हिंदी सेक्सी कहानिया
रेल यात्रा: --1
रेलवे स्टेशन पर भारी भीड़ थी; आने वालों की भी और जाने वालों की भी. तभी
स्टेशन पर अनाउन्स्मेंट हुई," कृपया ध्यान दें, देल्ही से मुंबई को जाने
वाली गंगा एक्सप्रेस 24 घंटे लेट है"
सुनते ही आशीष का चेहरा फीका पड़ गया... कहीं घर वाले ढ़हूँढने रेलवे
स्टेशन तक आ गये तो... उसने 3 दिन पहले ही रिज़र्वेशन करा लिया था मुंबई
के लिए ... पर अनौंसेमेंट सुनकर तो उसके सारे प्लान का कबाड़ा हो गया....
उसने सुना एक पस्संगेर ट्रेन ने विज़ल दी, चलने के लिए.... वो भाग कर उसी
में सवार हो गया...
अंदर काफ़ी मशक्कत से घुस पाया... अंदर पैर रखने की जगह मुश्किल से मिली.
सभी खड़े थे.. क्या पुरुष और क्या औरत... सभी का बुरा हाल था और जो बैठहे
थे; वो बैठहे नही थे.. लेट थे... पूरी बेर्थ पर कब्जा किए...
आशीष ने बाहर झाँका; उसको डर था.. घरवाले आकर उसको पकड़ ना लें; वापस ना
ले जाए... उसका सपना ना तोड़ दें... हीरो बन-ने का!
आशीष घर से भाग कर आया था, हीरो बन-ने के लिए.. शकल सूरत से हीरो ही लगता
था.... हाइट में अमिताभ जैसा; स्मार्टनेस में अपने सलमांन जैसा... बॉडी
में आमिर ख़ान जैसा ( ग़ज़नी वाला... 'दिल' वाला नही) और आक्टिंग में
शाहरुख ख़ान जैसा... वो इन सबका दीवाना था... इसके साथ ही हेरोइनस का भी.
उसने सुना था... एक बार कामयाब हो जाओ फिर सारी यंग मॉडॉल्स हीरो और
डाइरेक्टर से चुदाई करवाती हैं.... बस यही मकसद था उसका हीरो बन-ने
का.....
हेरोगीरि के सपनों में खोए हुए आशीष को अचानक पीच्चे से किसी ने धक्का
मारा... वो चौंक कर पीच्चे पलटा..
"देख कर नही खड़े हो सकते क्या भैया... बुकिंग करा रखी है क्या"
आशीष देखता ही रह गया ... गाँव की सी लगने वाली एक अल्हड़ जवान युवती
उसको झाड़ पीला रही थी. उमर करीब 20 साल होगी. ब्यहता (विवाह की हुई)
लगती थी. चोली और घाघरे में... छ्होटे कद की होने की वजह से आशीष को उसकी
श्यामल रंग की चूचियाँ काफ़ी अंदर तक दिखाई दे रही तही. चूचियों का आकर
ज़्यादा बड़ा नही लगता था, पर जितना भी तहा... मनमोहक था... आशीष उसकी
बातों पर कम उसकी मस्तियों पर ज़्यादा ध्यान दे रहा था.
युवती ने जब उसको उसकी गोल्लाईयों पर ध्यान धरे देखा तो उसने अपना पल्लू
सिर से उतार कर उनको धक लिया और धीरे धीरे बड़बड़ाने लगी," बेशर्म कही
के; घर में मा बेहन नही होती क्या झाँकने के लिए.".. फिर तेज़ आवाज़ में
बोली.... " सीधे खड़े हो जाओ ना... उपर ही चढ़े आ रहे हो!
