Sunday, August 30, 2015

FUN-MAZA-MASTI बहकती बहू--18

FUN-MAZA-MASTI


बहकती बहू--18


इधर कामया के बदन मे शोले भड़क रहे थे ! कामया की आँखों मे मदनलाल ने एक अजीब सा नशा देखा था ! ऐसा नशा जिस भी लड़की की चुदाई करते समय उसने उनकी आँखों मे देखा था वो सब उसकी दीवानी बन गई थी !यहाँ तक की शादी शुदा भी अपने घर वालों से छुप छुप कर उसका लॅंड खाने आती थी ! बाबूजी समझ गये क़ि बहू भी अब गयी काम से अब इसे दिन रात हमारा मूसल ही दिखाई देगा ! जैसे ही मदनलाल का लावा कामया की बच्चेदानी मे पड़ा वो उस खुशी को संभाल नही पाई और एक बार फिर झरझर कर बहने लगी ! उत्तेजना के चरम पर उसका पूरा बदन काँप रहा था सो उसने ज़ोर से मदनलाल को पकड़ लिया और छिपकली की तरह बाबूजी से चिपक गई !

अब आगे - - - - - -
मदनलाल बहू के उपर पड़े पड़े अपनी थकान उतारने लगा ! नीचे दबी कामया ने अब भी बाबूजी को भींच के रखा था उसने बाबूजी को बाहों मे भर रखा था और टाँगो को उनपर लपेट कर कैंची मार रखी थी ! कामया तृप्त आँखों से छत की ओर देख रही थी !आज जो उसने पाया था उसकी उसने कभी कल्पना भी नही की थी ! उसने जो पाया वो मन बुद्घि से परे था उस सुख का वर्णन करना जिव्हा के बस मे नही था ! उसे विश्वाश नही हो पा रहा था की ये मानवीय सुख था ! उसे आश्चर्य हो रहा था क़ि उसका शरीर उसे इतना सुख भे दे सकता है ! इस परम सुख ने उसके मन के कई शंकाओं का निवारण कर दिया था ! पहले जब वो सुनती थी क़ि फलाँ लड़की किसी लड़के के साथ भाग गई तो उसे लगता था क़ि कैसे कोई लड़की अपने माँ बाप परिवार को छोड़ कर ऐसा कर सकती है ! पर आज उसे इन सवालों का जवाब मिल गया था ! उसने सोचा हर भागने वाली लड़की ज़रूर भागने से पहले अपने आशिक से चुद चुकी होती होगी और फिर चुदाई की वो तड़प ,वो खुमार उसे भागने पर मज़बूर कर देता होगा ! सच भी तो है भला इस सुख को कौन त्यागना चाहेगा ! कई बार वो पेपर मे पड़ती थी क़ि तीन बच्चों की माँ प्रेमी संग भागी , सास दामाद को लेके भाग गई ! ऐसी खबरों को पड़कर उसका दिमाग़ चकरा जाता था ! लेकिन आज उसको हर सवालों का जवाब मिल गया था !ज़रूर ऐसी औरतों का पति भी सुनील जैसा कमज़ोर रहता होगा और जैसे ही उन्हे बाबूजी जैसा कोई असल मर्द मिलता होगा वो लोक लाज छोड़ कर जवानी का असल मज़ा लेने चल देती होंगी !

वो धीरे धीरे मदनलाल की पीठ सहला रही थी बीच - २ मे बाबूजी के नितंबों को भी सहला देती ! मदनलाल के लिए ये कोई नई बात नही थी उससे चुदने वाली हर औरत को उसपर ऐसा ही प्यार आ जाता था ,बस ये अलग बात थी क़ि बहूरानी के प्यार मे वो खुद भी गिरफ्तार हो गया था ! बहूरानी और स्त्रियों के समान केवल टाइम पास का सामान नही थी ! वो उसकी कुलवधू थी ,इसके वंश को आगे बड़ाने वाली थी ! इधर कामया सोच रही थी क़ि सचमुच ये कामानंद परम आनंद के सामान है तभी तो इसे ब्राहमानंद सहोदर कहते हैं ! स्त्री को यह परमानंद उसका पति प्रदान करता है शायद तभी शास्त्रों ने पति को पत्नी के लिए भगवान का दर्जा दे रखा है ! इस परमसुख को पाकर हर पत्नी अपने पति की दासी बन जाती है !कामया हौले -२ मदनलाल को सहला रही थी मदनलाल की भी अब थोड़ा ताक़त वापस आ गई तो वो भी धीरे धीरे बहू की मांसल जाँघो और नितंबों पर हाथ फेरने लगा था !उसने अब बहू की एक चुचि को अपने मुँह मे भर लिया और चूसने लगा ! कामया को अपनी चुचि चुसाई बड़ी ही आनंद दायक लग रही थी ! मदनलाल का मूसल अभी भी बहू की बुरमे धंसा पड़ा था !वो लॅंड को अंदर ही रहने देना चाहता था ! इधर कामया बाबूजी के बोझ तले दबे थोड़ा असहज हुई तो कसमसाई ! मदनलाल उसकी परेशानी समझ गया ! बहूरानी की कोमल काया काफ़ी देर से उसका बोझ सह रही थी ! उसने हटते हुए अपना मूसल बाहर निकाला ! लॅंड की रग़ड़ से कामया एक बार फिर तड़प उठी !
मदनलाल ने देखा क़ि उसके लॅंड मे काफ़ी सारा खून का निशान लगा था ! कामया ने भी देख लिया की बाबूजी के उसमे खून लगा है फिर उसने अपनी चुत की ओर देखा तो वहाँ भी खून सा लगा था उसने उत्सुकता वश बाबूजी से पूछ लिया
कामया :: बाबूजी ये खून कैसे लग गया ! मदनलाल समझ गया था क़ि बहूरानी लगभग छः महीने बाद चुदि है वो भी इतने बड़े मुलतानी लॅंड से इसलिए बहू की चूत अंदर से कई जगह रग़ड़ खा कर छिल गई होगी लेकिन उसने मौके का फ़ायदा उठाते हुए कहा
मदनलाल :; जानू आज तुम्हारी सील टूटी है तो खून तो निकलेगा ही ना !
कामया :: बाबूजी लेकिन जब सुनील ने पहली बार किया था तब भी तो निकला था ? मदनलाल बहू को इंप्रेस करते हुए बोला
मदनलाल - - - जानू ,सुनील का छोटा सा था तो थोड़ी सी जगह बना ली होगी अपने जाने के लिए पर तुम्हारी पूरी सील नही टूटी थी ! आज जब हमारा असली मर्दाना लॅंड अंदर गया है तब तुम्हारी सील की धज्जियाँ उड़ी हैं ! आज तुम कली से फूल बन गई हो ! आज तुम लड़की से औरत बन गई हो ! ये खून तुम्हारे औरत बन जाने का एलान कर रहा है !
कामया बाबूजी की से बातें सुनकर शर्मा गई ! मदनलाल ने फिर बेड मे पड़ी बहू की पेंटी उठाई और उससे अपना लॅंड पोंछने लगा !
कामया बाबूजी को अपनी पेंटी से पोंछती देखती रही उसका मन तो कर रहा था कि अपने हाथ से बाबूजी के बदमाश को सॉफ कर दे आख़िर अब उसकी देखभाल करना और उसको तन्दरुस्त रखना उसकी की ज़िम्मेदारी थी ! जितना ये बदमाश हेल्ती रहेगा उतना ही अच्छी सेवा करेगा ! किंतु वो आगे बॅड्कर ऐसा कर ना पाई ! बाबूजी को छेड़ने के मूड से उसने कहा
कामया ::: छी !! हमारे कपड़े से क्यों पोंछ रहे हो ? अपने कपड़े से पोंछिए ना !
मदनलाल :: डार्लिंग तुम्हे तो मालूम है क़ि तुम्हारे रूम मे आते समय हम चड्डी नही पहनते !
कामया :: तो अपने पाजामा से पोंछिए
मदनलाल :: अच्छा ! सुबह शांति हमसे पहले उठ जाती है ! सुबह सुबह ये खून देखेगी तो क्या जवाब देंगे ! तुम बोल देना मम्मी हमारा है बाबूजी को कुछ मत कहिए !!
कामया :: हम क्यों कहेंगे ? आप की बीवी है आप जानो !
तबतक मदनलाल ने भी पोंछ कर पेंटी नीचे फेंक दी ! कामया ने उठने की कोशिश की जैसे ही वो उठने लगी तो उसके मुँह से दर्द भरी सिसकारी निकल गई ! आह उई माँ !!!!!
मदनलाल ::: क्या हुआ बहू ?
कामया ::: बाबूजी वहाँ बहुत दर्द दे रहा है ! मदनलाल जानता था उससे पहली बार चुदने वाली हर लड़की का यही हाल होता है ! उन लड़कियों की हालात देख कर तो उसे मज़ा आता था पर बहूरानी की हालत पर उसे दुख हो रहा था क़ि उसी के कारण बहू दुख सह रही है ! किंतु फिर उसने सोचा अगर बहू आज ये दुख नही सहती तो जिंदगी भर अपने औरत होने का लुत्फ़ नही उठा पाती ना ये जान पाती क़ि औरत के नसीब मे प्रकृति ने कितनी खुशियाँ भर रखी हैं !
मदनलाल :: बहू धीरे से उठो ! शुरू के दिन दर्द होता है बस एक दो दिन बाद देखना कैसे उछल उछल के मज़ा लोगि और बोलोगि बाबूजी और ज़ोर से पेलिए ,फाड़ डालिए हमारी !
कामया::: धत ! कुछ भी बोल देते हैं आप !! हम ऐसा कभी नही बोलेंगे जैसा आप बोल रहे हैं ! हमको आपने ऐसी वैसी लड़की समझ रखा है ?
मदनलाल :: डार्लिंग तो इसमे बुरा क्या है ? अपने हब्बी से ऐसा बोलना ग़लत थोडी है ! सेक्स मे खुल कर बोलने से ज़्यादा मज़ा आता है
कामया :: रहने दीजिए हमे नही चाहिए कोई मज़ा वजा !!
मदनलाल बहू की बात सुनकर दिल ही दिल मे बोला "" इंडियन औरतों की यही खसियत होती है जब तक चुत मे लॅंड घुसा रहता है और अंदर रगड़ता रहता है खूब अनाप शनाप बकती है हाय राजा बजा दो बाजा ,फाड़ डालो मेरी और जैसे ही कार्यक्रम ख़त्म हुआ तो ऐसा शरीफ बन जाती है जैसे जिंदगी मे कभी लॅंड देखा ही नहीं "" कामया धीरे -२ खिसकते हुए बेड के किनारे तक आई और खड़ी होने की कोशिश करने लगी ! जैसे ही उसने अपने को खड़ा किया दर्द के मारे वो लड़खड़ा गई और गिरने को हुई तभी मदनलाल ने अपनी मज़बूत बाहों मे उसे थाम लिया ! दोनो पूरी तरह नग्न एक दूसरी की बाहों मे चिपके हुए थे ! मदनलाल ने बहूरानी को अपनी ओर खींचा और अपने तपते होंठ कामया के रसभरे होंठों से लगा दिया ! कामया भी बाबूजी से लता की भाँति लिपट गई और मदनलाल के होंठो को चूसने लगी ! मदनलाल ने अपने हाथ बहू की गांद मे पहुँचा दिया और लगा उनसे खेलने ! बहू की इस कातिल नितंबों की जोड़ी से तो उसका दिल कभी भरता ही नही था ! कामया की चुचियाँ बाबूजी के कठोर सीने मे पिचक गई थी ! दोनो फिर से रोमांस मे लीन हो गये किंतु बाबूजी के अंग मे कोई हरकत नही हो रही थी ! सच भी था मदनलाल सीनियर सिटिज़न की उम्र का था और केवल पंद्रह मिनिट मे फिर से उसमे कठोरता आ जाना थोड़ा कठिन ही था इस बात को मदनलाल भी समझता था ! उसने कामया से पूछा !
मदनलाल :: फिर से करने का दिल कर रहा है क्या डार्लिंग ?
कामया :: बाबूजी अभी वहाँ बहुत दर्द से रहा है लेकिन आपका दिल है तो कर लीजिए !
मदनलाल ने अपने छोटू को बहू के हाथ मे पकड़ाते हुए कहा
मदनलाल :: नही बहू आज रहने दो जब तुम अपने इस नये दोस्त की अभ्यस्त हो जाओगी तो फिर दो तीन बार कर लिया करेंगे ! अभी फिर से करेंगे तो सुबह तुम्हे काफ़ी दर्द दे सकता है ! बस दो चार दिन की बात है जानू फिर देखना हम रात को यहाँ से जाया ही नही करेंगे !
कामया :: जान , आप जाएँगे भी तो हम आपको जाने नही देंगे लेकिन मम्मी को क्या बोलेंगे की आप सारी रात कहाँ रहते हो ?फिर इस बात पर दोनो हंस पड़े ! मदनलाल अपने कमरे मे चला गया और कामया बिस्तर पर पसर गई !अचानक कामया को कुछ याद आया वो उठी बाबूजी के वीर्य से सनी अपनी पेंटी को उठा कर किस करी और पहन ली !
रात की चुदाई का ऐसा असर हुआ क़ि कामया एकदम घोड़े बेच कर सो गई और सुबह नियत समय तक उसकी नींद ही नही खुली ! सुबह जब शांति ने देखा क़ि बहू नही उठी है तो दरवाजी से आवाज़ दी
शांति :: क्या हुआ बहू ?उठी क्यों नही ? अभी तो बीटुआ आया नही तो ये हाल है जब वो आ जाएगा तो क्या दिन भर सोती रहोगी ? सास की आवाज़ सुनकर कामया हड़बड़ाती हुई उठी ! उसकी कमर और टाँगों के जोड़ मे भयंकर दर्द हो रहा था और चलते समय पैर लड़खड़ा रहे थे !
कामया ने जल्दी से नहाने के कपड़े तौलिया आदि समेटा और कमरे से बाहर निकल कर बाथरूम की ओर जाने लगी ! शांति उस समय किचन मे थी और मदनलाल बरामदा मे दाँत सॉफ कर रहा था ! शांति ने देख क़ि बहू लंगड़ा कर चल रही है और उसके चेहरे मे दर्द की लकीर है! कामया की कमर मे जो एक विशेष प्रकार की लचक और ठसक थी उसे देख कर शांति के चेहरे मे एक रहस्यमयी मुस्कान आ गई!उसने बहू से पूछा
शांति :: क्या हुआ बहू ? लंगड़ा क्यों रही हो ? सब ठीक तो है
शांति के ऐसा पूछते ही मदनलाल और कामया दोनो को साँप सूंघ गया ! मदनलाल ने बात संभालते हुआ कहा
मदनलाल :: क्या हुआ बहू ? बुखार उखार है क्या ?
शांति :: अरे बुखार मे कोई लंगड़ाता है क्या ? कुछ और बात है !
तब तक कामया भी संभाल गई और उसने बहाना बनाते हुए कहा
कामया :: मांजी , पता नही कल रात कैसे हम बिस्तर से नीचे गिर गये उसी से कमर मे धमक लग गई है !
शांति :: अरे इतनी सी धमक से कोई लंगड़ाता है क्या ? तुम्हारी उम्र मे हम गाँव मे थे और पता नही रोज कितनी धमक लगती थी पर कभी लंगड़ाए नही ! क्यो सुनील के बाबूजी हम कभी बहू के समान लंगड़ा के चले हैं क्या ?
मदनलाल अब तक फिर सम्भल गया था सो बोला
मदनलाल :: अरी भागवान ! तुम्हारे जमाने की बात और है उस समय की खिलाई पिलाई ही कुछ और थी ! तुम ताज़ा दूध घी खाकर बड़ी हुई हो ! बहू तो पेकेट का दूध पीकर आई है तुम्हारी बराबरी कहाँ कर सकती है !
शांति :: ठीक है ठीक है ! जाओ बहू नहा धो लो और ज़्यादा तबीयत खराब हो तो आज आराम कर लो काम हम कर लेंगे ! और शांति एक बार फिर एक अनोखे तरीके से मुस्करा दी !


