Sunday, April 6, 2014

FUN-MAZA-MASTI मैं, लीना और चाचा-चाची--1

FUN-MAZA-MASTI


 मैं, लीना और चाचा-चाची--1
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चाचाजी का खत आया कि वो तीन चार दिन के लिये हमारे यहां आ रहे हैं. जब मैंने लीना को चाचा चाची के आने की बात बताई, तो वो बोली "रजत चाचा आ रहे हैं? ये वो वाले चाचा हैं ना जो हमारी शादी में थे, अच्छा गठा बदन है, ऊंचे पूरे हैं. और वो उनकी मोटी मोटी गोरी गोरी सिठानी सी घरवाली है?"

"हां हां वही, गीता चाची के साथ वो हमारी शादी में थे"

"अरे तो आने दो ना, बड़ा मजा आयेगा. काफ़ी रसिया किस्म के आदमी लगे मुझको" मेरा लंड पकड़कर लीना बोली.

"अरे अब उनके पीछे पड़ोगी क्या? पिछले हफ़्ते मेरे दो दोस्तों से चुदवा कर तुम्हारा मन नहीं भरा?" मैंने लीना की चूंची दबा कर कहा.

"और तुमने नहीं उनकी बीवियों को चोदा? उस स्मिता की तो गांड भी मारी" लीना ने उलट कर कहा.

"हां डार्लिंग वो ठीक है पर मैं इसलिये कह रहा था कि ये घर की बात है, चाचा चाची की बात और है"

"अरे अगर ये वही वाले चाचा हैं जो शादी में थे तो मजा आ जायेगा. तब भी मुंह दिखाई के वक्त मुझे ऐसे देख रहे थे जैसे खा जायेंगे. वैसे हैं बड़े प्यारे और सजीले, सच कहूं, उनको देख कर वहीं मेरी बुर में गुदगुदी होने लगी थी"

"क्या चुदैल रंडी है तू लीना, अब देख, उनके सामने तमाशा नहीं करना"

"ठीक है देख तो लूं उनके रंग ढंग, और चाची भी हैं ना, उनको तुम देख लेना, वैसे मुझे जैसा याद है, बड़ी चिकनी गोल मटोल थीं चाचीं, वहां शादी में जब तुम्हारे परिवार की औरतों के साथ थी तब उनका पल्लू गिरा था, तब मैंने चूंचियां देखी थीं, ये बड़ी बड़ी ..." लीना बोली और मुझे आंख मारकर हंसने लगी.

मैंने समझ लिया कि इसको करना है वो करके रहेगी.

चाचा चाची आये. लीना ने अच्छी आवभगत की. दोपहर के खाने पर भी खूब सारी चीजें बनायीं. चाचाजी ने तारीफ़ के पुल बांध दिये, मेरा माथा ठनका क्योंकि लीना अब बड़े जोश से उनकी खातिर में जुट गयी थी. ’चाचाजी, और मिठाई लीजिये ना .... चाची आप ने तो कुछ खाया ही नहीं’ वगैरह वगैरह’

उनके दो दिन एक शादी अटेंड करने में चले गये. रात को देर से आते थे. एक रात वे वहीं शादी के घर सोये. फ़िर दूसरे दिन दोपहर को आये. आकर नहाया धोया क्योंकि शादी के घर में बड़ी भीड़ भाड़ थी.
जब दोपहर का खाना खाने के बाद वे दोनों आराम करने चले गये तो लीना मेरे पास आयी. "अनिल राजा, अब चाचाजी को आज फ़ांस ही लेती हूं. उनके बड़े लंड को लिये बिना चैन नहीं आयेगा" लीना मेरे लंड को सहलाती हुई बोली.

"तूने कब देखा उनका लंड?"

"अरे अभी जब वो नहाने के बाद कपड़े बदल रहे थे तब दरवाजे की चीर में से देखा था. बैठा था फिर भी चड्डी में समा नहीं रहा था. मैं तो असल में बाथरूम में झांक कर देखने वाली थी पर चाची रूम में थीं इसलिये लौट गयी" लीना बोली.

