FUN-MAZA-MASTI
मामी की गदराई गांड-6
महेश ने अपनी ‘अपाचे RTR’ बाइक निकाली, बाइक की सिट वैसे ही छोटी थी और मामीजी के गांड के सामने वो और भी छोटी लग रही थी. मामीजी महेश के कंधोंका सहारा लेकर उसके पीछे बैठ गयी. जैसे ही मामीजी बैठी उनकी गदरायी गांड का स्पर्श महेश के पीठ को हो रहा था. महेश तो मन ही मन मामीजी को नंगा कर उनके मोटी गांड के साथ खेलने भी लग गया होगा. रास्ता भी बहोत पथरीला था खेत जाने वाला उसी बजह से मामीजी के चुचे भी उछल उछल कर महेश के पीठ पर रगड़ रहे the. मामीजी भी चालाकी से उसी एंगल में बेठी थी जिससे उनके चुचे महेश के पीठ पर रगड़ सके. खेत में पहोचने के बाद मामीजी ने मोटर शुरू कर दी, गन्ने को पानी छोड़ने के लिए. खेत में ज्यादा काम नहीं था. इसीलिए मामीजी महेश को खेत दिखाने लग गयी. खेत के बीचोबीच कुवा था. कुवे को देखकर महेश बोला,
“चाचीजी आपने बताया नहीं आपके खेत में कुवा भी है , बताया होता तो में कपडे लाता, इस गर्मी में कूवे में तेरने में मजा आ जाता.”
“तो क्या हुआ, तेर लो ना, तेरने के बाद थोड़ी देर धुप में खड़े रहो अपने आप सुख जाओगे , तोलिया भी नहीं लगेगा अंग पोछने के लिए, जाओ तेर लो”
सिर्फ अंडरवियर में वो भी मामीजीकेही अंडरवियर में मामीजीकेही सामने तेरने का सोचकर महेश का लंड तो चौड़ा होगया. झट से उसने अपने कपडे उतारे और सिर्फ मामीजी की पैंटी में मामीजी के सामने खड़ा होगया. लेडीज पैंटी होने के बजह से उसका लंड समा नहीं रहा था उसमे. इसीलिए झट से उसने अपनी पीठ मामीजी की तरफ कर कुवेकी सीडिया उतर कर पानी में उतर गया. मामीजी भी उसका जवान बदन देखकर कामोत्तेजक हो रही थी. मामीजी ऊपर बैठके उसे ही देख रही थी. महेश आराम से तेर रहा था, लेकिन मामीजी की पैंटी थोड़ी बड़ी साइज़ की होने की बजह से तेरते तेरते पानी के बहाव से निकल गयी. उस वक़्त महेश मामीजी को इम्प्रेस करने के लिए उल्टा तेर रहा था. पैंटी निकल ने की बजह से उसका लंड खुला पड़ गया. ६” का ही था उसका लंड लेकिन बहोत मोटा था. उसका लंड देखकर तो मामीजी का पानी ही निकल गया. महेश ने झट से पैंटी ऊपर खीच कर अपने लंड ढक लिया और मामीजी की तरफ देखा. मामीजी उसे ही देखकर मुस्कुरा रही थी. महेश भी शरमाकर हंसने लग गया. जो कुछ हुआ वो सोचकर उसका लंड और भी फुरफुराकर पैंटी के बाहर आने की कोशिश करने लग गया. इसीलिए उसने तेरना निपटाकर ऊपर आकर धुप में खड़ा होगया. लेकिन १०-१५ मिनिट बाद उसका बदन तो सुख गया लेकिन पैंटी तो गीली ही थी. इसीलिए वो उसपर ही पैंट पहनने लग गया. लेकिन मामीजी ने उसे मना कर दिया.
“अरे कहा गीली पैंटी पे कपडे पहें रहे हो”
“क्या करे फिर चाचीजी, पहले ही देर हो गयी है, और भूक भी लग गयी है”
“लेकिन गीली पैंटी मत पहेनो, में देती हूँ तुम्हे और एक पैंटी मेरी “
“कहा से दोगी?”
“उधर देखो, में अपनी पहेनी हुयी उतार कर देती हूँ” मामीजी ने आराम से कह दिया. लेकिन ये सुनकर महेश का मुंह खुला का खुला ही रह गया.
“ठीक है”
महेश ने अपना मुंह पलटा भी नहीं था तब तक मामीजी ने ही पलटकर अपनी पैंटी निकाल दी. मामीजी की गोरी गोरी जांघे देखकर महेश तो पागल हो गया. मामीने अपनी पैंटी निकाल तो दी लेकिन निकालने के बाद उनको पता चला उनका पानी निकलने की बजह से वो गीली हो गयी है.
वो गीली चड्डी देखके मामीजी शर्मा गयी लेकिन बिना कुछ कहे उन्होंने वो चड्डी महेश को सोप दी. महेश ने भी भोला बनकर उनसे कह दिया की चाचीजी ये इतनी गीली कैसे होगयी है.. मामीजी तो गोरी चिट्टी होगयी और उसे डाट के वैसे ही पेहेनेने के लिए कह दिया..
“ऐसे कैसे पेहनू? तौलिया भी नहीं ये ढकने केलिए.. चाचीजी आप जरा मुडिये और देखिये कोई आ तो नहीं रहा में यहाँ पेड़ के पीछे जाके चड्डी पहनता हूँ..”
“हाँ हाँ जल्दी कर, कोई नहीं आता इधर, और गिली पेंटी मिट्टी में मत रख मुझे दे सुखाने के लिये रख देती हुं”
मामी जैसे हि मुडी उसने गिली चड्डी उतार के मामी को देदी और दुसरी पेहेन ली और कपडे पेहेन के वो तय्यार होगया.
“चाचीजी अब क्या करे, चले क्या घर?”
“ठेहरो थोडी देर इतनी भी क्या जल्दी है. घर जाके भी क्या करना है, अंदर चलके देखते है गन्ने में पानी उधर आता है क्या नही?” मामी ने बोला.
महेश ने भी हा बोला. मन हि मन उसे गन्ने के खेत में चुदाई कि कथाये जो उसने नेट पे पढी थी याद आने लगी. लेकीन मामी जैसी इतनी मोटी गांड वाली मादक औरत चोदने मिलेगी इसका यकीन नही था.
मामी आगे आगे चल रही थी गन्ने में. बहोत हि कम जगह थी जाने के लिये. महेश उनके पीछे उनकी गदरायी गांड घुरते हुये पीछे आ रहा था. महेश को अब कंट्रोल नही हो रहा था और जगह भी कम होने के कारन वो मामी से सटे हुये हि चल रहा था.
जैसे हि चान्स मिलता मामी के गांड को वो टच करता था. थोडा अंदर जाने बाद उधर थोडी जगह थी जहा गन्ना नही लगाया हुआ था. वहा दोनो बेठ गये.