उस्स अबला की पुकार सुनकर भीड़ में से करीब 45 साल के एक आदमी ने सिर
निकाल कर कहा," कौन है बे?" पर जब आशीष के डील डौल को देखा तो उसकी टोन
बदल गयी," भाई कोई मर्ज़ी से थोड़े ही किसी के उपर चढ़ना चाहता है... या
तो कोई चढ़ना चाहती हो या फिर मजबूरी हो! जैसे अब है..." उसकी बात पर सब
ठहाका लगाकर हंस पड़े... तभी एक बुढहे की आवाज़ आई," कृष्णा! ठीक तो हो
बेटी"
पल्ले से सिर धकते उस्स 'क्रिशना' ने जवाब दिया," कहाँ ठीक हूँ बापू!" और
फिर से बड़बड़ाने लगी," अपने पैर पर खड़े नही हो सकते क्या?"
आशीष ने उसके चेहरे को देखा... रंग गोरा नही था पर चेहरे के नयन नक्श
हेरोइनो को भी मात देते थे... गोल चेहरा, पतली छ्होटी नाक और कमल जैसे
होंट... आशीष बार बार कनखियों से उसको देखने लगा.
तभी कृष्णा ने आवाज़ लगाई," रानी ठीक है क्या बापू, वहाँ जगह ना हो तो
यहाँ भेज दो... यहाँ थोड़ी सी जगह बन गयी है..."
और रानी वहीं आ गयी. कृष्णा ने अपने और आशीष के बीच रानी को फँसा दिया.
रानी के गोल मोटे चूतड़ आशीष की जांघों से सटे हुए थे. ये तो कृष्णा ने
सोने पर सुहागा कर दिया.
अब आशीष कृष्णा को छ्चोड़ रानी को देखने लगा... उसके लट्तू भी बड़े बड़े
थे... उसने एक मैली सी सलवार कमीज़ डाल रखी थी. उसकी हाइट भी करीब 5'4"
होगी. कृष्णा से करीब 2" लंबी! उसका चहरा भी उतना ही सुंदर था और थ्होडी
सी लाली भी झलक रही थी... फिगर मस्त थ्हा... कुल मिला कर आशीष का टाइम
पास का अच्च्छा साधन मिल गया था.
रानी कुँवारी लगती थी... उमर से भी और फिगर से भी. आशीष रह रह कर उसकी
गांद से अपनी जांघें घिसाने लगा पर शायद उसको अहसास ही नही हो रहा था. या
फिर क्या पता उसको भी मज़ा आ रहा हो.
अगले स्टेशन पर डिब्बे में और जनता घुश आई और लाख कोशिश करने पर भी
कृष्णा अपने चारों और लफेंगे लोगों को सटकार खड़ा होने से ना रोक सकी...
उसका दम सा घुटने लगा... एक आदमी ने शायद उसकी गेंड में कुच्छ चुबा दिया.
वा उच्छल कर पड़ी... क्या कर रहे हो? दिखता नही क्या!
"ऐ मेडम; ज्यस्ती बकवास नही मारने का; ठंडी हवा का इतना इच शौक पल रैल्ली
है.. तो अपनी गाड़ी में बैठह के जाने का क्या..." वो दुबक सी गयी... वो
तो बस आशीष जैसों पर ही डाट मार सकती थी.
कृष्णा को सारे गंदे लोगों में आशीष ही थोड़ा कम गंदा लगा. वो रानी समेत
चिपक कर आशीष के साथ खड़ी हो गयी, जैसे कहना चाहती हो, तुम ही सही थे,
इनसे तो भगवान बचाए!
आशीष भी जैसे उनके चिपकने का मतलब समझ गया; उसने पलट कर अपना मुँह उनकी
ही और कर लिया और अपनी लंबी मजबूत बाजू उनके चारों और बॅरियर की तरह लगा
दी.
