FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--117
गतांक से आगे ...........
अब तक
मुम्बई के बारे में कुछ डिटेल्स थे , लेकिन टारगेट के नाम नहीं थे , सिर्फ कुछ नंबर थे। उसे वो डिकोड नहीं कर पाये थे। मैं बहुत देर तक सर खुजाता रहा फिर मेरी चमकी।
उसे मैंने दूसरे कंप्यूटर पे मुम्बई के मैप पे प्लेस किया और समस्या हल हो गयी।
वो कोड में थे ही नहीं। वो लांगीट्यूड और लैटिट्यूड थे।
६ टारगेट थे लेकिन उसमे कुछ प्रायरटाइज भी किया था। वो शायद उन्होंने लोकल ऑपरेटिव्स के ऊपर छोड़ दिया था।
लेकिन समुद्र से हमले के बारे में कुछ नहीं मिला।
अब मैं आपरेटर के नाम तलाश रहा था , लेकिन वो कोड में थे और सिरफ इन्शियल दिए थे।
हाँ दो फोन के डिटेल मिले और दो वी ओ आई पी के।
मैंने अपने हैकर दोस्तों से फोन पे बात की। शाम के बारे में कुछ तय किया उनके पास कुछ और इन्फो थी और उसे वो प्रॉसेस कर रह थे।
वो डिवाइस लगाये करीब १० घंटे हो गए थे और रेगुलर डाटा आ रहा था।
मैंने उन्हें 'बॉम्बर' का जो स्केच मीनल ने बनाया था , और उसके बारे में जो भी डिटेल था वो भी मेल कर दिया।
शायद उसके बारे में कुछ और पता चल सके।
फिर मैंने एन पी की दी हुयी रिपोर्टें निकाली , मुम्बई का मैप जिसमें सस्पेंकेटेड साइट थी और सारा डाटा निकाल के एक साथ पढना शुरू किया , अब हालत कुछ समझ में आ रही थी।
मुझे मुम्बई ऐ टी एस चीफ से भी बात करनी थी। उनके कई एस म एस भी आ चुके थे और दो मेल भी।
मैंने पहले उन्हे बताने वाले प्वाइंट्स बनाये फिर उनका सबसे पुराना एस एम् एस खोला , और उसे पढ़ते ही सांप सूंघ गया।
दो मिनट मैं ऐसे ही बैठा रहा। कुछ समझ में नहीं आ रहा था क्या करूँ। लग रहा था सब कुछ ख़तम।
कल शाम का ही एस एम् एस था और मेरी गलती मैंने देखा नहीं था।
कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
आगे
जो काम मीनल ने बड़ोदा में किया था वही , बल्कि उससे बढ़ कर एन पी एस ( नो प्राब्लम सर ) ने बाम्बे में किया था।
एन पी एस से मेरी पहली मुलाक़ात २६/११ के दौैरान मुम्बई के एक हास्पिटल में हुयी थी।
वहाँ मैं बस बाल बाल बचा था गोली से लेकिन जिसने मुझे बचाया , सबीना , उस कि खुद कि लड़की टेररिस्ट की गोली से जख्मी हो गयी और फिर जब मुझे ये पता चला कि टेरर के तार मुम्बई से जुड़े हैं और मीनल ने ये भी बताया कि बॉम्ब मेकर ( जिसकी तलाश पुलिस को जमाने से थी और जिसने बनारस के लिए बॉम्ब बनाये थे फिर सावरमती एक्सप्रेस से बड़ोदा गया था बनारस से , बड़ौदा में एक्सप्लोसिव्स डिलीवर किये और फिर वहाँ से मुम्बई पहुंचा ) किस ट्रेन से बाम्बे गया है ,
मैंने एन पी को ही लगाया , और उसने क्या नहीं पता लगाया ( पेज ४०५ और ४०९ ).
बॉम्ब मेकर ने वहाँ जा के एक मेकअप वाले से अपना नया रूप बनवाया , यहाँ तक की लिम्प करने लगा।
चाल ढाल बदल दी।
एक नए नाम से नया फर्जी पासपोर्ट बनवाया और उस पासपोर्ट की आई डी से होटल में रहना शुरू किया।
उसका नया नाम , नया रूप , नया पता , सब कुछ एन पी ( नो प्राबलम ) ने पता लगाया। यही नहीं उससे मिलने कौन आते हैं , ड्रग वाले कुछ लोगों का उससे क्या रिश्ता है और किन जगहों की वो रेकी कर रहा है ये सब।
स्टाक मार्कट में कुछ उथल पुथल होने वाली है ये भी। मैंने उसका इंट्रोडकशन मुम्बई ऐ टी एस ( ऐंटि टेरर स्क्वाड ) के चीफ मिस्टर मरिया से करवा दिया था। और एन पी अब मेरे साथ उन्हें भी सब खबर देता था।
मारिया का मेसेज , एन पी के बारे में था। कल देर शाम का।
एन पी का ऐक्सिडेंट हो गया।
वो लोकल ट्रेन के नीचे आ गया। चर्च गेट स्टेशन पे शाम की भीड़ में।
मुम्बई में करीब १,००० लोग हर साल ट्रेन के नीचे आ के मरते हैं।
लेकिन एन पी उस तरह का नहीं था।
चलती ट्रेन में चढ़ना , उतरना उसके रोजकी जिंदगी का हिस्सा था।
पर ये मेसेज , वो भी मारिया साहब का ,
मेरे आँखों के आगे अँधेरा छा गया।
उसका मुस्कराता चेहरा मेरे नाच रहा था।
गलती मेरी थी , सिर्फ मेरी। वो ट्रेंड नहीं था , जासूसी के लिए। और मैंने उसे इतने खतरनाक काम पे लगाया।
जिस के पीछे पूरे देश की पुलिस पड़ी हो , उसके पीछे , उसे लगा दिया।
और वो भी जब आपरेशन के आखिरी दिन हों , वो लोग किसी की जान ले सकते हैं।
