Tuesday, March 16, 2010

कामुक कहानिया सेक्सी हवेली का सच--12

राज शर्मा की कामुक कहानिया

सेक्सी हवेली का सच--12
हेलो दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा सेक्सी हवेली का सच पार्ट -12 लेकर आपके लिए हाजिर हूँ .लकिन दोस्तो जैसा मैने सोचा था उस तरह से मुझे आप लोगों के कमेंट
नही मिल रहे है .तो दोस्तो कहानी एंजाय कीजिए ओर कोमेंट दीजिए
फोन रखकर रूपाली उठी जे तभी पायल चाय लेकर आ गयी. रूपाली को रात का वो नज़ारा याद आया जब उसने पायल की गान्ड पर हाथ फेरते हुए अपने जिस्म की आग ठंडी की थी. वो एकटूक पायल को देखने लगी, उसकी अल्हड़ जवानी को निहारने लगी.
"क्या हुआ मालकिन?" पायल ने पुचछा "ऐसे क्या देख रही हैं?"
"कुच्छ नही" रूपाली ने कहा और अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी.
अगला कुच्छ वक़्त रूपाली ने यूँ ही बिस्तर पर पड़े पड़े ही गुज़ार दिया. उसका पूरा बदन टूट रहा था. लग रहा था जैसे बरसो की बीमार हो. उसे बहुत सारे काम करने थे पर हिम्मत ही नही हो रही थी के उठे. थोड़ी देर बाद दरवाज़े पर नॉक हुआ. रूपाली ने उठकर दरवाज़ा खोला. सामने पायल खड़ी थी.
"माँ आई हैं. कह रही थी के आपने बुलाया था" पायल ने कहा तो रूपाली को ध्यान आया के उसने आज बिंदिया को आने के लिए कहा था
"हां उसे यहीं उपेर मेरे कमरे में ले आ" उसने पायल को कहा और फिर बिस्तर पर आकर बैठ गयी. थोड़ी ही देर बाद पायल अपनी माँ के साथ वापिस आई
"नमस्ते मालकिन" रूपाली को देखते ही बिंदिया ने हाथ जोड़े
"नमस्ते" रूपाली ने जवाब दिया "आ अंदर आजा"
बिंदिया वहीं कमरे में आकर खड़ी हो गयी. पायल बाहर दरवाज़े पर ही खड़ी थी.
"अपनी माँ को चाय पानी के लिए नही पुछेगि?" रूपाली ने कहा तो पायल मुस्कुरकर नीचे चली गयी.
"कैसी है?" रूपाली ने बिंदिया की तरफ देखकर कहा "बैठ ना"
"ठीक हूँ" कहती हुई बिंदिया वहीं नीचे ज़मीन पर बिछि कालीन पर बैठ गयी
"घर जाने की कोई जल्दी तो नही है ना?" रूपाली ने मुस्कुराते हुए पुचछा
"नही तो." बिंदिया हैरानी से बोली "क्यूँ?"
"नही मैं सोच रही थी के तेरा और चंदर का तो रोज़ का प्लान होता है ना वो भी दिन में 3-4 बार. इसलिए मैने सोचा के .........." रूपाली ने बात अधूरी छ्चोड़ दी.
बिंदिया की हसी छूट पड़ी.
"नही अभी आज को कोटा पूरा करके आई हूँ" उसने हस्ते हुए कहा
"आगे से पूरा करवाके आई है या पिछे से?" रूपाली ने भी उसी अंदाज़ में पुचछा
दोनो ज़ोर ज़ोर से हासणे लगी. तभी पायल पानी लेकर आ गयी
"चाय पिएगी माँ?"उसने बिंदिया से पुचछा
"नही रहने दे" बिंदिया ने पानी का ग्लास लिया और पानी पीने लगी
"पायल तू नीचे जाके भूषण काका का हाथ में काम बटा. मुझे तेरी माँ से एक ज़रूरी बात करनी है" रूपाली ने पायल को जाने का इशारा किया. पायल सहमति में गर्दन हिलती नीचे चली गयी.
बिंदिया ने पानी ख़तम करके ग्लास एक तरफ रखा और रूपाली की तरफ देखकर बोली
"मुझसे ज़रूरी बात करनी है?"
"हां" रूपाली हल्के से हस्ते हुए बोली "तुझसे ये सीखना है के तू लंड गान्ड में भी कैसे ले लेती है?"
दोनो फिर ज़ोर ज़ोर से हासणे लगी. रूपाली ने कह तो दिया पर अगले ही पल अपनी ग़लती का एहसास हुआ. बिंदिया के नज़र में वो विधवा थी तो उसे ये क्यूँ पता करना था, उसे किसका लंड लेना था अब. पति तो उसका मर चुका था.
"तुझसे कुच्छ बातें मालूम करनी थी" उसे हसी रोक कर पुचछा
"हां पुच्हिए" बिंदिया ने कहा
"पर एक बात है. जो बातें यहाँ बंद कमरे में मेरे और तेरे बीच हो रही हैं कहीं और बाहर ना जाएँ" उसने ऐसे कहा जैसे बिंदिया से एक आश्वासन माँग रही हो
"आप फिकर ना करें मालकिन" बिंदिया ने कहा "ज़ुबान खुले तो कटवा दीजिएगा"
"देख मुझे वैसे तो हवेली में आए 10 साल से उपेर हो चुके हैं" पायल उठकर कमरे में चहल कदमी करने लगी "पर मेरे आने के कुच्छ वक़्त तक ही ये हवेली एक घर थी. उसके बाद तो जैसे एक वीरान खंडहर हो गयी जहाँ मैं और पिताजी भूत की तरह बसे हुए हैं"
बिंदिया ने सहमति में सर हिलाया
"मेरे पति का मरना मेरी सबसे बड़ी बदक़िस्मती थी. पर उससे भी ज़्यादा बुरा हवेली का यूँ बर्बाद हो जाना है. मैं जानती हूँ के हवेली और पिताजी के घर खानदान के बारे में काफ़ी कुच्छ ऐसा है जो मैं नही जानती पर मालूम करना चाहती हूँ" रूपाली ये सब कहते हुए जैसे अंधेरे में तीर चला रही थी. उसे भुसन की कही हुई वो बात आज भी याद थी के उसके पति की हत्या की वजह यहीं हवेली में दफ़न है कहीं, जिसे उसको पता करना है.
"आप क्या कह रही हैं मालकिन?" बिंदिया ने पुचछा
"मैं ये कह रही हूँ के तेरा मर्द तो हमेशा से ठाकुर साहब के लिए काम करता था और तू भी बड़े वक़्त से यहीं हमारी ज़मीनो पर काम कर रही है. क्या तू मुझे कुच्छ ऐसा बता सकती हैं जो मैं नही जानती पर जिस बात की खबर मुझे होनी चाहिए?"
"आप करना क्या चाहती हैं मालकिन?" बिंदिया ने थोड़ी फिकर भारी आवाज़ में पुचछा
"मैं इस हवेली को दोबारा घर बनाना चाहती हूँ. यहाँ दोबारा खुशियाँ देखना चाहती हूँ. फिर से इसे वैसे ही देखना चाहती हूँ जैसी के ये पहली थी और इसके लिए ज़रूरी है के मुझे पहले सब कुच्छ पता हो ताकि मैं बर्बादी की हर वजह को मिटा सकूँ. समझी?" रूपाली एक साँस में बोली
बिंदिया ने हां में सर हिलाया
"तो अब बता" रूपाली उसके सामने बिस्तर पर बैठते हुए बोली "तू जानती है ऐसा कुच्छ?"
"छ्होटा मुँह बड़ी बात हो जाएगी मालकिन" बिंदिया ने हिचकिचाते हुए बोला
"तू फिकर ना कर. "रूपाली ने कहा "बस कुच्छ जानती है है तो बता मुझे"
"मैं नही जानती मालकिन के आपके लिए क्या ज़रूरी है क्या नही या आप क्या जानती हैं क्या नही. मैं बस अपने हिसाब से आपको कुच्छ बातें बता देती हूँ जो मुझे लगता है के आपसे च्छुपाई गयी होंगी. इस घर की नयी बहू से जो की आप आज से 10 साल पहले थी." बिंदिया ने कहा तो रूपाली ने हां में सर हिलाया
"आपको क्या लगता है के ठाकुर साहब की बर्बादी का सबसे बड़ा ज़िम्मेदार कौन है?" बिंदिया ने पुचछा तो रूपाली ने अपने कंधे हिलाए जैसे कह रही हो के पता नही
"आप अपने देवर जय के बारे में जानती हैं ना?" बिंदिया ने पुचछा "ठाकुर साहब के छ्होटे भाई का बेटा"
रूपाली ने हां में सर हिलाया
"वो हैं आस्तीन का असली साँप जो आपके पति ने पाल रखा था. आपके पति के मरते ही उसने ठाकुर साहब का सब कुच्छ ऐसे हड़प लिया जैसे कबे मौके की ताक में बैठा हो" बिंदिया ने आवाज़ यूँ नीची की जैसे बहुत बड़े राज़ की बात बता रही हो
"मालूम है मुझे" रूपाली ने कहा
"आप जानती हैं उसने ऐसा क्यूँ किया जबकि ठाकुर साहब ने अपने तीन बेटों के साथ उसे भी अपने चौथे बेटे की तरह पाला था" बिंदिया ने पुचछा
रूपाली ने फिर इनकार में सर हिलाया
"क्यूंकी गाओं में हर कोई ये कहता है के ठाकुर साहब ने पूरी जायदाद के लिए खुद अपने भाई का खून किया था" बिंदिया ने कहा
रूपाली पर जैसे कोई बॉम्ब गिरा हो
"मैं नही मानती. बकवास है ये" उसने बिंदिया से कहा
"मैं भी नही मानती मालकिन पर गाओं और आस पास के सारे इलाक़े में हर कोई यही कहता है. और जहाँ तक मेरा ख्याल है जय के कानो में भी यही बात पड़ गयी इसलिए तो खुद अपने चाचा के खिलाफ दिल में ज़हेर पालता रहा" बिंदिया ने जवाब दिया
"पर पिताजी ऐसा क्यूँ करेंगे?" रूपाली बोली
"वही तो." बिंदिया ने कहा "आपके ससुर और उनके भाई में बहुत बनती थी. भाई कम दोनो दोस्त ज़्यादा थे इसलिए तो ठाकुर साहब ने अपने भाई के बेटे को अपने बेटे की तरह पाला"
"जय के माता पिता की मौत कैसे हुई थी?" रूपाली ने पुचछा
"कार आक्सिडेंट था. गाड़ी खाई में जा गिरी थी. सब कहते हैं के ठाकुर साहब ने ही गाड़ी में कुच्छ खराबी की थी जिसकी वजह से आक्सिडेंट हुआ था." बिंदिया बोली
"कोरी बकवास है ये" रूपाली थोड़ा गुस्से में बोली "मैं जानती हूँ पिताजी को. वो ऐसा कुच्छ कर ही नही सकते"

