Sunday, August 30, 2015

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--189

  FUN-MAZA-MASTI

   फागुन के दिन चार--189


 रीत





मिलन के बाद की नींद बहुत गाढ़ी होती है , और ऊपर से जब इत्ती लम्बी जंग खत्म हुयी हो , उसका टेंशन दूर हुआ हो , इतने दिन बाद साजन से भेंट हुयी हो।

तीनो गाढ़ी नींद में थे , बस नींद में कुछ उल्टा पुल्टी हुयी और अब रीत और मीनल अगल बगल और करन ,किनारे।


इतने दिनों तक दुर्दांत परस्थितियों से लड़ने के कारण ,या काशी के कोतवाल और दसों महाविद्याओं के आशीर्वाद के कारण , उसकी योग की दीक्षा के कारण या पता नहीं क्यों , रीत की छठी इन्द्रिय कुछ ज्यादा जागृत थी। कोई भी खतरा अानेवाला हो उसे १०-१२ मिनट पहले ही अंदाजा लग जाता था

और इसके कारण , कितनी बार वो दुश्मनों के खतरनाक से खतरनाक वार बचा ले जाती थी।

जहाँ किसी को कुछ भी हवा नहीं रहती थी वो खतरे को सूंघ लेती थी और भले ही उसकी सारी इन्द्रियां सुषुप्तावस्था में हो , उसके दिमाग में खतरे की घंटी बज जाती थी और पल भर में न वो सिर्फ चैतन्य हो जाती थी बल्कि , आनेवाले संकट से लड़ने उसे पराजित करने को , अपने आप उसकी दैहिक शक्तियां ,मेधा सब कुछ १०० गुना ऊर्जा के साथ जागृत होजाती थी।

और यही हुआ।

रीत की आँख खुली। सब कुछ वैसा का वैसा था।

कमरे में अँधेरा था , खिड़की का पर्दा हलका सा खुला था जिससे पास की समुद्र की हलकी हलकी लहरें दिख रही थीं।

दरवाजा खिड़की सब बंद थी , कोई भी आवाज नहीं आ रही थी। उसके कान एकदम जग चुके थे और अगर कोई चूहा भी चलता तो उसे सुनाई देता।

लेकिन चारो ओर चुप्पी थी।


उसकी खुली आँखे अब अँधेरे की अभ्यस्त हो गयी थी और बिना सर हिलाये अपने पेरीफेरल विजन से उसने देख लिया था , कहीं कुछ भी गड़बड़ नहीं था।

फिर भी उसके दिमाग में घंटी जोर जोर से बज रही थी।

बिना हिले चुपचाप उसने बगल में लेती मीनल का हाथ दबाया , वो भी जग चुकी थी।

अब तक उन दोनों की फिजिक्स केमिस्ट्री सब परफेक्ट हो चुकी थी और बिना कहे , बिना इशारे के दोनों एक दूसरे की मन की बात समझ लेती थीं। मीनल ही अब आपरेशन मोड़ चुकी थी।

उसने बगल में रखा रिमोट दबा दिया , जो पहले से ही म्यूट मोड़ में था।

कंट्रोल रूम की फीड आनी शुरू हो गयी।

मीनल ने पहले तो उसे स्लो रिवाइंड किया , फिर फास्ट रिवाइंड।

तीन -चार मिनट पीछे तक।

दोनों बिना हिले दम साधे देखते रहीं।

'गडबड 'मीनल फुसफुसाई।

'महा गड़बड़ ' रीत उससे भी धीमे से बोली और मीनल का हाथ जोर से दबा दिया।

कंट्रोल रूम की फीड में एक आपरेटर मॉनिटर से देख रहा और दूसरा टेलिस्कोप से खिड़की से बाहर देख रहा था।


लेकिन तीन मिनट की रिवाइंड में दोनों के पोस्चर में कोई चेंज नहीं था , और न ही कोई हरकत।

इसका मतलब साफ था की कंट्रोल रूम पर दुशमन का कब्ज़ा हो चूका था। और उसने वहां की फीड को लूप पे लगा दिया था।

इसलिए यहाँ से देखने पे बजाय कंट्रोल रूम दिखने के ,वहां की कुछ देर पहले की रिकार्डेड सीन ही बार बार दिखती। और यही हालत बाहर से आने वाले फीड की होती।

