FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--187
और मैं कमरे में वापस पहुंचा , अभी पांच भी नहीं बजा था। रंजी और गुड्डी दोनों सो रही थीं।
रात की कालिमा कम होने का नाम नहीं ले रही थी।
मैंने हलके से गुड्डी का सर उठाकर अपनी गोद में ले लिया और हलके हलके सहलाने लगा।
आज अगर गुड्डी नहीं होती तो क्या होता , और मैं अचानक मुस्करा पड़ा।
अगर गुड्डी जग रही होती तो घूर के देखती , डांट पड़ती और शायद एक आध हाथ भी लग जाता।
" नहीं होती क्या मतलब , हूँ , तेरे साथ हूँ , रहूंगी और जिंदगी भर तेरे छाती पे मूंग दलूँगी। "
और बात उसकी सही थी , अभी क्या शुरू से ,हर बार उसने पहल की , मेरा खुद बढ़कर कर हाथ पकड़ा।
जब मेरे मन में पहली बार प्यार की बेल अंकुरित हुयी ,मन करता था उससे कुछ कहूँ ,हाथ पकड़ के कम से कम हलके से दबाऊं , लेकिन वही झिझक, एक अच्छे सीधे पढनेवाले बच्चे की इमेज में कैद मन का पंछी , और गुड्डी , बिना कुछ सोचे उसने उस पिंजरे को खोल दिया और पंछी को पकड़ लिया।
पिक्चर हाल में पहल उसी ने की और मेरे हाथ ने उसके सीने की गरमाहट महसूस की , दिल की धड़कने महसूस की।
फिर तो ,
ओ आज रंग है मां ,रंग है ,ओ जब देखूं तब संग है। मैं तो ऐसो रंग नहीं देखूं कहीं
बस मैं उस के रंग में रंग गया।
भरे भवन में होत हैं नयनन सो ही बात से लेकर मेरे लालची होंठों को चोर डाकू बनाने तक , हर जगह मेरी ऊँगली पकड़ के उस प्रेम की सांकरी गली में वही आगे आगे चली।
और इस बार भी , छुट्टी में बनारस से मेरे साथ यहां आने के फैसले से लेकर ,शीला भाभी को चाभी बनाकर , भाभी से खुलकर दिल की बात पहुंचाने तक और मुझे उकसा कर अपनी मम्मी की सारी शर्ते मनवाने , हर बार पहल उसने की।
लेकिन आज मैंने कितने बड़े खतरे में उसे डाल दिया ,दिमाग कहता चोट सुपरफिसियल है लेकिन जब कोई अपना चोट खाता है तो दिमाग चलता है क्या ?
तन मोरा मन प्रीतम का, दोनों एक ही रंग।
आज रंग है मां , रंग है री।
मैं बस उसका चेहरा एकटक देख रहा था। एक नटखट लट उसके गाल पे आगयी थी और मैंने झट से हटा दिया।
बाहर चन्द्रमा अपना काम धाम खत्म करके पछिम में दरवाजे की ओट चला गया था।
लेकिन उसके पहले ही प्रत्युषा , दबे पाँव चुपके से पूरब से खिड़की खोल के आ गयी।
एक हलकी सी शरमाई सी लालिमा कुछ धुली धुली सी ,
तारों ने भी अपने पलकें मूँद ली और फिर प्रत्युषा की छोटी बहन उषा भी आगयी।
बनारस में सुबह सुबह झाड़ू लगाने वाले जैसे भोर होते ही घाटों पर झाड़ू चलाने लगते है , बस उसी तरह उसने एक पुचारा लिया और रात की सारी कालिख रगड़ रगड़ कर साफ दिया और आसमान का आँगन सफेद चमचम करने लगा। रात का सारा कूड़ा करकट , उठा कर उसने बाहर फ़ेंक दिया।
कालिया को चाक़ू जिसने गुड्डी को घायल किया , रात का सब लड़ाई झगड़ा ,दर्द , सारा कचरा।
और एक बार फिर से उसने आसमान के आँगन को देखा और और खुश होक अपनी चंगेरी से ढेर सारे फूल आँगन में फ़ेंक दिए।
खिड़की के बाहर , अमलताश , गुलमोहर ,जूही ,चंपा सब एक साथ खिल उठे।
भोर की ठंडी हवा में आम के बौरों की कच्चे टिकोरों की महक एक बार फिर से आने लगी।
जाते जाते वो मुड़ी और जिधर से आई थी , आसमान के माथे पे एक बड़ी सी लाल बिंदी लगा दी।
और झपाक से बड़े सुनहले थाल सा सूरज टौंस नदी के उस पार निकल आया।
और तभी गुड्डी का फोन गनगनाया।
