FUN-MAZA-MASTI
बदनाम रिश्ते--राजन के कारनामे--4
इस दौरान मेरा लंड निकर में तनकर दर्द करने लगा था , मैंने फ़ौरन अपना निकर निकालकर उसे मुक्त कर दिया | अब मेरा लंड अपने पुरे जोश में आकर हवा में लहराने लगा लेकिन उसकी सहेली बेदम हो सुस्त पडी थी | मैंने लहराते लंड को अपनी मुट्ठी में पकड़ कर दिखाते हुए उनसे पूछा - दीदी इसका क्या होगा , वो हडबडाकर जल्दी से बोली ...नहीं भाई .. अभी नहीं ! खाना खाने के बाद दोपहर को कर लेना , मै कहीं भागी थोड़े जा रही हूँ , अभी थोडा आराम करने दो , मुझे खाना भी बनाना है , ये कहते हुए वो पेट के बल लेट गयी , उसे लगा की बुर के ढक जाने से शायद मेरा जोश ठंडा पड़ जाएगा | परन्तु मै कहाँ माननेवाला था , खड़े लंड के कारण मै बेकरार था जो उनके मांसल गांड को देखकर और कड़क हो गया था | मैंने दीदी के गांड पर हाथ फेरना शुरू कर दिया | पहले तो वो थोड़ा इनकार करती रही - सोने दे भाई ! क्यों तंग कर रहा है ? पर मेरी उंगलियाँ गांड के दरारों में घुसकर छेद से टकराया तो वो शांत होकर मजे लेने लगी | गांड का छेद वेसलीन से गीला तो था ही इसलिए मैंने हाथ के एक अंगूठे को गांड में घुसाकर अन्दर बाहर करने लगा | अब दीदी के चुतरों ने थिडकना चालू कर दिया और स्वमेव ही बेड से उठने लगा | मैंने दुसरे हाथ के अंगूठे को भी धीरे धीरे उनके गांड में घुसा दिया | दीदी थोडा ऐंठी और हलके से कराही ... पर मैंने उंगली चोदन जारी रखा , मै एक अंगूठे को बाहर निकालता तो उसी समय दुसरे को अन्दर पेलता....दुसरे को निकालता तो पहले को पेलता ..पुरे रिदम के साथ मै उनके नाजुक सी छोटी छेद को चौड़ा करने में लगा था ताकी लंड डालते समय दिक्कत ना हो | दीदी गरम होकर बडबड़ा रही थी - मै ..तो ..बच्चा ...ही ..समझती ..थी ....सा ..ला ..... पूरा ....ह ..ह ..रा ..मी ...नि ..क ..ला ..में ..री ..गां..ड....भी ..न .ही ....छो..डा ....उनकी सेक्सी आवाज सुनकर मेरा तना लंड फुफकारने लगा | वेसलीन को लंड पे चुपड़कर अपने फनफनाते लौड़े को गांड के छेद पे टिकाया , दीदी को मेरे अगले हमले का एहसास हो चुका था, परन्तु इससे पहले वो संभलती मैंने एक जोरदार झटका मारकर लंड को तकरीबन एक तिहाई गांड में पेल दिया ..वो जोर से चींखी ..मैंने फ़ौरन पीठ पे झुककर अपने हाथों से उनका मुंह बंद कर दिया ..वो गुं..गुं ..करते हुए मचलने लगी और गांड चुदाई के दर्द से बचने के लिए अपने पैरों को सीधा करने लगी जिससे गांड के छेद का छल्ला लंड पर कस गया , वो तुरंत दर्द से दोहरी होकर पुनः अपने गांड को उठाकर चुतरों को फैला लिया | दर्द से तो मेरा भी बुरा हाल था , उस लंड को दीदी के इस पोज से थोड़ा राहत मिला | फिर मैंने उनके मुह से हाथ हटाकर उनके उभरे चुतरों को पकड़कर धीरे धीरे लंड को अन्दर बाहर करने लगा और आहिस्ते आहिस्ते लंड को क्रमशः अन्दर सरकाने लगा | मेरे लंड पर खून की बुँदे भी चमक रही थी ...पहले तो मै डरा, पर फिर सोचा शायद चूत की तरह गांड का भी शील होता होगा | मै धीरे धीरे अपने चोदने की रफ़्तार बढ़ा रहा था और अब दीदी भी गरम चुदासी होकर बडबड़ा रही थी ... अ.आ.ज पहली बार मेरी गांड में कोई लंड गया है ...फा..फाड़ डाल.... मे.री गांड को भा..ई .....और जोर से ....और जोर से ....अब रोकना मेरे लिए बहुत मुश्किल था ,मै झड़ने लगा ...मेरे लंड से निकलता गरम गरम लावा दीदी की गांड को भरता चला गया......उनकी आँखे भी मस्ती में मुंदती चली गयी .....मै निढाल होकर उनके बगल में लेट गया ....दीदी की आँखे अभी तक बंद थी ..शायद अभी भोगी आनंद का लुफ्त उठा रही थी |
थोड़ी देर बाद दीदी बोली - राजन पैंट पहनो और अपने कमरे में जाकर सो जाओ
मै उनकी चुचियों से खेलता हुआ बोला - उं.....रहने दो ..मै यहीं ऐसे ही तुम्हारी बाँहों में सोऊँगा...अभी तो तुम्हारी चूत मारनी बाकी है | वो हडबडाते हुए बोली - नहीं अभी नहीं ,तेरा मन नहीं भरा क्या ? अभी तो मेरी गांड मार के हटा है .....ये कहते हुए वो अपनी चूचियों से भी मेरा हाथ हटाने लगी |
मै बोला- अभी नहीं तो रात में तो दोगी ?
