Tuesday, March 16, 2010

कामुक कहानिया सेक्सी हवेली का सच--6

राज शर्मा की कामुक कहानिया

सेक्सी हवेली का सच--6

सुबह कुच्छ शोर सुनकर रूपाली की आँख खुली तो देखा के वो अब भी अपने ससुर के बिस्तर पर ही थी. उठकर बैठी तो एहसास हुआ के वो पूरी तरह से नंगी पड़ी, थी. जिस्म पर कोई कपड़ा नही था और ना ही चादर भी ओढ़ रखी थी. कमरे के बीचो बीच रखे बड़े से बिस्तर पे पूरी तरह से खुली हुई नंगी सो रही थी. रात की सारी कहानी एक झटके में उसके ज़हेन में दौड़ गयी और उसने जल्दी से चादर खींचकर अपने चारो तरफ लपेट ली.उसे कपड़े बिस्तर के पास नीचे पड़े हुए थे. रूपाली बिस्तर पे बैठे बैठे ही झुकी और अपने कपड़े उठाए तो टाँगो में हल्का सा दर्द महसूस हुआ. ठाकुर ने उसे कल रात 3 बार चोदा था. जब भी बीच में उनकी आँख खुलती वो रूपाली पे चढ़कर चूत में लंड घुसा देते. रूपाली की आँख भी चूत में लंड के घुसने से ही खुलती थी. उसकी चूत में अभी भी हल्का हल्का सा दर्द हो रहा था. चूचियाँ अभी भी हल्की हल्की सी लाल थी और गले पे ठाकुर के दांतो के हल्के से निशान बने हुए थे. वो शरम से दोहरी हो गयी पर ये भी सच था के कल रात उसे अपने औरत होने का पहली बार एहसास हुआ था. जिस्म से जो आनंद मिलता है उसका पता उसे कल रात चला था. अपने पति से चुदवाते वक़्त तो उसे बस इस बात का इंतेज़ार होता था के कब वो ख़तम करके उसके उपर से उतर पर अपने ससुर के साथ उसने जवानी के मज़े पूरी तरह लूटे. पहली बार सिर्फ़ टांगे खोलकर चुदवाया नही बल्कि कई पोज़िशन्स में अपनी चूत ठाकुर के सामने पेश करी. पहली बार गांद मरवाने की भी कोशिश की. उसे खुशी भी हुई और गम भी के ये सुख उसने अपने पति को कभी नही दिया.
बाहर अब भी कोई ऊँची आवाज़ में बोल रहा था. रूपाली जल्दी से उठकर खड़ी हुई और अपने जिस्म पे कपड़े डालकर बाहर आने को हुई थी के दरवाज़े पे रुक गयी. बाहर जो कोई भी था अगर रूपाली को ठाकुर के कमरे से सुबह सुबह इस हालत में बाहर आता देखता तो सब समझ जाता. वो दरवाज़े के पास ही कान लगाकर सुनने लगी और जल्दी ही समझ आ गया के आवाज़ किसकी थी. वो ठाकुर का अपना भतीजा जय था जो ठाकुर साहब से किसी बात पे बहेस कर रहा था.
"चाचा जी आप सोच लीजिए. मैं आपको जीतने पैसे आप चाहें देने को तैय्यार हूँ पर ये हवेली मुझको चाहिए" जय कह रहा था
"कौन से पैसो की बात कर रहे हो जय" ठाकुर की आवाज़ आई " वो पैसे जो मेरे ही हैं और जो तुमने मुझसे चुराए हैं?"
"वो सब अब मेरा है चाचा जी. और क्या चुराया मैने? आप और मेरे पिताजी इस जयदाद में बराबर के हिस्सेदार थे पर आपने उनको क्या दिया? मैने वही वापिस लिया है जो मेरा अपना था और अब इस हवेली को हासिल करके रहूँगा" जय चिल्ला रहा था और रूपाली को यकीन नही हो रहा था के ठाकुर उसकी बात सुन रहे हैं. एक वक़्त था के अपने सामने आवाज़ ऊँची करने वाले की वो गर्दन काट दिया करते थे.
बहेस कुच्छ देर और चलती रही थोड़ी देर बाद जय धमकी देकर चला गया. रूपाली बाहर निकालने की सोच ही रही थी के दरवाज़ा खुला और ठाकुर अंदर आए. उसे देखकर रुक गये और मुस्कुराते हुए बोले
"तुम कब उठी बेटी?"
"बस अभी थोड़ी देर पहले. ये आदमी कौन था पिताजी?" रूपाली ने पुछा जबकि वो अच्छी तरह से जानती थी के बाहर कौन आया था. ये कहानी वो भूषण से सुन चुकी थी.
"कोई नही. तुम छ्चोड़ो इस बात को. भूषण अपने कमरे में गया हुआ है. इससे पहले के वो वापिस आए तुम अपने कमरे में चली जाओ."
