FUN-MAZA-MASTI
मेरी जिंदगी--11
'आराम से बता देना ना तुम कहीं जा रही हो और ना ही मैं'
'नही ये आज ही ज़रूरी है क्यूंकी आज ही हामराई नयी जिंदगी की बुनियाद रखी जाएगी और मैं नही चाहती की मेरा कल मेरे आनेवाले कल पर किसी भी तरहा भावी पड़े - बेटे से सब कुछ कहने में मुझे बहुत झिझक थी पर पति से मैं कुछ नही छुपाना चाहती'
'क्या डेड.......'
'नही वो कुछ नही जानते- वोबहुत अच्छे हैं पर कभी मेरे इतने करीब नही आए की मैं अपना दिल खोल सकूँ'
राजेश चुप रहा वैसे भी वो यही चाहता था की भावना अपने अतीत को अपने मुँह से उगल डाले और अपने अंदर बसे दर्द से मुक्ति पा जाए.
भावना ने अपना सर राजेश के कंधे पे रख दिया और राजेश उसकी पीठ सहलाने लगा.
'उस रात जब मा के साथ संभोग किया था तब मुझे पहली बार इस बात का एहसास हुआ था की स्त्री पुरुष के जिस्मानी रिश्ते क्या होते हैं - मुझे ये बात हमेशा से कचोटती रही की ना तो मैं पूरी तरहा से एक लड़की का जीवन जी पा रही थी और ना ही एक लड़के का - जब थोड़ा वक़्त और गुजरा तो मेरे उरोज़ पूरी तरहा से विकसित हो गये. मुझे नही पता था की मेरे अंदर गरहभाशय पूरी तरहा से विकसित है बस कुछ हार्मोंस की ज़रूरत थी और मेरी योनि के मार्ग को खोलने की ज़रूरत थी. मा यही चाहती थी की मेरे अंडकोष अच्छी तरहा से विकसित हो जाएँ और फिर वो ऑपरेशन करवा कर स्त्री वाले सारे अंग मेरे जिस्म से निकलवा देती- पर होनी को कुछ और ही मंजूर था मेरे अंडकोष बिल्कुल भी विकसित नही हुए और इतने भी नही हुए की हार्मोंस का इलाज चल सके - डॉक्टर्स से बात कर मा ने एक साल का समय लिया ये देखने के लिए की कुद्रत क्या चाहती है - खाई मेरा अड्मिशन वहाँ एक स्कूल में करा दिया गया और वहाँ पहली बार मेरी एक सहेली बनी - रोज़ - लेकिन मैं उसे कभी नही बता सकी की मैं एक शी-मेल हूँ - ये राज मैने और मा ने हमेशा छुपा के रखा जब भी मेरे जिस्म में उत्तेजना बॅडती तो मैं मा के साथ संभोग किया करती.
एक बार स्कूल से हम पिकनिक पे एक दिन के लिए गये और हमे एक रात बाहर ही रुकना था - मा ने मुझे सकती से समझाया था की चाहे कुछ भी हो लड़कियाँ मुझे कुछ भी कहें मेरा राज कभी नही खुलना चाहिए यानी मैं लाकियों के सामने कभी भी नग्न नही हो सकती थी.
रोज़ और मुझे एक कमरा मिला - खाना खा के सब सोने की तयारि कर रहे थे मैने भी बाथरूम में जा कर अपने रात के कपड़े पह्न लिए और बिस्तर पे लेट गयी. तभी मैने देखा की रोज़ मुझ से कुछ छुपा कर कोई किताब देख रही थी मैं चुप चाप बिना कोई आवाज़ किए उसके पीछे चली गयी और धयान से देखने पर पता चला की वो कोई पॉर्न बुक देख रही थी जिसमे लड़के लड़कियों की नंगी तस्वीरें थी अलग अलग संभोग मुद्रा में. उस किताब को देख मुझ पर भी वासना का नशा चॅडने लगा और मैं रोज़ के साथ चिपक के बैठ गयी - वो थोड़ा घबरा गयी थी पर जब मेरे चेहरे पे हसी देखी तो उसे कुछ तसल्ली हुई की मैं उसकी शिकायत नही करूँगी.
फिर वो खुल कर मेरे साथ उस किताब को देखने लगी और उसमे एक एसा सीन भी था जिसमे दो लड़कियाँ आपस में चिपकी हुई एक दूसरे के जिस्म से खेल रही थी. रोज़ ने बड़ी गहरी नज़रों से मुझे देखा - हम दोनो की सांस तेज हो चुकी थी और आँखों में वासना के लाल डोरे तेर रहे थे. पता नही क्या हुआ की हम दोनो एक दूसरे से चिपक गयी और एक दूसरे के होंठ चूसने लग गयी. मैं ये भूल गयी थी की मेरा राज खुल जाएगा - मुझे बस उस वक़्त अपने जिस्म की आग बुझानी थी.
कुछ लड़कियों ने दरवाजा खटखटाना शुरू कर दिया. रोज़ ने फटाफट वो किताब छुपाई और मैने दरवाजा खोल दिया. बाहर हमारे ग्रूप की ४ लड़कियाँ थी जो अंदर घुस गयी और ताश खेलने के लिए कहने लगी.
हमे उनकी बात माननी पड़ी और उस दिन मेरा राज खुलते खुलते रह गया.
'फिर कुछ नही हुआ हम वापस आ गये पर मेरे होंठों पे रोज़ के होंठों की मीठास बनी रह गयी, मेरा दिल फिर उन होंठों को चूमने के लिए करने लगा पर मैं अपना मन दबा के रह गयी - मेरी जवानी पे निखार आता जा रहा था और लड़के मुझे घूर घूर के देखते थे - अब किसे ये पता था की मेरे पास योनि नही लिंग है- जेसे जेसे दिन गुजर रहे थे मेरे अंदर उत्तेजना की लहरें बॅडती जा रही थी - हर वक़्त मुझे बस सेक्स की ही इच्छा होने लगी और मेरी उम्र भी १८ के करीब पहुँच चुकी थी.
एक दिन पापा और दीदी बाहर गये हुए थे और मेरे पास मोका था उस दिन मैने पहली बार मा से खुल के बात की और फिर सारी रात हमने सेक्स किया मा ने मुझे उस रात सेक्स के अलग अलग आसन सीखाए
मैं रोज़ को भी भूल गयी बस अपनी मा में ही डूब के रह गयी मा के साथ जो मज़ा आने लगा था वो मुझे शांत रखने के लिए काफ़ी था . पर एक दिन घर में सब लोग किसी पार्टी में गये और देर रात तक नही आने वाले थे उस दिन मैने साथ के लिए रोज़ को घर बुला लिया.
हम एसे ही इधर उधर की बातें करते और टीवी देखते हुए अपना टाइम पास कर रहे थे की रोज़ ने टीवी का चेनल बदला एक इंग्लीश अडल्ट मूवी आ रही थी वो मूवी देखते देखते हम दोनो गरम हो गये और एक दूसरे को देखने लगे हमारी आँखों के सामने वो दिन आ गया जब पहली बार एक दूसरे को चूमा था तब रोज़ ने मुझ से पूछा
'भावना तूने कोई बॉय फ़्रेंड बनाया है क्या ?'
'नही मेरी किस्मत में बॉय फ़्रेंड आ ही नही सकता'
'मतलब? वो सब छोड़ तू बता तूने बनाया है क्या?'
