FUN-MAZA-MASTI
मैं, लीना और चाचा-चाची--2
gataank se aage............
चाचाजी लंड पेलने लगे. आधा लंड अंदर गया तो लीना छटपटाने लगी. "ओह ... नहीं सहा जाता चाचाजी ... मर गयी मैं ... बहुत बड़ा है ... उई मां ऽ अनिल राजा .... तेरे चाचाजी तो सांड हैं सांड .... हाय रे ...." चाचाजी ने मेरी ओर देखा कि रुकूं या डाल दूं?
मैंने कहा "डाल दो चाचाजी, चिल्लाने दो, फ़ट जाये तो भी परवा नहीं. वैसे आप जानते नहीं इस हरामन को, चिल्लाती भी है तो मस्ती से, साली जरा नहीं डरती. आप तो डालो और चोदो मजे से"
चाचाजी ने पूरा लंड गप्प से उतार दिया. लीना का बदन ऐंठ गया. वो चिल्लाये इसके पहले चाचाजी ने उसका मुंह अपने मुंह से बंद कर दिया और चोदने लगे.
लीना ’गों’ ’गों’ करके छटपटाते हुए हाथ पैर फ़ेकने लगी. पर चाचाजी का लंड बड़ी आसानी से अंदर बाहर हो रहा था, इसका मतलब था कि लीना की बुर इतनी चू रही थी कि एकदम चिकनी हो गयी थी, मैं समझ गया कि दुख वुख कुछ नहीं रहा है, नाटक कर रही है. चाचाजी लीना का मुंह ऐसे चूस रहे थे जैसे रसीला फ़ल चूस रहे हों, साथ ही सधी रफ़्तार से बिना रुके चोदते जाते. लीना अपने बंद मुंह से बस ’अं’ ’अं’ ’अं’ करती रही. फ़िर चुप हो गयी.
चाचाजी ने लीना का मुंह छोड़ा और झुक कर उसकी चूंची चूसने लगे. लीना फ़िर से हाथ पैर मारने लगी, सिसकती हुई कमर हिला हिला कर चाचाजी के लंड को और अंदर लेने की कोशिश करने लगी. फ़िर चाचाजी के इर्द गिर्द अपने हाथ पैर लपेट लिये और बोली "ओह ... ओह ... चाचाजी ... बहुत जानदार है चाचाजी आप का .... मैं जानती थी .... यही एक लंड है जो मेरी चूत की अगन ठंडी कर सकता है .... चोद डालिये चाचाजी .... चोदिये आप की बहू को ... अपनी बेटी की चूत को ..... पेल पेल के फ़ाड़ दीजिये चाचाजी .... चोद डालिये चाचाजी ...."
"बिलकुल चोद डालूंगा बहू, हमारे घर आयी है बहू बनके, तेरी हर इच्छा पूरी करना हमारा फ़र्ज़ है, ले ... ले ... और जोर से पेलूं? ... ये ले ..." चाचाजी बोले और फ़िर हचक हचक कर लीना को चोदने लगे. लीना अब नीचे से ऐसे चूतड़ उचका रही थी कि जैसे उनके लंड को पेट में लेने की कोशिश कर रही हो.
"अनिल देख तेरी बीवी को तेरे सामने चोद रहा हूं. क्या छिनाल रंडी है साली, देखो कैसे चूतड़ उचका कर मेरा लंड पिलवा रही है अपनी चूत में. मुझे लगा था कि टें बोल जायेगी, तेरी चाची भी बेहोश हो गयी थी सुहागरात में ... पर ये तो रंडियों से भी बढ़ कर है चुदवाने में" चाचाजी लीना की बुर में अपना लंड पेलते हुए बोले.
"हां चाचाजी, बड़ी गरम है, मुझसे संभलती नहीं है साली हरामन. आज आप इतना चोद दो कि साली खाट से उठ न पाये" मैं लंड को हाथ से मस्ती से सहलाते हुए बोला. लीना की गोरी चूत एकदम चौड़ी हो गयी थी, चाचाजी का मूसल उसे चौड़ा करके अंदर बाहर हो रहा था.
"चोदिये ना चाचाजी .... चोद दीजिये मुझ को .....और जोर से ..... कस के पेलिये डैडी ... और जोर से चोदिये ना .... फ़ाड़िये ना मेरी चूत ..... मामाजी ..... मसल डालिये मेरे को ..... ओह ... हं ऽ .... आह ऽ ... ओह ऽ .... आह ऽ ..." मस्ती में आंखें बंद करके लीना बड़बड़ा रही थी. अपने हाथों और पैरों से उसने चाचाजी का बदन बांध कर रखा था और उनसे चिपटी हुई थी.
"मुझको कभी मामाजी कहती है कभी डैडी कहती है साली .... बाप से भी चुदवाती थी क्या?" चाचाजी ने धक्के मारना बंद करके मुझसे पूछा.
"पता नहीं चाचाजी, शायद, वैसे उमर में बड़े और खास कर बड़े लंड वालों से चुदवाने में बहुत मजा आता है इसे, मैं चोदता हूं तो कभी मस्ती में मुझे मामाजी कहती है तो कभी जीजाजी .... बचपन से चुदैल है .... मैं तो देखते ही पहचान गया था ... इसलिये तो मैंने शादी को हां कर दी रजत चाचा .... सोचा कि ऐसी चुदैल चीज जितनी जल्दी घर में आये उतना अच्छा है ..... अब सारे खानदान को चोद डालेगी ये हरामन" मैं कस के अपने लंड को मुठिया रहा था.