बहोत गर्मी थी उस दिन और इतना चलने के बजह से मामी को पसीना आ रहा था, मामी के चेहरे पे पसीने के बुंद चमक रही थी. बहोत हि मादक दिख रही थी मामीजी. महेश का जि करता तो वो वही मामीको दबोच सकता था. लेकीन वो डर रहा था. और मामी के मन में क्या चल रहा है ये भी देखना चाहता था.
मामी ने साड़ी अपने घुटनों तक ली थी और पैर फैलाके बेठी थी और अपने पल्लू से वो हवा लेकर गर्मी हटाने की कोशिश कर रही थी. उनके गोरे गोरे पैर बहोत ही सुंदर दिख रहे थे. पल्लू आगे पीछे करने की बजह से उनके मम्मों के बीच की गहराई पागल कर देने वाली थी..
“कितनी गर्मी है आज. बहोत धुप भी है. मेरे बजह से तुम्हे इस धुप में आना पड़ा न मेरे राजा बेटा?”
मामी बहोत ही प्यार से बाते करती थी सबसे. इतना मीठा बोलती की सबको उनसे बहोत लगाव था. और ऊपर से उनकी वो गांड उफ्फ, सब लोग उनकी बहोत ही इज्जत करते थे. अपनी मीठी बोली से सबका मन जित लेती थी मामीजी.
“नहीं नहीं चाचीजी, उसमे तकलीफ कैसी. घर में पड़े पड़े भी क्या करने वाला था? सो ही जाता.”
“तो इधर सो जाओ थोड़ी देर. आजा रे मेरा राजा बेटा सो जाओ मेरे पैरों पे सर रखो “
ऐसा कह के मामीने उसका सर अपने जांघो पे रख दिया.
हाए.. महेश को तो उसके नसीब पे यकीन ही नहीं आ रहा था.. इतनी उनके मुलायम सॉफ्ट तो उसकी गद्दी भी नहीं थी जितनी मामीजी की जांघे थी.
महेश थोडा सा शर्मा रहा था , लेकिन मामीजी के गद्देदार जान्घोका मजा भी ले रहा था.
“बेटा मुझे वो लैपटॉप कब सिखाओगे. दिन भर तो उसपे ही बेठे रहते हो. मुझे भी सिखाओ. और बताओ इतना क्या करते हो लैपटॉप पर?”
“कुछ नहीं चाचीजी, ऐसे प्रोजेक्ट का काम होता है वही करता रहता हूँ”
“कोनसा प्रोजेक्ट, लडकिया देखने का?” मामी ने उसके सर पे प्यार से टपली मारकर पूछा.
“नहीं नहीं चाचीजी, कुछ भी क्या”
बाते करते करते महेश एक साइड पे होगया. अब उसका मुंह मामीजी के गोल मटोल पेट की तरफ था. उसके गाल को मामीजी के चूत की गर्मी साड़ी के ऊपर से भी महसूस हो रही थी.
“तो क्या तेरे उमर के बेटे तो वही करते है. सुना है इन्टरनेट क्या जो होता है उसपे “वैसे” फिल्मे भी होती है” सच है क्या?”
“पता नहीं चाचीजी, क्यूँ?”
“अब भोला मत बात. तुम्हे नहीं पता क्या? तुम्हारे पास है न इन्टरनेट?”
“हाँ”
“ऐसे ही मजाक कर रही थी. तुम नहीं देखोगे तो क्या इस उमर में देखूंगी क्या?”
“आप की कहा उमर हुयी है चाचीजी?”
“तो क्या में भी देखू क्या? दिखाओगे मुझे?”
“आप चाहती है तो दिखाऊंगा, उसमे क्या बड़ी बात है”
“मतलब तुम्हे पता है, “वैसी” फिल्मे होती है” ऐसा कहके मामीजी हसने लगी और महेश के कंधो पर हाथ रखकर उसे उठने के लिए कह दिया.
“चलो चलो अब चलते है.”
महेश जब उठ गया तो मामीजी भी खड़ी होगयी. खड़े होते वक़्त उनका पल्लू पूरा गिर गया, और उनकी साड़ी भी ढीली होगयी थी. वो नजारा देखकर तो महेश का लंड दस गुना होगया.
मन ही मन महेश ने उनका पेटीकोट निकाल कर उनके च्युत को चाटना भी शुरू कर दिया था. लेकिन एक संस्कारी लड़के की तरह उसने अपना मुंह मोड़ लिया जब मामी अपनी साड़ी पेहेनने लगी. मन ही मन वो खुदको कोसता रहा अपने इस अच्छे बर्ताव के लिए पर अभीभी वो कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था. क्या पता मामीको सिर्फ उस्सको सताने में ही मजा आता हो? और सेक्स जैसी भावना उनके मन में न हो?
साड़ी पेहेनके मामी तैयार हो गयी. उनको तैयार देखकर महेश आगे चलने लगा. लेकिन मामी ने उसे रोक लिया.
“अरे बेटा २ मिनिट ठहरो मुझे “बाथरूम” लग गयी है.”
“ठीक है चाचीजी, में आगे जाके रूकता हूँ’
“नहीं नहीं, इधर ही मुंह मोडलो, अकेले आने में डर लगेगा मुझे इस घने गन्ने में.”
महेशने अपना मुंह मोड़ लिया. कुछ चन्द पलोमे उसको इस दुनिया की सबसे मधुर सिटी सुनाई दी. मामीजी की मूतते वक़्त बहोत ही मधुर सिटी बज रही थी. महेश को वो मधुर आवाज जहा से आ रहा था उधर देखे बिना रहा नहीं गया. उस्सने मूड के अपनी सासे थमायेमामीजी की तरफ देखा. लेकिन उसके किस्मत में अभीभी इंतज़ार लिखा था. मामीजी ने एक पवित्र भारतीय नारी की तरह अपने कुल्लोंको अपनी साड़ी दोनों हाथ में लेकर उस्से फैलाके ढक लिया था. उसको तो सिर्फ मामीके सिटी से ही काम चलाना पड़ा. पूरा आधा मिनट मुतने के बाद मामीजी खड़ी हुयी. महेश ने झट से अपना मुंह फेर लिया, और मामीजी को आगे चलने के लिए कह दिया. जैसे ही मामीजी आगे हुयी उसने पीछे मुड़कर मामीजी जहा मुतने बेठी थी वहा देखा. वहा अंडे के आकार इतनी आधे फूट की जमीन गीली होगयी थी मामीजी के मूत से. सौ मीटर आगे जाने के बाद उसने बड़ी चालाखी से मामीको रोककर अपनी बाइक की चाबी ढूँढने का नाटक किया और चाबी भूल जाने के बहाने से वो मामीको वही छोड़कर वो दोनों जहा बेठे थे उधर आगया. उधर आते ही उसने पहले अपने घुटनों के बल बैठकर मामीजी ने जहा अपना मूत डाला था उस मिट्टी की खुशबु ली. इतनी मादक खुशबू उस्सने आज पहली बार ली थी. मिट्टी सुखी थी इस्सलिये मामीजी का मूत जल्दी से सोख लिया गया था. लेकिन वहा गन्नों के कुछ सूखे पत्ते भी गिरे थे जिसपर मामीजी के मूत के कुछ बुँदे गिरी थी. उस बूंदों को देखकर उसके सिने में अजीब सी हलचल मच गयी. उसका दिल जोर जोर से धड़कने लगा. और उसने वैसे ही झुककर अपने जुबान से वो बुँदे चाट ली. उन बूंदों की वो चटपटी से स्वाद से उसकी धड़कन और तेज होने लगी. मामीजी के आने की आहत सुनकर उसने जल्दी से अपने आप पर काबू पा लिया और उठकर चल दिया.
