FUN-MAZA-MASTI
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एक परिवार ऐसा भी --3
दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक परिवार ऐसा भी
का तीसरा भाग लेकर हाजिर हूँ
सुनीता ने अपनी गर्दन हाँ मे हिला दी. उसका ब्लाउस चुचि मे आते
ज़्यादा दूध से भीग गया था.
राज उठ कर उसके सामने आ गया और उसके आँखों मे झाँकने
लगा, "में कुछ आपकी मदद करूँ?" उसने पूछा.
सुनीता काफ़ी गरम थी. ख़ास तौर पर शाम के बाद तो उसकी गर्मी
शांत ही नही हुई थी. उसे चारों तरफ देखा और अंधेरे में
सीढ़ियों की तरफ बढ़ गयी. वो सीढ़ियों के बीच रुक गयी और राज
को आवाज़ देने लगी.
राज खामोशी से बैठा था कि उसने सुनीता की आवाज़ सुनी.
राज उठकर सीढ़ियों के बीच आया तो देखा कि सुनीता दीवार के सहारे
खड़ी थी, उसने अपना ब्लाउस खोल दिया था और उसकी चुचियाँ नग्न
थी.
राज उसके पास पहुँचा और किसी भूके बच्चे की तरह उसके निपल
को मुँह मे चूसने लगा साथ ही वो उसकी चुचियों को भी मसल रहा
था. सुनीता सिसकी और उसने अपने होठों को दांतो मे दबा लिया जिससे
उसकी सिसकारी ना सुनाई दे जाए.
जैसे जैसे राज उसकी चुचि को चूस और मसल रहा था सुनीता की
चूत मचलने लगी और फुदकने लगी.
सुनीता ने महसूस किया कि राज उसकी चुचि को चूस्ते हुए अपने बदन
को और उसे चिपका रखा है. उसका खड़ा लंड उसके पेट पर फनफना
रहा है.
सुनीता कामुकता मे सिसक पड़ी. उसका पति चुदाई का कोई भी मौका
हाथ से जाने नही देता था. काश उसका पति इस समय उसके साथ होता
और जब उसे लंड की ज़रूरत होती उसकी चूत की प्यास बुझाता.
राज कभी उसकी बाई चुचि को मुँह मे लेकर चूस्ता तो कभी दांई
चुचि को. राज ने सुनीता को इतना कस कर भींच रखा था की उसका
खड़ा लंड सुनीता के पेट पर ठोकर मार रहा था.
सुनीता की चूत के गर्मी ने उसे पागल कर दिया था और राज को उसकी
गोलियाँ मे उठते उबाल ने. राज को लग रहा था कि कहीं कुछ करने
से पहले ही उसका लंड पानी ना छोड़ दे. दोनो के दिमाग़ मे रिश्तों की
अहमियत दूर तक नही थी. इस समय अहमियत और ज़रूरत थी तो सिर्फ़
चुदाई की. दोनो इस वक्त सिर्फ़ चुदाई चाहते थे.
राज उसके कपड़े खोलने लगा और सुनीता ने राज के कपड़े उतार दिए.
दोनो इतने उत्तेजित थे कि उन्हे किसी बात का होश नही था. सुनीता ने
राज के लंड को पकड़ा और अपनी चूत के मुँह पर रख दिया.
राज थोड़ा सा झुका और और उसने सुनीता को संभालने के लिए उसके
चूतड़ को पकड़ लिया. सुनीता के अनुभवी हाथों ने उसके लंड को ठीक
से अपनी छूट से लगाया और राज ने एक धक्का लगाकर अपना लंड उसकी
चूत मे घुसा दिया.
सुनीता की चूत की गर्मी और कसावट ने राज को पागल कर दिया. जैसे
ही उसका लंड अंदर घुसा उसने धक्के मारने शुरू कर दिए. राज को
अंदाज़ा नही था कि हक़ीक़त मे लड़की की चूत ऐसी होती है. इतनी
मुलायम, इतनी गरम और इतनी कसी.
राज ने सुनीता के चुतड़ों को कस कर पकड़ा और अपने से चिपकाते हुए
धक्के मारने लगा. दोनो की छातियाँ एक दूसरे से धँसी हुई थी.