"मैं जानती हूँ नही कर सकते मालकिन" बिंदिया ने भी हां में हां मिलाई "मैं तो बस आपको बता रही हूँ के गाओं के लोग क्या कहते हैं. मुझसे पुच्हिए तो मैं तो खुद ये कहती हूँ के ठाकुर साहब जैसा भला आदमी हो ही नही सकता"
उसकी बात सुन रूपाली मुस्कुराइ. जैसे अपने प्रेमी की तारीफ सुनकर खुश हुई हो
"और कोई बात?" उसने बिंदिया से पुचछा
"हां एक बात है तो पर पता नही के कितनी सच्ची है" बिंदिया ने कहा
"बता मुझे" रूपाली बोली
"मेरे मर्द की और मेरी एक अजीब आदत थी" बिंदिया ने कहा "बिस्तर पर हम चुप नही रहते थे. बातें करते करते चुदाई करते थे"
"कैसी बातें?" रूपाली हैरत से बोली "वो कोई बातें करने का टाइम होता है भला?"
"जानती हूँ बातें करने का वक़्त नही होता पर चुदाई की बातें करने का वक़्त वही होता है मालकिन. सच बड़ा मज़ा आता था" बिंदिया मुस्कुराते बोली
"मैं कुच्छ समझी नही" रूपाली बोली
"जब वो मुझे चोद्ता था तो हम गंदी गंदी बातें करते थे. जैसे मैं उसे कहती थी के चूत मारो, गान्ड मारो और वो कहता था के लंड चूस मेरा, गान्ड में ले, घोड़ी बन, उपेर आ. कभी कभी हम दोनो सोचते थे के हम बिस्तर पर नही कहीं और चुदाई कर रहे हैं जैसे खेत में या नदी किनारे और फिर हम दोनो बातों बातों में चुदाई करते थे. असल में वो मुझे उस वक़्त चोदा करता था और बातों में कहीं और चुदाई चल रही होती थी. वो मुझे कहता के अब मैं तुम्हें झुका कर चोद रहा हूँ और मैं कहती के मेरी चूचियाँ तुम्हारे हर धक्के के साथ हिल रही हैं. समझ रही हैं आप?" बिंदिया ने कहा
"कुच्छ कुच्छ" रूपाली बोली
"ऐसी ही एक चुदाई के वक़्त उसने मुझे बताया था के उसने आज एक लड़की को चूड़ते हुए देखा और बताया के उसने क्या देखा. मुझे चोद्ते हुए उसने पूरी कहानी बताई के उसने क्या देखा था. हम दोनो को बहुत मज़ा आया. चुदाई के बाद जब मैने उससे पुचछा के वो लड़की कौन थी तो वो बात टाल गया. और फिर अक्सर ऐसा ही करता. मुझे चोद्ता तो उस लड़की की कहानी दोहराता. उसकी चूचियाँ कैसी थी बताता. वो कैसे चुद्व रही थी ये पूरा अच्छे से मुझे बताता पर हमेशा उस लड़की का नाम टाल जाता. फिर एक दिन मैने उसे चूत देने से इनकार कर दिया. शर्त ये रखी के मैं चूत तब तक नही दूँगी जब तक के वो मुझे ये नही बताता के वो लड़की कौन थी. तब जाके उसने मुझे उसका नाम बताया." बिंदिया ने कहा और चुप हो गयी
"कौन थी लड़की?" रूपाली ने पुचछा. बिंदिया ने जवाब ना दिया
"बता ना" रूपाली ने फिर कहा
"आपकी ननद, कामिनी" बिंदिया ने जैसे धमाका किया "ठाकुर साहब के एकलौती बेटी"
"तू जानती है तू क्या बकवास कर रही है?" रूपाली लगभग चीखते हुए बोली
"मैं नही मालकिन ऐसा मेरा मर्द कहता था" बिंदिया ज़रा सहमी से आवाज़ में बोली
"ठाकुर साहब के कानो में अगर ये बात पड़ गयी तो जानती है ना के तेरा क्या अंजाम होगा" रूपाली ने कहा
"जानती हूँ मालकिन और यही बात मैने अपने मर्द से कही थी." बिंदिया ने कहा तो रूपाली ने अपने चेहरे से गुस्से के भाव हटाए
"क्या बताया था तेरे मर्द ने?" उसने बिंदिया ने पुचछा पर बिंदिया ने डर से कुच्छ ना कहा
"अच्छा डर मत ये बात कहीं नही जाएगी. अब बता" रूपाली ने ज़रा मुस्कुराते हुए कहा
"जी मेरे घर से थोड़ी दूर पहले आपकी ज़मीन पर एक ट्यूबिवेल होता था. तब वहाँ पर हर भर खेत थे जिनकी देखभाल मेरा मर्द करता था" बिंदिया ने बताना शुरू किया "वो कहता था के एक दिन उसे कामिनी की गाड़ी खेतों के बाहर सड़क पर खड़ी दिखाई दी. गाड़ी इस अंदाज़ में खड़ी की थी के सड़क से किसी को ना दिखे पर अगर कोई खेत की तरफ से आए तो उसे सॉफ नज़र आती थी. वो हैरत में पड़ गया के कामिनी के गाड़ी यहाँ क्या कर रही है. वो उसे ढूंढता हुआ ट्यूबिवेल की तरफ निकला क्यूंकी वहीं पर ठाकुर साहब ने थोड़ी जगह सॉफ करवाके एक छ्होटा सा कमरा बनवा रखा था. उसी के आगे वो अक्सर आके बेता करते थे और उसी कमरे में एक कुआँ था जिसमें ट्यूबिवेल लगा हुआ था. मेरे मर्द को लगा के कामिनी भी शायद उधर ही गयी होगी. वो उसे ढूंढता हुआ वहाँ पहुँचा तो देखा के कमरे का ताला खुला हुआ था पर दरवाज़ा अंदर से बंद था और अंदर से किसी के धीमी आवाज़ में बात करने की आवाज़ आ रही थी. टुबेवेल्ल की मोटर कमरे के अंदर थी और ट्यूबिवेल का पाइप कमरे में एक जगह से बाहर निकलता था. मेरे मर्द ने वहीं से अंदर झाँक कर देखा तो........"
"तो क्या?" रूपाली ने पुचछा "बता मुझे"
"वो कहता था के उसने देखा के कामिनी नीचे ज़मीन पर झुकी हुई थी, बिल्कुल नंगी. वो जहाँ से देख रहा था वहाँ से उसे कामिनी के आगे का हिस्सा नज़र आ रहा था, मतलब के उसकी कमर से उपेर का हिस्सा. उसकी चूचियाँ नीचे को लटकी हुई थी और वो आगे पिछे हो रही थी जिससे के ज़ाहिर था के पिछे से कोई उसे चोद रहा था. उसके बाल उसके चेहरे पर बिखरे हुए थे और उसने मज़े में आँखें बंद की हुई थी" बिंदिया बोली
"कौन छोड़ रहा था?" रूपाली ने जल्दी से पुचछा
"ये मेरा मर्द नही देख पाया क्यूंकी कामिनी की कमर से नीचे का हिस्सा उसे नज़र नही आ रहा था. उसने बस किसी के हाथों को देखा था जो कामिनी की कमर और उसकी चूचियों को सहला रहे थे, हाथ किसके थे ये वो नही देख पाया.'"बिंदिया बोली
"फिर?" रूपाली ने सवाल किया
"फिर वो कहता था के चुद्ते चुद्ते कामिनी ने अपनी गर्दन घुमाई और ठीक उस तरफ देखा जहाँ से मेरा मर्द झाँक रहा था. उसे लगा के कामिनी ने उसे देख लिया है और वो वहाँ से सर पर पावं रखकर भागा." बिंदिया ने बोला
"उसने वहाँ रुक कर ये देखने की कोशिश नही की के कामिनी के साथ वो आदमी कौन था?" रूपाली ने पुचछा
"मज़ाक कर रही हैं? उसे तो लगा था के वो अब गया जान से. उसने सोचा कामिनी ठाकुर साहब से कहके उसकी गर्दन कटवा देगी. 2-3 दिन तक बोखलाया सा रहा और फिर जब उसे लगा के कुच्छ नही हुआ तो तब उसने मुझे ये बात बताई." बिंदिया ने जवाब दिया
"हर रात यही बात करता था?" रूपाली ने कहा
"हां. मर्द था ना. चोद मुझे रहा होता था और याद उसे नंगी कामिनी आती थी" बिंदिया ने ऐसे कहा जैसे अपने मरे हुए मर्द को ताना मार रही हो
"फिर क्या हुआ? उसने दोबारा कभी देखा कामिनी को वहाँ?" रूपाली ने सवाल किया
"कहाँ मालकिन. महीने भर बाद ही मर गया था वो."
"कैसे?"
"वहीं उसी कमरे में. जो कुआँ बना हुआ है ना अंदर, उसी में लाश मिली थी उसकी. टुबेवेल्ल ठीक करने गया था और पता नही कैसे अंदर गिर पड़ा. उसका सर नीचे जा रहे ट्यूबिवेल के पाइप पे लगा और वो मर गया. पता नही चोट लगने से या डूबके मरने से." बिंदिया ने आह लेते हुए कहा


