FUN-MAZA-MASTI
बीवी का मायका-5
उन्होंने एक चकली मेरे को खिलाई और फिर चम्मच से हलुआ खिलाने लगीं. एकदम मस्त हलुआ था, घी और बादाम से सराबोर. मैं खाने लगा.
"अच्छा है ना दामादजी?" उन्होंने पूछा. मेरे मुंह में हलुआ भरा था इसलिये मैंने हाथ से इशारा किया कि एकदम फ़र्स्ट क्लास!
वे मुस्करा कर बोलीं "वो क्या है बेटा, जल्दी जल्दी में बनाया इसलिये खुद चख नहीं पायी कि कैसा बना है" उन्होंने मेरे सिर को पकड़कर पास खींचा और मेरे मुंह पर मुंह रख दिया. जबरदस्ती मेरा मुंह अपने होंठों से खोल कर उन्होंने मेरे मुंह में का हलुआ अपने मुंह में ले लिया और खाने लगीं. "हां अच्छा है बेटा. वैसे अच्छा बना होगा पर शायद तेरे इस प्यारे प्यारे मुंह का स्वाद लगकर और मीठा हो गया है ..."
वे प्यार से मेरे को हलुआ खिलाती रहीं. बीच में मैंने पूछा "बाई, वो लीना कह रही थी कि आप गुझिया बड़ा अच्छा बनाती हैं, जरा खिलाइये ना, यहां प्लेट में तो दिख नहीं रहा है"
"चिंता मत करो दामादजी, खास बनाई हैं आप के लिये. धीरज रखो. ये लीना बिटिया भी बड़ी शैतान है, मैंने जताया था उसको कि आप को कुछ ना कहे इस बारे में पर वो सुनती है कभी किसी की? ये लो हलुआ और लो"
"नहीं राधाबाई .... बहुत खा लिया"
"फ़िर लड्डू खाओ बेटा ... कम से कम एक तो चखो" उन्होंने प्लेट में से एक लड्डू लेकर अपने होंठों में दबा लिया और प्यार से मेरे मुंह के पास अपना मुंह ले आयीं. फिर हथेली में लंड ले कर ऊपर नीचे करने लगीं. मैंने उनके मुंह से मुंह लगाकर अपने दांतों से आधा लड्डू तोड़ा और खाने लगा.
राधाबाई जो नाश्ता मुझे करा रही थीं, वह बहुत स्वादिष्ट था. मेरी सास सच बोली थीं कि वे खाना अच्छा बनाती हैं. पर उससे ज्यादा जो गजब का स्वाद मुझे आ रहा था, वो नाश्ता कराने के इस उनके अनूठे ढंग का था. मैं जब तक आधा लड्डू खा रहा था, राधाबाई ने बचा हुआ लड्डू अपने मुंह में ही रखा. फिर अपने मुंह से सीधे मेरे मुंह में दे दिया. मेरा सिर उनकी बड़े बड़े छातियों पर तकिये जैसा टिका हुआ था. उनके कड़े तन कर खड़े निपल मेरे गालों पर चुभ रहे थे. मेरे लंड को वो इतने मस्त तरीके से मुठिया रही थीं कि अनजाने में मैं ऊपर नीचे होकर उनकी हथेली को चोदने की कोशिश करने लगा. थोड़ा सिर तिरछा करके मैंने उनके बड़े बड़े मम्मों का नजारा देखा और मन में आया कि लड्डू खाने के पहले इन मम्मों का स्वाद ले लेना था.
मेरे मुंह का लड्डू खतम होने के बाद राधाबाई ने अपने मुंह में पकड़ रखा आधा लड्डू भी एक चुम्मे के साथ मेरे मुंह में दे दिया. अब मुझे बस यही सूझ रहा था कि उनको चोद डाला जाये, लंड इतना मस्त खड़ा था कि और कुछ करने का सबर नहीं बचा था.
पर राधाबाई तैयार हों तब ना. लड्डू खतम होते ही मैं उठने लेगा तो मुझे पकड़कर उन्होंने वापस गोद में बिठा लिया और एक निपल मुंह में ठूंस दिया "इतनी जल्दी क्यों कर रहे हो बेटा? तब से देख रही हूं कि बार बार मेरी छतियों पर निगाह जाती है तुम्हारी. अच्छी लगीं तो चूस लो ना, मेरे लिये तो खुशी की बात है"
मैं आराम से मम्मे चूसने लगा. मन में आया कि ऐसे सूखे चूसने के बजाय इनमें कुछ मिलता तो मजा आता.
लगता है राधाबाई को मेरे मन की बात पता चल गयी क्योंकि प्लेट नीचे रखकर बोलीं " बेटा, असल में तेरे को दूध पिला सकती तो मुझे इतना सुकून मिलता कि ... पांच साल पहले भी आते तो पेट भरके स्तनपान कराती तुमको. लीना बिटिया को तो कितना पिलाया है मैंने. स्कूल और कॉलेज जाने के पहले और कॉलेज से आकर मेरे पास आती थी वो. उसमें और ललित में तो झगड़ा भी होता था इस बात को, ललित को तो बेचारे को मारकर भगा देती थी वो. फिर मैंने दोनों का टाइम बांध दिया, सुबह लीना और शाम को ललित"
मेरा लंड अब मस्त टनटना रहा था. उसको मुठ्ठी में पकड़कर दबाते हुए राधाबाई ने ऊपर नीचे करके सेखा और बोलीं. "इसका भी तो स्वाद चखना है मेरे को. पर दामादजी, अभी काफ़ी टाइम है अपने पास, इसीलिये मैंने मालकिन को कहा था कि मुझे कम से कम एक घंटा लगेगा दामादजी को ठीक से दीवाली का नास्ता कराने में. अब गुझिया खा लो पहले, याने नाश्ते का काम मेरा खतम. फ़िर आराम से जरा लाड़ प्यार करूंगी आपके"
मुझे बाजू में करके राधाबाई खड़ी हो गयीं और जाकर कुरसी में बैठ गयीं. फ़िर अपनी पैंटी निकाली और पैर एक दो बार खोले और बंद किये. मैं देख रहा था. एकदम मोटी फ़ूली हुई चिकनी बुर थी. बाल साफ़ किये हुए थे. मुझे तकता देख कर बोलीं "अब ऐसे घुघ्घू जैसे क्या देख रहे हो बेटे? गुझिया चाहिये ना? फ़िर आओ इधर जल्दी"
"पर गुझिया किधर है राधाबाई? दिख नहीं रही" मैंने कहा जरूर पर अब तक मैंने ताड़ लिया था कि राधाबाई अपनी वो फ़ेमस गुझिया कैसे लाई थीं मुझे चखाने को. उनकी इस रंगीन तबियत को मेरे लंड ने उचक कर सलामी दी.
