FUN-MAZA-MASTI
बदलाव के बीज--15
अब आगे....
मेरी कोई भी प्रतिक्रिया ना पाते हुए उसने खुद ही बात खत्म की:
माधुरी: लगता है आपका बात करने का मन नहीं है|
मैं: नहीं ऐसी कोई बात नहीं... दरअसल मुझे कल वापस निकलना है.. उसकी पैकिंग भी करनी है|
माधुरी: ओह! मुझे लगा आप को मैं पसंद नहीं... मैं शाम को आती हूँ तब तक तो आपकी पैकिंग हो जाएगी ना?
मैं: हाँ
माधुरी उठ के चल दी पर एक पल के लिए मैं उसकी कही बात को सोचने लगा| आखिर उसका ये कहना की "मुझे लगा आप को मैं पसंद नहीं... " का मतलब क्या था? खेर अभी मैं इस बातको तवज्जो नहीं दे सकता था क्योंकि भाभी नाराज लग रहीं थी| मैं तुरंत भाभी के पीछे उनके घर की ओर भागा| वहाँ पहुँच के देखा तो भाभी अपनी चारपाई पर बैठी हैं ओर नेहा दूसरी चारपाई पे सो रही है|
मैं: भौजी?
भाभी: कैसी लगी माधुरी?
मैं: क्या?
भाभी: बड़ा हँस के बात कर रहे थे उससे?
मैं: भौजी ऐसा नहीं है... आपको ये लग रहा है की वो मुझे अच्छी लगती है ओर हमारे बीच में वो सब....!!!
भाभी: और नहीं तो|
मैं: भौजी आप पागल तो नहीं हो गए? मैं सिर्फ और सिर्फ आपसे प्यार करता हूँ| मैं वहाँ नेहा को कहानी सुना रहा था, जिसे सुनते हुए नेहा सो गई और तभी माधुरी वहाँ आ घमकी ... मैंने उसे नहीं बुलाया .... वो अपने आप आई थी| और हँस-हँस के वो बोल रही थी.. मैं तो बस संक्षेप में उसकी बातों का जवाब दे रहा था और कुछ नहीं... मेरे दिल में उसके लिए कुछ भी नहीं है|
भाभी: मैं नहीं मानती!!!
मैं: ठीक है... मैं ये साबित करता हूँ की मैं आपसे कितना प्यार करता हूँ|
भाभी के शब्द मुझे शूल की तरह चुभ रहे थे| मैं भाग के रसोई तक गया और वहाँ से हंसिया उठा लाया... और भाभी को दिखाते हुए बोला:
मैं: अपनी नस काट लूँ तब तो आपको यकीन हो जायेगा की मैं आपसे कितना प्यार करता हूँ?
भाभी भागती हुई मेरे पास आई और मेरे हाथ से हंसिया छुड़ा के दूर फैंक दिया:
भाभी: मानु मैं तो मजाक कर रही थी... मुझे पता है की तुम मेरे आलावा किसी से प्यार नहीं करते|
मैं: भौजी प्लीज दुबारा ऐसा मत करना वर्ना आप मुझे खो...
मैं अभी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था की उन्होंने अपना हाथ मेरे होंठों पे रख दिया और मुझे गले लगा लिया...
मुझे खुद को होश नहीं था की मैं ऐसा कदम उठाने जा रहा था... अगर मुझे कुछ हो जाता तो मेरे माँ-बाप का क्या होता? मैंने ये सब सोचा क्यों नहीं? क्या इसी को प्यार कहते हैं!!!
खेर हम अलग हुए ... भोजन के लिए अब बहुत देर हो चुकी थी ... इसलिए भाभी ने जल्दी-जल्दी भोजन बनाना शुरू किया और मैं उनके सामने बैठा उन्हें निहारने में लगा था| भाभी भी मेरी और देख के मुस्कुरा रही थी... और मेरा दिमाग रात के उपहार के लिए योजना बना रहा था| मन में एक बात की तसल्ली थी तो एक बात का डर भी| तसल्ली इस बात की कि घर में लोग होने कि वजह से कम से कम चन्दर भैया तो भाभी के साथ नहीं सोयेंगे और डर इस बात का कि अगर रात को फिर से अजय भैया और रसिका भाभी का झगड़ा शुरू हो गया तो घर के सब लोग उठ जायेंगे और मेरे सरप्राइज कि धज्जियां उड़ जाएंगी|
दोपहर के भोजन के बाद घर के सब लोग खेत में काम करने जा चुके थे, केवल मैं, भाभी, नेहा और रसिका भाभी ही रह गए थे| रैक भाभी तो हमेशा कि तरह एक चारपाई पे फ़ैल के सो गईं... नेहा मेरे साथ चिड़िया उड़ खेल रही थी... देखते ही देखते भाभी भी हमारे साथ खेलने लगीं| जब हम ऊब गए तो नेहा मेरी गोद में सर रख के लेट गई और मैं भाभी कि गोद में| तकरीबन 1 घंटा ही बीता था कि माधुरी फिर से आ गई... उसे देख मैं भाभी से अलग होक बैठ गया कि कहीं वो शक न करने लगे|
देखने में माधुरी बुरी तो नहीं थी... ठीक थी .. पर मेरे लिए तो भाभी ही सबकुछ थी| उसे सामने देख के मैं और भाभी दोनों ही अनकम्फ़ोर्टब्ले थे... क्योंकि वो उस अकड़ू ठाकुर कि बेटी थी इसलिए भाभी उसे कुछ कह भी नहीं सकती थी|
भाभी उठ के स्वयं चली गई और साथ-साथ नेहा को भी ले गई| जैसा कि आप सभी ने देखा हो ग कि फिल्म में जब लड़के वाले लड़की देखने जाते हैं तो अधिकतर माँ बाप लड़का=लड़की को अकेला छोड़ देते हैं ताकि वो आपस में कुछ बात कर सकें| परन्तु मैं सबसे ज्यादा विचिलित था .. मुझे पता था कि भाभी का मूड फिर ख़राब हो गया होगा| माधुरी मेरे पास एके बैठ गई और पूछने लगी:
माधुरी: तो मानु जी पैकिंग तो हो गई आपकी, अब कब आओगे ?
