Wednesday, April 16, 2014

FUN-MAZA-MASTI होली का असली मजा--5

FUN-MAZA-MASTI

 होली का असली मजा--5
 “अरे कहाँ हो...?” तब तक जेठानी की आवाज़ गूंजी|


मैं दबे पाँव वहाँ से बरामदे की ओर चली आई, जहाँ जेठानी के साथ मेरी बड़ी ननद भी थी|

दूर से होली के हुलियारों की आवाजें हल्की हल्की आ रही थीं| जेठानी के हाथ में वही बोतल थी जो वो और नंदोई पी चुके थे और जबरन मेरे भाई को पिला रहे थे|

मैं लाख ना नुकुर करती रही कि आज तक मैंने कभी दारू नहीं पिया लेकिन वो दोनों कहाँ मानने वाली थीं, जबरन मेरे मुँह से लगा कर...ननद बोली,

"भाभी होली तो होती है नए नए काम करने के लिए आज से पहले आपने वो खारा शरबत पिया नहीं होगा, जो चार पांच ग्लास गटक गईं| और अभी तो होली के साथ साथ आपके खाने पीने की शुरुआत हुई है| जो आपने सोचा भी नहीं होगा वो सब...”

जेठानी उसकी बात काट के बोलीं

"अरे तूने पिलाया भी तो है बेचारी अपनी छोटी ननद को... ले गटक मर्दों की आलमारी से निकाल के हम लाये हैं|

फिर तो... थोड़ी देर में बोतल खाली हो गई|

ये मुझे बाद में अहसास हुआ कि आधे से ज्यादा बोतल उन दोनों ने मिल के मुझे पिलाया और बाकी उन दोनों ने| लग रहा था कोई तेज...तेजाब ऐसा गले से जा रहा हो, भभक भी तेज थी, लेकिन उन दोनों ने मेरी नाक बंद की और उसका असर भी पांच मिनट के अंदर होने लगा|

मैं इतनी चुदासी हो रही थी कि कोई भी आके मुझे चोद देता तो मैं मना नहीं करती|

ननद अंदर चली गईं थी|

थोड़ी देर में होली के हुलियारों की भीड़ एकदम पास में आ गई|

वो जोर जोर से कबीरा, गालियाँ और फाग गा रहे थे| जेठानी ने मुझे उकसाया और हम दोनों ने जरा सी खिड़की खोल दी, फिर तो तूफान आ गया| गालियों का, रंग का सैलाब फूट पड़ा|

नशे में मारी मैं, मैंने भी एक बाल्टी रंग उठा के सीधे फेंका| ज्यादातर मेरे गाँव के रिश्ते से देवर लगते थे, पर फागुन में कहते हैं ना कि बुढवा भी देवर लगते हैं, इसलिए होली के दिन तो बस एक रिश्ता होता है...लंड और चूत का| रंग पड़ते हीं वो बोल उठे...

“हे भौजी, खोला केवाड़ी, उठावा साड़ी, तोहरी बुरिया में हम चलाईब गाड़ी|”

“अरे ये भी बुर में जायेंगे...लौड़े का धक्का खायेंगे|” दूसरा बोला|


मैं मस्त हो उठी|

जेठानी ने मुझे एक आइडिया दिया| मैंने खिड़की खोल के उन्हें अपना आंचल लहरा के, झटका के, रसीले जोबन का दरसन करा के, मैंने नेवता दिया|

सब झूम झूम के गा रहे थे,

अरे नक बेसर कागा, ले भागा, सैंया अभागा ना जागा| अरे हमरी भौजी का|

उड़ उड़ कागा, बिंदिया पे बैठा, मथवा का सब रस ले भागा,

उड़ उड़ कागा, नथिया पे बैठा, होंठवा का सब रस ले भागा, अरे हमरी भौजी का|
उड़ उड़ कागा, चोलिया पे बैठा, जुबना का सब रस ले भागा|

उड़ उड़ कागा, करधन पे बैठा, कमर का सब रस ले भागा, अरे हमरी भौजी का|

उड़ उड़ कागा, साया पे बैठा, चूत का सब रस ले भागा|



एक जेठानी से बोला, "अरे नईकी भौजी को बाहर भेजा ना, होली खेले के...वरना हम सब अंदर घुस के..."

