Wednesday, April 16, 2014

FUN-MAZA-MASTI होली का असली मजा--4

FUN-MAZA-MASTI


FUN-MAZA-MASTI

 होली का असली मजा--4

 एक खंभे के पीछे छिप गई मैं, ये सोच के कि कम से कम एक दो को तो पकड़ के पहले रगड़ लूंगी.

तब तक मैंने देखा कि जेठानी ने एक पड़ोस की ननद को (मेरी छोटी बहन छुटकी से भी कम उम्र की लग रही थी, उभार थोड़े-थोड़े बस गदरा रहे थे, कच्ची कली)

उन्होंने पीछे से जकड़ लिया और जब तक वो सम्भले-सम्भले लाल रंग उसके चेहरे पे पोत डाला. कुछ उसके आँख में भी चला गया और मेरे देखते-देखते उसकी फ्रॉक गायब हो गई और वो ब्रा चड्डी में.


जेठानी ने झुका के पहले तो ब्रा के ऊपर से उसके छोटे-छोटे अनार मसले. फिर पैंटी के अंदर हाथ डाल के सीधे उसकी कच्ची कली को रगड़ना शुरू कर दिया. वो थोड़ा चिचियाई तो उन्होंने कस के दोहथड़ उसके छोटे-छोटे कसे चूतड़ों पे मारा और बोलीं,

“चुपचाप होली का मज़ा ले.”

फिर से पैंटी में हाथ लगा के, उसके चूतड़ों पे, आगे जांघों पे और जब उसने सिसकी भरी तो मैं समझ गई कि मेरी जेठानी की उँगली कहाँ घुस चुकी है?

मैंने थोड़ा-सा खंभे से बाहर झाँक के देखा, उसकी कुँवारी गुलाबी कसी चूत को जेठानी की उँगली फैला चुकी थी और वो हल्के-हल्के उसे सहला रही थीं.

अचानक झटके से उन्होंने उँगली की टिप उसकी चूत में घुसेड़ दी. वो कस के चीख उठी.

“चुप...साल्ली...” कस के उन्होंने उसकी चूत पे मारा और अपनी चूत उसके मुँह पे रख दी... वो बेचारी मेरी छोटी ननद चीख भी नहीं पाई.

“ले चाट चूत...चाट...कस-कस के...” वो बोलीं और रगड़ना शुरू कर दिया.. मुझे देख के अचरज हुआ कि उस साल्ली चूत मरानो मेरी ननद ने चूत चाटना भी शुरू कर दिया. 


वो अपने रंग लगे हाथों से कस के उसकी छोटी चूचियों को रगड़, मसल भी रही थी. कुछ रंग और कुछ रगड़ से चूचियाँ एकदम लाल हो गई थीं. तब हल्की-सी धार की आवाज ने मेरा ध्यान फिर से चेहरे की ओर खीचा. मैं दंग रह गई.


“ले पी...ननद...छिनाल साल्ली...होली का शरबत....ले...ले...एकदम जवानी फूट पड़ेगी. नमकीन हो जायेगी ये नमकीन शरबत पी के...”

एकदम गाढ़े पीले रंग की मोटी धार...छर-छर...सीधे उसके मुँह में...


वो छटपटा रही थी लेकिन जेठानी की पकड़ भी तगड़ी थी...सीधा उसके मुँह में...जिस रंग का शरबत मुझे जेठानी ने अपने हाथों से पिलाया था, एकदम उसी रंग का वैसा हीं...

और उस तरफ देखते समय मुझे ध्यान नहीं रहा कि कब दबे पांव मेरी चार गाँव की ननदें मेरे पीछे आ गईं और मुझे पकड़ लिया.

उसमें सबसे तगड़ी मेरी शादी-शुदा ननद थी, मुझसे थोड़ी बड़ी बेला.

