FUN-MAZA-MASTI
मेरी जिंदगी--8
सीमा के जाने के बाद राजेश कमरे में बैठा बैठा सोचने लगा- की नानी आख़िर क्या कह गयी है- क्या नानी सच में चाहती है की मैं मा के साथ और आगे बॅड जाउन.
मैं तो सिर्फ़ मा का अकेलापन दूर करना चाहता था - हाँ मा मुझे अपनी तरफ आकर्षित ज़रूर करती है पर क्या ये सही होगा? अकेलापन दूर करने का अर्थ जिस्मानी रिश्ता बनाना तो नही हो सकता - हन पापा अक्सर बाहर ही रहते हैं टूर पे तो क्या मा की जिस्म की भूख इतनी बॅड चुकी है की नानी मुझे वो रास्ता दिखा रही है जो शायद मेरे अंदर भी कहीं ना कहीं तो छुपा हुआ है. पर मा तो एक चुंबन से ही नाराज़ हो के चली गई. अब आगे क्या?
क्या मा अपना अतीत मुझे सुना कर उस बोज़ से बाहर निकलेगी या फिर मुझे डाइयरी ही पड़नी पड़ेगी.
राजेश यही सब सोच रहा था की भावना उसके कमरे में आती है भावना का चेहरा शर्म से लाल हो रहा था सीमा ने जो उसे समझाया था अब वो उस रास्ते पे आगे बड़ना चाहती थी अपने जिस्म की आग को अपने ही बेटे से बुझाना चाहती थी.
भावना राजेश के पास आ कर बैठ गई और अपना सर उसके कंधे पे रख दिया. ये शायद भावना की तरफ से राजेश को हरी झंडी थी आगे बॅडने के लिए, जिसे राजेश समझ नही पा रहा था.
उसका सारा धयान तो तो भावना के मुँह से उसका अतीत उगलवाने में था ताकि भावना फिर अपनी यादों में खुद को ना डूबो दे और जिंदगी को खुल के जिए.
'मा क्या तुम मुझे अपना अतीत सुना कर उन ज़हरीली यादों से बाहर नही निकलना चाहती'
'तुझ से क्या छुपाना सब बता दूँगी - पर मुझे कुछ समय चाहिए - कुछ बातें एसी हैं जो एक मा का अपने बेटे से करना आसान नही होता'
'भूल जाओ की मैं तुम्हारा बेटा हूँ - मुझे बस अपना दोस्त समझो'
'सच?'
'मूच'
'इस दोस्ती की सीमा?'
'दोस्ती की कोई सीमा नही होती'
'तो क्या तू मेरे साथ.......?'
राजेश भावना को आगे नही बोलने देता और अपने होंठ भावना के होंठों से चिपका देता है. अब भावना सारे बंधन तोड़ने का मॅन बना कर आई थी और वो इस चुंबन में राजेश का खुल के साथ देती है. दोनो एक दूसरे होंठ चूसने लग गये ज़ुबाने एक दूसरे से लड़ने लगी और भावना ने कस के राजेश को अपने से चिपका लिया.
राजेश और भावना दोनो ही उस चुंबन में खो चुके थे. राजेश भावना के होंठों को ऐसे चूस रहा था धीरे धीरे जैसे गुलाब की नाज़ुक पंखुड़ियों को अपने होंठों में दबा के रखा हो.
उसके चूमने के तरीके में एक परिपक्वता थी, ज़रा सा भी उतावलापन नही था, भावना को यूँ लग रहा था जैसे पहली बार कोई उसके होंठों के रस को पी रहा हो. उसके जिस्म में वो तरंगे उठ रही थी जिनसे वो बिल्कुल अंजान थी. प्यार के इस रूप से वो बिल्कुल अंजान थी और दिल चीख चीख कर कह रहा था - देखा इसे कहते हैं प्यार - क्यूँ खुद को इस प्यार से अब तक दूर रखा? क्यों खुद को इतना तडपया ?
राजेश उसे इस तरहा प्यार करेगा ये उसने कभी सपने में भी नही सोचा था वो तो सोच रही थी की हरी झंडी दिखते ही वो उसके कपड़े उतार फेंकेगा और उस पर चॅड जाएगा पर एसा कुछ नही हुआ और जो हो रहा था वो उसकी कल्पना से परे था.
भावना का नियंत्रण अपने जिस्म से हटता जा रहा था और वो सुलगती हुई मोम की तरहा राजेश की बाँहों में पिघलती जा रही थी.
उस सकूँ को अपने दिल-ओ-दिमाग़ में भरती जा रही थी जो आज जाने नसीब की कोन से दयादृष्टि के कारण उसे प्राप्त हो रहा था.
सारे बंधन स्वाहा होते जा रहे थे - मर्यादा की दीवार मिटती जा रही थी.
बस एक एहसास जनम ले चुका था - कोई उसे टूट कर प्यार करता है - और ये कोई अन्य नही उसका ही अंश था उसका बेटा.
पता नही कितनी देर दोनो एक दूसरे में खोए रहते हैं राजेश के हाथ बस भावना की पीठ तक ही सीमित रहते हैं वो उसके जिस्म के किसी भी अंग को छूने का प्रयास नही करता.