'नही यार डर लगता है बहुत किससे सुने हैं लड़कियों की बदनामी के - पर '
'पर क्या?'
'पर ये जिस्म में जो आग लगी रहती है ये चैन से नही जीने देती कोई रास्ता समझ में नही आ रहा'
मुझे एक मोका दिख रहा था रोज़ की शुदा भी शांत हो जाती और मुझे एक और जिस्म मिल जाता खेलने के लिए - मा मेरे लिए कुछ करती थी पर फिर भी खुल के तो नही कर सकते थे इसलिए कम मोके मिला करते थे.
मैने उसे कुरेदने के लिए पूछा - 'सुना है लड़कियाँ आज कल डिल्डो का ईस्तमाल करती है खुजली भी मिट जाती है और बदनामी का डर भी नही रहता'
'पर जो मज़ा असली लंड में है वो नकली में कहाँ'
'फिर बना ले बॉय फ़्रेंड और लेले असली लंड का मज़ा'
'क्या यार वही तो नही कर सकती'
'फिर?'
'तू बुरा तो नही मानेगी'
'मैं समझी नही'
'देख जो मैं कह रही हूँ सुन आजकल लड़कियाँ भी आपस में सेक्स करती है और खूब मज़े लेती हैं तू अगर चाहे तो हम दोनो'
अब मैं इसे कैसे बताती की मेरे पास वो है जो उसे चाहिए.
'तो क्या तू मेरे साथ ?'
'अगर तुझे बुरा ना लगे तो'
'एक शर्त है इस बारे में किसी को पता नही चलना चाहिए चाहे हमारे बीच में कुछ भी हो - वो चाहे अच्छा लगे या बुरा'
'मैं बेवकूफ़ हूँ क्या जो किसी को बताउंगी'
'कभी कभी बातों बातों में बात निकल जाती है'
'तेरी कसम यार मेरा मुँह कभी नही खुलेगा - एक तू ही तो मेरी सबसे अच्छी दोस्त है - सिर्फ़ तुझ से ही तो ये बात करने की हिम्मत हुई मेरी'
रोज़ की बात सुन कर मुझे यकीन हो गया की आगे बड़ा जा सकता है पर अपना लंड उसे तब दिखाउंगी जब वो इतनी उत्तेजित हो जाएगी की हर हालत में लंड की माँग करेगी.
'मेरी चिंता दूर हो चुकी थी और रोज़ मेरे करीब आ कर खड़ी हो गयी हम दोनो एक दूसरे के होंठ चूसने लगे और मेरा लिंग उठने लगा मैने रोज़ के सारे कपड़े उतार डाले और अपने सिर्फ़ उपर वाले रोज़ ने सवालियाँ नज़रों से मुझे देखा तो मैं उसे कहा की पहले मैं उसे मज़ा देना चाहती हूँ फिर मैं अपने बाकी कपड़े उतार दूँगी.
रोज़ बिस्तर पे लेट गयी हम फिर एक दूसरे के होंठ चूसने लगे और एक दूसरे के निपल मसल्ने लगे. रोज़ की सिसकियाँ कमरे में गूंजने लगी, जेसा मुझे मा ने सीखया था मैं रोज़ के जिस्म के हर हिस्से को चूमने और चाटने लगी, रोज़ मस्ती में आँहें भर रही थी.
जब मैने रोज़ की चूत को चाटना शुरू किया तो वो ज़ोर ज़ोर से सिसकियाँ लेने लगी और थोड़ी देर बाद जब मुझे लगा की वो झड़ने वाली है तो मैं रुक गयी - रोज़ गुस्से में चीलाई - कामिनी रुक क्यूँ गयी मेरा होनेवाला था- उसकी बात की परवाह ना करते हुए. मैने ज़ोर से उसकी चूत मसल डाली और पूछा लंड से चुदेगि क्या? - लंड इस वक़्त कहाँ से मिलेगा - है चूस ना मैं झड़ने वाली थी'
'चल आँखें बंद कर और खोलना मत आज तुझे लंड का मज़ा देती हूँ- उसने अपनी आँखें बंद करी पर अपनी तसल्ली के लिए मैने अपनी चुननी से उसकी आँखें अच्छी तरहा बंद कर दी और फिर उसके दोनो हाथ भी बिस्तर से बाँध दिए. फिर मैने उसके होंठों को थोड़ी देर चूसा और अपने सारे कपड़े उतार कर उसकी झंगों के बीच बैठ कर अपने लंड को उसकी चूत पे रगड़ने लगी - जब उसे लंड का अहसास हुआ तो चिल्लाई - भावना तू किसको ले आई है आहह कौन है जो अपना लंड मेरी चूत पे घिस रहा है उफ़ मा हयरे आआआ'
'चुप कर साली बस तू चुद्ने का मज़ा ले पहले- और मैने अपना लंड उसकी छूट में घुसा डाला अभी तोड़ा ही घुसा था की वो ज़ोर से चिल्लाई --म्*म्म्ममममममममममममममममममममममम मैने फिर ज़ोर का झटका मारा और इस बार पूरा लंड उसकी चूत में घुसा डाला उूुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुउउऊऊऊऊओम्*म्म्मममममममममम वो बहुत ज़ोर से चीखी और छटपटाने लगी- मैने झुक कर उसके होंठ चूसने शुरू कर दिए और जब वो थोड़ा नरम पड़ी तो मैने उसे चोद्ना शुरू कर दिया अब उसकी कमर भी मेरे धक्कों के साथ उपर नीचे हो रही थी उसे मज़ा आने लगा था और धीरे धीरे मैने अपनी स्पीड बड़ा दी और ज़ोर ज़ोर से उसे चोद्ने लगी - उसकी टाइट चूत को चोद्ने में बहुत मज़ा आ रहा था थोड़ी देर बाद हम दोनो झाड़ गये और मैं उसके उपर गिर पड़ी जब उसे मेरे उरोज़ अपने उरोज़ पे महसूस हुए तो वो चिल्ला पड़ी - भावना तू..............'
'अब जो होना था हो चुका था मैने उसके हाथ खोल दिए और आँखों से पट्टी भी हटा दी वो हैरानी से मुझे देख रही थी उसके नज़रें बार बार मेरे लंड पे जा रही थी- भावना ----- हाँ रोज़ मैं एक शी-मेल हूँ और मेरा रोना निकल गया - उसने मुझे चुप कराया फिर काफ़ी देर तक मुझे तस्सल्ली देती रही
'वेसे आज तूने खूब मज़ा दिया यार अब मुझे लंड के लिए भटकना नही पड़ेगा और ना ही किसी तरहा का कोई डर रहेगा' कह कर वो मुझसे लिपट गयी.
अपनी दास्तान सुनाते सुनाते भावना काफ़ी गरम हो गयी थी उसने अपनी नशीली आँखों से राजेश को देखा - राजेश उसके मन की बात समझ गया और उसने अपने होंठ भावना के होंठों से सटा दिए.
राजेश ने जब भावना के होंठों से अपने होंठ अलग किए तो भावना ने कुछ बोलने की कोशिश करी-
'बस जान धीरे धीरे सुना देना आपने आप को और मत तडपाओ'
'ओह राज तुम कितने अच्छे हो - काश तुम पहले ही मेरी जिंदगी में आ जाते - इतने साल मैं तड़प के तो ना गुज़ारती'
'ये तो होनी है - मुझे तुमने ही जनम देना था अपने लिए - फिर केसे मैं पहले ही तुम्हारी जिंदगी में आ जाता- आज मैं तुमसे वादा करता हूँ जितना तुम तड़पी हो उससे कहीं ज़यादा अब तुम्हें सिर्फ़ सुख ही सुख मिलेगा'
'ओह राज मेरी जान - लव मी जानम - लव मी- नहला दो मुझे अपने प्यार से- दूर ले जाओ मुझे कहीं जहाँ बस हम दो हों और.......'
