FUN-MAZA-MASTI
बदनाम रिश्ते--राजन के कारनामे--6
आंटी ने लम्बी सांस लेकर कहा- चलो दिखाओ
मैंने पैंट कि जिप खोलकर अपना लिंग बाहर निकाला ...वह लिंग जो अभी थोड़ी देर पहले उछल कूद मचा रहा था , रोग का नाम सुनकर ही मुरझाया हुआ था | पैंट के बाहर आधे निकले मुरझाये लिंग को देखकर आंटी ने कहा - ऐसे में क्या पता चलेगा ?....पैंट तो उतारो | तब मैंने पैंट निकालकर वहीँ ड्रेसिंग टेबल कि कुर्सी पर रख दिया और अपना कच्छा नीचे जाँघों तक सरकाकर अपने लटके लिंग को दिखाते हुए आंटी से कहा - देखिये कहाँ सूजन है ...ठीक तो है, बस थोड़ा बड़ा है | आंटी गौर से देखते हुए बोली - ये तुम्हे थोड़ा बड़ा लगता है ....जितना तुम्हारा साधारण अवस्था में है ......इतना लंबा और मोटा तो प्रायः लोगो का उत्तेजित होने के बाद होता है ....यहाँ थोड़ा मेरे पास आओ ....मै देखना चाहती हूँ कि उतेज्जित अवस्था में इसमें कितना सूजन आता है ....थोड़ा इसे खडा करो ....
मैंने शर्माते हुए कहा - आपके सामने कैसे खडा होगा ....नहीं हो पायेगा
खडा तो हो जाएगा ....आंटी बोली ...शायद अभी तुरंत ..........कहते हुए आंटी ने अपना एक उठाकर मोड़े पर बैठने के आसन में बिस्तर पर रखा जिससे नाइटी ऊपर घुटनों तक चढ़ जाने के कारण मुझे उनके जांघो का झलक मिलने लगा और तुरंत मेरा नाग अपना फन उठाने लगा | मेरे नाग को जागते देख आंटी ने आहिस्ते से अपने हाथों से उसका सर सहलाया , तुरंत आवेश का एक तरंग मेरे शारीर में दौड़ गया ......ज्यों ज्यों आंटी उसे सहला रही थी त्यों त्यों 'वो' अपना आकार बढ़ा रहा था ....धीरे धीरे 'उसने' पूरी मुठ्ठी का आकार ले लिया | अब आंटी के चेहरे का रंग बदल रहा था , उनके कान सुर्ख होने लगे थे ....औरतों के इस रंग से तो थोड़ा बहुत मेरा परिचय हो चुका था |फिर जब आंटी ने मेरे 'नाग' को अपनी मुठ्ठी में लेकर भींचा तो .....इ..ई..स..स.. मेरा सिसकी निकल गया | आंटी ने अपना चेहरा ऊपर उठाकर मुझसे पूछा - दर्द हो रहा है ना ? मैंने आंटी की आँखों में झाँक कर देखा तो उसमे लाल डोरे तैर रहे थे | मैंने आँखों में देखते हुए कहा - नहीं आंटी ! मजा आ रहा है | तब आंटी ने मेरे 'नाग' को कसकर मरोड़ते हुए लरजते हुए धीमे स्वर में कहा - राजन! तुम मेरे बेटे को छोड़ दो , बदले में तुम जो मांगोगे ...दूंगी | मैंने कहा - दीजिएगा बाद में ....पहले ले लीजिये | मैंने देखा आंटी वासना भरी प्रश्नवाचक दृष्टि से मुझे देख रही थी | मैंने आंटी के सर पर दोनों हांथो को रखकर बालों में हाथ फिराने लगा | आंटी के हलके गीले रेशमी बालों में हाथ फिराने में मुझे बहुत मजा आ रहा था , परन्तु आंटी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि लेना क्या है ? आखिरकार उन्होंने पूछ ही लिया - क्या लूँ ? तब मैंने आंटी के सर को पकड़कर उनके गर्दन के पास लहराते नाग से उनके कोमल मुख को सटा दिया ...हालांकि उन्हें एहसास हो गया था तभी वह सर को पीछे की तरफ खींचना चाहा परन्तु मैंने भी हांथो के जोर से अपना लंड उनके मुह में पेल ही दिया ....आंटी गुं..गुं ..गुं ....करने लगी लेकिन मै और अन्दर पेलने के लिए जोर लगाता गया ... अंत में उन्हें यह एहसास हो गया की मै अपना लंड चुस्वाये बिना नहीं मानूंगा , तब बड़े प्यार से मेरा लंड चूसने लगी .....जब वो अपना जीभ मेरे सुपाडे पर फिराती तो मेरे पुरे शरीर में सनसनी दौड़ जाता | इस मामले में आंटी दीदी से ज्यादा एक्सपर्ट थी क्योंकि दीदी प्रायः पुरे लंड को चूसने के बजाय निगलने की कोशिश करती थी जबकि आंटी मस्त जीभचालक थी ....वो जीभ से लंड के सम्बेदनशील हिस्सों को छेड़ रही थी और अप्रतीम आनंद दे रही थी ... मैंने अपना कमर जोर जोर से चलाना शुरू किया क्योंकि मै आंटी के मुंह में ही झाड़ना चाहता था ....परन्तु आंटी ने थक के मेरा लंड अपने मुंह से निकाल दिया और सीधे बिस्तर पर चित होकर लेट गयी ....इशारा साफ़ था ..अब आंटी चुदना चाहती थी ....परन्तु मै एकायक मजे में व्यवधान उत्पन्न होने के कारण थोड़ा खिन्न हो गया क्योंकि मै अभी और खेलना चाहता था ...फिर मै आंटी के ऊपर लेटकर उनका चेहरा , गाल और अंत में उनके होंटों को चूमने चाटने लगा ...फिर मैंने उनकी नाइटी ऊपर गर्दन तक सरकाकर उनकी चुन्चियों को भींचना प्रारंभ कर दिया .....इधर आंटी मेरे लंड को अपने हांथो से पकड़कर अपने बुर से सटा रही थी ...जब उनसे रहा नहीं गया तो वो लडखडाते स्वर में बोली - रा..ज..न........ब..स.. ...एक ..बार...मु..झे.. ......चो....द ........लो ......फि....र ..कुछ ..और..करते र...ह....ना..आ...| फिर मैंने आंटी की हालत समझते हुए उनके शारीर से उतरा और उनके मोटे मोटे जांघो को जैसे ही फैलाया , चुदने की आस में मस्ती की ओस से लिजलिजाती झांटों भरी बुर चमक उठी .....आंटी की मस्त बुर को इतने नजदीक से देखने का यह मेरा पहला अवसर था ...मै उसमे उंगली करना चाहता था ...लेकिन आंटी ने अपने हाथों से मेरा लंड पकड़कर बुर की छेड़ से भिड़ा दिया ....मैंने भी समय न गंवाते हुए अपना लंड जोर लगाते हुए आंटी की पुए मालपुए जैसी फूली बुर में चांपा.....इधर आंटी की मस्ती भरी सिसकी निकली ..उधर दरवाजे के बेल की ट्रिन...ट्रिन .....हम दोनों सकते में थे कि इस समय कौन आ गया .........