रूपाली ने ठाकुर से इस वक़्त कुच्छ पुच्छना मुनासिब नही समझा. उसने अपनी सारी का पल्लू ठीक किया और अपने कमरे में आ गयी. कमरे में आकर उसने कपड़े उतारे और बात टब में जाके बैठ गयी. कल रात की सारी कहानी फिर उसके दिमाग़ में चलने लगी और वो सोचने लगी के आगे क्या करे. ठाकुर में आया बदलाव वो देख चुकी थी. ठाकुर ने शराब को हाथ भी नही लगाया था और अब ज़िंदगी की और लौट रहे थे. शायद उनके अंदर वही मर्द लौट आया था जो पहली कहीं सो गया था. रूपाली को अपना ये मकसद तो पूरा होता दिख रहा था पर दूसरा मक़सद अभी भी अधूरा था. वो अब तक ऐसी कोई जानकारी हासिल नही कर सकी थी जिससे ये पता चल सके के उसके पति के खून की वजह क्या थी.
उसका ध्यान जय पे गया. अगर पुरुषोत्तम ज़िंदा होता तो कभी जय को वो ना करना देता जो उसके मरने के बाद जय ने किया. सारे ज़मीन जायदाद पुरुषोत्तम ही देखता था और हर चीज़ पे उसकी पकड़ थी. उसकी मौत का सबसे ज़्यादा फयडा जय को हुआ जिसने उसके जाते ही ठाकुर की पूरी जायदाद हड़प ली. वही एक शख्स था जो पुरुषोत्तम के मरने का एक कारण अपने पास रखता था. उसने मॅन ही मॅन जय से मिलने का इरादा कर लिया पर मुसीबत ये थी के उससे मिले कैसे? ठाकुर अपने घर की बहू को इस बात की इजाज़त कभी नही देंगे. और वो जय से मिलके क्या करे? कैसे इस बात का पता लगाए के जय ने उसके पति को क्यूँ मारा?
यही सोचती रूपाली बाथरूम से बाहर निकली. कपड़े पहनकर नीचे आई तो ठाकुर कहीं बाहर जा चुके थे. भूषण घर की सफाई में लगा हुआ था.
वो नीचे आई तो भूषण ने उसपे एक नज़र डाली और फिर काम में लग गया. भूषण को देखते ही रूपाली को चाभी वाली बात याद आई.
"वो चाबी कहाँ है काका?" उसने भूषण से पुचछा
"कौन सी चाभी?" भूषण उसकी तरफ देखने लगा
"बनो मत काका. वही चाबी जो आपने बगीचे से उठाई थी. वही चाभी जो आपको लगता है के उस आदमी ने गिराई थी जो रात को हवेली में आया था" रूपाली ने आवाज़ थोड़ी ऊँची करते हुए कहा
"वो मेरे कमरे में है" भूषण उसकी और देखते हुए बोला. रूपाली ने महसूस किया के वो उसके गले पे बने हुए निशान की तरफ देख रहा था
"लेकर आइए. मैं देखना चाहती हूँ" रूपाली ने निशान को ढकने की कोई कोशिश नही की.
"अभी लता हूँ" भूषण बाहर चला गया.
उसके जाने के बाद रूपाली वहीं सोफे पे बैठ गयी. उसके दिमाग़ में दो बातें आई. एक तो ये के एक भूषण ही था जो जय से मिलने में उसकी मदद कर सकता था और दूसरे ये के उसने अब तक सिर्फ़ कामिनी का कमरा देखा था. घर के बाकी कमरो में तलाशी अभी बाकी थी. उसका ध्यान सरिता देवी यानी अपनी सास की तरफ गया. बीमारी के वक़्त उनका कमरा अलग कर दिया था. वो अपने पति के साथ नही सोती थी. भूषण ने कहा था के हवेली में आने वाले अजनबी को उन्होने भी देखा था तो किसी से कुच्छ कहा क्यूँ नही? रूपाली ने उनके कमरे की तलाशी लेने का इरादा किया.
तभी भूषण वापिस हवेली में आता दिखाई दिया.
भूषण ने लाकर चाबी रूपाली के हाथ में थमा दी. रूपाली ने गौर से देखा तो चाभी किसी आम से ताले में लगने वाली चाभी थी.