मैं: पता नहीं.... शायद अगले साल
माधुरी: अगले साल?
उसे बड़ी चिंता थी मेरे अगले साल आने कि??? इस से पहले कि हम और बात करते ... नेहा भागती हुई आई और मुझे अपने साथ खींच के लेजाने लगी| माधुरी पूछ भी रही थी कि कहाँ ले जा रही है? परन्तु नेहा बस मुझे खींचने में लगी हुई थी... मैंने माधुरी से इन्तेजार करने को कहा और नेहा के पीछे चल दिया|नेहा मेरी ऊँगली पकड़ के खींच के मुझे भुट्टे के खेत में ले आई... मैं भी हैरान था कि भला उसे यहाँ क्या काम? जब देखा तो भाभी भुट्टे के खेत में बीचों-बीच बैठी है| उन्हें देख के पहले तो मैं थोड़ा परेशान हुआ... फिर नेहा ने इशारे से ऊपर लगी भुट्टे कि एक बाली मुझे तोड़ने के लिए कहा, मैंने उसे ये बाली तोड़ के दे दी| मैंने भाभी से पूछा कि आप यहाँ क्या कर रहे हो... तो वो मुस्कुराते हुए बोली:
"तुम्हारा इन्तेजार !!!"
मैं: भौजी धीरे बोलो कोई सुन लेगा?
भाभी: कोई भी नहीं है यहाँ... सभी तालाब के पास वाले खेत में काम कर रहे हैं| काका-काकी भी वहीँ हैं अब बोलो?
मैं: और वो जो वहाँ बैठी है?
भाभी: तुम्हारी वजह से उसे कुछ नहीं कहती वर्ना ...
मैं: मेरी वजह से? मैंने कब रोक आपको?
भाभी: मैं देख रही हूँ वो तुम्हें पसंद करने लगी है!!!
मैं: आपने फिर से शुरू कर दिया?
ये कहके मैं अपने पाँव पटकता हुआ वापस आ गया... पता नहीं मुझे भाभी कि इस बात पे हमेशा मिर्ची लग जाती थी| वापस आके मैं माधुरी के सामने वाली चारपाई पे बैठ गया|
माधुरी: कहाँ गए थे आप?
मैं: नेहा को भुट्टे कि बाली तोड़ के देने गया था|
माधुरी: वो उसका क्या करेगी?
मैं: पता नहीं.. शायद खेलेगी|
माधुरी: आपके बाल खुश्क लगते हैं... अगर कहो तो मैं तेल लगा दूँ?
मैं उसकी बात सुन के हैरानी से उसे देखने लगा... आखिर ये मेरे बालों में तेल क्यों लगाना चाहती है? क्या ये मुझसे प्यार करती है? या इसके बाप ने इसे सीखा-पढ़ा के मुझे फंसने भेजा है? मुझपे कब से सुर्खाब के पर लग गए कि ये मुझमें दिलचस्पी ले रही है?
मैं: नहीं शुक्रिया ... दरअसल मैं आज अपने सर में तेल लगाना भूल गया इसलिए इतने रूखे लग रहे हैं|
एक पल को तो लगा कि मैं उसे कह दूँ कि आप मुझ में इतनी दिलचस्पी न लो पर फिर मैंने सोचा कि अगर मैं गलत निकला तो खामखा बेइज्जती हो जाएगी| तभ भाभी आ गई...
भाभी: अरे माधुरी शाम हो रही है.. ठकुराइन तुझे ढूंढती होंगी|
माधुरी: मैं तो उन्हें बता के आई हूँ|
भाभी: तेरे पापा भी आ गए होंगे...
माधुरी: अरे बाप रे.... भाभी मैं बाद में आती हूँ|
ना जाने क्यों अपने बाप का नाम सुनते ही वो भाग खड़ी हुई... पर उसके जाते ही मैंने चैन कि सांस ली|
भाभी: अब तो खुश हो ना?
मैं: (एक लम्बी साँस लेते हुए) हाँ !!!
