FUN-MAZA-MASTI
तीन मार्डन लडकियाँ--1
यह बात उस समय की है, जब मैं 18 साल का एक नवयुवक था। मेरा शारीरिक सौष्ठव काफी सुदृढ़ था। मैं उन दिनों पहलवानी भी किया करता था। अखाड़े में मैं प्रतिदिन 800-1000 दण्ड पेलता था। दिखने में भी मैं काफी सुन्दर था। देखने वाले कहते थे कि तुम्हारी आंखें बहुत ही आकर्षक हैं।
कुल मिलाकर मेरे बारे में यह कहा जा सकता है कि मैं काफी दिलकश लगता था। पहलवानी के साथ-साथ मैं ऐसा नहीं था कि आधुनिक जीवन शैली को नापसन्द करता होऊँ। मुझे सज-संवर कर रहना अच्छा लगता था। खासकर तब कोई लड़की या महिला मुझे देखती थी तो मैं और भी इतराने की कोशिश करता था।
दोस्तों के साथ बैठ कर सिगरेट या शराब पीने में भी मुझे कोई ऐतराज नहीं था, पर ईमानदारी की बात यह है कि मुझे भांग खाना ज्यादा पसंद था, क्योंकि अक्सर अखाड़े में मैं जब भांग खा कर दण्ड पेलता था, तो भांग का नशा मुझे थकान का अहसास नहीं कराता था।
ये तो हुई मेरी परिचय कथा, अब जो मेरे साथ हुआ वो आप सुनिए।
मैं अपने शहर में एक दुकान चलाता हूँ। इसी सिलसिले में मुझको अक्सर बाहर खरीद करने जाना पड़ता है।
यह घटना भी ऐसी ही एक यात्रा की है। अक्टूबर के महीने की घटना है, मैं पास के एक बड़े शहर में गया था। दिन भर की खरीददारी के बाद जब मैं बापिस
अपने गृह-नगर के लिए रेलवे स्टेशन पहुंचा तो थकान सी हो रही थी। अस्तु मैंने भांग के ठेके से 10 रूपए की भांग की ‘माजुम’ खरीद कर खा ली। मुझे मालूम था कि 20 मिनट बाद ये जब अपना असर दिखाएगी तब कुछ मजा आएगा।
मैं टिकट लेकर सीधे प्लेटफार्म पर पहुंच गया। स्टेशन लगभग खाली था। रात को 9.30 हो चुके थे। जनता एक्सप्रेस के आने का संकेत हो चुका था। मैं भी प्लेटफार्म पर सबसे आगे की ओर जा कर खड़ा हो गया था। तभी गाड़ी आ गई और उसके रूकते ही मैं उस में चढ़ गया। मैंने देखा कि पूरा डिब्बा खाली पड़ा था, हालांकि मुझे इस बात से कोई चिन्ता नहीं थी। मैं एक सीट पर बैठ गया।
अभी गाड़ी ने सीटी दी और धीरे-धीरे सरकना शुरू ही हुआ था कि मुझे कुछ जनाना आवाजों के चढ़ने की आहट आई। मेरा अनुमान सही था, आगन्तुक यात्री तीन लडकियाँ थीं। वे लोग अपना सामान मेरे सामने की सीट पर रख कर वहीं बैठ गईं।
गाड़ी ने रफ्तार पकड़ ली थी। मैं उनसे बेखबर नहीं था और उनको नजर भर कर देखा। वे तीनों लगभग 20-22 वर्ष की उम्र की रही होंगीं।
तीनों ही मार्डन थी और उन सब ने जींस और टॅाप पहन रखा था। उन तीनों के नयन-नख्स तीखे और शोख थे। तभी उनमें से एक उठी और डिब्बे के अन्दर की ओर चली गई।
कुछ ही पलों के बाद वो आई और अपनी दोनों सहेलियों से बोली, “यार ये तो पूरा डिब्बा ही खाली है।”
तभी उन में से एक ने मेरी तरफ मुखातिब हो कर कहा- क्या आपको मालूम था कि डिब्बा खाली है।
मैंने कहा- नहीं मुझे नहीं मालूम, मैं तो आया और सीधे यहीं बैठ गया, क्यों कोई बात है क्या?
उसने कहा- नहीं यूँ ही पूछा।
इस बात के बाद वो आपस में एक-दूसरे को देखने लगीं।
मुझे भांग की खुमारी चढ़ने लगी थी, अस्तु मैं अपनी तरंग मैं मस्त था। मुझे कुछ गरमी सी लगने लगी थी, सो मैंने अपनी शर्ट के ऊपर वाले दो बटन खोल लिए थे, मैं अन्दर बनियान नहीं पहनता हूँ, सो मेरा चौड़ा सीना दिखने लगा था। पहलवानी के कारण छाती पर बाल नहीं थे, सो बिल्कुल चिकनी छाती थी। मेरी छाती देख कर उनको शायद कुछ लगा वो आपस में कुछ खुसुर-पुसुर करने लगीं। तभी उनमें से दो उठी और डिब्बे के गेट की तरफ चली गईं। मुझे दरवाजा बंद होने की आवाजें आने लगीं।
मुझे लगा शायद ये लोग डिब्बे के खाली होने के कारण कुछ भयभीत हैं, सो मैंने कहा- आप लोग घबराएं नहीं, मैं हूँ किसी बात की चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं हैं।
मेरी बात सुनकर उन में बची एक मुस्करा कर बोली- और अगर चिन्ता आप से ही हो तो?
