FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--193
और कहाँ गयी ,…………………… रीत
जब यह कहानी बनारस से आजमगढ़ की ओर मुड़ी थी , आनंद ने गुड्डी के साथ विदा ली , उस समय किसी मेरे मित्र ने कहा , अब कहानी में कैसे रहेगी ,और तभी मैंने वायदा किया था , उनसे ज्यादा खुद से और रीत से ,जब तक यह कहानी चलेगी ,रीत उसमें रहेगी। और जब रीत नहीं रह पायेगी ,तो मैं इस कहानी के उड़ते ,बिखरे पन्नो को समेट कर , टाटा बाई बाई कर लूंगी।
लेकिन यह सवाल तो रहेगा ही , पाठकों को बताना ही पड़ेगा हुआ क्या रीत का ,
इतना तो हम सब को याद ही है की रीत -करन पर हजीरा में हुए हमले के बाद आई बी ने सारा प्रोग्राम चेंज कर दिया। उन्हें एक हेलीकाप्टर से बड़ौदा ले आया गया और उसके बाद ,वहां से एयरफोर्स के स्पेशल प्लेन से ,
फिर ,
बताती हूँ ,बताती हूँ।
करन को भी नहीं मालूम था प्लेन कहाँ लैंड करेगा , और शायद पायलट को भी नहीं। क्योंकि २-३ बार लास्ट मिनट इंस्ट्रक्शंस चेंज हुए। रीत तो खैर पूरी तरह डेज्ड थी।
८. ३० ,९. ०० बजे के आसपास , प्लेन पंजाब की किसी छोटी सी एयरफील्ड पर उतरा और वहां तुरंत उन लोगों को एक अम्बुलन्स में पीछे लिटा दिया गया और इंस्ट्रक्शन तेह की वो लेटे ही रहेंगे। एम्बुलेंस की सारी खिड़कियों पर काली स्क्रीन और मोटे परदे लगे थे। ड्राइवर ने भी रास्ते में उन लोगों से कोई बात नहीं की।
एक घंटे की ड्राइव के बाद गाडी खड़ी कर दी , और उतर कर चला गया।
कुछ देर बाद करन के फोन पर मेसेज आया की अब वो दोनों बाहर निकल सकते हैं।
ये एक फार्म हाउस था जिसके चारों ओर ऊँची ऊँची दीवारें थीं।
यह वह सेफ हाउस था जो अगले ४ महीने तक उन का घर रहा।
दोनों की प्लासिटक सर्जरी की गयी , रीत की थोड़ी कम , करन की थोड़ी ज्यादा।
रीत ने भूरे कांटैक्ट लेंस पहनने की प्रैक्टिस की।
और उस के साथ ही लैंग्वेज , लोकल कल्चर का कोर्स।
दोनों को पंजाब में लोकेट किया गया था , और ६ महीनो के अंदर रीत पक्की पंजाबी कुड़ी बन गयी।
नव रीत देवल।
और करन होगया शुभ करन।
दोनों को चाल ढाल ,बात करने का अंदाज सब कुछ बदलना पड़ा। रीत ने ५ किलो वजन भी बढ़ाया।
मोहाली के पास के एक कसबे में , जो उस फार्म हाउस से बहुत दूर नहीं था ,रीत ने कालेज में एडमिशन लिया।
करन को पास के एक बैकं में नौकरी मिली , लेकिन रीत के कालेज में उसने भी इवनिंग मैनेजमेंट कोर्स के लिए उसने एडमिशन लिया और इससे दोनों को मिलन का मौका मिलता था।
दोनों बनारस या पहले के किसी भी परिचित से बात नहीं कर सकते थे , हिंदी बोलने की मनाही थी।
आई बी के कई लोग उन दोनों पर नजर रखते थे , और इससे ज्यादा इस बात पे की उनपर कोई नजर तो नहीं रख रहा है।
एक साल के बाद ये मान लिया गया की उनका 'रिलोकेशन ' परफेक्ट होगया है।