उसने मेरे दोनों हाथ पकड़े और बाकी ने टाँगे, फिर गंगा डोली करके घर के पीछे बने एक चहबच्चे में डाल दिया. अच्छी तरह डूब गई मैं रंग में. गाढ़े रंग के साथ कीचड़ और ना जाने क्या-क्या था उसमें?

जब मैं निकलने की कोशिश करती दो चार ननदें उसमें जो उतर गई थीं, मुझे फिर धकेल दिया. साड़ी तो उन छिनालों ने मिल के खींच के उतार हीं दी थी. थोड़ी हीं देर में मेरी पूरी देह रंग से लथ-पथ हो गई.  


अबकी मैं जब निकली तो बेला ने मुझे पकड़ लिया और हाथ से मेरी पूरी देह में कालिख रगड़ने लगी. मेरे पास कोई रंग तो वहाँ था नहीं तो मैं अपनी देह से हीं उस पे रगड़ के अपना रंग उस पे लगाने लगी.


वो बोली,

“अरे भाभी, ठीक से रगड़ा-रगड़ी करो ना...देखो मैं बताती हूँ तुम्हारे नंदोई कैसे रगड़ते हैं!”

और वो मेरी चूत पे अपनी चूत घिसने लगी. मैं कौन-सी पीछे रहने वाली थी? मैंने भी कस के उसकी चूत पे अपनी चूत घिसते हुए बोला,

“मेरे सैंया और अपने भैया से तो तुमने खूब चुदवाया होगा, अब भौजी का भी मज़ा ले ले.”

उसके साथ-साथ लेकिन मेरी बाकी ननदें, आज मुझे समझ में आ गया था कि गाँव में लड़कियाँ कैसे इतनी जल्दी जवान हो जाती हैं और उनके चूतड़ और चूचियाँ इतनी मस्त हो जाती हैं...

छोटी-छोटी ननदें भी कोई मेरे चूतड़ मसल रहा था तो कोई मेरी चूचियाँ लाल रंग ले के रगड़ रहा था...

थोड़ी देर तक तो मैंने सहा फिर मैंने एक की कसी कच्ची चूत में उँगली ठेल दी.

चीख पड़ी वो...मौका पा के मैं बाहर निकल आई लेकिन वहाँ मेरी बड़ी ननद दोनों हाथों में रंग लगाए पहले से तैयार खड़ी थी.

रंग तो एक बहाना था. उन्होंने आराम से पहले तो मेरे गालों पे फिर दोनों चूचियों पे खुल के कस के रंग लगाया, रगड़ा. मेरा अंग-अंग बाकी ननदों ने पकड़ रखा था इसलिए मैं हिल भी नही पा रही थी.

चूचियाँ रगड़ने के साथ उन्होंने कस के मेरे निप्पल्स भी पिंच कर दिये और दूसरे हाथ से पेंट सीधे मेरी क्लिट पे... बड़ी मुश्किल से मैं छुड़ा पाई.

लेकिन उसके बाद मैंने किसी भी ननद को नही बख्शा.

सबको उँगली की... चूत में भी और गांड़ में भी.....

लेकिन जिसको मैं ढूँढ रही थी वो नही मिली, मेरी छोटी ननद... मिली भी तो मैं उसे रंग लगा नही पाई. वो मेरे भाई के कमरे की ओर जा रही थी, पूरी तैयारी से, होली खेलने की.

दोनों छोटे-छोटे किशोर हाथों में गुलाबी रंग, पतली कमर में रंग, पेंट और वार्निश के पाऊच. जब मैंने पकड़ा तो वो बोली,

“प्लीज भाभी, मैंने किसी से प्रॉमिस किया है कि सबसे पहले उसी से रंग डलवाउंगी. उसके बाद आपसे... चाहे जैसे, चाहे जितना लगाईयेगा, मैं चूं भी नही करुँगी.”
मैंने छेड़ा, “ननद रानी, अगर उसने रंग के साथ कुछ और डाल दिया तो?”


