FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--191
रैन भई चहुँ देस
अब करने को कुछ नहीं बचा था और बहुत कुछ बचा था।
रीत और करन ने मिल कर दोनों हमलावर जिस खिड़की से आये थे , उसी खिड़की से उन्हें वापस बाहर फ़ेंक दिया।
करन ,रीत खिड़की के पास खड़े थे और करन कुछ सोच रहा था , फिर उसने वो कम्युनिकेशन डिवाइस उठाई और कुछ सोच कर मिशन अकम्पलीश् होने का मेसेज दिया। तुरंत जवाब आया कॉंग्रेट्स।
पर अगले पल रीत ने चिल्लाकर करन को वार्न किया।
उस डिवाइस के पीछे कोई लाइट जल रही थी , और करन ने तुरंत उसे खिड़की के बाहर फेक दिया।
वह उन दोनों हमलावरों की बाड़ी के बीच में गिरा , और अगले ही पल जोर का धमाका हुआ।
१० फिट दूरी का सब कुछ उस धमाके में उड़ गया।
इस का मतलब उस डिवाइस में ही दोनों के खत्म करने का पूरा प्लान बना ,हुआ था।
रीत और मीनल ने मिल के कमरे को पूरी तरह ठीक किया और उसके बाद मीनल पकड़कर रीत को बाथरूम में ले गयी और करन बाहर कंट्रोल रूम में गया।
और रिवाइंड करने पर उसे हमलावरों की सारी हरकतें पता चल गयी जैमर लगाना , आने के रास्ते में माइन्स लगाना , सारी बातें. पहले करन ने जैमर ठीक किया।
और आई बी के चीफ से बात की और उन्हें सब कुछ बताया।
उन्होंने उसे दो मिनट वेट करने को कहा और खुद रॉ के डायरेक्टर को और एडिशनल सेक्रेटरी होम ( इंटरनल सिक्योरिटी) को जगा के बताया। रा को वैसे भी इन्वॉल्व होना था क्योंकि करन रॉ का आपरेटिव था।
और जब आई बी डायरेकटर का फोन आया तो उनके इंस्ट्रक्शन बहुत साफ थे ,
' बेहोश कंट्रोल रूम सिक्योरिटी आपरेटिव्स को बेहोश ही रहने दे और उन्हें हाथ न लगाएं। कंट्रोल रूम के फूटेज से हमलावरों की फूटेज के वीडियो को अपने पास कापी कर के , कंट्रोल रूम के सिक्योरटी कैमरे से उसे डिलीट कर दें। लोकल सिक्योरिटी को न इन्वाल्व करें , सिर्फ आई बी के आपरेटिव को जो पुलिस पोस्ट पर वेट कर रहा है उसे काॅन्टेक्ट करें और उस के साथ मिल कर सब कुछ 'नार्मल ऐसा' कर दें.उनका एक्सट्रैकशन प्री पोंन किया जा रहा है और २० -२५ मिनट में उन लोगों को वहां से निकलना होगा। '
करन ने पहले कंट्रोल रूम के फूटेज टैम्पर किये , हमलावर के सारे फूटेज अपने मोबाईल में और एक पेन ड्राइव में ले कर उसे आई बी और रा को भी भेज दिया। उसके बाद आई बी के आदमी को फोन किया। उसके पास भी मेसेज जस्ट पहुंचा था।
जब तक वो आये , उसके पहले करन ने पेरीमीटर का चक्कर लगाया और फेन्स को कटा पाया। साथ में एक लूप लगा था। ये साफ था की हमलावर यही से घुसे थे।
करन ने फेन्स ठीक की। और सबूत बताने वाला वो लूप अपने पास रख लिया।
बाहर रास्ते में आकर उसने माइंस ढूंढी , जोउसके लिए इस लिए मुश्किल नहीं थी की उसने सी सी टीवी की फूटेज में लोकेशन साफ साफ देखी थी।
बहुत सम्हालकर उसने दोनों माइंस डिफ्यूज की और रास्ते के बाकी 'कांटे ' हटाये।
कुछ ही देर में आई बी का ऑपरेटिव वहां पहुँच गया और दोनों पिछवाड़े गए जहाँ करन ने खिड़की से दोनों हमलवारों की बाड़ी बाहर फेंकी थी।
उस के बगल में कम्युनिकेशन डिवाइस जो एक्सप्लोड हो चुकी थी , वो भी पड़ी थी। और उसके विस्फोट से दोनों बॉडीज अब इतनी क्षत विक्षत हो चुकी थीं की उन्हें पहचानना मुश्किल था।
करन और उस आपरेटिव ने मिल कर बारी बारी से दोनों बॉडीज को समुद्र तक पहुँचाया , और फिर किनारे पड़े पत्थर उनमें बाँध कर उन्हें समुद्र तल में डुबो दिया। उस समय टाइड का समय था , थोड़े ही देर में लहरे उन्हें समुद्र तट से दूर पहुंचा देती।
यही वो समय था जब उस हमलावर के मुताबिक़ बोट को उनका इन्तजार करना था , लेकिन आस पास कोई बोट नजर नहीं आई।
दूर अचानक क्षितिज पर उस समय एक तेज रोशनी हुयी ,आग के गोले जैसी और फिर समुद्र में समां गयी।
करन ने बदले हुए प्रोग्राम के बारे में मीनल और रीत को बता दिया था।
आई बी का आपरेटिव बाहर कंट्रोल रूम में कहीं से बात कर रहा था।
जब करन अंदर गया तो मीनल और रीत दोनों बाथरूम में थी , कमरा एकदम साफ कर दिया गया था , और सामान पैक था।
करन दूसरे बाथरूम में दाखिल हो गया। उसकी देह पर भी हमलावरों के खून के छींटे थे। नहाकर वह तैयार हो रहा था की मीनल ने दरवाजा खटखटाया , गाडी आ गयी है। वो जल्दी जल्दी बाहर निकला। मीनल और रीत तैयार थीं। रीत अब नार्मल लग रही थी लेकिन वो और मीनल दोनों एकदम चुप थीं।
गाडी एक दूध बांटने वाली मिल्क वान थी , जिसे देख के किसी को शक न हो लेकिन उसके सारे शीशे ब्लैक टिंटेड ग्लासेज थे और परदे पड़े थे। ड्राइवर गाडी से नहीं उतरा और करन ,मीनल रीत तीनो लगेज एरिया में बैठ गए ,अपने सामान के साथ।
२० मिनट में वह एक मैदान में थे जहाँ एक चॉपर खड़ा था ,और उनका सामान उस में रख दिया गया। तीनो उस में बैठ गए।