'और.....'
भावना राजेश के कान में बोली ' और हमारा बेटा' और शर्मा के उसकी छाती में अपना चेहरा छुपा लिया.
'याहूहुहुहू' राजेश ज़ोर से चिल्लाया और कस के भावना को खुद से लिपटा लिया - 'तो तायारी शुरू कर दें' भावना ने शरमाते हुए राजेश की छाती पे मुक्के बरसाने शुरू कर दिए.
'जानम एक से काम नही चलेगा - मुझे तो पूरी टीम चाहिए - अपनी आई पी एल टीम'
'धत - गंदे' और भावना ने अपना चेहरा अपने हाथों में छुपा लिया.
'अच्छा पूरी ना सही आधी टीम तो अपनी ही होनी चाहिए'
'उफ़ तुम तो......'
'क्या...'
'चलो अपनी टीम की त्यारी करो'
'सच'
'मूच'
'हाए मर जानवा गुड खा के' और राजेश पागलों की तरहा भावना को चूमने लगा और भावना उसके प्यार में पिघलती चली गयी.
जब राजेश उससे अलग हुआ तो बस उसे निहारने लगा ' एक चाँद आसमान पे है एक मेरे सामने'
'इतना प्यार करते हो मुझ से'
'सबूत चाहिए क्या?'
'हाँ'
'केसा?'
राजेश हैरानी से उसे देखने लगा. उसे यूँ हैरान देख कर भावना की हसी छूट गयी...और राजेश और भी हैरान हो गया. जब भावना हस्ते हुए थोड़ा संभली तो बोली ' बुदधू ---- जल्दी से एक बेटा देदो'
'ओ तेरी की --- मैं तो डर ही गया था'
'तभी तो कहा की बुदधू हो'
अभी बताता हूँ - और राजेश भावना पे चॅड गया और उसके होंठों को चूस्ते हुए उसके उरोज़ मसलने लगा और भावना की सिसकियाँ उसके मुँह में घुलने लगी.
भावना की बाँहें राजेश की पीठ पे कस्ति चली गयी और दोनो एक दूसरे के होंठ चूसने काटने में खो गये.
अचानक खिड़की अपने आप खुल गयी और ठंडी ठंडी हवाओं के झोंके दोनो को और भी मस्त करते चले गये. चाँद जेसे वहीं रुक गया और खिड़की से अपनी किर्ने अंदर फेंक कर दोनो को जेसे आशीर्वाद दे रहा था.
दो जिस्म दो आत्माएँ एक दूसरे में सामने को आतुर हो चुकी थी - सवर्ग की कोई अप्सरा भी इन्हें इस वक़्त देख लेती तो उसे भी रश्क होता - एसे प्रेम के आभाव का.
इस वक़्त खुश थे तो बस काम और रति - जो इन दोनो के जिस्म में समा चुके थे और इनके प्रेम को महसूस कर रहे थे.
भावना और राजेश दोनो आपस में लिपटे हुए एक दूसरे में खोए हुए थे यूँ लग रहा था जेसे नाग और नागिन रति क्रीड़ा में व्यस्त हों.
राजेश ने भावना के ब्लाउस के हुक खोलने शुरू कर दिए और भावना नयी नवेली दुल्हन की तरहा सिमटने लगी. जिस्म चाहे कितना भी प्यासा क्यूँ ना हो औरत अपनी लाज का गहना नही छोड़ पाती. ब्लाउस के खुलते ही भावना के उन्नत उरोज़ ब्रा में कसे झलकने लगे जो चीख चीख कर कह रहे थे हमे भी बंधन से मुक्त कर दो. राजेश के हाथ जब ब्रा के हुक खोलने के लिए भावना की पीठ के नीचे पहुँचे तो भावना ने अपने जिस्म को कमान की तरहा उठा लिया ताकि राजेश आसानी से उसकी ब्रा खोल सके- जैसे ही ब्राऔर ब्लाउस भावना के जिस्म से अलग हुए - राजेश बस उनकी सुदरता का रसपान करने लग गया और शर्म के मारे भावना का बुरा हाल होने लगा
'एसे मत देखो ना'
'क्यूँ ना देखूं अब तो ये मेरी धरोहर हैं इनकी सुंदरता को देखने - निहारने का मेरा हक़ है'
'शर्म आती है प्लीज़'
'तो तुम शरमाती रहो मुझे अपनी आँखों को सकूँ पहुँचने दो'
'छी - गंदे - गंदे'
'हाए मेरी जान' और राजेश ने भावना के वक्ष की घाटी में अपना चेहरा घुसा डाला और उसके जिस्म की खुश्बू से खुद को सराबोर करने लगा उसके दोनो हाथ किसी चुंबक की तरहा भावना के वक्ष के साथ चिपक गये.
'आह ओह मा' भावना सिसक पड़ी और उसके हाथ राजेश के बालों में घूमने लगे उसे सहलाने लगे.
भावना के वक्ष की घाटी में राजेश अपनी जीब फेरने लगा और भावना सिसकियों पे सिसकियाँ लेने लगी.
अच्छी तरहा उरोज़ओं के बीच की घाटी को चूमने और चाटने के बाद राजेश ने भावना के एक निपल को चूसना शुरू कर दिया.
'आह ओह म्म उफ़ आहह' भावना की सिसकियाँ तेज होने लगी और उसेनए राजेश के सर को अपने उरोज़ पे दबाना शुरू कर दिया, राजेश अपना मुँह खोलता चला गया और भावना का उरोज़ जितना हो सकता था उसके मुँह में समा गया जिसे राजेश अपनी जीब से चाटने लगा और दूसरे निपल को अपनी उंगलियों में मसल्ने लगा . बारी बारी राजेश दोनो निपल चूस्ता और उसके दोनो उरोज़ का मर्दन करता रहा. भावना के उरोज़ लाल सुख हो गये और जगह जगह लव बाइट्स के निशान पड़ने लगे.
कहते हैं की दर्द के साथ जो मज़े की लहरें उठती हैं उनका आलम ही कुछ और होता है और औरत को जो सुख मिलता है उसका वर्णन नही किया जा सकता. ये दर्द एक मीठा दर्द होता है और भावना भी इसे महसूस कर रही थी.
भावना के उरोज़ओं को अच्छी तरहा मसलने चूसने चाटने और काटने के बाद राजेश उसके जिस्म को चूमता हुआ नाभि स्थल तक आ गया आह क्या गहरी और गोल नाभि थी भावना की- राजेश ने अपनी जीभ नाभि में डाल दी और भावना का जिस्म तड़प कर एक कमान की तरहा उठ गया और वो ज़ोर से सिसक पड़ी. भावना के दोनो उरोज़ राजेश की थूक से सने हुए चमक रहे थे उनकी लाली देख ऐसा लग रहा था जेसे सूरज देवता ने खुश हो कर अपनी किरणों की लालिमा उनमें भर दी हो.