वो आँख नचा के बोली, “तो डलवा लूँगी भाभी, आखिर कोई ना कोई, कभी ना कभी तो... फिर मौका भी है, दस्तूर भी है.”

“एकदम” उसके गाल पे हल्के से रंग लगा के मैं बोली और कहा कि

“जाओ, पहले मेरे भैया से होली खेल आओ, फिर अपनी भौजी से.”

थोड़ी देर में ननदों के जाने के बाद गाँव की औरतों, भाभियों का ग्रुप आ गया और फिर तो मेरी चांदी हो गई.
हम सबने मिल के बड़ी ननदों को दबोचा और जो-जो उन्होंने मेरे साथ किया था वो सब सूद समेत लौटा दिया. मज़ा तो मुझे बहुत आ रहा था लेकिन सिर्फ एक प्रोब्लम थी.

मैं झड़ नही पा रही थी. रात भर ‘इन्होंने’ रगड़ के चोदा था लेकिन झड़ने नही दिया था...

सुबह से मैं तड़प रही थी, फिर सुबह सासू जी की उंगलियों ने भी आगे-पीछे दोनों ओर, लेकिन जैसे हीं मेरी देह कांपने लगी, मैंने झड़ना शुरू हीं किया था कि वो रुक गईं और पीछे वाली उँगली से मुझे मंजन कराने लगी. तो मैं रुक गई और उसके बाद तो सब कुछ छोड़ के वो मेरी गांड़ के हीं पीछे पड़ गई थीं.

यही हालत बेला और बाकी सभी ननदों के साथ हुई...बेला कस कस के घिस्सा दे रही थी और मैं भी उसकी चूचियाँ पकड़ के कस-कस के चूत पे चूत रगड़ रही थी...

लेकिन फिर मैं जैसे हीं झड़ने के कगार पे पहुँची कि बड़ी ननद आ गई... और इस बार भी मैंने ननद जी को पटक दिया था और उनके ऊपर चढ़ के रंग लगाने के बहाने से उनकी चूचियाँ खूब जम के रगड़ रही थी और कस-कस के चूत रगड़ते हुए बोल रही थी, "देख ऐसे चोदते हैं तेरे भैया मुझको!"

चूतड़ उठा के मेरी चूत पे अपनी चूत रगड़ती वो बोली, "और ऐसे चोदेंगे आपको आपके नंदोई!"

मैंने कस के क्लिट से उसकी क्लिट रगड़ी और बोला, "हे डरती हूँ क्या उस साले भड़वे से? उसके साले से रोज चुदती हूँ, आज उसके जीजा साले से भी चुदवा के देख लूंगी."

मेरी देह उत्तेजना के कगार पर थी, लेकिन तब तक मेरी जेठानी आ के शामिल हो गई और बोली,

“हे तू अकेले मेरी ननद का मज़ा ले रही है और मुझे हटा के वो चढ़ गईं.

मैं इतनी गरम हो रही थी कि मेरी सारी देह कांप रही थी. मन कर रहा था कि कोई भी आ के चोद दे. बस किसी तरह एक लंड मिल जाए, किसी का भी. फिर तो मैं उसे छोड़ती नहीं, निचोड़ के, खुद झड़ के हीं दम लेती.

इसी बीच मैं अपने भाई के कमरे की ओर भी एक चक्कर लगा आई थी. उसकी और मेरी छोटी ननद के बीच होली जबर्दस्त चल रही थी.

उसकी पिचकारी मेरी ननद ने पूरी घोंट ली थी. चींख भी रही थी, सिसक भी रही थी, लेकिन उसे छोड़ भी नहीं रही थी.
तब तक गाँव की औरतों के आने की आहट पाकर मैं चली आई.

जब बाकी औरतें चली गई तो भी एक-दो मेरे जो रिश्ते की जेठानी लगती थीं, रुक गईं.

हम सब बातें कर रहे थे तभी छोटी ननद की किस्मत...
 


