Tuesday, March 16, 2010

कामुक कहानिया -सेक्स मशीन-2

राज शर्मा की कामुक कहानिया
सेक्स मशीन-2
आने वाले ख़ास्स मेहमानो मे शामिल थे, सुजाता,पेर्वेर्टेड सूपरवाइज़र ऑफ गर्ल्स रिमांड होम, और उसके साथ तकरीबन 17साल की एक, खूबसूरत, भरे बदन वाली डरी सहमी लड़की. जिसका नाम था कविता, उस पर इल्ज़ाम था अपने बाप की हत्या का, जिसके बारे मे कविता का कहना था उसने अपने बाप को नही मारा, बल्कि, वो शराब केनशे मे, उस वक़्त घर मे पड़ी दराती पे गिर गया था, जब वो कविताकी मा को फुटबॉल समझ कर लात से उछाल रहा था, लेकिन पुलिसे तो पुलिसे थी, जिन्हे केस 'सुलझाना' था, और उन्होने वो सुलझा लिया था,बेकसूर कविता को मुजरिम के रूप मे पकड़ कर.......... नाबालिग होनेपर उसे भेज दिया गया था, रिमांड होम,...सुजाता जैसे जल्लाद के हाथो जलील होने और बे आबरू होने के लिए.......... और उसी फलस्वरूप,आज वो सुजाता के साथ यहा मौजूद थी, डरी सहमी.
जब वो वर्षा के घर पहुचे तो वाहा मुन्ना का 'ट्रैनिंग' प्रोग्राम जोरो से चल रहा था, वर्षा, रोहित और मुन्ना तीनो ही पूरी तरह सेनग्न थे और वर्षा रोहित से चुदवा रही थी, मुन्ना को रन्निंग कॉँमेंट्री की तरह बता रही थी की कैसे, चोदा जाता है, एक औरतको, लड़की को....... मुन्ना भी एक्शिटेड था यह 'ब्रह्मा ज्ञान' पाने केलिये.....उसक दोस्त रोहित तो एक्सपर्ट हो ही गया था.
जब डोर बेल बाजी, तो वर्षा ने खुद उठ कर दरवाज़ा खोला,.....कपड़े पहनने की क्या ज़रूरत थी, वो तो जानती थी कौनआने वाली हैं ........ और वो ग़लत निकलती तो...?.......तो भी क्याफ़र्क पड़ने वाला था.
"अरे आओ सुजाता डार्लिंग ....ये कौन है".....वर्षा ने इशारे से पूछा" ये हमारा आज का नया खिलौना है....... और तू साली.... नंगी घूम रही है घर मे"........सुजाता ने कहा .... दरवाज़ा खोलने के लिए आई नंगी वर्षा को देख ते ही कविता मानो सांस लेना ही भूल गयी...... ऐसा नन्गपन उसने कभी देखने की बात तो छ्चोड़ ही दो, सपने मैं भी नही सोचा थ.....वो डर के मारे सुजाता के पीछे छुपनेलगी........ जान बचाने के लिए बकरी, कसाई के पीछे च्छूप रही थी.
"अब तेरे से क्या शर्म करना ...... और तुम्हे भी तो कपड़े अच्छे नही लगते बदन पर"....आओ अंदर आओ".......वर्षा बेशर्म सी कुत्सित हसी.
कविता अंदर आने से घबरा रही थी, लेकिन सुजाता ने उसका हाथ पकड़ कर घसीटते हुए उसे अंदर ले आई.......... वर्षाने पीछे दरवाज़ा बंद कर दिया.
जैसे ही वो अंदर आ गयी, सबके अपने अपने अलग अलग रिएक्शन्स थे. मुन्ना और रोहित दोनो के चेहरे पर असीम हैरानी के भाव थे, और दोनो ही तुरंत अपने आप को छुपाने की कोशिश करने लगे, तो उधर कविता का चेहरा सफेद पड़ चुका था, वो स्मझ चुकी थी यहा कुछ बुरा होने वाला है, उसकी आँखे भर आई, वो रोने लगी....... औरवर्षा, सुजाता के चेहरे वहशियाना, विकृत खुशी के भाव थे.


"रो क्यू रही है...तुझे क्या लगा यहा तुझे राखी बंधवाने लाई हु.....रोन धोना बंद कर.... चुप चाप जो कहा जाए वो कर..... वरनातेरे पर एक और इल्ज़ाम लगाकर फिट कर दूँगी ........ सारी उमर जैल मेसदेगी ...समझी"........ ये वो कह रही थी, जिसके पीछे कविता छिपीथी,
अपने आपको बचाने....... और उसके सामने खड़ी थी...... जैसेख़ूँख़ार शेरनी के सामने खड़ी हिरनि हो........ ना हिरनि बचतीहै, ना कविता बचने वाली थी."इनमे से रोहित कौन सा है वर्षा डार्लिंग"......सुजाता को अब कपड़े सहन नही हो रहे थे, जब कविता को छोड़ कर सभी नंगे थे, तो उसेतो कपड़ो से नफ़रत थी."रोहित... यहा आओ.."........वर्षा ने आवाज़ लगाई ......रोहित की हालत भी एक तरह से कविता से अलग नही थी, पर वो मरद था, और अनाथ आश्रम मे रहकर, काफ़ी कुच्छ सह चुका था ....वो आगे आया.
"ओह्ह.. हाँ ...ये तो पक्का सांड है, यार.... बढ़िया".....सुजाता रोहित के गढिले बदन से ज़्यादा उसकी लटक रही तीसरी 'टांग' से ज़्यादाप्रभावित थी."और ये है ... हमारा मुन्ना .... अभी प्रोबेशन परहै... लेकिन बड़ी तेज़ी से सीखता है"..........वर्षा ने मुन्ना को भी रीकमंड किया."हाँ यार....ये कविता के लिए ठीक रहेगा"......सुजाता अब अपने कपड़ो से पूरी तरह से मुक्ति पा चुकी थी."मुन्ना इसका रास्ता चौड़ा बना देगा, फिर रोहित की आवाजाही शुरू कर देंगे"......दोनो ही भद्दी,पैशाचिक,विकृत हसी हसने लगी
क्या औरते सभी ऐसे ही होती हैं...?क्या उसकी मा भी...? जिसनेउसे पैदा होते ही फेक दिया था, वो क्या अलग होगी इनसे ..... लेकिन येकविता, ये तो भली लड़की लग रही है ......... तो क्या पहले मुन्ना,फिर वो, इश्स मासूम पे अत्याचार करेंगे .... नही, नही ये नही हो सकता ....वो आंदोलित हो रहा था


.....वर्षा की बातें उसने मानी थी,उसे जी भर के चोदा था, लेकिन तब उसे नही मालूम था, उसे यूँ वेश्याओं की तरह इस्तेमाल किया जाएगा ...... वो तो समझा था की उसे सिर्फ़ वर्षा को खुश करना है, अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिये....येसब क्या हो रहा है, और अब मासूम मुन्ना भी .....उसकी वजह से..... हेभगवान
"क्या हो गया है रोहित बेटे,.....मैं तुम्हे पसंद नही आई क्या"........सुजाता उसे चिपक ती सी बोली रोहित का मान घृणा से भर आया और वर्षा यही चाहती थी, रोहित हर किस्म की, हर उमर की,हर रंग रूपकी औरत को संतुष्ट कर सके....... आज अगर ये सुजाता को चोद कर ठंडा कर देता है, तो फिर वो किसी भी औरत को चोद सकता है , एक सेक्स मशीन की तरह.और कविता को लाया गया था 'चारे' के रूप मे....!रोहित असमंजस मे था, अब तक वो सोच रहा था की, उसे सिर्फ़ वर्षा को ही खुश करना है,....और अपने साथ साथ वो मुन्ना को इश्स मे इसीलिए लाया था, की जो सुविधा उसे मिल रही थी, वो मुन्ना को भी मिले........लेकिन यहा तो एक मासूम की बलि दी जराही थी,.....ये तमाशा देखने को मरी जा रही थी दो शैतानी, विकृत, मानसिकता की औरते."क्या सोचने लगे रोहित....." सुजाता ने फिर से पुचछा'
जी कुछ नही माँ... .बस यूँही.... वो क्या.. है.. इश्स लड़की ....कविता को अभी ..करना .....ज़रूरी .....है ..क्या..?........रोहित डर ते डर ते बोल रहा था.
"स्साले मा के लॉड,.... तेरी बहन लगती है क्या वो ..... सुनमदारचोड़ ... तेरे को सिर्फ़ वही करना है जो तेरे को करने को कहा जाए ......अगर नखरे, या शराफ़त की मा चुडओगे, ....तो जैल मे जाओगे, अपने इश्स मुन्ना सहित .......इल्ज़ाम होगा ......नाबालिग लड़की पर रेप करने का ....जो की हम करवायगे ......और इल्ज़ाम लगाए गी ये कविता .......समझा की नही ... बहन्चोद..?
एक तो रोहित पहले से ही दबा हुआ था, अनाथ आश्रम मे पल बढ़ने से, ये गालिया उसके लिए नयी नही थी, बचपन से एक भी दिन नही गयाथा, जिस दिन उसने गालिया नही खाई हो........लेकिन आज जो धमकी उसेमिली थी, जैल भेजने की,...रेप के इल्ज़ाम मे....उसने उसे अंदर तक हिला दिया ...... नाबालिग लड़की पर रेप का इल्ज़ाम लगने के बाद तो, अच्छा आदमी बनना तो सिर्फ़ एक सपना बन कर रह जाएगा .......जैल की दुनिया उसकी जिंदगी ही बदल देगी ....उसके साथ साथ मुन्ना की भी .......वो समझ गया इन पेर्वेर्ट औरतो की बात मानने के अलावा, उसके सामने कोई चारा नही है.उसने मुन्ना की तरफ देखा, वो तो बौखलाया सा उसी कि तरफ देखरहा था,....उसने कविता की तरफ देखा, 17 साल की वो लड़की, शायद अपनी तकदीर का फ़ैसला समझ चुकी थी, हथियार डाल चुकी थी,....उसने वर्षा की तरफ देखा,...वो छीनाल, सुजाता की चुचि चूस रही थी,..चूत सहला रही थी ....रोहित ने एक आह सी भारी .....आख़िर उसने भी हथियार डाल दिए."माँ आप जो भी कहे 'हम' करने के लिए तैय्यार हैं."बहुत बढ़िया ....लड़के होशियार हैं, वर्षा .....बात की नज़ाकत को जल्दी समझते हैं ...तेरा क्या ख़याल है वर्षा, कहा से शुरू करे ...?'रोहित को तो तुम लेलो, तुम्हे इसकी ज़्यादा ज़रूरत है...... कविता मुन्ना को दे देते हैं .....मैं आज तुम्हे देखूँगी ....बीच बीच मे आती रहूंगी''...........इंसान को इश्स तरह बाँटा जा रहा था, जैसे वो भेड बकरिया हो.अब बारी कविता की थी,'" अब तू क्या देख रही है स्साली,तेरे को मेहंदी लगाकर, लाल जोड़ा पहनाकर बिस्तर पर बिठाउ क्या,तेरी सुहागरात मनाने के लिए ..........चल उतार कपड़े,...और लेले अपने मुन्ना का लंड मूह मे"........ये सुजाता कोई बात नॉर्मल ढंग से नही कर सकती क्या ......वर्षा जैसी छीनाल भी सोच मे पड़ गयी.कविता एक एक करके कपड़े उतारने लगी,..आर्ग्युमेंट करने का, या रहम की भीक माँगने का कोई सवाल ही नही पैदा होता था.5'4''की हाइट से मेल ख़ाता, गतिला जिस्म नग्न होता जा रहा था, कली की एकएक पंखुड़ी नोची जा रही थी ....उसका,उस रात का 'पति' मुन्ना, आँखे फाड़ कर उसे देख रहा था ........ज़्यादा बड़ी नही, ज़्यादा छ्होटी नही,मीडियम साइज़ की ठोस छातिया, सुघड़ बलखाती कमर, लंबी, ठोस टाँगे .....टाँगो के बीच, वो मुलायम बालो का जंगल,...और सही गोलैइया लिए कूल्हे ....मुन्ना पर उस माहौल मे भी, नशा छाने लगा ....जो उसके खड़े होते जा रहे रॉड से साफ जाहिर हो रहा था.सुजाता ने कविता को सोफे पर बिठाया, मुन्ना को इशारे से पास बुलाया,..." चल शुरू होज़ा..." सुजाता की कड़ाकाती आवाज़..कविता ने एक बार मुन्ना की आँखो मे देखा ...अपनी कोई ग़लती ना होते हुए भी मुन्ना आँखे चुराने लगा.फिर अगले ही पल, कविता ने उसका लंड अपने मूह मे ले लिया ........मुन्ना की आहह निकल गयी ...मुलायम, नाज़ुक होंठो का गरम स्पर्श....... उत्तेजना बढ़ने लगी.उधर रोहित अब सुजाता की गालियो का, बदतमीज़ी का बदला उतारने लगा,....अब तक रोहित को गंदी गा आलियो से नवाज्ञे वाली, सुजाता अब छटपटा रहीथी ...चिल्ला रही थी ......रोहित ने सीधे उसकी गांद पर हमला बोल दिया थावर्षा बारी बारी, कभी कविता, तो कभी सुजाता, के जिस्मा से खेल रही थी.सबसे रंगत दार खेल हो रहा था, मुन्ना और कविता का,.....शुरुआत भले ही मजबूरी मे हुई थी ......कुदरत का करिश्मा तो होना ही था ....जब दो जवान जिस्म एक दूसरे से लिपट जाए तो आग तो लगनी ही थी .....सोलगी ...दोनो तरफ बराबर लगी ......और जब बुझी तो उसमे, कविता का कौमार्या, और मुन्ना का ब्रह्मचर्य....दोनो ही स्वाहा हो गये थे सुजाता, करीब दो घंटे, रोहित के नीचे पिसति रही, हर संभव छेद मे रोहित 'आया' थ......जिस्को जिभर कर गालिया दी थी, वो गंदी नाली का कीड़ा ही अब सुजाता को 'बड़ा प्यारा' लग रहा था ........इन सबमे बगैर आक्चुयल चुदाई किए वर्षा फ़ायदे मे रही थी ......क्यो की रोहितने सुजाता जैसी घृणास्पद औरत को चोदा था, जो वरशा के प्लान की कामयाबी की गॅरेंटी थी सुजाता रोहित के पर्फॉर्मेन्स से इतनी खुश थी, की उसने रोहित से कविता को चुदवा कर, उसका 'रास्ता' चौड़ा करने का विचार त्याग दिया.उसके इश्स फ़ैसले से, मुन्ना,रोहित और कविता तीनो ही खुश थे.

