FUN-MAZA-MASTI
सुदामा मौसी का ज्ञान पार्ट --1
दोस्तों मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और नई कहानी लेकर हाजिर हूँ
बात बहुत पुरानी है लेकिन सच्ची है। क्योंकि जब की यह बात है तब तो शायद हमने यह सोचा भी न हो कि ऐसा माध्यम होगा जिससे मैं इसे बहुत सारे लोग से बाँट सकूँ गा, इसिलए के वल
घटना को जोड़ने के लिए कल्पना का सहारा लूँगा। यही कल्पना इस सच्ची घटना को कहानी के रूप में बदलेगी ! तो प्रिय पाठक अगर यह कहानी आप को पसंद आये तो मुझे
जरूर बताना
हाई स्कू ल की परीक्षा के बाद मैंने जिद पकड़ ली िक अब की बार मुझे चाचा की ससुराल
जाना ही है। वहाँ मुझे बहुत अच्छा लगता था। हाला कि मेरे चाचा की ससुराल
जिसे मैं नाना का गाँव
कहता था बहुत ही छोटा सा गाँव है। मेरे चाचा के कोई औलाद न होने के कारण
चाचा ने मुझे गोद ले
िलया था इस िलए वहाँ भी मेरी आवभगत बिलकुल सगे नाती जैसी होती थी। सुदामा
मौसी जो की
मेरे नाना की सबसे छोटी संतान हैं मुझसे बहुत ही हिली थी । वह नाना की
सबसे छोटी संतान थी
बाकी दोन बेटे जो िक उनसे बहुत बड़े थे पटना और बनारस में अपने परिवार के
साथ रहते थे। बस
कभी-कभार गर्मियों में आ जाते थे। वह लोग बहुत अमीर थे। मेरे नाना भी
अपने गाँव के जमीदार
थे। बहुत सारे खेत थे। बड़ा सा आम का बाग था। तीन-चार पंप थे। ट्रेक्टर था।
सुदामा मौसी मुझे बहुत प्यार करती थी । थी वह मुझसे बस तीन साल बड़ी लेिकन वह
बहुत दबंग लड़की थी जब भी मैं गर्मियों में जाता तो मुझे वहाँ बहुत मजा
आता। आम के बाग की
रखवाली करते और घूमते। गाँव में नाना अकेले ठाकु र थे बाकी अहीर और दूसरी
छोटी जाती के लोग
ही रहते थे। सुदामा मौसी को सभी बीट्टो कहते।
चूँिक इससे पहले मुझे वहाँ गये तीन साल हो गये थे, इसिलए मैं काफी
रोमांिचत था। मैं खुद
अब पहले वाला राज शर्मा नही रह गया था तो वह भला अब पहले जैसी कहाँ होंगी
! वहाँ पहुचकर देखा
तो वह सचमुच मे बदल गई थी । अब वह जवान हो गयी थी । पूरा शरीर भर गया था। पहले वह
घाघरी और चोली पहनती थथी , लेिकन इस बार उन्होने शलवार कमीज पहन रक्खी
थी। मुझे देखते ही
उन्होने मुझे लिपटा लिया हालाँकि यह उनका बस प्यार था, लेिकन मुझे
अजीब-सा लगा। मेरा सीना उनकी
बड़ी छातियो से जब िमला तो मेरी हालत अजीब हो गयी। ऐसा उन्होने पहली बार
ये सब नही िकया था,
बिल्क वह पहले भी ऐसे ही मिलती थी , लेकिन अब हम बदल गये थे। वह बड़ी हो
गई थी और मै जवान
हो रहा था। साथ पढ़ने वाले लड़क के बीच जो जवानी के लक्षण से अनजान होते थे वह भी सब
जानने लगते थे। मेरे अन्दर भी इस उमर् की स्वाभाविक क्रियाए पनप गयी थी ।
बिल्क कुछ अधिक ही
पता चला की बड़े मामा का परिवार भी पटना से आया था सब तो चले गये लेकिन
उनकी बड़ी बेटी नीलम यही रुक गई थी नीलम के बारे मे मैने सुना तो था,
लेिकन देखा तो आँख खुली रह गई ।
वह सुदामा बुआ से एक साल छोटी थी , लेिकन शरीर से पूरी जवान औरत िदखती
थी। सच कहूँ तो मैं
क्या कोई भी उन्ह देखता होगा तो उनकी छातियो पर ही उसका ध्यान जाता होगा।
मने सोचा! जैसे
दो मटके सामने बाँध िदये गये हो। पहली बार वह जब िमली तो उन्होने स्कटर्
और टॉप पहन रक्खी