सर चकरा रहा था। आखिरी मेसेज भी मारिया साहेब का था। दो घंटे पहले का
उन्होंने बोला था मैं अपना सिक्योर क्लाउड सर्वर वाला मेल खोलूं , तुरंत।
मेरी हिम्मत नहीं पड़ रही थी लेकिन मैंने खोला और तब सब बाते साफ हो गयीं।
और फिर मैंने उनको फोन किया तब सारी बातें साफ हुयीं।
उसका ऐस्किडेंट हुआ था बल्कि वो मर्डर की कोशिश थी।
उन्होंने उसके पीछे अपना एक बेस्ट डिटेक्टिव लगा रखा था , जिससे उन्हें भी पता रहे।
चर्चगेट स्टेशन पे विरार फास्ट लोकल 6. १२ की प्लेटफार्म ४ से , बस आने वाली थी।
एन पी वहाँ खड़ा था , और उस धक्कामुक्की में , एक ने जोर से पीछे से पुश किया , गाडी बस थोड़ी ही दूर थी।
सब को लगा की वो धक्के में गिर गया।
गनीमत थी की उसी ट्रेन से कोई आदमी मोटरमेन डिब्बे के पास से गिर गया और मोटरमैन ने ट्रेन रोक दी।
एन पी मुश्किल से २० फिट दूर था।
उस डिटेक्टिव ने जिस आदमी ने धक्का दिया था उसका पीछा करने की कोशिश की , और थोड़ी देर तक किया भी , लेकिन वो निकल गया।
उस समय सब को लगा था की एन पी गाडी के निचे आ गया।
चोट तब भी उसे बहुत लगी थी।
कुछ लोग उसे उठा के जी टी हास्पिटल ले गए।
लेकिन तब तक उन्हें पता चला और वो एन पी को पहले तो नागपाड़ा के पुलिस हास्पिटल में ले गए फिर , अपने आफिस में।
लेकिन एन पी , एन पी था।
वो सिर्फ ठीक ही नहीं हुआ , दूने जोश से काम में लग गया।
उन लोगो ने जी टी हास्पिटल से ये खबर रिलीज करा दी थी की एन पी की जिंदगी खतरे में है और बचने की हालत बहुत कम है।
उधर स्टेशन के सीसी टीवी से उन लोगों ने उस आदमी की फ़ोटो ले ली थी जिसने धक्का दिया था। फिर रास्ते के सी सी टीवी से , टैक्सी वालों से पूछ ताछ कर के ये पता चला की वो आदमी ग्रांट रोड के पास एक रेस्टोरेंट में किसी से मिला था , और जब उस आदमीका स्केच एन पी को दिखाया गया तो उसने तुरंत पहचान लिया।
वो वही बॉम्बमेकर था। अपने नए रूप में।
उधर एन पी के साथियों ने भी उस आदमी को ढूंढना शूरु कर दिया।
वोआदमी मिला , रात में दो बजे लेकिन जिन्दा नहीं मुर्दा , मड आइलेंड पे। उसे समुद्र में डूबा के मारा था।
दो बातें साफ थीं , बॉम्ब मेकर को ये शक हो गया था की एन पी उस का पीछा कर रहा है और दूसरे वो कोई भी ट्रेल नहीं छोड़ना चाहता था , इसलिए उस आदमी को भी ,
लेकिन उस आदमी की बाड़ी भी एक क्ल्यू थी।
वो एक झोपड़ पट्टी का था सेमी प्रोफेशनल किलर।
जिस ने उसे बॉम्ब मेकर से मिलवाया था उस का भी पता सुबह तक चल गया था।
और सबसे बढ़ के एन पी के कांटैक्ट , जैसे आधा बाम्बे बाहर आ गया हो
हजारों आँखे हजारों कान.
एन पी ने आज तक किसी का भला छोड़ , बुरा नहीं किया था।
किसी की कोई प्राब्लम हो , उसका बस एक ही जवाब होता था , ' नो प्राबलम ' और उसी से उसका नाम पड़ गया था , एन पी।
मेरी मुलाकात भी उससे उसी तरह हुयी थी , सबीना के लिए २६/११ में ब्लड ढूढ़ते समय , एक रेयर ग्रूप था। लेकिन उस का जवाब वही था ,
' नो प्राबलम ' . और घण्टे भर के अंदर ,कितने लोग खड़े थे।
किसी की कोई प्राब्लम हो , उसका बस एक ही जवाब होता था , ' नो प्राबलम ' और उसी से उसका नाम पड़ गया था , एन पी।
मेरी मुलाकात भी उससे उसी तरह हुयी थी , सबीना के लिए २६/११ में ब्लड ढूढ़ते समय , एक रेयर ग्रूप था। लेकिन उस का जवाब वही था ,
' नो प्राबलम ' . और घण्टे भर के अंदर ,कितने लोग खड़े थे।
उसका कोई घर नहीं था , लेकिन कितनो को उसने घर दिलवाये।
खास तौर से वो लोग जिनकी पीठ पे चल के मुम्बई दौड़ती है ,
जिन्हे हम लोग आते जाते देखते हैं , लेकिन नोटिस नहीं करते , वो सारे।
सडक पे , रेलवे फुट ओवर ब्रिज और सब वे में फेरी का समान बेचते लोग , किसी को उसने कभी पुलिस से बचाया तो कभी म्युनिसिपल्टी वाले से। कभी किसी दादा से हफ्ता कम कराया तो कभी वो लड़का बीमार हुआ तो दिन रात उसके साथ अस्पताल में ,
जूता पालिश करने वाले बच्चे , स्ट्रीट फूड वेंडर , सब्जी का ठेला लगाने वाले , जो रात उसी ठेले के नीचे गुजारते हैं , सुबह म्युनिस्पिलटी के टायलेट में तैयार होते हैं , वाशी से जा के सब्जी लाते हैं और फिर ठेले पे,