शांति के चेहरे के अजीबो ग़रीब भाव देख कर ससुर बहू दोनो सचेत हो गये ! दोनो पूरे दिन एक दूसरे से दूर दूर रहे ! बस मदनलाल ने एक बार चुपके से कामया को पेन किलर की गोली दे दी ताकि उसको थोड़ा आराम लग जाए ! लेकिन ज्यों ज्यों शाम गहराने लगी उनकी उमगें जागने लगी ! सालों के भूखे को छप्पन भोग की थाली मिल जाए तो फिर उस से संयम की उम्मीद करना बेमानी ही होगी ! रात का अंधियारा दोनो के सब्र का इम्तिहान लेने लगा ! हालाकी दोनो अब भी एक दूसरे से बात नही कर रहे थे लेकिन अब जब वो एक दूसरे की ओर देखते तो उनकी आँखों मे प्यास सॉफ दिखाई दे जाती ! कौन ज़्यादा प्यासा है कहना मुश्किल था ! कामया जवान थी उसके पास ज़्यादा गर्मी थी ,अंदर सुलगती आग थी और बरसो से अन्बुझि प्यास थी तो मदनलाल की बुडापे मे लॉटरी लग गई थी ! वैसे भी बुडापे का प्यार बहुत ख़तरनाक होता है
जब पूर्णिमा का चाँद पूरा निकल आया तो मदनलाल के लिए अपने को संभालना कठिन हो गया ! इंसान को एक चाँद ही रोमॅंटिक बना देता है फिर बाबूजी को तो दो दो चाँद एक साथ दिखाई दे रहे थे ! उपर से रात का समय ? रात और एकांत की दो विशेषता होती है ! रात आदमी के अंदर भय पैदा करती है वैसे ही एकांत का सन्नाटा भी आदमी को भयभीत कर देता है ! अगर कोई भरी दोपहर मे भी ऐसी जगह खड़ा हो जहाँ मीलों तक इंसान का नामों निशान नही हो तो दोपहर मे भी आदमी डरने लगता है ! लेकिन रात और सन्नाटा का एक गुण और भी है ये दोनो साथ हों और पास मे कोई हसीना हो तो ये माहौल आदमी को कामुक बना देता है ! एकांत शृंगार रस उत्पन करने की पहली शर्त है ! और रात का अंधियारा आदमी को दुस्साहस करने की प्रेरणा देने लगता है ! माहौल अब ससुर बहू दोनो के सिर चॅडकर बोलने लगा था ! सभी लोग टीवी देख रहे थे पर कामया और मदनलाल की नज़र एक दूसरे पर थी ! जब भी बहू ससुर की ओर देखती मदनलाल अपने हथियार को मसल कर अपने "" मन की बात "" उसे बता देता ! कामया भी अब ससुर को नशीली नज़रों से देख रही थी ! रात के दस बजे के करीब कामया उठ कर अपने रूम मे जाने लगी ,जाते समय उसने मदनलाल की ओर बहुत ही कामुक ,प्यासी और नशीली नज़रों से देखा मानों कह रही हो "" बाबूजी रात को आना ज़रूर !"" मदनलाल ने भी उसे इशारों मे समझा दिया क़ि ""बहू अब तुम्हे चोदे बिना हमे भी नींद कहाँ आएगी ""
कुछ देर बाद शांति भी अपनी दवाई खा कर सोने चली गई ! आज मदनलाल अपने कमरे मे काफ़ी देर तक लेटा रहा और अंदाज़ लगाता रहा क़ि शांति कहीं जागी तो नही है! कुछ ही देर मे शांति के खर्राटे चालू हो गये तो उसे पक्का हो गया क़ि शांति सो चुकी है वो उठा और अपनी प्राणप्यारी नई नई दुल्हनियाँ के कमरे की ओर चल दिया ! कमरे मे कदम रखते ही उसने जो देखा तो उसके प्राण हलक को आ गये ! कल सुहाग रात को जो कामया नख से सिर तक सोलह शृंगार मे सजी हुई थी वो आज केवल लिंगरी मे बिस्तर मे लेटी हुई थी ! आज की बहू कल की बहू से बिल्कुल अलग दुनिया की दिख रही थी ! मदनलाल आँख फाडे कामया के बेमिशाल हुश्न को देखने लगा !



ऐसा लग रहा था मानो संगमरमर की कोई मूरत लेटी हुई हो ! बाबूजी को यों मदहोश देख कामया अंदर ही अंदर गर्व से फूल गई और बड़ी नज़ाकत से बोली
कामया :: क्यों जी कैसी लग रही हूँ ? पिछली बार आपके लाड़ले साहब ये ड्रेस ले के आए थे !
अब मदनलाल क्या जवाब देता ! उसका ध्यान तो ड्रेस पर था ही नही वो तो ड्रेस से बची हुई बाकी जगह को ही देख रहा था ! कामया के जिस्म मांसलता ही ऐसी थी क़ि आदमी सब कुछ भूल जाता था ! मदनलाल तो शायद मरते समय प्राण छोड़ते समय भी बहू को नग्न आँखों के सामने देखना चाहेगा चाहे नरक ही क्यों ना जाना पड़े 


 स्त्रियाँ पुरुषों की इस साइकोलॉजी कभी नही समझ पाती क़ि उन्हे कपड़ों से,गहनो से मेकप से कोई मतलब नही रहता है !उन्हे तो कपड़ों के अंदर जो छुपा हुआ है उससे मतलब रहता है ! कोई पुरुष किसी पार्टी मे किसी सजी धजी स्त्री से मिले पंद्रह मिनिट बात करे लेकिन दो दिन उससे पूछो क़ि वो कौन से कलर की साड़ी पहनी थी तो सौ मे नब्बे पुरुष नही बता पाएँगे !लेकिन यही सवाल कोई स्त्री से पूछो तो वो छह महीने बाद भी बता देगी क़ि उस पार्टी मे फलाँ औरत ने कौन सी साड़ी पहनी थी और कौन से गहने पहने थे !
एक रोजमर्रा को होने वाला तथ्य बता रहा हूँ ! कोई औरत या लड़की घर से निकलने से पहले आधा पौन घंटा मेकप करती है उपर से नीचे तक लिपाई पुताई करती है क़ि जब बाहर निकलून्गि तो सब मेरी सुंदरता देखेंगे मगर जैसे ही वो सड़क पर पहुँचती है देखने वाले लड़के के मुख से सबसे पहले ये ही निकलता है ""वॉव क्या gaand है यार ""
मदनलाल भी छोटी सी पेंटी मे फँसी gaand ही घूरे जा रहा था ! कामया बाबूजी की नज़रों को देख कर समझ गई थी क़ि नये बलमा की नज़र कहाँ पर हैं !उसे मालूम था क़ि बाबूजी को हमारी गोलमटोल गद्देदार गांद बहुत पसंद हैं ! बाबूजी को चुप चाप उसके हुश्न का रसपान करते देख कामया ने फिर पूछा
कामया ::: जी आपने बताया नही कैसी लग रही हूँ इन कपड़ों मे ?
मदनलाल ::: जान कहने को शब्द नही है तुम इन कपड़ों मे गजब की सेक्सी लग रही हो ! पर एक बात और है
कामया :: क्या बात है बोलिए ?
मदनलाल ::: हमे तो तुम बिना कपड़ों मे ही सबसे सुंदर लगती हो !
कामया :: धत बेशरम कहीं के !!! आप मर्द तो चाहते ही हैं क़ि औरतें कपड़ा पहनना ही छोड़ दें ताकि आप लोगों का समय बच जाए !
मदनलाल :: समय बच जाए मतलब ?
कामया :: रहने दीजिए मतलब आप को सब मालूम है ज़्यादा बानिए मत !

मदनलाल भी अब ज़्यादा समय खराब करने के मूड मे नही था ! कल की चुदाई का सरूर अभी भी उसके सिर चढ़ कर बोल रहा था और फिर सुबह शांति की शक्की नज़रों के कारण भी वो जल्दी से कामया को चोद कर निकल जाने के चक्कर मे था ! उसने कामया को जवाब देने की बजाय कुछ करने की सोची और लूँगी उतार बहू के उपर कूद पड़ा ! कामया तो पहले से ही भूखी प्यासी बैठी थी बाबूजी के नागराज को डोलते देख उसने लपक कर उसकी गर्दन पकड़ ली और लगी मसलने ! पाँच मिनिट के अंदर ही जो लिंगरी कामया के बदन पर होने का गर्व कर रही थी अब वो पलंग के नीचे पड़े पड़े अपनी किस्मत पर रो रही थी ! चूमा चाटी के दौरान बहू के मुख से दरद भरी सिसकारी निकल रही थी जिससे मदनलाल समझ गया क़ि बहू अभी भी पेन मे है और वो ये भी जानता था क़ि लगभग साप्ताह भर तो ऐसा होगा ही होगा ! मदनलाल ने नीचे हनीपॉट मे नज़र डाली तो वो अभी भी सूजन मे दिख रही थी ! ससुर ने धीरे से मुँह नीचे किया और पूरी की पूरी मुनिया को अपने मुँह मे भर लिया ! जवां चुत पे मर्द के होंठ लगते ही बहूरानी के पुर बदन मे आग लग गई ,उसके अंदर से शोले भड़क भड़क कर उसके चुत मे आने लगे जो मदनलाल के होन्ट से स्पर्श करते है विस्फोट कर देते !वो बड़बड़ाने लगी ---
कामया ::: आ आह यस हनी सक इट लीक इट .! गिव देम दा ट्रीटमेंट वॉट दे डिज़र्व ! युवर सन नेवर गिव अटेंसन टू माइ पुसी ! नाउ दिस पुसी इस यौर एक्सक्लूसिव प्रॉपर्टी ! जस्ट बेंग इट टू हेल ! आह आह उई माँ मर गई!!!! ओह माइ गॉड वॉट आ सुपर्ब् पुसी लिकर यू आर !!! हनी यू ड्राइव मी क्रेज़ी !!
मदनलाल ने अपनी लपलपाती जीभ का कमाल दिखाना चालू कर दिया ! चुत चूसाई मे अच्छी अच्छी लोंड़िया उसके सामने बेबस हो जाया करती थी फिर बहूरानी तो कल की छोकरी थी !
इधर बाबूजी की जीभ लपलपा रही थी उधर बहूरानी बिन पानी की मछली के समान मचल रही थी ! लोहा गरम देख मदनलाल ने अगली चोट कर दी उसने बहू का कौआ अपने मुँह मे दबा लिया और बीच की उंगली चुत के अंदर डाल जी स्पॉट पर आक्रमण कर दिया ! इस दुधारी तलवार पर चलना कामया जैसी नई नई रंगरूट के बस की बात नही थी वो मदनलाल के हमले के आगे टूट गई और कमर उछाल उछाल कर अपने आने का संकेत देने लगी ! कुछ ही देर मे वो झर झर कर झरने लगी और मदनलाल गट गट कर बहू की मठा पीने लगा !
कुछ देर आराम करने के बाद मदनलाल उपर आ गया और बहू के संतरों को चूसने लगा ! संतरे कामया की सबसे बड़ी कमज़ोरी थी जब भी मदनलाल उन्हे मुँह मे लेता था बहूरानी तुरंत काम वासना के आगे बेबस हो जाती !



अभी दो मिनिट ही ससुर ने बहू के संतरे चूसे थे क़ि कामया बोल पड़ी --
कामया :::: बाबूजी प्लीज़ करिए ना ! अब रहा नही जाता ! डाल दीजिए अपना मूसल हमारे अंदर और हमे चोद डालिए जी भर के !
मदनलाल :: जान थोड़ा रुक जाओ इन बूब्स का मज़ा तो ले लेने दो !
कामया :: नही पहले एक बार कर लीजिए फिर खाली समय मे चुसते रहना जी भर के !
मदनलाल ::: क्या बात है जान आज बहुत बैचेन हो ?
कामया :: हाँ जानू इस सुख के लिए कितना इंतज़ार किए हैं ! अब आपको अपने बेटे के हिस्से का भी प्यार देना है हमे ! उन्होने प्यार देने मे जो कमी की है उसकी रिकवरी भी हमे आप से करनी है ! चलो अब जल्दी आ जाओ और हमको खूब प्यार करो !
जो हुकुम रानी साहिबा कहते हुए मदनलाल ने बहू की टाँग उठाई ,पोज़िशन ली और एक झटके मे पूरा लॅंड बहू के अंदर कर दिया !