मामीजी रास्ते में ही मिली उसे. उन्होंने चाबी मिली क्या पूछा तो उसने बता दिया की मिल गयी. दोनों गन्नोंके बीच से बाहर आगए और बाइक के पास आगये. तभी मामीजी को याद आगया की उन्होंने जो चड्डी महेश ने तैरते वक़्त पेहेनी थी वो सुखोने के लिए कुवे के पास रखी है. महेश को उन्होंने वो चड्डी जाकर लाने केलिए कह दिया. महेश ने वो चड्डी लायी. मामीने उसे पूछा,
“सुख गयी है क्या?”
“नहीं चाचीजी थोड़ी गीली है अभीभी”
“अब क्या करे, ये रखने के लिए कुछ भी नहीं है हमारे पास ऐसे थोडेही ले जा सकते है हाथ में?”
“तो क्या करे?”
“ठहर इधर ही, में झट से इसे पहेनकर आती हूँ.” मामीने बोला.
“लेकिन चाचीजी गीली कैसे पहनोगी?”
“थोडेही देर की बात है, घर जाते ही निकाल दूंगी ना.. तू ठहर यही. देख कोई आता है क्या. नहीं तो में चड्डी पेहेन रही हुंगी और कोई मजदूर आजायेगा. में पेड़ के पीछे जाती हूँ”
मामीजी ने पेड़ भी बहोत बड़ा ढूंढ लिया चड्डी पेहेनते वक़्त छुपने केलिए. महेश को एक झलक भी दिख नहीं पायी. अब तो उस्से घर जाने की बहोत ही आस लगी थी. उसका उसका लंड फुरफुराकर बहोत ही मोटा होगया था. हाथ लगाने की देरी थी बस की उसका गाढ़ा पानी कमसे कम 5 फूट दुरी तक उछल जाता.
घर पोहोचते हि उसने पेहले बाथरूम में जाके मूठ मारी. मामीजी ने उसे खाने के लिये उनके घर हि बुलाया था, इसीलिये वो जल्दी से तयार होकर मामीजी के यः गया. मामीजी खाना बना रही थी. उधर महेश उनके पीछे बेठ गया. जैसे हि मामीजी रोटी बेलने लगती उनकी गांड डोलने लगती. महेश आराम से मामीजी को एन्जोय कर था. कर इधर उधर की बाते कर रहा. महेश को एक कामवाली बाई चाहिये थी झाडू पोछा लगाने , बर्तन मांजने, खाना बनाने के लिये. इसीलिये उसने मामीजी को कोई बाई है क्या पूछा.
“ अरे बेटा, इस छोटे गाव मे मुश्कील से हि बाई मिलती है. तुम देख रहे हो, हमारी बाई ही कितनी बार नहीं आती. फिर भी में पूछती हूँ. लेकिन वो पैसे ज्यादा लेगी.”
“कितना लेगी वो?”
“सभी काम करने है तो हजार तो लेगी.”
“बाप रे इतना? इतना तो मेरा बजेट नहीं है. देखो पाचसो में तयार हुयी तो.”
“नहीं बेटा, इतने कम दाम में वो नहीं काम करेगी”
“ठीक है चाची, कोई मिली तो देख लेना, परीक्षा नजदीक आ रही है न, इसीलिए चाहिए थी कामवाली बाई, नहीं तो उन्ही कामो में टाइम जाया होता है.”
“ऐसी बात है क्या, तो बेटा में ही सारे काम करदिया करुँगी तुम्हारा.”
“नहीं नहीं चाचीजी, रहने दीजिये. उतना भी ज्यादा काम नहीं होता.”
“अरे बेटा, ऐसे ही थोडा काम करुँगी, कामके पैसे लुंगी तुमसे ठीक है.”
“मजाक कर रही हो क्या चाचीजी”
“अरे बेटा मजाक नहीं कर रही ही, सच में बोल रही हूँ”
“आपके घर के सारे काम कामवाली करती है, और आप सच में सारे काम कर देगी मेरा?”
“हाँ बेटा, जो भी कामवाली बाई करती है, वो सब करवा लेना मुझसे. मुझे ही कामवाली बाई समझ, ठीक है, लेकिन मुझे तनखा कितनी दोगे ? मामीने ने हसकर पूछा.
“में तो पाचसो ही दे सकता हूँ”
“ठीक है बेटा. रोज सुबह आ जाया करुँगी में.”
“थैंक यू , चाचीजी आपने मेरा बड़ा काम करदिया”
“हाँ बेटा , लेकिन किसी को पता नहीं चलने देना के में तुम्हारे यहाँ कामवाली बनी हुयी हूँ. नहीं तो प्रॉब्लम हो जाएगी”
“ठीक है चाचीजी. ये बात मेरे और आपके बिच ही रहेगी.”
महेश को तो अभी क्या हुआ उसपर यकीन ही नहीं आ रहा था. उस्सकी घर मालकीन उस्सके घर कामवाली बनने वाली थी कलसे.
अगले दिन सुबह ११ बजे अपना काम निपटाकर मामीजी महेश के रूम गयी. महेश वही xossip पे नंगी मोटी आंटिया देख रहा था. उस्सका लंड तना था, मामीजी ने जब दरवाजा खटखटाया जो की उन्हीके घर खुलता था तो उस्सने लैपटॉप बंद करके दरवाजा खोला. मामीजी अन्दर आके बोली..
“लो बेटा आगयी में , बताओ क्या काम करना है?”
“कपडे धोने है चाचीजी , बहोत दिनसे मैंने धोये ही नहीं है.”