और जब हेलिकाप्टर उड़ा तो उस समय प्रत्युषा का आगमन हो चूका था।
किसी सुहागन के मांग में सिन्दूर की तरह एक पतली सी अरुणिम आभा क्षितिज पर दिख रही थी।
२० मिनट बाद वह वड़ोदरा में लैंड किये। लेकिन वह सिविलयन एयरपोर्ट पर नहीं थे।
वह तीनो वड़ोदरा एयरफोर्स बेस पर उतरे। और बगल में एयर फोर्स का एक प्लेन तैयार खड़ा था।
रीत थोड़ा सा मुस्कराई जब मीनल विदा लेते हुए उससे गले मिली।
और करन ने मुस्कराकर हलके से मीनल से कहा , " सिर्फ दी से , …"
और मुस्कराते हुए मीनल सीधे करन के पास पहुँच गयी और उसे बाँहो में ले के धीमे से बोली ,' जीजू फिर कंब.। "
करन ने बिना जवाब दिए उस की पीठ थपथपा दी।
रीत की आँखों में थोड़ी सी पुरानी चपलता लौट आई थी।
और अब वो दोनों एयर फोर्स के जहाज में बैठ गए और उनके बैठते ही जहाज उड़ चला।
करन को मालूम था , वो दोनों बनारस नहीं जा रहे हैं।
वह बनारस से बहुत दूर जा रहे थे।
और सिर्फः बनारस से ही नहीं अपनी पुरानी जिंदगी से दूर जा रहे थे शायद हमेशा के लिए।
आई बी ने उनके ऊपर हुए इस हमले के बाद ये फैसला किया था की उनकी सिक्योरटी के लिए और नेशनल सिक्योरटी के लिए ये जरुरी है की उन्हें एक प्रोटेक्शन प्रोग्राम में रखा जाय ,जिसमे उनकी पूरी आइडेंटिटी नयी होगी। थोड़ा बहुत प्लास्टिक सर्जरी , नया माहौल , नया बैकग्राउंड। करन ने जो मेसेज दिया था उसे उनके कमांड सेंटर को ये इन्फो मिल गयी होगी की दोनों एलिमिनेट हो चुके हैं। लेकिन उनके जानने वालों पर वह तब भी निगाह रखेंगे और अगर इन्होने उनसे कांटैक्ट रखा तो इस कवर स्टोरी को मेंटेन करना मुश्किल होगा।
करन ने सिर्फ आनंद को मेसेज किया था , और ये कहा था की गुड्डी , दूबे भाभी और फेलू दो को सिर्फ ये बताएं की वो सेफ हैं।
यह करन को भी नहीं मालूम था वो और रीत कहाँ जा रहे हैं , उनकी नयी आई डी क्या होगी।
रीत एक कोने में प्लेन की खिड़की से सर टिकाये गुमसुम बैठी थी।
बनारस में दूबे भाभी ने आँचल के कोने से , आंसू का एक टुकड़ा पोछा और अशिषा ,
' बिटिया जहाँ रहो खुश रहो। करन है न तोहरे साथ। '
और फिर आसमान की ओर भरी निगाह से देख बुदबुदाया ,
' वकील साहब आप जहाँ हों ,बिटिया को आशीष दो। '
" बाथरूम जाओगी , भाभी थोड़ी देर में आती होंगी। "
वो बाएं हाथ का सहारा लेकर उठी , और जब मैंने पेशकश की मैं भी आ जाऊं उसकी हेल्प केलिए , तो उसके चेहरे पे फिर वही शरारत , …आँख नचा के बोली ,
" तुझे पीटने के लिए मेरा एक हाथ काफी है। "
और बाथरूम के दरवाजे पर से रुक के उस परीजाद ,सुर्खरू ,शोख ने मुड़ के मुझे देखा और बोली ,
" चलो तेरी वो भी ख्वाहिश पूरी कर दूंगी। तुम भी क्या याद करोंगे , बनारस वाली हूँ कोई मजाक नहीं। बस २७ मई का इन्तजार करो। "
कोई और वक्त होता तो मैं उसकी बात पे मुस्कराता , लेकिन आज बामशक्कत मैंने आँखे नम होने से रोकी।
और वो बाथरूम में घुस गयी। दरवाजा खोलने के लिए उसने अनजाने में दायां हाथ इस्तेमाल किया और जो चिलक उठी तो बड़ी मुश्किल से उसने चेहरे पर आये दर्द के अहसास को तुरंत पोछ के साफ किया।
कुछ देर बाद ही हुक्मनामा आया , बाथरूम के बंद दरवाजे के पीछे से ,
" चाय मिलेगी क्या ?
" एकदम ,गरमगरम कड़क , *** गढ़ स्पेशल। " मैंने जवाब दिया और किचेन में लग लिया। भाभी का मेसेज आया था की वो लोग बस १५ -२० मिनट में पहुँच रहे हैं और मैं गुड्डी से कह दूँ चाय बनाने के लिए। वो लोग बहुत चयासी हो रही हैं। और मैंने पानी बढ़ा दिया।
कुछ देर में गुड्डी बाथरूम से निकली , अपने कमरे में गयी और जब तक बाहर निकली तो टेबल पर टीकोजी से ढंकी केटली में चाय हाजिर थी , और साथ में मैं,खड़ा , कंधे पर छोटी टॉवेल,एकदम रामू काका की तरह।
और गुड्डी ने बैठ कर जैसे ही मुझे देखा , बस बेसाख़्ता मुस्करा पड़ी।
जोश का एक शेर याद आया ,
यह बात, यह तबस्सुम, यह नाज, यह निगाहें,
आखिर तुम्हीं बताओं क्यों कर न तुमको चाहे।
लेकिन फिर याद आया , रामू काका शेर थोड़े ही पढ़ते हैं।
और गुड्डी ने हुक्म दिया , अब चलो तुम भी पी ही लो।
बस मैं बैठ गया , और चाय ढालने के लिए जो केतली पकड़ी तो उसकी आँखों ने मना कर दिया और ,और फिर बाएं हाथ से ,… बाएं हाथ के इस्तेमाल में वो एकदम सौरभ गांगुली हो रही थी।
चाय की पहली चुस्की के बाद ही उसने मुंह बनाया और बोली , चीनी कम.
इस जुमले ने क्या क्या न याद दिलाया , ये बात रोज मैं बोलता था जब गुड्डी बेड टी लेकर आती थी और ये बहाना होता था गुलाब की टटकी पंखुड़ियों से एक चुम्बन चुराने का।
वह चीनी का डिब्बा बढ़ा देती थी , अपने सुर्खरू लब।
और आज मैंने अपने होंठ।
होंठो का वो आलिंगन कब तक चलता पता नहीं , लेकिन बाहर दरवाजे पर घंटी बज गयी। भाभी आ गयी थी।
.............