झोपड़ पट्टी में रहने वाली बाइयाँ , जब वडाला में झोपड़ पट्टी में आग लगी /लगवायी गयी , बाल्टी का पानी ले के आग बुझाने से ले , उनके आई डी कार्ड बनवाने तक हर काम में वो आगे।
अखबारों में जो एस्कॉर्ट्स के नंबर निकलते हैं , और जिस नंबर पे फोन करने पे जवाब मिलता है , राक्सी थियेटर के पास चले आइये लड़का मिलेगा।
और लड़का दूर से पहचान लेता है , और ले जाता है उन कमरों में जहाँ शेल्फ पर रखे माल कि तरह औरते , लिपी पुती लाइन लगा के खड़ी रहतीं हैं ,
ये चलेगी, ये चलेगी ,… और फिर बम्बई की लोकल ट्रेनो की तरह दिन रात आदमियों को अपने ऊपर चढ़ाती , उतारती , रात को अपने घर की ओर , नाला सुपाड़ा , पनवेल , आसनगांव , पैसे गिनती। बच्चे के स्कूल की फीस , खोली का किराया , माँ की दवाई , भाई के ट्रेन का पास।
और ये औरतें , बार में भी हो सकती , बिना किसी धुन या ताल के जबरदस्ती नाचने गाने की कोशिश करती ,
स्टेशनो , बस अड्डो के पास खड़ी , जेबें ढूंढती।
सब से एन पी के रिश्ते थे , काम के रिश्ते, दोस्त के रिश्ते , मज़बूरी के रिश्ते , इंसानियत के रिश्ते।
टैक्सी वाले , ऑटो वाले , सिग्नल पर गाडी का शीशा साफ करते बच्चे , शाम को गुलाब के फूल लिए गाडी के पास चक्कर काटते , बच्चे औरतें।
लोग कहते हैं बम्बई सोता नहीं नहीं ,
सोयेगा तो खायेगा क्या।
सुबह चार बजे की लोकल पर सबर्ब की ओर मछलियां ले जाती औरते , और उसी समय पहली लोकल से विरार , भायंदर , दहिसर , कल्य़ाण से चढ़ते लोग।
और उस बम्बई का दिल , जो सड़क के किनारे खड़ी औरतों का दिल था , जूता साफ करने वाले बच्चो का दिल था , मच्छी नगर के मछुआरों का दिल था , आज जोर जोर से धड़क रहा था
उनके एक दोस्त पे हमला हुआ था जान लेवा हमला
और बंबई के हजार आँखे हजार कान उग आये थे।
ऐ टी एस चीफ ने बताया की जी टी हास्पिटल ही देखने बहुत लोग आये। लेकिन चुपके से पहले पुलिस हास्पिटल और फिर एटीस के आफिस में ही वार्ड में रखा , तो एन पी ने खुद ही कुछ लोगों से मिलाने के लिए बोला।
एन पी ने समझाया।
अगर उस पे हमला हुआ है , तो इसका मतलब , बॉम्ब मेकर को शक हो गया है कि शायद उसके नए रूप का भी चेहरा लीक हो सकता है , इसलिए हमें तुरन्त ऐक्शन लेना होगा। वरना उसके साथ के लोग भी कहीं अंडरग्राउंड हो गए तो उन्हें पकड़ना मुश्किल होगा।
उसके कहने पे , ऐ टी एस आफिस में ही ५-६ लोगों को बुलाया गया, जो एन पी के ख़ास थे।
वो सब बहुत गुस्से में थे।
एन पी ने उन्हें शांत किया और बताया की इसके पीछे कौन कौन थे। उसने उन लोगों को बॉम्बमेकर की नयी और पुरानी दोनों तस्वीर दिखायी और साथ ही वो सात आठ लोग जो उससे मिले थे , बगदादी में फिर पाईपवाला बिल्डिंग में।
तय ये हुआ की न सिर्फ उन पे नजर रखनि है बल्कि वो लोग पिछले दो तीन दिन में किससे मुलाक़ात की , उनका मूवमेंट क्या है और सबसे बढ़कर वो किससे मिल रहे हैं। एक सिक्योर नंबर भी दिया गया , जहां फोन से या एस एम् एस से सूचना दी जा सकती थी।
बस।
घण्टे भर के अंदर इतनी इंफो आनी लगी , पहले दो स्ट्रीट वाकर्स ने दो लोगों को पहचाना , सी एस टी म स्टेशन के बाहर बस स्टैंड पे वो खड़ी रहती थीं।
वो दो लोग , सी एस टी एम् के बाहर के सब वे के पास फिर अंदर बाहर , कल शाम को पांच छह चक्कर लगा रहे थे। वो आज फिर आये और सब वे के मुहाने पे खड़े थे , वहाँ चार लोग उनसे मिले।
और उन लोगो ने एक बड़े से कागज़ पे उन्हें कुछ समझाया। फिर वो लोग स्टेशन के अंदर गए और ठाणे के लिए के ट्रेन पकड़ के चले गए। उन दोनों स्ट्रीट वाकर्स को स्टेशन और सब वे का जब सी सी टी वी दिखाया गया तो उन्होंने सबको पहचान लिया।
दादर के पास पुल पे कुछ जूता साफ करने वालों और हाकर्स ने कुछ को पहचाना और फिर उनके साथ के लोगों की फ़ोटो सी सीसी टीवी से कन्फर्म कर ली गयी।
दो घंटे के अंदर करीब ४०-४२ लोगों की फोटी इकठी हो गयी थी जो उन ६ लोगों से मिले थे।
ऐ टी स के चीफ ने ये बताया की जैसे ही उन्हें आई बी से पहली वार्निंग मिली , उन्होंने सबसे पहले सेंट परसेंट सी सी टीवी ठीक कराये , और फिर अपने आफिस में एक कंट्रोल रूम सेट किया , जहां लाइव मानिटरिंग के साथ पिछले तीन दिनों का रिकार्ड भी रहता था।