"ये क्या इधर रही. एक नहीं दो लाई हूं" अपनी जांघें फैला कर उंगली से अपनी चूत खोल कर राधाबाई बोलीं. मैं उनके सामने नीचे उनके पैरों के बीच बैठ गया और मुंह लगा दिया. हाथ बंधे थे इसलिये जरा ठीक से मुंह नहीं लगा पा रहा था, नहीं तो मन हो रहा था कि उनकी कमर पकड़कर अपना मुंह ही घुसेड़ दूं उस खजाने में.
पर राधाबाई ने मेरी मुश्किल आसान कर दी. मेरे सिर को पकड़कर मेरा मुंह अपनी बुर पर दबा लिया "ललित को तो बहुत अच्छी लगती है. कहता है कि बाई, तुम्हारे घी में सनी गुझिया याने क्या बात है. अब इतनी बार सब को खिलाना पड़ता है इसलिये बाल साफ़ रखती हूं नहीं तो मुंह में आते हैं. अब खाने में बाल तो अच्छे नहीं लगते ना!"
राधाबी की चूत में से गुझिया निकलने लगी. उन्होंने उसे क्रीमरोल के शेप में बनाया था. "इसको ऐसा लंबा केले जैसा बनाती हूं बेटे, नहीं तो वो गोल गुझिया अंदर जाती नहीं ठीक से. वैसे ललित को केले खाना भी बहुत अच्छा लगता है इसी तरह से"
मैंने मन लगाकर उस दावत को खाया. गुझिया वाकई में बड़ी थी, और ऊपर से राधाबाई की बुर के चिपचिपे घी से और सरस हो गयी थी. एक खतम करने के बाद मैं मुंह हटाने वाला था कि दूसरी भी बाहर निकलना शुरू हो गयी. मैंने मन ही मन दाद दी, क्या कैपेसिटी थी इस औरत की.
"अच्छी लगीं दामादजी?"
"एकदम फ़ाइव स्टार राधाबाई. अच्छा ये बताइये कि इतनी देर आपके घी में डूबने के बाद भी अंदर से इतनी कुरकुरी हैं? इतनी देर अंदर रहकर तो उनको नरम हो जाना था?"
"वो कितनी देर पहले अंदर रखना है, इसका अंदाजा अब मेरे को हो गया है. कम देर रखो तो ठीक से स्वाद नहीं लगता, ज्यादा रखो तो भीग कर टूटने लगती हैं. आज तो मैंने बिलकुल घड़ी देख कर टाइम सेट किया था. वैसे केले हों तो टाइम की परवा नहीं होती. मैं तो चार चार घंटे केले अंदर रखकर फ़िर ललित को खिलाती हूं"
मुझे ललित से, अपने उस साले से जरा जलन हुई. क्या माल मिलता था उसको रोज. वैसे राधाबाई की रंगीन तबियत देखकर ये भी अंदाजा हो गया था कि वे पूरा वसूल लेती होंगी ललित से.
गुझिया निकलने के बाद अब उनकी बुर से रस टपक रहा था. मैंने भोग लगाना शुरू कर दिया. राधाबाई एकदम खुश हो गयीं. मेरा सिर पकड़कर मुझसे ठीक से चूत चटवाते हुए बोलीं. "शौकीन हो बेटे, बड़ी चाव से चख रहे हो. मुझे लगा था कि गुझिया खतम होते ही मेरे ऊपर चढ़ने को बेताब हो जाओगे"
"बाई, ये घी तो असला माल है, इसको और मैं छोड़ूं! वैसे आप ठीक कह रही हैं, मन तो होता है कि आप पर चढ़ जाऊं और पटक पटक कर ... याने आपके इस खालिस बदन का मजा लूं पर आप जो ऐसे मुझे हाथ बांधकर तड़पा रही हैं ... उसमें भी इतनी मिठास है कि ..." राधाबाई ने मेरा मुंह अपनी बुर में घुसेड़कर मेरी आवाज बंद कर दी और आहे पीछे होकर मेरे मुंह को चोदने लगीं. उनकी सहूलियत के लिये मैंने अपनी जीभ अंदर दाल दी. "ओह .. हाय राम ... मर गई मैं ..." कहकर उन्होंने अपना पानी मेरे मुंह में छोड़ दिया.
थोड़ी देर तक वे दम लेने को बैठी रहीं, फ़िर मुझे उठाकर बिस्तर पर ले गयीं "सचमुच रसिया हो बेटे, इतने चाव से बुर का शहद चाटते हो. असली मर्द की पहचान है यह कि बुर का स्वाद उसको कितना भाता है. चलो, तुमको जरा आराम से चटवाती हूं. और मुझे भी तो ये गन्ना चूसना है"
"राधाबाई ... अब तो इस दास के हाथ खोल दीजिये. आपके इस गदराये बदन को बाहों में भींचना चाहता हूं. आपको पकड़कर फ़िर कायदे से आपका रसपान करूंगा, अब रसीला आम चूसना हो तो हाथ में तो लेना ही पड़ता है ना"
"बस, अभी छोड़ती हूं बेटा, बोलते बड़ा मीठा हो तुम" राधाबाई ने मेरे हाथ खोले और उलटी तरफ से मुझे अपने नरम नरम गद्दे जैसे बदन पर सुला लिया. मैंने उनके बड़े बड़े गुदाज चूतड़ बाहों में भरे और सिर उनकी जांघों के बीच डाल दिया. राधाबाई ने मेरा गन्ना निगला और दोनों शुरू हो गये. पांच मिनिट में मुझे घी और शहद मिल गया और उनको क्रीम.