भावना की नाभि में अपनी ज़ुबान का करतब करते हुए राजेश के हाथों ने भावना के पेटिकोट का नाडा खोल दिया और उसे नीचे सरकने लगा भावना ने अपनी गांद उपर उठा ली और राजेश ने उसके पेटिकोट को नीचे सरका डाला जो उसकी परों तक आ गया था, भावा ने खुद अपनी टाँगों को हिला कर पेटिकोट जिस्म से अलग कर दिया और अब उसके जिस्म पे सिर्फ़ एक पेंटी ही बची थी.
राजेश नाभि से नीचे बॅडता है और भावना की झांघों को सहलाते हुए चूमने लगता है और भावना नागिन की तरहा मचलने लगती है, उसके जिस्म में उठती हुई तरंगें अब बेकाबू हो रही थी, उसके पेंटी पहले ही बहुत गीली हो चुकी थी.
भावना की दोनो झांघों को छमने और सहलाने बाद राजेश की नज़र जब पेंटी में कसी उसकी चूत पे पड़ी तो उसके अंदर भी एक तूफान उठने लगा उसकी आँखों में भावना का नशा साफ साफ देख रहा था और उसने अपना मुँह भावना की पेंटी से लगा दिया. भावा की टाँगें अपने आप फैलती चली गयी और राजेश उसकी चूत से उठती हुई नशीली सुगंध को अपने अंदर समाने लगा - और उसके होंठों ने भावना की चूत को पेंटी समेत ही अपने मुँह में ले लिया.
आआआआआआआआआआआआआआअ म्*म्म्मममममममममममाआआआआआआआआआआआआआअ
भावना ज़ोर से चीख सी पड़ी. उसकी पेंटी समेत राजेश उसकी चूत को अपने मुँह में भर के ज़ोर ज़ोर से चूसने लगा.
'बस प्लीज़ बस करो अब नही सहा जाता'
राजेश ने एक पल भावना की आँखों में देखा और फिर उसकी पेंटी को जिस्म से अलग कर दिया.
भावना की आँखें कह रही थी बस अब आ जाओ और मुझ में समा जाओ.
पेंटी उतरते ही भावना की सफाचट मखमली उभरी हुई चूत राजेश की आँखों के सामने थी, उसकी छूट के लब थरथरा रहे थे उनमें कंपन बहुत ज़यादा हो रहा था और धीरे धीरे रस की बूँदें बह रही थी.
राजेश झुक कर भावना की छूट को चाटने लगा जैसे दूध के उपर पड़ी मलाई को चाट रहा हो और भावना मचलने लगी सिसकियाँ भरने लगी.
'आह आज मार डालोगे क्या उफ़ और मत तडपाओ.'
राजेश की खुरदरी जीब भावना की चूत में हलचल मचाने लगी और भावना ज़ोर ज़ोर से सिसकियाँ लेने लगी.
'आह मा हाए देखो क्या कर रहा है आपका बेटा अफ कितना तडपा रहा है मुझे अह्ह्ह उफ्फ उईईइ मा'
राजेश ने जैसे ही अपनी जीब भावना की चूत में घुसा कर उसे जीब से चोद्ना शुरू किया भावना उछल पड़ी और अपने दोनो हाथों से उसने राजेश के सर को अपनी चूत पे दबा डाला और ज़ोर ज़ोर से सिसकने लगी. भावना ज़यादा देर तक ये खेल बर्दाश्त नही कर पायी और एक चीख मार के झड़ने लगी उसका ओर्गेसम इतना तेज हुआ था की उसके जिस्म में जान ही ना बची और वो आँखें बंद कर बिस्तर पे गिर पड़ी राजेश को यूँ लगा की जेसे उफनती हुई नदी ने सारे बाँध तोड़ दिए हों भावना की चूत इतना रस बहा रही थी की वो सारा पी ना सका और बिस्तर पे एक सैलाब सा बन गया.
राजेश उठ के भावना के साथ लेट गया और उसके चेहरे को निहारने लगा थोड़ी देर में भावना होश में आई और राजेश से लिपट गयी.
'आई लव यू जानू' कहती रही और राजेश को चूमती रही.
भावना ने उठ कर राजेश को भी नग्न कर दिया और उसके लंबे मोटे लंड को सहलाने लगी राजेश ने उसे इतना मज़ा दिया था की उसका दिल कर रहा था की वो राजेश के लंड को चूसने लग जाए पर दिल में कहीं हिचक थी की पता नही वो क्या सोचेगा इस लिए वो कुछ नही करती बस उसके साथ लेट जाती है और उसे अपने उपर खींचती है.
राजेश के उरोज़ओं का फिर मर्दन करने लग गया और उसका लंड भावना की चूत पे दस्तक देने लगा.
भावना अपनी कमर हिला हिला कर उसके लंड को अंदर लेने की कोशिश करने लगी और राजेश उसकी आँखों में देखने लगा- भावना शर्मा गयी और उसके साथ लिपट गयी.
'करो ना अब'
'क्या करूँ?'
उफ्फ क्यूँ सता रहे हो करो ना प्लीज़'
'बताओ तो सही क्या करूँ?'
'अपने बेटे को लाने की तायारी'
'कैसे?'
भावना समझ गयी की राजेश उसके मुँह से क्या सुनना चाहता है पर उसे शर्म आ रही थी
'प्लीज़ अब तंग मत करो'
'अरे मैं कहाँ तंग कर रहा हूँ'
'ओह मुझे पूरा बेशर्म बना के रहोगे'
'प्यार में कोई बेशर्मी नही होती सब खुला होता है'
'मुझे शर्म आ रही है ना'
'तो बन जाओ बेशर्म'
'नही मानोगे'
'ना'
भावना शरमाती हुई उसके कान में फुसफुसाती है ' चोदो मुझे'
'क्या ज़ोर से बोलो ना'
'उफ़फ्फ़ चोदो मुझे डाल दो अपना लंड मेरी चूत में'
'हूँ ये हुई ना बात' और राजेश ने एक ही झटके में अपना लंड उसकी चूत में पेल दिया.
आआआआआआआआअ भावना ज़ोर से चीख पड़ी और उसके नाख़ून राजेश की पीठ में गड़ गये.
'आराम से- इतने जालिम क्यूँ बन गये'
'आराम है हराम' और राजेश धाका धक उसकी छूट में अपना लंड अंदर बाहर करने लगा
भावना दर्द से करहाती रही और थोड़ी देर में उसकी चूत ने रस छोड़ दिया और उसे मज़ा आने लगा, उसकी कमर अपने आप उछलने लगी और दोनो के जिस्म तूफ़ानी गति से टकराने लगे.
कमरे में भावना की सिसकियाँ और उनके जिस्मो के टकराने की थाप गूंजने लगी.
राजेश एक मशीन की तरहा भावना को चोद रहा था और भावना भी उसकी ताल से ताल मिला रही थी. दोनो के जिस्म पसीने से तरबतर हो गये पर उनकी लय में कोई फरक नही पड़ा भावना दो बार झड़ गयी पर जब राजेश अपनी चर्म सीमा पे पहुँचने लगा तो भावना को उसका लंड अपनी चूत में फूलता हुआ महसूस होने लगा और राजेश के धक्के और भी तेज हो गये.
'आहह' एक चीख दोनो के मुँह से निकली और दोनो साथ साथ झड़ने लगे.
भावना की टाँगों ने राजेश की कमर को जाकड़ लिया और उसकी चूत ने राजेश के लंड को निचोड़ना शुरू कर दिया'
दोनो का ये सफ़र जब ख़तम हुआ तो राजेश भावना के उपर गिर कर हाँफने लगा.
