Saturday, March 20, 2010

Raj sharma stories-ठाकुर की हवेली --4 लास्ट पार्ट

राज शर्मा की कामुक कहानिया
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ठाकुर की हवेली --लास्ट पार्ट

फिर तीनो बाथरूम मे आ गये. एक बड़े कमरे जितना बड़ा होगा वह बाथरूम. दो बड़े लंबे टब थे, काई नल लगे थे. उपर दो शवर थे और दो ही हॅंड शवर थे.

एक ओर दीवार पर बड़ा आईना लगा हुआ था. दोनो बाथ टब के बीच एक आलीशान छोटी आल्मिराह बनी हुई थी जो तरह तरह के बॉटल से भरी हुई थी.

बाथरूम मे स्टील और पीतल के कई रोड लगी हुई थी. कपड़े टाँगने के लिए. वहीं कई हॅंगर भी झूल रहे थे, काई तोलिये टँगे थे उन पर. तभी रजनी ने मालती की सारी के पल्लू का एक छोर थाम लिया और उसे खींचने लगी. जैसे जैसे रजनी खींचती चली जा रही थी वैसे वैसे ही मालती घूमने लगी और रजनी ने सारी एक रोड पर टाँग दी.

रणबीर पास ही खड़ा मौन हुए सब कुछ देख रहा था. पेटिकोट मे मालती के बड़े छूतदों का वह जयका ले रहा था. फिर रजनी मालती का ब्लाउस के हुक खोल उसे भी उसके शरीर से अलग कर दिया. मालती के पिंजरे मे क़ैद कबूतर फाड़ फाड़ने लगे.

रजनी कुछ देर मालती की ब्रा मे कसी चुचियों ब्रा पर से ही दबाती रही.

"आओ तुम भी अपनी चाची के इन पर हाथ लगा के देखो." ठाकुरानी मालती की चुचियों को दबाते हुए बोली.

रणबीर मंतरा मुग्ध सा मालती की छातियों पर हल्के हल्के हाथ फेरने लगा. तभी रजनी ने नीचे अपना एक हाथ रणबीर की लंगोट के उभार पर रख दिया और जैसे वह मालती की चुचियों पर हाथ चला रही थी वैसे ही लंगोट के आगे के उस उभार पर हाथ चलाने लगी.

"है रजनिज़ी वहाँ हाथ मत लगाइए, कैसा कैसा लग रहा है." रणबीर ने मालती की दोनो चूंचियों को ब्रा के उपर से जाकड़ पीछे हटते कहा.

फिर रजनी की पहुँच से उस हिस्से को दूर करते हुए वह मालती के पीछे सॅट गया और मालती की गांद पर उत्तेजना से दबाव देने लगा.

"हूँ तो तुम अपनी चाची की गांद के दीवाने हो गये हो, साली मालती तेरी गांद ने इस पर क्या जादू कर दिया है रे?" ये कह के रजनी ने मालती का पेटिकोट का नाडा खींच दिया और वह मालती के पैरों मे गीर पड़ा. मालती ने रोज़ की तरह कोई पॅंटी नही पहनी थी और वो कमर के नीचे नंगी हो गयी.

रजनी ने मालती की चूत पर हथेली जमा दी और वो ज़ोर से उसकी झाँते घिसने लगी.

तभी रणबीर ने भी थोड़ा पीछे हटते हुए मालती की ब्रा का हुक खोल दिया और उसे मदजात नंगा कर दिया. मालती भी अब कहाँ पीछे रहने वाली थी उसने भी रणबीर की बनियान उत्तर दी और फिर देखते देखते लंगोट की भी गाँठ खोल उसे हवा मे झूलते रोड पर टाँग दी.

अब रणबीर भी मालती की तरह पूरा नंगा था. फिर मालती ने रजनी की नाइटी की डोर खोल पहले उसकी नाइटी उतारी और वह भी रजनी की गांद पर अपनी चूत रगड़ते हुए ठकुराइन के दोनो माममे ब्रा पर से सहलाने लगी.

"ले साली अब में तेरी गांद अपनी चूत के दाने से मारूँगी, ले मेरा धक्का." ये कह कर मालती रजनी की चुचियों दोनो हाथों मे भर मसालने लगी.

"अरे भोसड़ी वाली पहले इन कपड़ों को तो उतार मेरे, चुभ रहे हैं. तब मालती ने रजनी को भी ब्रा और पॅंटी से छुटकारा दिला नंगी कर दिया. रणबीर अभी भी ठकुराइन की कुछ शरम कर रहा था और चुप चाप खड़ा उन्हे देखता रहा.

तभी रजनी ने दोनो शवर चालू कर दिए. उपर लगे दोनो फुवरों से बड़ी वेग से पानी निकला और ऐसा लगा की एका एक मूसला धार बारिश शुरू हो गयी हो. रजनी ने मालती और रणबीर दोनो को शवर के नीचे खींच लिया और तीनों एक दूसरे के गले मे बाहें डाले काफ़ी देर तक वैसे ही उछल उछल कर शवर के पानी का आनंद लेते रहे. एक दूसरे के अंगों को छूते रहे सहलाते रहे पकड़ कर खींचते रहे.

फिर रजनी ने शवर बंद कर दिया. अब रजनी और मालती रणबीर के नंगे जिस्म पर टूट पड़ी और उसके पानी छूटे जिस्म को ज़ोर ज़ोर से रगड़ने लगी. पीठ, पेट, नाभि चूतड़ पाँव जंघे सब जगह वो दोनो रगड़ रही थी और इस प्रकार रगड़ रगड़ कर ही रणबीर के बदन को सूखा दिया

रणबीर का लंड उत्तेजना के मारे रोड की तरह तन गया था. रजनी ने रणबीर का लंड मुती मे जाकड़ लिया और पास ही खड़ी मालती की गांद मे एक उंगल देते हुए कहा, "दे दूं इसे?"

"नही रजनी नही.. देख ना कैसे भाले की तरह तन गया है फिर फॅडवायानी है क्या मेरी." मालती ने रजनी से दूर हटते हुए कहा.

तभी रणबीर बाथरूम के बीच मे एक पारटिशन दीवार की तरफ जाने के लिए मुड़ा, रजनी ने फ़ौरन उसका हाथ पकड़ के खींचा तो रणबीर ने एक उंगल उपर उठा दी.

"अभी नही अभी नही, हुकुम का गुलाम है ना तू तो बिना इजाज़त कुछ भी नही."

रणबीर असचर्या से खड़ा रहा, तभी रजनी रणबीर के सामने घुटनो के बल बैठ गयी और उसके लंड को सहलाने लगी. वो गोटियों को नीचे की और खींचती तो लंड और अकड़ जाता. तभी उसने मालती को इशारा किया और मालती भी रजनी के पास बैठ धीरे धीरे लंड को मुँह मे भरने लगी.

मालती की मुँह मे लंड का सूपड़ा था और रजनी बे भी लंड के जड़ पर अपनी जीभ चलानी शुरू कर दी. रजनी उसके आंडों से भी खेल रही थी. जब मालती लंड को बाहर निकालती तब झट रजनी उसे मुँह मे ले चूसने लगती और जब रजनी मुँह से बाहर निकालती तब मालती उसे मुँह ले लेती. दोनो लंड के भूकी औरतें एक दूसरे से छीना झपटी करते हुए लंड चूस रही थी.

रणबीर भी पूरी तरह उत्तेजित था पर उसे बहोत ज़ोर से पेशाब की हज़्जत भी हो रही थी. उसका बस चलता तो दोनो रंडियों के मुँह मे पेशाब कर देता.

"ठकुराइन एक बार छोड़ दो," रणबीर ने फिर एक अंगुल उपर कर गिड़गिदते हुए कहा.

"अब डूबरा कहा तो इसे काट कर फैंक दूँगी. रजनी ने रणबीर के लंड को हिलाते हुए कुछ उँचे स्वर मे कहा.

"रजनी बेचारे को जाने दो ना, देखो कितना फूल गया है." मालती ने रणबीर के लंड को पकड़ कर कहा.

"हूँ तो ये बात है, देख साली को दो दिन के भतीजे पर कितना रहम आया है. रणबीर दे इसके मुँह मे, भले ही इसके मुँह मे कर दें पर याद रहे लंड बाहर नही निकलना चाहिए." रजनी ने रणबीर का लंड मालती के मुँह मे ठूनसते हुए कहा.

