Tuesday, March 16, 2010

कामुक कहानिया सेक्स मशीन--3

राज शर्मा की कामुक कहानिया

सेक्स मशीन--3


दोस्तो सेक्स मशीन-2 मैं आपने देखा था की बिना ने आपना वायदा निभा दिया था कविता बा इज़्ज़त बरी हो चुकी थी
अब आगे की कहानी

बिना के साथ उसके फार्म हाउस पर आज एक और ही सोसाइटी की बाला हाजिर थी, शहर के नामी बिल्डर की बेटी और एक नामी इंडस्ट्रियलिस्ट की बहू नम्रता.....उमर होगी 23-24 की, शादी शुदा होना महज एक सोशियल फॉरमॅलिटी थी, वरना उसको देख कर कोई नही कहता की वो शादी शुदा है, लो वेस्ट, सिक्स पॉकेट जीन्स, उसके उपर जो कुछ उसने पहना था, उसे क्या कहते हैं, मैं नही जानता.......ब्रा की बड़ी बहन लगता था, कंधे पर सिर्फ़ दो स्त्रेप्स, सिर्फ़ निपल्स को ढकता, नाभि से कई इंच उपर, सिर्फ़ तनी हुई चुचियो पर अटका, वो एक पतला सा कपड़े का टुकड़ा था, जिसके अंदर कही से भी हाथ डाला जा सकता था. कुमकुम, बिंदी, चूड़िया जैसी दकियानूसी चीज़ो का कोई काम नही था.
बिना की अवस्था उससे काफ़ी अच्छी थी, वो आज घुटनो के जरासा उपर पहुचता, स्कर्ट पहने थी, उपर जॅकेट नुमा, आगे से खुलने वाला, स्लीवलेस टॉप पहने थी. दोनो ही सुंदरिया, इस वक़्त, ब्लॅक डॉग की चुस्किया ले रही थी, और बड़े ही बेसब्री से रोहित की रह देख रही थी.

"बिना क्या ये रोहित सच मुच रिलाइयबल है......मेरा मतलब, बाद मे कही कोई लॅफाडा तो नही खड़ा करेगा...?"......नम्रता ने अपनी सोशियल स्टेटस के प्रति चिंता जताई.
"बिल्कुल टेन्षन मत लो....मैं रोहित को बहुत अच्छी तरह जानती हू..........वो बहुत ही अच्छा लड़का है......वो तुम्हे बाद मे पहचानेगा भी नही......तुम चिंता मत करो.....वो एक लंबी रेस का घोड़ा है, तुम्हारी हड्डिया बिखेर देगा..!".....बिना ने उसे आँख मारते हुए कहा.
" फिर ठीक है...लेकिन वो है कहा, कब आएगा...?"
"बस आता ही होगा, नम्रता डार्लिंग.......थोड़ा धीरज रखो"

नम्रता की समस्या भी वही थी, सिर्फ़ पति नाम के शक्श का होना....? ये भी कोई बात हुई....? जब की दुनिया मे इतने सारे, एक से बढ़ कर एक जवा मर्द मौजूद है....!.........और फिर उसका पति भी तो अपनी सीक्रेटरी से लेकर कॉल गर्ल्स तक, जहा मुमकिन हो, मूह मारता होगा.......फिर जिंदगी की रंगिनिया, वो इस उमर मे ना देखे तो कब देखे...?
जब बातों ही बातों मे बिना ने उसे रोहित के बारे मे, उसके साथ बिताए उन अद्भुत लम्हो के बारे मे बताया, तो वो पिछे ही पड़ गयी.......कम से कम एक बार रोहित से मिलने के लिए.....अब बिना मना तो नही कर सकती थी.......नतिजन, आज नम्रता उसके फार्म हाउस पर उपस्थित थी, और रोहित की राह देख रही थी........नशा उस पर हावी हो रहा था......आँखो मे लाल डोरे तैरने लगे थे

तभी उन्हे रोहित आता नज़र आया.....उसका डील डौल देख कर नम्रता को यकीन ही नही हुआ, वो सिर्फ़ 17 पूरे कर चुका है, और 18 का होने वाला है ....... वो कम से कम 22/23 का लगता था, निहायत हॅंडसम, बलिष्ठा, 5'9' के करीब हाइट ..... नम्रता का दिल बल्लियो उछल ने लगा.

"हल्लो मेडम ....कैसी हैं आप..?".......रोहित बिना को नाम से सिर्फ़ तब पुकारता था जब वो दोनो ही हो.
"बिल्कुल मज़े मे हू.....आओ बैठो .... इन से मिलो ..... ये हैं नम्रता, मेरी सहेली ...!"........ नम्रता के नाम के अलावा कुच्छ और बताने की ज़रूरत नही थी.
"नाइस तो मीट यू मेडम .....!"........ रोहित ने नम्रता की तरफ हाथ बढ़ाया ...... नम्रता ने भी हाथ मिलाया ...... लेकिन छोड़ा नही, बल्कि उसके गले मे बाहों को डाल कर उससे लिपट गयी ....... होंठो पर एक कड़क किस रसीद कर दिया.

'काफ़ी सेक्सी, और उत्तेजित लगती है ...... मज़ा आएगा ...!... वो मन ही मन सोच रहा था

"बहुत हॅंडसम हो, मसल्स भी बढ़िया हैं, ...... बिना से बहुत तारीफ सुनी है तुम्हारी ...... आज आजमा कर देखूँगी ..... पूरा निचोड़ लूँगी तुम्हे ...!"....... नम्रता शायद सिर्फ़ नाम की ही नम्रता थी, उसकी बातों से कतई नही लगता था, की उँचे घराने की पैदाइश है.
रोहित ने मुस्कुराते हुए उसे देखा ..... "तुम कुच्छ पियोगे रोहित" ..... बिना ने पूछा ..... लेकिन रोहित ने जवाब देने के बदले, उसे अपनी तरफ खिछा ,... और उसके होंठो को चूसने लगा ..... कुछ देर बाद बोला ......"मैं ये पीना चाहता हू".
नम्रता और बिना दोनो ही हसने लगी.
बिना ने ब्लॅक डॉग का एक पेग बनाकर उसे थमा दिया ........ रोहित नम्रता की अधनंगी चुचियो को घुरता, व्हिस्की चुसक ने लगा.
"नज़ारा पसंद आया ......?"...... नम्रता ने रोहित की जाँघो पर हाथ फेरते हुए कहा
"नज़ारा तो बढ़िया है ...... पता लगाना पड़ेगा, असली है या नकली .....!"....... रोहित ने उसे चिढ़ाते हुए कहा.
"अछा तो तुम्हे शक है ...... तो ये लो, अब खुद ही चेक कर लो ....!"...... नम्रता ने वो कपड़े नुमा टॉप, नोच कर उतार फेका ...... रोहित आँखे फाडे, उन बिना ब्रा के भी तनी हुई चुचियो को देखता ही रहा, तने हुए निपल्स बड़े गुरूर से रोहित को चिढ़ा रहे थे.
"देख क्या रहे हो, वो तुम्हे चॅलेंज कर रहे हैं, उन्हे मसल डालो, कुचल डालो,.... तोड़ दो उनका घमंड ....!'....... बिना रोहित को और गर्म कर रही थी ...... उसके टॉप के बटन्स खुल चुके थे.
रोहित तो अब तक इस खेल का मास्टर ब्लासटर बन चुका था ..... ये "बॉल" से खेलना उसके लिए ज़रा भी मुश्किल नही था .... उसने नम्रता के गले मे हाथ डाल कर उसे अपने एकदम करीब खिछा ....... और दोनो हाथो से उन गेंदो को मसल ने लगा ..... होठ नम्रता के गालो की चिकनाहट जाँच रहे थे ........ नम्रता के मूह से आहे न्किकालने लगी