कृष्ण ने आशीष को देखा; आशीष हिचक के साथ बोला," जी उधर से दबाव पड़ रहा
है... आपको टच ना हो जाऊं इसीलिए अपने हाथ बर्त से लगा लिए.... जैसे
कृष्णा उसका मतलब समझी ही ना हो... उसने आशीष के बोलना बंद करते ही अपनी
नज़रें हटा ली... अब आशीष उसकी चुचियों को अंदर तक ओर रानी की चूचियों को
बाहर से देखने का आनंद ले रहा था.... फ्री में... अब कृष्णा ने कोशिश भी
नही की उनको आशीष की नज़रों से बचाने की...
"कहाँ जा रहे हो!" कृष्णा ने लोगों से उसको बचाने के लिए जैसे धन्यवाद
देने की खातिर पूच्छ लिया.
"मुंबई" आशीष उसकी बदली आवाज़ पर काफ़ी हैरान तहा... "और तुम?"
"भैया जा तो हम भी मुंबई ही रहे हैं... पर लगता नही की पहुँच पाएँगे
मुंबई तक.!" कृष्णा अब ठीक बात कर रही थी.
"क्यूँ?" आशीष ने बात बढ़ा दी!
"अब इतनी भीड़ में क्या भरोसा!" मैने कहा तो है बापू को की जॅयैपर से
तत्काल करा लो; पर वो बुद्धा माने तब ना!"
"भाभी! बापू को ऐसे क्यूँ बोलती हो?" रानी की आवाज़ उसके चिकने गालों
जैसी ही प्यारी थी.
आशीष के मॅन में प्लान घूमने लगा. अब वो इनके साथ ज़्यादा से ज़्यादा
रहना चाहता था. आशीष ने एक बार फिर कृष्णा की चूचियों को अंदर तक देखा...
उसके लंड में तनाव आने लगा... और शायद वो तनाव रानी अपनी गांद की दरार
में महसूस करने लगी..
रानी बार बार अपनी गांद को लंड की सीधी टक्कर से बचाने के लिए इधर उधर
मटकाने लगी... और उसका ऐसा करना उसकी ही गांद के लिए नुकसान देह साबित हो
रहा था.
लंड गांद से सहलाया जाता हुआ और अधिक टाइट होने लगा... और अधिक खड़ा होने लगा.
पर उसके पास ज़्यादा विकल्प नही थे... वो दाई गोलाई को बचाती तो लंड बाई
पर ठोकर मारता... और अगर बाई को बचाती तो दाई पर उसको लंड चुभता हुआ
महसूस होता... उसको एक ही तरीका अच्च्छा लगा.. रानी ने दोनो चूतदों को
बचा लिया.. वो सीधी खड़ी हो गयी.. पर इससे उसकी मुसीबत और भयंकर हो
गयी... लंड उसकी गांद के बीचों बीच फँस गया... बिल्कुल खड़ा होकर... वो
शर्मा कर इधर उधर देखने लगी... पर बोली कुच्छ नही...
"मैं आपके बापू से बात करूँ; मेरे पास रिज़र्वेशन के चार टिकेट हैं...
मेरे और दोस्त भी आने वाले थे पर आ नही पाए! मैं भी जॅयैपर से उसीमें
जाउन्गा कल रात को करीब 10 बजे वो जॅयैपर पहुँचेगी... तुम चाहो तो मुझे
जनरल का किराया दे देना आगे का" आशीष को डर था की किराया ना माँगने पर
कहीं वो और कुच्छ ना समझ बैठहे.... उसका लंड रानी की गांद में घुसपेत
करता ही जा रह था... लंबा हो हो कर!
"बापू!" ज़रा इधर कू आना! कृष्णा ने जैसे गुस्से में आवाज़ लगाई...
"अरे मुश्किल से तो यहाँ दोनों पैर टीके हैं! अब इश्स जगह को भी खो दूं क्या?