चाचाजी ठीक से लीना पर चढ़ गये और फ़िर घचाघच चोदने लगे. "है बड़ी नमकीन छोकरी ... माल है साली माल .... अब इस माल को मैं कैसे गपागप कर जाता हूं देखना .... इतना चोदूंगा आज कि मेरे बिना किसी का नाम नहीं लेगी बाद में .... और तू क्यों मुठ्ठ मार रहा है वहां नालायक .... आ जा ... साथ साथ चोदेंगे .... साली के मुंह में डाल दे लंड और चोद डाल ..... तू कहे तो मैं नीचे होता हूं .... गांड मार ले हरामन की .... बहुत गुदाज है .... तू तो मारता ही होगा ..... मेरा मन हो रहा था असल में गांड मारने को .... पर साली की बुर इतनी मीठी दिखती है कि ....." कहकर चाचाजी ने लीना के होंठों को अपने होंठों में दबा लिया और चूसने लगे.
"मैंने तो बहुत बार चोदा है .... गांड भी मारी है .... आज आप मजा कर लो रजत चाचा ... वैसे आप का लंड बड़ा शानदार है, चाचीजी तो मरती होंगी आप पर" मैंने कहा. गीता चाची के मोटे मांसल बदन को याद करके मेरा और उछलने लगा.
"हां अनिल .... तेरी चाची भी माल है ..... पर तेरी ये बहू तो एकदम तीखी कटारी है ... आह लीना बेटी .... साली छिनाल .... कैसे मेरे लंड को पकड़ रही है चूत से ... गाय के थन जैसा दुह रही है ... आज तेरी चूत की भोसड़ा न बना दूं तो कहना" चाचाजी हांफ़ते हुए घचाघच धक्के लगाते हुए बोले.
"रजत चाचा .... आप मार डालो मुझे चोद चोद के ... आप के मुस्टंडे ने मार डाला तो भी ... उसे दुआ दूंगी .... हाय ... हाय ... अरे साले चाचा के बच्चे .... घुसेड़ ना और अंदर .... और चाची माल है तो मेरा ये सैंया अनिल क्या कम है .... चाची का माल इसे ... दिलवा दो ... चोद ना साले .... चोद ना और " लीना अब तैश में आकर बुरी तरह तड़प रही थी.
"दिलवा दूंगा ... मैंने तो पहले ही कहा था ... यही घर का ही माल है ... अनिल को पसंद आयेगा ... खोवा है खोवा ... क्यों रे अनिल ... चाची को चोदेगा ... साली अब पिलपिली हो गयी है .... चूत और गांड का भोसड़ा हो गया है ... तेरे लंड समेत तुझे निगल लेगी ... पर है बड़ी जायकेदार साली मुटल्ली .... रस चूता है तो बिस्तर गीला कर देती है ...तू जा ना अनिल ... तेरी चाची चूत खोल कर .... तेरा इंतजार कर रही होगी ..." चाचाजी अब हचक हचक कर ऐसे चोदने लगे जैसे लीना का कचूमर निकाल देंगे. लीना अचानक ’सी’ ’सी’ ’सी’ करके हाथ पैर पटकने लगी. फ़िर लस्त हो गयी.
"खलास कर दिया सा ऽ ली ऽ हरा ऽ म ऽ जा ऽ दी ऽ रंडी ऽ को .... चली थी मेरे लंड से लोहा लेने ... ओह ... ओह ... लीना बेटी ... आह" कहकर चाचाजी भी ढेर हो गये. मैं कस के मुठ्ठ मार रहा था, इतनी मस्त चुदाई देख के मजा आ गया था. खास कर लीना को बहुत मजा आया था ये देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा था. आखिर मेरी प्यारी बीवी है, उसपर जान छिड़कता हूं मैं. आखरी मौके पर आकर मैंने हाथ हटा लिया और लंड को झड़ने नहीं दिया. वहां चाची से मार थोड़ी खानी थी मुझे!
चाचाजी थोड़ी देर से उठे और रुमाल से अपना लंड पोछने लगे. उनके लंड पर गाढ़े सफ़ेद वीर्य के कतरे लगे थे. अनजाने में मैंने अपने होंठों पर अपनी जीभ फ़िरा दी, इतना मस्त माल वेस्ट जा रहा है ये मुझसे देखा नहीं जा रहा था! लीना ने मेरी ओर देखा, इशारा किया कि मौका मत जाने दो. पर मेरी हिम्मत नहीं हुई. न जाने चाचाजी क्या सोचें अगर मेरे दिल की बात जान गये तो.
मेरी प्यारी लीना मेरे दिल की बात समझ गयी, उसने गाली दे के मुझे बुलाया "अनिल राजा, वहां क्यों बैठे हो मूरख जैसे, चलो साले, आओ और मेरी चूत साफ़ करो ...."
रजत चाचा बोले "अरी बहू, उसे क्यों तकलीफ़ देती है, मैं रुमाल से साफ़ कर देता हूं"
"नहीं चाचाजी, हमेशा अनिल ही साफ़ करता है, वो भी जीभ से. असल में उसे अच्छा लगता है, है ना अनिल?"
"हां रानी, ये अमरित तो मैं कभी नहीं छोड़ता" कहकर मैं लीना के पास गया. वो टांगें खोल कर बैठ गयी. मैं उसकी जांघें और चूत चाटने लगा.
चाचाजी बोले "अरे बेटे, देख मेरा वीर्य रिस रहा है बहू की चूत से, तेरे मुंह में चला जायेगा देख !"
लीना बोली "तो क्या हुआ चाचाजी, आप क्या पराये हो, अब तो मेरे सैंया बन गये हो. अनिल को मेरी बुर का पानी बहुत अच्छा लगता है, जरा भी नहीं छोड़ता, उस चक्कर में जरा आप की मलाई चख लेगा तो क्या बुरा है!"
मैंने पूरी बुर साफ़ की. चाचाजी के गाढ़े गाढ़े खारे वीर्य से लीना की बुर का पानी बड़ा मसालेदार हो गया था. मन ही मन मैंने लीना का शुक्रिया किया कि मेरे मन की बात ताड़ कर बड़ी खूबी से उसने मुझे चाचाजी का वीर्य चखा दिया था.