अब मुझे सच में चिंता होने लगी थी... अगर रात का सरप्राइज फ्लॉप हो गया तो भाभी का दिल टूट जायेगा... और मैं किसी भी कीमत पे उनका दिल नहीं तोडना चाहता था|मन में बस एक ही ख़याल आ रहा था की किस्मत कभी भी किसी को दूसरा मौका नहीं देती... तो मुझे ही मौका पैदा करना होगा| मगर कैसे??? शाम होने को आई थी... सभी लोग घर लौट आये थे| पिताजी, चन्दर भैया और अजय भैया और बड़के दादा (बड़े चाचा) एक साथ बैठे कल कितने बजे निकलना है उसके बारे में बात कर रहे थे| इधर भाभी भोजन बनाने में व्यस्त थी... मैं ठीक उनके सामने बैठा था.... परन्तु अब समय था प्लान बनाने का ... इसलिए मैं चुप-चाप उठा और पिताजी के पास जाके बैठ गया| किसी भी प्लान को बनाने से पहले हालत का जायज़ा लेना जर्रोरी होता है ... इसलिए मैं उनकी बात सुनने के लिए वहीँ चुप-चाप बैठ गया| पिताजी ने अभी तक मेरे और उनके बीच हुई बात का जिक्र किसी से भी नहीं किया था!!!
पिताजी की बातों से ये तो साफ़ था की आज सब लोग छत पे नहीं बल्कि रसोई के पास वाली जगह पे ही सोने वाले हैं| अब मुझे सब से मुख्य बातों पे ध्यान देना था:
१. रसिका भाभी को अजय भैया से दूर रखना और
२. चन्दर भैया को भाभी से दूर रखना|
अगर इनमें से एक भी काम ठीक से नहीं हुआ तो भाभी का दिल टूट जायेगा| समय था मुझे अपनी पहली चाल चलने का... मैं तुरंत भाभी के पास पहुंचा और रसिका भाभी के बारे में पूछा... ये सुन के भाभी थोड़ा हैरान हुईं क्योंकि मैंने आज तक कभी भी किसी से भी रसिका भाभी के बारे में नहीं पूछा था| भाभी ने मुझे बताया की रसिका भाभी बड़े घर में अपने कमरे में सो रही हैं| मुझे ये निश्चित करना था की रसिका भाभी बड़े घर में ही रहे| मैं उनके पास पहुँचा और उन्हें जगाया, जब मैंने उनके सोने का कारन पूछा तो उन्होंने मुझे बताया कि उनका बदन टूट रहा है खेर मैंने बात को बदला और हम गप्पें हाँकने लगे... भाभी को लगा की शायद मैं कल जा रहा हूँ तो उनसे ऐसे ही आखरी बार बात करने आया हूँ| भोजन का समय हो चूका था और मुझे अपनी दूसरी चाल चलनी थी| सबसे पहले मैंने रसिका भाभी से जिद्द की कि आज हम एक साथ ही भोजन करेंगे... एक साथ भोजन का मतलब था कि आमने सामने बैठ के भोजन करना| साथ मैं तो मैं सिर्फ और सिर्फ अपनी प्यारी भाभी के साथ ही भोजन करता था| ये सुन के रसिका भाभी को थोड़ा अचरज तो हुआ पर मैंने उन्हें ज्यादा सोचने का मौका नहीं दिया और मैं हम दोनों का भोजन लेने रसोई पहुँच गया| इधर मेरी प्यारी भाभी मेरे इस बर्ताव से बड़ी अचंभित थी!!! मैं भोजन लेके रसिका भाभी के पास पहुँच गया... और मेरे पीछे-पीछे नेहा भी अपनी थाली ले के आ गई| भोजन करते समय भी रसिका भाभी और मैं गप्पें मारते रहे| भोजन समाप्त होने के बाद मैंने रसिका भाभी से उनकी थाली ले ली... भाभी मना कर रही थी पर मैं अपनी जिद्द पे अड़ा था|
मैं जल्दी से थाली रख के हाथ मुंह धोके वापस आया और अजय भैया को ढूंढने लगा.... भैया मुझे कुऐं के पास टहलते दिखाई दिए| मैं उनके पास पहुँचा और थोड़ा इधर-उधर कि बातें करने लगा... फिर मैंने रसिका भाभी कि बिमारी कि बात छेड़ दी| बात सुन के भैया को तो जैसे कोई फरक ही नहीं पड़ा... मुझे मेरा प्लान चौपट होता दिख रहा था| मुझे उम्मीद थी कि शायद ये बात जान के अजय भैया, रसिका भाभी के आस-पास ना भटकें| अब बारी थी चन्दर भैया को सेट करने की... मैं उनके पास पहुँचा... वो तो सोने की तैयारी कर रहे थे| उन्हें देख के लग रहा था की थकान उनके शरीर पे भारी हैं|घर के सभी पुरुष भोजन कर चुके थे... रसिका भाभी खाना खाते ही लेट चुकीं थी| मुझे छोड़के सभी पुरषों के बिस्तर आस-पास लगे हुए थे और वे सभी अपने-अपने बिस्तर पर लेट चुके थे... पिताजी, बड़के दादा (बड़े चाचा) सो चुके थे... अजय भैया की चारपाई चन्दर भैया के पास ही थी और वो भी लेट चुके थे|
अब केवल घर की स्त्रियां ही भोजन कर रहीं थी.... मुझे कैसे भी कर के भाभी तक ये बात पहुँचानी थी की वे आज रात के सरप्राइज के लिए तैयार रहे| इसलिए मैं टहलते-टहलते छापर के नीचे पहुँच गया... माँ भोजन समाप्त कर उठ रहीं थी| बड़की अम्मा (बड़ी चाची) भी लगभग उठने ही वालीं थी और भाभी बड़े आराम से भोजन कर रहीं थी| जब माँ और अब्द्की अम्मा (बड़ी चाची) भोजन कर के चले गए तब मैंने भाभी को आँख मारते हुए कहा:
मैं: भौजी आपका तौफा बिलकुल तैयार है|
भाभी: अच्छा?