यूँ लग रहा था जैसे बरसों से बिछड़े दो प्रेमी आज मिले हों और उनकी आत्माएँ एक दूसरे में घुल रही हों.
जब दोनो अलग होते हैं तो भावना शर्म के मारे अपना चेहरा राजेश की छाती में छुपा लेती है.
'मोम डार्लिंग चलो पॅकिंग करो और नानी को भी बोलो पॅकिंग करने के लिए हम लोग ५-६ दिन बाहर घूमने चलेंगे'
'कहाँ?'
'वो सब मुझ पे छोड़ो आप लोग बस रेडी हो जाओ मैं बाकी इंतेज़ाम करता हूँ'
ये कह कर राजेश कमरे से बाहर चला जाता है और भावना भी सीमा के पास जा कर उसे राजेश का हुकुम सुना कर तयार होने के लिए कहती है. दोनो मा बेटी फटाफट समान पेक करने लग जाती हैं.
राजेश, भावना और सीमा को घुमाने के लिए नैनीताल ले आया और मनुमहारानी में दो कमरे ले लिए. सफ़र में सीमा बहुत थक चुकी थी तो वो सीधा सोने के लिए चली गई. भावना तो हर्ष के सागर में समाई हुई थी उसे थकान का कोई अहसास नही हो रहा था, सीमा को कोई परेशानी ना हो इसलिए भावना राजेश के साथ उसके कमरे में आ गई और दोनो बाल्कनी में खड़े हो कर नैनी झील की खूबसूरती का मज़ा लेने लगे. राजेश ने भावना को अपने करीब कर लिया दोनो के जिस्म आपस में छूने लगे.
दूर तक फैली हुई झील को देखते हुए राजेश ने भावना से सवाल पूछ लिया 'मों तुम अपना अतीत कब सुनाओगी- मैं चाहता हूँ तुम जल्द से जल्द उन कड़वी यादों से दूर हो जाओ और फिर कभी उस तरफ मूड के भी ना देखो'
भावना अपनी झील सी गहरी आँखों से राजेश को देखने लगी और सोचने लगी की कैसे और कहाँ से अपने दुखद अतीत का वर्णन करना शुरू करे.
'तूने डाइयरी में कहाँ तक पड़ा है?'
राजेश उसे बताता है जहाँ तक उसने डाइयरी पड़ी थी. जब आखरी सीन राजेश ने भावना को बताया तो भावना की नज़रें झुक गई और चेहरा शर्म से लाल पड़ गया.
ये वो रात थी जब सीमा भावना को दूसरे शहर ले गई थी उसे लड़की का कपड़े पहनाने शुरू कर दिए थे और (भव्य) जो उस वक़्त भावना का नाम ले चुका था सीमा को अपने सामने बिस्तर पे देख उसका लंड खड़ा हो चुका था और वो सीमा से जा कर चिपक गया था.
'प्लीज़ ये सब डाइयरी में पड़ ले ना मुझसे नही बोला जाएगा'
'देखो मों डार्लिंग अगर तुम खुद ये सब नही बोलोगी तो उन यादों से तुम्हारा पीछा कभी नही छूटेगा कुछ ना कुछ तुम्हारे दिल में अटका रह जाएगा जो तुम्हें बार बार परेशान करेगा और अब मुझे बेटा नही सिर्फ़ एक दोस्त समझो जिस पर तुम आँख बंद कर भरोसा कर सकती हो'
'तुझ पे भरोसा नही करूँगी तो किस पे करूँगी - पर समझा कर ना कुछ बातें में नही बोल पाउंगी'
'ह्म्*म्म्मम तो पहले तुम्हारी शर्म को दूर करना पड़ेगा' ये कह कर राजेश ने भावना को अपनी तरफ खींचा और उसकी आँखों में देखने लगा इस से पहले की भावना अपनी नज़रें झुकाती राजेश ने उसके चेहरे को अपने हाथों में थाम लिया. दोनो एक दूसरे को अपलक देखने लगे, जिस्म अपने आप करीब आने लगे और दोनो के काँपते हुए होंठ एक दूसरे को छूने लगे.
झील की तरफ से आती हुई ठंडी ठंडी हवा दोनो के जिस्मो को थरथरा रही थी, भावना को शायद थोड़ी ठंड भी लगने लगी थी, पर जो आत्मीयता उस चुंबन में थी, उसे वो किसी भी कीमत पे नही खोना चाहती थी. लज़्ज़त और सकूँ से उसकी आँखें बंद हो चुकी थी जिस्म चाह रहा था की राजेश के हाथ उसपे फिरेन उसे महसूस करें, पर राजेश शायद किसी और मिट्टी का बना था उसके जगह कोई और लड़का होता तो अब तक भावना कपड़ों से आज़ाद होती और वो बेरेहमी से उसे रोंध रहा होता- पर कहते हैं जब दिल में प्यार हो तो वासना और जिस्मानी सुख बहुत पीछे रह जाता है. वैसे तो भावना सीमा के उकसाने पर राजेश के साथ अपने जिस्म की भूख को शांत करना चाहती थी . पर जो प्रेम उसे राजेश से मिल रहा था उसके आगे उसके जिस्म की प्यास नगण्य हो कर रह गयी थी वो जानती थी इस प्रेम की आखरी सीडी पे जब दोनो पहुँचेगें तो जिस्म की प्यास अपने आप शांत हो जाएगी क्यूंकी जो दोनो के बीच हो रहा था वो केवल आत्मा की गहराई में बसा प्रेम का सागर बाहर निकल रहा था. जो धीरे धीरे रिस कर दोनो के जिस्म के कण कण को एक अनोखी अनुभूति से परिचित करा रहा था जिसका वर्णन किसी भी प्रेम शास्त्र में नही था. उसे बस वो दो प्रेमी ही महसूस कर सकते थे जो उसमे लिप्त थे और इस अनुभूति को शब्दों में परिवर्तित करना एक दम असंभव था.