अब बिना की बारी थी ... उसने रोहित की ज़िप पर पहला हमला बोला ...... ज़िप खोल कर, उसने पॅंट को नीचे सरकाना शुरू किया,.... रोहित ने ये महसूस करते ही ..... थोड़ा उपर उठ कर उसका काम आसान कर दिया ..... अगले ही कुछ पॅलो मे रोहित की पॅंट उसका साथ छोड़ चुकी थी ........ अब ब्रीफ से साँप को आज़ाद करना महज वक़्त की बात थी ....... जैसे ही बिना की नरम नाज़ुक उंगलियो ने रोहित के लंड को छुआ ..... वो फुफ्करता हुआ बाहर निकला ...... अब उसे तलाश थी, चूत की ...... और यहा तो दो दो थी ... दोनो ही प्याससी ....... रोहित का "मोगंबो खुश हुआ"

अब रोहित ने नम्रता की चुचियो पर हाथो से कयामत बार्पाना छोड़ कर, मूह से चूसने लगा .... दूसरा हाथ नम्रता की जीन्स से उलझ रहा था ........ नम्रता, जिस पर पहले ही विस्की का नशा हावी था .... अब सेक्स का नशा सर चढ़ा कर बोलने लगा ...... उसने बिना रोहित को 'डिस्टर्ब' किए ... अपनी जीन्स उतार दी ...... पॅंटी समेत ...!
अब उसके जिस्म पर एक भी धागा मौजूद नही था ..... चूत पर भी नही.
बिना भी अब कहा पीछे रहने वाली थी, .... उसने भी अपने कपड़ो का मोह त्याग दिया ........ और रोहित की बची हुई टी-शर्ट को भी नोच लिया.
बिना के उस आलीशान फार्म हाउस मे, उस आलीशान बेडरूम मे अब वासना का तूफान आया था, एक थ्री सम सेक्स पर्फॉर्मेन्स हो रहा था
रोहित ने नम्रता की चुचियो का भरपूर रस पीने के बाद उसकी चूत पर मूह लगा दिया नम्रता अंदर तक हिल उठी उसने रोहित के सर
को पकड़ कर अपनी चूत पर कस दिया रोहित ने नम्रता की चूत मैं आपनी जीभ घुसा दी ओर उसे अंदर से जीभ की नोक से कुरेदने लगा
नम्रता तो मानो बिना पंख आसमान की सैर करने लगी उधर बिना का भी बुरा हाल हो चुका था बिना ने नम्रता के होंठ अपने होंठो मैं दबा
लिए ओर उन्हे चूसने लगी नम्रता ने भी बिना की चुचियो से खेलना शुरू कर दिया नम्रता का रोहित ने चूत को चूस चूस कर बुरा हाल कर
दिया था अब उसकी चूत लंड माँग रही थी नम्रता ने बिना एक तरफ धकेल कर रोहित को अपने उपर ले लिया अब रोहित ने देर करना
उचित नही समझा उसने अपना लंड नम्रता की चूत पे रख दिया नम्रता की चूत की पंखुड़िया ऐसे खुल गयी जैसे भवरे के बैठने पर कली
पूरी तरह खिल जाती है रोहित ने एक जोरदार झटका मारा उसका आधा लॅंड एक बार मैं ही नम्रता की चूत मैं घुस चुका था नम्रता तो खुशी से पागल हो गयी फिर फार्म हाउस मैं ऐसा तूफान आया की नम्रता बिना ओर रोहित को उड़ा ले गया सारी रात तीनो वासना के खेल मैं मस्त रहे

कविता अपने उपरके सभी इल्ज़मो से आज़ाद होते ही, ऐसे खिल गयी थी, जैसे बरसो से प्याससी बंजर ज़मीन पर जम के बरसात हुई हो, चेहरा निखर आया था, आँखो मे एक नयी चमक ..... और दिल मे ...?'....... वो तो कब का किसी और का हो चुका था ........ जिस दिल ने अब तक 17 बरस उसका साथ निभाया था,...... बस अचानक ही किसी दूसरे के पास चला गया था ....... बेईमान कही का ..?"..... वो दिल को झूठे गुस्से से कोस रही थी ........ असल मे तो वो बहुत खुश थी ....... उसका दिल मुन्ना ने ले लिया तो क्या ....... उसने भी तो मुन्ना का दिल ले लिया था .... चुप के से. दिल की ये चोरी तो शायद दुनिया की सबसे हसीन चोरी होगी ....... जिसमे चोर, और जिसके यहा चोरी हुए वो ... दोनो ही बेहद खुश होते हैं ....... कविता मे आया ये बदलाव, उसकी मा की नज़ारो से नही छुपा था.
वो बहुत खुश थी, उसे उसकी जवान बेटी वापस मिल गयी थी, कविता के सिवा उसका इश्स दुनिया मे कोई नही था, लेकिन वो चिंतित थी, कविता की शादी को लेकर, बाप मर चुका था, जो इसी लायक भी था, लेकिन था तो मर्द ......... कम से कम एक अहसास तो था की घर मे कोई मर्द का साया है, जो काफ़ी हद तक झोपड़ पट्टी के उन गुंडे, मवाली, टपोरी मनचले लड़को से उनकी हिफ़ाज़त करता था ......... लेकिन अब उसके जाने के बाद, कविता की मा को चिंता लगी रहती थी ....... वो जानती थी मुन्ना कविता से बेहद प्यार करता है ....... लेकिन वो भी तो अनाथ आश्रम मे रहता था, और अभी छोटा था, कविता की उमर का था ...... उनकी शादी होने मे अभी काफ़ी वक़्त था ....... तब तक वो अपनी फूल जैसी बच्ची की रक्षा कैसे करेगी ......?
यही चिंता उसे खाए जा रही थी .......... और उस दिन की घटना ने साबित भी कर दिया की वो ग़लत नही थी.

उस दिन कविता कुछ समान खरीद कर वापस लौट रही थी ....... उसके घर से थोड़ी दूरी पर एक छोटा सा खोका लगा था, जिसमे कुछ ज़रूरती चीज़े मिलती थी ....... दुकान दारी तो महज बहाना था ....... वास्तव मे वो आवारा लड़को का अड्डा था, दिन भर वाहा बैठ कर आती जाती लड़कियो, औरतो पर, ताने मारना, अश्लील कॉमेंट्स करना, कोई डरी सहमी दिखी तो उसे छेड़ना, यही उनका का काम था ....... सबसे बुरी बात ये थी की उस एरिया के एमलए का हाथ उन पर था ....... वो अपने आप को उसके कार्यकर्ता कहलाते थे ........ वही वजह थी की उनके हौसले बुलंद होते जा रहे थे ........ उस दिन जब कविता वापस आ रही थी तो, बद्री, जो उनका सरगना था ........ कविता को देख कर गंदे गंदे ताने मारने लगा ...... जब वो उसे उनसुना करके आगे बढ़ने लगी तो, उसने उसका रास्ता रोका ........
"कहा जराही हो कविता रानी ...... ज़रा एक नज़र हमे भी देख लो ..... ह्यूम भी खुशी है की तुम जैल से छूट कर वापिस आ आगाई ....... तुम्हारे बिना तो, खाना भी हजम नही हो रहा था,..... देखो कैसे सुख कर काटा हो गये हैं..!"..... इतना कह कर बद्री ने कविता का हाथ पकड़ ना चाहा, लेकिन कविता ने फुर्ती से वाहा से भाग जाना उचित समझा ....... इन लोगो से उलझ कर वो बात और बढ़ाना नही चाहती थी.