हांफ़ते हुए हम कुछ देर पड़े रहे. फ़िर उठ कर मैं सीधा हुआ और बाई से लिपट गया. "बाई, पहले ही हाथ खोल देतीं तो गुझिया खाने में आसानी नहीं होती मेरे को?"
"नहीं दामादजी, बल्कि जल्दबाजी में मजा किरकिरा हो जाता. मेरे को मालूम है, सब मर्द कैसे हमेशा बेताब रहते हैं, इस गुझिया का असली मजा वो धीरे धीरे खाने में ही है. मेरे को भी ज्यादा मजा आता है और खाने वाले को भी. इसलिये तो हाथ बांधना चालू किया मैंने. सब को बता रखा है कि गुझिया खाना हो, तो हाथ बंधवाओ. खाने वाले को अपने होंठों से मेरी चूत खोलनी पड़ती है, उसमें मुंह डाल कर जीभ से गुझिया का सिरा ढूंढना पड़ता है, फ़िर दांत में पकड़ पकड़कर उसे धीरे धीरे बाहर खींचना पड़ता है, मुझे क्या सुख मिलता है, आप को नहीं मालूम चलेगा" फ़िर वे बेतहाशा मेरे चुंबन लेने लगीं. चूमा चाटी करके फ़िर एक निपल मेरे मुंह में दिया और मुझे कसकर सीने से लगा लिया.
दो मिनिट में मुझे नीचे सुलाकर वे मेरी कमर के पास बैठ गयीं. मेरा मुरझाया शिश्न हाथ में लेकर बोलीं "जाग रे मेरे राजा, तेरा असली काम तो तूने अब तक किया ही नहीं, जब तक नहीं करेगा, तब तक तेरे को नहीं छोड़ूंगी"
"बाई, वो बेचारा दो बार मेहनत कर चुका है सुबह से. अब थोड़ा टाइम तो लगेगा ही. पर आप तब तक मेरे साथ गप्पें मारिये ना, आपकी बातें सुनने में बड़ा मजा आता है. कोई अचरज नहीं कि लीना को आप से इतनी मुहब्बत है"
"वो तो है. पर बेटा, एक बात कहूंगी, तुम बिलकुल वैसे निकले जैसा मेरे को लगता था. लीना के बारे में हमेशा मुझे चिंता लगी रहती थी. उसे रूप की गर्मी सहन कर सके ऐसा मरद मिले ये मैं मनाती थी. अब देखो कितनी खुश है. और तुम इसकी चिंता ना करो" मेरे लंड को पकड़कर वे बोलीं. "इसको मैं देखती हूं, मेरी स्पेशल मालिश शुरू होने दो, तुरंत जाग जायेगा बदमाश"
मुझपर झुक कर उन्होंने मेरी लुल्ली अपनी उन बड़ी बड़ी छतियों के बीच दबा ली और फ़िर खुद अपनी चूंचियों को भींच कर ऊपर नीचे करते हुए मेरे लंड की मालिश करने लगीं. जब लंड ऊपर होता तो बीच बीच में जीभ निकालकर सुपाड़े को चूम लेतीं या जीभ से रगड़तीं. मैंने हाथ बढ़ाया और उनकी बुर में दो उंगलियां डाल कर घुमाने लगा. अभी भी घी टपक रहा था, आखिर एक बढ़िया कुक थीं वे.
उन मुलायम गुब्बरों ने मेरे लंड को पांच मिनिट में कड़क कर दिया. "देखिये दामादजी, जाग गया ना? अब इसे जरा मेहनत कराइये, बहुत देर सिर्फ़ मजा ले रहा है ये" वे बिस्तर पर लेट गयीं और मुझे ऊपर ओढ़ लिया.
उनके गरम घी के डिब्बे में अपना बड़ा चम्मच डालता हुआ मैं बोला "बाई, मेरे को लगा कि तुम भी मेरे को लिटाकर ऊपर से चोदोगी. आज सब मेरे साथ यही कर रहे हैं. हाथ पैर बांधकर डाल देते हैं और मुझपर चढ़ कर चोद डालते हैं, जैसी चाहिये वैसी मस्ती कर लेते हैं"
"अब नाराज ना हो बेटा, ये सब तुम्हारे भले के लिये ही किया है उन्होंने. तुमको सांड जैसे खुला छोड़ देते तो अब तक चार पांच बार झड़कर लुढ़के होते कहीं. उसके बाद वे क्या करते? मेरे नाश्ते का क्या होता? तुमको दिन भर मजा लूटना है बेटा, इसलिये सब्र करना जरूरी है. वैसे मैं तुमपे चढ़ भी जाती तो ये मुआ बदन मेरे को ज्यादा देर कुछ करने देता? थक कर चूर हो जाता"
"अपने बदन को भला बुरा मत बोलो बाई. मस्त भरा पूरा मांसल मुलायम मैदे का गोला है. इसको बाहों में लेने वाले को स्वर्ग सुख मिलता है" मैंने धीरे धीरे लंड उनकी बुर में चलाते हुए तारीफ़ की.