उपसंहार
भाभी आज एकदम अलग ही लग रही थीं।
खूब चुलबुली , एक अलग सी मस्ती आँखों से पूरे चेहरे से टपक रही थी। हाँ बस थोड़ी थोड़ी थकी लग रही थीं।
भैया ,हरदम की तरह ,सीधे अपने कमरे में चले गए ,ये कह के उन्हें नींद आ रही है ,भाभी थोड़ी देर में आ जाएँ,ऊपर।
और भाभी की नजर सीधे टेबल पे बैठी गुड्डी और सामने रखी गरम केतली पर पड़ी।
और वो धम्म से हम दोनों के बीच बैठ गयीं।
और गुड्डी ने अपनी चुस्की ली प्याली मेरी ओर सरका दी और मेरी अनपीयी प्याली , भाभी के लिए सरका दी।
मैंने ' एक्स्ट्रा मीठी' प्याली अपने होंठों से लगाई ,गुड्डी की शैतान लेकिन मीठी मीठी निगाहों को देखता रहा और उसके लिए चाय निकाल दी।
" वाह क्या मस्त चाय है ,सारी थकान गायब , एकदम गुड्डी ने बनायीं होगी। तेरे हाथ में तो जादू है। " भाभी ने चाय की दो चुस्की के बाद ही फैसला सूना दिया।
और गुड्डी भी , सीधे मेरी आँख में देखती बोली , " एकदम आपके देवर को तो कुछ आता है नहीं ,एकदम नौसिखिये हैं। न किचेन का काम न कुछ ,… "
भाभी भी गुड्डी की मुस्कराहट केसाथ मुस्करा के हामी भर रही थीं , लेकिन उन्होंने एक इम्पोर्टेन्ट सवाल दाग दिया ,
" कब तक निकलना है तुम लोगों को " और भाभी का सवाल निकलने के पहले ही मैंने लपक लिया। अगर कहीं गुड्डी ने उलटा सीधा जवाब दे दिया तो गड़बड़ हो जाता।
" वैसे तो टैक्सी ११ बजे बुलाया है ,लेकिन वो थोड़ा शायद पहले ही आ जाय। और रंजी तो एकदम सुबह ही निकल गयी थी वो भी साढ़े नौ ,पौने १० बजेतक आ ही जाएगी। गुड्डी ने सब पैक वैक कर लिया है तो बस जैसे टैक्सी आएगी साढ़े दस के आसपास। "
मैंने एक साँस में पूरा जवाब दे दिया और भाभी के कप में दुबारा चाय भी ढाल दी।
उन्होंने चाय पीनी शुरू की ही थी की ऊपर से बुलावा आ गया.
लेकिन भाभी भी , चाय पीते पीते गुड्डी को समझा रही थी ,' सुन क्या बनाएगी खाने में , अब ज्यादा टाइम भी तो नहीं रह गया। "
कल रात की बात याद कर के मैं बोला , बिरयानी बना लो। ( कल उसने और रंजी ने रेड़ी टू ईट के पैकेट से बनायीं थी )
लेकिन जैसे होता है , भाभी और गुड्डी दोनों एक साथ चढ़ पड़ीं मेरे उपर।
" रसोइये के खानदान से हो क्या ,… " गुड्डी ने आँख नचा के बोला।
" सही कह रही है तू , सासु जी आएँगी न तो उनसे पूछना पड़ेगा कही , किसी बावर्ची के साथ ,कोई ठिकाना नहीं ,...." और दोनों खिलखिलाने लगी।
मैंने पूरी तरह अनसुना कर दिया।
मेरी आँखे और ध्यान पूरी तरह गुड्डी की चोट लगे दायें हाथ पर लगा था। गनीमत थी की उसने कुहनी तक बांह वाला एक अनारकली सूट पहन रखा था। किचेन का काम ,… इस हालत में।
" टाइम कम है , सुन तू झटपट तहरी बना ले , आलू , टमाटर ,गोभी ,गाजर सब डाल के। और हाथ खाओगी किस से ,तो बस फ्रेश टमाटर की चटनी बना लेना। " भाभी ने फैसला सुना दिया।
तब तक हेडक्वारटर्स से कॉल आ गयी , और भाभी ने एक घूँट में बाकी चाय खत्म कर दी और उठने वाली थी की गुड्डी धीरे से बोल उठी ,
" वो तो ऊपर सोने गए थे तो आप क्या लोरी सुनाने , .... "
क्या जोर का भाभी ने ब्लश किया और एक हाथ सीधे गुड्डी की पीठ पे ,
' बस दो ढाई महीने की बात है ,आएगी इसी घर में फिर पूछूंगी , दिन दहाड़े जब जुम्हाई आएगी। "
और अगले पल भाभी ऊपर और हम दोनों किचेन में ,
बहुत मुश्किल से गुड्डी मानी ,
और फिर उस की हिदायतें और मेरा काम ,
उस दिन पहली बार अजवायन ,सौंफ धनिया और जीरा में अंतर पहचाना।
बोल सब वही रही थी , बीच में झुंझला भी रही थी।
पानी में चावल भिगोओ।
तेल गरम करके कटे प्याज डालो।
फिर गार्लिक और जिंजर पेस्ट खड़े मसाले सारे ,
बीच में उसने कूकर उठाने की कोशिश की तो फिर चिलक उठी , और मैंने उसे फिर एकदम मना कर दिया।
लेकिन तब भी मिक्सी का काम , सास बनाने का ,…
और आधे घंटे में हम दोनों ने मिल के तहरी चढ़ा दी।
और मैं उसे खींचता हुआ , अपने कमरे में ले गया।
और उसकी बैंडेज खोली।
मैंने एक डाकटर से सुबह ही बात की थी लेकिन उन्होंने बोला था की बिना देखे कुछ बताना मुश्किल है।
बस इसलिए , उसके दो चार फोटो लिए और उन्हें तुरंत व्हाट्सऐप किया।
और उनका जवाब भी आ गया , चिंता की बात नहीं है , वूंड हील होना शुरू हो गया है , अब ज्यादा पट्टी की जरूरत नहीं है मैं सिर्फ एक इलेस्टोप्लास्ट लगा दूँ। हाँ इस हाथ से अगले सात आठ घंटे तक कुछ भी उठाना मना है , जितना इस हाथ को आराम मिलेगा उतनी जल्दी ठीक हो जाएगा। और उन्होंने दो इंजेक्शन भी लिखवाये , जो मुझे बनारस जाते समय कहीं लगवा लेने थे। चोट लगने के ७-८ घंटे के अंदर पेन किलर एक बार और देने के केलिए बोला उन्होंने।
बस मैंने उसे आ करवा के गोली खिलवायी , बैंडेज जैसा उन्होंने कहा था वो लगवाया ,लेकिन गुड्डी की बस एक रट तहरी ख़राब हो जायेगी।
तहरी का तो कुछ नहीं लेकिन अगर हम दस मिनट लेट आते तो पकड़े जाते।
किचेन में पहुँच कर कूकर से मैंने तहरी निकाल के सर्विंग वाले बर्तन में रख दिया था और गुड्डी दही रख रही थी।
भाभी तभी आ पहुंची और पहुंचते ही मुझे डांट पड़ी और गुड्डी की तारीफ।
फागुन के दिन चार--191
जीत गयी रीत
और रीत ने गिरते हुए उस हमलावर के डूंगरी से कमांडो नाइफ निकाल ली थी।
हमलावर के हाथ में अभी भी पिस्तौल थी और अब वो मरते हुए भी करन पर गोली चलाने की कोशिश कर रहा था।
लेकिन रीत अब अपने रौद्र रूप में आगयी थी।
करन की गोली ने जो हमलावर के माथे में छेद किया वह सारा खून ,और कुछ मांस मज्जा निकल कर रीत के बालों में भर गया था।
दुःशाशन के वध के बाद जैसे पांचाली ने अपने खुले केश उसके रक्त से धोये थे , बस उसी तरह , रक्त टप टप टप टपक रहा था।
और जब उसने गिरे हुए हमलावर को करन की ओर निशाना लगाते देखा तो बस ,
चिघ्घाड़ के साथ वो हवा में उछली , उसके हाथ का चाक़ू सीधे हमलावर के गर्दन में पैबस्त था सामने से और फिर गिरते हुए हुए उस हमलावर के सीने पर वह सवार होगयी।
फव्वारे की तरह खून निकल कर रीत के चेहरे पर पड़ रहा था।
लेकिन चाक़ू पर उसकी पकड़ कमजोर नहीं हुयी और दोनों हाथों से नीचे तक , पसलियों के बीच ,
उसके मुंह से अभी भी भीषण आवाजें निकल रही थीं जिसे सुनकर ही कोई डर के बेहोश हो जाये ,
चाकू अभी भी अंदर धंसा था। लग रहा था वो सिर्फ अपने हाथों से उसके वक्ष से , उसका सीना चीरकर उसका कलेजा निकाल कर बाहर कर देगी।
रीत की आँखों के सामने अब वो हमलावर नहीं था ,
वो संकट मोचन का दृश्य देख रही थी जब बॉम्ब विस्फोट हुआ , एक शादी शुदा जोड़ा चीथड़ों में बदल गया।
वो एक के बाद एक शव उठा रही थी अपने माता पिता के शव को ढूंढने के लिए।
रेलवे स्टेशन पर वह पुलिस के साथ गयी , करन के माता पिता के शव को पहचानने , और एक और शव मिला पूरी तरह विक्षत ,करन का कोट पहने
मणिकर्णिका पर एक के बाद एक , …कोई नहीं बचा था ,न उसके घर में न करन के घर में।
दोनों के माता पिता को अंतिम विदा उसी ने दी। .