फागुन के दिन चार--187
के , …क़ालिया ,… काली रात
बाएं हाथ की कलाई कड़कड़ा के टूट गयी और चाक़ू , छन्न की आवाज के नीचे गिर पड़ा और मेरी निगाह चाक़ू पे जा के पड़ी।
के का निशान
यानी , यानी ,.... ये कालिया था। दुनिया का सबसे खतरनाक और सबसे महंगा अस्सेन। जिसने बनारस में जेड का सफाया किया था।
और उस का ट्रेड मार्क चाकू था के के निशान का।
चाँद ने बादलों की जकड़ तोड़ दी थी और अब बहुत कुछ दिख रहा था।
जिन्होंने बाएं हाथ को तोडा था वो फेलू दा थे और जिसके हाथों में गर्दन थी ,वो कार्लोस।
उन्होंने अपने दूसरे हाथ से उसके मुंह को भींच रखा था।
मैंने उसके जिस पैर को पकड़ रखा था अब उसी के घुटने पे फेलू दा के जूते का तीव्र प्रहार एक के बाद एक , चौथे धक्के में उसका घुटना टूट चूका था।
और अब कार्लोस के प्रेशर का असर उसकी देह पर हो रहा था।
उसकी देह धीमे धीमे ढीली हो रही थी। आँखे बाहर की ओर निकल रही थीं।
फेलू दा ने इशारा किया और मैंने उसके पैर छोड़ दिए और कमर पे बंधी चाक़ू वाली बेल्ट निकाल ली।
उसकी जान धीमे धीमे निकल रही थी लेकिन न तो कार्लोस ने गरदन पर से पकड़ हलकी की और न फेलू दा ने जिन्होंने अब उसके दोनों हाथों को पीछे की और कर के जकड रखा था।
तभी मुझे याद आया की उसने चाक़ू कमरे में फेंका था। कहीं गुड्डी को ,…
फेलू दा भी समझ गए और उन्होंने हाँ में सर हिलाया और मैं भागता हुए कमरे में पहुंचा।
गुड्डी खिड़की के सहारे खड़ी थी , संगमरमर की मूरत की तरह लगभग बेहोश। मेरी सफेद लांग शर्ट में। चेहरा खून निकलने से एकदम सफेद हो गया था। बांह पर से अभी भी खून रिस रहा था और ग्लाक उस के हाथ में लटकी हुयी थी।
मेरा दिल डूब गया ,. धीमे से सहारा देकर उसे पलंग पर लिटाया। धड़कन धीमे धीमे चल रही थी।
सारी बात शीशे की तरह साफ हो गयी ,क्या हुआ कैसे हुआ।
मुझे बाहर निकलते देख उसे भी खतरे का अहसास हुआ होगा , और उसने वहीँ टंगी मेरी सफेद शर्ट अपने जिस्म पर टांग ली होगी, टेबल पर रखी ग्लॉक उठा ली होगी।
और बाहर खिड़की से झांकने की कोशिश की होगी।
और कालिया ने सफेद शर्ट में उसे देखा होगा , हाथ में ग्लाक और वो समझा होगा की मैं हूँ।
इसीलिए उसका पूरा ध्यान खिड़की पर ही था।
और मुझे आगे से और फेलुदा और कार्लोस को उसके ऊपर हमला करने का पूरा मौका मिल गया।
उसके अलावा गुड्डी की गोली ,ने उसके दायें कंधे पे जो जख्म किया था , उसने कालिया की आधी ताकत कम कर दी थी।
और गुड्डी बची भी उस लिए ,
पिस्टल के रिकायल से जो झटका लगा होगा उससे गुड्डी बुरी तरह हिली और कालिया के चाक़ू का निशाना पूरी तरह कामयाब नही हुआ।
मैंने शर्ट उतारकर देखा जख्म हल्का था , इस मायने में की कोई मेजर आर्टरी , टेंडन या हड्डी को जख्म नहीं हुआ था , लेकिन खून निकला था। और कुछ चोट शाक से गुड्डी बेहोश ऐसी हालत में गयी थी।
मैंने फर्स्ट ऐड का डिब्बा ढूड के उसके जख्म को पहले साफ किया , फिर पट्टी बाँधी।
अब गुड्डी ने अपनी बड़ी बड़ी दिए ऐसी आँखे खोल दीं और लरजते होंठों से पूछा , " तुम ठीक हो। "
मेरी आँख भर आई।
बाएं हाथ की कलाई कड़कड़ा के टूट गयी और चाक़ू , छन्न की आवाज के नीचे गिर पड़ा और मेरी निगाह चाक़ू पे जा के पड़ी।
के का निशान
यानी , यानी ,.... ये कालिया था। दुनिया का सबसे खतरनाक और सबसे महंगा अस्सेन। जिसने बनारस में जेड का सफाया किया था।