“ओहो अभी मैंने हमारे घर पे कपडे धोये वाशिंग मशीन पे तेरे भी धो देती”
महेश के प्लान पे तो ये बात सुनकर पानी ही फिर गया, उसे लगा था की ज्यादातर औरते जैसे साड़ी घुतानोंतक उठाके हाथसे कपडे धोती है वैसे ही मामीजी धोएंगी लेकिन वाशिंग मशीन की बात उस्सने ध्यान में ही नहीं ली थी. रातभर वो मामीजीकी गदराये जान्घोंके देखने मिलेंगे ये सोचकर सोया ही नहीं था. लेकिन उस्सने बात सँभालने के लिए कहा..
“ मशीन पे हाथ जैसी सफाई कहा मिलती है लेकिन चाचीजी.”
“बिलकुल मिलती है बेटा. बहोत अच्छी मशीन है हमारी. मैं तो नए कपडे भी उसीमे धोती हूँ.”
धत तेरी की.. अब महेश कुछ बहाना ढूंढ रहा था तभी उस्सकी खुशकिस्मती से लाइट ही चली गयी.
“हाय राम, लाइट को भी अभी जाना था” मामीने नाराजीसे कहा.
“लोड शेडिंग है न चाचीजी मंगलवार को ११ बजेही जाती है, अब तो ४ घंटे नहीं आएगी” महेश ने मन ही मन मुस्कुराकर कहा. रोज तो वो लोड शेडिंग के नाम से हजारो गलिया देता था लेकिन आज तो बहोत ही खुश होगया लोड शेडिंग की बजह से.
“हाँ वो तो है, दिखाओ कपडे किधर है.”
महेश ने पुरा कपड़ोंका ढेर लगा दिया मामीजीके सामने..
“उफ्फ .. इतने सारे कपडे ? मेरी कमर तोडके रखेगा तू”
“रहने दीजिये चाचीजी.. कोई कामवाली देख लूँगा में.. आप कहा करेंगी ये सब”
“ वैसी बात नहीं है.. चलो धो देती हूँ में. वैसे भी लाइट भी नहीं है. घर पे बेठे बेठे बोर हो जाउंगी.”
“ठीक है, आप कपडे भिगो दीजिये, भीगने तक झाड़ू-पोछा लगा दीजियेगा.”
“हाँ:” कहके मामीजी सारे कपडे उठाके बाथरूम में चली गयी. महेश भी उनके पीछे ही दरवाजे पे खड़ा था. मामीजीने अपनी सारी सिर्फ दो पैरों में थमा ली और वाशिंग पावडर बकेट में लिए पानी में डाला और कपडे भिगोने वो झुक गयी. महेश ममिजीके पीछे ही खड़ा था. मामीजी की फैली हुयी गांड देखकर उस्सकी मानो सास ही रुक गयी. xossip पे माल आंटिया देखकर पहलेसे ही वो मूड में था.. उसपर ये नजारा.. किसी बहाने अन्दर जाके उसे मामीजी की गांड सहलाने की बहोत इच्छा हो रही थी.. लेकिन उसने खुद को रोक लिया. अब तो ये रोज का नजारा था. पहले दिन ही वो कुछ गलत हरकत करके काम बिगड़ना नहीं चाहता था..
मामीजी कपडे भिगोके बाहर आगयी और झाड़ू मारने लगी. महेश बेड पे बेठ गया और अपना लैपटॉप गोद में लेकर फिरसे आंटिया देखने लगा. मामीजी झुक कर झाड़ू लगा रही थी. महेश के सामने उस्सकी गांड थी. उसी पोज़ में मामीजी की नंगी फोटो अगर xossip पे पोस्ट की तो उसे पता था उस्सका थ्रेड खुप धमाका मचाता ऐसे मन में सोच रहा था. और उस्समे कोई दोहराय नहीं था. मामीजी तो सभी आंटी प्रेमियोकेलिये अप्सरा ही थी. बिलकुल मोटी गांड, बड़े बड़े चुचे, पीठ की गहराई.. उफ्फ.. क़यामत थी मामीजी..
“ बेटा पैर ऊपर लो , बेड के निचे झाड़ू लगाती हूँ”
मामीजी की बात सुनकर महेश ने पैर तो ऊपर लिए लेकिन वही बेड के किनारे पे बेठा रहा वो. मामीजी उसीके सामने बेठ गयी और बेड के निचे से झाड़ू लगाने लगी. हैरत की बात तो ये थी उन्होंने सहारे क लिए महेश के पैर पे ही हाथ रख दिए..आह.. उस्सके हाथ तो मुलायम नहीं थे लेकिन बहोत मजा आया महेश को. झाड़ू लगाने के बाद मामीजी बाथरूम की तरफ निकल पड़ी कपडे धोने के लिए. लेकिन महेश ने उनसे पोछा भी लगाने को कहा..
“ चाचीजी पोछा भी मारिये .. बहोत दिनोंसे नहीं मारा है. बहोत गन्दी होगई है फर्श.”
“हाँ लगाती हूँ.. पहले कपडे धोती हूँ”
ऐसा कहके मामीजी बाथरूम में चली गयी. महेश को पता नहीं चल रहा था की वो मामीजी कपडे धोते वक़्त उनके सामने खड़ा कैसे रहे. उस्सको पता था मामीजी घुटनोंतक पैर दिखाती है कपडे धोते वक़्त. लेकिन मामीजी ही ने उसे आवाज लगायी, ब्रश और साबुन कहा है पूछने के लिए. ब्रश और साबुन दोनों ही बहार थे इसीलिए उसे मोका मिल गया बाथरूम में जाने के लिए. जैसे ही उस्सने ब्रश और साबुन दिया मामीजने अपनी साड़ी ऊपर उठा ली और बेठ गयी. मामीजीके गोरे गोरे पैर देखकर तो वो तिलमला रहा था. उसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था इसीलिए वो जाने लगा था लेकिन मामीजीने उसी वक़्त अपनी सारी और ऊपर ली, अब मामीजी की थोड़ी जांघे और जब घुटने मोड़ने के बाद जो दरार दिखती है वो दरार दिखने लगी. बहोत ही मुलायम थी मामीजी की जांघे, और ऊपर से उसे रुकने के लिए कह दिया..
“रुको न महेश, बाते करो मुझसे, जल्दी काम होजायेगा मेरा.”
महेशने सोचा होगा की शायद आज ही काम बन जाये और ये हसीन आंटी आज ही बिस्तर में लेने के लिए मिल जाये. लेकिन अब भी उसे यकीन नहीं था. और पराये गाव में, परायी औरत के साथ वो भी शादीशुदा कुछ करने में उसे डर लग रहा था. लेकिन मामीजी के flirting को अब वो भी एन्जॉय कर रहा था. हालत लेकिन उस्सकी बहोत बुरी होगई थी. मामीजी ने पटापट २० मिनिट में ही कपडे धो दिए. मामीजी को उठते देख वो भी बेड पे आके बेठ गया. लेकिन मामीजीने बाहर आने के बजह दरवाजा बंद कर लिया. नल से आते पानी की आवाज सुनकर से अंदाजा होगया की मामीजी मुतने बेठी है.