"मेरी चुदैल रानी, इतने लंडों से पिलवा चुकी है तू, मेरे तीन चार दोस्तों से चुदवाती है, जब भी मौका आता है, मैं तुझे तेरी पसंद के और मर्दों से भी चुदवा देता हूं, फिर भी तेरा मन नहीं भरा. अब चाचाजी के पीछे पड़ गयीं? वो क्या सोचेंगे कि उनके सगे भतीजे की बीवी कैसी चुदक्कड़ है!" मैंने लीना की चूंची दबा कर पूछा.

"तो तुम भी तो अपने दोस्तों की बीवियों को चोदते हो, कैसे लपलपा कर पीछे पड़ जाते हो. पिछले माह जब हम तुम्हारे दूसरे दोस्त के यहां गये थे तो उसकी नौकरानी पर ही फ़िदा हो गये थे, तब मैंने नहीं मदद की थी तुम्हारी? दो दिन तक हर दोपहर को तुमको उस छम्मक छल्लो के साथ छोड़कर तुम्हारे दोस्त की बीवी को मार्केटिंग के लिये ले गयी थी."

"हां मेरी रानी, नाराज मत हो, मैं कहां तुमको ये सब बंद करने को कह रहा हूं? तुम खूब चुदवाओ, मुझे तो बस तुम्ह्हरी खुशी चाहिये मेरी जान. पर रजत चाचा ..." मैंने कहा तो लीना बोली "रजत चाचाजी के लंड की बात ही और है. सगे चाचाजी हुए तो क्या हुआ, बड़े रसिया हैं, कैसे मेरी ओर देखते हैं, जैसे बस चले तो अभी पटक कर चढ़ जायें मुझपे. और मैं सिर्फ़ अपने बारे में ही थोड़े सोच रही हूं, वो मुटल्ली चाची भी तो माल है. मैं आज चाचाजी का लंड खा ही लेती हूं, तुम चाची की बुर चख लो, सच पाव रोटी जैसी गुदाज होगी" लीना अपनी बुर को प्यार से सहलाते हुए बोली.

"हां रानी, बात तो सच है, चाची का बदन तो खोवा है खोवा, मुंह मारने का मन करता है. चलो ठीक है, करके देखते हैं. चाचाजी तो तेरे एक इशारे पर तुझ पर टूट पड़ेंगे. कैसे घूर रहे थे तुझे खाने पे" मैं लीना की चूंचियां दबाकर बोला "तू भी उस्ताद है अपना जोबन दिखा कर लोगों को रिझाने में, कैसे बार बार आंचल गिरा कर झुक रही थी तू आज दोपहर के खाने के वक्त! जान बूझकर दिखा रही थी चाचाजी को ये अपना माल"

"मैं तो उन्हें रिझा रही थी, पूरे फ़ंस गये हैं वे अब मेरे जाल में. तुम भी चाचीजी के साथ मजे कर लो आज, उनकी भी बड़ी नजर रहती है तुम पर. तब तक मैं चाचाजी से चुदवा लेती हूं" लीना मुझे बोली.

"ठीक है मेरी जान पर अकेले में नहीं. मैं भी देखूंगा चाचाजी से तुझे चुदते वक्त. तेरी चूत को वो मूसल फ़ाड़ेगा तो कैसे रोयेगी मैं देखना चाहता हूं, अभी तो बड़ी उचक रही हो, जब वो मूसल अंदर जायेगा तो चिल्ला चिल्ला कर रो पड़ोगी! बोलोगी कि अनिल, बचाओ मुझे, तब मुझे ही आना पड़ेगा तेरे को बचाने को" मैंने लीना को चिढ़ाया.