मैं: मैं सोने जा रहा हूँ... जब आपको लगे सब सो गए हैं तब आप मुझे उठा देना|
भाभी: ठीक है!!!
भाभी के चेहरे से उनकी प्रसन्ता झलक रही थी...और उन्हें खुश देख के मैं भी खुश था| खेर मैं अपने बिस्तर पे आके लेट गया और ऐसा दिखाया की जैसे मैं घोड़े बेच के सोया हूँ पर असल में मैं उस क्षण की प्रतीक्षा कर रहा था जब भाभी मुझे उठाने आएं| करीब रात के ग्यारह बजे भाभी मुझे उठाने आईं... मैं चुप-चाप उठा और उनके पीछे-पीछे चल दिया| अंदर पहुँच के भाभी ने दरवाजा बंद किया .... जैसे ही वो पलटीं मैं उनके सामने खड़ा था| मैंने आगे बढ़के उन्हें अपने सीने से लगा लिया... भाभी मेरे इस आलिंगन से कसमसा गईं और मुझसे ऐसे चिपक गईं जैसे कोई जंगली बेल पेड़ से चिपक जाती है| आज मैं किसी भी जल्दी में नहीं था क्योंकि मैं चाहता था की भाभी हर एक सेकंड को महसूस करे और हमेशा याद रखे| मैं उन्हें इतनी खुशियाँ देना चाहता था की भाभी साड़ी उम्र इन पलों को याद रखे| करीब पाँच मिनट बाद जब हमारा आलिंगन टूटा तो मैंने भाभी से दरख्वास्त की:
मैं: भौजी... आप पलंग पे ठीक वैसे बैठ जाओ जैसे आप अपनी शादी वाली रात बैठे थे|
भाभी घुटने मोड़े ओए एक हाथ का घूँघट काढ़े पलंग पे बैठी थी... और सच बताऊँ मित्रों तो वो बिलकुल एक नई नवेली दुल्हन जैसी दिख रही थी| मैं किसी कुँवर की तरह उनकी ओर बढ़ा ओर उनकी तरफ मुँह करके ठीक सामने बैठ गया| मैंने अपने हाथ से उनका घूँघट बड़ी सहजता के साथ उठाया...भाभी की नजरें नीचे झुकीं थी... मैंने जब उनकी ठुड्डी पकड़ के ऊपर उठाई तब हमारी आँखें एक दूसरे से मिलीं और कुछ क्षण के लिए मैं उनकी आँखों में देखता ही रहा| ऐसा लगा जैसे चाँद बादलों से निकल आया हो... मैंने ध्यान दिया की भाभी ने थोड़ा बहुत साज श्रृंगार किया है... उनके होंठों पे लाली थी.... बाल सवरें और खुले हुए.... चेहरा दमक रहा था... उनके शरीर से मीठी-मीठी गुलाब जल की खुशबु आ रही थी... सच कहूँ तो मैंने भाभी को देखना कभी कल्पना भी नहीं की थी... और मैं खुद को भाभी की तारीफ करने से नहीं रोक पाया:
"आप खूबसूरत हैं इतने,
के हर शख्स की ज़ुबान पर आप ही का तराना है,
हम नाचीज़ तो कहाँ किसी के काबिल,
और आपका तो खुदा भी दीवाना है... |"
मैंने आगे बढ़ के उनके लाल होंठों को चूम लिया... मेरे दोनों हाथों ने भाभी के चेहरे को कैद कर रखा था और मैं अपने होंठों से उनके होंठों को चूस रहा था... भाभी भी जवाबी हमला कर रही थी .... कभी मैं तो कभी भाभी, हमारे थिरकते लबों को चूम और चूस रहे थे... ऐसा करीब पाँच मिनट तक चला.... जब मैं और भाभी अलग हुए तो भाभी ने कहा:
"मानु... तुम्हारे लिए कुछ है?"
मैं: क्या?
भाभी उठीं और खिड़की में रखा गिलास उठा लाईं|
मैं: दूध.... पर इसकी क्या जर्रूरत थी?
भाभी: ये एक रसम होती है की दुल्हन अपने दूल्हे को अपने हाथ से दूध पिलाये|
भाभी मेरे पास बैठ गईं और मुझे अपने हाथ से दूध पिलाया... मैंने केवल आधा गिलास ही दूध पिया और बाकी मैंने भाभी की और बढ़ा दिया....
भाभी: मानु मुझे दूध अच्छा नहीं लगता....
मैं: मेरे लिए पी लो !
और ये कह के मैंने भाभी के हाथ से गिलास ले लिया और उन्हें स्वयं पिलाने लगा...