"आपको अच्छा लगेगा अनिल बाबू ये मेरे को विश्वास था, आखिर इस घर में मेरे जो सब चिपकते हैं उसकी कोई तो वजह होगी. पर सच में बेटा, आज कल मेरा सांस फूल जाती है इसलिये जवानी जैसी चुदाई अब कहां कर पाती हूं, तब देखते, एक एक को पटक कर ऐसी रगड़ती थी मैं ... खैर जाने दो बेटा, अब तुम मेरे को अपनी जवानी दिखाओ, चोद डालो हचक हचक कर ... मैं तो राह ही देख रही थी अपने जमाई राजा की" मुझे नीचे से कस के बाहों में बांधती राधाबाई बोलीं. "वो बात क्या है बेटा, अभी यहां ज्यादातर सब औरतें ही हैं. वैसे वे सब भी मेरा बहुत खयाल रखती हैं, मेरे अंग लगती हैं मेरे को दिलासा देने को, मीनल बिटिया तो आफ़िस जाने के पहले पंधरा मिनिट मुझे अपने कमरे में बुलाती ही है, मालकिन तो हमेशा ही रहती हैं घर में, हर कभी मेरे साथ लग जाती हैं, अब लीना बिटिया आ गयी है तो वो तो मेरे को छोड़ती ही नहीं. पर बुर रानी की कूट कूट कर ठुकाई करने के लिये सोंटा चाहिये, वो कहां से आयेगा. अब हेमन्त भैया भी बाहर रहे हैं इतने दिनों से. और मेरी इस बेशरम चूत को तो आदत है कि दो तीन घंटे ठुकाई ना हो तो बेचैनी होने लगती है ... तो बेटे अब जरा अपनी इस बाई को खुश कर दो आज"
"चिंता ना करो बाई, आज तुम्हारी बुर को ऐसे सूंतता हूं कि दो तीन दिन चुप रहेगी. पर बाई, ये समझ में नहीं आया कि ललित तो है ना यहां. याने सब औरतें नहीं हैं, एक तो जवान छोकरा है ना. तुम्हारा लाड़ला भी है, वो इसकी खबर नहीं लेता?" मैंने बाई की बुर में धक्के लगाते हुए चोदना शुरू करते हुए कहा.
"कहां अनिल बाबू, वो भी कहां ज्यादा घर में रहता है, अब वो स्कूल में थोड़े ही है, कॉलेज में गया है, बहुत पढ़ाई करना पड़ती है. पिछले साल बोर्ड की परीक्षा थी. अब उस बेचारे का जितना टाइम है, वो मालकिन और मीनल बिटिया को ही नहीं पूरा पड़ता तो मैं कहां बीच में घुसने की कोशिश करूं? हेमन्त भैया थे तब बात अलग थी. और अब तो कुछ ना पूछो. लीना बेटी तो एक मिनिट नहीं छोड़ती उसको, आखिर अपनी दीदी का लाड़ला है. आज सुबह से तो दिखा भी नहीं मेरे को, लीना ने अपने कमरे से बाहर ही नहीं आने दिया उसको ... हां ... आह ... आह ... बस ऐसा ही धक्का लगाओ मेरे राजा ... उई मां ... कितनी जोर से पेलते हो बेटा ... लगता है मेरे पेट में घुस गया ... हाय ... चोद डाल मेरे बेटे ... चोद डाल ..." मस्ती में बेहोश होकर राधाबाई नीचे से कस कस के धक्के लगाती हुई बोलीं.
आखिर जब मैं झड़ने के बाद रुका, तब तक राधाबाई की बुर को ऐसा रगड़ दिया था कि वे तृप्त होकर बेहोश सी हो गयी थीं. आज पहली बार मुझे ठीक से चोदने मिला था, उसका पूरा फायदा मैंने ले लिया था. मेरे खयाल से वे दो तीन बार झड़ी थीं. उन्होंने इतना बढ़िया नाश्ता कराया था, उसका भी कर्जा उतारना था मेरे को.
संभलने पर राधाबाई ने पड़े प्यार से मेरा चुंबन लिया. फ़िर उठकर मुझे बचा हुआ बादाम का हलुआ जबरदस्ती खिलाया "अब खा लो चुपचाप. इतनी मेहनत की, आगे भी करनी है, पाव भर बादाम डाले हैं मैंने इसीलिये. पेट भर खा लो और थोड़ा आराम भी कर लो, मैं सबको बता देती हूं कि दो तीन घंटे कोई परेशान नहीं करेगा अब."
फ़िर कपड़े पहन रही थीं तब बोलीं " अब कब दर्शन दोगे जमाईराजा? मैं तो गांव जा रही हूं, वापस आऊंगी तब तक तुम जा चुके होगे. अगले साल मिलोगे ऐसा बोलने का जुलम मत करो बेटा. जल्दी आओ. अभी तो कितनी मौज मस्ती करनी है तुम्हारे साथ, इतने खेल थे जो तुम्हारे साथ खेलने में मजा आता"
"बाई, तुमने बंबई देखी है?" मैंने पूछा. "नहीं ना, मुझे लगा ही था. फ़िर ऐसा करो, तुम ही बंबई आ जाओ. दो हफ़्ते रहो. बंबई भी दिखा देंगे और खेल भी लेंगे जो खेल तुमको आते हैं"
राधाबाई की बांछें खिल गयीं. "हां मैं आऊंगी बेटा. लीना बिटिया को बोल कर रखती हूं कि दो माह बाद ही मेरा टिकट बना कर रखे. अब चलती हूं, घर जाकर तैयारी करना है, गांव की बस छूट जायेगी.
"पर गांव क्यों जा रही हो बाई, बाद में चली जाना, रुक जाओ दो दिन"
"नहीं बेटा, मेरा छोटा भाई और उसकी बहू मेरी राह देख रहे हॊंगे. दीवाली में नहीं जा पाई तो बड़े नाराज हैं. वो बहू तो कोसती होगी मेरे को. वो क्या है, मैं उसके बहुत लाड़ करती हूं, बचपन से जानती हूं ना. समझ लो जैसी लीना बिटिया यहां है, वैसे वहां वो है. छोटे भैया की शादी भी उससे मैंने ही कराई थी. और मेरा भाई भी बड़ा दीवाना है मेरा, बिलकुल अपने ललित जैसा. बस जैसे यहां का हाल वैसा ही समझ लो. इसलिये मेरे को भी नहीं रहा जाता, साल में तीन चार बार हो आती हूं"
मुझे पलंग पर धकेल कर उन्होंने फ़िर से मेरा कस के चुम्मा लिया "छोड़ा तो नहीं जा रहा तुमको पर ... अब आप सो जाओ दामादजी"
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"अच्छा है ना दामादजी?" उन्होंने पूछा. मेरे मुंह में हलुआ भरा था इसलिये मैंने हाथ से इशारा किया कि एकदम फ़र्स्ट क्लास!