उन्होंने आई आई टी मुम्बई के सहयोग से एक ग्रूप रिसर्च असिस्टेंट का सेट लिया , जो एक साफ्ट वेयर की सहायता से ट्रैकिंग कर के , किसी आदमी का सारा मूवमेंट ट्रेस कर सकते थे।
इन ४२ लोगों का फ़ोटो उस ग्रूप ने ले के , ट्रेस करना शुरु किया और एक घंटे में ही उनके तीनदिन की रिकार्डिंग अलग से निकाल ली।
पुलिस के एक्सपीरियंस्ड डिटेक्टिव्स ने देख के , कुछ और लोगों को सस्पेक्ट किया। फिर उन का नाम ट्रेसिंग में डाल दिया गया।
एक दूसरी टीम ने उनके फ़ोटो ग्राफ ले के रात में ही टेलीफोन कंपनी के आफिस , उनके सिम नंबर पता करऔर करीब २ ४ लोगों के नंबर ट्रेस हो गए। अब मोबाईल टावर से बी उनके फ़ोन ट्रेस किये गए। लेकिन ६ जो ख़ास लोग थे उनके फोन ट्रेस नहीं हो पाये न सिम का पता चला।
इसी के साथ , इनकम टैक्सडिपार्टमेंट से रिक्वेस्ट कर उनके कम्यूटर को ऐक्सेस किया और उन फोटोग्राफ से उन सारे लोगों के पैन कार्ड पता किये। और फिर पैन कार्ड से बैंक के सरवर से उनके बैंक के ट्रांजैक्शन ,
लेकिन उसी के साथ , एन पी ने हाथ दिखा दिया। वो छह लोग जो बाम्बमेकर से सीधे मिले थे , अलग अलग जगहों पे।उन छह लोगो के बारे में कुछ ज्यादा इनफार्मेशन पता नहीं चल पा रही थी , न मोबाईल नंबर , न पैन कार्ड , न बैंक डिटेल्स।
एन पी ने एक दो लोगों को फोन किया उनकी लोकेशन बतायी।
थोड़ी देर में एक की जेब कट गयी।
वो कुछ परेशान दिख रहा था , पास में पुलिस वाले थे लेकिन उसने कम्प्लेंट नहीं की। लेकिन एक पुलिस का इन्स्पेक्टर खुद उस के पास गया और पुछा ' कहीं आप की जेब तो नहीं कट गयी '
उसने पहले तो सर हिलाया , लेकिन उस के मुंह से हाँ निकल गया।
पुलिस वाले ने सिम्पैथी दिखायी , और बोला कि पिछले आधे घंटे में ७ लोगों कि जेबें कट गयी है लेकिन हम उस कि तलाश में हैं तब तक आप थाने में बैठे। मजबूरन , उसे बैठना पड़ा। उसे उन लोगो ने चाय कोल्ड ड्रिंक सब पिलाया , रिपोर्ट लिखवाई।
और २० मिनट में बटुआ मिल गया।
उस ने चेक किया और चैन कि सांस ली , सब कुछ उसी तरह था
उस बिचारे को क्या मालूम , की उसके कार्ड्स और बाकी डिटेल्स की फ़ोटो और फिंगर प्रिंट ले लिए गए हैं।
एक दूसरे का मोबाइल गायब हो गया। उसे भी थोड़ी देर में मिल गया , लेकिन सिम के सारे डिटेल्स कापी हो गए थे।
और पर्स और मोबाइल में माइक्रो बग भी फिट हो गए थे।
और ये सारे डिटेल्स ऐ टी एस , में आगये।
दो बजे रात तक इन लोगों ने कहाँ कहाँ रेकी कि थी , उसके डिटेल्स , सी सी टी वी , मोबाइल टावर्स के काल और इन सब के साथ एन पी के साथ के लोगों की इन्फोर्मेशन से काफी मिल गयी।
रात ढलते ढलते , आधी बम्बई में ये खबर रेंग रही थी , कुछ गड़बड़ है और अबकी हम सब को अलर्ट रहना होगा।
एटीस ने सुबह तक एक डिटेल्ड रिपोर्ट बना ली थी। वो सारे लोग रात में किसी लाज में , सस्ते होटल्स में कुछ रेलवे स्टेशनो पे थे।
७-८ सस्पेंकेक्टेड टारगेट पता चल गए थे , लेकिन हमले की मोड्स आपरेंडी क्या होगी इसका अन्दाजा नहीं था।
काल के ट्रेस से मूवमेंट तो पता चल रहा था लेकिन कोई काम की बात पता नहीं चल रही थी।
बाम्बमेकर का पता नहीं चल रहा था।
लेकिन् सुबह उसे एन पी ने देख लिया। उसने फिर रूप बदल लिया था। लेकिन अंगूठियां वहीँ थीं।
और फिर उसकी क्लोज ट्रेसिंग , एन पी के लोग और कैमरा यूनिट से
मैंने चैन की सांस ली।
एन पी सलामत तो मुम्बई सलामत।
फिर जो पड़ोस के देश में मुम्बई के आपरेशन के बारे में डेटा मिला था सब ट्रांसफर कर दिया।
और मैप भी , जो पडोसी देश में मिला था। ४ साइट्स कामन थीं। लोकेशन के बारे में देर तक बाते हुयी।
फिर मैंने ऑपरेटिव्स के जो नाम के पहले अक्षर मिले थे वो बताये।
और चार एन पी ने तुरंत पहचान लिए। लेकिन गड़बड़ ये था कि इनमे से दो के फ़ोटो कहीं नहीं थे। इसका मतलब वो स्लीपर थे और डीप कवर में और शायद आप्रेशन में उनका शाम को रोल रहेगा।
उन्होंने बोला कि दो बजे पुलिस कमिश्नर के यहाँ वीडियों कांफ्रेंस है और मैं जरुर ज्वाइंन करूँ।
मैंने हामी भर से दी। एक बज रहा था। अभी रीत से बात करनी थी और उसके बाद अब तक के डेटा की फिर ऐनिलिस।
और फिर फाइनल ऐक्शन प्लान। दो बजे की मीटिंग में।
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फागुन के दिन चार--117
गतांक से आगे ...........