रानी ने हाथ से पकड़ कर अंदर फँसे लंड को बाहर निकालने की कोशिश की पर
उसके मुलायम हाथों के स्पर्श की कल्पना से ही जैसे लंड फुफ्करा.. लंड ने
एक तेज झटका मारा और रानी ने अपना हाथ वापस खींच लिया. अब उसकी हालत खराब
होने लगी... आशीष को लग रहा था जैसे रानी लंड पर तंगी हुई है... उसने
अपनी एडियों को उँचा उठा लिया ताकि लंड के कहर से बच सके पर लंड को तो
उपर ही उठना था... लंड की तबीयत खुश हो गयी.!
रानी आगे होने की भी कोशिश कर रही थी पर आगे तो दोनों की चूचियाँ पहले हे
एक दूसरे की से टकरा कर मसली जा रही थी..
अब ऐदियोन पर कब तक खड़ी रहती बेचारी रानी; वो जैसे ही नीचे हुई, लंड और
आगे बढ़ कर उसकी चूत की चुम्मि लेने लगा...
रानी की सिसकी निकल गयी
"क्या हुआ रानी?" कृष्णा ने उसको देख कर पूचछा.
"कुच्छ नही भाभी!" तुम बापू से कहो ना रिज़र्वेशन की टिकेट लेने के लिए भैया से!"
आशीष को भैया कहना अच्च्छा नही लगा... आख़िर भैईई ऐसे गांद में लंड थोड़े
ही फाँसते हैं...
अब शायद रानी को मज़ा आ रहा था... लंड मज़े वाले स्थान पर जो टीका हुआ
था.. चूत के दाने पर...
"बापू" कृष्णा चिल्लाई...
"बापू" ने अपना मुँह इश्स तरफ निकाला, एक बार आशीष को घूरा इश्स तरह खड़े
होने के लिए, और फिर भीड़ देखकर समझ गया की आशीष तो उनको उल्टा बचा ही
रहा है," क्या है बेटी?"
कृष्णा ने घूँघट निकल लिया था," इनके पास रिज़र्वेशन की टिकेट हैं जॅयैपर
से आगे के लिए; इनके काम की नही हैं.. कह रहे हैं जनरल का किराया लेकर दे
देंगे!"
उस्स बापू ने आशीष को उपर से नीचे तक देखा; संत्ुस्त होकर बोला," आ ये तो
बड़ा ही उपकार होगा.. भैया हम ग़रीबों पर!" किराया समन्य का ही लोगे ना!"
आशीष ने खुश होकर कहा," ता उ जी मेरे किस काम की हैं... मुझे तो जो मिल
जाएगा... फयडे का ही होगा.." कहते हुए वो दुआ कर रहा था की ता उ को पता
ना हो की टिकेट वापस भी हो जाती हैं.
"ठीक है भैया... जॅयैपर उतार जाएँगे... बड़ी मेहरबानी!" कहकर भीड़ में
उसका मुँह गायब हो गया.
आशीष का ध्यान रानी पर गया वो धीरे धीरे आगे पीच्चे हो रही थी... उसको
मज़ा आ रहा तहा...
कुच्छ देर ऐसे ही होते रहने के बाद उसकी आँखें बंद हो गयी... और उसने
कृष्णा को ज़ोर से पकड़ लिया...
"क्या हुआ रानी?"
संभालते हुए वा बोली... "कुच्छ नही भाभी चक्कर सा आ गया था.
अब तक आशीष समझ चुका तहा की रानी फ्री में ही मज़े ले गयी चुदाई जैसे...
उसका तो अब भी ऐसे ही खड़ा था.
एक बार आशीष के मॅन में आई की टाय्लेट मे जाकर मूठ मार आए... पर उसके बाद
ये स्पेशल रिज़र्वेशन कॅन्सल होने का डर था.
अचानक किसी ने लाइट के आगे कुच्छ लटका दिया जिससे आसपास अंधेरा सा हो गया..
लंड वैसे ही आकड़ा खड़ा था रानी की गांद में; जैसे कह रहा हो.. अंदर घुसे
बिना नही मानूँगा मेरी रानी!