वो बोली - रात का रिस्क मै नहीं ले सकती , अगर बुआजी उठ गयी तो ..?
मै बोला - माँ नहीं उठ सकती ...उन्हें हाई बी .पी . है और वो नींद की गोली खाकर सोती है ....वो तो झकझोड़ कर उठाने पर भी नहीं उठती |
(मुझे छह महीने पहले की घटना याद आ गयी ..रात के करीब तीन बजे हलके भूकंप के झटके महसूस होते ही मै जागकर अपने कमरे से बाहर आँगन में आ गया , बाहर मोहल्ले में भूकंप - भूकंप का शोर मच रहा था , तब मुझे माँ की याद आयी तो दरवाजे से चिल्लाकर माँ को जगाने लगा , तब भी माँ नहीं उठी थी ..तब मै अपने कमरे में जाकर अपनी और माँ के कमरे के बीच इंटरकनेक्टिंग दरवाजे को खोला ..(वो दरवाजा मेरी तरफ से ही बंद रहता है ..शायद माँ , ऐसी ही किसी इमरजेंसी को सोंचकर अपने तरफ से खुला रखती है ) और फिर माँ को झकझोड्कर जगाने लगा परन्तु उनकी नींद नहीं खुली , तब मैंने बड़ी मुश्किल से उन्हें बांहों में भरकर बिस्तर से उतारकर नीचे खडा किया ..(वो काफी भारी है ..उनके कुल्हे चौड़े हैं और बदन काफी मांसल है ...उठाने के क्रम में उनकी गुदाज गोलाइयों ने मेरे सीने से मादक रगड़ खाई थी तब मुझे जीवन में पहली बार उत्तेजना का संचार हुआ था ..लेकिन उस समय मुझे केवल उन्हें सही -सलामत बाहर निकालने का ही ख्याल आ रहा था . .) जब मैंने उन्हें अपने कंधे का सहारा देकर थोड़ी दूर चलाया तब जाकर उनकी नींद खुली थी ....बाहर शोर और बढ़ गया था ..बाहर निकलकर देखा तो तकरीबन सारे स्त्री -पुरुष अस्त -व्यस्त कपड़ो में ही बाहर निकले हुए थे ..)
फिर दीदी बोली - अच्छा !! चलो रात की बात बाद में सोंचेंगे ...अभी तुम अपने कमरे में जाओ |
मै बोला - यहीं सोने दो न , यहाँ क्या दिक्कत है ?
वो बोली - अरे नहीं ! अगर कोई आया तो बिस्तर , तुम्हारी और अपनी हालत सुधारने में समय लगेगा कि नहीं ...और अगर देर लगेगी तो किसी को भी शक हो सकता है |
मै उनकी बात से सहमत होते हुए उठकर निकर पहनने लगा और जाकर अपने कमरे में सो गया ..
