Friday, August 15, 2014

FUN-MAZA-MASTI बदलाव के बीज--14

FUN-MAZA-MASTI

 बदलाव के बीज--14
अब आगे....

 माँ ने मुझे उठाया.. समय देखा तो सुबह के छह बजे थे…. नया दिन... नया जोश और रात के प्लान के बारे में सोच के उत्साह से रोंगटे खड़े हो गए थे| मन में उल्लास था.... भाभी को देखा तो वो नेहा को तैयार कर रही थी... मैंने उनकी और देखा और मुस्कुरा के नहाने चला गया| पर मैं आनेवाले खतरे से अनजान था...

नहा धो के तैयार हो गया और शांत मन से रात के प्लान के लिए मन ही मन सोचने लगा... मन में तो ख्याल था की फूलों की सेज सजी हो पर ये भी डर था की ये फूल किसी से नहीं छुपेंगे... और कहीं इन्हीं फूलों का फायदा भैया ना उठा लें!!!! अभी मैं मन ही मन सोच रहा था की तभी पिताजी ने मेरे कान के पास एक ऐसा बम फोड़ा की मेरा सारा शरीर सुन हो गया.....

पिताजी: क्यों लाड-साहब रात को छत पे क्यों नहीं सोये?

मैं: बहुत थक गया था... इसीलिए कब नींद आ गई पता ही नहीं चला|

पिताजी: थक गया था? ऐसा कौन सा पहाड़ खोद दिया तुमने?

चन्दर भैया: चाचा मानु भैया कल रात को जानवरों को चारा डालने में भाभी की मदद कर रहे थे... इसीलिए थक गए!

भैया की बात सुनके दोनों चाचा-भतीजा हँसने लगे| मैं भी उनका साथ देने के लिए हँसा... असल में मुझे भाभी की बातें याद आ रही थी और मैं भैया से नफरत करने लगा था| पर यदि मैं अपनी नफरत जाहिर करता तो कोई भी भाभी और मुझपे शक करता| अभी तक भाभी और मेरे रिश्ते को सब दोस्तों जैसे रिश्ता ही समझते थे... और मैं नहीं चाहता था की वे सब इस ब्रह्म से बहार अायें|

पिताजी: तो लाड-साहब चलना नहीं है क्या?

मैं: (चौंकते हुए ) कहाँ?

पिताजी: जिस काम के लिए आये थे?

मैं: किस काम के लिए?

पिताजी: तुम तो यहाँ आके अपनी भाभी के साथ इतना घुल-मिल गए की यात्रा के बारे में भूल ही गए|

पिताजी की बात सुन मैं झेंप गया... और मुझे याद आय की दरअसल गाँव आने का प्लान बनाने के लिए मैंने पिताजी को काशी विश्वनाथ घूमने का लालच दिया था| यही कारन था की पिताजी गाँव आने के लिए माने थे| कहाँ तो मैं अपनी और भाभी के सुहागरात के सपने सजोने में लगा था और कहाँ पिताजी की बात सुन मेरे होश उड़ गए| दरअसल यात्रा का प्लान मैंने ही बनाया था और क्योंकि मुझे भाभी से मिलने की इतनी जल्दी थी इसलिए मैंने सबसे पहले गाँव आने का प्लान बनाया और उसके बाद हम यात्रा करके दिल्ली लौट जायेंगे| जबकि पिताजी का कहना था की हम पहले यात्रा करते हैं उसके बाद गाँव जायेंगे.. अब मुझे अपने ऊपर अधिक क्रोध आ रहा था... की आखिर क्यों मैंने थोड़ा सब्र नहीं किया|

पिताजी: क्या सोच रहे हो? मैंने तुमसे राय नहीं माँगी है... हम कल ही निकालेंगे और यात्रा कर के दिल्ली लौट जायेंगे|

चन्दर भैया ने पिताजी की बात सुनी और सब को सुनाने के लिए चल दिए| मेरा दिमाग अब कंप्यूटर की तरह काम करने लगा और मैं कोई न कोई तर्क निकालना चाहता था की हम कुछ और दिनों के लिए रुक जाएं और तभी मेरे दिमाग में एक शार्ट सर्किट हुआ और मुझे एक बात सूझी .....