हम दोनों सकते में थे | इधर मैंने फ़ौरन अपना लंड आंटी के बुर से खींचा, उधर आंटी उछलकर खड़ी हो गयी .. इस उम्र में भी आंटी की फुर्ती देखने योग्य थी | मै अभी असमंजस में ही था कि क्या करूँ ..कहाँ छुपु ?? तभी आंटी धीरे से फुसफुसाई - तुम वरुण के कमरे में जाकर कोई किताब निकालकर पढो . इधर मै देखती हूँ | मै अपना पैन्ट पहनते हुए वरुण के कमरे कि तरफ भागा | आगंतुक वरुण के पापा थे , मुझे उनकी आवाज सुनाई पड़ी - डार्लिंग , ..सो रही थी क्या ?... दरवाजा खोलने में बड़ी देर लगाई ....तभी आंटी फुसफुसाई - क्या करते हो ?(शायद पति ने उसे छेड़ा था )...एक बच्चा अभी घर में है | अंकल ने सोंचा शायद वरुण घर में है , तभी दरवाजे पर आते ही उन्होंने कहा - वरुण ! क्या कर रहे हो , बेटा? और कमरे में दाखिल हो गए | परन्तु कमरे में वरुण की जगह मुझे देखकर चौंके | फिर उन्होंने मुझसे पूछा वरुण कहाँ है | मैंने जबाब दिया - वरुण तो कॉलेज निकल गया , मेरा पिरीअड खाली था तो उसने अपना प्रैक्टिकल वर्क बुक मुझे दे गया है पूरा करने के लिए , ये देखिये... मै उसका ड्राइंग बना रहा था - मैंने टेबल पर पड़े वर्क बुक के ड्राइंग की तरफ इशारा किया | अपने बेटे के लिए उसके दोस्त की मेहनत को देखकर अंकल प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा- कम से कम फैन तो ऑन कर लेना था , देखो तुम पुरे पसीने से नहा गए हो (मै जल्दबाजी में पंखा भी चलाना भूल गया था...वो तो सोंच भी नहीं सकते थे की जिस पसीने को अपने बेटे की पढाई पर निकला मान रहे थे ...वो अभी अभी उनकी बीबी के शारीरिक मर्दन से निकला था और जिसके अंश शायद उनकी बीबी के पुरे शारीर के साथ उनकी बुर पर भी मौजूद थे ) | मैंने संभलते हुए बोला- पंखे से पेज फड- फडाने लगते है तो ड्राइंग में दिक्कत होती है | मैंने फिर दरवाजे के पास पीछे खड़ी आंटी को देखा जो मेरी होशियारी पर मंद मंद मुस्कुरा रही थी | तभी अंकल ने कहा - बेटा , पहले थोडा ठंडा लो फिर काम करना | मैंने कहा - मेरा काम ख़त्म हो गया है -बाकी लिखना है वो वरुण कर लेगा , अभी मै जाता हूँ -मेरा क्लास शुरू होने वाला है |
जैसे ही मै घर से बाहर निकला मैंने एक लम्बी सांस ली ......आनंद और डर...फिर आनंद...फिर डर ...का दौड़ ख़त्म हुआ | क्लास जाने का मन हो ही नहीं रहा था इसलिए थोडा रेस्ट करने लौज की तरफ चल पडा |लौज से पहले ही चाय की दूकान पर वरुण दिखाई पडा | उसे देखते ही मै गालियाँ निकलता हुआ उसकी तरफ लपका ..साले बहनचोद ...तू थोडा रुक नहीं सकता था ...साले मरवा दिया न ....बहन के लौड़े ....मादरचोद ....गांड में दम नहीं था तो क्यूँ करता है ..भडवे .....पता है न तेरी माँ ने कितना पकाया है मुझे .....रुक ही नहीं रही थी साली .....मन कर रहा था वहीँ पटककर पेल दूँ साली को .....( वो तो सपने में भी नहीं सोंच सकता था कि उसकी धर्मपरायण , रुढ़िवादी और सख्त विचारों वाली माँ की चूत की गहराई को अपने लम्बे और मोटे लंड से नाप के आ रहा हूँ ) चूँकि वरुण पहले से ही डरा हुआ था , इसलिए गालियाँ सुनकर भी मेरे पास आकर बोला- सॉरी यार ...मै गुस्से में आता हुए बोला - मादरचोद ...अगर आगे से ऐसा हुआ तो मै तेरी माँ का लेक्चर नहीं सुनूंगा ....सीधा पटककर तुम्हारे बदले तुम्हारी माँ की गांड मारुंगा..वो भी सूखा...फिर मत बोलना | वो धीरे से बोला - अब ऐसा नहीं होगा , मैंने अपने घर की चाभी की डुप्लीकेट चाभी अभी अभी बनबा के लाया हूँ ..एक तुम रखो , मुझे चाभी देते हुए बोला | हालाकि मै उसके घर की चाभी रखना नहीं चाहता था ..फिर ना जाने क्या सोंचकर ...शायद वरुण की अनुपस्थिति में उसकी माँ को चोदने ये मददगार होगी ...इसलिए अपने पास रख लिया और अपने घर चला आया |
