Monday, August 17, 2015

FUN-MAZA-MASTI एक परिवार ऐसा भी-7

FUN-MAZA-MASTI


एक परिवार ऐसा भी-7
गतान्क से आगे ............
दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक परिवार ऐसा भी का सातवाँ
 पार्ट लेकर हाजिर हूँ दोस्तो अब आप कहानी का मज़ा लीजिए

"जानू आज तुम्हे एक और चीज़ सीखनी है," विजय उसकी गान्ड मे अपनी

एक उंगली घुसाते हुए बोला.

विजय का हाथ अपनी गान्ड पर महसूस कर शीला समझ गयी कि उसका
भाई उसकी गान्ड भी मारना चाहता है, "क्या मेरी गान्ड मारने का इरादा
है?"

"तुम्हे गान्ड मारने के विषय मे किसने बताया?" विजय ने उससे पूछा,
वो मन ही मन सोचने लगा कि कहीं शीला पहले सिर्फ़ गान्ड तो नही
मरवा चुकी.

"एक सहेली ने और सुनीता दीदी ने." शीला ने जवाब दिया.

"विजय पीछे से उसकी टाँगों के बीच आ गया और उसकी गान्ड को
चूमने लगा, और अपनी ज़ुबान उसकी गंद के छेद पर घुमाने
लगा, "और क्या बताया मेरी जान?"

शीला को विजय के मुँह से निकलती गर्म साँसे उसे अपनी गान्ड पर
बहुत अच्छी लग रही थी. उत्तेजना मे उसने अपनी टाँगो को और फैला
दिया जिससे विजय को आसानी हो सके.

"सुनीता दीदी ने मुझे बताया कि एक तो गान्ड मरवाने से गर्भ रह जाने
का ख़तरा नही रहता. उन्होने ये भी बताया कि शुरू मे दर्द तो बहुत
होता है पर बाद मे मज़ा भी उतना ही मिलता है." कहकर शीला ने
अपने कूल्हे थोड़ा उपर को उठा दिए.

"क्या गान्ड मरवाना चाहोगी?" विजय ने उसकी गान्ड मे उंगली घुसाते हुए
पूछा.

शीला ने मूड कर अपने भाई की ओर देखा, "भैया आप आराम से
करेंगे ना मुझे ज़्यादा तकलीफ़ तो नही होगी ना."

"तुम इसकी बिल्कुल चिंता मत करो में बड़े प्यार से करूँगा," विजय
ने कहा.

विजय ने उसकी गान्ड का चूमा लिया और अपना हाथ उसकी चूत पर रख
दिया जो पहली चुदाई के कारण थोड़ी सूज गयी थी. वो चाहता था कि
शीला अपने पूरे मन से गान्ड मरवाए और शायद यही सोच कर उसकी
चूत से खेलने लगा शायद गरम होने से वो खुद ही अपने आप कहे.

विजय ने देखा कि शीला की कोई प्रतिक्रिया नही हो रही थी, "बोलो
ना मेरी जान गान्ड मर्वानी है या नही?"

"भैया एक दिन तो इसका भी मज़ा लेना ही है, आपसे या फिर अपने पति
से तो फिर आज ही क्यों ना गान्ड मरवाने का मज़ा लूट लूँ." थोड़ी देर
सोचने के बाद शीला ने कहा.
"पर भैया थोड़ा धीरे धीरे करना."

विजय ने शीला को बिस्तर के किनारे पर खड़ा कर उसे घोड़ी बना
दिया. उसके सिर के नीचे तकिया लगा दिया और उसकी टाँगो को फैला
दिया. फिर उसकी गान्ड को सहलाते हुए छेद पर क्रीम लगाने लगा.
थोड़ी क्रीम अपनी उंगली मे ले उसने उंगली गान्ड के अंदर घुसा दी और
अंदर के हिस्से को चिकना करने लगा.

जैसे ही विजय की उंगली उसकी गान्ड मे घुसी शीला को हल्का सा दर्द
हुआ पर वैसा नही जैसा उसने सुना था. थोड़ी देर मे उसे विजय की
उंगली अपनी गंद मे अच्छी लगने लगी.

विजय ने भी महसूस किया कि शीला को भी अब मज़ा आने लगा है.
जिस तरह से उसकी उंगली बड़ी मुश्किल से उसकी गान्ड मे गयी थी उसे
पक्का यकीन हो गया कि आज तक इस उंगली के अलावा शीला की गान्ड मे
कुछ नही घुसा है.

