Saturday, August 16, 2014

FUN-MAZA-MASTI में और मेरी प्यारी माँ--1

FUN-MAZA-MASTI


में और मेरी प्यारी माँ--1
दोस्तों मेरा नाम राहुल है. मेने अभी १२ पास किया है. मेरी माँ का नाम रेखा है जिसकी उम्र ४२ साल है . हमारा ज्वेलरी का धंधा है.मेरे परिवारमे में ,भाई जो मुझसे छोटा है ,पापा ,दादी ,दादा, और मेरी प्यारी माँ.हम बरोदा में रहते है.धंधा अच्छा चलता है .ज्वेलरी के घहनो पे पेसो का सूद से लेन देन का धंधा है.जो काफी बढ़िया चलता है.बरोदा के आलावा दूर ४५की.मी. एक गाव में भी दुकान लगाईं है.बरोदा की दुकान दादाजी और माँ सँभालते है .गाँव की दुकान पे पापा जाते है ..कभी कभी माँ या मेभी गाव की दुकान पे जाते है.
गाव की दुकान एक तालाब के किनारे पर है. पीछे की खिडक खोलने पर तालाब दिखता है .दुकान में काउंटर बनाया हुआ है एक तरफ की दो कुर्सी पे माँ और पापा या में बैठते है .सामने ग्राहक के लिए बेंच लगाईं है.बेंच के ऊपर एक आयना लगा हुआ है . आयने में खिड़की के बाहर का नजारा दिखता है .पप्पा को बड़े ऑर्डर के लिए बरोदा रुकना होता है तो में और माँ गाव की दुकान पे चले जाते है .माँ हमेशा मुझे पापा वाली खुर्सी पे बैठाती है वो दूसरी कुर्सी पे बैठती है .में एक रोज पापा के साथ दुकान पे गया तो माँ वाली कुर्सी पे बेठा तब पता चला आइनेमे वहां से पीछे का नाजारा क्या दिखता है .? वहां से तालाब के किनारे मुतने आने वाले लोगो का नजारा दिखता था.मेरा दिमाग घूम गया जाने कितने लोगो का.... लंड. मा. देखती रहती होगी.... में समझ  गया माँ क्यों इस्सी कुर्सी पे क्यों बैठती है? दुबारा माके साथ जब गाव जाना हुआ तो में साथ में एक छोटा सा स्टैंड आयना ले गया, आज भी माँ ने मुझे उसी कुर्सी पे बेठने को कहा में वहां बेठा साथमे वो छोटा आयना भी काउंटर पे रख दिया जो माँ की नजरो में नहीं आये लेकिन मुझे सामने वाले आयने का नजारा साफ दिखे.जब भी कोई मुतने आता तो माँ गोर से उसका लंड.. देखती. एक आदमी आया जो मुतने बजाय अपना लंड.. निकाल कर हाथ में ले कर खड़ा रहा और खिड़की और देख कर सहलाने लगा.माँ का चेहरा  लाल हो गया ..अपने कपडे ठीक करते हुए माने चूत पे दो तिन बार हाथ लगा दिया ..मानो जोर से रगड दिया ... वो आदमी अपना खड़ा लंड.. दिखा कर चला गया ..मेने ध्यान से देखा की वो हमारी दुकान पे अक्सर आता जाता रहता है.पापा के साथ भी बैठता और पापा गप्पे बजी करते रहते थे. कई लोग मुतने आये और अनजाने में माँ को लंड   दिखा कर चले गये.