"रोये मेरी जूती. मैं तो चाचाजी को अंदर ले लूं, लंड की क्या बात है, मेरी चूत की गहरायी को अब तक नहीं पहचाना तुमने. चलो, तुम देख लेना मेरी चुदाई, और बातें मत बनाओ, बीवी को चुदते देख तुमको बड़ा मजा आता है, ये कहो. और नये नये लंड देखने की फ़िराक में भी रहते हो, है ना?"

मैं बोला "कहां? वो तो मैं बस तुम्हारे लिये ..."

"अब गुस्सा मत दिलाओ मुझे. वो दोस्त है तुम्हारा हेमन्त, उसके लंड को पिछली बार कैसे चूस रहे थे" लीना बोली.

"वो तो तुमने कहा था, जब तुम उसकी बीवी स्मिता की बुर चूस रही थी तब"

"हां पर बड़े मजे लेकर चूस रहे थे. मैं भी कहां मना कर रही हूं तुमको, जैसे कभी कभी बुर का स्वाद अच्छा लगता है मेरे को, वैसे तुम भी लंड का मजा लिया करो"

लीना से बहस में जीतना नामुमकिन है, मेरी सब कमजोरियों को अच्छे से पहचानती है, प्यार भी बहुत करती है मुझसे.

लीना थोड़ी देर चुप रही, खोयी खोयी सी थी, शायद चाचाजी के लंड को याद कर रही थी. फ़िर अचानक बोली "पर चाचाजी को कहोगे कैसे कि मेरे सामने चोद मेरी बीवी को? तुमको भी अगर साथ रहना है तो तुमको ही कहना पड़ेगा. मैं तो अकेले में ही फ़ांस कर चोद लूंगी उनको"

"वो मैं कर लूंगा. खाने के बाद बात छेड़ता हूं, तू दस मिनिट में आ जाना और उनकी गोद में बैठ जाना, बाकी मैं संभाल लूंगा" मैंने कहा.


खाने के बाद मैं चाचाजी के साथ बैठा था. बोला "चाचाजी, एक बात कहूं, लीना के बारे में?"

"हां कहो बेटा" चाचाजी संभल कर बैठ गये.

"आप को कैसी लगी लीना?" मैंने पूछा.

"अच्छी लड़की है, बहुत सुंदर है, तेरे भाग हैं कि तुझे ऐसी लड़की मिली" चाचाजी मुझे देख कर बोले.

"आप भी बड़े लकी हैं चाचाजी, चाची भी क्या चीज हैं" मैंने कहा.

"हां वो तो है. पंधरा बरस पहले देखते तो फ़िदा हो जाते, बड़ी तीखी छुरी थी, वैसे अब भी है पर मोटी हो गयी है" चाचाजी मेरी ओर देखकर बोले.

"चाचाजी, सच कहूं, मुझे चाची बहुत अच्छी लगती हैं. वैसे ही जैसे आप को लीना अच्छी लगती है. वैसे बचपन से चाची मुझे बहुत भाती हैं पर अब जरा ... याने बहुत मस्त लगती हैं" मैंने कहा.

चाचाजी मेरी बात में छुपा इशारा समझ गये. "अरे तो शरमाता क्यों है, चाची से मेल जोल बढ़ा, उनसे गप्पें लड़ा, वो भी कह रही थी कि अनिल बड़ा प्यारा लड़का है. वैसे लीना के बारे में कह रहा था ना तू?"

मैं चाचाजी के पास खिसका "बड़ी गरम चीज है चाचाजी. मुझसे नहीं संभलती."

"याने बाहर मुंह मारती है क्या? इतनी चालू है? तुमने कहा उससे कि ऐसा न करे? आखिर बहू है घर की"

"अब चाचाजी आप से क्या छुपाऊं, मैं उससे बहुत प्यार करता हूं, बहुत सुख देती है मुझे, इसलिये उसके सुख का भी खयाल मुझे रखना पड़ता है. अब आप पर नजर है उसकी. कह रही थी कि रजत चाचा कितने अच्छे लगते हैं. उनके साथ मेल जोल बढ़ाने का दिल करता है"

चाचाजी मस्त हो गये "अरे तो इसमें पूछने की क्या बात है, बहू के लिये तो मेरी जान हाजिर है."