"बुरा ना माने तो एक बात कहूँ मालकिन?" बिंदिया बोली
"हां बोल" रूपाली ने कहा
"कामिनी के बारे में लोग अच्छा नही कहते. जो नौकर उस वक़्त यहाँ काम करते थे वो कहते थे के उसका चल चलन ठीक नही है. पता नही क्यूँ कहते थे पर हर कोई कहता था के सीधी सी दिखने वाली चुप चुप रहने वाली कामिनी ऐसी नही थी जैसी वो दिखती थी"
"हां कुच्छ ऐसा सुना था मैने भी. पर आज से पहले किसी ने ऐसी किसी घटना का ज़िक्र नही किया था." रूपाली ने जवाब दिया
"नौकरों से ध्यान आया मालकिन" बिंदिया बोली "अब तो घर में कोई नौकर बचा नही, इतनी बड़ी हवेली का ध्यान कैसे रखती हैं?"
"भूषण है ना. और फिर हम हवेली में 2 ही लोग हैं. मैं और पिताजी. चल जाता है" रूपाली ने कहा
"हां यही एक बेचारा रह गया जो हमेशा आपका वफ़ादार रहा."बिंदिया बोली "और वैसे भी इस उमर में जाता कहाँ. कोई है ही नही आगे पिछे. एक बीवी थी वो छ्चोड़के भाग गयी"
"भाग गयी?" रूपाली ने हैरानी से पुचछा "मुझे लगा था के वो मर गयी थी"
"अरे नही मालकिन" बिंदिया ने कहा "इतनी जल्दी कहाँ. अपनी भारी जवानी में थी वो"
"मतलब?" रूपाली ने पुचछा
"जब इसने शादी की थी तो ये लगभग 40 का था और वो लड़की मुश्किल से 20 की. कोई 15 साल इसके साथ रही और फिर भाग गयी किसी और के साथ" बिंदिया बोली
रूपाली को इस बात से काफ़ी हैरानी हुई. वो पुच्छना चाहती थी के वो लड़की क्यूँ भागी पर फिर जवाब खुद अपने दिल ने ही दे दिया. जब भूषण 40 का था तो बिस्तर पे उसे खुश रखता होगा. 15 साल में उमर ढली तो इसकी जवानी गयी और जवानी के साथ ही बीवी भी किसी और के साथ गयी.
रूपाली और बिंदिया थोड़ी देर और इधर उधर की बातें करते रहे. बिंदिया ने उसे गाओं और ठाकुर साहब की जायदाद के बारे में काफ़ी कुच्छ बताया पर कुच्छ भी ऐसा नही जो रूपाली पहले से ना जानती हो. कुच्छ देर बाद बिंदिया ने उठते हुए कहा के अब उसको चलना चाहिए.
"क्यूँ फिर टाँगो के बीच आग लग रही है क्या?" रूपाली ने कहा तो बिंदिया भी उसके साथ हस पड़ी
"वैसे मानना होगा तुझे बिंदिया. कोई देखके कह नही सकता के एक जवान बेटी की माँ है तू. साथ खड़ा कर दो तो पायल की बड़ी बहेन लगेगी, माँ नही" रूपाली बोली
"छ्चोड़िए मालकिन" हस्ते हुए बिंदिया ने कहा और कमरे से बाहर चली गयी.
रूपाली वहीं बिस्तर पर बैठी थोड़ी देर तक उसकी बातों पर गौर करती रही. अगर जो बिंदिया ने कहा था वो सच था तो कामिनी के बारे में जो घर के नौकर कहते थे वो भी ठीक ही था. मतलब कोई प्रेमी था उसका जिससे मिलने वो उस दिन खेतों की तरफ गयी थी और बहुत हद ये भी मुमकिन था के वहीं आदमी उससे मिलने हवेली में आता था. और ये भी मुमकिन था के उसी ने पुरुषोत्तम का भी खून किया हो. पर अब सवाल ये था के वो आदमी था कौन.
यही सोचती रूपाली अपने कमरे की खिड़की के पास आकर खड़ी हुई और नीचे देखने लगी. सामने से एक कार आकर रुकी और उसका देवर तेज गाड़ी से बाहर निकला. उसके पति का दूसरा भाई.
"आ गये मियाँ अययश" रूपाली ने दिल में सोचा
तभी हवेली के दरवाज़े से बिंदिया निकली और तेज के सामने हाथ जोड़कर नमस्ते करती हुई उसकी बगल से निकल गयी. जिस बात ने रूपाली का ध्यान अपनी और किया वो था तेज का पलटकर बिंदिया को देखना. वो कुच्छ पल के लिए पिछे से बिंदिया को देखता रहा. जिस अंदाज़ से वो देख रहा था उससे रूपाली ने यही अंदाज़ा लगाया के वो बिंदिया की गान्ड देख रहा था. बिंदिया थोड़ा आगे निकल गयी तो तेज पलटकर हवेली में दाखिल हो गया.रूपाली खिड़की से हटी ही थी के उसके दिमाग़ में एक ख्याल आया और वो मुस्कुरा उठी.
तेज अय्याश था, औरतों का शौकीन और इसी चक्कर में यहाँ वहाँ रंडियों में मुँह मारता फिरता था. रूपाली चाहती थी के वो हवेली में रुके और अपनी ज़मीन जायदाद की देखभाल की तरफ ध्यान दे, अपने पिता का हाथ बताए पर इसके लिए ज़रूरी था उसका हवेली में रुकना. उसे रोकने का एक तरीका ये था के घर में ही उसके लिए चूत का इन्तेजाम कर दिया जाए. रूपाली ने दोबारा खिड़की से बाहर कॉंपाउंड में जाती हुई बिंदिया को देखा, फिर एक पल पायल के बारे में सोचा और खुद ही मुस्कुरा उठी.

रूपाली अपने कमरे से बाहर निकली तो सामने से आता तेज मिल गया
"प्रणाम भाभी माँ" उसने बिल्कुल ठाकुरों के अंदाज़ में हाथ जोड़े और झुक कर रूपाली के पावं च्छुए
एक बात जो रूपाली को हैरत में डालती थी वो ये थी के तेज लाख आय्याश सही पर उसका हमेशा बहुत आदर करता था. हवेली में वो जबसे आई थी तबसे वो हमेशा उसे भाभी माँ कहकर बुलाता था और हमेशा उसके पावं छुता था
"कैसे हो तेज?" रूपाली ने पुचछा
"ठीक हूँ भाभी. आप कैसी हैं?" तेज ने जवाब दिया
"ठीक हूँ. घर की याद आ गयी आपको?" रूपाली ने हल्का सा ताना मारते हुए कहा. तेज ने कोई जवाब नही दिया
"दोबारा कब जा रहे हैं?" रूपाली ने फिर सवाल किया
"आप ऐसा क्यूँ कह रही हैं भाभी?" तेज ने कहा
"और कैसा कहूँ तेज?" रूपाली ने हल्का सा गुस्सा दिखाते हुए कहा "एक जवान देवर के होते हुए अगर उसकी भाभी को सार काम करना पड़ा तो और क्या कहूँ मैं?"
"कैसा काम भाभी?" तेज हल्का शर्मिंदा होते हुए बोला "आप मुझे कहिए"
"आप यहाँ हों तो आपको कहूँ ना. आप तो इस घर में मेहमान की तरह आते हैं" रूपाली ना उसी अंदाज़ में दोबारा ताना मारा
तेज फिर चुप खड़ा रहा. रूपाली को हमेशा उसपर हैरत होती थी. ये वही तेज वीर सिंग है जिसने जाने कितनी लाशें गिरा दी थी अपने भाई का बदला लेने के लिए, ये वही तेज है जिसके सामने कोई ज़ुबान नही खोलता था, खुद ठाकुर साहब भी नही पर रूपाली के सामने तेज हमेशा सर झुकाए ही खड़ा रहता था.
"खैर अब आप आए ही हैं तो हम चाहते हैं के आप कुच्छ दिन रुकें. हवेली में कुच्छ काम है और हमें अच्छा लगेगा के आप हमारा हाथ बटाये" रूपाली ने कहा
"जैसा आप ठीक समझें" तेज ने कहा और अपने कमरे की तरफ बढ़ गया
रूपाली उसे जाता देखकर मुस्कुराइ. वो जानती थी के उसका प्लान काम कर रहा है.

