Friday, April 25, 2014

FUN-MAZA-MASTI होली का असली मजा--10

FUN-MAZA-MASTI

 होली का असली मजा--10

" लगे रहो मुन्ना भाई " हँसते हुए वो बोले और उनकी हंसी से साफ लग रहा था की उन्होंने 'सब कुछ ' देख लिया है।

मेरे ममेरे भाई के चिकने मक्खन ऐसे लौंडिया मार्का गाल को सहलाते वो बोले ,

" अरे यार थोड़ी देर पहले जब गाडी रुकी थी न तो मैं डिब्बे में चढ़ गया था। टी टी ने बोला की इस केबिन में तुम लोग हो और उसके अलावा , पूरा डिब्बा खाली है , फर्स्ट क्लास का। उसे मैंने १०० का नोट पकड़ाया होली की गिफ्ट और वो उतर के सेकेण्ड क्लास में चला गया। मैंने डिब्बा ही अंदर से बंद कर दिया। रात में कोई स्टापेज भी नहीं है। बस अब हम तीन है। "

और बोलते हुए उन्होंने मेरी ओर जोर से आँख भी मारी।

मैं सब समझ गयी। थोड़ी देर पहले मैं अपने ममेरे भाई के साथ बर्थ पे उसकी अधलेटी , उसका लीची ऐसा सुपाड़ा चूस रही थी। और ये उन्होंने देख लिया था (अब सुबह उसने मुझे मेरी जिठानी , ननदों और नंदोई के सामने चोदा ही था। और मेरे सामने मेरे नंदोई ने उसकी हचक हचक कर गांड भी मारी थी। तो अब हम में क्या शरम बचती। )

और जैसे ये काफी न हो उन्होंने मेरे अधखुले ब्लाउज के पूरे बटन खोल दिए और मेरे गोरे गोरे जोबन छलक के बाहर आए गए। उन्होंने सीधे से मेरे भाई के हाथ पकड़ के मेरी चूंची पे रख दिया और बोला , " क्यों साल्ले , मस्त मम्मे है ना मेरी बीबी के जरा दबा के देखो न , शर्माओ अपना ही माल है। "

उन्होंने मुझे फिर आँख मारी और कहा , " हे मेरे डब्बे में आने से पहले जो चल रहा है , चलता रहना चाहिए। "

अब मैं उनका इरादा साफ समझ गयी उनकी नियत फिर मेरे भाई पे डोल गयी थी। और उन्हें मेरा सपोर्ट चाहिए था।

दिन भी जब में भी जब वो उसकी कच्ची गांड खोल रहे थे तो नंदोई जी उनका साथ दे रहे थे। नंदोई जी ने पहले तो मेरी भाई को देशी दारु पिलायी और उसके बाद उसके मुंह में अपना मोटा लौंडा ठूंसा था , तभी वो चीख नहीं पाया। उसके बाद जब नंदोई जी ने उसकी गांड मारी तो नीचे से मैंने उसे अपना देवर समझ के कस के कैंची की तरह पैर उसके पीठ पे बाँध रखा था और होंठ अपने होंठ से सील किये हुए थे।

मैं कौन होती थी अपने साजन की बात टालने वाली।

मैंने फिर से उसका नेकर सरकाया और उसका आधा खड़ा लंड अपने होंठो के बीच गपक लिया और चूसने चुभलाने लगी।

मेरे पैरों ने उसके पैरों में फंसे नेकर को पूरा निकाल दिया।

कुछ देर में उसने भी हिम्मत कर के मेरी चूंचिया हलके हलके दबानी शुरू कर दीं।

वो उसके बाल और गाल प्यार से सहला रहे थे।
मैंने 'उनकी' ओर प्यार से देखा और अपने भाई की शर्ट के नीचे के बटन खोल दिए। मेरे भाई ने इशारा समझ लिया और उसने अपनी शर्ट की बाकी बटने भी खोल के शर्ट नीचे उतार के गिरा दी। उसकी नेकर मैं पहले ही उतार चुकी थी।

उसकी पूरी नंगी देह देख के 'उनकी ' आँखे चमक गयीं।

अब आँख मारने की बारी मेरी थी।

वो मुझे देख के मुस्कराये और उनकी उस मुस्काराहट के लिए मैंने कुछ भी न्यौछावर कर सकती थी। मेरे छोटे भाई का पिछवाड़ा कौन सी चीज थी।

उनका बाल सहलाता हुआ हाथ पीठ पे उतर गया और थोड़ी देर में ही नितम्बो की दरार के ठीक ऊपर था।