एक झटके मे पूरा लॅंड अंदर जाते है कामया के मुख से चीख निकल गई वो तो अच्छा था क़ि मदनलाल ने पहले खूब चुत चुसाई की थी जिससे बहू अंदर से बहुत गीली थी वरना आज फिर खूना खच्चर हो जाता ! दर्द के मारे बहू बड़बड़ाई -कामया :: उई माँ मर गई ! ओह क्या कर रहे हो ? हे राम धीरे नही कर सकते ! हमेशा बेसबरे बने रहते हो ! कितना दरद दे रहा है
मदनलाल :: सॉरी जानू तुमको नंगी देखने के बाद सबर ही नही हो पाता ! बहुत दरद दे रहा है तो निकाल दूं .क्या ?
कामया :: अब डाल दिया है तो रहने दो लेकिन प्लीज़ धीरे धीरे करो ! आप तो एकदम सूपर फास्ट ट्रेन बन जाते हो ! नीचे लड़की को बिछाए हो कोई पटरी नही बिछी है!
मदनलाल को भी अपनी ग़लती का अहसास हो गया हलाकी वो चुदाई के मामले मे बहुत ही सबर से काम लेने वाला आदमी था और लड़कियों को बहुत ही तसल्ली बख्स तरीके से चोदता था किंतु बहू की खूबसूरती और जवानी ऐसी थी क़ि उसका दिमाग़ ही काम करना बंद कर देता था ! वरना सेक्स को वो हमेशा ही देर तक खींचने वाला इंसान था ! अब मदनलाल ने हल्के मगर लंबे स्ट्रोक मारने चालू कर दिए जिससे बहू एक बार फिर दीं दुनिया से बेख़बर होने लगी पुर कमरे मे कामया की सिसकारी गूँज रही थी बीच बीच मे मदनलाल की थाप की आवाज़ भी आ जाती जब बहू की गर्मी बढ़ी तो वो नीचे से कमर उछालने लगी जिससे मदनलाल समझ गया क़ि कामया अब आने वाली है !इधर बहू का जिस्म अब कमान की भाँति ऐटने लगा ! वैसे तो बहू बहुत ही सुशील थी किंतु जब मदनलाल का मूसल उसकी योनि का मंथन करने लगता तो उसके अंदर से ने नये शब्द निकलने लगते
कामया ::::: हाँ जानू ऐसे ही चोदिये ! बहुत अच्छा लग रहा है ! आप तो एक नंबर के चोदू हो फिर क्यों हमे तंग करते हो ! आह आह्ह्ह्ह्ह ! बाबूजी और ज़ोर से करिए हमारा होने वाला है ! डाल दीजिए अपना बीज़ हमारे अंदर ! आह माँ मर गई ! और इसी के साथ कामया झरने लगी मदनलाल ने भी अपनी रफ़्तार बढ़ा दी और बहू के अंदर अपना माल उड़ेलने लगा !
माल निकालने के बाद ससुर बहूरानी के उपर ही पसर गया !लगभग दस मिनिट तक वो लॅंड को अंदर ही फ़साए रहा जिससे वीर्य बिल्कुल भी बाहर ना निकल पाए ! फिर वो हटा और चिट लेट गया और कामया को करवट का उसका सिर अपने कंधे मे रख दिया ! दोनो धीरे धीरे एक दूसरे को सहला रहे थे ! कामया मदनलाल के चौड़े चकले सीनेको सहला रही थी तो मदनलाल अपने पसंदीदा फल बहू के खरबूजों को मसल रहा था !बड़ा ही रोमांटिक दृश्य था ऐसा लग ही नही रहा था क़ि दोनो ससुर और बहू है और दोनो मे पीढ़ी का गेप है ! ऐसा लग रहा था जैसे दोनो नव विवाहित हों और अपना हनीमून मना रहे हों ! दोनो को रोमॅन्स करते -२ आधा घंटा बीत गया तो मदनलाल उठा और लूँगी पहनने लगा ! जैसे ही वो जाने को हुआ कामया ने झट से उसका हाथ थाम लिया !
मदनलाल ::: क्या हुआ जान ? कुछ कहना है क्या ?
बहू ने बहुत ही प्यासी नज़रों से ससुर को देखा और कहा
कामया :: जानू प्लीज़ थोड़ा और रुकिये ना !
मदनलाल ने बड़े लाड़ से बहूरानी की आँखों मे देखा और कहा
मदनलाल ::: क्या बात है डार्लिंग आज बड़ी एमोशनल लग रही हो ?
कामया ने उसकी ओर प्यार भरी दृष्टि डाली और बोली
कामया ::: वो कल आ रहे हैं फिर पता नही पंद्रह दिन मौका मिले ना मिले प्लीज़ एक बार और करिए ना ! बहू की बात सुनकर मदनलाल भी भावुक हो गया ! कामया से विरह की बात सुनकर ही उसका सीना भारी हो गया ,वो वापस आकर बिस्तर मे बैठ गया ! कामया भी किनारे खिसक आई और उसकी पीठ सहलाने लगी !
मदनलाल :: जान हमारी भी इच्छा है क़ि तुम्हे और चोदे किंतु शांति की कहीं नींद ना खुल जाए इस लिए ज़रा जल्दी जाने की सोच रहे थे !
कामया :: तो जल्दी से कर दीजिए ना ! कामया ने फ़ौरन बोल दिया !
मदनलाल :: जानेमन हम कोई पच्चीस साल के लड़के नही हैं क़ि हमारा तुरंत खड़ा हो जाए ? तुम्हे कुछ करना होगा !
कामया :::: बोलिए ना हमे क्या करना है हम ज़रूर करेंगे !
मदनलाल :: करना क्या बस इसे खड़ा करना है ! लो खेलो इससे ! जितना दिल से खेलोगी उतना ही ये जल्दी तैयार होगा !
मदनलाल की बातें सुन कामया ने तुरंत उसका लॅंड पकड़ लिया और मसलने लगी ! मदनलाल धीरे से लेट गया जिससे बहूरानी अच्छे से अपना काम कर सके ! कामया के हाथों मे आते ही लॅंड मे फिर से जान आने लगी उसका आकर धीरे धीरे बढ़ने लगा ! ज्यों ज्यों लिंगराज का साइज़ बढ़ रहा था बहू और कौतूहल से उसको प्यार कर रही थी ! पाँच मिनिट मे ही मदनलाल के पप्पू ने अपना सिर उठा दिया लेकिन उसमे पहले जैसी कठोरता नही थी ! मौके का सही फ़ायदा उठाते हुए मदनलाल ने कहा ---
मदनलाल :: जान ये थोड़ा और ट्रीटमेंट माँग रहा है ! ज़रा इसको मुँह मे लेकर स्टीम दो उससे जल्दी तैयार हो जाएगा !
कामया :: अच्छा हम आपकी चालाकी समझ गये चुसवाना चाहते हो इसलिए बहाना कर रहे हो !लेकिन हम नहीं चूसंगे हम ने आप से पहले ही कह दिया था क़ि जब तक हम प्रेगञेन्ट नहीं हो जाएँगे हम इसको मुँह मे नही लेंगे भूल गये क्या ?
मदनलाल :: हमे सब याद है लेकिन आप भूल रहीं हैं ! आपने कहा था क़ि इसका पानी नही पिएँगे ये नही कहा था क़ि चूसेंगे नही !
कामया ::: वो सब एक ही तो बात है ! कहते हुए कामया ने लॅंड को ज़ोर से मसक दिया ! मदनलाल के मुख से दर्द भरी सिसकारी निकल गयी !
मदनलाल :: एक बात थोड़ी है ! चूसोगी तो तुम इसको तैयार करने के लिए बाकी पानी तो हम अंदर ही गिराएँगे ! चलो चूस लो फिर पता नही कब चूसने को मिले !
बहू भी लॅंड चूसना चाहती थी किंतु ससुर को चिडाने के लिए ही कह रही थी लेकिन जैसे ही मदनलाल ने कहा की पता नही फिर कब मौका मिलेगा वो चौंक गई और तुरंत ही अपने फ़ेवरेट डेज़र्ट को मुँह मे भर लिया !
बहू के मुँह मे लॅंड जाते ही मदनलाल गनगना गया उसके मुँह से सिसकारियाँ निकालने लगी जो कामया को और होर्नि बना रही थी ! कामया भी पूरी तरह वाइल्ड हो गई वो ससुर के लॅंड को जितना हो सके अंदर तक निगलने लगी बीच - २ मे लॅंड मे दाँत भी गढ़ा देती ! अब मदनलाल के लिए अपने को संभालना मुश्किल हो गया ! पहले वाली बात होती तो वो बहू को अपना पानी पिला देता लेकिन अब तो पानी किसी खाश जगह ही डालना था इसलिए मदनलाल ने कामया को नीचे पटका और उस पर सवार हो गया ! उसने बहू की गोरी मांसल जांघों को चूमा फिर उन्हे उठाकर कंधे मे रख लिया ! टाँग कंधे मे आते ही कामया की कमर बिस्तर से छह इंच उठ गई और उसकी दुकान बाहर को निकल आई ! मदनलाल ने अपना कोबरा बहू की छेदे मे रखा और उसे बिल मे सरका दिया ! दो धक्के मे उसने पूरा लॅंड अंदर पेल दिया ! कामया बस आह उई ही करती रह गई ! मदनलाल ने अब लंबे लंबे शॉट मारना शुरू कर दिया ! हर धक्के के साथ कामया का नशा बढ़ता ही जा रहा था !पूरे कमरे मे उसकी सिसकारी गूँज रही थी कभी कभी वो ज़ोर से चीख पढ़ती ! चुत पहले से गीली पढ़ी थी इसलिए लॅंड सटासॅट अंदर जा रहा था ! मदनलाल ने अब तैश मे आकर तगड़े झटके मारने शुरू कर दिए जिस जिससे कमरे मे थप थप की आवाज़ गूंजने लगी ! कमरे मे वीर्य की गंध भी आ रही थी ! सेकेंड राउंड अब अपने पूरे चरम पर था ! दोनो खिलाड़ी एक दूसरे के स्टेमीना का टेस्ट ले रहे थे ! लेकिन इस टेस्ट मे मदनलाल को ही जितना था क्योंकि वो जानता था क़ि सेकेंड राउंड वो लंबा खींच सकता है जबकि बहू का सक्सेस्सिव ओर्गस्म जल्दी होगा ! और वही हुआ कामया अपनी गर्मी संभाल नही पाई और चीख मार कर झढ़ने लगी ! मदनलाल लंबी रेस के घोड़े की तरह दौड़ता रहा !
मदनलाल अब बीच - २ मे स्ट्रोक मारना बंद कर बहू के अंगों से खेलने लगता ताकि अपने आपको और देर तक बचा सके ! कामया को उसका ये प्यार भी अच्छा लग रहा था नीचे तो लॅंड अंदर तक धंसा पढ़ा ही था ! अचानक मदनलाल ने बहू से कहा --
मदनलाल :: जानू आओ अब तुम करो !
कामया :: हम करें मतलब ?
मदनलाल :: मतलब अब तुम उपर आ जाओ और खुद अपने से चोदो !
कामया :: धत ?? य्र काम हमारा नही है ! ये काम मर्दों का होता है !
मदनलाल :: जान आजकल सब चलता है ,वीडियो मे नही देखा कैसे उपर बैठ कर लड़कियाँ खुद करती हैं और कितना एंजाय करती हैं ! तुम भी एंजाय करो ! कम ऑन डार्लिंग टेक दा ड्राइविंग सीट !
कामया :: आपको किसने कह दिया क़ि लड़कियाँ उपर आकर एंजाय करती है ? कोई एंजाय वंजाय नही करती है
मदनलाल :: वीडियो मे तो दिखता है क़ि सब एंजाय करती हैं !
कामया :: वीडियो की छोड़ दीजिए वो तो पैसे के लिए करती है असल मे औरत मर्द के नीचे ही रहना पसंद करती हैं !
मदनलाल :: मतलब ?? जान कुछ क्लियर बताओ
कामया :: मतलब ये क़ि ""woman always like to feel being fucked by his man . she simply like to lie down under man and enjoy his efforts""
मदनलाल :: वॉव आइ नेवेर न्यू दिस सीक्रेट
कामया :: और आप करते समय हमारा बहुत ख्याल करते हैं अपना पूरा वजन अपने हाथों मे उठा लेते हैं! please feel free during banging me
मदनलाल ::: लेकिन जानू तुम पर वजन पड़ेगा ,तुम बहुत नाज़ुक हो एकदम फूल जैसी !!
कामया ::: dont worry about me . i love your weight . i love being crushed under you
मदनलाल :::ये तो और अच्छा है ! फिर तो मदनलाल ने अपना पूरा वजन अपनी फूल सी बहू के उपर डाल दिया और धकापेल धक्के लगाने लगा ! कमरे महा संग्राम छिड़ गया था जिसमे हर चोट के साथ बहू की चीखने की आवाज़ आती लेकिन ये चीख दर्द की नही बल्कि खुशियों की थी जिसे बहू ने अब जाना था ! मदनलाल ने अब जो चुदाई का नज़ारा पेश किया तो अपने झ़डनेसे पहले कामया को तीन बार झडा दिया ! दोनो चुदाई के बाद आधा घंटे तक एक दूसरे की बाँहों मे आराम करते रहे ! फिर मदनलाल उठा और अपने कमरे मे जाने लगा कामया नंगी ही उसे छोड़ने दरवाजे तक आई! इससे पहले क़ि मदनलाल चिटकनी खोलता वो ज़ोर से ससुर से लिपट गई और बाबूजी के होंठों को चूमने लगी !
पाँच मिनिट तक दोनो लिप लॉक मे रहे और एक दूसरे को स्मूच करते रहे जब स्मूचिंग छूटी तो मदनलाल ने कहा
मदनलाल :: जान मन भर गया की नही ?
कामया :: आपका भरा क़ि नही ? अगर नही भरा तो और कर लीजिए !
मदनलाल :: जानेमन मैं २८ साल का नही ५८ साल का हूँ अब दुबारा करने के लिए कम से कम दो घंटा चाहिए !
कामया ::: बाबूजी मम्मी पाँच बजे उठती है अगर आपका दिल करे तो सुबह चार बजे आ जाना और जल्दी से कर के चले जाना !
मदनलाल ने उसकी ओर देखा और चुपचाप बाहर निकल गया वो मन ही मन मे सोचने लगा "" हे भगवान इस जवान प्यासी लड़की के सामने टिक पाना अब इस उमर मे हमारे बस की बात नही है इस को तो अब दिन रात खूँटा चाहिए ""


FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--193

  FUN-MAZA-MASTI

   फागुन के दिन चार--193




 और कहाँ गयी ,…………………… रीत
 
जब यह कहानी बनारस से आजमगढ़ की ओर मुड़ी थी , आनंद ने गुड्डी के साथ विदा ली , उस समय किसी मेरे मित्र ने कहा , अब कहानी में कैसे रहेगी ,और तभी मैंने वायदा किया था , उनसे ज्यादा खुद से और रीत से ,जब तक यह कहानी चलेगी ,रीत उसमें रहेगी। और जब रीत नहीं रह पायेगी ,तो मैं इस कहानी के उड़ते ,बिखरे पन्नो को समेट कर , टाटा बाई बाई कर लूंगी।

लेकिन यह सवाल तो रहेगा ही , पाठकों को बताना ही पड़ेगा हुआ क्या रीत का ,

इतना तो हम सब को याद ही है की रीत -करन पर हजीरा में हुए हमले के बाद आई बी ने सारा प्रोग्राम चेंज कर दिया। उन्हें एक हेलीकाप्टर से बड़ौदा ले आया गया और उसके बाद ,वहां से एयरफोर्स के स्पेशल प्लेन से ,

फिर ,

बताती हूँ ,बताती हूँ।


करन को भी नहीं मालूम था प्लेन कहाँ लैंड करेगा , और शायद पायलट को भी नहीं। क्योंकि २-३ बार लास्ट मिनट इंस्ट्रक्शंस चेंज हुए। रीत तो खैर पूरी तरह डेज्ड थी।

८. ३० ,९. ०० बजे के आसपास , प्लेन पंजाब की किसी छोटी सी एयरफील्ड पर उतरा और वहां तुरंत उन लोगों को एक अम्बुलन्स में पीछे लिटा दिया गया और इंस्ट्रक्शन तेह की वो लेटे ही रहेंगे। एम्बुलेंस की सारी खिड़कियों पर काली स्क्रीन और मोटे परदे लगे थे। ड्राइवर ने भी रास्ते में उन लोगों से कोई बात नहीं की।

एक घंटे की ड्राइव के बाद गाडी खड़ी कर दी , और उतर कर चला गया।

कुछ देर बाद करन के फोन पर मेसेज आया की अब वो दोनों बाहर निकल सकते हैं।

ये एक फार्म हाउस था जिसके चारों ओर ऊँची ऊँची दीवारें थीं।

यह वह सेफ हाउस था जो अगले ४ महीने तक उन का घर रहा।


दोनों की प्लासिटक सर्जरी की गयी , रीत की थोड़ी कम , करन की थोड़ी ज्यादा।

रीत ने भूरे कांटैक्ट लेंस पहनने की प्रैक्टिस की।

और उस के साथ ही लैंग्वेज , लोकल कल्चर का कोर्स।

दोनों को पंजाब में लोकेट किया गया था , और ६ महीनो के अंदर रीत पक्की पंजाबी कुड़ी बन गयी।

नव रीत देवल।

और करन होगया शुभ करन।

दोनों को चाल ढाल ,बात करने का अंदाज सब कुछ बदलना पड़ा। रीत ने ५ किलो वजन भी बढ़ाया।


मोहाली के पास के एक कसबे में , जो उस फार्म हाउस से बहुत दूर नहीं था ,रीत ने कालेज में एडमिशन लिया।

करन को पास के एक बैकं में नौकरी मिली , लेकिन रीत के कालेज में उसने भी इवनिंग मैनेजमेंट कोर्स के लिए उसने एडमिशन लिया और इससे दोनों को मिलन का मौका मिलता था।

दोनों बनारस या पहले के किसी भी परिचित से बात नहीं कर सकते थे , हिंदी बोलने की मनाही थी।

आई बी के कई लोग उन दोनों पर नजर रखते थे , और इससे ज्यादा इस बात पे की उनपर कोई नजर तो नहीं रख रहा है।

एक साल के बाद ये मान लिया गया की उनका 'रिलोकेशन ' परफेक्ट होगया है। 

रीत : नव रीत देवल


आई बी वालों एक पक्की पर्सनैलिटी उसके लिए गढ़ दी थी , डॉक्युमेंट्स , बैकग्राउंड ,फिजकल अपीयरेंस ,

लेकिन मन में उमड़ती घुमड़ती यादों का क्या करे।

अक्सर वह हँसते हँसते उदास हो जाती थी , कोई लाख पूछे बोल भी नहीं सकती थी, अतीत की दरवाजे खिड़कियां तो छोड़िये , रोशनदान तक खोलना मुश्किल था।



अब वह पूरी तरह आई बी की हो चुकी थी ,और करन रॉ का।



गुड्डी की शादी में रीत नहीं आई।


गुड्डी को मालूम भी था वो नहीं आ पाएगी।

सुहाग के लाल जोड़े में सजी वो गुमसुम बैठी थी , और जब वह मंडप में जाने के लिए उठने ही वाली थी , किसी ने फोन पकड़ा दिया।


रीत का फोन ,

बहुत देर तक दोनों फोन पकड़े रहीं।

बातें कुछ भी नहीं हुईं।

लेकिन दोनों रोयीं बहुत। 
 
सुखिया सब संसार है , खाए और सोये।

दुखिया दास कबीर है ,जागे और रोये।
 
टुकड़े-टुकड़े हो बिखर चुकी मर्यादा
उसको दोनों ही पक्षों ने तोड़ा है
पाण्डव ने कुछ कम कौरव ने कुछ ज्यादा

यह रक्तपात अब कब समाप्त होना है
यह अजब युद्ध है नहीं किसी की भी जय
दोनों पक्षों को खोना ही खोना है

अन्धों से शोभित था युग का सिंहासन
दोनों ही पक्षों में विवेक ही हारा
दोनों ही पक्षों में जीता अन्धापन

भय का अन्धापन, ममता का अन्धापन
अधिकारों का अन्धापन जीत गया

जो कुछ सुन्दर था, शुभ था, कोमलतम था
वह हार गया....द्वापर युग बीत गया
 


 समाप्त




FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--192

  FUN-MAZA-MASTI

   फागुन के दिन चार--192


 गुड्डी


भाभी तभी आ पहुंची और पहुंचते ही मुझे डांट पड़ी और गुड्डी की तारीफ।

' किचेन में क्या कर रहे हो , डिस्टर्ब कर रहे होगे उसको ,तुम भी न '

उन्होंने ऊँगली से ही थोड़ी सी तहरी चखी और फिर गुड्डी की तारीफ पे तारीफ ,


फिर वो काम की बात पे आयीं। हम लोग खाना खा लें और जब जाने वाले हों तो उन्हें आवाज देके बुला ले। वो और भैया दोपहर को ही खायंगे।


मैं गुड्डी को घूर के देख रहां था और वो मुस्करा रही थी।

भाभी ऊपर गयीं और रंजी अंदर आई।
" आज चलो तुम महारानी की तरह बैठो , हम दोनों लोग तुम्हे सर्व करेंगे " और पकड़ कर जबरदस्ती गुड्डी को डाइनिंग टेबल पे बिठा दिया।

किचेन में घुसते ही उसने परेशान होके , फुसफुसा के पूछा ,

" कैसी है , कुछ दवा "

और बिना बोले मैंने स्मार्ट फोन से खींची उसकी फोटो रंजी के सामने रख दी।

रंजी चेहरा राख हो गया।

" डाक्टर को दिखाया था ,उसने चेक भी किया। बैंडेज टाइम पे लग गयी थी इसलिए , .... लेकिन अभी भी ,.... चलते हुए किसी हॉस्पिटल में दो इंजेक्शन लगवाने होंगे। दर्द उसको है। डाक्टर ने दायें हाथ से शाम तक कुछ भी करने से मना किया है। शायद हल्का सा स्कार रह जाए , लेकिन उसकी भी क्रीम लगाने से १०-१५ दिन में चला जाएगा। हिम्मत है उसमें। "

रंजी ने बिना बोले सर हिलाया , जैसे कह रही हो मुझसे कह रहे हो , तुमसे कम मैं नहीं जानती उसको।

बिना बोले हम दोनों ने टेबल लगाई।
और जैसे ही गुड्डी ने खाने के लिए हाथ बढ़ाया , रंजी ने झपट के उसे रोक दिया ,

" ये ६ फिट का मर्द तुझे दिया है तो क्या इसी लिए " और मुझे डाँट पड़ गयी
' चल अपने हाथ से खिला इसे '
और मैंने जैसे ही चम्मच उठायी , गुड्डी ने जिद्दी बच्चों की तरह दायें बाएं जोर जोर से सर हिलाया , नहीं नहीं की मुद्रा में और बोला उसके वकील रंजी ने।

तुझे इतना मालूम नहीं , तहरी चम्मच से नहीं हाथ से खायी जाती है , चल हाथ से खिला।

गरम बहुत हैं मैंने कहने की कोशिश की लेकिन उसके साथ ही रंजी ने हल भी बता दिया , अरे चल बनारस में बर्नाल लगवा दूंगीं।

और मैंने हाथ से जैसे खिलाया , गुड्डी रंजी दोनों ही मुस्कराने लगी , आज गुड्डी की ओर से सारे तीर रंजी चला रही थी।

" कोहबर में क्या चम्मच से खिलाओगे उसको , वहां तो आगे बढ़के , सास साली सलहज होंगी न यहाँ बिचारी अकेली है न। ये कत्तई अकेली नहीं है मैं हूँ न इसके साथ। "

रंजी और मैं दोनों माहौल को नार्मल बनाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन तूफान हम दोनों के मन से गुजर रहा था।


और कितना खतरा उठाया था गुड्डी ने , ये सिर्फ मैं जानता था।

अगर वह चाकू सिर्फ दो ढाई इंच और ,.... सीधे छाती में पैबस्त होता और फिर ,…सोचना भी असंभव था।

किस्मत थी की ग्लाक के रिक्वॉयल ने गुड्डी को तेजी से झटक दिया , फिर अँधेरा भी इतना ज्यादा था। असली बात थी , काशी के कोतवाल उसकी रक्षा कर रहे थे। और उसके बाद ,… कोई नर्व्स डैमेज्ड नहीं हुयी थी। लेकिन जो चोट थी दर्द भयानक हुआ होगा .



