुबह ही अपने परिवार को लेकर निकल गई और दस बजे मैंने नितिन को बुला लिया।
वह जब आया तो हम दोनों नीचे ही बैठे थे। दिखने में बंदा मुझसे भी हैंडसम था और उसे प्रथम दृष्टया देख कर निदा की आँखों में डर, अरुचि, मज़बूरी या अप्रियता के भाव न आए, बल्कि उसकी आँखें शर्म से झुक गईं तो मुझे तसल्ली हुई कि अब ऐन मौके पे पट्ठी बिदकेगी नहीं। उधर निदा को देख कर नितिन भी गदगद हो गया। इसमें भी कोई शक नहीं कि वह ज़बरदस्त माल थी।
बहरहाल, निदा को मैं नीचे ही छोड़ कर उसे ऊपर अपने कमरे में ले आया और हम इधर-उधर की बातें करने लगे। नितिन उतावला हो रहा था लेकिन मैं निदा को मानसिक रूप से तैयार होने के लिए थोड़ा समय देना चाहता था।
करीब आधे घंटे बाद मैंने उसे आवाज़ देकर ऊपर बुलाया।
उसने मेरी पुकार का उत्तर तो दिया, लेकिन ऊपर न आई…
मैंने दो बार और बुलाया लेकिन वह ऊपर न आई तो मैंने नितिन से कहा- नीचे ही चलना पड़ेगा बेटा।
इसके बाद अपने प्रोग्राम के लिए मैंने जो नीचे जुगाड़ करके रखी थी वो सम्भाले नितिन के साथ नीचे पहुँचा तो वह अपने कमरे में पहुँच चुकी थी।
जिस वक़्त हम दरवाज़े की चौखट पर पहुँचे वह अपने बेड के पायताने बैठी अपने पांव के अंगूठे से फर्श को कुरेद रही थी और चेहरा नीचे झुका रखा था। दुपट्टा कायदे से सीने पर व्यवस्थित था।
मैं उसके पास आ बैठा और उसे अपने कंधे से लगा कर उसका सर सहलाने लगा।
मेरे इशारा करने पर नितिन भी निदा के दूसरी तरफ उसके पास आ बैठा और उसकी वजह से निदा जैसे और भी सिमट गई।
मैंने उसके पहलू से हाथ अन्दर घुसा कर उसकी एक चूची सहलानी शुरू की और दूसरे हाथ से उसका चेहरा थाम कर उसके होंठ चूसने लगा। नितिन ने यह देख उसकी जाँघ पर हाथ रखा लेकिन उसने झटक दिया। नितिन ने मुझे देखा तो मैंने आँखों के इशारे से उसे कोशिश करते रहने को कहा और खुद अपने हाथ से उसका दुपट्टा हटा कर अलग फेंक दिया।
नितिन ने फिर उसकी जाँघ पर हाथ रखा… निदा ने फिर उसका हाथ झटकना चाहा, लेकिन इस बार मैंने थोड़ी फुर्ती दिखाते हुए अपने दोनों हाथ उसकी बगलों में घुसा कर ऊपर किए तो उसके दोनों हाथ स्वमेव ही मेरे कन्धों पर आ गए और फिर मैंने अपने होठों से उसके होंठ समेट लिए और उसकी ज़ुबान से किलोल करने लगा।
अब नितिन थोड़ा और सरक के निदा से एकदम सट गया और सीधे हाथ से उसकी जाँघें सहलाते हुए, उलटे हाथ से निदा की कमर थाम ली।
इस नए स्पर्श से निदा एकदम से सिहर गई। उसकी झुरझुरी मैंने भी महसूस की। उसने हिलने, कसमसाने की कोशिश की लेकिन हम दोनों के बंधन ऐसे सख्त थे कि फिर ढीली पड़ गई और नितिन के नए अजनबी हाथों को जैसे आत्मसात कर लिया।