वो कमरे से निकल के सीधे हमीं लोगों की ओर आ गई. गाल पे रंग के साथ-साथ हल्के-हल्के दांत के निशान, टांगे फैली-फैली...



चेहरे पर मस्ती, लग रहा था पहली चुदाई के बाद कोई कुंवारी आ रही है| जैसे कोई हिरनी शिकारियों के बीच आ जाए वही हालत उसकी थी.


वो बिदकी और मुड़ी तो मेरी दोनों जेठानियों ने उसे खदेड़ा और जब वो सामने की ओर आई तो वहाँ मैं थी. मैंने उसे एक झटके में दबोच लिया. वो मेरी बाहों में छटपटाने लगी, तब तक पीछे से दोनों जेठानियों ने पकड़ लिया और बोलीं,


"हे, कहाँ से चुदा के आ रही है?"

दूसरी ने गाल पे रंग मलते हुए कहा,

“चल, अब भौजाईयों से चुदा| एक-एक पे तीन-तीन...”

और एक झटके में उसकी ब्लाउज फाड़ के खींच दी. जो जोबन झटके से बाहर निकले वो अब मेरी मुट्ठी में कैद थे.
“अरे तीन-तीन नहीं चार-चार...”

तब तक मेरी जेठानी भी आ गई| हँस के वो बोली और उसको पूरी नंगी करके कहा,

“अरे होली ननद से खेलनी है, उसके कपड़ों से थोड़े हीं|”

फिर क्या था, थोड़ी हीं देर में वो नीचे और मैं ऊपर| रंग, पेंट, वार्निश और कीचड़ कोई चीज़ हम लोगों ने नही छोड़ी| लेकिन ये तो शुरुआत थी.

मैं अब सीधे उसके ऊपर चढ़ गई और अपनी प्यासी चूत उसके किशोर, गुलाबी, रसीले होंठों पे रगड़ने लगी. 

वो भी कम चुदक्कड़ नहीं थी, चाटने और चूसने में उसे भी मज़ा आ रहा था. उसके जीभ की नोंक

मेरे क्लिट को छेड़ती हुई मेरे पेशाब के छेद को छू गई और मेरे पूरे बदन में सुरसुरी मच गई.



मुझे वैसे भी बहुत कस के 'लगी' थी, सुबह से पांच छः ग्लास शरबत पी के और फिर सुबह से की भी नहीं थी.
 
 
 
 


 मैं अब सीधे उसके ऊपर चढ़ गई और अपनी प्यासी चूत उसके किशोर, गुलाबी, रसीले होंठों पे रगड़ने लगी.


वो भी कम चुदक्कड़ नहीं थी, चाटने और चूसने में उसे भी मज़ा आ रहा था. उसके जीभ की नोंक मेरे क्लिट को छेड़ती हुई मेरे पेशाब के छेद को छू गई और मेरे पूरे बदन में सुरसुरी मच गई. मुझे वैसे भी बहुत कस के 'लगी' थी, सुबह से पांच छः ग्लास शरबत पी के और फिर सुबह से की भी नहीं थी.

(मुझे याद आया कि कल रात मेरी ननद ने छेड़ा था कि भाभी आज निपट लीजिए, कल होली के दिन टायलेट में सुबह से हीं ताला लगा दूंगी, और मेरे बिना पूछे बोला कि अरे यही तो हमारे गाँव की होली की...खास कर नई बहु के आने पे होने वाली होली की स्पेशलिटी है. जेठानी और सास दोनों ने आँख तर्रेर कर उसे मना किया और वो चुप हो गई|)

मेरे उठने की कोशिश को दोनों जेठानियों ने बेकार कर दिया और बोली,

“हे, आ रही है तो कर लो ना...इतनी मस्त ननद है...और होली का मौका...ज़रा पिचकारी से रंग की धार तो बरसा दो...छोटी प्यारी ननद के ऊपर|”


मेरी जेठानी ने कहा, “और वो बेचारी तेरी चूत की इतनी सेवा कर रही है...तू भी तो देख ज़रा उसकी चूत ने क्या-क्या मेवा खाया है?”