अब तक
मुम्बई के बारे में कुछ डिटेल्स थे , लेकिन टारगेट के नाम नहीं थे , सिर्फ कुछ नंबर थे। उसे वो डिकोड नहीं कर पाये थे। मैं बहुत देर तक सर खुजाता रहा फिर मेरी चमकी।
उसे मैंने दूसरे कंप्यूटर पे मुम्बई के मैप पे प्लेस किया और समस्या हल हो गयी।
वो कोड में थे ही नहीं। वो लांगीट्यूड और लैटिट्यूड थे।
६ टारगेट थे लेकिन उसमे कुछ प्रायरटाइज भी किया था। वो शायद उन्होंने लोकल ऑपरेटिव्स के ऊपर छोड़ दिया था।
लेकिन समुद्र से हमले के बारे में कुछ नहीं मिला।
अब मैं आपरेटर के नाम तलाश रहा था , लेकिन वो कोड में थे और सिरफ इन्शियल दिए थे।
हाँ दो फोन के डिटेल मिले और दो वी ओ आई पी के।
मैंने अपने हैकर दोस्तों से फोन पे बात की। शाम के बारे में कुछ तय किया उनके पास कुछ और इन्फो थी और उसे वो प्रॉसेस कर रह थे।
वो डिवाइस लगाये करीब १० घंटे हो गए थे और रेगुलर डाटा आ रहा था।
मैंने उन्हें 'बॉम्बर' का जो स्केच मीनल ने बनाया था , और उसके बारे में जो भी डिटेल था वो भी मेल कर दिया।
शायद उसके बारे में कुछ और पता चल सके।
फिर मैंने एन पी की दी हुयी रिपोर्टें निकाली , मुम्बई का मैप जिसमें सस्पेंकेटेड साइट थी और सारा डाटा निकाल के एक साथ पढना शुरू किया , अब हालत कुछ समझ में आ रही थी।
मुझे मुम्बई ऐ टी एस चीफ से भी बात करनी थी। उनके कई एस म एस भी आ चुके थे और दो मेल भी।
मैंने पहले उन्हे बताने वाले प्वाइंट्स बनाये फिर उनका सबसे पुराना एस एम् एस खोला , और उसे पढ़ते ही सांप सूंघ गया।
दो मिनट मैं ऐसे ही बैठा रहा। कुछ समझ में नहीं आ रहा था क्या करूँ। लग रहा था सब कुछ ख़तम।
कल शाम का ही एस एम् एस था और मेरी गलती मैंने देखा नहीं था।
कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
आगे
जो काम मीनल ने बड़ोदा में किया था वही , बल्कि उससे बढ़ कर एन पी एस ( नो प्राब्लम सर ) ने बाम्बे में किया था।
एन पी एस से मेरी पहली मुलाक़ात २६/११ के दौैरान मुम्बई के एक हास्पिटल में हुयी थी।
वहाँ मैं बस बाल बाल बचा था गोली से लेकिन जिसने मुझे बचाया , सबीना , उस कि खुद कि लड़की टेररिस्ट की गोली से जख्मी हो गयी और फिर जब मुझे ये पता चला कि टेरर के तार मुम्बई से जुड़े हैं और मीनल ने ये भी बताया कि बॉम्ब मेकर ( जिसकी तलाश पुलिस को जमाने से थी और जिसने बनारस के लिए बॉम्ब बनाये थे फिर सावरमती एक्सप्रेस से बड़ोदा गया था बनारस से , बड़ौदा में एक्सप्लोसिव्स डिलीवर किये और फिर वहाँ से मुम्बई पहुंचा ) किस ट्रेन से बाम्बे गया है ,
मैंने एन पी को ही लगाया , और उसने क्या नहीं पता लगाया ( पेज ४०५ और ४०९ ).
बॉम्ब मेकर ने वहाँ जा के एक मेकअप वाले से अपना नया रूप बनवाया , यहाँ तक की लिम्प करने लगा।
चाल ढाल बदल दी।
एक नए नाम से नया फर्जी पासपोर्ट बनवाया और उस पासपोर्ट की आई डी से होटल में रहना शुरू किया।
उसका नया नाम , नया रूप , नया पता , सब कुछ एन पी ( नो प्राबलम ) ने पता लगाया। यही नहीं उससे मिलने कौन आते हैं , ड्रग वाले कुछ लोगों का उससे क्या रिश्ता है और किन जगहों की वो रेकी कर रहा है ये सब।
स्टाक मार्कट में कुछ उथल पुथल होने वाली है ये भी। मैंने उसका इंट्रोडकशन मुम्बई ऐ टी एस ( ऐंटि टेरर स्क्वाड ) के चीफ मिस्टर मरिया से करवा दिया था। और एन पी अब मेरे साथ उन्हें भी सब खबर देता था।
मारिया का मेसेज , एन पी के बारे में था। कल देर शाम का।
एन पी का ऐक्सिडेंट हो गया।
वो लोकल ट्रेन के नीचे आ गया। चर्च गेट स्टेशन पे शाम की भीड़ में।
मुम्बई में करीब १,००० लोग हर साल ट्रेन के नीचे आ के मरते हैं।
लेकिन एन पी उस तरह का नहीं था।
चलती ट्रेन में चढ़ना , उतरना उसके रोजकी जिंदगी का हिस्सा था।
पर ये मेसेज , वो भी मारिया साहब का ,
मेरे आँखों के आगे अँधेरा छा गया।
उसका मुस्कराता चेहरा मेरे नाच रहा था।
गलती मेरी थी , सिर्फ मेरी। वो ट्रेंड नहीं था , जासूसी के लिए। और मैंने उसे इतने खतरनाक काम पे लगाया।
जिस के पीछे पूरे देश की पुलिस पड़ी हो , उसके पीछे , उसे लगा दिया।
और वो भी जब आपरेशन के आखिरी दिन हों , वो लोग किसी की जान ले सकते हैं।
सर चकरा रहा था। आखिरी मेसेज भी मारिया साहेब का था। दो घंटे पहले का