रजनी की बात सुनकर और उस कलपाना मात्रा से रनबेर काफ़ी उत्तेजित हो गया और वह मालती के मुँह मे लंड अंदर बाहर करते हुए चूसने लगा. एक तो उसे पेशाब बहोत ज़ोर की लगी हुई थी, साथ ही पूरा जोश भी भरा हुआ था, पर जब तक वह पेशाब करके हल्का ना हो लेता तब तक वह कुछ कर पाने मे अपने आपको असमर्थ पा रहा था. उसने
मन बनाया की वह अब और नही रूकेगा और इस साली मालती चाची की मुँह मे ही कर देगा.

उसका यह मन बनना था की वह धार जड़ से आगे बढ़ी, पर लंड पूरा तना हुआ था इसलिए मुत्रा का एक क़तरा पीचकारी के रूप मे मल्टी के मुँह छूटा. फ़ौरन मल्टी के मुँह का स्वाद नमकीन हुआ और उसने एक झटके से सर पीछे खींचा पर रणबीर को ठकुराइन की चेतावनी याद थी और उसने मालती के बॉल पकड़ उसके मुँह को अपने लंड पर दबा दिया. मालती की मुँहसे गों गों की आवाज़ीएँ निकालने लगी और वो रजनी की तरफ देखने लगी.

मालती के मुँह के कोर से मुत्रा बहने लगा और रजनी समझ गयी की क्या हुआ है. उसने फ़ौरन मालती को एक तरफ धक्का देकर रणबीर का लंड अपने मुँह मे ले लिया.

तभी रणबीर के लंड ने मुत्रा का दूसरा कतरा छोड़ा आरू रजनी लंड चूस्ते हुए गटक गयी.

अब रजनी ने लंड मुँह से निकाल दिया पर अपने खुले मुँह से सिर्फ़ आधे इंच ही दूर रखा और रणबीर को इशारा केया. इशारा मिलने की देर थी की रणबीर के लंड से बड़े वेग से मुत्रा धार निकली.

रजनी उस मुत्रा धार को अपने मुँह मे ले गटाकने लगी. तभी उसने मालती को पकड़ अपने पास खींचा और उस मुत्रा धार का रुख़ मल्टी के चेहरे की तरफ कर दिया. मुत्रा की धार बड़े वेग से मालती के गालों और फिर होठों से टकराई.

साली मुँह खोल, एक बूँद भी नीचे नही गिरनी चाहिए." रजनी
चिल्लाई.

मालती ने मुँह खोल दिया. रणबीर पूरा उत्तेजित हो गया. उसने मालती का चेहरा अपने लंड पर दबा दिया और उसके हलाक मे मुत्रा धार उंड़ेलने लगा. फिर उसके क्या मन मे आया की उसने एक झटके से लंड मालती के मुँह से निकाल उसका रुख़ रजनी के चेहरे की तरफ कर दिया और उस मालकिन ठकुराइन के गालों पर , सर पर, चुचियों पर मुत्रा की धार छोड़ने लगा.

रजनी को इसमे मज़ा आने आ रहा था, उसने अब लंड खुद पकड़ लिया और जहाँ चाहती उधर रुख़ कर देती. कभी अपनी तरफ तो कभी मल्टी की तरफ. ढेरे धीरे मुत्रा कुछ रुक रुक के आया और फिर बंद हो गया.

रजनी और मालती दोनो फर्श पर बैठी हुई थी. रजनी ने एक हॅंड शवर उठाया और उसे चालू कर दिया. अब थोड़ी देर पहले वह जिस तरह मूत्र स्नान कर रही थी अब उसी तरह स्नान करने लगी. कभी शवर का रुख़ अपनी तरफ करती तो कभी मालती की तरफ. तभी उसने रणबीर को खींच कर नीचे बिठा लिया और तीनो उस हॅंड शवर का फुआराओं का मज़ा लेने लगे.

रणबीर ने मालती को गोद मे खींच के उसका सर अपनी छाती पर रख लिया और अपनी दोनो पैर उसकी जांघों के उपर से ले मालती की टाँगे पूरी फैला दी. अब वह शवर का घोल मुँह ठीक मालती की चूत पर टीका दिया. पानी के फुवरे बड़ी वेग से मालती की चूत के अंदर छूटे.

यह सीन देख रजनी पूरी गरम हो गयी और वह उठी और अपनी दोनो टाँगे छोड़ी कर मल्टी के मुँह मे अपनी झांतो भारी चूत तूसने लगी. मालती ने भी अपनी जीभ प्यारी सहेली ठकुराइन की चूत मे दे दी.

तभी रजनी ने दोनो हाथ की उंगलियाँ अपनी चूत के उपरी भाग यानी मूट छेद के बाजू बाजू रखी और चुर्र्रर छुउर्र्र कर के मालती के मुँह मे मूतने लगी. मालती ने मुँह वैसे ही खुला रखा और ठकुराइन के मूत को गटाकने लगी. फिर रजनी वैसे ही मूतते मूतते आगे बढ़ी और उसकी चूत रणबीर के मुँह पर मुत्रा धार छोड़ रही थी. रंजनी ने रणबीर के मुँह को अपनी चूत पर दबाया और ठकुराइन की इक्चा समझ रणबीर ने मुँह खोल दिया और अब वह ऱाज्नि का मुत्रा पान कर रहा था.

दो दो जवान नंगी औरतें, एक गोद मे पड़ी हुई और दूसरी चूत चौड़ी कर के उसके मुँह मे चुर्र चुर्र करके मूत रही थी. रणबीर का लंड लोहे के जैसे सख़्त हो गया. रजनी की धार अब बंद हो गयी. उसकी चूत से आखरी के कुछ वेग से मूत्र के छींटे निकले और वह चूत को रणबीर के मुँह पर बेतहाशा रगड़ने लगी. उसने वहीं से बैठना चालू किया और मालती रणबीर की गोद से उठ गयी.

अब रजनी रणबीर की तरफ मुँह कर अपना होडा उसकी गोद की तरफ बढ़ा रही थी, रजनी का विशाल होडा सीधा रणबीर की गोद मे इस तरह आया की ठकुराइन की चूत सीधे खड़े लंड पर आ गयी.

ठकुराइन जैसे ही पूरी बैठी, उसकी चूत मे रणबीर का लंड खच से अंदर घुस गया. लंड को वैसे ही चूत मे रखे रजनी ने रणबीर की कमर बाहों मे जाकड़ ली और थोड़ा आगे बढ़ते वह घुटने मोड़ लंड पर उपर नीचे होने लगी. रजनी ने रणबीर के होंठ अपने मुँह मे ले लिए और उन्हे खूब ज़ोर से चूसने लगी, काटने लगी.

रणबीर की बालों भारी छाती पर वह अपनी चुचियों रगड़ रही ती.बीच बीच मे वह थोड़ी उपर उठ पानी चुचि रणबीर के मुँह मे भी दे देती थी. नीचे एक दम खड़े लंड से उसकी चूत चुद रही थी.

"मालती मेरी जान आ रे!! मेरे मुँह मे अपनी चूत दे ना, हे जब तक तेरी चूत का स्वाद ना लूँ मज़ा ही नही आता. "

मालित उठी और टाँगे फैला दोनो के बीच इस तरह खड़ी हो गयी की उसकी गांद का छेद रणबीर के मुँह के सामने था और चूत का छेद रजनी के मुँह के सामने था. नीचे चूत की चुदाई बदस्तूर जारी थी. मालती के दोनो छेदों पर दो जीभों ने लगभग एक ही समय मे धावा बोल दिया. रजनी की जीब चूत को चाटते हुए चूत मे घुस रही थी जबकि रणबीर की जीभ पहले उसकी गंद का गोला चाटा फिर गंद के अंदर घुसने लगी.

"चल री तू भी शुरू हो जा, देखें तेरी चुरर्र चुरर्र की आवाज़ कैसीए लगती है. एक बार मालती का शरीर ज़ोर से आकड़ा और दूसरे ही पल उसकी चूत से बड़े वेग से मुत्रा धार रजनी के खुले मुँह मे गिरने लगी. मालती की चूत सिटी बजाने की आवाज़ के साथ मुत्रा धार छूटते रही.

रजनी ने अपना मुँह मालती की चूत पर कस के दबा दिया और अपनी उस काम करने वाली का मूत बिना उँछ नीच का विचार किए वह कामतूर ठकुराइन गटक गटक के पीने लगी.