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मेरी कोई भी प्रतिक्रिया ना पाते हुए उसने खुद ही बात खत्म की:
माधुरी: लगता है आपका बात करने का मन नहीं है|
मैं: नहीं ऐसी कोई बात नहीं... दरअसल मुझे कल वापस निकलना है.. उसकी पैकिंग भी करनी है|
माधुरी: ओह! मुझे लगा आप को मैं पसंद नहीं... मैं शाम को आती हूँ तब तक तो आपकी पैकिंग हो जाएगी ना?
मैं: हाँ
माधुरी उठ के चल दी पर एक पल के लिए मैं उसकी कही बात को सोचने लगा| आखिर उसका ये कहना की "मुझे लगा आप को मैं पसंद नहीं... " का मतलब क्या था? खेर अभी मैं इस बातको तवज्जो नहीं दे सकता था क्योंकि भाभी नाराज लग रहीं थी| मैं तुरंत भाभी के पीछे उनके घर की ओर भागा| वहाँ पहुँच के देखा तो भाभी अपनी चारपाई पर बैठी हैं ओर नेहा दूसरी चारपाई पे सो रही है|
मैं: भौजी?
भाभी: कैसी लगी माधुरी?
मैं: क्या?
भाभी: बड़ा हँस के बात कर रहे थे उससे?
मैं: भौजी ऐसा नहीं है... आपको ये लग रहा है की वो मुझे अच्छी लगती है ओर हमारे बीच में वो सब....!!!
भाभी: और नहीं तो|
मैं: भौजी आप पागल तो नहीं हो गए? मैं सिर्फ और सिर्फ आपसे प्यार करता हूँ| मैं वहाँ नेहा को कहानी सुना रहा था, जिसे सुनते हुए नेहा सो गई और तभी माधुरी वहाँ आ घमकी ... मैंने उसे नहीं बुलाया .... वो अपने आप आई थी| और हँस-हँस के वो बोल रही थी.. मैं तो बस संक्षेप में उसकी बातों का जवाब दे रहा था और कुछ नहीं... मेरे दिल में उसके लिए कुछ भी नहीं है|
भाभी: मैं नहीं मानती!!!
मैं: ठीक है... मैं ये साबित करता हूँ की मैं आपसे कितना प्यार करता हूँ|
भाभी के शब्द मुझे शूल की तरह चुभ रहे थे| मैं भाग के रसोई तक गया और वहाँ से हंसिया उठा लाया... और भाभी को दिखाते हुए बोला:
मैं: अपनी नस काट लूँ तब तो आपको यकीन हो जायेगा की मैं आपसे कितना प्यार करता हूँ?
भाभी भागती हुई मेरे पास आई और मेरे हाथ से हंसिया छुड़ा के दूर फैंक दिया:
भाभी: मानु मैं तो मजाक कर रही थी... मुझे पता है की तुम मेरे आलावा किसी से प्यार नहीं करते|
मैं: भौजी प्लीज दुबारा ऐसा मत करना वर्ना आप मुझे खो...
मैं अभी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था की उन्होंने अपना हाथ मेरे होंठों पे रख दिया और मुझे गले लगा लिया...
मुझे खुद को होश नहीं था की मैं ऐसा कदम उठाने जा रहा था... अगर मुझे कुछ हो जाता तो मेरे माँ-बाप का क्या होता? मैंने ये सब सोचा क्यों नहीं? क्या इसी को प्यार कहते हैं!!!
खेर हम अलग हुए ... भोजन के लिए अब बहुत देर हो चुकी थी ... इसलिए भाभी ने जल्दी-जल्दी भोजन बनाना शुरू किया और मैं उनके सामने बैठा उन्हें निहारने में लगा था| भाभी भी मेरी और देख के मुस्कुरा रही थी... और मेरा दिमाग रात के उपहार के लिए योजना बना रहा था| मन में एक बात की तसल्ली थी तो एक बात का डर भी| तसल्ली इस बात की कि घर में लोग होने कि वजह से कम से कम चन्दर भैया तो भाभी के साथ नहीं सोयेंगे और डर इस बात का कि अगर रात को फिर से अजय भैया और रसिका भाभी का झगड़ा शुरू हो गया तो घर के सब लोग उठ जायेंगे और मेरे सरप्राइज कि धज्जियां उड़ जाएंगी|
दोपहर के भोजन के बाद घर के सब लोग खेत में काम करने जा चुके थे, केवल मैं, भाभी, नेहा और रसिका भाभी ही रह गए थे| रैक भाभी तो हमेशा कि तरह एक चारपाई पे फ़ैल के सो गईं... नेहा मेरे साथ चिड़िया उड़ खेल रही थी... देखते ही देखते भाभी भी हमारे साथ खेलने लगीं| जब हम ऊब गए तो नेहा मेरी गोद में सर रख के लेट गई और मैं भाभी कि गोद में| तकरीबन 1 घंटा ही बीता था कि माधुरी फिर से आ गई... उसे देख मैं भाभी से अलग होक बैठ गया कि कहीं वो शक न करने लगे|
देखने में माधुरी बुरी तो नहीं थी... ठीक थी .. पर मेरे लिए तो भाभी ही सबकुछ थी| उसे सामने देख के मैं और भाभी दोनों ही अनकम्फ़ोर्टब्ले थे... क्योंकि वो उस अकड़ू ठाकुर कि बेटी थी इसलिए भाभी उसे कुछ कह भी नहीं सकती थी|
भाभी उठ के स्वयं चली गई और साथ-साथ नेहा को भी ले गई| जैसा कि आप सभी ने देखा हो ग कि फिल्म में जब लड़के वाले लड़की देखने जाते हैं तो अधिकतर माँ बाप लड़का=लड़की को अकेला छोड़ देते हैं ताकि वो आपस में कुछ बात कर सकें| परन्तु मैं सबसे ज्यादा विचिलित था .. मुझे पता था कि भाभी का मूड फिर ख़राब हो गया होगा| माधुरी मेरे पास एके बैठ गई और पूछने लगी:
माधुरी: तो मानु जी पैकिंग तो हो गई आपकी, अब कब आओगे ?