नितिन ने सीधे अपने हाथ को उसके निचले तन पर फिराते हुए, दुपट्टा हटने के बाद कपड़ों के ऊपर से भी टेनिस बॉल जैसे उसके उरोज़ों पर ले आया। निदा ने फिर झुरझुरी ली, लेकिन मैंने उसे छूटने न दिया और आरम्भिक कसमसाहट के बाद जैसे अवरोध ख़त्म हो गया और नितिन बड़े प्यार से उसकी चूचियों को सहलाने, दबाने लगा।
मैंने तो निदा के हाथों को ऊपर किए अपने हाथ उसकी पीठ पर रखे। उसकी गर्दन और पीठ सख्ती से थाम रखी थी, लेकिन नितिन कुछ देर ऊपर से उन स्पंजी चूचियों का मर्दन करने के पश्चात् उसकी कुर्ती के अन्दर हाथ घुसा कर, उसकी त्वचा से स्पर्श करते हुए अब उसकी ब्रा तक पहुँच गया था और उसे ऊपर खिसकाने की कोशिश कर रहा था।
त्वचा पर उसकी गर्म हथेलियों की रगड़ ने पहले तो निदा को सिहराया, फिर इसी रगड़ ने उसे उत्तेजित करना शुरू कर दिया। जब नितिन उसकी ब्रा को ऊपर खिसका कर उसकी नग्न चूचियों तक पहुँचने में कामयाब रहा। अपने सधे हुए हाथों से उन नरम गुदाज गेंदों को सहलाते, दबाते उसके चुचूकों को मसलने और छेड़ने लगा, तो निदा के शरीर में एकाएक बढ़ी उत्तेजना मैं साफ़ अनुभव करने लगा।
उसके चुम्बन में प्रगाढ़ता और आक्रामकता आ गई।
उसकी सहायता के लिए मैंने न सिर्फ अपने हाथों को उसकी पीठ पर रखे हुए निदा की ब्रा के हुक खोल दिए बल्कि हाथ नीचे करके उसकी कुर्ती को एकदम से ऐसा ऊपर उठाया के उसकी भरी-भरी चूचियां नितिन की आँखों के आगे एकदम से अनावृत हो गईं और वह दोनों हाथों से उन पर जैसे टूट पड़ा।
उत्तेजना के अतिरेक से निदा की आँखें बंद सी हो गईं।
मैंने उसके होठों को छोड़ कर उसके गालों, गर्दन और कान को चूमते, चुभलाते और रगड़ते नितिन को संकेत किया और उसने साथ लाये सामान से शहद निकाल लिया।
यह शहद उसने निदा की दोनों भूरी-गुलाबी घुंडियों पर मल दिया और फिर एक चूची को उसने अपने मुँह में समेट लिया और ज़ुबान से उसकी घुंडी पर लगा शहद चूसने लगा। एक हाथ से न सिर्फ वह निदा की दूसरी चूची सहला रहा था, बल्कि उसकी घुंडी पर शहद भी मल रहा था।
मैं निदा के चेहरे को चूम रहा था और रगड़ रहा था, उसकी पीठ को सहला रहा था और नितिन एक-एक कर के दोनों चूचियों और घुंडियों पर शहद मल-मल कर उन्हें चूस रहा था।
निदा की सांसें उखड़ने लगी थीं।
उसके सारे शरीर में लहरें सी दौड़ने लगी थीं और साँसें भारी हो कर ‘सी-सी’ में बदल गई थीं।
नितिन ने ही उसकी सलवार का नाड़ा खोल दिया और उसे नीचे करने की कोशिश की, लेकिन इस हाल में भी निदा ने अपनी सलवार थाम ली और उसे नीचे नहीं होने दिया। मैंने उसके हाथ फिर बांध लिए और इस बार नितिन को सफलता मिल गई। उसने सलवार नीचे कर दी और खाली हाथ से पैंटी के ऊपर से ही उसकी पाव-रोटी जैसी फूली हुई चूत पर हाथ फिराया तो निदा कांप गई। नितिन के साथ ही मैंने भी अपना हाथ वहाँ पहुँचाया, तो उसकी पैंटी गीली मिली।