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मेरी जिंदगी--11
'आराम से बता देना ना तुम कहीं जा रही हो और ना ही मैं'
'नही ये आज ही ज़रूरी है क्यूंकी आज ही हामराई नयी जिंदगी की बुनियाद रखी जाएगी और मैं नही चाहती की मेरा कल मेरे आनेवाले कल पर किसी भी तरहा भावी पड़े - बेटे से सब कुछ कहने में मुझे बहुत झिझक थी पर पति से मैं कुछ नही छुपाना चाहती'
'क्या डेड.......'
'नही वो कुछ नही जानते- वोबहुत अच्छे हैं पर कभी मेरे इतने करीब नही आए की मैं अपना दिल खोल सकूँ'
राजेश चुप रहा वैसे भी वो यही चाहता था की भावना अपने अतीत को अपने मुँह से उगल डाले और अपने अंदर बसे दर्द से मुक्ति पा जाए.
भावना ने अपना सर राजेश के कंधे पे रख दिया और राजेश उसकी पीठ सहलाने लगा.
'उस रात जब मा के साथ संभोग किया था तब मुझे पहली बार इस बात का एहसास हुआ था की स्त्री पुरुष के जिस्मानी रिश्ते क्या होते हैं - मुझे ये बात हमेशा से कचोटती रही की ना तो मैं पूरी तरहा से एक लड़की का जीवन जी पा रही थी और ना ही एक लड़के का - जब थोड़ा वक़्त और गुजरा तो मेरे उरोज़ पूरी तरहा से विकसित हो गये. मुझे नही पता था की मेरे अंदर गरहभाशय पूरी तरहा से विकसित है बस कुछ हार्मोंस की ज़रूरत थी और मेरी योनि के मार्ग को खोलने की ज़रूरत थी. मा यही चाहती थी की मेरे अंडकोष अच्छी तरहा से विकसित हो जाएँ और फिर वो ऑपरेशन करवा कर स्त्री वाले सारे अंग मेरे जिस्म से निकलवा देती- पर होनी को कुछ और ही मंजूर था मेरे अंडकोष बिल्कुल भी विकसित नही हुए और इतने भी नही हुए की हार्मोंस का इलाज चल सके - डॉक्टर्स से बात कर मा ने एक साल का समय लिया ये देखने के लिए की कुद्रत क्या चाहती है - खाई मेरा अड्मिशन वहाँ एक स्कूल में करा दिया गया और वहाँ पहली बार मेरी एक सहेली बनी - रोज़ - लेकिन मैं उसे कभी नही बता सकी की मैं एक शी-मेल हूँ - ये राज मैने और मा ने हमेशा छुपा के रखा जब भी मेरे जिस्म में उत्तेजना बॅडती तो मैं मा के साथ संभोग किया करती.
एक बार स्कूल से हम पिकनिक पे एक दिन के लिए गये और हमे एक रात बाहर ही रुकना था - मा ने मुझे सकती से समझाया था की चाहे कुछ भी हो लड़कियाँ मुझे कुछ भी कहें मेरा राज कभी नही खुलना चाहिए यानी मैं लाकियों के सामने कभी भी नग्न नही हो सकती थी.
रोज़ और मुझे एक कमरा मिला - खाना खा के सब सोने की तयारि कर रहे थे मैने भी बाथरूम में जा कर अपने रात के कपड़े पह्न लिए और बिस्तर पे लेट गयी. तभी मैने देखा की रोज़ मुझ से कुछ छुपा कर कोई किताब देख रही थी मैं चुप चाप बिना कोई आवाज़ किए उसके पीछे चली गयी और धयान से देखने पर पता चला की वो कोई पॉर्न बुक देख रही थी जिसमे लड़के लड़कियों की नंगी तस्वीरें थी अलग अलग संभोग मुद्रा में. उस किताब को देख मुझ पर भी वासना का नशा चॅडने लगा और मैं रोज़ के साथ चिपक के बैठ गयी - वो थोड़ा घबरा गयी थी पर जब मेरे चेहरे पे हसी देखी तो उसे कुछ तसल्ली हुई की मैं उसकी शिकायत नही करूँगी.
फिर वो खुल कर मेरे साथ उस किताब को देखने लगी और उसमे एक एसा सीन भी था जिसमे दो लड़कियाँ आपस में चिपकी हुई एक दूसरे के जिस्म से खेल रही थी. रोज़ ने बड़ी गहरी नज़रों से मुझे देखा - हम दोनो की सांस तेज हो चुकी थी और आँखों में वासना के लाल डोरे तेर रहे थे. पता नही क्या हुआ की हम दोनो एक दूसरे से चिपक गयी और एक दूसरे के होंठ चूसने लग गयी. मैं ये भूल गयी थी की मेरा राज खुल जाएगा - मुझे बस उस वक़्त अपने जिस्म की आग बुझानी थी.
कुछ लड़कियों ने दरवाजा खटखटाना शुरू कर दिया. रोज़ ने फटाफट वो किताब छुपाई और मैने दरवाजा खोल दिया. बाहर हमारे ग्रूप की ४ लड़कियाँ थी जो अंदर घुस गयी और ताश खेलने के लिए कहने लगी.
हमे उनकी बात माननी पड़ी और उस दिन मेरा राज खुलते खुलते रह गया.
'फिर कुछ नही हुआ हम वापस आ गये पर मेरे होंठों पे रोज़ के होंठों की मीठास बनी रह गयी, मेरा दिल फिर उन होंठों को चूमने के लिए करने लगा पर मैं अपना मन दबा के रह गयी - मेरी जवानी पे निखार आता जा रहा था और लड़के मुझे घूर घूर के देखते थे - अब किसे ये पता था की मेरे पास योनि नही लिंग है- जेसे जेसे दिन गुजर रहे थे मेरे अंदर उत्तेजना की लहरें बॅडती जा रही थी - हर वक़्त मुझे बस सेक्स की ही इच्छा होने लगी और मेरी उम्र भी १८ के करीब पहुँच चुकी थी.
एक दिन पापा और दीदी बाहर गये हुए थे और मेरे पास मोका था उस दिन मैने पहली बार मा से खुल के बात की और फिर सारी रात हमने सेक्स किया मा ने मुझे उस रात सेक्स के अलग अलग आसन सीखाए
मैं रोज़ को भी भूल गयी बस अपनी मा में ही डूब के रह गयी मा के साथ जो मज़ा आने लगा था वो मुझे शांत रखने के लिए काफ़ी था . पर एक दिन घर में सब लोग किसी पार्टी में गये और देर रात तक नही आने वाले थे उस दिन मैने साथ के लिए रोज़ को घर बुला लिया.
हम एसे ही इधर उधर की बातें करते और टीवी देखते हुए अपना टाइम पास कर रहे थे की रोज़ ने टीवी का चेनल बदला एक इंग्लीश अडल्ट मूवी आ रही थी वो मूवी देखते देखते हम दोनो गरम हो गये और एक दूसरे को देखने लगे हमारी आँखों के सामने वो दिन आ गया जब पहली बार एक दूसरे को चूमा था तब रोज़ ने मुझ से पूछा
'भावना तूने कोई बॉय फ़्रेंड बनाया है क्या ?'
'नही मेरी किस्मत में बॉय फ़्रेंड आ ही नही सकता'
'मतलब? वो सब छोड़ तू बता तूने बनाया है क्या?'
'नही यार डर लगता है बहुत किससे सुने हैं लड़कियों की बदनामी के - पर '
'पर क्या?'