उन्होंने बोला था मैं अपना सिक्योर क्लाउड सर्वर वाला मेल खोलूं , तुरंत।
मेरी हिम्मत नहीं पड़ रही थी लेकिन मैंने खोला और तब सब बाते साफ हो गयीं।
और फिर मैंने उनको फोन किया तब सारी बातें साफ हुयीं।
उसका ऐस्किडेंट हुआ था बल्कि वो मर्डर की कोशिश थी।
उन्होंने उसके पीछे अपना एक बेस्ट डिटेक्टिव लगा रखा था , जिससे उन्हें भी पता रहे।
चर्चगेट स्टेशन पे विरार फास्ट लोकल 6. १२ की प्लेटफार्म ४ से , बस आने वाली थी।
एन पी वहाँ खड़ा था , और उस धक्कामुक्की में , एक ने जोर से पीछे से पुश किया , गाडी बस थोड़ी ही दूर थी।
सब को लगा की वो धक्के में गिर गया।
गनीमत थी की उसी ट्रेन से कोई आदमी मोटरमेन डिब्बे के पास से गिर गया और मोटरमैन ने ट्रेन रोक दी।
एन पी मुश्किल से २० फिट दूर था।
उस डिटेक्टिव ने जिस आदमी ने धक्का दिया था उसका पीछा करने की कोशिश की , और थोड़ी देर तक किया भी , लेकिन वो निकल गया।
उस समय सब को लगा था की एन पी गाडी के निचे आ गया।
चोट तब भी उसे बहुत लगी थी।
कुछ लोग उसे उठा के जी टी हास्पिटल ले गए।
लेकिन तब तक उन्हें पता चला और वो एन पी को पहले तो नागपाड़ा के पुलिस हास्पिटल में ले गए फिर , अपने आफिस में।
लेकिन एन पी , एन पी था।
वो सिर्फ ठीक ही नहीं हुआ , दूने जोश से काम में लग गया।
उन लोगो ने जी टी हास्पिटल से ये खबर रिलीज करा दी थी की एन पी की जिंदगी खतरे में है और बचने की हालत बहुत कम है।
उधर स्टेशन के सीसी टीवी से उन लोगों ने उस आदमी की फ़ोटो ले ली थी जिसने धक्का दिया था। फिर रास्ते के सी सी टीवी से , टैक्सी वालों से पूछ ताछ कर के ये पता चला की वो आदमी ग्रांट रोड के पास एक रेस्टोरेंट में किसी से मिला था , और जब उस आदमीका स्केच एन पी को दिखाया गया तो उसने तुरंत पहचान लिया।
वो वही बॉम्बमेकर था। अपने नए रूप में।
उधर एन पी के साथियों ने भी उस आदमी को ढूंढना शूरु कर दिया।
वोआदमी मिला , रात में दो बजे लेकिन जिन्दा नहीं मुर्दा , मड आइलेंड पे। उसे समुद्र में डूबा के मारा था।
दो बातें साफ थीं , बॉम्ब मेकर को ये शक हो गया था की एन पी उस का पीछा कर रहा है और दूसरे वो कोई भी ट्रेल नहीं छोड़ना चाहता था , इसलिए उस आदमी को भी ,
लेकिन उस आदमी की बाड़ी भी एक क्ल्यू थी।
वो एक झोपड़ पट्टी का था सेमी प्रोफेशनल किलर।
जिस ने उसे बॉम्ब मेकर से मिलवाया था उस का भी पता सुबह तक चल गया था।
और सबसे बढ़ के एन पी के कांटैक्ट , जैसे आधा बाम्बे बाहर आ गया हो
हजारों आँखे हजारों कान.
एन पी ने आज तक किसी का भला छोड़ , बुरा नहीं किया था।
किसी की कोई प्राब्लम हो , उसका बस एक ही जवाब होता था , ' नो प्राबलम ' और उसी से उसका नाम पड़ गया था , एन पी।
मेरी मुलाकात भी उससे उसी तरह हुयी थी , सबीना के लिए २६/११ में ब्लड ढूढ़ते समय , एक रेयर ग्रूप था। लेकिन उस का जवाब वही था ,
' नो प्राबलम ' . और घण्टे भर के अंदर ,कितने लोग खड़े थे।
किसी की कोई प्राब्लम हो , उसका बस एक ही जवाब होता था , ' नो प्राबलम ' और उसी से उसका नाम पड़ गया था , एन पी।
मेरी मुलाकात भी उससे उसी तरह हुयी थी , सबीना के लिए २६/११ में ब्लड ढूढ़ते समय , एक रेयर ग्रूप था। लेकिन उस का जवाब वही था ,
' नो प्राबलम ' . और घण्टे भर के अंदर ,कितने लोग खड़े थे।
उसका कोई घर नहीं था , लेकिन कितनो को उसने घर दिलवाये।
खास तौर से वो लोग जिनकी पीठ पे चल के मुम्बई दौड़ती है ,
जिन्हे हम लोग आते जाते देखते हैं , लेकिन नोटिस नहीं करते , वो सारे।
सडक पे , रेलवे फुट ओवर ब्रिज और सब वे में फेरी का समान बेचते लोग , किसी को उसने कभी पुलिस से बचाया तो कभी म्युनिसिपल्टी वाले से। कभी किसी दादा से हफ्ता कम कराया तो कभी वो लड़का बीमार हुआ तो दिन रात उसके साथ अस्पताल में ,
जूता पालिश करने वाले बच्चे , स्ट्रीट फूड वेंडर , सब्जी का ठेला लगाने वाले , जो रात उसी ठेले के नीचे गुजारते हैं , सुबह म्युनिस्पिलटी के टायलेट में तैयार होते हैं , वाशी से जा के सब्जी लाते हैं और फिर ठेले पे,
झोपड़ पट्टी में रहने वाली बाइयाँ , जब वडाला में झोपड़ पट्टी में आग लगी /लगवायी गयी , बाल्टी का पानी ले के आग बुझाने से ले , उनके आई डी कार्ड बनवाने तक हर काम में वो आगे।