मैंने अपने भाई के चिनिया केले ऐसे लिंग कि चुसाई तेज कर दी थी। मेरा मुंह अब तक उनके बित्ते भर के लंड का आदी हो चूका था। सुबह नंदोई के कलाई ऐसे मोटे लंड को चूस चुकी थी। भाई का लिंग तो ५-६ इंच का मुश्किल से था। आसानी से मैं जड़ तक चूस रही थी। मस्ती से उसकी आँखे बंद हो रही थी और अब जोर जोर सेवो मेरी चूंची के निपल वो दबा रहा था , मसल रहा था।
उन्होंने भी अब अपनी शर्ट उतार दी थी। उनका चौड़ा सीना मेरे आँखों के सामने था। कुछ देर में ही उन्होंने मेरे भाई के सर को अपनी जांघो पे रख दिया।

मेरे हाथ तो खाली ही थे , मैंने शरारत से उनकी जींस का जिपर खोल दिया। ' वो ' कुनमुना रहा था। मेरी शैतान उँगलियों ने अंदर घुस के उसे जगाना शुरू कर दिया और थोड़ी देर में वो फुफकारने लगा। और मैंने उसे निकाल के बाहर कर दिया।

पूरे एक बित्ते का मोटा कड़ियल नाग , बिल तलाशता ,…

उनकी उंगलिया भाई के चिकने गाल को टटोलतीं तो कभी उसके रसीले होंठो को। और अब वो मोटा लिंग भी गाल सहला रहा था।

उसके गाल दबा के मुंह चियरवा के , होंठ खोलते हुए बोले वो ,

" साल्ले , बहनचोद , तेरी बहन का मुंह तो तेरे साथ बीजी है मेरा काम कौन चलायेगा , चल तू ही घोंट। "

और जब तक मेरा भाई कुछ समझता , सुपाड़ा , उसके मुंह के अंदर था।


मैं उसका लंड चूस रही थी और उस की हालत देख के मुस्करा रही थी।

अब वो लाख चूतड़ पटक ले ये उसे पूरा लंड घोंटा के ही मानेंगे।
मैंने एक मिनिट के लिए उसका लंडनिकाला और उसे समझाया ,

" अरे भैया , मुंह पूरा खोलो , एकदम आ आ कर के , जबड़े को लूज रखो "

और उसने मेरी सलाह मान ली। कुछ ही देर में 'उनका ' आधा लंड अंदर था और अब मेरा भाई जोर जोर से लंड चूस रहा था।
मैं कभी अपने भाई के बॉल्स सहलाती , कभी पी हॉल जीभ से सुरसुराती , और उसका हौसला बढाती।

अब वो अपने साले का सर पकड़ के जोर जोर से उसका मुंह चोद रहे थे। उनके चेहरे से लग रहा था की उन्हें कितना मजा आ रहा है।

वो बिचारा गों गों कर रहा था , लेकिन साथ में चूस भी रहा था।

" साल्ला , बहुत मस्त लंड चूसता है " मुझसे वो बोले।
"
मैं भी मुस्करा के बोली , " अरे आखिर भाई किसका है , मैं भी तो इतना जबरदस्त लंड चूसती हूँ ".


उनकी निगाह बार सरक के उसकी दुबदुबाती गांड की और जा रही थी। और मैं समझ गयी थी कि उन का मन किधर है।

मैंने बाजी बदली , और उन्हें आँख मार के इशारा किया , फिर बोली

" बिचारे का मुंह थक गया होगा जरा उसे अपनी रसमलाई चटा दूँ "

और थोड़ी देर में मैं और मेरा भाई 69 की पोज में थे , मैं ऊपर वो नीचे।

और उनका लंड जोर से फड़फड़ा रहा था।

मैंने धीरे से बोला "बस थोड़ी देर, फिर दिलवाती हूँ तुझे मजा। "

" क्यों भैया , आ रहा है रस मलायी का मजा " उसके मुंह में चूत रगड़ती हुयी मैं बोली।


" हाँ दीदी , " लपालप चूत चाटते हुए वो बोला। इनकी बात एकदम सही थी , चाटने में मेरा भाई एकदम मस्त था।

" हे जरा एक तकिया देना " मैंने 'इनसे 'कहा औ हलके से आँख मार दी।

वो एक क्या , जीतनी तकिया थीं सब ले आये और वो मैंने अपने भाई के चूतड़ के नीचे लगा दी। अब वो अच्छा ख़ासा ऊपर उठ गया था।

ट्रेन अपनी रफ्तार से चली जा रही थी। ट्रेन की खिड़की से पूनो की चांदनी हम सबको नहला रही थी।

फर्स्ट क्लास की बर्थ अच्छी खासी चौड़ी होती है। और मैं और मेरा ममेरा भाई , मस्ती से 69 के मजे ले रहे थे।