चल खुसरो घर आपने




किस्मत थी की ग्लाक के रिक्वॉयल ने गुड्डी को तेजी से झटक दिया , फिर अँधेरा भी इतना ज्यादा था। असली बात थी , काशी के कोतवाल उसकी रक्षा कर रहे थे। और उसके बाद ,… कोई नर्व्स डैमेज्ड नहीं हुयी थी। लेकिन जो चोट थी दर्द भयानक हुआ होगा .

गुड्डी ने इशारा किया और जल्दी जल्दी खिलाऊँ ,

मेरी उंगलिया उसके मुंह में थी की भाभी नीचे आ गयीं और उन्होंने देख लिया , मुस्कराहट आँचल में छिपाते गुड्डी से पुछा ,

' काटा की नहीं '

और जैसे अपनी होनेवाली जेठानी की आज्ञा मानना उसका परम धर्म हो , कचकचा के उसने मेरी उँगलियाँ काट लिया।

मैं चीखा।भाभी और रंजी जोर से हंस पड़े।

भाभी पूजा वाले कमरे में गयीं और वहीँ से मुझे और गुड्डी को बुला लिया।
सारे देवी देवताओं के सामने , वो खड़ी हो के पूजा कर रही थीं और मुझे और गुड्डी अपने बगल ठीक ऐसे खड़ा कर दिया , जैसे गाँठ जोड़ के खड़े हों।

हम लोगों से सर झुकवाया ,साथ साथ।
और पूजा की अलमारी से ही एक डिब्बा निकाला ,एक बड़ी पुरानी मटरमाला , खूब भारी। उसे अपने हाथ से उन्होंने गुड्डी को पहना दिया और सर पे सहलाते हुए बोला , ये इनकी दादी की निशानी है , जब मैं इस घर में आई थी तो मुझे मुंह दिखाई में दिया था। खूब खुश रहो। "

बाहर निकल के उन्होंने रंजी से पूछा , गाडी आई की नहीं , तो वो बोली

' कब की आ गयी और मैंने सारे सामान भी रख दिए "

चलने के पहले रंजी एक मेसज खोल कर बार बार देख रही थी ,मैंने और गुड्डी ने भी झाँक कर देखा।

वह गुड्डी के साथ ज्यादा देर नहीं रह पाएगी। एजेंसी का मेसज था , बनारस में दो दिन बाद ही उसे होटल ताज में रिपोर्ट करना था , जहाँ उसका बूट कैम्प था।

गुड्डी के पूछने के पहले ही वो बोल पड़ी
, 'लेकिन घबड़ाओ मत दो दिन तो अभी रहूंगी तुम्हारे साथ और उसके अलावा रंगपंचमी में भी , एक रात पहले ही आ जाउंगी।फिर रंगपंचमी का दिन रात , तेरे हवाले। '

करन का मेसेज भी जस्ट आया था उसके और रीत बारे में लेकिन मैंने सोचा बनारस पहुँच कर ही गुड्डी और दूबे भाभी दोनों को बताऊंगा। अभी मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी।

तब तक भाभी किचेन से निकल कर आयीं और हम लोग बाहर बरामदे में आ गए।
गुड्डी भाभी का पैर छूने के लिए झुकी लेकिन भाभी ने पकड़ के उठा लिया और अंकवार में भेंट लिया , खूब जोर से और उसके कान में बोली,

" बच्ची की तरह जा रही हो , दुल्हिन बन कर लौटोगी , और तब परछन कर उतारूंगी ".

पांच फूल लौंग भाभी ने गुड्डी के चारो ओर उतार कर के पीछे फ़ेंक दिए ,

मैंने गुड्डी का बायां हाथ पकड़ कर सम्हाल कर कार में बैठाया , और दूसरी ओर से रंजी। वो बीच में।


भाभी अशीष रही थीं ,

' कासी क कोतवाल , लहुराबीर वाले बीर बाबा , बड़ादेव क बड़देव बाबा , काली माई क चौरा क माई , रास्ते क देवता पित्तर , रच्छा करिहा इन लोगन क।

जब हम लोगों की टैक्सी मुड़ी , भाभी तब भी बरामदे में खड़ी अशीष रही थीं


और दो ढाई साल बाद ,....






.


.


रंजी



पैडर रोड के फ्लाईओवर से उतरते हुए , या बांद्रा सी लिंक से मुड़ने पर या फिर जब आप अँधेरी से इंटनेशनल एयर पोर्ट की ओर जाएंगे , तो बड़ी बड़ी होर्डिंग्स , खूब इल्युमिनिटेड , औरउनपर मशहूर , स्किनी जींस में लपटी दो लम्बी खूबसूरत टाँगे ,गाड़ियों की रफ्तार थोड़ी कम कर देती हैं।


जींन्स का नाम बताना तो गलत होगा , लेकिन उनके अंदर जो दिलफरेब टाँगे थी , वो रंजी की थीं।


और सिर्फ इन महंगी होर्डिंग्स पर ही नहीं , चमकते दमकते मॉल्स में उन जींस के जो स्टोर थे उनके बाहर भी , रंजी की आदमकद तस्वीर , खैर मकदम करती नजर आती थी। और इन टांगो पर चलकर रंजी काफी दूर चली आई थी।

लेकिन उन महंगे , स्किनी अल्ट्रा लो राइज जींस और टॉप के पीछे वही पारे की तरह चुलबुली , ताज़ी हवा की तरह , वही रंजी ही थी।

जिस जीन्स कंपनी के साथ उसने शुरुआत की थी , उसने तो बनारस की शूटिंग के बाद ही उसका कांट्रैक्ट एक साल के पक्का कर दिया। अप्रैल में उसकी एक और शूट कोडाइकनाल में हुयी। और फिर उसकी एक महीने की छुट्टी मिली , १२ मई से। और सारे मॉडलिंग विज्ञापन , २१ जून को लांच होना था। इसलिए जब वो गुड्डी की शादी में थी तो उसके ऐड्स , कहीं छपे नही थे।

लेकिन एक बार कैम्पेन लांच होने के बाद उसने मुड़ के नहीं देखा। १५ % मार्केट पेन्ट्रेशन और २७ % विजिबिलिटी , के बाद छ महीने के अंदर ही कांट्रैक्ट का पीरियड बढ़ के दो साल हो गया और शर्तें भी कुछ मुलायम हो गयीं।


और फिर वो मुम्बई चली आई।


अपरैल के साथ कॉस्मेटिक्स ,हेयर केयर ऐसे सिग्मेंट में भी उसने एंट्री ले ली। एक मल्टीनेशनल कम्पनी ने उससे एक्सक्ल्यसिव कांट्रेक्ट नेल्स और लिपस्टिक के लिए कर लिया।

लेकिन फैशन इंडस्ट्री बहुत ही क्लोज सर्किल है और यहाँ घुसपैठ करना मुश्किल भी है और समझौते की मांग करता है , जिसे करने से रंजी को मंजूर नहीं था , इसलिए स्ट्रगलकुछ ज्यादा पड़ा।


लेकिन क्योंकि शुरुआत उसने एक मल्टीनेशनल कम्पनी के ब्रांड के साथ की थी इसका उसे फायदा भी हुआ। और सबसे बड़ी उसकी किस्मत चमकी , जब उसे फ्लोरेंस फैशन वीक में एक ब्रेक मिल गया। लेकिन वो बात कुछ आगे।

मुम्बई में लोखंडवाला में एक उसने दो बी एच के फ्लैट लिया था और वहां उसके साथ रहने के लिए एक कोई आगया।

गलत मत समझिए , वो मीनल थी , जिसे थियेटर का भी शौक था और फाइन आर्ट्स से तो उसने पढ़ाई ही की थी। और अब बड़ौदा से मुम्बई पहुँच गयी थी।

थोड़ा बहुत पेंटिंग भी वो कर लेती थी और वहीँ से वो शौक लगा रंजी को भी। कुछ ही दिनों में एक कमरा स्टूडियो में तब्दील हो गया और बेड रूम मीनल , रंजी कॉमन होगया।

और महीने में १०-१२ दिन जब रंजी फोटो शूट से फ्री होती थी तो वो मीनल के साथ कभी पृथ्वी थियेटर, कभी एन सीपीए तो कभी जहांगीर आर्ट गैलरी में।

और रंजी जो कभी सोच भी नहीं सकती थी वो एकदिन हो गया।

उसकी भी ८ पेंटिंग कुछ और आर्टिस्ट्स के साथ जहांगीर आर्ट गैलरी में लगी।

उसकी इंक और पेन स्केचेज जो कुछ तो बॉम्बे की स्ट्रीट लाइफ के बारे में थे ,कुछ बेहरामपाड़ा की , बांद्रा के पास की एक बस्ती जहाँ मीनल कुछ एन जी ओ , मज़लिस और आगाज के साथ काम करती थी।

और एक इतालवी दर्शक को वो पेंटिंग्स बहुत पसंद आ गयीं और फिर वो और रंजी बाद में समोवार में बैठ कर गप्प मारते रहे ,अचानक उसने पूछाः की आप माडिलिंग में क्यों नहीं काम करती , लेकिन रंजी फिस्स से मुस्करा के रह दी। उसे विक्टोरियन गोथिक में भी बहुत दिलचस्पी थी और रंजी को भी हेरिटेज वाक में और रंजी ने उसे न सिर्फ साउथ बॉम्बे में घुमाया बल्कि उसे राजाबाई टावर के ऊपर तक ले गयी और दोनों ने सेल्फी भी खींची। पर रास्ते में एक बुक शाप में एक फॉरेन मैगजीन में लोरियल के विज्ञापन में उसे रंजी दिख गयी , वो कुछ बोला नहीं बस मुस्करा दिया।


और अपने पत्ते उसने टावर के उपर खोले ,वो फ्लोरेंस और मिलान के फैशन शो से जुड़ा हुआ था न उसने सिर्फ रंजी को इन्वाइट किया , बल्कि १५ दिन बाद एक फैशन कैटलॉग में रंजी की फोटो आगयी और साथ ही १२ दिन का एक ऑफर भी टिकट के साथ दोनों फैशन फेस्टिवल के लिए मिल गया।

और उसके बाद रंजी ने मुड के नहीं देखा। १२ दिन के बाद फिर वहां से जेनेवा, और पेरिस, जहाँ वह जिस कॉस्मेटिक कंपनी के लिए काम करती थी उसने एक शूट के लिए ऑफर दिया था। और वहीँ एक फेमस फैशन डिजाइनर जो बहुत रिक्लयूज थे उनसे मुलाकात हो गयी और अपनी एक लाइन के लिए उन्होंने चुन लिया।


फिर क्या था जैसे कहते हैं आग लगा दी बस वही।

उसी के आस पास उस ने स्पोर्ट्स वियर में भी काम करना शुरू कर दिया था। वह खुद एथलेटिक थी और पिछले मुम्बई मैराथन में उसने और मीनल ने हाफ मैराथन में बहुत अच्छी टाइमिंग की थी और अबकी दोनों फुल मैराथन की तैयारी कर रही थीं और हाफ मैराथन में ही उसे दो स्पोर्ट्स कम्पनीज ने स्पांसर कर दिया था। \\

और इन्ही में से एक के कॉन्टैक्ट्स से पेरिस में वो स्पोर्ट्स इलेस्ट्रेटेड के शूट में भी शामिल हुयी। आने वाले ऐनुअल इशू में वो कवर पर तो नहीं थी न लेकिन मैगजीन में उसे जगह मिल गयी थी।

इनर वियर में भी वो सिर्फ टीन सिग्मेंट में काम करती थी , और वो भी कुछ हाई एंड ब्रांड्स के साथ , जो एक्सक्ल्यूिसव शो रूम में थे।


टीवी पर भी उस के कॉस्मेटिक के ऐड्स ज्यादार इंग्लिश वाले चॅनेल्स पर वो भी लाइफस्टाइल वालों पर आते थे।


इस एक्स्क्लूसिविटी का उसे फायदा था , वो शहर में आराम से घूम फिर सकती थी और उसे पहचानने वाले कम थे। हाई एंड के चक्कर में नेट्वर्किंग,जो मॉडलिंग की दुनिया में बहुत जरूरी है ,भी उसकी बहुत लिमिटेड थी और वो भी सोबो या बांद्रा तक। और हाई एंड होने के कारण कम काम में भी उसे काफी मिल जाता था।


मुम्बई में भी कोई भी आये स्ट्रगल बहुत होती है लेकिन उसमें उसे दो लोगों से बहुत हेल्प मिली , एक तो एन पी ( नो प्राबलम सर ) से जिसने उसके मुम्बई पहुंचते ही लोकल गार्जियन बनने का जिम्मा ले लिया था , मकान से लेकर हर मामले में और दूसरे ए टी एस के चीफ जो अब प्रमोट होकर एक गलियारे में कर दिए गए थे डी जी हाउसिंग के तौर पर लेकिन मुम्बई पुलिस के हर सेक्शन में उनकी अभी भी बहोत इज्जत थी।


जैसे फैंटम का एक स्वस्तिक का निशान जहाँ लगा होता था वो फैंटम के प्रोटेक्शन में होता था और रंजी के दरवाजे पर तो दो दो स्वस्तिक के निशान लगे थे। उस के साथ महीने में एक एक बार डिनर के लिए रंजी और मीनल का वहां जाना कम्पलसरी था। उसके साथ मुम्बई छोड़ते समय रंजी दोनों लोगों को बता के ही जाती थी।

मीनल और रंजी दोनों , अगर रंजी का शूट नहीं है तो वो मीनल के साथ होगी किसी प्ले का रिहर्सल वाच करती और अगर मीनल फ्री होगी तो रंजी के शूट पर होगी।


लेकिन रंजी की अभी मुम्बई की बारिश से दोस्ती नहीं हो पायी है। और उस समय काम भी कुछ ज्यादा नहीं होता वहां , इसलिए १०-१२ वो बाहर घूमने निकल जाती है और २० -२५ दिन गुड्डी के पास। अगर आनंद बाबू कहीं बिजी भी होते तो दोनों कम से कम १५ दिन के लिए गुड्डी के गाँव , जहाँ न उसके एइड्स दिखते न होर्डिंग और वो सिर्फ गुड्डी बिन्नो की ननद रहती। झूला , अमराई ,कजरी , मेंहदी और ,छेड़छाड़ और ,… फुल टाइम मस्ती।



गुड्डी और आनंद बाबू





आनंद बाबू का प्रमोशन हो गया था कुछ महीने पहले और वो वहीँ बनारस में सिटी एस पी बन गए थे। वह दनदनाते हुए अपनी कप्तानी कर रहे थे। जनता में उनकी इज्जत थी और गुंडों में दहशत।

ढाई साल से बम क्या कोई पटाखा भी नहीं फूटा था शहर में। वह आफिस में कम नजर आते थे और सड़को पर ज्यादा. बात कम करते थे और मारते थे ज्यादा। शहर में सारे बदमाशों की सिट्टी पिट्टी गुम थी।

लेकिन आनंद बाबू की भी सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती थी दो जगह , एक तो औरंगाबाद के एक मकान में और दूसरे बी एच यू के महिला कालेज में। महिला कालेज में गुड्डी पढ़ती थी अब , और वहां की उसकी सारी सहेलियों के आगे उनकी जुबान बंद हो जाती थी और उससे भी बुरी हालत थी उनकी ससुराल की। औरंगाबाद में सास और दो छोटी सालियां छुटकी और मझली ( जो अब इत्ती छोटी भी नहीं थी ) . शुरू में कुछ दिन तो शादी के बाद जब तक आनंद की ट्रेनिंग चली , वो कई महीने वहीँ रहे , लेकिन पोस्टिंग के बाद बड़ी मुश्किल से उन्हें इजाजत मिली सरकारी बंगले में शिफ्ट होने की , इस शर्त के साथ वो हर वीकेंड , और हर तीज त्यौहार वहीँ मनायेगें।

वैसे भी छुटकी मझली का स्कूल उन के घर के बगल में ही था तो कई बार वो सीधे स्कूल से छोटे कप्तान साहब के घर में ,

और वैसे भी औरंगाबाद वाले घर के अलावा उस घर पे भी पूरा हुक्म उनके सास का ही चलता था। और छोटे कप्तान साहब को भी आराम था वो 'आज खाने में क्या बनेगा ' और ' घर में कोई सब्जी नहीं है ' की चिखचीख से बचे रहते थे और अपना पूरा समय दुष्ट दमन के कार्यक्रम में देते थे।

बड़े माफिया टाइप गुंडे तो उन के आने के २-४ महीने में शहर क्या प्रदेश छोड़ कर चले गए थे जब उन्होंने एक हफ्ते के अंदर ,पांच माफिया ह्रदय सम्राट टाइप लोगों की इहलीला समाप्त कर दी ,और उस आपरेशन में सिर्फ सिद्द्की ही उनका राजदार था , और वो उन्होंने तब किया जब प्रदेश के मुख्यमंत्री ,१२ दिन के विदेश के दौरे पर गए थे और जिले के प्रभारी मंत्री अपनी पत्नी के साथ चारो धाम की यात्रा पर निकल गए थे , क्योंकि किसी नर्स के साथ उनका एमएमस और सीडी बनने की खबर अ रही थी और उसको विपक्ष अगले सत्र में बड़े धूमधाम के साथ सदन के पटल पर पेश करना चाहता था। लेकिन आनंद बाबू ने न सिर्फ वह सीडी जब्त कर उनको अपने दूत के द्वारा प्रेषित कर दी , बल्कि एम एम एस और सीडी को समूल नष्ट कर दिया और बनाने वाली की भी चार पांच एम एम एस पकड़ ली।