'पर ये जिस्म में जो आग लगी रहती है ये चैन से नही जीने देती कोई रास्ता समझ में नही आ रहा'
मुझे एक मोका दिख रहा था रोज़ की शुदा भी शांत हो जाती और मुझे एक और जिस्म मिल जाता खेलने के लिए - मा मेरे लिए कुछ करती थी पर फिर भी खुल के तो नही कर सकते थे इसलिए कम मोके मिला करते थे.
मैने उसे कुरेदने के लिए पूछा - 'सुना है लड़कियाँ आज कल डिल्डो का ईस्तमाल करती है खुजली भी मिट जाती है और बदनामी का डर भी नही रहता'
'पर जो मज़ा असली लंड में है वो नकली में कहाँ'
'फिर बना ले बॉय फ़्रेंड और लेले असली लंड का मज़ा'
'क्या यार वही तो नही कर सकती'
'फिर?'
'तू बुरा तो नही मानेगी'
'मैं समझी नही'
'देख जो मैं कह रही हूँ सुन आजकल लड़कियाँ भी आपस में सेक्स करती है और खूब मज़े लेती हैं तू अगर चाहे तो हम दोनो'
अब मैं इसे कैसे बताती की मेरे पास वो है जो उसे चाहिए.
'तो क्या तू मेरे साथ ?'
'अगर तुझे बुरा ना लगे तो'
'एक शर्त है इस बारे में किसी को पता नही चलना चाहिए चाहे हमारे बीच में कुछ भी हो - वो चाहे अच्छा लगे या बुरा'
'मैं बेवकूफ़ हूँ क्या जो किसी को बताउंगी'
'कभी कभी बातों बातों में बात निकल जाती है'
'तेरी कसम यार मेरा मुँह कभी नही खुलेगा - एक तू ही तो मेरी सबसे अच्छी दोस्त है - सिर्फ़ तुझ से ही तो ये बात करने की हिम्मत हुई मेरी'
रोज़ की बात सुन कर मुझे यकीन हो गया की आगे बड़ा जा सकता है पर अपना लंड उसे तब दिखाउंगी जब वो इतनी उत्तेजित हो जाएगी की हर हालत में लंड की माँग करेगी.
'मेरी चिंता दूर हो चुकी थी और रोज़ मेरे करीब आ कर खड़ी हो गयी हम दोनो एक दूसरे के होंठ चूसने लगे और मेरा लिंग उठने लगा मैने रोज़ के सारे कपड़े उतार डाले और अपने सिर्फ़ उपर वाले रोज़ ने सवालियाँ नज़रों से मुझे देखा तो मैं उसे कहा की पहले मैं उसे मज़ा देना चाहती हूँ फिर मैं अपने बाकी कपड़े उतार दूँगी.
रोज़ बिस्तर पे लेट गयी हम फिर एक दूसरे के होंठ चूसने लगे और एक दूसरे के निपल मसल्ने लगे. रोज़ की सिसकियाँ कमरे में गूंजने लगी, जेसा मुझे मा ने सीखया था मैं रोज़ के जिस्म के हर हिस्से को चूमने और चाटने लगी, रोज़ मस्ती में आँहें भर रही थी.
जब मैने रोज़ की चूत को चाटना शुरू किया तो वो ज़ोर ज़ोर से सिसकियाँ लेने लगी और थोड़ी देर बाद जब मुझे लगा की वो झड़ने वाली है तो मैं रुक गयी - रोज़ गुस्से में चीलाई - कामिनी रुक क्यूँ गयी मेरा होनेवाला था- उसकी बात की परवाह ना करते हुए. मैने ज़ोर से उसकी चूत मसल डाली और पूछा लंड से चुदेगि क्या? - लंड इस वक़्त कहाँ से मिलेगा - है चूस ना मैं झड़ने वाली थी'
'चल आँखें बंद कर और खोलना मत आज तुझे लंड का मज़ा देती हूँ- उसने अपनी आँखें बंद करी पर अपनी तसल्ली के लिए मैने अपनी चुननी से उसकी आँखें अच्छी तरहा बंद कर दी और फिर उसके दोनो हाथ भी बिस्तर से बाँध दिए. फिर मैने उसके होंठों को थोड़ी देर चूसा और अपने सारे कपड़े उतार कर उसकी झंगों के बीच बैठ कर अपने लंड को उसकी चूत पे रगड़ने लगी - जब उसे लंड का अहसास हुआ तो चिल्लाई - भावना तू किसको ले आई है आहह कौन है जो अपना लंड मेरी चूत पे घिस रहा है उफ़ मा हयरे आआआ'
'चुप कर साली बस तू चुद्ने का मज़ा ले पहले- और मैने अपना लंड उसकी छूट में घुसा डाला अभी तोड़ा ही घुसा था की वो ज़ोर से चिल्लाई --म्*म्म्ममममममममममममममममममममममम मैने फिर ज़ोर का झटका मारा और इस बार पूरा लंड उसकी चूत में घुसा डाला उूुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुउउऊऊऊऊओम्*म्म्मममममममममम वो बहुत ज़ोर से चीखी और छटपटाने लगी- मैने झुक कर उसके होंठ चूसने शुरू कर दिए और जब वो थोड़ा नरम पड़ी तो मैने उसे चोद्ना शुरू कर दिया अब उसकी कमर भी मेरे धक्कों के साथ उपर नीचे हो रही थी उसे मज़ा आने लगा था और धीरे धीरे मैने अपनी स्पीड बड़ा दी और ज़ोर ज़ोर से उसे चोद्ने लगी - उसकी टाइट चूत को चोद्ने में बहुत मज़ा आ रहा था थोड़ी देर बाद हम दोनो झाड़ गये और मैं उसके उपर गिर पड़ी जब उसे मेरे उरोज़ अपने उरोज़ पे महसूस हुए तो वो चिल्ला पड़ी - भावना तू..............'
'अब जो होना था हो चुका था मैने उसके हाथ खोल दिए और आँखों से पट्टी भी हटा दी वो हैरानी से मुझे देख रही थी उसके नज़रें बार बार मेरे लंड पे जा रही थी- भावना ----- हाँ रोज़ मैं एक शी-मेल हूँ और मेरा रोना निकल गया - उसने मुझे चुप कराया फिर काफ़ी देर तक मुझे तस्सल्ली देती रही
'वेसे आज तूने खूब मज़ा दिया यार अब मुझे लंड के लिए भटकना नही पड़ेगा और ना ही किसी तरहा का कोई डर रहेगा' कह कर वो मुझसे लिपट गयी.
अपनी दास्तान सुनाते सुनाते भावना काफ़ी गरम हो गयी थी उसने अपनी नशीली आँखों से राजेश को देखा - राजेश उसके मन की बात समझ गया और उसने अपने होंठ भावना के होंठों से सटा दिए.
राजेश ने जब भावना के होंठों से अपने होंठ अलग किए तो भावना ने कुछ बोलने की कोशिश करी-
'बस जान धीरे धीरे सुना देना आपने आप को और मत तडपाओ'
'ओह राज तुम कितने अच्छे हो - काश तुम पहले ही मेरी जिंदगी में आ जाते - इतने साल मैं तड़प के तो ना गुज़ारती'
'ये तो होनी है - मुझे तुमने ही जनम देना था अपने लिए - फिर केसे मैं पहले ही तुम्हारी जिंदगी में आ जाता- आज मैं तुमसे वादा करता हूँ जितना तुम तड़पी हो उससे कहीं ज़यादा अब तुम्हें सिर्फ़ सुख ही सुख मिलेगा'
'ओह राज मेरी जान - लव मी जानम - लव मी- नहला दो मुझे अपने प्यार से- दूर ले जाओ मुझे कहीं जहाँ बस हम दो हों और.......'
