राज शर्मा की कामुक कहानिया
ठाकुर की हवेली --3
हवेली मे नौकरों के रहने के लिए कमरे बने हुए है, तुम्हे एक कमरा मिल जाएगा पर हां रात मे बड़ी मुस्तैदी से तुम्हे हवेली का पहरा देना होगा. ध्यान रहे एक परिंदा भी पर ना मार सके."
फिर ठाकुर ने भानु से कहा की वह मुंशी से मिल के रणबीर का सारा इंतेज़ाम कर दे. रणबीर ठाकुर से इजाज़त ले घर को चला गया की वह शाम को कपड़े लत्ते ले हवेली पहुँच जाएगा.
रणबीर कुछ उदास कदमों से घर की और जा रहा था. वो सोच रहा था की सूमी जैसी नौजवान औरत उसे मिली पर अब उससे दूर रहना पड़ेगा. तभी उसका मन ठकुराइन और ठाकुर की जवान बेटी के बारे मे सोचने लगा. यह सोचते वह घर पहुँच गया. रामननंद उस समय घर पर ही था, रणबीर उसकी के पास बैठ गया.
रामानंद ने उसे समझाया की यह बहोत ही ज़िम्मेदारी का काम है और यह काम ठाकुर हर किसी को नही सौंपता, उसका भाग्या अक्च्छा है की ठाकुर इतनी ज़िमेदारी का काम उसे दे दिया. फिर कहा की वह इसे अपना ही घर समझे और जब मन हो यहाँ बेरोक टोक चला आया करे.
फिर रणबीर वहाँ से उठ कर भानु के कमरे की और चल पड़ा की अभी तो कमरा खाली होगा और वो कुछ देर आराम कर लेगा. तभी उसे मालती मिल गयी और उसने हंसते हुए कहा, "तो तुम्हे हवेली की पहरेदारी पर लगा दिया गया है, पेरेदारी तो तुम्हे कई करनी
पड़ेगी."
"चाची और पहेरेदारी से तुम्हारा क्या मतलब है?" रणबीर ने चाची के चूतडो पर चींटी काटते हुए पूछा.
"सब समझ जाओगे, अभी मुझे जाने दो मुझे हवेली जल्दी जाना है." ये कहकर मालती चूतड़ मटकाती रसोई मे चली गयी.
रणबीर भी भानु के कमरे मे बिस्तर पर लेट गया. करीब 3 बजे उसकी आँख खुली तभी सूमी कमरे मे आ गयी. वह बहोत ही उदास लग रही थी.
तभी सूमी रणबीर के बिल्कुल पास पलंग पर बैठ गयी और उसकी छाती मे मुँह छुपा लिया. रणबीर भी काफ़ी देर उसके बालों मे हाथ फेरता रहा और पूछा, "मालती चाची हवेली चली गयी क्या?"
"हां और बाबूजी भी सोए हुए हैं और 5 बजे से पहले उठने वाले नही है. ये रणबीर के लिए खुला निमंत्रण था की दो घंटे जितनी मस्ती लूटनि है लूट लो फिर शायद कब मिलना हो.
"पर भाभी इतनी उदास क्यों हो रही हो, तुम्हारा गाओं छोड़ कर थोड़े ही जा रहा हूँ. तुम जब कहोगी तुम्हारे खेत मे चला आया करूँगा." रणबीर ने ये बात सूमी की आँख मे झाँककर और उसके खेत यानी उसकी चूत को सहलाते हुए कही थी.
सूमी के लिए इतना ही काफ़ी था और वो रणबीर से कस के लिपट गयी.
"पता नही जब से तुम्हारे हवेली मे रहने की बात सुनी है कुछ भी अक्चा नही लग रहा. कुछ ही दीनो में ऐसा लगने लगा जिस तुम मेरे बरसों की ......."
"क्या बरसों की भाभी? रणबीर ने अब सूमी की चुचियों दबानी शुरू कर दी थी. वा जैसे ही उसके ब्लाउस के हुक खोलने लगा सूमी बोल पड़ी, "मेरे बरसों के साथी, मेरे बरसो के प्रेमी..... पर ये सब अभी दिन मे मत खोलो, जो करना है बिना खोले ही करो. ये गाओं है याहान कोई भी आकर द्वार खटका सकता है. ये कह कर सूमी रणबीर की गोद मे बैठ गयी और दोनो टाँगे चौड़ी करती हुई रणबीर की छाती पर अपने शरीर का सारा बोझ डाल दिया.
इससे सूमी का बदन पीछे को झुक आया और उसकी चूचियों के दो शिखर हवा मे अपना मस्तक उठाए हुए थे. रणबीर ने दोनो उन्नत शिखरों को अपने हाथों मे ले लिया और उन्हे मसालने लगा.
"क्या भाभी उस दिन झोपडे मे भी अंधेरे मे कुछ नही देख सका और आज भी मना कर रही हो. ऐसा कह रणबीर ने सूमी के होठों को अपने होठों मे ले लिया और उन्हे चूसने लगा
"हाय ऐसे ही चूसो ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह खूब दबाऊओ तुम्हारे हाथों मे तो जादू है आज खेत भी देख लो और उसकी सिंचाई भी कर दो....." सूमी अब पलट चुकी थी और रणबीर के मुँह मे अपनी जीब डाल रही थी.
तभी रणबीर ने सूमी की दोनो टाँगे हवा मे उँची उठा दी और उसका घाघरा अपने आप कमर के चारों और सिमट गया और झाड़ियों से हरा भरा खेत रणबीर के चरने के लिए सामने खुला पड़ा था.
रणबीर सूमी की चूत को एक टक देखता रहा. क्या उभरी हुई मांसल चूत थी. चूत के होठों मे जैसे हवा भरी हुई हो, बीच की लाल रेखा स्पष्ट नज़र आ रही थी, पर्रो पर झांतो का झुर्मुट था और चूत के साइड के काले लंबे बाल इधर उधर बिखरे हुए थे.