दोनो के जिस्मो का तापमान धीरे धीरे बॅड रहा था - ठंडी ठंडी हवा उन्हें एक सकूँ पहुँचाने लगी थी और चुंबन भी गहरा होता जा रहा था दोनो की लार एक दूसरे से मिल रही थी और एक दूसरे के अंदर समाती जा रही थी.
प्रेम ग्रंथों में बार बार लेला मजनू - शिरी फरहाद के किससे सुनाए जाते हैं जिनका प्रेम अमर हो गया था पर शायद वो भी इस अनुभूति से वंचित रह गये थे जो इस वक़्त भावना और राजेश को महसूस हो रही थी.
आज इस कहानी को लिखते समय मेरे पास भी शब्दों की कमी पड़ रही है अपने पाठकों को इस एहसाह से परिचित करने के लिए - पर जिसके दिल में भी प्रेम के कुछ अंकुर फूटे होंगे शायद वो इस भावना इस अनुभूति इस एहसास को कुछ तो समझ ही जाएगा / जाएगी.
भावना के बॉल स्वतः ही खुल गये और लहराने लगे कुछ बालों ने उड़ कर राजेश के चेहरे तक को ढांप लिया मानो एक प्रयत्न कर रहे हों की राजेश को दुनिया की नज़र ना लग जाए - उनके उभरते हुए इस प्रेम को किसी की नज़र ना लग जाए.
कहतें हैं कोई भी एहसास स्थाई नही रह पाता उसका अंत निश्चित ही होता है - बस रह जाती है एक मीठी सी याद उस एहसास की. इनका ये चुंबन भी टूटा क्यूंकी जीने के लिए साँस लेना ज़रूरी था और दोनो एक दूसरे से चिपके अपनी उखड़ती हुई साँस को नियंत्रित करने लग गये.
'चलो मों कहीं घूम के आते हैं' और राजेश भावना को अपने साथ होटेल के बाहर ले गया.
राजेश भावना को लेकर होटल के पीछे पहाड़ी रास्ते पे निकल पड़ता है और काफ़ी आगे जा कर एक जगह एकांत में दो पेड़ों की छाँव और हरी हरी घास पे जा कर बैठ जाता है. दृश्य इतना सुहावना था की भावना उसकी छटा में खो कर रह जाती है और बार बार अपनी नशीली आँखों से राजेश को पलट पलट के देखती रहती है.
राजेश उसकी गोद में सर रख के लेट जाता है और भावना उसके बालों में प्यार से हाथ फेरने लगती है.
'चलो अब सूनाओ ना कोई तुम्हें देखने वाला है ना कोई सुनने वाला बस हम दो ही हैं'
'उफ़फ्फ़ तू नही मानेगा' - और भावना के चेहरे पे परेशानी के भाव आ जाते हैं - भावना को परेशान देख कर राजेश भी तोड़ा परेशान हो जाता है पर आज वो निश्चय कर चुका था भावना की ज़ुबान पर लगे हुए ताले को खोलने का.
'चलो मैं भी अपनी आँखें बंद कर लेता हूँ अब बोलो' और राजेश वाक्य में अपनी आँखें बंद करलेता है.
कुछ देर ऐसी शांति छा जाती है की पत्तों तक के गिरने की आवाज़ भी सुनाई देने लगती है.
भावना सामने फैले खूबसूरत नज़ारे को देखती हुई बोलना शुरू कर देती है.
'बात तब की है जब मा मुझे अपने साथ दूसरे शहर ले गई- मुझे लड़कियों के कपड़े पहनने का बहुत शोक था और मा ने मुझे अब हर समय लड़कियों के ही कपड़े पहनने को कहा मैं बहुत खुश हो गई. मेरा नाम भी भव्य से भावना रख दिया गया.
उस दिन पहली बार मुझे अपनी मा में बहुत आकर्षण दिखा और मेरे लिंग में तनाव आना शुरू हो गया. मा थक के बिस्तर पे लेटी हुई थी - मैं मा के उपर ही चॅड गयी और मा के होंठ चूसने लगी मा ने मुझे होंठों का चुंबन लेना सीखा दिया था.
