Wednesday, April 16, 2014

FUN-MAZA-MASTI होली का असली मजा--7

FUN-MAZA-MASTI

 होली का असली मजा--7
 लेकिन मैंने तय कर लिया था कि लाख कुछ हो जाय अबकी मैं मुँह नहीं खोलूंगी| पहले तो उसने मेरे होंठों पे अपनी गांड़ का छेद रगड़ा, फिर कहती रही कि सिर्फ जरा सा, बस होली के नाम के लिए, लेकिन मैं टस से मस ना हुई|

फिर तो उस छिनाल ने कस के मेरी नाक दबा दी| मेरे दोनों हाथ दोनों नंदोइयों के कब्जे में थे और मैं हिल डुल नहीं पा रही थी| यहाँ तक की मेरी नथ भी चुभने लगी|

थोड़ी देर में मेरी साँस फूलने लगी, चेहरा लाल होने लगा, आँखें बाहर की ओर|

“क्यों आ रहा है मजा, मत खोल मुँह...”

वो चिढ़ा के बोली और सच में इतना कस के उसने अपनी गांड़ से मेरे होंठों को दबा रखा था कि मैं चाह के भी मुँह नहीं खोल पा रही थी|

“ले भाभी देती हूँ तुझे एक मौका, तू भी क्या याद करेगी...किसी ननद से पाला पड़ा था|”

और उसने चूतड़ ऊपर उठा के अपनी गांड़ का छेद दोनों हाथों से पूरा फैला दिया|

“ऊईई उईईईई...|” मैं कस के चीखी| नंदोई ने दोनों निप्पल्स को कस के पिंच करते हुए मोड़ दिया था| मेरे खुले होंठों पे अपनी फैली गांड़ का छेद रख के फिर वो कस के बैठ गई और एक बार फिर से मेरी नाक उसकी उँगलियों के बीच| अब गांड़ का छेद सीधे मेरे मुँह में| वो हँस के बोली,

“भाभी बस अब अगर तुम्हारी जीभ रुकी तो...अरे खुल के इस नए स्वाद का मजा लो|

अरे पहले आपकी चूत को जब तक लंड का मजा नहीं मिला था, चुदाई के नाम से बिदकती थीं, लेकिन जब सुहागरात को मेरे भैया ने हचक हचक के चोद चोद के चूत फाड़ दी तो एक मिनट इस साली चूत को लंड के बिना नहीं रहा जाता|

पहले गांड़ मरवाने के नाम से भाभी तेरी गांड़ फटती थी, अब तेरी गांड़ में हरदम चींटी काटती रहती है, अब गांड़ को ऐसा लंड का स्वाद लगा कि...तो जैसे वो स्वाद भैया ने लगाए तो ये स्वाद आज उनकी बहना लगा रही है| सच भाभी ससुराल की ये पहली होली और ये स्वाद आप कभी नहीं भूलेंगी|”


तब तक मेरी दोनों चूचियाँ, मेरे नंदोइयों के कब्जे में थी|

वो रंग लगा रहे थे, चूचि की रगड़ाई मसलाई भी कर रहे थे| दोनों चूचियों के बाद दोनों छेद पे भी...नंदोई ने तो गांड़ का मजा पहले हीं ले लिया था तो वो अब बुर में और छोटे नंदोई गांड़ में...मैं फिर सैंडविच बन गई थी|

लेकिन सबसे ज्यादा तो मेरी ननद मेरे मुँह में...झड़ने के साथ दोनों ने फिर मेरा फेसियल किया मेरी चूचियों पे... और ननद ने पता नहीं क्या लगाया था कि अब 'जो भी' मेरी देह से लगता था...वो बस चिपक जाता था| घंटे भर मेरी दुरगत कर के हीं उन तीनों ने छोड़ा|

बाहर खूब होली की गालियाँ, जोगीड़ा, कबीर...| जमीन पे पड़ी साड़ी चोली किसी तरह मैंने लपेटी और अंदर गई कि जरा देखूं मेरा भाई कहाँ है|

उस बिचारे की तो मुझसे भी ज्यादा दुरगत हो रही थी|

सारी की सारी औरतें यहाँ तक की मेरी सास भी...तब तक मेरी बड़ी ननद भी वहाँ पहुँची और बोलीं,

