Monday, August 3, 2015

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--188

  FUN-MAZA-MASTI

   फागुन के दिन चार--188


 एक नयी सुबह



कोई और वक्त होता तो मैं उसकी बात पे मुस्कराता , लेकिन आज बामशक्कत मैंने आँखे नम होने से रोकी।

और वो बाथरूम में घुस गयी। दरवाजा खोलने के लिए उसने अनजाने में दायां हाथ इस्तेमाल किया और जो चिलक उठी तो बड़ी मुश्किल से उसने चेहरे पर आये दर्द के अहसास को तुरंत पोछ के साफ किया।


कुछ देर बाद ही हुक्मनामा आया , बाथरूम के बंद दरवाजे के पीछे से ,


" चाय मिलेगी क्या ?

" एकदम ,गरमगरम कड़क , *** गढ़ स्पेशल। " मैंने जवाब दिया और किचेन में लग लिया। भाभी का मेसेज आया था की वो लोग बस १५ -२० मिनट में पहुँच रहे हैं और मैं गुड्डी से कह दूँ चाय बनाने के लिए। वो लोग बहुत चयासी हो रही हैं। और मैंने पानी बढ़ा दिया।


कुछ देर में गुड्डी बाथरूम से निकली , अपने कमरे में गयी और जब तक बाहर निकली तो टेबल पर टीकोजी से ढंकी केटली में चाय हाजिर थी , और साथ में मैं,खड़ा , कंधे पर छोटी टॉवेल,एकदम रामू काका की तरह।

और गुड्डी ने बैठ कर जैसे ही मुझे देखा , बस बेसाख़्ता मुस्करा पड़ी।


जोश का एक शेर याद आया ,

यह बात, यह तबस्सुम, यह नाज, यह निगाहें,
आखिर तुम्हीं बताओं क्यों कर न तुमको चाहे।


लेकिन फिर याद आया , रामू काका शेर थोड़े ही पढ़ते हैं।

और गुड्डी ने हुक्म दिया , अब चलो तुम भी पी ही लो।

बस मैं बैठ गया , और चाय ढालने के लिए जो केतली पकड़ी तो उसकी आँखों ने मना कर दिया और ,और फिर बाएं हाथ से ,… बाएं हाथ के इस्तेमाल में वो एकदम सौरभ गांगुली हो रही थी।

चाय की पहली चुस्की के बाद ही उसने मुंह बनाया और बोली , चीनी कम.

इस जुमले ने क्या क्या न याद दिलाया , ये बात रोज मैं बोलता था जब गुड्डी बेड टी लेकर आती थी और ये बहाना होता था गुलाब की टटकी पंखुड़ियों से एक चुम्बन चुराने का।

वह चीनी का डिब्बा बढ़ा देती थी , अपने सुर्खरू लब।

और आज मैंने अपने होंठ।

होंठो का वो आलिंगन कब तक चलता पता नहीं , लेकिन बाहर दरवाजे पर घंटी बज गयी। भाभी आ गयी थी।

मैं उठ के दरवाजा खोलने गया और बेसाख़्ता मेरे दिल में ख्याल आया ,पता नही रीत करन कैसे होंगे। अब कुछ देर में उनके फ्लाइट का टाइम होगा।










( अब बिचारे आनंद बाबू के पास वो जादुई शीशा तो हैं नहीं ,जिसमें कहीं का नजारा नजर आ जाय , लेकिन उन्हें दरवाजे पर छोड़ कर चलते हैं हजीरा ,रीत के पास जहाँ वो मीनल और करन के साथ बेख्वाब नींद में ग़ाफ़िल थी , क्या हो रहा है वहां ).