आगे मेरे और पिताजी के बीच हुई बात को मैं अभी गोपनीय रख रहा हूँ.. इसका पता आपको अवश्य चलेगा... अभी ये बात आपको नहीं बताने का सिर्फ यही तर्क है की आपको इसका आनंद आगे मिले|

जब ये बात भाभी के कानों तक पहुँची भाभी भागी-भागी बड़े घर की ओर आईं... पिताजी मुझसे बात करके कल यात्रा पे जाने के लिए रिक्शे का इन्तेजाम करने के लिए निकल चुके थे| मैं घर के आँगन में अपने सर पे हाथ रखे बैठा हुआ था ... अचानक भाभी मेरे सामने ठिठक के खड़ी हो गईं... उनके आँखों में आँसूं थे.... चेहरे पे सवाल ... और जुबान पे मेरा नाम ....

भाभी: मानु.... क्या मैंने जो सुना वो सच है? तुम कल जा रहे हो?

मैं: हाँ....

भाभी: पर तुमने मुझे पहले बताया क्यों नहीं?

मैं: भूल गया था...

भाभी: अब मेरा क्या होगा? मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती... मैं मर जाऊँगी....

इतना कह के भाभी बहार चली गईं.. मुझे चिंता होने लगी की कहीं भाभी कुछ ऐसा-वैसा कदम न उठा लें| इसलिए मैं उनके पीछे भागा.... मुझे ये देख के राहत मिली की भाभी भूसे के करे के बहार कड़ी हो के रसिका भाभी से कुछ पूछ रही हैं| उनके इशारे से मैं समझ चूका था की भाभी यही पूछ रहीं थीं की क्या मैं सच में वापस जा रहा हूँ? और रसिका भाभी ने भी बात को ज्यादा तूल ना देते हुए हाँ में सर हिलाया और रसोई की और चल दीं| मैंने इशारे से भाभी को अपने पास बुलाया... और भाभी भारी क़दमों के साथ मेरी ओर बढ़ने लगीं|

इससे पहले की आप लोगों को शक हो की आखिर हर बार मुझे ओर भाभी को अकेले में बात करने का समय कैसे मिल जाता है, मैं आपको स्वयं बता देता हूँ| माँ, नेहा और बड़की अम्मा (बड़ी चाची) खेत में आलू खोद के निकाल रहीं थी| पिताजी तो पहले ही रिक्शे वाले से बात करने के लिए जा चुके थे| चन्दर भैया और अजय भैया खेतों में सिंचाई और जुताई में लगे थे और रसिका भाभी तो यूँ हैं इधर-उधर टहल रहीं थी.. जब से मैं आया था मैंने उन्हें कोई भी काम नहीं करते देखा था!!!

भाभी घर में दाखिल हुईं और मैंने उन्हें चारपाई पे बिठाया... उनके मुख पे हवाइयाँ उड़ रहीं थी... कोई भी भाव नहीं थे... जैसे की कोई लाश हो| मैं मन ही मन अपने आपको कोस रहा था... मैं अपने घुटनों पे उनके समक्ष बैठ गया:

मैं: भौजी... मुझे माफ़ कर दो... सब मेरी गलती है| मैंने आपको कुछ नहीं बताया... सच कहूँ तो इन चार दिनों में आपके प्यार में मैं खुद भूल गया था| गाँव आने का मेरे पास कोई बहाना नहीं था इसलिए मैंने पिताजी से काशी-विश्वनाथ की यात्रा का प्लान बनाया... पिताजी तो चाहते थे की हम पहले यात्रा करें और फिर गाँव जायेंगे और आखिर में दिल्ली लौट जायेंगे| पर मैं आपसे मिलने को इतना आतुर था की मैंने कहा की हम पहले गाँव जायेंगे.. और फिर वहां से यात्रा करने के लिए निकलेंगे और वहीँ से वहीँ दिल्ली निकल जायेंगे... इसीलिए ये सब हुआ| मुझे सच में नहीं पता था की आपका प्यार मुझे आपसे दूर नहीं जाने देगा|

भाभी मेरी आँखों में देख रही थी.. और उनकी आँखों में आँसूं छलक आये थे| जब-जब मैं भाभी को ऐसे देखता हूँ तो मेरे नस-नस में खून खौल उठता है...  