रूपाली नीचे आकर किचन में पहुँची. पायल और भूषण खाना लगभग तैय्यार कर चुके थे.
"खाना तैय्यार है बहू रानी" भूषण ने कहा
"मैं अभी नही खाऊंगी" रूपाली ने कहा "पिताजी के आने के बाद ही खाऊंगी."
फिर वो पायल की तरफ पलटी
"जाकर छ्होटे मलिक के कमरे में पुच्छ आ कि उन्होने अभी खाना है या नही" वो चाहती थी के तेज पायल को देखे और उसे पता चल जाए के उसके लिए इस घर में ही चूत का इन्तजाम है. एक कच्ची कुँवारी कली का.
रूपाली वापिस अपने कमरे में पहुँची और सोच में पड़ गयी. उसने तेज को यहाँ रुकने को कह तो दिया था पर इससे खुद उसके लिए परेशानी खड़ी हो गयी थी. पहली परेशानी तो ये के इतने आदमियों के रहते वो खुले तौर पर ठाकुर से नही चुदवा सकती थी. अब जो कुच्छ भी हो चोरी छुपे ही हो सकता था, बड़ी सावधानी के साथ. दूसरी बात ये के ठाकुर अपने दूसरे बेटे तेज को इतना पसंद नही करते थे और ना ही तेज की अपने पिता के साथ कोई बोलचाल थी. इस वजह से शायद ठाकुर काम में तेज की धखल अंदाज़ी पसंद ना करते. और तीसरा ये के उसने अब तक तेज के कमरे की तलाशी नही ली थी. अब तेज के आ जाने से इस काम में दिक्कत हो सकती थी.
तलाशी के बारे में सोचते ही रूपाली के दिमाग़ में कई ख्याल एक साथ आए. उसने कुच्छ देर बैठ कर अपनी सोच को एक दूसरे के साथ जोड़ा और जल्दी से उठकर अपनी अलमारी के पास गयी. अलमारी से उसने वो दोनो चाबियाँ निकाली जिनमें से एक तो उसे भूषण ने दी थी ये कहकर के उसे रात को ये हवेली के पिछे के बगीचे से मिली थी और दूसरी जो उसे अपनी सास की सारी के पल्लू से मिली थी. दोनो चाबियों को रूपाली ने एक साथ रखा और मिलाया. यक़ीनन दोनो चाबियाँ एक ही ताले की थी पर सवाल ये था के किस ताले की. और ये दोनो चाबियाँ नकल थी तो असली कहाँ थी. रूपाली ने मन ही मन कुच्छ फ़ैसला किया और चाबियाँ उठाकर अपने पर्स में रख दी.
कुच्छ देर बाद रूपाली अपने कमरे से निकलकर तेज के कमरे की और बढ़ी. वो उससे कुच्छ बात करना चाहती थी. कमरे के दरवाज़े के सामने आती हसी की आवाज़ सुनकर वो वहीं रुक गयी. अंदर पायल और तेज हस हॅस्कर कुच्छ बात कर रहे थे. दरवाज़ा बंद होने की वजह से वो देख तो नही पाई पर तेज कुच्छ पुच्छ रहा था और पायल हस हॅस्कर जवाब दे रही थी. रूपाली मुस्कुराइ और पलटकर फिर अपने कमरे में आ गयी.
थोड़ी देर बाद ठाकुर भी वापिस आ गये. रूपाली ने उनके आने के बाद उनके साथ ही खाना खाया.
"तेज घर पर है?" ठाकुर ने पुचछा
"जी अभी थोड़ी देर पहले वापिस आए हैं" रूपाली ने जवाब दिया
"कितनी देर के लिए?" ठाकुर ने नफ़रत से पुचछा तो रूपाली ने जवाब ना दिया और दोनो खामोशी से खाना खाते रहे.
खाने के बाद ठाकुर अपने कमरे में आराम करने चले गये. रूपाली बड़े कमरे में बैठी टीवी देख रही और पायल भी वहीं उसके सामने ज़मीन पर बैठी हुई थी. तभी तेज नीचे उतरा और हवेली के बाहर जाने लगा
"कहाँ जा रहे हैं?" रूपाली ने पुचछा
"जी एक दोस्त के यहाँ" तेज ने जवाब दिया. उसके अंदाज़ से ही सॉफ मालूम हो गया के उसे रूपाली का यूँ टोकना पसंद नही आया
इससे पहले के रूपाली कुच्छ कहती, तेज ने खुद ही बता दिया के वो रात में वापिस नही आएगा और बिना रूपाली के जवाब का इंतेज़ार किए घर से निकल गया.
रूपाली अच्छी तरह जानती थी के रात बसर करने तेज फिर किसी रंडी के यहाँ गया है.

रात के 10 बज चुके थे. रूपाली अपने बिस्तर पर पड़ी करवट बदल रही थी. आज रात भी पायल वहीं उसके कमरे में सोने आई थी और नीचे ज़मीन पर पड़ी सो रही थी. रूपाली को उसपर गुस्सा आ रहा था क्यूंकी वो ठाकुर के कमरे में जाना चाहती थी पर पायल के डर की वजह से थोड़ी सावधानी बरतनी पड़ रही थी.रूपाली ने अपने ससुर को कहा था के वो थोड़ी देर बाद उनके कमरे में सोने आ जाएगी.
रूपाली बिस्तर से उठने को हुई ही थी के कमरे का दरवाज़ा खुला और ठाकुर खुद उसके कमरे में आ गये. पास आकर वो चुप चाप रूपाली के बिस्तर पर आ गये
"आप यहाँ?"रूपाली ने धीरे से पुचछा
"हां हमने सोचा के के आप उठकर हमारे कमरे में आएँगी तो पायल और भूषण को शक हो सकता है इसलिए हम ही आ गये" ठाकुर ने धीमी आवाज़ में जवाब दिया
रूपाली ने बिस्तर पर खिसक कर ठाकुर के लिए जगह बनाई
"पर यहाँ पायल....." उसने कहने के लिए मुँह खोला ही था के ठाकुर ने अपने होंठ उसके होंठो पर रख दिए. उनका एक हाथ निघट्य के उपेर से ठीक रूपाली की चूत पर आ गया. इसके बाद रूपाली कुच्छ ना कह सकी. एक एक करके उसके सारे कपड़े उतरते चले गये. वो पूरी तरह से नंगी होकर ठाकुर के नीचे आ गयी. उसके ससुर का लंड पहले उसके मुँह में और फिर उसकी चूत में आ गया. उसके टांगे हवा में फेल गयी और टाँगो के बीच ठाकुर ने उसकी चूत में लंड अंदर बाहर करना शुरू कर दिया.
चुदाई बड़ी देर तक चलती रही. ना ठाकुर हार मानने को तैय्यार थे और ना ही रूपाली. दोनो के जिस्म में आग लगी हुई थी और दोनो जैसे पूरी तरह एक दूसरे में घुस जाना चाहते थे. उन्हें इस बात की कोई फिकर नही थी के वहीं बिस्तर के पास नीचे ज़मीन पर पायल सोई हुई थी जो किसी भी पल जाग सकती थी. रूपाली कभी सीधी लेटकर चूड़ी, तो कभी ठाकुर के उपेर आकर तो कभी घोड़ी बनकर. झुका कर चोद्ते हुए ठाकुर ने उसकी चूत पर ऐसे धक्के मारे के रूपाली से संभाला ना गया और वो बिस्तर उल्टी लेट गयी. ठाकुर उसकी उपेर लेट गये और पिछे से उसकी चूत मारने लगे. गान्ड पर धक्के अब भी उतनी ही ज़ोर से पड़ रहे थे और लंड रूपाली की चूत की गहराई पूरी तरह से नाप रहा था. रूपाली उस वक़्त बिस्तर पर टेढ़ी लेती हुई थी. उसका सर बिस्तर के किनारे पर रखा हुआ था. उसका चूत अच्छी तरह से मारी जा रही थी और ठाकुर ने अपना सर उसकी गर्दन के पास रखा हुआ था. रूपाली के बॉल उनके चेहरे पर बिखरे हुए थे और उनकी आँखें बंद थी. रूपाली ने एक नज़र पायल की तरफ उठाकर देखा तो वो बेख़बर सोई हुई थी. शायद उसे गहरी नींद में सोने की आदत थी. रूपाली की नज़र उसके जिस्म की तरफ पड़ी. रूपाली ने पायल को पहेन्ने के लिए काई कपड़े दिए थे पर रात को पायल वही अपना ल़हेंगा और चोली पहेनकर सोती थी. उसका ल़हेंगा फिर उसकी जाँघो तक चढ़ आया था और उसकी आधी टांगे नंगी थी. रूपाली सॉफ समझ गयी थी के इस वक़्त भी पायल ने कपड़ो के नीचे ब्रा और पॅंटी नही पहेन रखी थी. रूपाली को जाने क्या सूझी के उसे अपना एक हाथ आगे किया और सामने पड़ी पायल का ल़हेंगा खींचकर उसके पेट तक कर दिया. पायल की चूत खुलकर उसके सामने क्या आ गयी. चूत पर घने बॉल थे. लगता था के उसने बॉल कभी सॉफ नही किए थे. रूपाली ने एक पल उसकी चूत को देखा और फिर उसे च्छुने के लिए हाथ आगे बढ़ाया ही था के अचानक उसकी चूत पर पड़ते ठाकुर के धक्के बंद हो गये. रूपाली ने पलटकर ठाकुर की तरफ देखा उन्होने आँखें खोल दी थी और वो भी वही देख रहे थे जो रूपाली देख रही थी.
ठाकुर और रूपाली दोनो ही बिस्तर पर टेढ़े लेते हुए थे. रूपाली उल्टी थी और पिछे से ठाकुर ने अपना लंड उसकी चूत के अंदर उतरा हुआ था. दो पल के लिए दोनो की नज़रें मिली और फिर दोनो पायल को देखके मुस्कुराए. बेख़बर पायल अब भी गहरी नींद में थी. उसे कोई अंदाज़ा नही था के इस वक़्त उसकी चूत दो लोगों के सामने खुली हुई थी. रूपाली ने ठाकुर को देखा तो पाया के उनकी नज़रें पायल की टाँगो के बीच बालों पर अटक गयी थी. रूपाली दिल से ठाकुर को चाहती थी पर जाने क्यूँ उसे इस बात का ज़रा बुरा नही लगा के वो उसके अलावा किसी और की चूत देख रहे हैं. उल्टा इस बात से उसकी जिस्म की वासना और तेज़ होने लगी. उसने अपना एक हाथ आगे किया और ठाकुर के सामने ही ले जाकर पायल की चूत पर रख दिया और सहलाने लगी.उसकी इस हरकत ने जैसे ठाकुर के अंदर वासना का ज्वार सा उठा दिया और वो फिर बेरहमी से उसकी चूत मारने लगे. दोनो अब भी एकटक सामने पड़ी पायल को देख रहे थे. रूपाली ने थोड़ी देर पायल की चूत और झंघो पर हाथ फेरा और फिर हाथ उपेर करके पायल की छाति पर रख दिया. ठाकुर जिस तरह उसे चोद रहे थे उससे इस बात का अंदाज़ा सॉफ होता था के इस खेल में उन्हें कितना मज़ा आ रहा है.
रूपाली ने धीरे से पायल की चोली का एक बटन खोल दिया. उसके साथ साथ ठाकुर की नज़रें भी अब आकर पायल की बड़ी बड़ी च्चातियो पर अटक गयी. धीरे धीरे रूपाली ने एक एक करके पायल की चोली के सारे बटन खोल दिए और हल्के से उसकी चोली दोनो तरफ से साइड खिसका दी.