मै काफी देर तक सोता रहा और दीदी की आवाज सुनकर जगा, दीदी आवाज लगा रही थी - राजन ! उठो ..खाना खा लो ! मै उठकर नहाने के लिए बाथरूम जाने लगा , रास्ते में देखा कि दीदी किचेन में काम कर रही थी ,मन तो हुआ की अभी ही जाकर उनको पीछे से दबोच लूँ ,पर मुझे बड़ी जोर की शुशु लगी हुई थी इसलिए मै सीधा बाथरूम जाकर फ्रेश होने लगा और मै जब नहाकर अपने कमर में टावेल लपेटे हुए वापस आया और किचेन में खिड़की से देखा तो पाया दीदी वैसे ही काम में लगी है , उनके साडी के ऊपर से ही मटकते चुतरों को देखकर मेरा लंड फिर से तनने लगा , मै वहीँ से अपना टॉवेल निकालकर कंधे पर रखा और लंड हाथ में लेकर मसलते हुए किचेन के दरवाजे पर खडा होकर उनको देखने लगा , उनको अभी तक शायद मेरे आने का एहसास नहीं हुआ था ,वो सलाद काटने में मस्त थी , मै धीरे धीरे उनके पीछे जाकर और नीचे झुक कर उनकी साडी और पेटीकोट का शिरा पकड़ा और झटके से उसे कमर तक उठा कर अपना तना लंड उनकी गांड कि दरारों में पेल दिया , वो चौंकी और तुरंत छिटककर दूर हो गयी और मुझे डांटते हुए धीमे आवाज में बोली- ये ... क्या कर रहा है तू ? बूआजी अभी घर में है !! अब चौंकने की बारी मेरी थी , मैंने तुरंत किचेन में लगी दीवाल घड़ी में देखा तीन बज रहे थे , समय देखते ही मेरा लंड मुरझा कर लटक गया , वास्तव में माँ आ चुकी होगी | मै तुरंत कंधे से टॉवेल निकालकर कमर में लपेट लिया , लेकिन किचेन से बाहर निकलने कि हिम्मत नहीं हो रही थी | अगर माँ ने देख लिया होगा तो कया होगा ?? साला , मै क्यों दरवाजे के बाहर से ही लंड मसलते हुए घुसा , ये बात दीदी को पता नहीं थी इसलिए वो मुझे झिड़ककर शांत हो गयी , परन्तु ..यही सोंचकर मेरा दिल धड़क रहा था ...शायद माँ मुझे घर से ही बाहर निकाल दे .... लेकिन अगर वो अपने कमरे में होगी तो नहीं देख पाई होगी क्योंकि वहाँ से किचेन के दरवाजा को देखने के लिए कमरे से बाहर आना पड़ता है ,परन्तु अगर वो ड्राईंग रूम में टी वी देख रही होगी तो मुझे जरूर देख लिया होगा ...मै मन ही मन मनाने लगा कि वो अपने कमरे में हो , .इसलिए मैंने दीदी से पूछा - दीदी , माँ किधर है ? वो बोली - अभी थोड़ी देर पहले तो टी वी देख रही थी ...तू जल्दी से कपडे पहनकर तैयार हो जा .. मै खाना लगा रही हूँ , अब मेरा दिल बैठने लगा ....माँ ने सचमुच देख लिया होगा .....अब पता नहीं मेरे साथ क्या होने वाला था |
मै डरते डरते किचेन से बाहर निकला और तेजी से अपने कमरे में जाने लगा , जाते -जाते मै उचटती निगाह ड्राईंग रूम में मारा परन्तु मुझे माँ नहीं दिखाई पडी | थोड़ा तस्सल्ली हुआ | अपने कमरे में आकर मैंने कपडे पहने ,तभी दीदी खाना लेकर डाइनिंग टेबल पर रखने लगी , मै एक कुर्सी पर बैठ गया , थोड़ी देर में माँ भी आकर मेरे बगल में बैठ गयी | वो खामोश थी , जबकि पहले खाने पर बैठते समय मुझसे या दीदी से बात करती रहती थी...मेरा दिल फिर बैठने लगा | मैंने चोर नज़रों से उनके चेहरे कि तरफ देखा लेकिन मुझे पता नहीं चल पाया कि वास्तव में उन्होंने देखा कि नहीं , वो चुपचाप अपना खाना निकाल कर थाली में रख रही थी | दीदी सामने कुर्सी पर बैठ गयी और खाना खाने लगी | मै अनमने मन से खा रहा था , तभी मुझे अपने पैरों के ऊपर एक पैर का एहसास हुआ ..मैंने देखा दीदी मंद- मंद मुस्कुरा रही थी | मै समझ गया कि वो शरारत कर रही है ...फिर वो अपना पैर उठाकर मेरे जांघो पर रखने लगी ...माँ की उपस्थिती में मुझे गुस्सा आ रहा था ..मै तुरंत कुर्सी को आगे खिसकाकर टेबल से सट गया ताकि माँ को दीदी का पैर दिखाई न पड़े , परन्तु मेरे आगे खिसकते ही दीदी अपना पैर उठाकर मेरे पैजामे के ऊपर से लंड पर रख दिया और अपने पंजो से लंड को दबाने लगी ..मै कसमसा उठा .. मेरे लंड ने तुरंत प्रतिक्रिया दी और तुनक कर खडा हो गया | बगल में माँ की उपस्थिति डर भी पैदा कर रही थी ...डर और उत्तेजना की एक अप्रतिम अजीब अनुभूति मुझे हो रही थी ...तभी ना जाने मुझे क्या हुआ कि मै फलफला कर पैजामे में ही झड़ने लगा ...दीदी ये महसूस कर रही थी क्योकि मेरा गीला होता पैजामा उनके पंजो को भी गीला कर रहा था ...मुझे शर्मिंदगी महसूस हो रहा था | ये अजीब इत्तफाक था , क्योकि संतुष्टि के भाव झड़ने वाले के चेहरे पर होता है ...लेकिन जहां दीदी के चेहरे पर परम संतुष्टि के भाव थे वहीं मेरे चेहरे पर शर्मिंदगी के ..आखिर मै उठता कैसे ?....मै माँ के खाना ख़त्म करके उठने का इन्तजार कर रहा था ...10 मिनट का इन्तजार भी मुझे बहुत लंबा लग रहा था और जैसे ही माँ उठकर हाथ धोने गयी , मै तुरंत उठकर दीदी कि तरफ जाकर उनको एक प्यारी चपत लगाते हुए बेदर्दी से उनकी चुचियों को भींच दिया ..वो चाहकर भी चिल्ला ना सकी बस कसमसाकर रह गयी ...मैं तुरंत अपने कमरे में दौड़ पडा और तैयार होकर घुमने निकल पडा ...............