जेठानी ने घबड़ा के कहा, "अरे भेजती हूँ, अंदर मत आना|”


मैं भी बोली, “अरे आती हूँ, देखती हूँ, कितनी लंबी मोटी तुम लोगों की पिचकारी है और कितना रंग है उसमें या सब कुछ अपनी बहनों की बाल्टी में खाली कर के आये हो|”

अब तो वो और बेचैन हो गये|

जेठानी ने खिड़की उठंगा दिया|  

उधर से मेरी छोटी ननद आ गई| अब हमलोगों का प्लान कामयाब हो गया|

हम दोनों ने पकड़ के उसकी साड़ी, चोली सब उतार दी और मेरी साड़ी चोली उसे पहना दी| (ब्रा ना तो उसने पहनी थी और ना मैंने, वो सुबह की होली में उतर गई थी|)

उसके कपड़े मैंने पहन लिए और दरवाजा थोड़ा सा खोल के, धक्के दे के उसे हुलियारों के हवाले कर दिया| सुबह से रंग, पेंट, वार्निश इतना पुत चुका था कि चेहरा तो पहचाना जा नहीं रहा था|

हाँ साड़ी और आँचल की झलक और चोली का दरसन मैंने उन सबको इसलिए करा दिया था कि जरा भी शक ना रहे| बेचारी ननद...पल भर में हीं वो रंग से साराबोर हो गई| उसकी साड़ी ब्लाउज सब देह से चिपके, जोबन का मस्त किशोर उभार साफ साफ झलक रहा था, यहाँ तक की खड़े निप्पल भी|

नीचे भी पतली साड़ी जाँघों से चिपकी, गोरी गुदाज साफ साफ दिख रही थी|

फिर तो किसी ने चोली के अंदर हाथ डाल के जोबन पे रंग लगाना, मसलना शुरू किया तो किसी ने जांघ के बीच, जेठानी ने ये नजारा देख के जोर से बोला,

"ले लो बिन्नो, आज होली का मजा अपने भाइयों के साथ|”

मैं जेठानी के साथ बैठी देख रही थी अपनी छोटी ननद की हालत जो... लेकिन मेरा मन कर रहा था कि काश मैं हीं चली जाती उसकी जगह| 

इतने सारे मरद कम से कम..., सुबह से इतनी चुदवासी लग रही थी...सोचा था गाँव में बहुत खुल के होली होती है और नई बहु को तो सारे मर्द कस कस के रगड़ते हैं, लेकिन यहाँ तो एक भी लंड...

इस समय कोई भी मिल जाता तो चुदवाने को कहे मैं हीं पटक के उसे चोद देती| दारू के चक्कर में जो थोड़ी बहुत झिझक थी वो भी खतम हो गई थी|





तब तक एक किशोर... चेहरा रंग से अच्छी तरह पुता...और साथ में मेरी बड़ी ननद| वो हँस के मुझसे बोलीं, “हे, ये तेरा छोटा देवर है| जरा शर्मीला है लेकिन कस के रंग लगाना..." फिर क्या था| 

“अरे शर्म क्या, मैं इसका सब कुछ छुड़ा दूंगी, बस देखते रहिये|”

और मैंने उसे कस के पकड़ लिया| वो बेचारा कूं कूं करता रहा, लेकिन मेरी ननद और जेठानी इतने जोर-जोर से मुझे ललकार रही थीं कि मुझे कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा था| उसके चेहरे पे मैंने कस के रंग लगाया, मुलायम गाल रगड़े|

“हे भाभी, रंग देवर के साथ खेल रही हैं या उसके कपड़ों के साथ, अरे देवर भाभी की होली है कस के...”


जेठानी ने चढ़ाया, “अरे फाड़ दे कपड़े इसके, पहले कपड़े फाड़, फिर इसकी गांड़...”

