Sunday, April 20, 2014

FUN-MAZA-MASTI मालती एक कुतिया --8

FUN-MAZA-MASTI

 मालती एक कुतिया --8

 मालती को गए ढाई घंटे हो चुके थे... अभी तक वो ऑफिस से फ़ाइल लेकर नहीं आई थी, “इतनी देर क्या कर रही है साली ऑफिस में? कहीं अफरोज़? नहीं नहीं... उस हराम के पिल्ले की इतनी हिम्मत कहाँ! आते ही होंगे दोनों!” विधायक डूबा हुआ था!
उधर अफरोज़ ने मालती को आज रात का प्लान बता दिया था, मालती को अंदाजा तो था कि आज फार्महाउस में क्या होने वाला है... अफरोज़ ने उसे डिटेल में सब बता भी दिया... और इसीलिए जानबूझ कर वो दोनों लेट हुए थे! अफरोज़ ने जब पता किया कि लल्लन के दोस्त लड़कियों के साथ अन्दर चले गए हैं तब वो मालती को लेके फार्महाउस की ओर चला, मालती भी अन्दर से एक्साईटेड थी... उसे न जाने क्यों ऐसा लग रहा था कि लल्लन सिंह जी आज तो उसकी ले कर रहेंगे, उसने कितना कुछ सुन रखा था विधायक के बारे में... पर अभी तक तो उसने ऐसा कुछ नहीं पाया! लल्लन भी आज थोड़ा बेसब्र सा हो रहा था...रह रह कर उसका लंड खड़ा होता... फिर शांत हो जाता! आज उसने मैरून कलर का शाही कुर्ता पहना हुआ था.. और नीचे देशी तरीके से धोती बाँधी हुई थी... नीचे धोती का एक छोर उसने अपने बाएं हाथ में ले रखा था... और रह रह कर अपनी काली रुतबेदार मूछें उमेठ रहा था!
जब सब्र का बाँध टूटने लगा तो उसने अफरोज़ को फोन मिलाया...
“कहाँ रह गया... कब से इंतज़ार कर रहा हूँ...” थोड़ा डांटते हुए बोला
“अरे सरकार बस पहुच रहे हैं... वो फ़ाइल ढूँढने में थोड़ा वक्त लग गया इसलिए...” अफरोज़ बहाना बनाता है
“ठीक है ठीक है... जल्दी आओ अब... और हाँ मालती को छोड़ कर तुम सीधे पार्टी ऑफिस वापस जाओ... और अपने आदमियों के साथ अर्जेंट मीटिंग करके उन्हें आगे के बारे में समझा दो... कल सुबह तक सारे शहर में पोस्टर बैनर लग जाने चाहिए मेरे” लल्लन ने अफरोज़ को हड़काते हुए अपने अंदाज में कहा!
“जी सरकार... समझ गया... आप बेफिक्र रहिये काम हो जायेगा” अफरोज़ ने हामी भरी! और फिर गाड़ी को थोड़ा और रफ़्तार दिया! मालती को फार्महाउस छोड़ने के बाद वो वापस पार्टी ऑफिस चला गया!
मालती हाथ में फ़ाइल लिए अन्दर पहुंची....
“कितना समय लगा दिया मैडम आपने... हम तो सोने वाले थे अगर दो मिनट और न आती तुम तो” विधायक ने मालती को ऊपर से नीचे तक देखते हुए चुटकी ली!
“अरे लल्लन जी... वो आपके चपरासी ने फ़ाइल रखी ही इतना छुपा के थी कि ढूँढने में मेरे और अफरोज़ के पसीने छूट गए” मालती चहकती हुई बोली!
“वो साला अभी तक एक काम नहीं सीख पाया... दो मिनट के काम में दो घंटे लग गए चूतिये की वजह से... लाओ फ़ाइल लाओ” विधायक ने हाथ आगे बढाया और मालती ने फ़ाइल विधायक को दे दी!
“अरे मैं तो कहती हूँ अपने ऑफिस की जिम्मेदारी मुझे दे दीजिये...”
“अरे मालती मिश्रा जी... मैं तो कहता हूँ कि आप हमारी भी जिम्मेदारी ले लीजिये” विधायक ने थोड़े ठरकी अंदाज में कहा... जिससे मालती शर्मा गई!
