Tuesday, April 15, 2014

FUN-MAZA-MASTI वीरान हवेली --पार्ट-1

FUN-MAZA-MASTI

   वीरान हवेली --पार्ट-1
 






रुपाली ठकुराइन 
कैसे दिन हफ़्तों में और हफ्ते महीनो में बदल गए , मानो पता ही नहीं चला . अचानक ही एक दिन रूपाली को एहसास हुआ की हवेली के चारों तरफ झाड -घास -फूस बढ़ गए हैं . रूपाली को खुद पर गुस्सा आने लगा कि क्यूँ इतने वक़्त से उसने बिलकुल ध्यान नहीं दिया .आँगन में आकर उसने चंदर को आवाज़ लगायी ,"चंदर ……ओ चंदर ." तभी उसने देखा वो पेड़ के नीचे बैठा है और पेड़ पे बैठे कबूतर को एकटक निहार रहा है . एकदम गम सुम …….रूपाली को गुस्सा आ गया . वो पास गयी और चिल्लाते हुए चंदर से कहने लगी कि उसकी आँखें फूट गयी हैं क्या ? उसे रोज़ सफाई करते रहना चाहिए ताकि हवेली साफ़ सुथरी बनी रहे . हाथ हिला हिला कर उसने चंदर को सफाई करने के लिए कहा .
चंदर ने एक नज़र उसकी तरफ देखा और रूपाली ने देखा चंदर कि आँखों में रूपाली के लिए सिर्फ नफरत थी . वो अचानक उठा और तेज़ी से भौचक्की सी रूपाली के आगे से निकल गया और दूर कहीं गुम हो गया . रूपाली के होंठो तक चंदर के लिए एक भद्दी सी गाली आई , पर वो मन मार कर रह गयी . रूपाली ने एक नज़र आसमान कि और देखा ….कोई शाम के 6 बज रहे थे . उसके दिमाग में ख़याल आया , क्यूँ ना वो खेतों कि तरफ जाए और अगर वहाँ कोई मजदूर दिख जायें तोह उनके साथ अगले दिन के लिए हवीली के आस पास सफाई का काम तय कर ले . उसे ये विचार अच्छा लगा .

अन्दर आई और उसने जल्दी जल्दी अपने लम्बे , घने बालों को संवारा , बगल में खुशबूदार फ्रांसिसी खुशबू लगायी जो उसको कभी ससुर शौर्य सिंह ने दी थी ….हलके गुलाबी रंग का ब्लाउज पहना और गुलाबी सी साडी भी . शीशे में देखा , बहुत अच्छी लग रही थी रूपाली . बाहर पसीना आने का खतरा था , इसलिए रूपाली ने अपने गालों , गरदन और ब्लाउज के अन्दर हल्का सा पोंड्स पावडर लगा लिया . रूपाली ने एक बार खुद को निहारा …..और किसी 17 साल कि लड़की कि तरह शर्मा के रह गयी ……वाकई बहुत खूबसूरत लग रही थी वो ...!
हवेली से चलते चलते काफी दूर आ गयी थी रूपाली . इक्का दुक्का गाँव के बूढ़े उसको हुक्का peete हुए नज़र आये और जैसे ही उन्होंने ठकुराइन को देखा , अचकचा कर , "प्रणाम ठकुराइन ", कह kar उसका अभिवादन किया . रूपाली को अच्छा लगा कि आज भी हवेली का इतना रुतबा है . उन बूढ़े लोगों से काम के लिए कहना बेकार था , इसलिए वो आगे निकलती चली गयी .

सूरज ढलने लगा था और उसकी लालिमा चारों और फेल रही थी . रूपाली का चेहरा भी तपिश के कारण चमचमा उठा था और हल्का पसीना माथे पे मोती कि तरह चमक रहा ठा . रूप्लाई को लगा अब कोई नहीं मिलेगा और उसे वापस हवेली कि और चलना चाहिए . मुड़ने ही वाली थी कि उसे लगा उसे कुच्छ आवाजें सुनाई दी हो . 