मीनल ने टीवी बंद कर दिया।

रीत ने मीनल की चार उंगलिया मोड़ दी और खुद , पलंग के किनारे से सरक कर नीचे उतर गयी और जमीन से एकदम सट कर क्राल करते हुए दीवाल से लगे हुए कबर्ड् के पास पहुंची।

ऊँगली मोड़ के उसने अपना असेसमेंट मीनल को बता दिया था , ४-५ मिनट के बीच में हमला होगा , और उन्हें निशब्द, हमले के लिए तैयार रहना होगा। कंट्रोल रूम कम्प्रोमाइज होने के बाद बाहर से किसी हेल्प की इतनी कम समय में आने की उम्मीद करना बेकार होगा।

उन्हें खुद न्यूट्रलाइज करना होगा।
डेढ़ मिनट में रीत न सिर्फ कबर्ड के अंदर थी ,बल्कि एक बार पूरी तरह 'ड्रेस्ड ' थी।

रीत ने अपने शस्त्रों से अपने को पूरी तरह लैस करना शुरू कर दिया। उसके सबसे बड़े शस्त्र थे, उसकी तत्परमती, धैर्य और उसकी देह। कबर्ड के अंदर घुस कर उसने सारे टंगे कपडे अपने आगे कर लिए , जिससे अब वह पूरी तरह ढकी छुपी थी ,सिर्फ एक छोटी सी झीर्री थी और कबर्ड के दरवाजे भी उसने आलमोस्ट चिपका के रखे थे और वहां भी उसने सिर्फ एक हलकी सी झिर्री छोड़ रखी थी।

इतना काफी था उसके लिए बाहर की खबर रखने के लिए। आँखे उसने बंद कर ली , और अब देखने के लिए कान थे उसके पास। हलकी सी आहट ,हवा की सरसराहट , भी उसे सूचना दे देती आने वाले खतरे की।

जोर से उसने साँसे भींची और फिर अंदर की सारी हवा बाहर और साथ में सारा तनाव , दुश्मन के बारे में सोच ,सब कुछ बाहर। एक बार उसने फिर आँख बंद की , गहरी सांस ली काशी के कोतवाल के साथ सारी महाविद्याओं को याद किया , और धीमे धीमे ,… अब वह रीत नहीं रही। उसका पूरा शरीर एक अमोघ अस्त्र बन चूका था जिसका संधान किया जा चूका था और अब सिर्फ छोड़ने की देर थी।


और इन तीन मिनटों में करन भी पूरी तरह अलर्ट हो चुका था।

वह भी अपने अस्त्रों से लैस था और मीनल के साथ बिस्तर से उतरकर नीचे पलंग के छिपा था। मीनल भी उसके साथ थी और दोनों फर्श से एकदम चिपके थे।

बिस्तर से उतरने के पहले तकिये और कुशन उन्होंने इस तरह से लगा दिए थे की कोई पास से भी देखता तो उसे यही लगता की लोग रजाई के अंदर सो रहे हैं। यही नहीं उस बड़ी रजाई को उन्होंने इस तरह नीचे भी खींच दिया था की ,खिड़की की ओर वह करीब फर्श छो रही थी और बिना उसके हटाये , पलंग के नीचे झांकना भी मुश्किल था।

उन्हें आशंका यही थी की हमलावर खिड़की की ओर से ही घुसेंगे और उसके बाद की स्क्रिप्ट उनके घुसने के बाद ही तय होनी थी।

रीत कबर्ड के अंदर।

मीनल,करन पलंग के नीचे।

और बाहर से जो भी अंदर घुसेगा उसे यही लगेगा की वो सारे रजाई के अंदर गहरी नींद सो रहे हैं।

कुछ देर इन्तजार में गुजरा।

वो दो चार मिनट घण्टो ऐसे लगे।

रीत को लग रहा था की कंट्रोल को न्यूट्रलाइज करने के बाद हमले में ६-७ मिनट का समय लग सकता है।

उन्हें ये मालूम था की ये लोग कहीं बाहर नहीं जा सकते। इसलिए उनकी पहली प्रायरिटी होगी , सेफ हाउस चेक करना की वहां कोई और सपोर्ट स्टाफ या सिक्योरिटी स्टाफ तो नहीं है और अगर है तो उसे सिक्योर करना। उन लोगों के बेड रूम और कंट्रोल के अलावा , किचेन समेत तीन कमरे और थे।