दोनो जोरों से सिसक रहे थे और चुदाई का मज़ा ले रहे थे. राज
इतना उत्तेजित था कि 8-10 धक्कों मे ही उसके लंड ने पानी छोड़ दिया.
दोनो का शरीर पसीने मे नाहया हुआ था. राज के लंड ने वक़्त से
पहले पानी छोड़ दिया था और उसकी चूत ने पानी छोड़ा नही था. पर
उसे इस बात की फ़िक्र नही थी आगे और भी मौके आनेवाले थे.
............................. ........................
"आराम से राज," सुनीता अपने भाई के कान मे फुसफुसाया. राज अपनी
बेहन के उपर लेटा हुआ था और अपने चूतड़ उछाल उछाल उसे चोद
रहा था.
"ओह.. दीदी," राज सिसका "अब मुझसे बर्दाश्त नही होता," इतना
कहकर उसने अपना वीर्य अपनी बेहन की चूत मे छोड़ दिया.
सुनीता राज के वीर्य को अपनी चूत मे अंदर तक गिरता महसूस कर
रही थी. सुनीता खुद झड़ने के कगार पर थी इस बार भी राज के लंड ने
पानी जल्दी छोड़ दिया. वो फिर प्यासी रह गयी.
राज सुनीता के उपर से हटा और उसके बगल मे लेट गया. सुबह होने को
आ रही थी. पूरा घर नींद मे सोया हुआ था. राज का बड़ा भाई विजय
जिसके साथ वो अपना कमरे शेर करता था, सरकारी काम से सहर के
बाहर गया हुआ था.
चुदाई की इच्छा और उस पर से मौका, इसी वजह से सुनीता रात को
चुपके से राज के कमरे मे आ गयी थी. आज तीसरा दिन था जो वो राज
के कमरे मे आई थी. विजय आज शाम के वक़्त कभी भी आ सकता
था.
सुनीता बिस्तर से उठी और अपने कपड़े पहनने लगी. उसका बच्चा
कभी भी उठ सकता था और उसकी छोटी बेहन शीला उसे ढूँढने
लगे गी. उसने महसूस किया कि उसके भाई का वीर्य उसकी चूत से बह
कर उसकी टाँगो को भीगो रहा है. उसने अपने भाई की ओर देखा जो
बिस्तर पर नंगा लेटा हुआ था, उसका लंड मुरझा गया था. उसका मन
किया की आगे बढ़ कर वो उसके लंड को मुँह मे लेकर चूसे पर समय
कम था.
सुनीता जैसे ही कमरे के बाहर निकल अंधेरे मे आगे बढ़ी किसी के
हाथों ने उसे कमर से पकड़ा और अपना एक हाथ उसके मुँह पर रख
उसकी चीख को दबा दिया.
"डरो मत सुनीता," एक मर्दाना आवाज़ उसके कानो मे पड़ी, "ये में
हूँ विजय."
विजय ने अपने कमरे का दरवाज़ा खोला और सुनीता को एक बार फिर अपने
कमरे मे धकेल दिया.
राज हड़बड़ा कर बिस्तर पर उठकर बैठ गया. वो अभी भी नंगा ही
था. उसने देखा की किस तरह विजय ने सुनीता को कमरे के अंदर
धकेला था.
सुनीता कमरे मे आते ही एक कोने मे अपने चेहरे को हाथों मे छुपाए
खड़ी हो गयी. शरम के मारे उसे विजय से आँखे मिलाने की हिम्मत
नही हो रही थी. राज ने जल्दी से चादर को अपने नंगे बदन पर डाल
लिया और अपने मुरझाए लंड को छुपाने की कोशिश करने लगा.
विजय एक शैतानी मुस्कुराहट के साथ बिस्तर के कोने पर बैठ
गया, "माफ़ करना पर ये सब क्या हो रहा है?"
राज और सुनीता के मुँह से एक शब्द भी नही निकला, दोनो खामोश
जैसे थे वैसे ही रहे.
