FUN-MAZA-MASTI
अजीब दास्तान है ये..
.अचानक झाड़ी के पीछे कुछ चमकी। मैं जब वांहा गया तो देखा के एक अजीब सा चीज़, कुछ पथ्थर जैसा, चमकीला, काले रंग का एक अदभूत वस्तु पड़ा मिला। मैंने उसे उठा के अपने हाथ मे लिया तो उसमे थोड़ी गरमी सी महसूस हुई। ये एक नया तरह का चीज़ था जो मैंने पहले कभी नहीं देखा था। मैने उसे वहीं छोड़के अपने रास्ते चलने के लिए पीछे मूड़ा। कुछ कदम चला ही था के पीछे से आवाज आई, "हुकम मेरे आका..." मैं थोड़ा डर गया और वहीं रुक गया। पलक झपक्ते
ही एक साया सा मेरे सामने आ खड़ा हुआ और बोला..."आदाब मेरे आका..." मैं अचानक से बेहद डर गया। गले से आवाज निकलना बंद हो गया। उसका आधा शरीर हवा मे
था और बाकी गायब, आँखेँ खून के तरह लाल, और
दाँत शोर जैसा नुकीला। मैने किसी तरह थोड़ा साहस बना के उस से पूछा..."तु...तु...तुम कौन
हो? क्या चाहते हो मुझसे?"
"मैं जिन् हूँ...वासारीस नाम है मेरा...और आज से मैं
आपका गुलाम हूँ। आप मेरे आका हैं...आपकी तीन ख्वाहिसेँ पूरे होने तक। मांगिये जो मांगना है।" मुझे लगने लगा के मैं कोई सपना देख राहा हूँ। जो आज तक काहानीयोँ मे सुना था वो आज मेरे सामने खड़ा हय! मुझे ये सब जैसे किसी का मज़ाक
लगा, या फिर लगा की मैं नशे मे हूँ। मैंने आधे विश्वास और आधे अविश्वास के साथ पूछा, "तुम असली मे जिन् हो?...मेरा मतलब है की ये कोई मज़ाक तो नहीं है?"
सुनके वो हसने लगा, "हाः हाः हाः...आप हुकम तो कीजिये...सच और झूठ अपने आप पता चल जाएगा।" मैंने सोचा के चलो थोड़ा आज़मा के देखते हैं, "तो मेरी पहली ख्वाहिस है के...."
"थोड़ा रुकिये मेरे आका...ग़ुस्ताख़ी माफ़...मगर कुछ केहना है मुझे...आप एक साथ तीन ख्वाहिसेँ नहीं मांग सकते हैं। एक ख्वाहिस पूरे होने के बाद दुसरा और फिर तिसरा। आप मुझसे किसी की हत्या नहीं करवा सकते, सिर्फ आपका छोड़के और किसी का समय बदल नहीं सकते
और आपकी किसी ख्वाहिस मे आप ये नहीं कह सकते
के मैं आपका गुलाम बन जाऊं। अगर आपने इन
तीनों मे किसी एक का ज़िक्र किया तो मैं आपको वहीं मार दुंगा।"
मैं थोड़ा डर सा गया क्योँ की मैं अपनी पेहली ख्याहिस मे यहीं मांगने जा राहा था के वो हमेशा हमेशा के लिए मेरा ग़ुलाम बन जाए। अब मैं सोचने लगा के क्या मांगुँ।
सुबह एक लड़की देखी थी, छोटे छोटे कपड़े पहन कर
अपने आशिक के साथ घूम रही थी पार्क मे। मैं सोच
राहा था के अगर मैं उसके आशिक के जगह होता तो कितना मज़ा आता। और बस, मैंने मांग लिया..."मेरे इच्छाधारी होने की ख्वाहिस पूरी कर दो...जो भी औरत मेरे सबसे करीब हो, उसके दिमाग मे जो भी मर्द से चुद्वाने की इच्छा हो, या फिर सबसे करीब कोई भी मर्द किसी औरत को चोदने जा राहा हो, मुझमे तभी उसका रूप आ जाए।"
ये कहने के बाद मुझे थोड़ा डर लगने लगा, कहीं मैं
कुछ गलत तो नहीं बोल दिया, कहीं ये मुझे मार
तो नहीं देगा...