फिर रात को माँ कि उपस्थिति से डरते डरते भी दीदी के कमरे में जाकर दीदी को जमकर चोदा | ये सिलसिला लगभग एक महीना चला | दीदी के मासिक वाले दिनों में उनके गांड का कचूमर बना दिया | हांलाकि माँ कि कॉलेज कि छुट्टी हो गयी थी ,इसलिए हमें दिन में मौक़ा नहीं मिल पाटा था लेकिन रात को जबतक मै दो तीन बार चोद नहीं लेता तबतक न मुझे चैन मिलता और ना दीदी को | इसलिए जब दीदी वापस अपने ससुराल चली गयी तब मेरा बुरा हाल हो गया , अब चोदने के लिए तो छोड़ो ...देखने के लिए भी 'बुर' उपलब्ध नहीं था ....
तभी एक -एक करके तीन शुभ समाचारों से माँ की खुशियों का ठिकाना न रहा | मैं और आभा दीदी क्रमशः दसवीं और बारहवीं में प्रथम श्रेणी से पास हुए थे और भाभी को बेटा हुआ था और माँ, दादी बन गयी थी | माँ ने तुरंत भोपाल 'गर्जन ' (मेरा बड़ा भाई ) के पास जाने का फैसला किया | परन्तु छुट्टियाँ होने के कारण टिकट हमें १० दिन बाद का मिला | जब मैं और माँ भोपाल पहुंचे तो गर्जन भाई , भाभी और आभा दीदी बहुत खुश हुए | मै खासकर 'आभा' को देखकर अचंभित था |
अभी आभा को भोपाल आये हुए ७ महीने ही हुए थे , तब वो काफी दुबली पतली सी थी परन्तु अब उसका बदन भरा - भरा सा लग रहा था | शायद यह मेरे वासना भरी नज़रों के कारण था क्योंकि मै इससे पहले ‘आभा ’ को इस नजरों से कभी देखा नहीं था | चूँकि मैंने इधर औरत का सानिध्य पा लिया था और औरत के शरीर में छिपे आकर्षण और सुख को भोग लिया था इसलिए दीदी के अग्र भाग में सीने की बडी हुई गोलाईयां और पृष्ठ भाग में उभरे हुए नितम्ब आकर्षित कर रहे थे , बच्चे को दूध पिलाने के दौरान भाभी के चुचकों से मेरी नजर हटती नहीं थी | कुल मिलाकर कुत्सित विचारों ने मेरे मन को घेर रखा था इसलिए मेरी तांक -झांक की प्रवृति और मुठ मारने की आवृति काफी बढ़ गयी थी |
कुछ दिन वहां बिताने के बाद हमलोग आभा दीदी के साथ वापस घर आ गए | घर पर दीदी के कमरे में झांकते हुए एक बार मैंने देखा कि वो अपनी सलवार में हाथ डालकर अपने गुप्तांग से खेल रही थी , मुझे आशा जगी कि शायद अब दीदी के साथ मेरा काम बन जायगा , परन्तु इधर मैंने ११वि में साइंस में एडमिशन लिया उधर आभा दीदी ने बी. फार्मा में एडमिशन लेकर लखनऊ चली गयी | अब एक बार फिर अपने हाथ के सिवा मेरा कोई सहारा नहीं था .....