इन कमरों के बाद , वह बाहर से आनेवाले किसी खतरे के लिए भी प्रोटेक्शन करते , और सारे कम्युनिकेशन डिस्ट्राय करते। इन सारे कामों में ६-७ मिनट का समय लगना था और रीत और करन के पास यही समय था , काउंटर अटैक के लिए तैयार होने का और डिफेंस सोचने का।

उस में से ४-५ मिनट निकल गए थे और अब किसी भी पल दुश्मन अंदर घुस सकता था।



हमलावर





दोनों क्राल करके बाहरी पैरामीटर तक पहुँच गए , और नाइट विजन ग्लासेज की सहायता से दूर से ही उन्होंने इलेक्ट्रिफाइड फेंस और कैमरे देख लिए थे।

उनके लिए उस फेन्स को काटना इंसुलेटेड वायर कटर से ज्यादा आसान था , लेकिन करेंट डिसकनेकट होते ही सर्किट ट्रिप होती और अलार्म बज जाता , दूसरे किस जोन में सर्किट ट्रिप हुयी थी ये पता चलते ही उनकी लोकेशन भी पता चल जाती।

कैमरे रोटेट कर रहे थे और उन्होंने ये भांप लिया था की दो मिनट का एक गैप आता है , जब करीब चार फिट फेन्स कैमरे की जद में नहीं आती।

बस उसी दो मिनट का इस्तेमाल कर के , उन्होंने तार का एक लूप जेब से निकाला और इलेकट्रिफाइड फेंस में लगा दिया। और पीछे क्रॉल कर गए।

अब अगले दो मिनट के गैप में उन्होंने उस लूप के बीच वायर काट दिया। लूप के कारण , इलेक्ट्रिल सर्किट ब्रेक नहीं हुयी और एकदम जमींन से सट कर घिसटते अंदर घुस गए।

एक के अंदर घुसने तक दूसरा बाहर इन्तजार करता रहा और जब कोई अलार्म नहीं बजा तो अगले गैप में दूसरा भी अंदर था।

इलेक्ट्रिफाइड फंस और कैमरे ने ये स्पष्ट कर दिया था की वो टारगेट पर हैं।

एक ने दायें ओर से दूसरे ने बायें से घर का चक्कर काटना शुरू कर दिया।

अब उन्हें मालूम था की अगर कैमरे होंगे भी तो दरवाजे के ऊपर या रास्ते पे।


एक खिड़की थी जिसका पर्दा हल्का सा हटा था। उसके शीशे पे सक्सन माइक लगा के कुछ देर उसने सुना , हलके हलके खर्राटे की आवाज आ रही थी। ये साफ था की करन, रीत यहीं सो रहे होंगे।

सक्शन कप चिकने से चिकने सर्फेस पर चिपक जाता था और अंदर की बात चीत को न सिर्फ सुनता था बल्कि वायरलेस माइक के जरिये डिस्पैच भी करता था। मुश्किल से दो पल रुकने के बाद वो वहां से आगे के लिए चल दिया ,क्योंकि अब इस कमरे की बातचीत उसके कान में लगे बड़ माइक में उसे सुनाई पड़ती।

यह बात जरूर थी की पर्दों के चलते आवाज काफी हलकी आती लेकिन इतना भी उसके लिए काफी था।

अब वह खड़ा हो गया था और उसकी पीठ दीवाल से एकदम सटी थी। अगर छत पर कोई कैमरा लगा होता तो भी दीवाल से सटे होने के कारण वो उसकी पहुँच के बाहर होता।

दूसरे अगर मकान से बाहर निकल कर कोई चक्कर लगा के भी देख रहा होता तो उसके कैमोफ्लाज और दीवाल से चिपके होने के कारण , उसे दिखाई देना मुश्किल था। दो और खिड़कियां थी ,लेकिन उनसे न कोई आवाज आरही थी न लाइट और परदे भी उनके पूरे बंद थे। उसे पक्का विश्वास था की टारगेट वहीँ थे जहाँ उसने खिड़की पे माइक लगाया था।