मैं: पता नहीं.... शायद अगले साल
माधुरी: अगले साल?
उसे बड़ी चिंता थी मेरे अगले साल आने कि??? इस से पहले कि हम और बात करते ... नेहा भागती हुई आई और मुझे अपने साथ खींच के लेजाने लगी| माधुरी पूछ भी रही थी कि कहाँ ले जा रही है? परन्तु नेहा बस मुझे खींचने में लगी हुई थी... मैंने माधुरी से इन्तेजार करने को कहा और नेहा के पीछे चल दिया|नेहा मेरी ऊँगली पकड़ के खींच के मुझे भुट्टे के खेत में ले आई... मैं भी हैरान था कि भला उसे यहाँ क्या काम? जब देखा तो भाभी भुट्टे के खेत में बीचों-बीच बैठी है| उन्हें देख के पहले तो मैं थोड़ा परेशान हुआ... फिर नेहा ने इशारे से ऊपर लगी भुट्टे कि एक बाली मुझे तोड़ने के लिए कहा, मैंने उसे ये बाली तोड़ के दे दी| मैंने भाभी से पूछा कि आप यहाँ क्या कर रहे हो... तो वो मुस्कुराते हुए बोली:
"तुम्हारा इन्तेजार !!!"
मैं: भौजी धीरे बोलो कोई सुन लेगा?
भाभी: कोई भी नहीं है यहाँ... सभी तालाब के पास वाले खेत में काम कर रहे हैं| काका-काकी भी वहीँ हैं अब बोलो?
मैं: और वो जो वहाँ बैठी है?
भाभी: तुम्हारी वजह से उसे कुछ नहीं कहती वर्ना ...
मैं: मेरी वजह से? मैंने कब रोक आपको?
भाभी: मैं देख रही हूँ वो तुम्हें पसंद करने लगी है!!!
मैं: आपने फिर से शुरू कर दिया?
ये कहके मैं अपने पाँव पटकता हुआ वापस आ गया... पता नहीं मुझे भाभी कि इस बात पे हमेशा मिर्ची लग जाती थी| वापस आके मैं माधुरी के सामने वाली चारपाई पे बैठ गया|
माधुरी: कहाँ गए थे आप?
मैं: नेहा को भुट्टे कि बाली तोड़ के देने गया था|
माधुरी: वो उसका क्या करेगी?
मैं: पता नहीं.. शायद खेलेगी|
माधुरी: आपके बाल खुश्क लगते हैं... अगर कहो तो मैं तेल लगा दूँ?
मैं उसकी बात सुन के हैरानी से उसे देखने लगा... आखिर ये मेरे बालों में तेल क्यों लगाना चाहती है? क्या ये मुझसे प्यार करती है? या इसके बाप ने इसे सीखा-पढ़ा के मुझे फंसने भेजा है? मुझपे कब से सुर्खाब के पर लग गए कि ये मुझमें दिलचस्पी ले रही है?
मैं: नहीं शुक्रिया ... दरअसल मैं आज अपने सर में तेल लगाना भूल गया इसलिए इतने रूखे लग रहे हैं|
एक पल को तो लगा कि मैं उसे कह दूँ कि आप मुझ में इतनी दिलचस्पी न लो पर फिर मैंने सोचा कि अगर मैं गलत निकला तो खामखा बेइज्जती हो जाएगी| तभ भाभी आ गई...
भाभी: अरे माधुरी शाम हो रही है.. ठकुराइन तुझे ढूंढती होंगी|
माधुरी: मैं तो उन्हें बता के आई हूँ|
भाभी: तेरे पापा भी आ गए होंगे...
माधुरी: अरे बाप रे.... भाभी मैं बाद में आती हूँ|
ना जाने क्यों अपने बाप का नाम सुनते ही वो भाग खड़ी हुई... पर उसके जाते ही मैंने चैन कि सांस ली|
भाभी: अब तो खुश हो ना?
मैं: (एक लम्बी साँस लेते हुए) हाँ !!!