“अरे मेरा मतलब वो नहीं था लल्लन जी”
“वो नहीं था तो फिर क्या था?” लल्लन ने मजे लेते हुए मुस्कुराकर पूछा!
मालती बेचारी फिर शर्मा गई... उसके मन में चोर जो था!
“ओहो लल्लन जी... आप भी न...” मालती बोली!
“मैं भी क्या मालती?”
“ओहो मैं ये कह रही थी... कि आपके ऑफिस का काम मैं देख लूंगी” मालती सफाई देती हुई बोली!
“देख लोगी? सिर्फ देखोगी या करोगी भी?”
और फिर लल्लन और मालती एक साथ जोर से हंसे!
“अरे हम भी तो यही कह रहे थे..” लल्लन ने ठसक के साथ कहा!
मालती ने हामी भरी!
“मजा तो आ रहा है न हमारे साथ तुम्हे?” लल्लन ने मालती से पूछा!
“जी लल्लन जी... मैं इन्जॉय कर रही हूँ...” मुस्कुराते हुए अपनी जुल्फें सवारी!
लल्लन का ठरक आज सातवें आसमान में था... हो भी क्यों न... उसके दोस्त उधर कॉलेज की रंडियां चोदने में लगे थे.. और वो बेचारा यहाँ इधर उधर की बातें कर रहा था!
“देखो मालती... इलेक्शन करीब आ रहे हैं... तो अब तुम्हे पार्टी को जादा समय देना पड़ेगा.. मेरे करीब रहोगी तो जादा कुछ सीखोगी...”
“जी लल्लन जी... मैं इलेक्शन के लिए तैयार हूँ.. होटल का काम मनेजेर संभाल लेगा...” मालती ने कहा!
“अति उत्तम... तुम्हारे जैसी महिला की तलाश थी हमें अपनी पार्टी के लिए... समझदार-दिमागदार होने के साथ साथ खूबसूरती...”
“ओह थैंक यू लल्लन जी...”
“दारु पीती हो?”
“जी कभी कभी”
“आज भी तो कभी ही है... पियोगी नहीं हमारे साथ”
मालती कुछ बोलती इसके पहले ही लल्लन पूल के बगल में पड़े काउच में बैठ गया... और बोतल और गिलास मालती के सामने बढ़ा दिए!
“लो... बनाओ पेग...” लल्लन ने अपना पैर घुटने पे रख रखा था... जिससे उसकी धोती से उसकी बालों से भरी जांघ और पैर दिख रहे थे... और मालती खुद को रोक नहीं पा रही थी उसके कसे हुए पैर और जांघ को देखने से!
मालती पेग बना रही थी और लल्लन उसके ब्लाउज से झांकते स्तनों की सुन्दरता और मादकता से अपनी आँखे सेंक रहा था! मालती ने ग्लास विधायक लल्लन की ओर बढ़ाया...लल्लन ने मालती की नज़रों में झांकते हुए अपनी मुच्छ उमेठी और फिर गिलास पकड़ा!
पास के काउच पर मालती बैठ गई... और अब दोनों मदिरापान कर रहे थे!
“मिश्रा जी की कमी नहीं खलती तुम्हे?”
“जी अब कुदरत और ऊपर वाले को यही मंजूर था तो मैं क्या कर सकती हूँ!”
“अरे मालती... तुम नहीं कर सकती तो फिर और कौन करेगा? तुम्हारी जिन्दगी है...”
मालती लल्लन को सुन रही थी!
“तुमने कभी दूसरी शादी के बारे में नहीं सोंचा?”
“लल्लन जी... दो बच्चे हैं मेरे.. और अब इस उम्र में दूसरी शादी... न बाबा न”
“हाहाहा... ये तो है... अब तो तेरी बेटी हो गई होगी शादी की उमर की!”
“जी 19 साल की है अभी वो...इसी साल गई है कॉलेज में... और लड़का बारहवीं में है इस बार” मालती ने जवाब दिया!
“अच्छा है... पढाओ बच्चों को...”
“पर मुझे एक बात अभी तक समझ में नहीं आई... ये तुम ठाकुर को कैसे जानती हो... मेरा मतलब... तुम्हे अपने होटल की जिम्मेदारी...”