घर के वो जबतक सामने पहुंचा , वहां उसका साथी झुका बैठा था , और ऊपर की खिड़की से हलकी रौशनी भी आ रही थी और आवाजें भी। सक्शन माइक उसकी खिड़की पर लग चुका था , और उसके साथी ने उसे कान में लगाने का इशारा किया।

फीड हलकी थी लेकिन साफ थी।

" अरे यार चलो अब बस तीन साढ़े तीन घंटे बचे है , फिर ये रतजगा बंद। वो अपने रास्ते ,हम अपने। "

" कहाँ जाएंगे " ये दूसरी आवाज थी।


" क्या मालूम और मुझे पता करने की जरूरत भी नहीं , तुम्हे आधे घंटे हो गए जा के एक चक्कर लगा के आ जाओ। "
" अरे यार यहाँ कौन आएगा , आधे घंटे पहले तो गया था। "

तब तक फोन की घण्टी बजी और स्पीकर फोन के बटन के दबाने की हलकी आवाज आई।

' आल ओके ' फोन से आवाज आई।

' हाँ '

' और एक्सटर्नल पेरीमीटर '

अबकी दूसरा बोला , " हाँ आधे घंटे पहले लौटा हूँ , सब ठीक है , बस जा रहा हूँ। "

' ओके , आधे घंटे में दुबारा फोन करूँगा , इन का एक्सट्रैक्शन हो सकता है थोड़े पहले हो जाए पौने छ तक मैं पन्दरह मिनट पहले कन्फर्म करूँगा। "

और इसके बाद फोन कटने की आवाज आई।

इन दोनों को काम की सारी बातें मिल गयी थीं। आधे घंटे में इनका कंट्रोलर चेक करता है , और अभी चेक किया है इसका मतलब आधे घंटे में दुबारा फोन करेगा। और जवाब न मिलने पर वो दुबारा ४-५ मिनट चेक कर के हो सकता है आये , यानी करीब ८-१० मिनट और।

इसका मतलब उनके पास ३०-३५ मिनट की क्लियर विंडो है।

और अंदर दो लोग हैं ,एक आधे घंटे बाद बाहर निकलकर चेक करता है और दूसरा कैमरे के जरिये नजर रखे है। दोनों ही ट्रेंड कमांडो होंगे।

तबतक अंदर से फिर आवाज आई ," अच्छा ,अब तुम चलो। "

और दरवाजा खुलने की आवाज आई।
दोनों अलर्ट हो गए। 


 एक आदमी अंदर से निकल कर जैसे ही मुड़ा , वो दोनों तैयार थे।

पीछे से अँधेरे से निकलकर एक ने उसे पीछे से दबोचा और सीधे हाथ मुंह पे जिस से कोई चीख न निकल पाये। साथ में क्लोरोफार्म में डूबा पैक नाक पे।

उन्हें इंस्ट्रक्शन साफ थे की आखिरी टारगेट तक फायर आर्म का इस्तेमाल नहीं करना है , और सिक्योरिटी फोर्सेज को सिर्फ न्यूट्रलाइज करना है , बिना कोई आवाज किये।

उनका सबसे बड़ा वेपन सरप्राइज था।

क्लोरोफार्म के साथ एक चाप उसकी गर्दन पे भी पड़ा और वो बेहोश होके नीचे , लेकिन रोकते हुए ,गिरते गिरते आवाज हलकी सी हो हो गयी , और अंदर कंट्रोल रूम से आवाज आई , क्या हुआ ?


दरवाजा दुबारा खुला , लेकिन अबकी पहला हमलावर तैयार था और दरवाजा खुलते ही दो स्मोक बॉम्ब उसने कंट्रोल रूम के अंदर फेंके और जब तक कंट्रोल रूम का ऑपरेटिव कुछ समझता , टेजर गन के दो डाट उसके अंदर पैबस्त थे और वो आलमोस्ट बेहोश था।

क्लोरोफार्म का पैच उसके मुंह पर भी लगा , और उसके बाद उसे गैग कर प्लास्टिकफ से उसके हाथ पीछे कर बाँध दिए और पैर भी। यही नहीं एक काले कपडे की पट्टी उसके आँख पे भी कस के बाँध दी गयी।