"भाई एक बात पुच्छू,,?"...मुन्ना ने हिचकिचाते रोहित को पुचछा"हाँ पुछो ...""वो..क..क..कल. रात जो हुआ ....भाई वो अच्छी लड़की थी ....मैने उसके साथ....
.""नही मुन्ना, तूने कुछ ग़लत नही किया .....अगर तू नही करता ...तो वो उसे ,ज़रूर किसी और से रेप करवाती ...और फिर ....हम दोनो ही सलाखो के पीछे होता ........उसकी आबरू तो लूटी ही जाती ....और हम भी नही बचते ...तू अपने आप को दोष मत दे'.......... रोहित ने उसे सांत्वना देने की कोशिश की
मुन्ना कुछ देर चुप रहा, लेकिन उसके जेहन से कविता की वो नज़र नही जा रही थी, जब वो मुन्ना का लंड मूह मे ले रही थी, कितना दर्द था, कितनी मजबूरी थी, कितनी याचना थी ......मुन्ना को लग रहा था, जैसे वो कह रही थी .....तुम अच्छे हो, मैं जानती हू तुम बहोत अच्छे हो .....तुम्हारी भी मजबूरी है......लेकिन मैं भी बुरी नहीहू.... मैं भी मजबूर हू .....प्लीज़ मेरी मदद करो... प्लीज़ मुन्ना की आँखो से दो बूंदे टपक पड़ी ...आत्मग्लानि... पासचताप ...मजबूरी,क्या नही था उसमे.....रोहित ने जब मुन्ना की आँखो मे आँसू देखे तो,....उसकी भी आँखे बरस पड़ी .....क्यो की वो भी तो मजबूर था .....कुछ भी नही कर पाया था ,....ना अपने लिए, ना मुन्ना के लिए,ना मासूम कविता के लिए .......अछा आदमी,पढ़ा लिखा आदमी बनाने की चाह उसे, और उसके साथ मुन्ना को भी नरक की दलदल मे धसा रहीथी .......जितना अब वो निकल ने की कोशिश करता, उतना ही उंड़र डूब रहा था ....उसने लपक कर मुन्ना को गले लगाया ....दोनो ही एक दूसरेसे लिपट कर कुछ देर रोते रहे........थोदि देर बाद रोहित ने अपने आपको संभाला...."मुन्ना सुबह से मैं एक बात सोच रहा हू.....'"क्या...""कलरात जो हुआ ....उससे मुझे लगता है.... अगर हमे इस नर्क से छुटकारा पाना है तो ......"...... रोहित बोलते बोलते रुक गया,... उसे समझ नहीआ रहा था, वो मुन्ना को किन शब्दो मे अपनी बात कहे.
"बोलो भाई रुक क्यू गये..... और भाई प्लीज़. कविता के लिए भीकुछ....".........अब बोलते बोलते रुकने की बारी मुन्ना की थी, साथ ही वो थोड़ा शर्मा भी रहा था."पगले तुझे क्या लगा. मैं सिर्फ़ हम दोनो के ही बारे मे सोच रहा हू ...मैं जानता हू तेरे मन मे कविता के लिए, कुछ पनप रहा है .....हैना...'""भाई वो .....मुझे नही पता.... लेकिन वो अच्छी लड़की है भाई...""मैं जनता हू ....तू मेरी बात गौर से सुन ....तुझे थोडा अजीब तो लगेगा,लेकिन ठंडे दिमाग़ से सोचेगा, तो तू भी मान लेगा की यही रास्ता है हम सब को इस नरक से छुटकारा दिलाने का""भाई मुझे तुम पर पूरा यकीन है .....तुम बताओ तो सही""तो सुन....देख..कल मैने उस साली सुजाता को जो जम के चोदा, उसका फ़ायदा ये हुआ की उसने कविता को तुम्हारे पास ही रहने दिया ...वरना उसका इरादा तो तुम जानते ही हो क्या था....""हाँ भाई,....वो कमिनि तुमसे भी,कविता को......'.......मुन्ना बात पूरी नही कर सका"अब इसे हम इस नज़रिए से देखे, तो तुम आसानी से समझ जाओगे,....अगर हम कुच्छ दिन और इन लोगो की हर बात मानते जाए, बेहिचक...तो कुच्छ बाते हम मनवा भी सकते हैं ....सब से पहले कविता को छुड़ाने का प्रबंध करेन्गे......फिर हमारे बारे मे सोचेन्गे...क्यु क्या कहता है"कविता को सब से पहले छुड़ाने की बात सुनकर,मुन्ना रोहित को ऐसे देखने लगा जैसे कविता बस फ्री हो गयी हो ...और उसे बड़े प्यार से निहार रही हो."हे मुन्ना कहा खो गया तू .....अभी इसमे टाइम लगेगा ...तूने तो अभी से ख्वाब देखने भी शुरू किए"मुन्ना बेहद शरमाया, जैसे भाई ने उसे चोरी करते पकड़ा हो."सुन कल वर्षा और सुजाता की बातो से लगा की वो हमे, शहर के बड़ी रसुख वाली औरतो के पास ले जाने वाली हैं .....अगर ये सच है तो हमे उन औरतो को खूब खुश करना होगा ....आगे हम उनसे धीरे धीरे अपनी बात मनवा सकते हैं""लेकिन क्या वो औरते हमारी, हम जैसे अनाथो की बात मानेगी"......मुन्ना की समस्या जायज़ थी"जब वो अनाथो से चुद वाने को तैय्यार हैं तो क्यू नही मानेगी .....और फिर,जैसे औरते अपनी बात मर्दो से मनवाने के लिए, बिस्तर को सबसे सही जगह मानती हैं ......वैसे ही औरतो को भी बिस्तर पर ही मनवाया जा सकता है....जोकि हम बहुत अच्छी तरह से कर सकते हैं ......क्या बोलता है
"मुन्ना रोहित को यू हैरत से देखने लगा जैसे ये 'गुप्त ज्ञान' की बाते रोहित कहा से सीखा, जब की वो सिर्फ़ एक ही तो साल बड़ा हैइससब की वजह थी रोहित की पढ़ने की लगन, वो जो कुच्छ भी हाथ लगे,उसे पढ़ लेता था ........अब हाथ मे तो कुच्छ भी लग सकता है अच्छा भी बुरा भी ......और बुरे मे से अच्छा भी तो निकल सकता है...!जैसे वो अब निकल ने की प्लानिंग कर रहे थे....!एक आलीशान मारुति अनाथ आश्रम के कॉंपाउंड मे आके रुकी, सभी लड़के उत्सुकता से देखने लगे, गुप्ता भी अंदर से दौड़ता हुआ बाहर आया, ड्राइवर ने नीचे उतर कर पिच्छली सीट का दरवाजा खोला .......कार से उतरने वाली महिला को देखकर गुप्ता का मूह खुला का खुला रह गया .....वो बिना थी


शहर की नामी गिरामी हस्तियो से एक. बज़ाइनेस टेकून महेश केपर की वाइफ,....कई उँचे क्लबो की प्रेसीडेंट.....सोशियल वर्कर.....शहर के कॉर्पोरेट वर्ल्ड की प्रमुख हस्ती.....उसकी पर्सनॅलिटी, फेमस आक्ट्रेस सुष्मिता सेन की याद दिलाती थी......हाइट, फिगर, मादकता, और खूबसूरती......सब कुच्छ बिल्कुल सुष्मिता सेन की तरह था....उपर से आमीरी का तेज....बड़ी ही शानदार चीज़ थी बिना......देखने भर से दिल-ओ-दिमाग़ पर कब्जा करने वाली.