फिर क्या था, मैंने पहले तो कुरता खींच के फाड़ दिया|


जेठानी ने उसके दोनों हाथ पकड़े तो मैंने पजामे का नाड़ा भी खोल दिया, अब तो वो सिर्फ चड्डी में|

ननद ने भी उसके साथ मिल के मेरी साड़ी खींच दी और ब्लाउज भी फाड़ दिया| 

अब एकदम फ्री फॉर ऑल हो गया था| चड्डी उसकी तनी हुई थी| एक झटके में मैंने वो भी नीचे खींच दिया और उसका ६ इंच का तन्नाया लंड बाहर|

शर्मा के उसने उसे छिपाने की कोशिश की लेकिन तब तक उसे गिरा के मैं चढ़ चुकी थी और दोनों हाथों में कालिख लगा के उसके गोरे लंड को कस-कस के मुठिया रही थी|

तब तक मेरी ननद ने मेरी भी वही हालत कर दी और कहा,

“भाभी अगर हिम्मत है तो इसके लंड को अंदर ले के होली खेलिए..”


मैं तो चुदवासी थी, थोड़ी देर चूत मैंने उसके लंड के ऊपर रगड़ी और एक झटके में अंदर...

“साल्ले ये ले मेरी चूचि, रगड़, पकड़ और कस के चोद, अगर अपनी माँ का बच्चा है| दिखा दे कि मर्द है| ले ले चोद और अगर किसी रंडी छिनाल की औलाद है तो...”

मैंने बोला और हचक हचक के चोदना शुरू कर दिया| इतनी देर से मेरी प्यासी चूत को लंड मिला था| 

वो कुछ बोलना चाहता था लेकिन मेरी जेठानी ने उसका मुँह रंग लगाने के साथ बंद कर रखा था|

थोड़ी देर में अपने आप वो भी चूतड़ उछालने लगा और फिर मैंने भी अपनी चूत सिकोड़ के, चूचियाँ उसके सीने पे रगड़ रगड़ के चोदना शुरू कर दिया| मेरे बदन का सब रंग उसके देह में लग रहा था|
 
 
 
 
 
 


 ननद मेरी चूचियों में रंग लगाती और वो मैं उसके सीने पे पोत देती|


थोड़ी देर तक तो वो नीचे रहा लेकिन फिर मुझे नीचे कर खुद ऊपर चढ़ के चोदने लगा| 

नशे में चूर मुझे कुछ पता नहीं चल रहा था, बस मुझे मजा बहुत आ रहा था| कल रात से हीं जो मैं झड़ नहीं पाई थी, बहुत चुदवासी हो रही थी| वो तो चोद हीं रहा था, साथ में ननद भी कभी मेरी निप्पल पे, कभी क्लिट पे रंग लगाने के बहाने फ्लिक कर देतीं|  
तभी मैंने देखा नंदोई जी...उन्होंने उंगली के इशारे से मुझे चुप रहने को कहा और कपड़े उतार के अपना खूब मोटा कड़ा लंड... मैं समझ गई और मेरे पैर जो उसकी पीठ पे थे.. पूरी ताकत से मैंने कैंची की तरह कस के बाँध लिए...

वो बेचारा तिलमिलाता रहा लेकिन जब तक वो कुछ समझे, उसकी गांड़ चियार के उन्होंने मोटा, खूब लाल सुपाड़ा उसके गांड़ के छेद पर लगा दिया और कमर पकड़ के जो करारा धक्का मारा... एक बार में हीं पूरा सुपाड़ा अंदर पैवस्त हो गया|

बेचारा चीख भी नहीं पाया क्योंकि उसके मुँह में मैंने जानबूझ के अपनी मोटी चूचि पेल रखी थी|

“हाँ नंदोई जी मार लो साल्ले की गांड़, खूब कस के पेल दो पूरा लंड अंदर, भले हीं फट जाए साल्ले की| मोची से सिलवा लेगा (मैं सोच रही थी मेरा देवर है तो, नंदोई जी का तो साला हीं हुआ|) छोड़ना मत|”