रणबीर ने सूमी को थोडा अपनी और खींच उसके चूतड़ अपनी जाँघो पर रख लिए और सूमी के घूटने उसकी छाती से लगा दिए. अब मतवाली चूत पूरी तरह खुल के मलाई माल पुए खाने की दावत दे रही थी.
रणबीर ने कोई देर नही की और सूमी की चूत के इर्द गिर्द जीभ फिरने लगा. बीच बीच मे जीब की नोक से चूत की दरार मे एक लकीर खींच देता और सीमी सिहर के सिसकारियाँ लेने लगती.
रणबीर ने चूतड़ के दोनो तरबूज अपने हाथ मे ले लिए और जीब जड़ तक पेल उसकी चूत के अंदर के हर हिस्से को जीब से छूने लगा, ये थी उसकी कला , जो एक बार इसका स्वाद चख लेता जिंदगी भर के लिए उसी का होके रह जाता.
सूमी ज़ोर ज़ोर से हाँपने लगी, साँसों की गति तेज हो गयी, आँखों मे लाल डोरे उभर आए और रणबीर के लंड को पॅंट के उपर से ही बुरी तरह से मसल्ने लगी.
"ऑश रनबीईएर अब कब तक तड़पाओगे. कुछ करो ना.... क्यों मेरी जान ले रही हो.... खेत सामने खुला पड़ा है जी भर के देख तो लिया.....जालिम अब नही सहा जाता हे मेरे राजा रणबीर अब .... आआओ... ना." सूमी बदहवास हो बड़बड़ा रही थी.
वह रणबीर के पॅंट के बटन खोल कcछि सहित उसे उतार चुकी थी और रणबीर अब केवल बनियान मे था. उसका लंड को पकड़ कर अपनी और खींच रही थी उसका बस चलता तो वा उसके लंड को उखाड़ कर अपनी तड़पति चूत मे खुद ही घुसेड लेती.
रबनीर ने भी देर नही की और उसकी टॅंगो के बीच आसन जमा चूत के मुँह पर लंड टीका दिया और एक ही धक्के मे अपना लंड जड़ तक पेल दिया एक बार तो सूमी की जान जैसे गले तक आ गयी हो. उसके शरीर ने एक झटका खाया फिर उसने दोनो बाहें आगे बढ़ा कर रणबीर की कमर जाकड़ ली और नीचे से गंद चला धक्के देने लगी.
पच पच की मधुर धुन के साथ चुदाई शुरू हो गयी. पहले कुछ हल्के और धीरे धीरे रफ़्तार पकड़ती गे और बाद मे तो तूफान आ गया.
है मेरे राजा कब तक मुझे तुम्हारे उस गान्डू और बुद्धू दोस्त के साथ जिंदगी गुजारनी पड़ेगी. तुम मिले भी तो दो दिन के लिए. है मेरे रणबीर मुझे अपने बच्चे की मा बना दो ना. ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ऐसा सुख तो मेने आज तक नही पाया. क्या चुदाई करते हो..... अपने दोस्त को भी सीखा दो ना नही तो वो लड़कों का लंड चूस सकता है... गंद मरवा सकता है... " सूमी तूफ़ानी रफ़्तार से गंद उछालते हुए चुदाते चली जा रही थी और जो मन मे आए बोलते जा रही थी.
"है भाभी क्या चोट तुम्हारी जैसे किसी कुँवारी लड़की को चोद रहा हूँ..... ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह हाआँ मेरी सूमी रानी मेरी जान हायययी तुम्हे चोद के तो में तुम्हारी गंद मारूँगा....है में जा रहा हूँ..... " रणबीर ने सूमी के चूत मे कई धक्के कस के मारे और धीरे धीर दोनो पस्त पड़ते गये.
कुछ देर मे सूमी उठी और वहाँ से बाथरूम के तरफ चली गयी. रणबीर भी उठा और एक लूँगी लपेट वापस बिस्तर पर चित होके लेट गया. कुछ देर मे सूमी चाइ की दो प्यालियों के साथ वापस लौटी. सूमी भी रणबीर को एक प्याली दे बिस्तर पर बैठ गयी और दोनो चाइ की चुस्कियाँ लेने लगे.
"अब तो हवेली मे ही रहोगे, बड़े लोंगो के बीच हमारी याद आएगी ना?" सूमी ने पूछा.
"भाभी वो तो नौकरी है और हम लोगों को बड़े लोगों से उनकी बड़ी बातों से क्या लेना देना. दिल तो तुमने खेत मे रख लिया है, अब तो खेत की ठंडी हवा की सैर तो करते ही रहना पड़ेगा" रणबीर ने चाइ ख़तम की और खाली प्याली सूमी को दे दी.
"सुना ही की ठाकुर की एक बुल्कुल जवान ठकुराइन है, कहीं बगीछों की सैर करते करते खेतों को ना भूल जाना." सूमी ने रणबीर की बनियान उँची कर दी छाती के बालों मे हाथ फिराते हुए कहा."
"भाभी बागीचो मे पहेरे भी बहुत कड़े होते है, खेतों जैसा खुलापन कहाँ..." रणबीर ने कहा.
"पर पहेरेदार भी तो तुम्ही हो वहाँ के.. " कह सूमी सुबकने लगी.
"और भाभी तुम कह रही थी लंड का चूसना, मराना में उस समय कुछ समझा नही." रणबीर बे बिल्कुल बात पलटते हुए और अंजान बनते हुए पूछा.
"पता नही तुम अब तक कैसे बच गये नही तो ये बात ना पूछते. अब तुम्ही बताओ मेरे मे क्या कमी है पर... पर ये तो लड़कों के साथ वह सब कुछ करते है." सूमी रणबीर की छाती मे मुँह रगड़ते हुए उसकी छाती के घुंडी को मुँह मे ले चूसने लगी.
"बता ना मेरी सूमो रानी की वो क्या करता है?" रणबीर ने सूमी का घाघरा कमर तक उठा दिया उसकी फूली फूली गंद को सहलाने लगा. तभी उसकी एक उंगल सूमी की गंद के गोल छेद पर पहुँच गयी और वह उंगल से उसे दबाने लगा.