वो पहले भी एकाध बार अनाथ आश्रम मे आई थी, लेकिन अपने पूरे लाव लश्कर के साथ, प्रेस रिपोर्टर्स, कुच्छ चेले चॅपट, कुच्छ स्थानीय लीडर्स के साथ. अनाथ बच्चो को कपड़े, दवाई, फ्रूट्स, इत्यादि बताने के लिए, और दुनिया की नज़ारो मे, अपनी सोशियल वर्कर की इमेज बनाने के लिए.

लेकिन आज उसे अकेली आई देख कर गुप्ता हैरान था, बच्चे भी समझ गये आज उन्हे कुछ मिलने वाला नही........गुप्ता हाथ जोड़े, कमर मे पूरा झुका हुआ, उसके सामने खड़ा था......

"वेलकम मेडम.....आपको आज अचानक यहा देख कर मुझे ताज्जुब से जाड़ा खुशी हुई है......क्या सेवा कर सकता हू मैं आपकी...?"......गुप्ता उसके सामने कुत्ते की तरह डूम हिला रहा था.....हाँ ये बात और है की उसे डूम नही थी, लेकिन बर्ताव बिल्कुल वही था.

"मुझे वर्षा से.....तुम्हारी वाइफ से मिलना है"........बिना पर उसकी चाप लूसी का कोई प्रभाव नही पड़ा.

"जी..जी..बिल्कुल....वो घर पर होगी, मैं अभी उसे बुलाता हू....लेकिन....आ.आ.आपको उससे..?"........गुप्ता को समझ नही आ रहा था बिना को उसकी बीवी से क्या काम हो सकता था.

"उसे यहा बुलाने की ज़रूरत नही......मुझे पर्सनल काम है.....मुझे घर का रास्ता बताओ...."

"जी..प्लीज़ मेरे साथ आइए.."

जैसे ही दोनो घर पहुचे, वर्षा ने उनका स्वागत लिया.......उसके चेहरे की चमक बढ़ गयी, वो बेहद खुश नज़र आने लगी.......एक बेहद बड़ी मछलि फसाने जा रही थी.

अंदर आते ही उसने गुप्ता को वापिस ऑफीस भेज दिया, और बिना को लेके ड्रॉयिंग रूम मे चली गयी.
बिना के लिए ठंडा, गरम पुछने की फॉरमॅलिटी पूरी करने के बाद, वर्षा ने असली बात को उठाया.....

"कहये बिना जी आज आपको, मुझसे ऐसा क्या काम पड़ा की आप खुद यहा चली आई,....मुझे बुलावा लिया होता"

"नही वर्षा..मुझे सोशियल वर्कर की हैसियत से, ऐसी जगह पर देखा जाना, कोई बड़ी बात नही होती......लेकिन तुम्हारा हमारे यहा आना, लोगो की निगाह मे आ सकता है.....इसीलिए, मैं खुद यहा आई हू"

"जी बहुत अच्छा है.....कहिए क्या सेवा करू......

"तुम द्‍याना को तो जानती ही होगी.....फॅशन डिज़ाइनर ....."

"हाँ हाँ जानती हू........अभी पिछले हप्ते ही तो मिली थी"

"उसने मुझे रोहित के बारे मे बताया........मैं उससे मिलना चाहती हू"........बिना ने बेहिचक अपना 'काम' बताया, वो वास्तव मे रोहित को परखना चाहती थी, द्‍याना ने, और उसकी जैसी कई औरतो ने रोहित के 'जबरदस्त पर्फॉर्मेन्स' की जो तारीफ की थी उससे प्रभावित हो कर वो भी उसके वाइल्ड पर्फॉर्मेन्स का मज़ा लूटना चाहती थी............वर्षा ने तुरंत, गुप्ता को ऑफीस मे फोन करके रोहित को भेजने के लिए कहा.

"वर्षा ....ये लड़का सेफ तो है ना......कोई प्राब्लम तो नही क्रियेट करेगा....मेरा मतलब है.....सोशियल स्टेटस ....."

"आप बिल्कुल निसचिंत रहिए.......वो किसी भी हालत मे मेरे से बाहर नही जा सकता,......आज तक उसने कभी भी, किसी को भी, शिकायत का मौका नही दिया,...... ना बेड पर, ना बाहर .......आप चिंता ना करे........सब कुछ गोपनिया रहेगा.

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कविता वाले एपिसोड के बाद मुन्ना और रोहित ने जैसा तय किया था, उसी पर अमल करते हुए, रोहित वर्षा को पूरी तरह से कोवापरेट कर रहा था,.........सामने जैसी भी लड़की, या औरत आए वो उन्हे बेदर्दी से रौन्दता था, दिन मे तारे दिखाता था, सातवे आसमान की सैर कराता था......और शहर मे ऐसी औरतो की कोई कमी नही थी, जिनके पति के पास उनकी शारीरिक ज़रूरतो को पूरा करने का वक़्त नही था........अगर था तो वो उन्हे संतुष्ट नही कर पाते थे,......या फिर कुच्छ औरते थी ही बहुपुरुष गामी (नींफोमानियाक)..जो कभी एक पुरुष से सन्तुश्त नही होती........जस्ट एंजाय्मेंट के लिए, फन लविंग के लिए, जिंदगी को स्पाइस अप करने के लिए.......गैर मारद के साथ सोने वाली औरते भी कम नही थी.........और ये सभी ज़्यादातर सेक्स को नॉर्मल तरीके से नही, बल्कि पेर्वेर्टेड तरीके से एंजाय करना चाहती थी.......जितनी औरते, उतने ही उनके गंदे तरीके...ऐसे ऐसे तरीके अपना ती थी की आम इंसान शरम से पानी पानी हो जाए..........लेकिन रोहित उन सबकी इच्छाओ को पूरा करता था..........और यही वजह थी वो बहुत कम समय मे,...."पॉपुलर" हो चुका था,....उसकी डिमॅंड बढ़ती जा रही थी......और वर्षा का बॅंक बॅलेन्स...!

रोहित और बिना, कार मे बैठ कर बिना के फार्म हाउस की तरफ जा रहे थे, ये फार्महाउस, जैसे बड़े लोगो की ऐशागाह होता है, वैसे ही सुसज्जित, सुरक्षित था, किसी को कोई भनक भी लगती थी, की वाहा कुच्छ हो रहा है, और वैसे आजकल मिस्टर महेश केपर विदेश गये हुए थे,...........सो टेन्षन की कोई बात ही नही थी.

एसी कार मे, पिच्छली सीट पर बैठा रोहित, बाजू मे बैठी बिना को देख रहा था, क्या सॉफ्ट, सिल्की स्किन थी बिना की. हमेशा एसी मे रहने से धूप,हवा, मिट्टी का कोई संपर्क ही नही था, उपर से नियमित रूप से जिम जाया करती थी, फिटटनेस्स टिप्स पे अमल करती थी, स्पेशल मसाज, और जाने क्या क्या तरीक़ो से, अपने आप को ऐसा मेनटेन किया हुआ था था की, 40 के करीब होने पर भी 30 के उपर नही लगती थी.

रोहित को अपने तरफ देखता पाकर, वो मुस्कुरई.....उसे ऐसे घुरे जाने की आदत थी, उसे अच्छा लगता था, अपनी वेल मेंटैनेड फिगर के लिए वो ऐसे घुरे जाने को, कॉंप्लिमेंट मानती थी........."क्या देख रहे हो रोहित...?"..........उसने मुसुकराते हुए पुचछा.

"आपकी सुंदरता को निहार रहा था....!"........रोहित भी बगैर किसी हिचकिचाहट से बोल पड़ा
'सिर्फ़ देखते रहो गे, या कुच्छ करोगे भी..".......बिना को अब मज़ा आ रहा था
"कार मे..?...आपका ड्राइवर भी तो है...!"
"तुम उसकी चिंता मत करो....वो सिर्फ़ सामने देख कर गाड़ी चलाता है, पिछे नही....!"..........वो रोहित को छेदते हुए बोली

अब रोहित को ग्रीन सिग्नल मिल चुका था, ...खेल श्रु करने का....वो फार्म हाउज़ पहुचने तक रुकना नही चाहती थी.....उसकी अधिरता पे रोहित मुस्कुराए बेना नही रह सका.......वो बिना से एकदम चिपक कर बैठ गया........धीरे से उसने बिना के आँचल को कंधे से लुढ़का दिया....सिल्की होने से आँचल तुरंत सरसरता, उसकी ब्लाउस मे क़ैद चुचियो को दिखाता...उसकी जाँघो पर जा गिरा.......बिना की आँखे नशीली हो गयी......लब थरथराने लगे.......उसने हकलि सी आवाज़ मे कहा ....."रोहित...मुझे तुम बहुत पसंद हो......और मैं बहुत प्यासी हू.......मेरी प्यास बुझाओगे ना....?"........बिना की आवाज़ कामुक होती जा रही थी.

"हाँ मेडम....अगर आप थोड़ी देर के लिए भूल जाओ, मैं कौन हू, कहा से आया हू.......और मुझे अपनी मनमानी करने दे........तो यकीन जानिए, आपकी प्यास ही नही भूक भी मिटा दूँगा'..........रोहित ने बिना के ब्लाउस के उपारले दो बटन खोल दिए......पहले ही लो कट मे से झाँकती चुचिया.....अब बाहर आने को मचल रही थी......रोहित ने अब अपना मूह उसकी अधखुली, अधनंगी चुचियो पे रखा...धीरे धीरे होंठो को फिराने लगा.........जीभ निकाल कर..हल्के हल्के चुचियो पर घुमाने लगा.......उसकी ये अदा बिना को पागलपन की सीमाओ पर ले गयी.......

"आअहह...रोहित, तुम्हे जो करना है करो, जैसे करना है करो, मैं तुम्हे रोकूंगी नही.......तुम भी ये भूल जाओ मैं कौन हू.......बस लगे रहो ....बड़ा मज़ा आ रहा है"........कार मे एसी शुरू होने के बावजूद, बिना के पसीने छूट रहे थे........उसने रोहित का चेहरा अपनी चुचियो पर ज़ोर से दबा दिया.......उसका हाथ अपने आप रोहित की पॅंट मे "कुच्छ" ढूँढ रहा था.

"आप तो बेहद खूबसूरत हैं मेडम.....ऐसे लगता है, जैसे खालिस रेशम से बनी हो......बिल्कुल सॉफ्ट & सिल्की"........रोहित का हाथ अब बिना की सारी के अंदर का "खजाना ढूंड रहा था.......उसने बिना की आँखो मे देखना चाहा, लेकिन उसकी आँखे बंद थी......उत्तेजना वश......रोहित ने अपने होठ बिना के होंठो पर रख दिए......बिना ने तुरंत रेस्पोन्से दिया,.....अपने होठ खोलकर.....रोहित की जीभ का स्वागत करने के लिए......अब दोनो की जीवा एक दूसरे से उलझ कर कामुक रस बहा रही थी.........रोहित का एक हाथ चुचियो को मसल रहा था, तो दूसरा हाथ बिना की पॅंटी तक पहुच चुका था,...उंगलियो से अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहा था........बिना का हाथ, रोहित की ज़िप खोलकर, उसके हाफ एरेक्टेड हथियार को बाहर निकालने मे लगा था.........काफ़ी देर तक ये सिलसिला चलता रहा.......दोनो ही एक दूसरे मे इतने खो गये थे की उन्हे ये अहसास ही नही रहा की वो कार मे बैठे हैं, और उन्हे फार्म हाउस पहुचना है.