थोड़ी देर वो चुप राहा और फिर वो हसने लगा..."हाः हाः हाः..." और बोला, "जो हुकम
मेरे आका...पर मेरा जादू सिर्फ सुरज ढलने के बाद
काम करता है...और हाँ, मैं आपका रूप नहीं बदल
सकता, बस मैं आपकी आतमां को उस व्यक्ति के
शरीर मे प्रवेश करवा सकता हूँ।"
"उस वक्त मेरा शरीर और उसके आतमां का क्या होगा?" मैंने पूछा।
"उसकी आतमां काल-चक्र के कोठरी मे बंद रहेगा और तुमहारा शरीर मेरे कब्ज़े मे रहेगा। आप
फिकर मत किजीये...आपके शरीर के साथ मैँ कोई गलत काम नहीँ करुंगा।"
मुझे कुछ समझ मे नहीं आया तो मैंने काहा, "वो सब
तो ठीक है लेकिन तुम मेरा सीधा रूप क्योँ नहीं बदल सकते? इतना पेँचीदा तरीका क्योँ?"
"रूप बदलने की ताकत सिर्फ भगवान के हाथ मे
है...और मैं वाहां कुछ नहीं कर सकता।
मेरी इतनी ताकत नहीं है...अब आप उस पथ्थर
को याहाँ ज़मीन पे गाड़ दिजीये ताकि जब आप
अपनी ख्वाहिस बदलना चाहेँ तो मुझे ढुंड पाएं..."
उसने काहा।
मैंने फिर पूछा, "तो तुमहेँ भगवान ने नहीँ भेजा हैँ?"
"हाः हाः हाः हाः हाः...नहीं, मैं शयतान हूँ...हाः हाः हाः हाः हाः..." और हसते हसते
वो गायब हो गया। मैंने उसके कहने के मुताबिक उस काले पथ्थर को ज़मीन मे गाड़ दिया। कुछ
ही पलोँ मे मुझे चक्कर से आने लगे और फिर कुछ मुझे याद नहीं।सुबह जब उठा तो मैं अपने बिस्तर पे पड़ा था।
"तो वो एक सपना था?"... मैंने अपने आप से
काहा और सब भूल गया। पूरा दिन ठीक-ठाक
गुज़रा। मैं स्कुल गया, वापस आया, आने के बाद
थोड़ा सो भी लिया...सब कुछ सही-सलामत। मुझे
पिछले रात के सपने पर हसीँ आ रही थी। "हुकम मेरे
आका...हाः हाः हाः हाः हाः"...उस जिन्
का मज़ाक उड़ाते उड़ाते मैं खेलने के लिये निकल
पड़ा। पर ये क्या! मैं काहां हूँ?......
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था और बाकी गायब, आँखेँ खून के तरह लाल, और
दाँत शोर जैसा नुकीला। मैने किसी तरह थोड़ा साहस बना के उस से पूछा..."तु...तु...तुम कौन
हो? क्या चाहते हो मुझसे?"
"मैं जिन् हूँ...वासारीस नाम है मेरा...और आज से मैं
आपका गुलाम हूँ। आप मेरे आका हैं...आपकी तीन ख्वाहिसेँ पूरे होने तक। मांगिये जो मांगना है।" मुझे लगने लगा के मैं कोई सपना देख राहा हूँ। जो आज तक काहानीयोँ मे सुना था वो आज मेरे सामने खड़ा हय! मुझे ये सब जैसे किसी का मज़ाक
लगा, या फिर लगा की मैं नशे मे हूँ। मैंने आधे विश्वास और आधे अविश्वास के साथ पूछा, "तुम असली मे जिन् हो?...मेरा मतलब है की ये कोई मज़ाक तो नहीं है?"
सुनके वो हसने लगा, "हाः हाः हाः...आप हुकम तो कीजिये...सच और झूठ अपने आप पता चल जाएगा।" मैंने सोचा के चलो थोड़ा आज़मा के देखते हैं, "तो मेरी पहली ख्वाहिस है के...."