अगले दिन मै कॉलेज न जाकर सीधे वरुण के घर १०:३० बजे पहुंचा | जैसे ही आंटी ने दरवाजा खोला तो वो चौंकी - फिर मै अन्दर घुस गया और दरवाजा बंद करते हुए बोला- अंकल को मै बैंक में देख के आया हूँ और वरुण भी कालेज पहुँच गया है , मैंने मोबाइल से पूछ लिया है ..अपने मोबाइल पर आंटी को वरुण का नंबर दिखाने के बहाने आंटी के पीछे पहुचकर अपना मोबाइल आगे ले जाकर दिखाया और पीछे से आंटी के चुतरों से चिपक गया | मेरे दोनों हाथ आंटी के बगलों से निकलकर मोबाइल को पकडे था और मेरे बाजुओं का शिकंजा माउन्ट एवरेस्ट के शिखरों पर कसने का असंभव प्रयास कर रहा था , जो प्रद्वंदिता में और तनकर उठ खड़े हो रहे थे | और जैसे ही आंटी ने नंबर देखने के लिए मोबइल पकड़ा मेरे आजाद हाथ किला फतह करने शिखरों पर फिसलने लगा | जहां एक तरफ पर्वत शिखर की चुभन मेरे उँगलियों पर एकुप्रेस्सर देकर मेरे छोटे नबाब को जगाकर उसे नीचे के गोल गुम्बदों के बीच घुसने के किये उकसा रही थी ,वहीँ दूसरी तरफ आंटी की साँसों को भारी कर उन्हें लेटने पर मजबूर कर रही थी | आंटी गहरी साँसे लेती हुई बोली - मुझे पता था की तुम जरूर आओगे पर इतनी जल्दी आओगे इसका अनुमान नहीं था | मैंने पूछा- कैसे आंटी ? आपको कैसे पता था की मै जरूर आउंगा |
आंटी बोली - क्यूँ ? आग लगा के नहीं गए थे ....फिर भी पुछते हो ? मै तब तक अपने बाएं हाथ को शिखरों से मुक्त करके आंटी की नाईटी के अन्दर घुसाकर चिकने पुष्ट - स्तंभों पर फिरा रहा था , …..आह क्या आनंद आ रहा था ..आंटी ने अन्तः वस्त्र -आवरण भी नहीं पहना था |तभी मेरी हथेली पर टप - टप करके पानी की दो बुँदे गिरी |
आंटीजी ! आग से तो यहाँ गर्मी होनी चाहिए थी पर यहाँ तो बरसात हो रही है ....ये कहते हुए मैंने अपनी दो उँगलियाँ जल के गुफा स्त्रोत में घुसा दिया...आंटी उछ्ल पड़ी- आह ..मार.... दिया ....रे | अब मै आंटी को भींचते हुए उनके बेडरूम में ले जाकर पटका और उनके ऊपर चढ़ गया |मेरा भी बुरा हाल था , आंटी को चोदने की कल्पना करते हुए सबेरे से दो बार मुठ मार चुका था | अतएब मैंने देर करना मुनासिब नहीं समझा और फटा -फट आंटी की नाइटी को चूचियों के ऊपर उठाकर उनको पूरा नंगा कर दिया |फटाफट मैंने अपने सारे कपडे उतारे और आंटी के ऊपर चढ़ कर उनकी झनझनाती बुर में अपना लौडा दनदनाने लगा और चुचिओं को बारी बारी चुभलाने लगा ...आंटी सिसकने लगी ...और जब मै कभी हौले से दांत से काटता तो उनकी कराहट तेज हो जाती | मै चोदे जा रहा था और वो अस्फुट शब्दों में सिसक रही थी .....आँ.........ऊं.........इस्स.............फिर वो झड़ने लगी , काफी समय बाद एक औरत की बुर की भरपूर ठुकाई करके मेरा लंड भी निहाल हो चुका था ....इसलिए मै भी आंटी के साथ ही झड़ने लगा |फिर निढाल होकर आंटी के बगल में लेट गया |
हम दोनों वैसे ही नंगे पड़े हुए थे कि मोबाइल की घंटी बजी | मै हडबडाकर उठा तो देखा मोबाइल भी हमारी तरह बिस्तर पर ही पड़ा हुआ था जो शायद आंटी को दबोचकर बिस्तर पर पटकने के क्रम में उनके हाथों से गिर गया था ...उठाकर देखा तो वरुण का फोन था ..मैंने रिसीव किया तो उसने पूछा कहाँ हो और आज कॉलेज क्यूँ नहीं आये ? मैंने कहा - यार ! आज तबियत ठीक नहीं थी ( अब मै उसे कैसे बताता कि उसकी मम्मी पूरी नंगी मेरे सामने टाँगे फैलाए पड़ी है और मै उसे पूरा मस्त चोद के हटा हूँ ,इसलिए उसकी मुम्मी की बुर अभी भी मेरे लंड का आकर लिए खुली पड़ी है ) फिर मैंने पूछा -आज फिजिक्स का क्लास हुआ है तो मुझे नोट्स दे देना और तू घर कब जाएगा ? उसने बोला - आड़े घंटे बाद इंग्लिश का क्लास है ,इसलिए लगभग डेढ़ घंटे बाद मै घर जाऊँगा ,तू उसके बाद कभी भी आके नोट्स ले जाना | अब मुझे पता था की मेरे पास अभी डेढ़ घंटे बचे है ......