मैं अकबका गया। मुझे उनसे ऐसे उत्तर की अपेक्षा नहीं थी।
मैंने संभल कर कहा- भला मुझसे क्या चिन्ता?
“क्यों आप क्या मर्द नहीं हो?”
मेरा दिमाग भन्ना गया। मैंने भी कह दिया, “असली मर्द हूँ, पर छिछोरी हरकतें नहीं करता हूँ।”
इस पर वो तनिक इतरा कर बोली- तो फिर आप कैसी हरकतें करतें हो?
मैं निरूत्तर था।
मैंने कहा- आप लोग बेफ्रिक रहें, किसी बात की कोई चिन्ता मत करें।
अब वो तनिक हंस कर बोली- अरे यार मैं तो मजाक कर रही थी। आप अन्यथा न लो।
मैंने भी उनकी ‘मस्ती’ को भांप लिया था।
मैंने कहा- मजाक तो अपने किसी खास से किया जाता है। मैं तो आपका अभी खास बना नहीं हूँ।
इस पर वो खिलखिला कर हंस दी।
उसने सीट से झुक कर नीचे रखे अपने एअर बैग को कुछ सरकाने की चेष्टा की, और अपनी दूधिया घाटी के दर्शन कराए।
मैं बड़े गौर से उसकी गेंदों को देखने लगा।
क्या टॉप का माल छुपा रखा था साली ने अपने टॉप के नीचे…!
मेरा मन में कुछ गुदगुदी होने लगी। मैं एकटक उसकी दरार को घूर रहा था, मैं भूल गया कि वो भी मेरी नजरों को देख रही है।
अचानक वो सीधी हुई और मेरी ओर देख मुस्करा कर बोली- जरा हाथ लगाना।
मैंने अचकचा कर कहा- किधर?
वो हंस दी और बोली- किधर लगाने की कह रही हूँ? क्या कुछ देख नहीं रहे हो, मैं किधर हाथ लगाने की कह रही हूँ!
मैं संयत हुआ और कटाक्ष करता हुआ बोला- अब मुझसे हाथ लगवाने में डर नहीं लग रहा है। कहते हुए मैंने उसके बैग को उठाया और उससे पूछा, “किधर लगा दूँ?”
उसने शोखी से कहा- क्या यार तुमको तो ये भी नहीं मालूम कि किधर लगाया जाता है?
मैं अब समझ गया कि ये सब चालू आइटम हैं, और मुझसे मस्ती करना चाहती हैं। मैं भी बेफ्रिक था, क्यूंकि मेरे पास भी काफी समय था, और मुझे भी टाइम पास करने के लिए ये सब ठीक लगा। तभी उनकी दोनों साथिनें भी वापिस आ गईं।
वो फिर मुझसे बोली- आपका क्या नाम है?
मैंने कहा- मेरा नाम सुनील है.. और आप सब का?
वो बोली- मैं सीमा हूँ, ये नीलू और ये शबनम है।
मुझे उनका व्यवहार काफी खुला लगा, क्योंकि उन तीनों ने बड़ी गर्मजोशी से मुझ से हाथ मिलाए।
तभी मैंने उनसे पूछा- क्या मैं एक सिगरेट पी सकता हूँ, अगर उनको बुरा न लगे तो?
सीमा बोली- जरूर, और एक मुझे भी देना।
मैं उसके इस बिंदासपन पर फिर हक्का-बक्का रह गया।
मैंने अपनी जेब से ‘गोल्ड-फ्लैक’ की डिब्बी निकाली और उसे सीमा की ओर बढ़ा दी। उसने डिब्बी ली और उसमे से एक सिगरेट निकाल ली और डिब्बी मुझे वापस कर दी।
मैंने कहा- नीलू और शबनम तुम लोग नहीं पीओगी क्या?
इस पर नीलू बोली- नहीं हम लोग एक से ही काम चलाते हैं।
मैंने कहा- वाह… क्या सोच है। अब तो मैं भी सोचता हूँ कि यह काम हम सब को एक साथ ही एक डण्डी से ही निपटा लेना चाहिए।
शबनम खिलखिला कर बोली- डण्डी नहीं हम इसे डण्डा कहते हैं, और जो मजा एक ही डण्डे से आता है वो अलग-अलग में कहां है ?
उसकी इस बात पर तीनों जोर-जोर से हंसने लगीं।
मैं समझ गया कि सब चालू माल हैं। मैंने माचिस निकाली और सीमा की तरफ बढाई और हंस कर कहा- लो आग लगाओ।
वो तपाक से बोली- हम तो ऐसे नहीं, ऐसे आग लगवाते है।
वो उठी और मेरे बगल में आकर बैठ गई और अपनी छातियों का पूरा भार मेरे ऊपर डाल कर, अपने रसीले होठों में सिगरेट दबा बोली- लो लगाओ आग, मैं तैयार हूँ।
मेरे शरीर में 440 बोल्ट का करंट दौड़ गया। मैंने माचिस का तीली जलाई, पर तेज हवा के कारण वो बुझ गई।
मैंने कहा- सीमा मुझे खिड़की बंद कर लेने दो फिर आग लगाता हूँ।
मैंने खिड़की बंद कर दी और तीली जला कर सीमा की सिगरेट को जला दिया।
सीमा ने बडे़ ही मादक अन्दाज से सिगरेट का एक कश खींचा और मुझसे बोली- तुम्हारा डण्डा तो बहुत मजेदार है।
मैं सोचने लगा कि अभी तूने देखा ही कहाँ है मेरा डण्डा?