लंड के धक्को और अपनी चूचियों के कृष्णा भाभी की चूचियों से रग़ाद खाते
खाते वो जल्दी ही फिर लाल हो गयी...
इश्स बार आशीष से कंट्रोल ना हुआ. कुच्छ तो रोशनी कूम होने का फायडा..
कुच्छ ये विश्वास की रानी मज़े ले रही है... उसने थोड़ा सा पीच्चे हटकर
अपने पॅंट की जीप खोलकर अपने घोड़े को खुला छ्चोड़ दिया.. रानी की गांद
की घाटी में खुला चरने के लिए के लिए...!
रानी को इश्स बार ज़्यादा गर्मी का अहसास हुआ... उसने अपने नीचे हाथ
लगाकर देखा की कहीं गीली तो नही हो गयी नीचे से; और जब मोटे लंड की मूंद
पर हाथ लगा तो वो उचक गयी... अपना हाथ हटा लिया.. और एक बार पीच्चे देखा.
आशीष ने महसूस किया, उसकी आँखों में गुस्सा नही था.. अलबत्ता तोड़ा डर
ज़रूर था... भाभी का और दूसरी सवारियों के देख लेने का.
थ्होडी देर बाद उसने धीरे धीर करके अपना कमीज़ पीच्चे से निकल दिया.
अब लंड और चूत के बीच में दो दीवारें थी... एक तो उसकी सलवार और दूसरा
उसका अंडर वेर.
आशीष ने हिम्मत करके उसकी गांद में अपनी उंगली डाल दी और धीरे धीरे सलवार
को कुरेदने लगा.. उसमें से रास्ता बनाने के लिए.
आइडिया रानी को भा गया. उसने खुद ही सूट ठीक करने के बहाने अपनी सलवार
में हाथ डालकर नीचे से थोड़ी सी सिलाई उधेड़ दी... लेकिन आशीष को ये बात
तब पता चली... जब कुरेदते कुरेदते एक दम से उसकी अंगुली सलवार के अंदर
दाखिल हो गयी....
ज्यों ज्यों रात गहराती जा रही थी... यात्री खड़े खड़े ही उंघने सी लगे
थे.. आशीष ने देखा... कृष्णा भी झटके खा रही है खड़ी खड़ी... आशीष ने भी
किसी सज्जन पुरुष की तरह उसकी गर्दन के साथ अपना हाथ सता दिया... कृष्णा
देवी ने एक बार आशीष को देखा फिर आँखें बंद कर ली..
अब आशीष और खुल कर रिस्क ले सकता था.. उसने अपने लंड को उसकी गांद की
दरार में से लंड निकल कर साइड में दबा दिया और रानी के बनाए रास्ते में
से उंगली घुसा दी. अंगुली अंदर जाकर उसके अंडर वेर से जा टकराई!
आशीष को अब रानी का डर नही था... उसने एक तरीका निकाला... रानी की सलवार
को तहोड़ा उपर उठाया उसको अंडरवेर समेत पकड़ कर सलवार नीचे खीच दी...
कच्च्ची थ्होडी नीचे आ गयी और सलवार अपनी जगह पर... ऐसा करते हुए आशीष
खुद के दिमाग़ की दाद दे रहा था... हींग लगे ना फिटकरी और रंग चौखा.
रानी ने कुच्छ देर ये तरीका समझा और फिर आगे का काम खुद संभाल लिया...
जल्द ही उसका अंडरवेर उसकी जाँघो से नीचे आ गया... अब तो बस हमला करने की
देर थी..
आशीष ने उसकी गुदाज जाँघो को सलवार के उपर से सहलाया; बड़ी मस्त और चिकनी
थी... उसने लंड को रानी की साइड से बाहर निकल कर उसके हाथ में पकड़ा
दिया.. रानी उसको सहलाने लगी...