इधर कालेज में मुझे ढेर सारे नए दोस्त बने , उनमे से एक लड़का 'वरुण' मेरी तरह लोकल था , शहर में उसके पापा का गैराज था | वरुण की बड़ी बहन की शादी हो चुकी थी और उसका बड़ा भाई गाजिआबाद में पोलिटेक्निक कालेज में पढ़ रहा था | उससे काफी अच्छी दोस्ती हो गयी , इसलिए जब कभी लौज में बी . ऍफ़ का प्रोग्राम बनता तो मै उसे लेकर समीर के लौज में जाने लगा | वहां उसका समीर के अलावा भी कई सारे दोस्त बन गए | वहीँ लौज में राहुल के साथ बहुत अच्छी बनती थी , जैसे मेरी समीर के साथ |समय कट रहा था ......पाठ्यक्रम के साथ अश्लील साहित्य का पठन -पाठन जारी था |लौज में एक बड़ी दिक्कत वहां लडको को थी , वहां दीमक बहुत ज्यादा था और हफ्ते में एक बार दवा जरुर छिडकना पड़ता था, इसलिए जब कभी लम्बी छुट्टी होती तो लड़के किसी लोकल पहचान वाले को अपने कमरे की चाभी दे जाते | इसलिए जब दशहरे की छुट्टी हुई तो समीर के अलावा तीन और लडको ने मुझे चाभी दे दिया , कुछ लडको ने वरुण को , तो कुछ ने सामने चाय वाले को | उन्हें एक महीने बाद दिवाली के बाद आना था |
एक दिन शाम को जब मै लौज के सामने सड़क पार चाय पी रहा था तो मैंने वरुण को रिक्शे से लौज के सामने उतरते देखा , मैंने उसे आवाज भी दिया परन्तु सड़क पर चलने वाले वाहनों के शोर में वह शायद सुन नहीं पाया और लौज के अन्दर चला गया | मैंने मन ही मन उसे गाली दिया - साला पागल है , दवा ही छिडकना था तो दिन में आता , इस समय शाम के धुंधलके में कहीं दवा छिडकी जाती है | परन्तु वह थोड़ी देर में ही बाहर निकला और फिर रिक्शावाले को लेकर अन्दर चला गया | मेरा माथा ठनका ....ये क्या चक्कर है , वो रिक्शेवाले को क्यों अन्दर ले गया | मैंने जिज्ञासा शांत करने के लिए लौज में घुसने लगा परन्तु मुख्य द्वार ही अन्दर ही अन्दर से बंद था ...अब शक की कोई गुंजाइश नहीं थी कि कुछ गड़बड़ है ..
लेकिन मुझे अन्दर जाने का रास्ता पता था क्योंकि लड़के जब नाईट शो फिल्म देखकर आते तो मुख्य द्वार बंद होता था तो वो बाहर वाली सीढ़ी से छत पर चढ़ जाते और आँगनवाले पेड़ की टहनी पकड़कर आँगन में आ जाते ..... मै भी आ गया ....वहां कोई भी नहीं था ..बस राहुल के कमरे की बत्ती जल रही थी | मै आहिस्ते से जब खिड़की के पास पहुचा तो अन्दर का नजारा देखकर दंग रह गया ...
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थोड़ी देर बाद दीदी बोली - राजन पैंट पहनो और अपने कमरे में जाकर सो जाओ
मै उनकी चुचियों से खेलता हुआ बोला - उं.....रहने दो ..मै यहीं ऐसे ही तुम्हारी बाँहों में सोऊँगा...अभी तो तुम्हारी चूत मारनी बाकी है | वो हडबडाते हुए बोली - नहीं अभी नहीं ,तेरा मन नहीं भरा क्या ? अभी तो मेरी गांड मार के हटा है .....ये कहते हुए वो अपनी चूचियों से भी मेरा हाथ हटाने लगी |
मै बोला- अभी नहीं तो रात में तो दोगी ?
वो बोली - रात का रिस्क मै नहीं ले सकती , अगर बुआजी उठ गयी तो ..?
मै बोला - माँ नहीं उठ सकती ...उन्हें हाई बी .पी . है और वो नींद की गोली खाकर सोती है ....वो तो झकझोड़ कर उठाने पर भी नहीं उठती |
(मुझे छह महीने पहले की घटना याद आ गयी ..रात के करीब तीन बजे हलके भूकंप के झटके महसूस होते ही मै जागकर अपने कमरे से बाहर आँगन में आ गया , बाहर मोहल्ले में भूकंप - भूकंप का शोर मच रहा था , तब मुझे माँ की याद आयी तो दरवाजे से चिल्लाकर माँ को जगाने लगा , तब भी माँ नहीं उठी थी ..तब मै अपने कमरे में जाकर अपनी और माँ के कमरे के बीच इंटरकनेक्टिंग दरवाजे को खोला ..(वो दरवाजा मेरी तरफ से ही बंद रहता है ..शायद माँ , ऐसी ही किसी इमरजेंसी को सोंचकर अपने तरफ से खुला रखती है ) और फिर माँ को झकझोड्कर जगाने लगा परन्तु उनकी नींद नहीं खुली , तब मैंने बड़ी मुश्किल से उन्हें बांहों में भरकर बिस्तर से उतारकर नीचे खडा किया ..(वो काफी भारी है ..उनके कुल्हे चौड़े हैं और बदन काफी मांसल है ...उठाने के क्रम में उनकी गुदाज गोलाइयों ने मेरे सीने से मादक रगड़ खाई थी तब मुझे जीवन में पहली बार उत्तेजना का संचार हुआ था ..लेकिन उस समय मुझे केवल उन्हें सही -सलामत बाहर निकालने का ही ख्याल आ रहा था . .) जब मैंने उन्हें अपने कंधे का सहारा देकर थोड़ी दूर चलाया तब जाकर उनकी नींद खुली थी ....बाहर शोर और बढ़ गया था ..बाहर निकलकर देखा तो तकरीबन सारे स्त्री -पुरुष अस्त -व्यस्त कपड़ो में ही बाहर निकले हुए थे ..)