वो आके मेरे सर की और बैठ गए थे , और मुझे अपने साले का लंड चूसते हुए देख रहे थे।

मैंने अपने ममेरे भाई की दोनों टाँगे एकदम ऊपर उठा रखी थीं और मेरे हाथ कभी उसके बॉल्स सहलाते तो कभी गोरी गोरी लौंडिया छाप चूतड़ ,

और एक बार मैंने उन्हें दिखा के अपने भाई के पिछवाड़े के छेद में ऊँगली कर दी।

वास्तव में बड़ी कसी थी। पूरा जोर लगाने पे भी सिर्फ टिप घुस पायी।

वो इशारा समझ गए थे। उनका मोटा लंड बेकरार हो रहा था , मैंने इशारे से बरजा और पल भर के लिए भाई के लंड को छोड़ के पति का लंड गपक लिया।

रोज के आदी मेरे होंठ जम के चूसने चाटने लगे।


ये नहीं था की मैंने , अपने भाई को पति के सामने इग्नोर कर दिया हो।

अब उसके लंड कि हाल चाल मेरी गोरी उंगलिया ले रही थी , जोर जोर से मुठिया के। और अंगूठा और उंगली दूसरे हाथ की खूब थूक लगा के , उसके गांड के छेद को चौड़ा करने पे तुली थी।

मेरे पति की निगाहने उसी गोल छेद पे टिकी थीं।

मैंने अपने दोनों पैरों को अपने भाई के हाथों पे टिकाया , पूरी देह का जोर उसे पे डाल दिया , और अपनी चूत से उसका मुंह अच्छी तरह सील कर दिया। दोनों जाँघों ने उसके सर को दबोच लिया।


और अब मैंने उनके उनके वावरे तड़इपते लंड को आजाद किया और अपने हाथो से ही ममेरे भाई के गांड के दुबदुबाते छेद पे सटा दिया।

फिर क्या था ' वो ' तो पागल हो रहे थे , उन्होंने उस के गोल मटोल छोटे छोटे चूतड़ों को पकड़ के हचाक से पूरा करारा धक्का दिया।

ऐसे धक्के का मतलब मुझसे अच्छा कौन समझ सकता था।

मेरे नीचे दबा मेरा भाई तड़प रहा था , मचल रहा था। दर्द से पिघल रहा था।

उसके इस दर्द को मुझसे अच्छा कौन समझ सकता था।

लेकिन ये समय बेरहमी का था , जोर जबरदस्ती का था , और मैंने नहीं चाहती थी की मेरे पति के मजे में कोई विघ्न पड़े।

मैंने जोर से अपनी बुर उसके मुंह पे भींच दी , अपने पूरे देह से उसे और जोर से दबाया और अपने दोनों हाथो से उसके तड़पते ,फड़फड़ाते पैरों को फ़ैला के अलग रखा।

वो जोर से धक्के मारते रहे , उसके गोल मटोल चूतड़ों को पकड़े हुए , सुपाड़ा थोडा घुस गया था।

नीचें वो चूतड़ पटक रहा था , लेकिन मेरे और उनके मिले जुले जोर के आगे बिचारे की क्या चलती।


दोचार धक्को के बाद , अब पूरा सुपाड़ा अंदर चला गया और ऩीने चैन कि साँस ली , अब वो लाख गांड पटके , लंड बाहर नहीं निकल सकता था।

उन्होंने भी हमला रोक दिया।

मैंने अपनी देह का दबाव हल्का कर दिया और एक बार फिर से अपने छोटे ममेरे भाई का लंड मुंह में ले के चुभलाने चूसने लगी।

वो भी कम नहीं था , उसने फिर मेरी चूत रस मलायी का मजा लेना शुरु कर दिया।


यही तो हम दोनों चाहते थे।

उसका ध्यान , दुखती गांड पर से एक पलके लिए हट गया।
गांड के छल्ले को भी मेरे मर्द के मोटे लंड की आदत पड़ गयी।

और 'उन्होंने ' फिर एक जबरदस्त धक्का मारा और लंड गांड के अंदर पेलना शुरू कर दिया।

वो बिचारा गों गों कर रहा था।

उन्होंने इशारा किया और मैं हट गयी। मैं जा के अपने भाई के सर के पास बैठ गयी और उसका सर सहलाने लगी।

वो अब खूब मजे से हलके हलके लंड पेल रहे थे।
'उन्होंने ' अपना मूसल जैसा लंड , जो एक तिहाई अंदर घुस चुका था , सुपाड़े तक बाहर खिंचा और मैं समझ गयी क्या होनेवाला है।