आंटी उठकर नंगी ही बाथरूम को चली गयी और जब लौटी तो नाइटी उठकर पहनने लगी तो मै उछलकर खड़ा हो गया और उनके हाथो से नाइटी खीचकर फेंकते हुए बोला- आंटीजी ! ये क्या कर रही है..अभी तो हमारे पास डेढ़ घंटे बचे है | फिर मैंने आंटी को बांहों में भरकर उनके होटों को चूसने लगा और फिर से उनको गद्देदार बिस्तर पर पटका और फिर बेदर्दी से बुर को मुठ्ठियों में भींचकर मसलने लगा ...आउच .....क्या करते हो , अभी अभी तो चोदा है तुमने ....आंटी ने पूछा | आंटीजी अभी और चोदुंगा | मै फिर आंटी के बगल में लेट गया और उनकी चुन्चियों को सहलाने लगा...तभी आंटी बड़े नरम और भावुक स्वर में बोली - देखो राजन ! तुम्हे जब भी सेक्स की जरुरत हो तो मेरे पास आ जाना , पर प्लीज .... मेरे बच्चे को हाथ मत लगाना....वरुण मेरा इकलौता बेटा है ...मै चाहती हूँ की वो ठीक हो जाए ...इसलिए तुम्हे मैंने समर्पण किया है ....मै थोड़ी देर सोंचता रहा की अब मै इनको कैसे समझाऊं , फिर शांत स्वर में बोला - आंटी मेरे छोड देने मात्र से वो सुधरने वाला नहीं है ...मै नहीं होउंगा ,कोई और होगा ....मै तो सबसे आखरी हूँ मेरे पहले भी ...(आंटी ने मेरे मुह पे हाथ रख दिया )
फिर बोली - तो कैसे ? कैसे मै उसे ठीक करूँ
...(आंटी ने मेरे मुह पे हाथ रख दिया )
फिर बोली - तो कैसे ? कैसे मै उसे ठीक करूँ
मै बोला - देखिये , आप कल मुझे बार बार बीमार कह रही थी ,इसलिए मैंने नेट पर कल रात ' होमोसेक्सुअलिटी ' के बारे में सर्च किया तो पाया कि इससे निजात पाने का एक ही तरीका है ....
क्या ...कौन सा तरीका ...आंटी आशापूर्ण निगाहों से मेरी तरफ देखती हुई बोली |
मै अब भूमिका बांधते हुए बोला - अगर पुरुष समलैंगिक संबंधो में एक ही व्यक्ति बार बार या हमेशा स्त्री रोल निभाता है जैसे कि आपका बेटा ..वरुण, तो उसके लिए इससे बाहर आना बहुत कठिन होता है क्योकि वह अपनी पुरुषोचित व्यवहार (मर्दानगी ) भूलने लगता है ....| आंटी, जिनका चेहरा अभी अभी आशापूर्ण था ...वह क्रमशः मलीन होने लगा और फिर रुआंसी होकर बोली - क्या कोई तरीका नहीं है ?
वही तो मै बता रहा था - मै बोला - अगर किसी तरह से वह विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षित हो जाए और जो मजा उसे समलैंगिक संबंधो से मिलता है वही अगर किसी लड़की से मिलने लगे तो सुधर सकता है |
तो जाओ उसे लेकर....उसे स्त्री सानिध्य दिलाओ, चाहे जितना पैसा खर्च हो जाये ....बस बिमारियों का ख्याल रखना ' कोठों ' पर जाने से पहले ...कंडोम जरुर लगवाना .....आंटी उत्तेजना में बोली |
मै धीरे से बोला - आंटीजी ! रंडीखानो में तो वो जाते है जिनकी मर्दानगी पहले ही उबाल खा रही हो , वो भी वहां जाकर ठन्डे हो जाते है .......जो पहले से ही ठंडा हो , वो क्या उबाल खायेगा | उसमे पुरुषोचित एग्रेसन तब आयेगा जब बह खुद से किसी को पटा के चोदेगा......क्योकि जब वह किसी को पटायेगा तो उसे ' जीतने का एहसास ' होगा और उसकी मर्दानगी उबाल खाएगी | आंटी मेरी बुध्धिमतापूर्ण बातों को सुनकर अवाक रह गयी ...फिर बोली - अगर मै कोई लड़की उसे दिला दूँ तो वो सुधर तो जाएगा न ?