"खोमोश रहकर मासूम बनने की कोशिश मत करो, मेने अपनी आँखों
से सब कुछ देखा है," विजय ने धीरे से कहा.
जैसे जैसे विजय बोलता जा रहा था, राज का शरीर डर के मारे
काँप रहा था. उसे डर लग रहा था की पता नही विजय अब क्या
करेगा.
डर तो सुनीता को भी लग रहा था फिर भी उसने हिम्मत करके
पूछा, "क्या देखा तुमने?"
सुनीता ने अपने कपड़े ठीक किए और इस तरह बनने लगी जैसे उससे
मासूम और नादान कोई है ही नही, पर साथ ही वो राज के वीर्य को
अपनी चूत और जाँघो पर महसूस कर रही थी.
विजय ने उसकी ओर देखा और मुस्कुरा पड़ा, "तुम्हे और राज को देखा
क्या इसके आगे भी बताऊ की मेने क्या देखा."
फिर धीरे से हंसते हुए बोला, "या फिर तुम्हारे कपड़े उतारू और
तुम्हे तुम्हारी चूत मे राज का वीर्य दिखाउ."
"में और राज.. तुम्हारा कहने का मतलब क्या है, तुम क्या कह रहे
हो मेरी तो कुछ समझ मे नही आ रहा." सुनीता ने थोड़ी
कंपकँपति आवाज़ मे कहा.
फिर विजय ने बताना शुरू किया कि किस तरह वो वक़्त से पहले घर
आ गया था. उसे उस समय अपने कमरे से अजीब सी आवाज़ें सुनाई दे
रही थी, उसने देखा की कमरे का दरवाज़ा बंद नही था. तब उसने
कमरे मे झाँक कर देखा तो पाया कि पलंग के साइड मे नाइट लॅंप जल
रहा था, और उसने नंगे राज को किस तरह सुनीता की चूत मारते
देखा. फिर राज किस तरह झाड़ कर सुनीता पर लेट गया था.
विजय की बात सुनकर सुनीता ने राज को कस कर एक थप्पड़ मार
दिया, "कितनी बार तुमसे कहा था कि दरवाज़ा अच्छी तरह से बंद कर
लिया करो पर तुम हो कि मेरी बात सुनते ही नही हो."
सुनीता की हालत देख विजय को हँसी आ गयी और वो अपनी कोहनी के
बल बिस्तर पर अपनी टाँगे फैला लेट सा गया.
"अब बस भी करो सुनीता, ना तो मेने शोर मचाया है और ना ही तुम
दोनो को मारा या कुछ कहा है." विजय ने हंसते हुए कहा.
विजय ने अपना हाथ अपनी पैंट के उपर से अपने खड़े लंड पर रखा
और लंड को सहलाते हुए बोला, "में तुम्हारी और राज की हालत समझ
सकता हूँ, में ये बात जानता हू कि इस उमर मे सभी को सेक्स की
ज़रूरत होती है ! मुझे भी ज़रूरत है."
राज और सुनीता एक दूसरे को हैरत भरी नज़रों से देखने लगे.
विजय इतनी आराम से ये बात कह गया था की उनकी समझ मे नही आया
की क्या कहें और क्या करें.
"तुम कुछ समझी?" राज ने सुनीता से पूछा.
सुनीता ने अपनी गर्दन हाँ मे हिला दी. अब वो विजय की पैंट मे उभरे
उभार को देख रही थी. सुनीता ने मन ही मन विजय से चुदवाने का
फ़ैसला कर लिया था. एक भाई से तो वो चुदवा ही चुकी थी फिर दूसरे
से चुदवाने मे उसे क्या आपत्ति हो सकती थी. लंड लंड ही होता है
चाहे वो किसी का भी हो.
विजय ने सोचा की उसे ही पहल करनी होगी इसलिए उसने धीरे से
सुनीता से कहा, "बाथरूम मे जाकर अपनी चूत को अच्छी तरह धो
कर आओ. राज तुम सुनीता के आने के बाद नहाने चले जाना."