“अरे तुम सब अकेले इस कच्ची कली का मजा ले रहे हो! रुक साल्ले, अभी तेरी बहन को खिला पिला के आ रही हूँ, अब तेरा नंबर है, चल अभी तुझे गरम गरम हलवा खिलाती हूँ|”


मैं सहम गई कि इतनी मुश्किल से तो बची हूँ, अगर फिर कहीं इन लोगों के चक्कर में पड़ी तो...उन सबकी नजर बचा के मैं छत पे पहुँच गई|

बहुत देर से मैंने 'इनको' और अपनी जेठानी को नहीं देखा था|


शैतान की बात सोचिये और...भुस वाले कमरे में मैंने देखा कि भागते हुए मेरी जेठानी घुसीं और उनके पीछे पीछे उनके देवर यानी मेरे 'वो' रंग लेके| अंदर घुसते हीं उन्होंने दरवाजा बंद कर लिया|

पर ऊपर एक रोशनदान से, जहाँ मैं खड़ी थी, अंदर का नजारा साफ साफ दिख रहा था| '

इन्होंने' अपनी भाभी को कस के बाँहों में भर लिया और गालों पे कस-कस के रंग लगाने लगे| थोड़ी देर में 'इनका' हाथ सरक के उनकी चोली पे और फिर चोली के अंदर जोबन पे...वो भी न सिर्फ खुशी खुशी रंग लगवा रही थीं, बल्कि उन्होंने भी 'उनके' पाजामे में हाथ डाल के सीधे 'उनके' खूंटे को पकड़ लिया|
थोड़ी हीं देर में दोनों के कपड़े दूर थे और जेठानी मेरी पुआल पे और 'वो' उनकी जाँघों के बीच...और उनकी ८ इंच की मोटी पिचकारी सीधे अपने निशाने पे|    

 देवर भाभी की ये होली देख के मेरा भी मन गनगना गया और मैं सोचने लगी कि मेरा देवर...देवर भाभी की भी होली का मजा ले लेती|

सगा देवर चाहे मेरा न हो लेकिन ममेरे, चचेरे, गाँव के देवरों की कोई कमी नहीं थी|

खास कर फागुन लगने के बाद से सब उसे देख के इशारे करते, सैन मारते, गंदे गंदे गाने गाते और उनमें सुनील सबसे ज्यादा| उनका चचेरा देवर लगता था, सटा हुआ घर था उन लोगों के घर के बगल में हीं
|

गबरू पट्ठा जवान और क्या मछलियाँ थी बाँहों में, खूब तगड़ा, सारी लड़कियाँ, औरतें उसे देख के मचल जाती थीं|

एक दिन फागुन शुरू हीं हुआ था, फगुनाहट वाली बयार चल रही थी कि गन्ने के खेत की बीच की पगडंडी पे उसने मुझे रोक लिया और गाते हुए गन्ने के खेत की ओर इशारा कर के बोला,

“बोला बोला भौजी, देबू देबू, कि जईबू थाना में|”


अगले दिन पनघट पे जब मैंने जिकर किया तो मेरी क्या ब्याही, अन ब्याही ननदों और जेठानियों की साँसें रुकी रह गई|

एक ननद बेला बोली,

अरे भौजी आप मौका चूक गई| फागुन भी था और रंगीला देवर का रिश्ता भी, आपकी अच्छी होली की शुरुआत हो जाती| फिर तो...”

एकदम खुल के एक ननद बोली, जो सबसे ज्यादा चालू थी गाँव में,

“अरे क्या लंड है उसका, भाभी एक बार ले लोगी तो...”


चंपा भाभी (जो मेरी जेठानियों में सबसे बड़ी लगती थीं और जिनका 'खुल के' गाली देने में हर ननद पानी मांग लेती, दीर्घ स्तना, ४०डी साइज के चूतड़) बोलीं,

“हाँ, हाँ, ये एकदम सही कह रही है, ये इसके पहले बिना कुत्ते से चुदवाए इसे नींद नहीं आती थी लेकिन एक बार इसने जो सुनील से चुदवा लिया तो फिर उसके बाद कुत्तों से चुदवाने की आदत छूट गई|


बेचारी ननद, वो कुछ और बोलती उसके पहले हीं वो बोलीं,

और भूल गई, जब सुनील से गांड़ मरवाई थी सबसे पहले, तो मैं हीं ले के गई थी मोची के पास...सिलवाने|”

तब तक

'हे भौजी..'