पिछले गणत्रंत्र दिवस पर उन्हें राष्ट्रपति का पुलिस मेडल भी मिला।

लेकिन यह बहुत कुछ उनके उस कंट्रीब्यूशन का नतीजा था जिसमें आतकंवादी हमले की बखिया उधेड़ी गयी थी। वह एक कवर्ट आपरेशन था इसलिए इसके लिए तो उन्हें अवार्ड मिल नहीं सकता था , हाँ होम मिनिस्ट्री की रिकमंडेशन बहुत स्ट्रांग थी इसलिए जो पुलिस मेडल दस बारह साल के बाद मिलता वो इनको एक संक्षिप्त सेवा के बाद ही मिलगया।

लेकिन होम मिनिस्ट्री ने एक काम किया जो ज्यादा अच्छा था , उन्हें सपत्नीक , अक्टूबर में तीन हफ्ते की ट्रेनिंग के लिए स्विट्जलैंड भेज दिया गया। जो हनीमून ज्यादा था।

 हां तो जहाँ कहानी छोड़ी थी उसके बाद के महत्वपपूर्ण पायदान , … रंगपंचमी में वो बनारस नहीं रह पाये क्योंकि उस के पहले वाली शाम को अचानक उन्हें दिल्ली बुला लिया गया। लेकिन उसके पहले दो दिन पूरे उन्होंने रंजी और गुड्डी के साथ बनारस में बिताये। हाँ रंगपंचमी की मस्ती बनारस में कुछ कम नहीं हुयी क्योंकि रंजी थी न वहां , रंगपंचमी केएक दिन पहले वो आगयी थी गुड्डी के घर और उस रात , रंगपंचमी के दिन।

भाभी का फरमान आया और वो अप्रैल में फिर पेश हुए बनारस में , और बनारसी स्टाइल में इंगेजमेंट भी हुआ। दो दिन के लिए आये लेकिन गए साढ़े तीन दिन बाद।

१७ मई को वो फील्ड ट्रेनिंग के लिए बनारस आ गए और फिर दो दिन बाद वो अपने शहर और गुड्डी अपने गाँव , शादी की ढेर सारी रस्में , टिपकल देहात गाँव की लेकिन भाभी का हुकुम तो , बारात २५ मई की सुबह ही रवाना हो गयी , और दोपहर का खाना सीधे गुड्डी के गाँव में , बारात वहीँ रुकी आम के बड़े और गझिन बाग़ में। लेकिन जैसा की पहले कहानी में बार बार शीला भाभी ने , गुड्डी ने संकेत दिया था की आनंद जी के मायकेवालियों के साथ क्या होनेवाला है , कोहबर में क्या होनेवाला है ,वैसा कुछ भी नहीं हुआ।






उससे बहुत बहुत ज्यादा हुआ , लेकिन सबने खुल कर मजा लिया।


२७ मई को बारात लौटी और रात को , जो होता है वो सब हुआ।


जून के खत्म होने के पहले गुड्डी अपने मायके ,उसका कालेज खुलने वाला था ,और आनदं जी की फील्ड ट्रेनिंग इसलिए वो भी बनारस।


देश की आबादी ,खासतौर से बनारस की वैसे ही पहले से काफी बढ़ी हुयी है , इसलिए न तो उसकी जल्दी गुड्डी को थी और न आनंद को। अभी पांच साल का इंटरवल प्लान हुआ था उसके बाद ही उसपर कोई फाइनल डिसीजन होता। बनारस में ही पोस्टिंग होने से गुड्डी की पढ़ाई भी डिस्टर्ब नही हुयी न आनंद से दूर रहना पड़ा। और अगर कभी वो दो तीन घंटे के लिए भी कभी अपने मायके गयी या किसी सहेली के यहाँ ,तीन घंटा पूरा होने के पहले आनंद वहां हाजिर। गुड्डी को देख कर लोग कहते ,पतंग आ गयी है , बस डोर पीछे पीछे आती होगी।

रंजी का फोन भी दूसरे तीसरे जरूर आता था। और साल में २०-२५ दिन के लिए वो गुड्डी के पास ही ,।

सब लोग खुश थे सिवाय गुंडों के। 


दास्तान तीन शहरों की


मुम्बई ,




ये कहानी जितनी इस कहानी के पात्रों की है उससे कहीं ज्यादा उन शहरों की भी है जिनके तन आतंक के घाव से छलनी हो चुके थे , लोग सुबह निकलते थे पर शाम की कोई गारंटी नहीं थी। कहीं भी ,… कुछ भी ,… तो चलिए शुरू करते हैं इस कहानी की आखिरी लड़ाई जहाँ हुयी , मुम्बई से।

मुम्बई , बम्बई या बॉम्बे। नाम शायद १९९६ में बदला लेकिन यह वह दशक था , जिसने बहुत कुछ बदल कर रख दिया , और सबसे बढ़ कर मुम्बई का एक कॉस्मोपॉलिटन चरित्र।

लेकिन चलिए शुरू से , मुम्बई या बंबई कोई बहुत पुराना शहर नहीं। जेराल्ड आँजियर जिन्हे सच्चे मायनों में मुम्बई के फाउंडर का नाम दिया जा सकता है जब यहाँ के गवर्नर बने (१६७२ -१६७५ ) तो यहाँ की अाबादी मात्र १०,००० थी जितने लोग आज शायद चार पांच लोकल ट्रेनों में समा जाते हों।

आँजियर की मृत्य के समय तक यह बढकर ८०,००० यानी आठ गुना बढ़ गयी। यहाँ से होने आमदनी उनके पहले २,८२३ ब्रिटिश पाउंड थी जो बढ़कर ९,२५४ पाउंड हो गयी। जादू जो उन्होंने चलाया वो था धार्मिक सहिष्णुता , और अच्छे प्रशासन की गारंटी। उन्होंने दावत दिया हर जाती ,धर्म के लोगों को बॉम्बे में आकर बसने के लिए और उन्हें बाकायदा गारंटी दी गयी को वह अपना रीत रिवाज , धर्म ,तौर तरीके फॉलो कर सकते हैं और इन नए बसने वालों पर एक लम्बे अरसे तक कोई टैक्स नहीं लगेगा।

फिर बॉम्बे ( उस समय के लिए बॉम्बे ही कहना ठीक होगा ) ने फिर मुड़ कर नहीं देखा।

सिर्फ हिन्दुस्तान ही नहीं हिन्दुस्तान से बाहर से आके बसे , कोई भी ऐसी जाति धर्म के लोग नहीं होंगे जिन्होंने इसको बढ़ाने में काम नहीं किया। बगदादी यहूदी , ( डेविड सासून ,जैकब सासून - सासून डॉक्स ,सासून लाइब्रेरी ,काला घोडा ),पारसी , ( जमशेद जी टाटा , सर जमशेद जी जीजाभाय ,रेडिमनी अनगिनत नाम है ), गुजराती व्यापारी ( प्रेमचंद रायचंद - राजबाई टावर , बॉम्बे शता एक्सचेंज के फाउंडर ) आर्मेनियन , दाउदी बोहरा, … और उसके बाद १९ शताब्दी के उत्तरार्ध में जब सर बार्टल फ्रेयरे ने फोर्ट की दीवालें तुड़वा दीं( १८६२) , तो एक बार फिर तेजी से उसका विकास हुआ। अगर आप कभी सी इस टी एम स्टेशन जो यूनेस्को का वर्ड हेरिटेज भी है , को देखें तो भित्ति मूर्तियों में गढ़ित ,तरह तरह की पगड़ियाँ इस बात का अहसास दिलातीं है की कितने तरह के लोग यहाँ आकर काम करते थे।

कांग्रेस,क्रिकेट ,सिनेमा , टेक्सटाइल्स इंडस्ट्री , ये सब १९वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में बॉम्बे से ही शुरू हुए। और उस का एक बहुत बड़ा कारण कॉस्मोपॉलिटन कल्चर है।

लेकिन शताब्दी का आखिरी दशक , हमेशा घातक रहा है मुंबई के लिए। उन्नीसवीं शताब्दी के आखिरी दशक में दंगे हुए १८९२ में और उसके कुछ दिन बाद १८९६ में प्लेग जिसमें हजारो लोग मरे. १८९१ में बॉम्बे की आबादी, ८,२०,००० थी और १९०१ में यह घटकर ,७,८०,००० रह गयी। यह पहला दशक था जब निगेटिव ग्रोथ हुयी। १९९२-९३ में दंगों की दहशत से मुम्बई जूझता रहा और इन दंगों में करीब २६५० लोग मरे ,और मुम्बई अभी उसके घावों से उबरी भी नहीं थी की बम्ब ब्लास्ट्स ने पूरे शहर को अपनी चपेट में ले लिया। १३ बम के धमाके हुए १२ मार्च को जिसमें ३५० लोग मरे और हजार से ऊपर घायल हुए। और उसके बाद तो जैसे ग्रह लग गया हो , २००६ ,२००८।



अब बम्बई से बम का भय जाता रहा लेकिन इस लिए हो पाया की हर आम आदमी भी इस लड़ाई में जुड़ा।


ये लड़ाई दिखती नहीं जैसे करन और रीत ने जिस जंग में हिस्सा लिया , उसके बारे में मीडया को कानोकान खबर नहीं हुयी लेकिन एक बड़ा हमला मुम्बई पे न सिर्फ नाकाम रहा बल्कि कितने स्लीपर सेल्स का पर्दाफाश हुआ।

एंटी टेरर जंग की सक्सेस इसी बात में है कित्ते टेरर आपरेशन लांच होने के बाद खत्म कर दिए गए या लांच नहीं हो पाये। और कुछ दिन बाद उन टेरर आपरेशन की कास्ट इतनी ज्यादा हो जाती है की वो काउंटर प्रोडक्टिव हो जाते हैं। और अगर एंटी टेरर आपरेशन के साथ जहाँ से वो मुहीम चल रही है वहां घुस के मार के कोई आ जाए , और जो उनको अंदरुनी सपोर्ट मिलता है वो खत्म हो जाए तो बस , और मुंबई बस अब इसी दौर से गुजर रहा है और ये दौर खूब लम्बा चले, बस।  


बड़ौदा


बड़ौदा ने आतंकी हमलों की मार नही झेली लेकिन दंगो के घाव उसके भी जिस्म पर हैं। और ये बात नहीं है की वहां हमले की कोशिश नहीं हुयी। जैसे इस कहानी में है बड़ौदा एक अट्रैक्टिव टारगेट है , एक बड़ा इंडस्ट्रयल सेंटर है ,पेट्रोकेमिकल हब होने के साथ ही बड़ी कंपनियों का सेंटर है , लेकिन जब गुजरात में कई बार कई जगहों पर हमले हुए तो भी बड़ौदा बचा रहा और अभी भी ,… और ये सिक्योरटी एजेंसीज की सतर्कता के साथ वहां के लोगों की भी क्रेडिट है। और बड़ौदा की एक सांस्कृतिक नगरी के रूप में भी पहचान है। जहाँ नृत्य , कला , नाट्य , मूर्ती कला , सब कुछ , …रवि वर्मा ने वहीँ अपनी अमर कृत्यों का सृजन किया वहीँ आज कल के ज़माने में गुलाम शेख ने इस शहर का नाम पेंटिंग से जोड़े रखा। मीनल इसी मिजाज की प्रतिनिधि है जिसके नाटकों ने अभी मुंबई में धूम मचा रखी है.


बनारस







बम की आवाज अभी भी बनारस में गूंजती , लेकिन भगवान आशुतोष के जयकारे के रूप में।

बम बम भोले के रूप में।

लेकिन इस शताब्दी के दशक में जो कुछ हुआ , संकटमोचन , शिवगंगा ट्रेन , कैंट स्टेशन , शीतला घाट ,


बहुत लोगों ने बहुत कुछ खोया , और रीत और और करन ऐसे कितने थे , जिनके हाथ में सिर्फ मुट्ठी भर यादें बची थीं , लेकिन फिर एक दूसरे का हाथ पकड़ वो फिर खड़े हुए , उठे और चलना शुरू कर दिया।


ये वो शहर भी है जो गंगा जमनी तहजीब का नमूना है जहाँ सोनारपुरा के बुनकर की बनायीं साड़ियों के बिना किसी दुल्हन की शादी पूरी नहीं होती , जहाँ की हवा में मंदिर के सामने बजाई गयी बिस्मिलाह खां की शहनाई अभी भी घुली हुयी है।

यहाँ शताब्दियों को तो छोड़िये , सहस्त्राब्दियाँ साथ गुजर बसर करती हैं।

पिछले सालों से फिर वो अपन चैन कायम है , बस हम मनाते है की फिर किसी रीत , फिर किसी करन के सपने ऐसे लहूलुहान और चोटिल न हों।



और अंत में उस शहर के नाम जहाँ से ये दास्ताँ शुरू हुयी , जहाँ से तमाम पोशीदा राज खुले और जिसकी मस्ती से हर कोई सराबोर होना चाहता है ,


और अंत में उस शहर के नाम जहाँ से ये दास्ताँ शुरू हुयी , जहाँ से तमाम पोशीदा राज खुले और जिसकी मस्ती से हर कोई सराबोर होना चाहता है ,

एक कविता -

















इस शहर में वसंत
अचानक आता है
और जब आता है तो मैंने देखा है
लहरतारा या मडुवाडीह की तरफ़ से
उठता है धूल का एक बवंडर
और इस महान पुराने शहर की जीभ
किरकिराने लगती है

जो है वह सुगबुगाता है
जो नहीं है वह फेंकने लगता है पचखियाँ
आदमी दशाश्*वमेध पर जाता है
और पाता है घाट का आखिरी पत्*थर
कुछ और मुलायम हो गया है
सीढि़यों पर बैठे बंदरों की आँखों में
एक अजीब सी नमी है
और एक अजीब सी चमक से भर उठा है
भिखारियों के कटरों का निचाट खालीपन

तुमने कभी देखा है
खाली कटोरों में वसंत का उतरना!
यह शहर इसी तरह खुलता है
इसी तरह भरता
और खाली होता है यह शहर
इसी तरह रोज़ रोज़ एक अनंत शव
ले जाते हैं कंधे
अँधेरी गली से
चमकती हुई गंगा की तरफ़

इस शहर में धूल
धीरे-धीरे उड़ती है
धीरे-धीरे चलते हैं लोग
धीरे-धीरे बजते हैं घनटे
शाम धीरे-धीरे होती है

यह धीरे-धीरे होना
धीरे-धीरे होने की सामूहिक लय
दृढ़ता से बाँधे है समूचे शहर को
इस तरह कि कुछ भी गिरता नहीं है
कि हिलता नहीं है कुछ भी
कि जो चीज़ जहाँ थी
वहीं पर रखी है
कि गंगा वहीं है
कि वहीं पर बँधी है नाँव
कि वहीं पर रखी है तुलसीदास की खड़ाऊँ
सैकड़ों बरस से

कभी सई-साँझ
बिना किसी सूचना के
घुस जाओ इस शहर में
कभी आरती के आलोक में
इसे अचानक देखो
अद्भुत है इसकी बनावट
यह आधा जल में है
आधा मंत्र में
आधा फूल में है

आधा शव में
आधा नींद में है
आधा शंख में
अगर ध्*यान से देखो
तो यह आधा है
और आधा नहीं भी है

जो है वह खड़ा है
बिना किसी स्*थंभ के
जो नहीं है उसे थामें है
राख और रोशनी के ऊँचे ऊँचे स्*थंभ (स्तम्भ)
आग के स्तम्भ
और पानी के स्तम्भ
धुऍं के
खुशबू के
आदमी के उठे हुए हाथों के स्तम्भ

किसी अलक्षित सूर्य को
देता हुआ अर्घ्*य
शताब्दियों से इसी तरह
गंगा के जल में
अपनी एक टाँग पर खड़ा है यह शहर
अपनी दूसरी टाँग से
बिलकुल बेखबर!
 