चाचाजी लीना को बाहों में लेकर लेट गये और उसके मम्मे मसलने लगे. "आज रात भर चोदूंगा बहू तुझे, फ़िर कभी नहीं कहेगी कि मुझे प्यासा छोड़ दिया. बेटे अनिल, अब जाओ, चाची का क्या हाल है देखो, जरा उसकी भी सेवा करो, दुआ देगी"
"दुआ से काम नहीं चलेगा चाचाजी. अनिल को माल चाहिये माल चाची के बदन का" लीना चाचाजी के लंड को मुठियाते हुए बोली "और आप जल्दी करो, इस मुस्टंडे को फ़िर से जगाओ, आज की रात उसे सोने नहीं मिलेगा, इस बार घंटे भर नहीं चोदा तो तलाक दे दूंगी अनिल को"
उनकी नोक झोक चलती रही, मैं उठ कर चाची के कमरे की तरफ़ चल दिया.
मैं चाची के कमरे में दाखिल हुआ तो अंधेरा था. पलंग पर लेटी हुई चाची का आकार अंधेरे में धुंधला सा दिख रहा था. जोर से सांस लेने की आवाज आ रही थी.
"कौन" चाची ने पूछा.
"चाची, मैं अनिल. चाचाजी बोले ...."
"अनिल बेटे? ... आ जा मेरे पास जल्दी. कब से राह देख रही हूं" चाची ने खुश होकर कहा. मैं जाकर उनके पास बैठ गया. उनके माथे पर हाथ रखकर बोला "चाची सिर में दर्द है क्या? दबा दूं?"
चाची बोलीं "अरे बेटे, पूरे बदन में दर्द है, जल रहा है, कहां कहां दबायेगा?" और मेरा हाथ अपनी छाती पर रख लिया. मेरे हाथ में सीधे उनकी नरम नरम बड़ी बड़ी चूंचियां आ गयीं. मैंने हाथ और नीच खिसकाया तो उनका नरम नरम पेट और उसके नीचे पाव रोटी जैसी बुर का मांस हाथ में आ गया. चाची नंगी थीं, नंगी ही मेरा इंतजार कर रही थीं. मैं हाथ चाची के बदन पर फ़ेरने लगा. एकदम चिकना मखमली गद्दी जैसा बदन था चाची का.
"चाची, आप बस कहो कि मैं क्या सेवा करूं आप की. वहां लीना चाचाजी की मन लगाकर सेवा कर रही है तो चाचाजी बोले कि अनिल, जा देख चाची को कुछ चाहिये क्या.
चाची ने टटोल कर मेरा लंड पकड़ लिया. "तैयार होकर आया है अनिल बेटे, मैं सोच रही थी कि तेरे चाचाजी मुझे भूल गये क्या. इतनी देर कहां लगा दी बेटे? तेरे चाचाजी तो कह कर गये थे कि बस अभी अनिल को भेजता हूं. जरा पास आ ना, ऐसे" और चाची ने आधा उठकर मेरे लंड को पकड़ा और चूमने लगीं. फ़िर मुंह में ले लिया और चूसने लगीं.
मैं बोला "चाची, असल में मैं थोड़ा रुक कर देख रहा था कि लीना ठीक से चाचाजी की देख रेख कर रही है या नहीं, इसीलिये टाइम लग गया. ओह चाची ... कहां मैं आप की सेवा में आया था ....और कहां आप मुझे ... आह चाची ... बहुत अच्छा लगता है चाची ... अरे चाची .... जीभ मत लगाइये ना .... मैं अभी झड़ जाऊंगा" और टटोल कर मैंने फ़िर चाची की चूंचियां पकड़ लीं.
"अरे स्वाद चख रही थी. दबा ना और जोर से, बचपन में तुझे गोद में बिठा कर खिलाती थी तब तो जोर से पकड़ लेता था बदमाश, अब बड़ा हो गया तो और जोर से दबा. पसंद आयीं कि नहीं?"
"चाची .... बहुत मुलायम और बड़ी हैं ... कब से इनके बारे में सोच रहा था चाची ... चाची अब छोड़िये ना मेरा लंड ... इससे आपकी कुछ सेवा करने दीजिये पहले" मैंने चाची के मम्मे जोर जोर से दबाते हुए कहा.
"अच्छा कड़क है रे अनिल तेरा, लगता है जैसे वो रोटी बनाने का छोटा बेलन है ...हां ऐसे ही दबा ....मसल जोर से .... और जरा ऐसे खींच ना इनको .... बहुत सनसना रही हैं ये" चाची ने कहा और मेरी उंगलियां अपने निपलों पर लगाकर दबा कर खींचने लगीं"
मैं चाची के निपल मसलता हुआ बोला "चाची ... मेरा जरा छोटा है .... आप को तो चाचाजी के मूसल की आदत हो गयी होगी"
"बहुत अच्छा है बेटे तेरा, बड़ा रसीला है. देख ना क्या हालत हो गयी है मेरी इस सौत की" चाची ने मेरा दूसरा हाथ अपनी जांघों के बीच दे दिया. चाची की बुर इतनी गीली थी कि पानी टपक रहा था. सौंधी सौंधी महक आ रही थी.
"चाची, लाइट लगा दूं क्या, जरा आप का ये रसीला बदन देखने तो दीजिये ना मुझे. बुर कितनी मखमली है आप की, एकदम चिकनी है, आज ही शेव की है लगता है, जरा देखने दीजिये ना" मैंने फ़रमाइश की.
"अरे कल दोपहर को दिन के उजाले में देख लेना मेरे लाल, अभी अंधेरा रहने दे, अंधेरे का और ही मजा है, आ अब चुम्मा दे. आज शेव की है बेटे, वैसे दो हफ़्ते में इतनी बढ़ जाती है कि झुरमुट हो जाता है. तुझे कैसी पसंद है बेटे?"
