Sunday, April 20, 2014

FUN-MAZA-MASTI शराफ़त--2

FUN-MAZA-MASTI

 शराफ़त--2

 ट्रेन चल पड़ी थी नीरजा ने मेरे साथ खाना खाया ओर हम आपस बे एक दूसरे को तरसती हुई नज़रों से देखते हुए खाना खा रहे थे कूप मे बैठे दूसरे दोनो यात्री सयद खा पी कर आए थे वो दोनो अपने अपने बिस्तर पकड़ चुके थे रात के १०:३० हो चुके थे नीरजा भी अब सोना चहरहि थी मैने भी अपनी बर्थ पकड़ी. कुच्छ देर तक लेते रहने के बाद ट्रेन के साथ साथ मान भी गति पकड़ने लगा था ओर मुझे पिछले सेमिनार की बात याद आने लगी थी करीब १० महीने बीत चुके थे. मेरे ख़यालों पर नीरजा छाई हुई थी. नीरजा मेरी कॉलेज के टाइम की दोस्त थी हम दोनो आपस मे आकर्षित थे पर कभी अपने दिल की बात कह नही पाए ओर जब कहा तो बहुत देर हो चुकी थी . मेरे घरवाले मेरी शादी तय कर चुके थे ओर पिताजी काविरोध करने की हिम्मत किसी की नही थी. हम दोनो ने ही नियती के फ़ैसले को मंजूर कर लिया था. पर मैं उसकी तरफ बहुत आकर्षित था. उसकी सेक्स अपील मुझे उसकी तरफ खींचती रहती थी ओर फिर वो मेरे ही सब्जेक्ट की थी ओर मेरे ही प्रोफेशन मे थी तो मुलाकात होती रहती थी. उसके प्रति मेरे खींचाव को उसने भी महसूस किया ओर हम करीब आते चले गये. ओर करीब होते होते हम एक हो गये थे ओर अब हर बार किसी ना किसी बहाने की तलाश मे रहते थे. मैं हमेशा इस कोशिश मे रहता था की जिस भी सेमिनार मे मैं हिस्सा लू उसमे वो भी आए ओर कई बार मैने इस काम के लिए आयोजकों से खुशमाद भी की ओर कई बार उन पर दबाव भी बनाया मेरी प्रतिस्ता के कारण आयोजकों को मानना भी पड़ता था. ओर जब आयोजक नीरजा को देखते थे तो उन्हे अपने फैशले पर गर्व ही होता था की उन्होने नीरजा को बुला कर सही काम किया है क्यूंकी पुर सेम्मीनार की रौनक नीरजा ही रहती थी.
सोचते सोचते मुझे नीरजा के साथ हुई पिच्छली मुलाकात याद आ गई. जिसके साथ ही मुझे अचानक सनसनाहट महसूस हुई. जैसे कई घोड़े दौड़ने लगे हो चारो तरफ आँधियाँ चलने लगी हों मेरा पूरा शरीर पसीने से नहा गया. ऐसा क्यू हुआ? क्या मैं?
नही ये संयोग हो सकता है. इसमे सच्चाई नही हो सकती . मैने अपने दिमाग़ से इस विचार को झटक दिया. अपने आप को तसल्ली दी ओर सोने की कोशिश करने लगा. अगले दिन शाम को ३:५० पर ट्रेन बंगलोरे पहुँची. मैं ओर नीरजा दोनो एकदम थक चुके थे सफ़र के कारण दोनो ने टॅक्सी ली ओर अपने चिर परिचित होटेल की तरफ चल दिया.
होटेल मे चेक इन करके रूम मे आ गये रूम मे आने के बाद दोनो बिस्तर पर गिर गये ओर थकान दूर करने लगे कुछ देर बाद जब कुछ बदन हल्का हुआ तो मैने नीरजा से कहा मैं नहाने जा रहा हू तुम चाहो तो तुम भी नहा लो. नीरजा ने अर्थ पूर्ण नज़रों से मुझे देखा ओर मैने भी उसे. फिर वो टॉवेल ले कर बातरूम मे घुस गई मैं भू उसके पीछे पीछे बाथरूम मे घुस जाना चाहता था पर बातरूम लॉक था अंदर से ओर मुझे मान मसोष कर रह जाना पड़ा. 