वो शायद समझ गई, बोली- क्या सोच रहे हो डियर, डण्डे की बात सुन कर?
तभी नीलू जो सीमा से भी एक कदम आगे थी, बोली- ये शायद किसी और डण्डे की बात सोचने लगे।
मैंने कहा- और कौन सा डण्डा?
शबनम बोली- क्यों कोई और डण्डा नहीं है तुम्हारे पास?
इस पर मैंने कहा- है, पर उसकी कुछ शर्तें हैं।
सीमा बोली- बताओ क्या शर्त है, तुम्हारे उस डण्डे की?
मैंने कहा- जैसे अभी जो डण्डा तुम चूस रही हो उसी तरह तुम सबको उसको भी चूसना पड़ेगा।
सीमा बोली- ठीक है दिखाओ, किधर है तुम्हारा वो डण्डा?
मैंने कहा- इतना उतावलापन ठीक नहीं है, जब तुम उसको देखना चाहती हो तो उसके स्वागत की तैयारी करो।
अब इतना तो तय था कि यह बात मेरे हथियार के विषय में हो रही थी।
मेरी बात को सुन कर शबनम ने सीमा से सिगरेट ली और एक जोर का कश लगाया, बड़ी शान से धुंआ को छोड़ते हुए सिगरेट नीलू को दे दी।
और अपने टॉप को एक झटके में उतार दिया, और बोली- क्या गोल-मोल बातें हो रही हैं, लो मैं ही शुरूआत करती हूँ। सुनील मुझे चूसना है तुम्हारा डण्डा, अब निकालो मुझ से और सब्र नहीं होता।
उसके टॉप उतरते ही उसके दोनों कबूतर जो एक जरा सी ब्रा में कैद थे और लगभग पूरे ही नुमायाँ हो रहे थे।
वाह …क्या शानदार माल था….!
उसकी 36 साइज की चूचियों को देख कर मेरा हथियार ‘टन्ना’ गया। पर मैं अभी जल्दबाजी के मूड में नहीं था। मुझे अभी बाकी की उन दोनों को भी नंगा करना था।
मैंने सीमा और नीलू से कहा- तुम्हारा क्या कोई मुहूर्त है, जब पर्दा उठेगा?
सीमा जो मेरे बगल में बैठी थी, बोली- तुम जब चाहो पर्दा उठा सकते हो।
मैंने अगले क्षण ही उसके कंधे पर अपना एक हाथ रखा और दूसरे हाथ से उसकी चूचियों को ऊपर से ही मसला।
उसने भी अपने होंठों को मेरे होंठों से चिपका कर मेरा जोर का चुम्बन लिया।
अब मैंने उसकी गेंदों को छोड़ कर उसके टॉप को एक ही झटके में ऊपर उठा दिया। वो नीचे ब्रा नहीं पहनें थी। उसकी गोल-गोल नारंगियाँ, जिन पर भूरे रंग के अंगूर लगे थे, मेरे सामने अपना भरपूर प्रदर्शन कर रहे थे।
तभी उसका हाथ मेरे हथियार की तरफ बढ़ा।
उधर मैंने देखा कि नीलू ने अपने बैग में से एक रम की बोतल और एक गिलास निकाल लिया। शबनम और नीलू ने मिल कर एक बड़ा सा पैग बनाया और बारी-बारी से अपने गले तर करने शुरू कर दिए।
इधर सीमा ने मेरी पैंट की जिप खोल कर मेरे लंड के सुपाड़े को अपने मुँह में रख कर चचोरना शुरू कर दिया था मुझे भी गरमी चढ़ने लगी थी।
मैंने शबनम को कहा- आओ हनी.. अब चूसो मेरे डण्डे को और मुझे भी अपनी चूत के दीदार कराओ।
शबनम चहकते हुए उठी और उसने अपनी जींस उतार कर अपनी पैंटी को अपनी जांघों तक सरकाया। उसकी सफाचट चूत को देख कर मेरे लण्ड में फुरफुरी सी आ गई जिससे सीमा जो सिर्फ मेरे लौड़े के सुपाड़े को चूस रही थी उसके मुँह में मेरा आधा लंड घुस गया।
शबनम अपने हाथ में ‘नीट’ शराब का गिलास लेकर मेरे पास आई और अपनी चूत को मेरे मुँह के पास लगा कर खड़ी हो गई।
मैं उसकी चूत की महक से पागल सा हो गया। साली ने कोई पाउडर लगा रखा था। मैंने ज्यों ही उसके दाने को अपनी जीभ से टच किया, उसने अपने गिलास से थोड़ी सी रम अपनी चूत पर डाल दी। मुझे ऐसा लगा कि जैसे मुझे अमृत पिला रही हो। मैंने अपने हाथ से उसको उसके नितम्बों की तरफ से अपनी ओर को खींचा और उसकी चूत को चाटना शुरू कर दिया।
उसकी दशा भी ऐसी थी कि जैसे वो अपनी चूत को मेरे मुँह में घुसेड़ देना चाह रही हो। कुछ ही पलों में उसकी सिसकारियाँ छूटने लगी, मुझे भी सीमा ने मेरे लौडे़ को चचोर-चचोर कर पागल सा कर दिया था
मैं भी उचक-उचक कर उसके मुँह को अपने लंड से चोद सा रहा था। तभी मैंने देखा कि नीलू जो अभी भी सामने वाली सीट पर ही बैठी थी रम की बोतल से नीट ही पी रही थी और सिगरेट पी रही थी।
मैंने उसको कहा- हनी तुम भी अपने कपड़े उतार लो और इधर आ कर मेरे लंड का स्वाद चख लो।
वो बोली- ठीक है डियर.. मेरे को अभी पी लेने दो तब तक तुम सीमा की चूत का बाजा बजा दो।
मैं बोला- ठीक है पर अपने कपड़े तो उतार कर जरा अपनी गेंदें तो दिखाओ।
उसने बोतल बगल में रखकर अपनी टाइट शर्ट को, जो सामने से ही चिटकनी बटन को खोलने से खुलती थी, एक झटके में ही खोल दी।
अंदर डोरी वाली जालीदार ब्रा उसके कबूतरों को जकड़ने में असमर्थ सी दिख रही थी। उसने ऊपर से ही अपनी फ्रंट-ओपनेबुल ब्रा का हुक भी खोल दिया। अब उसके दोनों 34 साइज के अनार उचक बाहर आ गए।
उसने अपने उन अनारों की बौडि़यों को अपनी उगंलियों से मसला और मुझे एक आंख मार कर पूछा, “कैसे लगे ?”