पायल की चूचयान खुलकर दोनो की नज़रों के सामने आ गयी और दोनो जैसे पागल हो उठे. चुदाई में और तेज़ी आ गयी. इस बात की दोनो को कोई फिकर नही थी के पायल सिर्फ़ सो रही है, बेहोश नही थी. अगर जो जाग जाती तो खुद को नंगा पाती और ससुर और बहू को चुदाई करते हुए नंगा देख लेती. रूपाली पायल की चूचियों पर हाथ फेर रही थी. वो इस बात का ख्याल रख रही थी के हल्का सा भी दबाव ना डाले ताकि पायल की नींद ना खुले. ठाकुर आँखें फाडे पायल के जिस्म को देख रहे थे और उसपर हाथ फेरती रूपाली को बेरहमी से चोद रहे थे.
रूपाली उल्टी लेटी थी और ठाकुर उसके उपेर. उनके दोनो हाथ रूपाली के नीचे थे जिसमें उन्होने उसकी दोनो चूचियाँ पकड़ रखी थी. रूपाली थोडा सा उपेर हुई और ठाकुर का एक हाथ अपनी छाति से हटाया. ठाकुर ने उसकी तरफ देखा. रूपाली मुस्कुराइ और उसने ठाकुर का हाथ धीरे से नीचे किया और पायल की चूत पर रख दिया. खुद वो फिर से पायल की चूचियाँ सहलाने लगी. इस हरकत ने जैसे दोनो के उपेर जादू सा कर दिया. ठाकुर पायल की चूत सहलाने लगे और आहें भरते हुए रूपाली की चूत पर ऐसे धक्के मारने लगे जैसे आज के बाद कभी नही मिलेगी.

सुबह सवेरे पायल की आँख खुली. उसने घड़ी की तरफ नज़र डाली तो सुबह के 5 बज रहे थे. वो अभी भी पूरी तरह नंगी थी. जिस्म पर कपड़े के नाम पर कुच्छ नही था. उसने अपनी गान्ड पर हाथ फेरा तो वहाँ रात को ठाकुर का गिराया हुआ पानी सूख चुका था. रूपाली ने उठकर अपने कपड़े उठाए और पायल की तरफ नज़र डाली तो उपेर की साँस उपेर और नीचे की नीचे रह गयी. रात चुदाई के बाद वो ठाकुर के साथ ऐसे ही थोड़ी देर लेटी रही और उनके जाने के बाद वैसे ही सो गयी थी. ना तो उसने अपने कपड़े पहने थे और ना ही पायल के कपड़े ठीक किए थे. पायल अब भी वैसे ही पड़ी थी. ल़हेंगा खिसक कर थोड़ा नीचे चूत के उपेर हो गया था पर जांघें अब भी खुली हुई थी. उसकी चोली पूरी तरह से खुली हुई थी और बड़ी बड़ी चूचियाँ खुली पड़ी थी. रूपाली जल्दी से बिस्तर से नीचे उतरी और पायल की चोली के बटन धीरे धीरे बंद करने लगी. फिर उसने ल़हेंगा नीचे किया और जब तसल्ली हो गयी के पायल को अपने कपड़े देखकर कुच्छ शक नही होगा तो उसके बाद रूपाली ने अपने कपड़े पहने. कपड़े क्या पहने बस उपेर से एक नाइटी डाल ली जो उसे सर से लेके पावं तक ढक लेती थी. नाइटी के नीचे कुच्छ नही पहना. एक पल के लिए उसने सोचा के पायल को जगाए पर फिर इरादा बदलकर नीचे आ गयी.
गर्मी के दिन होने की वजह से सुबह 5 बजे ही बाहर हल्की हल्की रोशनी होनी शुरू हो गयी थी. रूपाली नीचे उतरकर बड़े कमरे में पहुँची. तेज कल का गया रात को घर नही लौटा और ठाकुर साहब अब भी सो रहे थे. रूपाली को दिल ही दिल में डर था के कहीं ऐसा ना हो के तेज वापिस ही ना आए. बड़े कमरे में भूषण सफाई में लगे हुए थे.
"बड़ी जल्दी उठ गये काका?" रूपाली ने पुचछा
"मैं तो रोज़ाना इस वक़्त तक उठ जाता हूँ बहूरानी" भूषण ने जवाब दिया और रूपाली की तरफ पलटा
"हां मैं तो खुद ही इतनी देर से उठती हूँ के पता नही होता के आप कब उठे" कहते हुए रूपाली मुस्कुराइ. उसने ध्यान दिया के भूषण उसके गले की और ध्यान से देख रहा था
"क्या हुआ काका?" कहते हुए रूपाली ने अपने गले पर हाथ फिराया तो हल्का दर्द का एहसास हुआ. तभी उसे ध्यान आया के रात चोद्ते हुए ठाकुर से उसके गले पर अपने दाँत गढ़ा दिए थे
"ओह ये" रूपाली फिर मुस्कुराइ. भूषण ने अपनी नज़र फेर ली और फिर काम में लग गया. रूपाली किचन की तरफ बढ़ गयी.
रूपाली अच्छी तरह जानती थी के वो जो कर रही है उसमें भूषण का उसके साथ होना बहुत ज़रूरी है. वो पूरे परिवार को दोबारा जोड़ना चाहती थी पर उसके और ठाकुर के रिश्ते की हल्की सी भी भनक अगर किसी को लग जाती तो पूरे परिवार को एक साथ लाना नामुमकिन हो जाता. बदनामी हो जाती सो अलग. इसके लिए बहुत ज़रूरी था के भूषण को वो अपने साथ रखे.
किचन में खड़े खड़े रूपाली ने भूषण को आवाज़ लगाई. भूषण किचन में आया
"काका मेरी कमर पर बहुत दर्द सा हो रहा है. ज़रा देखेंगे के कुच्छ हुआ है क्या?" भूषण एकटूक रूपाली को देखने लगा
रूपाली उसके जवाब की फिकर किए बिना भूषण की तरफ अपनी कमर करके खड़ी हो गयी. फिर उसने जो किया वो देखकर भूषण के तो जैसे होश उड़ गये. वो नीचे झुकी और अपनी नाइटी को नीचे से उठाकर पूरा गले तक कर लिए. अब वो भूषण के सामने जैसे एक तरीके से नॅंगी ही खड़ी थी. नाइटी उसने अपने दोनो हाथों से उपेर उठाकर अपने गले के पास पकड़ी हुई थी. भूषण पिछे खड़ा उसकी गोरी चिकनी और क़यामत ढा रही उसकी गान्ड को देख रहा था.
"कुच्छ निशान वगेरह है क्या काका?" उसने वैसे ही खड़े खड़े भूषण से पुचछा
"नही कुच्छ नही है." भूषण सूखे गले से मुश्किल से जवाब दे सका
"ज़रा मेरी कमर पर धीरे से सहला देंगे. खुजली सी लग रही है. लगता है रात किसी चीज़ ने काट लिया" रूपाली ने कहा पर भूषण वैसे ही खड़ा रहा.
जब रूपाली ने देखा के भूषण आगे नही बढ़ रहा है तो वो खुद ही पिछे को हो गयी और भूषण के नज़दीक आ गयी. अब उसकी कमर भूषण के बिल्कुल सामने थी. दोनो के जिस्म में बस कुच्छ इंच का फासला था.
"थोडा सा हाथ फेर दीजिए ना काका" रूपाली ने कहा तो भूषण ने अपना कांपता हुआ हाथ उठाया और उसकी कमर पर फेरने लगा. बुड्ढे नौकर की तेज़ी से चलती साँस से साफ पता चलता के वो भी गरम हो सकता था.
रूपाली थोड़ा सा पिछे को सरकी और अपना जिस्म भूषण के जिस्म से मिला दिया पर जो वो चाहती थी वो हो ना सका. क्यूंकी भूषण उससे कद में छ्होटा था इसलिए उसका लंड रूपाली की गांद से आ लगा और रूपाली की गांद भूषण के पेट से. ये ना हुआ तो रूपाली ने अपना हाथ घूमकर भूषण का हाथ पकड़ा और आगे अपनी छाती पर ले आई
"ज़रा यहाँ भी सहला दीजिए ना काका" कहते हुए वो खुद ही भूषण के हाथ को पकड़कर अपनी छाति पर फेरने लगी.
रूपाली चाहती तो ये थी के इस नाटक को थोड़ी देर और करके भूषण को मज़ा दे पर तभी किसी की सीढ़ियाँ उतरने की आवाज़ सुनकर दोनो चौंक गये. रूपाली ने अपनी नाइटी फ़ौरन नीचे गिराई और भूषण से थोड़ा अलग होकर खड़ी हो गयी.
आँखें मलती हुई पायल ने किचन में कदम रखा
"उठ गयी तू?" रूपाली ने उसकी और देखते हुए पुचछा