"ये चाभी बनवाई गयी है बेटी" भूषण ने कहा
"क्या मतलब?" रूपाली ने पुचछा
"मतलब ये के जिस ताले को ये खोलती होगी, ये उसकी असली चाभी नही है. ये किसी ने असली चाभी की नकल बनवाई है. ये देखो घिसने के निशान" भूषण ने चाभी के आगे की तरफ इशारा किया
रूपाली ने ध्यान दिया. भूषण सच कह रहा था. चाभी बनवाई गयी थी. सामने के तरफ घिसने के निशान सॉफ देखे जा सकते थे
"हवेली में कहीं इस तरह का कोई ताला नही है" भूषण ने कहा " तो ज़ाहिर के ये चाभी इस हवेली की नही है"

"ये चाभी मैं रख रही हूँ काका" कहते हुए रूपाली ने चाभी अपनी मुट्ठी में बंद कर ली
"तुम इसका क्या करोगी?" भूषण ने पुचछा
"वही जो आपने नही किया" कहते हुए रूपाली अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी. पीछे हैरान परेशान खड़े भूषण को छ्चोड़कर
"जाने ये क्या करना चाहती है पर वो जो भी है, अच्छा नही है" सोचते हुए भूषण भी हवेली के बाहर अपने कमरे की तरफ बढ़ गया
अपने कमरे में आकर रूपाली ने कपड़े बदलकर शलवार कमीज़ पहन ली और अपने बिस्तर पर गिर पड़ी. उसके दिमाग़ में चल रहे सवालो में से एक का भी जवाब उसे नही मिला था बल्कि और काई सवाल खड़े हो गये थे. कौन था जो हवेली में रात को आता जाता था? कामिनी के पास सिगेरेत्टेस कहाँ से आती थी? चाबी की तरफ उसका कोई ख़ास ध्यान नही था पर फिर भी उसने रख ली थी. ये कोई आम सी चाभी भी हो सकती थी. जो आदमी रात को हवेली में आता था उसके घर या अलमारी की चाबी. बस एक ही बात थी चाभी के बारे में जो सोचने लायक थी और वो ये के ये असली चाभी नही थी. जो भी ताला था ये उसकी एक नकल थी. और सबसे ज़्यादा बात जो रूपाली को परेशान कर रही थी वो ये थी के रात को कोई हवेली में आया था इस बात का ज़िक्र उसकी सास ने किसी से क्यूँ नही किया? कौन सी बात थी जिसे वो च्छूपा रही थी?
सरिता देवी की तरफ ध्यान गया तो रूपाली को उनके कमरे की तलाशी लेने का ख्याल आया. हवेली की चाबियाँ अब भी उसके पास ही थी. सरिता देवी का कमरा बीमारी के वक़्त अलग कर दिया गया था डॉक्टर के कहने पे. डॉक्टर ने कहा था के जब तक सरिता देवी ठीक हों उनका ठाकुर से दूर रहना बेहतर होगा. पर सरिता देवी कभी ठीक नही हुई. लंबी बीमारी के बाद चल बसी.
रूपाली सरिता देवी के कमरे के आगे पहुँची और ताला खोलकर अंदर दाखिल हुई. अंदर कमरे में घुसकर ही इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता था के यहाँ किसी की मौत हुई थी. अजीब मनहूसियत सी थी कमरे के अंदर. दवाई की महेक कमरे में अब भी मौजूद थी. रूपाली कमरे में आकर थोड़ी देर खड़ी यही सोचती रही के कहाँ से शुरू करे.कमरे में ज़्यादा समान नही था. बस एक अलमारी जिसमें सरिता देवी के कुच्छ कपड़े रखे थे और एक टेबल जिसपे उनकी दवाइयाँ रखी होती थी. रूपाली कमरे में टहलती खिड़की तक पहुँची और खोलकर बाहर देखने लगी. सामने झाड़ियों का एक जंगल उगा हुआ था. कभी यहाँ पर फूलों का एक खूबसूरत बगीचा होता था. रूपाली को फ़ौरन एहसास हुआ के इस जगग पे खड़े होकर पुर बगीचे का नज़ारा उपेर से मिलता था. अगर कोई बगीचे में था तो रात के अंधेरे में भी सॉफ नज़र आता तो अगर भूषण जो कह रहा है वो सच है, तो सरिता देवी ने उस रात उस आदमी को ज़रूर देखा होगा पर किसी से कुच्छ कहा नही.
रूपाली पलटकर फिर कमरे में आई और सरिता देवी के कपड़े उठाकर बिस्तर पर रखने लगी. अलमारी पूरी खाली कर दी पर कुच्छ हाथ ना आया. उसने कमरे में रखे सोफे के गद्दे हटाए पर वहाँ भी कुच्छ ना मिला. बिस्तर की चादर हटाकर एक तरफ कर दी. थोड़ी देर में पूरा कमरा उथल पुथल हो चुका था पर रूपाली के हाथ सिर्फ़ निराशा ही लगी.
तक कर रूपाली वहीं सोफे पे बैठ गयी और दरवाज़े की तरफ नज़र की तो उसके होश उड़ गये. वहाँ खड़ा भूषण आँखें फाडे उसे देख रहा था. वो समझ चुका था के रूपाली कमरे की तलाशी ले रही है रूपाली झटके से उठकर खड़ी हो गयी और भूषण की तरफ देखने लगी. उसका दिल काँप उठा था. अगर भूषण ने जाकर ठाकुर को बता दिया तो रूपाली क्या कहेगी के वो क्या कर रही थी और क्यूँ कर रही थी? उसका सारा प्लान बिगड़ जाएगा.