मैंने कहा- बहुत सुन्दर.. पर इन्हें अभी मसाज की जरूरत है। कुछ बड़े हो जायें तो इनकी छटा ही देखने लायक होगी।
वो बोली- जब मसलती तो हूँ.. तभी तो 28 से 34 कर पाई, अब तुम चूस कर इन्हें और बड़ा कर देना।
उसके निप्पल वाकई बिल्कुल पिंक कलर के थे। वो बहुत सैक्सी लग रही थी। तभी उसने अपनी जींस भी उतार कर वहीं डाल दी। बिल्कुल जरा सी चड्डी में उसकी चिकनी जांघें गजब ढा रही थी। अब मेरा अपना ध्यान सीमा पर गया, वो मेरे लौड़े को चूस-चूस कर मजा ले रही थी और शबनम मेरी ऊँगली से अपनी चूत खुदवा रही थी।
मुझे लगा कि अब चुदाई का वक्त आ गया है, परन्तु मेरे मन में एक ख्याल आया कि क्यों न इनकी चुदाई भी एक साथ की जाए, इससे मेरा काम भी हो जाएगा और इन तीनों की चूत की खुजली भी मिट जाएगी।
सो मैंने पहले शबनम की चूत चोदने का फैसला किया और कहा- चल शब्बो रानी तेरे खेत में जुताई की जाए।
वो अब शराब के नशे में झूम रही थी ,
उसने तो जैसे माहौल ही हॉट कर दिया, बोली- माई डियर मादरचोद, बहन के लौड़े, चल डाल अपने इस मूसल छाप घोडे़ के लंड को मेरी बुर में और फाड़ दे हरामी मेरी चूत को।
उसकी इस भाषा ने मेरी खुपड़िया घुमा दी। उसकी आवाजें इतनी तेज थी कि अगर हम लोग किसी कमरे में या और कोई जगह होते तो लोग पूछने आ जाते कि क्या हुआ भाई कौन को लग गई, कहीं चोट तो नहीं आई, बगैरह बगैरह……..।
शबनम ने अपनी टाँगें रण्डियों के जैसे फैला दीं, मैंने अपना लौड़ा उसकी लपलपाती चूत में एक ही झटके में ठूँस दिया, फिर जरा बाहर खींचा और दुबारा जोर से उसकी बुर में ठांस दिया। अबके झटके में पूरा 6 इंच लंड अन्दर घुस गया था।
शबनम की हालत खराब थी, उसका सारा नशा फट गया था और वो लगातार चीख रही थी, “साले बाहर निकाल ले मादरचोद, मेरी चूत फट जाएगी कुत्ते, मुझसे गलती हो गई। मुझे क्षमा कर दो …. आह…… मत चो…दो साले…..।”
पर मैं कहां मानने वाला था। मेरे ऊपर तो भूत सवार था। धकाधक 10-12 टापें जब उसके छेद पर लगीं और मैंने उसके ऊपर लगभग लेटते हुए उसकी रस से भरी गोल-गोल मस्त नारंगियों के निप्पलों को अपने होंठों से चुभलाना शुरू किया, तो उसको कुछ राहत सी मिलने लगी।वो अब चिल्लाना बंद करके सिसकारियाँ भर रही थी। उसकी इन आवाजों में मुझे उसके आनन्द प्राप्त करने जैसी ध्वनि सी लग रही थी।
मैंने पूछा, “क्यों शब्बो रानी मजा आने लगा क्या ?
