Tuesday, April 15, 2014

FUN-MAZA-MASTI वीरान हवेली --पार्ट-6

FUN-MAZA-MASTI


वीरान हवेली --पार्ट-6
 


जैसे ही गम्म्छे पे नज़र पड़ी , बेवक़ूफ़ गूंगा चंदर उठा और घ्हों -घों की आवाज़ के साथ इशारे से कहने लगा की गमछा उसका है …..रूपाली का चेहरा ऐसा हो गया था मानो काटो तोह खून नहीं .

छेदी मल्लाह ने खीसे निपोरते हुए कहा ,"ठकुराइन , आप तोह कहती थी ये गूंगा पूरी रात हवेली मा था ……फिर , ओइका गम्च्छा आप ली गयी थी का ?"…

सभी चमारों ने एक ठहाका लगाया . 

ठाकुरों को ये नागवार गुज़ारा और ठाकुर श्री राम ने कहा ,"रूपाली जी , आप ने कहा चंदर हवेली में ही था ….फिर उसका ये गमछा खेत कैसे पहुंचा ." रूपाली ने सर झुका के कहा ,"हमें नहीं मालूम ठाकुर साहब ……ये कालू ने वहाँ रख दिया होगा ." 

कालू ने कातर नज़रों से पंचों को देखा और गिड़ गिडाया ,"माई -बाप , कसम ले लो जो हम आज एक बार भी खेत की तरफ गए रहीं ….पूरे दिन घर मा थे मालिक …"



पंचों ने कुच्छ वक़्त माँगा और अन्दर घर में जाकर आपस में बहुत देर तक सलाह मशवरा किया . इस दौरान , गाँव के छोकरे रूपाली का उदास , खूबसूरत चेहरा देख देख के सोच रहे थे …काश ….ये मोटे रसीले होंठ उन्होंने चूसे होते . एक दुबला सा ठाकुर चोकर इतना ठरकी था की अपना निचला होंठ चबा बैठा और उसके मुंह से निकला ,"सीईईईईईइस …हाय ." उसके बगल में खड़े उसके दोनों दोस्तों ने ये देखा और धीरे से हंसने लगे .

15 मिनिट बाद पंच बाहर निकले और सरपंच मिश्र जी ने कहा ,"बड़े खेद की बात है की वादी श्रीमती रूपाली सिंह ने अपनी हवस मिटाने के लिए एक नौकर के साथ खुले आम न सिर्फ रास -लीला रचाई बल्कि अपनी बदनामी ना हो , इस लिए श्री कालू , श्री सत्तू , श्री मोतिया और श्री मुंगेरी के खिलाफ नितांत झूठे आरोप भी लगाए हैं . सभी पंचों की राय और विचारों पे गहन मंथन के बाद , ग्राम पंचायत का निर्णय है की श्रीमती रूपाली सिंह को जात से बाहर किया जाता है . आज से श्रीमती रूपाली सिंह की हवेली से कोई ग्राम नागरिक , कोई संभंध नहीं रखेगा और इनका हुक्का -पानी बंद किया जाता है …………

….और हाँ …..ताकि इस गूंगे के साथ , इनकी रास लीला फ़ौरन बंद हो और ये अपने नामी ससुर के खानदान की इज्ज़त और खराब ना करें , इसलिए इस चंदर गूंगे को फ़ौरन गाँव से निकलने का हुकम दिया जाता है ……………..और गाँव का और कोई नौजवान इस घटना से सबक ले , इसलिए इस गूंगे को बेईज्ज़ती से बाहर किया जाए . जय गंगा मैय्या की ."
 

सारा चौपाल ,"हर हर महादेव ……जय गंगा मैय्या की ……..पंचों की जय हो ," के नारों से गूँज उठा .
 

आनन् फानन में गाँव के छोकरे एक गधा पकड़ लाये …….चार छोकरों ने चंदर के हाथ पाँव पकडे और गाँव के नाइ ने उसके सर पे उस्तरा फिराना शुरू किया . गंजे होते हुए चंदर के चेहरे पे कोई थूक रहा था कोई कालिख मल रहा था ……कुच्छ मनचलों ने फटे हुए जूते चप्पलों की माला बनायी और उसकी गर्दन में पहना दी . फिर उसका पूरा मुंह काला करके गधे पे उल्टा बैठाया और चल दिए गाँव की परिक्रमा करने . छोकरे हाहा -हेहे कर रहे थे और कुच्छ छोटे बच्चे , जो ऊपर से कमीज़ पहने थे ….मगर नीचे से नंगे थे , तालियाँ पीटने लगे . 