घर पहुचते ही उसकी मा ने उसका, डरा हुआ, गुस्से से दमकता चेहरा देखा तो वो बेहद डर गयी ......."क्या हुआ कविता ...?...... किसी ने कुछ कहा तो नही ,..?..... कोई शरारत तो नही की ...?'
लेकिन कविता कुछ ना बोली ...... और बिना बताए ही उसकी मा समझ गयी ...... जिस बात का डर था, वही हुआ है ....... उसे अपनी बेबसी पर गुस्सा आ रहा था ....... कविता भी कुछ ऐसा ही सोच रही थी ....... रिमांड होमे से छूटी, सारे इल्ज़ाम धूल गये ....... मुन्ना जैसा बेहद प्यार करने वाला प्रेमी मिला ...... तो रोहित जैसा रिश्ते की पवित्रता समझ ने वाला नेक दिल दोस्त मिला ....... लेकिन, यहा, इश्स माहौल मे जीना अब मिश्किल लग रहा था ..... कब तक बचाती वो अपने आप को .....?...... उसका दिल दहाड़े मार मार कर रोने को कर रहा था.
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई ...... मा,बेटी दोनो ही डर गयी ...... कौन होगा ..?.... क्या वो गुंडे अब उनके घर तक पहुच गये ...?..... अब क्या करे ...? किसे बुलाए सहायता के लिए ...... वाहा तो सभी उनसे डरते थे ...... दोनो ही दर से काँपति हुई, एक दूसरी से लिपट गयी ...... दरवाज़े पर फिर दस्तक हुई, पहले से ज़्यादा ज़ोर से ..... दोनो अब बेहद डर गयी थी ...... तभी बाहर से आवाज़ आई .....

"दरवाजा खोलो कविता .....मैं हू मुन्ना ...!"
मुन्ना की आवाज़ सुनते ही ..... कविता मे मानो जान आगाई ... सारा डर गायब हो गया ..... डर की जगह खुशी ने ले ली ..... उसने भाग कर दरवाज़ा खोला ....... और मुन्ना को अंदर खिच कर फिर दरवाजा बंद कर दिया ........ माहौल मे फैला टेन्षन .... मुन्ना ने महसूस किया ...... कविता के चेहरे पर फैली खुशी के पीछे छिपी चिंता को देख रहा था ...... मया के चेहरे पर तो अभी भी चिंता की लकीरे साफ देखी जा सकती थी .......

"क्या हुआ कविता ...... तुम डरी हुई लग रही हो ..... दरवाजा भी खोलने मे देर लगा दी ..... सब ठीक तो हैं ना ...?"
कविता कुछ बोलने की बजे, सूबकने लगी ..... मुन्ना ने उसके पास जाकर उसके कंधे पर हाथ रखा ..... हौसला बढ़ने के लिए ..... उसका आश्वासक स्पर्श होते ही कविता का साबरा का बाँध टूट गया ...... वो मुन्ना से लिपट गयी ....... मा के सामने ही ..... वैसे भी मा से कुछ छुपा तो नही था ..... मुन्ना कुछ देर उसकी पीठ थपथपता रहा ..... फिर उसे अलग करके पूछा ......"रोना बंद करो कविता ,.... मुझे बताओ ... क्या बात है ....?''
कविता ने पहले अपनी मा की तरफ देखा ....... फिर मुन्ना को सारा किस्सा सुना दिया ........... बात को समझ ने मे मुन्ना को देर नही लगी ....... वो बात की नज़ाकत को भी समझ रहा था ......... एमलए के सरपरस्ती मे पालने वाले गुणडो से निपटना, उसके जैसे अनाथ लड़के के बस की बात नही थी ........ और वो कविता और उसकी मा को, यू बेसहारा भी नही छोड़ सकता था ......... उन्हे वाहा से हटा कर, कही दूसरी महफूज जगह ले जाना ज़रूरी था ........ लेकिन कहाँ ...?.....जिसका अपना कोई ठिकाना नही था ..... जो खुद अनाथ आश्रम मे पल रहा था ....... वो इन मा, बेटी के लिए, कौन सा ठिकाना ढूंढता ....... और वो भी जल्द से जल्द ...!
मुन्ना सोच मे पड़ गया ....... और कविता, जो उस पर जान छिडकती थी ....... मुन्ना की तरफ टकटकी लगाए देख रही थी ......... बड़ी उम्मीद से.

रोहित अनाथ आश्रम के अपने कमरे मे पढ़ाई कर रहा था, पिछली रात, बिना के फार्म हाउस पर, उसने अपनी एच एस सी की पढ़ाई की अछी कीमत चुकाई थी ...... नम्रता और बिना ने मिल कर उसे खूब थकाया था ........ ये बात नही की उन सेक्सी हसिनाओ को संतुष्ता करने मे उसे मज़ा नही आया हो, लेकिन जहा दिल मिलते हैं वाहा, सेक्स का नशा भी अलग होता है, एक प्यारा सा, अपना सा, एहसास होता है, लेकिन जहा मजबूरी हो वाहा तो, सेक्स सिर्फ़ एक शारीरिक प्रतिक्रिया होती है ....... शरीर अपना काम करता है, लेकिन उसमे दिल की गहराई नही होती ......... खैर अब तो रोहित को उसके 12थ के एग्ज़ॅम्स होने और उसके 18 साल का होने का इंतजार था, फिर वो उस नर्क से आज़ाद होने वाला था ...... उसकी आँखो मे अब आज़ादी के ख्वाब तेर रहे थे.

तभी वर्षा, और गुप्ता वाहा आए.

"रोहित क्या पढ़ाई कर रहे हो ....?"..... वर्षा ने बड़े प्यार से पूछा ...... भाग्या की विडंबना देखो ...... जिस वर्षा ने रोहित की मजबूरी, उसकी पढ़ाई की लगन, का फ़ायदा उठाते हुए, एक तरह से एक्शप्लोइटे किया था, काफ़ी सारा पैसा कमाया था, अपने इशारे पर नचाया था, उससे एक तरह से वेश्या बना दिया था ...... वही वर्षा अब, रोहित की बड़े लोगो मे (औरतो मे) बढ़ती साख से हैरान परेशन थी, अब रोहित पर उसका कोई ज़ोर नही था ...... बल्कि वो रोहित से रिक्वेस्ट करती थी, अपना काम निकल ने के लिए.

"हाँ वर्षा,..... कहो क्या काम है ...?"
"कुछ बात करनी है, अकेले मे ...... अगर तुम एस वक़्त पढ़ रहे हो तो कोई बात नही ....... तुम्हारी पढ़ाई पूरी होने के बाद मे बात करंगे".......... वर्षा उससे यू अदब से बात कर रही थी जैसे वो, रोहित की कर्ज़दार हो, मुलाज़िम हो.
रोहित के होंठो पर एक हल्की सी मुस्कान तेर गयी, उसने वर्षा और उसके पास खड़े गुप्ता को देखा ......... अभी, एक डेढ़ साल पहले की बात थी, .... गुप्ता उससे गंदी गलियो के बगैर बात नही करता था, बेदर्दी से धुलाई किया करता था ....... आज उसके सामने हाथ बँधे खड़ा था ...... क्यू की गुप्ता जानता था ....... रोहित की चाहने वलीओ की लिस्ट काफ़ी बड़ी है, और उनकी पहुच, उपर तक, बहुत ही उपर तक है.
"मैं एक घंटे बाद तुम्हे ऑफीस मे मिलता हू ....'' रोहित ने जवाब दिया.