इतना कहने के बाद विजय कमरे के दरवाज़े की ओर बढ़ा और उसे अच्छी
तरह अंदर से बंद कर लिया. सुनीता बाथरूम मे घुस गयी थी अपनी
चूत को सॉफ करने के लिए और विजय ने अपने कपड़े उतार दिए.
जब सुनीता बाथरूम से बाहर आई तो उसे पता था कि अब आगे क्या
होने वाला है.
राज और विजय करीब करीब दीखने मे एक से थे. वही 5'8 की
लंबाई, गतिला शरीर, चौड़े कंधे. फ़र्क सिर्फ़ इतना था की विजय
के बॉल राज के बालो से ज़्यादा घने और काले थे.
ये सोच कर की आगे क्या होने वाला है राज का लंड एक बार फिर खड़ा
होने लगा था. शायद उसे देखने को मिल जाय कि उसका बड़ा भाई और बेहन
कैसे चुदाई करते है.
"राज! बड़ा हरामी है तू? तुमने तो अपने हिस्से का मज़ा ले लिया है अब
तू अंदर जा." विजय अपनी पैंट के बटन खोलते हुए बोला.
सुनीता ने देखा की विजय की बात सुनकर राज भागकर बाथरूम मे घुस
गया था. सुनीता ने विजय के कहने पर बाथरूम की कड़ी बाहर से
लगा दी.
"वो साला बहन्चोद यहाँ रहा तो हमे देखते रहेगा, अब वो अंदर
मूठ मारेगा," विजय हंसते हुए बोला और अपनी पैंट उतारने लगा.
सुनीता ने मूड कर अपने भाई विजय की ओर देखा जो अपने लंड की
गोलियों को सहला रहा था. सुनीता को ये देखकर ताज्जुब हुआ कि विजय
के लंड पर लड़कियों की तरह एक भी बॉल नही था. बिना झांतो का
लंड काफ़ी लंबा और मोटा दीखाई दे रहा था.
सुनीता मन ही मन विजय के लंड को राज के लंड से तुलना करने लगी.
विजय का लंड राज के लंड से तकरीबन 3' से 4' इंच लंबा था और
सबसे बड़ी बात तो वो उसके पति के लंड से भी लंबा था.
क्रमशः .............................. ...................
दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक परिवार ऐसा भी
का तीसरा भाग लेकर हाजिर हूँ
सुनीता ने अपनी गर्दन हाँ मे हिला दी. उसका ब्लाउस चुचि मे आते
ज़्यादा दूध से भीग गया था.
राज उठ कर उसके सामने आ गया और उसके आँखों मे झाँकने
लगा, "में कुछ आपकी मदद करूँ?" उसने पूछा.
सुनीता काफ़ी गरम थी. ख़ास तौर पर शाम के बाद तो उसकी गर्मी
शांत ही नही हुई थी. उसे चारों तरफ देखा और अंधेरे में
सीढ़ियों की तरफ बढ़ गयी. वो सीढ़ियों के बीच रुक गयी और राज
को आवाज़ देने लगी.
राज खामोशी से बैठा था कि उसने सुनीता की आवाज़ सुनी.
राज उठकर सीढ़ियों के बीच आया तो देखा कि सुनीता दीवार के सहारे
खड़ी थी, उसने अपना ब्लाउस खोल दिया था और उसकी चुचियाँ नग्न
थी.
राज उसके पास पहुँचा और किसी भूके बच्चे की तरह उसके निपल
को मुँह मे चूसने लगा साथ ही वो उसकी चुचियों को भी मसल रहा
था. सुनीता सिसकी और उसने अपने होठों को दांतो मे दबा लिया जिससे
उसकी सिसकारी ना सुनाई दे जाए.
जैसे जैसे राज उसकी चुचि को चूस और मसल रहा था सुनीता की
चूत मचलने लगी और फुदकने लगी.
सुनीता ने महसूस किया कि राज उसकी चुचि को चूस्ते हुए अपने बदन
को और उसे चिपका रखा है. उसका खड़ा लंड उसके पेट पर फनफना
रहा है.
सुनीता कामुकता मे सिसक पड़ी. उसका पति चुदाई का कोई भी मौका
हाथ से जाने नही देता था. काश उसका पति इस समय उसके साथ होता
और जब उसे लंड की ज़रूरत होती उसकी चूत की प्यास बुझाता.
