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मेरी दीदी की ननद --1
मेरी फेमिली में में हूँ माताज़ी, पिताजी हें और मुझ से तीन साल बड़ी दीदी है जिस का नाम है शालिनी. मैं और दीदी एक दूजे से बहुत प्यार करते हें. भाई बहन से ज़्यादा हम दोस्त हें. हम एक दूजे की निजी बातें जानते हें और मुश्केली में राय लेते देते हें. सेक्स के बारे में हम काफ़ी खुले विचार के हें, हालाँकि हम ने आपस में चुदाई नहीं की है जब में छोटा था तब अक्सर वो मुज़े नहलाती थी. उस वक़्त मात्र कुतूहल से दीदी मेरी लोडी के साथ खेला करती थी. मुज़े गुदगुदी होती थी और लोडी कड़ी हो जाती थी. जैसे जैसे उमर बढ़ती चली तैसे तैसे हमारी छेड़ छाड़ बढ़ती चली. ये बिना बनी तब मैं सत्रह साल का था और वो बीस साल की. तब तक मेने उस की चुचियाँ देख ली थी, भोस देख ली थी और उस ने मेरा लंड हाथ में लेकर मूट मार लिया था. चुदाई क्या है कैसे की जाती है क्यूं की जाती है ये सब मुझे उस ने सिखाया था.कहानी शुरू होती है शालिनी की शादी से. पिताजी ने बड़ी धाम धूम से शादी मनाई. बारात दो दिन महेमान रही. खाना पीना, गाना बजाना सब दो दिन चला. जीजाजी शैलेश कुमार उस वक़्त बाइस साल के थे और बहुत ख़ूबसूरत थे. दीदी भी कुछ कम नहीं थी. लोग कहते थे की जोड़ी सुंदर बनी हैबारात में सोलह साल की एक लड़की थी, पारूल, जीजू की छोटी बहन दीदी की ननद. वे भाई बहन भी एक दूजे से बहुत प्यार करते थे. पारो पाँच फूट लंबी थी, गोरी थी और पतली थी. गोल चहेरे पैर काली काली बड़ी आँखें थी/ बाल काले और लंबे थे. कमर पतली थी और नितंब भारी थे. कबूतर की जोड़ी जैसे छोटे छोटे स्तन सीने पर लगे हुए थे. मेरी तरह वो बचपन से निकल कर जवानी में क़दम रख रही थी.क्या हुआ, कुछ पता नहीं लेकिन पहले दिन से ही पारो मुझ से नाराज़ थी. जब भी मुझ से मिलती तब डोरे निकालती और हून्ह--- कह कर मुँह मुचकोड़ कर चली जाती थी. एक बार मुझे अकेले में मिली और बोली : तू रोहित हो ना ? पता है ? मेरे भैया तेरी बहन की फाड़ के रख देंगे .ऐसी बालिश बात सुन कर मुझे ग़ुस्सा आ गया. भला कौन दूल्हा अपनी दुल्हन की ज़िली तोड़े बिना रहता है ? अपने आप पर कंट्रोल रख कर मैने कहा : तू भी एक लड़की हो, एक ना एक दिन तेरी भी कोई फाड़ देगा .मुँह लटकाए वो चली गयी .दीदी ससुराल से तीन दिन बाद आई. मैने मा को उसे कहते सुना : डरने की कोई बात नहीं है कभी कभी आदमी देर लगाता है सब ठीक हो जाएगा .अकेली पा कर मैने उसे पूछा : क्यूं री ? साजन से चुदवा के आई हो ना ? कैसा है जीजू का लंड ? बहुत दर्द हुआ था पहली बार ?दीदी : कुछ नहीं हुआ है रोहित. वो पारूल अपने भैया से छूटती नहीं, रोज़ हमारे साथ सोती है तेरे जीजू ने एक बार अलग कमरे में सोने को कहा तो रोने लगी और हंगामा मचा दिया.मैं समझ गया, दीदी चुदाये बिना आई थी. पाँच सात दिन बाद वो फिर ससुराल गयी और एक महीने के बाद आई. अब की बार उसे देख कर मेरा दिल डूब गया. उस के चहरे पर से नूर उड़ गया था, कम से कम पाँच किलो वज़न घट गया था, आँखें आस पास काले धब्बे पड़ गये थे. उस का हाल देख कर माताज़ी रो पड़ी. दीदी ने मुझे बताया की वो अब भी कँवारी थी, जीजू ने एक बार भी चोदा नहीं था. मैने पूछा : जीजू का लंड तो ठीक है ना, खड़ा होता है या नहीं ?दीदी : वो तो ठीक है नहाते वक़्त मैने देखा है रात को मौक़ा नहीं मिलता.मैं : हनीमून पर चले जाओ ना .दीदी : तेरे जीजू ने ये भी ट्राय कर देखा. वो साथ चलने पर तुली.मैं : सच कहूँ ? तेरी ये ननद को चाहिए है एक मोटा तगड़ा लंड. एक बार चुदवायेगी तो शांत हो जाए गी.दीदी : तेरे जीजू भी यही कहते हें. लेकिन वो अभी सोलह साल की है कौन चोदेगा उसे ?मैने शरारत से कहा : मैं चोद लूं ?दीदी हस कर बोली : तू क्या चोदेगा ? तेरी तो नुन्नी है चोद ने के लिए लंड चाहिए.मैने पाजामा खोल कर मेरा लौड़ा दिखाया और कहा : ये देख. नुन्नी लगती है तुझे ? कहे तो अभी खड़ा कर दूं. देखना है ?दीदी : ना बाबा ना. सलामत रहे तेरा लंडमैं : मान लो की मैने पारूल को चोद भी लिया, जीजू को पता चले की मैने उसे चोदा है तो तेरे पैर ख़फा नहीं होगे ?दीदी : ना, वो भी उन से थक गये हें. कहते थे की कोई अच्छा आदमी मिल जाय तो उसे हर्ज नहीं है पारूल की चुदाई में .मैं : तो, दीदी, मुझे आने दे तेरे घर. ट्राय करेंगे, कामयाब रहे तो सही वरना कुछ नहीं.दीवाली के दिन आ रहे थे. स्कूल में डेढ़ महीने की छुट्टियाँ पड़ी. दीदी ने जीजू से बात की होगी क्यूं की उन का ख़त आया पिताजी के नाम जिस में मुझे दीवाली मनाने अपने शहर में बुलाया था. मैं दीदी के ससुराल चला आया. मुझे मिल कर दीदी और जीजू बहुत ख़ुश हुए. हर वक़्त की तरह इस बार भी पारो हून्ह --- कर के चली गयीजीजू सिविल कोर्ट में नौकरी करते थे और अपने पुरखों के मकान में रहते थे. मकान पुराना था लेकिन तीन मज़ले वाला बड़ा था. आस पास दूसरे मकान जो थे वो भी पुराने थे लेकिन ख़ाली पड़े थे. शहर के बीच होने पर भी जीजू ने काफ़ी प्राईवसी पाई थी.