“क्यों काबिलियत नहीं है मुझमे?” मालती ने जवाब दिया
“हाहाहा.... काबिलियत में कोई शक होता तो अभी तुम यहाँ नहीं होती... अन्दर मेरे दोस्तों के साथ होती” शराब का गिलास ख़तम करते हुए लल्लन बोला!
“आप भी न लल्लन जी...” मुस्कुराई... और फिर बोली.. “वो मिश्रा जी के काफी एहसान थे ठाकुर जी पे...”
“वैसे मालती एक नेता के सारे गुण हैं तेरे अन्दर... लल्लन जी... मिश्रा जी.... ठाकुर जी.... सबके आगे “जी” लगाती हो या फिर?” आज लल्लन पूरे मूड में था...
उसने अपने पैर सामने रखी टेबल पर रख दिए... उसकी कोल्हापुरी चप्पल मालती को मानो आइना दिखा रही हो!
चल एक पेग और बना मेरे लिए...
मालती ने अपना गिलास रखा और फिर से झुक कर पेग बनाने लगी... लल्लन एक बार फिर से आँखें सेंक रहा था... और मालती ने फिर गिलास आगे बढ़ाया... फिर लल्लन ने अपनी मूच्छ उमेठी... और मालती के हाथ से गिलास लिया!
मालती अभी भी अपने पहले पेग से ही शराब चख रही थी...
“अरे नहीं पीनी थी तो मना कर देती... हम जबरजस्ती नहीं करते हैं औरतों के साथ...”
“ओहो विधायक जी... मैं ऐसे ही पीती हूँ...”
“हाहाहा.... पीती नहीं चखती हो”
“ओहो लल्लन जी आप भी न...”
मालती की इन अदाओं ने लल्लन की हालत खराब कर राखी थी... पर मर्दानगी का गुरूर... मुछों की एंठन... उसे आगे बढ़ने से बार बार रोक रही थी! मालती जैसी माल को वो जोर जबरजस्ती से नहीं,,, बल्कि अपनी मर्दानगी और भौकाल के जरिये वो मालती को इस कदर मजबूर करना चाहता था कि मालती खुद गांड उचका के खड़ी हो जाए मरवाने के लिए... और काफी हद तक उसने कामयाबी हासिल भी कर ली थी... मालती के दिल और चूत में लल्लन के लिए हलचल हो रही थी...
“मेरे पैरों में न जाने क्यों दर्द हो रहा है आज...”
“इतना तो बिजी रहते हैं आप... दिन भर भागा दौड़ी... मीटिंग्स... आराम करने का समय कहाँ मिलता है आपको” वो ऐसे बोल रही थी जैसे कि लल्लन की बीबी हो!
“लाइए मैं दबा देती हूँ थोड़ा सा...” मालती अपना गिलास रखती हुई बोली!
विधायक ने जैसा सोंचा था बिलकुल वैसा ही हुआ! मालती काउच से उठ कर जमीन पर लल्लन के पास आ गई.... और विधायक लल्लन जी ने अपने पैर मालती की ओर बढ़ा दिए! मालती ने अपने हाथों से लल्लन जी की कोल्हापुरी चप्पलों को निकाल कर नीचे रखा, और अपने कोमल हांथो से लल्लन के पैर दबाने लगी! लल्लन ने भी अपनी धोती को घुटनों तक चढ़ा लिया... मालती अपने कोमल हांथो से लल्लन के पैरों की मसाज कर रही थी... लल्लन की आँखों से ठरक टपक रहा था... वो बार बार अपनी मूछें उमेठता... और न चाहते हुए भी उसे अपना अंडरवियर एडजस्ट करना पड़ रहा था! मालती को भी इसमें मजा आ रही थी... जब लल्लन अपनी मुच्छे उमेठता तो मालती मुस्कुरा देती! पैर दर्द तो केवल एक बहाना था... असली मकसद तो मालती को अपने पैरों पे लाना था!
“कैसा लग रहा है लल्लन जी”
“बता नहीं सकता कैसा लग रहा है...जन्नत है तुम्हारे हांथो में मालती”
मालती और अच्छे से पैर दबाने लगी...
“अरे बस कर वरना आदत पड़ जायेगी... रोज़ दबाने पड़ेंगे तुझे हमारे चरण”... हँसते हुए बोला!