राज कभी उसकी बाई चुचि को मुँह मे लेकर चूस्ता तो कभी दांई
चुचि को. राज ने सुनीता को इतना कस कर भींच रखा था की उसका
खड़ा लंड सुनीता के पेट पर ठोकर मार रहा था.
सुनीता की चूत के गर्मी ने उसे पागल कर दिया था और राज को उसकी
गोलियाँ मे उठते उबाल ने. राज को लग रहा था कि कहीं कुछ करने
से पहले ही उसका लंड पानी ना छोड़ दे. दोनो के दिमाग़ मे रिश्तों की
अहमियत दूर तक नही थी. इस समय अहमियत और ज़रूरत थी तो सिर्फ़
चुदाई की. दोनो इस वक्त सिर्फ़ चुदाई चाहते थे.
राज उसके कपड़े खोलने लगा और सुनीता ने राज के कपड़े उतार दिए.
दोनो इतने उत्तेजित थे कि उन्हे किसी बात का होश नही था. सुनीता ने
राज के लंड को पकड़ा और अपनी चूत के मुँह पर रख दिया.
राज थोड़ा सा झुका और और उसने सुनीता को संभालने के लिए उसके
चूतड़ को पकड़ लिया. सुनीता के अनुभवी हाथों ने उसके लंड को ठीक
से अपनी छूट से लगाया और राज ने एक धक्का लगाकर अपना लंड उसकी
चूत मे घुसा दिया.
सुनीता की चूत की गर्मी और कसावट ने राज को पागल कर दिया. जैसे
ही उसका लंड अंदर घुसा उसने धक्के मारने शुरू कर दिए. राज को
अंदाज़ा नही था कि हक़ीक़त मे लड़की की चूत ऐसी होती है. इतनी
मुलायम, इतनी गरम और इतनी कसी.
राज ने सुनीता के चुतड़ों को कस कर पकड़ा और अपने से चिपकाते हुए
धक्के मारने लगा. दोनो की छातियाँ एक दूसरे से धँसी हुई थी.
दोनो जोरों से सिसक रहे थे और चुदाई का मज़ा ले रहे थे. राज
इतना उत्तेजित था कि 8-10 धक्कों मे ही उसके लंड ने पानी छोड़ दिया.
दोनो का शरीर पसीने मे नाहया हुआ था. राज के लंड ने वक़्त से
पहले पानी छोड़ दिया था और उसकी चूत ने पानी छोड़ा नही था. पर
उसे इस बात की फ़िक्र नही थी आगे और भी मौके आनेवाले थे.
.............................
"आराम से राज," सुनीता अपने भाई के कान मे फुसफुसाया. राज अपनी
बेहन के उपर लेटा हुआ था और अपने चूतड़ उछाल उछाल उसे चोद
रहा था.
"ओह.. दीदी," राज सिसका "अब मुझसे बर्दाश्त नही होता," इतना
कहकर उसने अपना वीर्य अपनी बेहन की चूत मे छोड़ दिया.
सुनीता राज के वीर्य को अपनी चूत मे अंदर तक गिरता महसूस कर
रही थी. सुनीता खुद झड़ने के कगार पर थी इस बार भी राज के लंड ने
पानी जल्दी छोड़ दिया. वो फिर प्यासी रह गयी.
राज सुनीता के उपर से हटा और उसके बगल मे लेट गया. सुबह होने को
आ रही थी. पूरा घर नींद मे सोया हुआ था. राज का बड़ा भाई विजय
जिसके साथ वो अपना कमरे शेर करता था, सरकारी काम से सहर के
बाहर गया हुआ था.
चुदाई की इच्छा और उस पर से मौका, इसी वजह से सुनीता रात को
चुपके से राज के कमरे मे आ गयी थी. आज तीसरा दिन था जो वो राज
के कमरे मे आई थी. विजय आज शाम के वक़्त कभी भी आ सकता
था.