उसने दिल ही दिल में कुच्छ फ़ैसला किया और तेज़ कदमो से भूषण की तरफ बढ़ी. भूषण ने उसे पास आता देखा तो दो कदम पिछे हटा. रूपाली एक ही पल में उसके करीब पहुँची और उसे धक्का देकर दीवार से लगा दिया. इससे पहले के भूषण कुच्छ समझ पता रूपाली उससे सॅट गयी और अगले ही पल दोनो के होंठ मिल चुके थी. रूपाली ने भूखी शेरनी की तरफ भूषण के होंठो को चूसना शुरू कर दिया, अपनी चूचियाँ भूषण की छ्चाटी से चिपका दी और नीचे अपने हाथ से भूषण का लंड पकड़ लिया. उसे सॉफ महसूस हो रहा था के भूषण का पूरा जिस्म काँपने लगा था. आख़िर 70 साल का बुद्धा था बेचारा. रूपाली ने एक हाथ से भूषण का पाजामा खोला और उसे नीचे सरका दिया. अगले ही पल भूषण के लंड उसके हाथ में था जिसने उसे हिलाना शुरू कर दिया. भूषण काँप ज़रूर रहा था पर पिछे हटने की कोई कोशिश नही कर रहा था. उल्टे उसका एक हाथ रूपाली की कमर से घूमकर उसकी गांद पे आ गया था. रूपाली अब भी उसे होंठ चूस रही थी और उसके लंड पे मूठ मार रही थी. वो इस कोशिश में थी के शायद बुढहा लंड खड़ा हो जाए पर ऐसा हुआ नही. थोड़ी देर ऐसे ही लंड हिलाके भी जब उसे कुच्छ होता नज़र ना आया तो उसने भूषण के लंड से हाथ हटाया और अपनी शलवार का नाडा खोल दिया. सलवार एक पल में सरक कर नीचे जा गिरी.पॅंटी रूपाली ने अंदर पहन नही रखी थी. भूषण ने फिर से हाथ उसकी गांद पे रख दिया पर अब शलवार बीच में नही थी. कमीज़ के अंदर से होता हाथ सीधा रूपाली की नंगी गांद पे आ लगा.
रूपाली ने भूषण का हाथ अपनी गांद से हटाया और थोड़ा पिछे होकर मुस्कुराइ. भूषण ने उसे सवालिया नज़र से देखा. रूपाली चलकर कमरे में रखी टेबल तक पहुँची. शलवार अब भी उसके पैरों में फसि हुई थी. टेबल के नज़दीक पहुँचकर रूपाली ने अपनी दोनो हाथ अपनी टाँगो पे फेरते हुए उपेर अपनी गांद पे लाई और अपनी कमीज़ को उपेर उठा लिया. एक हाथ से कमीज़ को पकड़े हुए उसने दूसरा हाथ टेबल पे रखा और आगे को झुक गयी. टांगे उसने अपने फेला दी. अब उसकी गांद भूषण के सामने दी. आगे को झुकी होने के कारण पिछे से उसे रूपाली की चूत भी सॉफ नज़र आ रही थी. रूपाली ने पलटकर भूषण की तरफ देखा. वो रूपाली की गांद को ऐसे देख रहा था जैसे को भूखा कुत्ता गोश्त की बोटी को देख रहा हो. रूपाली भूषण की तरफ देखकर मुस्कुराइ और अपनी कमीज़ को छ्चोड़कर वो हाथ अपनी गांद पे फेरने लगी. कमीज़ उसके पेट पे सिकुड गयी. रूपाली गांद पे हाथ फेरते हुए अपनी टाँगो के बीच हाथ ले गयी. एक बार अपनी चूत को धीरे से सहलाया और भूषण की तरफ देखते हुए बोली
"आ जाओ काका. देखते ही रहोगे क्या?"

भूषण आखें फाडे उसकी तरफ देख रहा जैसे उसे यकीन सा ना हो रहा हो. रूपाली ने दोबारा उसे आँख के इशारे से अपनी तरफ आने का इशारा किया तो वो धीरे धीरे रूपाली की तरफ बढ़ा. वो सीधा रूपाली के पिछे जा खड़ा हुआ और उसकी मोटी गांद को आँखें फाडे देखने लगा. उसकी साँस ऐसे चल रही थी जैसे कोई दमे का मरीज़ हो, जैसे अभी अस्थमा का अटॅक आया हो. जब भूषण ने कुच्छ ना किया तो रूपाली ने थोड़ा पिछे होकर उसका एक हाथ पकड़ा और अपनी गांद पे रख दिया.
"क्या हुआ काका? अभी थोड़ी देर पहले शलवार के उपेर से तो बड़ा गांद सहला रहे थे. अब मैं खोलके खड़ी हूँ तो बस देखे जा रहे हो?"