मैंने कहा - दिलाने से कुछ नहीं होगा , उसे हासिल करना होगा ...............लेकिन लड़कियों में तो उसे इंटरेस्ट है ही नहीं .अलबत्ता उसे औरतों में थोड़ी बहुत दिलचस्पी है ...विशेषरूप से बड़ी उम्र की औरतों में ...जिसकी बड़ी-बड़ी गांड हो ..मोटे-मोटे चूचे हों और भोसड़ा सरीखा फैली हुई बुर हो .....यूँ कहिये , बिल्कुल आपकी तरह |
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मैंने पैंट कि जिप खोलकर अपना लिंग बाहर निकाला ...वह लिंग जो अभी थोड़ी देर पहले उछल कूद मचा रहा था , रोग का नाम सुनकर ही मुरझाया हुआ था | पैंट के बाहर आधे निकले मुरझाये लिंग को देखकर आंटी ने कहा - ऐसे में क्या पता चलेगा ?....पैंट तो उतारो | तब मैंने पैंट निकालकर वहीँ ड्रेसिंग टेबल कि कुर्सी पर रख दिया और अपना कच्छा नीचे जाँघों तक सरकाकर अपने लटके लिंग को दिखाते हुए आंटी से कहा - देखिये कहाँ सूजन है ...ठीक तो है, बस थोड़ा बड़ा है | आंटी गौर से देखते हुए बोली - ये तुम्हे थोड़ा बड़ा लगता है ....जितना तुम्हारा साधारण अवस्था में है ......इतना लंबा और मोटा तो प्रायः लोगो का उत्तेजित होने के बाद होता है ....यहाँ थोड़ा मेरे पास आओ ....मै देखना चाहती हूँ कि उतेज्जित अवस्था में इसमें कितना सूजन आता है ....थोड़ा इसे खडा करो ....
मैंने शर्माते हुए कहा - आपके सामने कैसे खडा होगा ....नहीं हो पायेगा
खडा तो हो जाएगा ....आंटी बोली ...शायद अभी तुरंत ..........कहते हुए आंटी ने अपना एक उठाकर मोड़े पर बैठने के आसन में बिस्तर पर रखा जिससे नाइटी ऊपर घुटनों तक चढ़ जाने के कारण मुझे उनके जांघो का झलक मिलने लगा और तुरंत मेरा नाग अपना फन उठाने लगा | मेरे नाग को जागते देख आंटी ने आहिस्ते से अपने हाथों से उसका सर सहलाया , तुरंत आवेश का एक तरंग मेरे शारीर में दौड़ गया ......ज्यों ज्यों आंटी उसे सहला रही थी त्यों त्यों 'वो' अपना आकार बढ़ा रहा था ....धीरे धीरे 'उसने' पूरी मुठ्ठी का आकार ले लिया | अब आंटी के चेहरे का रंग बदल रहा था , उनके कान सुर्ख होने लगे थे ....औरतों के इस रंग से तो थोड़ा बहुत मेरा परिचय हो चुका था |फिर जब आंटी ने मेरे 'नाग' को अपनी मुठ्ठी में लेकर भींचा तो .....इ..ई..स..स.. मेरा सिसकी निकल गया | आंटी ने अपना चेहरा ऊपर उठाकर मुझसे पूछा - दर्द हो रहा है ना ? मैंने आंटी की आँखों में झाँक कर देखा तो उसमे लाल डोरे तैर रहे थे | मैंने आँखों में देखते हुए कहा - नहीं आंटी ! मजा आ रहा है | तब आंटी ने मेरे 'नाग' को कसकर मरोड़ते हुए लरजते हुए धीमे स्वर में कहा - राजन! तुम मेरे बेटे को छोड़ दो , बदले में तुम जो मांगोगे ...दूंगी | मैंने कहा - दीजिएगा बाद में ....पहले ले लीजिये | मैंने देखा आंटी वासना भरी प्रश्नवाचक दृष्टि से मुझे देख रही थी | मैंने आंटी के सर पर दोनों हांथो को रखकर बालों में हाथ फिराने लगा | आंटी के हलके गीले रेशमी बालों में हाथ फिराने में मुझे बहुत मजा आ रहा था , परन्तु आंटी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि लेना क्या है ? आखिरकार उन्होंने पूछ ही लिया - क्या लूँ ? तब मैंने आंटी के सर को पकड़कर उनके गर्दन के पास लहराते नाग से उनके कोमल मुख को सटा दिया ...हालांकि उन्हें एहसास हो गया था तभी वह सर को पीछे की तरफ खींचना चाहा परन्तु मैंने भी हांथो के जोर से अपना लंड उनके मुह में पेल ही दिया ....आंटी गुं..गुं ..गुं ....करने लगी लेकिन मै और अन्दर पेलने के लिए जोर लगाता गया ... अंत में उन्हें यह एहसास हो गया की मै अपना लंड चुस्वाये बिना नहीं मानूंगा , तब बड़े प्यार से मेरा लंड चूसने लगी .....जब वो अपना जीभ मेरे सुपाडे पर फिराती तो मेरे पुरे शरीर में सनसनी दौड़ जाता | इस मामले में आंटी दीदी से ज्यादा एक्सपर्ट थी क्योंकि दीदी प्रायः पुरे लंड को चूसने के बजाय निगलने की कोशिश करती थी जबकि आंटी मस्त जीभचालक थी ....वो जीभ से लंड के सम्बेदनशील हिस्सों को छेड़ रही थी और अप्रतीम आनंद दे रही थी ... मैंने अपना कमर जोर जोर से चलाना शुरू किया क्योंकि मै आंटी के मुंह में ही झाड़ना चाहता था ....परन्तु आंटी ने थक के मेरा लंड अपने मुंह से निकाल दिया और सीधे बिस्तर पर चित होकर लेट गयी ....इशारा साफ़ था ..अब आंटी चुदना चाहती थी ....परन्तु मै एकायक मजे में व्यवधान उत्पन्न होने के कारण थोड़ा खिन्न हो गया क्योंकि मै अभी और खेलना चाहता था ...फिर मै आंटी के ऊपर लेटकर उनका चेहरा , गाल और अंत में उनके होंटों को चूमने चाटने लगा ...फिर मैंने उनकी नाइटी ऊपर गर्दन तक सरकाकर उनकी चुन्चियों को भींचना प्रारंभ कर दिया .....इधर आंटी मेरे लंड को अपने हांथो से पकड़कर अपने बुर से सटा रही थी ...जब उनसे रहा नहीं गया तो वो लडखडाते स्वर में बोली - रा..ज..न........ब..स.. ...एक ..बार...मु..झे.. ......चो....द ........लो ......फि....र ..कुछ ..और..करते र...ह....ना..आ...| फिर मैंने आंटी की हालत समझते हुए उनके शारीर से उतरा और उनके मोटे मोटे जांघो को जैसे ही फैलाया , चुदने की आस में मस्ती की ओस से लिजलिजाती झांटों भरी बुर चमक उठी .....आंटी की मस्त बुर को इतने नजदीक से देखने का यह मेरा पहला अवसर था ...मै उसमे उंगली करना चाहता था ...लेकिन आंटी ने अपने हाथों से मेरा लंड पकड़कर बुर की छेड़ से भिड़ा दिया ....मैंने भी समय न गंवाते हुए अपना लंड जोर लगाते हुए आंटी की पुए मालपुए जैसी फूली बुर में चांपा.....इधर आंटी की मस्ती भरी सिसकी निकली ..उधर दरवाजे के बेल की ट्रिन...ट्रिन .....हम दोनों सकते में थे कि इस समय कौन आ गया .........