और उस का ट्रेड मार्क चाकू था के के निशान का।
चाँद ने बादलों की जकड़ तोड़ दी थी और अब बहुत कुछ दिख रहा था।
जिन्होंने बाएं हाथ को तोडा था वो फेलू दा थे और जिसके हाथों में गर्दन थी ,वो कार्लोस।
उन्होंने अपने दूसरे हाथ से उसके मुंह को भींच रखा था।
मैंने उसके जिस पैर को पकड़ रखा था अब उसी के घुटने पे फेलू दा के जूते का तीव्र प्रहार एक के बाद एक , चौथे धक्के में उसका घुटना टूट चूका था।
और अब कार्लोस के प्रेशर का असर उसकी देह पर हो रहा था।
उसकी देह धीमे धीमे ढीली हो रही थी। आँखे बाहर की ओर निकल रही थीं।
फेलू दा ने इशारा किया और मैंने उसके पैर छोड़ दिए और कमर पे बंधी चाक़ू वाली बेल्ट निकाल ली।
उसकी जान धीमे धीमे निकल रही थी लेकिन न तो कार्लोस ने गरदन पर से पकड़ हलकी की और न फेलू दा ने जिन्होंने अब उसके दोनों हाथों को पीछे की और कर के जकड रखा था।
तभी मुझे याद आया की उसने चाक़ू कमरे में फेंका था। कहीं गुड्डी को ,…
फेलू दा भी समझ गए और उन्होंने हाँ में सर हिलाया और मैं भागता हुए कमरे में पहुंचा।
गुड्डी खिड़की के सहारे खड़ी थी , संगमरमर की मूरत की तरह लगभग बेहोश। मेरी सफेद लांग शर्ट में। चेहरा खून निकलने से एकदम सफेद हो गया था। बांह पर से अभी भी खून रिस रहा था और ग्लाक उस के हाथ में लटकी हुयी थी।
मेरा दिल डूब गया ,. धीमे से सहारा देकर उसे पलंग पर लिटाया। धड़कन धीमे धीमे चल रही थी।
सारी बात शीशे की तरह साफ हो गयी ,क्या हुआ कैसे हुआ।
मुझे बाहर निकलते देख उसे भी खतरे का अहसास हुआ होगा , और उसने वहीँ टंगी मेरी सफेद शर्ट अपने जिस्म पर टांग ली होगी, टेबल पर रखी ग्लॉक उठा ली होगी।
और बाहर खिड़की से झांकने की कोशिश की होगी।
और कालिया ने सफेद शर्ट में उसे देखा होगा , हाथ में ग्लाक और वो समझा होगा की मैं हूँ।
इसीलिए उसका पूरा ध्यान खिड़की पर ही था।
और मुझे आगे से और फेलुदा और कार्लोस को उसके ऊपर हमला करने का पूरा मौका मिल गया।
उसके अलावा गुड्डी की गोली ,ने उसके दायें कंधे पे जो जख्म किया था , उसने कालिया की आधी ताकत कम कर दी थी।
और गुड्डी बची भी उस लिए ,
पिस्टल के रिकायल से जो झटका लगा होगा उससे गुड्डी बुरी तरह हिली और कालिया के चाक़ू का निशाना पूरी तरह कामयाब नही हुआ।
मैंने शर्ट उतारकर देखा जख्म हल्का था , इस मायने में की कोई मेजर आर्टरी , टेंडन या हड्डी को जख्म नहीं हुआ था , लेकिन खून निकला था। और कुछ चोट शाक से गुड्डी बेहोश ऐसी हालत में गयी थी।
मैंने फर्स्ट ऐड का डिब्बा ढूड के उसके जख्म को पहले साफ किया , फिर पट्टी बाँधी।
अब गुड्डी ने अपनी बड़ी बड़ी दिए ऐसी आँखे खोल दीं और लरजते होंठों से पूछा , " तुम ठीक हो। "
मेरी आँख भर आई।
गुड्डी
अब गुड्डी ने अपनी बड़ी बड़ी दिए ऐसी आँखे खोल दीं और लरजते होंठों से पूछा , " तुम ठीक हो। "
मेरी आँख भर आई।
बस सर हिलाया , एक स्ट्रांग पेन किलर जो सिडेटिव भी थी और एक एंटीबायोटिक गोली उसे दी।
उसने कुछ बोलने की कोशिश की तो मैंने चुप रहने का इशारा किया।
खून काफी निकल गया था।
अपने हाथ के सहारे मैंने उसका सर तकिये पे रख दिया , और हलके हलके उसका माथा सहलाता रहा।
थोड़ी देर में वो नींद के आगोश में खो गयी।
खून निकलना बंद हो गया था।
और जब तक वह उठेगी तो दर्द भी कम हो जाएगा.