फिर दीदी बोली - अच्छा !! चलो रात की बात बाद में सोंचेंगे ...अभी तुम अपने कमरे में जाओ |
मै बोला - यहीं सोने दो न , यहाँ क्या दिक्कत है ?
वो बोली - अरे नहीं ! अगर कोई आया तो बिस्तर , तुम्हारी और अपनी हालत सुधारने में समय लगेगा कि नहीं ...और अगर देर लगेगी तो किसी को भी शक हो सकता है |
मै उनकी बात से सहमत होते हुए उठकर निकर पहनने लगा और जाकर अपने कमरे में सो गया ..
मै काफी देर तक सोता रहा और दीदी की आवाज सुनकर जगा, दीदी आवाज लगा रही थी - राजन ! उठो ..खाना खा लो ! मै उठकर नहाने के लिए बाथरूम जाने लगा , रास्ते में देखा कि दीदी किचेन में काम कर रही थी ,मन तो हुआ की अभी ही जाकर उनको पीछे से दबोच लूँ ,पर मुझे बड़ी जोर की शुशु लगी हुई थी इसलिए मै सीधा बाथरूम जाकर फ्रेश होने लगा और मै जब नहाकर अपने कमर में टावेल लपेटे हुए वापस आया और किचेन में खिड़की से देखा तो पाया दीदी वैसे ही काम में लगी है , उनके साडी के ऊपर से ही मटकते चुतरों को देखकर मेरा लंड फिर से तनने लगा , मै वहीँ से अपना टॉवेल निकालकर कंधे पर रखा और लंड हाथ में लेकर मसलते हुए किचेन के दरवाजे पर खडा होकर उनको देखने लगा , उनको अभी तक शायद मेरे आने का एहसास नहीं हुआ था ,वो सलाद काटने में मस्त थी , मै धीरे धीरे उनके पीछे जाकर और नीचे झुक कर उनकी साडी और पेटीकोट का शिरा पकड़ा और झटके से उसे कमर तक उठा कर अपना तना लंड उनकी गांड कि दरारों में पेल दिया , वो चौंकी और तुरंत छिटककर दूर हो गयी और मुझे डांटते हुए धीमे आवाज में बोली- ये ... क्या कर रहा है तू ? बूआजी अभी घर में है !! अब चौंकने की बारी मेरी थी , मैंने तुरंत किचेन में लगी दीवाल घड़ी में देखा तीन बज रहे थे , समय देखते ही मेरा लंड मुरझा कर लटक गया , वास्तव में माँ आ चुकी होगी | मै तुरंत कंधे से टॉवेल निकालकर कमर में लपेट लिया , लेकिन किचेन से बाहर निकलने कि हिम्मत नहीं हो रही थी | अगर माँ ने देख लिया होगा तो कया होगा ?? साला , मै क्यों दरवाजे के बाहर से ही लंड मसलते हुए घुसा , ये बात दीदी को पता नहीं थी इसलिए वो मुझे झिड़ककर शांत हो गयी , परन्तु ..यही सोंचकर मेरा दिल धड़क रहा था ...शायद माँ मुझे घर से ही बाहर निकाल दे .... लेकिन अगर वो अपने कमरे में होगी तो नहीं देख पाई होगी क्योंकि वहाँ से किचेन के दरवाजा को देखने के लिए कमरे से बाहर आना पड़ता है ,परन्तु अगर वो ड्राईंग रूम में टी वी देख रही होगी तो मुझे जरूर देख लिया होगा ...मै मन ही मन मनाने लगा कि वो अपने कमरे में हो , .इसलिए मैंने दीदी से पूछा - दीदी , माँ किधर है ? वो बोली - अभी थोड़ी देर पहले तो टी वी देख रही थी ...तू जल्दी से कपडे पहनकर तैयार हो जा .. मै खाना लगा रही हूँ , अब मेरा दिल बैठने लगा ....माँ ने सचमुच देख लिया होगा .....अब पता नहीं मेरे साथ क्या होने वाला था |