“अरे दबा दूँगी मैं लल्लन जी... आपकी सेवा मतलब जनता की सेवा”
“वो कैसे?” लल्लन ने पूछा!
“ओहो आप भी न... आप जनता की सेवा करते हैं... और अगर मैं आपकी सेवा करूंगी तो एक तरीके से मैं भी जनता की सेवा करूंगी न” मालती मुस्कुराती हुई बोली!
सही कहा है किसी ने... शराब अच्छे अच्छों के कदम बहका देती है... और फिर कोई खुद बहकना चाह रहा हो तो शराब से अच्छा बहाना कोई और कहाँ!
मालती के दिए तर्क से लल्लन खुश हो गया... उसने मालती की बांह पकड़ी और उसे अपने बगल में काउच पर खींच कर बैठा लिया!
“अरे मेरी जान... अकल और शकल तू दोनों साथ लेकर आई है ऊपर वाले से!” मालती की पीठ पर हाथ फिराते हुए बोला...
मालती ने लल्लन के कंधे पर अपना सर रख दिया...मालती के स्तन लल्लन को अपने जिस्म पर महसूस हो रहे थे...हौले हौले जब मालती सांस लेती तो उसके स्तन लल्लन को महसूस होते! लल्लन का हाथ मालती की पीठ पर ही था... और मालती की नज़रें लल्लन की धोती के अन्दर से झांकती लल्लन की नंगी जांघ पर!
दोनों के अन्दर कामज्वाला भड़क रही थी...पर दोनों में से कोई भी आगे नहीं बढ़ रहा था... मानो इस पल में ही दोनों को आनंद आ रहा हो! बड़े दिनों बाद किसी मर्द का कन्धा नस्सीब हुआ था मालती को, वरना ठाकुर तो उसे अपनी रांड से जादा कुछ भी नहीं समझता था...मालती सकून से बैठी इस पल का आनंद ले रही थी, पर लल्लन... लल्लन के सर पर सिर्फ और सिर्फ ठरक सवार था! मालती के जिस्म को नोचने का ठरक!
“घर नहीं जाना तुझे?” लल्लन ने रौब के साथ पूछा
“न जाने क्यूँ आज दिल नहीं कर रहा... और फिर इतनी रात गए अकेले... अपने अफरोज़ को भी कहीं भेज दिया है वरना वो ही छोड़ देता मुझे घर” मालती धीरे से बोली!
“अफरोज़ काम से गया है... कल से कैम्पेन शुरू हो रहा है... उसकी तैयारियों के लिए...”
“ओह कल से... फिर तो मजा आएगा... मुझे कैम्पेनिंग में बहुत मजा आती है लल्लन जी.. कॉलेज के समय बोहोत की है मैंने”
“ये तो अच्छी बात है...पर ये कॉलेज वाली कैम्पेनिंग नहीं है कि चार लडको को पटाया और जीत गई इलेक्शन... क्यों सही कहा न मैंने.. कॉलेज इलेक्शन में यही तो होता है” लल्लन ने मालती के ब्लाउज की सिलाई पर हाथ फिराते हुए उसकी चुटकी ली!
“अन्हा लल्लन जी... आप भी न...” मालती मुन्मुनाती हुई बोली!
“अरे... कुछ गलत कहा क्या मैंने?”
“आप कभी कुछ गलत कह सकते हैं..!” मालती ने मस्का लगाया!
लल्लन का हाथ अब मालती की कमर पर आ चूका था! वो अपने हाथों की हरकतों से ही मालती की आग को भड़का रहा था... मालती की बेचैनी भी बढ़ रही थी!
“याद नहीं आते तुझे अपने कॉलेज के दिन?” लल्लन ने पूछा!
“उम्म्म... कॉलेज के दिन किसे याद नहीं आते लल्लन जी... दिल तो करता है फिर से कोलेज में एडमिशन ले लूँ...कितनी अच्छी जिन्दगी थी वो भी”
“हाहाहा...सही कहा तूने... कॉलेज-लड़कियां-बकचोदी... कितना मजा आता था सबमे..हमने तो इसीलिए 8 साल में पूरा किया था अपना ग्रेजुएशन”
“क्या आठ साल में?” मालती ने चौंकते हुए पूछा!
“अरे फेल हो जाते थे जानबूझ कर..”