तभी रजनी ने मालती को फुर्ती दीखाते हुए घूमा दिया जिससे की मालती की गांद रजनी के स्सामने आ गई और चूत ठीक रणबीर के मुँह के सामने. मालती की चूत से पेशाब की धारा वैसे ही निकल रही थी. रणबीर ने भी पूरा मुँह खोल के मालती चाची की चूत पर रख दिया और वह मुत्रा धार रणबीर के तालू से टकराते हुए गले के नीचे गिरने लगी.

उधर रजनी मालती की गांद कस कर चाट रही थी. चूत को मूत छेद को चित्राते हुए अपनी सहेली को रणबीर के मुँह मे मुता रही थी.

"है है में जा रही हूँ ..... रणबीर मेरे राजा........" रजनी अब बहोत ज़ोर से हाँप रही थी. उसने मालती की गंद कस के अपने मुँह मे दबा ली थी. वह थोड़ी उपर होकर शरीर को झटके से ढीला छोड़ रही थी जिसके फल स्वरूप रणबीर का लंड उसकी चूत मे जड़ तक धँस जाता.

श ठकुराइन ज़रा धीरे... ऑश रजनिज़ी... रजनी ज़रा धीरे... ओह मैं . भी झाड़ रहा हूँ..... ओह रजनी मेरी रानी.. मेरी जान.. " रणबीर ने एकि झटके से मालती चाची को अपने और ठकुराइन के बीच से हटा दिया. अब उसने रजनी को ज़ोर से अपनी छाती से चिपका लिया, उसके चूतड़ अपने हाथों मे कस लिए और उसके छूतदों को अपने लंड पर ज़ोर ज़ोर से पटाकने लगा और धीरे धीरे रफ़्तार कम पड़ती गयी और दोनो बिल्कुल शांत हो एक दूसरे को जाकड़ फर्श पर कई देर तक वैसे ही बैठे रहे.

फिर रजनी उठी और आदम कद बाथ टब मे जा लेट गयी. उसने गरम पानी और ठंडे पानी का नाल चालू कर दिया. फिर एक हाथ बढ़ा उस आल्मिराह से दो बॉटल निकली और बारी बारी से दोनो बोतलों से कुछ द्रव उस पानी मे डाला. धीरे धीरे पानी का लेवल बाथ टब मे उँचा उठ रहा था. रजनी पानी को दोनो हाथों से छपका रही थी और देखते देखते झाग उमड़ने लगे और रजनी गले तक झागों से धक गयी.

रजनी ने मालती को इशारा किया और वह भी एक फोम लेके बाथ टब मे घुस गयी और वह फोम ठकुराइन के शरीर पर रगड़ने लगी. बीच बीच मे रजनी वह फोम ले लेती और वह भी मालती के शरीर के हर भाग पर वह फोम रगड़ती. रणबीर भी बात टब के साइड मे आके बैठ गया और ठकुराइन की चुचियों हाथों से रगड़ने लगा. तभी
रजनी बात टब मे पलट गयी और मालती ने ठकुराइन की गंद पर ज़ोर ज़ोर से फोम रगाड़ना चालू कर दिया.

रजनी काई देर फोम रगद्वति रही. फिर उसने मालती को बाहर कर रणबीर को अंदर खींच लिया.

अब फोम रजनी ने ले लिया और उसने रणबीर की पीठ, हाथ, पाँव गांद लंड सब उस फोम से आक्ची तरह रगड़ रगड़ सॉफ किया. फिर रणबीर भी काई देर कभी हाथों से कभी उस फोम से अपनी प्यारी ठकुराइन को नहलाता रहा.

फिर दोनो फर्श पर आ गये. तीनों का शरीर झगों से धड़ा हुआ था, बाहर भी काफ़ी देर तक तीनो एक दूसरे के शरीर के हर भाग को कभी हथेलियों से तो कभी झाग से रगड़ रहे थे.

फिर रजनी ने दोनो उपर के फवारे भी चालू भी कर दिया और दोनो हॅंड शवर भी चालू कर दिए. तीनों एक दूसरे पर हॅंड शवर के धार छोड़ते हुए काफ़ी देर नहाते रहे.

फिर शवर बंद कर तीनो उठे और फुर के मुलायम टवल से एक दूसरे के बदन पौंचने कर सुखाने लगे. तब रजनी ने आल्मिराह से एक खास बॉट्टेल निकली और ढेर सारा तेल पहले रणबीर के सिर पर फिर मालती के सिर पर और खुद अपने सिर पर अंडर वह बॉटल वापस रख दी. वह बहोट ही सुगंधित और चिकना तेल था. फिर तीनो एक दूसरे के शरीर मल मल के शरीर का हर भाग पर उस तेल की मालिश करने लगे. वह तेल बहोत ही चिकना और मालिस करते वक्त शरीर पर एक जगह हाथ टिक नही रहे थे.

"साली तेरी गांद का तो तेरे भतीजे ने कबाड़ा कर दिया है," रजनी ने तेल से मालती के चूतड़ के मालिश कर हुए खच से एक उंगल गांद के अंदर धकेलते हुए कहा.

"और तहकुराइन आप तो कहते है की ठाकुर साहेब का ठीक से खड़ा भी नही होता, फिर या क्या है?" इस बार रणबीर ने ठकुराइन की गांद मे उंगल देते हुए पूछा.

ये उस चिकने तेल का कमाल था की गंद के पर उंगल रख थोड़ा दबाते ही उंगल खच से अंदर चली जाती थी.

तीनो इस तरह के देर खुल के मज़ाक करते रहे और मज़ा लेते रहे.

फिर पाउडर के दो डिब्बे निकाले और एक दूसरे के शरीर पर इतना पाउडर छिड़का की तीनो सफेद नंगे उछलते कूदते भूत नज़र आ रहे थे. फिर पाउडर की मालिश कर के शरीरों पर ठीक से फैलाया गया. इन सब से रणबीर का लंड एक बार फिर तन गया था. रजनी ने देखा की मालती उसे मुट्ठी मे ले रही है. वह तो अभी अभी रणबीर से अछी तरह चुद चुकी थी पर मालती अभी भी प्यासी थी.

"अरे साली मुट्ठी मे क्या लेती है, अपने भोस्डे मे ले ना" ये कहते हुए रजनी ने रणबीर का लंड मालती की चूत से लगा दिया.

खड़े लंड को तो खुली चूत मिलनी चाहिए, वह अपने रंग मे आगया और नतीजा यह हुआ की मालती चुदने लगी.

रजनी उनके घुटनो मे बैठ गयी, जब चाची भतीजा खड़े खड़े चुदाई कर रह थे. रजनी भी मालती की चूत पर जीभ फिरा रही थी तो कभी रणबीर की गोतियाँ पर. काफ़ी देर चुदाई चलती रही और मालती और रणबीर ओह्ह्ह हहाई करते हुए एक साथ झाड़ गये.

इसके बाद सब उस बड़े कमरे मे आ गये. रणबीर अपनी ड्यूटी की ड्रेस पहन रहा था.

"तकुराइन कल तो ठाकुर साहेब शिकार से वापास आ जाएँगे"

"हां वह तो है. पर अपना रास्ता भी बीच बीच मे निकलता रहेगा."

मालती ने सारी पहन ली थी और वह रणबीर को ले कमरे से बाहर निकल गयी.

दूसरे दिन ठाकुर अपने लाव लश्कर के साथ वापास आ गया और सब कुछ पहले जैसा ही चलने लगा. उधर मधुलिका के आने के बाद उल्टी गिनती शुरू हो गयी. रणबीर को हवेली मे दूसरे काम करने वालों से पता चला की मधुलिका ठाकुर की पहली बीवी से थी. वह शुरू से ही बाहर रह के पढ़ रही थी

पहली इंग्लीश मीडियम स्कूल से हाइयर सेकेंडरी हॉस्टिल मे रह के पास की और बाद मे डॉक्टोरी पढ़ रही थी. अब पढ़ाई ख़तम करके आ रही थी.

ठाकुर ने पहले ही लड़का देख रखा है और एक बार मधुलिका की रज़ामंदी मिल जाए तो शादी होते कोई देर नही लगेगी. मधुलिका 33 साल की हो चुकी है.

रणबीर उसी मुस्तैदी से अपनी ड्यूटी निभा रहा था मालती चाची को हवेली मे आते जाते वह देखता था पर जब ठाकुर हवेली मे होता तो उसका काम करने वालों पर ऐसा खोफ़ छाया रहता की कोई किसी से बेमतलब बात नई करता. और औरतों से तो हवेली मे तो क्या बल्कि हवेली के आस पास भी कोई मुँह लगाने की नही सोच सकता था.