उसने मुस्करा कर कहा- हाँ डियर अब ठीक है, मुझे तुम्हारी जो चूची चूसने की हरकत है, वो बहुत मजा दे रही है। प्लीज और चचोरो न।
मैं जुट गया उसके निप्पलों को टूंगने। उसके थन बहुत ठोस से हो गए थे। मुझे अभी भी याद था कि दो छेद मेरे लंड का बड़ी बेकरारी से इंतजार कर रहे हैं। मैंने सीमा की तरफ देखा तो मैडम अपनी चूत में ऊँगली अन्दर-बाहर कर रही थीं।
मैंने कहा- आओ रानी लेटो इधर.. तुम्हारा चुदाई का ख्वाव भी पूरा कर देता हूँ।
वो बोली, “पहले शब्बो को तो निपटा दो।”
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यह बात उस समय की है, जब मैं 18 साल का एक नवयुवक था। मेरा शारीरिक सौष्ठव काफी सुदृढ़ था। मैं उन दिनों पहलवानी भी किया करता था। अखाड़े में मैं प्रतिदिन 800-1000 दण्ड पेलता था। दिखने में भी मैं काफी सुन्दर था। देखने वाले कहते थे कि तुम्हारी आंखें बहुत ही आकर्षक हैं।
कुल मिलाकर मेरे बारे में यह कहा जा सकता है कि मैं काफी दिलकश लगता था। पहलवानी के साथ-साथ मैं ऐसा नहीं था कि आधुनिक जीवन शैली को नापसन्द करता होऊँ। मुझे सज-संवर कर रहना अच्छा लगता था। खासकर तब कोई लड़की या महिला मुझे देखती थी तो मैं और भी इतराने की कोशिश करता था।
दोस्तों के साथ बैठ कर सिगरेट या शराब पीने में भी मुझे कोई ऐतराज नहीं था, पर ईमानदारी की बात यह है कि मुझे भांग खाना ज्यादा पसंद था, क्योंकि अक्सर अखाड़े में मैं जब भांग खा कर दण्ड पेलता था, तो भांग का नशा मुझे थकान का अहसास नहीं कराता था।
ये तो हुई मेरी परिचय कथा, अब जो मेरे साथ हुआ वो आप सुनिए।
मैं अपने शहर में एक दुकान चलाता हूँ। इसी सिलसिले में मुझको अक्सर बाहर खरीद करने जाना पड़ता है।
यह घटना भी ऐसी ही एक यात्रा की है। अक्टूबर के महीने की घटना है, मैं पास के एक बड़े शहर में गया था। दिन भर की खरीददारी के बाद जब मैं बापिस
अपने गृह-नगर के लिए रेलवे स्टेशन पहुंचा तो थकान सी हो रही थी। अस्तु मैंने भांग के ठेके से 10 रूपए की भांग की ‘माजुम’ खरीद कर खा ली। मुझे मालूम था कि 20 मिनट बाद ये जब अपना असर दिखाएगी तब कुछ मजा आएगा।
मैं टिकट लेकर सीधे प्लेटफार्म पर पहुंच गया। स्टेशन लगभग खाली था। रात को 9.30 हो चुके थे। जनता एक्सप्रेस के आने का संकेत हो चुका था। मैं भी प्लेटफार्म पर सबसे आगे की ओर जा कर खड़ा हो गया था। तभी गाड़ी आ गई और उसके रूकते ही मैं उस में चढ़ गया। मैंने देखा कि पूरा डिब्बा खाली पड़ा था, हालांकि मुझे इस बात से कोई चिन्ता नहीं थी। मैं एक सीट पर बैठ गया।
अभी गाड़ी ने सीटी दी और धीरे-धीरे सरकना शुरू ही हुआ था कि मुझे कुछ जनाना आवाजों के चढ़ने की आहट आई। मेरा अनुमान सही था, आगन्तुक यात्री तीन लडकियाँ थीं। वे लोग अपना सामान मेरे सामने की सीट पर रख कर वहीं बैठ गईं।
गाड़ी ने रफ्तार पकड़ ली थी। मैं उनसे बेखबर नहीं था और उनको नजर भर कर देखा। वे तीनों लगभग 20-22 वर्ष की उम्र की रही होंगीं।
तीनों ही मार्डन थी और उन सब ने जींस और टॅाप पहन रखा था। उन तीनों के नयन-नख्स तीखे और शोख थे। तभी उनमें से एक उठी और डिब्बे के अन्दर की ओर चली गई।
कुछ ही पलों के बाद वो आई और अपनी दोनों सहेलियों से बोली, “यार ये तो पूरा डिब्बा ही खाली है।”
तभी उन में से एक ने मेरी तरफ मुखातिब हो कर कहा- क्या आपको मालूम था कि डिब्बा खाली है।
मैंने कहा- नहीं मुझे नहीं मालूम, मैं तो आया और सीधे यहीं बैठ गया, क्यों कोई बात है क्या?
उसने कहा- नहीं यूँ ही पूछा।
इस बात के बाद वो आपस में एक-दूसरे को देखने लगीं।
मुझे भांग की खुमारी चढ़ने लगी थी, अस्तु मैं अपनी तरंग मैं मस्त था। मुझे कुछ गरमी सी लगने लगी थी, सो मैंने अपनी शर्ट के ऊपर वाले दो बटन खोल लिए थे, मैं अन्दर बनियान नहीं पहनता हूँ, सो मेरा चौड़ा सीना दिखने लगा था। पहलवानी के कारण छाती पर बाल नहीं थे, सो बिल्कुल चिकनी छाती थी। मेरी छाती देख कर उनको शायद कुछ लगा वो आपस में कुछ खुसुर-पुसुर करने लगीं। तभी उनमें से दो उठी और डिब्बे के गेट की तरफ चली गईं। मुझे दरवाजा बंद होने की आवाजें आने लगीं।
मुझे लगा शायद ये लोग डिब्बे के खाली होने के कारण कुछ भयभीत हैं, सो मैंने कहा- आप लोग घबराएं नहीं, मैं हूँ किसी बात की चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं हैं।
मेरी बात सुनकर उन में बची एक मुस्करा कर बोली- और अगर चिन्ता आप से ही हो तो?