मैं जैसे संज्ञा शून्य हो गया था ,बस पथरायी निगाहों से गुड्डी को देख रहा था। घाव से खून रिसना अब बंद होगया था। चेहरे की रंगत भी वापस आ रही थी। वह गहरी नींद में थी। मेरे हाथ हलके हलके उसके माथे पे फिर रहे थे।
फिर अचानक मुझे होश आया , बाहर छत पे कालिया ,मरणासन्न स्थिति में मैं उसे छोड़ आया था। और फेलू दा और कार्लोस भी।
हलके से, बहुत धीमे धीमे गुड्डी का सर मैंने तकिये से टिकाया और दबे पाँव , गुड्डी की ओर देखते बाहर आगया।
उसका चेहरा अब एकदम शांत लग रहा था , हमेशा की तरह एक हल्की सी मुस्कान ,
और अबकी छत पर मैं बिना किसी भय के तेजी से पहुंचा , फेलू दा और कार्लोस अपना काम खत्म कर चुके थे।
कालिया को उन्होंने अच्छी तरह एक रस्सी में छान बाँध दिया था।
और उसकी आँखे थोड़ी देर पहले ही बंद हो चुकी थी।
उन्होंने अच्छी तरह उसकी तलाशी कर ली थी , और जैसे की आशंका थी , कुछ भी नहीं मिला। न कोई फोन ,न कोई पेपर ,जो उसकी आइडेंटिटी कन्फर्म कर सके या कुछ सुराग दे सके।
सिवाय उस बेल्ट के जिसपर छप्पन छुरियाँ बंधी थी और सब एक दूसरे से अलग , सिवाय एक बात के सब पर 'के' कार्व्ड था।
फेलू दा आम के पेड़ की मोटी टहनी पर रस्सी का दूसरा सिरा लटका रहे थे जिसमें कालिया का निष्प्राण शरीर बंधा था।
और कार्लोस ने सार संक्षेप टाइप में हाल बता दिया।
कालिया अपने कांट्रेक्ट फिक्स करने के लिए फोन , सेट फोन , इ मेल ऐसे किसी भी एलेक्ट्रॉनिक माध्यम का इस्तेमाल नहीं करता था , ये बात खुफिया एजेंसीज ने अबतक पता कर ली थी ,इसलिए उसे ट्रेस करना लगभग असंभव था। फिर वो किसी से कोई हेल्प नहीं लेता था न ही उसका कोई एसोशिएट था।
लेकिन उसके सात आठ अकाउंट थे ,और कार्लोस अपनी पुरानी जान पहचान से इसे ट्रेस करवा रहे थे।
और परसों देर रात उन्हें पता चला की उसके केमैन आइलैंड के अकाउंट में एक बड़ी मोटी रकम ट्रांसफर हुयी थी.
और केमैन आइलैंड से ६-७ अकाउंट्स से होते हुए कई टुकड़ों में वह पैसा ४५ मिनट में गायब होगया।
लेकिन उसी पीरियड में इंटरपोल की एक मनी लांड्रिंग यूनिट ने उसे आब्जर्व कर लिया और यह इन्फो कार्लोस तक पहुँच गयी। जितने इलेक्रॉनिक फुटप्रिंट मिले उससे ८० % यह तय हो गया की ट्रांजैक्शन पड़ोस के एक देश से ट्रिगर हुआ है।
बस इतना अलार्म बेल के लिए काफी था।
और जब आज बहुत सुबह उन्हें पता चला की कालिया ने नेपाल सीमा,सोनाली के पास पार की है तो बस उन्हें ये समझ में आगया की टारगेट कौन है.
और मेरी समझ में आ गया की देर रात फेलू दा क्यों बार बार मेसेज कर के हाल चाल पूछ रहे थे। क्यों उन्हें इतनी चिंता हो रही थी।
कार्लोस ने बोला की वो और फेलू दा करीब दो घंटे पहले यहाँ पहुंचे।
लेकिन पेड़ के नीचे की दबी घासों से उन्हें अहसास हो गया था की , कालिया पेड़ के ऊपर घनी टहनियों के बीच छिपा है।
छत पर पहुंचने का यही एक रास्ता था।
और करीब आधे घंटे पहले तक उन्होेने इन्तजार किया , और जब कालिया उस पेड़ से उत्तर कर छत पर उतरा उसके बाद वो दोनों लोग पेड़ पर चढ़ गए।
जैसे ही कालिया ने चाक़ू निकाला था ,उसके दो मिनट पहले ही वो छत पर पहुंचे थे।आप लोग यहाँ आये कैसे।
बिना बोले कार्लोस और फेलू दा ने एक साथ सड़क की ओर इशारा किया ,
डगडग ,
एक दूसरी जंगे अज़ीम के जमाने की ट्रक और कार्लोस की फेवरिट।
चलें मुझसे फेलू दा बोले और कार्लोस से उन्होंने हलके से कहा ,
चंदवक , और कार्लोस ने सर हिला के हामी भर दी।
और आम के पेड़ की मोटी टहनी से टंगी रस्सी से पहले उन्होंने कालिया के शरीर को नीचे उतारा और फिर खुद।
उसकी चाक़ू वाली बेल्ट मेरे पास रह गयी थी।
कुछ ही देर में सड़क पर से डगडग के स्टार्ट होने की हलकी आवाज सुनाई दी।
चंदवक यानी सुबह होने तक कालिया गोमती नदी के सुपुर्द होगा।
अब गुड्डी ने अपनी बड़ी बड़ी दिए ऐसी आँखे खोल दीं और लरजते होंठों से पूछा , " तुम ठीक हो। "
मेरी आँख भर आई।
बस सर हिलाया , एक स्ट्रांग पेन किलर जो सिडेटिव भी थी और एक एंटीबायोटिक गोली उसे दी।
उसने कुछ बोलने की कोशिश की तो मैंने चुप रहने का इशारा किया।
खून काफी निकल गया था।
अपने हाथ के सहारे मैंने उसका सर तकिये पे रख दिया , और हलके हलके उसका माथा सहलाता रहा।
थोड़ी देर में वो नींद के आगोश में खो गयी।
खून निकलना बंद हो गया था।
और जब तक वह उठेगी तो दर्द भी कम हो जाएगा.