"यही वा इससे करता है और करवाता है जो तुम अंगुल से कर रहे हो." सूमी ने लूँगी के उपर से उसके लंड को मुथि मे लेकर कहा.
"तो ऐसे बोलों ने की लड़कों की गंद मारता है और उनसे अपनी गंद मरवाता है... तब तो वो तुम्हारी भी बिना मारे नही छोड़ता होगा." अब रणबीर ने अपनी नेक उंगल मे ढेर सारा थूक लगा उसे सूमी की गंद मे पूरा डाल दिया और अंगुल को गंद के भीतर हिलाने लगा.
"उईईई माआ दर्द कर रहा है ना... निकालो उसे वहाँ से.... तुम सब मर्द एक जैसे होते हो... खेत से मन नही भरा क्या जो सूखे कुएँ मे उतार रहे हो...." पर रणबीर ने एक नही सुनी और अब वह ज़ोर ज़ोर से अपनी उंगल अंदर बाहर करने लगा.
"बोलो ना भाभी वो तुम्हारी गांद मारता है या नही."
"हां मारता है.... गंद मारके मुँह फेर कर सो जाता है और में रात भर जलती रहती हूँ. नसीब जो खराब है मेरा जो ऐसे गांडो के गले बँध गयी."
अब रणबीर ने सूमी को बलपूर्वक पलट दिया और उसकी गंद हवा मे उठा कर उसकी गंद के दरार मे मुँह दे दिया और गंद के छेद को जीब से खोदने लगा और बोला, "पर मेरी जान तुम्हारी गांद है बहोत मस्त, आज एक बार मेरे से मन करके मरवा लो फिर तुम कहोगी की गंद मरवाने मे भी एक अलग ही मज़ा है." रणबीर अब सूमी के गांद पर
थूक डाल रहा था और अपनी जीभ से उसे अंदर तक लसीला कर रहा था.
"तुम जीब चलाते हो तो ना जाने अजीब सी सुरसुरी होती है... ओह कैसा लग रहा है... उसने तो कभी भी ऐसे जीब से नही चाटा... ओह पर तुम्हारा उससे बहोत बड़ा और मोटा है... यह अंदर चला जाएगा?
"अरे भाभी तुम एक बार मन से कह दो और हां खुला मन करके मर्वानी है तो बोलो बाकी सब मुझ पर छोड़ दो. एक बार मेरे से मरवा लॉगी तो जब भी चुदवाओगि तो खुद गंद मराने के लिए कहोगी." रणबीर ने कहा.
"ऐसी बात हो तो मार लो मेरी गंद पर धीर धीरे और बिल्कुल हल्के हल्के मारना."
रणबीर ने लंड के सुपाडे पर ढेर सारा थूक लगाया और गंद के छेद पे लगा धीरे से अंदर घुसा दिया. सूपड़ा पूरा चला गया तो फिर बाहर निकाला और वापस थूक लगाया और फिर भीतर तेल दिया. पर इस बार कुछ देर अंदर बाहर करता रहा और बोला.
"देखा भाभी तुम्हारी गंद थूक लगा के कितने प्यार से मार रहा हूँ बोलो दर्द हुआ? अब तुम मन करके गंद मरवा रही तो तो में मन करके तुम्हारी मस्त गंद मार रहा हूँ."
अब रणबीर धीरे गंद मे लंड ठेलना शुरू किया, सूमी गंद ढीली छोड़ती तब रणबीर लंड का बहाव भीतर बढ़ता और कुछ इंच अंदर सरका देता. जब सूमी गंद को सिकोडत्ती तब रुक जाता.
"मेरे देवर राजा तुम जीतने चूतिए हो उतने ही तुम गान्डू भी हो. वह साला मेरे वाला भादुआ तो सुखी ही मार देता है, सामने वाली को मज़ा आ रहा है या नही उसे कोई मतलब नही.
"हां अब अछा लग रहा है, "अब सूमी भी समझ गयी थी की गंद मे लंड कैसे पिलवाया जाता है.
अब वा जब गंद ढीली छोड़ती तब खुद पीछे तेल गंद मे लंड लेने लगी और रणबीर का पूरा 9' का लंड उसकी गंद मे समा गया.
'अब देख साली मेरा गान्डू पना.....ले झेल... अरे साली ये सूखा कुँवा नही ये तो तो तेरी केशर क्यारी है. अरे भोसड़ी की आज तक तूने एक भद्वे से गंद मरवाई है. कभी उसने मारी तेरी इस तरह से. " अब रणबीर उसे गालियाँ देते हुए पूरा बाहर खींच फिर एक ही धक्के मे जड़ तक पेल सूमी की गंद मार रहा था.
हाय.. मेरे राजा मुझे अपनी बना लो... मुझे लेके भाग जाओ... फिर दिन मे खूब गंद मारना और रात मे खूब चुदाई करना ..... ओह बहुत मज़ा आ रहा है...... कस के धक्के लगाओ में तो वैसे ही डर रही थी..... " सूमी ने पहले एक उंगल चूत मे डाली और बाद मे दो उंगल चूत मे डाल अंदर बाहर करती जा रही थी. उंगलियाँ फ़च फ़च करती उसकी चूत के अंदर बाहर हो रही थी.
तभी रणबीर के लंड ने सूमी की गंद के अंदर गरम गरम ढेर सारा वीर्य गिरा दिया. सूमी भी जोश मे आ अंगुल चूत मे और ज़ोर ज़ोर से पेलने लगी और उसकी चूत ने भी पानी छोड़ दिया. सूमी की गंद से वीर्या चू रहा था. कुछ देर वो बिस्तर पर लेटी रही फिर घाघरे से गंद पौंचती हुई उठी और बोली.
"तुम भी नहा धो कर फ्रेश हो जाओ, तुम्हारा हवेली जाने का समय हो रहा है और हाआँ... अपनी इस भाभी... सूमी को भूल मत जाना."
शाम 5.00 बजे रणबीर नहा धो कर रामानंद से आशीर्वाद लेके अपने नये मुकाम पर चल पड़ा.