"मेडम हम फार्म हाउस पहुचने वाले हैं"............ड्राइवर की आवाज़ ने उन्हे वास्तविकता की धरातल ला पटका..........दोनो ही एक दूसरे की तरफ देख कर मुस्कुराए, और जल्दी जल्दी अपने कपड़े ठीक करने लगे.

बिना का फार्म हाउस, सही मायने मे ऐषगाह का नमूना था, कई एकड़ ज़मीन पर बसा हुआ था, दूर दूर तक फैले बागान, और खेत नज़ारो को अनद देते थे, फार्महाउस के पिच्छवाड़े मे एक बड़ा सा स्वीमिंग टॅंक था, जिसके इर्द गिर्द कई कुर्सिया पड़ी हुए थी, स्वीमिंग के बाद रिलॅक्स करने के लिए.

बिना की कार एक घुमाव दर टर्न लेके पोर्टीको मे दाखिल हुए, ड्राइवर ने तुरंत उतारकर, मेडम के लिए दरवाज़ा खोला, बिना और रोहित दोनो ही बंग्लो मे दाखिल हुए, बिना रोहित का हाथ पकड़ कर सीधे उसे अपने बेडरूम मे ले गयी..........

बिना के बेडरूम का नज़ारा देख कर, रोहित विसफरीत नज़ारो से देखता ही रहा, संपूर्णा तह एर कंडीशंड तो था ही, लेकिन उसकी साज सज्जा देखा कर रोहित दंग रह गया, एक बहुत बड़ा,इतना की कम से कम चार जोड़े वाहा कबड्डी खेल सके, नरम, गुदगुदा, सिल्क की चादरो से ढाका हुआ बेड, देखकर उसका दिल आने वाले पॅलो की कल्पना से ही रोमांचित हो उठा, बेड के एग्ज़ॅक्ट सामने बाथटब नुमा स्वीमिंग पूल था, जिसमे तैरा तो नही जा सकता था लेकिन, तैरने और नहाने के बीच की हर चीज़ की जा सकती थी, इश्स बात टब के ईयार्दगिर्द आलीशान सोफे पड़े हुए थे , और एक कोने मे लगा था बार, जिसमे दुनिया की मशहूर ब्रॅंड्स की शराब, वाइन मौजूद थी..........रोहित की हालत देख कर बिना को हसी आई.

उसने रोहित के गले मे अपनी बाहों का हार डाल दिया, अपने आप को उससे चिपकती, उसके कान मे बोली....."बेडरूम पसंद आया रोहित.."

रोहित ने सिर्फ़ गर्दन हिला कर हाँ कहा.
"और मैं....!"......रोहित की आँखो मे आँखे डाल कर, अपनी सासो को उसकी सासो मे मिलाकर.....बिना ने मादक स्वर मे पुचछा.

रोहित के हाथ अपने आप, बिना के कमर पर चले गये, उसे अपने तरफ खिच कर, रोहित ने कहा ......."सबसे जाड़ा.....ये साजो सज्जा......ये ऐशो आराम,....आपके बिना अधूरे हैं.......!
दोनो के होठ फिर मीलगए.....फ्रेंच क़िस्सी का एक लंबा दौर चला.......दोनो के हाथ एक दूसरे की पीठ पर फिसल रहे थे.....रोहित के हाथ बिना के नितंबो पर कुच्छ ज़्यादा ही मेहरबान थे.

"मुझे थोड़ी देर के लिए इजाज़त दो रोहित, मैं अभी चेंज करके आती हू.."

" चेंज करने की क्या ज़रूरत है माँ,.....बाद मे उतरने ही तो हैं"........अब रोहित खुल कर बिना को छेड़ रहा था

" जो मैं पहन कर आऊँगी, उसे देख कर बताना....क्या चेंज करना ज़रूरी था, या नही.........तुम तब तक कुच्छ ड्रिंक लो......सामने बार है...जो मर्ज़ी ले लेना"

रोहित बिना के थिरकते कुल्हो को देखा कर आंदोलित हो रहा था......क्या 'गाजागमिनी' इसे ही कहते हैं...?
रोहित को शराब का शौक नही था, लेकिन जब से वर्षा ने उसे, "धन्दे" पे लगाया था तबसे उसे अपनी 'कस्टमर्स' को खुश करने के लिए, शराब की चुस्किया लगाना सीखना पड़ा था........उसने बार से जॉनी वॉकर ब्लॅक लबले का एक पेग बना लिया,....'ऑन दा रॉक्स'.....और उसे चुसकता हुआ, वो एक सोफे पर बैठ गया.

मन ही मन वो सोच रहा था, बिना को कैसे खुश करे, इतना खुश की वो उसकी मदद करने के लिए तैय्यार हो जाए.......अपने मुन्ना की कविता को आज़ाद कराने के लिए.

उसकी सोच तब टूटी जब उसने बिना के आने की आहट सुनी.........क्या दिख रही थी वो.......पिंक कलर का झीना सा गाउन, इतना झीना की उसके शरीर पर मौजूदगी का पता सिर्फ़ फर्श पर फैली उसकी सलवटो से ही लगता था,...जिस्म पर, तो महसूस ही नही होता था........दिखाई दे रही थी, सिर्फ़ एक छोटी सी, नॉमिनल,ब्रा पॅंटी की जोड़ी....जो सिर्फ़ बहुत ही ज़रूरी जगह को ही ढक सकती थी.......रेशमी बॉल खुले हुए थे, हवा मे लहरा रहे थे.....आँखो मे नशा छाया हुआ था.....मदमस्त चुचिया हिल रही थी....हर कदम रखने से....भारी, ठोस कूल्हे अंगड़ाई ले रहे थे...होंटो पर मादक मुस्कान ले कर वो रोहित की तरफ बढ़ रही थी

रोहित अपलक,..बिना पलके झपकाए, उस अनीद्या सुंदरी को देख रहा था.........जो...उसे विश्वास नही हो रहा था.....उसके लिए आई थी, सज सवर कर,......अभिसारिका बनकर.....एक अनाथ,लावारिस, गंदी नाली के कीड़े के लिए.......क्या वाकई सेक्स की ज़रूरत इतनी बड़ी होती है...... सम्मान, आत्मसम्मान से भी ज़्यादा..?

बिना रोहित से चिपक कर बैठ गयी, रोहित की बाहों पर अपनी चुचियो का भार डालते हुए...दोनो की जन्घे एक दूसरे से सॅट चुकी थी......बिना की आँखे अत्यधिक उउतेजना से झुकी जा रही थी........रोहित भी बिना की मखमली स्किन का स्पर्शा, महसूस कर रहा था, बिना के बदन से आ रही मादक खुशबू...पता नही उसके पर्फ्यूम से आ रही थी या, उसके काम वासना से उत्तेजित जिस्म से, लेकिन रोहित के दिल-ओ दिमाग़ पे बिना के तराशे हुए हुसना का जादू चढ़ रहा था.

"रोहित...वो बेड तुम्हे कैसा लगा".........बिल्ली की तरह अपने जिस्म को रोहित से सटाते, रगड़ते हुए बिना ने पूछा.

जवाब मे रोहित ने बिना को, अपनी बाहों मे उठा लिया, उसके प्यासे होंठो को अपने होंठो मे जाकड़ लिया, और बहुत धीरे से उसे बेड पर रख दिया, जैसे कोई काँच की बनी गुड़िया हो और जाड़ा दबाव पड़ने पर टूट के बिखर जाएगी, होठ अभी भी बिना के होंठो से अमृतपान कर रहे थे.......बिना के लिए ये सब नया था,...उसने पहले कभी ऐसा महसूस नही किया था.......वो कोई दूध की धूलि नही थी, ना ही पतिव्रता थी.......उसके कॉर्पोरेट वर्ल्ड मे सेक्स का अच्छा ख़ासा दखल होता था.....कई डील्स, कॉंट्रॅक्ट्स, बिस्तर मे कालाबाज़िया खाने के बाद ही तय होते थे,........वो खुद कई बार, कई मर्दो के साथ बिस्तर गरम कर चुकी थी.

लेकिन उन सेक्षुयल आक्टिविटीस मे ना कभी वो इमोशनाली इन्वॉल्व हुए थी, ना उसका सेक्स पार्ट्नर......आम तौर पर, थोडा ड्रिंक,थोड़ा डॅन्स, कुच्छ किस्सस का आदान प्रादन,...फिर झपट कर, कपड़ो को नॉचकर उतार फेकना, फिर टाँगे फैलाना,.....टॅंगो के बीच, कोई छ्होटा मोटा, लंबा-पतला, पिस्टन, ....पाँच मिनट से पंढारह मिनट तक आता जाता था...फिर एक पिचकारी....कभी अंदर, कभी जिस्म पर, तो कभी मूह मे छ्चोड़ी जाती थी........सेक्स उसके लिए एक मशीनी प्रक्रिया थी,.........या एक 'क़ानूनी कार्यवाही' जो डील के पूरे होने से पहले पूरी करना निहायत ज़रूरी थी........बस.

लेकिन रोहित के साथ उसे जो अनुभूति मिल रही थी, वो उसे पहले कभी नही मिली थी........हालाकी वो जानती थी रोहित भी किसी सौदे से बँधा, यहा आया हुआ है.........जैसे उसने पहले भी कई बार, वर्षा के कहने पर कई औरतो को 'खुश किया है, वैसे ही आज वो उसे, बिना को खुश करने आया है.........इसके बावजूद वो रोहित का साथ, उसका स्पर्श, एंजाय कर रही थी........पता नही ऐसी क्या बात थी इश्स लड़के मे....?

"कहा खो गयी मॅम...?"........रोहित की आवाज़ सुन कर उसने आँखे खोल कर, उसकी तरफ देखा,...रोहित शर्ट उतार चुका था......उसका गॅतीला, कसा हुआ बदन देख कर बिना कसमसाई......आँखो मे नशा छाने लगा...उसने हाथ बढ़ा कर रोहित का हाथ थाम लिया...और अपनी तरफ खीचते हुए बोली.....

"मुझे माँ मत कहो रोहित.......सिर्फ़ बिना कहो...कम से कम जब तक तुम यहा हो तब तक.....!"........उसने रोहित को अपने आप पर ओढ़ लिया.

"बिना...!"
"हाँ रोहित..!"
"तुम बहुत सुंदर हो, सेक्सी हो"
"सच..!"
"हाँ.....क्या मैं तुम्हारे इश्स तराशे हुए जिस्म की सैर कर सकता हू..?".....रोहित के हाथ बिना के मुलायम बालो मे फिर रहे थे....होठ बिल्कुल, बिना के होंठो के पास थे.....बिना की 'पहाड़िया' रोहित के चौड़े सीने मे धासी जा रही......बिना अब कामोत्तेजना से बहकने लगी.
"तुम्हे पूरी आज़ादी है, माइ लव.....तुम जो चाहे करो......बस मुझे प्यार करो"
रोहित ने धीरे से बिना का गाउन उपर उठाना शुरू किया....नीचे से....सब से पहले...बिना के नाज़ुक मुलायम पैरो को चूमा.....बिना की थरथराहट बढ़ गयी..........मासल पिंडलियो पर रोहित के होंठों का स्पर्श होते ही बिना अंदर से पिघल ने लगी.......गाउन उपर सरकता जा रहा था.....बिना के अंदर की हलचल अब और बढ़ गयी थी.....गाउन अब कमर तक पहुच चुका था, और रोहित के होठ.....बिना की चिकनी, गुदज जाँघो पर फिसल रहे थे.......बिना अब जी तोड़ के अपने आप को संभाल ने की कोशिश कर रही थी.........जैसे ही रोहित ने झीनी सी पॅंटी के उपर होठ सहलाए, जीभ की नोक से, दरार को कुरेदा........बिना अब अपना आपा खो बैठी.....