मैं जैसे संज्ञा शून्य हो गया था ,बस पथरायी निगाहों से गुड्डी को देख रहा था। घाव से खून रिसना अब बंद होगया था। चेहरे की रंगत भी वापस आ रही थी। वह गहरी नींद में थी। मेरे हाथ हलके हलके उसके माथे पे फिर रहे थे।
फिर अचानक मुझे होश आया , बाहर छत पे कालिया ,मरणासन्न स्थिति में मैं उसे छोड़ आया था। और फेलू दा और कार्लोस भी।
हलके से, बहुत धीमे धीमे गुड्डी का सर मैंने तकिये से टिकाया और दबे पाँव , गुड्डी की ओर देखते बाहर आगया।
उसका चेहरा अब एकदम शांत लग रहा था , हमेशा की तरह एक हल्की सी मुस्कान ,
और अबकी छत पर मैं बिना किसी भय के तेजी से पहुंचा , फेलू दा और कार्लोस अपना काम खत्म कर चुके थे।
कालिया को उन्होंने अच्छी तरह एक रस्सी में छान बाँध दिया था।
और उसकी आँखे थोड़ी देर पहले ही बंद हो चुकी थी।
उन्होंने अच्छी तरह उसकी तलाशी कर ली थी , और जैसे की आशंका थी , कुछ भी नहीं मिला। न कोई फोन ,न कोई पेपर ,जो उसकी आइडेंटिटी कन्फर्म कर सके या कुछ सुराग दे सके।
सिवाय उस बेल्ट के जिसपर छप्पन छुरियाँ बंधी थी और सब एक दूसरे से अलग , सिवाय एक बात के सब पर 'के' कार्व्ड था।
फेलू दा आम के पेड़ की मोटी टहनी पर रस्सी का दूसरा सिरा लटका रहे थे जिसमें कालिया का निष्प्राण शरीर बंधा था।
और कार्लोस ने सार संक्षेप टाइप में हाल बता दिया।
कालिया अपने कांट्रेक्ट फिक्स करने के लिए फोन , सेट फोन , इ मेल ऐसे किसी भी एलेक्ट्रॉनिक माध्यम का इस्तेमाल नहीं करता था , ये बात खुफिया एजेंसीज ने अबतक पता कर ली थी ,इसलिए उसे ट्रेस करना लगभग असंभव था। फिर वो किसी से कोई हेल्प नहीं लेता था न ही उसका कोई एसोशिएट था।
लेकिन उसके सात आठ अकाउंट थे ,और कार्लोस अपनी पुरानी जान पहचान से इसे ट्रेस करवा रहे थे।
और परसों देर रात उन्हें पता चला की उसके केमैन आइलैंड के अकाउंट में एक बड़ी मोटी रकम ट्रांसफर हुयी थी.
और केमैन आइलैंड से ६-७ अकाउंट्स से होते हुए कई टुकड़ों में वह पैसा ४५ मिनट में गायब होगया।
लेकिन उसी पीरियड में इंटरपोल की एक मनी लांड्रिंग यूनिट ने उसे आब्जर्व कर लिया और यह इन्फो कार्लोस तक पहुँच गयी। जितने इलेक्रॉनिक फुटप्रिंट मिले उससे ८० % यह तय हो गया की ट्रांजैक्शन पड़ोस के एक देश से ट्रिगर हुआ है।
बस इतना अलार्म बेल के लिए काफी था।
और जब आज बहुत सुबह उन्हें पता चला की कालिया ने नेपाल सीमा,सोनाली के पास पार की है तो बस उन्हें ये समझ में आगया की टारगेट कौन है.