"चाची, दोनों पसंद हैं, बदल बदल के मजा आता है. वैसे लीना की झांटें बड़ी ही रहती हैं, वो तो बस दो तीन महने में एक बार कभी शेव कर लेती है. पर मां कसम चाची, आप की बुर इतनी गद्देदार है कि ... जैसे अभी अभी बनी हुई पाव रोटी हो."
"तो ये पाव रोटी भी खिला दूंगी तेरे को, अभी तो मेरे को चुम्मा दे"
मैं चाची के पास लेट कर उनको चूमने लगा. उन्होंने मुंह खोल कर मेरे होंठ अपने मुंह में ले लिये और मैंने अपनी जीभ उनके मुंह में डाल दी. एक हाथ से मैं उनके मम्मे मसल रहा था और एक से उनकी बुर में उंगली कर रहा था. बुर इतनी गीली और चिपचिपी थी कि मुझसे रहा नहीं गया. उठ कर मैं अलग हुआ तो चाची बोली "अरे भाग कहां रहा है?"
"भाग नहीं रहा चाची, आप की बुर चूसने जा रहा हूं, इतना बेशकीमती शहद फ़ालतू बह रहा है"
चाची ने हंस कर टांगें फ़ैला दीं और बोलीं "अरे ये बात है? तो आ जा, खुश कर दूंगी तुझे"
मैंने अंधेरे में होंठों से टटोल कर उनकी बुर ढूंढी, उनके पेट को चूमते हुए नीचे की ओर आया और मुंह लगा दिया. चाची मेरे सिर को पकड़कर बोलीं "चाट ले बेटे, वहां टांगों पर भी बह आया है, अरे एक घंटे से इंतजार करते करते दो बार उंगली से मुठ्ठ मार चुकी हूं"
खूब देर मैंने चाची की बुर चाटी और चूसी, दो बार उनको झड़ाया और आधा कटोरी रस पिया. बुर में उंगली की तो पता चला कि कितनी गहरी और खुली हुई बुर थी चाची की. मैंने तीन उंगली डालीं तो वो भी आराम से चली गयीं.
"चाची, क्या चूत है आप की, मेरे बस की बात नहीं है, लगता है सिर्फ़ चाचाजी का लंड ही आप को चोद सकता है, मेरा तो इतना बड़ा नहीं है"
"दिल छोटा न कर बेटे, तू बहुत प्यार से चूसता है, वैसे आज कल मुझे चुसवाने में ही ज्यादा मजा आता है. चिंता मत कर, तेरा लंड प्यासा नहीं रहेगा. अब और चूस, आज घंटे भर तक चुसवाऊंगी. अब ठीक से बता, तेरे चाचाजी ने चोदा बहू को? अरे तेरे चाचाजी दीवाने हैं बहू के, जब से देखा है, लंड खड़ा कर के तनतनाते रहते हैं, कल से लंड पकड़कर घूम रहे हैं, बहू के नाम से लंड हाथ में लेकर मुठियाते रहते हैं. आज बोले कि बहू आंखें मटकाकर इशारे कर रही है तो मैंने ही कहा कि जाओ, हाथ साफ़ कर आओ. आज राहत मिली होगी उनको"
मैंने पूरी कहानी सुनायी. सुन कर चाची गरमा गयीं "इनको तो मजा आ गया होगा, नयी जवान बहू और उसकी चुस्त चूत, इनको तो जन्नत मिल गयी होगी. तूने उनका लंड देखा?"
मैंने हां कहा. ये भी बताया कि लीना कैसी फ़िदा थी उसपर. "चाची, वहां चाचाजी लीना के नाम पर लंड हाथ में लेते हैं, और यहां लीना उनके लंड के बारे में सोच सोच कर दिन भर अपनी बुर में उंगली करती रहती है. आज तो मेरे पीछे ही पड गयी कि चाचाजी से चुदवाऊंगी" यह नहीं बताया कि लीना के साथ साथ मैं भी चाचाजी के उस महाकाय लंड का दीवाना हो गया था.
"बड़ी गरम बहू है तेरी, तेरे सामने तेरे चाचा से चुदवा लिया, अब ऐसा करना कि कल तू उसे भी साथ ले आना, उसके सामने मैं उसके मर्द को चोदूंगी. अब ऐसा कर कि पूरी जीभ अंदर डाल के चाट, अंदर बहुत रस है मेरे राजा, सब तेरे लिये है"
"चाची अब चोद लूं?" मैंने आधे घंटे के बाद पूछा.
"हां आ जा मेरे बच्चे, आज कल मेरी बुर बड़ी प्यासी रहती है, तेरे चाचाजी चोदते कम हैं, बस गांड ज्यादा मारते हैं मेरी"
मैं अंधेरे में ही चाची पर चढ़ा और चाची ने अपने हाथ से मेरा लंड अपनी चूत में घुसेड़ लिया. मैं चोदने लगा. एकदम ढीली चूत थी चाची की पर बहुत गीली थी, और एकदम मुलायम और गरम थी. मेरा लंड आराम से ’फ़च’ ’फ़च’ ’फ़च’ करता हुआ अंदर बाहर हो रहा था.
"मजा आया अनिल?"
"हां चाची, बहुत मखमली चूत है आपकी. पर आप को तो पता ही नहीं चल रहा होगा मेरे लंड का" मैंने कस के धक्के लगाते हुए कहा.
"अरे नहीं बेटे, बहुत अच्छा लग रहा है, इतना कड़ा है तेरा लंड, और कैसे थरथराता है मेरी बुर के अंदर, तू चोद मन लगाकर, और आराम से चोद, जल्दी करने की जरूरत नहीं है, मुझे बहुत देर हौले हौले चुदवाना अच्छा लगता है ... और ले ... मेरा मम्मा तो चूस ... मुंह में ले ले" कहकर चाची ने अपना मोटा मोटा नरम नरम मम्मा मेरे मुंह में ठूंस दिया.
कफ़ी देर के बाद मैंने कहा "चाची, अब नहीं रहा जाता .... अब झड़ जाऊं?"