 हमला



गाढ़ी काली स्याही की चादर में लिपटा अरब सागर गहरी नींद में सो रहा था। शांत ,थका। बस कभी कभी छोटी छोटी कोई लहर चली आती। ऊपर आसमान भी जैसे उसी का प्रतिविम्ब हो रहा था।

बादलों ने चादर तान रखी थी और न चाँद न तारे ,सिर्फ काला आसमान।

हवा भी एकदम बंद थी।

जैसे कुछ होने की आशंका से चाँद अपना काम निपटा के जल्दी जल्दी पग भरता ,अपने घर की ओर भागा जा रहा था। पर रात अभी बाकी थी।

आखिरी पहर था रात का।

प्रत्युषा ने अभी अंगड़ाई भी लेनी नहीं शुरू की थी। और वैसे भी पश्चिमी तट पर सुबह थोड़ी देर से ही होती थी।

और अरब सागर के उस कोने में वैसे भी कोई आबादी नहीं थी , बस सन्नाटा था।


लेकिन तभी एक काली नीली रंग की इंफ्लेटबेल बोट क्षितिज पर उभरी। लहरों के बीच छुपी ढकी।

करीब ५ मीटर लम्बी , ढाई मीटर चौड़ी।

जिसे मिलेट्री आपरेशन के बारे में थोड़ा भी ज्ञान होता वो पहचान लेता की ये सी आर आर सी ( कॉम्पैक्ट रबर रेडिंग क्राफ्ट ) है , या जिसे अकसर ज़ोडियक के नाम से भी जानते है। यह उछलती कूदती लहरों पर भी तैर लेती है और अगर जहाँ चार फिट तक ही पानी हो वहां भी उसे समस्या नहीं आती।

कैमोफ्लाज रंग के चलते रात के अँधेरे में पास से भी उसका पता करना लगभग असंभव था।

तट पर आने के पहले वो कुछ देर ठिठकी , ठहरी और जब उसे लग गया की इस काली रात में उसे किसी ने नहीं देखा तो , दो आदमी उसमे से निकल कर हलके पानी में कुछ देर तैर कफिर चल के तट पर आगये।

काली डुंगरी के साथ उनके चेहरे बालाक्लवा से ढंके थे और उनपर भी कैमोफ्लाज पेंट पुता हुआ था।

आँखों पर बहुत हलकी नाइट विजन गॉगल्स बी एन वी डी ( बयानोक्यूलर नाइट विजन डिवाइस ) लगे हुए थे जिसका तकनीकी नाम एल 3 एन / पी वी एस 31 है।

वह दोनों स्पेशल सर्विस ग्रुप ( नेवी ) के चुने हुए लोगों में से थे। १२ घंटे में ५५ किलोमीटर मार्च, सारे सामान के साथ आधे घंटे में ८ किलोमीटर दौड़ना , अंडरवाटर डाइविंग के साथ साथ हाई अल्टीट्यूड हाई ओपनिंग और है अल्टीट्यूड लो ओपनिंग पैराशूट ट्रेनिंग उन्होंने डिस्टिंक्शन के साथ पूरी की थी।

लेकिन उससे महत्वपूर्ण बात ये थी की उन्होंने अमेरिकन नेवी सील्स के साथ ट्रेनिंग की थी और उन गिने चुने लोगों में थे जिन्हे २४ हफ्ते की बड्स ट्रेनिंग ( बेसिक अंडरवाटर डिमॉलिशन ट्रेनिंग ) के साथ साथ सील क्वालिफिकेशन ट्रेनिंग ( एस क्यू टी ) और सील ट्रूप ट्रेनिंग ( एस टी टी ) भी की।

नेवी सील के साथ कई बार स्पेशल बोट सर्विस ( एस बी एस ) जो ब्रिटिश नेवी की स्पेशल यूनिट है ,उन्होंने ज्वाइंट एक्सरसाइज में भाग लिया था। अभी कुछ दिनों पहले तक वह कराची में पी एन एस इकबाल के पार्ट थे , लेकिन उसके बाद कराची में ही बेस्ड के स्पेशल अंडरकवर आपरेशन के पार्ट हो गए थे जिसके बारे में आई एस आई के भी कुछ लोगों को ही पता था।