अब मुझे सच में चिंता होने लगी थी... अगर रात का सरप्राइज फ्लॉप हो गया तो भाभी का दिल टूट जायेगा... और मैं किसी भी कीमत पे उनका दिल नहीं तोडना चाहता था|मन में बस एक ही ख़याल आ रहा था की किस्मत कभी भी किसी को दूसरा मौका नहीं देती... तो मुझे ही मौका पैदा करना होगा| मगर कैसे??? शाम होने को आई थी... सभी लोग घर लौट आये थे| पिताजी, चन्दर भैया और अजय भैया और बड़के दादा (बड़े चाचा) एक साथ बैठे कल कितने बजे निकलना है उसके बारे में बात कर रहे थे| इधर भाभी भोजन बनाने में व्यस्त थी... मैं ठीक उनके सामने बैठा था.... परन्तु अब समय था प्लान बनाने का ... इसलिए मैं चुप-चाप उठा और पिताजी के पास जाके बैठ गया| किसी भी प्लान को बनाने से पहले हालत का जायज़ा लेना जर्रोरी होता है ... इसलिए मैं उनकी बात सुनने के लिए वहीँ चुप-चाप बैठ गया| पिताजी ने अभी तक मेरे और उनके बीच हुई बात का जिक्र किसी से भी नहीं किया था!!!
पिताजी की बातों से ये तो साफ़ था की आज सब लोग छत पे नहीं बल्कि रसोई के पास वाली जगह पे ही सोने वाले हैं| अब मुझे सब से मुख्य बातों पे ध्यान देना था:
१. रसिका भाभी को अजय भैया से दूर रखना और
२. चन्दर भैया को भाभी से दूर रखना|
अगर इनमें से एक भी काम ठीक से नहीं हुआ तो भाभी का दिल टूट जायेगा| समय था मुझे अपनी पहली चाल चलने का... मैं तुरंत भाभी के पास पहुंचा और रसिका भाभी के बारे में पूछा... ये सुन के भाभी थोड़ा हैरान हुईं क्योंकि मैंने आज तक कभी भी किसी से भी रसिका भाभी के बारे में नहीं पूछा था| भाभी ने मुझे बताया की रसिका भाभी बड़े घर में अपने कमरे में सो रही हैं| मुझे ये निश्चित करना था की रसिका भाभी बड़े घर में ही रहे| मैं उनके पास पहुँचा और उन्हें जगाया, जब मैंने उनके सोने का कारन पूछा तो उन्होंने मुझे बताया कि उनका बदन टूट रहा है खेर मैंने बात को बदला और हम गप्पें हाँकने लगे... भाभी को लगा की शायद मैं कल जा रहा हूँ तो उनसे ऐसे ही आखरी बार बात करने आया हूँ| भोजन का समय हो चूका था और मुझे अपनी दूसरी चाल चलनी थी| सबसे पहले मैंने रसिका भाभी से जिद्द की कि आज हम एक साथ ही भोजन करेंगे... एक साथ भोजन का मतलब था कि आमने सामने बैठ के भोजन करना| साथ मैं तो मैं सिर्फ और सिर्फ अपनी प्यारी भाभी के साथ ही भोजन करता था| ये सुन के रसिका भाभी को थोड़ा अचरज तो हुआ पर मैंने उन्हें ज्यादा सोचने का मौका नहीं दिया और मैं हम दोनों का भोजन लेने रसोई पहुँच गया| इधर मेरी प्यारी भाभी मेरे इस बर्ताव से बड़ी अचंभित थी!!! मैं भोजन लेके रसिका भाभी के पास पहुँच गया... और मेरे पीछे-पीछे नेहा भी अपनी थाली ले के आ गई| भोजन करते समय भी रसिका भाभी और मैं गप्पें मारते रहे| भोजन समाप्त होने के बाद मैंने रसिका भाभी से उनकी थाली ले ली... भाभी मना कर रही थी पर मैं अपनी जिद्द पे अड़ा था|
मैं जल्दी से थाली रख के हाथ मुंह धोके वापस आया और अजय भैया को ढूंढने लगा.... भैया मुझे कुऐं के पास टहलते दिखाई दिए| मैं उनके पास पहुँचा और थोड़ा इधर-उधर कि बातें करने लगा... फिर मैंने रसिका भाभी कि बिमारी कि बात छेड़ दी| बात सुन के भैया को तो जैसे कोई फरक ही नहीं पड़ा... मुझे मेरा प्लान चौपट होता दिख रहा था| मुझे उम्मीद थी कि शायद ये बात जान के अजय भैया, रसिका भाभी के आस-पास ना भटकें| अब बारी थी चन्दर भैया को सेट करने की... मैं उनके पास पहुँचा... वो तो सोने की तैयारी कर रहे थे| उन्हें देख के लग रहा था की थकान उनके शरीर पे भारी हैं|घर के सभी पुरुष भोजन कर चुके थे... रसिका भाभी खाना खाते ही लेट चुकीं थी| मुझे छोड़के सभी पुरषों के बिस्तर आस-पास लगे हुए थे और वे सभी अपने-अपने बिस्तर पर लेट चुके थे... पिताजी, बड़के दादा (बड़े चाचा) सो चुके थे... अजय भैया की चारपाई चन्दर भैया के पास ही थी और वो भी लेट चुके थे|
अब केवल घर की स्त्रियां ही भोजन कर रहीं थी.... मुझे कैसे भी कर के भाभी तक ये बात पहुँचानी थी की वे आज रात के सरप्राइज के लिए तैयार रहे| इसलिए मैं टहलते-टहलते छापर के नीचे पहुँच गया... माँ भोजन समाप्त कर उठ रहीं थी| बड़की अम्मा (बड़ी चाची) भी लगभग उठने ही वालीं थी और भाभी बड़े आराम से भोजन कर रहीं थी| जब माँ और अब्द्की अम्मा (बड़ी चाची) भोजन कर के चले गए तब मैंने भाभी को आँख मारते हुए कहा:
मैं: भौजी आपका तौफा बिलकुल तैयार है|
भाभी: अच्छा?