मै डरते डरते किचेन से बाहर निकला और तेजी से अपने कमरे में जाने लगा , जाते -जाते मै उचटती निगाह ड्राईंग रूम में मारा परन्तु मुझे माँ नहीं दिखाई पडी | थोड़ा तस्सल्ली हुआ | अपने कमरे में आकर मैंने कपडे पहने ,तभी दीदी खाना लेकर डाइनिंग टेबल पर रखने लगी , मै एक कुर्सी पर बैठ गया , थोड़ी देर में माँ भी आकर मेरे बगल में बैठ गयी | वो खामोश थी , जबकि पहले खाने पर बैठते समय मुझसे या दीदी से बात करती रहती थी...मेरा दिल फिर बैठने लगा | मैंने चोर नज़रों से उनके चेहरे कि तरफ देखा लेकिन मुझे पता नहीं चल पाया कि वास्तव में उन्होंने देखा कि नहीं , वो चुपचाप अपना खाना निकाल कर थाली में रख रही थी | दीदी सामने कुर्सी पर बैठ गयी और खाना खाने लगी | मै अनमने मन से खा रहा था , तभी मुझे अपने पैरों के ऊपर एक पैर का एहसास हुआ ..मैंने देखा दीदी मंद- मंद मुस्कुरा रही थी | मै समझ गया कि वो शरारत कर रही है ...फिर वो अपना पैर उठाकर मेरे जांघो पर रखने लगी ...माँ की उपस्थिती में मुझे गुस्सा आ रहा था ..मै तुरंत कुर्सी को आगे खिसकाकर टेबल से सट गया ताकि माँ को दीदी का पैर दिखाई न पड़े , परन्तु मेरे आगे खिसकते ही दीदी अपना पैर उठाकर मेरे पैजामे के ऊपर से लंड पर रख दिया और अपने पंजो से लंड को दबाने लगी ..मै कसमसा उठा .. मेरे लंड ने तुरंत प्रतिक्रिया दी और तुनक कर खडा हो गया | बगल में माँ की उपस्थिति डर भी पैदा कर रही थी ...डर और उत्तेजना की एक अप्रतिम अजीब अनुभूति मुझे हो रही थी ...तभी ना जाने मुझे क्या हुआ कि मै फलफला कर पैजामे में ही झड़ने लगा ...दीदी ये महसूस कर रही थी क्योकि मेरा गीला होता पैजामा उनके पंजो को भी गीला कर रहा था ...मुझे शर्मिंदगी महसूस हो रहा था | ये अजीब इत्तफाक था , क्योकि संतुष्टि के भाव झड़ने वाले के चेहरे पर होता है ...लेकिन जहां दीदी के चेहरे पर परम संतुष्टि के भाव थे वहीं मेरे चेहरे पर शर्मिंदगी के ..आखिर मै उठता कैसे ?....मै माँ के खाना ख़त्म करके उठने का इन्तजार कर रहा था ...10 मिनट का इन्तजार भी मुझे बहुत लंबा लग रहा था और जैसे ही माँ उठकर हाथ धोने गयी , मै तुरंत उठकर दीदी कि तरफ जाकर उनको एक प्यारी चपत लगाते हुए बेदर्दी से उनकी चुचियों को भींच दिया ..वो चाहकर भी चिल्ला ना सकी बस कसमसाकर रह गयी ...मैं तुरंत अपने कमरे में दौड़ पडा और तैयार होकर घुमने निकल पडा ...............
फिर रात को माँ कि उपस्थिति से डरते डरते भी दीदी के कमरे में जाकर दीदी को जमकर चोदा | ये सिलसिला लगभग एक महीना चला | दीदी के मासिक वाले दिनों में उनके गांड का कचूमर बना दिया | हांलाकि माँ कि कॉलेज कि छुट्टी हो गयी थी ,इसलिए हमें दिन में मौक़ा नहीं मिल पाटा था लेकिन रात को जबतक मै दो तीन बार चोद नहीं लेता तबतक न मुझे चैन मिलता और ना दीदी को | इसलिए जब दीदी वापस अपने ससुराल चली गयी तब मेरा बुरा हाल हो गया , अब चोदने के लिए तो छोड़ो ...देखने के लिए भी 'बुर' उपलब्ध नहीं था ....