केस का आज पहला दिन था. ठाकुर साहब सुबह से ही सब काग़ज़ जोड़ने में लगे हुए थे. उन्हें देखकर पता चलता था के वो थोड़े परेशान से थे
"सब ठीक होगा पिताजी. आप परेशान ना हों" रूपाली ने कहा
"हम जानते हैं"ठाकुर ने जवाब दिया
थोड़ी ही देर बाद ठाकुर कोर्ट के लिए निकल गये. रूपाली जानती थी के वो शाम से पहले ना आ सकेंगे.
वो अपने कमरे में पहुँची और तैय्यार होकर अलमारी में रखी दोनो चाबियाँ उठाई. ये वही चाबियाँ थी जिनमें से एक उसे भूषण ने दी थी और दूसरी उसे अपनी सास की साडी से मिली थी. रूपाली के दिमाग़ में एक अंदाज़ा था और वो देखना चाहती थी के उसका अंदाज़ा कितना ठीक है.
उसने पायल और भूषण को हवेली के आस पास सफाई शुरू करने को कहा और कार लेकर निकल गयी. हवेली से बाहर निकलते ही उसे सामने से तेज की कार दिखाई दी.
"चलो कम से कम वापिस तो आया" रूपाली ने मन ही मन सोचा और अपनी तरफ का शीशा नीचे किया. अपना हाथ बाहर निकलके उसने सामने से आते तेज को रुकने का इशारा किया
दोनो गाड़ियाँ एक दूसरे के पास आकर रुक गयी. तेज ने अपनी तरफ का शीशा नीचे किया
"पिताजी घर पर नही हैं. कोर्ट गये हैं" रूपाली ने तेज को बताया. तेज ने समझते हुए गर्दन हिलाई
"आज ज़मीन के केस की पहली तारीख है. अच्छा होता के आप भी उनके साथ चले जाते." रूपाली बोली
"आज नही" तेज ने जैसे बात टाल दी "अगली तारीख पर चला जाऊँगा. आप मुझे ये बताएँ के ये हवेली में लाश मिलने का क्या किस्सा है?"
"मैं फिलहाल कुच्छ काम से जा रही हूँ. आकर बताती हूँ." रूपाली ने कहा और अपनी गाड़ी का शीशा उपेर करने लगी.
तभी उसे कुच्छ याद आया और उसने फिर शीशा नीचे किए
"एक काम कीजिएगा. अगर आप घर पर ही हैं तो गाओं से कुच्छ आदमी बुलवाकर हवेली की सफाई का काम करवा लीजिए. परसो शुरू हुआ तो था पर कल कुच्छ नही हुआ"
"ठीक है" तेज ने कहा और गाड़ी आगे बढ़ा दी
रूपाली अपनी कार लेकर फिर बिंदिया के घर की और चल दी. उसने अपनी गाड़ी फिर वहीं पेड़ के पास छ्चोड़ दी और पैदल बिंदिया की झोपड़ी की तरफ चल दी. झोपड़ी के पास पहुँच कर वो बिंदिया को आवाज़ लगाने ही वाली थी के फिर कुच्छ सोचके मुस्कुराइ और दबे पावं आगे बढ़ती हुई झोपड़ी तक पहुँची.
बिंदिया की झोपड़ी में दरवाज़ा नही था सिर्फ़ दरवाज़े के नाम पर एक कपड़े को पर्दे की तरह टाँग दिया था. बिंदिया ने रूपाली को बताया था के उसके घर में ऐसा कुच्छ नही जो चोरी हो सके इसलिए उसने दरवाज़े के बारे में कभी नही सोचा था. रुपई दरवाज़े के पास पहुँची और परदा धीरे से एक तरफ हटके अंदर झाँका.
उसका शक सही निकला. उसने जो सोचा था झोपड़ी में वही हो रहा था. चंदर अपना पाजामा नीचे किए खड़ा था और बिंदिया उसके सामने बैठ कर उसका लंड चूस रही थी. वो उपेर से नंगी थी और नीचे बस अपना घाघरा पहना हुआ था. रूपाली उन दोनो को साइड से देख रही थी. किसी का मुँह रूपाली की तरफ नही था इसलिए किसी का ध्यान दरवाज़े की तरफ नही गया. रूपाली चुप चाप देखने लगी.
बिंदिया नीचे बैठी पूरे जोश में चंदर के लंड को मुँह में अंदर बाहर कर रही थी और एक हाथ से उसके अंडे सहला रही थी. उसका दूसरा हाथ अपनी छातियों पर था जिन्हें वो खुद ही दबाने में लगी हुई थी. तभी चंदर के मुँह से एक आह निकली
"नही" बिंदिया ने ऐसे कहा जैसे चंदे को रोकना चाहती हो और लंड मुँह से बाहर निकाला पर तब तक जैसे देर हो चुकी थी. चंदर के लंड ने पानी छ्चोड़ना शुरू कर दिया जो आधा बिंदिया के चेहरे पे गिरा और आधा उसके उपेर से नंगे जिस्म पर.
"अभी से पानी निकल दिया?" बिंदिया गुस्से में चंदर की तरफ देखते बोली "अब तुझे खड़ा करने में फिर आधा घंटा लगेगा और तब तक मैं परेशान होती रहूंगी"
उसने फिर चंदर का लंड मुँह में ले लिए और फिर खड़ा करने की कोशिश करने लगी.
रूपाली समझ गयी के अभी चुदाई का प्रोग्राम शुरू ही हुआ है और अभी टाइम लगेगा. दिल ही दिल में उसने फ़ैसला किया के जिस काम से वो आई थी उसके लिए बेहतर है के वो अकेले ही जाए. बिंदिया से वो जो बात करना चाहती थी वो बाद में आकर कर सकती है.
रूपाली ने एक आखरी नज़र लंड चूस रही बिंदिया पर डाली और दरवाज़े से हटकर फिर खेत की तरफ आई. बिंदिया ने उसे बताया था के जहाँ तक नज़र पड़ती थी वो सब ज़मीन ठाकुर साहब की ही थी पर जिस जगह को रूपाली ढूँढना चाहती थी उसे उसमें कोई मुश्किल नही हुई. खेत में पानी देने के लिए छ्होटे नाली जैसी जगह बनी हुई थी जिसमें से बहकर पानी खेत के हर कोने में जाता था. अब वो सूख चुकी थी क्यूंकी बरसो से यहाँ कोई खेती नही हुई थी. ऐसी ही एक नाली के साथ साथ चलती रूपाली वहाँ पहुँची जहाँ उसने आने की कल सोची थी. खेत में लगे ट्यूबिवेल और वहाँ बने कमरे पर.
बिंदिया ने उसे बताया था के यूँ तो खेत में कोई 50 के उपेर ट्यूबिवेल थे पर जहाँ उसका पति मरा था वो ट्यूबिवेल उसकी झोपड़ी से थोड़ी ही दूर था. और यहीं पर उसके पति ने कामिनी को चुद्ते हुए भी देखा था.
रूपाली कमरे तक पहुँची. कमरे पर ताला लगा हुआ था. रूपाली ने अपने पर्स से दोनो चाबियाँ निकाली और एक चाभी से ताला खोलने की कोशिश की. पुराना ताला था इसलिए थोड़ा ज़ोर लगाना पड़ा पर ताला फ़ौरन खुल गया.
रूपाली ने ताला खोलकर अपने हाथ में लिए और दूसरी चाभी से कोशिश की. उससे भी वो ताला खुल गया.
रूपाली आँखें खोले कभी कमरे की तरफ देखती तो कभी ताले की तरफ. तो ये चाभी इस कमरे की थी पर सवाल ये उठता था के असली किसके पास थी. इसकी नकल उस आदमी से गिरी थी जो हवेली में रात को चोरी च्छूपे आता था तो कौन था वो? बिंदिया का मर्द इस कमरे में आता था तो चाबी उसके पास तो ज़रूर होगी. तो क्या रात को वो ही हवेली में आता था पर क्यूँ? रूपाली के दिमाग़ में ऐसे कई सवाल उठ खड़े हुए पर सबसे ज़्यादा उसे एक सवाल परेशान कर रहा था.
बिंदिया ने बताया था के उसके मर्द ने यहाँ कामिनी को चुद्ते हुए देखा था तो मुमकिन है के कामिनी के प्रेमी के पास इसकी चाभी थी. तो क्या वो रात को हवेली में आता था? और वो था कौन? और उसके पास चाबी आई कैसे? असली किसके पास थी? और सबसे ज़रूरी सवाल ये था के अगर कामिनी यहाँ आती थी तो इसकी चाभी कामिनी के पास से मिलनी चाहिए थी पर उसे तो चाबी अपनी सास की साडी में बँधी हुई मिली थी. उनके पास ये चाभी क्या कर रही थी और ये चाभी इतनी ज़रूरी क्यूँ थी के वो इसे अपनी साडी से बाँधके हमेशा अपने पास रखा करती थी?