और फिर शीतला घाट पर , ३ साल की बच्ची खेलती हंसती , बॉम्ब के धमाके में उड़ गयी।
वह बार बार चाक़ू का वार कर रही थी , चीख रही थी।
पेट उसने फाड़ दिया था , अंदर की आते बाहर निकल आई थीं। और उस हमलावर के मृत देह पर बैठी , उसके खून में सनी , बिना रुके वह चीख रही थी और उसके उसके अंग अंग को चीर रही थी, फाड़ रही थी।
उसकी देह पर खड़ी होकर हमलावर के जिस हाथ में अभी भी पिस्टल थी , उसे उसना पकड़ा और जोर से मोड़ दिया।
हाथ टूट गया।
श्मशान में विचरण करने वाली जैसे शाकिनी डाकिनी हों उस तरह की आवाज ,
सब लोग शांत देख़ रहे थे , करन मीनल ,
चुप ,भयाक्रांत।
और उस आधे मरे हमलावर ने जैसे मौत देख ली हो। मौत से भी कुछ ज्यादा भयंकर।
काली की तरह , रक्त स्नात ,शत्रु हंता ,मृत्यु रुपी साक्षात काल।
मीनल ने करन को इशारा किया ,
वही रीत के मन को स्थिर कर सकता था।
इस जंग में दोनों ने ही खोया था , अपना सब कुछ।
और दोनों ने ही पाया था , एक दूसरे को और जिंदगी का एक मकसद। इन हमलावरों से मुक्ति दिलाने का।
करन जाकर रीत के सामने खड़ा हुआ।
रीत कुछ देर तक उसे पथरायी निगाहों से देखती रही जैसे पहचान न रही हो।
फिर अचानक उसने एक जोर की आवाज निकाली , जिसमें सदियों का दर्द ,चीख ,डर सब मिला था।
करन ने आगे बढ़ कर रीत के खून से सने हाथ पकड़ लिए और दूसरे हमलावर के पास ले गया और उसके कान में बोला।
" तुम कुछ मत करना , बस सिर्फ इसके सामने बैठ जाओ। "
रीत को पास में देख कर जोर से वो चीखा ,
लेकिन मीनल बोली , ये कुछ नहीं करेगी जब तक तुम हमारे सवालों के जवाब दोगे।
और करन ने सवाल करना शुरू किया ,
तुम्हे किसने भेजा , सेंटर कहाँ है।
उसे बहुत कम मालूम था ,लेकिन जो भी था ,तोते की तरह उसने उगल दिया।
काम की बात तब पता चली जब करन ने पुछा ,
तुम्हे यहाँ से क्या मेसेज देना था और उसने नीचे जेब की ओर इशारा किया , जिसमें एक कम्युनिकेशन डिवाइस थी , दो मेसेज प्री फेड थे ,
लाल बटन - टारगेट एलीमैनेटड , मिशन अचीव्ड।
हरा बटन -मिशन अबॉर्टेड।
मिशन सक्सेसफुल होने पर उन्हें लाल बटन दबाना था , और ये मेसेज सीधे कमांड सेण्टर पर जाता।
इस एक मेसज को देने के बाद वो डिवाइस बेकार हो जाती। यानी इसका इस्तेमाल कर के कमांड सेंटर का पता नहीं लग सकता था।
तब तक मीनल ने देखा उस ने गले में ताबीज सा कुछ पहन रखा है और उस का दायां हाथ , जो अभी भी थोड़ा बहुत काम का था उधर बढ़ रहा था।
मीनल ने झटके से वो ताबीज तोड़ दी और उसे अपने हाथ में ले लिया।
वह एक सायनाइड कैप्स्यूल था.