“हाहाहा... लल्लन जी... आप भी न... आपका कोई जवाब नहीं... आप तो अब भी ड्यूड हो!” मालती हसती हुई बोली... और अपना हाथ लल्लन की मुछों तक ले गई और उन्हें अपने हाथों से उमेठा...
“ड्यूड नहीं मर्द हैं हम मर्द... समझी... मिश्राइन” लल्लन ने अब फिर अपनी मुच्छ ऊपर उमेठी और मालती को कमर पर जोर से जकड़ लिया!
“औउच... लल्लन जी... छोड़िये न... लगती है” मालती खुद को छुड़ाने की कोशिश करती है!
“अरे लल्लन सिंह नाम है हमारा... और हम छोड़ने के लिए नहीं पकड़ते...” रौब के साथ लल्लन ने बोला!
“फिर किस लिए पकड़ते हैं?” मालती ने लल्लन के करीब आकर धीरे से पूछा!
“चोदने के लिए...हहाहाहा...” लल्लन ने जोर के ठहाकों के साथ कहा..
मालती शर्म से लाल हो गई...विधायक लल्लन सिंह के जिस रंग को देखने के लिए वो पहले दिन से तरस रही थी आखिर विधायक जी ने वो रंग दिखा ही दिया...
मालती अपना पल्लू संभालती है... शर्म से नज़रें झुकी हुई हैं उसकी... उसकी कमर लल्लन की गिरफ्त में है... जो क्लीवेज अभी तक लल्लन देख रहा था उसे अब मालती ने ढक लिया था!
“छुपा काहे रही हो... ऊपर वाले ने छुपाने के लिए दिया है क्या ये हुस्न?” लल्लन ने मालती का पल्लू फिर सरका दिया...
मालती ने फिर से पल्लू संभाल लिया!
मालती से भी अब रहा नहीं जा रहा था...जिस्म कांपने लगा था उसका...
अबकी बार जब लल्लन ने उसका पल्लू गिराया तो उसने फिर अपना पल्लू नहीं संभाला...
वो किसी नई नवेली दुल्हन की तरह बस नीचे देख रही थी.. शर्मा रही थी...
“अरे नीचे का देख रही हो.... अरे रामा रे.... देख लो... अपना ही समझो उसको भी... हेहेहे...” लल्लन ने मालती को और करीब खींच लिया!
लल्लन की बात सुन कर मालती और भी शर्मा गई... वो अब वापस नहीं लौट सकती थी... और लौंटने का ख़याल तो उसके दिल में दूर दूर तक कहीं था ही नहीं! वो तो बस ये सोच रही थी कि कब लल्लन उसे अपने नीचे रगड़े!
मालती ने लल्लन की नजरों में देखा... पर ज्यादा देर तक नजर मिला नहीं पाई... लल्लन की आँखों से हुस्न की प्यास टपक रही थी...
लल्लन ने मालती का हाथ पकड़ा और सीधे अपने लंड पर रख दिया- “अरे देखती ही रहोगी क्या... महसूस नहीं करोगी हमरी मर्दानगी?”
मालती का हाथ अब लल्लन के फौलादी लंड पर था, लंड की मोटाई और लम्बाई मालती ने जितना एक्स्पेक्ट किया था उससे कहीं जादा थी... लंड की नसें फनफना रहीं थी... उनमे दौड़ता खून मालती अपने हाथों से महसूस कर सकती थी...
मालती ने अब टाइम नहीं लगाया... उसने थोड़ा ऊपर उठकर लल्लन जी के होंटों को चूम लिया... लल्लन ने उसके नीचे वाले होंठ को अपने होंटों के चगुल में ले लिया और चूसने लगा... लल्लन के दोनों हाथ अब मालती की कमर पर सरसरा रहे थे... मालती भी बेचैन होकर लल्लन की चड्ढी में अपना हाथ डाल चुकी थी... उसके हाथ में लल्लन का साढ़े सात इंच का मोटा काला हथियार था...
लल्लन मालती के होंटों का रस पी रहा था...मालती कसक रही थी... मचल रही थी... लल्लन की जीभ अब मालती के मुह के अन्दर थी... मालती मानो उसकी जीभ चूस रही हो.... मालती जिस तरह से- जिस बेचैनी से लल्लन की जीभ को चूसने की कोशिश कर रही थी उससे लल्लन को ये जानने में देर नहीं लगी कि मालती लंड भी इतनी ही सिद्धत के साथ चूसती होगी... पर लल्लन का स्टाइल अलग था... वो लंड चुदाई के बाद चुसवाता था...