भूषण ने अपने हाथ से फिर उसकी गांद को सहलाना शुरू कर दिया. रूपाली ने देखा के दूसरे हाथ से वो अपना लंड हिला रहा था, शायद खड़ा करने की नाकाम कोशिश कर रहा था. भूषण ने अपने हाथ रूपाली की गांद के बीचे में रखा और उसकी गांद के छेद से चूत तक अपनी उंगली फिरने लगा. रूपाली का जिस्म भी अब गरम होने लगा था और चूत गीली हो रही थी. थोड़ी देर तक ऐसे ही सहलाने के बाद भूषण ने अपना दूसरा हाथ भी रूपाली के गांद पर रख दिया और उसकी गांद को मज़बूती से पकड़ लिया. रूपाली कद में उससे ऊँची थी, उससे कहीं ज़्यादा लंबी इसलिए उसके चूत भूषण के पेट तक आ रही थी. रूपाली पलटी तो देखा के भूषण अपने पंजो पे खड़ा होकर अपना लंड उसकी चूत तक पहुँचने की कोशिश कर रहा है पर कर नही पा रहा था. वो किसी मरियल कुत्ते की तरह अपना लंड हवा में ही हिला रहा था. रूपाली की हसी छूटने लगी पर उसपे कभी करते हुए उसने अपने घुटने मोड़ लिया. शलवार अब भी टाँगो में फासी हुई थी इसलिए वो अपने पेर और ज़्यादा नही फेला सकी पर घुटने काफ़ी हाढ़ तक मोड़ लेने की वजह से उसकी चूत नीचे हो गयी. अब भूषण का लंड उसकी चूत से आ लगा पर भूषण अब भी उसे चोदने में कामयाब नही हो पाया. उसका लंड ज़रा भी खड़ा नही हुआ था. एक तो छ्होटा सा लंड, उपेर से 70 साल के आदमी का और वो भी बैठा हुआ, भूषण बस लंड चूत पे रगड़ता ही रह गया.
अपने नंगे जिस्म पे भूषण के हाथों के स्पर्श से रूपाली पूरी तरह गरम हो चुकी थी और जब भूषण लंड चूत में घुसा नही पाया तो वो झल्ला उठी. उसने भूषण का हाथ अपनी गांद से हटाया और सीधी होकर खड़ी हो गयी. भूषण की तरफ पलटी और भूषण को खींचकर लगभग धक्‍का सा देकर उसे अपनी सास के बिस्तर पे गिरा दिया. उसके बाद उसने झुक कर अपने पैरों में फासी शलवार को निकालर एक तरफ उच्छाल दिया और भूषण के साथ बिस्तर पे चढ़ गयी. भूषण अब भी हैरान परेशान सा उसे देख रहा था. उसके हालत सचमुच एक कुत्ते जैसे हो गयी थी. रूपाली ने अपने दोनो हाथ उसकी छाती पे रखे और अपनो दोनो टाँगें भूषण के दोनो तरफ रखकर उसपे चढ़ बैठी. उसने नीचे से एक हाथ में भूषण का लंड पकड़ा और अपनी छूट में घुसने की कोशिश करने लगी पर नतीजा वही. लंड 1 इंच भी अंदर नही जा पा रहा था. रूपाली का दिल किया के भूषण को वहीं कमरे से नीचे फेंक दे, उसने अंदर लंड घुसने की कोशिश छ्चोड़ अपने अपनी गांद नीचे की और चूत को भूषण के लंड पे उपेर से ही रगड़ने लगी. भूषण ने दोनो हाथ से बेड को पकड़ रखा था और अपने उपेर बैठी रूपाली को चूत लंड पे रगड़ते देख रहा था. उसका लंड रूपाली की चूत के नीचे दबा हुआ था.
रूपाली तो जैसे हवा में उड़ रही थी. ये पहली बार था के वो किसी मर्द के उपेर बैठी थी. आज तक सिर्फ़ वो चुदी थी, कभी खुद नही चुदवाया था. लंड चूत में ना होने के बावजूद उसके शरीर में वासना पुर जोश पे आ चुकी थी. चूत उसने ज़ोर ज़ोर से भूषण के लंड पे रगड़नी चालू कर दी थी. पूरा बिस्तर हिल रहा था. रूपाली कभी खुद कमीज़ के उपेर से ही अपनी चूचियाँ दबाती, कभी खुद अपनी गांद पे हाथ फिराती और कभी झुक कर बिस्तर पे अपने दोनो हाथ रख भूष्ण के उपेर लेट सी जाती. बिस्तर पे रखी उसकी सास के कपड़े इधर उधर फेल चुके थे. रूपाली की एक नज़र उनपे पड़ी तो उसके दिमाग़ में घंटियाँ सी बजने लगी.
सामने सरिता देवी की सारी रखी हुई थी और खुलकर आधी बिस्तर से नीचे लटक रही थी और उस सारी के पल्लू में बँधी हुई थी एक चाभी. रूपाली ने भूषण के लंड पे चूत रगड़ते हुए गौर से देखा तो ये चाभी उस चाभी से मिलती लगी जो भूषण ने उसे दी थी. उसने हाथ बढ़कर चाभी उठाने की कोशिश की ही थी के हवेली के बाहर एक कार के रुकने की आवाज़ आई.
भूषण और रूपाली एक झटके में एक दूसरे से अलग हो गये और अपने कपड़े ठीक करने लगे.