एक दो बार भानु ने उसे अपने साथ चलने की जीद की थी पर रणबीर टाल गया. उसे भानु को लंड चूसने मैं और उसकी गंद मारने मे कोई दिलचस्पी नही थी. वह भानु से दूर ही रहना चाहता था और नतीजा ये हुआ की वह चाह कर भी भानु के घर नही गया. शायद जाता तो सूमी के साथ कुछ मौका मिल सकता था.

आख़िर वो निसचीत दिन आ ही गया. मधुलिका करीब दोपहर को एक कार मे पटना से आई थी कार से पटना का यहाँ से चार घंटे का रास्ता था. ठाकुर ने पहली रात ही हवेली से ख़ास कार ख़ास ड्राइवर के साथ भेज दी थी.

रणबीर मे मधुलिका को कार से उतरते हुए देखा की मधुलिका आम लड़कियों जैसे लड़की थी. हल्के रंग की सलवार करते मे वह थी. बॉल खुले और छोटे रख रखे थे, जिनसे देहातों जैसे छोटी नही बाँध सकती थी. बदन उसका भरा था, पर उसे मोटा नही कह सकते थे. बस एक झलक वह देख पाया .

जब तक मधुलिका हवेली मे आई नही थी, तब जितनी उसकी चर्चा थी, आने के बाद उसके मुक़ाबले कुछ भी नही. जैसे ठकुराइन हवेली मे मौजूद थी और कोई उसके बारे मे बात नही करता वैसे ही आने के बाद मधुलिका भी हवेली मे खो के रह गयी थी.

2 - 3 दिन तो मधुलिका के आव भगत मे ही बीत गये. तीसरे दिन ठाकुर ने उसे बताया की पास के गाँव का एक ठाकुर का लड़का है, हमारी ही तरह खानदानी है और वह चाहता है की मधुलिका का उसे घर मे रिश्ता हो जाए. पर मधुलिका बात को ये कहते हुए टाल गयी की इतने वर्ष बाहर रहने एक बाद तो वह गाँव आई है, हवेली मे आ गयी है और वह कुछ दिन वो देहात की जिंदगी को करीब से देखेगी. ठाकुर भी उसकी जीद देख चुप हो गया.


दो दिन बाद ही मधुलिका ने घुड़ सवारी सीखने के इक्षा जाहिर की. हवेली के सबसे पुराने और मशहूर घुड़सवार को बुलाया गया पर मधुलिका उस 50 वर्ष एक अधेड़ को और उसकी एक बित्ते की मूँछ देख कर ही बिदक गयी और उसने कह दिया की नही सीखनी उसे घुड़सवारी यहाँ से तो पटना ही अछा था. ठाकुर को ये बात चुभ गयी.

उसी रात ठाकुर ने ठकुराइन रजनी से भी उसकी चुचि मसालते हुए इस बात का ज़िकरा किया तो रजनी ने कहा की बेबी सहर मे रह कर पढ़ी लीखी है. उसे यहाँ खुलापन महसूस होना चाहिए. बातों ही बातों मे रजनी ने कहा की ठाकुर का वह ख़ास हवेली का पहरेदार इसके लिए ठीक रहेगा. ठाकुर को भी बात जाँच गयी.

दूसरे दिन ही ठाकुर ने रणबीर को बुलाया और समझाते हुए कहा की वह हमारे पोलो वाले मैदान मे मधुलिका को घुड़सवारी सिखाए. रणबीर खुशी खुशी तय्यार हो गया और ठाकुर को विश्वास दिलाया की बेबी का बॉल भी बांका नही होने देगा और उसे महीने भर मे और उसे महीने भर मे पक्की घुड़सवार बना देगा. ठाकुर भी निसचिंत हो गया.

घुड़सवारी सीखने के लिए शाम का वक्त तय किया गया. पोलो का मैदान हवेली के पीछे ही थोड़ी दूर पर दूर दूर तक फैला हुआ था. जगह जगह पर हरी घास भी मैदान मे थे और चारों तरफ से उँचे दरखतों से वह मैदान घिरा हुआ था.

जब बड़े ठाकुर यानी की ठाकुर का बाप जिंदा था तब देश को आज़ादी नही मिली थी और यहाँ अँग्रेज़ पोलो खेलने आए करते थे. खुद बड़ा ठाकुर भी पोलो का अक्चा खिलाड़ी था. तभी से ये मैदान पोलो मैदान के नाम से प्रसिद्ध हो गया था. हालाँकि इस ठाकुर को पोलो मे कोई दिलचस्पी नही थी.

मैदान मे एक तरफ डाक बुंगलोव भी बना हुआ था. जब अँग्रेज़ यहाँ आते थे तब डाक बुंगलोव किपुरी देख भाल होती थी और अँग्रेज़ों को इसी मे ठहराया जाता था. अब वह वीरान पड़ा था और कुछ कबाड़ के अलावा उसमे कुछ नही था. यहाँ तक की उसकी देखभाल की लिए किसी आदमी को भी रखने की ज़रूरत नही थी.

आज शाम से ही रणबीर को घुड़सवारी सिखानी थी. रणबीर सुबह से ही तय्यारियों मे जुट गया था. तभी 10.00 बजे के करीब ठाकुर ने रणबीर को बुला भेजा. रणबीर हवेली मे पहुँचा तो देखा की ठाकुर ठकुराइन और मधुलिका कुरईसियों पर बैठे थे.

सामने मेज पर झूँटे बरतन पड़े थे जो बता रहे थे की नाश्ता अभी अभी ख़तम हुआ है. रणबीर ने तीनो के सामने झुक कर आभिवादन किया.

ठाकुर ने कहा, "यह नौजवान है जो तुम्हे घुड़सवारी सिखाएगा. इतना हौसलेमंद है की चाकू लेकर शेर से भीड़ जाए. "

मधुलिका ने रणबीर को गौर से देखा और पूछा, "कब से हो यहाँ?"

"जी हवेली मे तो अभी सिर्फ़ एक महीने से ही हूँ पर ठाकुर साहेब की सेवा मे दो साल से हूँ." रणबीर ने नज़रें नीची किए जवाब दिया.

"हूँ तो तुम बाबा के साथ शिकार पर भी जाते हो?"

"जी हां "

"तब तो निशाने बाज़ भी हो." फिर मधुलिका ठाकुर की तरफ घूम के बोली, बाबा! मैं यहाँ बंदूक, पिस्टल चलाना भी सीखूँगी.

"ये भी तुम्हे यही सीखा देगा."

मधुलिका खुश हो गयी. तब ठाकुर ने रणबीर से कहा.

"अस्तबल से दो चुने हुए घोड़े ले जाना, सारे साजो समान की ज़िम्मेदारी तुम्हारी है.. देखो बेबी भी इस मे नयी है, इसके अकेले घोड़े पर मत छोड़ना. राइफल कारतूस भी ले लेना और निशानेबाज़ी जंगल की तरफ रुख़ कर के सीखाना. तुम डाक बंग्लॉ के पास सब तय्यारी करके इंतेज़ार करना बेबी शाम को 4.00 बजे तक वहाँ पहुँच
जाएगी."

"जी ठाकुर साहेब, अब इजाज़त दें, सारी तय्यारी में खुद करूँगा."

ये कह कर रणबीर ने सिर झुकाया और वाहा से चला गया.

फिर रजनी और मधुलिका को वहीं छोड़ ठाकुर भी हवेली मे चला गया.

"तुम्हारे बाबा का ये ख़ास है, ये तुम्हेसब कुछ सिखा देगा." रजनी ने हंसते हुए मधुलिका से कहा.

"ठकुराइन मा आप कैसे जानती है की ये क्या क्या सीखा सकता है?"

"अरे ठाकुर साहेब इसकी तारीफों के पूल बाँधते थकते नही. बाप का तो मन ये मोह चुका अब देखिएं की बेटी का ये कितना मन मोहता है?" रजनी होटन्ठ काटते हुए मुस्कुराने लगी.

"तब तो मज़ा आ जाएगा मेरी ठकुराइन मा... " मधुलिका ने भी हंसते हुए कहा और मा शब्द पर अधिक ही ज़ोर दिया.

"मेने तुम्हे कितनी बार कहा है की मुझे मा मत कहा करो. अपना अपना भाग्या होता है"

"भाग्या ही तो होता है की आप आज इस हवेली की ठकुराइन है. और ठकुराइन है इसलिए मा भी है."