वे मुस्करा कर बोलीं "वो क्या है बेटा, जल्दी जल्दी में बनाया इसलिये खुद चख नहीं पायी कि कैसा बना है" उन्होंने मेरे सिर को पकड़कर पास खींचा और मेरे मुंह पर मुंह रख दिया. जबरदस्ती मेरा मुंह अपने होंठों से खोल कर उन्होंने मेरे मुंह में का हलुआ अपने मुंह में ले लिया और खाने लगीं. "हां अच्छा है बेटा. वैसे अच्छा बना होगा पर शायद तेरे इस प्यारे प्यारे मुंह का स्वाद लगकर और मीठा हो गया है ..."
वे प्यार से मेरे को हलुआ खिलाती रहीं. बीच में मैंने पूछा "बाई, वो लीना कह रही थी कि आप गुझिया बड़ा अच्छा बनाती हैं, जरा खिलाइये ना, यहां प्लेट में तो दिख नहीं रहा है"
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"नहीं राधाबाई .... बहुत खा लिया"
"फ़िर लड्डू खाओ बेटा ... कम से कम एक तो चखो" उन्होंने प्लेट में से एक लड्डू लेकर अपने होंठों में दबा लिया और प्यार से मेरे मुंह के पास अपना मुंह ले आयीं. फिर हथेली में लंड ले कर ऊपर नीचे करने लगीं. मैंने उनके मुंह से मुंह लगाकर अपने दांतों से आधा लड्डू तोड़ा और खाने लगा.
राधाबाई जो नाश्ता मुझे करा रही थीं, वह बहुत स्वादिष्ट था. मेरी सास सच बोली थीं कि वे खाना अच्छा बनाती हैं. पर उससे ज्यादा जो गजब का स्वाद मुझे आ रहा था, वो नाश्ता कराने के इस उनके अनूठे ढंग का था. मैं जब तक आधा लड्डू खा रहा था, राधाबाई ने बचा हुआ लड्डू अपने मुंह में ही रखा. फिर अपने मुंह से सीधे मेरे मुंह में दे दिया. मेरा सिर उनकी बड़े बड़े छातियों पर तकिये जैसा टिका हुआ था. उनके कड़े तन कर खड़े निपल मेरे गालों पर चुभ रहे थे. मेरे लंड को वो इतने मस्त तरीके से मुठिया रही थीं कि अनजाने में मैं ऊपर नीचे होकर उनकी हथेली को चोदने की कोशिश करने लगा. थोड़ा सिर तिरछा करके मैंने उनके बड़े बड़े मम्मों का नजारा देखा और मन में आया कि लड्डू खाने के पहले इन मम्मों का स्वाद ले लेना था.
मेरे मुंह का लड्डू खतम होने के बाद राधाबाई ने अपने मुंह में पकड़ रखा आधा लड्डू भी एक चुम्मे के साथ मेरे मुंह में दे दिया. अब मुझे बस यही सूझ रहा था कि उनको चोद डाला जाये, लंड इतना मस्त खड़ा था कि और कुछ करने का सबर नहीं बचा था.
पर राधाबाई तैयार हों तब ना. लड्डू खतम होते ही मैं उठने लेगा तो मुझे पकड़कर उन्होंने वापस गोद में बिठा लिया और एक निपल मुंह में ठूंस दिया "इतनी जल्दी क्यों कर रहे हो बेटा? तब से देख रही हूं कि बार बार मेरी छतियों पर निगाह जाती है तुम्हारी. अच्छी लगीं तो चूस लो ना, मेरे लिये तो खुशी की बात है"
मैं आराम से मम्मे चूसने लगा. मन में आया कि ऐसे सूखे चूसने के बजाय इनमें कुछ मिलता तो मजा आता.
लगता है राधाबाई को मेरे मन की बात पता चल गयी क्योंकि प्लेट नीचे रखकर बोलीं " बेटा, असल में तेरे को दूध पिला सकती तो मुझे इतना सुकून मिलता कि ... पांच साल पहले भी आते तो पेट भरके स्तनपान कराती तुमको. लीना बिटिया को तो कितना पिलाया है मैंने. स्कूल और कॉलेज जाने के पहले और कॉलेज से आकर मेरे पास आती थी वो. उसमें और ललित में तो झगड़ा भी होता था इस बात को, ललित को तो बेचारे को मारकर भगा देती थी वो. फिर मैंने दोनों का टाइम बांध दिया, सुबह लीना और शाम को ललित"
मेरा लंड अब मस्त टनटना रहा था. उसको मुठ्ठी में पकड़कर दबाते हुए राधाबाई ने ऊपर नीचे करके सेखा और बोलीं. "इसका भी तो स्वाद चखना है मेरे को. पर दामादजी, अभी काफ़ी टाइम है अपने पास, इसीलिये मैंने मालकिन को कहा था कि मुझे कम से कम एक घंटा लगेगा दामादजी को ठीक से दीवाली का नास्ता कराने में. अब गुझिया खा लो पहले, याने नाश्ते का काम मेरा खतम. फ़िर आराम से जरा लाड़ प्यार करूंगी आपके"
मुझे बाजू में करके राधाबाई खड़ी हो गयीं और जाकर कुरसी में बैठ गयीं. फ़िर अपनी पैंटी निकाली और पैर एक दो बार खोले और बंद किये. मैं देख रहा था. एकदम मोटी फ़ूली हुई चिकनी बुर थी. बाल साफ़ किये हुए थे. मुझे तकता देख कर बोलीं "अब ऐसे घुघ्घू जैसे क्या देख रहे हो बेटे? गुझिया चाहिये ना? फ़िर आओ इधर जल्दी"
"पर गुझिया किधर है राधाबाई? दिख नहीं रही" मैंने कहा जरूर पर अब तक मैंने ताड़ लिया था कि राधाबाई अपनी वो फ़ेमस गुझिया कैसे लाई थीं मुझे चखाने को. उनकी इस रंगीन तबियत को मेरे लंड ने उचक कर सलामी दी.