थी। मैं उन्हे देखकर देखता ही रह गया। उन्ह भी शायद इस बात का अनुमान हो
गया, क्योंकि
उन्होने उसी समय सुदामा मौसी की तरफ देखकर कु छ उनके कान मे कहते हुए
मुस्कु राने लगी । तभी
सुदामा मौसी की चुनरी गिर गयी। मेरे सामने ही। नीलम ने उसे लेकर अपने कधे
पर डाल िलया और
जोर से हँस पड़ी।
शाम तक मैं उनसे भी घुल-िमल गया। रात को खाने मे नानी ने ढेर सारे पकवान बनाये थे।
खाना खाकर हम सग आँगन मे लेटने गये। बहुत देर तक बात होती रही। नीलम दीदी
की चारपाई पर
मैं सुदामा मौसी बैठे। नानी और नौकरानी सुिखया नानी भी वह थी। बात करते
करते नीलम और
सुदामा मौसी दोनो ही मुझे घौल-धप्पे लगाने लगी । बैठे-बैठे जब मैं थक गया
तो मैं उसी चारपायी पर
अधलेटा हो गया। मेरा पैर सुदामा मौसी की कमर से लग गया, न जाने िकस भावना
के तहत मैने वहाँ
से पैर को हटाया नही , बिल्क एकाध बार अँगूठे से उनकी कमर को खोद भी
िदया। दूसरी तरफ नीलम
दीदी भी अधलेटी हुईं तो उनका पैर मेरी दोनो टाँग के बीच मे आ गया। मने
जानबूझकर आगे
खिसक कर अपने लंड से उनके पैर का स्पर्श करा िदया। उन्ह ने पहले तो अपने
पैर को पीछे िकया,
लेिकन िफर आगे कर िदया। उनका पैर रह-रहकर मेरे लिंग से स्पर्श करने लगा,
लेिकन मने अपनी
साँसे रोकरक स्वयं को स्थिर कर िलया , मगर उसके तनाव को भला कै से रोक
सकता था? उस समय
मैं सिर्फ़ पैजामा पहने था। असल मे अभी तक पेंट या पैजाम के नीचे चड्धि
पहनता ही नही था
अपने पैर को एक बार िसमेटकर िफर फै लाया तो उनके पैर का पंजा एकदम से
मेरे तने िलग के ऊपर
आ गया। उन्ह ने हटाया नही । मेरी हालत खराब होने लगी, िफर भी हिम्मत करके मने अपनी
पोजीशन बदली नही । उन्होने सुदामा बुआ से कु छ धीरे से कहा तो वह मेरी
तरफ आ गई और मेरे
बालो मे अँगुिलया डालकर फेरने लगी वो पहले भी ऐसा करती थी, लेिकन इस बार
मेरे अन्दर एक
अजीब सी मदहोशी छाने लगी। मने भी हिम्मत करके एक हाथ उनकी जाँघ पर इस तरह रख िदया
मानो ऐसा अनजाने मे हुआ हो।
दूसरे िदन हम लोग सुबह ही बाग रखवाली के िलए िनकले। मटरू काका जो िक
हमारा ट्रेक्टर
भी चलाते थे उनका परिवार ही बाग की रखवाली करता था, लेिकन अब हम लोग के कारण वह
लोग नही आने वाले थे। यहा अभी आम के पकने मे काफी िदन थे, लेकिन आमियो की
तो देखभाल
करनी थी। बाग मे एक छप्पर था। िजसे लू और हवा से बचने के िलए तीन तरफ से
घेर िदया गया
था। असल बात तो यह थी िक रखवाली तो बस नाम की थी, वरना िकसी की इतनी हिम्मत नही थी
िक बाग की तरफ आँख उठाकर देखे।
सुदामा मौसी घर के काम को समेटकर आने वाली थी , मैं और नीलम दी पहले िनकल गये।
बाग घर से दूर था। सुदामा मौसी हम लोग का खाना लेकर मटरू काका के साथ आने
वाली थी ।
उनको खेत की िसचाई के िलए पंप चलाना था। उनकी पत्नी वहाँ पहले से ही थी ।
गाँव की सीमा से
िनकलते ही नीलम दी ने कहा, ''राज तुम बड़े हो गये हो।''
मैं चुप रहा। उनकी तरफ देखने लगा। और उनके साथ चल रहा था।
उन्होने अचानक मेरे बिल्कुल िनकट आकर हाथ बढ़ाकर मेरे लिंग को पैजाम के
ऊपर से छू ते
हुए कहा, ''बहुत कड़ा रहने लगा है।
मैं तो उनके इस स्पर्श से िसहर सा उठा। जैसे किसी ने करं ट का झटका दे िदया हो।
उन्होने फिर कहा, ''किसी बिल मे गया?''