मा भी गरम होने लगी और चुंबन में मेरा साथ देने लगी'
'छी - क्या क्या बुलवा रहा है मुझ से. छी मुझसे नही बोला जाएगा - प्लीज़ तू डाइयरी पॅड लेना' और भावना की आँखों में आँसू आ गये - राजेश ने फट से अपनी आँखें खोली और भावना की गीली आँखें देख कर वो तड़प उठा - एक औरत के लिए लज्जा की दीवार को तोड़ना इतना आसान नही होता.
राजेश ने उठ कर भावना को अपने सीने से लगा लिया. ' बस रोना नही'
'फिर क्यों मुझे......' भावना से बोला नही गया और सिसकने लगी.
'बस यार सॉरी - अब जब तुम्हारा दिल करे तब ही बोलना मैं कोई ज़ोर नही डालूँगा - सारी यार अब ये कीमती आँसू मत बहाओ- प्लीज़'
राजेश भावना के आँसू चाटने लगा और धीरे धीरे भावना की सिसकियाँ बंद हो गई. राजेश ने उसके चेहरे को चाटना नही छोड़ा और धीरे धीरे दोनो के होंठ फिर आपस में मीलगए - थोड़ी ही देर में राजेश ने भावना के होंठों को आज़ाद कर दिया और भावना राजेश के सीने पे सर रख के अधलेटी हो गई और फिर सामने के मनोरम दृश्य को देखने लगी.
पता नही कितना वक़्त गुजर गया शाम का धुनदल्का शुरू हो गया तब उन्हें वक़्त का धयान आया और सीमा की भी याद आई जो उस समय होटल में सो रही थी - अब तो जाग भी गई होगी और परेशान हो रही होगी. दोनो होटल की तरफ चल पड़ते हैं.
Tags = Tags = Future | Money | Finance | Loans | Banking | Stocks | Bullion | Gold | HiTech | Style | Fashion | WebHosting | Video | Movie | Reviews | Jokes | Bollywood | Tollywood | Kollywood | Health | Insurance | India | Games | College | News | Book | Career | Gossip | Camera | Baby | Politics | History | Music | Recipes | Colors | Yoga | Medical | Doctor | Software | Digital | Electronics | Mobile | Parenting | Pregnancy | Radio | Forex | Cinema | Science | Physics | Chemistry | HelpDesk | Tunes| Actress | Books | Glamour | Live | Cricket | Tennis | Sports | Campus | Mumbai | Pune | Kolkata | Chennai | Hyderabad | New Delhi | पेलने लगा | उत्तेजक | कहानी | कामुक कथा | सुपाड़ा |उत्तेजना मराठी जोक्स | कथा | गान्ड | ट्रैनिंग | हिन्दी कहानियाँ | मराठी | .blogspot.com | जोक्स | चुटकले | kali | rani ki | kali | boor | हिन्दी कहानी | पेलता | कहानियाँ | सच | स्टोरी | bhikaran ki | sexi haveli | haveli ka such | हवेली का सच | मराठी स्टोरी | हिंदी | bhut | gandi | कहानियाँ | की कहानियाँ | मराठी कथा | बकरी की | kahaniya | bhikaran ko choda | छातियाँ | kutiya | आँटी की | एक कहानी | मस्त राम | chehre ki dekhbhal | | pehli bar merane ke khaniya hindi mein | चुटकले | चुटकले व्यस्कों के लिए | pajami kese banate hain | मारो | मराठी रसभरी कथा | | ढीली पड़ गयी | चुची | स्टोरीज | गंदी कहानी | शायरी | lagwana hai | payal ne apni | haweli | ritu ki hindhi me | संभोग कहानियाँ | haveli ki gand | apni chuchiyon ka size batao | kamuk | vasna | raj sharma | www. भिगा बदन | अडल्ट | story | अनोखी कहानियाँ | कामरस कहानी | मराठी | मादक | कथा | नाईट | chachi | chachiyan | bhabhi | bhabhiyan | bahu | mami | mamiyan | tai | bua | bahan | maa | bhabhi ki chachi ki | mami ki | bahan ki | bharat | india | japan |यौन, यौन-शोषण, यौनजीवन, यौन-शिक्षा, यौनाचार, यौनाकर्षण, यौनशिक्षा, यौनांग, यौनरोगों, यौनरोग, यौनिक, यौनोत्तेजना, aunty,stories,bhabhi, nangi,stories,desi,aunty,bhabhi,erotic stories, hindi stories,urdu stories,bhabi,desi stories,desi aunty,bhabhi ki,bhabhi maa ,desi bhabhi,desi ,hindi bhabhi,aunty ki,aunty story, kahaniyan,aunty ,bahan ,behan ,bhabhi ko,hindi story sali ,urdu , ladki, हिंदी कहानिया,ज़िप खोल,यौनोत्तेजना,मा बेटा,नगी,यौवन की प्या,एक फूल दो कलियां,घुसेड,ज़ोर ज़ोर,घुसाने की कोशिश,मौसी उसकी माँ,मस्ती कोठे की,पूनम कि रात,सहलाने लगे,लंबा और मोटा,भाई और बहन,अंकल की प्यास,अदला बदली काम,फाड़ देगा,कुवारी,देवर दीवाना,कमसीन,बहनों की अदला बदली,कोठे की मस्ती,raj sharma stories ,पेलने लगा ,चाचियाँ ,असली मजा ,तेल लगाया ,सहलाते हुए कहा ,पेन्टी ,तेरी बहन ,गन्दी कहानी,छोटी सी भूल,राज शर्मा ,चचेरी बहन ,आण्टी , kahaniya ,सिसकने लगी ,कामासूत्र ,नहा रही थी , ,raj-sharma-stories कामवाली ,लोवे स्टोरी याद आ रही है ,फूलने लगी ,रात की बाँहों ,बहू की कहानियों ,छोटी बहू ,बहनों की अदला ,चिकनी करवा दूँगा ,बाली उमर की प्यास ,काम वाली ,चूमा फिर,पेलता ,प्यास बुझाई ,झड़ गयी ,सहला रही थी ,mastani bhabhi,कसमसा रही थी ,सहलाने लग ,गन्दी गालियाँ ,कुंवारा बदन ,एक रात अचानक ,ममेरी बहन ,मराठी जोक्स ,ज़ोर लगाया ,मेरी प्यारी दीदी निशा ,पी गयी ,फाड़ दे ,मोटी थी ,मुठ मारने ,टाँगों के बीच ,कस के पकड़ ,भीगा बदन , ,लड़कियां आपस ,raj sharma blog ,हूक खोल ,कहानियाँ हिन्दी , ,जीजू , ,स्कूल में मस्ती ,रसीले होठों ,लंड ,पेलो ,नंदोई ,पेटिकोट ,मालिश करवा ,रंडियों ,पापा को हरा दो ,लस्त हो गयी ,हचक कर ,ब्लाऊज ,होट होट प्यार हो गया ,पिशाब ,चूमा चाटी ,पेलने ,दबाना शुरु किया ,छातियाँ ,गदराई ,पति के तीन दोस्तों के नीचे लेटी,मैं और मेरी बुआ ,पुसी ,ननद ,बड़ा लंबा ,ब्लूफिल्म, सलहज ,बीवियों के शौहर ,लौडा ,मैं हूँ हसीना गजब की, कामासूत्र video ,ब्लाउज ,கூதி ,गरमा गयी ,बेड पर लेटे ,கசக்கிக் கொண்டு ,तड़प उठी ,फट गयी ,भोसडा ,मुठ मार ,sambhog ,फूली हुई थी ,ब्रा पहनी ,چوت , . bhatt_ank, xossip, exbii, कामुक कहानिया हिंदी कहानियाँ रेप कहानिया ,सेक्सी कहानिया , कलयुग की कहानियाँ , मराठी स्टोरीज , ,स्कूल में मस्ती ,रसीले होठों ,लंड ,पेलो ,नंदोई ,पेटिकोट ,मालिश करवा ,रंडियों ,पापा को हरा दो ,लस्त हो गयी ,हचक कर ,ब्लाऊज ,होट होट प्यार हो गया ,पिशाब ,चूमा चाटी ,पेलने ,दबाना शुरु किया ,छातियाँ ,गदराई ,पति के तीन दोस्तों के नीचे लेटी,मैं और मेरी बुआ ,पुसी ,ननद ,बड़ा लंबा ,ब्लूफिल्म, सलहज ,बीवियों के शौहर ,लौडा ,मैं हूँ हसीना गजब की, कामासूत्र video ,ब्लाउज ,கூதி ,गरमा गयी ,बेड पर लेटे ,கசக்கிக் கொண்டு ,तड़प उठी ,फट गयी ,फूली हुई थी ,ब्रा पहनी
मेरी जिंदगी--8
सीमा के जाने के बाद राजेश कमरे में बैठा बैठा सोचने लगा- की नानी आख़िर क्या कह गयी है- क्या नानी सच में चाहती है की मैं मा के साथ और आगे बॅड जाउन.
मैं तो सिर्फ़ मा का अकेलापन दूर करना चाहता था - हाँ मा मुझे अपनी तरफ आकर्षित ज़रूर करती है पर क्या ये सही होगा? अकेलापन दूर करने का अर्थ जिस्मानी रिश्ता बनाना तो नही हो सकता - हन पापा अक्सर बाहर ही रहते हैं टूर पे तो क्या मा की जिस्म की भूख इतनी बॅड चुकी है की नानी मुझे वो रास्ता दिखा रही है जो शायद मेरे अंदर भी कहीं ना कहीं तो छुपा हुआ है. पर मा तो एक चुंबन से ही नाराज़ हो के चली गई. अब आगे क्या?
क्या मा अपना अतीत मुझे सुना कर उस बोज़ से बाहर निकलेगी या फिर मुझे डाइयरी ही पड़नी पड़ेगी.
राजेश यही सब सोच रहा था की भावना उसके कमरे में आती है भावना का चेहरा शर्म से लाल हो रहा था सीमा ने जो उसे समझाया था अब वो उस रास्ते पे आगे बड़ना चाहती थी अपने जिस्म की आग को अपने ही बेटे से बुझाना चाहती थी.
भावना राजेश के पास आ कर बैठ गई और अपना सर उसके कंधे पे रख दिया. ये शायद भावना की तरफ से राजेश को हरी झंडी थी आगे बॅडने के लिए, जिसे राजेश समझ नही पा रहा था.