"ये क्या इधर रही. एक नहीं दो लाई हूं" अपनी जांघें फैला कर उंगली से अपनी चूत खोल कर राधाबाई बोलीं. मैं उनके सामने नीचे उनके पैरों के बीच बैठ गया और मुंह लगा दिया. हाथ बंधे थे इसलिये जरा ठीक से मुंह नहीं लगा पा रहा था, नहीं तो मन हो रहा था कि उनकी कमर पकड़कर अपना मुंह ही घुसेड़ दूं उस खजाने में.
पर राधाबाई ने मेरी मुश्किल आसान कर दी. मेरे सिर को पकड़कर मेरा मुंह अपनी बुर पर दबा लिया "ललित को तो बहुत अच्छी लगती है. कहता है कि बाई, तुम्हारे घी में सनी गुझिया याने क्या बात है. अब इतनी बार सब को खिलाना पड़ता है इसलिये बाल साफ़ रखती हूं नहीं तो मुंह में आते हैं. अब खाने में बाल तो अच्छे नहीं लगते ना!"
राधाबी की चूत में से गुझिया निकलने लगी. उन्होंने उसे क्रीमरोल के शेप में बनाया था. "इसको ऐसा लंबा केले जैसा बनाती हूं बेटे, नहीं तो वो गोल गुझिया अंदर जाती नहीं ठीक से. वैसे ललित को केले खाना भी बहुत अच्छा लगता है इसी तरह से"
मैंने मन लगाकर उस दावत को खाया. गुझिया वाकई में बड़ी थी, और ऊपर से राधाबाई की बुर के चिपचिपे घी से और सरस हो गयी थी. एक खतम करने के बाद मैं मुंह हटाने वाला था कि दूसरी भी बाहर निकलना शुरू हो गयी. मैंने मन ही मन दाद दी, क्या कैपेसिटी थी इस औरत की.
"अच्छी लगीं दामादजी?"
"एकदम फ़ाइव स्टार राधाबाई. अच्छा ये बताइये कि इतनी देर आपके घी में डूबने के बाद भी अंदर से इतनी कुरकुरी हैं? इतनी देर अंदर रहकर तो उनको नरम हो जाना था?"
"वो कितनी देर पहले अंदर रखना है, इसका अंदाजा अब मेरे को हो गया है. कम देर रखो तो ठीक से स्वाद नहीं लगता, ज्यादा रखो तो भीग कर टूटने लगती हैं. आज तो मैंने बिलकुल घड़ी देख कर टाइम सेट किया था. वैसे केले हों तो टाइम की परवा नहीं होती. मैं तो चार चार घंटे केले अंदर रखकर फ़िर ललित को खिलाती हूं"
मुझे ललित से, अपने उस साले से जरा जलन हुई. क्या माल मिलता था उसको रोज. वैसे राधाबाई की रंगीन तबियत देखकर ये भी अंदाजा हो गया था कि वे पूरा वसूल लेती होंगी ललित से.
गुझिया निकलने के बाद अब उनकी बुर से रस टपक रहा था. मैंने भोग लगाना शुरू कर दिया. राधाबाई एकदम खुश हो गयीं. मेरा सिर पकड़कर मुझसे ठीक से चूत चटवाते हुए बोलीं. "शौकीन हो बेटे, बड़ी चाव से चख रहे हो. मुझे लगा था कि गुझिया खतम होते ही मेरे ऊपर चढ़ने को बेताब हो जाओगे"
"बाई, ये घी तो असला माल है, इसको और मैं छोड़ूं! वैसे आप ठीक कह रही हैं, मन तो होता है कि आप पर चढ़ जाऊं और पटक पटक कर ... याने आपके इस खालिस बदन का मजा लूं पर आप जो ऐसे मुझे हाथ बांधकर तड़पा रही हैं ... उसमें भी इतनी मिठास है कि ..." राधाबाई ने मेरा मुंह अपनी बुर में घुसेड़कर मेरी आवाज बंद कर दी और आहे पीछे होकर मेरे मुंह को चोदने लगीं. उनकी सहूलियत के लिये मैंने अपनी जीभ अंदर दाल दी. "ओह .. हाय राम ... मर गई मैं ..." कहकर उन्होंने अपना पानी मेरे मुंह में छोड़ दिया.
थोड़ी देर तक वे दम लेने को बैठी रहीं, फ़िर मुझे उठाकर बिस्तर पर ले गयीं "सचमुच रसिया हो बेटे, इतने चाव से बुर का शहद चाटते हो. असली मर्द की पहचान है यह कि बुर का स्वाद उसको कितना भाता है. चलो, तुमको जरा आराम से चटवाती हूं. और मुझे भी तो ये गन्ना चूसना है"
"राधाबाई ... अब तो इस दास के हाथ खोल दीजिये. आपके इस गदराये बदन को बाहों में भींचना चाहता हूं. आपको पकड़कर फ़िर कायदे से आपका रसपान करूंगा, अब रसीला आम चूसना हो तो हाथ में तो लेना ही पड़ता है ना"
"बस, अभी छोड़ती हूं बेटा, बोलते बड़ा मीठा हो तुम" राधाबाई ने मेरे हाथ खोले और उलटी तरफ से मुझे अपने नरम नरम गद्दे जैसे बदन पर सुला लिया. मैंने उनके बड़े बड़े गुदाज चूतड़ बाहों में भरे और सिर उनकी जांघों के बीच डाल दिया. राधाबाई ने मेरा गन्ना निगला और दोनों शुरू हो गये. पांच मिनिट में मुझे घी और शहद मिल गया और उनको क्रीम.