उसने दोनों हांथों से मालती का ब्लाउज उसके कन्धों के नीचे खींच दिया.. और मालती के नंगे कन्धों को चूमने चांटने लगा... मालती का इम्पोर्टेड परफ्यूम लल्लन को उसकी बगलें चाटने को मजबूर कर रहा था... लल्लन की जीभ अब मालती के आर्मपिट पर थी... वो मालती की मादकता चख रहा था... मालती बेचैन हो आहें भर रही थी... लल्लन के लंड को अपने हाथ से मसल रही थी..लल्लन के लंड का टोपा सरक चुका था... और लल्लन का सब्र भी... मालती की आहें भी उसे कर गुजरने की दावत दे रही थीं...उसने एक हाथ से मालती का पल्लू पकड़ा और मालती को खड़ी होने का इशारा किया...
“चल मेरी जानेमन... अन्दर चलें... वरना खामखाँ किसी ने देख लिया तो बदनाम हो जाएगी तू...” लल्लन ने अपनी भारी आवाज में कहा...
मालती के जनाना हार्मोन इस समय चरम पर थे... लल्लन के इशारा करते ही वो अन्दर की ओर चल दी... जबकि लल्लन उसकी साड़ी का पल्लू अपने हाथ में लिए वहीँ खड़ा था...
“उम्म्म.... पल्लू छोड़िये न...” मालती ने गुजारिश की...
“हाहाहा... बताया था न तुमको... लल्लन सिंह छोड़ने के लिए नहीं पकड़ता...” लल्लन ने उसे अपना डायलॉग याद दिलाया!
मालती को वो चोदने वाला व्यंग याद आ गया....
लल्लन ने जोर से पल्लू अपनी ओर खींचा.... जिससे मालती लल्लन की ओर खिंची चली आई... और साथ ही उसकी साड़ी भी लगभग खुल गई... बाकी बची साड़ी लल्लन ने अपने हाथों से नीचे गिरा दी...
मालती अब ब्लाउज और पेटीकोट में लल्लन की बाहों में थी... लल्लन का फौलादी लंड उसकी जांघ पर चुभ रहा था...
उसके चेहरे पर शर्म के साथ हलकी हलकी मुस्कान भी थी! पेटीकोट का नारा भी लल्लन ने बिना देर लगाए खींच दिया...
मालती काली कच्छी में लल्लन के चंगुल में खाड़ी थी...
“अब यहीं खुल्ले में चुद्वायेगी क्या?... चल अन्दर जा...” लल्लन ने अपने कमरे की ओर इशारा किया...
“उम्म्म्ह... लल्लन जी... आप चोदो तो मैं तो बीच बाज़ार चुद्वालूं आपसे...”
मालती की बात सुनकर लल्लन का लंड और भी तन्ना गया.... और पूरे शरीर में सरसरी दौड़ गई....
“हाहाहा... चोदूंगा.... चोदूंगा बीच बाजार में भी चोदूंगा.... और हमारे अलावा किसी और के लंड में इतना बूता कहाँ जो कामदेवी की काम ज्वाला को बुझा सके...” लल्लन मालती को पाकर खुद पर गर्व महसूस कर रहा था!
लल्लन ने फिर इशारा किया... इस बार मालती लल्लन के कमरे की ओर गांड मटकाती हुई चल दी...
मालती के मटकते चूतड़ों को देखता हुआ लल्लन भी उसके पीछे पीछे आता है...
कमरे में पहुँचते ही लल्लन ने कमरे को अन्दर से बंद कर लिया...
और अपना कुरता उतार फेंका... और धोती की गाँठ भी मालती के पास पहुँचते पहुँचते छोड़ दी..
मालती अब लल्लन के चंगुल में थी.... या यूँ कहें कि जंगल की सबसे खूबसूरत हिरनी.. जंगल के सबसे ख़ूंखार भेडिये के चंगुल में थी!
मालती की पैंटी लल्लन ने धीरे से नीचे सरका दी... और अब तक ब्लाउज मालती खुद उतार चुकी थी....