हालांिक मैं समझ गया कि वह क्या कहना चाह रही थी , लेिकन मैने बुद्धू
बनते हुए कहा, ''मै
समझा नही
आज कलके लड़के बड़े हरामी होते हैं
मेरे जी मे आया की काहु लड़किया लेकिन कहा नही
अभी तक किसी लड़की के किए हो
मैं अंजान बनते हुए बोला क्या
उन्होने मेरे लिंग को छुआ तो वो और कड़ा हो चुका था वो बोली-बुद्धू ना बनाओ
मैं समझ गया की मेरी चोरी पकड़ी गई है मुझे थोड़ी सी शरम भी आ रही थी फिर
मैने सोचा बेटा तूने अगर की शरम तो फूटेंगे तेरे करम ,, मैं बोला आपका
मतलब चुदाई ...अभी नही .... सपने मे तो बहुत बार निकल जाता है
क्या..............?
बीज ,, हमारे यहाँ जो सपने मे निकलता है उसे बीज कहते है
,, जहाँ से निकलता है वो जगह दिखाओ '' नीलम दीदी ने इधर उधर देखते हुए
कहा ;; यहाँ कोई नही देखेगा
चारो तरफ सुनसान था मई मे तो सुबह से ही गर्मी शुरू हो जाती है
'' मुझे शरम आती है ''
''मुझसे क्या शरमाना '
कोई जान जाएगा की मैने अपना ये दिखाया है तो मेरी खैर नही '' मैने अपने
लिंग की तरफ इशारा करते हुए कहा
'' यह क्या लगा रखा है सॉफ सॉफ इसका नाम क्यो नही लेते ''
''नूनी'
हाय राम तेरे मिन से ये नाम कितना अच्छा लगा '' दिखा ना ''
मैने इधर उधर देख कर शर्त को ऊपर उठाया और पाजामे के नाडे को खोल दिया और
पाजामे को नीचे कर दिया
मेरी खड़ी नूनी सामने आ गई हम चलते रहे वो अजीब निगाहो से मेरी नूनी
देखती रही फिर बोली '' बाल को बनाते नही
''बाल ''
अरे '' झाँत ''
उन्होने मेरी झाँत को पकड़ कर खिच दिया मैं दर्द से सीत्कार उठा '' वह
बोली सच अभी किसी को नही चोदा है ''
''आप तो नीलम दीदी ''
'' मन होता है ''
मैने हिम्मत करके कहा '' हाँ ''
'' अपनी सुदामा मौसी को छोड़ोगे ''
''हट'' कहकर मन मे आया कि कह दूँ तुम चुदवा लो''
'' क्या हट '' वह अच्छी नही लगती ?''
मैं चुप ही रहा
'' मैं अच्छी लगती हूँ ?''