'और.....'
भावना राजेश के कान में बोली ' और हमारा बेटा' और शर्मा के उसकी छाती में अपना चेहरा छुपा लिया.
'याहूहुहुहू' राजेश ज़ोर से चिल्लाया और कस के भावना को खुद से लिपटा लिया - 'तो तायारी शुरू कर दें' भावना ने शरमाते हुए राजेश की छाती पे मुक्के बरसाने शुरू कर दिए.
'जानम एक से काम नही चलेगा - मुझे तो पूरी टीम चाहिए - अपनी आई पी एल टीम'
'धत - गंदे' और भावना ने अपना चेहरा अपने हाथों में छुपा लिया.
'अच्छा पूरी ना सही आधी टीम तो अपनी ही होनी चाहिए'
'उफ़ तुम तो......'
'क्या...'
'चलो अपनी टीम की त्यारी करो'
'सच'
'मूच'
'हाए मर जानवा गुड खा के' और राजेश पागलों की तरहा भावना को चूमने लगा और भावना उसके प्यार में पिघलती चली गयी.
जब राजेश उससे अलग हुआ तो बस उसे निहारने लगा ' एक चाँद आसमान पे है एक मेरे सामने'
'इतना प्यार करते हो मुझ से'
'सबूत चाहिए क्या?'
'हाँ'
'केसा?'
राजेश हैरानी से उसे देखने लगा. उसे यूँ हैरान देख कर भावना की हसी छूट गयी...और राजेश और भी हैरान हो गया. जब भावना हस्ते हुए थोड़ा संभली तो बोली ' बुदधू ---- जल्दी से एक बेटा देदो'
'ओ तेरी की --- मैं तो डर ही गया था'
'तभी तो कहा की बुदधू हो'
अभी बताता हूँ - और राजेश भावना पे चॅड गया और उसके होंठों को चूस्ते हुए उसके उरोज़ मसलने लगा और भावना की सिसकियाँ उसके मुँह में घुलने लगी.
भावना की बाँहें राजेश की पीठ पे कस्ति चली गयी और दोनो एक दूसरे के होंठ चूसने काटने में खो गये.
अचानक खिड़की अपने आप खुल गयी और ठंडी ठंडी हवाओं के झोंके दोनो को और भी मस्त करते चले गये. चाँद जेसे वहीं रुक गया और खिड़की से अपनी किर्ने अंदर फेंक कर दोनो को जेसे आशीर्वाद दे रहा था.
दो जिस्म दो आत्माएँ एक दूसरे में सामने को आतुर हो चुकी थी - सवर्ग की कोई अप्सरा भी इन्हें इस वक़्त देख लेती तो उसे भी रश्क होता - एसे प्रेम के आभाव का.
इस वक़्त खुश थे तो बस काम और रति - जो इन दोनो के जिस्म में समा चुके थे और इनके प्रेम को महसूस कर रहे थे.
भावना और राजेश दोनो आपस में लिपटे हुए एक दूसरे में खोए हुए थे यूँ लग रहा था जेसे नाग और नागिन रति क्रीड़ा में व्यस्त हों.
राजेश ने भावना के ब्लाउस के हुक खोलने शुरू कर दिए और भावना नयी नवेली दुल्हन की तरहा सिमटने लगी. जिस्म चाहे कितना भी प्यासा क्यूँ ना हो औरत अपनी लाज का गहना नही छोड़ पाती. ब्लाउस के खुलते ही भावना के उन्नत उरोज़ ब्रा में कसे झलकने लगे जो चीख चीख कर कह रहे थे हमे भी बंधन से मुक्त कर दो. राजेश के हाथ जब ब्रा के हुक खोलने के लिए भावना की पीठ के नीचे पहुँचे तो भावना ने अपने जिस्म को कमान की तरहा उठा लिया ताकि राजेश आसानी से उसकी ब्रा खोल सके- जैसे ही ब्राऔर ब्लाउस भावना के जिस्म से अलग हुए - राजेश बस उनकी सुदरता का रसपान करने लग गया और शर्म के मारे भावना का बुरा हाल होने लगा
'एसे मत देखो ना'
'क्यूँ ना देखूं अब तो ये मेरी धरोहर हैं इनकी सुंदरता को देखने - निहारने का मेरा हक़ है'
'शर्म आती है प्लीज़'
'तो तुम शरमाती रहो मुझे अपनी आँखों को सकूँ पहुँचने दो'
'छी - गंदे - गंदे'
'हाए मेरी जान' और राजेश ने भावना के वक्ष की घाटी में अपना चेहरा घुसा डाला और उसके जिस्म की खुश्बू से खुद को सराबोर करने लगा उसके दोनो हाथ किसी चुंबक की तरहा भावना के वक्ष के साथ चिपक गये.
'आह ओह मा' भावना सिसक पड़ी और उसके हाथ राजेश के बालों में घूमने लगे उसे सहलाने लगे.
भावना के वक्ष की घाटी में राजेश अपनी जीब फेरने लगा और भावना सिसकियों पे सिसकियाँ लेने लगी.
अच्छी तरहा उरोज़ओं के बीच की घाटी को चूमने और चाटने के बाद राजेश ने भावना के एक निपल को चूसना शुरू कर दिया.
'आह ओह म्म उफ़ आहह' भावना की सिसकियाँ तेज होने लगी और उसेनए राजेश के सर को अपने उरोज़ पे दबाना शुरू कर दिया, राजेश अपना मुँह खोलता चला गया और भावना का उरोज़ जितना हो सकता था उसके मुँह में समा गया जिसे राजेश अपनी जीब से चाटने लगा और दूसरे निपल को अपनी उंगलियों में मसल्ने लगा . बारी बारी राजेश दोनो निपल चूस्ता और उसके दोनो उरोज़ का मर्दन करता रहा. भावना के उरोज़ लाल सुख हो गये और जगह जगह लव बाइट्स के निशान पड़ने लगे.
कहते हैं की दर्द के साथ जो मज़े की लहरें उठती हैं उनका आलम ही कुछ और होता है और औरत को जो सुख मिलता है उसका वर्णन नही किया जा सकता. ये दर्द एक मीठा दर्द होता है और भावना भी इसे महसूस कर रही थी.
भावना के उरोज़ओं को अच्छी तरहा मसलने चूसने चाटने और काटने के बाद राजेश उसके जिस्म को चूमता हुआ नाभि स्थल तक आ गया आह क्या गहरी और गोल नाभि थी भावना की- राजेश ने अपनी जीभ नाभि में डाल दी और भावना का जिस्म तड़प कर एक कमान की तरहा उठ गया और वो ज़ोर से सिसक पड़ी. भावना के दोनो उरोज़ राजेश की थूक से सने हुए चमक रहे थे उनकी लाली देख ऐसा लग रहा था जेसे सूरज देवता ने खुश हो कर अपनी किरणों की लालिमा उनमें भर दी हो.