यहाँ आने के पहले दिन मुझे पता चला की जीजू के फ़ैमीली में वो और पारो दोनो ही थे. कई साल पहले जब उन के माता पिता का देहांत हुआ तब पारो छोटी बच्ची थी. उस दिन से जीजू ने पारो को अपनी बेटी की तरह पाला पोसा था. उस दिन से ही पारो अपने भैया के साथ सोती थी और इतनी लगी हुई थी की दीदी के आने पैर छूटना नहीं चाहती थी. दीदी की समस्या हल कर ने का कोई प्लान मैने बनाया नहीं था. मैं सोचता था की क्या किया जाय. इतने में जीजू हम सब को छोटी सी ट्रिप पर ले गये और मेरा काम बन गया.शहर से क़रीबन तीस माइल दूर ग़लटेश्वर नाम की एक जगह है मही सागर नदी किनारे एक सदीओ पुराना शिव मंदिर है आसपास नेचारल सेटिंग है कई लोग पीकनिक के वास्ते यहाँ आते हें. आने जाने में लेकिन सारा दिन लगता हैमैने एक अच्छा सा केमेरा ख़रीदा था जो मैं हमेशा साथ रखता था. इस पीकनिक पर वो ख़ूब काम आया. मैने जीजू और दीदी की कई फ़ोटू खीछी. मैं जान बुज़ कर पारो की उपेक्षा करता रहा, उस के जानते हुए उस की एक भी फ़ोटू नहीं ली. हालाँकि मैने उस की चार पिक्चर ली थी जिस का उस को पता नहीं चला था.अचानक मेरी नज़र मंदिर की बाहरी दीवारों पर जो शिल्प था उस पर पड़ी. मैं देखता ही रह गया. वो शिल्प था चुदाई करते हुए कपल्स का. अलग अलग पोज़ीशन में चुदाई करती हुई पुतलियाँ इतनी आबेहुब थी की ऐसा लगे की अभी बोल उठेगी. जीजू से छुपा छुपी मैं फटा फट उन शिल्प के फ़ोटू खींच ने लगा. इतने में दीदी आ गयी चुदाई करते प्रेमी के शिल्प देख वो उदास हो गयीपारो मुझ से क़तराती रही. सारा दिन इधर उधर घुमे फिरे और शाम को घर आएदूसरे दिन मैने मेरे दोस्त के स्टूडिओ में फ़िल्म्स दे दी, डेवेलप और प्रिंट निकालने के लिए तीसरे दिन दीदी और जीजू को कुछ काम के वास्ते बाहर जाना पड़ा, सुबह से गये रात को आने वाले थे. ट्यूशन क्लास की वजह से पारो साथ जा ना सकी. दोपहर के दो बजे वो क्लास से आई. फ़ोटो स्टूडिओ रास्ते में आता था इस लिए वो पिक्चर्स लेते आई. आते ही उस ने पेकेट मेरे तरफ़ फेंका और रसोईघर में चली गयी चाय बनाने. मैं उस के पीछे पीछे गया. अकडी हुई मेरी ओर पीठ कर के वो खड़ी थी.मैने कहा : मेरे लिए भी चाय बनाना.ग़ुस्से में वो बोली : ख़ुद बना लेना. नौकर नहीं हूँ तुमारी.मैने पास जा कर उस के कंधे पर हाथ रक्खा. तुरंत उस ने छिड़क दिया और बोली : दूर रहो मुझ से. छुओ मत. मुझे ऐसी हरकतें पसंद नहीं.मैने धीरे से कहा : अच्छा बाबा, माफ़ करना. लेकिन ये तो बताओ की तुम मुझ से इतनी नाराज़ क्यूं हो ? क्या किया है मैने ?पारो : अपने आप से पूछिए क्या नहीं किया है आप ने.में : अच्छा बाबा, क्या नहीं किया है मेने?अब तक वो मुज़ से मुँह फेरे खड़ी थी. पलट कर बोली : बड़े भोले बनते हो. सारी दुनिया के फ़ोटू निकाल ते हो, यहाँ तक की वो मंदिर के पत्थरों भी बाक़ी ना रहे. एक में हूँ जिस को तुम टालते रहे हो. मेरी एक भी फ़ोटू नहीं खींची तुमने. आप का क़ीमती केमेरा बिगड़ जाय इतनी बद सूरत हूँ ना में ?में : कौन कहता है की मेने तुमारी तस्वीर नहीं खींची ? भला, इतनी सुंदर लड़की पास हो और फ़ोटू ना निकाले ऐसा कौन मूर्ख होगा ?पारो : मुज़े उल्लू मत बनाईए. दिखाइए मेरी फ़ोटोमें : पहले चाय पीलाओ.