चंदर का जुलूस पूरे गाँव में निकाला गया और फिर उसे मार मार कर गाँव से निकाल दिया गया .
 

ये सब होने से बहुत पहले , रूपाली पंचायत से ऐसे उठी थी मानो कोई जिन्दा लाश हो . किसी तरह अपने कदम घसीटते हुए हवेली पहुंची …….अब वीरान हवेली थी …..और वो बिलकुल अकेली थी ……..सुनसानहवेली में एक मनहूस साए की तरह !

______________________________३-४ दिन तक रुपाली बिलकुल जिन्दा लाश की तरह रही ! कभी कुछ बनाया ,खाया सिर्फ पेट ही भरा ! कभी आत्महत्या की सोची पर बार बार उसके आँखों के सामने कालू, मोतिया ,सत्तू, मुंगेरी के चेहरे आ जाते और वो सोचती उन्हें सजा देने से पहले वो मर गई तो सब उन्हें ही सच्चा मानेंगे की ठकुराइन शर्म के मारे मर गई हे !
चंदर भी इन ३-४ दिनों से गाँव के आस -पास ही मंडरा रहा था ! उसे पता था की मालकिन अकेली हे और उसके और मालकिन के साथ अन्याय हुआ हे !
रुपाली को जैसे उसके श्वसुर ,पति की आत्माए जैसे बदला लेने के लिए कह रही हो ! आखिर उसने निर्णय ले ही लिया !
हवेली में हथियारों की कोई कमी नहीं थी ! बन्दूक ,तलवार ,पिस्तोलें, गोलियां सब मौजूद थी ! और रुपाली बखूभी सब हथियार चलाना जानती थी !
अब उसे जीने का कोई मोह नहीं था बस उसकी आँखों में एक ही बात कौंध रही थी ...बदला....बदला....!

पंचायत के चोथे दिन रुपाली रात के ८-९ बजे पेंट शर्ट पहन कर कारतूसों की बेल्ट पहन कर कमर के दोनों और दो भरे हुए पिस्तोल ले कर हवेली से बहार निकल गई !
उसके कदम जैसे कोई देवीय शक्ति उसी जगह ले जा रही थी जहा उसकी इज्जत लूटी गई थी !
उसके मन में एक आश थी की हो ना हो वही वे शैतान शराब पीने तो आते ही होंगे ! और वे वहा मिल सकते हे !
चांदनी रात में रास्ता देखने में कोई तकलीफ नहीं हुई और जब उसने मरने मारने की ठान ली हो तो अब उसे किसी बात का डर भी नहीं लग रहा था !
उसी खेत के पास आते आते उसे कोई आहट मिल गई थी !
सावधानी से उसने अपने दोनों हाथो में पिस्तोले पकड़ ली थी ! नज़र सामने , मन एकाग्र ! और खेत में देखते ही उसे नज़ारा दिखाई पड़ गया !