मैं: मैं सोने जा रहा हूँ... जब आपको लगे सब सो गए हैं तब आप मुझे उठा देना|
भाभी: ठीक है!!!
भाभी के चेहरे से उनकी प्रसन्ता झलक रही थी...और उन्हें खुश देख के मैं भी खुश था| खेर मैं अपने बिस्तर पे आके लेट गया और ऐसा दिखाया की जैसे मैं घोड़े बेच के सोया हूँ पर असल में मैं उस क्षण की प्रतीक्षा कर रहा था जब भाभी मुझे उठाने आएं| करीब रात के ग्यारह बजे भाभी मुझे उठाने आईं... मैं चुप-चाप उठा और उनके पीछे-पीछे चल दिया| अंदर पहुँच के भाभी ने दरवाजा बंद किया .... जैसे ही वो पलटीं मैं उनके सामने खड़ा था| मैंने आगे बढ़के उन्हें अपने सीने से लगा लिया... भाभी मेरे इस आलिंगन से कसमसा गईं और मुझसे ऐसे चिपक गईं जैसे कोई जंगली बेल पेड़ से चिपक जाती है| आज मैं किसी भी जल्दी में नहीं था क्योंकि मैं चाहता था की भाभी हर एक सेकंड को महसूस करे और हमेशा याद रखे| मैं उन्हें इतनी खुशियाँ देना चाहता था की भाभी साड़ी उम्र इन पलों को याद रखे| करीब पाँच मिनट बाद जब हमारा आलिंगन टूटा तो मैंने भाभी से दरख्वास्त की:
मैं: भौजी... आप पलंग पे ठीक वैसे बैठ जाओ जैसे आप अपनी शादी वाली रात बैठे थे|
भाभी घुटने मोड़े ओए एक हाथ का घूँघट काढ़े पलंग पे बैठी थी... और सच बताऊँ मित्रों तो वो बिलकुल एक नई नवेली दुल्हन जैसी दिख रही थी| मैं किसी कुँवर की तरह उनकी ओर बढ़ा ओर उनकी तरफ मुँह करके ठीक सामने बैठ गया| मैंने अपने हाथ से उनका घूँघट बड़ी सहजता के साथ उठाया...भाभी की नजरें नीचे झुकीं थी... मैंने जब उनकी ठुड्डी पकड़ के ऊपर उठाई तब हमारी आँखें एक दूसरे से मिलीं और कुछ क्षण के लिए मैं उनकी आँखों में देखता ही रहा| ऐसा लगा जैसे चाँद बादलों से निकल आया हो... मैंने ध्यान दिया की भाभी ने थोड़ा बहुत साज श्रृंगार किया है... उनके होंठों पे लाली थी.... बाल सवरें और खुले हुए.... चेहरा दमक रहा था... उनके शरीर से मीठी-मीठी गुलाब जल की खुशबु आ रही थी... सच कहूँ तो मैंने भाभी को देखना कभी कल्पना भी नहीं की थी... और मैं खुद को भाभी की तारीफ करने से नहीं रोक पाया:
"आप खूबसूरत हैं इतने,
के हर शख्स की ज़ुबान पर आप ही का तराना है,
हम नाचीज़ तो कहाँ किसी के काबिल,
और आपका तो खुदा भी दीवाना है... |"
मैंने आगे बढ़ के उनके लाल होंठों को चूम लिया... मेरे दोनों हाथों ने भाभी के चेहरे को कैद कर रखा था और मैं अपने होंठों से उनके होंठों को चूस रहा था... भाभी भी जवाबी हमला कर रही थी .... कभी मैं तो कभी भाभी, हमारे थिरकते लबों को चूम और चूस रहे थे... ऐसा करीब पाँच मिनट तक चला.... जब मैं और भाभी अलग हुए तो भाभी ने कहा:
"मानु... तुम्हारे लिए कुछ है?"
मैं: क्या?
भाभी उठीं और खिड़की में रखा गिलास उठा लाईं|
मैं: दूध.... पर इसकी क्या जर्रूरत थी?
भाभी: ये एक रसम होती है की दुल्हन अपने दूल्हे को अपने हाथ से दूध पिलाये|
भाभी मेरे पास बैठ गईं और मुझे अपने हाथ से दूध पिलाया... मैंने केवल आधा गिलास ही दूध पिया और बाकी मैंने भाभी की और बढ़ा दिया....
भाभी: मानु मुझे दूध अच्छा नहीं लगता....
मैं: मेरे लिए पी लो !
और ये कह के मैंने भाभी के हाथ से गिलास ले लिया और उन्हें स्वयं पिलाने लगा...
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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