मैंने गप्प से उसकी चूत में मोटी उंगली घुसेड़ दी|

चूत उसकी लसालस हो रही थी| मेरी दूसरी उंगली भी अंदर हो गई. मैंने दोनों उंगलियां उसकी चूत से निकाल के मुँह में डाल ली... वाह क्या गाढ़ी मक्खन-मलाई थी?

एक पल के लिये मेरे मन में ख्याल आया कि मेरी ननद की चूत में किसका लंड अभी गया था? लेकिन सिर झटक के मैं मलाई का स्वाद लेने लगी| वाह क्या स्वाद था? मैं सब कुछ भूल चुकी थी कि तब तक मेरी शरारती जेठानियों ने मेरे सुरसुराते छेद पे छेड़ दिया और बिना रुके मेरी धार सीधे छोटी ननद के मुँह में.


दोनों जेठानियों ने इतनी कस के उसका सिर पकड़ रखा था कि वो बेचारी हिल भी नहीं सकती थी, और एक ने मुझे दबोच रखा था|

देर तो मैंने भी हटने की कोशिश की लेकिन मुझे याद आया कि अभी थोड़ी देर पहले हीं, मेरी जेठानी पड़ोस की उस ननद को... और वो तो इससे भी कच्ची थी|

“अरे होली में जब तक भाभी ने पटक के ननद को अपना खास असल खारा शरबत नहीं पिलाया, तो क्या होली हुई?” एक जेठानी बोली|
दूसरी बोली, “तू अपनी नई भाभी की चूत चाट और उसका शरबत पी और मैं तेरी कच्ची चूत चाट के मस्त करती हूँ.”



मैं मान गई अपनी ननद को, वास्तव में उसकी मुँह में धार के बावजूद वो चाट रही थी|


इतना अच्छा लग रहा था कि... मैंने उसका सिर कस के पकड़ लिया और कस-कस के अपनी बुर उसके मुँह पे रगड़ने लगी. मेरी धार धीरे-धीरे रुक गई और मैं झड़ने के कगार पे थी कि मेरी एक जेठानी ने मुझे खींच के उठा दिया| लेकिन मौके का फायदा उठा के मेरी ननद निकल भागी और दोनों जेठानियां उसके पीछे|

मैं अकेले रह गई थी| थोड़ी देर मैं सुस्ता रही थी कि ‘उईईईई...’ की चीख आई...

उस तरफ़ से जिधर मेरे भाई का कमरा था| मैं उधर बढ़ के गई... मैं देख के दंग रह गई|

उसकी हाफ-पैंट, घुटने तक नीचे सरकी हुई और उसके चूतड़ों के बीच में ‘वो’...‘इनका’ मोटा लाल गुस्साया सुपाड़ा पूरी तरह उसकी गांड़ में पैबस्त... वो बेचारा अपने चूतड़ पटक रहा था लेकिन मैं अपने एक्सपेरिएंस से अच्छी तरह समझ गई थी कि अगर एक बार सुपाड़ा घुस गया तो... ये बेचारा लाख कोशिश कर ले, ये मूसल बाहर नहीं निकलने वाला|


उसकी चीख अब गों-गों की आवाज़ में बदल गई थी| उसके मुँह की ओर मेरा ध्यान गया तो... नंदोई ने अपना लंड उसके मुँह में ठेल रखा था| लम्बाई में भले वो ‘मेरे उनसे’ उन्नीस हो लेकिन मोटाई में तो उनसे भी कहीं ज्यादा, मेरी मुट्ठी में भी मुश्किल से समां पाता|

मेरी नज़र सरक कर मेरे भाई के शिश्न पर पड़ी|

बहुत प्यारा, सुन्दर सा गोरा, लम्बाई मोटाई में तो वो ‘मेरे उनके’ और नंदोई के लंड के आगे कहीं नहीं टिकता, लेकिन इतना छोटा भी नहीं, कम से कम ६ इंच का तो होगा हीं, छोटे केले की तरह और एकदम खड़ा|