हम दोनों सकते में थे | इधर मैंने फ़ौरन अपना लंड आंटी के बुर से खींचा, उधर आंटी उछलकर खड़ी हो गयी .. इस उम्र में भी आंटी की फुर्ती देखने योग्य थी | मै अभी असमंजस में ही था कि क्या करूँ ..कहाँ छुपु ?? तभी आंटी धीरे से फुसफुसाई - तुम वरुण के कमरे में जाकर कोई किताब निकालकर पढो . इधर मै देखती हूँ | मै अपना पैन्ट पहनते हुए वरुण के कमरे कि तरफ भागा | आगंतुक वरुण के पापा थे , मुझे उनकी आवाज सुनाई पड़ी - डार्लिंग , ..सो रही थी क्या ?... दरवाजा खोलने में बड़ी देर लगाई ....तभी आंटी फुसफुसाई - क्या करते हो ?(शायद पति ने उसे छेड़ा था )...एक बच्चा अभी घर में है | अंकल ने सोंचा शायद वरुण घर में है , तभी दरवाजे पर आते ही उन्होंने कहा - वरुण ! क्या कर रहे हो , बेटा? और कमरे में दाखिल हो गए | परन्तु कमरे में वरुण की जगह मुझे देखकर चौंके | फिर उन्होंने मुझसे पूछा वरुण कहाँ है | मैंने जबाब दिया - वरुण तो कॉलेज निकल गया , मेरा पिरीअड खाली था तो उसने अपना प्रैक्टिकल वर्क बुक मुझे दे गया है पूरा करने के लिए , ये देखिये... मै उसका ड्राइंग बना रहा था - मैंने टेबल पर पड़े वर्क बुक के ड्राइंग की तरफ इशारा किया | अपने बेटे के लिए उसके दोस्त की मेहनत को देखकर अंकल प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा- कम से कम फैन तो ऑन कर लेना था , देखो तुम पुरे पसीने से नहा गए हो (मै जल्दबाजी में पंखा भी चलाना भूल गया था...वो तो सोंच भी नहीं सकते थे की जिस पसीने को अपने बेटे की पढाई पर निकला मान रहे थे ...वो अभी अभी उनकी बीबी के शारीरिक मर्दन से निकला था और जिसके अंश शायद उनकी बीबी के पुरे शारीर के साथ उनकी बुर पर भी मौजूद थे ) | मैंने संभलते हुए बोला- पंखे से पेज फड- फडाने लगते है तो ड्राइंग में दिक्कत होती है | मैंने फिर दरवाजे के पास पीछे खड़ी आंटी को देखा जो मेरी होशियारी पर मंद मंद मुस्कुरा रही थी | तभी अंकल ने कहा - बेटा , पहले थोडा ठंडा लो फिर काम करना | मैंने कहा - मेरा काम ख़त्म हो गया है -बाकी लिखना है वो वरुण कर लेगा , अभी मै जाता हूँ -मेरा क्लास शुरू होने वाला है |
जैसे ही मै घर से बाहर निकला मैंने एक लम्बी सांस ली ......आनंद और डर...फिर आनंद...फिर डर ...का दौड़ ख़त्म हुआ | क्लास जाने का मन हो ही नहीं रहा था इसलिए थोडा रेस्ट करने लौज की तरफ चल पडा |लौज से पहले ही चाय की दूकान पर वरुण दिखाई पडा | उसे देखते ही मै गालियाँ निकलता हुआ उसकी तरफ लपका ..साले बहनचोद ...तू थोडा रुक नहीं सकता था ...साले मरवा दिया न ....बहन के लौड़े ....मादरचोद ....गांड में दम नहीं था तो क्यूँ करता है ..भडवे .....पता है न तेरी माँ ने कितना पकाया है मुझे .....रुक ही नहीं रही थी साली .....मन कर रहा था वहीँ पटककर पेल दूँ साली को .....( वो तो सपने में भी नहीं सोंच सकता था कि उसकी धर्मपरायण , रुढ़िवादी और सख्त विचारों वाली माँ की चूत की गहराई को अपने लम्बे और मोटे लंड से नाप के आ रहा हूँ ) चूँकि वरुण पहले से ही डरा हुआ था , इसलिए गालियाँ सुनकर भी मेरे पास आकर बोला- सॉरी यार ...मै गुस्से में आता हुए बोला - मादरचोद ...अगर आगे से ऐसा हुआ तो मै तेरी माँ का लेक्चर नहीं सुनूंगा ....सीधा पटककर तुम्हारे बदले तुम्हारी माँ की गांड मारुंगा..वो भी सूखा...फिर मत बोलना | वो धीरे से बोला - अब ऐसा नहीं होगा , मैंने अपने घर की चाभी की डुप्लीकेट चाभी अभी अभी बनबा के लाया हूँ ..एक तुम रखो , मुझे चाभी देते हुए बोला | हालाकि मै उसके घर की चाभी रखना नहीं चाहता था ..फिर ना जाने क्या सोंचकर ...शायद वरुण की अनुपस्थिति में उसकी माँ को चोदने ये मददगार होगी ...इसलिए अपने पास रख लिया और अपने घर चला आया |