उसने अपनी उंगली उसकी गान्ड से निकाल ली और अपने लॅंड को पकड़ कर
गान्ड के छेद पर रख दिया. उसने ज़ोर लगाकर अपना लंड अंदर घुसाने
की कोशिश की पर छेद इतना तंग था कि उसका सूपड़ा भी अंदर नही
घुस पाया.

विजय ने थोड़ी सी और क्रीम लेकर उसकी गान्ड पर अच्छी तरह लगाने
लगा. अब वो साथ ही उसकी चूत मे भी उंगली घुसा अंदर बाहर कर
रहा था.

विजय ने अब शीला के चुतताड को थोड़ा फैलाया और अपने लंड को और
ज़ोर लगाकर अंदर करने लगा.
शीला दर्द का मारे मरी जा रही थी. बड़ी मुश्किल से वो अपनी
चीख को मुँह मे दबा पाई. विजय ने थोड़ा और ज़ोर लगाकर अपना
सूपड़ा अंदर घुसा दिया. विजय शीला के दर्द की परवाह ना करते हुए
अपने लंड को थोड़ा थोड़ा अंदर घुसाने लगा.

जब करीब आधा लंड अंदर घुस गया तो विजय थोड़ी देर के लिए रुक
गया जिससे शीला की गान्ड उसके लंड को अच्छी तरह अड्जस्ट कर सके.
वो शीला को ज़्यादा तकलीफ़ नही देना चाहता था. वो उसकी पीठ और
चूतड़ सहला कर उसे आराम देने की कोशिश करने लगा.

थोड़ी देर मे ही शीला की साँसे शांत हो गयी और उसका बदन थोड़ा
ढीला पड़ने लगा. विजय ने शीला को शांत होते देखा तो दो तीन
छोटे धक्के लगा अपने लंड को और अंदर घुसा दिया.

शीला के मुँह से एक दर्द भरी चीख निकल पड़ी. उसने बिस्तर की
चादर को जोरों से पकड़ लिया और चिल्ला उठी, `ऊऊऊऊओ
हाईईईईईईईईईई मर गाइिईईईईई."

"ऑश भाइईईईया छोड़ दीजिए मेरी गान्ड फट गई है बाहर
निकाल लो अपनी लंड को��.." शीला रोते हुए बोल पड़ी, उसकी आँखों
से लगातार आँसू बह रहे थे.

विजय ने फिर भी उसकी चीख की परवाह नही की और ज़ोर का धक्का
मार अपने लंड को पूरा पूरा अंदर घुसा दिया. उसे याद है आंटी ने
उसे बताया था कि अगर ऐसे वक़्त मे वो अपना लंड किसी की गान्ड से
बाहर निकाल लेगा तो दुबारा वो उस गान्ड को नही मार पाएगा.

उसकी आंटी ने उसे समझाया था कि कुँवारी लड़की की गान्ड मारते वक़्त
शुरू मे दर्द होता है और वो कितना भी चिल्लाए "निकालो निकालो" पर
तुम अपना लंड बाहर नही निकालना, कारण 3 4 मिनिट के बाद उन्हे
इतना मज़ा आएगा कि वो रोज़ तुमसे गांद मरवाने खुद चली आएगी.

विजय ने आंटी की बातें याद कर शीला को बिस्तर पर दबा दिया
था और अपने लंड को उसकी गान्ड के अंदर घुमाने लगा.

शीला से दर्द सहन नही हो रहा था, वो अपना सिर इधर उधर पटक
रही थी, फिर विजय की ओर देखते हुए बोली, "प्लीज़ छोड़ दो मुझे
तुमने तो कहा था कि प्यार से करोगे पर तुमने अपना वादा तोड़ दिया."

"नही मेरी जान��..शुरू में तो हमेशा थोड़ी तकलीफ़ होती ही है,
तुम थोड़ा सब्र से काम लो." विजय धीरे से बोला और अपना हाथ उसके
बदन के नीचे से कर उसके मम्मो को सहलाने लगा, साथ ही उसके
निपल भी भींचने लगा.

विजय उसके चुतड़ों के बीच अपना लंड फँसे उसकी गान्ड को भी
सहला रहा था. वो इंतेज़ार कर रहा था कि कब शीला का दर्द कम हो
और उसे भी मज़ा आने लगे.

आख़िर शीला का दर्द कम हुआ और उसने अपने शरीर को ढीला छोड़
दिया.

शीला ने महसूस किया कि अब उसकी गंद मे दर्द नही हो रहा है, और
उसे लंड का एहसास भी अच्छा लगने लगा था. हल्का हल्का दर्द अब भी
हो रहा था पर उसे मज़ा भी आने लगा था.