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मामी की गदराई गांड-6
महेश ने अपनी ‘अपाचे RTR’ बाइक निकाली, बाइक की सिट वैसे ही छोटी थी और मामीजी के गांड के सामने वो और भी छोटी लग रही थी. मामीजी महेश के कंधोंका सहारा लेकर उसके पीछे बैठ गयी. जैसे ही मामीजी बैठी उनकी गदरायी गांड का स्पर्श महेश के पीठ को हो रहा था. महेश तो मन ही मन मामीजी को नंगा कर उनके मोटी गांड के साथ खेलने भी लग गया होगा. रास्ता भी बहोत पथरीला था खेत जाने वाला उसी बजह से मामीजी के चुचे भी उछल उछल कर महेश के पीठ पर रगड़ रहे the. मामीजी भी चालाकी से उसी एंगल में बेठी थी जिससे उनके चुचे महेश के पीठ पर रगड़ सके. खेत में पहोचने के बाद मामीजी ने मोटर शुरू कर दी, गन्ने को पानी छोड़ने के लिए. खेत में ज्यादा काम नहीं था. इसीलिए मामीजी महेश को खेत दिखाने लग गयी. खेत के बीचोबीच कुवा था. कुवे को देखकर महेश बोला,
“चाचीजी आपने बताया नहीं आपके खेत में कुवा भी है , बताया होता तो में कपडे लाता, इस गर्मी में कूवे में तेरने में मजा आ जाता.”
“तो क्या हुआ, तेर लो ना, तेरने के बाद थोड़ी देर धुप में खड़े रहो अपने आप सुख जाओगे , तोलिया भी नहीं लगेगा अंग पोछने के लिए, जाओ तेर लो”
सिर्फ अंडरवियर में वो भी मामीजीकेही अंडरवियर में मामीजीकेही सामने तेरने का सोचकर महेश का लंड तो चौड़ा होगया. झट से उसने अपने कपडे उतारे और सिर्फ मामीजी की पैंटी में मामीजी के सामने खड़ा होगया. लेडीज पैंटी होने के बजह से उसका लंड समा नहीं रहा था उसमे. इसीलिए झट से उसने अपनी पीठ मामीजी की तरफ कर कुवेकी सीडिया उतर कर पानी में उतर गया. मामीजी भी उसका जवान बदन देखकर कामोत्तेजक हो रही थी. मामीजी ऊपर बैठके उसे ही देख रही थी. महेश आराम से तेर रहा था, लेकिन मामीजी की पैंटी थोड़ी बड़ी साइज़ की होने की बजह से तेरते तेरते पानी के बहाव से निकल गयी. उस वक़्त महेश मामीजी को इम्प्रेस करने के लिए उल्टा तेर रहा था. पैंटी निकल ने की बजह से उसका लंड खुला पड़ गया. ६” का ही था उसका लंड लेकिन बहोत मोटा था. उसका लंड देखकर तो मामीजी का पानी ही निकल गया. महेश ने झट से पैंटी ऊपर खीच कर अपने लंड ढक लिया और मामीजी की तरफ देखा. मामीजी उसे ही देखकर मुस्कुरा रही थी. महेश भी शरमाकर हंसने लग गया. जो कुछ हुआ वो सोचकर उसका लंड और भी फुरफुराकर पैंटी के बाहर आने की कोशिश करने लग गया. इसीलिए उसने तेरना निपटाकर ऊपर आकर धुप में खड़ा होगया. लेकिन १०-१५ मिनिट बाद उसका बदन तो सुख गया लेकिन पैंटी तो गीली ही थी. इसीलिए वो उसपर ही पैंट पहनने लग गया. लेकिन मामीजी ने उसे मना कर दिया.
“अरे कहा गीली पैंटी पे कपडे पहें रहे हो”
“क्या करे फिर चाचीजी, पहले ही देर हो गयी है, और भूक भी लग गयी है”
“लेकिन गीली पैंटी मत पहेनो, में देती हूँ तुम्हे और एक पैंटी मेरी “
“कहा से दोगी?”
“उधर देखो, में अपनी पहेनी हुयी उतार कर देती हूँ” मामीजी ने आराम से कह दिया. लेकिन ये सुनकर महेश का मुंह खुला का खुला ही रह गया.
“ठीक है”
महेश ने अपना मुंह पलटा भी नहीं था तब तक मामीजी ने ही पलटकर अपनी पैंटी निकाल दी. मामीजी की गोरी गोरी जांघे देखकर महेश तो पागल हो गया. मामीने अपनी पैंटी निकाल तो दी लेकिन निकालने के बाद उनको पता चला उनका पानी निकलने की बजह से वो गीली हो गयी है.
वो गीली चड्डी देखके मामीजी शर्मा गयी लेकिन बिना कुछ कहे उन्होंने वो चड्डी महेश को सोप दी. महेश ने भी भोला बनकर उनसे कह दिया की चाचीजी ये इतनी गीली कैसे होगयी है.. मामीजी तो गोरी चिट्टी होगयी और उसे डाट के वैसे ही पेहेनेने के लिए कह दिया..
“ऐसे कैसे पेहनू? तौलिया भी नहीं ये ढकने केलिए.. चाचीजी आप जरा मुडिये और देखिये कोई आ तो नहीं रहा में यहाँ पेड़ के पीछे जाके चड्डी पहनता हूँ..”
“हाँ हाँ जल्दी कर, कोई नहीं आता इधर, और गिली पेंटी मिट्टी में मत रख मुझे दे सुखाने के लिये रख देती हुं”
मामी जैसे हि मुडी उसने गिली चड्डी उतार के मामी को देदी और दुसरी पेहेन ली और कपडे पेहेन के वो तय्यार होगया.
“चाचीजी अब क्या करे, चले क्या घर?”
“ठेहरो थोडी देर इतनी भी क्या जल्दी है. घर जाके भी क्या करना है, अंदर चलके देखते है गन्ने में पानी उधर आता है क्या नही?” मामी ने बोला.
महेश ने भी हा बोला. मन हि मन उसे गन्ने के खेत में चुदाई कि कथाये जो उसने नेट पे पढी थी याद आने लगी. लेकीन मामी जैसी इतनी मोटी गांड वाली मादक औरत चोदने मिलेगी इसका यकीन नही था.
मामी आगे आगे चल रही थी गन्ने में. बहोत हि कम जगह थी जाने के लिये. महेश उनके पीछे उनकी गदरायी गांड घुरते हुये पीछे आ रहा था. महेश को अब कंट्रोल नही हो रहा था और जगह भी कम होने के कारन वो मामी से सटे हुये हि चल रहा था.
जैसे हि चान्स मिलता मामी के गांड को वो टच करता था. थोडा अंदर जाने बाद उधर थोडी जगह थी जहा गन्ना नही लगाया हुआ था. वहा दोनो बेठ गये.