"शायद पिताजी आ गये. आप नीचे चलिए मैं कमरा ठीक करके आती हूँ" रूपाली ने शलवार का नाडा बाँधते हुए भूषण से कहा.
भूषण ने अपना पाजामा उपेर खींचा और उसे ठीक से पहनता हुआ कमरे से बाहर चला गया. रूपाली ने उसके जाते ही अपना हुलिया ठीक किया और सारी में बँधी चाभी को निकालकर अपने ब्रा में घुसा लिया. वो कमरा ठीक करने को हुई ही थी के नीचे से भूषण की उसे बुलाने की आवाज़ आई
"बहू ज़रा नीचे आइए. कोई आया है"
रूपाली हैरत में पड़ गयी. आज सालो बाद शायद कोई अजनबी इस हवेली में आया है. उसे अपना दुपट्टा ठीक किया और सीढ़ियाँ उतारकर नीचे आई. नीचे बड़े कमरे में एक आदमी सफेद कमीज़ और खाकी पेंट पहने खड़ा हवेली को देख रहा था, जैसे जायज़ा ले रहा हो. रूपाली को आता देखा तो वो उसकी तरफ पलटा और अपनी जेब में हाथ डाला.
"सलाम अर्ज़ करता हूँ मेडम." उसने अपनी जेब से कुच्छ निकाला और रूपाली की तरफ बढ़ाया
"बंदे को ख़ान कहते हैं, इनस्पेक्टर ख़ान" वो अपना आइ कार्ड रूपाली को दिखाते हुए बोला "वैसे मेरा पूरा नाम मुनव्वर ख़ान है पर लोग मुझे प्यार से मुन्ना भी कहते हैं"

"कहिए" रूपाली सीढ़ियों से उतरती हुई बोली
"ख़ास कुच्छ नही है" ख़ान उसे उपेर से नीचे तक देखते हुए बोला" इस इलाक़े में नया आया हूँ तो सोचा ठाकुर साहब से मिल लूँ एक बार"
"वो तो इस वक़्त घर पर नही हैं" रूपाली सोफे की तरफ इशारा करते हुए बोली " आप बैठिए. कुच्छ लेंगे"
"इस वक़्त तो ठंडा ही ले लेते हैं" ख़ान सोफे पर बैठते हुए बोला. रूपाली ने भूषण को ठंडा लाने का इशारा किया
"अगर मैं ग़लत नही हूँ तो आप ठाकुर साहब की बड़ी बहू रूपाली जी हैं ? " ख़ान ने रूपाली से पुचछा
"बड़ी बहू नही, उनकी एकलौती बहू" रूपाली ने कहा
"ओह " ख़ान ने तभी आए भूषण के हाथ से ग्लास पकड़ते हुए बोला
तभी बाहर से कार रुकने की आवाज़ आई
"लगता है ठाकुर साहब आ गये" ख़ान ग्लास नीचे रखकर खड़ा होता हुआ बोला
कुच्छ पल बाद ही ठाकुर दरवाज़े से अंदर दाखिल हुए. ख़ान फ़ौरन हाथ जोड़कर आगे बढ़ा
"सलाम अर्ज़ करते हूँ ठाकुर साहब"
ठाकुर ने ख़ान की तरफ अजीब सी नज़र से देखा.
"जी मेरा नाम इनस्पेक्टर मुनव्वर ख़ान है. इस इलाक़े में नया ट्रान्स्फर हुआ हूँ" ख़ान ने फिर ई कार्ड निकालकर दिखाया " वैसे लोग मुझे प्यार से मुन्ना भी कहते हैं"
ठाकुर ने सोफे पे बैठे हुए ख़ान को बैठने का इशारा किया और रूपाली की तरफ देखकर उसे वहाँ से जाने का इशारा किया. रूपाली बड़े कमरे से निकलकर सीढ़ियों के पास आकर रुक गयी और दीवार की ओट में बातें सुनने लगी.
"शर्मा का क्या हुआ?" ठाकुर ने ख़ान से पहले उस इलाक़े में पोस्टेड इनस्पेक्टर के बारे में पुचछा
"रिटाइर हो गये." ख़ान ने जवाब दिया
"ह्म्‍म्म्म" ठाकुर ने इतना ही कहा
"मैं नया आया था तो सोचा के आपसे मुलाक़ात हो जाए" ख़ान ने अपनी बात जारी रखी " और आपसे कुच्छ बात भी करनी थी तो सोचा के वो भी कर लूँ"
"किस बारे में " ठाकुर ने पुचछा
"आपके बेटे के मौत के बारे में" ख़ान ने सीधा जवाब दिया.
थोड़ी देर यूँ ही खामोशी बनी रही. ना ठाकुर ने कुच्छ कहा ना ख़ान ने. थोड़ी देर बाद फिर ठाकुर के आवाज़ आई.
"मेरे बेटे को मरे हुए 10 साल हो चुके हैं .....ह्म्‍म्म्मम क्या नाम बताया तुमने अपना?