भाभी: मानु मेरा क्या होगा ?? तुम मुझे छोड़ के चले जाओगे???
भाभी के इस प्रश्न का मेरे पास कोई जवाब नहीं था... और भाभी के चेहरे पे छाई मायूसी का कारन भी तो मैं ही था| मेरी गर्दन नीचे झुक गई और मुझे अपने ऊपर कोफ़्त होने लगी!!! पर मैं भाभी को ढांढस बंधने लगा... मैंने उनके चेहरे को ऊपर किये और उनके आँसूं पोंछें ....

मैं: भाभी अभी भी हमारे पास 24 घंटे हैं|

भाभी मेरी और बड़ी उत्सुकता से देखने लगी ....

मैं: मैं ये पूरे 24 घंटे आपके साथ ही गुजारूँगा...

तभी पीछे से माँ आ गईं ... मुझे और भाभी को इस तरह देख के वो हैरान थी और इससे पहले की वो कुछ पूछतीं मैं खुद ही बोल पड़ा:

मैं: माँ देखो ना भौजी को... जब से इन्हें पता चला है की हम कल जा रहे हैं ये मुँह लटका के बैठीं हैं... आप ही कुछ समझाओ....

माँ: पर हम तो....

मैंने माँ की बात बीच में ही काट दी...

मैं: माँ पिताजी रिक्शे वाले से बात करने निकले हैं और वो कह रहे थे की आप उनका सफारी सूट मत भूल जाना|

मैं: हाँ अच्छा याद दिलाया तूने... मैं अभी रख लेती हूँ| और बहु तुम उदास मत हो ...

मैं: और हाँ माँ, पिताजी ने कहा था की सर और पेट दर्द की दवा भी रख लेना|

मैंने फिर से माँ की बात काट दी...

माँ: ये सब तू मुझे बताने के बजाये खुद नहीं रख सकता?

इससे पहले की माँ कुछ और बोलेन मैं भाभी को खींच के बहार ले गया... अभी दरवाजे तक पहुंचा ही था की नेहा भी आ गई और भाभी के उदास मुँह का कारन पूछने लगी| मैंने उसकी बात घूमते हुए कहा की चलो मेरे साथ बताता हूँ|

मैंने अपने दायें हाथ से भाभी का बायां हाथ पकड़ा था और अपने बाएँ हाथ की ऊँगली नेहा को पकड़ा रखी थी| मैं दोनों को रसोई के पास छप्पर में ले आया ... वहां पड़ी चारपाई पे भाभी को बैठाया और नेहा के प्रश्नों का उत्तर देने लगा:

मैं: आप पूछ रहे थे न की आपकी मम्मी उदास क्यों हैं?

नेहा ने हाँ में सर हिलाया...

मैं: आपकी मम्मी की उदासी का कारन मैं हूँ|

मेरी बात सुन के भाभी और नेहा दोनों मेरी और देखने लगे...

मैं: मैं कल वापस जा रहा हूँ ना इसलिए ...

नेहा: चाचू आप वापस नहीं आओगे ?

मैंने ना में सर हिला दिया... और ये देख भाभी अपने आप को रोक नहीं पाईं और रो पड़ीं| मैंने भाभी को गले से लगाया और उनकी पीठ पे हाथ फेरते हुए चुप कराने लगा...

मैं: भाभी प्लीज चुप हो जाओ वार्ना नेहा भी रोने लगेगी|

भाभी का रोना जारी था और नेहा भी सुबकने लगी थी...

मैं: भाभी आपको मेरी कसम ... प्लीज चुप हो जाओ...

मेरी कसम सुन के भाभी ने रोना बंद किया और आगे जो हुआ उसे देख के भाभी और मैं हम दोनों हँस पड़े... नेहा ने रोना शुरू कर दिया था और उसका रोना ऐसा था जैसे फैक्ट्री का किसी ने साईरन बजा दिया हो जो हर सेकंड तेज होता जा रहा था ... ये इतना मजाकिया था की मैं और भाभी अपना हँसना रोक ना पाये| चलो भाभी हंसी तो सही वार्ना मुझे भाभी को ..... (ये अभी नहीं बताऊँगा|) 