हांफ़ते हुए हम कुछ देर पड़े रहे. फ़िर उठ कर मैं सीधा हुआ और बाई से लिपट गया. "बाई, पहले ही हाथ खोल देतीं तो गुझिया खाने में आसानी नहीं होती मेरे को?"
"नहीं दामादजी, बल्कि जल्दबाजी में मजा किरकिरा हो जाता. मेरे को मालूम है, सब मर्द कैसे हमेशा बेताब रहते हैं, इस गुझिया का असली मजा वो धीरे धीरे खाने में ही है. मेरे को भी ज्यादा मजा आता है और खाने वाले को भी. इसलिये तो हाथ बांधना चालू किया मैंने. सब को बता रखा है कि गुझिया खाना हो, तो हाथ बंधवाओ. खाने वाले को अपने होंठों से मेरी चूत खोलनी पड़ती है, उसमें मुंह डाल कर जीभ से गुझिया का सिरा ढूंढना पड़ता है, फ़िर दांत में पकड़ पकड़कर उसे धीरे धीरे बाहर खींचना पड़ता है, मुझे क्या सुख मिलता है, आप को नहीं मालूम चलेगा" फ़िर वे बेतहाशा मेरे चुंबन लेने लगीं. चूमा चाटी करके फ़िर एक निपल मेरे मुंह में दिया और मुझे कसकर सीने से लगा लिया.
दो मिनिट में मुझे नीचे सुलाकर वे मेरी कमर के पास बैठ गयीं. मेरा मुरझाया शिश्न हाथ में लेकर बोलीं "जाग रे मेरे राजा, तेरा असली काम तो तूने अब तक किया ही नहीं, जब तक नहीं करेगा, तब तक तेरे को नहीं छोड़ूंगी"
"बाई, वो बेचारा दो बार मेहनत कर चुका है सुबह से. अब थोड़ा टाइम तो लगेगा ही. पर आप तब तक मेरे साथ गप्पें मारिये ना, आपकी बातें सुनने में बड़ा मजा आता है. कोई अचरज नहीं कि लीना को आप से इतनी मुहब्बत है"
"वो तो है. पर बेटा, एक बात कहूंगी, तुम बिलकुल वैसे निकले जैसा मेरे को लगता था. लीना के बारे में हमेशा मुझे चिंता लगी रहती थी. उसे रूप की गर्मी सहन कर सके ऐसा मरद मिले ये मैं मनाती थी. अब देखो कितनी खुश है. और तुम इसकी चिंता ना करो" मेरे लंड को पकड़कर वे बोलीं. "इसको मैं देखती हूं, मेरी स्पेशल मालिश शुरू होने दो, तुरंत जाग जायेगा बदमाश"
मुझपर झुक कर उन्होंने मेरी लुल्ली अपनी उन बड़ी बड़ी छतियों के बीच दबा ली और फ़िर खुद अपनी चूंचियों को भींच कर ऊपर नीचे करते हुए मेरे लंड की मालिश करने लगीं. जब लंड ऊपर होता तो बीच बीच में जीभ निकालकर सुपाड़े को चूम लेतीं या जीभ से रगड़तीं. मैंने हाथ बढ़ाया और उनकी बुर में दो उंगलियां डाल कर घुमाने लगा. अभी भी घी टपक रहा था, आखिर एक बढ़िया कुक थीं वे.
उन मुलायम गुब्बरों ने मेरे लंड को पांच मिनिट में कड़क कर दिया. "देखिये दामादजी, जाग गया ना? अब इसे जरा मेहनत कराइये, बहुत देर सिर्फ़ मजा ले रहा है ये" वे बिस्तर पर लेट गयीं और मुझे ऊपर ओढ़ लिया.
उनके गरम घी के डिब्बे में अपना बड़ा चम्मच डालता हुआ मैं बोला "बाई, मेरे को लगा कि तुम भी मेरे को लिटाकर ऊपर से चोदोगी. आज सब मेरे साथ यही कर रहे हैं. हाथ पैर बांधकर डाल देते हैं और मुझपर चढ़ कर चोद डालते हैं, जैसी चाहिये वैसी मस्ती कर लेते हैं"
"अब नाराज ना हो बेटा, ये सब तुम्हारे भले के लिये ही किया है उन्होंने. तुमको सांड जैसे खुला छोड़ देते तो अब तक चार पांच बार झड़कर लुढ़के होते कहीं. उसके बाद वे क्या करते? मेरे नाश्ते का क्या होता? तुमको दिन भर मजा लूटना है बेटा, इसलिये सब्र करना जरूरी है. वैसे मैं तुमपे चढ़ भी जाती तो ये मुआ बदन मेरे को ज्यादा देर कुछ करने देता? थक कर चूर हो जाता"
"अपने बदन को भला बुरा मत बोलो बाई. मस्त भरा पूरा मांसल मुलायम मैदे का गोला है. इसको बाहों में लेने वाले को स्वर्ग सुख मिलता है" मैंने धीरे धीरे लंड उनकी बुर में चलाते हुए तारीफ़ की.