'' हाँ ''
''क्यू''
आप बहुत सुंदर हैं ''
'' हट ''
आपकी ये बहुत अच्छी है '' मैने उनकी चुचियो की तरफ इशारा करके कहा
'' बहुत बड़ी हैं''
'' सुदामा बुआ की ''
''मुझे क्या पता ''
''क्यू उन्हे देख कर आँख बंद कर लेते हो/'' मैं चुप रहा
वह मेरी नूनी को पकड़ कर चलाने लगी मुझे लगा की मेरा वीर्य निकल जाएगा
मैने कहा ''अब छोड़िए नही तो निकल जाएगा ''
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सुदामा मौसी का ज्ञान पार्ट --1
दोस्तों मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और नई कहानी लेकर हाजिर हूँ
बात बहुत पुरानी है लेकिन सच्ची है। क्योंकि जब की यह बात है तब तो शायद हमने यह सोचा भी न हो कि ऐसा माध्यम होगा जिससे मैं इसे बहुत सारे लोग से बाँट सकूँ गा, इसिलए के वल
घटना को जोड़ने के लिए कल्पना का सहारा लूँगा। यही कल्पना इस सच्ची घटना को कहानी के रूप में बदलेगी ! तो प्रिय पाठक अगर यह कहानी आप को पसंद आये तो मुझे
जरूर बताना
हाई स्कू ल की परीक्षा के बाद मैंने जिद पकड़ ली िक अब की बार मुझे चाचा की ससुराल
जाना ही है। वहाँ मुझे बहुत अच्छा लगता था। हाला कि मेरे चाचा की ससुराल
जिसे मैं नाना का गाँव
कहता था बहुत ही छोटा सा गाँव है। मेरे चाचा के कोई औलाद न होने के कारण
चाचा ने मुझे गोद ले
िलया था इस िलए वहाँ भी मेरी आवभगत बिलकुल सगे नाती जैसी होती थी। सुदामा
मौसी जो की
मेरे नाना की सबसे छोटी संतान हैं मुझसे बहुत ही हिली थी । वह नाना की
सबसे छोटी संतान थी
बाकी दोन बेटे जो िक उनसे बहुत बड़े थे पटना और बनारस में अपने परिवार के
साथ रहते थे। बस
कभी-कभार गर्मियों में आ जाते थे। वह लोग बहुत अमीर थे। मेरे नाना भी
अपने गाँव के जमीदार
थे। बहुत सारे खेत थे। बड़ा सा आम का बाग था। तीन-चार पंप थे। ट्रेक्टर था।
सुदामा मौसी मुझे बहुत प्यार करती थी । थी वह मुझसे बस तीन साल बड़ी लेिकन वह
बहुत दबंग लड़की थी जब भी मैं गर्मियों में जाता तो मुझे वहाँ बहुत मजा
आता। आम के बाग की
रखवाली करते और घूमते। गाँव में नाना अकेले ठाकु र थे बाकी अहीर और दूसरी
छोटी जाती के लोग
ही रहते थे। सुदामा मौसी को सभी बीट्टो कहते।
चूँिक इससे पहले मुझे वहाँ गये तीन साल हो गये थे, इसिलए मैं काफी
रोमांिचत था। मैं खुद
अब पहले वाला राज शर्मा नही रह गया था तो वह भला अब पहले जैसी कहाँ होंगी
! वहाँ पहुचकर देखा
तो वह सचमुच मे बदल गई थी । अब वह जवान हो गयी थी । पूरा शरीर भर गया था। पहले वह
घाघरी और चोली पहनती थथी , लेिकन इस बार उन्होने शलवार कमीज पहन रक्खी
थी। मुझे देखते ही
उन्होने मुझे लिपटा लिया हालाँकि यह उनका बस प्यार था, लेिकन मुझे
अजीब-सा लगा। मेरा सीना उनकी
बड़ी छातियो से जब िमला तो मेरी हालत अजीब हो गयी। ऐसा उन्होने पहली बार
ये सब नही िकया था,
बिल्क वह पहले भी ऐसे ही मिलती थी , लेकिन अब हम बदल गये थे। वह बड़ी हो
गई थी और मै जवान
हो रहा था। साथ पढ़ने वाले लड़क के बीच जो जवानी के लक्षण से अनजान होते थे वह भी सब
जानने लगते थे। मेरे अन्दर भी इस उमर् की स्वाभाविक क्रियाए पनप गयी थी ।
बिल्क कुछ अधिक ही
पता चला की बड़े मामा का परिवार भी पटना से आया था सब तो चले गये लेकिन
उनकी बड़ी बेटी नीलम यही रुक गई थी नीलम के बारे मे मैने सुना तो था,
लेिकन देखा तो आँख खुली रह गई ।
वह सुदामा बुआ से एक साल छोटी थी , लेिकन शरीर से पूरी जवान औरत िदखती
थी। सच कहूँ तो मैं