"ख़ान, मुनव्वर ख़ान. वैसे लोग मुझे मुन्ना भी कहते हैं" ख़ान की आवाज़ आई" 10 साल बीत तो चुके हैं ठाकुर साहब पर केस तो हमारी फाइल्स में आज भी ओपन है. देखा जाए तो शर्मा ने इस बारे में कुच्छ नही किया"
"उसे ज़रूरत भी नही थी कुच्छ करने की" ठाकुर की आवाज़ थोड़ी तेज़ हो गयी "हमारे मामले हम खुद निपटाते हैं. पोलीस धखल नही देती हमारी बातों में"
"जानता हूँ" ख़ान ने ठहरी हुई आवाज़ में जवाब दिया " आप अपने मामले खुद निपटाते हैं शायद इसी लिए आपने आस पास के इलाक़े में ना जाने कितनी लाशें गिरा दी अपने बेटे के क़ातिल की तलाश में, है ना ठाकुर साहब"
थोड़ी देर के लिए हवेली में सन्नाटा छा गया. कोई कुच्छ नही बोला. रूपाली की साँस भी अटक गयी. ठाकुर के सामने इस तरह से बात करने की किसी ने जुर्रत नही की थी. उनका रुबब अब इलाक़े में ख़तम हो चुका था शायद इसी लिए एक मामूली पोलीस वाला उनके सामने बैठकर इस अंदाज़ में बात कर रहा था.
"हवेली के बाहर जाने का रास्ता तुम्हें मालूम है या मैं बताऊं?" ठाकुर की आवाज़ आई
"मालूम है ठाकुर साहब" ख़ान ने जवाब दिया.
थोड़ी देर बाद ख़ान के हवेली से बाहर जाते कदमों की आवाज़ आई.

उस रात रूपाली फिर अपने ससुर के बिस्तर पे नंगी पड़ी हुई थी. ठाकुर उसे चोद्कर नींद के आगोश में जा चुके थे पर रूपाली की आँखों से नींद कोसो दूर थी. उसे ख़ान का यूँ हवेली में आना और 10 साल पुरानी हत्या के बारे में बात करना कुच्छ ठीक नही लग रहा था. आम तौर पर पुलिस वाले हवेली के अंदर आने की हिम्मत नही करते थे पर आज वक़्त बदल गया था. ठाकुर का रौब ख़तम हो चुका था. आज एक पुलिस वाला उनकी ही हवेली में उनपर इस बात का इल्ज़ाम लगा गया था के उन्होने अपने बेटे के बदले में खुद कई लोगों की हत्या की है. वो अब भी जवाबों से कोसों दूर थी.
ख़ान के जाने के बाद वो सीधा अपने कमरे में पहुँची थी और अपनी सास के कमरे से मिली चाभी को भूषण की दी चाभी से मिलाने लगी. दोनो चाबियाँ एक जैसी थी और सबसे गौर तलब बात ये थी के दोनो में से एक भी चाभी असली नही थी. दोनो ही नकल थी असली चाभी की. जो बात रूपाली को परेशान कर रही थी वो ये थी के क्या उसकी सास उस आदमी को जानती थी जिसे भूषण ने रात में हवेली में देखा था. शायद जानती थी इसलिए किसी से उसके बारे में कुच्छ कहा नही और अगर नही जानती थी तो ये चाभी उनके पास क्या कर रही है?
रूपाली को दो बातें और परेशान कर रही थी. एक तो ये के उसकी शादी से पहले इस हवेली में क्या कुच्छ हुआ था वो कुच्छ नही जानती थी. इस हवेली के इतिहास के बारे में कभी उसके पति ने भी उससे ज़िक्र नही किया था. और जो दूसरी बात थी वो जय की कही हुई थी. के उसने ठाकुर से वही सब लिया जो उसका अपना था. और इन दोनो बातों के सही जवाब जो आदमी उसे दे सकता था वो खुद जय था. आख़िर वो इसी घर का हिस्सा था. इसी हवेली में पला बढ़ा था. पर उससे रूपाली मिले कैसे. और अगर मिले भी तो अपने सवालों के जवाब कैसे हासिल करे. ठाकुर से वो इस बारे में सीधी बात नही कर सकती थी क्यूंकी वो जानती थे के ठाकुर या तो बताएँगे नही और अगर बताएँगे तो पूरी बात नही. और फिर ये सवाल भी उठेगा के रूपाली क्यूँ ये सब सवाल कर रही है.
रूपाली ने दरवाज़े की तरफ देखा. आज रात दरवाज़ा बंद ही रहा. आज भूषण ने पिच्छली 2 बार की तरह उसे चुदवाते हुए नही देखा था और ना ही रूपाली ने भूषण से आज इस बारे में बात की थी. और इसी चक्कर में वो ये भी पुच्छना भूल गयी थी के क्या भूषण कामिनी को सिगेरेत्टेस लाकर देता था और अगर लाता था तो काब्से?