हवेली पहुँचने पर रणबीर को उसका नया आशियाना बता दिया गया. यह हवेली की चारदीवारी के भीतर ही बना हुआ एक कमरा और रसोई का मकान था. कमरे और रसोई के बीच एक बड़ा सा बरामदा था. बरामदे के बाहर कुछ पेड़ थे और एक तरफ एक कुँवा था पास ही एक बड़ा सा पठार की शीला थी जिस पर नाहया और कपड़ों की धुलाई की
जेया सकती थी. वहीं पास सर्विस टाय्लेट भी बना हुआ था.
फिर हवेली के मैं गेट के पास बना एक छोटा सा कमरा उसे समझा दिया गया. यही उसकी कर्म भूमि थी जहाँ रहते हुए उसे हवेली मे शाम 6.00 बजे से सुबह 6.00 बजे तक हर आने जाने वाले पर नज़र रखनी थी. हवेली की सुरक्षा की देख भाल करनी थी. उसे दो वर्दियाँ दी गयी थी, बंदूक, कारतूस भरा पड़ा था, एक टोपी एक सीटी और कुछ ज़रूरी सम्मान भी दिया गया. हवेली के नियम और क़ायदे उसे समझा दिए गये थे.
रणबीर ने बड़ी मुस्तैदी से अपना काम संभाल लिया. बहादुर चौकन्ना और आछा निःशाने बाज तो वह पहले से ही था.
फिर वर्दी का रुबाब और ख़ास चौकीदार के रुतबे ने देखते देखते उसे हवेली का ख़ास आदमी बना दिया. फिर ठाकुर साहब भी उस पर मेहर बन थे., जो जल्दी ही और नौकरों पर उसका हुमकुम भी चलने लगा था.
हालाँकि उसकी ड्यूटी रात की थी और दिन वो आराम कर सकता था पर रणबीर सुबह तक अपनी ड्यूटी बजा 11 बजे तक सोता था. फिर नहा धो कर वो अपने लिए खाना बनाता और खाना खाने के बाद फिर हवेली मे आ जाता.
हवेली के मुख्य द्वार पर उसकी ड्यूटी 6.00 बजे से शुरू होती इसलिए वो अस्तबल मे चला जाता, वहाँ उसने सभी से अछी दोस्ती कर ली थी. इन सब का नतीज़ा ये हुआ की वो बीस दिन मे ही एक अक्च्छा घुड़सवार भी बन गया हा. इन्ही दीनो मे उसने जीप चलना भी सीख लिया था.
ठाकुर को जब इन सब बातो का पता चला तो ठाकुर खुश हुआ और ये सब उसकी अलग से काबिलियत समझी गयी और उसी हिसाब से उसकी तरक्की भी हो गयी. जहाँ दूसरे नौकर हवेली के घोड़ों पर सवारी करने के ख्वाब भी नही देख सकते थे और ना ही जीप के आस पास फटक सकते थे.
फिर एक दिन ठाकुर ने शिकार का प्रोग्राम बनाया. इस बार एक ठाकुर की हवेली मे एक और ठाकुर हवेली का मेहमान बना हुआ था जिसके साथ मधुलिका की शादी की बात चल रही थी. मधुलिका अगले साप्ताह तक एमबीबीएस के इम्तिहान देकर हवेली मे आने वाली थी. फिर उसकी मर्ज़ी से शादी की बात करनी थी. उसके आने के स्वागत की तय्यारियाँ हवेली मे चल रही थी. दूसरा ठाकुर भी ठाकुर के साथ शिकार पर जा रहा था.
इसलिए इस बार की तय्यारियाँ कुछ अलग ही थी, ये एक दिन और दो रात का प्रोग्राम था. ठाकुर रणबीर जैसे बहादुर इंसान का इस शिकार पर ना रहने का बार बार अफ़सोस जता रहा था. पर इतनी जल्दी हवेली की सुरक्षा के लिए कोई दूसरा रखा भी तो नही जा सकता था. खैर ठीक दिन ठाकुर अपने लश्कर के साथ शिकार के लिए रवाना हो गया.
घोड़े, साईस, जीप ड्राइवर और कई मुलाज़िम ठाकुर के साथ शिकार पर चले गये, पीछे रह गये ठकुराइन, कुछ दासियाँ इकके दुके नौकर और रणबीर.
ठाकुर साहेब अपने लश्कर के साथ शाम 4 बजे निकल गये. मालती को ठकुराइन ने पहले ही बता दिया था की उसे दो दिन अब हवेली मे ही रहना पड़ेगा. इसके अलावा भी ठकुराइन ने मालती से बहोत कुछ कहा था. मालती जैसी ही दो तीन औरतें हवेली मे काम करने वाली थी पर वो सब रात मे अपने अपने घर चली जाती थी.
हवेली के नौकरों को हवेली के भीतर आने की आग्या नही थी इसलिए वो अपना काम ख़तम कर रणबीर को मिले जैसे कमरों मे रहना पड़ता था. इसलिए रजनी ने मालती को सहेली ज़्यादा और नौकरानी कम समझती थी और उसे हवेली मे अपने साथ रख लिया था. ठाकुर की अनुपस्थिति मे अब हवेली की कमान उसके हाथ मे थी.
रणबीर ने ठाकुर के जाते ही हवेली का मेन गेट बंद करवा दिया. मेन गेट मे एक छोटा दरवाजा था जिसमें से लोग हवेली मे आते जाते थे. वो अपनी ड्यूटी पर मुस्तैदी से गेट के पास बने कमरे मे मौजूद था. रात मे वो 4-5 बार पूरी हवेली का चक्कर लगाता था. नयी जगह नये लोग फिर नये शौक़ जैसे घुड़सवारी, जीप चलाना इन सब मे उसका इतना मन लग गया की उसे सूमी की याद भी नही आई.
मालती चाची को वो हवेली से आते जाते देखता था. लेकिन इस महॉल मे कोई बात करने का मौका उसे नही मिला था. रात के 10.00 बजे होंगे, रणबीर अपने कमरे मे बैठा था तभी उसे किसिके कदमों के चलने की आवाज़ सुनाई पड़ी.वो फ़ौरन चौकन्ना हो गया. तभी उसे कंबल मे लिपटा एक साया उसके कमरे की तरफ आता दीखाई दिया. उसकी बंदूक पर पकड़ मजबूत हो गयी, पास आते ही उस साए ने कंबल उतार दी और रणबीर ने देख की वो मालती चाची थी.