मैं अकबका गया। मुझे उनसे ऐसे उत्तर की अपेक्षा नहीं थी।
मैंने संभल कर कहा- भला मुझसे क्या चिन्ता?
“क्यों आप क्या मर्द नहीं हो?”
मेरा दिमाग भन्ना गया। मैंने भी कह दिया, “असली मर्द हूँ, पर छिछोरी हरकतें नहीं करता हूँ।”
इस पर वो तनिक इतरा कर बोली- तो फिर आप कैसी हरकतें करतें हो?
मैं निरूत्तर था।
मैंने कहा- आप लोग बेफ्रिक रहें, किसी बात की कोई चिन्ता मत करें।
अब वो तनिक हंस कर बोली- अरे यार मैं तो मजाक कर रही थी। आप अन्यथा न लो।
मैंने भी उनकी ‘मस्ती’ को भांप लिया था।
मैंने कहा- मजाक तो अपने किसी खास से किया जाता है। मैं तो आपका अभी खास बना नहीं हूँ।
इस पर वो खिलखिला कर हंस दी।
उसने सीट से झुक कर नीचे रखे अपने एअर बैग को कुछ सरकाने की चेष्टा की, और अपनी दूधिया घाटी के दर्शन कराए।
मैं बड़े गौर से उसकी गेंदों को देखने लगा।
क्या टॉप का माल छुपा रखा था साली ने अपने टॉप के नीचे…!
मेरा मन में कुछ गुदगुदी होने लगी। मैं एकटक उसकी दरार को घूर रहा था, मैं भूल गया कि वो भी मेरी नजरों को देख रही है।
अचानक वो सीधी हुई और मेरी ओर देख मुस्करा कर बोली- जरा हाथ लगाना।
मैंने अचकचा कर कहा- किधर?
वो हंस दी और बोली- किधर लगाने की कह रही हूँ? क्या कुछ देख नहीं रहे हो, मैं किधर हाथ लगाने की कह रही हूँ!
मैं संयत हुआ और कटाक्ष करता हुआ बोला- अब मुझसे हाथ लगवाने में डर नहीं लग रहा है। कहते हुए मैंने उसके बैग को उठाया और उससे पूछा, “किधर लगा दूँ?”
उसने शोखी से कहा- क्या यार तुमको तो ये भी नहीं मालूम कि किधर लगाया जाता है?
मैं अब समझ गया कि ये सब चालू आइटम हैं, और मुझसे मस्ती करना चाहती हैं। मैं भी बेफ्रिक था, क्यूंकि मेरे पास भी काफी समय था, और मुझे भी टाइम पास करने के लिए ये सब ठीक लगा। तभी उनकी दोनों साथिनें भी वापिस आ गईं।
वो फिर मुझसे बोली- आपका क्या नाम है?
मैंने कहा- मेरा नाम सुनील है.. और आप सब का?
वो बोली- मैं सीमा हूँ, ये नीलू और ये शबनम है।
मुझे उनका व्यवहार काफी खुला लगा, क्योंकि उन तीनों ने बड़ी गर्मजोशी से मुझ से हाथ मिलाए।
तभी मैंने उनसे पूछा- क्या मैं एक सिगरेट पी सकता हूँ, अगर उनको बुरा न लगे तो?
सीमा बोली- जरूर, और एक मुझे भी देना।
मैं उसके इस बिंदासपन पर फिर हक्का-बक्का रह गया।
मैंने अपनी जेब से ‘गोल्ड-फ्लैक’ की डिब्बी निकाली और उसे सीमा की ओर बढ़ा दी। उसने डिब्बी ली और उसमे से एक सिगरेट निकाल ली और डिब्बी मुझे वापस कर दी।
मैंने कहा- नीलू और शबनम तुम लोग नहीं पीओगी क्या?
इस पर नीलू बोली- नहीं हम लोग एक से ही काम चलाते हैं।
मैंने कहा- वाह… क्या सोच है। अब तो मैं भी सोचता हूँ कि यह काम हम सब को एक साथ ही एक डण्डी से ही निपटा लेना चाहिए।
शबनम खिलखिला कर बोली- डण्डी नहीं हम इसे डण्डा कहते हैं, और जो मजा एक ही डण्डे से आता है वो अलग-अलग में कहां है ?
उसकी इस बात पर तीनों जोर-जोर से हंसने लगीं।
मैं समझ गया कि सब चालू माल हैं। मैंने माचिस निकाली और सीमा की तरफ बढाई और हंस कर कहा- लो आग लगाओ।
वो तपाक से बोली- हम तो ऐसे नहीं, ऐसे आग लगवाते है।
वो उठी और मेरे बगल में आकर बैठ गई और अपनी छातियों का पूरा भार मेरे ऊपर डाल कर, अपने रसीले होठों में सिगरेट दबा बोली- लो लगाओ आग, मैं तैयार हूँ।
मेरे शरीर में 440 बोल्ट का करंट दौड़ गया। मैंने माचिस का तीली जलाई, पर तेज हवा के कारण वो बुझ गई।
मैंने कहा- सीमा मुझे खिड़की बंद कर लेने दो फिर आग लगाता हूँ।
मैंने खिड़की बंद कर दी और तीली जला कर सीमा की सिगरेट को जला दिया।
सीमा ने बडे़ ही मादक अन्दाज से सिगरेट का एक कश खींचा और मुझसे बोली- तुम्हारा डण्डा तो बहुत मजेदार है।
मैं सोचने लगा कि अभी तूने देखा ही कहाँ है मेरा डण्डा?