उस ने दोनो के लिए चाय बनाई. चाय पी कर हम मेरे कमरे में गये और फ़ोटो देखने बैठे. में पलंग पर बैठा था. वो मेरी बगल में आ बैठी, थोड़ी सी दूर. उस ने पतले कपड़े का फ़्रॉक पहना था जिस के आरपार अंदर की ब्रा साफ़ दिखाई दे रही थी. उस के बदन से मस्त ख़ुश्बू आ रही थी. सूंघ कर मेरा लौड़ा जाग ने लगा.पहले हम ने दीदी और जीजू की फ़ोटू देखी. बाद में पारो की चार फ़ोटू निकली. अपनी पिक्चर देखने के लिए वो नज़दीक सरकी. मेरे कंधे पर हाथ रख वो ऐसे बैठी की हमारी जांघें एक दूजे से सट गयी मैं मेरी पीठ पर उस के स्तन का दबाव महसूस करने लगा. बेचारा मेरा लंड, क्या करे वो ? खड़ा हो कर सलामी दे रहा था और लार टपका रहा था. बड़ी मुश्किल से मैने उसे छुपाए रक्खा.पारो की चार फ़ोटो में से तीन सीधी सादी थी जिस में वो हसती हुई पकड़ी गयी थी. बड़ी प्यारी लगती थी. चौथी फ़ोटू में वो नीचे झुकी हुई थी और पवन से दुपट्टा सीने से हट गया था. उस की चुचियाँ साफ़ दिखाई दे रही थी. पिक्चर देख वो शरमा गयी और बोली : तुम बड़े शैतान हो.मैं : पसंद आया मेरा काम ?मेरी जाँघ पर हाथ रख कर उस ने कहा : जी, पसंद आया.मैं : तो ओर फ़ोटू खींच ने दो गी ?पारो : हाँ हाँ लेकिन ये बाक़ी की फ़ोटू किस की है ?मैं : रहने दे. ये फ़ोटू तेरे देखने लायक नहीं हैपारो : क्या मतलब ? नंगी फ़ोटू है क्या ? देखूं तो मैंइतना कह कर अचानक वो फ़ोटू लेने के लिए झपटी. मैने हाथ हटा दिया. इस छीना झपटी में वो गिर पड़ी मेरी बाहों में. वो संभल जाए इस से पहले मैने उसे सीने से लगा लिया. झटपट वो संभल गयी शर्म से उस का चहेरा लाल लाल हो गया और उस ने सर झुका दिया. मेरे पहलू से लेकिन वो हटी नहीं. मैने मेरा हाथ उस की कमर में डाल दिया. उंगलियाँ मलते मलते दबे आवाज़ से वो बोली : क्यूं सताते हो ? दिखाओ ना.मेरे पास कोई चारा नहीं था. चुदाई करते हुए शिल्प की पिक्चर्स मैं दिखाने लगा. मुस्कराती हुई, दाँतों में उंगली चबा ती हुई वो देखती रही.अंत में बोली : बस ? यही था ? ये तो कुछ नहीं है भैया के पास एक किताब है जिस में सच्चे आदमी और औरतों के फ़ोटू हैमैं : तुझे कैसे मालूम ?पारो : मैने किताब देखी है देखनी ही तुझे ?मैं : हाँ --- हाँ ----ज़रूर.खड़ी हो कर वो बोली : चलो मेरे साथ.अब दिक्कत क्या थी की मेरा लंड पूरा तन गया था. निकार के बावजूद उस ने मेरे पाजामा का तंबू बना रक्खा था. इस हालत में मैं कैसे चल सकूँ ?मैने कहा : मैं बैठा हूँ तू किताब ले आवो किताब ले आई और बोली : एक दिन जब मैं भैया के कमरे की सफ़ाई कर ररही टी तब मैने पलंग नीचे ये पाई. मेरे ख़याल से भाभी ने भी देखी हैमें : दीदी देखे या ना देखे, क्या फ़र्क पड़ेगा ? तू जो उन के बीच आ रही हो.पारो : में उन के बीच नहीं आ रही हूँ देख रोहित, भैया मेरे सर्वस्व है कोई मुज़ से उन्हें छीन ले ये में बरदास्त नहीं करूंगी, चाहे वो भाभी हो या ओर कोई.मैं : अरी पगली, दीदी कहाँ जाएगी तेरे भैया को छीन ले कर ? भैया के साथ वो भी तेरी हो जाएगी. कब तक तू कबाब में हड्डी बनी रहेगी ?पारो : मैं जानती हूँमैं : क्या जानती होपारो : ---- की मेरी वजह से भैया वो नहीं कर पाए हें.मैं : वो माइने क्या ? मैं समझा नहीं.पारो : ख़ूब समझते हो और भोले बन रहे हो.मैं : मैं तो बुद्धू हूँ मुझे क्या पता ?वो शरमा राही थी फिर भी बोली : मज़ाक छोड़ो. देखो, भैया से मैने सिर्फ़ एक चीज़ माँगी हैमें : वो क्या ?उस ने नज़रें फेर ली और बोली : मैने कहा, एक बार, सिर्फ़ एक बार मुझे देखने दे ---- .में : क्या देखने दे ?पाओ : शैतान, जानते हुए भी पूछते हो.मैं : नहीं जानता मैं साफ़ साफ़ बताओ ना.पारो : वो, वो जो हर दूल्हा दुल्हन करते हें सुहाग रात कोमैं : मुझे ये भी नहीं पता. क्या करते हें ?पारो : हाय राम, चु --- चु --- मुझ से नहीं बोला जातामैं : ओह, ओ, चुदाई की कह रही हो ?अपना चहेरा छुपा कर सिर हिला कर उस ने हा कही.मैं : तुझे दीदी और जीजू की चुदाई देखनी है एक बार, इतना ही ?उस ने मुँह फेर लिया और हाँ बोली.मैं : जीजू ने क्या कहा ?पारो : भाभी ना बोलती हैमैं : मैं उन को समझा उंगा. लेकिन एक ही बार, ज़्यादा नहीं. और एक बात पूछु ? उन को चोद ते देख कर तुम एक्साइट हो जाओ गी तो क्या करोगी ?पारो : नहीं बता उगी तुझे.