श्याम हो ने आई थी दुकान बंद करने को माँ ने कहा .में कुर्सी से उठा ही था की माने कहा रुको थोडा बैठते है मेरी नजर आयने पर गई तो पीछे एक गधे का जोडा सेक्स कर रहा था .गधा अपना लम्बा लंड   निकले गधी पे चढ़ रहा था. जेसे ही लंड   चूत को छू ता गधी आगे हो जाती,एसा दो- तिन बार हुआ लेकिन गधे ने सेट कर के एसा धक्का मारा आधा लंड   गधी की चुतमें चला गया...गधी हों-हों.ची..हों-हों..ची..करने लगी और आगे दोड़ने लगी.गधा भी अपना लंड   घुसाए दो पेरों पे दोड़ने लगा. हों-हों.ची..हों-हों..ची..करने लगा.माँ के चेहरे पे स्माइल गई. में उठा और खिड़की से बाहर देखने लगा माँ ने पूछा क्या हुआ? मेने कहा -माँ दो गधे आपसमे गधा पचीसी खेल रहे है .माँ अनजान बन के खिड़की के पास आई और हसने लगी .. पूछा- क्या कहा तुमने? मेने कहा - दो गधे आपसमे गधा पचीसी खेल रहे है..माँ जोर से हंस पड़ी..इतने में गधा-गधी शांत हो गये गधि ने - गधे का लम्बा लंड   पूरा अपनी चूत में ले लिया था.गधा हांफ रहा था ..शायद उसका माल निकालने वाला था .वो जोर से उछला पूरा लंड   घुसा दिया इसबार गधी ने कोई शोर नहीं किया शांति से खड़ी रही ...और गधे ने अपना लंड   बाहर निकाल लिया .अभी भी उसके लंड   से माल टपक रहा था.में और माँ सारा नजारा देखा रहे थे.माँ ने अपना हाथ दो पेरो के बीच दबाया हुआ था.जेसे ही मेंने देखा माँ ने हाथ हटा लिया. मेने कहा माँ गधा पचीसी पूरी हो गई. चलो अब चले?? माँ ने कहा चलो.

मेने दुकान बंद की और बाइक लेके निकल गये.आज मुझे माँ की चूचीया अपनी पीठ पे महसूस हो रही थी.कभी कभी ब्रेक लगानी पड़ती तो माँ के बोल चूची काफी दब जाती मुझे गुदगुदी हो जाती.कभी-कभी तो एसा लगता की माँ जान बुजकर एसा कर ही है. सडक पे जारहे थे माँ ने कहा बेटे कही रुकना मुझे ....जाना है. मेने एक जगह बाइक रोक दी.माँ सडक के किनारे एक झाडी के पीछे गई और मुतने लगी.सर्रर्रर की आवाज आई में अपने आपको रोक नहीं पाया और देखने की कोशिश की माँ की चूत नहीं दिखाई दी पर जांघेऔर चूत से निकलती पानीकी धार जरुर देखने को मिली.क्या जांघे थी?? कदम लिस्सी ..गोरी मुलायम.माँ उठने वाली थी ,में वहांसे हट गया.और मुतने लगा माँ मेरी और देख रहीथी, पर मेने भी एसा ही किया सिर्फ पानी की धार दिखाई,अपना लंड नहीं दिखने दिया.फिर हम वहां से चल दिए.घर गये कोई बात नहीं हुई. एक दो दिन बित गये .मुझे माकी जांघे और मूत की धार ने बेचेन कर दिया था.में माँ की चूत के बारे में सोचता रहता.
एकदिन घरमे किचन से कुछ गिरने की आवाज आई.मे दोड़ता चला गया. देखा माँ गिर पड़ी थी और पापा उठा रहे थे.शायद माँ के पाँव में चोट आई थी तो मेने भी हैल्प की.खाना तैयार हो गया था तो दादाजी और पापा खाना खाके चले गये.दादी गर पे नहि थी, वो चाचा के घर अहमदाबाद गई थी.घर पे में और माँ दोनों अकेले ही थे. इतने में पापा का फोन आया की :- में गाव जा रहा हु .एक ग्राहक को शादी के घहने देने है.दादाजी दुकान पर थे.माँ अपने रूममें लेटी हुई थी.में माँ के पास गया बोला मम्मी तबियत तो ठीक है ना? माँ ने कहा- हाँ पर पेर में थोडा दर्द हो रहा है. मेने कहा- क्या में मालिस कर दू ? माँ-हाँ,कर दे तो अच्छा लगेगा.माँ ने पेटीकोट पहन रखा था. में पैर की मालिस करने लगा. पेटीकोट घुटनों तक उठाया हुआ था.माँ के गोरे पैर देखकर मुझे मजा आया में मालिस करने लगा.माँ आखे बंद करके लेटी हुई थी.में मालिस करते -करते जंगो तक पंहुचा गया पेटीकोट और ऊपर उठाया .. वाह क्या मस्त जांघे थी गोरी मुलायम मख्खन जेसी.मेरा लंड खड़ा हो गया.माँ शायद सो गई थी.मेने पेटीकोट और ऊपर उठा दिया.माँ ने लाल रंग की पेंटी पहनी हुई थी.चूत का उभार साफ दिखाई देता था.मेने एक दो बार उपर से ही चूत को छुआ मजा गया मेने सोचा माँ की चूत देख ही लेता हु पर चड्डी उतारने की हिम्मत नहीं हु शायद माँ की नींद टूट जाये और में पकड़ा जाऊ.? माँ के पैर खुले हुए थे तो में बीच मे बेठ गया और पेंटी को चूत से साईंड में कर के चूत देखने लगा.चूत की चमड़ी बहुत ही मुलायम थी.थोड़ी काली थी पर चूत के अन्दर का हिस्स एकदम लाल गुलाबी था.अब मुझसे रहां नही जाता था, पर एक बात मेने नोट की माँ की चूत से पानी जेसा चिपचिपा तरल निकाल रहा था. मेने उंगुली पे महसूस किया फिर उसे सुंघा क्या मस्त खुशबु थी.मेने अपना लंड निकला और सुपाड़ा माँ की चूत पे रगड़ ने लगा .माँ की चूत से और पानी छुट रहा था.मेने अपना लंड तिन चार बार घिसा फिर खड़ा हो गया.माका पेटीकोट ठीक किया और बाथरूम में चला गया और माँ की चुदाई के बारे में सोच कर मुठ मारली, और अपना पानी निकाल दिया.मुझे बहुत अच्छा लगा.में माँ को चोदने की सोचने लगा.थोड़ी देर बाद माँ भी उठ गई और बाथरूम की और चली गई