रजनी ने पास पड़ी एक मॅगज़ीन उठा ली और पढ़ने लगी. उसने जब से मधुलिका यहाँ आई थी तब से कोशिश करनी शुरू कर दी थी की मधुलिका उससे एक सहेली जैसा व्यवहार करे.. उसने काफ़ी खुलने की भी कोशिश की. वह मधुलिका को ठीक उसी साँचे मे ढालना चाहती थी जिस साँचे मे उसने अधेड़ मालती को ढाल रखा था.

पर मधुलिका शांत स्वाभाव की और कम बोलने वाली लड़की थी. उसे अभी तक रजनी ठीक से समझ ही नही पाई थी.

शाम 4 बजे जीन कसे दो घोड़ों के साथ रणबीर डाक बंग्लॉ के पास मुस्तैद था. दो राइफल और कारतूस भरी दो पट्टियाँ भी मौजूद थी. तभी एक जीप वहाँ आके रुकी और टाइट जीन्स और चमड़े की जकेट मे मधुलिका जीप से नीचे उतरी. उसने ड्रेइवेर को यह कहते हुए जीप के साथ भेज दिया की दो घंटे बाद वे यहाँ वापस आ जाए.

उस लिबास मे आज मधुलिका शिकार पर जाती एक राजकुमारी लग रही थी. सर पर हॅट नुमा कॅप थी. कमर मे जीन्स की बेल्ट मे एक पिस्टल खोंसि हुई थी. रणबीर के पास आ मधुलिका ने उसे मुस्कुराते हुए देखा और पूछा,

"तो तुम और तुम्हारे घोड़े तय्यार है? चलो अब कैसे शुरू करना है करो."

"जी मधु.. उ.. जी. आज आप घोड़े पर सवार हों और में घोड़े की रास पकड़ पैदल च्लते हुए इस पोलो मैदान के दो चक्कर लग वाउन्गा. इससे आपको घोड़े की चाल का एहसास होगा और उस चाल के अनुसार आपको अपने शरीर को कैसे काबू मे रखना है पता चलेगा." ये कह कर एक सज़ा हुआ घोड़ा रणबीर ने मधुलिका के आगे कर दिया.

मधुलिका ने रकाबी मे पैर डाला तो रणबीर ने नीचे झुक कर मधुलिका का पैर रकाबी मे ठीक से फँसा दिया. वह मधुलिका के फूले फूले चूतड़ को सहारा दे उसकी घोड़े पर चढ़ने मे मदद करना चाह ही रहा था की मधुलिका उछल कर घोड़े की पीठ पर सवार हो गयी.

रणबीर ने घोड़े की रास थाम ली और पैदल चलने लगा. मधुलिका कुछ देर तो घोड़े की चल के साथ ताल मेल बैठाती रही वह घोड़े की पीठ पर अकड़ कर बैठ गयी और रणबीर से कहा.

"अब रास मुझे थमा दो. नहीं तो लग ही नही रहा है की में घुड़सवारी कर रही हूँ. रणबीर ने मधुलिका को रास थमाते हुए कहा, "देखिएगा रास ज़ोर से मत खींचयएगा, नही तो घोड़ा दौड़ने लगेगा."

रणबीर भी घोड़े की पीठ पर हाथ रख साथ साथ चलने लगा.

"रणबीर पढ़ाई लीखाई भी की है या और कुछ?" मधुलिका ने पूछा.

"जी गाँव के स्कूल मे आठवीं तक पढ़ा हूँ."

"तो तुमने तो बहोत जल्दी घुड़सवारी और निशानेबाज़ी सिख ली और बाबा ने मुझे सिखाने के लिए तुमको चुना है?"

"जी इसमे ऐसी कोई बात नही है, देखिएगा आप भी बहोत जल्दी सब कुछ सीख जाएँगी."

घोड़ा मंद गति से चल रहा था. रणबीर घुड़ सवारी के बीच बीच मे गुण भी बताता जा रहा था जिसे मधुलिका ध्यान से सुन रही थी. घोड़ा दौड़ने लगे तो उसकी पीठ पर हल्के ठप देकर उसे रोकना है, कैसे चढ़ना है, कैसे उतरना है वैगैरह वैगैरह.

लगभग एक घंटे मे पोलो मैदान के दो चक्कर पूरे हो गये. इस बीच मधुलिका घोड़े को हल्के हल्के दौड़ाया भी और रणबीर के बताए तरीके से उसे थप़ थपा के रोका भी. मधुलिका बहोत खुश थी.

घोड़े से उत्तरते समय रणबीर ने उसके चूतड़ को हल्का सा सहारा देकर उसकी उत्तरने मैं मदद की. फिर मधुलिका ने कुछ निशाने बाज़ी की इक्षा प्रगट की.

शाम के 5.00 बज चुके थे. सूरज कुछ नीचे चला गया था, जिससे पेडो की छाया लंबी हो गयी थी. रणबीर ने एक बड़े पेड़ की छाँव मे एक चादर बीछा दी. टारगेट एक तख़्ती जिस पर काई गोल लाइन्स बनी हुई थी, जंगल की तरफ था जो की अभी धूप मे नहा रहा था.

"अब आप पेट के बल लेट जाएँ और राइफल का बट छाती से दबा के राइफल को मजबौती से पकड़ें. मधुलिका फ़ौरन लेट गयी.

और समय होता तो रणबीर उसके चूतडो का उभार देख कहीं खो जाता पर इस समय उसका पूरा ध्यान राइफ़ल चलाना सिखाने मे था. रणबीर ने हिदायत दे दी थी की ट्रिजर को भी बिल्कुल भी ना छुवें. फिर रणबीर राइफल को कैसे सीधा रखा जाए, निशाना कैसे लगाना है तथा और भी बहुत सी बातें समझाता रहा. मधुलिका ट्रिजर दबाने को उतावली थी पर रणबीर उसे धीरे से समझाता रहा.

"अब समझाते ही रहोगे या दो चार गोली मारने के लिए भी कहोगे?"

"देखिएगा बट छाती से कस के दबा ले. गोली छूटते ही एक झटका लगेगा. रणबीर भी उसकी बगल मे लेट गया और जब सब तरफ से संतुष्ट हो गया तो उसने फिरे कहा. ध्यान से गोली छूटी पर वह उस तख़्ती के भी आस पास नही थी.

मधुलिका उठ कर बैठ गयी. उसकी छाती ज़ोर ज़ोर से धड़क रही थी, जिससे उसकी बड़ी बड़ी चुचियों उपर नीचे हो रही थी. रणबीर ने थर्मस मैं से एक ग्लास पानी निकाल कर उसे दिया.

फिर रणबीर राइफल लेकर लेट गया. बट कैसे रखना है उसने अपनी छाती से लगाकर समझाया. फिर उसने टारगेट पर कयी फाइयर किए और सारी निशाने बीच मे बने गोल पर ही लगे. इससे मधुलिका बहोत प्रभावित हुई. उस दिन रणबीर ने मधुलिका को और राइफल नही दी बल्कि काई बातें समझाता रहा.

ड्राइवर जीप लेकर साढ़े पाँच बजे आ चुका था, उसे इंतेज़ार करते हुए लगभग 10 मिनिट हो चुके थे. तभी रणबीर ने सारा समान समेटना शुरू किया और सारा समान एक घोड़े की पीठ रख दोनों जीप की तरफ चल पड़े. एक घोड़े की रास रणबीर ने थाम रखी थी और दूरे घोड़े की रास मधुलिका ने. मधुलिका दूसरे दिन चार बजे आने को कह जीप मे सवार हो निकल गयी.

यह सिलसिला 10 दिन तक यूँ ही चलता रहा. अब मधुलिका अकेले घोड़े पर सवार हो मैदान का चक्कर लगाने लगी थी. पर अभी तक वह घोड़े को दौड़ाती नही थी. नीशानेबाज़ी भी कुछ कुछ सीख गयी थी. राइफल के अलावा वह पिस्टल चलाना भी सीख रही थी. जब वह दोनो टाँगे चौड़ी कर और कुछ झुककर पिस्टल चलाती तो रणबीर का लंड उसकी गांद का उभार देख मचल उठता. पर वह बिना कुछ प्रगट किए उसे बड़ी तन्मयता से सब सीखाता रहता. उसे पता था की ये शहज़ादी एक दिन खुद उससे लिपट जाएगी.