"यहां नहीं बेटे, तेरे लिये दूसरी जगह है झड़ने ले लिये. पर वो बाद में, इतनी जल्दी थोड़े छोड़ूंगी तुमको, पहले इधर आ, यहां नीचे लेट, तूने मेरे बदन का इतना स्वाद लिया, अब मुझे भी लेने दे"
kramashah...............
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चाचाजी ने पूरा लंड गप्प से उतार दिया. लीना का बदन ऐंठ गया. वो चिल्लाये इसके पहले चाचाजी ने उसका मुंह अपने मुंह से बंद कर दिया और चोदने लगे.
लीना ’गों’ ’गों’ करके छटपटाते हुए हाथ पैर फ़ेकने लगी. पर चाचाजी का लंड बड़ी आसानी से अंदर बाहर हो रहा था, इसका मतलब था कि लीना की बुर इतनी चू रही थी कि एकदम चिकनी हो गयी थी, मैं समझ गया कि दुख वुख कुछ नहीं रहा है, नाटक कर रही है. चाचाजी लीना का मुंह ऐसे चूस रहे थे जैसे रसीला फ़ल चूस रहे हों, साथ ही सधी रफ़्तार से बिना रुके चोदते जाते. लीना अपने बंद मुंह से बस ’अं’ ’अं’ ’अं’ करती रही. फ़िर चुप हो गयी.
चाचाजी ने लीना का मुंह छोड़ा और झुक कर उसकी चूंची चूसने लगे. लीना फ़िर से हाथ पैर मारने लगी, सिसकती हुई कमर हिला हिला कर चाचाजी के लंड को और अंदर लेने की कोशिश करने लगी. फ़िर चाचाजी के इर्द गिर्द अपने हाथ पैर लपेट लिये और बोली "ओह ... ओह ... चाचाजी ... बहुत जानदार है चाचाजी आप का .... मैं जानती थी .... यही एक लंड है जो मेरी चूत की अगन ठंडी कर सकता है .... चोद डालिये चाचाजी .... चोदिये आप की बहू को ... अपनी बेटी की चूत को ..... पेल पेल के फ़ाड़ दीजिये चाचाजी .... चोद डालिये चाचाजी ...."
"बिलकुल चोद डालूंगा बहू, हमारे घर आयी है बहू बनके, तेरी हर इच्छा पूरी करना हमारा फ़र्ज़ है, ले ... ले ... और जोर से पेलूं? ... ये ले ..." चाचाजी बोले और फ़िर हचक हचक कर लीना को चोदने लगे. लीना अब नीचे से ऐसे चूतड़ उचका रही थी कि जैसे उनके लंड को पेट में लेने की कोशिश कर रही हो.
"अनिल देख तेरी बीवी को तेरे सामने चोद रहा हूं. क्या छिनाल रंडी है साली, देखो कैसे चूतड़ उचका कर मेरा लंड पिलवा रही है अपनी चूत में. मुझे लगा था कि टें बोल जायेगी, तेरी चाची भी बेहोश हो गयी थी सुहागरात में ... पर ये तो रंडियों से भी बढ़ कर है चुदवाने में" चाचाजी लीना की बुर में अपना लंड पेलते हुए बोले.
"हां चाचाजी, बड़ी गरम है, मुझसे संभलती नहीं है साली हरामन. आज आप इतना चोद दो कि साली खाट से उठ न पाये" मैं लंड को हाथ से मस्ती से सहलाते हुए बोला. लीना की गोरी चूत एकदम चौड़ी हो गयी थी, चाचाजी का मूसल उसे चौड़ा करके अंदर बाहर हो रहा था.
"चोदिये ना चाचाजी .... चोद दीजिये मुझ को .....और जोर से ..... कस के पेलिये डैडी ... और जोर से चोदिये ना .... फ़ाड़िये ना मेरी चूत ..... मामाजी ..... मसल डालिये मेरे को ..... ओह ... हं ऽ .... आह ऽ ... ओह ऽ .... आह ऽ ..." मस्ती में आंखें बंद करके लीना बड़बड़ा रही थी. अपने हाथों और पैरों से उसने चाचाजी का बदन बांध कर रखा था और उनसे चिपटी हुई थी.
"मुझको कभी मामाजी कहती है कभी डैडी कहती है साली .... बाप से भी चुदवाती थी क्या?" चाचाजी ने धक्के मारना बंद करके मुझसे पूछा.
"पता नहीं चाचाजी, शायद, वैसे उमर में बड़े और खास कर बड़े लंड वालों से चुदवाने में बहुत मजा आता है इसे, मैं चोदता हूं तो कभी मस्ती में मुझे मामाजी कहती है तो कभी जीजाजी .... बचपन से चुदैल है .... मैं तो देखते ही पहचान गया था ... इसलिये तो मैंने शादी को हां कर दी रजत चाचा .... सोचा कि ऐसी चुदैल चीज जितनी जल्दी घर में आये उतना अच्छा है ..... अब सारे खानदान को चोद डालेगी ये हरामन" मैं कस के अपने लंड को मुठिया रहा था.
चाचाजी ठीक से लीना पर चढ़ गये और फ़िर घचाघच चोदने लगे. "है बड़ी नमकीन छोकरी ... माल है साली माल .... अब इस माल को मैं कैसे गपागप कर जाता हूं देखना .... इतना चोदूंगा आज कि मेरे बिना किसी का नाम नहीं लेगी बाद में .... और तू क्यों मुठ्ठ मार रहा है वहां नालायक .... आ जा ... साथ साथ चोदेंगे .... साली के मुंह में डाल दे लंड और चोद डाल ..... तू कहे तो मैं नीचे होता हूं .... गांड मार ले हरामन की .... बहुत गुदाज है .... तू तो मारता ही होगा ..... मेरा मन हो रहा था असल में गांड मारने को .... पर साली की बुर इतनी मीठी दिखती है कि ....." कहकर चाचाजी ने लीना के होंठों को अपने होंठों में दबा लिया और चूसने लगे.