दोनो ही सहमति मे सर हिलाते चले गये, और रोहित फिर पढ़ाई करने लगा.
तभी मुन्ना वाहा आया ....... उसे देखते ही रोहित समझ गया, कोई परेशानी ज़रूर है.

"क्या बात है मुन्ना ...... कुछ परेशान से लग रहे हो ...?"
"भाई एक बहुत बड़ी प्राब्लम हो गयी है ....... कविता के बारे मे ...... समझ मे नही आ रहा है क्या करू .....?....... मुना परेशान था .
"क्या हुआ कविता को .... पूरी बात बता .."
मुन्ना ने कविता के साथ हुए उसकी बात चीत, और बद्री का एमलए की सरपरस्ती हासिल होना ..... सब विस्तार से बता दिया ..... .रोहित भी गहरी सोच मे पड़ गया.

"ये बद्री का एमलए का चमचा होना ...... लफदे की बात है ..... वैसे तो हम खुद ही उससे निपट सकते हैं ..... लेकिन इससे कविता की परेशानी हाल होने की बजे और बढ़ेगी ...... हम पड़े अनाथ ...... एमलए हुमपर कोई भी इल्ज़ाम लगवा सकता है ........ और तो और कविता को उठावा भी सकता है ...'

"भाई तुम्हारी वो बिना, या दूसरी औरते ........ वो हमारी कुछ मदद नही करेगी क्या ....?"....... मुन्ना कुछ भी करके कविता की मदद करना चाहता था.

"नही मुन्ना ...... हम हमारी हर समस्या के लिए उनके पास नही जा सकते हैं ...... वो समाज मे उँचा स्थान रखती हैं ....... उन्हे अपने श्ट्स्टस के बारे मे सोचना होता है ...... अगर दूसरा कोई रास्ता नही सूझा तो हम उनकी मदद लेंगे .... मुझे कुछ सोचने दो"

दोनो ही दोस्त, पढ़ी छोड़ कर सोचने लगे ....... और अचानक रोहित के दिमाग़ की बत्ती जल गयी ....... अब वो कविता को बेहद सुरक्षित जगह पर रख सकता था ...... भले ही कुछ महीनो के लिए ...... एकाध साल के लिए ही सही ......... उसने मुन्ना को कुछ नही बताया ....... बस इतना कहा की वर्षा को उससे कुछ काम है, और वो उससे मिल कर अभी लौट कर आएगा ..... फिर और सोचेंगे.


रोहित तुम्हे याद होगा,...... पिछले साल हमारे अनाथ आश्रम मे कुछ बच्चे बीमार हो गये थे ....... मेडिया वालो ने बात को काफ़ी उछाला था ........ उस वक़्त हमे लगा था की हमने बात को सम्हाल लिया है ...... लेकिन अब पता चला है ...... उपर से एक टीम आ रही है इन्वेस्टगेशन के लिए ..... यहा का सब हम सम्हाल लेंगे ...... तुम बिना से कह कर ..... टीम की रिपोर्टिंग, को स्महाल लेना ... प्लीज़"........रोहित जब वर्षा से मिलने गुप्ता के ऑफीस पहुचा ... उसने वर्षा को अपनी राह देखते पाया ...... और अब वर्षा की रिक्वेस्ट सुन कर उसे हसी आने लगी .... वक़्त वक़्त की बात है ...!

"ये तुम मुझे क्यू कह रही हो,....... बिना को तुम अच्छे से जानती हो, तुमने ही मुझे उससे मिलाया था ..... तुम दोनो अच्छी दोस्त हो ..... तुम सीधे उससे ही बात क्यू नही करती"....... अब ताने देने की, फब्तिया कसने की बारी रोहित की थी.

"नही रोहित ....... बिना मेरी दोस्त नही ..... अगर उसे तुम्हारी ज़रूरत ना होती तो वो मेरे तरफ देखती भी नही ....... उसके लिए मैं सिर्फ़ एक दलाल हू, जिसने उसे तुम्हे मिलवाया था ....... लेकिन मैं जानती हू .... वो तुम पर फिदा है ..... तुम्हारी बात वो कभी टलेगी नही"....... वर्षा तो जैसे गिड़गिदा रही थी ........ उपर वेल की लाठी आवाज़ नही करती, और जब पड़ती है तो बहुत ज़ोर से पड़ती है.
रोहित कुछ देर सोचता रहा.

"देखो वर्षा, मैं भी बिना के लिए एक खिलौना ही हू, उसका दिल बहलाने का खिलोना ...... जब उसका दिल भर जाएगा, मुझे उठा कर फेक देगी ...... लेकिन फिलहाल तो उसका दिल बहल रहा है ...... इस लिए मैं कोशिश करूँगा ...... उससे बात करके ....... की तुम दोनो पर कोई आँच ना आए ...... लेकिन तुम्हे मेरी एक बात माननी होगी ...."

"मुझे तुम्हारी हर बात मंजूर हैं रोहित ....... तुम सिर्फ़ कहो क्या चाहते हो ...."

"मुझे अपने लिए कुछ नही चाहिए ....... बस मैं चाहता हू ....... सभी लड़को को दो वक़्त अछा खाना मिले ....... सारा फंड, जो तुम दोनो ही डकार लेते हो ........ अब बच्चो को भी, सारी सुविधा मिलनी चाहिए ........ बोलो तुम्हे मंजूर है ...?"

दोनो पति पत्नी एक दूसरे की तरफ देखने लगे ........ फिर लगभग एक ही वक़्त दोनो ने हाँ मे सर हिलाया.

"लेकिन रोहित ..... हमारे पास रसोई घर मे आदमियो की कमी है ..... कुछ ही दीनो मे हम कोई खाना बनाने वाली को ढूँढ लेंगे, जो हमारे रसोइए की मदद करेगी ..... फिर सभी को दो वक़्त अच्छा खाना मिल ; सकेगा ..."

यही तो रोहित चाहता था

"तुम उसकी चिंता मत करो ...... मेरी नज़र मे एक औरत है,जो खाना बनाए मे मदद भी कर सकती है, और यही रहा कर रसोईघर के बाकी काम भी कर सकती है .......तुम्हे सिर्फ़ उसे रहने के लिए, वो एक खाली पड़ा क्वॉर्टर देना है ........ और सबसे बड़ी बात, उसे और उसकी जवान बेटी दोनो को ''किसी भी'' बात की तकलीफ़ नही होनी चाहिए ........ बोलो क्या कहती हो ..?"

"लेकिन रोहित वो क्वॉर्टर तो सिर्फ़ स्थाई कर्मचारियो को ही दिया जाता है ...... उसे कैसे''...... गुप्ता झिझकते हुए बोला

"गुप्ता .... तुम्हारा मतलब है, तुम हर काम क़ानूनी ढंग से करते हो ... क्यू ...!"...... रोहित अब बेखौफ़ हो गया था

"ठीक है हमे कोई ऐतराज नही .... लेकिन वो औरत हैं कौन .... तुम उसे कैसे जानते हो"...... वर्षा अपनी हैरानी छुपा नही पा रही थी.

"उसे तो तुम भी जानती हो वर्षा, बहुत आछे से जानती हो ....... वो औरत ... कविता की मा है ...... अब ये मत पूछना कविता कौन है ...?''