अखबारों में जो एस्कॉर्ट्स के नंबर निकलते हैं , और जिस नंबर पे फोन करने पे जवाब मिलता है , राक्सी थियेटर के पास चले आइये लड़का मिलेगा।
और लड़का दूर से पहचान लेता है , और ले जाता है उन कमरों में जहाँ शेल्फ पर रखे माल कि तरह औरते , लिपी पुती लाइन लगा के खड़ी रहतीं हैं ,
ये चलेगी, ये चलेगी ,… और फिर बम्बई की लोकल ट्रेनो की तरह दिन रात आदमियों को अपने ऊपर चढ़ाती , उतारती , रात को अपने घर की ओर , नाला सुपाड़ा , पनवेल , आसनगांव , पैसे गिनती। बच्चे के स्कूल की फीस , खोली का किराया , माँ की दवाई , भाई के ट्रेन का पास।
और ये औरतें , बार में भी हो सकती , बिना किसी धुन या ताल के जबरदस्ती नाचने गाने की कोशिश करती ,
स्टेशनो , बस अड्डो के पास खड़ी , जेबें ढूंढती।
सब से एन पी के रिश्ते थे , काम के रिश्ते, दोस्त के रिश्ते , मज़बूरी के रिश्ते , इंसानियत के रिश्ते।
टैक्सी वाले , ऑटो वाले , सिग्नल पर गाडी का शीशा साफ करते बच्चे , शाम को गुलाब के फूल लिए गाडी के पास चक्कर काटते , बच्चे औरतें।
लोग कहते हैं बम्बई सोता नहीं नहीं ,
सोयेगा तो खायेगा क्या।
सुबह चार बजे की लोकल पर सबर्ब की ओर मछलियां ले जाती औरते , और उसी समय पहली लोकल से विरार , भायंदर , दहिसर , कल्य़ाण से चढ़ते लोग।
और उस बम्बई का दिल , जो सड़क के किनारे खड़ी औरतों का दिल था , जूता साफ करने वाले बच्चो का दिल था , मच्छी नगर के मछुआरों का दिल था , आज जोर जोर से धड़क रहा था
उनके एक दोस्त पे हमला हुआ था जान लेवा हमला
और बंबई के हजार आँखे हजार कान उग आये थे।
ऐ टी एस चीफ ने बताया की जी टी हास्पिटल ही देखने बहुत लोग आये। लेकिन चुपके से पहले पुलिस हास्पिटल और फिर एटीस के आफिस में ही वार्ड में रखा , तो एन पी ने खुद ही कुछ लोगों से मिलाने के लिए बोला।
एन पी ने समझाया।
अगर उस पे हमला हुआ है , तो इसका मतलब , बॉम्ब मेकर को शक हो गया है कि शायद उसके नए रूप का भी चेहरा लीक हो सकता है , इसलिए हमें तुरन्त ऐक्शन लेना होगा। वरना उसके साथ के लोग भी कहीं अंडरग्राउंड हो गए तो उन्हें पकड़ना मुश्किल होगा।
उसके कहने पे , ऐ टी एस आफिस में ही ५-६ लोगों को बुलाया गया, जो एन पी के ख़ास थे।
वो सब बहुत गुस्से में थे।
एन पी ने उन्हें शांत किया और बताया की इसके पीछे कौन कौन थे। उसने उन लोगों को बॉम्बमेकर की नयी और पुरानी दोनों तस्वीर दिखायी और साथ ही वो सात आठ लोग जो उससे मिले थे , बगदादी में फिर पाईपवाला बिल्डिंग में।
तय ये हुआ की न सिर्फ उन पे नजर रखनि है बल्कि वो लोग पिछले दो तीन दिन में किससे मुलाक़ात की , उनका मूवमेंट क्या है और सबसे बढ़कर वो किससे मिल रहे हैं। एक सिक्योर नंबर भी दिया गया , जहां फोन से या एस एम् एस से सूचना दी जा सकती थी।
बस।
घण्टे भर के अंदर इतनी इंफो आनी लगी , पहले दो स्ट्रीट वाकर्स ने दो लोगों को पहचाना , सी एस टी म स्टेशन के बाहर बस स्टैंड पे वो खड़ी रहती थीं।
वो दो लोग , सी एस टी एम् के बाहर के सब वे के पास फिर अंदर बाहर , कल शाम को पांच छह चक्कर लगा रहे थे। वो आज फिर आये और सब वे के मुहाने पे खड़े थे , वहाँ चार लोग उनसे मिले।
और उन लोगो ने एक बड़े से कागज़ पे उन्हें कुछ समझाया। फिर वो लोग स्टेशन के अंदर गए और ठाणे के लिए के ट्रेन पकड़ के चले गए। उन दोनों स्ट्रीट वाकर्स को स्टेशन और सब वे का जब सी सी टी वी दिखाया गया तो उन्होंने सबको पहचान लिया।
दादर के पास पुल पे कुछ जूता साफ करने वालों और हाकर्स ने कुछ को पहचाना और फिर उनके साथ के लोगों की फ़ोटो सी सीसी टीवी से कन्फर्म कर ली गयी।
दो घंटे के अंदर करीब ४०-४२ लोगों की फोटी इकठी हो गयी थी जो उन ६ लोगों से मिले थे।
ऐ टी स के चीफ ने ये बताया की जैसे ही उन्हें आई बी से पहली वार्निंग मिली , उन्होंने सबसे पहले सेंट परसेंट सी सी टीवी ठीक कराये , और फिर अपने आफिस में एक कंट्रोल रूम सेट किया , जहां लाइव मानिटरिंग के साथ पिछले तीन दिनों का रिकार्ड भी रहता था।
उन्होंने आई आई टी मुम्बई के सहयोग से एक ग्रूप रिसर्च असिस्टेंट का सेट लिया , जो एक साफ्ट वेयर की सहायता से ट्रैकिंग कर के , किसी आदमी का सारा मूवमेंट ट्रेस कर सकते थे।