"जान तो ठीक है चाचाजी, आप उसे थोड़ी ठंडी कर दें तो ....."

"अरे बिलकुल ठंडी कर दूंगा. तू उसे मेरे पास छोड़ तो सही. बहुओं की तो हर इच्छा पूरी करनी चाहिये बेटे कि उन्हें घर के बाहर जाने की जरूरत न पड़े. और तू यहां क्यों बैठा है, जा ना चाची के पास, वो अकेली अपने कमरे में पड़ी है, कह रही थी कि सिर दुख रहा है, मैंने कहा कि भेजता हूं किसी को खाने के बाद मालिश के लिये. मैं तो खुद तुझसे कहने वाला था, तू जा. मैं बहू का इंतजार करता हूं यहां, जम जाये तो आज ही उसे खुश कर दूंगा" 

तभी लीना अंदर आई. बस एक नाइटी पहने थी. अंदर की ब्रा और पैंटी भी निकाल दी थी. नाइटी के बारीक कपड़े में से उसका हर अंग दिख रहा था. आकर सीधी चाचाजी की गोद में बैठ गयी. "क्या बातें हो रही थीं चाचा भतीजे में, मैं भी तो सुनूं. मुझे खुश करने की बात कर रहे थे चाचाजी? कैसे खुश करेंगे मुझे बताइये ना चाचाजी!"

चाचाजी थोड़े गड़बड़ा गये. "कुछ नहीं बहू, अनिल बता रहा था तेरे बारे में, बड़ी सुंदर और प्यारी है तू. अनिल का बड़ा भाग है जो तेरे जैसी बहू घर में आयी है. तुझे खुश रखने को मैं क्या, सब लोग जो तू चाहे वो करेंगे ऐसा मैं कह रहा था"

मैंने झूट मूट लीना को डांटा "अरे तू क्या बच्ची है जो ऐसे जाकर चाचाजी की गोद में बैठ गयी है. वो क्या सोचेंगे"

लीना बोली "चाचाजी तो बड़े हैं, उनकी गोद में बैठने से क्या शरमाना! चाचाजी मुझे बहुत प्यार करते हैं, है ना चाचाजी? आप मुझे बहुत अच्छे लगते हैं"

चाचाजी बोले "हां बहू, अनिल, उसे मत डांट, उसका हक है मेरी गोद में बैठने का" और लीना की पीठ सहलाने लगे.

लीना बोली "हां चाचाजी, वैसे ही जैसे अनिल का हक है चाची से लाड़ पाने का, है ना?" और फ़िर चाचाजी को चूमने लगी. पहले गाल चूमे, फ़िर सीधे होंठ चूमने लगी.

चाचाजी भी मस्त हो गये. लीना को बाहों में भर लिया और चूमने लगे. मुझे बोले "अनिल, तू जा चाहिये तो, चाची का सिर दबा दे. चिंता मत कर, मैं बहू का पूरा खयाल रखूंगा. बड़ी प्यारी बच्ची है"

लीना ने उनका एक हाथ उठा कर अपने स्तन पर रख लिया. "चाचाजी देखिये ना, छाती बड़ी कसमसाती है मेरी. न जाने ऐसा क्यों होता है"

अब तो चाचाजी एकदम मस्ती में आ गये. लीना की चूंची दबा दबा कर कस के उसके चुंबन लेने लगे. चूमते चूमते बोले "अरे तेरी जवानी की गरमी है इसलिये ऐसा होता है, तेरे इस भरे पूरे जोबन को ठीक से मालिश करनी चाहिये, तब ये काबू में आयेगा. अनिल तू अब तक यहीं है? जा ना चाची के पास"