रूपाली ने कमरे के अंदर कदम रखा. कमरे में कुच्छ नही था. एक खाली कमरे और उसके बीचे बीच एक कुआँ जिसमें ट्यूबिवेल की नाल अंदर तक जा रही थी. रूपाली को याद आया के बिंदिया ने बताया था के इसी कमरे में उसका पति की मौत हुई थी. रूपाली ने कुच्छ पल और वहीं गुज़ारे और दरवाज़ा बंद करके बाहर आ गयी.
उसके दिमाग़ में हज़ारों सवाल उठ रहे थे. अपनी ही सोच में खोई हुई वो फिर बिंदिया की झोपड़ी की तरफ चल पड़ी. उसे बिंदिया से एक ज़रूरी बात और करनी थी.
बिंदिया ने उसे दूर से ही आता देख लिया था और झोपड़ी के बाहर खड़ी उसका इंतजार कर रही थी.
"कहाँ से आ रही हैं मालकिन?" उसने रूपाली से पुचछा
"ऐसे ही आगे तक का चक्कर लगाके आ रही हूँ. आई तो असल में तुझसे मिलने ही थी" रूपाली ने कमरे पर लगा ताला और अपने पास रखी दोनो चाबियों की बात च्छूपा ली
"जब मैं यहाँ आई तो तू और चंदर दोनो लगे हुए थे. इसलिए मैने सोचा के जब तक तुम अपना काम ख़तम करो मैं ज़रा आगे तक टहल आऊँ" रूपाली ने कहा तो बिंदिया मुस्करा दी
"तुम्हें और कोई काम नही है क्या? जब देखो लगे रहते हो" रूपाली झोपड़ी के अंदर आई और चारपाई पर बैठ गयी
"नया नया जवान लड़का है मालकिन." बिंदिया ने उसे पानी का ग्लास देते हुए कहा "लंड खड़ा होना शुरू ही हुआ था के घुसने के लिए छूट मिल गयी इसलिए खून बार बार गर्मी मरता है उसका. कल तो पूरी रात सोने नही दिया. मुझे तो याद भी नही के कितनी बार छोड़ा होगा उसने मुझे. तका दिया था मुझे और सुबह मेरी आँख भी तब खुली जब उसने फिर सुबह सुबह अपना लंड मेरी छूट में डाला. पहली पायल थी तो तोड़ा रुका रहता था पर अब वो नही है तो हर वक़्त चढ़ा रहता है मुझपर. उसका बस चले तो मुझे नंगी ही रखे 24 घंटे"
रूपाली ने पानी का ग्लास फिर बिंदिया को थमाया और उसे गौर से देखने लगी
"मेरे पास ज़्यादा वक़्त नही है. हवेली में कुच्छ काम करवाना है इसलिए वापिस जाना होगा. तेरे से एक ज़रूरी बात करनी है" उसने बिंदिया से कहा
"हां कहिए" बिंदिया ने भी गौर से उसकी बात सुनते हुए कहा
"एक बात बता. पायल अब जवान हो गयी है. कभी उसकी शादी की नही सोची तूने?" रूपाली ने सोच तो बिंदिया ने एक लंबी आह भारी
"कई बार सोचा है मालकिन पर सर के उपेर एक पक्की छत तो डाल नही सकी आज तक, शादी का खर्चा कैसे उठाऊंगी समझ नही आता. और कौन करना चाहेगा उस ग़रीब की लड़की से शादी"
"मेरे पास एक रास्ता है अगर तू हाँ कह दे तो" रूपाली ने अपना हर लफ्ज़ ध्यान से चुना "अगर तू मेरी बात मान ले तो तेरे सर पर पक्की छत भी आ जाएगी, तेरी बेटी की शादी भी हो जाएगी और अपनी बाकी की ज़िंदगी तू ऐश से रहेगी"
"कैसे?" बिंदिया ने उतावली होते हुए पुचछा
"देख तू तो जानती ही है के ठाकुर साहब का कारोबार और सब ज़मीन जयदाद किस हाल में है. उनका परिवार भी खुद उनके साथ नही है. मैं चाहती हूँ के सब कुच्छ पहले के जैसा हो जाए और हमारा परिवार वापिस साथ में आ जाए" रूपाली ने कहा
बिंदिया ने हां में सर हिलाया
"कभी कभी सही चीज़ को हासिल करने के लिए ग़लत रास्ते पर जाना पड़ता है और ऐसा ही कुच्छ करना पड़ रहा है फिलहाल मुझको. मैं चाहती हूँ के मेरा दूसरा देवर तेज हवेली वापिस आ जाए. वो कभी कभी महीनो घर से गायब रहता है पर मैं चाहती हूँ के वो वहीं हवेली में रहकर अपने कारोबार पर ध्यान दे, अपने पिता का हाथ बटाये पर इसके लिए ज़रूरी है उसे हवेली में रोकना" रूपाली ने बात जारी रखी
बिंदिया ने फिर हां में सर हिलाया
"मैं अच्छी तरह से जानती हूँ के तेज इतना पैसा कहाँ उड़ा रहा है और उसकी रातें कहाँ गुज़रती हैं. औरतों का शौकीन है वो" रूपाली ने कहा
"ये बात तो पूरा इलाक़ा जनता है मालकिन" बिंदिया ने अपनी बात जोड़ी
"हां. इसलिए मैने सोचा के तेज को रोकने का सबसे अच्छा तरीका ये है के जिस चीज़ के लिए वो बाहर मुँह मारता फिरता है वो उसे घर में ही हासिल हो जाए" रूपाली धीरे धीरे मतलब की बात पर आ रही थी
"मैं समझी नही" बिंदिया ने कहा
"एक औरत. एक चूत जो उसके लिए हर वक़्त हासिल हो. अगर तू हवेली में आकर रहने को राज़ी हो जाए और बिस्तर पर तेज को खुश रखे तो मैं तुझे हवेली के कॉंपाउंड में ही रहने के लिए कमरा दे दूँगी, पैसे दूँगी और तेरी बेटी की शादी का सारा खर्चा मैं उठाओँगी" रूपाली ने आखरी चोट की
बिंदिया के चेहरे से जैसा रंग उड़ गया. वो आँखे फाडे रूपाली को देखने लगी.

"आप जानती हैं आप क्या कह रही है?" बिंदिया ने रूपाली को देखते हुए कहा
"हां मैं जानती हूँ मैं क्या कह रही हूँ......." रूपाली ने कहा ही था के बिंदिया ने उसकी बात काट दी
"नही आप नही जानती मालकिन. आप मुझे एक रंडी बनने को कह रही हैं. अपने जिस्म का सौदा करने को कह रही हैं. आपने सोचा के मैं चंदर से चुदवा लेती हूँ तो किसी से भी चुदवा लूँगी पर आपने ग़लत सोचा" बिंदिया गुस्से में बोली
"ठीक है" रूपाली ने कहा " हां मैं तुझे कह रही हूँ के तू अपने जिस्म का सौदा कर. इसे अपने पास रखके आज तक कर भी क्या लिया तूने. एक पुरानी झोपड़ी में रह रही है. 17-18 साल के एक लड़के से अपने जिस्म की आग को ठंडा कर रही है ना अपने जिस्म पे ढंग के कपड़े डाल सकी ना अपनी जवान होती बेटी के."
बिंदिया चुप रही
"देख बिंदिया. मैं ये बात तुझसे इसलिए कह रही हूँ क्यूंकी मेरा तेरा रिश्ता दोस्ती जैसा है. तू मेरे काम आ और मैं तेरे काम आऊँगी. जितना पैसा चाहिए दूँगी. और मैं तुझे कौन सा कहीं कोठे पे जाके बैठने को कह रही हूँ. बस एक तेज का तुझे ध्यान रखना होगा. वो जब कहे बिना इनकार के कपड़े उतारने होंगे. उसके बदले में मैं तेरी ज़िंदगी बदल दूँगी. दो वक़्त का खाना बिना किसी तकलीफ़ के, सर पर छत, मुँहमांगा पैसा और तेरी बेटी की बेहतर ज़िंदगी. सोच ले बिंदिया. अपने नही तो अपनी बेटी के बारे में सोच." रूपाली ने बिंदिया को समझाते हुए कहा
"पर मैं ही क्यूँ?" बिंदिया ने पुचछा तो रूपाली समझ गयी के वो धीरे धीरे लाइन पे आ रही है.दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा आपसे पूछता हूँ क्या आपको लगता है रूपाली अपने देवर तेज को इन दो औरतो के सहारे सुधार सकती है
मुझे आपके जबाब का इंतजार रहेगा -राज शर्मा
"इसलिए के तू हमारे खानदान की वफ़ादार है. तू खूबसूरत है, तेरा जिस्म तो एक 17 साल के लड़के को भी दीवाना बना सकता है" रूपाली ने कहा तो बिंदिया समझ गयी के वो चंदर की तरफ इशारा कर रही है और धीरे से मुस्कुरा दी. रूपाली समझ गयी की बात बन चुकी है. उसे अंदाज़ा नही था के बिंदिया इतनी आसानी से मान जाएगी
"कल जब तू हवेली से निकली तो तेज पलटकर तुझे जाते हुए देख रहा था. नज़र तेरी गान्ड पर थी. तब मुझे ये तरकीब सूझी थी. बोल क्या कहती है?" रूपाली ने कहा
"पर चंदर?" बिंदिया ने फिर सवाल किया
"अरे चंदर को भी साथ ले आना. वहीं हवेली में रह लेगा और काम में हाथ बटा देगा. इसे भी कुच्छ पैसे दे दिया करूँगी मैं." रूपाली बोली "और फिर तेरे भी मज़े हो जाएँगे. सारा दिन कभी चंदर तो कभी तेज"
रूपाली ने हस्ते हुए कहा तो बिंदिया भी साथ हस्ने लगी
"मुझसे सोचने के लिए कुच्छ वक़्त चाहिए मालकिन" बिंदिया ने कहा तो रूपाली ने फ़ौरन हां कर दी
"सोच ले" वो कहती हुई उठी और झोपड़ी से बाहर निकली "तू नही तो मैं और किसी को ले आऊँगी. तू अच्छी तरह से जानती है के गाओं में कोई भी लड़की मेरी इस शर्त पर हवेली में आ जाएगी. पर मैं चाहती हूँ के तू आए"
रूपाली ने बात ख़तम की और बिना बिंदिया के जवाब का इंतेज़ार किए अपनी कार की तरफ चल पड़ी. अपने दिल में वो जानती थी बिंदिया का जवाब हां ही है और वो हवेली ज़रूर आएगी.