समाप्त
फागुन के दिन चार--193
और कहाँ गयी ,…………………… रीत
जब यह कहानी बनारस से आजमगढ़ की ओर मुड़ी थी , आनंद ने गुड्डी के साथ विदा ली , उस समय किसी मेरे मित्र ने कहा , अब कहानी में कैसे रहेगी ,और तभी मैंने वायदा किया था , उनसे ज्यादा खुद से और रीत से ,जब तक यह कहानी चलेगी ,रीत उसमें रहेगी। और जब रीत नहीं रह पायेगी ,तो मैं इस कहानी के उड़ते ,बिखरे पन्नो को समेट कर , टाटा बाई बाई कर लूंगी।
लेकिन यह सवाल तो रहेगा ही , पाठकों को बताना ही पड़ेगा हुआ क्या रीत का ,
इतना तो हम सब को याद ही है की रीत -करन पर हजीरा में हुए हमले के बाद आई बी ने सारा प्रोग्राम चेंज कर दिया। उन्हें एक हेलीकाप्टर से बड़ौदा ले आया गया और उसके बाद ,वहां से एयरफोर्स के स्पेशल प्लेन से ,
फिर ,
बताती हूँ ,बताती हूँ।
करन को भी नहीं मालूम था प्लेन कहाँ लैंड करेगा , और शायद पायलट को भी नहीं। क्योंकि २-३ बार लास्ट मिनट इंस्ट्रक्शंस चेंज हुए। रीत तो खैर पूरी तरह डेज्ड थी।
८. ३० ,९. ०० बजे के आसपास , प्लेन पंजाब की किसी छोटी सी एयरफील्ड पर उतरा और वहां तुरंत उन लोगों को एक अम्बुलन्स में पीछे लिटा दिया गया और इंस्ट्रक्शन तेह की वो लेटे ही रहेंगे। एम्बुलेंस की सारी खिड़कियों पर काली स्क्रीन और मोटे परदे लगे थे। ड्राइवर ने भी रास्ते में उन लोगों से कोई बात नहीं की।
एक घंटे की ड्राइव के बाद गाडी खड़ी कर दी , और उतर कर चला गया।
कुछ देर बाद करन के फोन पर मेसेज आया की अब वो दोनों बाहर निकल सकते हैं।
ये एक फार्म हाउस था जिसके चारों ओर ऊँची ऊँची दीवारें थीं।
यह वह सेफ हाउस था जो अगले ४ महीने तक उन का घर रहा।
दोनों की प्लासिटक सर्जरी की गयी , रीत की थोड़ी कम , करन की थोड़ी ज्यादा।
रीत ने भूरे कांटैक्ट लेंस पहनने की प्रैक्टिस की।
और उस के साथ ही लैंग्वेज , लोकल कल्चर का कोर्स।
दोनों को पंजाब में लोकेट किया गया था , और ६ महीनो के अंदर रीत पक्की पंजाबी कुड़ी बन गयी।
नव रीत देवल।
और करन होगया शुभ करन।
दोनों को चाल ढाल ,बात करने का अंदाज सब कुछ बदलना पड़ा। रीत ने ५ किलो वजन भी बढ़ाया।
मोहाली के पास के एक कसबे में , जो उस फार्म हाउस से बहुत दूर नहीं था ,रीत ने कालेज में एडमिशन लिया।
करन को पास के एक बैकं में नौकरी मिली , लेकिन रीत के कालेज में उसने भी इवनिंग मैनेजमेंट कोर्स के लिए उसने एडमिशन लिया और इससे दोनों को मिलन का मौका मिलता था।
दोनों बनारस या पहले के किसी भी परिचित से बात नहीं कर सकते थे , हिंदी बोलने की मनाही थी।
आई बी के कई लोग उन दोनों पर नजर रखते थे , और इससे ज्यादा इस बात पे की उनपर कोई नजर तो नहीं रख रहा है।
एक साल के बाद ये मान लिया गया की उनका 'रिलोकेशन ' परफेक्ट होगया है।