बहोत गर्मी थी उस दिन और इतना चलने के बजह से मामी को पसीना आ रहा था, मामी के चेहरे पे पसीने के बुंद चमक रही थी. बहोत हि मादक दिख रही थी मामीजी. महेश का जि करता तो वो वही मामीको दबोच सकता था. लेकीन वो डर रहा था. और मामी के मन में क्या चल रहा है ये भी देखना चाहता था.
मामी ने साड़ी अपने घुटनों तक ली थी और पैर फैलाके बेठी थी और अपने पल्लू से वो हवा लेकर गर्मी हटाने की कोशिश कर रही थी. उनके गोरे गोरे पैर बहोत ही सुंदर दिख रहे थे. पल्लू आगे पीछे करने की बजह से उनके मम्मों के बीच की गहराई पागल कर देने वाली थी..
“कितनी गर्मी है आज. बहोत धुप भी है. मेरे बजह से तुम्हे इस धुप में आना पड़ा न मेरे राजा बेटा?”
मामी बहोत ही प्यार से बाते करती थी सबसे. इतना मीठा बोलती की सबको उनसे बहोत लगाव था. और ऊपर से उनकी वो गांड उफ्फ, सब लोग उनकी बहोत ही इज्जत करते थे. अपनी मीठी बोली से सबका मन जित लेती थी मामीजी.
“नहीं नहीं चाचीजी, उसमे तकलीफ कैसी. घर में पड़े पड़े भी क्या करने वाला था? सो ही जाता.”
“तो इधर सो जाओ थोड़ी देर. आजा रे मेरा राजा बेटा सो जाओ मेरे पैरों पे सर रखो “
ऐसा कह के मामीने उसका सर अपने जांघो पे रख दिया.
हाए.. महेश को तो उसके नसीब पे यकीन ही नहीं आ रहा था.. इतनी उनके मुलायम सॉफ्ट तो उसकी गद्दी भी नहीं थी जितनी मामीजी की जांघे थी.
महेश थोडा सा शर्मा रहा था , लेकिन मामीजी के गद्देदार जान्घोका मजा भी ले रहा था.
“बेटा मुझे वो लैपटॉप कब सिखाओगे. दिन भर तो उसपे ही बेठे रहते हो. मुझे भी सिखाओ. और बताओ इतना क्या करते हो लैपटॉप पर?”
“कुछ नहीं चाचीजी, ऐसे प्रोजेक्ट का काम होता है वही करता रहता हूँ”
“कोनसा प्रोजेक्ट, लडकिया देखने का?” मामी ने उसके सर पे प्यार से टपली मारकर पूछा.
“नहीं नहीं चाचीजी, कुछ भी क्या”
बाते करते करते महेश एक साइड पे होगया. अब उसका मुंह मामीजी के गोल मटोल पेट की तरफ था. उसके गाल को मामीजी के चूत की गर्मी साड़ी के ऊपर से भी महसूस हो रही थी.
“तो क्या तेरे उमर के बेटे तो वही करते है. सुना है इन्टरनेट क्या जो होता है उसपे “वैसे” फिल्मे भी होती है” सच है क्या?”
“पता नहीं चाचीजी, क्यूँ?”
“अब भोला मत बात. तुम्हे नहीं पता क्या? तुम्हारे पास है न इन्टरनेट?”
“हाँ”
“ऐसे ही मजाक कर रही थी. तुम नहीं देखोगे तो क्या इस उमर में देखूंगी क्या?”
“आप की कहा उमर हुयी है चाचीजी?”
“तो क्या में भी देखू क्या? दिखाओगे मुझे?”
“आप चाहती है तो दिखाऊंगा, उसमे क्या बड़ी बात है”
“मतलब तुम्हे पता है, “वैसी” फिल्मे होती है” ऐसा कहके मामीजी हसने लगी और महेश के कंधो पर हाथ रखकर उसे उठने के लिए कह दिया.
“चलो चलो अब चलते है.”
महेश जब उठ गया तो मामीजी भी खड़ी होगयी. खड़े होते वक़्त उनका पल्लू पूरा गिर गया, और उनकी साड़ी भी ढीली होगयी थी. वो नजारा देखकर तो महेश का लंड दस गुना होगया.
मन ही मन महेश ने उनका पेटीकोट निकाल कर उनके च्युत को चाटना भी शुरू कर दिया था. लेकिन एक संस्कारी लड़के की तरह उसने अपना मुंह मोड़ लिया जब मामी अपनी साड़ी पेहेनने लगी. मन ही मन वो खुदको कोसता रहा अपने इस अच्छे बर्ताव के लिए पर अभीभी वो कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था. क्या पता मामीको सिर्फ उस्सको सताने में ही मजा आता हो? और सेक्स जैसी भावना उनके मन में न हो?
साड़ी पेहेनके मामी तैयार हो गयी. उनको तैयार देखकर महेश आगे चलने लगा. लेकिन मामी ने उसे रोक लिया.
“अरे बेटा २ मिनिट ठहरो मुझे “बाथरूम” लग गयी है.”
“ठीक है चाचीजी, में आगे जाके रूकता हूँ’
“नहीं नहीं, इधर ही मुंह मोडलो, अकेले आने में डर लगेगा मुझे इस घने गन्ने में.”
महेशने अपना मुंह मोड़ लिया. कुछ चन्द पलोमे उसको इस दुनिया की सबसे मधुर सिटी सुनाई दी. मामीजी की मूतते वक़्त बहोत ही मधुर सिटी बज रही थी. महेश को वो मधुर आवाज जहा से आ रहा था उधर देखे बिना रहा नहीं गया. उस्सने मूड के अपनी सासे थमायेमामीजी की तरफ देखा. लेकिन उसके किस्मत में अभीभी इंतज़ार लिखा था. मामीजी ने एक पवित्र भारतीय नारी की तरह अपने कुल्लोंको अपनी साड़ी दोनों हाथ में लेकर उस्से फैलाके ढक लिया था. उसको तो सिर्फ मामीके सिटी से ही काम चलाना पड़ा. पूरा आधा मिनट मुतने के बाद मामीजी खड़ी हुयी. महेश ने झट से अपना मुंह फेर लिया, और मामीजी को आगे चलने के लिए कह दिया. जैसे ही मामीजी आगे हुयी उसने पीछे मुड़कर मामीजी जहा मुतने बेठी थी वहा देखा. वहा अंडे के आकार इतनी आधे फूट की जमीन गीली होगयी थी मामीजी के मूत से. सौ मीटर आगे जाने के बाद उसने बड़ी चालाखी से मामीको रोककर अपनी बाइक की चाबी ढूँढने का नाटक किया और चाबी भूल जाने के बहाने से वो मामीको वही छोड़कर वो दोनों जहा बेठे थे उधर आगया. उधर आते ही उसने पहले अपने घुटनों के बल बैठकर मामीजी ने जहा अपना मूत डाला था उस मिट्टी की खुशबु ली. इतनी मादक खुशबू उस्सने आज पहली बार ली थी. मिट्टी सुखी थी इस्सलिये मामीजी का मूत जल्दी से सोख लिया गया था. लेकिन वहा गन्नों के कुछ सूखे पत्ते भी गिरे थे जिसपर मामीजी के मूत के कुछ बुँदे गिरी थी. उस बूंदों को देखकर उसके सिने में अजीब सी हलचल मच गयी. उसका दिल जोर जोर से धड़कने लगा. और उसने वैसे ही झुककर अपने जुबान से वो बुँदे चाट ली. उन बूंदों की वो चटपटी से स्वाद से उसकी धड़कन और तेज होने लगी. मामीजी के आने की आहत सुनकर उसने जल्दी से अपने आप पर काबू पा लिया और उठकर चल दिया.