हवेली पहुँचकर रूपाली का गुस्सा सातवे आसमान पर पहुँच गया. वो जानते हुए तेज को जो काम कहकर गयी थी वो तो क्या शुरू होता खुद तेज फिर से गायब था. गुस्से में पैर पटकती रूपाली ने हवेली में कदम रखा तो सामने भूषण मिला
"तेज कहाँ है?" उसने भूषण से पुचछा
"पता नही. वो तो आपके जाने के थोड़ी देर बाद आए और फ़ौरन कहीं चले गये" भूषण ने जवाब दिया
"ह्म्‍म्म्म" रूपाली का गुस्से का घूँट पीते हुए कहा "पायल कहाँ है?"
"उपेर अपने कमरे में" भूषण ने जवाब दिया. रूपाली का गुस्सा उसे भी सॉफ नज़र आ रहा था इसलिए काफ़ी धीमी आवाज़ में जवाब दे रहा था
रूपाली उपेर अपने कमरे में पहुँची. सॉफ ज़ाहिर था के तेज को आवारापन बंद करना उतना आसान नही था जितना वो सोच रही थी. उसे जो भी करना था जल्दी करना था. तेज उसके कहने से हवेली में रुक तो गया था पर कब तक रुकेगा ये बात वो खुद भी नही जानती थी. रूपाली की समझ नही आ रहा था के क्या करे. बिंदिया से तेज के बारे में बात करने से पहले रूपाली ने लाख बार सोचा था. अगर बिंदिया ना मानती और इस बात का जिकर किसी और से कर देती के भाभी खुद अपने देवर के लिए चूत ढूँढती फिर रही है तो रूपाली कहीं की ना रहती. ये बात अगर ठाकुर साहब या खुद तेज के कानो में पड़ जाती तो खुद अपने ही घर में रूपाली की इज़्ज़त मिट्टी में मिल सकती थी.इसी सोच में उसने अपने कमरे के बीच का दरवाज़ा खोला और पायल के कमरे में आई. पायल अपने कमरे में बेख़बर सोई पड़ी थी.
रूपाली ने पायल पर एक भरपूर नज़र डाली. उसके प्लान का एक हिस्सा तो कामयाब हो चुका था. बिंदिया को उसने बॉटल में उतार लिया था पर वो जानती थी के तेज उन मर्दों में से नही जो एक औरत तक सिमटकर रह जाएँ. वो भले कुच्छ दिन शौक से बिंदिया को चोद लेता पर दिल भरते ही फिर चलता बनता. रूपाली अच्छी तरह जानती थी के उसके लिए उसे एक और चूत का इंतज़ाम करना पड़ेगा और वो चूत उसे उस वक़्त पायल में नज़र आ रही थी. अगर एक ही घर में एक भरी हुई औरत और एक कमसिन कली एक साथ चोदने को मिले और वो भी दोनो माँ बेटी तो वो ज़रूर तेज को घर पर ही रोक सकती थी और इसी दौरान उसे उसका ध्यान अपने कारोबार की तरफ मोड़ने का वक़्त मिल सकता था. पर उसे जो भी करना था जल्दी करना था. वो ये भी अच्छी तरह जानती है के पायल भले ही जिस्म से एक पूरी औरत हो गयी थी पर थी वो अभी बच्ची ही. उसे पायल के साथ जो भी करना था बहुत सोच समझकर और पूरे ध्यान से करना था वरना बात बिगड़ सकती थी.
उसने पायल को आवाज़ देकर जगाया. पायल हमेशा की तरह घोड़े बेचकर सो रही थी. रूपाली ने बड़ी मुश्किल से उसे आवाज़ दे देकर जगाया. पायल ने उठकर उसकी तरफ देखा.
"कितना सोती है तू?"रूपाली ने थोड़ा गुस्से से कहा
"माफ़ करना मालकिन" पायल फ़ौरन उठ खड़ी हुई
"हाथ मुँह धो और नीचे पहुँच. मुझे हवेली के नीचे वाले हिस्से की सफाई करवानी है. बरसो से उधर कोई गया भी नही." रूपाली ने कहा और अपने कमरे में आ गयी.
हवेली के नीचे एक बेसमेंट बना हुआ था जिसका दरवाज़ा हवेली के पिछे की तरफ था.वो हिस्सा ज़्यादातर पुराना समान रखने के लिए स्टोर रूम की तरह काम आता था. इस हवेली में जो भी चीज़ एक बार आई थी वो कभी बाहर नही गयी थी. इस्तेमाल हुई और फिर नीचे स्टोर रूम में रख दी गयी. पुराना फर्निचर, कपड़ो से भरे पुराने संदूक बेसमेंट में भरे पड़े थे. रूपाली उस हिस्से की भी तलाशी लेना चाहती थी और क्यूंकी इस वक़्त घर पर कोई नही था, तो ये वक़्त उसे इस काम के लिए बिल्कुल ठीक लगा पर बेसमेंट में अकेले जाते उसे डर लग रहा था. बरसो से वहाँ नीचे किसी ने कदम नही रखा था इसलिए उसने अपने साथ पायल को ले जाने की सोची.
थोड़ी देर बाद रूपाली बेसमेंट की चाभी लिए हवेली के पिच्छले हिस्से में पहुँची. उसके साथ पायल थी जिसके हाथ में टॉर्च थी. रूपाली ने बेसमेंट का दरवाज़ा खोला. सामने नीचे की और जाती सीढ़ियाँ था और घुप अंधेरा होने की वजह से 10-12 सीढ़ियों से आगे कुच्छ नज़र नही आ रहा था.
"यहाँ तो बहुत अंधेरा है मालकिन" पायल ने कहा
"तो ये टॉर्च क्या तू गिल्ली डंडा खेलने के लिए लाई है?" रूपाली ने चिढ़ते हुए कहा और पायल के हाथ से टॉर्च लेकर आगे बढ़ी.

रूपाली धीरे धीरे सीढ़ियाँ उतरती नीचे पहुँची. उसके पिछे पिछे पायल भी नीचे आई. रूपाली ने नीचे आकर टॉर्च को चारों तरफ घुमाया. हर तरफ पुराना फर्निचर, पुराने बेड्स, कुच्छ पुराने बॉक्सस और ना जाने क्या क्या भरा हुआ था. हर चीज़ पर बेतहाशा धूल चढ़ि हुई थी. मकड़ियों ने चारो तरफ जाले बना रखे थे. रूपाली ने टॉर्च की लाइट चारो तरफ घुमाई. उसका अंदाज़ा सही निकला. नीचे बेसमेंट में भी लाइट का इंतज़ाम था. स्विच दरवाज़े के पास ही था. ये रूपाली की किस्मत ही थी के बेसमेंट के बीच लगा बल्ब अब भी काम कर रहा था और स्विच ऑन होते ही फ़ौरन जल उठा. हर तरफ रोशनी फेल गयी.
रूपाली आज पहली बार इस बेसमेंट में आई थी. उसने जितना बड़ा सोचा था बस्मेंट उससे कहीं ज़्यादा बड़ा था पर आधा हिस्सा खाली था. सारा पुराना समान हवेली के एक हिस्से में काफ़ी सलीके से लगाया हुआ था.
"यहाँ की सफाई तो बहुत मुश्किल है मालकिन" पायल ने कहा तो रूपाली उसकी तरफ पलटी.
पायल ने एक सफेद रंग की कमीज़ पहेन रखी थी. बहुत ज़्यादा गर्मी होने की वजह से वो दोनो ही पसीने से बुरी तरह भीग गयी थी. पायल की कमीज़ पसीने से भीग जाने के कारण उसके शरीर से चिपक गयी थी और उसके काले रंग के निपल्स कमीज़ के उपेर से नज़र आ रहे थे.
"तुझे मैने वो ब्रा क्या समान तोलने के लिए दे रखी हैं?" उसने पायल से पुचछा. "पहेनटी क्यूँ नही?"
पायल ने अपने सीने की तरफ देखा तो समझ गयी के रूपाली क्या कह रही थी. उसने फ़ौरन हाथ से पकड़के कमीज़ को झटका जिससे वो उसके जिस्म से अलग हो गयी
"पहेनटी क्यूँ नही है?" रूपाली ने दोबारा पुचछा
"जी वो बहुत फसा फसा सा महसूस होता है" पायल ने कहा
"अब तूने इतनी सी उमर में ये इतनी बड़ी बड़ी लटका ली हैं तो टाइट तो लगेगा ही. बिना उसे पहने घर में घूमेगी तो सबसे पहले नज़र तेरी इन हिलती हुई चूचियों पर जाएगी सबकी. घर में ठाकुर साहब होते हैं, तेज होता है, भूषण काका हैं. शरम नही आती तुझे?" रूपाली पायल को डाँट रही थी और वो बेचारी खड़ी चुप चाप सुन रही थी.
"जी अबसे पहना करूँगी" पायल ने जैसे रोते हुए जवाब दिया
पायल ने फिर चारों तरफ बेसमेंट पर नज़र डाली. उसे समझ नही आ रहा था के कहाँ से सफाई शुरू करवाए.
"चल एक काम कर. वो कपड़ा उठा वहाँ से और इन सब चीज़ों पर से सबसे पहले धूल झाड़ कर सॉफ कर. झाड़ू बाद में लगाते हैं" उसने पायल से कहा
पायल गर्दन हिलाती आगे बढ़ी और झुक कर सामने रखा कपड़ा उठाया
"क्या कर रही है?" रूपाली ने कहा तो वो फिर पलटी और सवालिया नज़र से उसकी तरफ देखने लगी. वो तो वही करने जा रही थी जो रूपाली ने उसे करने को कहा था
"ये जो कपड़े तूने पहेन रखे हैं ना तेरी माँ ने नही दिए तुझे. मैने दिए हैं. मेरी ननद के हैं और बहुत महेंगे हैं. इन्हें पहेंकर सफाई करेगी तो ये फिर पहेन्ने लायक नही बचेंगे" रूपाली ने कहा
पायल बेवकूफ़ की तरह उसकी तरफ देखने लगी. पायल क्या कहना चाह रही थी ये उसकी समझ में नही आ रहा था
"अरे बेवकूफ़ अपनी कमीज़ उतारकर एक तरफ रख और फिर सफाई कर" रूपाली ने कहा
पायल पर जैसे किसी ने पठार मार दिया हो.
"जी?" उसे ऐसे पुचछा जैसे अपने कानो पर भरोसा ना हुआ हो
"क्या जी?" रूपाली ने कहा "चल उतार जल्दी और काम शुरू कर"
"पर" पायल हिचकिचाते हुए बोली "मैने अंदर कुच्छ नही पहेन रखा"
"हां पता है. देखा था मैने अभी" रूपाली ने कहा "तो क्या हुआ? यहाँ कौन आ रहा है तेरी चुचियाँ देखने? यहाँ या तो मैं हूँ या तू है. और रही मेरी बात तो जैसी 2 तेरे पास हैं वैसी ही मेरे पास भी हैं. चल उतार अब"
पायल अब भी रूपाली की तरफ देखे जा रही थी. जब वो थोड़ी देर तक नही हिली तो रूपाली ने गुस्से से उसकी तरफ घूरा
"तू उतार रही है या ये काम मैं करूँ?"
पायल ने जब देखा के रूपाली का कहा उसे मानना पड़ेगा तो उसे कपड़ा एक तरफ रखा और अपनी कमीज़ उतार दी. वो उपेर से बिल्कुल नंगी हो गयी. बड़ी बड़ी पसीने में भीगी उसकी दोनो चूचियाँ आज़ाद हो गयी.
"ला ये मुझे पकड़ा दे" रूपाली ने उसके हाथ से कमीज़ लेते हुए कहा .दोस्तो बाकी कहानी अगले भाग मैं

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