"आआहह्ा...रो..रो..रोहित....अब सहन नही होता ...प्लीज़ कुछ करो...हहााआययइईई.......!!!!....बिना लंबी लंबी सिसकारिया भरती हुई...रोहित का सर दबाने लगी अपने 'जन्नत के द्वार' पर.......वो सर को इधर उधर झटक रही थी....टाँगे मोड़ रही थी.

रोहित ने देर नही लगाई, झीनी सी पनटी को रास्ते से हटाने मे देर ही कितनी लगानी थी..?...उपर से बदन इतना चिकना की, एक ही स्ट्रोक मे पनटी ने जिस्म को अलविदा कहा........अब रोहित के सामने थी वो गुफा (केव) जिसका दरवाजा खोलने के लिए उसे "खुल जा सिम सिम " कहने की ज़रूरत नही थी......बस होंठो से छूना था, कुछ गरम साँसे छोड़नी थी, जीभ से दस्तक देनी थी..........और जैसे ही रोहित ने दस्तक दी...बिना का बाँध टूट गया...अंदर से उफनती हुई धारा बहने लगी...जिसने रोहित के पूरे चेहरे को नहला दिया..........बिना अब लंबी लंबी सासे ले रही थी,..अब वो काफ़ी 'सुकून' महसूस कर रही थी.

"तुम कमाल के हो रोहित...मैने इतना आनंद पहले कभी नही पाया....कहा से सीखा ये सब'........बिना ने अब खुद ही अपना गाउन उतार फेका, और रोहित को नीचे करके, खुद उसके उपर च्छा गयी.

"वक़्त, ज़रूरत, और कुदरत.....सब सीखा देती हैं बिना"......रोहित ने उसे अपनी बाहों मे कस लिया.

अब रोहित को खुश करने की बारी बिना की थी, उसने अपने नरम, गरम होंठो को रोहित के होंठों पर रख दिए, कुच्छ देर उन्ही चुसती रही, फिर अपनी जीभ से रोहित के होठ खोले, और उसकी जीभ को अपने मूह मे ले लिया.....रोहित की उंगलिया बिना की ब्रा बेल्ट से उलझ गयी, अपने उभारों को आज़ाद होते देख....उसने रोहित के होंठो से खुद को अलग किया.....दोनो तरफ पैर रखा कर वो रोहित के पेट पर बैठ गयी,......छोटी सी ब्रा को उतार कर, बिछड़ी हुई सहेली, पॅंटी के पास फेक दिया........अब वो पूरी तरह निर्वस्त्रा थी....उसकी तनी हुई पहाड़ी की चोटिया....रोहित को ललचा रही थी.......उसका "लव ट्रेयिगल" रोहित के सीने पर रगड़ रहा था, जिसका करेंट.....पॅंट मे मौजूद 'रोड' को सख़्त बना रहा था..........

बिना ने रोहित के हाथ अपने हाथ मे लिए, और अपने उभरो पर रख कर दबाए.

"इन्हे मसालो रोहित, कुचल दो.....ये 'कबूतर' फड़फदा रहे हैं...मचल रहे हैं, तुम्हारे हाथो मसले जाने के लिए..."

रोहित ने भी उन कबूतरो को निराश नही किया, पूरी ताक़त लगा के निचोड़ने लगा.....उनकी 'चोंच' उंगलियो मे दबाने लगा,.......अब पॅंट के अंदर गरमी बढ़ने लगी......लंबाई, मोटाई मे इज़ाफा होने लगा......साँप की फुफ्कार सुनाई देने लगी...तब रोहित ने बिना से कहा.....

"बिना क्या तुम 69 की पोज़िशन मे आ सकती हो.......अब मुझे 'छुटकारा' पाने की ज़रूरत है."...........बिना क्या मना करती, उसने सहर्षा पहले, रोहित की पॅंट उतार फेकि, फिर उसकी ब्रीफ,.....और अब साँप,क़ैद से आज़ाद था, बुरी तरह से फुफ्कार रहा था.......लेकिन ये फुफ्कार, डरावनी नही थी, बल्कि प्यारी थी, एग्ज़िटिंग थी, मनमोहक थी..........बिना को फिर अपने अंदर पिघलन सी महसूस हुई........उसने तुरंत अपने आप को 69 की पोज़िशन मे अड्जस्ट कर लिया.......अब उसका "बिल" रोहित के मूह पर था, तो रोहित का साँप बिना के मूह के पास......चूसने, चाटने की आवाजो से, कामुक सिसकारियो से कमरा गूँज उठा.

करीब 10-15 मिनिट तक ये सिलसिला जारी रहा, इश्स दौरान रोहित के हाथ, बिना के मसल कुल्हो को आटे की तरह गूँथ रहे थे , तो कभी कूल्हे की दरार मे उंगली चला देते........उधर बिना रोहित के फुफ्कार ते साँप को अपने गले की गर्मी से शांत करने की कोशिश मे लगी हुए थी.

आख़िर वो वक़्त भी आया जब रोहित ने, बिना को चित लिटा कर, अपने साँप को बिना के बिल का रास्ता दिखा दिया.......एक घमासान सा हुआ.....बिना वासना के हिंडोलो मे झूल रही थी.....रोहित का हर करारा स्ट्रोक उसे जन्नत का नज़ारा करा रहा था......बिना अपनी सुड़बुध खोए, हर स्ट्रोक को अपने कूल्हे उछाल कर साथ दे रही थी.........उसकी टाँगे हवा मे उठी हुई थी,........रोहित के हाथ बिना के उभरो पे कयामत ढा रहे थे.......फिर एक ही वक़्त, दोनो के शरीर अकड़ने लगे.....एक्सट्रीम सेन्सेशन मे थरथरने लगे.......दोनो ने एक नयी उचाई को च्छू लिया......और...और बस.....दोनो के ही फ़ौव्वारे च्छुटे,..दो धारा ओ का "संगम" हुआ.....जिसने पूरे बिस्तर को भीगा दिया.

दोनो एक दूसरे की बाहों मे ना जाने कितनी देर पड़े रहे......सुस्ताते.
रोहित और बिना, उस बात टब नुमा टॅंक मे एक दूसरे की बाहों मे खोए हुए थे, दोनो के चेहरे पर ऐसे भाव थे, मानो संसार मे उन दोनो के अलावा कोई और मौजूद ही नही है, सारा संसार उन्ही मे सिमट गया है, बिना रोहित के सीने पे अपना सर रख कर, आँखे बंद कर के लिपटी हुए थी, रोहित के हाथ उसकी कमर पर थे, वो भी आँखे बंद करके बिना की पीठ धीरे धीरे सहला रहा था,........टॅंक मे से निकलते पानी के बुलबुले, उनकी "थकान" मिटा रहा थे.......काफ़ी देर तक उन्ही खामोशी से पड़े रहने के बाद........बिना ने चुप्पी तोड़ी.........

"रोहित, आज मैं बहुत खुश हू,......यू लगता है, हवा मे उड़ रही हू, बादलो पर सवार,....तेर ती जा रही हू.........ये बात नही की मैने सेक्स पहली बार एंजाय किया है,......कई बार कर चुकी हू,....लेकिन आज जो तुमने मूज़े दिया,.......जो मुझे मिला...वो एक अदभुत अनुभव था.....जो आनंद, जो खुशी, जो चैन.....आज मुझे मिला, वो पहले कभी नही मिला.......अयाया...लगता है, ना जाने कब से मैं इश्स संतुष्टि के लिए तड़प रही थी........जो आज तुमने मुझे दी है......रोहित, तुम्हे यहा लाने के लिए, मैने वर्षा को 'डोनेशन' पहले ही दे दिया है.....लेकिन आज मैं तुम्हे अपनी तरफ से कुच्छ देना चाहती हू.......जो चाहे माँग लो रोहित......मैं मना नही करूँगी"........बिना की प्रसन्ना ता का शायद कोई अंत नही था.

लेकिन रोहित कुच्छ ना बोला, उसने सिर्फ़ बिना को और ज़ोर से अपनी बाहो मे समेट लिया. उसके माथे पर किस किया.........रोहित की इन्ही अड़ाओ पे तो बिना बिछि जा रही थी, वो छीना झपटी मे नही,.....प्यार से धीरे धीरे आग लगा कर..आग भड़का कर......फिर उसे बुझाने मे यकीन करता था.......लेकिन कभी कभार किसी परवर्ट औरत के सामने उसे अपना ये स्टाइल बदलना पड़ता था

"क्या बात है रोहित, खामोश क्यो हो.......शरमाओ मत, जो चाहे बता दो.......मैं वर्षा को कुच्छ नही कहूँगी...आइ प्रॉमिस..!"........बिना रोहित के सीने पर अपने उभारों को मसल ती हुए बोली.

"मुझे अपने लिए कुच्छ नही चाहिए, बिना.........लेकिन.....
"हाँ हाँ...कहो..तुम जो चाहे माँग सकते हो....अपने लिए नही तो किसी और के लिए सही....''

"बिना मैं एक लड़की को बचाना चाहता हू...!"
"कौन लड़की..?....क्या तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड भी है.....?"......बिना को अचरज हुआ
"नही नही...मेरी कोई गर्ल फ्रेंड नही है....वो..वो मेरा एक दोस्त है, मुन्ना......मेरे लिए वो मेरे भाई समान है.......वो.....उसे चाहता है.........

और रोहित ने बिना को कविता की पूरी कहानी बता दी....पूरी कहानी...वर्षा के घर पर हुए एपिसोड समेत, पूरी कहानी.........ये सब सुनने के बाद, बिना को एक पल के लिए यकीन ही नही हुआ.....दुनिया मे ऐसे लोग होते हैं.....जिनमे ऐसे रिश्ते होते हैं.
कविता, जो ज़ोपड़पट्टि की रहने वाली हैं,जिस पर अपने बाप के खून का एलजम है.......मुन्ना जो अनाथ आश्रम मे पला बढ़ा है......कविता की इज़्ज़त जबरन लूटने पर मजबूर होता है......उसीसे प्यार करने लगता है.....और रोहित,...जो उस पूरे तमाशे का उतना ही मजबूर दर्शक था, जो आए दिन नयी, नयी औरतो को खुश करने के लिए भेजा जाता है......जो आज भी उसके साथ उसी काम के लिए मौजूद है....... लेकिन, जब कुच्छ माँगने की बारी आती है, तो अपने लिए नही......कविता और मुन्ना के लिए माँगता है.........कैसे लोग हैं ये,....?कैसे रिश्ते हैं ये.....? क्यूँ धड़कते हैं उनके दिल एक दूसरे के लिए, बिना किसी स्वार्थ के.......अपने कॉर्पोरेट दुनिया के रिश्तो से तुलना कर रही बिना, सिर्फ़ अचरज ही कर सकती थी.