की आवाज ने मेरा ध्यान खींचा, सुनील हीं था, अपने दो तीन दोस्तों के साथ, मुझे होली खेलने के लिए नीचे बुला रहा था


 मैंने हाथ के इशारे से उसे मना किया|

दरवाजा बंद था इसलिए वो तो अंदर आ नहीं सकता था| लेकिन मन तो मेरा भी कर रहा था, उसने उंगली के इशारे से चूत और लंड बना के चुदाई का निशान बनाया तो उसकी बहन गुड़िया का नाम लेके मैंने एक गंदी सी गाली दी और साड़ी सुखाने के बहाने आँचल ढलका के उसे अपने जोबन का दरसन भी करा दिया|


अब तो उस बेचारे की हालत और खराब हो गई|


दो दिन पहले जब वह फिर मुझे खेतों के बीच मिला था तो अबकी उसने सिर्फ हाथ हीं नहीं पकड़ा बल्कि सीधे बाँहों में भर लिया था और खींच के गन्ने के खेत के बीच में...छेड़ता रहा मुझे,

“अरे भौजी तोहरी कोठरिया में हम झाड़ब, अरे आगे से झाड़ब, पीछे से झाड़ब, उखियो में झाड़ब, रहरियो में झाड़ब, अरे तोहरी कुठरिया...|”


आखिर जब मैंने वायदा कर लिया कि होली के दिन दूंगी सचमुच में एकदम मना नहीं करुँगी तो वो जाके माना|


जब उसने नीचे से बहुत इशारे किये तो मैंने कहा कि अपने दोस्तों को हटाओ तो बाहर आउंगी होली खेलने| वो मान गया| मैं नीचे उतर के पीछे के दरवाजे से बाहर निकली|


मैंने अपने दोनों हाथों में गाढ़ा पेंट लगाया और कमर में रंगों का पैकेट खोंसा| सामने से वो इशारे कर रहा था| दोनों हाथ पीछे किये मैं बढ़ी| तब तक पीछे से उसके दोनों दोस्तों ने, जो दीवाल के साथ छिप के खड़े थे, मुझे पीछे से आके पकड़ लिया| मैं छटपटाती रही|


वो दोनों हाथों में रंग पोत के मेरे सामने आके खड़ा हो गया और बोला,

“क्यों डाल दिया जाय कि छोड़ दिया जाय, बोल तेरे साथ क्या सलूक किया जाय|” मैं बड़ी अदा से बोली,

“तुम तीन हो ना तभी...छोड़ो तो बताती हूँ|”

जैसे हीं उसके इशारे पे उसके साथियों ने मुझे छोड़ा,

'होली है..' कह के कस के उसके गालों पे रंग मल दिया|

अच्छा बताता हूँ, और फिर उसने मेरे गुलाबी गालों को जम के रगड़-रगड़ के रंग लगाया| मुझे पकड़ के खींचते हुए वो पास के गन्ने के खेत में ले गया और बोला असली होली तो अब होगी|

“हाँ मंजूर है, लेकिन एक एक करके पहले अपने दोस्तों को तो हटाओ|”


 उसके इशारे पे वो पास में हीं कहीं बैठ गये| पहले ब्लाउज के ऊपर से और फिर कब बटन गये, कब मेरी साड़ी ऊपर सरक गई...थोड़ी देर में हीं मेरी गोरी रसीली जाँघें पूरी तरह फैली थीं, टाँगे उसके कंधे पे और 'वो' अंदर|



मैं मान गई कि जो चंपा भाभी मेरी ननद को चिढ़ा रही थीं वो ठीक हीं रहा होगा| उसका मोटा कड़ा सुपाड़ा जब रगड़ के अंदर जाता तो सिसकी निकल जाती|