रीत ने पहचाना और फुसफुसा कर बोली।
मीनल और करन ने एक दूसरे को आँखों में देखा और हलके से मुस्कराये।
रीत धीरे धीरे नार्मल हो रही थी।
रीत ने अधमरे हमलावर पर हाथ रखा , और पूछा ,
वापस लौटने का क्या प्रोग्राम था।
और उस ने सारी कहानी बयान कर दी।
"टार्गट्स को खत्म करने के बाद , हमें मेसेज देना था। और मेसेज भेजने के १५ मिनट के अंदर हमें बीच पर पहुँच जाना था जहाँ वो बोट हमें मिलती। १५ मिनट की विंडो उसकी थी ,मेसेज देने के १० मिनट से २५ मिनट तक। और वह हमें हाई सीज तक ले जाती जहाँ सबमैरीन हमें पिक अप करती। "
सब का ध्यान उसकी बात सुनने में लगा था ,
अचानक वह अपना दायां हाथ अपने मुंह के पास ले गया। उसमे एक गंडा ऐसा बंधा था और जब तक लोग कुछ समझ पाते , रोक पाते ,वह उसके मुंह में था।
सबसे पहले रीत के मुंह से निकला सायनाइड।
और अगले पल ही उसके नीले पड़ते शरीर ने उसकी ताईद भी कर दी।
अब करने को कुछ नहीं बचा था और बहुत कुछ बचा था।
और रीत ने गिरते हुए उस हमलावर के डूंगरी से कमांडो नाइफ निकाल ली थी।
हमलावर के हाथ में अभी भी पिस्तौल थी और अब वो मरते हुए भी करन पर गोली चलाने की कोशिश कर रहा था।
लेकिन रीत अब अपने रौद्र रूप में आगयी थी।
करन की गोली ने जो हमलावर के माथे में छेद किया वह सारा खून ,और कुछ मांस मज्जा निकल कर रीत के बालों में भर गया था।
दुःशाशन के वध के बाद जैसे पांचाली ने अपने खुले केश उसके रक्त से धोये थे , बस उसी तरह , रक्त टप टप टप टपक रहा था।
और जब उसने गिरे हुए हमलावर को करन की ओर निशाना लगाते देखा तो बस ,
चिघ्घाड़ के साथ वो हवा में उछली , उसके हाथ का चाक़ू सीधे हमलावर के गर्दन में पैबस्त था सामने से और फिर गिरते हुए हुए उस हमलावर के सीने पर वह सवार होगयी।
फव्वारे की तरह खून निकल कर रीत के चेहरे पर पड़ रहा था।
लेकिन चाक़ू पर उसकी पकड़ कमजोर नहीं हुयी और दोनों हाथों से नीचे तक , पसलियों के बीच ,
उसके मुंह से अभी भी भीषण आवाजें निकल रही थीं जिसे सुनकर ही कोई डर के बेहोश हो जाये ,
चाकू अभी भी अंदर धंसा था। लग रहा था वो सिर्फ अपने हाथों से उसके वक्ष से , उसका सीना चीरकर उसका कलेजा निकाल कर बाहर कर देगी।
रीत की आँखों के सामने अब वो हमलावर नहीं था ,
वो संकट मोचन का दृश्य देख रही थी जब बॉम्ब विस्फोट हुआ , एक शादी शुदा जोड़ा चीथड़ों में बदल गया।
वो एक के बाद एक शव उठा रही थी अपने माता पिता के शव को ढूंढने के लिए।
रेलवे स्टेशन पर वह पुलिस के साथ गयी , करन के माता पिता के शव को पहचानने , और एक और शव मिला पूरी तरह विक्षत ,करन का कोट पहने
मणिकर्णिका पर एक के बाद एक , …कोई नहीं बचा था ,न उसके घर में न करन के घर में।
दोनों के माता पिता को अंतिम विदा उसी ने दी। .
और फिर शीतला घाट पर , ३ साल की बच्ची खेलती हंसती , बॉम्ब के धमाके में उड़ गयी।
वह बार बार चाक़ू का वार कर रही थी , चीख रही थी।
पेट उसने फाड़ दिया था , अंदर की आते बाहर निकल आई थीं। और उस हमलावर के मृत देह पर बैठी , उसके खून में सनी , बिना रुके वह चीख रही थी और उसके उसके अंग अंग को चीर रही थी, फाड़ रही थी।
उसकी देह पर खड़ी होकर हमलावर के जिस हाथ में अभी भी पिस्टल थी , उसे उसना पकड़ा और जोर से मोड़ दिया।
हाथ टूट गया।
श्मशान में विचरण करने वाली जैसे शाकिनी डाकिनी हों उस तरह की आवाज ,
सब लोग शांत देख़ रहे थे , करन मीनल ,
चुप ,भयाक्रांत।
और उस आधे मरे हमलावर ने जैसे मौत देख ली हो। मौत से भी कुछ ज्यादा भयंकर।
काली की तरह , रक्त स्नात ,शत्रु हंता ,मृत्यु रुपी साक्षात काल।
मीनल ने करन को इशारा किया ,
वही रीत के मन को स्थिर कर सकता था।
इस जंग में दोनों ने ही खोया था , अपना सब कुछ।
और दोनों ने ही पाया था , एक दूसरे को और जिंदगी का एक मकसद। इन हमलावरों से मुक्ति दिलाने का।
करन जाकर रीत के सामने खड़ा हुआ।
रीत कुछ देर तक उसे पथरायी निगाहों से देखती रही जैसे पहचान न रही हो।
फिर अचानक उसने एक जोर की आवाज निकाली , जिसमें सदियों का दर्द ,चीख ,डर सब मिला था।
करन ने आगे बढ़ कर रीत के खून से सने हाथ पकड़ लिए और दूसरे हमलावर के पास ले गया और उसके कान में बोला।
" तुम कुछ मत करना , बस सिर्फ इसके सामने बैठ जाओ। "
रीत को पास में देख कर जोर से वो चीखा ,
लेकिन मीनल बोली , ये कुछ नहीं करेगी जब तक तुम हमारे सवालों के जवाब दोगे।
और करन ने सवाल करना शुरू किया ,
तुम्हे किसने भेजा , सेंटर कहाँ है।
उसे बहुत कम मालूम था ,लेकिन जो भी था ,तोते की तरह उसने उगल दिया।
काम की बात तब पता चली जब करन ने पुछा ,
तुम्हे यहाँ से क्या मेसेज देना था और उसने नीचे जेब की ओर इशारा किया , जिसमें एक कम्युनिकेशन डिवाइस थी , दो मेसेज प्री फेड थे ,
लाल बटन - टारगेट एलीमैनेटड , मिशन अचीव्ड।
हरा बटन -मिशन अबॉर्टेड।
मिशन सक्सेसफुल होने पर उन्हें लाल बटन दबाना था , और ये मेसेज सीधे कमांड सेण्टर पर जाता।
इस एक मेसज को देने के बाद वो डिवाइस बेकार हो जाती। यानी इसका इस्तेमाल कर के कमांड सेंटर का पता नहीं लग सकता था।
तब तक मीनल ने देखा उस ने गले में ताबीज सा कुछ पहन रखा है और उस का दायां हाथ , जो अभी भी थोड़ा बहुत काम का था उधर बढ़ रहा था।
मीनल ने झटके से वो ताबीज तोड़ दी और उसे अपने हाथ में ले लिया।
वह एक सायनाइड कैप्स्यूल था.