मैने आगे बात ना चलाई. पलंग पैर बैठ मैने उसे पास बुला लिया. वो मेरी बगल में आ बैठी. मैने किताब उस के हाथ में रख दी. मेरा हाथ उस की कमर में डाला. उस ने किताब खोली.किताब के पहले पन्ने पैर नर्म लोडा और टटार लंड के चित्र थे. देख कर पारो बोली : ऐसा ही होता है क्या बोले इस को ? शीश्न ? मैने देखा हैमेरा लंड तन कर ठुमके ले रहा था. मैने कहा : इस को लोडा कहते हें और इस को लंड. कहाँ देखा है तुम ने ?वो फिर शरमाई और बोली : किसी को ना कहने का वचन दे.में : वचन दिया.पारो : मैने भैया का देखा है कैसे वो बाद में बतौँगी.मेरा हाथ उस की पीठ सहला ने लगा. वो मेरे और निकट आई. हम दोनो उत्तेजित होते चले थे लेकिन उस वक़्त हमें भान नहीं था.दूसरे पन्ने पैर बंद और चौड़ी की हुई भोस के फ़ोटू थे .जान बुज़ कर मैने पूछा : ये भी ऐसी ही होती है क्या ? क्या कहते हें उसे ?सर झुका कर वो बोली : भोस. ऐसी ही होती है भाभी की भी ऐसी ही होगी.मैं : तेरी कैसी है ? देखने देगी मुज़े ?पारो : तुम जो तुमरा दिखाओ तो मैं मेरी दिखा उंगी.मैं खड़ा हो गया. नाडी चोद पाजामा उतरा और लंड आज़ाद किया.थोड़ी देर ताज़जुबई से वो देखती रही, फिर बोली : मैं छ्छू सकती हूँ ?मैं : क्यूं नहीं ?उंगलिओं के नोक से उस ने लंड छुआ. कोमल उंगलिओं का हलका स्पर्श पा कर लंड ओर कड़ा हो गया और ठुमका लेने लगा.पारो ; ये तो हिलता हैमैं : क्यूं नहीं ? तुझे सलाम कर रहा हैपारो : धत्त,मैं : मुट्ठि में ले तो ज़रा.उस ने मुट्ठि से लंड पकड़ा तो ठुमक ठुमक कर के वो ज़्यादा कड़ा हो गया.उस की मद होशी बढ़ ने लगी साँसें तेज़ चल ने लगी चहेरा लाल हो गया.वो बोली : हाय रे, इतना कड़ा क्यूं हुआ है ? दर्द नहीं होता ऐसे तन जाने से ?मैं : ऐसे कड़ा ना हो तो चूत में कैसे घुस सके और कैसे चोद सके ?पारो : ये तो लार भी निकालता हैवाकई मेरा लंड अपनी लार से गिला होता चला था.मैं : ये लार नहीं है अपनी प्यारी चूत के लिए वो आँसू बहा रहा हैमुट्ठि से लंड दबोच कर वो बोली : रोहित, बड़ा शैतान है तू.मैने उसे बाहों में भर लिया और कहा : ऐसे ऐसे मुठ मार.वो डरते डरते मुठ मारने लगी उस के गोरे गाल पैर मैने हलकी किस कर दी और कहा : मझा आता है ना ?जवाब में उस ने मेरे गाल पर किस की.मैं : अब सोच, जब ये चूत में घुस कर ऐसा करे तब कितना आनंद आता होगा.वो बोली नहीं, उस ने मुट्ठि से लंड मसल डाला.मैने लंड छुड़ा कर कहा ; अब तेरी बारी .शरमाती हुई वो खड़ी हो गयी फ़्रॉक नीचे हाथ डाल कर निकर निकल ने लगी मैने कहा : ऐसे नहीं, पलंग पर लेट जा.वो चित लेट गयी शरम से नज़र चुरा कर उस ने फ़्रॉक उपर उठाया.उस की गोरी गोरी चिक्नी जांघें खुली हुई. देख कर मेरा लंड फन फनाने लगा. उस ने सफ़ेद पेंटी पहनी थी. भोस के पानी से पेंटी गीली हो कर चिपक गयी थी. कुले उठा कर उस ने पेंटी उतारी. तुरंत उस ने हाथ से भोस ढक दी.मैने कहा : ऐसे छुपा ओगी तो मैं कैसे देख पा उंगा ?उसकी कलाई पकड़ कर मैने उस के हाथ हटा दिए उस की छोटी सी भोस मेरे सामने आई .काले घुंघराले झांट से ढकी उस की भोस छोटी थी. मोन्स उँची थी. बड़े होठ मोटे थे और एक दूजे से लगे हुए थे. तीन इंच लंबी दरार चिकाने पानी से गीली हुई थी. मैने हलके से छुआ. तुरंत उस ने मेरा हाथ हटा दिया मैने कहा : तूने मेरा लंड पकड़ा था, अब मुझे तेरी छुने दे.मैने फिर भोस पर हाथ रखा. उस ने मेरी कलाई पकड़ ली लेकिन विरोध किया नहीं. उंगलिओं से बड़े होत चौड़े कर मैने भोस का भीतरी हिस्सा देखा. किताब में दिखाई थी वैसी ही पारो की भोस थी. जवान कँवारी लड़की की भोस मैं पहली बार देख रहा था. छोटे होठ नाज़ुक और पतले और जाँवली रंग के थे. दरार के अगले कोने में एक इंच लंबी टटार क्लैटोरिस थी. क्लैटोरिस का छोटा मत्था चेरी जैसा दिखाई दे रहा था. दरार के पिछले हिस्से में था चूत का मुँह जो गिला गिला हुआ था. मैने उंगली के हलके स्पर्श से दरार को टटोला. जैसे मैने क्लैटोरिस को छुआ वो झटके से कूद पड़ी. मैने चूत का मुँह छुआ और एक उंगली अंदर डाली. उंगली योनी पटल तक जा सकी
क्रमशः........................ .....