"आपको अच्छा लगेगा अनिल बाबू ये मेरे को विश्वास था, आखिर इस घर में मेरे जो सब चिपकते हैं उसकी कोई तो वजह होगी. पर सच में बेटा, आज कल मेरा सांस फूल जाती है इसलिये जवानी जैसी चुदाई अब कहां कर पाती हूं, तब देखते, एक एक को पटक कर ऐसी रगड़ती थी मैं ... खैर जाने दो बेटा, अब तुम मेरे को अपनी जवानी दिखाओ, चोद डालो हचक हचक कर ... मैं तो राह ही देख रही थी अपने जमाई राजा की" मुझे नीचे से कस के बाहों में बांधती राधाबाई बोलीं. "वो बात क्या है बेटा, अभी यहां ज्यादातर सब औरतें ही हैं. वैसे वे सब भी मेरा बहुत खयाल रखती हैं, मेरे अंग लगती हैं मेरे को दिलासा देने को, मीनल बिटिया तो आफ़िस जाने के पहले पंधरा मिनिट मुझे अपने कमरे में बुलाती ही है, मालकिन तो हमेशा ही रहती हैं घर में, हर कभी मेरे साथ लग जाती हैं, अब लीना बिटिया आ गयी है तो वो तो मेरे को छोड़ती ही नहीं. पर बुर रानी की कूट कूट कर ठुकाई करने के लिये सोंटा चाहिये, वो कहां से आयेगा. अब हेमन्त भैया भी बाहर रहे हैं इतने दिनों से. और मेरी इस बेशरम चूत को तो आदत है कि दो तीन घंटे ठुकाई ना हो तो बेचैनी होने लगती है ... तो बेटे अब जरा अपनी इस बाई को खुश कर दो आज"
"चिंता ना करो बाई, आज तुम्हारी बुर को ऐसे सूंतता हूं कि दो तीन दिन चुप रहेगी. पर बाई, ये समझ में नहीं आया कि ललित तो है ना यहां. याने सब औरतें नहीं हैं, एक तो जवान छोकरा है ना. तुम्हारा लाड़ला भी है, वो इसकी खबर नहीं लेता?" मैंने बाई की बुर में धक्के लगाते हुए चोदना शुरू करते हुए कहा.
"कहां अनिल बाबू, वो भी कहां ज्यादा घर में रहता है, अब वो स्कूल में थोड़े ही है, कॉलेज में गया है, बहुत पढ़ाई करना पड़ती है. पिछले साल बोर्ड की परीक्षा थी. अब उस बेचारे का जितना टाइम है, वो मालकिन और मीनल बिटिया को ही नहीं पूरा पड़ता तो मैं कहां बीच में घुसने की कोशिश करूं? हेमन्त भैया थे तब बात अलग थी. और अब तो कुछ ना पूछो. लीना बेटी तो एक मिनिट नहीं छोड़ती उसको, आखिर अपनी दीदी का लाड़ला है. आज सुबह से तो दिखा भी नहीं मेरे को, लीना ने अपने कमरे से बाहर ही नहीं आने दिया उसको ... हां ... आह ... आह ... बस ऐसा ही धक्का लगाओ मेरे राजा ... उई मां ... कितनी जोर से पेलते हो बेटा ... लगता है मेरे पेट में घुस गया ... हाय ... चोद डाल मेरे बेटे ... चोद डाल ..." मस्ती में बेहोश होकर राधाबाई नीचे से कस कस के धक्के लगाती हुई बोलीं.
आखिर जब मैं झड़ने के बाद रुका, तब तक राधाबाई की बुर को ऐसा रगड़ दिया था कि वे तृप्त होकर बेहोश सी हो गयी थीं. आज पहली बार मुझे ठीक से चोदने मिला था, उसका पूरा फायदा मैंने ले लिया था. मेरे खयाल से वे दो तीन बार झड़ी थीं. उन्होंने इतना बढ़िया नाश्ता कराया था, उसका भी कर्जा उतारना था मेरे को.
संभलने पर राधाबाई ने पड़े प्यार से मेरा चुंबन लिया. फ़िर उठकर मुझे बचा हुआ बादाम का हलुआ जबरदस्ती खिलाया "अब खा लो चुपचाप. इतनी मेहनत की, आगे भी करनी है, पाव भर बादाम डाले हैं मैंने इसीलिये. पेट भर खा लो और थोड़ा आराम भी कर लो, मैं सबको बता देती हूं कि दो तीन घंटे कोई परेशान नहीं करेगा अब."
फ़िर कपड़े पहन रही थीं तब बोलीं " अब कब दर्शन दोगे जमाईराजा? मैं तो गांव जा रही हूं, वापस आऊंगी तब तक तुम जा चुके होगे. अगले साल मिलोगे ऐसा बोलने का जुलम मत करो बेटा. जल्दी आओ. अभी तो कितनी मौज मस्ती करनी है तुम्हारे साथ, इतने खेल थे जो तुम्हारे साथ खेलने में मजा आता"
"बाई, तुमने बंबई देखी है?" मैंने पूछा. "नहीं ना, मुझे लगा ही था. फ़िर ऐसा करो, तुम ही बंबई आ जाओ. दो हफ़्ते रहो. बंबई भी दिखा देंगे और खेल भी लेंगे जो खेल तुमको आते हैं"
राधाबाई की बांछें खिल गयीं. "हां मैं आऊंगी बेटा. लीना बिटिया को बोल कर रखती हूं कि दो माह बाद ही मेरा टिकट बना कर रखे. अब चलती हूं, घर जाकर तैयारी करना है, गांव की बस छूट जायेगी.
"पर गांव क्यों जा रही हो बाई, बाद में चली जाना, रुक जाओ दो दिन"
"नहीं बेटा, मेरा छोटा भाई और उसकी बहू मेरी राह देख रहे हॊंगे. दीवाली में नहीं जा पाई तो बड़े नाराज हैं. वो बहू तो कोसती होगी मेरे को. वो क्या है, मैं उसके बहुत लाड़ करती हूं, बचपन से जानती हूं ना. समझ लो जैसी लीना बिटिया यहां है, वैसे वहां वो है. छोटे भैया की शादी भी उससे मैंने ही कराई थी. और मेरा भाई भी बड़ा दीवाना है मेरा, बिलकुल अपने ललित जैसा. बस जैसे यहां का हाल वैसा ही समझ लो. इसलिये मेरे को भी नहीं रहा जाता, साल में तीन चार बार हो आती हूं"
मुझे पलंग पर धकेल कर उन्होंने फ़िर से मेरा कस के चुम्मा लिया "छोड़ा तो नहीं जा रहा तुमको पर ... अब आप सो जाओ दामादजी"
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