वह इन्फ्लेटेबल बोट एक मिडगेट सबमैरीन के जरिये आई थी और सी कोस्ट के कुछ दूर पहले कुछ देर के लिए सरफेस हुयी थी जहाँ पर उसने इन्फ्लेटेबल बोट उतारी थी।

टारगेट सी कोस्ट से ४५० मीटर दूर था।

घुप्प अँधेरे में भी वो साफ दिख रहा था। 




टारगेट



टारगेट सी कोस्ट से ४५० मीटर दूर था।

घुप्प अँधेरे में भी वो साफ दिख रहा था।


सी कोस्ट से ही वो क्राल करके आगे बढ़ रहे थे , हालंकि उनके नाइट विजन से साफ दिख रहा था की आस पास कोई नहीं है। शोल्डर ,हिप्स एक लेवल पर थे और वो सिर्फ ऐंकल को पुश करते करते बढ़ रहे थे।

करीब २०० मीटर क्राल करके वो रुक गए। टारगेट अब २५० मीटर के आसपास था। सारी खिड़कियां बंद थी और पर्दों से ढंकी। सिर्फ एक खिड़की का पर्दा कुछ हटा था।

उनका अंदाज था की एक्सटर्नल सिक्योरटी पैरामीटर २५० मीटर पर सेट किया गया होगा , इसलिए उसके १०-१५ मीटर पहले ही वो रुक गए।


 सेफ हाउस





हाथी को कहाँ छुपा सकते हैं ,

हाथियों के बीच। ये एक बड़ा पुराना सवाल जवाब है।

लेकिन अगर उस हाथी के साथ आप दो चार एक्स्ट्रा महावत रखें , उसका हौदा बुलेट प्रूफ बना दें। तो क्या वो हाथी बाकी हाथियों में छिप सकेगा ?


बिलकुल यही समस्या सेफ हाउस की होती है।

उसकी सबसे बड़ी सिक्योरिटी है , इंटेलिजेंस। उसके बारे में किसी को पता न चले। और दूसरी है आसपास के माहौल में वो खप जाय।

उसके साथ वो चीज भी जुडी है जो सारे सिक्योरिटी आपरेटस के साथ जुडी है ,सिक्योरटी का लेवल ,थ्रेट परसेप्शन के हिसाब से होता है। अगर थ्रेट परसेप्शन काम हो गया है तो सिक्योरिटी का लेवल जाएगा।

और दूसरी बात मौके की है , अगर बहुत पहले से मालूम है की ऐसा कुछ इंतजाम करना है , जैसे किसी टेररिस्ट को पकड़ कर इंट्रोगेट करना है और उसे छुड़ाने वाले ग्रुप के हमले की आशंका है तो पहले से ही तैयारी की जा सकती है।

लेकिन अगर कोई मेहमान अचानक आ जाए तो फिर दाल में पानी बढ़ाने के अलावा कोई चारा नहीं बचता।


इस हालत में भी यही हुआ।

जब करन ,रीत और मीनल चले थे बड़ोदरा से , तो किसी को नहीं मालूम था की ऐसी कोई जरूरत पड़ेगी। हाँ ,जब रास्ते में कालिया के स्ट्राइक की बात पता चली तो ये तय हुआ की मीनल को रास्ते में उतार लिया जाय और उसे हजीरा में एक रेस्ट हाउस में रखा जाय जिसे सेफ हाउस में कन्वर्ट कर दिया गया। मीनल की एक सहेली सूरत में आई पी एस ट्रेनी थी और उस से ये चीज और आसान हो गयी।