रीत ने पहचाना और फुसफुसा कर बोली।
मीनल और करन ने एक दूसरे को आँखों में देखा और हलके से मुस्कराये।
रीत धीरे धीरे नार्मल हो रही थी।
रीत ने अधमरे हमलावर पर हाथ रखा , और पूछा ,
वापस लौटने का क्या प्रोग्राम था।
और उस ने सारी कहानी बयान कर दी।
"टार्गट्स को खत्म करने के बाद , हमें मेसेज देना था। और मेसेज भेजने के १५ मिनट के अंदर हमें बीच पर पहुँच जाना था जहाँ वो बोट हमें मिलती। १५ मिनट की विंडो उसकी थी ,मेसेज देने के १० मिनट से २५ मिनट तक। और वह हमें हाई सीज तक ले जाती जहाँ सबमैरीन हमें पिक अप करती। "
सब का ध्यान उसकी बात सुनने में लगा था ,
अचानक वह अपना दायां हाथ अपने मुंह के पास ले गया। उसमे एक गंडा ऐसा बंधा था और जब तक लोग कुछ समझ पाते , रोक पाते ,वह उसके मुंह में था।
सबसे पहले रीत के मुंह से निकला सायनाइड।
और अगले पल ही उसके नीले पड़ते शरीर ने उसकी ताईद भी कर दी।
अब करने को कुछ नहीं बचा था और बहुत कुछ बचा था।
रैन भई चहुँ देस
अब करने को कुछ नहीं बचा था और बहुत कुछ बचा था।
रीत और करन ने मिल कर दोनों हमलावर जिस खिड़की से आये थे , उसी खिड़की से उन्हें वापस बाहर फ़ेंक दिया।
करन ,रीत खिड़की के पास खड़े थे और करन कुछ सोच रहा था , फिर उसने वो कम्युनिकेशन डिवाइस उठाई और कुछ सोच कर मिशन अकम्पलीश् होने का मेसेज दिया। तुरंत जवाब आया कॉंग्रेट्स।
पर अगले पल रीत ने चिल्लाकर करन को वार्न किया।
उस डिवाइस के पीछे कोई लाइट जल रही थी , और करन ने तुरंत उसे खिड़की के बाहर फेक दिया।
वह उन दोनों हमलावरों की बाड़ी के बीच में गिरा , और अगले ही पल जोर का धमाका हुआ।
१० फिट दूरी का सब कुछ उस धमाके में उड़ गया।
इस का मतलब उस डिवाइस में ही दोनों के खत्म करने का पूरा प्लान बना ,हुआ था।
रीत और मीनल ने मिल के कमरे को पूरी तरह ठीक किया और उसके बाद मीनल पकड़कर रीत को बाथरूम में ले गयी और करन बाहर कंट्रोल रूम में गया।
और रिवाइंड करने पर उसे हमलावरों की सारी हरकतें पता चल गयी जैमर लगाना , आने के रास्ते में माइन्स लगाना , सारी बातें. पहले करन ने जैमर ठीक किया।
और आई बी के चीफ से बात की और उन्हें सब कुछ बताया।
उन्होंने उसे दो मिनट वेट करने को कहा और खुद रॉ के डायरेक्टर को और एडिशनल सेक्रेटरी होम ( इंटरनल सिक्योरिटी) को जगा के बताया। रा को वैसे भी इन्वॉल्व होना था क्योंकि करन रॉ का आपरेटिव था।
और जब आई बी डायरेकटर का फोन आया तो उनके इंस्ट्रक्शन बहुत साफ थे ,
' बेहोश कंट्रोल रूम सिक्योरिटी आपरेटिव्स को बेहोश ही रहने दे और उन्हें हाथ न लगाएं। कंट्रोल रूम के फूटेज से हमलावरों की फूटेज के वीडियो को अपने पास कापी कर के , कंट्रोल रूम के सिक्योरटी कैमरे से उसे डिलीट कर दें। लोकल सिक्योरिटी को न इन्वाल्व करें , सिर्फ आई बी के आपरेटिव को जो पुलिस पोस्ट पर वेट कर रहा है उसे काॅन्टेक्ट करें और उस के साथ मिल कर सब कुछ 'नार्मल ऐसा' कर दें.उनका एक्सट्रैकशन प्री पोंन किया जा रहा है और २० -२५ मिनट में उन लोगों को वहां से निकलना होगा। '
करन ने पहले कंट्रोल रूम के फूटेज टैम्पर किये , हमलावर के सारे फूटेज अपने मोबाईल में और एक पेन ड्राइव में ले कर उसे आई बी और रा को भी भेज दिया। उसके बाद आई बी के आदमी को फोन किया। उसके पास भी मेसेज जस्ट पहुंचा था।
जब तक वो आये , उसके पहले करन ने पेरीमीटर का चक्कर लगाया और फेन्स को कटा पाया। साथ में एक लूप लगा था। ये साफ था की हमलावर यही से घुसे थे।
करन ने फेन्स ठीक की। और सबूत बताने वाला वो लूप अपने पास रख लिया।
बाहर रास्ते में आकर उसने माइंस ढूंढी , जोउसके लिए इस लिए मुश्किल नहीं थी की उसने सी सी टीवी की फूटेज में लोकेशन साफ साफ देखी थी।
बहुत सम्हालकर उसने दोनों माइंस डिफ्यूज की और रास्ते के बाकी 'कांटे ' हटाये।
कुछ ही देर में आई बी का ऑपरेटिव वहां पहुँच गया और दोनों पिछवाड़े गए जहाँ करन ने खिड़की से दोनों हमलवारों की बाड़ी बाहर फेंकी थी।
उस के बगल में कम्युनिकेशन डिवाइस जो एक्सप्लोड हो चुकी थी , वो भी पड़ी थी। और उसके विस्फोट से दोनों बॉडीज अब इतनी क्षत विक्षत हो चुकी थीं की उन्हें पहचानना मुश्किल था।
करन और उस आपरेटिव ने मिल कर बारी बारी से दोनों बॉडीज को समुद्र तक पहुँचाया , और फिर किनारे पड़े पत्थर उनमें बाँध कर उन्हें समुद्र तल में डुबो दिया। उस समय टाइड का समय था , थोड़े ही देर में लहरे उन्हें समुद्र तट से दूर पहुंचा देती।
यही वो समय था जब उस हमलावर के मुताबिक़ बोट को उनका इन्तजार करना था , लेकिन आस पास कोई बोट नजर नहीं आई।
दूर अचानक क्षितिज पर उस समय एक तेज रोशनी हुयी ,आग के गोले जैसी और फिर समुद्र में समां गयी।
करन ने बदले हुए प्रोग्राम के बारे में मीनल और रीत को बता दिया था।
आई बी का आपरेटिव बाहर कंट्रोल रूम में कहीं से बात कर रहा था।
जब करन अंदर गया तो मीनल और रीत दोनों बाथरूम में थी , कमरा एकदम साफ कर दिया गया था , और सामान पैक था।
करन दूसरे बाथरूम में दाखिल हो गया। उसकी देह पर भी हमलावरों के खून के छींटे थे। नहाकर वह तैयार हो रहा था की मीनल ने दरवाजा खटखटाया , गाडी आ गयी है। वो जल्दी जल्दी बाहर निकला। मीनल और रीत तैयार थीं। रीत अब नार्मल लग रही थी लेकिन वो और मीनल दोनों एकदम चुप थीं।