नीरजा बाथरूम मे चली गई तो मुझे कमरे को देखने की फ़ुर्सत मिली कमरा काफ़ी अच्छा था पहले कमरा लेते समय तो इस बात पर गौर ही नही कर पाया था उस समय तो नीरजा के साथ कमरा लेने की जल्दी थी सामने दीवार पर एक आदमकद तस्वीर लगी थी जिसमे एक आदमी ओर एक ओरात नज़र आ रहे थे जो परिणय सूत्र मे बँधे नज़र आ रहे थे बेड के साइड मे खिड़की के नीचे एरकॉनडिशनर लगा था जो ठंडी हवा दे रहा था. वैसे तो अभी मार्च शुरू हुआ था पर बंगलोरे मे काफ़ी उमस थी इस करम एरकॉनडिशनर आराम ही दे रहा था. दीवार पर लगे एल्सीडी टेलिविषन को मैने ऑन कर दिया ओर उस पर आने वाले चॅनेल बदल बदल कर देखने लगा. इंसान भी बड़ा अजीब मखलूक है इसे हर बार कुच्छ नया चाहिए चाहे चॅनेल हो या ओरात कुच्छ भी तो अलग नही है आज मैं अपनी बीवी को घर पर छ्चोड़ कर यहाँ दूसरे की बीवी के साथ होटेल मे कमरा ले कर रह रहा हू.
मैं इन्ही विचारों मे खोया हुआ था की बातरूम का दरवाजा खुला ओर नीरजा ने बातरूम से बाहर कदम रखा. उसने ड्रेस चेंज कर ली थी उसने ट्रांसपेरेंट मॅक्सी पहनी थी जिसमे से उसका मादक वक्ष मुझे अपनी तरफ आकृष्ट कर रहा था नीरजा इस समय बारिश मे नहाए हुए फूल की तरह तरोताजा लग रही थी. पर अब जबकि उसका मेकअप नहाने के कारण हट गया था ओर उसका चेहरा उम्र की चुगली खा रहा था. मैं उसकी तरफ बढ़ा तो वो एक तरफ हो गई मैने उसे अर्थपूर्ण अंदाज से देखा ओर बातरूम मे घुस गया. नहाकर बाहर आया तो देखा की नीरजा खाना मंगवा चुकी है दोनो ने खाना खाया ओर लेट गये. मैने अपनी बाहे नीरजा की तरफ बधाई तो नीरजा मेरी तरफ सरक आई उसने अपना सर मेरे हाथ पर रख दिया हम दोनो मे से खि भी बात नही कर रहा था सयद बात करने की ज़रूरत ही नही थी दोनो ही जानते थे की क्या करने वाले है ओर इस काम मे बात चीत की ज़्यादा गुंजाइश थी भी नही ओर किसी को किसी की इजाज़त भी तो नही लेनी थी. मुझे लगा की नीरजा को रोशनी मे शायद कुच्छ शर्म महसूस हो तो मैने हाथ बढ़ा कर बत्ती बंद कर दी.

अभी बत्ती गुल हुए कुल ५-६ मिनिट ही हुए थे की नीरजा ने नाइट लॅंप की बत्ती जला दी ओर उठ बैठी. उसके चेरे पर सॉफ तौर पर झुंझलाहट नज़र आ रही थी. वा उठी ओर बातरूम मे चली गई.
वापस आई तो वो अभी भी झुंझलाई हुई थी सीधे मुझसे मुखातिब हो कर बोली: अब तुम पर उम्र का असर होने लगा है पिच्छली बार भी ऐसा ही हुआ था. तुम अब चूक चुके हो.
मैं चुप छाप उसे देख रहा तमैन एकदम खामोश था जैसे मेरे पास आज शब्दों का नीतांत अभाव हो गया हो. मेरे दिमाग़ जैसे सुन्न हो गया हो कुच्छ भी समझ नही आ रहा था. फिर हम दोनो के बीच कोई बात चिट नही हुई ओर दोनो सो गये.
अगले दिन सुबह चाय पीते हुए भी दोनो के चेहरे पर बेरूख़ी विराजमान थी दोनो चुप चाप चाय पी रहे थे.
जब बहुत देर तक हम दोनो के बीच कोई बात नही हुई तो मैने खामोशी को तोड़ने की गरज से मैने पूछा "तुम्हारे पति कैसे है?
नीरजा ने मेरी तरफ अजीब नज़रों से देखा ओर फिर तंज़ से मुश्कूराते हुए कहा "ठीक है. तुमसे तो कहीं बेहतर है.
मैं खिसिया गया. मेरे मूह से शब्द एक बार फिर नही फुट रहे थे. मेरी नज़र नीरजा पर ही टिकी हुई थी. वातावरण बहुत बोझल हो गया था. मैने माहौल को बदलने की गरज से कहा "नीरजा, देर हो रही है, चलो जल्दी तय्यार हो जाओ, हमे अभी ये होटेल छ्चोड़ना है, सेमिनार के आयोजक नही जानते की हम किस ट्रेन से आ रहे है हमे आयोजन स्थल पर चलना चाहिए.

ठीक है मैं अभी तय्यार हो जाती हू, मुझे तो कल तुम्हारे साथ आना ही नही चाहिए था आज ही आना चाहिए था.









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