नितिन तो नहीं, पर मैंने ही उसके चूतड़ों की तरफ हाथ ले जाकर उसकी पैंटी की इलास्टिक में उंगली फँसाई और उसे थोड़ा उचका कर पैंटी को नीचे खिसकाने लगा।
अवरोध डालने के लिए निदा ने ताक़त लगाई, लेकिन नितिन ने भी नीचे हाथ डाल कर उसके चूतड़ों को ऊपर उठा दिया और पैंटी चूतड़ से नीचे हो गई और फिर दोनों जाँघों पर हम दोनों ने दबाव डाल कर उसकी पैंटी को उसके घुटनों तक पहुँचा दिया।
और.. यूँ नितिन को उसकी मखमली बुर के दर्शन हुए और मुझे भी दिन के उजाले में पहली बार निदा की उस चूत के दीदार हुए, जिसे मैं रातों के अँधेरे में कई बार अपनी ज़ुबान से भी चख चुका था।
आज बुर बिल्कुल सफाचट थी। लगता था जैसे सुबह ही शेविंग की हो… यानि मन से बंदी तैयार थी इस नए अनुभव के लिए।
बालों की जगह हल्का हरापन था और चूँकि हम बैठे या यह कहो कि अधलेटी अवस्था में थे तो बुर के पूरे दर्शन तो नहीं हो पा रहे थे, लेकिन ऊपर से जो आधी दिख रही थी उतनी भी कम शानदार नहीं थी।
उत्तेजना में हल्का सा उठा छोटा मांस और नीचे रक्षा कवच जैसी क्लियोटोरिस-वाल गहरे रंग में उत्तेजना के कारण अपने पूरे वजूद में दिख रही थी। मेरे साथ नितिन भी इस नज़ारे से मस्त हो गया।
उसने अपनी उँगलियाँ नीचे ले जाकर उसकी सम्पूर्ण योनि पर फिराई तो निदा काँप कर रह गई और उधर योनि से बहा चिपचिपा पदार्थ उसकी ऊँगलियों से लग गया। उसने अपनी ऊँगलियों को नाक के पास ला कर सूंघा और ऐसा लगा जैसे उस महक से नितिन मस्त हो गया हो। नितिन की आँखें बंद हो गईं, कुछ पल के लिए और उसने अपने होंठों से निदा की घुंडी निकाल कर ज़ुबान से उस लिसलिसे कामरस को चखा और फिर उसे उसी चूची पर लगा कर फिर उस पर अपनी ज़ुबान रगड़ने लगा।
अब निदा के चेहरे गर्दन से होकर मैं भी झुकते हुए उसकी बाईं चूची पर पहुँच गया।
अब निदा पीछे की तरफ इतना झुक गई कि उसे सहारे के लिए अपने हाथ बिस्तर पर टिका देने पड़े।
और हम दोनों शहद मल-मल कर उसकी घुंडियों और चूचियों को ऐसे चूसने लगे जैसे कोई भूखे बच्चे दूध पीने में लगे हों। यूँ तो उसकी चूत अनावृत थी लेकिन अभी हम सिर्फ उसे ऊपर से ही सहला रहे थे और इतने में भी निदा की गहरी-गहरी सिसकारियाँ छूटने लगी थीं।
दोनों घुन्डियाँ उत्तेजना से एकदम कड़ी होकर रह गई थीं। फिर मैं अपने पैर समेट कर बिस्तर पर ऊपर आ गया और निदा की पीठ के पीछे होकर उसे अपने सीने से लगाते हुए ऐसे सम्भाल लिया कि एक हाथ से उसका चेहरा दबाव बना कर अपनी तरफ मोड़ लिया और उँगलियाँ शहद से भीगा कर उसके होंठ और चेहरे को गीला कर दिया और अपनी बेक़रार जीभ से उसे चाटने लगा, तो दूसरे हाथ से उसकी चूत को सहलाते हुए उसके दाने को उँगलियों से गर्म करने लगा।