"चाची आप इस समय और यहाँ, किसी ने नेदेख लिया तो ग़ज़ब हो जाएगा." रणबीर ने चौंकते हुए कहा.
मालती ने उसे चुप रहने का इशारा किया और अपने पीछे आने के लिए कहा. मालती को इस रात के समय मे अकेले देखते ही रणबीर की कई दीनो की शांत नदी हुई भावनाए भड़क उठी.
सूमी ना सही पर मालती इन हालत मे क्या बुरी थी, ये सोच वा तुरंत मालती के पीछे हो लिया. मालती उसे हवेली के भीतर ले जाने लगी तो उसके कदम रुक गये और उसने पूछा, "चाची हवेली के भीतर तो किसी मर्द को इस समय जाने की इजाज़त नही है?"
तब मालती ने उससे कहा, "अब ठकुराइन ही इस हवेली की हेड है और उसे तुमसे कुछ बात करनी है."
रणबीर असमंजस मे मालती के साथ हवेली मे घुस गया. मालती उसे कयी चक्कर दार गालियों से घूमाते हुए एक बड़े कमरे मे ले गयी. दीवारों पर बड़े बड़े आईने, बीचों बीच एक बड़ा सा तखत पुर कमरे मे बीचे आलीशान गाळीचे और दूधिया प्रकाश मे नाहया आह विशाल कमरा था. रणबीर की तो एक बार आँखें चौंधियाँ गयी.
तभी बहोत ही आकर्षित सारी मे सजी धजी क्रीम सेंट से महकती ठकुराइन उसके सामने आई और आदेश भरे लहजे मे बोली, "ये बंदूक और कारतूस उतार एक तरफ रख दो. यहाँ इनकी कोई ज़रूरत नही है. रणबीर ने फ़ौरन उन्हे एक तरफ रख दिया. वो ठकुराइन के रूप को देख रहा था इतने पास से ठकुराइन को उसने पहले कभी नही देखा था. उसके जीवन मे कई लड़कियाँ और औरतें आई थी पर ठकुराइन रजनी के मुक़ाबले कोई भी नही थी.
"ठाकुर साहेब से हमने तुम्हारी बहादुरी के कई कारनामे सुने है. हां इसी मालती को भी तुमने बहोत बहादुरी दीखाई है. हम भी तुम्हारी बहादुरी देखना चाहते है. हमे भी पता तो चले की तुम हवेली को संभाल सकते हो और जो हवेली मे हैं उन्हे भी." ठाकुरानी ने कहा.
तभी मालती ने रणबीर की तरफ एक आँख दबाई. खेला खाया रणबीर सब समझ गया. गाँव के ऐसी कई औरतों को तो वह रंडी और कुत्ते कह फ़ौरन काबू मे कर लेता था पर इस बार मामला ठकुराइन का था पर अंत तो एक जैसा ही होना था.
"ठकुराइन जी आपके के लिए तो में अपनी जान दे दूँगा, मेरे रहते आप पर कोई आँच ना आएगी, आअप जो भी हुकुम करें बंदा पीछे नही हटेगा." रणबीर ने झुक कर सलाम किया.
"मुझे ऐसे ही लोग पसंद है जो जो भी बात कही जाए उसे तुरंत मान ले. पर पहले मालती के साथ जाओ और यह जैसे कहे वैसे ही करते जाना. हां याद रहे उस दिन जिसा नहीं जब यह तीन दिन तक यहाँ आके रोई थी." ऐसा कह ठकुराइन कमरे से बाहर चली गयी.
तब मालती ने कहा, "पहले इस कमरे मे बने बाथरूम मे जाओ. वहाँ सब कुछ मौजूद है, इतरा, फुलेल, सेंट, क्रीम, साबुन शॅमपू और तुम्हारे लिए चोला. चूड़ीदार और दुपट्टा, सज धज कर बाहर आओ." यह कह कर मालती जिधर ठकुराइन गई थी उधर चल पड़ी.
रणबीर अपने भाग्य पर इठलाता हुआ स्नान घर मे गया और जो मालती ने बताया था वो सब वहाँ सलीके से रखा हुआ था. आज वह जी हर के नहाया. ऐसा साबुन उसने जिंदगी मे पहले कभी नही लगाया था. शरीर का रोम रोम फुलक उठा. फिर जब उसने वस्त्रा पहेने और अपने आप को आईने मे देखा तो देखता ही रह गया. उन वस्त्रों मे वह किसी राजकुमार से कम नही लग रहा था. वह बाहर आया तो उसने मालती को इंतेज़ार करते पाया.
मालती इस बार उसे दूसरे कमरे मे ले गयी, जो पहले कमरे से भी आलीशान था. सुंदरता और सजावट का क्या कहना. एक से एक बेश कीमती सामानों से सज़ा हुआ था वा कमरे. होता भी क्यों नही कमरा मधुलकिया के लिए तय्यार हुआ था जो अगले साप्ताह यहाँ आने वाली थी. कमरे के बीचों बीच रखी एक विशाल पलंग पर रजनी एक नाइटी पहने अढ़लेटी मुद्रा मे थी. वह मंद मंद मुस्कुरा रही थी.
रणबीर बहोत देर तक उसकी तरफ नही देख सका और उसकी नज़रें झुकती चली गयी. तभी कोमल आवाज़ उसके कान मे पड़ी, "रणबीर आओ, यहाँ पलंग पर मेरे पास बैठो. रणबीर पलंग के कोने पर बैठ गया और ठकुराइन से परे देखने लगा.
"तो मालती यही है वो जिसने उस दिन तुम्हारी गांद की दुर्गति की थी, और तुम तीन दिन तक ठीक से चल भी नही पे थी. तो इतनी ताक़त है इसमे. मेरा मतलब इसके मे. हम नही मानते जब तक की हम खुद नही देख ले."