आशीष ने अपनी उंगली इतनी मेहनत से बनाए रास्तों से गुजर कर उसकी चूत के
मुंहने तक पहुँचा दी. रानी सिसक पड़ी..
अब उसका हाथ आशीष के मोटे लंड पर ज़रा तेज़ी से चलने लगा.. उत्तेजित होकर
उसने रानी को आगे से पीच्चे दबाया और अपनी अंगुली गीली हो चुकी चूत के
अंदर घुसा दी.. रानी चिल्लाते चिल्लाते रुक गयी... आशीष निहाल हो गया..
धीरे धीर करते करते उसने जितनी खड़े खड़े जा सकती थी उतनी उंगली घुसा कर
अंदर बाहर करनी शुरू कर दी.. रानी के हाथो की जकड़न बढ़ते ही आशीष समझ
गया की उसकी अब बस छ्चोड़ने ही वाली है... उसने लंड अपने हाथ में पकड़
लिया और ज़ोर ज़ोर से हिलने लगा... दोनो ही छलक उठे एक साथ.. रानी ने
अपना दबाव पीच्चे की और बढ़ा दिया ताकि भाभी पर ुआके झटकों का असर कम से
कम हो... और अंजाने में ही वा एक अंजान लड़के की उंगली से चुदवा बैठी...
पर यात्रा अभी बहुत बाकी थी.. उसने पहली बार आशीष की तरफ देखा और
मुस्कुरा दी!
अच्चानक आशीष को धकका लगा और वो हड़बड़ा कर परे हट गया. आसिश ने देखा
उसकी जगह करीब 45-46 साल के एक काले करूटे आदमी ने ले ली. आशीष उसको उठा
कर फैंकने ही वाला था की उस्स आदमी ने धीरे से रानी के कान में बोला,"
चुप करके खड़ी रहना साली... मैने तुझे इश्स लूंबू से मज़े लेते देखा है..
ज़्यादा हिली तो सबको बता दूँगा... सारा डिब्बा तेरी गांद फाड़ डालेगा
कमसिन जवानी में..!" वो डर गयी उसने आशीष की और देखा.. आशीष पंगा नही
लेना चाहता था; और दूर हटकर खड़ा हो गया...
उस्स आदमी का जयजा अलग था... उससने हिम्मत दिखाते हुए रानी की कमीज़ में
हाथ डाल दिया; आगे... रानी पूरा ज़ोर लगा कर पीच्चे हट गयी; कहीं भाभी ना
जाग जाए... उसकी गेंड उस्स कालू के खड़े होते हुए लंड को और ज़्यादा
महसूस
करने लगी.
रानी का बुरा हाल था.. कालू उसकी चुचियाँ को बुरी तरह उमेत्ह रहा था.
उसने निपपलोन पर नख़्हून गाड़ा दिए... रानी विरोध ना कर सकती थी...
एका एक उस्स काले ने हाथ नीचे ले जाकर उसकी सलवार में डाल दिया. ज्यों ही
उसका हाथ रानी की चूत के मुहाने पर पहुँचा... रानी सिसक पड़ी... उसने
अपना मुँह फेरे खड़े आशीष को देखा.. रानी को मज़ा तो बहुत आ रहा था पर
आशीष जैसे सुंदर छ्होकरे के हाथ लगने के बाद उस्स कबाड़ की च्छेड़च्छाद
बुरी लग रही थी...
अचानक कालू ने रानी को पीच्चे ख्हींच लिया... उसकी चूत पर दबाव बनाकर..
कालू का लंड उसकी सलवार के उपर से ही रानी की चूत पर टक्कर मारने लगा.
रानी गरम होती जा रही थी..
अब तो कालू ने हद कर दी. रानी की सलवार को उपर उठा कर उसके फटे हुए च्छेद
को तलाशा और उससमें अपना लंड घुसा कर रानी की चूत तक पहुँचा दिया. रानी
ने कालू को कसकर पकड़ लिया... अब उसको सब कुच्छ अच्च्छा लगने लगा था....