सुनीता बिस्तर से उठी और अपने कपड़े पहनने लगी. उसका बच्चा
कभी भी उठ सकता था और उसकी छोटी बेहन शीला उसे ढूँढने
लगे गी. उसने महसूस किया कि उसके भाई का वीर्य उसकी चूत से बह
कर उसकी टाँगो को भीगो रहा है. उसने अपने भाई की ओर देखा जो
बिस्तर पर नंगा लेटा हुआ था, उसका लंड मुरझा गया था. उसका मन
किया की आगे बढ़ कर वो उसके लंड को मुँह मे लेकर चूसे पर समय
कम था.
सुनीता जैसे ही कमरे के बाहर निकल अंधेरे मे आगे बढ़ी किसी के
हाथों ने उसे कमर से पकड़ा और अपना एक हाथ उसके मुँह पर रख
उसकी चीख को दबा दिया.
"डरो मत सुनीता," एक मर्दाना आवाज़ उसके कानो मे पड़ी, "ये में
हूँ विजय."
विजय ने अपने कमरे का दरवाज़ा खोला और सुनीता को एक बार फिर अपने
कमरे मे धकेल दिया.
राज हड़बड़ा कर बिस्तर पर उठकर बैठ गया. वो अभी भी नंगा ही
था. उसने देखा की किस तरह विजय ने सुनीता को कमरे के अंदर
धकेला था.
सुनीता कमरे मे आते ही एक कोने मे अपने चेहरे को हाथों मे छुपाए
खड़ी हो गयी. शरम के मारे उसे विजय से आँखे मिलाने की हिम्मत
नही हो रही थी. राज ने जल्दी से चादर को अपने नंगे बदन पर डाल
लिया और अपने मुरझाए लंड को छुपाने की कोशिश करने लगा.
विजय एक शैतानी मुस्कुराहट के साथ बिस्तर के कोने पर बैठ
गया, "माफ़ करना पर ये सब क्या हो रहा है?"
राज और सुनीता के मुँह से एक शब्द भी नही निकला, दोनो खामोश
जैसे थे वैसे ही रहे.
"खोमोश रहकर मासूम बनने की कोशिश मत करो, मेने अपनी आँखों
से सब कुछ देखा है," विजय ने धीरे से कहा.
जैसे जैसे विजय बोलता जा रहा था, राज का शरीर डर के मारे
काँप रहा था. उसे डर लग रहा था की पता नही विजय अब क्या
करेगा.
डर तो सुनीता को भी लग रहा था फिर भी उसने हिम्मत करके
पूछा, "क्या देखा तुमने?"
सुनीता ने अपने कपड़े ठीक किए और इस तरह बनने लगी जैसे उससे
मासूम और नादान कोई है ही नही, पर साथ ही वो राज के वीर्य को
अपनी चूत और जाँघो पर महसूस कर रही थी.
विजय ने उसकी ओर देखा और मुस्कुरा पड़ा, "तुम्हे और राज को देखा
क्या इसके आगे भी बताऊ की मेने क्या देखा."
फिर धीरे से हंसते हुए बोला, "या फिर तुम्हारे कपड़े उतारू और
तुम्हे तुम्हारी चूत मे राज का वीर्य दिखाउ."
"में और राज.. तुम्हारा कहने का मतलब क्या है, तुम क्या कह रहे
हो मेरी तो कुछ समझ मे नही आ रहा." सुनीता ने थोड़ी
कंपकँपति आवाज़ मे कहा.
फिर विजय ने बताना शुरू किया कि किस तरह वो वक़्त से पहले घर
आ गया था. उसे उस समय अपने कमरे से अजीब सी आवाज़ें सुनाई दे
रही थी, उसने देखा की कमरे का दरवाज़ा बंद नही था. तब उसने
कमरे मे झाँक कर देखा तो पाया कि पलंग के साइड मे नाइट लॅंप जल
रहा था, और उसने नंगे राज को किस तरह सुनीता की चूत मारते
देखा. फिर राज किस तरह झाड़ कर सुनीता पर लेट गया था.
विजय की बात सुनकर सुनीता ने राज को कस कर एक थप्पड़ मार
दिया, "कितनी बार तुमसे कहा था कि दरवाज़ा अच्छी तरह से बंद कर
लिया करो पर तुम हो कि मेरी बात सुनते ही नही हो."