और इस पोज़ीशन में नितिन अपने दोनों हाथ और मुँह से निदा की गदराई चूचियों का स्तनपान करने लगा। साथ ही उसने अपनी पैंट और चड्डी नीचे खिसका कर अपना लंड बाहर निकाल लिया था, जो उत्तेजना से कड़ा हो कर अपने पूरे आकार में फनफना रहा था।
मुझे कहने में कोई हिचक नहीं कि उसका लंड मेरे मुकाबले न सिर्फ लम्बा था, बल्कि मुझसे मोटा भी था और उसका रंग भी इतना गोरा था कि वह किसी को भी पसंद आ सकता।
जब उसने निदा का हाथ थाम कर उसे अपने लंड पर रखा तो निदा ने चौंक कर आँखें खोलीं और उसे देखा और फ़ौरन अपना हाथ वापस खींच लिया लेकिन इस एक पल में मुझे उसकी आँखों में लहराए जो भाव दिखे, वो यह सन्देश दे गए कि उसे नितिन का लंड भा गया था और फिर शर्म से उसने फिर आँख बंद कर लीं और हम फिर अपने काम में लग गए।
यहाँ भी मुझे ही नितिन की मदद करनी पड़ी। मैंने निदा का हाथ ले जाकर उसके लंड पर रख कर ऐसा दबाया कि उसे संकेत समझ कर लंड हाथ में लेना पड़ा और वो उसे पकड़े ही रहती अगर नितिन उसके हाथ को ऊपर-नीचे न करता।
बहरहाल अब मैं निदा के चेहरे और होंठों को चूसे डाल रहा था, नितिन उसकी चूचियों को मसल-मसल कर घुंडियों का हाल बेहाल किए दे रहा था और निदा खुद धीरे-धीरे नितिन के लंड को सहला और दबा रही थी।
जब ऐसे ही कुछ देर हो गई तो मैंने भी अपना लोअर नीचे खिसका कर अपना सामान बाहर निकाल लिया और निदा की गर्दन पर दबाव डाल कर उसे इतना झुका दिया कि वो अधलेटी सी हो कर बाएं करवट हो कर झुकी और मेरे लंड तक पहुँच गई। पहले तो नए शख्स के सामने शर्म के कारण चेहरा इधर-उधर हटाया, लेकिन मेरे ज़ोर डालने पर उसे मुँह में ले ही लिया और उस पर अपनी जीभ रोल करने लगी।
पर इस अवस्था में उसकी दोनों चूचियाँ नीचे हो कर नितिन के आक्रमण से सुरक्षित हो गईं।
तो नितिन ने उसके नग्न गोरे और चमकते हुए चूतड़ों पर ध्यान दिया। वो पीछे से उसके चूतड़ों के बिलकुल करीब हो कर दोनों हाथों से डबल-रोटी जैसे मुलायम और गद्देदार चूतड़ों को फैला कर पीछे से उसकी गाण्ड का गुलाबी छेद और पीछे ख़त्म होती उसकी बुर को देखने लगा, जो मुझे तो नहीं दिख रही थी लेकिन मुझे पता है कि उसके कामरस से नहायी पड़ी होगी।
उस रस से उसने अपनी उंगली अच्छे से गीली की और फिर निदा की गाण्ड के छेद को कुरेदने लगा। छेद पर उसकी ऊँगली का स्पर्श पाते ही निदा एकदम कसमसाई लेकिन मैंने उसकी पीठ पर दबाव डाल कर उसे रोक लिया।
और उसी जद्दोजहद के बीच नितिन ने अपनी चिकनाई से भरी ऊँगली उसकी गाण्ड के छेद में अन्दर उतार दी।
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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