मैंने उन्हें आँख से इशारा किया कि , क्या मैं अपने मोटे मोटे मम्मे , इसके मुंह में डाल के इसका मुंह बंद करा दूँ , लेकिन उन्होंने सर हिला के मना कर दिया।

फिर भी मैंने अपने दोनों हाथ उसकी कलाई पे रख के कस के दबा दिया और अगले पल तूफान आ गया।

उन्होंने पूरी ताकत से लंड अंदर पेला , और रगड़ता , दरेरता , घिसटता , वो अंदर घुसा।

और जोर की चीख केबिन में गूंजी। अगर मैंने पूरी ताकत से उसके हाथ न पकड़ रखा होता तो वो शायद उछल जाता।

लेकिन पूरे कोच में कोई नहीं था और मेरे भाई बिचारे कि दर्द भरी चीख किसी ने नहीं सुनी।
दूसरा धक्का पहले से भी तेज था और चीख भी और , ह्रदय विदारक।

बिना रुके वो धक्के पे धक्का मार रहे थे।

मुझे याद आया , किसी कि बात की जब तक जिसकी गांड मारी जाय वो दर्द से बिलबिलाए नहीं , चीखे , चिल्लाये नहीं और गांड उसकी दर्द से परपराए नहीं , जब तक वो दिन तक टांग फैला के न चलें , न गांड मारने वाले को मजा आता है और ना गांड मरवाने वाले को।
चीखें कम हो गयी थी लेकिन दर्द अभी भी झलक रहा था।

अचानक मुझे आया , सुबह जब इन्होने इसकी ली थी और बाद में नंदोई जी ने भी , बस आधे लंड से लिया था वो भी बहुत हौले हौले।

ये मैं सुहागरात में ही सीख गयी थी की पहली दो बार तो प्यार मुहब्बत से होता है , असली हमला तो तीसरी बार ही होता है जब दोनों एक दूसरे के आदि हो जाते हैं , और यही हो रहा था।


अचानक वो रुक गए। अब उनका ३/४ लंड बेसाख्ता मेरे ममेरे भाई के गांड में धंस गया था और वो उसकी लम्बाई मोटाई का आदी हो रहा था।

अब वो उसके गालों को चूम रहे थे , उसके बाल सहला रहे थे। और उससे अचानक जोर से बोला ,
" चल साल्ले बन कुतिया , तुझे कातिक में कुतिया जिस तरह , चुदती है उस तरह चोदुंगा। "

मुझे अचरज हुआ , कि बिना कुछ देर किये वो कुतिया बन गया।  

और अब जो उन्होंने धक्का मारा , तो पूरा लंड अंदर।

आधे घंटे हचक के उसे चोद के ही वो झड़े , और सारी मलायी गांड में।

और उसे नीचे दबोच के लेट गए

कुछ देर तक जीजा साले उसी तरह लेटे रहा।

और फिर उठ के अपने बैग से उन्होंने दारु की एक बोतल निकाली।
वो फ
वैसी ही जिसे सुबह उन्होंने और नंदोई जी ने मिलकर पिया था और छोटे भाई को पिलाया था। और मेरी ननदो ने मुझे पिलाया था और मैंने नशे में रंग से रेंज अपने भाई को देवर समझ के उसके ऊपर चढ़ गयी , और मौके का फायदा उठा के मेरे नंदोई जी ने भी , उसे सैंडविच बना दिया।

एक बार फिर उन्होंने आधे से ज्यादा बोतल उसे पिला दी और बाकी मैं और वो चट कर गए और कुछ ही देर में उसका दर्द गायब था।

मैं नशे में बिना सैंया और भैया में भेदभाव किये बिना दोनों के लिंग की सेवा अंगुलियो और होंठो से कर रही थी।

थोड़ी देर में उन्होंने मेरे भाई को जोश दिला के मेरे ऊपर चढ़ा दिया। सुबह की तरह। सुबह धोके में हुआ था अबकी नशे में।

और सुबह की ही तरह जैसे नंदोई जी पीछे से उसके ऊपर चढ़ गए थे , वो उसके ऊपर चढ़ गए , और हचक हचक कर ली।

जब वो उतरे तो बस सुबह होने वाली थी और मेरे मायके का स्टेशन आने वाला था।

हम लोग जल्दी जल्दी तैयार हुए। गाडी वो धीमी हो रही थी , वो फ्रेश होने बाथरूम गए तो मैंने , अपने ममेरे भाई से आँखा नचाकर पुछा ,

" हे बोल , ज्यादा मजा किसके साथ आया , मेरे साथ या जीजू के साथ। "
वो हंसने लगा और बोला , " दी बुरा मत मानना , जीजू के साथ। "
 









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