भावना की नाभि में अपनी ज़ुबान का करतब करते हुए राजेश के हाथों ने भावना के पेटिकोट का नाडा खोल दिया और उसे नीचे सरकने लगा भावना ने अपनी गांद उपर उठा ली और राजेश ने उसके पेटिकोट को नीचे सरका डाला जो उसकी परों तक आ गया था, भावा ने खुद अपनी टाँगों को हिला कर पेटिकोट जिस्म से अलग कर दिया और अब उसके जिस्म पे सिर्फ़ एक पेंटी ही बची थी.
राजेश नाभि से नीचे बॅडता है और भावना की झांघों को सहलाते हुए चूमने लगता है और भावना नागिन की तरहा मचलने लगती है, उसके जिस्म में उठती हुई तरंगें अब बेकाबू हो रही थी, उसके पेंटी पहले ही बहुत गीली हो चुकी थी.
भावना की दोनो झांघों को छमने और सहलाने बाद राजेश की नज़र जब पेंटी में कसी उसकी चूत पे पड़ी तो उसके अंदर भी एक तूफान उठने लगा उसकी आँखों में भावना का नशा साफ साफ देख रहा था और उसने अपना मुँह भावना की पेंटी से लगा दिया. भावा की टाँगें अपने आप फैलती चली गयी और राजेश उसकी चूत से उठती हुई नशीली सुगंध को अपने अंदर समाने लगा - और उसके होंठों ने भावना की चूत को पेंटी समेत ही अपने मुँह में ले लिया.
आआआआआआआआआआआआआआअ म्*म्म्मममममममममममाआआआआआआआआआआआआआअ
भावना ज़ोर से चीख सी पड़ी. उसकी पेंटी समेत राजेश उसकी चूत को अपने मुँह में भर के ज़ोर ज़ोर से चूसने लगा.
'बस प्लीज़ बस करो अब नही सहा जाता'
राजेश ने एक पल भावना की आँखों में देखा और फिर उसकी पेंटी को जिस्म से अलग कर दिया.
भावना की आँखें कह रही थी बस अब आ जाओ और मुझ में समा जाओ.
पेंटी उतरते ही भावना की सफाचट मखमली उभरी हुई चूत राजेश की आँखों के सामने थी, उसकी छूट के लब थरथरा रहे थे उनमें कंपन बहुत ज़यादा हो रहा था और धीरे धीरे रस की बूँदें बह रही थी.
राजेश झुक कर भावना की छूट को चाटने लगा जैसे दूध के उपर पड़ी मलाई को चाट रहा हो और भावना मचलने लगी सिसकियाँ भरने लगी.
'आह आज मार डालोगे क्या उफ़ और मत तडपाओ.'
राजेश की खुरदरी जीब भावना की चूत में हलचल मचाने लगी और भावना ज़ोर ज़ोर से सिसकियाँ लेने लगी.
'आह मा हाए देखो क्या कर रहा है आपका बेटा अफ कितना तडपा रहा है मुझे अह्ह्ह उफ्फ उईईइ मा'
राजेश ने जैसे ही अपनी जीब भावना की चूत में घुसा कर उसे जीब से चोद्ना शुरू किया भावना उछल पड़ी और अपने दोनो हाथों से उसने राजेश के सर को अपनी चूत पे दबा डाला और ज़ोर ज़ोर से सिसकने लगी. भावना ज़यादा देर तक ये खेल बर्दाश्त नही कर पायी और एक चीख मार के झड़ने लगी उसका ओर्गेसम इतना तेज हुआ था की उसके जिस्म में जान ही ना बची और वो आँखें बंद कर बिस्तर पे गिर पड़ी राजेश को यूँ लगा की जेसे उफनती हुई नदी ने सारे बाँध तोड़ दिए हों भावना की चूत इतना रस बहा रही थी की वो सारा पी ना सका और बिस्तर पे एक सैलाब सा बन गया.
राजेश उठ के भावना के साथ लेट गया और उसके चेहरे को निहारने लगा थोड़ी देर में भावना होश में आई और राजेश से लिपट गयी.
'आई लव यू जानू' कहती रही और राजेश को चूमती रही.
भावना ने उठ कर राजेश को भी नग्न कर दिया और उसके लंबे मोटे लंड को सहलाने लगी राजेश ने उसे इतना मज़ा दिया था की उसका दिल कर रहा था की वो राजेश के लंड को चूसने लग जाए पर दिल में कहीं हिचक थी की पता नही वो क्या सोचेगा इस लिए वो कुछ नही करती बस उसके साथ लेट जाती है और उसे अपने उपर खींचती है.
राजेश के उरोज़ओं का फिर मर्दन करने लग गया और उसका लंड भावना की चूत पे दस्तक देने लगा.
भावना अपनी कमर हिला हिला कर उसके लंड को अंदर लेने की कोशिश करने लगी और राजेश उसकी आँखों में देखने लगा- भावना शर्मा गयी और उसके साथ लिपट गयी.
'करो ना अब'
'क्या करूँ?'
उफ्फ क्यूँ सता रहे हो करो ना प्लीज़'
'बताओ तो सही क्या करूँ?'
'अपने बेटे को लाने की तायारी'
'कैसे?'
भावना समझ गयी की राजेश उसके मुँह से क्या सुनना चाहता है पर उसे शर्म आ रही थी
'प्लीज़ अब तंग मत करो'
'अरे मैं कहाँ तंग कर रहा हूँ'
'ओह मुझे पूरा बेशर्म बना के रहोगे'
'प्यार में कोई बेशर्मी नही होती सब खुला होता है'
'मुझे शर्म आ रही है ना'
'तो बन जाओ बेशर्म'
'नही मानोगे'
'ना'
भावना शरमाती हुई उसके कान में फुसफुसाती है ' चोदो मुझे'
'क्या ज़ोर से बोलो ना'
'उफ़फ्फ़ चोदो मुझे डाल दो अपना लंड मेरी चूत में'
'हूँ ये हुई ना बात' और राजेश ने एक ही झटके में अपना लंड उसकी चूत में पेल दिया.
आआआआआआआआअ भावना ज़ोर से चीख पड़ी और उसके नाख़ून राजेश की पीठ में गड़ गये.
'आराम से- इतने जालिम क्यूँ बन गये'
'आराम है हराम' और राजेश धाका धक उसकी छूट में अपना लंड अंदर बाहर करने लगा
भावना दर्द से करहाती रही और थोड़ी देर में उसकी चूत ने रस छोड़ दिया और उसे मज़ा आने लगा, उसकी कमर अपने आप उछलने लगी और दोनो के जिस्म तूफ़ानी गति से टकराने लगे.
कमरे में भावना की सिसकियाँ और उनके जिस्मो के टकराने की थाप गूंजने लगी.
राजेश एक मशीन की तरहा भावना को चोद रहा था और भावना भी उसकी ताल से ताल मिला रही थी. दोनो के जिस्म पसीने से तरबतर हो गये पर उनकी लय में कोई फरक नही पड़ा भावना दो बार झड़ गयी पर जब राजेश अपनी चर्म सीमा पे पहुँचने लगा तो भावना को उसका लंड अपनी चूत में फूलता हुआ महसूस होने लगा और राजेश के धक्के और भी तेज हो गये.
'आहह' एक चीख दोनो के मुँह से निकली और दोनो साथ साथ झड़ने लगे.
भावना की टाँगों ने राजेश की कमर को जाकड़ लिया और उसकी चूत ने राजेश के लंड को निचोड़ना शुरू कर दिया'
दोनो का ये सफ़र जब ख़तम हुआ तो राजेश भावना के उपर गिर कर हाँफने लगा.
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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