विजय ने जाने के लिए थोड़े हल्के धक्के मारने शुरू किए. शीला
भी अब उत्तेजना मे आती जा रही थी, उसके मुँह से हल्की से सिसकारी
नकली और उसने विजय के हाथो को अपने चुचि पर दबा दिया.

विजय उसकी इस हरकत को देख मुस्कुरा पड़ा और अपने लंड को उसकी गांद
के अंदर बाहर करने लगा.

उत्तेजना मे शीला ने अपनी आँखे बंद कर ली और खुद अपनी चुचियों
को मसालने लगी. उसके मुँह से हल्की हल्की सिसकारियाँ निकल रही थी.

विजय ने उसके चुतताड पकड़े और अपने धक्कों की रफ़्तार बढ़ा दी.

"ओह भैया ओह हाआँ," शीला सिसक पड़ी.

करीब 10 मिनिट के बाद विजय के अंडकोषों मे तनाव उठने लगा और
उसने अपना वीर्य शीला की गान्ड मे छोड़ दिया. जब उसके लंड सेवीर्या की
एक एक बूँद निकल गयी तो वो शीला की पीठ पर "मज़ा आ गया"
कहकर लुढ़क गया.

थोड़ी देर सुसताने के बाद विजय ने करवट बदली और अपने लंड को
शीला की गान्ड से बाहर निकाल लिया. फिर बिस्तर की चादर से पहले
अपने लंड को पोंच्छा और फिर शीला की गान्ड भी साफ कर दी.

विजय ने धीरे से सहारा देते हुए शीला को बाथरूम मे ले गया और
उसे अच्छी तरह से सॉफ किया जिससे चुदाई का कोई नामो निशान बाकी
ना रह जाए.

बाथरूम से बाहर आने के बाद विजय ने बिस्तर की चादर बदल दी
और शीला  सॉफ स्लीपिंग गाउन पहन कर बिस्तर पर लेट गयी.
विजय ने उसके होठों को चूमा और अपने कमरे मे आ गया.

शायद संजोग ही था कि जैसे ही नहाने के लिए बाथरूम मे घूसा तो
उसने अपनी मा और सुनीता को घर मे घुसते सुना.

*******

अजय आज खुश नही था. बारिश की वजह से कोई धंधा नही हुआ
था. आज तो वो घर भी देरी से पहुँचा कारण रास्ते मे ट्रॅफिक
इतना जाम था और उपर से वो रह चलती वैश्या जिसे वो सुनीता
बुलाता था आ गयी थी.

मंगलवार की शाम को तो जैसे नियम ही बन गया था, वो आ जाती
थी अजय से चुदवाने के लिए. अजय भी उसे अपनी बेटी सुनीता
समझता और अपने मन की चुदाई की हर कल्पना को पूरा करने की
कोशिश करता. वो भी उसका पूरा साथ देती थी पर उसने कभी अजय
को अपनी गान्ड मारने नही दी. सवाल था पैसों का.

"पिताजी अगर लंड गान्ड मे डालने का इतना शौक है तो मेरी कीमत
बढ़ा दो?" उसने उसकी गान्ड मे उंगली करते विजय से कहा.

"तुम तो पहले भी कई बार गान्ड मरवा चुकी हो? में क्यों पैसे ज़्यादा
दू" विजय ने उससे कहा. दोनो बंद दुकान के अंदर ओर्ड बोर्ड के
डिब्बों पर लेटे हुए थे.

"हां कई लोग मेरी गान्ड मारते है, पर उसके लिए वो ज़्यादा पैसा देते
हैं मेरी जान," कहकेर उसने कॉंडम पहने उसके लंड को अपनी चूत के
मुँह से लगा दिया.

चुदाई का दौर मस्त गुज़रा था, वो उसे पिताजी बुलाती थी और वो उसे
सुनीता बेटी.

जब अजय वैश्या सुनीता की चूत मे अपना पानी छोड़ रहा था उसी
वक़्त उसका बड़ा बेटा विजय उसकी छोटी बेटी शीला की गान्ड मे अपना
पानी छोड़ रहा था.

और जब ये दोनो जगह चुदाई का दौर चल रहा था राज ट्रॅफिक मे
फँसा हुआ था. उसका लंड पूरी तरह से उसकी पैंट के अंदर तन कर
खड़ा था और उसे उम्मीद थी कि आज तो कम से कम सुनीता उसके लंड
को चूस कर उसका पानी छुड़ा देगी��.. उसी समय सुनीता अपनी मा
सीमा के साथ गोद मे अपने बच्चे को उठाए पानी भरे रास्तों से
गुज़र रही थी.
क्रमशः........................
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