गाडी एक दूध बांटने वाली मिल्क वान थी , जिसे देख के किसी को शक न हो लेकिन उसके सारे शीशे ब्लैक टिंटेड ग्लासेज थे और परदे पड़े थे। ड्राइवर गाडी से नहीं उतरा और करन ,मीनल रीत तीनो लगेज एरिया में बैठ गए ,अपने सामान के साथ।
२० मिनट में वह एक मैदान में थे जहाँ एक चॉपर खड़ा था ,और उनका सामान उस में रख दिया गया। तीनो उस में बैठ गए।
और जब हेलिकाप्टर उड़ा तो उस समय प्रत्युषा का आगमन हो चूका था।
किसी सुहागन के मांग में सिन्दूर की तरह एक पतली सी अरुणिम आभा क्षितिज पर दिख रही थी।
२० मिनट बाद वह वड़ोदरा में लैंड किये। लेकिन वह सिविलयन एयरपोर्ट पर नहीं थे।
वह तीनो वड़ोदरा एयरफोर्स बेस पर उतरे। और बगल में एयर फोर्स का एक प्लेन तैयार खड़ा था।
रीत थोड़ा सा मुस्कराई जब मीनल विदा लेते हुए उससे गले मिली।
और करन ने मुस्कराकर हलके से मीनल से कहा , " सिर्फ दी से , …"
और मुस्कराते हुए मीनल सीधे करन के पास पहुँच गयी और उसे बाँहो में ले के धीमे से बोली ,' जीजू फिर कंब.। "
करन ने बिना जवाब दिए उस की पीठ थपथपा दी।
रीत की आँखों में थोड़ी सी पुरानी चपलता लौट आई थी।
और अब वो दोनों एयर फोर्स के जहाज में बैठ गए और उनके बैठते ही जहाज उड़ चला।
करन को मालूम था , वो दोनों बनारस नहीं जा रहे हैं।
वह बनारस से बहुत दूर जा रहे थे।
और सिर्फः बनारस से ही नहीं अपनी पुरानी जिंदगी से दूर जा रहे थे शायद हमेशा के लिए।
आई बी ने उनके ऊपर हुए इस हमले के बाद ये फैसला किया था की उनकी सिक्योरटी के लिए और नेशनल सिक्योरटी के लिए ये जरुरी है की उन्हें एक प्रोटेक्शन प्रोग्राम में रखा जाय ,जिसमे उनकी पूरी आइडेंटिटी नयी होगी। थोड़ा बहुत प्लास्टिक सर्जरी , नया माहौल , नया बैकग्राउंड। करन ने जो मेसेज दिया था उसे उनके कमांड सेंटर को ये इन्फो मिल गयी होगी की दोनों एलिमिनेट हो चुके हैं। लेकिन उनके जानने वालों पर वह तब भी निगाह रखेंगे और अगर इन्होने उनसे कांटैक्ट रखा तो इस कवर स्टोरी को मेंटेन करना मुश्किल होगा।
करन ने सिर्फ आनंद को मेसेज किया था , और ये कहा था की गुड्डी , दूबे भाभी और फेलू दो को सिर्फ ये बताएं की वो सेफ हैं।
यह करन को भी नहीं मालूम था वो और रीत कहाँ जा रहे हैं , उनकी नयी आई डी क्या होगी।
रीत एक कोने में प्लेन की खिड़की से सर टिकाये गुमसुम बैठी थी।
बनारस में दूबे भाभी ने आँचल के कोने से , आंसू का एक टुकड़ा पोछा और अशिषा ,
' बिटिया जहाँ रहो खुश रहो। करन है न तोहरे साथ। '
और फिर आसमान की ओर भरी निगाह से देख बुदबुदाया ,
' वकील साहब आप जहाँ हों ,बिटिया को आशीष दो। '
" बाथरूम जाओगी , भाभी थोड़ी देर में आती होंगी। "
वो बाएं हाथ का सहारा लेकर उठी , और जब मैंने पेशकश की मैं भी आ जाऊं उसकी हेल्प केलिए , तो उसके चेहरे पे फिर वही शरारत , …आँख नचा के बोली ,
" तुझे पीटने के लिए मेरा एक हाथ काफी है। "
और बाथरूम के दरवाजे पर से रुक के उस परीजाद ,सुर्खरू ,शोख ने मुड़ के मुझे देखा और बोली ,
" चलो तेरी वो भी ख्वाहिश पूरी कर दूंगी। तुम भी क्या याद करोंगे , बनारस वाली हूँ कोई मजाक नहीं। बस २७ मई का इन्तजार करो। "
कोई और वक्त होता तो मैं उसकी बात पे मुस्कराता , लेकिन आज बामशक्कत मैंने आँखे नम होने से रोकी।
और वो बाथरूम में घुस गयी। दरवाजा खोलने के लिए उसने अनजाने में दायां हाथ इस्तेमाल किया और जो चिलक उठी तो बड़ी मुश्किल से उसने चेहरे पर आये दर्द के अहसास को तुरंत पोछ के साफ किया।
कुछ देर बाद ही हुक्मनामा आया , बाथरूम के बंद दरवाजे के पीछे से ,
" चाय मिलेगी क्या ?
" एकदम ,गरमगरम कड़क , *** गढ़ स्पेशल। " मैंने जवाब दिया और किचेन में लग लिया। भाभी का मेसेज आया था की वो लोग बस १५ -२० मिनट में पहुँच रहे हैं और मैं गुड्डी से कह दूँ चाय बनाने के लिए। वो लोग बहुत चयासी हो रही हैं। और मैंने पानी बढ़ा दिया।
कुछ देर में गुड्डी बाथरूम से निकली , अपने कमरे में गयी और जब तक बाहर निकली तो टेबल पर टीकोजी से ढंकी केटली में चाय हाजिर थी , और साथ में मैं,खड़ा , कंधे पर छोटी टॉवेल,एकदम रामू काका की तरह।
और गुड्डी ने बैठ कर जैसे ही मुझे देखा , बस बेसाख़्ता मुस्करा पड़ी।
जोश का एक शेर याद आया ,
यह बात, यह तबस्सुम, यह नाज, यह निगाहें,
आखिर तुम्हीं बताओं क्यों कर न तुमको चाहे।
लेकिन फिर याद आया , रामू काका शेर थोड़े ही पढ़ते हैं।
और गुड्डी ने हुक्म दिया , अब चलो तुम भी पी ही लो।
बस मैं बैठ गया , और चाय ढालने के लिए जो केतली पकड़ी तो उसकी आँखों ने मना कर दिया और ,और फिर बाएं हाथ से ,… बाएं हाथ के इस्तेमाल में वो एकदम सौरभ गांगुली हो रही थी।
चाय की पहली चुस्की के बाद ही उसने मुंह बनाया और बोली , चीनी कम.
इस जुमले ने क्या क्या न याद दिलाया , ये बात रोज मैं बोलता था जब गुड्डी बेड टी लेकर आती थी और ये बहाना होता था गुलाब की टटकी पंखुड़ियों से एक चुम्बन चुराने का।
वह चीनी का डिब्बा बढ़ा देती थी , अपने सुर्खरू लब।
और आज मैंने अपने होंठ।
होंठो का वो आलिंगन कब तक चलता पता नहीं , लेकिन बाहर दरवाजे पर घंटी बज गयी। भाभी आ गयी थी।
.............