"ठकुराइन विश्वास कीजिए, मेरी गांद को तो आपने खुद देखी है, बल्कि खोद खोद के भी देखा है. मेरे मना करते रहने पर भी यह नही मना और मेरी गांद की दुर्गति कर के ही छोड़ी."
रणबीर जो सुन रहा था उसे अपने कानो पर विश्वास नही हो रहा था. ये दोनो औरतें किस तरह खुले शब्दों का इस्तामाल कर बात कर रहे थी और मालती चाची क्या ठकुराइन से इतनी खुली हुई हो सकती है.
उनकी बातें सुन कर रणबीर का भी लंड खड़ा होने लग गया था और सोचा जब ओखली मे सर दे ही दिया है तो मूसलों से क्या डरना. उसे वही करना है जैसे कहा जाता है. अपनी तरफ से कोई उत्तावलापन नही दीखाना है. बड़े लोगों का मामला है. बड़े बुड्ढे ठीक ही कहते है की बिना सोचे समझे बड़े लोगों की गंद मे नही बढ़ाना चाहिए. उनका क्या कब गंद भींच ले और बाहर निकलना मुश्किल हो जाए.
"ठीक है पहले हम अपनी आँखो से सब देखेंगे फिर फ़ैसला करेंगे. मालती उठो और तुम दोनो वह सब मेरी आँखों के सामने करो. इसे भी ठीक से समझा देना. जैसे उस दिन हुआ था वैसे ही होना चाहिए नही तो भोसड़ी की गंद मे भूस भरवा देंगे. मैं भी ठकुराइन हूँ कोई कोठे पर बैठी रंडी नही की कोई मा का लॉडा आए और चोद्के लंड समेटता हुआ चला जाए.
मालती ने एक एक करके अपने कपड़े उतारने शुरू किए और देखते ही देखते पूरी नंगी हो गयी. रणबीर भोंचका सा वैसे ही बैठा रहा.
"चल तू भी उतार और शुरू हो जा." ठकुराइन की आवाज़ गूँजी.
रणबीर भी मालती की तरह नंगा हो गया. उसका लंड खड़ा तो था पर पूरी तरह से तना नही था. तब रजनी ने मालती को पलंग पर चोपाया कर दिया और रणबीर को कहा की उसकी गंद पहले ठीक से चाट कर तय्यार करे.
रणबीर को इन दो औरतों की हरकतें कुछ अटपटी लग रही थी पर यह सारा खेल और महॉल उत्तेजना पैदा करने वाला था.
रणबीर ने अपना मुँह मालती की हवा मे उँची उठी हुई गांद पर झुकाया और गांद के छेद पर जीभ फिराने लगा. अभी उसका मुँह सूखा हुआ था. वह बीच मे रजनी के चेहरे की तरफ भी देख रहा था और रजनी एक उंगल उठा देती की लगे रहो अपने काम पर. रणबीर काफ़ी देर तक मालती की गांद चाटता रहा मालती ओह्ह्ह हाआँ करती उससे अपनी गांद चटवाती रही.
तभी रजनी ने कहा, "मालती तू तो कहती थी की इसका लंड लोहे की सलाख की तरह कड़ा है, पर मुझे तो ढीला ढाला सा ही लग रहा है."
मालती अब बैठ गयी और रणबीर के लंड को मुठियाने लगी और बोली, "ठकुराइन आपको देख कर शर्मा रहा है."
"अक्चा तो ये बात है, चल रे हां क्या कहते हैं इसको,, हां अपना लॉडा मेरे हाथ मे दे. तो ये मुझे देख कर मुरझाया हुआ है, तब तो मुझे ही पूरा खड़ा करना पड़ेगा. रणबीर ने रजनी के आगे अपना लंड कर दिया ज्सिका रजनी बहोत ही बारीकी से निरक्षण करने लगी.
वो लंड की चॅम्डी को उपर नीचे करने लगी. पूरी चमड़ी छील सूपदे पर अंगूठे का दबाव दे रही थी.
तभी रजनी ने रणबीर के लंड को अपने मुँह मे ले लिया. कई देर तक वो लंड पर अपनी जीब फेरती रही फिर मुँह मे पूरा लंड ले मुँह आगे पीछे करते हुए चूसने लगी.
कुछ देर तक लंड चूसने के बाद रजनी ने लंड को मुँह से निकाला और बोली, "हां अब पूरा तय्यार है, वाह क्या मस्ताना और सख़्त लंड है, चल मालती अब तू भी तय्यार हो जा अपने पीचवाड़े मे लंड लेने के लिए. हूँ अब मज़ा आएगा." रजनी ने एक भूकि बिल्ली जैसे चूहे से खेलती है वैसे ही रणबीर के लंड से खेल रही थी. उसकी आँखों मे चमक थी. वासना से उसका चेहरा सुर्ख लाल हो कमरे की दूधिया रोशनी मे चमक रहा था.
मालती फिर पलंग पर घोड़ी बन गयी. रजनी का इशारा पाते ही रणबीर उसके पीछे आ गया और अपना लंड मल्टी की गांद के छेद पर रख दिया. रजनी ने थूक से साना लंड थोड़ा सा दबाव देते ही अंदर जाने लगा. मालती के शरीर ने एक बार झटका खाया. पर अब रणबीर के बस की बात नही थी. फिर ठकुराइन ने उसकी गैरत को ललकार दिया था. तो उसने दाँत भींचते एक तगड़ा धक्का मालती की गांद मे दिया और मालती की चीख उस हवेली के सन्नाटे मे गूँज गयी.
"है रे मार डाला रे... में मर गयी रे... बाहर निकालो ये लोहा मेरी गाअंड से." मालती छटपटा रही थी
पर रणबीर ने एक ना सुनी और अपने लंड को थोड़ा बाहर निकालते हुए फिर एक धक्का मार पूरा लंड अंदर पेल दिया.
रजनी को मज़ा आ रहा था और वो रणबीर को उकसा रही थी.