वो शायद समझ गई, बोली- क्या सोच रहे हो डियर, डण्डे की बात सुन कर?
तभी नीलू जो सीमा से भी एक कदम आगे थी, बोली- ये शायद किसी और डण्डे की बात सोचने लगे।
मैंने कहा- और कौन सा डण्डा?
शबनम बोली- क्यों कोई और डण्डा नहीं है तुम्हारे पास?
इस पर मैंने कहा- है, पर उसकी कुछ शर्तें हैं।
सीमा बोली- बताओ क्या शर्त है, तुम्हारे उस डण्डे की?
मैंने कहा- जैसे अभी जो डण्डा तुम चूस रही हो उसी तरह तुम सबको उसको भी चूसना पड़ेगा।
सीमा बोली- ठीक है दिखाओ, किधर है तुम्हारा वो डण्डा?
मैंने कहा- इतना उतावलापन ठीक नहीं है, जब तुम उसको देखना चाहती हो तो उसके स्वागत की तैयारी करो।
अब इतना तो तय था कि यह बात मेरे हथियार के विषय में हो रही थी।
मेरी बात को सुन कर शबनम ने सीमा से सिगरेट ली और एक जोर का कश लगाया, बड़ी शान से धुंआ को छोड़ते हुए सिगरेट नीलू को दे दी।
और अपने टॉप को एक झटके में उतार दिया, और बोली- क्या गोल-मोल बातें हो रही हैं, लो मैं ही शुरूआत करती हूँ। सुनील मुझे चूसना है तुम्हारा डण्डा, अब निकालो मुझ से और सब्र नहीं होता।
उसके टॉप उतरते ही उसके दोनों कबूतर जो एक जरा सी ब्रा में कैद थे और लगभग पूरे ही नुमायाँ हो रहे थे।
वाह …क्या शानदार माल था….!
उसकी 36 साइज की चूचियों को देख कर मेरा हथियार ‘टन्ना’ गया। पर मैं अभी जल्दबाजी के मूड में नहीं था। मुझे अभी बाकी की उन दोनों को भी नंगा करना था।
मैंने सीमा और नीलू से कहा- तुम्हारा क्या कोई मुहूर्त है, जब पर्दा उठेगा?
सीमा जो मेरे बगल में बैठी थी, बोली- तुम जब चाहो पर्दा उठा सकते हो।
मैंने अगले क्षण ही उसके कंधे पर अपना एक हाथ रखा और दूसरे हाथ से उसकी चूचियों को ऊपर से ही मसला।
उसने भी अपने होंठों को मेरे होंठों से चिपका कर मेरा जोर का चुम्बन लिया।
अब मैंने उसकी गेंदों को छोड़ कर उसके टॉप को एक ही झटके में ऊपर उठा दिया। वो नीचे ब्रा नहीं पहनें थी। उसकी गोल-गोल नारंगियाँ, जिन पर भूरे रंग के अंगूर लगे थे, मेरे सामने अपना भरपूर प्रदर्शन कर रहे थे।
तभी उसका हाथ मेरे हथियार की तरफ बढ़ा।
उधर मैंने देखा कि नीलू ने अपने बैग में से एक रम की बोतल और एक गिलास निकाल लिया। शबनम और नीलू ने मिल कर एक बड़ा सा पैग बनाया और बारी-बारी से अपने गले तर करने शुरू कर दिए।
इधर सीमा ने मेरी पैंट की जिप खोल कर मेरे लंड के सुपाड़े को अपने मुँह में रख कर चचोरना शुरू कर दिया था मुझे भी गरमी चढ़ने लगी थी।
मैंने शबनम को कहा- आओ हनी.. अब चूसो मेरे डण्डे को और मुझे भी अपनी चूत के दीदार कराओ।
शबनम चहकते हुए उठी और उसने अपनी जींस उतार कर अपनी पैंटी को अपनी जांघों तक सरकाया। उसकी सफाचट चूत को देख कर मेरे लण्ड में फुरफुरी सी आ गई जिससे सीमा जो सिर्फ मेरे लौड़े के सुपाड़े को चूस रही थी उसके मुँह में मेरा आधा लंड घुस गया।
शबनम अपने हाथ में ‘नीट’ शराब का गिलास लेकर मेरे पास आई और अपनी चूत को मेरे मुँह के पास लगा कर खड़ी हो गई।
मैं उसकी चूत की महक से पागल सा हो गया। साली ने कोई पाउडर लगा रखा था। मैंने ज्यों ही उसके दाने को अपनी जीभ से टच किया, उसने अपने गिलास से थोड़ी सी रम अपनी चूत पर डाल दी। मुझे ऐसा लगा कि जैसे मुझे अमृत पिला रही हो। मैंने अपने हाथ से उसको उसके नितम्बों की तरफ से अपनी ओर को खींचा और उसकी चूत को चाटना शुरू कर दिया।
उसकी दशा भी ऐसी थी कि जैसे वो अपनी चूत को मेरे मुँह में घुसेड़ देना चाह रही हो। कुछ ही पलों में उसकी सिसकारियाँ छूटने लगी, मुझे भी सीमा ने मेरे लौडे़ को चचोर-चचोर कर पागल सा कर दिया था
मैं भी उचक-उचक कर उसके मुँह को अपने लंड से चोद सा रहा था। तभी मैंने देखा कि नीलू जो अभी भी सामने वाली सीट पर ही बैठी थी रम की बोतल से नीट ही पी रही थी और सिगरेट पी रही थी।
मैंने उसको कहा- हनी तुम भी अपने कपड़े उतार लो और इधर आ कर मेरे लंड का स्वाद चख लो।
वो बोली- ठीक है डियर.. मेरे को अभी पी लेने दो तब तक तुम सीमा की चूत का बाजा बजा दो।
मैं बोला- ठीक है पर अपने कपड़े तो उतार कर जरा अपनी गेंदें तो दिखाओ।
उसने बोतल बगल में रखकर अपनी टाइट शर्ट को, जो सामने से ही चिटकनी बटन को खोलने से खुलती थी, एक झटके में ही खोल दी।
अंदर डोरी वाली जालीदार ब्रा उसके कबूतरों को जकड़ने में असमर्थ सी दिख रही थी। उसने ऊपर से ही अपनी फ्रंट-ओपनेबुल ब्रा का हुक भी खोल दिया। अब उसके दोनों 34 साइज के अनार उचक बाहर आ गए।
उसने अपने उन अनारों की बौडि़यों को अपनी उगंलियों से मसला और मुझे एक आंख मार कर पूछा, “कैसे लगे ?”