नेहा को चिप्स बहुत पसंद थे इसलिए मैंने उसे अपनी जेब में पड़ा आखरी नोट दिया और चिप्स खरीद के खाने के लिए कहा| भाभी मना करने लगीं पर मैंने फिर भी उसे जबरदस्ती भेज दिया... भाभी की आँखें नम थीं... मैंने बात को बदलना चाहा:

मैं: भौजी आप स्नान कर लो... तरो-ताजा महसूस करोगे| फिर आपको भोजन भी तो बनाना है, क्योंकि रसिका भाभी तो कुछ करने वाली नहीं|

भाभी बड़े बेमन से उठीं.. ऐसा लगा जैसे उनका मन ही ना हो मुझसे दूर जाने को| मैंने उन्हें छेड़ते हुए कहा:

मैं: भौजी वैसे मैंने आपको वादा किया था की मैं पूरे २४ घंटे आपके साथ रहूँगा... अभी तो आप स्नान करने जा रहे हो... अगर कहो तो मैं भी चलूँ आपके साथ?

भाभी: ठीक है.... चलो !!!

उनका जवाब सुन के मैं सन्न रह गया... मैंने तो मजाक में ही बोल दिया था| खेर मैं ख़ुशी-ख़ुशी उनके साथ चल दिया... भाभी ने अंदर से कमरा बंद किया और मैं उनके स्नान घर के सामने चारपाई खींच कर बैठ गया... जैसे मैं कोई मुजरा सुनने आया हूँ| टांगें चढ़ा कर जैसे कोई अंग्रेज आदमी कोई शो देखने आया हो!!!

भाभी ने आज हलके हरे रंग की साडी पहनी हुई थी... वो मेरे सामने कड़ी हुईं और अपना पल्लू नीचे गिरा दिया... उनके स्तन के बीचों बीच की दूधिया लकीर मुझे साफ़ दिखाई दे रही थी| हाथ बेकाबू होने लगे... और मन किया की भाभी को किसी शेर की भाँती दबोच लूँ| भाभी ने अपने ब्लाउज के बटन खोलने चालु कर दिए थे ....पर मैं उठ खड़ा हुआ ...

मैं: भौजी मैं जा रहा हूँ ....

भाभी: क्यों ?

मैं: भाभी आपको इस तरह देख के मेरा कंट्रोल छूट रहा है| मैं ये सब आज रात के लिए बचाना चाहता हूँ|

फिर भाभी ने ऐसी बात बोली की मैं एक पल के लिए सोच में पड़ गया|

भौजी: और अगर रात को मौका नहीं मिला तो?..... तुम तो कल चले जाओगे ... पता नहीं फिर कभी हम मिलें भी या नहीं...

बार-बार भाभी के कटीले प्रश्न मेरी आत्मा को चोटिल कर रहे थे... पर उनकी बातों में सच्चाई थी| भाभी की बात में दम तो था परन्तु मैं फिर भी खतरा उठाने को तैयार था... मैं भाभी की सुहागरात वाला तौफा ख़राब नहीं करना चाहता था|मैं भाभी की ओर बढ़ा ओर उन्हें अपनी बाँहों में भरा ... उनके बदन पे मेरा दबाव तीव्र था और उन्हें ये संकेत दे रहा था की आप चिंता मत करो... सब ठीक होगा और आपका सुहागरात वाला सरप्राइज मैं ख़राब नहीं होने दूँगा|
अपनी बात को पक्का करने के लिए मैंने उनके होंठों को चूम लिया... परन्तु ये चुम्बन बहुत ही छोटा था...
(जैसे छोटा रिचार्ज!!!)

मैं: भाभी मैं बहार जा रहा हूँ आप दरवाजा बंद कर लो|

भाभी: मानु मेरी एक बात मानोगे ?

मैं: हाँ बोलो...

भाभी: कल मत जाओ ... कोई भी बहाना बनाके रुक जाओ| मुझे भरोसे है की तुम ये कर सकते हो|

मैं: भौजी कल की वाराणसी की ट्रैन की टिकट बुक है| अगर मैं अपनी बीमारी का बहाना भी बना लूँ तो भी पिताजी मुझे ले जाए बिना नहीं मानेंगे ... फिर तो चाहे उन्हें यहाँ तक एम्बुलेंस ही क्यों न बुलानी पड़े!