और यही काम बाहर गिरे आपरेटिव के साथ भी हुआ। वैसे क्लोरोफार्म का असर कम से कम ४५ मिनट रहता और उसके बाद भी पूरी तरह गैग और बंधे वो किसी काम के नहीं थे।
एक पल के लिए उनकी नजर कंट्रोल मॉनिटर पर पड़ी लेकिन अचानक एक पैनल देख के दोनों चौक गए। उन दोनों की पूरी तस्वीर वहां आ रहा था।


दोनों ने चारो ओर निगाह डाली और ढूंढते हुए आखिर वो कैमरा मिल गया जो कंट्रोल रूम पे निगाह रख रखा था।

पहले तो उन्होंने उस कैमरे को उतारा , और पिछले ५ मिनट की रिकॉर्डिंग डिलीट की , जिसमे उनके कंट्रोल रूम पे कब्जा करने की दास्तान कैद थी।

" ये कैमरा इन दोनों के लिए तो रहा नहीं होगा , कोई और मॉनिटर कर रहा होगा " एक बोला और फिर उसने कैमरे की रिकारिडंग थोड़ी पीछे कर के लूप बना कर सेट कर दी लेकिन कैमरे की क्लॉक भी टिंकर कर दी।

अब जो भी उस कैमरे की फीड देखता , पांच मिनट से पहले की तीन मिनट की फीड देखता जो बार बार लूप होती लेकिन क्लॉक चलती रहती।

अभी भी काफी काम बाकी था .

जिसने रीत के कमरे के बाहर माइक लगाया था ,उसने घर चेक करने की जिम्मेदारी सम्हाली और दूसरे ने बाहर की एरिया सिक्योर करने की , और तुरंत बाहर निकल लिया। उन लोगों के बोट से उतरे १२ मिनट हो चुके थे और ५-६ मिनट में उन्हें आपरेशन शुरू कर देना था। १५ मिनट आप्रेशन के और ५-१० मिनट वापस तट पर पहुँचने के , कुल ४५ मिनट समय उन्होंने तय किया था। और आपरेशन सक्सेसफुल होते ही उन्हें प्रीफेड कनफर्मेंशन मेसेज करना था।

बाहर का इलाका सिक्योर करने का पहला स्टेप था , जैमर लगाना और टेलीफोन केबल काटना।


 बाहर का इलाका सिक्योर करने का पहला स्टेप था , जैमर लगाना और टेलीफोन केबल काटना।

अब वहां से बाहर कम्युनिकेशन इम्पॉसिबल था।

जो आदमी एक्सटरनल पेरीमीटर पर एक नजर डाल रहा था ,फेन्स सिर्फ एकजगह से खुली थी जहाँ से सड़क का रास्ता था।

कोई आएगा तो इधर से ही आएगा। उन लोगों ने जो फोन सुना था , उसके हिसाब से आधे घंटे पे उसका फोन आना था और कोई जवाब न मिलने पर ४०-४५ मिनट पर ही वो आता , लेकिन उसके पहले भी अगर वो या और कोई आया तो उसका 'इंतजाम 'तो करना था।


सड़क पर करीब ५०० मीटर दूर उसने कुछ डिटोनेटर लगा दिए , और अब कब कोई भी वेहिकल वहां से गुजरती या पैदल भी तो प्रेशर पैड्स से वो अलरम ट्रिप होते जो साउंड अलार्म ट्रिगर करते।

फिर घर के एकदम पास करीब २०० मीटर दूर उसने दो एंटी पर्सोनल माइंस लगा दीं और उन्हें मार्क भी कर दिया। कोई भी वेहिकल अगर उसके ऊपर से गुजरती तो प्रेशर से वो माइंस ब्लास्ट होतीं। ये एम १६ माइंस थीं और इनका कैजुअल्टी रेट २० से २५ मीटर तक था। दोनों माइन उसने अच्छी तरह कैमोफ्लाज कर दिया। रात के अँधेरे में कुछ भी दिखना मुश्किल था , और ऊपर से कोई इन्हे सस्पेक्ट नहीं करता।

अब अगर अंदर से टारगेट कोई हेल्प मांगते भी तो जैमर की वजह से मुश्किल था और अगर कोई हेल्प आई भी तो ये दो माइंस उनके लिए काफी थे।