अगले दिन मै कॉलेज न जाकर सीधे वरुण के घर १०:३० बजे पहुंचा | जैसे ही आंटी ने दरवाजा खोला तो वो चौंकी - फिर मै अन्दर घुस गया और दरवाजा बंद करते हुए बोला- अंकल को मै बैंक में देख के आया हूँ और वरुण भी कालेज पहुँच गया है , मैंने मोबाइल से पूछ लिया है ..अपने मोबाइल पर आंटी को वरुण का नंबर दिखाने के बहाने आंटी के पीछे पहुचकर अपना मोबाइल आगे ले जाकर दिखाया और पीछे से आंटी के चुतरों से चिपक गया | मेरे दोनों हाथ आंटी के बगलों से निकलकर मोबाइल को पकडे था और मेरे बाजुओं का शिकंजा माउन्ट एवरेस्ट के शिखरों पर कसने का असंभव प्रयास कर रहा था , जो प्रद्वंदिता में और तनकर उठ खड़े हो रहे थे | और जैसे ही आंटी ने नंबर देखने के लिए मोबइल पकड़ा मेरे आजाद हाथ किला फतह करने शिखरों पर फिसलने लगा | जहां एक तरफ पर्वत शिखर की चुभन मेरे उँगलियों पर एकुप्रेस्सर देकर मेरे छोटे नबाब को जगाकर उसे नीचे के गोल गुम्बदों के बीच घुसने के किये उकसा रही थी ,वहीँ दूसरी तरफ आंटी की साँसों को भारी कर उन्हें लेटने पर मजबूर कर रही थी | आंटी गहरी साँसे लेती हुई बोली - मुझे पता था की तुम जरूर आओगे पर इतनी जल्दी आओगे इसका अनुमान नहीं था | मैंने पूछा- कैसे आंटी ? आपको कैसे पता था की मै जरूर आउंगा |
आंटी बोली - क्यूँ ? आग लगा के नहीं गए थे ....फिर भी पुछते हो ? मै तब तक अपने बाएं हाथ को शिखरों से मुक्त करके आंटी की नाईटी के अन्दर घुसाकर चिकने पुष्ट - स्तंभों पर फिरा रहा था , …..आह क्या आनंद आ रहा था ..आंटी ने अन्तः वस्त्र -आवरण भी नहीं पहना था |तभी मेरी हथेली पर टप - टप करके पानी की दो बुँदे गिरी |
आंटीजी ! आग से तो यहाँ गर्मी होनी चाहिए थी पर यहाँ तो बरसात हो रही है ....ये कहते हुए मैंने अपनी दो उँगलियाँ जल के गुफा स्त्रोत में घुसा दिया...आंटी उछ्ल पड़ी- आह ..मार.... दिया ....रे | अब मै आंटी को भींचते हुए उनके बेडरूम में ले जाकर पटका और उनके ऊपर चढ़ गया |मेरा भी बुरा हाल था , आंटी को चोदने की कल्पना करते हुए सबेरे से दो बार मुठ मार चुका था | अतएब मैंने देर करना मुनासिब नहीं समझा और फटा -फट आंटी की नाइटी को चूचियों के ऊपर उठाकर उनको पूरा नंगा कर दिया |फटाफट मैंने अपने सारे कपडे उतारे और आंटी के ऊपर चढ़ कर उनकी झनझनाती बुर में अपना लौडा दनदनाने लगा और चुचिओं को बारी बारी चुभलाने लगा ...आंटी सिसकने लगी ...और जब मै कभी हौले से दांत से काटता तो उनकी कराहट तेज हो जाती | मै चोदे जा रहा था और वो अस्फुट शब्दों में सिसक रही थी .....आँ.........ऊं.........इस्स.............फिर वो झड़ने लगी , काफी समय बाद एक औरत की बुर की भरपूर ठुकाई करके मेरा लंड भी निहाल हो चुका था ....इसलिए मै भी आंटी के साथ ही झड़ने लगा |फिर निढाल होकर आंटी के बगल में लेट गया |
हम दोनों वैसे ही नंगे पड़े हुए थे कि मोबाइल की घंटी बजी | मै हडबडाकर उठा तो देखा मोबाइल भी हमारी तरह बिस्तर पर ही पड़ा हुआ था जो शायद आंटी को दबोचकर बिस्तर पर पटकने के क्रम में उनके हाथों से गिर गया था ...उठाकर देखा तो वरुण का फोन था ..मैंने रिसीव किया तो उसने पूछा कहाँ हो और आज कॉलेज क्यूँ नहीं आये ? मैंने कहा - यार ! आज तबियत ठीक नहीं थी ( अब मै उसे कैसे बताता कि उसकी मम्मी पूरी नंगी मेरे सामने टाँगे फैलाए पड़ी है और मै उसे पूरा मस्त चोद के हटा हूँ ,इसलिए उसकी मुम्मी की बुर अभी भी मेरे लंड का आकर लिए खुली पड़ी है ) फिर मैंने पूछा -आज फिजिक्स का क्लास हुआ है तो मुझे नोट्स दे देना और तू घर कब जाएगा ? उसने बोला - आड़े घंटे बाद इंग्लिश का क्लास है ,इसलिए लगभग डेढ़ घंटे बाद मै घर जाऊँगा ,तू उसके बाद कभी भी आके नोट्स ले जाना | अब मुझे पता था की मेरे पास अभी डेढ़ घंटे बचे है ......