साथ में मैं कस के उसकी पीठ पकड़े हुए थी|

तिल तिल कर उनका पूरा लंड समां गया| एक बार जब लंड अंदर घुस गया तो फिर तो वो लाख कसमसाता रहा, छटपटाता रहा, वो सटासट सटासट, गपागप उसकी गांड़ मारते रहे|

एक बात और जितनी जोर से उसकी गांड़ मारी जा रही थी उतना हीं उसके लंड की सख्ती और चुदाई का जोश बढ़ गया था| हम दोनों के बीच वो अच्छी तरह सैंडविच बन गया था| लंड उसका भले हीं मेरे 'उनके' या नंदोई की तरह लंबा, मोटा ना हो पर देर तक चोदने और ताकत में कम नहीं था| जब लंड उसकी गांड़ में घुसता तो उसी तेजी से वो मेरी चूत में पेलता और जब वो बाहर निकालते तो साथ में वो भी...

थोड़ी देर में मेरी देह कांपने लगी| मैं झड़ने के कगार पे थी और वो भी| जिस तरह उसका लंड मेरी चूत में अंदर बाहर हो रहा था...


“ओह्ह ओह्ह हाँ हाआआआं बस ओह्ह...झड़ऽऽऽ रही हूँउउउं...”


कस-कस के मैं चूतड़ उचका रही थी और उसकी भी आँखे बंद हुई जा रही थी


तब तक ननद ने एक बाल्टी पानी हम दोनों के चेहरे पे कस के फेंका और हम दोनों के चेहरे का रंग भी कुछ धुल गया और नशा भी हल्का हो गया|

थोड़ी देर में मेरी देह कांपने लगी| मैं झड़ने के कगार पे थी और वो भी| जिस तरह उसका लंड मेरी चूत में अंदर बाहर हो रहा था...

“ओह्ह ओह्ह हाँ हाआआआं बस ओह्ह...झड़ऽऽऽ रही हूँउउउं...”






कस-कस के मैं चूतड़ उचका रही थी और उसकी भी आँखे बंद हुई जा रही थी तब तक ननद ने एक बाल्टी पानी हम दोनों के चेहरे पे कस के फेंका और हम दोनों के चेहरे का रंग भी कुछ धुल गया और नशा भी हल्का हो गया|


“अरे ये ये...तो मेरा भाई है...”


मैंने पहचाना लेकिन तब तक हम दोनों झड़ रहे थे और मैं चाह के भी उसको हटा नहीं पा रही थी| सच पूछिए तो मैं हटाना भी नहीं चाह रही थी, मेरी रात भर की प्यासी चूत में वीर्य की बारिश हो रही थी| 

और ऊपर से नंदोई अभी भी कस के उसकी गांड़ मार रहे थे| हम लोगों के झड़ने के थोड़ी देर बाद जब झड़ कर हटे तब वो मुझसे अलग हो पाया|

“क्यों भाभी, मेरे भैया से तो रोज चुदवाती थीं...कैसा लगा अपने भैया से चुदवाना? चलिए कोई बात नहीं...बुरा ना मानो होली है...अब जरा मेरे सैंया से भी तो चुदवा के देख लीजिए|” ननद ने छेड़ा|


“चल देख लूंगी उनको भी...” रस भारी निगाहों से नंदोई को देखते हुए मैं बोली|

तब तक मेरी छोटी ननद भी आ गई थी|

वो और जेठानी जी उसे लेके अंदर चली गईं और मैं, बड़ी ननद और नंदोई जी बचे|

कसरती देह, लंबा तगड़ा शरीर और सबसे बढ़ के लंबा और खूब मोटा लंड, जो अभी भी हल्का हल्का तन्नाया था|

तब तक एक और आदमी आया...ननद ने बताया कि ये उनके जीजा लगते हैं इसलिए वो भी मेरे नंदोई लगेंगे| हँस के मैंने चिढ़ाया,

“अरे ननद एक और नंदोई दो...बड़ी नाइंसाफी है|”

“अरे भाभी, आप हैं ना मुकाबला करने के लिए मेरी ओर से...” वो बोली|

“आज तो होली हमलोग अपनी सलहज से खेलने आए हैं|” दोनों
एक साथ बोले| 
 
 








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