गांड़ में मोटा लंड होने का उसे भी मज़ा मिल रहा था| ये पता इसी से चल रहा था|

वो उसके केले को मुट्ठिया रहे थे और उसका लीची ऐसा गुलाबी सुपाड़ा खुला हुआ... बहुत प्यारा लग रहा था, बस मन कर रहा था कि गप्प से मुँह में ले लूँ और कस-कस कर चूसूं|

मेरे मुँह में फिर से वो स्वाद आ गया जो मेरी छोटी ननद के बुर में से उंगलियां निकाल के चाटते समय मेरे मुँह में आया था| अगर वो मिल जाता तो सच मैं बिना चूसे उसे ना छोड़ती, मैं उस समय इतनी चुदासी हो रही थी कि बस...

“पी साले पी... अगर मुँह से नहीं पिएगा तो तेरी गांड़ में डाल के ये बोतल खाली कराएँगे|”

नंदोई ने दारू की बोतल सीधे उसके मुँह में लगा के उड़ेल दी|

वो घुटुर-घुटुर कर के पी रहा था| कड़ी महक से लग रहा था कि ये देसी दारू की बोतल है| उसका मुँह तो बोतल से बंद था हीं, ‘इन्होंने’ एक-दो और धक्के कस के मारे| बोतल हटा के नंदोई ने एक बार फिर से उसके गोरे-गोरे कमसिन गाल सहलाते हुए फिर अपना तन्नाया लंड उसके मुँह में घुसेड़ दिया|

‘इन्होंने’ आँख से नंदोई जी को इशारा किया, मैं समझ गई कि क्या होने वाला है? और वही हुआ|

नंदोई ने कस के उसका सिर पकड़ के मोटा लंड पूरी ताकत से अंदर पेल के उसका मुँह अच्छी तरह बंद कर दिया और मजबूती से उसके कंधे को पकड़ लिया| उधर ‘इन्होंने’ भी उसका शिश्न छोड़ के दोनों हाथों से कमर पकड़ के वो करारा धक्का लगाया कि दर्द के मारे वो गों गों करता रहा, लेकिन बिना रुके एक के बाद एक ‘ये’ कस-कस के पलते रहे|

उसके चेहरे का दर्द... आँखों में बेचारे के आँसू तैर रहे थे|


लेकिन मैं जानती थी कि ऐसे समय रहम दिखाना ठीक नहीं और ‘इन्होंने’ भी ऑलमोस्ट पूरा लौड़ा उसकी कसी गांड़ में ठूंस दिया|
वो छटपटाता रहा, गांड़ पटकता रहा, गों गों करता रहा लेकिन बेरहमी से वो ठेलते रहे| मोटा लंड मुँह में होने से उसके गाल भी पूरे फूले, आँखे निकली पड़ रही थी|

“बोल साल्ले, मादरचोद, तेरी बहन की माँ का भोंसड़ा मारूं, बोल मज़ा आ रहा है गांड़ मराने में?” उसके चूतड़ पे दुहथड़ जमाते हुए ‘ये’ बोले|

नंदोई ने एक पल के लिए अपना लंड बाहर निकाल लिया और वो भी हँस के बोले,

“आइडिया अच्छा है, तेरी सास बड़ी मस्त माल है, क्या चूचियाँ हैं उसकी! पूछ इस साल्ले से चुदवायेगी वो? क्या साईज है उस छिनाल की चूचियों की?”