"वा रे मेरे ठाकुर के शेर, हां मार साली की और ज़ोर से मार. देख साली की कितनी फूली गांद है. मार मार मार के हवेली का गेट बना दे साली की गंद को. इसका जेठ तो सला बुद्धा रंडुआ है और भोसड़ी का वह भतीजा साला लुंडों का लंड चूस्ता है और उनसे खुद गांद मरवाता है."
रजनी ने अपनी नाइटी मे हाथ डाल दिया था और हाथ से अपनी चूत को रगड़ते हुए रणबीर को उकसाए जा रही थी.
"ठकुराइन ये आपके सामने ही मेरी गांद का भुर्ता बनाए जा रहा है और आप मज़े ले रही है. है लंड है या मूसल गांद....छील्ल..... के रख....दी....मरी जा रही हूँ." मालती हाय तोबा मचाती रही और रणबीर तब तक उसकी गांद मरता रहा जब तक की उसके रस से मालती की गांद पूरी ना भर गयी हो और उसकी गांद से रणबीर का रस चुने ना लग गया हो.
रणबीर हांफता हुआ धीरे धीरे सुस्त पड़ गया.
"ला तेरी गांद इधर कर, मुझे देखने दे उस दिन जैसे मारी या नहीं." ये कहकर रजनी मालती की गांद पर झूक गयी और दोनो हाथो से जितना फैला सकती थी उतनी उसकी गांद फैला दी. मालती की गांद मे अंदर तक देखा जा सकता था. तभी रजनी ने आधी से अधिक जीब उसकी गांद मे दे दी और जीभ अंदर की गंद के अंदर की दीवारों पर चलाने लगी. वह कई बार मालती की अच्छी तरह से मारी हुई गांद चाटती रही.
फिर मालती उठी और सीधी बाथरूम की और भागी.कुछ देर बाद वापस बन संवर के निकली. तभी रजनी ने इशारा किया और मालती ने एक बादाम घुटे हुए दूध का ग्लास टेबल पर से उठा रणबीर क्को पकड़ा दिया. रणबीर ने एक घूँट मे ग्लास खाली कर फिर मालती को थमा दिया.
"जाओ तुम भी बाथरूम मे चले जाओ वहाँ सब कुछ मौजूद है." ठकुराइन ने कहा.
रणबीर उठा और बाथरूम मे चला गया. फुवरे के नीचे ठंडे पानी से स्नान कर, क्रीम सेंट लगाएक मखमली तौलिए को लपेट जब वो बाहर आया तो मालती और रजनी दोनो पलंग पर नंगी थी.
रजनी पीछे एक बड़े तकिये का सहारा लिए टाँगे चौड़ी कर के बैठी थी, उसकी झांते भरी चूत रणबीर को सॉफ दीख रही थी जिससे मालती चाची खेल रही थी, बीच बीच मे उसके अंदर जीब डाल रही थी, उसको चाट रही थी और रजनी मालती का सिर अपनी चूत पर दबा रही थी.
रणबीर पास पड़ी टेबल से अपने चूतड़ टीका कर ये लुभावना दृश्या देख रहा था. धीरे धीरे तौलिए मे लिपटा उसका लंड खड़ा होने लगा. कमरे की दूधिया रोशनी मे रजनी का गोरा बदन चमक रहा था. ठकुराइन रणबीर की कल्पना से कहीं ज़्यादा सुंदर थी. ठकुराइन की जगह और कोई होती तो ये सब देख रणबीर उस पर चढ़ बैठता पर यहाँ बिना ठकुराइन की आग्या के वो हिलने की भी नही सोच सकता था.
तभी रजनी पलंग से उठी और रणबीर के सामने आई और उसके तौलिए को एक झटके मे खींच पलंग पर फैंक दिया. रणबीर का लंड खड़ा था. तभी रजनी घुटनो के बल उसके सामने ज़मीन पर नीचे बैठ गयी और उसके लंड पर जीब फैरने लगी. फिर लंड को मुँह मे लेने लगी.
वह जीब थूक से तर कर लंड पर फेर रही थी. कुछ ही देर मे लंड लसीला हो चला और रजनी मुँह आगे कर उसे मज़े से चूसने लगी. वा उसकी गोलियों को खींच रही थी जिससे लंड पूरा उसके मुँह मे अंदर बाहर हो रहा था.
तभी वो लंड को मुँह से निकाल खड़ी हो गयी और बोली, तो तेरे कंधों मे बहोत ताक़त है, देखती हूँ ठकुराइन का बोझ संभाल पाते है की नही," रजनी रणबीर की बाहों को अपने हाथों मे लेते हुए बोली," फिर उसने रणबीर के गले मे बाहें डाल दी और उसके होठों को अपने होठों ले चूसने लगी.
रणबीर टेबल से अपने चूतड़ लगा वैसे ही खड़ा रहा. जो कुछ कर रही थी ठकुराइन ही कर रही थी. तभी रजनी ने उचक कर रणबीर के कमर मे अपनी टाँगे लपेट ली. गले के पीछे उसने उंगलियों के एक दूसरे मे फँसाया और ठकुराइन का सारा बोझ रणबीर पर आ गया.
रजनी की इस अचानक हुई हरकत से रणबीर कुछ चौंक पड़ा और उसने फुर्ती दीखाते हुए रजनी के भारी चूतड़ पर अपने दोनो हथेलियों जमा दी. अब रणबीर का लंड और ठकुराइन की चूत आमने सामने थी और दोनो मिलने के लिए उत्तावले हो रहे थे.
तभी रजनी मालती से कहा, "मालती तू चल मेरी गांद के पीछे बैठ जा और तीर निशाने पर लगा"
मालती रजनी की गांद के नीचे आके बैठ गयी. उसने अपने सर को सहारा भी ठकुराइन की गांद का दिया जिससे गांद कुछ और उपर उठ गयी. फिर उसने रणबीर के लंड पर थूक भरी जीब फेरी और लंड ठकुराइन के चूत के मुख पर लगा दिया.जैसे ही रणबीर के लंड ने ठकुराइन की चूत के खुले होठों को छुआ उसमे एक सनसनाहट की लहर दौड़ गयी और उसके हाथ अपने आप ठकुराइन की गंद लंड पर दबाने लगे.