वो एक बेबस मुस्कान बिखेरती बोली...."तुम अब ये मुझ पर छ्चोड़ दो,.......मैं वादा करती हूँ.....कुच्छ ही दीनो मे, कविता आज़ाद होगी.....तुम्हारे मुन्ना के पास होगी....ऐसे काम कैसे किए जाते हैं, मुझे अच्छी तरह से पता है....ओके.......अब एक वादा तुम मुझसे करो........कोई जॉर्जाबरदस्ती तो नही है, लेकिन क्या . कभी कभार मुझे मिलोगे.......मुझे ये खुशिया दोगे...?......सिर्फ़ तब तक जब तक तुम किसी से प्यार नही करने लगते, या तुम्हारी शादी नही हो जाती...!"

"मैं ज़रूर मिलूँगा, बिना......ज़रूर मिलूँगा!'

दोनो फिर एक दूसरे मे समा जाने के लिए लिपट पड़े.

रेमांड होम के एक कमरे मे, कविता, उदास बैठी थी, बेबसी उसके चेहरे पर साफ दिखाई दे रही थी, उस रात वर्षा के घर पर उसके साथ जो हुआ था, वो उसके शरीर पर ही नही आत्मा पर भी छप गया था,.....बात दबी ज़ुबान मे, रेमंड होम मे, फैल गयी थी........किसी को उसके साथ हमदर्दी थी, तो कोई मज़ाक उड़ा रहा था,...लेकिन इशारो मे, खुल कर कोई कुच्छ नही बोल रही थी......अपनी बेबसी और लाचारी पे गुस्सा आ रहा था........इश्स सबके बावजूद उसे, मुन्ना की याद आती थी, उसे याद आता उसका भोला चेहरा......"वो" सब करते हुए भी, मुन्ना के चेहरे पर छाये मजबूरी, और बेबसी के भाव कविता से छिपे नही थे.......रोहित ने जैसे ही उसकी तरफ दारी मे कुच्छ कहने की कोशिश की थी, तो उसे पड़ी गंदी गालियों की बौछार, वो भूली नही थी,......उपर से रोहित और मुन्ना को मिली धमकिया...... नही वो उन्हे दोष नही दे सकती.......दोष तो उसकी किस्मत का था, ग़लती उसकी ग़रीबी की थी.......उसने एक आ सी भारी......पता नही आगे अब और क्या गुल खिलाने वाली है उसकी किस्मत.

"कविता तुम से कोई मिलने आया है....चलो विज़िटिंग रूम मे".....ये वॉर्डन की आवाज़ थी.
मुझसे मिलने...?कौन हो सकता है...? क्या मा होगी....? क्या मा को सब कुच्छा पता चल गया है......?......हे भगवान.....!.......वो अंदर तक कांप उठी.

लेकिन जैसे ही उसने विज़िटर्स रूम मे कदम रखा, वो दंग रह गयी.........वाहा मुन्ना बैठा था.......ये यहा क्या कर रहा है..? वो धीरे धीरे कदम बढ़ाती मुन्ना के पास पहुचि.
उसकी आहत सुनते ही मुन्ना ने नज़रे उठा कर उसे देखा.......कितनी मासूम और खूबसूरत है ये......और इसके साथ उसने वो .......मुन्ना पर फिर से आत्मग्लानि छाने लगी.

"तुम यहा कैसे......मेरा मतलब.....
कविता अपनी बात पूरी नही कर पाई.......क्यू की वो खुद नही जानती थी, उसे क्या कहना है.....वो तो अभी भी हैरान थी.

"वो मैं...वो...वो मैं..बस यूही....तुमसे मिलने आया था.....वो मैं तुमसे....
मुन्ना की हालत देख कर कविता के होंठो पे मुस्कुराहट तेर गयी....साथ ही साथ भोले पन पे प्यार भी........दोनो की स्थिति एक जैसी ही तो थी........लेकिन लड़किया कुच्छ जल्दी मिचोर्ड हो जाती हैं.

"ठीक से कहो ना.....हकला क्यू रहे हो....कहो क्या बात है..?"
"मैं तुमसे माफी माँगने आया था.....वो उस रात.....मैं मजबूर था...कुच्छ नही कर पाया......लेकिन यकीन जानो....मैं तब से आज तक, चैन से सोया नही हू......हमेशा एक बोझ सा महसूस करता हू, दिल पर.....इसी लिए आज तुमसे माफी माँगने आया हू......मैं जानता हू उस घटना को अब काफ़ी अरसा हो गया है, लेकिन मैं हिम्मत नही जुटा पा रहा था.....!' .....मुन्ना एक ही सास मे कहता गया.

"कोई बात नही.....इश्स मे तुम्हारी कोई ग़लती नही......तुम्हारी मजबूरी मैं जानती हू.......और अब जो हुआ उसे हम बदल भी तो नही सकते.......बस भूलने की कोशिश कर सकते हैं"
"लेकिन मैं नही भूल सकता.......मैं बहुत बेचैन हू......वो सुजाता ने जो धमकी दी थी,....वो तुम्हे किसी और से भी रेप.......नही नही, जब तक तुम बाहर नही निकलती,....मुझे चैन नही आएगा"

मुन्ना की बाते सुन कर कविता का दिल भर आया......मुन्ना सच कह रहा था, सुजाता की वो बाते आज भी कविता की रातो की नींद हराम किए हुए थी......लेकिन मुन्ना भी वही सोच रहा था, और उसके लिए तड़प रहा था, ये जानकार उसे थोड़ी राहत मिली.....अपनापन थोड़ा और बढ़ा

"लेकिन तुम इश्स मे क्या कर सकते हो......तुम खुद भी तो मजबूर हो, और उपर से अनाथ......... बात करते करते कविता रुक गयी, उसे अहसास हुआ वो कुच्छ दिल दुखाने वाली बात कहने जा रही थी.

"कोई बात नही....मुझे आदत है.....तुम्हे यहा से छुड़ाने के लिए रोहित भाय्या कोशिश कर रहे हैं.....नतीजा बहुत जल्दी सामने आएगा'"
"लेकिन रोहित...वो भी तो तुम्हारे जैसा है ना....मेरा मतलब हैं......
'मैं जानता हू तुम्हारा मतलब, लेकिन तुम सिर्फ़ देखती जाओ......वो मेरा सिर्फ़ दोस्त ही नही बड़े भाई समान है.......वो जो कर रहा है, मैं आज तुम्हे नही बता सकता....लेकिन यकीन जानो कुच्छ होगा, जो बहुत अच्छा होगा.".......बातो बातो मे मुन्ना ने कब कविता का हाथ अपने हाथ मे ले लिया.....ना उसे पता चला, ना कविता को........लेकिन जैसे पता चला, दोनो ही शर्मा गये.......मधुर घंटियो की आवाज़ दोनो को सुनाई दे रही थी.......पता नही कहा से आ रही थी.......शायद दिल से.

चूड़ियो की मधुर झंकार से रोहित की नींद टूटी, वो अपने अतीत मे इश्स कदर खोया हुआ था की, उसे लगा ये चूड़ियो की झंकार भी उसके अतीत का ही हिस्सा है.......लेकिन, वो हास पड़ा..........अतीत मे जिन औरतो के संपर्क मे वो था......उनका तो चूड़ियो जैसी, नाज़ुक, मधुर चीज़ से दूर दूर तक वास्ता नही था........फिर से झंकार सुनाई दी, ......अब उसने आँखे खोली....वो अभी भी ट्रेन के अपने बर्त पर लेटा था.......सुबह होने को थी......उसने बाजू वाली बैर्थ पे देखा.......वाहा कयामत धाने की तैय्यरी शुरू थी.......रेवती अपने बर्त पर बैठी हुए थी......दोनो हाथ उठा कर अंगड़ाई ले रही थी........लेकिन जैसे ही उसने देखा......रोहित जाग गया है....उसने अंगड़ाई के लिए उठाए अपने हाथ, शरमा कर नीचे ले लिए.......रोहित ने एक आहह सी भारी.........उसके जिंदगी की ये सबसे हसीन सुबह थी.
उसे कही पढ़ा हुआ एक शेर याद आया.........

'अंगड़ाई भी वो ले ना पाए, उठा के हाथ..!
देखा जो मुझको, छ्चोड़ दिए, मुस्कुरा के हाथ..!'

क्या वो इश्स हसीना के काबिल है....क्या उसके जिंदगी की हर सुबह इतनी हसीन हो सकती है.......उसका मन वितृष्णा से भर गया.......नही वो तो इश्स पवितरा ता के तेज से ही जल जाएगा........वो तो उसका ख्वाब तक नही देख सकता.....उसके बारे मे सोच भी नही सकता.
लेकिन, अपने ख्वाबो पर, सोचो पर, अपने मन पर किसने काबू पाया है...?...जो रोहित पा सकता था......उसका मन था की उसीके बारे मे सोचना चाहता था, उसीके ख्वाब देखना चाहता था.
रेवती ने अपने कपड़े ठीक किए, अपना दुपट्टा 'यथास्तान' रखा......और एक बार चोरी से....तिर्छि नज़र से रोहित की तरफ देखा.....क्या वो अभी भी जाग रहा है..?.....उसे नीचे उतरना था.....वो शर्मा रही थी...कही रोहित की नज़ारे किसी 'ग़लत' जगह पर ना पद जाए...........और इस बात का अंदाज़ा रोहित को भी था.....वो सचमुच आँखे बंद करके लेटा रहा......वो रेवती के बारे मे कुच्छ भी ग़लत सोच या देख नही सकता था.

काफ़ी देर जब आहट नही हुई, तो उसने आँखे खोल कर देखा......रेवती उतर कर जा चुकी थी...शायद टाय्लेट.......रोहित ने घड़ी देखी......सुबह के 6.30 बाज रहे थे....दादर पहुचने मे अभी एक घंटा लग सकता था......तब तक वो भी फ्रेश हो सकता था......वो नीचे उतर गया

नीचे वर्मा दंपति भी जाग गये थे, और शायद फ्रेश हो कर आए थे.......बॅंक वाला है....समय का पाबंद तो होगा ही....उसे नीचे उतरते देख वर्मा जी बोल पड़े

" ओह गूडमॉर्निंग रोहित......आपकी नींद पूरी हुई,,,कोई तकलीफ़ तो नही हुए......हमारी वजह से....
"अरे नही वार्मजी.....मुझे कोई तकलीफ़ नही हुई......आप अपनी कहिए आप को तो अच्छी नींद आई ना..?.........रोहित ने अपना बॅग निकाला,
"हाँ भाई आपकी मेहरबानी से......बहुत अच्छी नींद आई''
"मैं ज़रा टाय्लेट होकर आता हू....!".........रोहित एक तरफ बढ़ गया...और ठिठक गया.......सामने से रेवती आ रही थी......सुबह की कच्ची धूप मे बला की हसीन लग रही थी.......जैसे अभी अभी काली खिली हो....उसकी पंखुड़िया खुल रही हो.......और कुदरत ने उस पर चंद बूंदे छिटक कर.....उसका स्वागत किया हो.........सादगी मे एक अद्भुत खूबसूरती होती है,......अंदर एक सात्विक, शुद्ध, दिल हो तो और चार चाँद लग जाते हैं.......एक ऐसा तेज पैदा होता है......जिसके सामने दुनिया की कोई चमक दमक, कोई नकली मेकप से लिपि पूती, तथा कथित, सौंदरता नही टिक सकती.