मैंने कहा "चाचाजी, थोड़ी देर के बाद चाची के पास चला जाऊंगा. अभी देखना चाहता हूं कि ये क्या गुल खिलाती है. बड़ी शैतान है. लीना, चाचाजी तुमको बहुत प्यार करते हैं, जरा ठीक से पेश आना, बद्तमीजी नहीं करना. इसीलिये मैं तो रुकूंगा और कुछ देर, मुझे भरोसा नहीं है तुम्हारा"

"मेरे राजा, मैं जानती हूं कि वे बहुत प्यार करते हैं. ये देखो सबूत. मैं कब से देख रही हूं कि जब चाचाजी मुझे देखते हैं तो प्यार से ऐसी हालत हो जाती है इनकी, है ना चाचाजी?" कहकर लीना ने उनके पाजामे के तंबू पर हाथ रख दिया. "चलिये ना चाचाजी, अंदर चलिये, मुझे ठीक से प्यार कीजिये, आप के पास तो के खास खिलौना है मुझे प्यार करने के लिये"

"हां चाचाजी, अंदर ले चलिये लीना को उठाकर, फ़िर इसे ठंडी कीजिये. असल में मैं बहुत प्यार करता हूं इसे, इसको और कोई भी प्यार करे तो मुझे मजा आ जाता है. और अब आप इसे प्यार करेंगे ये तो बड़ी खुशी की बात है, लीना भी कब से राह देख रही है, आप जैसे बड़ों से प्यार कराने में उसे बहुत आनंद मिलता है, मैं जरा देख लूं कि ये कितनी खुश होगी आप से प्यार पा कर, फ़िर चाची की सेवा करूंगा जा कर" मैंने कहा.

चाचाजी समझ गये. उठ कर लीना को बाहों में लिया और अंदर ले गये. "आ जा अनिल, देख ले कि ऐसी जवान बहू को कैसे प्यार किया जाता है"


अंदर जाकर उन्होंने लीना को नीचे उतारा तो पहले तो लीना ने अपनी नाइटी निकाल दी. जब तक चाचाजी आंखें फ़ाड़ फ़ाड़ कर उसका जोबन देख रहे थे, तब तक उसने चाचाजी के कपड़े भी निकाल दिये. मैं भी नंगा हो गया था.

मैंने एक कुरसी में बैठ कर लंड हाथ में लिया और बोला "चाचाजी, साफ़ बात कहूं, बड़ी चुदैल लड़की है, आप पर मरती है, कब से आपके लंड की ताक में है, आज जरा इसे अपने लंड की ताकत दिखा ही दीजिये"

"बहू तो अप्सरा है अप्सरा. क्या माल लाया है तू अनिल बेटे, चबा चबा कर खा जाने का मन करता है" चाचाजी लीना के बदन पर हर जगह हाथ फ़ेरते हुए बोले.

लीना अब नीचे बैठ कर चाचाजी के लंड को हाथ में लेकर चूम रही थी. "अनिल राजा, मैंने कहा था ना कि कितना बड़ा है चाचाजी का. हाय चाचाजी, ये तो घोड़े के लंड सा लगता है, चाची की तो आप ने आज तक पूरी खोल दी होगी"

चाचाजी बोले "अरे तेरी चाची क्या कम है? उसका तो कुआं है कुआं, वो तो हाथी का ले ले उसका बस चले तो, घोड़ा क्या चीज है उसके सामने. बहू अब यहां आ बेटी, अपनी बुर दिखा, मां कसम क्या महक रही है साली"

"पहले लंड चूसूंगी चाचाजी, फ़िर अपनी बुर चटवाऊंगी" लीना बोली और लंड का सुपाड़ा मुंह में लेकर चूसने लगी. बोली "ये सुपाड़ा है या पाव भर का टमाटर? मैं तो खा जाऊंगी इसको"

चाचाजी बोले "चूसेगी या चुदवायेगी? जल्दी बोल, डरती है शायद, डींगें मार रही है, मेरे लंड की साइज़ देखकर डर गयी है, इसलिये चूस कर छोटा कर देना चाहती है"

"डरे मेरी सास, लो चाचाजी, चोद दो, आज आप को दिखाती हूं कि चुदवाना किसे कहते हैं" लीना अपने मम्मे दबाती हुए बोली.