अब घोड़े पर चढ़ते और उतरते समय प्राय्यः रणबीर उसके चूतडो को सहारा दे देता. राइफल चलाते वक़्त रणबीर भी उसकी बगल मे लेट जाता और राइफल के पोज़िशन ठीक करने के बहाने उसकी कोहनी उसकी चुचियों से रगड़ खा जाती. मधुलिका इन सब बातों की तरफ कोई ध्यान नही देती. अब वह ड्रेस भी ऐसी पहन के आती, की किसी की भी नियत डोल जाए. रणबीर भी मधुलिका से खुलने लग गया था.

फिर एक दिन बरसात का सा मौसम था पर मधुलिका अपने समय ठीक 4 बजे पोलो मैदान पहुँच गयी. रणबीर भी रोज की तरह तैयार था.

"मेने तो सोचा था की आज मेमसाहेब हवेली मे ही आराम करेंगी, लेकिन आप तो वक़्त पर हाजिर हैं."

"तुम भी तो यहाँ पर हो और सुनो में वक़्त की बहोत पाबंद हूँ. चाहे आँधी आए या तूफान में यहाँ ज़रूर पहुँचती हूँ. "

तभी हल्की बूँदा बंदी शुरू हो गयी और देखते देखते बारिस नेज़ोर पकड़ लिया. वहाँ और ओ कुछ था नही और दोनो राइफल संभाले जल्दी से डाक बंग्लॉ की तरफ भागे. डाक बंग्लॉ के पीछे आकर मधुलिका बुरी तरह से हाँफने लगी.

वह काफ़ी भीग चुकी ती और हाँफते हाँफते उसकी छाती उपर नीचे हो रही थी. रणबीर उसकी चुचियों पर आँख गड़ाए देख रहा था.

"रणबीर इस डाक बंग्लॉ मे क्या है? मेरी देखने की इक्चा है."

"भीतर से तो इसे मेने भी नही देखा है, पर सुना है कुछ पुराना समान भरा पड़ा है. चलिए देखते है."

और दोनों डाक बुंगलोव के लकड़ी की बनी सीढ़ियों से होते हुए डाक बंग्लॉ पर आ गये. बंग्लॉ के अंदर जाने के मैन गेट पर एक लोहे की बड़ी सी कुण्डी जड़ी थी जिसे रणबीर ने खोल दिया.'

दरवाज़ा चरमरा कर खुल गया और दोनो अंदर दाखिल हो गये. फर्श पर धूल की परत जमी हुई थी लगता था की बहूत दिनों से कोई भी अंदर नही आया था. डाक बंग्लॉ अंदर से काफ़ी बड़ा था. बीचों बीच बड़ा सा चौक था और उसके चारों तरफ काई कमरों के बंद दरवाजे दीख रहे थे. कई बरामदे भी थे जिनमे कुर्सियाँ, मेजें और टेंट का समान पड़ा था.

बाहर बरसात और तेज हो गयी थी जिसकी टीन की छत पर पड़ने की आवाज़ तेज हो गयी थी. एक कमरे का दरवाज़ा और कमरो से बड़ा था और उस पर सजावट भी थी. रणबीर और मधुलिका ने अंदाज़ लगा लिया की ये डाक बंग्लॉ का मेन हॉल है क्यों की इसके बाहर बड़ी बाल्कनी थी जिसपर कुर्सियाँ लगा के बैठ के पूरा पोलो मैदान का नज़ारा सॉफ तौर पर देखा जा सकता था.

कमरे मे कोई ताला नही था, और उसकी कोई ज़रूरत भी नही समझी गयी क्यों की ठाकुर का रुआब ही ऐसा था की उधर झाँकने की भी कोई हिम्मत नही कर सकता था.

रणबीर ने जैसे ही वो कमरा खोला एक सीलन भरा भभूका अंदर से बाहर आया. कमरे मे अंधेरा था और मधुलिका रणबीर से बिल्कुल सॅट गयी. तभी कोई एक चूहा मधुलिका के पैरों पर से होता हुआ तेज़ी से गुजरा और मधुलिका रणबीर से कस के चिपक गयी. उसका शरीर कांप रहा था. कमरे के खुले दरवाज़े से हल्की रोशनी आ रही थी और रणबीर ने कहा.

"मेमसाहब ये तो चूहा था." फिर दोनो हँसने लगे.

रणबीर ने मधुलिका की पीठ पर हाथ रख रखा था और रणबीर उसे उसी तरह चिपकाए हुए आगे बढ़ा और कमरे की बाल्कनी की तरफ खुलने वाला दरवाज़ा खोल दिया. दरवाज़ा खुलते ही कमरे मे रोशनी भी हो गयी और बाहर बारिश का बड़ा ही मनोरम दृश्या था.

दोनो घोड़े भी डाक बुंगलोव के नीचे आ गये थे. कमरे मे कार्पेट बीछा हुआ था. दीवारों पर बड़ी बड़ी तस्वीरें तंगी हुई थी, कई अलमारियाँ बनी हुई थी, दो बड़े बेड थे जिनके सर के तरफ गोल गोल करके रखे हुए बिस्तर थे. एक तरफ सोफा सेट और कुछ मेजें पड़ी हुई थी.

"वाह कितने ठाट बाट से भरा हुआ कमरा है ये. मेरा बस चले तो हवेली छोड़ इससे मे आ जाउ. जहाँ तुम हो, घुड़सवारी सीखना, निशाने बाज़ी सीखना और अकेले रहना." मधुलिका ने कहा.

"अभी तक जीप नही आई." रणबीर ने बाहर देखते हुए कहा.

"वह अपने टाइम पर आज्एगी और अभी तो डेढ़ घंटे से ज़्यादा पड़ा है. मेने ड्राइवर से कह दिया था की चाहे बरसात आए या कुछ और आए.. रणबीर में थक गयी हूँ , यह बिस्तर खोल कर बिछा दो."रणबीर ने झट बिस्तर खोल कर बिछा दिया और मधुलिका पट लेट कर पसर गयी.

"मधुलीकाजी आप इस समय बहोत ही सुन्दर लग रही है.,"

"वो तो है तभी तो तुम मुझे घूर घूर कर देख रहे हो." तभी मधुलिका ने एक झटके से रणबीर को खेंच लिया और उसके होठों पर अपने होंठ रख एक तगड़ा चुंबन ले लिया.
मधुलिका हाँप रही थी और उसने रणबीर को जाकड़ लिया. उसकी बड़ी बड़ी चुचियाँ रणबीर की छाती से रगड़ खा रही थी.

"रणबीर मुझे प्यार करो ना. तुम मुझे अच्छे लगते हो. में तुम्हे चाहने लगी हूँ."

"पर बेबी,...... मधुलीकाजी .... यहाँ यदि किसी को मालूम पड़ गया तो ठाकुर साब मेरी खाल उतरवा लेंगे."

"उस खुल दरवाजे से किसी के भी आने का हमे मालूम पड़ जाएगा पर इस अंधेरे मे हमें कोई नही देख पाएगा." ये कहकर मधुलिका ने रणबीर को और जाकड़ लिया और उसके गालों का, होठों का चुंबन लेने लगी.

इधर रणबीर का भी बुरा हाल था, कयि दिन का प्यासा लंड पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था. उसने मधुलिका के होंठ अपने होठों मे ले लिए और उन्हे चूसने लगा. उसके हाथ कठोर चुचियों पर कस गये. उसने उसके खुले गले के जॅकेट को खोलना शुरू किया और अब ब्रा मे क़ैद मधुलिका के मस्त माममे उसके सामने तने हुए थे.

उधर मधुलिका भी कहाँ पीछे रहने वाली थी. उसने रणबीर को पॅंट और शर्ट से आज़ाद कर दिया. रणबीर ने मधुलिका के ब्रा के हुक भी खोल दिए और उसकी एक मस्त चूची को मुँह मे ले चूसने लगा.

"ओह मेरे बाबा....मेरे प्यारे बच्चे ... चूसो... ओह्ह्ह्ह्ह हाआँ चूसूऊऊऊऊओ." मधुलिका सिसकियाँ भरने लगी और रणबीर के मुँह मे एक हाथ से अपनी चुचि पकड़ उसके मुँहमे ठेलते हुए चूसाने लगी.

रणबीर मधुलिका की पॅंट के बटन खोल चुका था और एक हाथ पॅंटी के उपर से अंदर डाल दिया. उसका हाथ मधुलिका के झाटों से भरी चूत से टकराया. वह गीली हो चुकी थी. रणबीर उसे मुट्ठी मे कस दबाने लगा. बीच बीच मे वह झाँटो पर हाथ भी घिस रहा था.