लेकिन मीनल का थ्रेट परसेप्शन बहुत ज्यादा नहीं था , क्योंकि उसे रीत के साथ लोगो ने देखा जरूर था पर कालिया एक पेड असेसेन था जो सिर्फ एक बार स्ट्राइक करता था और वो उसने कर दिया था। उम्मीद ये थी की वो शायद इसके बाद देश के बाहर चला गया हो। लेकिन तब भी जब तक मुम्बई का आपरेशन पूरा न हो यानी एकदो दिन के लिए मीनल को आइसोलेट कर के सिक्योरटी के साथ रखना था। इसलिए उसे एक आइसोलेटड रेस्ट हाउस दे दिया गया , जिसमें और लोग नहीं रह रहे थे। उसके साथ कुछ देर तक उसकी सहेली थी फिर एक महिला पी एस ओ ( पर्सनल सिक्योरटी आफिसर ) उसके साथ दे दिया गया था साथ में इलेक्ट्रानिक सरवायलेन्स और एक पुलिस मोबाइल जो हर दो घंटे पर वहां चक्कर काटती।

और उस से काम बखूबी चल भी गया।

ये इंतजाम लोकल पुलिस का था जिससे ज्यादा शेयर किया भी नहीं जा सकता था।

और करन रीत के मीनल के पास एक दिन रुकने की बात भी जिस सुबह वो लोग आई एन एस आश्विन , नेवी के हॉस्पिटल से रिलीज हो के चले उसी समय पता चली। उस समय वो लोग नेवल सिक्योरिटी के अधीन थे।

उन के साथ भी मुम्बई के सफल आपरेशन के बाद , सिक्योरिटी थ्रेट लेवल लो कर दिया गया था क्योंकि काफी सारे लोग पकड़े जा चुके थे।

दूसरी बात ये भी थी एजेंट्स का सारा पकड़ने, समेटने और उन्हें इंट्रोगेट करने के चक्कर में आई बी भी पूरी तरह ओवर स्ट्रेच्ड थी। तब भी एक डिप्टी डायरेकटर लेवल के आफिसर ने सारा सिक्योरटी डिटेल रिव्यू किया था और कुछ चीजों में उन्हें फर्दर स्ट्रेंथन भी किया।

सेफ हाउस में चार पांच चीजें इम्पार्टेंट होती हैं ,जैसे लोकेशन, इलेक्ट्रानिक सरवायलेन्स, ट्रेंड सिक्योरिटी पर्सोनल , रिजक्यू रिस्पांस टीम और कमांड कंट्रोल सेंटर और वहां से कम्युनिकेशन।



लेकिन सबसे इम्पोर्टेंट है लोकशन।

सेफ हाउस की सबसे बड़ी मजबूरी है वहां खुल के सिक्योरिटी ज्यादा डिप्लॉय नहीं की जा सकती , वरना ये तो बोर्ड लगाना हो जाएगा की हमारा एक इम्पोरटेंट असेट यहाँ है। इसलिए लोकेशन की इम्पोरटेंस बढ़ जाती है। और सिक्योरिटी एजेंसीज हमेशा उलटा सोचते हैं , इसलिए पहले ये देखा जाता है की हमला किधर से होगा। अगर हमला एक साथ तीन चार दिशाओं से हो सकता हो तो उसे तुरंत खारिज कर दिया जाता है।

और सबसे अच्छी लोकेशन वो होती है जिससे आने जाने का रास्ता सिर्फ एक ओर हो और उसे ट्रैक करना और सील करना ज्यादा आसान होता है।

इस मामले में ये लोकेशन बेहतर थी इसके पीछे की ओर समुद्र था और सामने से सिर्फ एक आने जाने की सड़क थी , और उसी से खतरे के आने की आशंका थी और उसे ट्रैक करना सुगम भी था।

ये नहीं था की समुद्र के रास्ते का असेसमेंट नहीं हुआ था।

नेवल सिक्योरटी और कोस्ट गार्ड दोनों ने उसका थ्रेट असेसमेंट किया था और उसे लो थ्रेट बताया था। इसके पहले २६/११ को हुए हमले में 'वो ' फिशिंग बोट से मुम्बई में मच्छीमार नगर में रात में आये थे जहाँ सैकड़ों मछली मारने की नावें रात में आती हैं। फिर उन्होंने एक अपहृत हिन्दुस्तानी नाव इस्तेमाल की थी। इसलिए उन नावों के बीच उनकी नाव भी आ गयी थी।