आंटी उठकर नंगी ही बाथरूम को चली गयी और जब लौटी तो नाइटी उठकर पहनने लगी तो मै उछलकर खड़ा हो गया और उनके हाथो से नाइटी खीचकर फेंकते हुए बोला- आंटीजी ! ये क्या कर रही है..अभी तो हमारे पास डेढ़ घंटे बचे है | फिर मैंने आंटी को बांहों में भरकर उनके होटों को चूसने लगा और फिर से उनको गद्देदार बिस्तर पर पटका और फिर बेदर्दी से बुर को मुठ्ठियों में भींचकर मसलने लगा ...आउच .....क्या करते हो , अभी अभी तो चोदा है तुमने ....आंटी ने पूछा | आंटीजी अभी और चोदुंगा | मै फिर आंटी के बगल में लेट गया और उनकी चुन्चियों को सहलाने लगा...तभी आंटी बड़े नरम और भावुक स्वर में बोली - देखो राजन ! तुम्हे जब भी सेक्स की जरुरत हो तो मेरे पास आ जाना , पर प्लीज .... मेरे बच्चे को हाथ मत लगाना....वरुण मेरा इकलौता बेटा है ...मै चाहती हूँ की वो ठीक हो जाए ...इसलिए तुम्हे मैंने समर्पण किया है ....मै थोड़ी देर सोंचता रहा की अब मै इनको कैसे समझाऊं , फिर शांत स्वर में बोला - आंटी मेरे छोड देने मात्र से वो सुधरने वाला नहीं है ...मै नहीं होउंगा ,कोई और होगा ....मै तो सबसे आखरी हूँ मेरे पहले भी ...(आंटी ने मेरे मुह पे हाथ रख दिया )
फिर बोली - तो कैसे ? कैसे मै उसे ठीक करूँ
...(आंटी ने मेरे मुह पे हाथ रख दिया )
फिर बोली - तो कैसे ? कैसे मै उसे ठीक करूँ
मै बोला - देखिये , आप कल मुझे बार बार बीमार कह रही थी ,इसलिए मैंने नेट पर कल रात ' होमोसेक्सुअलिटी ' के बारे में सर्च किया तो पाया कि इससे निजात पाने का एक ही तरीका है ....
क्या ...कौन सा तरीका ...आंटी आशापूर्ण निगाहों से मेरी तरफ देखती हुई बोली |
मै अब भूमिका बांधते हुए बोला - अगर पुरुष समलैंगिक संबंधो में एक ही व्यक्ति बार बार या हमेशा स्त्री रोल निभाता है जैसे कि आपका बेटा ..वरुण, तो उसके लिए इससे बाहर आना बहुत कठिन होता है क्योकि वह अपनी पुरुषोचित व्यवहार (मर्दानगी ) भूलने लगता है ....| आंटी, जिनका चेहरा अभी अभी आशापूर्ण था ...वह क्रमशः मलीन होने लगा और फिर रुआंसी होकर बोली - क्या कोई तरीका नहीं है ?
वही तो मै बता रहा था - मै बोला - अगर किसी तरह से वह विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षित हो जाए और जो मजा उसे समलैंगिक संबंधो से मिलता है वही अगर किसी लड़की से मिलने लगे तो सुधर सकता है |
तो जाओ उसे लेकर....उसे स्त्री सानिध्य दिलाओ, चाहे जितना पैसा खर्च हो जाये ....बस बिमारियों का ख्याल रखना ' कोठों ' पर जाने से पहले ...कंडोम जरुर लगवाना .....आंटी उत्तेजना में बोली |
मै धीरे से बोला - आंटीजी ! रंडीखानो में तो वो जाते है जिनकी मर्दानगी पहले ही उबाल खा रही हो , वो भी वहां जाकर ठन्डे हो जाते है .......जो पहले से ही ठंडा हो , वो क्या उबाल खायेगा | उसमे पुरुषोचित एग्रेसन तब आयेगा जब बह खुद से किसी को पटा के चोदेगा......क्योकि जब वह किसी को पटायेगा तो उसे ' जीतने का एहसास ' होगा और उसकी मर्दानगी उबाल खाएगी | आंटी मेरी बुध्धिमतापूर्ण बातों को सुनकर अवाक रह गयी ...फिर बोली - अगर मै कोई लड़की उसे दिला दूँ तो वो सुधर तो जाएगा न ?
मैंने कहा - दिलाने से कुछ नहीं होगा , उसे हासिल करना होगा ...............लेकिन लड़कियों में तो उसे इंटरेस्ट है ही नहीं .अलबत्ता उसे औरतों में थोड़ी बहुत दिलचस्पी है ...विशेषरूप से बड़ी उम्र की औरतों में ...जिसकी बड़ी-बड़ी गांड हो ..मोटे-मोटे चूचे हों और भोसड़ा सरीखा फैली हुई बुर हो .....यूँ कहिये , बिल्कुल आपकी तरह |
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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