मैंने कहा- बहुत सुन्दर.. पर इन्हें अभी मसाज की जरूरत है। कुछ बड़े हो जायें तो इनकी छटा ही देखने लायक होगी।
वो बोली- जब मसलती तो हूँ.. तभी तो 28 से 34 कर पाई, अब तुम चूस कर इन्हें और बड़ा कर देना।
उसके निप्पल वाकई बिल्कुल पिंक कलर के थे। वो बहुत सैक्सी लग रही थी। तभी उसने अपनी जींस भी उतार कर वहीं डाल दी। बिल्कुल जरा सी चड्डी में उसकी चिकनी जांघें गजब ढा रही थी। अब मेरा अपना ध्यान सीमा पर गया, वो मेरे लौड़े को चूस-चूस कर मजा ले रही थी और शबनम मेरी ऊँगली से अपनी चूत खुदवा रही थी।
मुझे लगा कि अब चुदाई का वक्त आ गया है, परन्तु मेरे मन में एक ख्याल आया कि क्यों न इनकी चुदाई भी एक साथ की जाए, इससे मेरा काम भी हो जाएगा और इन तीनों की चूत की खुजली भी मिट जाएगी।
सो मैंने पहले शबनम की चूत चोदने का फैसला किया और कहा- चल शब्बो रानी तेरे खेत में जुताई की जाए।
वो अब शराब के नशे में झूम रही थी ,
उसने तो जैसे माहौल ही हॉट कर दिया, बोली- माई डियर मादरचोद, बहन के लौड़े, चल डाल अपने इस मूसल छाप घोडे़ के लंड को मेरी बुर में और फाड़ दे हरामी मेरी चूत को।
उसकी इस भाषा ने मेरी खुपड़िया घुमा दी। उसकी आवाजें इतनी तेज थी कि अगर हम लोग किसी कमरे में या और कोई जगह होते तो लोग पूछने आ जाते कि क्या हुआ भाई कौन को लग गई, कहीं चोट तो नहीं आई, बगैरह बगैरह……..।
शबनम ने अपनी टाँगें रण्डियों के जैसे फैला दीं, मैंने अपना लौड़ा उसकी लपलपाती चूत में एक ही झटके में ठूँस दिया, फिर जरा बाहर खींचा और दुबारा जोर से उसकी बुर में ठांस दिया। अबके झटके में पूरा 6 इंच लंड अन्दर घुस गया था।
शबनम की हालत खराब थी, उसका सारा नशा फट गया था और वो लगातार चीख रही थी, “साले बाहर निकाल ले मादरचोद, मेरी चूत फट जाएगी कुत्ते, मुझसे गलती हो गई। मुझे क्षमा कर दो …. आह…… मत चो…दो साले…..।”
पर मैं कहां मानने वाला था। मेरे ऊपर तो भूत सवार था। धकाधक 10-12 टापें जब उसके छेद पर लगीं और मैंने उसके ऊपर लगभग लेटते हुए उसकी रस से भरी गोल-गोल मस्त नारंगियों के निप्पलों को अपने होंठों से चुभलाना शुरू किया, तो उसको कुछ राहत सी मिलने लगी।वो अब चिल्लाना बंद करके सिसकारियाँ भर रही थी। उसकी इन आवाजों में मुझे उसके आनन्द प्राप्त करने जैसी ध्वनि सी लग रही थी।
मैंने पूछा, “क्यों शब्बो रानी मजा आने लगा क्या ?
उसने मुस्करा कर कहा- हाँ डियर अब ठीक है, मुझे तुम्हारी जो चूची चूसने की हरकत है, वो बहुत मजा दे रही है। प्लीज और चचोरो न।
मैं जुट गया उसके निप्पलों को टूंगने। उसके थन बहुत ठोस से हो गए थे। मुझे अभी भी याद था कि दो छेद मेरे लंड का बड़ी बेकरारी से इंतजार कर रहे हैं। मैंने सीमा की तरफ देखा तो मैडम अपनी चूत में ऊँगली अन्दर-बाहर कर रही थीं।
मैंने कहा- आओ रानी लेटो इधर.. तुम्हारा चुदाई का ख्वाव भी पूरा कर देता हूँ।
वो बोली, “पहले शब्बो को तो निपटा दो।”
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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