उधर मधुलिका ने भी रणबीर का लंड जंघीए से निकाल लिया था और उसे धीरे धीरे मुठियाने लगी.

"वाह मेरे बेबी का ये बेबा तो बड़ा लगता है. इतना बड़ा लटकाए फिरते हो और 10 दीनो से खाली घोड़ा चलाना सीखा रहे हो. अब में इसे भी चलौंगी." ये कह कर मधुलिका ने रणबीर का लंड मुँह मे लेना शुरू कर दिया.

पहले वह सूपाडे पर जीब फिराती रही फिर मुँह को गोल कर लंड को अंदर बाहर करते हुए उसे धीरे धीरे मुँह मे अंदर तक लेने लग गयी.

"क्या करता ठाकुर साहब का हुकुम ही ऐसा था. सोचा तो कयि बार पर हिम्मत नही हुई. अब इस बेबी से में भी जी भर के खेलूँगा." रणबीर ने मधुलिका की चूत मे एक अंगुल पेलते हुए कहा.

उधर मधुलिका अब उसके पूरे लंड को बड़ी मस्ती से चूस रही थी. वह उसकी बड़ी बड़ी गोटियों को हाथों से धीरे धीरे भीच रही थी.

"तो बेबी को बाहर कर लो ना, देखो रस से भीग गई है." मधुलिका ने अपने चूतड़ उचे उठा दिए जिससे रणबीर को पॅंट नीचे खिसकाने मे आसानी हो जाए.

रणबीर ने पॅंट और पॅंटी एक साथ ही उसकी टाँगो से निकाल दी.

वह उसकी टाँगे चौड़ी कर उसकी चूत पर झुक गया और जीभ के अग्र भाग से चूत को छेड़ने लगा. मधुलिका ने रणबीर के सर पकड़ के चूत पर दबा दिया.

"खा जाओ इसे... ऑश.. बहोट सताती है ये... ऑश चूवसू.... रणबीर इसे....."


रणबीर भूके शेर की तरह चूत पर पिल पड़ा. उसने पूरी चूत मुँह मे भर ली और माल पूवे की तरह उसे खाते हुए चूसने लगा. वा चूत के दाने पर हल्के दाँत भी लगा रहा था. मधुलिका पागल हो कहने लगी.

"तुम तो पक्के खिलाड़ी हो. ओह.. यह तरीका कहाँ से सीखा है तुमने.. कितनो को अपनी टाँग के नीचे से गुज़ारा है... ओह बेबी चूसो इसे और ज़ोर से.. पूरी मुँह मे ले लो... श" मधुलिका छट पटाने लगी.

अब वह रणबीर का लंड को हाथ मे पकड़ हिला रही थी. चुचियाँ उसकी छाती से रगड़ रही थी और जहाँ तहाँ चूमने लगी थी.

रणबीर चूत को पूरी तन्मयता से चूस रहा था, बीच बीच मे वह मधुलिका की गांद मे उंगल भी पेल देता था और वह चिहुनक पड़ती थी.

"रणबीर अब और कितना तड़पावगे.... इसको अंदर क्यों नही डालते..."
मधुलिका ने रणबीर का लंड पकड़ कर कहा.

"में तो इसी का इंतेज़ार कर रहा था की कब आपका हुकुम हो देखिए ना यह मेरा कितना बैचाईन हो रहा है." रणबीर मधुलिका की दोनो टाँगे फैला उनके बीच मे जगह बनाते हुए बोला.

"देखो धीरे धीरे डालना, आज से पहले मेने इसे कभी भी अपनी चूत मे लिया नही है. तुम्हारा वैसे भी जो मेने पढ़ा है उससे बड़ा है."

"आप बिल्कुल फ़िकरा ना करें मालकिन वाह ये तो मेरा नसीब है की मुझे एकदम कुँवारी चूत मिल रही है." रणबीर मधुलिका की रस से भरी चूत पर अपना लंड का सुपाड़ा टीका चुका था. वह कुछ देर चूत पर अपने एक दम खड़े हो गये लंड को रगड़ता रहा.

मधुलिका नीचे छट पटा रही थी और इंतेज़ार कर रही थी की कब लंड भीतर घुसेगा. वह मेडिकल की स्टूडेंट थी और सब बातों का पता था हालाँकि वह अब तक चुदी नही थी.

"हां मेरे बेबी ये अभी तक कोरी है.. यह तेरी गुरु दक्षिणा है.. देख आज तक में इसमे केवल मेरी उंगल ही घुसाती आई हूँ... तुम अपने मोटे भाले से कहीं इसे फाड़ ना देना... अब डालो इसे अंदर..."

रणबीर ने धीरे से लंड का सूपड़ा अंदर ठेला. मधुलिका की चूत कसी हुई थी. वह भली भाँति जानता था की यह मालती या सूमी जैसियों की चूत नही है जिसमे एक ही बार मे पेल दिया फिर चाहे सामने वाली कितना ही रोती चिल्लाति रहे इसलिए रणबीर पूरी सावधानी बरत रहा था.

वह काफ़ी देर लंड का सूपड़ा उसकी चूत के उपर या थोड़ा सा भीतर रगड़ते रहा. जब उसने देखा की मधुलिका की चूत रस छोड़ने लग गयी है और छट छट की आवाज़ आने लग गयी है तो उसने धीरे धीरे लंड अंदर ठेलना शुरू किया.

रणबीर कुछ लंड को भीतर घुसाता और फिर रुक जाता और लंड को भीतर ही हिलाके कुछ जगह बनाता और तब अंदर करता. मधुलिका रणबीर के होंठ चूस रही थी और आनंद के मस्ती मे सिसकारियाँ भर रही थी.

"ओह रणबीर तुम तो इसके भी गुरु हो. इतनी छोटी उमर मे ही तुमने तो सब कुछ सीख लिया. घुड़सवारी, बंदूक और अब चदाई. मुझे तुमसे इसकी कला भी सीखनी है. बोलो सिख़ाओगे ना."

"हां बेबी ये कला तो काम करके ही सीखाई जाती है. बोलो तुम तय्यार हो." ये कह कर रणबीर ने चूत के भीतर तीन चार हल्के धक्के मारे और लंड मधुलिका की चूत मे पूरा समा गया.

"ऑश रणबीर लगता है तुमने पूरा भीतर घुसा दिया है. तुमने तो अपना इतना बड़ा बड़े ही तरीके से अंदर डाला. मेरी कई सहेलियों ने मुझे बताया था की पहले बहोट दर्द होता है. में पीछले एक साप्ताह से तुमसे चुदवाने के लिए बेकरार थी और रातों को में दो दो उंगलियाँ इसके भीतर पेल पेल के इसको तुम्हारा लंड लेने के लिए बड़ा कर लिया है. हां रणबीर मुझे सीखाना और मेरी चूत मे कर कर के सीखाना मस्टेरज़ी तुम जब भी सिख़ाओगे में तुम्हारे आगे मेरी चूत खोल दूँगी. अब तो खुश हो ना."

"हां बेबी अब में तुम्हे इस तुम्हारे बड़े बाबा के डाक बंग्लॉ मे रोज़ सिखाउँगा." ये कह कर रणबीर मधुलिका को दना दान चोदने लगा.

मधुलिका जैसी कई कुँवारी चूत चोद के रणबीर पूरा मस्त था. उसने अपनी मुठियाँ मधुलिका के फूले चूतड़ पर कस ली थी और वह उन चूतडो को घूथ रहा था. मधुलिका गांद उछाल उछाल कर चुदवा रही थी.

"ओह मेरे बेबी तुम कितने अच्छे हो. में भी अब तुमसे रोज़ चुदवाउन्गि. ओह रणबीर अब मुझे कस कस के चोदो..ओह बहोत मज़ा आ रहा है. आज तो चाहे तुम इसको फाड़ ही दो.. तुमसे फदवाने भी मज़ा है.. ऑश बेबी मेरे मम्मे भी चूसो." मधुलिका ने रणबीर को बाहों मे भर लिया था और वह बड़बड़ाती जा रही थी और गंद उछाल रही थी. लंड पच पच करता हुआ उसकी चूत के अंदर बाहर हो रहा था.

बाहर तेज बारसत हो रही थी और बिजली भी चमक रही थी, जिसकी चमक से कमरा रह रह के रोशनी से नहा उठता. इधर मधुलिका की चूत पर रणबीर का लंड की बिजली गिर रही थी.