लीना टांगें खोल के लेट गयी. चाचाजी टूट पड़े और लपालप उसकी बुर चाटने लगे. "क्या चूत है बहू की, क्या रेशमी झांटें हैं, और ये लाल लाल होंठ और ये बहता हुआ खालिस घी! अनिल, तेरी तो चांदी है बेटे, रोज इस जन्नत की सैर करता है, इस अमरित को चखता है, बहू जरा टांगें और फ़ैला, जीभ डालने दे ठीक से."

लीना ने टांगें पूरी फ़ैला दीं. चाचाजी ने उसकी बुर उंगली से खोली और जीभ अंदर डाल डाल कर रस चाटने लगे. लीना कमर उचकाने लगी.

"चूसते ही रहोगे या चोदोगे भी? डालो ना चाचाजी, लंड तो डालो. अब क्यों तड़पाते हो चाचाजी अपनी बहू को, पाप लगेगा आप को" लीना उनके सिर को पकड़कर बुर पर उनका मुंह रगड़ती हुई बोली.

चाचाजी उठ कर बैठ गये "ये ऐसे नहीं मानेगी साली. इतना बढ़िया बुर का रस है, ठीक से पीने भी नहीं देती. अनिल, मैं चोद देता हूं इसे, बुर बाद में चूस लूंगा, अब तो ये घर का माल है. चल बहू, बुर पूरी खोल नहीं तो फ़ट जायेगी, दरद से रिरियाने लगेगी"

लीना ने अपनी उंगलियों से अपनी चूत को चौड़ा किया. चाचाजी ने सुपाड़ा रखा और पेलने लगे. वो सेब सा सुपाड़ा आधा अंदर गया तो लीना कराह उठी "हाय ... अरे जालिम ... रुको ना थोड़ा ... कितना अच्छा लग रहा है अनिल ... बहुत बड़ा है चाचाजी का .... ओह ... ओह ... ये तो सच में फ़ाड़ देगा मेरी लगता है ... हा ऽ य ... चाचाजी ... डालो ना अंदर ....दुखता है ऐसे करते हो तो .... ओह ...ओह .."

"कभी रोती है और कभी लंड डालने को कहती है ये हरामन" चाचाजी मुस्कराकर बोले.

"डाल दो ना चाचाजी ... पूरा डाल दो .... मेरी परवा न करो" लीना मचल कर बोली.

"डाल दूंगा, डाल दूंगा, मेरे सुपाड़े का मजा तो ले, तेरी चूत को ये ठीक से चौड़ा करेगा, तेरी चाची की बुर का भोसड़ा इसी सुपाड़े ने बनाया है" कहकर चाचाजी थोड़ी देर सुपाड़ा अंदर बाहर करते रहे, फ़िर पक्क से अंदर कर दिया. "उई ऽ मां ऽ ..." लीना चीख पड़ी.

"अब कैसे चिल्लाने लगी ये चुदैल लड़की. देखा अनिल. अरे मेरे लंड को झेलना सब के बस की बात नहीं है" चाचाजी लीना की चूंचियां दबाते हुए बोले.

"अरे डालो नो ... रुक क्यों गये .... मजा आ रहा है ... ओह अनिल ... लगता है कोई जैसे पूरा हाथ अंदर डाल रहा है ... सुपाड़ा ऐसा लग रहा है जैसे किसी की मुठ्ठी हो .... आज मेरी चूत के लायक लंड मिला है ... आह .... दुखता है चाचाजी ... मेरे अच्छे चाचाजी ... पर बड़ा मजा आ रहा है चाची की कसम, करिये ना और ..."
kramashah...............







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