वर्षा जैसी औरत को जाड़ा समझने की ज़रूरत सच मे नही थी ........ और अब वो ये भी जान गयी थी की, उन मा बेटियो को कोई भी तकलीफ़ ना हो इसका ''खास ख़याल'' उसे रखना है ........ क्यू की अब उनके सर पर रोहित का हाथ था ........ जो बहुत ही मजबूत, और बहुत ही लंबा था ....... कही भी पहुच सकता था.

वापस आकर रोहित ने मुन्ना से कहा .....

"कविता और उसकी मा का रहने का प्रबंध हो गया है ...!"

"क्या ...!"....... मुन्ना को जैसे विश्वास ही नही हुआ ..... अभी अभी समस्या जटिल थी ..... अभी अभी उसका समाधान भी हो गया.

"वो दोनो अब यहा रहेगी .... हमारे साथ .... इसी अनाथाश्रम मे ...!"........ रोहित ने दूसरा बम डाला.

"क्या ..... क्या ....".......... मुन्ना एक के बाद एक झटके बर्दाश्त नही कर पा रहा था,...... वो दोनो लेडिएस इश्स लड़को के अनाथाश्रम मे कैसे रहेगी ...... उसका दिमाग़ काम नही कर रहा था.

फिर जब रोहित ने उसे सारा मामला समझाया ....... तो वो भौचक्का सा रोहित की तरफ देखता ही रह गया ......... क्या कहे कैसे खुशी का इज़हार करे ........ कैसे धनयवाद दे .... वो कुछ भी नही समझ पाया ....... बस रोहित से लिपट गया ..... और उसे चूमने लगा ....... गालो पर ...!

अचानक हुई आवाज़ ने रोहित को, वर्तमान मे ला पटका, किस चीज़ की आवाज़ थी ये जानने के लिए उसने नज़र दौड़ाई, आवाज़ किचन से आई थी ...... उसने अंदर झाँक कर देखा तो ..... बिल्ली थी, जिसने दूध का बर्तन गिरा दिया था, और अब मज़े से दूध चट रही थी ....... बिल्लिया भी अब होशियार होती जा रही हैं ...... बर्तन मे मूह डालने के बजा य, बर्तन गिरा देती हैं ..... फिर उसे हड़का ने से भी क्या फ़ायदा ...?....... रोहित मन ही मन मुस्काया. वैसे बिल्ली ने बर्तन गिरा कर उस पर अहसान ही किया था, वरना वो तो अपने अतीत मे इश्स कदर खोया था, की उसे गेराज जाना भी याद नही था ..... उसने जल्दी जल्दी कपड़े बदले ..... फ्लॅट को लॉक करके वो अपनी पुल्सर पर सवार हो कर तेज़ी से गेराज की तरफ उड़ चला.

गाड़ी चलते वक़्त भी वो यही सोच रहा था ...... रेवती से मिलने के बाद से ही उस पर ये, अतीत की यादो का हावी होना बढ़ गया था ...... शायद उसके दिल ओ दिमाग़ पर रेवती इस कदर छाई हुए थी, वो रेवती की कल्पना अपनी जीवन साथी के रूप मे करने लगा था ...... इस लिए ये यादो के भवर उसे अहसास दिला रहे थे ...... ये उसके किस्मत मे नही हैं ...... सब कुछ समझते हुए भी दिल बार बार रेवती के ख़यालो को ही संजोए रहता था ........ दिल है की मानता नही ....!

रोहित गेराज मे पहुचा, तो उसने मुन्ना को वाहा नही पाया ...... कही आस पास गया होगा सोच कर, रोहित ने अपने रेग्युलर कपड़े बदल कर, गेरगे मे काम करते वक़्त इस्तेमाल होने वाली यूनिफॉर्म पहन ली ...... और वो नई लगाई जाने वाली मशीनो की जाँच करने लगा ........ रोहित का ये गेराज उस एरिया मे फेमस था, वाहा सिर्फ़ फोर वीलर्स गाडियो की मररमत से लेकर, डेनटिंग, पैंटिंग,वॉशिंग सहित सभी काम होते थे, अछी ख़ासी आमदनी होती थी ..... करीब 30 लोग उसके गेराज मे काम करते थे, जिनमे से अधिकतर रोहित जैसे अनाथाश्रम से आए हुए थे ....... और सही रास्ते से कमाने मे यकीन रखते थे ........ रोहित और मुन्ना की बहुत इज़्ज़त करते थे ...... रोहित मशीनो की जाँच मे उलझा हुआ था की उसके कानो मे अपने एक वर्कर की आवाज़ पड़ी ......

"माफ़ कीजिए गा मेडम, हम यहा छ्होटी गाडियो की मरम्मत नही करते ...... यहा सिर्फ़ फोर वीलर्स की ही मरम्मत होती है'
"लेकिन यहा आसपास तो कोई और गेराज दिखाए नही दे रहा ..... मुझे बहुत अर्जेंट काम है .... प्लीज़ कुछ कीजिए ...!"....... कानो मे मिठास घोलती वो आवाज़ सुन कर .... रोहित एकदम हैरान रहा गया ....... ये तो रेवती की आवाज़ है ..... इतनी मधुर आवाज़ वो कैसे भूल सकता है ........ लेकिन अभी सुबह सवेरे, मुंबई मे पहला कदम रखने वाली रेवती को, इतनी जल्दी, इतना अर्जेंट काम क्या आया होगा ....?
रोहित ने तुरंत अपना काम बंद किया और वो बाहर आया ....... उसने एक दम सामने आने के बजा य ... कुछ दूरी से ही रेवती को देखा, निहारा ...... क्या खूबसूरती का कोई खास पैमाना होता है ..... क्या सुंदरता को किसी तरह से नापा जा सकता है ...... अगर किसी के पास ऐसा कोई तरीका, या ऐसा पीमाना हो जिसमे खूबसूरती को तोला जा सके, तो शायद रेवती किसी भी पैमाने मे खरी ना उतरे ....!...... लेकिन अगर कोई दिल के तराजू मे तोले तो ......!..... तो शायद रेवती से बढ़ कर कोई नही थी ........ हाइट और फिगर तो सही थे ही, लेकिन उसकी हिरनी जैसी बड़ी बड़ी भोली आँखे, चेहरे से टपकती मासूमियत ..... काले घने बाल ..... स्किन ऐसी सॉफ्ट, इतनी मुलायम की पानी की एक बूँद चेहरे पर टपाक जाए तो सर्ररर से पैरो तक पहुच जाए, बिना किसी रुकावट के ........ आछे विचार, आचे संस्कार का तेज उसके व्यक्तिकटवा से एक आभा पैदा करता था .... जो सामने वाले को सम्मोहित करता था.

वो मायूस हो कर अपनी स्कूटी लेकर जाने लगी तो रोहित का सम्मोहन टूटा ....... "रेवती जी ...... एक मिनट .... रुकिये ...!"...... उसके मूह से बरबस ही निकल पड़ा.
रेवती ने पलट कर देखा .... सामने खड़े रोहित को देखकर उसके चेहरे पर पहचानने के भाव आए ...... और उसमे एक अलग खुशी के भाव भी शामिल थे ..... किस बात की खुशी ....!..... वो नही जानती थी.

"क्या हुआ है ..... वैसे तो हमारे यहा, वाकई छोटी गाडियो का काम नही होता ........ लेकिन कभी कभार कर लेते हैं ...... क्या हुआ है, आपकी स्कूटी को ...?"
"वो,... चलते बंद हो जाती है ....... काफ़ी दीनो से इस्तेमाल नही हुई है, इसलिए शायद ...... ये आपका गेराज है ...?"..... रेवती ने अपनी बड़ी बड़ी आँखो से रोहित को देखा ....... रोहित को लगा वो उन आँखो की गहराइयो मे डूब रहा है ..... बेहोश हो रहा है ..... उसने बड़ी मुश्किल से अपने आप को सम्हाला.