मेरी फेमिली में में हूँ माताज़ी, पिताजी हें और मुझ से तीन साल बड़ी दीदी है जिस का नाम है शालिनी. मैं और दीदी एक दूजे से बहुत प्यार करते हें. भाई बहन से ज़्यादा हम दोस्त हें. हम एक दूजे की निजी बातें जानते हें और मुश्केली में राय लेते देते हें. सेक्स के बारे में हम काफ़ी खुले विचार के हें, हालाँकि हम ने आपस में चुदाई नहीं की है जब में छोटा था तब अक्सर वो मुज़े नहलाती थी. उस वक़्त मात्र कुतूहल से दीदी मेरी लोडी के साथ खेला करती थी. मुज़े गुदगुदी होती थी और लोडी कड़ी हो जाती थी. जैसे जैसे उमर बढ़ती चली तैसे तैसे हमारी छेड़ छाड़ बढ़ती चली. ये बिना बनी तब मैं सत्रह साल का था और वो बीस साल की. तब तक मेने उस की चुचियाँ देख ली थी, भोस देख ली थी और उस ने मेरा लंड हाथ में लेकर मूट मार लिया था. चुदाई क्या है कैसे की जाती है क्यूं की जाती है ये सब मुझे उस ने सिखाया था.कहानी शुरू होती है शालिनी की शादी से. पिताजी ने बड़ी धाम धूम से शादी मनाई. बारात दो दिन महेमान रही. खाना पीना, गाना बजाना सब दो दिन चला. जीजाजी शैलेश कुमार उस वक़्त बाइस साल के थे और बहुत ख़ूबसूरत थे. दीदी भी कुछ कम नहीं थी. लोग कहते थे की जोड़ी सुंदर बनी हैबारात में सोलह साल की एक लड़की थी, पारूल, जीजू की छोटी बहन दीदी की ननद. वे भाई बहन भी एक दूजे से बहुत प्यार करते थे. पारो पाँच फूट लंबी थी, गोरी थी और पतली थी. गोल चहेरे पैर काली काली बड़ी आँखें थी/ बाल काले और लंबे थे. कमर पतली थी और नितंब भारी थे. कबूतर की जोड़ी जैसे छोटे छोटे स्तन सीने पर लगे हुए थे. मेरी तरह वो बचपन से निकल कर जवानी में क़दम रख रही थी.क्या हुआ, कुछ पता नहीं लेकिन पहले दिन से ही पारो मुझ से नाराज़ थी. जब भी मुझ से मिलती तब डोरे निकालती और हून्ह--- कह कर मुँह मुचकोड़ कर चली जाती थी. एक बार मुझे अकेले में मिली और बोली : तू रोहित हो ना ? पता है ? मेरे भैया तेरी बहन की फाड़ के रख देंगे .ऐसी बालिश बात सुन कर मुझे ग़ुस्सा आ गया. भला कौन दूल्हा अपनी दुल्हन की ज़िली तोड़े बिना रहता है ? अपने आप पर कंट्रोल रख कर मैने कहा : तू भी एक लड़की हो, एक ना एक दिन तेरी भी कोई फाड़ देगा .मुँह लटकाए वो चली गयी .दीदी ससुराल से तीन दिन बाद आई. मैने मा को उसे कहते सुना : डरने की कोई बात नहीं है कभी कभी आदमी देर लगाता है सब ठीक हो जाएगा .अकेली पा कर मैने उसे पूछा : क्यूं री ? साजन से चुदवा के आई हो ना ? कैसा है जीजू का लंड ? बहुत दर्द हुआ था पहली बार ?दीदी : कुछ नहीं हुआ है रोहित. वो पारूल अपने भैया से छूटती नहीं, रोज़ हमारे साथ सोती है तेरे जीजू ने एक बार अलग कमरे में सोने को कहा तो रोने लगी और हंगामा मचा दिया.मैं समझ गया, दीदी चुदाये बिना आई थी. पाँच सात दिन बाद वो फिर ससुराल गयी और एक महीने के बाद आई. अब की बार उसे देख कर मेरा दिल डूब गया. उस के चहरे पर से नूर उड़ गया था, कम से कम पाँच किलो वज़न घट गया था, आँखें आस पास काले धब्बे पड़ गये थे. उस का हाल देख कर माताज़ी रो पड़ी. दीदी ने मुझे बताया की वो अब भी कँवारी थी, जीजू ने एक बार भी चोदा नहीं था. मैने पूछा : जीजू का लंड तो ठीक है ना, खड़ा होता है या नहीं ?दीदी : वो तो ठीक है नहाते वक़्त मैने देखा है रात को मौक़ा नहीं मिलता.मैं : हनीमून पर चले जाओ ना .दीदी : तेरे जीजू ने ये भी ट्राय कर देखा. वो साथ चलने पर तुली.मैं : सच कहूँ ? तेरी ये ननद को चाहिए है एक मोटा तगड़ा लंड. एक बार चुदवायेगी तो शांत हो जाए गी.दीदी : तेरे जीजू भी यही कहते हें. लेकिन वो अभी सोलह साल की है कौन चोदेगा उसे ?मैने शरारत से कहा : मैं चोद लूं ?दीदी हस कर बोली : तू क्या चोदेगा ? तेरी तो नुन्नी है चोद ने के लिए लंड चाहिए.मैने पाजामा खोल कर मेरा लौड़ा दिखाया और कहा : ये देख. नुन्नी लगती है तुझे ? कहे तो अभी खड़ा कर दूं. देखना है ?दीदी : ना बाबा ना. सलामत रहे तेरा लंडमैं : मान लो की मैने पारूल को चोद भी लिया, जीजू को पता चले की मैने उसे चोदा है तो तेरे पैर ख़फा नहीं होगे ?दीदी : ना, वो भी उन से थक गये हें. कहते थे की कोई अच्छा आदमी मिल जाय तो उसे हर्ज नहीं है पारूल की चुदाई में .मैं : तो, दीदी, मुझे आने दे तेरे घर. ट्राय करेंगे, कामयाब रहे तो सही वरना कुछ नहीं.दीवाली के दिन आ रहे थे. स्कूल में डेढ़ महीने की छुट्टियाँ पड़ी. दीदी ने जीजू से बात की होगी क्यूं की उन का ख़त आया पिताजी के नाम जिस में मुझे दीवाली मनाने अपने शहर में बुलाया था. मैं दीदी के ससुराल चला आया. मुझे मिल कर दीदी और जीजू बहुत ख़ुश हुए. हर वक़्त की तरह इस बार भी पारो हून्ह --- कर के चली गयीजीजू सिविल कोर्ट में नौकरी करते थे और अपने पुरखों के मकान में रहते थे. मकान पुराना था लेकिन तीन मज़ले वाला बड़ा था. आस पास दूसरे मकान जो थे वो भी पुराने थे लेकिन ख़ाली पड़े थे. शहर के बीच होने पर भी जीजू ने काफ़ी प्राईवसी पाई थी.