और इस जगह कोई मछली मारने की नावों की जेट्टी आसपास पचास साठ किलोमीटर तक नहीं थी।

बीस किलोमीटर दूर एक फर्टिलाइजर जेटी थी ( जहाँ नेवल शिप से रीत और करन आये थे ) और दूसरी ओर एक नया बन रहा पोर्ट था। दोनों को तीन दिन के लिए बंद कर दिया गया था। और वहां वैसे भी बड़ेकार्गो शिप ही आते थे।

समुद्र का तट राकी था और दिन में १६ -१८ घंटे समुद्र चापी रहता था। और किनारे पर गहराई ४-५ फिट ही थी करीब ६०० मीटर तक। इसलिए वहां लैंडिंग की सम्भावनाये नगण्य थी।

फिर भी तट से करीब ८-१० किलोमीटर दूर , कोस्टगार्ड की बोट्स नजर बनाये हुए थीं। ( चापी समुद्र , रॉक्स और कम गहराई के कारण उन्हें भी दूर से ही नजर रखना था ).


सड़क की ओर एक कमांड पोस्ट बना दी गयी थी और आधी सड़क को रिपयेअर के नाम पे बंद कर दिया गया था , जिसे कोई बड़ी वेहिकल जैसे ट्रक आदि एक्सप्लोसिव के साथ न आ सके। वहां से सेफ हाउस के बीच कम्युनिकेशन लाइन भी बना दी गयी।

उस रेस्ट हाउस के चारो ओर फेंसिंग पहले से थी , मीनल के आने के बाद उसे और स्ट्रांग कर दिया गया था और सरवायलेन्स कैमरे भी फिट कर दिए गए थे। 




जब करन और रीत आये तो उसे एलेक्ट्रिफाई भी कर दिया गया।




सिक्योरिटी अरेंजमेंट



उस रेस्ट हाउस के चारो ओर फेंसिंग पहले से थी , मीनल के आने के बाद उसे और स्ट्रांग कर दिया गया था और सरवायलेन्स कैमरे भी फिट कर दिए गए थे।

जब करन और रीत आये तो उसे एलेक्ट्रिफाई भी कर दिया गया।
घर के अंदर ही एक कंट्रोल रूम भी बना दिया गया था ,एक बाहरी कमरे में जहाँ सारे कैमरे की फीड्स आती थीं।
सरवायलेन्स कैमरे 110 डिग्री तक रोटेट कर सकते थे ,और कम रोशनी में भी काम कर सकते थे। इसके साथ ही वो और इलेक्ट्रिफाइड फेन्स ,एक ऑक्सिलरी सोर्स आफ पावर से भी जुड़े थे ,जिससे अगर में पॉवर सोर्स किसी तरह डिस्कनेक्ट हो जाय तो भी वो आधे घंटे तक काम कर सकते थे।

कैमरे एक प्रोटेक्टिव डिवाइस से कवर थे , जिससे तेज हवा, बर्ड हिट आदि से वो डैमेज न हों। वो सारे कैमरे आई पी बेस्ड थे यानी उन की फीड इंटरनेट के जरिये कंट्रोल रूम तक पहुंचती थी।

कंट्रोल रूम में १४ विंडो कंट्रोल मॉनिटर पर लगी थीं ,जिससे सारे कैमरे अलग अलग देखे जा सकते थे। इसके साथ साथ वहां से कैमरे का रोटेशन ,ज़ूम ,एंगल इत्यादि कंट्रोल किया जाता था। वहां पर ३ दिन की रिकॉर्डिंग हार्ड ड्राइव पे रखी जा सकती थी और ४ घंटे की रिकॉर्डिंग सर्वर में भी रहती थी ,जिसे रिवाइंड कर के किसी भी एरिया को देखा जा सकता था।