रोहित मंत्रमुग्धा हो कर उसे देखता ही रह गया.......इतना की कब रेवती उसके पास से गुजर गयी उसे पता ही नही चला
"एक्सक्यूस मी..!".......कोई उसे कहा रहा था रास्ता छ्चोड़ने के लिए....रोहित जैसे होश मे आया......उसने मूड कर देखा.....रेवती धीरे से मुस्कुरा रही थी.....सिर्फ़ गालो मे.......तब रोहित को पता चला जब वो हसती है,......उसके गालो मे गड्ढे पड़ते हैं........और वो बड़े ही दिलकश, बड़े ही जानलेवा होते हैं.

रोहित जब वापिस आया, तो वर्मा फॅमिली सुबह की चाय पी रही थी, उन्होने पूरी ईमानदारी से रोहित की विंडो सीट उसके लिए खाली छ्चोड़ी थी........अपनी विंडो सीट खाली देख कर रोहित एक बारगी सकपाकया..........क्यो की उसे उम्मीद नही थी, की आईं रेवती के सामने वाली सीट उसे मिलेगी..........रोहित अपने आप को भले ही सामानया दर्शाने की कोशिश कर रहा था....लेकिन उसकी बॉडी लॅंग्वेज, साफ चुगली कर रही थी, की वो बेहद अस्वस्था है......कोई और जाने या ना जाने......रेवती ज़रूर मार्क कर रही थी......और वो भी खिड़की से बाहर देखने का नाटक कर रही थी.

अब अपने रोहित की पर्सनॅलिटी मे भी तो गजब का आकर्षण था.....अब वो 17 साल का नाबालिग लड़का नही रहा था.......ना ही वो अब अनाथ आश्रम मे था.....वो अब एक खुद्मुखतार, बड़ा ही हॅंडसम जवान था......शराफ़त उसके चहरे से टपक ती थी, ( वो तो उस वक़्त भी टपकती थी, जब वो अनाथ आश्रम मे रहता था)....उसका प्रभावशाली व्यक्तिक्त्व किसी को भी अपने तरफ खिचाने के लिए काफ़ी था.........उसके बातचीत करने का अंदाज किसी को भी इंप्रेस करने मे सक्षम था........यही वजह थी की वर्मा दंपति के अलावा, रेवती भी उसकी तरफ अट्रॅक्ट हो रही थी

'आप चाय लेंगे रोहित जी.......हमने थर्मस मे चाय ले ली है.....आप चाय लेना चाहेगे तो.......
"वर्मा साहब मैं आपके बेटे की उम्र का हू.....भले ही आप का बेटा नही हू.......पर आप मुझे सिर्फ़ रोहित बुला सकते हैं........मुझे अच्छा लगेगा..!"....रोहित कनखियो से रेवती को देख रहा था.

"हाँ ये भी ठीक है......हम तुम्हे सिर्फ़ रोहित ही कहेंगे".........पूरे सफ़र मे शिवानी वर्मा ने पहली बार मूह खोला था.........काश, रेवती भी ऐसा ही कुछ, मीठा सा बोले उसके लिए.........लेकिन वो कुच्छ नही बोली......सिर्फ़ अपनी बड़ी बड़ी, हिरनी जैसी आँखो से घुरती रही रोहित को
"रोहित तुम काम क्या करते हो...कहा के रहने वाले हो.........तुम्हारे घर मे कौन कौन हैं......?"........शिवानी अब काफ़ी खुल गयी थी

रोहित अब कुच्छ चिंतित हो उठा.......अगर वो सच कहता है......तो शायद, उसके बारे मे जो ख्यालात वर्मा फॅमिली के थे वो ख़त्म हो जाए.......शायद उसे रेवती का ख़याल हमेशा के लिए छ्चोड़ना पड़े.........पर वो झूठ भी तो नही बोल सकता था.........क्यू की वो जनता था, झूठ के पाव नही होते.........वो जाड़ा देर चल नही सकता.......लेकिन सच्चाई बताने मे तो पक्का ही वो रेवती को खो देगा.........रोहित कुच्छ देर उही सच और झूठ की कशमा काश मे उलझा रहा......फिर उसने फ़ैसला किया........सच ही बताना है........वैसे भी वो रेवती जैसी, सच्ची,और मासूम लड़की के काबिल नही था......और फिर जो कभी उसके लिए कभी थी ही नही, उसे खोने का डर कैसा.........फिर भी दिल तो दिल है

'क्या बात है रोहित, कोई समस्या है क्या........तुम खामोश क्यू हो बेटे'........शिवानी की आवाज़, उसमे भरा प्यार, अपनापन, ममता...ने रोहित को अंदर तक हिला दिया........मैं झूठ नही बोलूँगा.

"माजी....सच कहु तो मेरा इश्स दुनिया मे कोई नही..........मुझे तो ये भी नही पता, की मेरे मा,बाप कौन थे........जब से होश संभाला है........अपने आप को अनाथाश्रम मे पाया है......अभी, फिलहाल, मेरा एक मोटर गेराज है.....परेल मे......दादर मे फ्लॅट है.....वाहा अकेला ही रहता हू........म..मा....मैं....मैं कोई अच्छा आदमी नही हू माजी.....!".......कहते कहते, रोहित की आँखो मे आँसू आए....जो उसने बड़ी ही सफाई से छुपाये........सिर्फ़ रेवती की नज़रों से नही छुपा सका.......रेवती के होठ फड़फड़ये कुच्छ कहने के लिए....लेकिन उसके संस्कारो ने उसे रोका, अपने मा बाप के सामने, एक अजनबी से हमदर्दी जताने से.
जब सुनील वर्मा ने देखा, माहौल भारी हो चुका हैं........तो उसने माहौल को हलका करने की नियत से कहा........

"देखो रोहित ......हम किस के पेट से जन्म ले, ये हम नही तय कर सकते.........लेकिन हम अपना भविष्या ज़रूर लिख सकते हैं.......अगर तुम्हे ऐसा लगे की तुम्हे, मेरी मदद की ज़रूरत है ........तो बेशक आजा ना.....मैं तुम्हारी मदद करूँगा.

इश्स पूरे संभाषण के बाद रेवती के चेहरे पर, रोहित के लिए हमदर्दी के भाव थे........लेकिन रोहित तो, हमदर्दी नही प्यार चाहता था

ट्रेन अब स्लो हो रही थी....शायद दादर स्टेशन आ रहा था....रेवती को और रोहित को यही उतरना था....स्टेशन से बाहर निकलते ही दोनो के रास्ते अलग होने वाले थे.........पता नही फिर कब मिलने वाले थे.

रोहित ने एक आअहह भरी


सुनील वर्मा का फ्लॅट दादर चौपाटी से, कुछ दूरी पर था, 6थ फ्लोर पर, जो उसे बॅंक की तरफ से मिला था क्वॉर्टर के रूप मे, सुनील, शिवानी और रेवती जब फ्लॅट मे पहुचे तब सुबह के 8.00 बाज रहे थे, मुंबई की जिंदगी रफ़्तार पकड़ चुकी थी, रेवती पहली बार मुंबई आई थी, अब तक उसने इश्स मायानगरी के बारे मे बहुत कुच्छ सुन रखा था......जैसे मुंबई की तेज रफ़्तार जिंदगी,......किसी को बात करने की, फुरसत नही मिलती थी,......बॉलीवुड का तो अट्रॅक्षन था ही.......लेकिन यहा की झोपड़ पत्तिया, फूटपाथ की जिंदगी......गुंडे मवालीयो की एक अलग दुनिया भी होती है.......लेकिन उसने सुन रखा था........अमीरी, ग़रीबी के बीच बढ़ते जा रहे फ़ासले.......लोकल ट्रेन्स का सफ़र.......बम विस्फोट.......और भी बहोट कुच्छ.....अब तक की उसकी जिंदगी....आम तौर पे मीडियम क्लास सिटी मे गुज़री थी,,,,,,और अब वो अचानक ही आ गयी थी.....इश्स मायानगरी मे.......उसने एक झुरजुरी ली.....कैसे टिक पाएगी वो, एक साधारण सी लड़की......इश्स महानगरी मे.

कुच्छ देर तो वो व्यस्त रही.....फ्लॅट की साफ सफाई मे....घरेलू कामकाज मे.....बाद मे नहा धोकर, नाश्ता बनाने मे........बाद मे जब उसके पिताजी, सुनील वर्मा, बॅंक मे चले गये......वो गल्लारी मे कुर्सी लगा कर बैठ गयी.....नीचे सड़क पर लगी भीड़ भाड़ मे उसकी नज़ारे, अंजाने मे किसी को ढूंड ने लगी.......बस यू ही......शायद रोहित को.......कितना शरीफ लगता था वो......चेहरे पर शालीनता.....एक कॉन्फिडॅन्स,.....बातचीत मे नम्रता........क्या वो सचमुच अनाथ था....लावारिस था......जो लड़के अनाथ आश्रम मे पलते है, वो आम तौर पर.......संस्कार हीं होते हैं.....लावारीसी की जिंदगी उन्हे कठोर बना देती है......जाड़ा तर गुंडे बदमाश बन जाते हैं........लेकिन रोहित तो ऐसा नही लगता........लेकिन वो झूठ भी क्यो बोलेगा......उसे रोहित की आँखो मे पल भर के लिए आए आसू याद आए......नही वो झूठ नही बोल रहा था..........लेकिन वो रोहित के बारे मे इतना क्यो सोच रही है........वो जो भी है, जैसा भी हमे उससे क्या.

रेवती ने रोहित के ख़यालो को दिमाग़ से झटकने की कोशिश की.......लेकिन कामयाब नही हुई.

इधर रोहित जब अपने फ्लॅट मे पहुचा, तो मुन्ना उसकी राह देख रहा था.
"भाई सफ़र कैसा रहा,.......कोलकात्ता का काम कैसा रहा......कैसी थी वो...?"......मुन्ना ने आते ही सब कुच्छ जानलेना चाहा.
रोहित कुच्छ ना बोला....वो सीधे बाथरूम मे घुस गया.......उसका मूड देख ते हुए मुन्ना ने भी जाड़ा च्छेड़ना उचित नही समझा........वो नाश्ता बनाए मे जुट गया.......हाँ,. अनाथ आश्रम के दीनो से लेकर आज तक, मुन्ना और रोहित ने एक दूसरे का साथ नही छ्चोड़ा था,.........बात कोई भी हो वो एक दूसरे से डिसकस किए बिना......कोई फ़ैसला नही लेते थे.

रोहित बाथरूम से बाहर निकला, तो मुन्ना ने नाश्ता टेबल पे लगा दिया.......रोहित अभी भी गुम्सुम था.......वो खामोशी से नाश्ता करने लगा......मुन्ना को लगातार, अपने तरफ घुरता पाकर,.रोहित ने पुचछा.......