और मेरी समझ में आ गया की देर रात फेलू दा क्यों बार बार मेसेज कर के हाल चाल पूछ रहे थे। क्यों उन्हें इतनी चिंता हो रही थी।
कार्लोस ने बोला की वो और फेलू दा करीब दो घंटे पहले यहाँ पहुंचे।
लेकिन पेड़ के नीचे की दबी घासों से उन्हें अहसास हो गया था की , कालिया पेड़ के ऊपर घनी टहनियों के बीच छिपा है।
छत पर पहुंचने का यही एक रास्ता था।
और करीब आधे घंटे पहले तक उन्होेने इन्तजार किया , और जब कालिया उस पेड़ से उत्तर कर छत पर उतरा उसके बाद वो दोनों लोग पेड़ पर चढ़ गए।
जैसे ही कालिया ने चाक़ू निकाला था ,उसके दो मिनट पहले ही वो छत पर पहुंचे थे।आप लोग यहाँ आये कैसे।
बिना बोले कार्लोस और फेलू दा ने एक साथ सड़क की ओर इशारा किया ,
डगडग ,
एक दूसरी जंगे अज़ीम के जमाने की ट्रक और कार्लोस की फेवरिट।
चलें मुझसे फेलू दा बोले और कार्लोस से उन्होंने हलके से कहा ,
चंदवक , और कार्लोस ने सर हिला के हामी भर दी।
और आम के पेड़ की मोटी टहनी से टंगी रस्सी से पहले उन्होंने कालिया के शरीर को नीचे उतारा और फिर खुद।
उसकी चाक़ू वाली बेल्ट मेरे पास रह गयी थी।
कुछ ही देर में सड़क पर से डगडग के स्टार्ट होने की हलकी आवाज सुनाई दी।
चंदवक यानी सुबह होने तक कालिया गोमती नदी के सुपुर्द होगा।
रात की कालिमा कम होने का नाम नहीं ले रही थी।
मैंने हलके से गुड्डी का सर उठाकर अपनी गोद में ले लिया और हलके हलके सहलाने लगा।
आज अगर गुड्डी नहीं होती तो क्या होता , और मैं अचानक मुस्करा पड़ा।
अगर गुड्डी जग रही होती तो घूर के देखती , डांट पड़ती और शायद एक आध हाथ भी लग जाता।
" नहीं होती क्या मतलब , हूँ , तेरे साथ हूँ , रहूंगी और जिंदगी भर तेरे छाती पे मूंग दलूँगी। "
और बात उसकी सही थी , अभी क्या शुरू से ,हर बार उसने पहल की , मेरा खुद बढ़कर कर हाथ पकड़ा।
जब मेरे मन में पहली बार प्यार की बेल अंकुरित हुयी ,मन करता था उससे कुछ कहूँ ,हाथ पकड़ के कम से कम हलके से दबाऊं , लेकिन वही झिझक, एक अच्छे सीधे पढनेवाले बच्चे की इमेज में कैद मन का पंछी , और गुड्डी , बिना कुछ सोचे उसने उस पिंजरे को खोल दिया और पंछी को पकड़ लिया।
पिक्चर हाल में पहल उसी ने की और मेरे हाथ ने उसके सीने की गरमाहट महसूस की , दिल की धड़कने महसूस की।
फिर तो ,
ओ आज रंग है मां ,रंग है ,ओ जब देखूं तब संग है। मैं तो ऐसो रंग नहीं देखूं कहीं
बस मैं उस के रंग में रंग गया।
भरे भवन में होत हैं नयनन सो ही बात से लेकर मेरे लालची होंठों को चोर डाकू बनाने तक , हर जगह मेरी ऊँगली पकड़ के उस प्रेम की सांकरी गली में वही आगे आगे चली।
और इस बार भी , छुट्टी में बनारस से मेरे साथ यहां आने के फैसले से लेकर ,शीला भाभी को चाभी बनाकर , भाभी से खुलकर दिल की बात पहुंचाने तक और मुझे उकसा कर अपनी मम्मी की सारी शर्ते मनवाने , हर बार पहल उसने की।
लेकिन आज मैंने कितने बड़े खतरे में उसे डाल दिया ,दिमाग कहता चोट सुपरफिसियल है लेकिन जब कोई अपना चोट खाता है तो दिमाग चलता है क्या ?