रीत : नव रीत देवल
आई बी वालों एक पक्की पर्सनैलिटी उसके लिए गढ़ दी थी , डॉक्युमेंट्स , बैकग्राउंड ,फिजकल अपीयरेंस ,
लेकिन मन में उमड़ती घुमड़ती यादों का क्या करे।
अक्सर वह हँसते हँसते उदास हो जाती थी , कोई लाख पूछे बोल भी नहीं सकती थी, अतीत की दरवाजे खिड़कियां तो छोड़िये , रोशनदान तक खोलना मुश्किल था।
अब वह पूरी तरह आई बी की हो चुकी थी ,और करन रॉ का।
गुड्डी की शादी में रीत नहीं आई।
गुड्डी को मालूम भी था वो नहीं आ पाएगी।
सुहाग के लाल जोड़े में सजी वो गुमसुम बैठी थी , और जब वह मंडप में जाने के लिए उठने ही वाली थी , किसी ने फोन पकड़ा दिया।
रीत का फोन ,
बहुत देर तक दोनों फोन पकड़े रहीं।
बातें कुछ भी नहीं हुईं।
लेकिन दोनों रोयीं बहुत।
आई बी वालों एक पक्की पर्सनैलिटी उसके लिए गढ़ दी थी , डॉक्युमेंट्स , बैकग्राउंड ,फिजकल अपीयरेंस ,
लेकिन मन में उमड़ती घुमड़ती यादों का क्या करे।
अक्सर वह हँसते हँसते उदास हो जाती थी , कोई लाख पूछे बोल भी नहीं सकती थी, अतीत की दरवाजे खिड़कियां तो छोड़िये , रोशनदान तक खोलना मुश्किल था।
अब वह पूरी तरह आई बी की हो चुकी थी ,और करन रॉ का।
गुड्डी की शादी में रीत नहीं आई।
गुड्डी को मालूम भी था वो नहीं आ पाएगी।
सुहाग के लाल जोड़े में सजी वो गुमसुम बैठी थी , और जब वह मंडप में जाने के लिए उठने ही वाली थी , किसी ने फोन पकड़ा दिया।
रीत का फोन ,
बहुत देर तक दोनों फोन पकड़े रहीं।
बातें कुछ भी नहीं हुईं।
लेकिन दोनों रोयीं बहुत।
सुखिया सब संसार है , खाए और सोये।
दुखिया दास कबीर है ,जागे और रोये।
दुखिया दास कबीर है ,जागे और रोये।
टुकड़े-टुकड़े हो बिखर चुकी मर्यादा
उसको दोनों ही पक्षों ने तोड़ा है
पाण्डव ने कुछ कम कौरव ने कुछ ज्यादा
यह रक्तपात अब कब समाप्त होना है
यह अजब युद्ध है नहीं किसी की भी जय
दोनों पक्षों को खोना ही खोना है
अन्धों से शोभित था युग का सिंहासन
दोनों ही पक्षों में विवेक ही हारा
दोनों ही पक्षों में जीता अन्धापन
भय का अन्धापन, ममता का अन्धापन
अधिकारों का अन्धापन जीत गया
जो कुछ सुन्दर था, शुभ था, कोमलतम था
वह हार गया....द्वापर युग बीत गया
उसको दोनों ही पक्षों ने तोड़ा है
पाण्डव ने कुछ कम कौरव ने कुछ ज्यादा
यह रक्तपात अब कब समाप्त होना है
यह अजब युद्ध है नहीं किसी की भी जय
दोनों पक्षों को खोना ही खोना है
अन्धों से शोभित था युग का सिंहासन
दोनों ही पक्षों में विवेक ही हारा
दोनों ही पक्षों में जीता अन्धापन
भय का अन्धापन, ममता का अन्धापन
अधिकारों का अन्धापन जीत गया
जो कुछ सुन्दर था, शुभ था, कोमलतम था
वह हार गया....द्वापर युग बीत गया
समाप्त
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