तभी एक -एक करके तीन शुभ समाचारों से माँ की खुशियों का ठिकाना न रहा | मैं और आभा दीदी क्रमशः दसवीं और बारहवीं में प्रथम श्रेणी से पास हुए थे और भाभी को बेटा हुआ था और माँ, दादी बन गयी थी | माँ ने तुरंत भोपाल 'गर्जन ' (मेरा बड़ा भाई ) के पास जाने का फैसला किया | परन्तु छुट्टियाँ होने के कारण टिकट हमें १० दिन बाद का मिला | जब मैं और माँ भोपाल पहुंचे तो गर्जन भाई , भाभी और आभा दीदी बहुत खुश हुए | मै खासकर 'आभा' को देखकर अचंभित था |
अभी आभा को भोपाल आये हुए ७ महीने ही हुए थे , तब वो काफी दुबली पतली सी थी परन्तु अब उसका बदन भरा - भरा सा लग रहा था | शायद यह मेरे वासना भरी नज़रों के कारण था क्योंकि मै इससे पहले ‘आभा ’ को इस नजरों से कभी देखा नहीं था | चूँकि मैंने इधर औरत का सानिध्य पा लिया था और औरत के शरीर में छिपे आकर्षण और सुख को भोग लिया था इसलिए दीदी के अग्र भाग में सीने की बडी हुई गोलाईयां और पृष्ठ भाग में उभरे हुए नितम्ब आकर्षित कर रहे थे , बच्चे को दूध पिलाने के दौरान भाभी के चुचकों से मेरी नजर हटती नहीं थी | कुल मिलाकर कुत्सित विचारों ने मेरे मन को घेर रखा था इसलिए मेरी तांक -झांक की प्रवृति और मुठ मारने की आवृति काफी बढ़ गयी थी |
कुछ दिन वहां बिताने के बाद हमलोग आभा दीदी के साथ वापस घर आ गए | घर पर दीदी के कमरे में झांकते हुए एक बार मैंने देखा कि वो अपनी सलवार में हाथ डालकर अपने गुप्तांग से खेल रही थी , मुझे आशा जगी कि शायद अब दीदी के साथ मेरा काम बन जायगा , परन्तु इधर मैंने ११वि में साइंस में एडमिशन लिया उधर आभा दीदी ने बी. फार्मा में एडमिशन लेकर लखनऊ चली गयी | अब एक बार फिर अपने हाथ के सिवा मेरा कोई सहारा नहीं था .....
इधर कालेज में मुझे ढेर सारे नए दोस्त बने , उनमे से एक लड़का 'वरुण' मेरी तरह लोकल था , शहर में उसके पापा का गैराज था | वरुण की बड़ी बहन की शादी हो चुकी थी और उसका बड़ा भाई गाजिआबाद में पोलिटेक्निक कालेज में पढ़ रहा था | उससे काफी अच्छी दोस्ती हो गयी , इसलिए जब कभी लौज में बी . ऍफ़ का प्रोग्राम बनता तो मै उसे लेकर समीर के लौज में जाने लगा | वहां उसका समीर के अलावा भी कई सारे दोस्त बन गए | वहीँ लौज में राहुल के साथ बहुत अच्छी बनती थी , जैसे मेरी समीर के साथ |समय कट रहा था ......पाठ्यक्रम के साथ अश्लील साहित्य का पठन -पाठन जारी था |लौज में एक बड़ी दिक्कत वहां लडको को थी , वहां दीमक बहुत ज्यादा था और हफ्ते में एक बार दवा जरुर छिडकना पड़ता था, इसलिए जब कभी लम्बी छुट्टी होती तो लड़के किसी लोकल पहचान वाले को अपने कमरे की चाभी दे जाते | इसलिए जब दशहरे की छुट्टी हुई तो समीर के अलावा तीन और लडको ने मुझे चाभी दे दिया , कुछ लडको ने वरुण को , तो कुछ ने सामने चाय वाले को | उन्हें एक महीने बाद दिवाली के बाद आना था |
एक दिन शाम को जब मै लौज के सामने सड़क पार चाय पी रहा था तो मैंने वरुण को रिक्शे से लौज के सामने उतरते देखा , मैंने उसे आवाज भी दिया परन्तु सड़क पर चलने वाले वाहनों के शोर में वह शायद सुन नहीं पाया और लौज के अन्दर चला गया | मैंने मन ही मन उसे गाली दिया - साला पागल है , दवा ही छिडकना था तो दिन में आता , इस समय शाम के धुंधलके में कहीं दवा छिडकी जाती है | परन्तु वह थोड़ी देर में ही बाहर निकला और फिर रिक्शावाले को लेकर अन्दर चला गया | मेरा माथा ठनका ....ये क्या चक्कर है , वो रिक्शेवाले को क्यों अन्दर ले गया | मैंने जिज्ञासा शांत करने के लिए लौज में घुसने लगा परन्तु मुख्य द्वार ही अन्दर ही अन्दर से बंद था ...अब शक की कोई गुंजाइश नहीं थी कि कुछ गड़बड़ है ..
लेकिन मुझे अन्दर जाने का रास्ता पता था क्योंकि लड़के जब नाईट शो फिल्म देखकर आते तो मुख्य द्वार बंद होता था तो वो बाहर वाली सीढ़ी से छत पर चढ़ जाते और आँगनवाले पेड़ की टहनी पकड़कर आँगन में आ जाते ..... मै भी आ गया ....वहां कोई भी नहीं था ..बस राहुल के कमरे की बत्ती जल रही थी | मै आहिस्ते से जब खिड़की के पास पहुचा तो अन्दर का नजारा देखकर दंग रह गया ...
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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