मैं इस बारे में और बात कर के फिर से भाभी की आँखें नम नहीं करना चाहता था इसलिए मैं सीधा बहार की ओर निकल लिया और कमरे का दरवाजा सटा दिया| बहार आके मैंने चैन की साँस ली और वापस छापर के नीचे पहुंचा जहाँ नेहा चारपाई पे बैठी चिप्स खा रही थी| मैं नेहा के पास बैठ गया और उसने चिप्स वाला पैकेट मेरी ओर बढ़ा दिया ... मैंने भी उसमें से थोड़े चिप्स निकाले और खाने लगा| नेहा कहानी सुनने के लिए जिद्द करने लगी... वो हमेशा रात को सोने से पहले मुझसे कहानी सुन्ना पसंद करती थी| मैं उसे मना नहीं कर पाया.. और चूहे, कबूतरों और गिलहरी की कहनी बना के सुनाने लगा| कहानी सुनते-सुनते नेहा मेरी गोद में ही सर रख के सो गई और मैं उसके सर पे हाथ फेर ने लगा... तभी उस अकड़ू ठाकुर की बेटी माधुरी वहाँ आ गई| वो मेरे सामने पड़ी चारपाई पे बैठ गई और भाभी के बारे में पूछने लगी.. मैंने उसे बताया की भाभी स्नान करने गई हैं अभी आत होंगी ... पर ये तो उसका बहाना| अब उसने मेरे ऊपर अपने सवाल दागे ...:

माधुरी: तो आप दिल्ली में कहाँ रहते हो?

मैं: डिफेन्स कॉलोनी

माधुरी: आपके स्कूल का नाम क्या है?

मैं: मॉडर्न स्कूल

माधुरी: आपके विषय कौन-कौन से हैं?

मैं: जी एकाउंट्स और मैथ्स

माधुरी: आपकी कोई गर्लफ्रेंड है? उन्सका नाम तो बताओ...

मैं: मेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है न ही मैं बनाना चाहता हूँ| आप अपने बारे में भी तो कुछ बताइये?

माधुरी: मैं राजकीय शिक्षा मंदिर में पढ़ती हूँ ... दसवीं में हूँ मेरा भी कोई बॉयफ्रेंड नहीं है|

जैसे मैं उसके बॉयफ्रेंड के बारे में जानने के लिए उत्सुक था....| माधुरी मुझसे घुलने-मिलने की कोशिश कर रही थी और कुछ ज्यादा ही मुस्कुरा रही थी| दिमाग कह रहा था की:

तुम जो इतना मुस्कुरा रही हो... क्या बात है जिसे छुपा रही हो???

मैं उसके सवालों का जवाब बहुत ही संक्षेप में दे रहा था क्योंकि मेरी उसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी.. वैसे भी मेरा व्यक्तित्व ही बड़े मौन स्वभाव का है.. मैं बहुत काम बोलता हूँ और उसका व्यक्तित्व ठीक मेरे उलट था| मुझे ऐसा लगा जैसे वो मेरी और आकर्शित महसूस कर रही हो ... तभी उसने सबसे विवादित प्रश्न छेड़ दिया:
माधुरी: तो मानु जी, आपके शादी के बारे में क्या विचार हैं|

मैं: शादी? अभी?

मेरा इतना बोलना था की भाभी भी अपने बाल पोंछते हुए आ गईं... वो हमें बातें करते हुए देख रही थी और जल भून के राख हो चुकीं थी| वो मेरे पास आई और कुछ इस तरह से खड़ी हुई की उनकी पीठ माधुरी की ओर थी... और मेरी ओर देखते हुए अपना गुस्सा प्रकट किया और नेहा को मेरी गोद में से उठा के अपने घर की ओर चल दीं| मैं समझ गया की बेटा आज तेरी शामत है !!! मैं भाभी के पीछे एक दम से तो नहीं जा सकता था वर्ना माधुरी को शक हो जाता| मैं मौके की तलाश में था की कैसे माधुरी को यहाँ से भगाऊँ? मन बड़ा बेचैन हो रहा था... मेरी हालत ऐसी थी जैसे मुझे सांप सूंघ गया हो, और माधुरी पटर-पटर बोले जा रही थी|
 
 
 











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