 वो किसी कुत्ते की गाँठ से कम मोटा नहीं लग रहा था| और क्या धमक के धक्के मार रहा था, हर चोट सीधे बच्चेदानी पे|

साथ में उसके रंग लगे हाथ मेरी मोटी-मोटी चूचियों पे कस के रंग भी लगा रहे थे| पहली बार मैं इस तरह गन्ने के खेत में चुद रही थी, मेरे चूतड़ कस-कस के मिट्टी पे, मिट्टी के बड़े-बड़े ढेलों से रगड़ रहे थे| लेकिन बहुत मजा आ रहा था और साथ में मैं उसकी बहन का नाम ले ले के और गालियाँ भी दे रही थी,


 “चोद साले चोद, अरे गुड़िया के यार, बहन के भंडुए, देखती हूँ उस साल्ली मेरी छिनाल ननद ने क्या-क्या सिखाया, उस चूत मरानो के खसम, तेरी बहन की बुर में...गदहे का लंड जाय|”

वो ताव में आके और कस-कस के चोद रहा था| हम दोनों जब झड़े तो मैंने देखा कि बगल में उसके दोनों दोस्त, “भौजी हम भी...”

मैं कौन होती थी मना करने वाली|

लेकिन उन दोनों ने, मैंने जो सुना था कि गाँव में कीचड़ की होली होती है, उसका मजा दे दिया|

बगल में एक गड्ढे में कीचड़ था, पहले तो वहाँ से लाके कीचड़ पोता मुझे| मैं क्यों छोड़ती अपने देवरों को| मैंने भी कुछ अपने बदन का कीचड़ रगड़ के उनकी देह पे लगाया, कुछ उनके हाथ से छीन के| फिर उन सबने मिल के मेरी डोली बना के कीचड़ में हीं ले जा के पटक दिया|

एक साथ मुझे मड रेस्लिंग का भी मजा मिला और चुदाई का भी|

थोड़ी देर वो ऊपर था और फिर मैं ऊपर हो गई और खुद उसे कीचड़ में गिरा-गिरा के रगड़ के चोदा|



बस गनीमत थी कि उनके दिमाग में मुझे सैंडविच बनाने का आइडिया नहीं आया, इसलिए मेरी गांड़ बच गई| उन सबसे निपटने के बाद मैंने साड़ी ब्लाउज फिर से पहना और खेत से बाहर निकली|

मैं घर की ओर मुड़ हीं रही थी कि कुछ औरतों का झुंड मिल गया| वो मुझे ले के चंपा भाभी के घर पहुँची, जहाँ गाँव भर की औरतें इकट्ठा होती थीं और होली का जम के हुड़दंग होता था|  

क्या हंगामा था| मेरे साथ जो औरतें पहुँची, पहले तो बाकी सबने मिल के उनके कपड़े फाड़े|

मेरे साथ गनीमत ये थी कि चंपा भाभी ने मुझे अपने आसरे ले लिया था और मेरे आने से वो बहुत खुश थीं| एक से एक गंदे गाने, कबीरा, जोगीड़ा...जो अब तक मैं सोचती थी सिर्फ आदमी हीं गाते हैं, एक ने मुझे पकड़ा और गाने लगी|

दिन में निकले सूरज और रात में निकले चंदा..अरे हमरे यार ने...|
किसकी पकड़ी चूचि और किसको चोदा..अरे हमरे यार ने|
भाभी की चूचि पकड़ी और संगीता को चोदा...अरे कबीरा सा रा रा रा|



चंपा भाभी ने सबको भांग मिली ठंडाई पिलाई थी, इसलिए सबकी सब खूब नशे में थीं|


उन्होंने कंडोम में गुलाल भर भर के ढेर सारे डिल्डो भी बना रखे थे और चार पांच मुझे भी दिये|

तब तक एक ननद ने मुझे पीछे से पकड़ा, (वो भी शादीशुदा थी और जो स्थान भाभियों में चंपा भाभी का था वही ननदों में उनका था|) मुझे पकड़ के पटकते हुए वो बोलीं,

“चल देख तुझे बताती हूँ, होली की चुदाई कैसे होती है?”