आगे से अपने हाथ से उसने रानी की कमसिन चूत की फांको को खोला और अच्च्छो
तरह अपना लंड सेट कर दिया... लगता था जैसे सभी लोग उन्ही को देख रहे
हैं... रानी की आँखें शर्म से झुक गयी पर वो कुच्छ ना बोल पे...
कहते हैं ज़बरदस्ती में रोमांच ज़्यादा होता है... ( हैं दोस्तो) ...
इसको रानी का सौभाग्या कहें या कालू का दुर्भाग्या ... गोला अंदर फैक्ने
से पहले ही फट गया... कालू का सारा माल बाहर ही निकल गया... रानी की
सलवार और उसकी चिकनी मोटी जांघों पर...! कालू जल्द ही भीड़ में गुम हो
गया... रानी का बुरा हाल था... उसको अपनी चूत में ख़ालीपन सा लगा... लंड
का... उपर से वो सारी चिपचिपी सी हो गयी; कालू के रस में......
गनीमत हुई की जॅयैपर स्टेशन आ गया.. वरना कयी और भेड़िए इंतज़ार में खड़े
थे... अपनी अपनी बारी के..........
जॅयैपर रेलवे स्टेशन पर वो सब ट्रेन से उतर गये. रानी का बुरा हाल था..
वो जान बुझ कर पीच्चे रह रही थी ताकि किसी को उसकी सलवार पर गिरे सफेद
धब्बे ना दिखाई दे जाए.
आशीष बोला ,"ता उ जी,कुच्छ खा पी लें! बाहर चलकर..."
ता उ पता नही किस किस्म का आदमी था," बोला भाई जाकर तुम खा आओ! हम तो
अपना लेकर आए हैं...
कृष्णा ने उसको दुतकारा," आप भी ना बापू! जब हम खाएँगे तो ये नही खा
सकता... हमारे साथ..."
ता उ: बेटी मैने तो इसलिए कह दिया था कहीं इसको हमारा ख़ान अच्च्छा ना
लगे... शहर का लौंडा है ना... हे राम ! पैर दुखने लगे हैं..."
आशीष: इसीलिए तो कहता हूँ ता उ जी... किसी होटेल में चलते हैं. खा भी
लेंगे... सुस्ता भी लेंगे...
ता उ: बेटा, कहता तो तू ठीक ही है... पर उसके लिए पैसे...
आशीष: पैसों की चिंता मत करो ता उ जी.. मेरे पास हैं... आशीष के ए टी एम
में लाखों रुपए थे..
ता उ: फिर तो चलो बेटा, होटेल का ही खाते हैं...
होटेल में बैठते ही तीनो के होश उडद गये... देखा रानी साथ नही थी... ता उ
और कृष्णा का चेहरा तो जैसा सफेद हो गया...
आशीष ने उनको तसल्ली देते हुए कहा," ता उ जी, मैं देख कर आता हूँ... आप
यहीं बैठकर खाना खाइए तब तक...
कृष्णा: मैं भी चलती हूँ साथ!
ता उ: नही! कृष्णा मैं अकेला यहाँ कैसे रहूँगा... तुम यहीं बैठी रहो.. जा
बेटा जल्दी जा... और उसी रास्ते से देखते जाना, जिस से वो आई थी... मेरे
तो पैरों में जान ही नही है... नही तो मैं ही चला जाता...
आशीष उसको ढूँढने निकल गया....
आशीष के मॅन में काई तरह की बातें आ रही थी." कही पीच्चे से उसको किसी ने
अगवा ना कर लिया हो! कही वो कालू...." वा स्टेशन के अंदर घुसा ही था की
पीच्चे से आवाज़ आई," भैया!" आशीष को आवाज़ सुनी हुई लगी तो पलट कर
देखा.. रानी स्टेशन के एंट्री गेट पर सहमी हुई सी खड़ी थी....