"मैंने तो बहुत बार चोदा है .... गांड भी मारी है .... आज आप मजा कर लो रजत चाचा ... वैसे आप का लंड बड़ा शानदार है, चाचीजी तो मरती होंगी आप पर" मैंने कहा. गीता चाची के मोटे मांसल बदन को याद करके मेरा और उछलने लगा.
"हां अनिल .... तेरी चाची भी माल है ..... पर तेरी ये बहू तो एकदम तीखी कटारी है ... आह लीना बेटी .... साली छिनाल .... कैसे मेरे लंड को पकड़ रही है चूत से ... गाय के थन जैसा दुह रही है ... आज तेरी चूत की भोसड़ा न बना दूं तो कहना" चाचाजी हांफ़ते हुए घचाघच धक्के लगाते हुए बोले.
"रजत चाचा .... आप मार डालो मुझे चोद चोद के ... आप के मुस्टंडे ने मार डाला तो भी ... उसे दुआ दूंगी .... हाय ... हाय ... अरे साले चाचा के बच्चे .... घुसेड़ ना और अंदर .... और चाची माल है तो मेरा ये सैंया अनिल क्या कम है .... चाची का माल इसे ... दिलवा दो ... चोद ना साले .... चोद ना और " लीना अब तैश में आकर बुरी तरह तड़प रही थी.
"दिलवा दूंगा ... मैंने तो पहले ही कहा था ... यही घर का ही माल है ... अनिल को पसंद आयेगा ... खोवा है खोवा ... क्यों रे अनिल ... चाची को चोदेगा ... साली अब पिलपिली हो गयी है .... चूत और गांड का भोसड़ा हो गया है ... तेरे लंड समेत तुझे निगल लेगी ... पर है बड़ी जायकेदार साली मुटल्ली .... रस चूता है तो बिस्तर गीला कर देती है ...तू जा ना अनिल ... तेरी चाची चूत खोल कर .... तेरा इंतजार कर रही होगी ..." चाचाजी अब हचक हचक कर ऐसे चोदने लगे जैसे लीना का कचूमर निकाल देंगे. लीना अचानक ’सी’ ’सी’ ’सी’ करके हाथ पैर पटकने लगी. फ़िर लस्त हो गयी.
"खलास कर दिया सा ऽ ली ऽ हरा ऽ म ऽ जा ऽ दी ऽ रंडी ऽ को .... चली थी मेरे लंड से लोहा लेने ... ओह ... ओह ... लीना बेटी ... आह" कहकर चाचाजी भी ढेर हो गये. मैं कस के मुठ्ठ मार रहा था, इतनी मस्त चुदाई देख के मजा आ गया था. खास कर लीना को बहुत मजा आया था ये देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा था. आखिर मेरी प्यारी बीवी है, उसपर जान छिड़कता हूं मैं. आखरी मौके पर आकर मैंने हाथ हटा लिया और लंड को झड़ने नहीं दिया. वहां चाची से मार थोड़ी खानी थी मुझे!
चाचाजी थोड़ी देर से उठे और रुमाल से अपना लंड पोछने लगे. उनके लंड पर गाढ़े सफ़ेद वीर्य के कतरे लगे थे. अनजाने में मैंने अपने होंठों पर अपनी जीभ फ़िरा दी, इतना मस्त माल वेस्ट जा रहा है ये मुझसे देखा नहीं जा रहा था! लीना ने मेरी ओर देखा, इशारा किया कि मौका मत जाने दो. पर मेरी हिम्मत नहीं हुई. न जाने चाचाजी क्या सोचें अगर मेरे दिल की बात जान गये तो.
मेरी प्यारी लीना मेरे दिल की बात समझ गयी, उसने गाली दे के मुझे बुलाया "अनिल राजा, वहां क्यों बैठे हो मूरख जैसे, चलो साले, आओ और मेरी चूत साफ़ करो ...."
रजत चाचा बोले "अरी बहू, उसे क्यों तकलीफ़ देती है, मैं रुमाल से साफ़ कर देता हूं"
"नहीं चाचाजी, हमेशा अनिल ही साफ़ करता है, वो भी जीभ से. असल में उसे अच्छा लगता है, है ना अनिल?"
"हां रानी, ये अमरित तो मैं कभी नहीं छोड़ता" कहकर मैं लीना के पास गया. वो टांगें खोल कर बैठ गयी. मैं उसकी जांघें और चूत चाटने लगा.
चाचाजी बोले "अरे बेटे, देख मेरा वीर्य रिस रहा है बहू की चूत से, तेरे मुंह में चला जायेगा देख !"
लीना बोली "तो क्या हुआ चाचाजी, आप क्या पराये हो, अब तो मेरे सैंया बन गये हो. अनिल को मेरी बुर का पानी बहुत अच्छा लगता है, जरा भी नहीं छोड़ता, उस चक्कर में जरा आप की मलाई चख लेगा तो क्या बुरा है!"
मैंने पूरी बुर साफ़ की. चाचाजी के गाढ़े गाढ़े खारे वीर्य से लीना की बुर का पानी बड़ा मसालेदार हो गया था. मन ही मन मैंने लीना का शुक्रिया किया कि मेरे मन की बात ताड़ कर बड़ी खूबी से उसने मुझे चाचाजी का वीर्य चखा दिया था.