इस कंट्रोल रूम से बाहरी सड़क के पास जहाँ 'सड़क बन रही है ' के नाम पर आधी सड़क बंद कर के सेफ हाउस की एंट्री कंटोल की जाती थी ,वहां से भी था। एक बुलडोजर पर वहां एक स्पेशल फोर्स का आदमी था ,जो 'फुल्ली इक्विप्ड ' था और पास में रखी मोटर साइकिल से ७ मिनट में किसी इमरजंसी में 'सेफ हाउस ' में पहुंच सकता था।

वो आदमी वहां से ४ किमी दूर एक पुलिस पोस्ट को किसी इमरजंसी में मेसज दे सकता था। वहाँ आई बी का एक आफिसर बैठा था , जो स्टेट गवर्नमेंट से 'लियाजन कर रहा था।


एक स्पेशल टास्क फोर्स आन काल थी और १४ मिनट में उस पुलिस पोस्ट तक पहुँच सकती थी। उसी तरह एम्बुलेंस ,फायर ब्रिगेड की यूनिट भी अलर्ट पर थी। लेकिन न तो टास्क फोर्स को न एम्बुलेंस या फायर ब्रिगेड को इससे अधिक कुछ मालूम था की एक रिहर्सल होने वाली है।

कंट्रोल रूम में दो लोग थे और रोड सिक्योर किये आदमी को जोड़ के कुल तीन लोग सेफ हाउस के प्रोटेक्शन में थे जो नॉर्म्स के अनुसार सही थे। लेकिन उन तीनो को भी रीत और करन के बारे में कुछ नहीं मालूम था ,हाँ मीनल से वो जरूर मिले थे। ये तीनो पूरी तरह आर्म्ड थे।

कंट्रोल रूम में बैठे दो लोगों में एक लगातार कैमरे की मानिटरिंग करता और दूसरा हर आधे घंटे में निकल कर एक्सटर्नल पेरीमीटर का १५ मिनट में धीमे धीमे चक्कर काटता। दोनों अपने काम काम बदल के करते। हर दो घटे के डूयटी के बाद आधे घंटे के लिए रिलेक्स भी करना होता था जिससे अलर्टनेस पीक पर रहे।

करन ने आने के बाद सिर्फ एक चेंज किया की कंट्रोल रूम में आ रही फीड के साथ साथ कंट्रोल रूम में भी एक कैमरा लगा कर ये सारी फीड उन लोगों के कमरे में लगे ४० इंच के दीवार पर लगे टीवी पे कनेक्ट करवा ली ,जिससे अब उस टीवी पे ,टीवी के प्रोग्राम , रंगबिरंगी फिल्मों के साथ साथ वो रिमोट से चैनेल बदल कर कंट्रोल रूम में लगे कैमरे से कंट्रोल रूम और वहां आरही फीड को जब चाहें तब देख सकें।


दूसरी बात उस ने ये की ,की आई बी आपरेटिव के साथ एक हाट लाइन कनेक्टिविटी इस्टैब्लिश की , जहाँ बस बटन दबाते ही उसे मालूम हो जाए की खतरा है।

करन को मालूम था की एक तो दुश्मन अभी इस हालात में नहीं है की कुछ करे , और अगर कुछ हुआ तो वो उस ताकत के साथ होगा की अल्टीमेटली उसको और रीत को ही उन से निबटना होगा।
 




2 comments:

MOHIT said...

Mast Story h

Aage ke part post karo jaldi se jaldi ; jaldi ; fast

&

Ye aatank ; aatanki hamle wale part close karo ' isse

Story ka interest khatam ho jata h

MOHIT said...

awesome story

please post next part

jaldi

Raj-Sharma-Stories.com

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