इन ४२ लोगों का फ़ोटो उस ग्रूप ने ले के , ट्रेस करना शुरु किया और एक घंटे में ही उनके तीनदिन की रिकार्डिंग अलग से निकाल ली।
पुलिस के एक्सपीरियंस्ड डिटेक्टिव्स ने देख के , कुछ और लोगों को सस्पेक्ट किया। फिर उन का नाम ट्रेसिंग में डाल दिया गया।
एक दूसरी टीम ने उनके फ़ोटो ग्राफ ले के रात में ही टेलीफोन कंपनी के आफिस , उनके सिम नंबर पता करऔर करीब २ ४ लोगों के नंबर ट्रेस हो गए। अब मोबाईल टावर से बी उनके फ़ोन ट्रेस किये गए। लेकिन ६ जो ख़ास लोग थे उनके फोन ट्रेस नहीं हो पाये न सिम का पता चला।
इसी के साथ , इनकम टैक्सडिपार्टमेंट से रिक्वेस्ट कर उनके कम्यूटर को ऐक्सेस किया और उन फोटोग्राफ से उन सारे लोगों के पैन कार्ड पता किये। और फिर पैन कार्ड से बैंक के सरवर से उनके बैंक के ट्रांजैक्शन ,
लेकिन उसी के साथ , एन पी ने हाथ दिखा दिया। वो छह लोग जो बाम्बमेकर से सीधे मिले थे , अलग अलग जगहों पे।उन छह लोगो के बारे में कुछ ज्यादा इनफार्मेशन पता नहीं चल पा रही थी , न मोबाईल नंबर , न पैन कार्ड , न बैंक डिटेल्स।
एन पी ने एक दो लोगों को फोन किया उनकी लोकेशन बतायी।
थोड़ी देर में एक की जेब कट गयी।
वो कुछ परेशान दिख रहा था , पास में पुलिस वाले थे लेकिन उसने कम्प्लेंट नहीं की। लेकिन एक पुलिस का इन्स्पेक्टर खुद उस के पास गया और पुछा ' कहीं आप की जेब तो नहीं कट गयी '
उसने पहले तो सर हिलाया , लेकिन उस के मुंह से हाँ निकल गया।
पुलिस वाले ने सिम्पैथी दिखायी , और बोला कि पिछले आधे घंटे में ७ लोगों कि जेबें कट गयी है लेकिन हम उस कि तलाश में हैं तब तक आप थाने में बैठे। मजबूरन , उसे बैठना पड़ा। उसे उन लोगो ने चाय कोल्ड ड्रिंक सब पिलाया , रिपोर्ट लिखवाई।
और २० मिनट में बटुआ मिल गया।
उस ने चेक किया और चैन कि सांस ली , सब कुछ उसी तरह था
उस बिचारे को क्या मालूम , की उसके कार्ड्स और बाकी डिटेल्स की फ़ोटो और फिंगर प्रिंट ले लिए गए हैं।
एक दूसरे का मोबाइल गायब हो गया। उसे भी थोड़ी देर में मिल गया , लेकिन सिम के सारे डिटेल्स कापी हो गए थे।
और पर्स और मोबाइल में माइक्रो बग भी फिट हो गए थे।
और ये सारे डिटेल्स ऐ टी एस , में आगये।
दो बजे रात तक इन लोगों ने कहाँ कहाँ रेकी कि थी , उसके डिटेल्स , सी सी टी वी , मोबाइल टावर्स के काल और इन सब के साथ एन पी के साथ के लोगों की इन्फोर्मेशन से काफी मिल गयी।
रात ढलते ढलते , आधी बम्बई में ये खबर रेंग रही थी , कुछ गड़बड़ है और अबकी हम सब को अलर्ट रहना होगा।
एटीस ने सुबह तक एक डिटेल्ड रिपोर्ट बना ली थी। वो सारे लोग रात में किसी लाज में , सस्ते होटल्स में कुछ रेलवे स्टेशनो पे थे।
७-८ सस्पेंकेक्टेड टारगेट पता चल गए थे , लेकिन हमले की मोड्स आपरेंडी क्या होगी इसका अन्दाजा नहीं था।
काल के ट्रेस से मूवमेंट तो पता चल रहा था लेकिन कोई काम की बात पता नहीं चल रही थी।
बाम्बमेकर का पता नहीं चल रहा था।
लेकिन् सुबह उसे एन पी ने देख लिया। उसने फिर रूप बदल लिया था। लेकिन अंगूठियां वहीँ थीं।
और फिर उसकी क्लोज ट्रेसिंग , एन पी के लोग और कैमरा यूनिट से
मैंने चैन की सांस ली।
एन पी सलामत तो मुम्बई सलामत।
फिर जो पड़ोस के देश में मुम्बई के आपरेशन के बारे में डेटा मिला था सब ट्रांसफर कर दिया।
और मैप भी , जो पडोसी देश में मिला था। ४ साइट्स कामन थीं। लोकेशन के बारे में देर तक बाते हुयी।
फिर मैंने ऑपरेटिव्स के जो नाम के पहले अक्षर मिले थे वो बताये।
और चार एन पी ने तुरंत पहचान लिए। लेकिन गड़बड़ ये था कि इनमे से दो के फ़ोटो कहीं नहीं थे। इसका मतलब वो स्लीपर थे और डीप कवर में और शायद आप्रेशन में उनका शाम को रोल रहेगा।
उन्होंने बोला कि दो बजे पुलिस कमिश्नर के यहाँ वीडियों कांफ्रेंस है और मैं जरुर ज्वाइंन करूँ।
मैंने हामी भर से दी। एक बज रहा था। अभी रीत से बात करनी थी और उसके बाद अब तक के डेटा की फिर ऐनिलिस।
और फिर फाइनल ऐक्शन प्लान। दो बजे की मीटिंग में।
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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