"थोड़ा रुकिये मेरे आका...ग़ुस्ताख़ी माफ़...मगर कुछ केहना है मुझे...आप एक साथ तीन ख्वाहिसेँ नहीं मांग सकते हैं। एक ख्वाहिस पूरे होने के बाद दुसरा और फिर तिसरा। आप मुझसे किसी की हत्या नहीं करवा सकते, सिर्फ आपका छोड़के और किसी का समय बदल नहीं सकते
और आपकी किसी ख्वाहिस मे आप ये नहीं कह सकते
के मैं आपका गुलाम बन जाऊं। अगर आपने इन
तीनों मे किसी एक का ज़िक्र किया तो मैं आपको वहीं मार दुंगा।"
मैं थोड़ा डर सा गया क्योँ की मैं अपनी पेहली ख्याहिस मे यहीं मांगने जा राहा था के वो हमेशा हमेशा के लिए मेरा ग़ुलाम बन जाए। अब मैं सोचने लगा के क्या मांगुँ।
सुबह एक लड़की देखी थी, छोटे छोटे कपड़े पहन कर
अपने आशिक के साथ घूम रही थी पार्क मे। मैं सोच
राहा था के अगर मैं उसके आशिक के जगह होता तो कितना मज़ा आता। और बस, मैंने मांग लिया..."मेरे इच्छाधारी होने की ख्वाहिस पूरी कर दो...जो भी औरत मेरे सबसे करीब हो, उसके दिमाग मे जो भी मर्द से चुद्वाने की इच्छा हो, या फिर सबसे करीब कोई भी मर्द किसी औरत को चोदने जा राहा हो, मुझमे तभी उसका रूप आ जाए।"
ये कहने के बाद मुझे थोड़ा डर लगने लगा, कहीं मैं
कुछ गलत तो नहीं बोल दिया, कहीं ये मुझे मार
तो नहीं देगा...
थोड़ी देर वो चुप राहा और फिर वो हसने लगा..."हाः हाः हाः..." और बोला, "जो हुकम
मेरे आका...पर मेरा जादू सिर्फ सुरज ढलने के बाद
काम करता है...और हाँ, मैं आपका रूप नहीं बदल
सकता, बस मैं आपकी आतमां को उस व्यक्ति के
शरीर मे प्रवेश करवा सकता हूँ।"
"उस वक्त मेरा शरीर और उसके आतमां का क्या होगा?" मैंने पूछा।
"उसकी आतमां काल-चक्र के कोठरी मे बंद रहेगा और तुमहारा शरीर मेरे कब्ज़े मे रहेगा। आप
फिकर मत किजीये...आपके शरीर के साथ मैँ कोई गलत काम नहीँ करुंगा।"
मुझे कुछ समझ मे नहीं आया तो मैंने काहा, "वो सब
तो ठीक है लेकिन तुम मेरा सीधा रूप क्योँ नहीं बदल सकते? इतना पेँचीदा तरीका क्योँ?"
"रूप बदलने की ताकत सिर्फ भगवान के हाथ मे
है...और मैं वाहां कुछ नहीं कर सकता।
मेरी इतनी ताकत नहीं है...अब आप उस पथ्थर
को याहाँ ज़मीन पे गाड़ दिजीये ताकि जब आप
अपनी ख्वाहिस बदलना चाहेँ तो मुझे ढुंड पाएं..."
उसने काहा।
मैंने फिर पूछा, "तो तुमहेँ भगवान ने नहीँ भेजा हैँ?"
"हाः हाः हाः हाः हाः...नहीं, मैं शयतान हूँ...हाः हाः हाः हाः हाः..." और हसते हसते
वो गायब हो गया। मैंने उसके कहने के मुताबिक उस काले पथ्थर को ज़मीन मे गाड़ दिया। कुछ
ही पलोँ मे मुझे चक्कर से आने लगे और फिर कुछ मुझे याद नहीं।सुबह जब उठा तो मैं अपने बिस्तर पे पड़ा था।
"तो वो एक सपना था?"... मैंने अपने आप से
काहा और सब भूल गया। पूरा दिन ठीक-ठाक
गुज़रा। मैं स्कुल गया, वापस आया, आने के बाद
थोड़ा सो भी लिया...सब कुछ सही-सलामत। मुझे
पिछले रात के सपने पर हसीँ आ रही थी। "हुकम मेरे
आका...हाः हाः हाः हाः हाः"...उस जिन्
का मज़ाक उड़ाते उड़ाते मैं खेलने के लिये निकल
पड़ा। पर ये क्या! मैं काहां हूँ?......
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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