क्या कोई भी उन्ह देखता होगा तो उनकी छातियो पर ही उसका ध्यान जाता होगा।
मने सोचा! जैसे
दो मटके सामने बाँध िदये गये हो। पहली बार वह जब िमली तो उन्होने स्कटर्
और टॉप पहन रक्खी
थी। मैं उन्हे देखकर देखता ही रह गया। उन्ह भी शायद इस बात का अनुमान हो
गया, क्योंकि
उन्होने उसी समय सुदामा मौसी की तरफ देखकर कु छ उनके कान मे कहते हुए
मुस्कु राने लगी । तभी
सुदामा मौसी की चुनरी गिर गयी। मेरे सामने ही। नीलम ने उसे लेकर अपने कधे
पर डाल िलया और
जोर से हँस पड़ी।
शाम तक मैं उनसे भी घुल-िमल गया। रात को खाने मे नानी ने ढेर सारे पकवान बनाये थे।
खाना खाकर हम सग आँगन मे लेटने गये। बहुत देर तक बात होती रही। नीलम दीदी
की चारपाई पर
मैं सुदामा मौसी बैठे। नानी और नौकरानी सुिखया नानी भी वह थी। बात करते
करते नीलम और
सुदामा मौसी दोनो ही मुझे घौल-धप्पे लगाने लगी । बैठे-बैठे जब मैं थक गया
तो मैं उसी चारपायी पर
अधलेटा हो गया। मेरा पैर सुदामा मौसी की कमर से लग गया, न जाने िकस भावना
के तहत मैने वहाँ
से पैर को हटाया नही , बिल्क एकाध बार अँगूठे से उनकी कमर को खोद भी
िदया। दूसरी तरफ नीलम
दीदी भी अधलेटी हुईं तो उनका पैर मेरी दोनो टाँग के बीच मे आ गया। मने
जानबूझकर आगे
खिसक कर अपने लंड से उनके पैर का स्पर्श करा िदया। उन्ह ने पहले तो अपने
पैर को पीछे िकया,
लेिकन िफर आगे कर िदया। उनका पैर रह-रहकर मेरे लिंग से स्पर्श करने लगा,
लेिकन मने अपनी
साँसे रोकरक स्वयं को स्थिर कर िलया , मगर उसके तनाव को भला कै से रोक
सकता था? उस समय
मैं सिर्फ़ पैजामा पहने था। असल मे अभी तक पेंट या पैजाम के नीचे चड्धि
पहनता ही नही था
अपने पैर को एक बार िसमेटकर िफर फै लाया तो उनके पैर का पंजा एकदम से
मेरे तने िलग के ऊपर
आ गया। उन्ह ने हटाया नही । मेरी हालत खराब होने लगी, िफर भी हिम्मत करके मने अपनी
पोजीशन बदली नही । उन्होने सुदामा बुआ से कु छ धीरे से कहा तो वह मेरी
तरफ आ गई और मेरे
बालो मे अँगुिलया डालकर फेरने लगी वो पहले भी ऐसा करती थी, लेिकन इस बार
मेरे अन्दर एक
अजीब सी मदहोशी छाने लगी। मने भी हिम्मत करके एक हाथ उनकी जाँघ पर इस तरह रख िदया
मानो ऐसा अनजाने मे हुआ हो।
दूसरे िदन हम लोग सुबह ही बाग रखवाली के िलए िनकले। मटरू काका जो िक
हमारा ट्रेक्टर
भी चलाते थे उनका परिवार ही बाग की रखवाली करता था, लेिकन अब हम लोग के कारण वह
लोग नही आने वाले थे। यहा अभी आम के पकने मे काफी िदन थे, लेकिन आमियो की
तो देखभाल
करनी थी। बाग मे एक छप्पर था। िजसे लू और हवा से बचने के िलए तीन तरफ से
घेर िदया गया
था। असल बात तो यह थी िक रखवाली तो बस नाम की थी, वरना िकसी की इतनी हिम्मत नही थी
िक बाग की तरफ आँख उठाकर देखे।
सुदामा मौसी घर के काम को समेटकर आने वाली थी , मैं और नीलम दी पहले िनकल गये।
बाग घर से दूर था। सुदामा मौसी हम लोग का खाना लेकर मटरू काका के साथ आने
वाली थी ।
उनको खेत की िसचाई के िलए पंप चलाना था। उनकी पत्नी वहाँ पहले से ही थी ।
गाँव की सीमा से
िनकलते ही नीलम दी ने कहा, ''राज तुम बड़े हो गये हो।''
मैं चुप रहा। उनकी तरफ देखने लगा। और उनके साथ चल रहा था।
उन्होने अचानक मेरे बिल्कुल िनकट आकर हाथ बढ़ाकर मेरे लिंग को पैजाम के
ऊपर से छू ते
हुए कहा, ''बहुत कड़ा रहने लगा है।
मैं तो उनके इस स्पर्श से िसहर सा उठा। जैसे किसी ने करं ट का झटका दे िदया हो।
उन्होने फिर कहा, ''किसी बिल मे गया?''