मामीजी रास्ते में ही मिली उसे. उन्होंने चाबी मिली क्या पूछा तो उसने बता दिया की मिल गयी. दोनों गन्नोंके बीच से बाहर आगए और बाइक के पास आगये. तभी मामीजी को याद आगया की उन्होंने जो चड्डी महेश ने तैरते वक़्त पेहेनी थी वो सुखोने के लिए कुवे के पास रखी है. महेश को उन्होंने वो चड्डी जाकर लाने केलिए कह दिया. महेश ने वो चड्डी लायी. मामीने उसे पूछा,
“सुख गयी है क्या?”
“नहीं चाचीजी थोड़ी गीली है अभीभी”
“अब क्या करे, ये रखने के लिए कुछ भी नहीं है हमारे पास ऐसे थोडेही ले जा सकते है हाथ में?”
“तो क्या करे?”
“ठहर इधर ही, में झट से इसे पहेनकर आती हूँ.” मामीने बोला.
“लेकिन चाचीजी गीली कैसे पहनोगी?”
“थोडेही देर की बात है, घर जाते ही निकाल दूंगी ना.. तू ठहर यही. देख कोई आता है क्या. नहीं तो में चड्डी पेहेन रही हुंगी और कोई मजदूर आजायेगा. में पेड़ के पीछे जाती हूँ”
मामीजी ने पेड़ भी बहोत बड़ा ढूंढ लिया चड्डी पेहेनते वक़्त छुपने केलिए. महेश को एक झलक भी दिख नहीं पायी. अब तो उस्से घर जाने की बहोत ही आस लगी थी. उसका उसका लंड फुरफुराकर बहोत ही मोटा होगया था. हाथ लगाने की देरी थी बस की उसका गाढ़ा पानी कमसे कम 5 फूट दुरी तक उछल जाता.
घर पोहोचते हि उसने पेहले बाथरूम में जाके मूठ मारी. मामीजी ने उसे खाने के लिये उनके घर हि बुलाया था, इसीलिये वो जल्दी से तयार होकर मामीजी के यः गया. मामीजी खाना बना रही थी. उधर महेश उनके पीछे बेठ गया. जैसे हि मामीजी रोटी बेलने लगती उनकी गांड डोलने लगती. महेश आराम से मामीजी को एन्जोय कर था. कर इधर उधर की बाते कर रहा. महेश को एक कामवाली बाई चाहिये थी झाडू पोछा लगाने , बर्तन मांजने, खाना बनाने के लिये. इसीलिये उसने मामीजी को कोई बाई है क्या पूछा.
“ अरे बेटा, इस छोटे गाव मे मुश्कील से हि बाई मिलती है. तुम देख रहे हो, हमारी बाई ही कितनी बार नहीं आती. फिर भी में पूछती हूँ. लेकिन वो पैसे ज्यादा लेगी.”
“कितना लेगी वो?”
“सभी काम करने है तो हजार तो लेगी.”
“बाप रे इतना? इतना तो मेरा बजेट नहीं है. देखो पाचसो में तयार हुयी तो.”
“नहीं बेटा, इतने कम दाम में वो नहीं काम करेगी”
“ठीक है चाची, कोई मिली तो देख लेना, परीक्षा नजदीक आ रही है न, इसीलिए चाहिए थी कामवाली बाई, नहीं तो उन्ही कामो में टाइम जाया होता है.”
“ऐसी बात है क्या, तो बेटा में ही सारे काम करदिया करुँगी तुम्हारा.”
“नहीं नहीं चाचीजी, रहने दीजिये. उतना भी ज्यादा काम नहीं होता.”
“अरे बेटा, ऐसे ही थोडा काम करुँगी, कामके पैसे लुंगी तुमसे ठीक है.”
“मजाक कर रही हो क्या चाचीजी”
“अरे बेटा मजाक नहीं कर रही ही, सच में बोल रही हूँ”
“आपके घर के सारे काम कामवाली करती है, और आप सच में सारे काम कर देगी मेरा?”
“हाँ बेटा, जो भी कामवाली बाई करती है, वो सब करवा लेना मुझसे. मुझे ही कामवाली बाई समझ, ठीक है, लेकिन मुझे तनखा कितनी दोगे ? मामीने ने हसकर पूछा.
“में तो पाचसो ही दे सकता हूँ”
“ठीक है बेटा. रोज सुबह आ जाया करुँगी में.”
“थैंक यू , चाचीजी आपने मेरा बड़ा काम करदिया”
“हाँ बेटा , लेकिन किसी को पता नहीं चलने देना के में तुम्हारे यहाँ कामवाली बनी हुयी हूँ. नहीं तो प्रॉब्लम हो जाएगी”
“ठीक है चाचीजी. ये बात मेरे और आपके बिच ही रहेगी.”
महेश को तो अभी क्या हुआ उसपर यकीन ही नहीं आ रहा था. उस्सकी घर मालकीन उस्सके घर कामवाली बनने वाली थी कलसे.
अगले दिन सुबह ११ बजे अपना काम निपटाकर मामीजी महेश के रूम गयी. महेश वही xossip पे नंगी मोटी आंटिया देख रहा था. उस्सका लंड तना था, मामीजी ने जब दरवाजा खटखटाया जो की उन्हीके घर खुलता था तो उस्सने लैपटॉप बंद करके दरवाजा खोला. मामीजी अन्दर आके बोली..
“लो बेटा आगयी में , बताओ क्या काम करना है?”
“कपडे धोने है चाचीजी , बहोत दिनसे मैंने धोये ही नहीं है.”
“ओहो अभी मैंने हमारे घर पे कपडे धोये वाशिंग मशीन पे तेरे भी धो देती”
महेश के प्लान पे तो ये बात सुनकर पानी ही फिर गया, उसे लगा था की ज्यादातर औरते जैसे साड़ी घुतानोंतक उठाके हाथसे कपडे धोती है वैसे ही मामीजी धोएंगी लेकिन वाशिंग मशीन की बात उस्सने ध्यान में ही नहीं ली थी. रातभर वो मामीजीकी गदराये जान्घोंके देखने मिलेंगे ये सोचकर सोया ही नहीं था. लेकिन उस्सने बात सँभालने के लिए कहा..