एक शहर और ,…





इन तीन शहरों के अलावा भी एक और शहर का जिक्र इस कहानी में बार बार आया है ,आड़े तिरछे ही सही।

वो आनंद बाबू का शहर , जहाँ बैठ कर दूर लड़ रही , रीत को , एन पी को और तमाम लोगो को आंनद ने न सिर्फ हौसला दिया , बल्कि उस उलझी हुयी गुत्थी को सुलझाया और रास्ता सुझाया ,उस जंगली जानवर के दांत तोड़ने का।

पूर्वांचल के अनेक शहरों की तरह जिसका दर्द ,दुःख समझने की न तो किसी को फुरसत है , न ,…

एक दो सुधी पाठको को छोड़ कर ( जो इस कहानी का अभिन्न अंग रहे ) शायद कम को अंदाज लगा हो नाम का , लेकिन अब वो भी चाहता है उस का शुमार हो ही जाय।


यह वह शहर है जिसने बम के धमाके तो नहीं झेले लेकिन उस की आग ने उसका मुंह झुलसाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।


हर मिडिया कर्मी के लिए चीजों को सफेद स्याह ( स्याह ज्यादा ) और बीच के ग्रे के शेड्स को भूलाकर देखना और दिखाना , ( और टी आर पी ) बटोरना ,बस रिमोट की लड़ाई में सबसे सुलभ होता है।


एक छोटे से स्टेशन के अंत में लगे नाम पट्ट के साथ खड़े होकर ,… मैं,.... बोल रही हूँ। और यह शहर अब आतंकगढ़ के नाम से जाना जाता है , आइये मिलते हैं यहाँ के लोगों से, … और मेरे साथ हैं कैमरामैन ,…


ट्रेन में चलते हुए किसी सहयात्री ने पुछ लिया आप कहाँ के हैं और अगर आप ने बता दिया , तो पट्ट से जवाब मिलता है , अच्छा अबू सालेम जहाँ का है और साथ में एक व्यंग भरी , जुगुप्सा मिश्रित मुस्कान , उनके पढ़े लिखे होने का सबूत देती।

और अगर आप ने कहीं गलती से जवाब दे दिया , जी नहीं जहाँ के अल्लामा मरहूम शिबली नोमानी थे ,

तो उसका कुछ फरक नही पडेगा , और वो बाहर देखता रहेगा।

आप शिबली से शम्शुरामान फारुकी तक का नाम गिना दें , अयोध्या सिह उपाध्याय 'हरिऔध और राहुल सांस्कृत्यायन की दुहाई दे दें , लेकिन वह मुस्कान मिट नहीं सकती।

एक अबु सलेम और किसी गाँव का नाम , भारी पड़ता है बिगेडियर मोहमद उस्मान की शहादत पर , जिन्होंने १९४७ में बजाय उस पार जाने के हिन्दुस्तान मेंरहना तय किया और जब उनके ३६ साल भी नहीं पूरे हुए थे वो नौशेरा का शेर , पाकिस्तान से जंग में १९४८ शहीद हुआ। और उस लड़ाई में जान देने वाले सबसे ऊँचे रैक के अधिकारी थे।

और यह ,सिर्फ एक शहर की किस्मत नहीं है , कित्तने शहरों के कित्तने हिस्से , एक छोटी सी डॉक्यूमेंट्री है आई एम फ्रॉम बहरामपाड़ा आप उसे देखें और रूबरू हो सकेंगे। 
 
और यह ,सिर्फ एक शहर की किस्मत नहीं है , कित्तने शहरों के कित्तने हिस्से , एक छोटी सी डॉक्यूमेंट्री है आई एम फ्रॉम बहरामपाड़ा आप उसे देखें और रूबरू हो सकेंगे।

और साथ में टी वी चैनेल वाले ये भी बताना नहीं भूलंगे की यहाँ के लोग पढने काम ढूंढने बाहर जाते हैं , कोई खास रोजगार का जरिया नहीं ,


लेकिन ये दर्द सिर्फ एक शहर का नहीं , शायद पूरे पूर्वांचल का है। और जमाने से है।मॉरीशस , फ़िजी ,गुयाना , पूर्वांचल के लोग गए , और शूगर केन प्लांटेशन से लेकर अनेक चीजें , उनकी मेहनत का नतीजा है।

वहां फैली क्रियोल , भोजपुरी ,चटनी संगीत यह सब उन्ही दिनों के चिन्ह है।


और उसके बाद अपने देश में भी , चाहे वह बंगाल की चटकल मिलें हो,

बम्बई ( अब मुम्बई ) और अहमदाबाद की टेक्सटाइल मिल्स

पंजाब के खेत ,

काम के लिए ,

और सिर्फ काम की तलाश में ही नहीं ,

इलाज के लिए बनारस ,लखनऊ ,दिल्ली जाते हैं।

पढने के लिए इलाहबाद , दिल्ली जाते हैं।

लेकिन कौन अपनी मर्जी से घर छोड़ कर काले कोस जाना चाहता है ?


उसी के चलते लोकगीतों में रेलिया बैरन हो गयी ,

और अभी भी हवाओं में ये आवाज गूँजती रहती है
,




भूख के मारे बिरहा बिसरिगै , बिसरिगै कजरी ,कबीर।

अब देख देख गोरी के जुबना,उठै न करेजवा में पीर।
 
 
 



FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--191

  FUN-MAZA-MASTI

   फागुन के दिन चार--191



जीत गयी रीत



और रीत ने गिरते हुए उस हमलावर के डूंगरी से कमांडो नाइफ निकाल ली थी।

हमलावर के हाथ में अभी भी पिस्तौल थी और अब वो मरते हुए भी करन पर गोली चलाने की कोशिश कर रहा था।


लेकिन रीत अब अपने रौद्र रूप में आगयी थी।

करन की गोली ने जो हमलावर के माथे में छेद किया वह सारा खून ,और कुछ मांस मज्जा निकल कर रीत के बालों में भर गया था।

दुःशाशन के वध के बाद जैसे पांचाली ने अपने खुले केश उसके रक्त से धोये थे , बस उसी तरह , रक्त टप टप टप टपक रहा था।

और जब उसने गिरे हुए हमलावर को करन की ओर निशाना लगाते देखा तो बस ,

चिघ्घाड़ के साथ वो हवा में उछली , उसके हाथ का चाक़ू सीधे हमलावर के गर्दन में पैबस्त था सामने से और फिर गिरते हुए हुए उस हमलावर के सीने पर वह सवार होगयी।

फव्वारे की तरह खून निकल कर रीत के चेहरे पर पड़ रहा था।

लेकिन चाक़ू पर उसकी पकड़ कमजोर नहीं हुयी और दोनों हाथों से नीचे तक , पसलियों के बीच ,


उसके मुंह से अभी भी भीषण आवाजें निकल रही थीं जिसे सुनकर ही कोई डर के बेहोश हो जाये ,

चाकू अभी भी अंदर धंसा था। लग रहा था वो सिर्फ अपने हाथों से उसके वक्ष से , उसका सीना चीरकर उसका कलेजा निकाल कर बाहर कर देगी।

रीत की आँखों के सामने अब वो हमलावर नहीं था ,

वो संकट मोचन का दृश्य देख रही थी जब बॉम्ब विस्फोट हुआ , एक शादी शुदा जोड़ा चीथड़ों में बदल गया।

वो एक के बाद एक शव उठा रही थी अपने माता पिता के शव को ढूंढने के लिए।

रेलवे स्टेशन पर वह पुलिस के साथ गयी , करन के माता पिता के शव को पहचानने , और एक और शव मिला पूरी तरह विक्षत ,करन का कोट पहने


मणिकर्णिका पर एक के बाद एक , …कोई नहीं बचा था ,न उसके घर में न करन के घर में।

दोनों के माता पिता को अंतिम विदा उसी ने दी। .

और फिर शीतला घाट पर , ३ साल की बच्ची खेलती हंसती , बॉम्ब के धमाके में उड़ गयी।

वह बार बार चाक़ू का वार कर रही थी , चीख रही थी।

पेट उसने फाड़ दिया था , अंदर की आते बाहर निकल आई थीं। और उस हमलावर के मृत देह पर बैठी , उसके खून में सनी , बिना रुके वह चीख रही थी और उसके उसके अंग अंग को चीर रही थी, फाड़ रही थी।

उसकी देह पर खड़ी होकर हमलावर के जिस हाथ में अभी भी पिस्टल थी , उसे उसना पकड़ा और जोर से मोड़ दिया।

हाथ टूट गया।

श्मशान में विचरण करने वाली जैसे शाकिनी डाकिनी हों उस तरह की आवाज ,

सब लोग शांत देख़ रहे थे , करन मीनल ,

चुप ,भयाक्रांत।

और उस आधे मरे हमलावर ने जैसे मौत देख ली हो। मौत से भी कुछ ज्यादा भयंकर।

काली की तरह , रक्त स्नात ,शत्रु हंता ,मृत्यु रुपी साक्षात काल।

मीनल ने करन को इशारा किया ,

वही रीत के मन को स्थिर कर सकता था।

इस जंग में दोनों ने ही खोया था , अपना सब कुछ।

और दोनों ने ही पाया था , एक दूसरे को और जिंदगी का एक मकसद। इन हमलावरों से मुक्ति दिलाने का।


करन जाकर रीत के सामने खड़ा हुआ।

रीत कुछ देर तक उसे पथरायी निगाहों से देखती रही जैसे पहचान न रही हो।

फिर अचानक उसने एक जोर की आवाज निकाली , जिसमें सदियों का दर्द ,चीख ,डर सब मिला था।


करन ने आगे बढ़ कर रीत के खून से सने हाथ पकड़ लिए और दूसरे हमलावर के पास ले गया और उसके कान में बोला।

" तुम कुछ मत करना , बस सिर्फ इसके सामने बैठ जाओ। "

रीत को पास में देख कर जोर से वो चीखा ,

लेकिन मीनल बोली , ये कुछ नहीं करेगी जब तक तुम हमारे सवालों के जवाब दोगे।

और करन ने सवाल करना शुरू किया ,

तुम्हे किसने भेजा , सेंटर कहाँ है।

उसे बहुत कम मालूम था ,लेकिन जो भी था ,तोते की तरह उसने उगल दिया।

काम की बात तब पता चली जब करन ने पुछा ,

तुम्हे यहाँ से क्या मेसेज देना था और उसने नीचे जेब की ओर इशारा किया , जिसमें एक कम्युनिकेशन डिवाइस थी , दो मेसेज प्री फेड थे ,

लाल बटन - टारगेट एलीमैनेटड , मिशन अचीव्ड।

हरा बटन -मिशन अबॉर्टेड।

मिशन सक्सेसफुल होने पर उन्हें लाल बटन दबाना था , और ये मेसेज सीधे कमांड सेण्टर पर जाता।

इस एक मेसज को देने के बाद वो डिवाइस बेकार हो जाती। यानी इसका इस्तेमाल कर के कमांड सेंटर का पता नहीं लग सकता था।

तब तक मीनल ने देखा उस ने गले में ताबीज सा कुछ पहन रखा है और उस का दायां हाथ , जो अभी भी थोड़ा बहुत काम का था उधर बढ़ रहा था।

मीनल ने झटके से वो ताबीज तोड़ दी और उसे अपने हाथ में ले लिया।

वह एक सायनाइड कैप्स्यूल था.

रीत ने पहचाना और फुसफुसा कर बोली।

मीनल और करन ने एक दूसरे को आँखों में देखा और हलके से मुस्कराये।

रीत धीरे धीरे नार्मल हो रही थी।

रीत ने अधमरे हमलावर पर हाथ रखा , और पूछा ,
वापस लौटने का क्या प्रोग्राम था।

और उस ने सारी कहानी बयान कर दी।

"टार्गट्स को खत्म करने के बाद , हमें मेसेज देना था। और मेसेज भेजने के १५ मिनट के अंदर हमें बीच पर पहुँच जाना था जहाँ वो बोट हमें मिलती। १५ मिनट की विंडो उसकी थी ,मेसेज देने के १० मिनट से २५ मिनट तक। और वह हमें हाई सीज तक ले जाती जहाँ सबमैरीन हमें पिक अप करती। "

सब का ध्यान उसकी बात सुनने में लगा था ,

अचानक वह अपना दायां हाथ अपने मुंह के पास ले गया। उसमे एक गंडा ऐसा बंधा था और जब तक लोग कुछ समझ पाते , रोक पाते ,वह उसके मुंह में था।

सबसे पहले रीत के मुंह से निकला सायनाइड।

और अगले पल ही उसके नीले पड़ते शरीर ने उसकी ताईद भी कर दी।

अब करने को कुछ नहीं बचा था और बहुत कुछ बचा था।


 रैन भई चहुँ देस



अब करने को कुछ नहीं बचा था और बहुत कुछ बचा था।

रीत और करन ने मिल कर दोनों हमलावर जिस खिड़की से आये थे , उसी खिड़की से उन्हें वापस बाहर फ़ेंक दिया।

करन ,रीत खिड़की के पास खड़े थे और करन कुछ सोच रहा था , फिर उसने वो कम्युनिकेशन डिवाइस उठाई और कुछ सोच कर मिशन अकम्पलीश् होने का मेसेज दिया। तुरंत जवाब आया कॉंग्रेट्स।


पर अगले पल रीत ने चिल्लाकर करन को वार्न किया।

उस डिवाइस के पीछे कोई लाइट जल रही थी , और करन ने तुरंत उसे खिड़की के बाहर फेक दिया।

वह उन दोनों हमलावरों की बाड़ी के बीच में गिरा , और अगले ही पल जोर का धमाका हुआ।

१० फिट दूरी का सब कुछ उस धमाके में उड़ गया।


इस का मतलब उस डिवाइस में ही दोनों के खत्म करने का पूरा प्लान बना ,हुआ था।

रीत और मीनल ने मिल के कमरे को पूरी तरह ठीक किया और उसके बाद मीनल पकड़कर रीत को बाथरूम में ले गयी और करन बाहर कंट्रोल रूम में गया।

और रिवाइंड करने पर उसे हमलावरों की सारी हरकतें पता चल गयी जैमर लगाना , आने के रास्ते में माइन्स लगाना , सारी बातें. पहले करन ने जैमर ठीक किया।
और आई बी के चीफ से बात की और उन्हें सब कुछ बताया।

उन्होंने उसे दो मिनट वेट करने को कहा और खुद रॉ के डायरेक्टर को और एडिशनल सेक्रेटरी होम ( इंटरनल सिक्योरिटी) को जगा के बताया। रा को वैसे भी इन्वॉल्व होना था क्योंकि करन रॉ का आपरेटिव था।

और जब आई बी डायरेकटर का फोन आया तो उनके इंस्ट्रक्शन बहुत साफ थे ,

' बेहोश कंट्रोल रूम सिक्योरिटी आपरेटिव्स को बेहोश ही रहने दे और उन्हें हाथ न लगाएं। कंट्रोल रूम के फूटेज से हमलावरों की फूटेज के वीडियो को अपने पास कापी कर के , कंट्रोल रूम के सिक्योरटी कैमरे से उसे डिलीट कर दें। लोकल सिक्योरिटी को न इन्वाल्व करें , सिर्फ आई बी के आपरेटिव को जो पुलिस पोस्ट पर वेट कर रहा है उसे काॅन्टेक्ट करें और उस के साथ मिल कर सब कुछ 'नार्मल ऐसा' कर दें.उनका एक्सट्रैकशन प्री पोंन किया जा रहा है और २० -२५ मिनट में उन लोगों को वहां से निकलना होगा। '

करन ने पहले कंट्रोल रूम के फूटेज टैम्पर किये , हमलावर के सारे फूटेज अपने मोबाईल में और एक पेन ड्राइव में ले कर उसे आई बी और रा को भी भेज दिया। उसके बाद आई बी के आदमी को फोन किया। उसके पास भी मेसेज जस्ट पहुंचा था।

जब तक वो आये , उसके पहले करन ने पेरीमीटर का चक्कर लगाया और फेन्स को कटा पाया। साथ में एक लूप लगा था। ये साफ था की हमलावर यही से घुसे थे।

करन ने फेन्स ठीक की। और सबूत बताने वाला वो लूप अपने पास रख लिया।

बाहर रास्ते में आकर उसने माइंस ढूंढी , जोउसके लिए इस लिए मुश्किल नहीं थी की उसने सी सी टीवी की फूटेज में लोकेशन साफ साफ देखी थी।

बहुत सम्हालकर उसने दोनों माइंस डिफ्यूज की और रास्ते के बाकी 'कांटे ' हटाये।

कुछ ही देर में आई बी का ऑपरेटिव वहां पहुँच गया और दोनों पिछवाड़े गए जहाँ करन ने खिड़की से दोनों हमलवारों की बाड़ी बाहर फेंकी थी।

उस के बगल में कम्युनिकेशन डिवाइस जो एक्सप्लोड हो चुकी थी , वो भी पड़ी थी। और उसके विस्फोट से दोनों बॉडीज अब इतनी क्षत विक्षत हो चुकी थीं की उन्हें पहचानना मुश्किल था।

करन और उस आपरेटिव ने मिल कर बारी बारी से दोनों बॉडीज को समुद्र तक पहुँचाया , और फिर किनारे पड़े पत्थर उनमें बाँध कर उन्हें समुद्र तल में डुबो दिया। उस समय टाइड का समय था , थोड़े ही देर में लहरे उन्हें समुद्र तट से दूर पहुंचा देती।

यही वो समय था जब उस हमलावर के मुताबिक़ बोट को उनका इन्तजार करना था , लेकिन आस पास कोई बोट नजर नहीं आई।

दूर अचानक क्षितिज पर उस समय एक तेज रोशनी हुयी ,आग के गोले जैसी और फिर समुद्र में समां गयी।

करन ने बदले हुए प्रोग्राम के बारे में मीनल और रीत को बता दिया था।

आई बी का आपरेटिव बाहर कंट्रोल रूम में कहीं से बात कर रहा था।

जब करन अंदर गया तो मीनल और रीत दोनों बाथरूम में थी , कमरा एकदम साफ कर दिया गया था , और सामान पैक था।

करन दूसरे बाथरूम में दाखिल हो गया। उसकी देह पर भी हमलावरों के खून के छींटे थे। नहाकर वह तैयार हो रहा था की मीनल ने दरवाजा खटखटाया , गाडी आ गयी है। वो जल्दी जल्दी बाहर निकला। मीनल और रीत तैयार थीं। रीत अब नार्मल लग रही थी लेकिन वो और मीनल दोनों एकदम चुप थीं।


गाडी एक दूध बांटने वाली मिल्क वान थी , जिसे देख के किसी को शक न हो लेकिन उसके सारे शीशे ब्लैक टिंटेड ग्लासेज थे और परदे पड़े थे। ड्राइवर गाडी से नहीं उतरा और करन ,मीनल रीत तीनो लगेज एरिया में बैठ गए ,अपने सामान के साथ।

२० मिनट में वह एक मैदान में थे जहाँ एक चॉपर खड़ा था ,और उनका सामान उस में रख दिया गया। तीनो उस में बैठ गए।

और जब हेलिकाप्टर उड़ा तो उस समय प्रत्युषा का आगमन हो चूका था।

किसी सुहागन के मांग में सिन्दूर की तरह एक पतली सी अरुणिम आभा क्षितिज पर दिख रही थी।