यहाँ आने के पहले दिन मुझे पता चला की जीजू के फ़ैमीली में वो और पारो दोनो ही थे. कई साल पहले जब उन के माता पिता का देहांत हुआ तब पारो छोटी बच्ची थी. उस दिन से जीजू ने पारो को अपनी बेटी की तरह पाला पोसा था. उस दिन से ही पारो अपने भैया के साथ सोती थी और इतनी लगी हुई थी की दीदी के आने पैर छूटना नहीं चाहती थी. दीदी की समस्या हल कर ने का कोई प्लान मैने बनाया नहीं था. मैं सोचता था की क्या किया जाय. इतने में जीजू हम सब को छोटी सी ट्रिप पर ले गये और मेरा काम बन गया.शहर से क़रीबन तीस माइल दूर ग़लटेश्वर नाम की एक जगह है मही सागर नदी किनारे एक सदीओ पुराना शिव मंदिर है आसपास नेचारल सेटिंग है कई लोग पीकनिक के वास्ते यहाँ आते हें. आने जाने में लेकिन सारा दिन लगता हैमैने एक अच्छा सा केमेरा ख़रीदा था जो मैं हमेशा साथ रखता था. इस पीकनिक पर वो ख़ूब काम आया. मैने जीजू और दीदी की कई फ़ोटू खीछी. मैं जान बुज़ कर पारो की उपेक्षा करता रहा, उस के जानते हुए उस की एक भी फ़ोटू नहीं ली. हालाँकि मैने उस की चार पिक्चर ली थी जिस का उस को पता नहीं चला था.अचानक मेरी नज़र मंदिर की बाहरी दीवारों पर जो शिल्प था उस पर पड़ी. मैं देखता ही रह गया. वो शिल्प था चुदाई करते हुए कपल्स का. अलग अलग पोज़ीशन में चुदाई करती हुई पुतलियाँ इतनी आबेहुब थी की ऐसा लगे की अभी बोल उठेगी. जीजू से छुपा छुपी मैं फटा फट उन शिल्प के फ़ोटू खींच ने लगा. इतने में दीदी आ गयी चुदाई करते प्रेमी के शिल्प देख वो उदास हो गयीपारो मुझ से क़तराती रही. सारा दिन इधर उधर घुमे फिरे और शाम को घर आएदूसरे दिन मैने मेरे दोस्त के स्टूडिओ में फ़िल्म्स दे दी, डेवेलप और प्रिंट निकालने के लिए तीसरे दिन दीदी और जीजू को कुछ काम के वास्ते बाहर जाना पड़ा, सुबह से गये रात को आने वाले थे. ट्यूशन क्लास की वजह से पारो साथ जा ना सकी. दोपहर के दो बजे वो क्लास से आई. फ़ोटो स्टूडिओ रास्ते में आता था इस लिए वो पिक्चर्स लेते आई. आते ही उस ने पेकेट मेरे तरफ़ फेंका और रसोईघर में चली गयी चाय बनाने. मैं उस के पीछे पीछे गया. अकडी हुई मेरी ओर पीठ कर के वो खड़ी थी.मैने कहा : मेरे लिए भी चाय बनाना.ग़ुस्से में वो बोली : ख़ुद बना लेना. नौकर नहीं हूँ तुमारी.मैने पास जा कर उस के कंधे पर हाथ रक्खा. तुरंत उस ने छिड़क दिया और बोली : दूर रहो मुझ से. छुओ मत. मुझे ऐसी हरकतें पसंद नहीं.मैने धीरे से कहा : अच्छा बाबा, माफ़ करना. लेकिन ये तो बताओ की तुम मुझ से इतनी नाराज़ क्यूं हो ? क्या किया है मैने ?पारो : अपने आप से पूछिए क्या नहीं किया है आप ने.में : अच्छा बाबा, क्या नहीं किया है मेने?अब तक वो मुज़ से मुँह फेरे खड़ी थी. पलट कर बोली : बड़े भोले बनते हो. सारी दुनिया के फ़ोटू निकाल ते हो, यहाँ तक की वो मंदिर के पत्थरों भी बाक़ी ना रहे. एक में हूँ जिस को तुम टालते रहे हो. मेरी एक भी फ़ोटू नहीं खींची तुमने. आप का क़ीमती केमेरा बिगड़ जाय इतनी बद सूरत हूँ ना में ?में : कौन कहता है की मेने तुमारी तस्वीर नहीं खींची ? भला, इतनी सुंदर लड़की पास हो और फ़ोटू ना निकाले ऐसा कौन मूर्ख होगा ?पारो : मुज़े उल्लू मत बनाईए. दिखाइए मेरी फ़ोटोमें : पहले चाय पीलाओ.