“ मशीन पे हाथ जैसी सफाई कहा मिलती है लेकिन चाचीजी.”
“बिलकुल मिलती है बेटा. बहोत अच्छी मशीन है हमारी. मैं तो नए कपडे भी उसीमे धोती हूँ.”
धत तेरी की.. अब महेश कुछ बहाना ढूंढ रहा था तभी उस्सकी खुशकिस्मती से लाइट ही चली गयी.
“हाय राम, लाइट को भी अभी जाना था” मामीने नाराजीसे कहा.
“लोड शेडिंग है न चाचीजी मंगलवार को ११ बजेही जाती है, अब तो ४ घंटे नहीं आएगी” महेश ने मन ही मन मुस्कुराकर कहा. रोज तो वो लोड शेडिंग के नाम से हजारो गलिया देता था लेकिन आज तो बहोत ही खुश होगया लोड शेडिंग की बजह से.
“हाँ वो तो है, दिखाओ कपडे किधर है.”
महेश ने पुरा कपड़ोंका ढेर लगा दिया मामीजीके सामने..
“उफ्फ .. इतने सारे कपडे ? मेरी कमर तोडके रखेगा तू”
“रहने दीजिये चाचीजी.. कोई कामवाली देख लूँगा में.. आप कहा करेंगी ये सब”
“ वैसी बात नहीं है.. चलो धो देती हूँ में. वैसे भी लाइट भी नहीं है. घर पे बेठे बेठे बोर हो जाउंगी.”
“ठीक है, आप कपडे भिगो दीजिये, भीगने तक झाड़ू-पोछा लगा दीजियेगा.”
“हाँ:” कहके मामीजी सारे कपडे उठाके बाथरूम में चली गयी. महेश भी उनके पीछे ही दरवाजे पे खड़ा था. मामीजीने अपनी सारी सिर्फ दो पैरों में थमा ली और वाशिंग पावडर बकेट में लिए पानी में डाला और कपडे भिगोने वो झुक गयी. महेश ममिजीके पीछे ही खड़ा था. मामीजी की फैली हुयी गांड देखकर उस्सकी मानो सास ही रुक गयी. xossip पे माल आंटिया देखकर पहलेसे ही वो मूड में था.. उसपर ये नजारा.. किसी बहाने अन्दर जाके उसे मामीजी की गांड सहलाने की बहोत इच्छा हो रही थी.. लेकिन उसने खुद को रोक लिया. अब तो ये रोज का नजारा था. पहले दिन ही वो कुछ गलत हरकत करके काम बिगड़ना नहीं चाहता था..
मामीजी कपडे भिगोके बाहर आगयी और झाड़ू मारने लगी. महेश बेड पे बेठ गया और अपना लैपटॉप गोद में लेकर फिरसे आंटिया देखने लगा. मामीजी झुक कर झाड़ू लगा रही थी. महेश के सामने उस्सकी गांड थी. उसी पोज़ में मामीजी की नंगी फोटो अगर xossip पे पोस्ट की तो उसे पता था उस्सका थ्रेड खुप धमाका मचाता ऐसे मन में सोच रहा था. और उस्समे कोई दोहराय नहीं था. मामीजी तो सभी आंटी प्रेमियोकेलिये अप्सरा ही थी. बिलकुल मोटी गांड, बड़े बड़े चुचे, पीठ की गहराई.. उफ्फ.. क़यामत थी मामीजी..
“ बेटा पैर ऊपर लो , बेड के निचे झाड़ू लगाती हूँ”
मामीजी की बात सुनकर महेश ने पैर तो ऊपर लिए लेकिन वही बेड के किनारे पे बेठा रहा वो. मामीजी उसीके सामने बेठ गयी और बेड के निचे से झाड़ू लगाने लगी. हैरत की बात तो ये थी उन्होंने सहारे क लिए महेश के पैर पे ही हाथ रख दिए..आह.. उस्सके हाथ तो मुलायम नहीं थे लेकिन बहोत मजा आया महेश को. झाड़ू लगाने के बाद मामीजी बाथरूम की तरफ निकल पड़ी कपडे धोने के लिए. लेकिन महेश ने उनसे पोछा भी लगाने को कहा..
“ चाचीजी पोछा भी मारिये .. बहोत दिनोंसे नहीं मारा है. बहोत गन्दी होगई है फर्श.”
“हाँ लगाती हूँ.. पहले कपडे धोती हूँ”
ऐसा कहके मामीजी बाथरूम में चली गयी. महेश को पता नहीं चल रहा था की वो मामीजी कपडे धोते वक़्त उनके सामने खड़ा कैसे रहे. उस्सको पता था मामीजी घुटनोंतक पैर दिखाती है कपडे धोते वक़्त. लेकिन मामीजी ही ने उसे आवाज लगायी, ब्रश और साबुन कहा है पूछने के लिए. ब्रश और साबुन दोनों ही बहार थे इसीलिए उसे मोका मिल गया बाथरूम में जाने के लिए. जैसे ही उस्सने ब्रश और साबुन दिया मामीजने अपनी साड़ी ऊपर उठा ली और बेठ गयी. मामीजीके गोरे गोरे पैर देखकर तो वो तिलमला रहा था. उसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था इसीलिए वो जाने लगा था लेकिन मामीजीने उसी वक़्त अपनी सारी और ऊपर ली, अब मामीजी की थोड़ी जांघे और जब घुटने मोड़ने के बाद जो दरार दिखती है वो दरार दिखने लगी. बहोत ही मुलायम थी मामीजी की जांघे, और ऊपर से उसे रुकने के लिए कह दिया..
“रुको न महेश, बाते करो मुझसे, जल्दी काम होजायेगा मेरा.”
महेशने सोचा होगा की शायद आज ही काम बन जाये और ये हसीन आंटी आज ही बिस्तर में लेने के लिए मिल जाये. लेकिन अब भी उसे यकीन नहीं था. और पराये गाव में, परायी औरत के साथ वो भी शादीशुदा कुछ करने में उसे डर लग रहा था. लेकिन मामीजी के flirting को अब वो भी एन्जॉय कर रहा था. हालत लेकिन उस्सकी बहोत बुरी होगई थी. मामीजी ने पटापट २० मिनिट में ही कपडे धो दिए. मामीजी को उठते देख वो भी बेड पे आके बेठ गया. लेकिन मामीजीने बाहर आने के बजह दरवाजा बंद कर लिया. नल से आते पानी की आवाज सुनकर से अंदाजा होगया की मामीजी मुतने बेठी है.
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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