अब रजनी ने अपने पैर टेबल पर आगे फैला दिया और मालती को पलंग पर बैठ देखने के लिए कह गंद रणबीर के लंड की तरफ चलाने लगी. अब रणबीर रजनी की इस अदा से पूरा मस्त हो चुका था. उसने ठकुराइन की पतली कमर मे बाजू कस लिए और ठकुराइन की गांद हाथो मे ले अपने खड़े लंड पर दबाने लगा. जब दबाता तो उसका लंड जड़ तक चूत मे चला जाता, फिर वह ढीला छोड़ देता तो लंड वापस कुछ बाहर निकल आता और इस तरह से वह चुदाई करने लगे.
"ओह... रणबीर तुम्हारा लंड वाकई में बहोत ताकतवर है... मेरी चूत को भाले की तरह चीर रहा है.. ओह हां...ओह और दबा दबा के चोदो.. तुम्हे इसी काम के लिए तो मेने ठाकुर साहेब से कह हवेली मे रखवाया है.. ओह हाआँ आज से तुम्हारा असली काम यही है... हां और ज़ोर से हां फाड़ डाल रे आज तेरे सारे खून माफ़.. " रजनी कई देर तक ऐसे ही बड़बड़ाते हुए चुदति रही. अब उसने एक चुचि रणबीर के मुँह मे दे दी.
रणबीर ने भी ठकुराइन की भारी चुचि अपने मुँह मे ले ली. जिस प्रकार ठकुराइन उसके गले से लटके हुए थी उसे उसकी चुचि के अलावा कुछ दीखाई भी नही दे रहा था.
ठकुराइन काफ़ी देर इसी अवस्था मे उससे चुदवाती रही, चूचियाँ मुँह मे बदलती रही. फिर वह खड़ी हो गयी और इस उसने एक पैर ज़मीन पर रखा और दूसरा पैर टेबल पर लंबा रखा और रणबीर के लंड से इस प्रकार पूरी तरह चोदि हुई चूत सटा दी और एक झटका दे फिर चूत मे ले ली. अब दोनो एक दूसरे की कमर मे हाथ डाल चुदाई कर रहे थे.
ओह... रणबीर खूब ज़ोर से मारो मेरी.... श... ऐसे ही ...रणबीर खूब ज़ोर से मारो मेरी... हाआँ ओह मे तो जाने वाली हूँ.. आज जी भर कर पानी छोड़ूँगी.....बहोत दिन से जमा हो रखा है.. वो सला जंगल मे शिकार का दीवाना है... घर का शिकार उसे कहाँ दिखता है... ये शिकार अब तेरा है रे...खूब मज़ा ले ले कर शिकार कर इसका... ओह मालती देख मेरा गिर रहा है.. " और ठकुराइन ख़ालास हो गयी.
ठीक उसकी समय रणबीर के भी लंड ने ठकुराइन की चूत को अपने वीर्या से भर दिया.
कुछ देर बाद मालती रणबीर को पहले वाले कमरे मे ले गयी, वहाँ रणबीर ने अपने कपड़े पहने और अपनी बदूक और गोलियों का पट्टा उठा अपने कमरे मे चला गया.
दूसरी रात रणबीर आधीर हो उठा. उसकी नज़रें बार बार हवेली की तरफ उठ जाती की कहीं मालती चाची आते हुए दीखाई दे जाए.
आख़िर वो करीब 10.30 के करीब आई. आज कोई बात नही हुई और रणबीर अपने आप उसके पीछे चल पड़ा.
आज मालती सीधे उसे उस कमरे मे ले गयी जो मधुलिका के लिए तय्यार हुआ था. रजनी पलंग पर एक नाइटी मे बैठी थी.
"आओ ठाकुर, मेरा मतलब ठाकुर के ख़ासमखास. क्यों हमारी याद ने कुछ बैचैन किया या नही?" ठकुराइन ने कहा.
"ठकुराइन में तो दो घंटे से हवेली की तरफ ही देख रहा था की कब मालती चाची आए और .....फिर इस जगह पर ले कर आए." रणबीर ने ठकुराइन के सामने झुकते हुए कहा.
"अगर ऐसी बात है तो हम तुम्हे ज़रूर इसका इनाम देंगे. पहले तुम यह सब वर्दी, बंदूक, उतार कर आराम से बैठो." ठकुराइन ने कहा.
रणबीर ने अपनी ड्यूटी का सब साजो सामान उतार कर एक खाली पड़ी कुर्सी पर रख दिया. अब वह बनियान और पॅंट मे था.
"अब इसे भी उतार दो. क्यों आज भी हमारी शरम आ रही है, अंदर कुछ तो पहना होगा? यदि नही पहना है तो भी चलेगा.' ठकुराइन हंसते हुए बोली.
"रजनिज़ी मेरा मतलब है ठकुराइन में लंगोट का साथ कभी नही छोड़ता." फिर रणबीर ने पॅंट भी उतार कर बाकी के कपड़ों के ढेर पर फेंक दिया. कमर मे लंगोट बहोत ही कस के बँधी हुई थी. उसके लंड का उभार लंगोट से सॉफ दीखाई पड़ रहा था.
ठाकुरानी ने एक हल्की सी सिसकी से होंठ काटे और कहा, "रजनिज़ी या फिर तुम चाहो तो केवल रजनी कह के भी बुला सकता हो, हम लंगोट का भी साथ छुड़वा देंगे. रजनी मल्टी की तरफ देख के हँसी और मालती ने भी मुस्कुरकर साथ दिया.
"रजनिज़ी आप मालिकिन हो. में तो आपका हुकुम का गुलाम हूँ."
"ऐसे ही हुकुम का गुलाम बने रहोगे तो इनाम भी पाओगे." रजनी ने इनाम शब्द पर ज़ोर देकर रणबीर की आँखों मे झँकते हुए कहा.
तभी रजनी पलंग से ये कहते हुए उठ खड़ी हुई की पहले हम स्नान करेंगे.
"चलो तुम दोनो भी मेरे साथ स्नान घर मे चलो."
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