आवाज़ खेतों कि तरफ से आई थी . रूपाली के कदम उसी तरफ बढ़ गए . अचानक उसे किसी मर्द के हंसने कि आवाज़ आई और फिर से कुछ अस्पष्ट आवाजें . खेत गन्ने के होने कि वज़ह से बहुत घना था ……अचानक रूपाली को लगा उसने चूड़ियों के टूटने कि आवाज़ सुनी और फिर एक लड़की कि चीख आई ,"ना कर सत्तू चाचा , हाथ जोडू तेरे ….." और एक गुर्राहट भरी मर्दानी आवाज़ ,"चुप्प साली"……..और तभी रूपाली के आगे सारा नज़ारा साफ़ था …….!गाँव में जात -पात थी ! ऊंची जात वाले ब्राहमण और ठाकुर , गाँव की ऊपर की और रहते थे , और सब डोम -चमार -कहार , नाइ , गाँव की निचली और ! सारा मामला निचली जात का था . 2 काले कलूटे , 40 साल से ऊपर के चमारों ने एक 20-22 साल की मांसल सी लड़की के हाथ पकड़ रखे थे और एक 50 साल से ऊपर का कलूटा उसके पैरों को खोल कर , अपना काला लंड लड़की की बूर में घुसाने की कोशिश कर रहा था ! एक और 45-50 साल का अधेड़ , सांवले रंग का बुज़ुर्ग ये सब ऐसे देख रहा था मानो कोई किसी गाय को चारा चरता हुआ देख रहा हो !
"ना कर सत्तू चाचा , जाण दे , मैं तेरी मौढ़ी (बेटी) जैसी हूँ रे "….……."चुप्प कमला साली ……हमारी मौढ़ी ऐसे गांड ना फिराती फिरे गाँव भर में ….अब चोदने दे नाहीं तो चीर देई तोहरा के.." ….…ये कहते हुए उसने एक असफल कोशिश और की ! मगर लड़की गठी हुई थी और उसकी टाँगे अलग होने का नाम नहीं ले रही थी ! झल्लाहट में सत्तू ने एक झापड़ रसीद दिया ! कमला जोर से रोने लगी ,"हाये दैय्या री …..कोई बचाओ .........……बचाओऊऊऊ .... " खेत गाँव से इतनी दूर थे की कोई आस पास होने का सवाल ही नहीं था ! तीनो कलूतों ने उसका मुंह बंद करने तक की ज़हमत नहीं उठायी और हँसते रहे!
"क्या कर रहे हो???.......बंद करो….सालो ", किसी भूखी शेरनी की तरह रूपाली गुर्राते हुए चीखी और एक पल के लिए मानो वक़्त थम गया था …….सब सुन्न रह गए थे ! ना कमला चीखी , ना सत्तू कुच्छ बोला और चारों मर्द रूपाली को ऐसे देख रहे थे मानो पूछ रहे हों ,"आप कौन हैं ?" सांवला आदमी , जिसकी उम्र 45-50 के बीच थी , धीरे से बोला ,"सत्तू , कालू , मोतिया ……ये हवेली की ठकुराइन हैं ……परनाम ठकुराइन .". तीनो कल्लुओं ने घबराहट में कमला को छोड़ दिया जो अपने कपडे झाड़ते हुए उठी और भाग के रूपाली के पीछे जा छुप्पी ...
....!"तो यह सब हो रहा है हमारे गाँव में अब ? हैं ? कोई शर्म लाज नहीं है आप लोगों को ?", किसी बिफरी हुई शेरनी की तरह रूपाली आग उगल रही थी ! "कौन हे री तू ?" रूपाली ने कमला से पूछा तो पता चला वो झूरी मल्लाह की बेटी है और मोतिया उसे सस्ती साड़ी वाले से मिलवाने के बहाने फुसला के गाँव से कुच्छ दूर लाया था , जहां कालू और सत्तू ने उसको पकड़ लिया और तीनों उसको खेत की और ले आये थे ! बेगानी शादी में अब्दुल्लाह दीवाना वाली हालत थी सांवले मुंगेरी की और वो ऐसे ही इन तीनो के साथ हो लिया था की कुछ देसी शराब पी लेगा और कुच्छ चने खा लेगा !चारों 2 बोतल देसी शराब गटक चुके थे और उन्होंने कमला को भी ज़बरदस्ती शराब पिलाने की कोशिश की थी!पर उसने सब शराब बाहर थूक दी थी ! उन्होंने शराब बर्बाद करने से अच्छा सोचा साली को बस कुच्छ देर पकड़ कर रखें और फिर नशे के सुरूर में चुदाई का प्रोग्राम चालु ही किया था की रूपाली ने आकर सब गुड -गोबर कर दिया !