में टी.वि. देख रहा था. माँ आई मेने पूछा - केसा है? माँ-अब ठीक है... में- ठीक मतलब ? माँ- मुस्कुराई ... पहले से दर्द कम है....तुझे चाय बना दू? में-नहीं माँ अभी :३० ही बजे है.बाद में तुम बेठो..आराम करो.. माँ थोड़ी देर बैठी और अपने कमरे में चली गई,जाते-जाते कहा- अगर तुम फ्री हो तो थोडा पैर दबा देना ...में सोने जा रही हु...मेरे मन में लड्डू फूटने लगे.२० मिनट बाद में माँ के रूम में गया. माँ बिस्तर पर लेटी हुई थी.पेटीकोट घुटनों तक चढ़ा हुआ था.पैर ज्यादा खुले रखे थे.में बीचमें ही बेठ गया और पैर दबाने लगा.मेरा लंड माँ की चूत पे टहलने के लिए तेयार हो रहा था.थोड़ी देर बाद मेने पेटीकोट धीरे से जांगो तक उठा दिया और जांगो को दबाने-सहलाने लगा.अपना लंड तो खड़ा होगया था.मेने अपनी हाफ पेंट की जिप खोली और लंड को बहार निकाला.और माँ के पेटीकोट को और ऊपर किया ताकि माँ की पेंटी मुझे दिखे, में माकी चूत को देख सकू.पर ये क्या...माँ तो पेंटी निकाल कर ही लेटी हुई थी. क्या नजारा था... माकी चूत मेरे सामने थी,में भी अपना लंड निकले पेरो के बीच में बेठा था. मेरा लंड माँ की चूत को सलामी दे रहा था.मेने माँ की चूत को अपने हाथो से खोला .वाह कितनी मुलायम थी..अंदर का हिस्सा गुलाबी...और चिपचिपा रस से भरा.मेने चूत के दोनों फ़ॉको को अपने एक हाथ की उंगुलियो से खोल-बंद करने लगा ,दुसरे हाथ से अपने लंड को सहलाने लगा.माकी चूत लगातार पानी निकाल रही थी.और फ़ॉको को खोल-बंद करने से हलकी सी पट-पट की आवाज भी रही थी.मुझ से अब रहा नहीं जाता था.मेने अपने लंड को नजदीक ले आया और चूत पे रगड़ ने लगा ..माँ के बदन में थोड़ी सी सर्राह्त हुई पर माँ शांत रही.में अपना सुपाडा घिसने लगा. बहुत मजा रहा था.माँ की चूत पानी छोड़ रही थी.