मोतिया सत्तू खेत में एक लड़की को दबोचे हुए थे ! मोतिया उसके ऊपर चढ़ा हुआ जोरो से ऊपर नीचे हो रहा था ! और सत्तू अपना मनपसन्द काम यानि उसके मुह में अपना बदबूदार लौड़ा चुसा रहा था ! मुंगेरी बैठा शराब पी रहा था ! चोथा उसे दिखाई नहीं दिया था ! रुपाली का गुस्सा फट पड़ने को था जैसे !उसके मुह से गुर्राहट निकली जैसे कोई शेरनी गरजी हो ! 
रुपाली :कुत्ते , हरामजादों ! और उसके पिस्तोल ने धायँ की आवाज़ के साथ आग उगली और शराब पीते मुंगेरी की सीने में खून का फव्वारा फूट पड़ा ! वो वाही लूढ़क गया !
अब बारी बदहवास होने की बारी सत्तू और मोतिया की थी ! मोतिया घबरा के उठा ! लड़की भी लड़खड़ाते कदमो से उठ गई थी और रुपाली के पास आ खड़ी हुई थी ! वो सरपंच पंडित मिश्र जी की बेटी थी ! जो दिशा मैदान के लिए बाहर निकली और इन नरपिशाचों के हत्थे चढ़ गई थी ! उसकी जाँघों से खून और वीर्य बह रहा था ! 
रुपाली को जैसे संतोष हुआ की जो अन्याय उसके साथ सरपंच ने किया हे भगवान् ने उसके साथ ही ये बिता दिया हे की उसने गलत का पक्ष लिया था !
पर इस वक़्त ये सोचने का समय नहीं था ! मोतिया और सत्तू थर थर काँप रहे थे ! सामने साक्षात् रण चंडी बनी रुपाली खड़ी थी ! रुपाली उनके कांपते चेहरों और माफ़ी मागते जबान की तरफ ध्यान नहीं देकर दो गोलिया और चलाई और इस बार सत्तू ढेर हो गया ! शांत रात में गोलियों की आवाज़े घुंज रही थी और हर कोई उस खेत की तरफ दौड़ रहा था ! पर खेत थोडा दूर था इसलिए सबको पहुँचने में समय लग रहा था !तभी रुपाली के पीछे कुछ हलचल हुई और कालू तीखे घन्ने के टुकडें को लेकार लपका जैसे असावधान खड़ी रुपाली के पीठ में उसे घोंप देगा ! पर उसी समय दूसरी तरफ एक और साया आया और रुपाली और उस कालू के तीखे गन्ने के टुकडें के बीच में ढाल बन गया ! वो तीखा टुकड़ा उसके पेट में धंस गया था वो गूंगा चंदर था ! उसने घायल होने के बावजूद कालू का गला पकड़ लिया था और खेत में गुथ्थम गुथ्था हो गए थे ! रुपाली का मन चंदर की स्वामी भक्ति देख कर भर आया था ! और इसी हडबडाहट का फायदा उठा कर मोतिया ने भागने की कोशिश की ! पर रणचंडी बनी रुपाली ने लपक कर उसके बाल पकडे और उसे धकेल कर खेत में गिरा दिया !
जो बलात्कार करते उसे बहुत भयानक लग रहा था ! आज उसे निरीह चींटी जैसा लग रहा था ! और देर न करते हुए रुपाली का रिवाल्वर गरजा और मोतिया का सीना दो गोलियों से छलनी हो चूका था !
अभी चंदर कालू को पकडे हुए था और कालू भागने की कोशिश कर रहा था ! चन्दर के पेट से जैसे खून की टोंटी सी चल रही थी अब वो कमझोर पड़ता जा रहा था !
अब रुपाली ने कालू के सर पर पिस्तोल की नली रखी और कालू एक दम शांत हो गया उसे मौत नजदीक दिखाई दी और भय से उसने अपनी आँखे बंद कर ली !
रुपाली के पिस्तोल से चली गोली ने कालू का भेजा उड़ा दिया था! कुछ खून के छींटे चंदर के चेहरे पर भी पड़े चंदर का चेहरा शुकून में आ गया था अब उसे पता चल गया की मालकिन का कोई भी बलात्कारी जीवित नहीं हे ! उसने आखिरी प्रणाम किया और उसके प्राण पंखेरू उड़ गए ! रूपाली के खूबसूरत चेहरे पर हलके से दुःख के बदल आये और फिर निर्विकार हो गई !
उसके चेहरे पे मरने का तेज झलक रहा था ! इतनी देर में सारे गाँव वाले खेत में पहुँच गए थे ! पंडित मिश्र , ठाकुर और चमार भी खेत की स्थिति ,पंडित मिश्र की रोते रोते बताई गई कहानी ने सबको जैसे हकीकत बता दी थी ! सब ठकुराइन से हाथ जोड़ कर माफ़ी मांग रहे थे ! पर अब ठकुराइन के चेहरे पे संतोष झलक रहा था उसकी बेगुनाही प्रमाणित हो गई थी !उसका बदला पूरा हो गया था ! अब उसके जीने का मकसद नहीं था और उसने अपने दोनों पिस्तोल अपने सर से लगाये और जब तक दुसरे समझ पाते ! दोनों पिस्तोल साथ चले और रुपाली का भेजा उड़ गया था ! पर अब सारे गाँव वाले उसकी लाश को सम्मान से देख रहे थे बिलख रहे थे !और इज्जत से हाथ जोड़ रहे थे !उनमे कमला भी थी और दुसरे चमार ओरते भी !पर हवेली अब बिलकुल सूनी थी ! कहते हे अभी भी वहा रुपाली की आत्मा भटक रही हे ! गाँव वाले भी वहा नहीं जाते हे ! पर रुपाली का नाम बड़े अदब से लेते हे !
समाप्त ! कैसी लगी प्लीज रिप्लाई






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