सुनीता की हालत देख विजय को हँसी आ गयी और वो अपनी कोहनी के
बल बिस्तर पर अपनी टाँगे फैला लेट सा गया.
"अब बस भी करो सुनीता, ना तो मेने शोर मचाया है और ना ही तुम
दोनो को मारा या कुछ कहा है." विजय ने हंसते हुए कहा.
विजय ने अपना हाथ अपनी पैंट के उपर से अपने खड़े लंड पर रखा
और लंड को सहलाते हुए बोला, "में तुम्हारी और राज की हालत समझ
सकता हूँ, में ये बात जानता हू कि इस उमर मे सभी को सेक्स की
ज़रूरत होती है ! मुझे भी ज़रूरत है."
राज और सुनीता एक दूसरे को हैरत भरी नज़रों से देखने लगे.
विजय इतनी आराम से ये बात कह गया था की उनकी समझ मे नही आया
की क्या कहें और क्या करें.
"तुम कुछ समझी?" राज ने सुनीता से पूछा.
सुनीता ने अपनी गर्दन हाँ मे हिला दी. अब वो विजय की पैंट मे उभरे
उभार को देख रही थी. सुनीता ने मन ही मन विजय से चुदवाने का
फ़ैसला कर लिया था. एक भाई से तो वो चुदवा ही चुकी थी फिर दूसरे
से चुदवाने मे उसे क्या आपत्ति हो सकती थी. लंड लंड ही होता है
चाहे वो किसी का भी हो.
विजय ने सोचा की उसे ही पहल करनी होगी इसलिए उसने धीरे से
सुनीता से कहा, "बाथरूम मे जाकर अपनी चूत को अच्छी तरह धो
कर आओ. राज तुम सुनीता के आने के बाद नहाने चले जाना."
इतना कहने के बाद विजय कमरे के दरवाज़े की ओर बढ़ा और उसे अच्छी
तरह अंदर से बंद कर लिया. सुनीता बाथरूम मे घुस गयी थी अपनी
चूत को सॉफ करने के लिए और विजय ने अपने कपड़े उतार दिए.
जब सुनीता बाथरूम से बाहर आई तो उसे पता था कि अब आगे क्या
होने वाला है.
राज और विजय करीब करीब दीखने मे एक से थे. वही 5'8 की
लंबाई, गतिला शरीर, चौड़े कंधे. फ़र्क सिर्फ़ इतना था की विजय
के बॉल राज के बालो से ज़्यादा घने और काले थे.
ये सोच कर की आगे क्या होने वाला है राज का लंड एक बार फिर खड़ा
होने लगा था. शायद उसे देखने को मिल जाय कि उसका बड़ा भाई और बेहन
कैसे चुदाई करते है.
"राज! बड़ा हरामी है तू? तुमने तो अपने हिस्से का मज़ा ले लिया है अब
तू अंदर जा." विजय अपनी पैंट के बटन खोलते हुए बोला.
सुनीता ने देखा की विजय की बात सुनकर राज भागकर बाथरूम मे घुस
गया था. सुनीता ने विजय के कहने पर बाथरूम की कड़ी बाहर से
लगा दी.
"वो साला बहन्चोद यहाँ रहा तो हमे देखते रहेगा, अब वो अंदर
मूठ मारेगा," विजय हंसते हुए बोला और अपनी पैंट उतारने लगा.
सुनीता ने मूड कर अपने भाई विजय की ओर देखा जो अपने लंड की
गोलियों को सहला रहा था. सुनीता को ये देखकर ताज्जुब हुआ कि विजय
के लंड पर लड़कियों की तरह एक भी बॉल नही था. बिना झांतो का
लंड काफ़ी लंबा और मोटा दीखाई दे रहा था.
सुनीता मन ही मन विजय के लंड को राज के लंड से तुलना करने लगी.
विजय का लंड राज के लंड से तकरीबन 3' से 4' इंच लंबा था और
सबसे बड़ी बात तो वो उसके पति के लंड से भी लंबा था.
क्रमशः ..............................
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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