में कितना सह पता मेने भी पानी छोड़ दिया.और वहां से जल्दी में भाग आया...मुझे काम होने के बाद बहुत डर लग रहा था...अपना पानी गिराया हुआ रुमाल में व्ही छोड़ आया था ...मेंने थोड़ी देर बाद माँ के रूम में झाका मेरा रुमाल बेड के पास पड़ा था..में टीवी.देखने बेठा गया.. बाथरूम से पानी की आवाज़ आई में समझ  गया माँ उठा गई है.अब में सोचने लगा माँ का रिएक्सन क्या होगा?मेरा दिल जोर-जोर से धाड़-धाड़ करने लगा.माँ कमरेमे आई,उसने गाउन पहना हुआ था.सोफे पर बेठ गई.. मेरी उनसे नजरे मिलाने की हीम्म्त नहीं हुई.वो टीवी देख रहीथी.जब हमारी नजरे मिली माँ ने हलकी मुस्कान दी.में ने भी हंस दिया,माँ ने कहा -तेरा रु- माल मेरे बेड के पास पड़ा है..बाथरुम मे रखा देना.... में चाय बनाने जा रही हु..एसा बोल के माँ मेरे सामने मुस्कुराई और किचन की और जाने लगी.में ने देखा माँ गांड मटकाके चल रही थी.मेरे लिए ये खुला निमंत्रण था..थोड़ी देर बाद में भी किचन में गया,माँ चाय बना रही थी. में पिछ सटक कर खड़ा हो गया.मेरा लंड लोवर में खड़ा था जो गांड को टच कर रहा था,माँ कुछ लेने केलिए झुकी और गांड से मेरे लंड पर दबाव पीडीए मेने महसूस किया माँ ने पेटी नहीं पहनी थी.मेने अपना लंड दबाया.माँ-क्या कर रहा है?और माँ खड़ी हो गई,मे कुछ नहीं बोला...बस अपने लंड को दबाते रहा ..और अपना हाथ से माँ के चुत्तड़ो को सहलाने लगा.अपना मुह माँ के कानो तक ले गया और गर्म सांसे लेने लगा धीरे से कान में कहा- माँ मुझे खेलना है..माँ -क्या खेलना है? में- माँ मुझे गधा पच्चीसी..माँ को जोर की हंसी गई..मेरे लिए ग्रीन सिंगनल था.माँ- गधे के पास बड़ा लम्बा सा था. में -क्या?माँ कुछ नहीं बोली... चुत्तड़ो को सहलाते हुए में गाउन उचे चढाने लगा,अपना लोवर गिरा दिया.मेरा लोडा माँ की गांड को छूने लगा मेने कहा- माँ थोडा झुक जा ...माँ - केसे ?.. में - आगे गधी की तरह .अब माँ झुकी हुई थी और मेरा लंड गांड को छू रहा था.लेकिन माँ चूत पे सेट कर रही थी.पर चूत पे सेट नहीं हो रहा था ..में-माँ घुसाने में मेरी मदद करो ..माँ-क्या घुसाना है? में -जो तेरे पीछे छू रहा है..माँ- उसको का नाम तो होगा ?? में बहुत प्रयास करके बोल पाया -लंड.माँ क्या? फिरसे में ने कहा -लंड.माँ ने चुत्तड़ो को हिलाया..बोली कहाँ घुसाना है?? में-तेरी चूत में..माँ-गधे या गधी के पास हाथ नहीं थे...ऐसे ही घुसाओ.. मेने कहा में पहली बार खेल रहा हु..प्लीज हैल्प करोना..माँ-नहीं ..में -अच्छा तो पिछवाडा थोडा ऊपर करो. माने चुत्तड़ो को उचा किया ..अब लंड चूत के फ़ॉको के बीचा टच होरहा था..चूत गीली हो गई थी.मेने सुपाड़ा टिकाया और हलके से धक्का मारा..माँ आगे खिसक गई ..लेकिन लंड चूत में घुसाने में कामियाब रहा.मेने कहा -माँ थोडा आगे चलोना गधी की तरह माँ.थोडा आगे चली,मेने फिर जोर से धक्का मारा पूरा लंड घुसा दिया.माँ -उईईइ मर गैईईइ.मेने कहा क्याहुआ माँ -तुटो सच में गधा है...में- में या मेरा..माँ -तू और तेरा लंड दोनों ..माँ के मुह से ये सुन कर में खुश हो गया और ..हलके धक्के देने लगा..माँ भी चुत्तड़ो को उछल-उछल कर चुदाने लगी..बहुत मजा रहा था...माँ ढेर सारा पानी छोड़ रही थी पच-पच की आवाज आने लगी ..में भी जोर जोर से झटके देने लगा,माँ के चुत्तड़ो पे मेरे जाँघो की मार से थपाक-थपाक की आवाजे आने लगी..माँ भी स्सस्सस्सस आह्ह्ह.स्स्स्स.ओह्ह्ह्ह कर रही थी में पानी छोड़ने वाला था माँ से कहा अब गधा माल छोड़ेगा.माँ-उंदर ही.. जा.... ने... दे.. स्स्स्स..आह्ह्ह्ह........ह्ह्हह्ह्ह्ह.स्स्स्स...