२० मिनट बाद वह वड़ोदरा में लैंड किये। लेकिन वह सिविलयन एयरपोर्ट पर नहीं थे।

वह तीनो वड़ोदरा एयरफोर्स बेस पर उतरे। और बगल में एयर फोर्स का एक प्लेन तैयार खड़ा था।

रीत थोड़ा सा मुस्कराई जब मीनल विदा लेते हुए उससे गले मिली।

और करन ने मुस्कराकर हलके से मीनल से कहा , " सिर्फ दी से , …"

और मुस्कराते हुए मीनल सीधे करन के पास पहुँच गयी और उसे बाँहो में ले के धीमे से बोली ,' जीजू फिर कंब.। "

करन ने बिना जवाब दिए उस की पीठ थपथपा दी।

रीत की आँखों में थोड़ी सी पुरानी चपलता लौट आई थी।

और अब वो दोनों एयर फोर्स के जहाज में बैठ गए और उनके बैठते ही जहाज उड़ चला।


करन को मालूम था , वो दोनों बनारस नहीं जा रहे हैं।

वह बनारस से बहुत दूर जा रहे थे।

और सिर्फः बनारस से ही नहीं अपनी पुरानी जिंदगी से दूर जा रहे थे शायद हमेशा के लिए।



आई बी ने उनके ऊपर हुए इस हमले के बाद ये फैसला किया था की उनकी सिक्योरटी के लिए और नेशनल सिक्योरटी के लिए ये जरुरी है की उन्हें एक प्रोटेक्शन प्रोग्राम में रखा जाय ,जिसमे उनकी पूरी आइडेंटिटी नयी होगी। थोड़ा बहुत प्लास्टिक सर्जरी , नया माहौल , नया बैकग्राउंड। करन ने जो मेसेज दिया था उसे उनके कमांड सेंटर को ये इन्फो मिल गयी होगी की दोनों एलिमिनेट हो चुके हैं। लेकिन उनके जानने वालों पर वह तब भी निगाह रखेंगे और अगर इन्होने उनसे कांटैक्ट रखा तो इस कवर स्टोरी को मेंटेन करना मुश्किल होगा।

करन ने सिर्फ आनंद को मेसेज किया था , और ये कहा था की गुड्डी , दूबे भाभी और फेलू दो को सिर्फ ये बताएं की वो सेफ हैं।

यह करन को भी नहीं मालूम था वो और रीत कहाँ जा रहे हैं , उनकी नयी आई डी क्या होगी।


रीत एक कोने में प्लेन की खिड़की से सर टिकाये गुमसुम बैठी थी।






बनारस में दूबे भाभी ने आँचल के कोने से , आंसू का एक टुकड़ा पोछा और अशिषा ,

' बिटिया जहाँ रहो खुश रहो। करन है न तोहरे साथ। '

और फिर आसमान की ओर भरी निगाह से देख बुदबुदाया ,


' वकील साहब आप जहाँ हों ,बिटिया को आशीष दो।
'

 " बाथरूम जाओगी , भाभी थोड़ी देर में आती होंगी। "
वो बाएं हाथ का सहारा लेकर उठी , और जब मैंने पेशकश की मैं भी आ जाऊं उसकी हेल्प केलिए , तो उसके चेहरे पे फिर वही शरारत , …आँख नचा के बोली ,

" तुझे पीटने के लिए मेरा एक हाथ काफी है। "

और बाथरूम के दरवाजे पर से रुक के उस परीजाद ,सुर्खरू ,शोख ने मुड़ के मुझे देखा और बोली ,

" चलो तेरी वो भी ख्वाहिश पूरी कर दूंगी। तुम भी क्या याद करोंगे , बनारस वाली हूँ कोई मजाक नहीं। बस २७ मई का इन्तजार करो। "

कोई और वक्त होता तो मैं उसकी बात पे मुस्कराता , लेकिन आज बामशक्कत मैंने आँखे नम होने से रोकी।

और वो बाथरूम में घुस गयी। दरवाजा खोलने के लिए उसने अनजाने में दायां हाथ इस्तेमाल किया और जो चिलक उठी तो बड़ी मुश्किल से उसने चेहरे पर आये दर्द के अहसास को तुरंत पोछ के साफ किया।


कुछ देर बाद ही हुक्मनामा आया , बाथरूम के बंद दरवाजे के पीछे से ,


" चाय मिलेगी क्या ?

" एकदम ,गरमगरम कड़क , *** गढ़ स्पेशल। " मैंने जवाब दिया और किचेन में लग लिया। भाभी का मेसेज आया था की वो लोग बस १५ -२० मिनट में पहुँच रहे हैं और मैं गुड्डी से कह दूँ चाय बनाने के लिए। वो लोग बहुत चयासी हो रही हैं। और मैंने पानी बढ़ा दिया।


कुछ देर में गुड्डी बाथरूम से निकली , अपने कमरे में गयी और जब तक बाहर निकली तो टेबल पर टीकोजी से ढंकी केटली में चाय हाजिर थी , और साथ में मैं,खड़ा , कंधे पर छोटी टॉवेल,एकदम रामू काका की तरह।

और गुड्डी ने बैठ कर जैसे ही मुझे देखा , बस बेसाख़्ता मुस्करा पड़ी।


जोश का एक शेर याद आया ,

यह बात, यह तबस्सुम, यह नाज, यह निगाहें,
आखिर तुम्हीं बताओं क्यों कर न तुमको चाहे।

लेकिन फिर याद आया , रामू काका शेर थोड़े ही पढ़ते हैं।

और गुड्डी ने हुक्म दिया , अब चलो तुम भी पी ही लो।

बस मैं बैठ गया , और चाय ढालने के लिए जो केतली पकड़ी तो उसकी आँखों ने मना कर दिया और ,और फिर बाएं हाथ से ,… बाएं हाथ के इस्तेमाल में वो एकदम सौरभ गांगुली हो रही थी।

चाय की पहली चुस्की के बाद ही उसने मुंह बनाया और बोली , चीनी कम.

इस जुमले ने क्या क्या न याद दिलाया , ये बात रोज मैं बोलता था जब गुड्डी बेड टी लेकर आती थी और ये बहाना होता था गुलाब की टटकी पंखुड़ियों से एक चुम्बन चुराने का।

वह चीनी का डिब्बा बढ़ा देती थी , अपने सुर्खरू लब।

और आज मैंने अपने होंठ।

होंठो का वो आलिंगन कब तक चलता पता नहीं , लेकिन बाहर दरवाजे पर घंटी बज गयी। भाभी आ गयी थी।


.............



उपसंहार











भाभी आज एकदम अलग ही लग रही थीं।

खूब चुलबुली , एक अलग सी मस्ती आँखों से पूरे चेहरे से टपक रही थी। हाँ बस थोड़ी थोड़ी थकी लग रही थीं।


भैया ,हरदम की तरह ,सीधे अपने कमरे में चले गए ,ये कह के उन्हें नींद आ रही है ,भाभी थोड़ी देर में आ जाएँ,ऊपर।


और भाभी की नजर सीधे टेबल पे बैठी गुड्डी और सामने रखी गरम केतली पर पड़ी।

और वो धम्म से हम दोनों के बीच बैठ गयीं।

और गुड्डी ने अपनी चुस्की ली प्याली मेरी ओर सरका दी और मेरी अनपीयी प्याली , भाभी के लिए सरका दी।

मैंने ' एक्स्ट्रा मीठी' प्याली अपने होंठों से लगाई ,गुड्डी की शैतान लेकिन मीठी मीठी निगाहों को देखता रहा और उसके लिए चाय निकाल दी।

" वाह क्या मस्त चाय है ,सारी थकान गायब , एकदम गुड्डी ने बनायीं होगी। तेरे हाथ में तो जादू है। " भाभी ने चाय की दो चुस्की के बाद ही फैसला सूना दिया।

और गुड्डी भी , सीधे मेरी आँख में देखती बोली , " एकदम आपके देवर को तो कुछ आता है नहीं ,एकदम नौसिखिये हैं। न किचेन का काम न कुछ ,… "

भाभी भी गुड्डी की मुस्कराहट केसाथ मुस्करा के हामी भर रही थीं , लेकिन उन्होंने एक इम्पोर्टेन्ट सवाल दाग दिया ,

" कब तक निकलना है तुम लोगों को " और भाभी का सवाल निकलने के पहले ही मैंने लपक लिया। अगर कहीं गुड्डी ने उलटा सीधा जवाब दे दिया तो गड़बड़ हो जाता।

" वैसे तो टैक्सी ११ बजे बुलाया है ,लेकिन वो थोड़ा शायद पहले ही आ जाय। और रंजी तो एकदम सुबह ही निकल गयी थी वो भी साढ़े नौ ,पौने १० बजेतक आ ही जाएगी। गुड्डी ने सब पैक वैक कर लिया है तो बस जैसे टैक्सी आएगी साढ़े दस के आसपास। "

मैंने एक साँस में पूरा जवाब दे दिया और भाभी के कप में दुबारा चाय भी ढाल दी।


उन्होंने चाय पीनी शुरू की ही थी की ऊपर से बुलावा आ गया.

लेकिन भाभी भी , चाय पीते पीते गुड्डी को समझा रही थी ,' सुन क्या बनाएगी खाने में , अब ज्यादा टाइम भी तो नहीं रह गया। "

कल रात की बात याद कर के मैं बोला , बिरयानी बना लो। ( कल उसने और रंजी ने रेड़ी टू ईट के पैकेट से बनायीं थी )

लेकिन जैसे होता है , भाभी और गुड्डी दोनों एक साथ चढ़ पड़ीं मेरे उपर।

" रसोइये के खानदान से हो क्या ,… " गुड्डी ने आँख नचा के बोला।

" सही कह रही है तू , सासु जी आएँगी न तो उनसे पूछना पड़ेगा कही , किसी बावर्ची के साथ ,कोई ठिकाना नहीं ,...." और दोनों खिलखिलाने लगी।

मैंने पूरी तरह अनसुना कर दिया।

मेरी आँखे और ध्यान पूरी तरह गुड्डी की चोट लगे दायें हाथ पर लगा था। गनीमत थी की उसने कुहनी तक बांह वाला एक अनारकली सूट पहन रखा था। किचेन का काम ,… इस हालत में।

" टाइम कम है , सुन तू झटपट तहरी बना ले , आलू , टमाटर ,गोभी ,गाजर सब डाल के। और हाथ खाओगी किस से ,तो बस फ्रेश टमाटर की चटनी बना लेना। " भाभी ने फैसला सुना दिया।

तब तक हेडक्वारटर्स से कॉल आ गयी , और भाभी ने एक घूँट में बाकी चाय खत्म कर दी और उठने वाली थी की गुड्डी धीरे से बोल उठी ,

" वो तो ऊपर सोने गए थे तो आप क्या लोरी सुनाने , .... "

क्या जोर का भाभी ने ब्लश किया और एक हाथ सीधे गुड्डी की पीठ पे ,

' बस दो ढाई महीने की बात है ,आएगी इसी घर में फिर पूछूंगी , दिन दहाड़े जब जुम्हाई आएगी। "

और अगले पल भाभी ऊपर और हम दोनों किचेन में ,


बहुत मुश्किल से गुड्डी मानी ,

और फिर उस की हिदायतें और मेरा काम ,


उस दिन पहली बार अजवायन ,सौंफ धनिया और जीरा में अंतर पहचाना।

बोल सब वही रही थी , बीच में झुंझला भी रही थी।
पानी में चावल भिगोओ।

तेल गरम करके कटे प्याज डालो।

फिर गार्लिक और जिंजर पेस्ट खड़े मसाले सारे ,

बीच में उसने कूकर उठाने की कोशिश की तो फिर चिलक उठी , और मैंने उसे फिर एकदम मना कर दिया।

लेकिन तब भी मिक्सी का काम , सास बनाने का ,…

और आधे घंटे में हम दोनों ने मिल के तहरी चढ़ा दी।
और मैं उसे खींचता हुआ , अपने कमरे में ले गया।

और उसकी बैंडेज खोली।

मैंने एक डाकटर से सुबह ही बात की थी लेकिन उन्होंने बोला था की बिना देखे कुछ बताना मुश्किल है।

बस इसलिए , उसके दो चार फोटो लिए और उन्हें तुरंत व्हाट्सऐप किया।

और उनका जवाब भी आ गया , चिंता की बात नहीं है , वूंड हील होना शुरू हो गया है , अब ज्यादा पट्टी की जरूरत नहीं है मैं सिर्फ एक इलेस्टोप्लास्ट लगा दूँ। हाँ इस हाथ से अगले सात आठ घंटे तक कुछ भी उठाना मना है , जितना इस हाथ को आराम मिलेगा उतनी जल्दी ठीक हो जाएगा। और उन्होंने दो इंजेक्शन भी लिखवाये , जो मुझे बनारस जाते समय कहीं लगवा लेने थे। चोट लगने के ७-८ घंटे के अंदर पेन किलर एक बार और देने के केलिए बोला उन्होंने।

बस मैंने उसे आ करवा के गोली खिलवायी , बैंडेज जैसा उन्होंने कहा था वो लगवाया ,लेकिन गुड्डी की बस एक रट तहरी ख़राब हो जायेगी।


तहरी का तो कुछ नहीं लेकिन अगर हम दस मिनट लेट आते तो पकड़े जाते।

किचेन में पहुँच कर कूकर से मैंने तहरी निकाल के सर्विंग वाले बर्तन में रख दिया था और गुड्डी दही रख रही थी।

भाभी तभी आ पहुंची और पहुंचते ही मुझे डांट पड़ी और गुड्डी की तारीफ।




FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--190

  FUN-MAZA-MASTI

   फागुन के दिन चार--190


हमला





रीत कबर्ड में कपड़ों के पीछे छुपी दबी खड़ी थी। न वह कुछ सोच रही थी , न तैयारी , बस एकदम सन्नद्ध। उसकी हर इन्द्रियां ,खुली, सचेत, सजग, हमले को तैयार।

बिना देखे उसे पता चल गया की कब दोनों खिड़की के पास खड़े हुए।

उसके कान जरा सी हरकत को सुनने के लिए तैयार थे और जब चाकू से शीशे के काटने की बहुत हलकी सी आवाज आई और शीशे की गिरने की वो भी उसने सुनी।

लेकिन हर चीज पता करने के लिए सुनना देखना जरूरी नहीं होती।

महा विद्याओं का आशीर्वाद, योग की शिक्षा या दीक्षा , उसकी पूरी देह आँख भी थी कान भी। शीशे के हटते ही जो हवा का झोंका आया बस उससे उसे अंदाज लग गया की बस अब खिड़की खुल गयी है और हमला होने वाला है।

बहुत हलकी सी रोशनी जो बाहर से आ रही थी , उस के अवरुद्ध होने से रीत को ये भी पता चल गया की वो अंदर आ गया है और उसकी लोकेशन कहाँ है।

वह कबर्ड और पलंग के बीच खड़ा था।

और आते ही उसने जो पहला हमला किया उसके लिए रीत और करन दोनों तैयार थे , और न तैयार होते तो तो पहली बाजी क्या पूरा मैच हार जाते।

दो स्टन ग्रेनेड , एम 84 पहले तो घुसते ही उसने पलंग की ओर फेंके।

इनका असर तेज फ्लैशिंग लाइट और धमाकेदार आवाज (जो १७०-१८० डेसीबेल की रही होगी ) -हुआ। और , नॉर्मली , लोग ऐसी तेज आवाज में करीब आधे मिनट से एक मिनट तक अपना ओरिएनेटशन खो देत्ते हैं ,कुछ करने की हालत में नहीं रहते है। बैलेंस समाप्त हो जाता है और कुछ दिखाई पड़ना भी मुश्किल होता है।

इतने समय में अटैक करने वाले को सिचुएशन पूरी तरह कंट्रोल करना आसान होता है।

लेकिन रीत ने इसकी तैयारी पूरी कर रखी थी।

कबर्ड में पड़े क्विल्ट से उसने अपने चेहरे ,कान को अच्छी तरह ढक रखा था , खुद टंगे हुए कपड़ों के पीछे खड़ी थी और कबर्ड एक झिर्री के अलावा पूरी तरह बंद था , इसलिए कबर्ड , कपड़ों और क्विल्ट ने स्टन ग्रेनेड के असर से उसको अच्छी तरह इन्सुलेट कर दिया।

हाँ फायदा ये हुआ की अटैकर की लोेकशन अब उसे पूरी तरह कन्फर्म हो गयी थी।

पलंग के नीचे छुपे करन और मीनल को पलंग का पूरा प्रोटेक्शन तो मिला ही , जो उन्होंने रजाई खींच रखी थी नीचे तक उसने भी ब्लाइंडिंग फ्लैश और साउंड को अब्सॉर्ब कर लिया। इसके साथ ही रजाई से निकाल कर करन ने रुई अपने और मीनल के कान में ठूंस रखी थी , दोनों हाथों से कान जोर से बंद कर रखे थे और अपने को फर्श से चिपका रखा था।

लेकिन हमलावर ने स्टन ग्रेनेड का असर खत्म होने के पहले ही स्मोक ग्रेनेड एक पलंग के ऊपर और दूसरा पलंग के नीचे की ओर लांच किया।

लेकिन उनका असर शुरू हो उसके पहले तेजी से कबर्ड का दरवाजा खुला , कपड़ों का एक बण्डल सीधे उसके ऊपर और जबतक वह सम्हले रीत सीधे उसके कंधो पर।