चाचाजी लीना को बाहों में लेकर लेट गये और उसके मम्मे मसलने लगे. "आज रात भर चोदूंगा बहू तुझे, फ़िर कभी नहीं कहेगी कि मुझे प्यासा छोड़ दिया. बेटे अनिल, अब जाओ, चाची का क्या हाल है देखो, जरा उसकी भी सेवा करो, दुआ देगी"
"दुआ से काम नहीं चलेगा चाचाजी. अनिल को माल चाहिये माल चाची के बदन का" लीना चाचाजी के लंड को मुठियाते हुए बोली "और आप जल्दी करो, इस मुस्टंडे को फ़िर से जगाओ, आज की रात उसे सोने नहीं मिलेगा, इस बार घंटे भर नहीं चोदा तो तलाक दे दूंगी अनिल को"
उनकी नोक झोक चलती रही, मैं उठ कर चाची के कमरे की तरफ़ चल दिया.
मैं चाची के कमरे में दाखिल हुआ तो अंधेरा था. पलंग पर लेटी हुई चाची का आकार अंधेरे में धुंधला सा दिख रहा था. जोर से सांस लेने की आवाज आ रही थी.
"कौन" चाची ने पूछा.
"चाची, मैं अनिल. चाचाजी बोले ...."
"अनिल बेटे? ... आ जा मेरे पास जल्दी. कब से राह देख रही हूं" चाची ने खुश होकर कहा. मैं जाकर उनके पास बैठ गया. उनके माथे पर हाथ रखकर बोला "चाची सिर में दर्द है क्या? दबा दूं?"
चाची बोलीं "अरे बेटे, पूरे बदन में दर्द है, जल रहा है, कहां कहां दबायेगा?" और मेरा हाथ अपनी छाती पर रख लिया. मेरे हाथ में सीधे उनकी नरम नरम बड़ी बड़ी चूंचियां आ गयीं. मैंने हाथ और नीच खिसकाया तो उनका नरम नरम पेट और उसके नीचे पाव रोटी जैसी बुर का मांस हाथ में आ गया. चाची नंगी थीं, नंगी ही मेरा इंतजार कर रही थीं. मैं हाथ चाची के बदन पर फ़ेरने लगा. एकदम चिकना मखमली गद्दी जैसा बदन था चाची का.
"चाची, आप बस कहो कि मैं क्या सेवा करूं आप की. वहां लीना चाचाजी की मन लगाकर सेवा कर रही है तो चाचाजी बोले कि अनिल, जा देख चाची को कुछ चाहिये क्या.
चाची ने टटोल कर मेरा लंड पकड़ लिया. "तैयार होकर आया है अनिल बेटे, मैं सोच रही थी कि तेरे चाचाजी मुझे भूल गये क्या. इतनी देर कहां लगा दी बेटे? तेरे चाचाजी तो कह कर गये थे कि बस अभी अनिल को भेजता हूं. जरा पास आ ना, ऐसे" और चाची ने आधा उठकर मेरे लंड को पकड़ा और चूमने लगीं. फ़िर मुंह में ले लिया और चूसने लगीं.
मैं बोला "चाची, असल में मैं थोड़ा रुक कर देख रहा था कि लीना ठीक से चाचाजी की देख रेख कर रही है या नहीं, इसीलिये टाइम लग गया. ओह चाची ... कहां मैं आप की सेवा में आया था ....और कहां आप मुझे ... आह चाची ... बहुत अच्छा लगता है चाची ... अरे चाची .... जीभ मत लगाइये ना .... मैं अभी झड़ जाऊंगा" और टटोल कर मैंने फ़िर चाची की चूंचियां पकड़ लीं.
"अरे स्वाद चख रही थी. दबा ना और जोर से, बचपन में तुझे गोद में बिठा कर खिलाती थी तब तो जोर से पकड़ लेता था बदमाश, अब बड़ा हो गया तो और जोर से दबा. पसंद आयीं कि नहीं?"
"चाची .... बहुत मुलायम और बड़ी हैं ... कब से इनके बारे में सोच रहा था चाची ... चाची अब छोड़िये ना मेरा लंड ... इससे आपकी कुछ सेवा करने दीजिये पहले" मैंने चाची के मम्मे जोर जोर से दबाते हुए कहा.
"अच्छा कड़क है रे अनिल तेरा, लगता है जैसे वो रोटी बनाने का छोटा बेलन है ...हां ऐसे ही दबा ....मसल जोर से .... और जरा ऐसे खींच ना इनको .... बहुत सनसना रही हैं ये" चाची ने कहा और मेरी उंगलियां अपने निपलों पर लगाकर दबा कर खींचने लगीं"
मैं चाची के निपल मसलता हुआ बोला "चाची ... मेरा जरा छोटा है .... आप को तो चाचाजी के मूसल की आदत हो गयी होगी"
"बहुत अच्छा है बेटे तेरा, बड़ा रसीला है. देख ना क्या हालत हो गयी है मेरी इस सौत की" चाची ने मेरा दूसरा हाथ अपनी जांघों के बीच दे दिया. चाची की बुर इतनी गीली थी कि पानी टपक रहा था. सौंधी सौंधी महक आ रही थी.
"चाची, लाइट लगा दूं क्या, जरा आप का ये रसीला बदन देखने तो दीजिये ना मुझे. बुर कितनी मखमली है आप की, एकदम चिकनी है, आज ही शेव की है लगता है, जरा देखने दीजिये ना" मैंने फ़रमाइश की.
"अरे कल दोपहर को दिन के उजाले में देख लेना मेरे लाल, अभी अंधेरा रहने दे, अंधेरे का और ही मजा है, आ अब चुम्मा दे. आज शेव की है बेटे, वैसे दो हफ़्ते में इतनी बढ़ जाती है कि झुरमुट हो जाता है. तुझे कैसी पसंद है बेटे?"
"चाची, दोनों पसंद हैं, बदल बदल के मजा आता है. वैसे लीना की झांटें बड़ी ही रहती हैं, वो तो बस दो तीन महने में एक बार कभी शेव कर लेती है. पर मां कसम चाची, आप की बुर इतनी गद्देदार है कि ... जैसे अभी अभी बनी हुई पाव रोटी हो."