उसका सारा धयान तो तो भावना के मुँह से उसका अतीत उगलवाने में था ताकि भावना फिर अपनी यादों में खुद को ना डूबो दे और जिंदगी को खुल के जिए.
'मा क्या तुम मुझे अपना अतीत सुना कर उन ज़हरीली यादों से बाहर नही निकलना चाहती'
'तुझ से क्या छुपाना सब बता दूँगी - पर मुझे कुछ समय चाहिए - कुछ बातें एसी हैं जो एक मा का अपने बेटे से करना आसान नही होता'
'भूल जाओ की मैं तुम्हारा बेटा हूँ - मुझे बस अपना दोस्त समझो'
'सच?'
'मूच'
'इस दोस्ती की सीमा?'
'दोस्ती की कोई सीमा नही होती'
'तो क्या तू मेरे साथ.......?'
राजेश भावना को आगे नही बोलने देता और अपने होंठ भावना के होंठों से चिपका देता है. अब भावना सारे बंधन तोड़ने का मॅन बना कर आई थी और वो इस चुंबन में राजेश का खुल के साथ देती है. दोनो एक दूसरे होंठ चूसने लग गये ज़ुबाने एक दूसरे से लड़ने लगी और भावना ने कस के राजेश को अपने से चिपका लिया.
राजेश और भावना दोनो ही उस चुंबन में खो चुके थे. राजेश भावना के होंठों को ऐसे चूस रहा था धीरे धीरे जैसे गुलाब की नाज़ुक पंखुड़ियों को अपने होंठों में दबा के रखा हो.
उसके चूमने के तरीके में एक परिपक्वता थी, ज़रा सा भी उतावलापन नही था, भावना को यूँ लग रहा था जैसे पहली बार कोई उसके होंठों के रस को पी रहा हो. उसके जिस्म में वो तरंगे उठ रही थी जिनसे वो बिल्कुल अंजान थी. प्यार के इस रूप से वो बिल्कुल अंजान थी और दिल चीख चीख कर कह रहा था - देखा इसे कहते हैं प्यार - क्यूँ खुद को इस प्यार से अब तक दूर रखा? क्यों खुद को इतना तडपया ?
राजेश उसे इस तरहा प्यार करेगा ये उसने कभी सपने में भी नही सोचा था वो तो सोच रही थी की हरी झंडी दिखते ही वो उसके कपड़े उतार फेंकेगा और उस पर चॅड जाएगा पर एसा कुछ नही हुआ और जो हो रहा था वो उसकी कल्पना से परे था.
भावना का नियंत्रण अपने जिस्म से हटता जा रहा था और वो सुलगती हुई मोम की तरहा राजेश की बाँहों में पिघलती जा रही थी.
उस सकूँ को अपने दिल-ओ-दिमाग़ में भरती जा रही थी जो आज जाने नसीब की कोन से दयादृष्टि के कारण उसे प्राप्त हो रहा था.
सारे बंधन स्वाहा होते जा रहे थे - मर्यादा की दीवार मिटती जा रही थी.
बस एक एहसास जनम ले चुका था - कोई उसे टूट कर प्यार करता है - और ये कोई अन्य नही उसका ही अंश था उसका बेटा.
पता नही कितनी देर दोनो एक दूसरे में खोए रहते हैं राजेश के हाथ बस भावना की पीठ तक ही सीमित रहते हैं वो उसके जिस्म के किसी भी अंग को छूने का प्रयास नही करता.
यूँ लग रहा था जैसे बरसों से बिछड़े दो प्रेमी आज मिले हों और उनकी आत्माएँ एक दूसरे में घुल रही हों.
जब दोनो अलग होते हैं तो भावना शर्म के मारे अपना चेहरा राजेश की छाती में छुपा लेती है.
'मोम डार्लिंग चलो पॅकिंग करो और नानी को भी बोलो पॅकिंग करने के लिए हम लोग ५-६ दिन बाहर घूमने चलेंगे'
'कहाँ?'
'वो सब मुझ पे छोड़ो आप लोग बस रेडी हो जाओ मैं बाकी इंतेज़ाम करता हूँ'
ये कह कर राजेश कमरे से बाहर चला जाता है और भावना भी सीमा के पास जा कर उसे राजेश का हुकुम सुना कर तयार होने के लिए कहती है. दोनो मा बेटी फटाफट समान पेक करने लग जाती हैं.
राजेश, भावना और सीमा को घुमाने के लिए नैनीताल ले आया और मनुमहारानी में दो कमरे ले लिए. सफ़र में सीमा बहुत थक चुकी थी तो वो सीधा सोने के लिए चली गई. भावना तो हर्ष के सागर में समाई हुई थी उसे थकान का कोई अहसास नही हो रहा था, सीमा को कोई परेशानी ना हो इसलिए भावना राजेश के साथ उसके कमरे में आ गई और दोनो बाल्कनी में खड़े हो कर नैनी झील की खूबसूरती का मज़ा लेने लगे. राजेश ने भावना को अपने करीब कर लिया दोनो के जिस्म आपस में छूने लगे.