“बोल साल्ले, क्या साईज है उसकी चूचियों की? माल तो बिंदास है|” उसके बाल खींचते हुए ‘इन्होंने’ उसके गाल पे एक आँसू चाट लिया और कचकचा के गाल काट लिए|

“38 डीडी...” वो बोला|

“अरे भोंसड़ी के, क्या 38 डीडी... साफ-साफ बोल...” उसके गाल पे अपने लंड से सटासट मारते नंदोई बोले|
“सीना...छाती...चूचि|” वो बोला|

“सच में, जैसे तेरी कसी कसी गांड़ मारने में मज़ा आ रहा है वैसे उसकी भी बड़ी-बड़ी चूचियाँ पकड़ के मस्त चूतड़ों के बीच... क्या गांड़ है? बहोत मज़ा आएगा!”


‘ये’ बोले और इन्होंने बचा-खुचा लंड भी ठेल दिया| मेरे छोटे भाई की चीख निकल गई.|

मैं सोच रही थी कि तो क्या मेरी माँ के साथ भी... कैसे-कैसे सोचते है ये... वैसे ये बात सही भी थी कि मेरी माँ की चूचियाँ और चूतड़ बहुत मस्त थे और हम सब बहनें बहुत कुछ उन पे गई थीं| वैसे भी बहुत दिन हो गए होंगे, उनकी बुर को लंड खाए हुए|

“क्या मस्त गांड़ मराता है तू यार... मजा आ गया| बहुत दिन हो गए ऐसी मस्त गांड़ मारे हुए|” हल्के-हल्के गांड़ मारते हुए ‘ये’ बोले|

नंदोई कभी उसे चूम रहे थे तो कभी उससे अपना सुपाड़ा चटवा चुसवा रहे थे| उन्होंने पूछा, “क्या हुआ जो तुझे इस साल्ले की गांड़ में ये मज़ा आ रहा है?”

वो बोले, “अरे इसकी गांड़, जैसे कोई कोई हाथ से लंड को मुट्ठियाते हुए दबाए, वैसे लंड को भींच रही है| ये साल्ला नेचुरल गाण्डू है|” और एक झटके में सुपाड़े तक लंड बाहर कर के सटासट गपागप उसकी गांड़ मारना शुरू कर दिया|

मैंने देखा कि जब उनका लंड बाहर आता तो ‘इनके’ मोटे मूसल पे उसके गांड़ का मसाला... लेकिन मेरी नज़र सरक के उसके लंड पे जा रही थी| सुन्दर सा प्यारा, खड़ा, कभी मन करता था कि सीधे मुँह में ले लूं तो कभी चूत में लेने का...

तभी सुनाई पड़ा, ‘ये’ बोल रहे थे,

“साल्ले, आज के बाद से कभी मना मत करना गांड़ मराने के लिए, तुझे तो मैं अब पक्का गंडुआ बना दूँगा और कल होली में तेरी सारी बहनों की गांड़ मारूंगा, चूत तो चोदूंगा हीं| तुझे तेरी कौन छिनाल बहन पसंद है? बोल साल्ले... इस गांड़ मराने के लिये तुझे अपनी साली ईनाम में दूँगा|”

मैंने मन में कहा कि ईनाम में तो वो ‘उनकी’ छोटी बहन की मस्त कच्ची चूत की सील तो वो सुबह हीं खोल चुका है|
वो बोला, “सबसे छोटी वाली...लेकिन अभी वो छोटी है...”
“अरे उसकी चिन्ता तू छोड़... चोद-चोद कर इस होली के मौके पे तो मैं उसकी चूत का भोंसड़ा बना दूँगा और... अपनी सारी सालियों को रंडी की तरह चोदूंगा... चल तू भी क्या याद करेगा| सारी तेरी बहनों को तुझसे चुदवा के तुझे गाण्डू के साथ नम्बरी बहनचोद भी बना दूँगा|”


उन लोगों ने तो बोतल पहले हीं खाली कर दी थी| नंदोई उसे भी आधी से ज्यादा देसी बोतल पिला के खाली कर चुके थे और वो भी नशे में मस्त हो गया था|

“अरे कहाँ हो...?” तब तक जेठानी की आवाज़ गूंजी|
 







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