स्स्स्स..आह्ह्ह्ह........ह्ह्हह्ह्ह्ह.स्स्स्स... कुछ जोरदार धक्के दिए और मेने पानी छोड़ दिया.थोड़ी देर ऐसे ही खड़े रहे..मेरा पूरा लंड चूत में था.माँ झटके से आगे बढ़ी लंड फक की आवाज से निकाल गया.माँ की जांघे तक चूत और लंड का रस फ़ले हुआ था.मेरे लंड के निचे अंडो पर भी कामरस फेला हुआ था.इसीसे चुदाई का अंदाजा लगाया जा सकता था.
में बाथरूम में चला गया अपने लंड और अन्डो को साफ किया.माँ चाय बनाते हुए बाथरूम में गई में ड्रॉइंग रूम में बेठा था.माँ चाय लेके आई सोफे पर मेरे सामने बेठ गई.हम दोनों चाय पि रहे थे की पापा का फोन आया.वो गाव गये थे वहां पर हवाए तेज चल रही थी और बारिस भी हो रही थी सायकलों जेसा माहोल था पापा बता रहे थे की मेरे पास बाइक है पर ऐसे वातावरण में आना ठीक नहीं होगा तो वो ग्राहक के घर पर ही रूक ने की बात कर रहे थे. माँ ने कहा कोई बात नहीं आप सुबह निकालना.
मेने पूछा- क्या हुआ मम्मी ?
माँ- तेरे पापा नहीं सकते गाव में जोरदार बारिस हो रही है..
में -तो?
माँ- तेरे पापा सुबह आयेंगे.
मेरे मन में लड्डू फूटने लगे.माँ भी ची पिते-पीते मुस्करा रही थी
में - कोई बात नहीं ममा हम खूब खेलेंगे..
माँ- क्या ?
में - गधा पच्चीसी
माँ हंसने लगी...में ध्यान से माँ को देख रहा था.
माँ- क्या देख रहा है?
में- अगर ये गाउन आप उतार देती तो कितना अच्छा लगता.
माँ - तो रोका किसने है?अगर तू भी ये बनियान और लोअर उतारदे तो मुझे भी अच्छा लगेगा..
मेने कहा तुम अपने कपडे उतार दो में अपने उतार देता हु... और हमने अपने -अपने कपडे उतार दिए दोनों नंगे होगये.एक दुसरे को देख ने लगे.माँ ने ब्रा नहीं निकाली थी.उनकी बड़ी -बड़ी चुचिया मस्त दिख रही थी मेने ब्रा के हुक खोल दिए और चुचियो को आज़ाद कर दिया.क्या मस्त चुचिया थी.गोरी-गोरी और काले अंगूर जेसे निप्पल.गहरी नाभि,नाभि से थोड़ी ही दूर चूत की दराज,मस्त भरी-भरी जांघे,एसा लगता था जेसे आसमान की प्परिया अगर नंगी हो जाये तो भी माँ की सुन्दरता के सामने उनका कुछ नहीं आता.माँ मुझे देख रही थी मेरे ताने हुए सिने को,मजबूत बाँहों को,माँ की नजर मेरे लंड पर गई जो अभी जोरदार चुदाई के बाद आराम फरमा रहा था. सिकुड़ा हुआ था,चमड़ी सुपाडे पर चढ़ गई थी.लंड के निचे मेरे अंडे चमक रहे थे..हम एक-दुसरे के सामने बेठ गये.
माँ मुस्कुराई कहा- इसे क्या हुआ ? में-किसे?
माँ - तेरे लंड को,क्यों सिमट कर बेठा है?
मेने कहा-माँ आज ये तिन बार लड़ चूका है.
तभी लंड अपनी सिलवटे खोलने लगा..माँ गोर से देख रही थी.लंड पूरा खड़ा हो गया और झटके खाने लगा.









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