स्मोक में नाइट विजन गॉगल्स के बावजूद हमलावर के लिए देखना मुश्किल था।

लेकिन रीत को किसी नाइट विजन की कभी जरूरत नहीं पड़ी।

काली अँधेरी रात में घने जंगल में चीता शिकार की घात में बैठा रहता है , और तेजी से भागते सारंग को जिस झटके से दबोच लेता है , या सुंदरबन में जंगलों और सागर के बीच नाव पर बैठे शिकार को जिस तरह झपट्टा मार कर बंगाल का बाघ अपना शिकार बना लेता है , सिर्फ अपनी शक्ति, स्वभाव और प्रकृति के कारण बस वही हालत रीत की थी।

महाविद्या स्त्रोत और महाविद्या कवच का पाठ अभी उसने किया था , और बस सब का आशीर्वाद सब की शक्ति ले कर उतरी थी , विनाश की दूती बन कर। सीधे वह उसकी पीठ पर चढ़ी थी , बायां हाथ सीधे काल का फन्दा बना उस हमलावर के गले में लिपटा था और दायें हाथ की कुहनी ने , उस हाथ पर पूरी ताकत से चोट की , जिसमे उसने एच & के ( हेकलर एंड कोच ) यूनिवर्सल मशीन पिस्टल पकड़ रखी थी और उसकी उँगलियाँ ट्रिगर पर थीं।

कुहनी के साथ पैर की पूरी ताकत भी उसी हाथ की कुहनी पर पड़ी , और अचानक हुए इस हमले का लाभ ये हुआ की गन उसके हाथ से छूट गयी और फर्श पर गिर पड़ी।


रीत






कुहनी के साथ पैर की पूरी ताकत भी उसी हाथ की कुहनी पर पड़ी , और अचानक हुए इस हमले का लाभ ये हुआ की गन उसके हाथ से छूट गयी और फर्श पर गिर पड़ी।

ये नेवल सर्विस ग्रूप का फेवरिट हथियार था और बहुत ही घातक , खास तौर पे शार्ट रेंज पे। और उसको और घातक बनाता था ,. ४५ एसीपी कार्ट्रिज।

ये गोलियां अपनी बड़ी साइज के कारण ,पेन्ट्रेशन और एक्सपैैंशन दोनों ही में तेज और बड़ा असर करती हैं। इससे रक्तस्त्राव तेज होता है और मारक क्षमता बहुत अधिक है। यह सेमी आटोमेटिक ,ऑटोमेटिक दोनों ही तरह से सेट हो सकती है लेकिन अभी सेमी आटोमेटिक मोड़ में थी।

इससे बचने का सिर्फ एक तरीका था की ये दुश्मन के हाथ में न रहे और अब इस का मालिकाना बदल चुका था। क्राल करके बिस्तर के नीचे से निकले करन ने बन्दूक पर अब कब्ज़ा कर लिया था और अब ट्रिगर पर उसकी उंगलियां थीं।

ऐसा बहुत कम होता है की रीत का पहला हमला निर्णायक न हो , लेकिन इस बार ऐसा न हुआ।

हाँ एक बहुत बड़ा फायदा ये मिला की गन हमलावर के हाथ से निकल कर कर करन के हाथ में पहुँच गयी थी और मुकाबला अब फायर आर्म्स से हट कर अनआर्म्ड कॉम्बैट में बदल चुका था।


और इस लिए भी था की अनआर्म्ड कॉम्बैट में अमेरिकन नेवी सील के साथ जब वह ट्रेनिंग में था तो हर मुकाबले में पहले या बहुत रेयरली दूसरे नंबर पे रहता था और फिर कराते और जूडो की ट्रेनिंग चाइनीज स्पेशल आॅप्रेशन फोर्सेज की मरीन ब्रिगेड के साथ उसने की थी और ज्वाइंट एक्सरसाइज में भी पार्टिसिपेट किया था।

इस लिए वह रीत से मुकाबले में २० तो नहीं लेकिन १७ भी नहीं था , हाँ १८ ,१९ जरूर रहा होगा।


दूसरे उसके पास अभी भी उसकी पिस्टल और कॉम्बैट नाइफ तेह जिसकी तेज धार का एक हमला काफी होता था।

भले ही उसके दाहिने हाथ ने एच & के पिस्टल से पकड़ छोड़ दी हो लेकिन वो हथियार बन गया था और उसकी कुहनी ने एक पिस्टन की तरह सीधे उसकी पीठ लदी रीत के पेट में वार किया।

कोई दूसरी होती तो उसकी स्प्लीन बर्स्ट हो गयी होती और पेट के अंदर के कई अंगो से इंटरनल हैमरेज चालू हो जाता।

लेकिन रीत की रक्षा तो खुद काशी के कोतवाल कर रहे थे और उसने कवच धारण कर रखा था महा विद्या के मन्त्र और आशीर्वाद का।

अपने आप उसकी सांस गहरी हो गयी ,पेट अंदर खिंच गया और उसकी देह गेंद की तरह मुड़ गयी , और हमले का असर बस नाम मात्र के लिए हुआ।


कोई दूसरा होता तो शायद ये 'नाम मात्र ' बेहोश करने के लिए काफी था।

लेकिन रीत रीत थी।

हाँ इसका असर ये जरूर हुआ की हमलावर रीत की पकड़ से पल भर के लिए छूट गया।

और हमलावर को मुड़ कर अब रीत को फेस करने का मौका मिल गया था , लेकिन ये मौका इतना भी नहीं था की वो कमांडो नाइफ निकाल सकता। उसने मुक्के का सहारा लिया की पल भर अगर वो रीत को डिस्ऑरिएंट कर पाता तो फिर एक बार चाक़ू उसके हाथ में आने की बस देरी थी।


हमलावर ने मुड़ते ही दुहरा हमला किया , पैर की किक सीधे रीत के घुटने पे नी कैप को टारगेट करके। और एक जोरदार मुक्का रीत के चेहरे पे।

कोई दूसरा होता तो शायद बत्तीसी बाहर होती और घुटना , नी रिप्लेसमेंट के लिए तैयार हो जाता।
और ऊपर से उसके जूतों में लोहे के कैप लगे थे।

और रीत के लिए भी मुश्किल था बचना , लेकिन रक्षा की जिम्मेदारी तो उसने कोतवाल के जिम्मे कर रखी थी , और बस अपने आप उसका शरीर उछला और हवा में ही मुड़ा , नतीजा ये हुआ की मुक्का बजाय चेहरे पे लगने के उसके कंधे पे लगा और पैर का वार खाली गया।

हमलावर को भी ये अंदाज नहीं था , और उससे बढ़ कर ये अंदाज भी उसे नहीं था की उसका मुक्के वाला हाथ रीत की गिरफ्त में होगा।

रीत की गिरफ्त की ताकत भी उसे तभी पता चली।

लोहे की सँडसी मात थी।

उस कोमल कलाई में , पल भर में कलाई तोड़ देने की ताकत थी।

और रीत ने यही किया , एक बार एंटी क्लॉक वाइज और दुबारा क्लॉक वाइज।

एक बार और एंटी क्लॉक वाइज करने पर कलाई के सारे लिगामेंट टूट जाते और वो हाथ पूरी तरह बेकार हो जाता।


रीत उसके पैरों का हमला देख चुकी थी और उसकी निगाह काउंटर अटैक के लिए उसके पैरों पर थी ,पर रीत को यह नहीं अंदाज था की , वो सव्यसाची था दोनों हाथों से बराबर का वार करता था।

और हमलावर कराते में ब्लैक बेल्ट था। जो हाथ दस ईंटों को एक साथ तोड़ सकता था रीत की कलाई पर बिजली की तेजी से पड़ा।

बल्कि पड़ने वाला था ,और रीत ने उसके पहले ही झटके से हमलावर की कलाई छोड दी।

पूरी तरह दूटने से उस हमलावर की दायीं कलाई तो बच गयी लेकिन दो चार लिगामेंट तो टूट ही गए और अब वह करीब ७०% बेकार हो चुकी थी।

दूसरे रीत का हाथ हटने से कराते का हमला पूरी तरह बेकार हो गया लेकिन उस की उँगलियों का अगला भाग जो रीत के हाथ को छूता निकल गया , लगा जैसे बिजली का करेंट लगा हो और किसी दूसरे के हाथ को बेकार करने के लिए काफी था।

लेकिन ये रीत थी।

और हमले से बचते समय भी अगला हमला करने के लिए तैयार थी। उसकी निगाह अभी भी उस दुष्ट के पैरों पर टिकी थी और वो जानती थी अगला हमला यहीं से आएगा।

और हुआ भी यही।

बायां पैर हवा में लहराया , टारगेट रीत की रिब्स।

और रीत हलके से मुस्कराई। अब हमलावर पहले से तयशुदा स्क्रिप्ट पर आ गया था और उसको पढ़ना ज्यादा आसान था।
रीत न सिर्फ साइड में सरकी ,बल्कि अबकी उसके दोनों हाथों ने बाएं पैर को जूते के ठीक ऊपर जोर से पकड़ लिया और वही क्लॉक वाइज , एंटी क्लॉक वाइज और फिर क्लॉक वाइज।

एक पैर फंसा हो तो दूसरे पैर से हमला करना मुश्किल था। ऊपर से दायें होते में लिगामेंट टूटने से होने वाले दर्द ने उसे थोड़ा डिस्ऑरिएंट भी कर दिया था। इसलिए बायां हाथ भी अब थोड़ा स्लो हो चूका था।

बायां पैर ५ सेकेण्ड में रीत ने बेकार कर दिया ,सारी कार्टिलेज टूट चुकी थी और उसी के साथ रीत ने जोर से हेड बट किया ,उसके एक्सपोज्ड पेट की ओर ,

बचो बचो , मीनल और करन दोनों की घबड़ाई आवाज तेजी से आई।

करन के हाथ में दुश्मन की गन थी और वो उसकी ओर ट्रेन किये हुए था लेकिन मुश्किल ये थी की रीत और हमलावर एक दूसरे से इस तरह गूंथे हुए थे की फायर करना इम्पॉसिबल था।


डेडलॉक , रीत ,हमलावर ,करन



बचो बचो , मीनल और करन दोनों की घबड़ाई आवाज तेजी से आई।

करन के हाथ में दुश्मन की गन थी और वो उसकी ओर ट्रेन किये हुए था लेकिन मुश्किल ये थी की रीत और हमलावर एक दूसरे से इस तरह गूंथे हुए थे की फायर करना इम्पॉसिबल था।


रीत की निगाह जब हमलावर के बाएं पैर पर लगी थी और पूरी ताकत से वह उसे तोड़ रही थी , हमलावर का दायां हाथ वो बेकार कर चुकी थी. आलमोस्ट। उसी समय दर्द से जूझते , हमलावर ने समझ लिया था की सामने वाला उससे २० है और अनआर्म्ड कॉम्बैट में उसके पास ज्यादा वक्त नहीं है , उसने दो काम किया।

अपने हेड फोन से अपने साथी को एस ओ एस किया और किसी तरह झुक कर अपनी डुंगरी से कमांडो नाइफ निकाली और पूरी ताकत से ,


रीत हेड बट्ट के लिए झुकी थी और उसकी गर्दन पूरी तरह एक्सपोज्ड थी।

ये उसके लिए सबसे बढ़िया मौका था , पूरी ताकत से सीधे कारटायड आर्टरी पे , सीधे गर्दन पे।



डर कर मीनल ने आँख बंद कर ली।

करन की सांस रुकी हुयी थी , सेकेण्ड का दसवां हिस्सा रहा होगा , और रीत पर लग रहा था कोई दैवीय शक्ति सवार हो गयी।

बिना उंसके पैरों को छोड़े उसने पैतरा बदला और जैसे हवा में नाच गयी हो। उसके लम्बे बाल खुल गए और पूरा चेहरा जैसे काली अमावस की रात में ढँक गया।

जब उसके हाथों ने पैर छोड़ा तो वो पूरी तरह टूट चूका था।

और ऊपर से ही रीत ने चाकू वाले हाथ को दबोच लिया।

जोर की चिग्घाड़ निकली रीत के गले से और अब उसके हाथों में जो शक्ति थी , वो उसकी नहीं थी। अबकी बायां हाथ जिसमें चाक़ू था उसके कब्जे में था और वो उसे मरोड़ रही थी। वह सब कुछ भूल चुकी थी और उसकी पूरी देह की ताकत उस हाथ को तोड़ने में लगी थी।

वैसे भी उस हमलावर का दायां हाथ लगभग बेकार हो चुका था , बायां पैर टूट गया था , इसलिए काउंटर अटैक के चांसेज कम ही थे और अब वह उसे खत्म ही करना चाहती थी।

जैसे ही उस हमलावर ने चाक़ू छोड़ा वह रीत के हाथ में पहुँच गया।

लेकिन उसके साथ ही साथ हमलावर के साथी ने खुली खिड़की से इंट्री मारी , रीत की पीठ उसकी ओर थी।
,
करन ने उसे अपने गन पे निशाने पे लेने की कोशिश की , लेकिन उसके पहले ही वो रीत के ठीक पीछे था , और उसका एक हाथ रीत की गर्दन में फंसा था , और दूसरे हाथ में पिस्तौल सीधे रीत की गर्दन पर।

और उस पिस्टल का दबाव रीत के साथ करन भी महसूस कर रहा था।

पहला हमलावर तो गिर गया था। उसका एक हाथ और पैर एकदम बेकार हो चुके थे और बाकी दोनों भी सिर्फ २० % काम कर रहे थे। १०-१२ हड्डियां ,लिगामेंट ,कार्टिलेज टूट चुके थे , और वह अब किसी काम का नहीं रह गया था।

लेकिन दूसरे हमलावर का पिस्टल का दबाव अब रीत के गर्दन के पिछले भाग पर बढ़ता जा रहा था।

रीत के हाथ से चाक़ू छूट का बिस्तर के नीचे गिर गया था।

लेकिन करन के हाथ में जो गन थी उसका निशाना भी सीधे दूसरे हमलावर के माथे के बीच था , और २०० फिट से करन का निशाना नहीं चुकता था यहाँ तो यह मुश्किल से ६-७ फीट की दूरी पर रहा होगा।

और ये बात हमलावर भी जानता था , एक साथ एक बार में वह रीत और करन को एलिएमनेट नहीं कर सकता था , जैसे उसकी पिस्टल चलेगी वो जानता था करन की गोली भी चल निकलेगी। यह सिर्फ रीत थी जो उसके और उसकी मौत के बीच में थी।



स्टेलमेंट।

करन को भी मालूम था की इस हमलावर को मौत का डर नहीं और वह रीत पर किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहता था

एक पल का गलत फैसला और,… मौत।

रीत भी जानती थी उसके पीछे खड़ा मौत का सौदागर ,प्रोफेशनल है और उसका कोई भी वार कुहनी का , घुटने का सिर्फ एक रिएक्शन करायेगा। वो ट्रिगर दबा देगा और पिस्टल एकदम उसके गले पर सरवाइकल वर्टिब्रा के ठीक ऊपर उसने सटा रखी थी। हलकी सी चोट भी दिमाग से जोड़ने वाली सारी धमिनयों , शिराओं और नर्व्स को तोड़ देता साथ ही ट्रेकिया को भी। डेथ इन्सटनटेनियस होती।


हमलावर अपने पिस्टल से करन को इशारा कर रहा था था की वो अपनी गन जमीन पर फ़ेंक दे वरना रीत पर गोली चल जायेगी।

उस काली रात की चादर में लिपटे कमरे में तीनो सिर्फ सिलयुहेट से लग रहे थे।

उस हमलावर को कमरे में घुसे एक मिनट भी मुश्किल से हुआ होगा लेकिन लग रहा था की युग बीत गया।

बिना कुछ बोले , वो एक दूसरे को चैलेन्ज कर रहे थे , और दिमाग पढ़ रहे थे।

करन ने देखा की हमलावर की भौंहे तनती जा रही हैं , उसका चेहरा और कड़ा हो गया है।

इसका मतलब उसने फैसला ले लिया है। और वह फैसला एक ही हो सकता है ,उसने रीत को शूट करना तय कर लिया है।


करन ने अपनी आँखों में थोड़ा डर पैदा किया और हमलावर को इशारा किया की वो अपनी गन नीचे कर रहा है।

करन जानता था की जैसे ही उसकी गन जमींन छूएगी , हमलावर की पिस्टल पहले रीत का शिकार करेगी फिर उसका।



मुस्कराकर हमलावर ने उसकी बात मान ली और रीत की गर्दन पर से हाथ और पिस्टल का दबाव कुछ कम किया।

लेकिन वह नहीं देख पाया की रीत और करन ने क्या बात की , सिर्फ हलके से मुस्कराकर।


और फिर बिजली की तेजी से कई घटनाएं हुईं।

रीत ने आँख बंद कर स्मरण किया और एकदम से अपनी साँस रोक ली।

उसकी देह एकदम लकड़ी सी हो गयी और सरककर वह दो इंच नीचे हो गयी।

अपनी गरदन भी उसने झुका ली , और उसी समय


करन के गन से गोली निकली। रीत के बालों को रगड़ती सीधे हमलावर के दोनों आँखों के बीच।

हमलावर ने जिस हाथ से रीत को पकड़ रखा था वो थोड़ी और ढीली हुयी और रीत सरक कर नीचे।

उसे मालूम था की गोली की आवाज सुनते ही रिएक्शन के तौर पर वह ट्रिगर दबा देगा , और यही हुआ।

हमलावर की दो गोलियां रीत से आधे इंच बगल से गुजरीं।

लेकिन करन का निशाना , पहली गोली ने जो छेद किया था दूसरी गोली भी उसी में लगी।

और रीत ने गिरते हुए उस हमलावर के डूंगरी से कमांडो नाइफ निकाल ली थी।








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