"जी ... जी हाँ ... आप बैठी ये ना ..... ओये मान्या, सुन वो कुर्सी ला इधर... आप कुछ लेगी .... बंटी हाथ धो के पानी ला ...... आबे कम से कम कुर्सी पे कपड़ा तो मारा कर ..... आप यहा बैठिए ....... क्या लेगी आप, ठंडा या गर्म ...!"......... रोहित को सूझ नही रहा था, समझ मे नही आ रहा था ........ एक अछी लड़की से कैसे पेश आना चाहिए ....?... कभी नौबत ही नही आई थी ....... और उसकी ये हड़बड़ाहट देख कर रेवती की भी हसी छूट रही थी ......... बाकी वर्कर्स भी दबी दबी हसी हस रहे थे ........ उन्होने भाई को इतना नर्वस कभी नही देखा था.

"आप परेशान मत होएए, मैं कॉम्फर्टब्ले हू ..... बस अप मेरी स्कूटी ठीक कर दीजिए ...!"...... रेवती की होंठो से झाँकती मोटी जसी, दाँत पंक्तिया देखा कर, रोहित के लिए फिर से होश सम्हलाना मुश्किल हो गया ....... उसने पूरा ध्यान स्कूटी की तरफ लगा दिया ...... वो इतना नर्वस हो गया था की उसे याद तक नही रहा, की उसने रेवती को ठंडे या गर्म के लिए पूछा था ........ इसके बावजूद जब, रेवती के सामने, माज़ा की बोतल आई तो वो चौंक पड़ी ...... सामने मुन्ना खड़ा था ... जिसके चेहरे पर ऐसे भाव थे, जैसे उसने रोहित की चोरी पकड़ ली थी ....... अब सिर्फ़, उसे पता लगाना था की ...... रोहित भाई का दिल चुराने वाली ये चोरनी है कौन .....?....... वो तिरछि नज़ारो से रोहित को घूर रहा था.

और इश्स सबसे बेख़बर, रेवती, माज़ा पीते पीते .... स्कूटी ठीक कर रहे रोहित को देख रही थी,........ जिसके गेराज पर छोटी गाडियो का काम कभी नही होता था ....... लेकिन आज हो रहा था .... खुद गेराज का मलिक उसे ठीक कर रहा था.

रेवती के गुलाबी होंठो पर एक प्यारी सी मुस्कुराहट तेर ने लगी.
कुच्छ ही पलो बाद जब रोहित ने स्कूटी को स्टार्ट करके देखा तो, वो तुरंत स्टार्ट हो गयी, कुच्छ देर तक रोहित उसे उही टेस्ट करता रहा, फिर रेवती की तरफ देख कर बोला......"लीजिए आपकी स्कूटी ठीक होगेयी...अब आप को कोई परेशानी नही होगी'

"थॅंक यू वेरी मच मिस्टर. रोहित........अगर आप मेरी मदद नही करते तो, बड़ी परेशानी हो जाती.....वैसे आपके लोग कह रहे थे, यहा छोटी गाडिया रेपैयर नही होती.....फिर भी आप ने स्कूटी को ठीक किया......थॅंक्स अगेन......आपका बिल कितना हुआ...?".....रेवती अपना पर्स खोलते हुए बोली.

"ये आप क्या कहा रही हैं, रेवती जी.......मैं आप से पैसे कैसे ले सकता हू....नही नही प्ल रहने दीजिए.....मामूली काम था".......अब रोहित उसे कैसे समझाता, कि वो उससे पैसे क्यू नही ले सकता......यहा तक की उसने पर्सनली उसकी स्कूटी को क्यू ठीक किया.

"ठीक हैं फिर......मैं चलती हू....थॅंक्स अगेन"......ये बात तो रेवती भी जानती थी, की रोहित उससे पैसे नही लेगा....और ये भी की क्यू नही लेगा....!....उसने एक बार फिर उसे मुस्कुरा कर देखा और स्कूटी स्टार्ट कर के निकल गयी.

उसके जाते ही तुरंत, गेराज के सभी वर्कर्स रोहित के एर्दगिर्द जमा हो गये, सबसे आगे था मुन्ना.......पहली बार उसने रोहित की आँखो मे प्यार देखा था, सच्चा प्यार....जिसमे वासना की कोई मिलावट नही थी.......और रेवती भी उसे औरो से बिल्कुल अलग नज़र आ रही थी.

"भाई कौन थी वो लड़की,......आप उसे कैसे जानते हैं.....आप ने खुद उसकी गाड़ी ठीक की......उसे ठंडा पिलाया...पैसे भी नही लिए.....और वो इतने प्यार से क्यू मुस्कुरा रही थी.....?" ढेरो सवाल पुच्छना चाह रहे थे रोहित को....सभी जानते थे, रोहित कभी भी किसी भी लॅडीस कस्टमर से ज़्यादा बात नही करता था.....अपने काम से काम रखता था.....और वर्कर्स को भी सक्त आदेश थे की कोई भी, लॅडीस के साथ ज़्यादा नज़दीकिया बढाने की या, उन्हे ज़्यादा कन्सेसेशन देने की कोशिश ना करे.....जो नियम बने हैं वो सभी के लिए लागू हैं.....और आज रोहित ने ही नियम तोड़ दिया था.....लेकिन उसकी बॉडाइलॅंग्वेज कुच्छ और ही एशारा कर रही थी.......और यही बात वर्कर्स जानना चाहते थे......क्या ये लड़की कोई खास हैं...? और कया वो उसे भाभी कह सकते हैं.....? क्या कभी वो, रोहित की ग़ैरहाज़िरी मे गेराज मे आई तो, उन्हे उसके साथ कैसा बर्ताव करना चाहिए......बहुत सारी बाते जानना चाहते थे सभी.......क्यू की सभी रोहित को बेहद मानते थे, इज़्ज़त करते थे........

लेकिन कोई कुच्छ पुछने की हिम्मत नही कर पाया, मुन्ना ने सब को अपने अपने काम पर भेज दिया.....तब तक रोहित अपने ऑफीस मे जा बैठा था.....कुच्छ फाइल, कुच्छ बिल्स देख रहा था.......लेकिन वो जानता था, वो सबसे पिच्छा च्छुडा सकता था लेकिन मुन्ना से नही........और हुआ भी ऐसा ही

"भाई खाना नही खाना हैं क्या......कही बाहर चलोगे या यही मंगाउ....?"........जानबूझकर मुन्ना बात को टाल गया....कुच्छ वक़्त के लिए.
"यहा अगर कोई काम नही होगा तो बाहर ही चलते हैं...!".......रोहित भी जानता था....मुन्ना सिर्फ़ वक़्ती तौर पर शांत हैं.......यहा बात करने से बाहर ही जाना ठीक रहेगा.

दोनो ही बाहर निकल गये........कुच्छ ही दूरी पर एक रेस्तरो मे, एक टेबल पर कब्जा जमा कर बैठ गये........खाने का ऑर्डर दिया गया.....मुन्ना बड़े गौर से रोहित की तरफ देख रहा था......बड़ी खामोशी से, बड़े सब्र से...!