रूपाली ने चिल्लाकर कहा ,"चल कमला तू मेरे साथ …….और हरामजादों , कल गाँव की पंचायत लगेगी , उसमें दिखाना तुम अपने ये गंदे -काले चेहरे ." मुंगेरी ,जो सिर्फ शराब के लालच में आया था , गिडगिडा रहा था ,"जाने दो ठकुराइन , ये बहक गए थे .". बाकी तीनो नशे और शर्म की मिली जुली हालत में कभी आँखें झपका रहे थे , कभी खेत की ज़मीन की तरफ देख रहे थे ! एक तेज़ हवा का झोंका आया और एक पल के लिए रूपाली की साड़ी का पल्लू सरक गया !ढलती शाम में तीनों कलूटों ने एक पल के लिए गुलाबी ब्लाउज में कुईद दो उन्नत उरोज देखे और उनकी आँखें चौंधिया गयी !

सकपका कर रूपाली ने झट से आँचल ठीक किया और कड़कते हुए बोली ,"चल कमला ." मुड़कर चलने लगी , गाँव की और ! चारों आदमी वहीं हक्के -बक्के से खड़े रह गए थे ......!300 मीटर चले होंगे रूपाली और कमला की अब सन्न होने की बारी रूपाली की थी!शायद उन कलूटों ने छोटा रास्ता लिया था , या तेज़ तेज़ चलते हुए बराबर के रास्ते से आये थे ! जो भी था , सच्चाई यह थी की सत्तू , मोतिया , कालू और मुंगेरी भी , उन दोनों के सामने खड़े थे !"क्या हे ?"रूपाली चीखी ! नीच जात के मोतिया ने एक थप्पड़ रूपाली के गाल पे रसीद दिया और बोला ,"हरामजादी , हमको पंचायत के हवाले करेगी ? कर साली !पर उनको पूरी बात बताना ! कि कैसे हमने तेरी चुदाई क़ी रांड !" एक पल के लिए रूपाली को अपने कानो पे विश्वास नहीं हुआ ! ये नीच जात के लोग , जो ठाकुरों क़ी छाया पे भी पैर रखने के कारण पित जाया करते थे, उसकी इज्ज़त लूटने क़ी बात कर रहे थे …….ठाकुर साहब क़ी बहू क़ी इज्ज़त .....!"खबरदार…", रूपाली चिल्लाई …..मगर उसके इतना बोलते ही मोतिया ने उसे तडातड 4-5 थप्पड़ लगा दिए !पीड़ा और अपमान से रूपाली के आंसू छल -छला आये . "जाने दो …", उसकी कराह निकली !कमला , जिसकी गदराई हुई जवानी को पाने के लिए कलूटों ने ये सब किया था बोली ,"सत्तू चाचा , मोतिया भैय्या ….ठकुराइन को जाने दो ….आपको जो करना है , हमरे संग कर लेवो भैय्या …" कालू और मोतिया वहशियों क़ी तरह हंसने लगे ! कालू ने कसकर कमला का हाथ पकड़ लिया और सत्तू और मोतिया ने रूपाली के दोनों हाथ पकडे और वो वापस खेत के उसी हिस्से क़ी और बढ़ने लगे ! जहां उन्होंने खेत के बीच कुच्छ जगह साफ़ क़ी थी और कमला को चोदने क़ी कोशिश ही कर रहे थे कि रूपाली आ पह्नुची थी ……..
रूपाली और कमला क़ी हालत ऐसी थी मानो बकरियों को कसाई घसीट रहे हों ! बीच बीच में धमकाने के लिए मोतिया उसके हाथ को जोर से मरोड़ देता था और हर बार उसके मुंह से आआआह निकल जाती थी ! मुंगेरी ने एक दो बार ज़रूर कहा ,"अरे जानो दे रे ठकुराइन को ….क्यूँ आफत मोल ले रहे हो ….", मगर शायद उसकी बातों क़ी कोई अहमियत थी ही नहीं ..!



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