हालांिक मैं समझ गया कि वह क्या कहना चाह रही थी , लेिकन मैने बुद्धू
बनते हुए कहा, ''मै
समझा नही
आज कलके लड़के बड़े हरामी होते हैं
मेरे जी मे आया की काहु लड़किया लेकिन कहा नही
अभी तक किसी लड़की के किए हो
मैं अंजान बनते हुए बोला क्या
उन्होने मेरे लिंग को छुआ तो वो और कड़ा हो चुका था वो बोली-बुद्धू ना बनाओ
मैं समझ गया की मेरी चोरी पकड़ी गई है मुझे थोड़ी सी शरम भी आ रही थी फिर
मैने सोचा बेटा तूने अगर की शरम तो फूटेंगे तेरे करम ,, मैं बोला आपका
मतलब चुदाई ...अभी नही .... सपने मे तो बहुत बार निकल जाता है
क्या..............?
बीज ,, हमारे यहाँ जो सपने मे निकलता है उसे बीज कहते है
,, जहाँ से निकलता है वो जगह दिखाओ '' नीलम दीदी ने इधर उधर देखते हुए
कहा ;; यहाँ कोई नही देखेगा
चारो तरफ सुनसान था मई मे तो सुबह से ही गर्मी शुरू हो जाती है
'' मुझे शरम आती है ''
''मुझसे क्या शरमाना '
कोई जान जाएगा की मैने अपना ये दिखाया है तो मेरी खैर नही '' मैने अपने
लिंग की तरफ इशारा करते हुए कहा
'' यह क्या लगा रखा है सॉफ सॉफ इसका नाम क्यो नही लेते ''
''नूनी'
हाय राम तेरे मिन से ये नाम कितना अच्छा लगा '' दिखा ना ''
मैने इधर उधर देख कर शर्त को ऊपर उठाया और पाजामे के नाडे को खोल दिया और
पाजामे को नीचे कर दिया
मेरी खड़ी नूनी सामने आ गई हम चलते रहे वो अजीब निगाहो से मेरी नूनी
देखती रही फिर बोली '' बाल को बनाते नही
''बाल ''
अरे '' झाँत ''
उन्होने मेरी झाँत को पकड़ कर खिच दिया मैं दर्द से सीत्कार उठा '' वह
बोली सच अभी किसी को नही चोदा है ''
''आप तो नीलम दीदी ''
'' मन होता है ''
मैने हिम्मत करके कहा '' हाँ ''
'' अपनी सुदामा मौसी को छोड़ोगे ''
''हट'' कहकर मन मे आया कि कह दूँ तुम चुदवा लो''
'' क्या हट '' वह अच्छी नही लगती ?''
मैं चुप ही रहा
'' मैं अच्छी लगती हूँ ?''
'' हाँ ''
''क्यू''
आप बहुत सुंदर हैं ''
'' हट ''
आपकी ये बहुत अच्छी है '' मैने उनकी चुचियो की तरफ इशारा करके कहा
'' बहुत बड़ी हैं''
'' सुदामा बुआ की ''
''मुझे क्या पता ''
''क्यू उन्हे देख कर आँख बंद कर लेते हो/'' मैं चुप रहा
वह मेरी नूनी को पकड़ कर चलाने लगी मुझे लगा की मेरा वीर्य निकल जाएगा
मैने कहा ''अब छोड़िए नही तो निकल जाएगा ''
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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