"उसका नाम रेवती हैं.......वो मुझे कोलकाता से लौटते वक़्त ट्रेन मे मिली थी......बहुत अच्छी लड़की हैं......एकदम शरीफ हैं.......वो अपने मा बाप के साथ दादर मे रहती हैं......बाप बॅंक मॅनेजर हैं,.....मा हाउसवाइफ हैं.......बस मैं सिर्फ़ इतना ही जानता हू"........इससे पहले की मुन्ना अपने सवालो की झड़ी शुरू करदे, रोहित ने ही सब बता दिया......लेकिन नज़रे झुकाकर.....मर्द जब शरमाता हैं तो कैसा दिखता हैं......रोहित को देख कर आसानी से जाना जा सकता था......और भाई को शरमाते देख मुन्ना को यकीन हो गया, भाई की जिंदगी अब शायद नर्क से निकल कर स्वर्ग के रास्ते चलने लगी हैं.

"भाई लड़की सचमुच अच्छी हैं.......मुझे पसंद हैं...!.....भाभी के रूप मे....!"......मुन्ना अब रोहित की खिचाई करने के मूड मे था.

"देख मुन्ना.....तू मेरा भाई, दोस्त सब कुच्छ हैं.....मुझे ऐसे सपने मत दिखा,...या अगर मैं देखता हू तो मुझे रोक.....ये जिंदगी मेरे लिए नही......मैं उसके काबिल नही....मुझे इस नर्क से मुक्ति नही मिलने वाली......रेवती आसमान से उतरी ओस की वो बूँद हैं जिसे सम्हालने के काबिल मैं नही हू,.......वो पवित्रता की मूरत हैं.....मुझे डर हैं मेरे छुने भर से, वो मैली हो जाएगी....उसपर दाग लगजाएगा......मुझे तो अपनी परच्छाई तक उसपर नही पड़नी देनी चाहिए.......नही मुन्ना ये नही हो सकता".......रोहित की आँखे नम हो गयी.......रोहित की हालत देख कर मुन्ना भी सीरीयस हो गया.

"भाई मैं जानता हू,.आप अपने अतीत की परच्छाई यो से डरते हैं.....उन परच्छाई यो ने आज भी आप का पिच्छा नही छ्चोड़ा हैं.......लेकिन भाई, इस सब के बावजूद आप एक नेक्दिल इंसान हो, एक फरिश्ता हो हम सब अनाथो के लिए......आप यू हिम्मत ना हारें.....अगर प्यार सच्चा हो तो कोई ना कोई रास्ता ज़रूर निकलेगा.....और फिर मैने भाभी जी की नज़रों मे भी आपके लिए वोही भाव देखे हैं.....जिन्हे देखने के लिए शायद हर प्रेमी तरसता हैं......आप यकीन जानिए.......आप दोनो एक दूजे के लिए ही बने हैं.".......मुन्ना कोशिश कर रहा था अपने भाई को तस्सल्ली देने की, लेकिन वो भी जानता था.....ये कहना आसान हैं, लेकिन वास्तव मे हैं बड़ा मुश्किल.

फिर उन दोनो मे कोई खास बात नही हुई, दोनो ही खामोशी से खाना खाते रहे.

रोहित बिना के साथ उसके फार्म हाउस पर मौजूद था,......बिना अब वो पहले वाली सेक्स की रसिया बिना नही रही थी, वो अब जगभग 46 साल की एक मेट्यूर्ड औरत बन चुकी थी,.....उसके सोशियल स्टेटस मे भी काफ़ी फ़र्क आया था.......नॅशनल लेवेल की एक पोलिटिकल पार्टी से अब उसका नाम जुड़ गया था, हालाकी अभी उसने एलेक्षन लड़ने की, या कोई बड़ा ओहदा पाने की कोशिश नही की थी, लेकिन फिर भी उसके प्रभाव से, उस पार्टी के लीडर्स काफ़ी प्रभावित थे........रोहित अब उसके करीबी लोगो मे जाना जाता था.....दोनो मे जो उम्र का फ़र्क था, वो उन दोनो के रिश्ते को बदनामी से बचाता था.....सभी यही जानते थे, की रोहित एक ऐसा अनाथ लड़का हैं, जिसे बिना जैसी नएक्दील महिला ने, अनाथाश्रम की जिंदगी से निकाल कर, अपने पैरो पर खड़ा होने मे मदद की थी........और रोहित जैसा शरीफ लड़का, अपनी अहसान करती के कामो मे हर संभव मदद करता था.......रोहित को बिना के पास आने जाने पर कोई पाबंदी नही थी.

लेकिन बिना आज भी रोहित को एस्टेमाल कर रही थी, खुद की प्यास बुज़ाने के लिए नही, बल्कि अपने बज़ाइनेस, सोशियल और पोलिटिकल कॉंटॅक्ट्स बढ़ाने के लिए, और मजबूत करने के लिए.......रोहित मना इसलिए नही कर पा रहा था, एक तो बिना ने कविता को बेगुनाह साबित करवाकर उसपर और मुन्ना पर बहुत बड़ा एहसान किया था.........दूसरी बात ये की उसने रोहित को प्रॉमिस किया था की, अगर रोहित किसी को प्यार करने लगता हैं, या वो शादी कर लेता हैं, तो वो उसे फिर कभी, किसी औरत के पास नही भेजेगी,.......उपर से अगर कोई उसके अतीत की वजह से उसे ब्लॅकमेल करने की कोशिश करता हैं, तो बिना उससे खुद निपट लेगी...........और रोहित आज बिना के पास यही कहने आया था की वो किसी से प्यार करने लगा हैं.........और उसीसे शादी भी करना चाहता हैं.........

बिना ने जैसे ही रोहित को देखा, उसका चेहरा खिल उठा.......बिना अब थोड़ी मोटी हो गयी थी.....लेकिन आज भी उतनी ही सेक्सी लगती थी जितनी 8 साल पहले लगती थी....

"हा य...रोहित मेरा बच्चा...कैसा हैं...?".......बिना अब लोगो के सामने उसे ऐसे ही "मेरा बच्चा" कहती थी.......शायद एलेक्षन की तैय्यारि का पहला कदम हो...
"मैं ठीक हू मॅम.....आप से एक ज़रूरी बात करनी थी.....?".........रोहित ने भी अब उससे बात करने का अपना तरीका बदल दिया था.....सिर्फ़ लोगो के सामने.....!
"अच्छा.....क्या बात हैं कोलकाता वाले काम मे कोई प्राब्लम आई क्या...?"
"नही...नही...ये मेरी निजी समस्या हैं...बस आप से थोड़ा डिसकस करना था..!"
"ठीक हैं....आओ मेरे साथ"........बिना उसे अपने खास कमरे मे ले गयी......जो "एवेरी थिंग प्रूफ" था

उस कमरे मे पहुचते ही......बिना रोहित से लिपट गयी........46 वे साल मे भी उसकी चुचियो की कसक अभी बरकरार थी....सीने से लगते ही, सीने मे चुभति थी.......रोहित ने भी उसे अपनी मजबूत बाहों मे कस लिया.......दोनो के होठ मिले.....एक लंबा किस हुआ.....रोहित ने उसके मासल कुल्हो को दबाया.....बिना चिहुक उठी.....उसने रोहित से पुचछा......

"क्या बात हैं आज बड़े जोश मे हो.......कोलकाता वाली मे मज़ा नही आया क्या...?"........बिना ने रोहित के सीने पर अपनी चुचिया रगड़ते हुए कहा.

"ऐसी कोई बात नही....दरअसल मैं तुम्हे कुच्छ याद दिलाने आया था.......जो तुमने कभी मुझसे वादा किया था...!".......रोहित उससे थोड़ा दूर हटके कोने मे लगी बार की तरफ बढ़ गया.......उसने दोनो के लिए ड्रिंक बनाए......तब तक बिना उसके पास आ कर उससे चिपक कर खड़ी हुई.......रोहित ने उसे ग्लास थमा दिया.......फिर उसने बिना की कमर मे हाथ डाल कर उसे, अपने साथ सोफे पर बिठाया.