आशीष जैसे भाग कर गया......" पागल हो क्या? यहाँ क्या कर रही हो? ... चलो
जल्दी....
रानी को अब शांति सी थी... मैं क्या करती भैया... तुम्ही गायब हो गये अचानक!"
"आ सुन! ये मुझे भैया भैया मत बोल"
"क्यूँ?"
"क्यूँ! क्यूंकी ट्रेन में मैने " .........और ट्रेन का वाक़या याद आते
ही आशीष के दिमाग़ में एक प्लान कौंध गया!"
"मेरा नाम आशीष है समझी! और मुझे तू नाम से ही बुलाएगी.... चल जल्दी चल!"
आशीष कह कर आगे बढ़ गया और रानी उसके पीच्चे पीच्चे चलती रही....
आशीष उसको शहर की और ना ले जाकर स्टेशन से बाहर निकलते ही रेल की पटरी के
साथ साथ एक सड़क पर चलने लगा... आगे अंधेरा था... वहाँ काम बन सकता था!
"यहाँ कहाँ ले जा रहे हो, आशीष!" रानी अंधेरा सा देखकर चिंतित सी हो गयी..
"तू चुप चाप मेरे पिच्चे आ जा... नही तो कोई उस्स कालू जैसा तुम्हारी...
समझ गयी ना... आशीष ने उसको ट्रेन की बातें याद दिला कर गरम करने की
कोशिश की...
"तुमने मुझे बचाया क्यूँ नही... इतने तगड़े होकर भी डर गये", रानी ने
शिकयती लहजे में कहा...
"अच्च्छा! याद नही वो साला क्या बोल रहा था... सबको बता देता... "
रानी चुप हो गयी... आशीष बोला," और तुम खो कैसे गयी तही... साथ साथ नही
चल सकती थी... "
रानी को अपनी सलवार याद आ गयी... "वो मैं...!" कहते कहते वो चुप हो गयी...
"क्या?" आशीष ने बात पूरी करने को कहा
"उसने मेरी सलवार गंदी कर दी... में झुक कर उसको सॉफ करने लगी ... उठ कर
देखा तो....
आशीष ने उसकी सलवार को देखने की कोशिश की पर अंधेरा इतना गहरा था की सफेद
सी सलवार भी उसको दिखाई ना दी...
आशीष ने देखा... ट्रॅक के साथ में एक खाली डिब्बा खड़ा है... साइड वाले
स्पेर ट्रॅक पर... आशीष काँटों से होता हुआ उस्स रैल्गाड़ी के डिब्बे की
और जाने लगा..
"ये तुम जा कहाँ रहे ही, आशीष!"
" आना है तो आ जाओ.. वरना भाड़ में जाओ... ज़्यादा सवाल मत करो!"
वो चुप चाप चलती गयी... उसके पास कोई आल्टरनेट ही नही था....
आशीष इधर उधर देख कर डिब्बे में चढ़ गया... रानी ना चढ़ि... वो ख़तरे को
भाँप चुकी थी," प्लीज़ मुझे मेरे बापू के पास ले चलो... "
वो डर कर रोने लगी... उसकी सूबकियाँ अंधेरे में सॉफ सॉफ सुनाई पड़ रही थी...
"देखो रानी! डरो मत. मैं वही करूँगा बस जो मैने ट्रेन में किया था... फिर
तुम्हे बापू के पास ले जाउन्गा! अगर तुम नही करोगी तो मैं यहीं से भाग
जवँगा... फिर कोई तुम्हे उठा कर ले जाएगा और चोद चाड कर रंडी मार्केट में
बेच देगा... फिर चुद्वति रहना सारी उमर...
रानी को सारी उमर चुद्वने से एक बार की छेड़ छाड़ करवाने में ज़्यादा
फायडा नज़र आया... वो डिब्बे में चढ़ गयी....
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