उस ने दोनो के लिए चाय बनाई. चाय पी कर हम मेरे कमरे में गये और फ़ोटो देखने बैठे. में पलंग पर बैठा था. वो मेरी बगल में आ बैठी, थोड़ी सी दूर. उस ने पतले कपड़े का फ़्रॉक पहना था जिस के आरपार अंदर की ब्रा साफ़ दिखाई दे रही थी. उस के बदन से मस्त ख़ुश्बू आ रही थी. सूंघ कर मेरा लौड़ा जाग ने लगा.पहले हम ने दीदी और जीजू की फ़ोटू देखी. बाद में पारो की चार फ़ोटू निकली. अपनी पिक्चर देखने के लिए वो नज़दीक सरकी. मेरे कंधे पर हाथ रख वो ऐसे बैठी की हमारी जांघें एक दूजे से सट गयी मैं मेरी पीठ पर उस के स्तन का दबाव महसूस करने लगा. बेचारा मेरा लंड, क्या करे वो ? खड़ा हो कर सलामी दे रहा था और लार टपका रहा था. बड़ी मुश्किल से मैने उसे छुपाए रक्खा.पारो की चार फ़ोटो में से तीन सीधी सादी थी जिस में वो हसती हुई पकड़ी गयी थी. बड़ी प्यारी लगती थी. चौथी फ़ोटू में वो नीचे झुकी हुई थी और पवन से दुपट्टा सीने से हट गया था. उस की चुचियाँ साफ़ दिखाई दे रही थी. पिक्चर देख वो शरमा गयी और बोली : तुम बड़े शैतान हो.मैं : पसंद आया मेरा काम ?मेरी जाँघ पर हाथ रख कर उस ने कहा : जी, पसंद आया.मैं : तो ओर फ़ोटू खींच ने दो गी ?पारो : हाँ हाँ लेकिन ये बाक़ी की फ़ोटू किस की है ?मैं : रहने दे. ये फ़ोटू तेरे देखने लायक नहीं हैपारो : क्या मतलब ? नंगी फ़ोटू है क्या ? देखूं तो मैंइतना कह कर अचानक वो फ़ोटू लेने के लिए झपटी. मैने हाथ हटा दिया. इस छीना झपटी में वो गिर पड़ी मेरी बाहों में. वो संभल जाए इस से पहले मैने उसे सीने से लगा लिया. झटपट वो संभल गयी शर्म से उस का चहेरा लाल लाल हो गया और उस ने सर झुका दिया. मेरे पहलू से लेकिन वो हटी नहीं. मैने मेरा हाथ उस की कमर में डाल दिया. उंगलियाँ मलते मलते दबे आवाज़ से वो बोली : क्यूं सताते हो ? दिखाओ ना.मेरे पास कोई चारा नहीं था. चुदाई करते हुए शिल्प की पिक्चर्स मैं दिखाने लगा. मुस्कराती हुई, दाँतों में उंगली चबा ती हुई वो देखती रही.अंत में बोली : बस ? यही था ? ये तो कुछ नहीं है भैया के पास एक किताब है जिस में सच्चे आदमी और औरतों के फ़ोटू हैमैं : तुझे कैसे मालूम ?पारो : मैने किताब देखी है देखनी ही तुझे ?मैं : हाँ --- हाँ ----ज़रूर.खड़ी हो कर वो बोली : चलो मेरे साथ.अब दिक्कत क्या थी की मेरा लंड पूरा तन गया था. निकार के बावजूद उस ने मेरे पाजामा का तंबू बना रक्खा था. इस हालत में मैं कैसे चल सकूँ ?मैने कहा : मैं बैठा हूँ तू किताब ले आवो किताब ले आई और बोली : एक दिन जब मैं भैया के कमरे की सफ़ाई कर ररही टी तब मैने पलंग नीचे ये पाई. मेरे ख़याल से भाभी ने भी देखी हैमें : दीदी देखे या ना देखे, क्या फ़र्क पड़ेगा ? तू जो उन के बीच आ रही हो.पारो : में उन के बीच नहीं आ रही हूँ देख रोहित, भैया मेरे सर्वस्व है कोई मुज़ से उन्हें छीन ले ये में बरदास्त नहीं करूंगी, चाहे वो भाभी हो या ओर कोई.मैं : अरी पगली, दीदी कहाँ जाएगी तेरे भैया को छीन ले कर ? भैया के साथ वो भी तेरी हो जाएगी. कब तक तू कबाब में हड्डी बनी रहेगी ?पारो : मैं जानती हूँमैं : क्या जानती होपारो : ---- की मेरी वजह से भैया वो नहीं कर पाए हें.मैं : वो माइने क्या ? मैं समझा नहीं.पारो : ख़ूब समझते हो और भोले बन रहे हो.मैं : मैं तो बुद्धू हूँ मुझे क्या पता ?वो शरमा राही थी फिर भी बोली : मज़ाक छोड़ो. देखो, भैया से मैने सिर्फ़ एक चीज़ माँगी हैमें : वो क्या ?उस ने नज़रें फेर ली और बोली : मैने कहा, एक बार, सिर्फ़ एक बार मुझे देखने दे ---- .में : क्या देखने दे ?पाओ : शैतान, जानते हुए भी पूछते हो.मैं : नहीं जानता मैं साफ़ साफ़ बताओ ना.पारो : वो, वो जो हर दूल्हा दुल्हन करते हें सुहाग रात कोमैं : मुझे ये भी नहीं पता. क्या करते हें ?पारो : हाय राम, चु --- चु --- मुझ से नहीं बोला जातामैं : ओह, ओ, चुदाई की कह रही हो ?अपना चहेरा छुपा कर सिर हिला कर उस ने हा कही.मैं : तुझे दीदी और जीजू की चुदाई देखनी है एक बार, इतना ही ?उस ने मुँह फेर लिया और हाँ बोली.मैं : जीजू ने क्या कहा ?पारो : भाभी ना बोलती हैमैं : मैं उन को समझा उंगा. लेकिन एक ही बार, ज़्यादा नहीं. और एक बात पूछु ? उन को चोद ते देख कर तुम एक्साइट हो जाओ गी तो क्या करोगी ?पारो : नहीं बता उगी तुझे.