दूर तक फैली हुई झील को देखते हुए राजेश ने भावना से सवाल पूछ लिया 'मों तुम अपना अतीत कब सुनाओगी- मैं चाहता हूँ तुम जल्द से जल्द उन कड़वी यादों से दूर हो जाओ और फिर कभी उस तरफ मूड के भी ना देखो'
भावना अपनी झील सी गहरी आँखों से राजेश को देखने लगी और सोचने लगी की कैसे और कहाँ से अपने दुखद अतीत का वर्णन करना शुरू करे.
'तूने डाइयरी में कहाँ तक पड़ा है?'
राजेश उसे बताता है जहाँ तक उसने डाइयरी पड़ी थी. जब आखरी सीन राजेश ने भावना को बताया तो भावना की नज़रें झुक गई और चेहरा शर्म से लाल पड़ गया.
ये वो रात थी जब सीमा भावना को दूसरे शहर ले गई थी उसे लड़की का कपड़े पहनाने शुरू कर दिए थे और (भव्य) जो उस वक़्त भावना का नाम ले चुका था सीमा को अपने सामने बिस्तर पे देख उसका लंड खड़ा हो चुका था और वो सीमा से जा कर चिपक गया था.
'प्लीज़ ये सब डाइयरी में पड़ ले ना मुझसे नही बोला जाएगा'
'देखो मों डार्लिंग अगर तुम खुद ये सब नही बोलोगी तो उन यादों से तुम्हारा पीछा कभी नही छूटेगा कुछ ना कुछ तुम्हारे दिल में अटका रह जाएगा जो तुम्हें बार बार परेशान करेगा और अब मुझे बेटा नही सिर्फ़ एक दोस्त समझो जिस पर तुम आँख बंद कर भरोसा कर सकती हो'
'तुझ पे भरोसा नही करूँगी तो किस पे करूँगी - पर समझा कर ना कुछ बातें में नही बोल पाउंगी'
'ह्म्*म्म्मम तो पहले तुम्हारी शर्म को दूर करना पड़ेगा' ये कह कर राजेश ने भावना को अपनी तरफ खींचा और उसकी आँखों में देखने लगा इस से पहले की भावना अपनी नज़रें झुकाती राजेश ने उसके चेहरे को अपने हाथों में थाम लिया. दोनो एक दूसरे को अपलक देखने लगे, जिस्म अपने आप करीब आने लगे और दोनो के काँपते हुए होंठ एक दूसरे को छूने लगे.
झील की तरफ से आती हुई ठंडी ठंडी हवा दोनो के जिस्मो को थरथरा रही थी, भावना को शायद थोड़ी ठंड भी लगने लगी थी, पर जो आत्मीयता उस चुंबन में थी, उसे वो किसी भी कीमत पे नही खोना चाहती थी. लज़्ज़त और सकूँ से उसकी आँखें बंद हो चुकी थी जिस्म चाह रहा था की राजेश के हाथ उसपे फिरेन उसे महसूस करें, पर राजेश शायद किसी और मिट्टी का बना था उसके जगह कोई और लड़का होता तो अब तक भावना कपड़ों से आज़ाद होती और वो बेरेहमी से उसे रोंध रहा होता- पर कहते हैं जब दिल में प्यार हो तो वासना और जिस्मानी सुख बहुत पीछे रह जाता है. वैसे तो भावना सीमा के उकसाने पर राजेश के साथ अपने जिस्म की भूख को शांत करना चाहती थी . पर जो प्रेम उसे राजेश से मिल रहा था उसके आगे उसके जिस्म की प्यास नगण्य हो कर रह गयी थी वो जानती थी इस प्रेम की आखरी सीडी पे जब दोनो पहुँचेगें तो जिस्म की प्यास अपने आप शांत हो जाएगी क्यूंकी जो दोनो के बीच हो रहा था वो केवल आत्मा की गहराई में बसा प्रेम का सागर बाहर निकल रहा था. जो धीरे धीरे रिस कर दोनो के जिस्म के कण कण को एक अनोखी अनुभूति से परिचित करा रहा था जिसका वर्णन किसी भी प्रेम शास्त्र में नही था. उसे बस वो दो प्रेमी ही महसूस कर सकते थे जो उसमे लिप्त थे और इस अनुभूति को शब्दों में परिवर्तित करना एक दम असंभव था.
दोनो के जिस्मो का तापमान धीरे धीरे बॅड रहा था - ठंडी ठंडी हवा उन्हें एक सकूँ पहुँचाने लगी थी और चुंबन भी गहरा होता जा रहा था दोनो की लार एक दूसरे से मिल रही थी और एक दूसरे के अंदर समाती जा रही थी.
प्रेम ग्रंथों में बार बार लेला मजनू - शिरी फरहाद के किससे सुनाए जाते हैं जिनका प्रेम अमर हो गया था पर शायद वो भी इस अनुभूति से वंचित रह गये थे जो इस वक़्त भावना और राजेश को महसूस हो रही थी.