अचानक दोनो की भावनाओं के बादल उमड़ने लगे. आलिंगान कस गये, होंठों से चूँबनो की बरसात शुरू हो गयी, रफ़्तार बढ़ गयी, और मधुलिका की प्यासी धरती आग मे तपती धरती पहली बरसात के पानी के लिए तरस रही थी. अचानक बादल फॅट पड़े और प्यासी धरती की तेज धार से प्यास बुझाने लगा.

"श रणबीर सी ह दो मुझे तुम बिल्कुल चिंता मत करो... में टॅबलेट ले लूँगी... ओह इस प्यासी चूत को भर दो." मधुलिका ने रणबीर को कस कर भींच लिया और दोनो सुस्त पड़ गये.

फिर दोनो उठे अपने कपड़े पहने, कमरे मे वापस सब पहले जैसा ही कर दिया और कमरे के दरवाजे वापस बंद करने लगे. तभी रणबीर ने देखा की दूर से जीप इधर ही पोलो मैदान के तरफ आ रही है दोनो दरवाजे बंद कर के जल्दी से डाक बंग्लॉ के नीचे आ गये जहाँ घोड़े बारिस से बचने के लिए खड़े थे.

तभी जीप उनके सामने आके रुकी और मधुलिका जीप मे सवार हो रणबीर के आँखों से धीरे धीरे ओझल हो गयी. जब एक बार यह चुदाई का खेल शुरू हो गया तो इसके चलने मे आगे कोई बाधा नही थी.

मधुलिका अब कुछ समय पहले ही आने लगी. कुछ देर वह घुड़सवारी और राइफल चलाना सीखती और फिर रणवीर को अपनी सवारी करवाती और रणबीर के लंड को अपनी चूत और गंद मे चल्वाति.

रणबीर मधुलिका जैसीफूली गांद वाली लड़की की गांद मारे बिना कहाँ छोड़ने वाला था. दूसरे ही दिन एक चुदाई के बाद उसने उसकी गंद भी मार दी.

इधर मधुलिका रणबीर की पक्की दीवानी हो चुकी थी. वह उसे अपने सपनो का राजकुमार के रूप मे देखने लगी. ( दोस्तो ये मधुलिका का राज कुमार रणवीर था आपका राज शर्मा नही ) इसी तरह एक महीना बीत गया. अब मधुलका घुड़सवारी और राइफल पिस्टल चलाने मे निपूर्ण हो चुकी थी. साथ ही एक नंबर की चुड़क्कड़ और गंदू भी बन चुकी थी. जब तक रणबीर से कस के चुदवा या गंद नही मरवा लेती थी
वह बात बात मे बिगड़ उठती.

फिर एक दिन ठाकुर ने उससे कहा की दूसरे दिन ही वह ठाकुर और उसका लड़का हवेली मे आने वाले है. लड़का लड़की के मिलने के रस्म हवेली मे ही पूरी कर दी जाएगी और साथ ही मँगनी की रस्म भी.

मधुलिका को एक धक्का सा लगा, तो लड़का लड़की दीखाना महज एक दीखावा ही होना था होना वही था जो उसके बाप ने पहले से सोच रखा है. उसे अपना संसार बसने से पहले ही उजड़ता नज़र आया.

खैर दूसरे दिन ठाकुर और मधुलिका का होने वाला पति हवेली मे पहुँच गये. सारी हवेली उनके आदर सत्कार मे जुट गयी. फिर मधुलिका और उसके होने वाले पति को कुछ समय के लिए एकांत मे छोड़ दिया गया. देखने और एक दूसरे को समझने की रस्म मात्र दस मिनिट मे ही पूरी हो गयी. कहाँ मधुलिका एमबीबीएस की परीक्षा देकर
आई हुई लड़की और कहाँ वह ठाकुरों की झूटी आन बान मे जीने वाला वह ठाकुर का लड़का.

मधुलिका एक दम गोरी चिटी विलायेति मेम सी और एक अप्सरा सी सुन्दर और वह ठाकुर का लड़का सांवला सा और कुछ मोटा और भद्दा सा. हूर के बगल मे लंगूर वाली कहावत ऐसी ही जोड़ी को ध्यान मे रख कर मनाई गई थी.

खैर मधुलिका की ज़िद की वजह से माँगनी वाली रस्म पूरी नही हो सकी. उनके चले जाने के बाद मधुलिका ने शादी से साफ इनकार कर दिया. एक बार तो ठाकुर के रजपूती खून ने उबाल खाया पर एक लौटी बेटी के सामने वह ज़्यादा कुछ नही बोल पाया. पर ठाकुर को दाल मे कुछ काला नज़र आया और भानु को रणबीर और मधुलिका पर नज़र
रखने के काम पर लगा दिया.

मधुलिका और रणबीर पहले जैसे ही पोलो मैदान मे फिर से जाने लगे. मधुलिका फिर चुदने लगी. रणबीर उसे कुछ ही दिन की मेहमान बता रहा था, जिसे सुनकर मधुलिका चीढ़ उठती और कह देती की उस ठाकुर के लंड का उसके सामने नाम ना ले.

बातों ही बातों मे मधुलिका ने रणबीर को साफ कह दिया की वो विवाह करेगी तो सिर्फ़ रणबीर से या फिर कुँवारी रहेगी या आत्मा हत्या कर लेगी. रणबीर यह सुनकर ही भाव विहल हो गया और उस उसने मधुलिका को बहोत जम के चोदा.

उसके दूसरे दिन ही भानु के द्वारा ठाकुर के पास रणबीर और उसकी बेटी की कारगुजारियों की दास्तान का काला चिट्ठा पहुँच गया.

ठाकुर ने जब ये सुना तो रह रह कर फदक उठा. उसका बस चलता तो दोनो के सर कलम कर देता. पर किसी तरह उसने अपने आप पर काबू किया. भानु को तगड़ा इनाम दिया और हिदायत दी की किसी के सामने इस बात का ज़िकरा ना कारे.

दूसरे ही दिन ठाकुर ने शाम 4 बजे रणबीर को किसी दूसरे काम मे फँसा दिया और उस दिन मधुलिका मी मसोस के रह गयी.

उधर भानु गाँव से रणबीर के बाप और मा को लेके हवेली मे आ गया. उनका आना बिल्कुल गुप्त रखा गया और किसी को भनक नही लगे दी गयी. ठाकुर ने रणबीर के बाप को 50,000/- दिए और कहा की वह अपने गाँव वाईगरह सब को भूल रणबीर को ले रातों रात कहीं दूर चला जाए. यह जो रकम उसे ठाकुर दे रहा है वह उसकी गाँव की
संपाति से कहीं ज़्यादा है. इस रकम से वो कहीं दूर खेत खरीद सकता है, छोटा मोटा कारोबार कर सकता है.


ठाकुर ने उसके बाप को यह भी समझा दिया की वह जो कुछ कर रहा है केवल इसलिए की उसके बेटे रणबीर ने एक बार उसकी जान बचाई थी. नही तो रणबीर ने जो हवेली की इज़्ज़त पर हाथ डाला था उस अपराध मे उसकी बोटी बोटी काट दी जाती.

ये मौका ठाकुर उन्हे जो दे रहा है जिसका पूरा फयडा वे लोग उठाए और रातों रात कहीं दूर चले जाए और आइन्दा कभी उनका साया भी हवेली पर नही पड़ना चाहिए.

बुड्ढे बाप ने रोते हुए ठाकुर के पावं छुए और वचन दिया की वे कभी भी जिंदगी मे इधर का रुख़ नही करेंगे.

अपने वचन के अनुसार रणबीर, का बाप और उसकी मा रात के अंधेरे मे ना जाने कहाँ चले गए. उनके बारे मे किसी को कुछ पता नही चला.

सुबह उठते ही ठाकुर ने हवेली मे चोरी की खबर उड़ा दी. फ़ौरन पहरेदार रणबीर की तलाश हुई और नुमैइदों ने खबर दी की रणबीर गायब है. फ़ौरन रनबेर के गॅव मे आदमी दौड़ाए गये, वहाँ भी कुछ नही था. सारे रणबीर को कोसते हुए यह सोचते रहे की रणबीर हवेली का माल लेकर कहीं चंपत हो गया है.

मधुलिका को इस पर विस्वास तो नहीं हुवा पर वह अकेली इस प्रत्यक्ष प्रमाण के आगे क्या कर सक'ती थी.बेचारि मन मसोस कर रह गई
दोस्तो इस तरह ये कहानी यहीं ख़तम होती है फिर मिलेंगे एक और नई कहानी के साथ
दोस्तो कहानी कैसी लगी बताना मत भूलना

समाप्त































































































































































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