तन मोरा मन प्रीतम का, दोनों एक ही रंग।
आज रंग है मां , रंग है री।
मैं बस उसका चेहरा एकटक देख रहा था। एक नटखट लट उसके गाल पे आगयी थी और मैंने झट से हटा दिया।
बाहर चन्द्रमा अपना काम धाम खत्म करके पछिम में दरवाजे की ओट चला गया था।
लेकिन उसके पहले ही प्रत्युषा , दबे पाँव चुपके से पूरब से खिड़की खोल के आ गयी।
एक हलकी सी शरमाई सी लालिमा कुछ धुली धुली सी ,
तारों ने भी अपने पलकें मूँद ली और फिर प्रत्युषा की छोटी बहन उषा भी आगयी।
बनारस में सुबह सुबह झाड़ू लगाने वाले जैसे भोर होते ही घाटों पर झाड़ू चलाने लगते है , बस उसी तरह उसने एक पुचारा लिया और रात की सारी कालिख रगड़ रगड़ कर साफ दिया और आसमान का आँगन सफेद चमचम करने लगा। रात का सारा कूड़ा करकट , उठा कर उसने बाहर फ़ेंक दिया।
कालिया को चाक़ू जिसने गुड्डी को घायल किया , रात का सब लड़ाई झगड़ा ,दर्द , सारा कचरा।
और एक बार फिर से उसने आसमान के आँगन को देखा और और खुश होक अपनी चंगेरी से ढेर सारे फूल आँगन में फ़ेंक दिए।
खिड़की के बाहर , अमलताश , गुलमोहर ,जूही ,चंपा सब एक साथ खिल उठे।
भोर की ठंडी हवा में आम के बौरों की कच्चे टिकोरों की महक एक बार फिर से आने लगी।
जाते जाते वो मुड़ी और जिधर से आई थी , आसमान के माथे पे एक बड़ी सी लाल बिंदी लगा दी।
और झपाक से बड़े सुनहले थाल सा सूरज टौंस नदी के उस पार निकल आया।
और तभी गुड्डी का फोन गनगनाया।
भाभी का मेसेज था , वह लोग बस चलने वाले हैं आधे घंटे में , आठ बजे तक पहुँच जाएंगे।
रंजी आँख मिचमिचाती हुयी उठी और सीधे बाथरूम में दाखिल हो गयी।
एक नया दिन शुरू हो गया था।
सड़क पर साइकिल से दूध लेकर जाने वालों की साइकिल की घण्टियाँ बजनी शुरू हो गयी थी।
बाथरूम से निकल के रंजी ने इधर उधर छितराये अपने कपडे पहने , भाभी का मेसेज देखा और मुझसे बोली , " सुन मैं चलती हूँ , अपना सामान लेकर दस साढ़े बजे तक आ जाउंगी। ग्यारह बजे तक निकल चलेंगे तो जल्दी पहुँच जायंगे। "
एक पल उसने गुड्डी की ओर देखा , उसका बैंडेज चोट उसकी निगाह से छुपी नहीं होगी। लेकिन जान बूझ के वो कुछ बोली नहीं।
हे जरा सा , मैंने धीमे से बोला , और बिना कहे रंजी ने उसका बायां हाथ पकड़ के उठाया , और चूँकि दायें हाथ में ही चोट लगी थी उसकी कांख में हाथ लगा के सपोर्ट देके हम दोनो नीचे ले आये।
हम लोग आखिरी सीढ़ी पर रहे होंगे की गुड्डी बोली ,
" कितने मजे की बात है , इत्ते आराम से तुम दोनों रोज मुझे ले चलो। "
और खुश होती लेकिन तंज टोन में रंजी बोली ,
" कमीनी, बहुत देर नहीं है , २७ मई को जब रात भर रोड रोलर चलेगा न तेरे ऊपर , तो हम ननदों को ऐसे ही उठा के लाना पडेगा। बस उसी की प्रैक्टिस कर रहे थे हम दोनों। "
सच में एक नया दिन शुरू हो गया था।
बरामदे में बहुत सम्हाल कर हम दोनों ने उसे बैठाया।
और जब मैं रंजी को बाहर छोड़ने गया तो अब उसकी आँखों की गंगा जमुना रुक नहीं पायी। बस धीमे से अपना सर मेरे कंधे पे रख के बोली।
" ठीक है न वो। "
दिल से मैंने झूठ बोला और किसी तरह कह दिया , हाँ एकदम जब तुम आओगी न दस साढ़े दस तक।
बिना मेरे जवाब का इन्तजार किये , बिना मेरे चेहरे को देखे , वो झट से अपनी धन्नो पर चढ़ी और उसकी एक्टिवा दंड दौड़ पड़ी।
अंदर गुड्डी अपने बाएं हाथ के सहारे अधलेटी बैठी थी।
मैंने अपनी ऊँगली से उसे ब्रश कराया।
मुझे बनारस में जब उसने ऊँगली से मंजन कराया था और मेरा मुंह बन्दर छाप दंतमंजन में मिले लाल रंग से लाल हो गया था , याद आ रहा था।
बेड टी भी मैं बना के ले आया।
और अब वह थोड़ा नार्मल महसूस कर रही थी।