आज इस कहानी को लिखते समय मेरे पास भी शब्दों की कमी पड़ रही है अपने पाठकों को इस एहसाह से परिचित करने के लिए - पर जिसके दिल में भी प्रेम के कुछ अंकुर फूटे होंगे शायद वो इस भावना इस अनुभूति इस एहसास को कुछ तो समझ ही जाएगा / जाएगी.
भावना के बॉल स्वतः ही खुल गये और लहराने लगे कुछ बालों ने उड़ कर राजेश के चेहरे तक को ढांप लिया मानो एक प्रयत्न कर रहे हों की राजेश को दुनिया की नज़र ना लग जाए - उनके उभरते हुए इस प्रेम को किसी की नज़र ना लग जाए.
कहतें हैं कोई भी एहसास स्थाई नही रह पाता उसका अंत निश्चित ही होता है - बस रह जाती है एक मीठी सी याद उस एहसास की. इनका ये चुंबन भी टूटा क्यूंकी जीने के लिए साँस लेना ज़रूरी था और दोनो एक दूसरे से चिपके अपनी उखड़ती हुई साँस को नियंत्रित करने लग गये.
'चलो मों कहीं घूम के आते हैं' और राजेश भावना को अपने साथ होटेल के बाहर ले गया.
राजेश भावना को लेकर होटल के पीछे पहाड़ी रास्ते पे निकल पड़ता है और काफ़ी आगे जा कर एक जगह एकांत में दो पेड़ों की छाँव और हरी हरी घास पे जा कर बैठ जाता है. दृश्य इतना सुहावना था की भावना उसकी छटा में खो कर रह जाती है और बार बार अपनी नशीली आँखों से राजेश को पलट पलट के देखती रहती है.
राजेश उसकी गोद में सर रख के लेट जाता है और भावना उसके बालों में प्यार से हाथ फेरने लगती है.
'चलो अब सूनाओ ना कोई तुम्हें देखने वाला है ना कोई सुनने वाला बस हम दो ही हैं'
'उफ़फ्फ़ तू नही मानेगा' - और भावना के चेहरे पे परेशानी के भाव आ जाते हैं - भावना को परेशान देख कर राजेश भी तोड़ा परेशान हो जाता है पर आज वो निश्चय कर चुका था भावना की ज़ुबान पर लगे हुए ताले को खोलने का.
'चलो मैं भी अपनी आँखें बंद कर लेता हूँ अब बोलो' और राजेश वाक्य में अपनी आँखें बंद करलेता है.
कुछ देर ऐसी शांति छा जाती है की पत्तों तक के गिरने की आवाज़ भी सुनाई देने लगती है.
भावना सामने फैले खूबसूरत नज़ारे को देखती हुई बोलना शुरू कर देती है.
'बात तब की है जब मा मुझे अपने साथ दूसरे शहर ले गई- मुझे लड़कियों के कपड़े पहनने का बहुत शोक था और मा ने मुझे अब हर समय लड़कियों के ही कपड़े पहनने को कहा मैं बहुत खुश हो गई. मेरा नाम भी भव्य से भावना रख दिया गया.
उस दिन पहली बार मुझे अपनी मा में बहुत आकर्षण दिखा और मेरे लिंग में तनाव आना शुरू हो गया. मा थक के बिस्तर पे लेटी हुई थी - मैं मा के उपर ही चॅड गयी और मा के होंठ चूसने लगी मा ने मुझे होंठों का चुंबन लेना सीखा दिया था.
मा भी गरम होने लगी और चुंबन में मेरा साथ देने लगी'
'छी - क्या क्या बुलवा रहा है मुझ से. छी मुझसे नही बोला जाएगा - प्लीज़ तू डाइयरी पॅड लेना' और भावना की आँखों में आँसू आ गये - राजेश ने फट से अपनी आँखें खोली और भावना की गीली आँखें देख कर वो तड़प उठा - एक औरत के लिए लज्जा की दीवार को तोड़ना इतना आसान नही होता.
राजेश ने उठ कर भावना को अपने सीने से लगा लिया. ' बस रोना नही'
'फिर क्यों मुझे......' भावना से बोला नही गया और सिसकने लगी.
'बस यार सॉरी - अब जब तुम्हारा दिल करे तब ही बोलना मैं कोई ज़ोर नही डालूँगा - सारी यार अब ये कीमती आँसू मत बहाओ- प्लीज़'
राजेश भावना के आँसू चाटने लगा और धीरे धीरे भावना की सिसकियाँ बंद हो गई. राजेश ने उसके चेहरे को चाटना नही छोड़ा और धीरे धीरे दोनो के होंठ फिर आपस में मीलगए - थोड़ी ही देर में राजेश ने भावना के होंठों को आज़ाद कर दिया और भावना राजेश के सीने पे सर रख के अधलेटी हो गई और फिर सामने के मनोरम दृश्य को देखने लगी.
पता नही कितना वक़्त गुजर गया शाम का धुनदल्का शुरू हो गया तब उन्हें वक़्त का धयान आया और सीमा की भी याद आई जो उस समय होटल में सो रही थी - अब तो जाग भी गई होगी और परेशान हो रही होगी. दोनो होटल की तरफ चल पड़ते हैं.
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
No comments:
Post a Comment