तबतक उसके पास उसके साथी का मेसेज आया इनर एरिया सिक्योर।


और वह वापस घर की ओर बढ़ लिया।


उसके साथी ने ,जिसने रीत का कमर आडेंटीफाई किया था , घर के अंदर के सारे कमरे ,किचेन बाथरूम के साथ चेक कर लिए थे।

सारे कमरे खाली थे। कंट्रोल रूम के दोनों आपरेटिव के अलावा कोई नहीं था।

फिर भी उसने सारे कमरों के दरवाजे बाहर से बंद कर के उसमे प्लास्टिकफ़ लगा के लाक कर दिया।

अगर कोई रिजक्यू टीम आई तो हो सकता है वो इन कमरों की खिड़कियों से घुसने की कोशिश करे , तो अगर वो कमरे में घुस भी गए तो उन्हें दरवाजे को तोडना पडेगा।
रीत का कमरा भी उसने बाहर से लाक कर दिया था। अब रीत करन अपने बिल में बंद थे और सिर्फ उन्हें उस कमरे में घुस के एलिमिनेट करना था। न वो कहीं बाहर भाग सकते थे ,न कहीं बाहर से हेल्प आ सकती थी।

उसने एक बार फिर ध्यान से फीड सुना , रीत के कमरे से कोई आवाज नहीं आ रही थी।

इसका मतलब वो सभी निश्चिन्त सो रहे थे।

दोनों एक साथ बाहर रीत के कमरे के सामने इकट्ठे हुए। खिड़की से उनकी नाइट विजन ग्लासेज से साफ दिख रहा था , बिस्तर पर सब सो रहे थे , रजाई से ढंके , हाँ रजाई थोड़ी सी सरक गयी थी एक ओर , जो अक्सर अगर एक पलंग पे कई लोग सोएं तो हो जाता है।


जो आदमी एक्सटर्नल एरिया चेक कर के आया था उसने अपने को कंट्रोल रूम के बाहर पोजीशन किया , जहाँ से वो बाहर का रास्ता देख सकता था , कंट्रोल रूम में कोई फोन आये तो सुन सकता था और वहां से रीत की खिड़की के बाहर खड़े अपने साथी के विजुअल कांटैक्ट में भी था। दोनों के बीच की दूरी मुश्किल से ८० -८५ मीटर थी और कोई बात होने पे वो १५-२० सेकेण्ड पे पहुँच जाता।

और दोनों इयर बड और फेस माइक के जरिये कांटैक्ट में थे ही।

पहला आदमी खिड़की से घुस के टारगेट को एलिमिनेट या न्यूट्रलाइज करता और चार मिनट के बाद दूसरा भी अंदर पहुँच जाता।

फिर दोनों को बोट पर बैठे अपने कंट्रोल को सक्सेस मेसेज देना था जहाँ से सेट फोन से वो सब मेरीन को और कमांड सेण्टर को मेसेज भेजता।



पहले हमलावर ने एक पल के लिए खिड़की से अंदर कमरे को देखा और चारो ओर की पोजीशन चेक की। पहली बार से कोई फरक नहीं था। या तो वो खिड़की शीशा तोड़ के दाखिल होता लेकिन वो रीत और करन के बारे में अच्छी तरह ब्रीफ किया गया था और उसकी सक्सेस ९०% सरप्राइज पर ही डिपेंड करती थी।

उसने अपनी डुंगरी की जेब से मल्टी पर्पज ५.११ डबल रिस्पॉन्डर नाइफ निकाला , और खिड़की के शीशे पर एक निशान खींचा और दुबारा जब परपेँडिकुलर प्रेशर लगा कर उसने काटना शुरू किया तो पूरा का पूरा ग्लास नीचे से कट गया लेकिन वो अलर्ट था और शीशे के टूट कर गिरने के पहले उसने एक शीट पर सारा ग्लास कलेक्ट कर लिया जिससे कोई आवाज न हो। अब पूरी खिड़की बिना शीशे के थी और कोई भी जैग्गड एजेज नहीं थी।

कमरे में अभी भी कोई हरकत नहीं थी।

उसके बाद कमरे में घुसना बच्चे का खेल था।

















( लेकिन उसे नहीं मालूम था आगे क्या होना है। )







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