यही सब सोचते रूपाली ने आपे ससुर की तरफ नज़र उठाई जो दुनिया से बेख़बर सो रहे थे. रूपाली के दिल में अब उनके लिए प्यार उठने लगा था. जो आदमी रूपाली के पास नंगा सोया पड़ा था वो उसका ससुर नही उसका प्रेमी था. रूपाली ने करवट ली और ठाकुर के सोए हुए लंड को हाथ में पकड़ा. लंड बैठा होने के बावजूद पूरा उसके हाथ में नही आ रहा था. रूपाली ने मुट्ठी बंद की और लंड को धीरे धीरे हिलाने लगी. उसकी इस हरकत से ठाकुर की आँख खुल गयी और उन्होने मुस्कुराते हुए उसकी तरफ करवट ली. रूपाली ने लंड हिलना जारी रखा. लंड जब पूरा खड़ा हो गया तो ठाकुर ने उसे सीधा लिटाया, उसके उपेर चढ़े और उसकी टांगे खोलकर लंड अंदर घुसा दिया
दोस्तो यह कहानी आप जब तक पूरी नही पढ़ेंगे तब तक शायद आपकी समझ मैं ना आए इसलिए इस कहानी को को पूरा
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अगले दिन सुबह रूपाली फिर देर से उठी. वो ठाकुर के बिस्तर पे नंगी पड़ी थी और ठाकुर उठ चुके थे. पिच्छले कुच्छ दीनो से रूपाली का रोज़ाना देर से उठना जैसे उसकी एक आदत बन गया था. कहाँ तो वो रोज़ाना सुबह 4 बजे उठकर नहा धोकर पूजा पाठ में लग जाती थी और कहाँ अब उसे होश ही नही रहता के कितने बजे उठना है.
"आप कुच्छ हवेली की सफाई की बात कर रही थी. कुच्छ होता दिख नही रहा" नाश्ता करते हुए ठाकुर ने उससे पुचछा
रूपाली से जवाब ना सूझा. कैसे बताती के उसने चाबियाँ सिर्फ़ हवेली की तलाशी लेने के लिए ली थी, सफाई तो सिर्फ़ एक बहाना था.
"कई बार हिम्मत की के शुरू करूँ पर इतनी बड़ी हवेली और अकेली मैं, सोचकर ही हिम्मत हार जाती थी" रूपाली हस्ते हुए बोली
"मैं कुच्छ आदमियों का इंतजाम कर देता हूँ" ठकुए ने भी हस्ते हुए जवाब दिया
"नही उसकी ज़रूरत नही. मैं खुद ही कर लूँगी. कल से शुरू कर दूँगी" रूपाली ने कहा
"कल से?" ठाकुर ने पुचछा " क्यूँ आज कोई ख़ास प्लान है क्या?
"हां" रूपाली ने सावधानी से अपने शब्द चुनते हुए कहा " मैं सोच रही थी के........"
"क्या?" ठाकुर ने चाइ का ग्लास उठाते हुए कहा
"मैं कुच्छ नही जानती हमारी ज़मीन जायदाद के बारे में. जबसे शादी करके आई हूँ तबसे बस घर की छिप्कलि बनी बैठी रही." रूपाली ने नज़र झुकाए हुए बोला
"तो?" ठाकुर ने चाइ पीते हुए उससे पुचछा
"तो मैं सोच रही थी के आज ज़मीन का एक चक्कर लगा आउ. अगर आप इजाज़त दें तो" रूपाली ने नज़र अब भी झुकाए रखी
"अरे इसमें मेरी इजाज़त की क्या ज़रूरत है? आपका घर हैं, आपकी ज़मीन है. आप जब चाहे देखिए" ठाकुर ने नाश्ते की टेबल से उठते हुए कहा.
रूपाली भी उनके साथ साथ उठ खड़ी हुई
"मुझे आज वक़ील से मिलने जाना है और कुच्छ और काम भी है. आप भूषण को साथ ले जाइए"ठाकुर ने कहा
उनके चले जाने के बाद रूपाली तैय्यार हुई. अब सवाल ये था के अगर वो भूषण को साथ लेके गयी तो हवेली खाली हो जाएगी. उसने फ़ैसला किया के वो खुद जाएगी. भूषण को जब उसने बताया तो पहले तो उसने मना किया पर फिर रूपाली के ज़ोर डालने पर मान गया और उसे जो ज़मीन अब भी ठाकुर के पास बची थी उसका रास्ता बता दिया.
रूपाली गाड़ी लेकर अकेली ही निकल गयी. कार चलाना उसे अच्छी तरह आता था पर उसे याद नही था के आखरी बार वो ड्राइविंग सीट पे कब बैठी थी इसलिए धीरे धीरे कार चलते हुए गाओं पार कर जिस तरफ भूषण ने बताया था उस तरफ निकल गयी.
दोस्तो इस पार्ट कोयहीं ख़तम कर रहा हूँ आगे की कहानी जानने के लिए अगले पार्ट को पढ़ें आपका दोस्त राज शर्मा

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