मैने आगे बात ना चलाई. पलंग पैर बैठ मैने उसे पास बुला लिया. वो मेरी बगल में आ बैठी. मैने किताब उस के हाथ में रख दी. मेरा हाथ उस की कमर में डाला. उस ने किताब खोली.किताब के पहले पन्ने पैर नर्म लोडा और टटार लंड के चित्र थे. देख कर पारो बोली : ऐसा ही होता है क्या बोले इस को ? शीश्न ? मैने देखा हैमेरा लंड तन कर ठुमके ले रहा था. मैने कहा : इस को लोडा कहते हें और इस को लंड. कहाँ देखा है तुम ने ?वो फिर शरमाई और बोली : किसी को ना कहने का वचन दे.में : वचन दिया.पारो : मैने भैया का देखा है कैसे वो बाद में बतौँगी.मेरा हाथ उस की पीठ सहला ने लगा. वो मेरे और निकट आई. हम दोनो उत्तेजित होते चले थे लेकिन उस वक़्त हमें भान नहीं था.दूसरे पन्ने पैर बंद और चौड़ी की हुई भोस के फ़ोटू थे .जान बुज़ कर मैने पूछा : ये भी ऐसी ही होती है क्या ? क्या कहते हें उसे ?सर झुका कर वो बोली : भोस. ऐसी ही होती है भाभी की भी ऐसी ही होगी.मैं : तेरी कैसी है ? देखने देगी मुज़े ?पारो : तुम जो तुमरा दिखाओ तो मैं मेरी दिखा उंगी.मैं खड़ा हो गया. नाडी चोद पाजामा उतरा और लंड आज़ाद किया.थोड़ी देर ताज़जुबई से वो देखती रही, फिर बोली : मैं छ्छू सकती हूँ ?मैं : क्यूं नहीं ?उंगलिओं के नोक से उस ने लंड छुआ. कोमल उंगलिओं का हलका स्पर्श पा कर लंड ओर कड़ा हो गया और ठुमका लेने लगा.पारो ; ये तो हिलता हैमैं : क्यूं नहीं ? तुझे सलाम कर रहा हैपारो : धत्त,मैं : मुट्ठि में ले तो ज़रा.उस ने मुट्ठि से लंड पकड़ा तो ठुमक ठुमक कर के वो ज़्यादा कड़ा हो गया.उस की मद होशी बढ़ ने लगी साँसें तेज़ चल ने लगी चहेरा लाल हो गया.वो बोली : हाय रे, इतना कड़ा क्यूं हुआ है ? दर्द नहीं होता ऐसे तन जाने से ?मैं : ऐसे कड़ा ना हो तो चूत में कैसे घुस सके और कैसे चोद सके ?पारो : ये तो लार भी निकालता हैवाकई मेरा लंड अपनी लार से गिला होता चला था.मैं : ये लार नहीं है अपनी प्यारी चूत के लिए वो आँसू बहा रहा हैमुट्ठि से लंड दबोच कर वो बोली : रोहित, बड़ा शैतान है तू.मैने उसे बाहों में भर लिया और कहा : ऐसे ऐसे मुठ मार.वो डरते डरते मुठ मारने लगी उस के गोरे गाल पैर मैने हलकी किस कर दी और कहा : मझा आता है ना ?जवाब में उस ने मेरे गाल पर किस की.मैं : अब सोच, जब ये चूत में घुस कर ऐसा करे तब कितना आनंद आता होगा.वो बोली नहीं, उस ने मुट्ठि से लंड मसल डाला.मैने लंड छुड़ा कर कहा ; अब तेरी बारी .शरमाती हुई वो खड़ी हो गयी फ़्रॉक नीचे हाथ डाल कर निकर निकल ने लगी मैने कहा : ऐसे नहीं, पलंग पर लेट जा.वो चित लेट गयी शरम से नज़र चुरा कर उस ने फ़्रॉक उपर उठाया.उस की गोरी गोरी चिक्नी जांघें खुली हुई. देख कर मेरा लंड फन फनाने लगा. उस ने सफ़ेद पेंटी पहनी थी. भोस के पानी से पेंटी गीली हो कर चिपक गयी थी. कुले उठा कर उस ने पेंटी उतारी. तुरंत उस ने हाथ से भोस ढक दी.मैने कहा : ऐसे छुपा ओगी तो मैं कैसे देख पा उंगा ?उसकी कलाई पकड़ कर मैने उस के हाथ हटा दिए उस की छोटी सी भोस मेरे सामने आई .काले घुंघराले झांट से ढकी उस की भोस छोटी थी. मोन्स उँची थी. बड़े होठ मोटे थे और एक दूजे से लगे हुए थे. तीन इंच लंबी दरार चिकाने पानी से गीली हुई थी. मैने हलके से छुआ. तुरंत उस ने मेरा हाथ हटा दिया मैने कहा : तूने मेरा लंड पकड़ा था, अब मुझे तेरी छुने दे.मैने फिर भोस पर हाथ रखा. उस ने मेरी कलाई पकड़ ली लेकिन विरोध किया नहीं. उंगलिओं से बड़े होत चौड़े कर मैने भोस का भीतरी हिस्सा देखा. किताब में दिखाई थी वैसी ही पारो की भोस थी. जवान कँवारी लड़की की भोस मैं पहली बार देख रहा था. छोटे होठ नाज़ुक और पतले और जाँवली रंग के थे. दरार के अगले कोने में एक इंच लंबी टटार क्लैटोरिस थी. क्लैटोरिस का छोटा मत्था चेरी जैसा दिखाई दे रहा था. दरार के पिछले हिस्से में था चूत का मुँह जो गिला गिला हुआ था. मैने उंगली के हलके स्पर्श से दरार को टटोला. जैसे मैने क्लैटोरिस को छुआ वो झटके से कूद पड़ी. मैने चूत का मुँह छुआ और एक उंगली अंदर डाली. उंगली योनी पटल तक जा सकी
क्रमशः........................
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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