उनके हाथ में एक खूब लंबा और मोटा, निरोध में मोमबत्ती डाल के बनाया हुआ डिल्डो था|

तब तक चंपा भाभी ने मुझे इशारा किया और मैंने उन्हें उल्टे पटक दिया|

उधर चंपा भाभी ने उनके हाथ से डिल्डो छीन के मुझे थमा दिया और बोलीं,

“लगता है नंदोई अब ठंडे पड़ गये हैं जो तुम्हें इससे काम चलाना पड़ रहा है| अरे ननद रानी, हम लोगों से मजे ले लो ना|”

फिर मुझे इशारा किया कि जरा ननद रानी को मजा तो चखा दे| मैं सिक्स्टी नाइन की पोज में उनके ऊपर चढ़ गई और पहले अपनी चूत, फिर गांड़ सीधे उनके मुँह पे रख के कस के एक बार में हीं ६ इंच डिल्डो सीधे पेल दिया|

वो बिलबिलाती रहीं, गों गों करती रही, लेकिन मैं कस-कस के अपनी गांड़ उनके मुँह पे रगड़ के बोलती रही,

“अरे ननद रानी, जरा भौजी का स्वाद तो चख लो, तब मैं तुम्हारे इस कुत्ते गधे के लंड की आदि भोंसड़े की भूख मिटाती हूँ|” चंपा भाभी ने गुलाल भरा एक डिल्डो ले के सीधे उनकी गांड़ में ठेल दिया|

वहाँ से निकल के चंपा भाभी के साथ और लड़कियों के यहाँ गये|

संगत में मैं पूरी तरह ट्रेन हो गई| सुनील की बहन गुड़िया मिली तो चंपा भाभी के इशारे पे मैंने उसे धर दबोचा| वो अभी कच्ची कली थी, ९ वें में पढ़ती थी|

लेकिन तब फ्रॉक के अंदर हाथ डाल के उसकी उठ रही चूचियों को, कस-कस के रगड़ा और चड्ढी में हाथ हाथ डाल के उसकी चूत में भी जम के तब तक उंगली की जब तक वो झड़ नहीं गई| यहाँ तक की मैंने उससे खूब गंदी-गंदी गालियाँ भी दिलवाई, उसके भाई सुनील के नाम भी|

कोई लड़की, कोई औरत बच नहीं पा रही थी| 

एक ने जरा ज्यादा नखड़ा किया तो भाभी ने उसका ब्लाउज खोल के पेड़ पे फेंक दिया और आगे पीछे दोनों ओर गुलाल भरे कंडोम जड़ तक डाल के छोड़ दिया और बोलीं,

“जा के अपने भाई से निकलवाना|”


और जिन-जिन की हम रगड़ाई करते थे, वो हमारे ग्रुप में ज्वाइन हो जाती थीं और दूने जोश से जो अगली बार पकड़ में आती थी उसकी दुरगत करती थीं| 

यहाँ तक की भाभी लड़कों को भी नहीं बख्शती थीं| एक छोटा लड़का पकड़ में आया तो मुझसे बोलीं,

“खोल दे, इस साल्ले का पजामा|”

मैं जरा सा झिझकी तो बोलीं,

“अरे तेरा देवर लगेगा, जरा देख अभी नूनी है कि लंड हो गया| चेक कर के बता, इसने अभी गांड़ मरवानी शुरू की या नहीं, वरना तू हीं नथ उतार दे साल्ले की|”

वो बेचारा भागने लगा, लेकिन हम लोगों की पकड़ से कहाँ बच सकता था|


मैंने आराम से उसके पजामे का नाड़ा खोला, और लंड में, टट्टे में खूब जम के तो रंग लगाया हीं, उसकी गांड़ में उंगली भी की और गुलाल भरे कंडोम से गांड़ भी मार के बोला,

“जा जा, अपनी बहन से चटवा के साफ करवा लेना|”

कई कई बार लड़कों का झुंड एक दो को पकड़ भी लेता या वो खुद हीं कट लेतीं और मजे ले के ग्रुप में वापस|

तीन चार बार तो मैं भी पकड़ी गई और कई बार मैं खुद भी कट के...मजे ले के
 
 
 
 
 





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