"क्या हुआ, ऐसे घूर क्यू रहा है.....सब ठीक तो है...?"
"यही तो मैं तुमसे पूछना चाहता हू भाई की.....सब ठीक तो है......तुम्हारा चेहरा ऐसा लटका हुआ क्यू है......तुम इतने परेशान क्यू लग रहे हो.....और वो कोलकाता वाली......"......मुन्ना बोलते बोलते रुक गया.....क्यू की रोहित ज़ोर ज़ोर से गर्दन हिला कर, इनकार कर रहा था.

"कोलकाता वाली का कोई ताल्लुक नही....वो हमेशा की तरह,...बिस्तर मे कलाबाजी खाने का मॅच था....जो मैं ही जीत्त गया..........बात कुच्छ और है,यार...लेकिन मुन्ना कुछ वक़्त दे मुझे, ...मैं तुझे सब बतौन्गा....बस थोडा इंतजार कर मेरे भाई"

"ठीक है भाई....तो मैं चलता हू.....गेराज मैं कुछ मशीन आई हैं उन्हे फिट करना है....क्या तुम आज गेराज नही आओगे...?'

"दोपहर मे अवँगा, फिर मशीन भी देख लूँगा.......खाना भी फिर साथ मे ही खाएँगे....?"

"ठीक है भाई...!"........कहा कर मुन्ना चला गया.

मुन्ना और रोहित दोनो साथ साथ एक ही फ्लॅट मे रहते थे, दोनो मिलकर गेराज चलाते थे......जिंदगी की हर खुशी, हर गम ...मिलकर एंजाय करते थे.......इलाक़े का हर शख्स उन्हे दोस्त नही भाई भाई ही समझ ते थे...........सिर्फ़ एक बात ऐसी थी जिसके बारे मे सिर्फ़ मुन्ना जानता था, और कोई नही..........रोहित अभी भी 'हीरे' किया जाता था.......बिस्तर मे कालाबाज़िया खाने के लिए...!

मुन्ना के जाने के बाद.....रोहित कुच्छ देर सोफे पर बैठा, टीवी मे मन लगाने की कोशिश करता रहा........लेकिन उसका मन उचाट गया था.......अतीत के साए उसका पिच्छा नही छ्चोड़ रहे थे......और आज जब,..रेवती से मुलाकात हुई......तो वो साए और भी भयानक लगने लगे थे......ना चाहते हुए भी रोहित उन सायो के आगोश मे समा गया.

बिना ने जो वादा रोहित से किया था, कविता के मामले मे हर मुमकिन मदद करने का, वो उसने बखूबी निभाया था.....पता नही उसने क्या चक्कर चलाया था, .....जो केस शायद सालो, कोर्ट मे सुनवाई की प्रतीक्षा मे पड़ा रहता, उसकी सिर्फ़ एक महीने के भीतर ही, सुनवाई शुरू हुई,...... सुनवाई के दिन जब कविता को कोर्ट मे लाया गया, वो बहद डरी, सहमी सी लग रही थी......सुजाता तो उसे ऐसे घूर रही थी, जैसे मुमकिन हुआ तो नज़रों से ही कच्चा चबा जाएगी........उसकी खा जाने वाली नज़रे, कविता को और डरा रही थी....सुजाता अभी,इश्स कली से नोट छापना चाहती थी.....उसे डरा धमका कर.....और कई बार रेप का शिकार बनाना चाहती थी.....लेकिन, कविता का केस अचानक सुनवाई पे आजाने से, उसके प्लान धरे के धरे रह गये थे.......अब अगर कविता को सज़ा भी हो जाती है, तो भी वो अब उसके कब्ज़े से निकल ने वाली थी.......यही वजह थी की सुजाता इतनी जलभुन रही थी.

कविता,....जो नही जानती थी, उसके लिए ये फेइलडिंग किसने और क्यू लगाई है, आपने अंजाम से, मुन्ना से बिछुड़ाने के डर से, बेचैन हो रही थी.........उसने देखा की मुन्ना और रोहित दोनो ही कोर्ट मे मौजूद थे, तो उसे याद आया,......मुन्ना ने कहा था,......वो और रोहित उसके लिए कुच्छ कर रहे थे....तो क्या, उसकी इतनी जल्दी सुनवाई, उसी कोशिशो का नतीजा थी......ये सोच कर उसकी जान मे जान आई.

तभी उसने देखा मुन्ना उसकी तरफ आ रहा है.

"चिंता की कोई बात नही हैं कविता......सब ठीक हो जाएगा,...ज़्यादा से ज़्यादा दो सुन वाई और होगी.....तुम छूट जाओगी......आज़ाद हो जाओगी.....मैं तुम्हारा इंतजार करूँगा."......मुन्ना ने उसके कंधे पे थपथपाया.......दोनो की ही आँखे नम थी.....एक संवेदना थी, एक दूसरे के प्रति, प्यार और विश्वास की...!

गनीमत थी की सुजाता का ध्यान उन दोनो पर नही था.

सुनवाई के पहले दिन ही सुजाता को महसूस हो रहा था, की कुच्छ खिचड़ी पकाई जा चुकी है, जिसकी उसे भनक तक नही लगी.......जो केस उसे पूरा फूलप्रूफ लग रहा था, ....अब उसमे कई ख़ामिया नज़र आने लगी थी.....भला इस झोपड़पट्टी की रहने वाली के पीठ पर कौन ऐसा हाथ रख सकता है, जो इतना समर्त्या शालि हो की पूरे केस का रुख़ ही बदल दे.

कविता को अब लग रहा था, मुन्ना की बातों मे दम था.......वो शायद छूट सकती है......और शायद मुन्ना के साथ......वो शर्मा गयी.
जब वो कोर्ट से लौट रही थी....उसकी नज़रे मुन्ना से मिली,... वो हास रहा था.....बड़ी प्यारी....बड़ी आश्वासक हँसी.

रेमंड होमे पहुचने पर, सुजाता ने काफ़ी ज़ोर दे कर, कविता से जानना चाहा, उसके सरपरस्त का नाम.......लेकिन जब कविता वाकई नही जानती थी,...तो वो कहा से बताती.......और सुजाता को डर था की ज़्यादा ज़ोर देने से अब वो खुद तकलीफ़ मे आ सकती है........लिहाजा, कविता के दिन आराम से गुजरने लगे........उन्दिनो मुन्ना जानबूझ कर उसे मिलने नही आया था.

आख़िर वो दिन आया....जिसका कविता, मुन्ना और रोहित को बेसब्री से इंतजार था........बिना की उपर तक की पहुच ने अपना कमाल दिखाया........अदालत ने कविता को,....'बा इज़्ज़त बरी' कर दिया.........कविता ने अपनी आँखे बंद की,........खुशी के मारे भी इंसान रोता है वो फुट फुट कर रोने लगी......वो अब आज़ाद थी.....उसके माथे से कलंक मिट चुका था......वो बेगुनाह तो थी ही, लेकिन अब अदालत ने उस पर अपनी मोहर लगा दी थी.......उसने मुन्ना की तरफ देखा.......क्या नही था, उसकी आँखो मे......प्यार, विश्वास, खुशी, अपनापन......और धन्यवाद भी.....कहते हैं, अपनो को धन्यवाद नही देते,...अपनेपन का अपमान होता है लेकिन क्या कभी कभी, इसके अलावा कुच्छ और भी किया जा सकता है..?

जब वो अदालत से बाहर आई......तो उसका दिल किया, दौड़ कर मुन्ना से लिपट जाए.......अपने होंठो की मोहर लगाए, उसके होंठो पर......किसी अपने को थॅंक्स कहने का इससे बढ़िया रास्ता और क्या हो सकता है........लेकिन वो पगली....सिर्फ़ रोती ही रही, मुन्ना को देख कर.

"क्या हुआ कविता.....क्या ये खुशी के आँसू हैं..?...ऐसे मौके पर....रोती हुए लड़किया, हमेशा यही जवाब देती हैं....!"......मुन्ना ने चिकोटी कसी

"क्यू सता रहे हो.....मेरे तो कुच्छ भी समझ मे नही आ रहा.......मुन्ना प्लीज़ मुझे च्छू कर कसम खाओ.....ये सब सच है ना, मैं सपना तो नही देख रही हू ना....?".......कविता अपने भावनाओ पर काबू पाने का भरसक प्रयास करती हुए बोली.

"पगली...ये सच है....सौ फीसदी सच.....और इश्स सच्चाई को हमारी जिंदगी मे लाने वाला...वो है मेरा भाई....मेरा यार....रोहित.......क्या उसे कम से कम थॅंक्स नही कहोगी...?''

रोहित का नाम सुनते ही....कविता की आँखो के सामने "वो" रात आ गयी .....उस रात का पूरा घटना क्रम...रोहित ने उसे बचाने के लिए गालिया खाई थी, जब मुन्ना उसे चोद रहा था, तब रोहित उसी कमरे मे सुजाता को खुश कर रहा था......हलकी वो जानती थी, उस रात जो भी हुआ था, उन तीनो की मजबूरी वॉश हुआ था, फिर अब रोहित के सामने जाने मैं वो शर्मा रही थी......मुन्ना की बात अलग थी,.....मुन्ना उसे उस रात से ही अच्छा लगने लगा था, प्यारा लगने लगा था........लेकिन रोहित के लिए उसके मन मे एक सम्मान था........वो जानती थी, मुन्ना की बातों से......उसकी आज की ये बेगुनाही, ये आज़ादी,.....सिर्फ़ रोहित की वजह से है.........यही वजह थी वो उसके सामने जाने मे शर्मा रही थी.........पर कब तक शरमाती.....वो मुन्ना के बड़े भाई समान था, उसका एक मात्रा दोस्त था.......और निहायत समझदार था.

कविता धीरे धीरे चलती रोहित के सामने जा खड़ी हुए......सर झुकाए,...कुच्छ नही बोली......सिर्फ़ खड़ी रही......अचानक उसने किसी का हाथ अपने सर पर महसूस किया......आँखे उठा कर देखा तो रोहित ने उसके सर पर हाथ रखा था......कविता की आँखे फिर से बहने लगी.

"रो मत कविता......तुम्हे कुच्छ भी कहने की ज़रूरत नही......मैं जानता हू, समझ सकता हू......जो तूफान तुम्हारे अंदर उठा है, वही मेरे अंदर भी चल रहा है.......जो हुआ उसे भूल जाओ, पूरी तरह से भूल जाओ.......समझ लो की वो रात हमारी जिंदगी मे कभी आई ही नही....वो एक बुरा सपना था, जो हम सबने देखा......उन यादो को लेकर हम पूरी जिंदगी नही बिता सकते.....इस लिए प्लीज़ अपने आप को सम्भालो.

रोहित की बाते सुन कर सिर्फ़ कविता का ही नही, मुन्ना का भी दिल भर आया.
कविता तो गिर ही पड़ी रोहित के चरनो मे.
दोस्तो माफी चाहता हूँ आपके मनोरंजन मैं खलल डाला लकिन आगे की कहानी के लिए अगले भाग का यानी सेक्स मशीन -3 का
इंतजार कीजिए दोस्तो आप लोगो से मुझे शिकायत है की आप लोग अपनी राय नही देते आप सबसे निवेदन है आप अपनी बेबाक
राय ज़रूर दे आप आपनी राय मेरे याहू ग्रूप या गूगली ग्रूप पर या ब्लॉग पर दे सकते है

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