"तो ये पाव रोटी भी खिला दूंगी तेरे को, अभी तो मेरे को चुम्मा दे"
मैं चाची के पास लेट कर उनको चूमने लगा. उन्होंने मुंह खोल कर मेरे होंठ अपने मुंह में ले लिये और मैंने अपनी जीभ उनके मुंह में डाल दी. एक हाथ से मैं उनके मम्मे मसल रहा था और एक से उनकी बुर में उंगली कर रहा था. बुर इतनी गीली और चिपचिपी थी कि मुझसे रहा नहीं गया. उठ कर मैं अलग हुआ तो चाची बोली "अरे भाग कहां रहा है?"
"भाग नहीं रहा चाची, आप की बुर चूसने जा रहा हूं, इतना बेशकीमती शहद फ़ालतू बह रहा है"
चाची ने हंस कर टांगें फ़ैला दीं और बोलीं "अरे ये बात है? तो आ जा, खुश कर दूंगी तुझे"
मैंने अंधेरे में होंठों से टटोल कर उनकी बुर ढूंढी, उनके पेट को चूमते हुए नीचे की ओर आया और मुंह लगा दिया. चाची मेरे सिर को पकड़कर बोलीं "चाट ले बेटे, वहां टांगों पर भी बह आया है, अरे एक घंटे से इंतजार करते करते दो बार उंगली से मुठ्ठ मार चुकी हूं"
खूब देर मैंने चाची की बुर चाटी और चूसी, दो बार उनको झड़ाया और आधा कटोरी रस पिया. बुर में उंगली की तो पता चला कि कितनी गहरी और खुली हुई बुर थी चाची की. मैंने तीन उंगली डालीं तो वो भी आराम से चली गयीं.
"चाची, क्या चूत है आप की, मेरे बस की बात नहीं है, लगता है सिर्फ़ चाचाजी का लंड ही आप को चोद सकता है, मेरा तो इतना बड़ा नहीं है"
"दिल छोटा न कर बेटे, तू बहुत प्यार से चूसता है, वैसे आज कल मुझे चुसवाने में ही ज्यादा मजा आता है. चिंता मत कर, तेरा लंड प्यासा नहीं रहेगा. अब और चूस, आज घंटे भर तक चुसवाऊंगी. अब ठीक से बता, तेरे चाचाजी ने चोदा बहू को? अरे तेरे चाचाजी दीवाने हैं बहू के, जब से देखा है, लंड खड़ा कर के तनतनाते रहते हैं, कल से लंड पकड़कर घूम रहे हैं, बहू के नाम से लंड हाथ में लेकर मुठियाते रहते हैं. आज बोले कि बहू आंखें मटकाकर इशारे कर रही है तो मैंने ही कहा कि जाओ, हाथ साफ़ कर आओ. आज राहत मिली होगी उनको"
मैंने पूरी कहानी सुनायी. सुन कर चाची गरमा गयीं "इनको तो मजा आ गया होगा, नयी जवान बहू और उसकी चुस्त चूत, इनको तो जन्नत मिल गयी होगी. तूने उनका लंड देखा?"
मैंने हां कहा. ये भी बताया कि लीना कैसी फ़िदा थी उसपर. "चाची, वहां चाचाजी लीना के नाम पर लंड हाथ में लेते हैं, और यहां लीना उनके लंड के बारे में सोच सोच कर दिन भर अपनी बुर में उंगली करती रहती है. आज तो मेरे पीछे ही पड गयी कि चाचाजी से चुदवाऊंगी" यह नहीं बताया कि लीना के साथ साथ मैं भी चाचाजी के उस महाकाय लंड का दीवाना हो गया था.
"बड़ी गरम बहू है तेरी, तेरे सामने तेरे चाचा से चुदवा लिया, अब ऐसा करना कि कल तू उसे भी साथ ले आना, उसके सामने मैं उसके मर्द को चोदूंगी. अब ऐसा कर कि पूरी जीभ अंदर डाल के चाट, अंदर बहुत रस है मेरे राजा, सब तेरे लिये है"
"चाची अब चोद लूं?" मैंने आधे घंटे के बाद पूछा.
"हां आ जा मेरे बच्चे, आज कल मेरी बुर बड़ी प्यासी रहती है, तेरे चाचाजी चोदते कम हैं, बस गांड ज्यादा मारते हैं मेरी"
मैं अंधेरे में ही चाची पर चढ़ा और चाची ने अपने हाथ से मेरा लंड अपनी चूत में घुसेड़ लिया. मैं चोदने लगा. एकदम ढीली चूत थी चाची की पर बहुत गीली थी, और एकदम मुलायम और गरम थी. मेरा लंड आराम से ’फ़च’ ’फ़च’ ’फ़च’ करता हुआ अंदर बाहर हो रहा था.
"मजा आया अनिल?"
"हां चाची, बहुत मखमली चूत है आपकी. पर आप को तो पता ही नहीं चल रहा होगा मेरे लंड का" मैंने कस के धक्के लगाते हुए कहा.
"अरे नहीं बेटे, बहुत अच्छा लग रहा है, इतना कड़ा है तेरा लंड, और कैसे थरथराता है मेरी बुर के अंदर, तू चोद मन लगाकर, और आराम से चोद, जल्दी करने की जरूरत नहीं है, मुझे बहुत देर हौले हौले चुदवाना अच्छा लगता है ... और ले ... मेरा मम्मा तो चूस ... मुंह में ले ले" कहकर चाची ने अपना मोटा मोटा नरम नरम मम्मा मेरे मुंह में ठूंस दिया.
कफ़ी देर के बाद मैंने कहा "चाची, अब नहीं रहा जाता .... अब झड़ जाऊं?"
"यहां नहीं बेटे, तेरे लिये दूसरी जगह है झड़ने ले लिये. पर वो बाद में, इतनी जल्दी थोड़े छोड़ूंगी तुमको, पहले इधर आ, यहां नीचे लेट, तूने मेरे बदन का इतना स्वाद लिया, अब मुझे भी लेने दे"
kramashah...............
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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