लल्लन ने मालती को बिस्तर पे गिरा दिया... और खुद मालती के ऊपर चढ़ गया... अब मालती का कोमल जिस्म, लल्लन के मर्दाने गठीले जिस्म के नीचे था! लल्लन मालती की मादकता का पान कर रहा था... उसके जिस्म को सूंघ रहा था... चूम रहा था... चांट रहा था... हौले हौले उसके स्तनों को दबा रहा था...
मालती बेचारी किसी खिलौने की तरह बिस्तर पर पड़ी थी... पर उसे मजा भी बहुत आ रहा था... उसके अन्दर कुछ करने की हिम्मत नहीं हो रही थी... लल्लन ने कुछ बोलने की हिम्मत नहीं हो रही थी... बस वो मजे ले रही थी... लल्लन के जिस्म की गर्मी को महसूस कर रही थी... और खुद के अन्दर धधक रही काम ज्वाला में बेचैन हो रही थी!
“आह... लल्लन जी.... जान लेंगे क्या मेरी अब...” मालती ने आह भरते हुए कहा!
लल्लन ने अपना हाथ मालती की चूत पर रख दिया.. और उसे अहिस्ता अहिस्ता मसलने लगा...
लल्लन के हाथ रखते ही मालती ने पानी छोड़ दिया...
लल्लन मुस्कुराया... और मालती की चूत को थोड़ा और कुरेदा...
“आह... और कितना तड़पायेंगे लल्लन जी...”
बस यही तो चाहता था लल्लन...
अगले ही पल लल्लन का लंड मालती की चूत पर था... मालती ने अपने चुत्तड उचकाये... लल्लन ने जोर का झटका मारा... और पूरा का पूरा लंड मालती की चूत में सरका दिया!
“आह..... हायीईईए.....” मालती नाटकी अंदाज में चीखी... लल्लन का लंड ठाकुर के लंड से थोड़ा बड़ा था... मोटा भी! ये चीख लल्लन की मर्दानगी का सबूत ही थी! मालती को आज फिर से अपने औरत होने पर गर्व हो रहा था... उसने फिर अपने चुत्तड उचकाये... लल्लन ने भी मालती की ख्वाहिश को पूरा करते हुए धक्के लगाना शुरू किया...
“आह... ऊह... आः... लल्लन जी... उफ्फ्फ.... मर जावां....”-पूरे कमरे में मालती की सिसकियाँ और आंहे गूँज रही थी!
मालती ने अपनी टाँगे लल्लन की पीठ पर लपेट लीं... दोनों इस समय कामक्रीड़ा के सबसे मनोरम खेल में व्यस्त थे... धीरे धीरे लल्लन ने धक्कों की रफ़्तार भी बढ़ा दी... धक्के अब इतने गहरे हो गए थे कि लल्लन का लंड जब मालती की चूत में जाता तो मालती का मुह खुल जाता... मालती दो बार चरम तक पहुच चुकी थी... पर लल्लन... मानो कोई नीम हकीम की दावा खा कर चोद रहा था!
मालती लल्लन को अपनी ओर दोनों हाथों से जकड़े खींच रही थी... उसके दोनों हाथ विधायक जी की पीठ पर थे...
“आह... आः.... उफ्फ्फ.... आह...”
फ़ाक.... फच... फाप... लल्लन का लंड जब अन्दर जाता तो उसके दोनों अन्डू मालती के जिस्म पर वार करते... लल्लन की झांटें मालती की चिकनी चूत पर रगड़ खाती!
ये खेल दोनों के लिए नया नहीं था... लल्लन ने भी मालती जैसी न जाने कितनी चोदी थीं... और मालती ने भी न जाने कितनी बार चुदवाया था, पर दोनों को आज अलग ही मजा आ रहा था... मानो दोनों बने ही एक दूसरे के लिए हों... करीब 20 मिनट तक ये खेल चला... और फिर लल्लन ने मालती की चूत के अन्दर ही अपनी मर्दानगी का रस छोड़ दिया! मालती भी कसमसाती हुई झड़ते हुए लल्लन के जिस्म से लिपट गई....
दोनों एक दूसरे से लिपटे यूं ही कुछ देर तक पड़े रहे...










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