उपसंहार
भाभी आज एकदम अलग ही लग रही थीं।
खूब चुलबुली , एक अलग सी मस्ती आँखों से पूरे चेहरे से टपक रही थी। हाँ बस थोड़ी थोड़ी थकी लग रही थीं।
भैया ,हरदम की तरह ,सीधे अपने कमरे में चले गए ,ये कह के उन्हें नींद आ रही है ,भाभी थोड़ी देर में आ जाएँ,ऊपर।
और भाभी की नजर सीधे टेबल पे बैठी गुड्डी और सामने रखी गरम केतली पर पड़ी।
और वो धम्म से हम दोनों के बीच बैठ गयीं।
और गुड्डी ने अपनी चुस्की ली प्याली मेरी ओर सरका दी और मेरी अनपीयी प्याली , भाभी के लिए सरका दी।
मैंने ' एक्स्ट्रा मीठी' प्याली अपने होंठों से लगाई ,गुड्डी की शैतान लेकिन मीठी मीठी निगाहों को देखता रहा और उसके लिए चाय निकाल दी।
" वाह क्या मस्त चाय है ,सारी थकान गायब , एकदम गुड्डी ने बनायीं होगी। तेरे हाथ में तो जादू है। " भाभी ने चाय की दो चुस्की के बाद ही फैसला सूना दिया।
और गुड्डी भी , सीधे मेरी आँख में देखती बोली , " एकदम आपके देवर को तो कुछ आता है नहीं ,एकदम नौसिखिये हैं। न किचेन का काम न कुछ ,… "
भाभी भी गुड्डी की मुस्कराहट केसाथ मुस्करा के हामी भर रही थीं , लेकिन उन्होंने एक इम्पोर्टेन्ट सवाल दाग दिया ,
" कब तक निकलना है तुम लोगों को " और भाभी का सवाल निकलने के पहले ही मैंने लपक लिया। अगर कहीं गुड्डी ने उलटा सीधा जवाब दे दिया तो गड़बड़ हो जाता।
" वैसे तो टैक्सी ११ बजे बुलाया है ,लेकिन वो थोड़ा शायद पहले ही आ जाय। और रंजी तो एकदम सुबह ही निकल गयी थी वो भी साढ़े नौ ,पौने १० बजेतक आ ही जाएगी। गुड्डी ने सब पैक वैक कर लिया है तो बस जैसे टैक्सी आएगी साढ़े दस के आसपास। "
मैंने एक साँस में पूरा जवाब दे दिया और भाभी के कप में दुबारा चाय भी ढाल दी।
उन्होंने चाय पीनी शुरू की ही थी की ऊपर से बुलावा आ गया.
लेकिन भाभी भी , चाय पीते पीते गुड्डी को समझा रही थी ,' सुन क्या बनाएगी खाने में , अब ज्यादा टाइम भी तो नहीं रह गया। "
कल रात की बात याद कर के मैं बोला , बिरयानी बना लो। ( कल उसने और रंजी ने रेड़ी टू ईट के पैकेट से बनायीं थी )
लेकिन जैसे होता है , भाभी और गुड्डी दोनों एक साथ चढ़ पड़ीं मेरे उपर।
" रसोइये के खानदान से हो क्या ,… " गुड्डी ने आँख नचा के बोला।
" सही कह रही है तू , सासु जी आएँगी न तो उनसे पूछना पड़ेगा कही , किसी बावर्ची के साथ ,कोई ठिकाना नहीं ,...." और दोनों खिलखिलाने लगी।
मैंने पूरी तरह अनसुना कर दिया।
मेरी आँखे और ध्यान पूरी तरह गुड्डी की चोट लगे दायें हाथ पर लगा था। गनीमत थी की उसने कुहनी तक बांह वाला एक अनारकली सूट पहन रखा था। किचेन का काम ,… इस हालत में।
" टाइम कम है , सुन तू झटपट तहरी बना ले , आलू , टमाटर ,गोभी ,गाजर सब डाल के। और हाथ खाओगी किस से ,तो बस फ्रेश टमाटर की चटनी बना लेना। " भाभी ने फैसला सुना दिया।
तब तक हेडक्वारटर्स से कॉल आ गयी , और भाभी ने एक घूँट में बाकी चाय खत्म कर दी और उठने वाली थी की गुड्डी धीरे से बोल उठी ,
" वो तो ऊपर सोने गए थे तो आप क्या लोरी सुनाने , .... "
क्या जोर का भाभी ने ब्लश किया और एक हाथ सीधे गुड्डी की पीठ पे ,
' बस दो ढाई महीने की बात है ,आएगी इसी घर में फिर पूछूंगी , दिन दहाड़े जब जुम्हाई आएगी। "
और अगले पल भाभी ऊपर और हम दोनों किचेन में ,
बहुत मुश्किल से गुड्डी मानी ,
और फिर उस की हिदायतें और मेरा काम ,
उस दिन पहली बार अजवायन ,सौंफ धनिया और जीरा में अंतर पहचाना।
बोल सब वही रही थी , बीच में झुंझला भी रही थी।
पानी में चावल भिगोओ।
तेल गरम करके कटे प्याज डालो।
फिर गार्लिक और जिंजर पेस्ट खड़े मसाले सारे ,
बीच में उसने कूकर उठाने की कोशिश की तो फिर चिलक उठी , और मैंने उसे फिर एकदम मना कर दिया।
लेकिन तब भी मिक्सी का काम , सास बनाने का ,…
और आधे घंटे में हम दोनों ने मिल के तहरी चढ़ा दी।
और मैं उसे खींचता हुआ , अपने कमरे में ले गया।
और उसकी बैंडेज खोली।
मैंने एक डाकटर से सुबह ही बात की थी लेकिन उन्होंने बोला था की बिना देखे कुछ बताना मुश्किल है।
बस इसलिए , उसके दो चार फोटो लिए और उन्हें तुरंत व्हाट्सऐप किया।
और उनका जवाब भी आ गया , चिंता की बात नहीं है , वूंड हील होना शुरू हो गया है , अब ज्यादा पट्टी की जरूरत नहीं है मैं सिर्फ एक इलेस्टोप्लास्ट लगा दूँ। हाँ इस हाथ से अगले सात आठ घंटे तक कुछ भी उठाना मना है , जितना इस हाथ को आराम मिलेगा उतनी जल्दी ठीक हो जाएगा। और उन्होंने दो इंजेक्शन भी लिखवाये , जो मुझे बनारस जाते समय कहीं लगवा लेने थे। चोट लगने के ७-८ घंटे के अंदर पेन किलर एक बार और देने के केलिए बोला उन्होंने।
बस मैंने उसे आ करवा के गोली खिलवायी , बैंडेज जैसा उन्होंने कहा था वो लगवाया ,लेकिन गुड्डी की बस एक रट तहरी ख़राब हो जायेगी।
तहरी का तो कुछ नहीं लेकिन अगर हम दस मिनट लेट आते तो पकड़े जाते।
किचेन में पहुँच कर कूकर से मैंने तहरी निकाल के सर्विंग वाले बर्तन में रख दिया था और गुड्डी दही रख रही थी।
भाभी तभी आ पहुंची और पहुंचते ही मुझे डांट पड़ी और गुड्डी की तारीफ।
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