घडी ने बताया की भाभी के आने में अब सिर्फ ४० मिनट बचे हैं। मैंने पूछा ,
" बाथरूम जाओगी , भाभी थोड़ी देर में आती होंगी। "
वो बाएं हाथ का सहारा लेकर उठी , और जब मैंने पेशकश की मैं भी आ जाऊं उसकी हेल्प केलिए , तो उसके चेहरे पे फिर वही शरारत , …आँख नचा के बोली ,
" तुझे पीटने के लिए मेरा एक हाथ काफी है। "
और बाथरूम के दरवाजे पर से रुक के उस परीजाद ,सुर्खरू ,शोख ने मुड़ के मुझे देखा और बोली ,
" चलो तेरी वो भी ख्वाहिश पूरी कर दूंगी। तुम भी क्या याद करोंगे , बनारस वाली हूँ कोई मजाक नहीं। बस २७ मई का इन्तजार करो। "
कोई और वक्त होता तो मैं उसकी बात पे मुस्कराता , लेकिन आज बामशक्कत मैंने आँखे नम होने से रोकी।
रंजी आँख मिचमिचाती हुयी उठी और सीधे बाथरूम में दाखिल हो गयी।
एक नया दिन शुरू हो गया था।
सड़क पर साइकिल से दूध लेकर जाने वालों की साइकिल की घण्टियाँ बजनी शुरू हो गयी थी।
बाथरूम से निकल के रंजी ने इधर उधर छितराये अपने कपडे पहने , भाभी का मेसेज देखा और मुझसे बोली , " सुन मैं चलती हूँ , अपना सामान लेकर दस साढ़े बजे तक आ जाउंगी। ग्यारह बजे तक निकल चलेंगे तो जल्दी पहुँच जायंगे। "
एक पल उसने गुड्डी की ओर देखा , उसका बैंडेज चोट उसकी निगाह से छुपी नहीं होगी। लेकिन जान बूझ के वो कुछ बोली नहीं।
हे जरा सा , मैंने धीमे से बोला , और बिना कहे रंजी ने उसका बायां हाथ पकड़ के उठाया , और चूँकि दायें हाथ में ही चोट लगी थी उसकी कांख में हाथ लगा के सपोर्ट देके हम दोनो नीचे ले आये।
हम लोग आखिरी सीढ़ी पर रहे होंगे की गुड्डी बोली ,
" कितने मजे की बात है , इत्ते आराम से तुम दोनों रोज मुझे ले चलो। "
और खुश होती लेकिन तंज टोन में रंजी बोली ,
" कमीनी, बहुत देर नहीं है , २७ मई को जब रात भर रोड रोलर चलेगा न तेरे ऊपर , तो हम ननदों को ऐसे ही उठा के लाना पडेगा। बस उसी की प्रैक्टिस कर रहे थे हम दोनों। "
सच में एक नया दिन शुरू हो गया था।
बरामदे में बहुत सम्हाल कर हम दोनों ने उसे बैठाया।
और जब मैं रंजी को बाहर छोड़ने गया तो अब उसकी आँखों की गंगा जमुना रुक नहीं पायी। बस धीमे से अपना सर मेरे कंधे पे रख के बोली।
" ठीक है न वो। "
दिल से मैंने झूठ बोला और किसी तरह कह दिया , हाँ एकदम जब तुम आओगी न दस साढ़े दस तक।
बिना मेरे जवाब का इन्तजार किये , बिना मेरे चेहरे को देखे , वो झट से अपनी धन्नो पर चढ़ी और उसकी एक्टिवा दंड दौड़ पड़ी।
अंदर गुड्डी अपने बाएं हाथ के सहारे अधलेटी बैठी थी।
मैंने अपनी ऊँगली से उसे ब्रश कराया।
मुझे बनारस में जब उसने ऊँगली से मंजन कराया था और मेरा मुंह बन्दर छाप दंतमंजन में मिले लाल रंग से लाल हो गया था , याद आ रहा था।
बेड टी भी मैं बना के ले आया।
और अब वह थोड़ा नार्मल महसूस कर रही थी।
घडी ने बताया की भाभी के आने में अब सिर्फ ४० मिनट बचे हैं। मैंने पूछा ,
" बाथरूम जाओगी , भाभी थोड़ी देर में आती होंगी। "
वो बाएं हाथ का सहारा लेकर उठी , और जब मैंने पेशकश की मैं भी आ जाऊं उसकी हेल्प केलिए , तो उसके चेहरे पे फिर वही शरारत , …आँख नचा के बोली ,
" तुझे पीटने के लिए मेरा एक हाथ काफी है। "
और बाथरूम के दरवाजे पर से रुक के उस परीजाद ,सुर्खरू ,शोख ने मुड़ के मुझे देखा और बोली ,
" चलो तेरी वो भी ख्वाहिश पूरी कर दूंगी। तुम भी क्या याद करोंगे , बनारस वाली हूँ कोई मजाक नहीं। बस २७ मई का इन्तजार करो। "
कोई और वक्त होता तो मैं उसकी बात पे मुस्कराता , लेकिन आज बामशक्कत मैंने आँखे नम होने से रोकी।
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