"क्या बात हैं रोहित कुच्छ खोए खोए से लग रहे हो....?...सब ठीक तो हैं.....कोई परेशानी हो तो बताओ.....कोई पैसो की प्राब्लम...?"...........बिना 'अपने बच्चे' को हमेशा खुश देखना चाहती थी.

"अरे नही बिना डार्लिंग......ऐसी कोई समस्या नही....वो बात दरअसल ये हैं की....वो क्या हैं की....बिना देखो....वो आजकल....

"क्या बात हैं रोहित, इतने हकला क्यू रहे हो.....शर्मा भी रहे हो.....ऐसी क्या बात हैं जिसके लिए तुम्हे इतना हकलाना पड़ रहा हैं........हे भगवान....कही तुम....तुम कही.....रोहित मेरी तरफ देखो.....कही तुम किसी से प्यार तो नही कर बैठे हो...?"........बिना की हालत का वर्णन करना मेरी औकात के बाहर हैं.......वो कौन से भाव थे, जो उसके चेहरे पर नही थे....?......हसी, खुशी, हैरानी, परेशानी, प्यार, गुस्सा, नाराज़गी......सब कुच्छ था......और यही वजह थी की रोहित भी सोच मे पड़ गया था की बिना को कैसे बताए अपने प्यार के बारे मे.

"हाँ बिना मुझे प्यार हो गया हैं......मैं जानता हू मैं उसके.....उसके क्या किसी के भी प्यार के लायक नही हू......लेकिन क्या करू....वो इस कदर मेरे वजूद पर छा गयी हैं, की अब उसके सिवा....किसी को छुने का दिल ही नही करता......मुझे माफ़ करदो लेकिन....."

"नही रोहित.....माफी माँगने की कोई ज़रूरत नही.....मुझे खुशी हैं, तुम्हारी जिंदगी सही राह पर मुड़ गयी हैं.....अब तुम्हे मेरे लिए, या किसी और के लिए.....किसी भी औरत का बिस्तर गर्म करने की ज़रूरत नही.......तुम अब आज़ाद हो, अपनी जिंदगी जियो...अपनी प्रेमिका के साथ शादी करो....आगे कभी भी कोई भी परेशानी आए तो अपनी बिना को याद कर लेना........कम से कम मुझे उसका नाम तो बताओ....?".......बिना की आँखे भर आई थी,...वो रोहित को हक़ीकत मे चाहती थी, पता नही प्यार का ये कैसा रंग था, जो अपने चाहने वाले को किसी और के बिस्तर पर भेजता था....लेकिन था प्यार ही......और आँसू थे उससे बिच्छाड़ने के.

रोहित ने भी अपनी आँखे साफ की....."रेवती नाम हैं उसका....मैं तो उसे चाहता हू....पर पता नही, वो भी मुझे चाहेगी भी या नही"
"मुझे उसके बारे मे सब कुच्छ बताओ..."

फिर रोहित ने बिना को रेवती से हुए ट्रेन मे पहली मुलाकात से लेकर.......गेराज मे हुए कल की मुलाकात तक सब कुच्छ बता दिया.
खाना खाने के बाद रोहित और मुन्ना, समंदर के किनारे, चौपाटी पर टहल रहे थे,......रोहित कुच्छ गुनगुना रहा था, जिसका मुन्ना को ताज्जुब हो रहा था, क्यू की रोहित बहुत ही कम बार इतना खुश हो कर गाना गुनगुनाता था, आज ज़रूर कुच्छ खास हुआ हैं, जो भाई इतने खुश हैं, उसने ध्यान से सुना........"तुम आ गये हो नूर आ गया हैं".......'अच्छा तो ये बात हैं, रेवती के ख़याल मे गाने गुनगुनाए जा रहे हैं'.....मुन्ना ने मन मे सोचा, इस से पहले की वो रोहित से कुच्छ पुचछता, रोहित ने उसे पुछा......

"मुन्ना तुम कितने साल के हो गये हो....."

"भाई तुम तो अच्छे से जानते हो अनाथाश्रम के रेकॉर्ड के मुताबिक, अब 25 वा चल रहा हैं".......मुन्ना को हैरानी हुए की आज ये अचानक उमर की बात कहा से आ गयी.

"कविता भी तो तुम्हारी उमर की हैं ना.....उसे भी 25 वा चल रहा होगा....क्यू..?"

"हाँ भाई वो भी मेरे बराबर की ही हैं......!".......मुन्ना समझ नही पा रहा था, रोहित आख़िर क्या कहना चाहता हैं, वो जो गाना गुनगुना रहा था, उसका कोई ताल्लुक उन सवालो से दिखाई नही दे रहा था.

"उसकी मा अब बूढ़ी हो गयी हैं.......वो तो बस अपनी बेटी के हाथ पीले होने की राह देख रही हैं........25 साल की जवान बेटी घर मे बैठी हो तो, किस मा को चिंता नही होगी......क्या हमे कविता के लिए कोई अच्छा लड़का नही ढूँढना चाहिए....?"
.......रोहित बेहद गंभीर स्वर मे पुच्छ रहा था, वो कही से भी मज़ाक करता नही लग रहा था, और मुन्ना तो ऐसा हड़बड़ाया की उसके मूह से बोल नही फूटे, वो हक्कबाक्का सा रोहित को देखने लगा, .......भाई ये क्या कह रहा हैं...? वो जब जानता हैं, मैं कविता से दिल-ओ-जान से प्यार करता हू, तो ये "अच्छा सा लड़का" ढूँढने की बात क्यू कर रहा हैं...?

"भाई ये तुम क्या कह रहे हो....?....कविता के लिए कोई और लड़का...?...तुम तो जानते हो, मैं उसे कितना प्यार करता हू.....फिर भी ये सब.....

"आबे ढक्कन तू तो सिर्फ़ प्यार ही करता रहेगा.......शादी का तो नाम ही नही ले रहा.....उसकी मा को क्या तसल्ली देगा, यही की मैं तुम्हारी बेटी से प्यार करता हू, जिंदगी भर करता रहूँगा, लेकिन शादी नही करूँगा....क्यू ठीक कहा ना....?".......मुन्ना अब समझ गया भाई उसकी खिचाई कर रहा हैं.

"मैने ये कब कहा की मैं उससे शादी नही करूँगा,.......मैं तो कब से......लेकिन भाई मैं तो तुम्हारे लिए रुका हू.....बड़े भाई की शादी हुए बगैर छ्होटा भाई कैसे शादी कर सकता हैं....?"........रोहित की गुगली पर मुन्ना ने सिक्शर ठोक दिया.

"यही तो मैं तुझे समझाना चाहता हू पगले,.......मेरा अतीत मेरी शादी नही होने देगा......कोई भी लड़की, कितनी भी ब्रॉडमाइंडेड क्यू ना हो, ऐसे लड़के से शादी नही करेगी, जो किसी वेश्या की तरह, औरतो के बिस्तर गर्म करे,.......मेरे लिए तू अपनी और कविता की जिंदगी मत बर्बाद कर, अब हमारा गेराज अच्छा चल रहा हैं, तू तुरंत कविता से शादी कर ले,...उसकी मा की बढ़ती उम्र को देखते हुए, ये बेहद ज़रूरी हैं,........अगर मेरी किस्मत मे घर गृहस्थी का सुख होगा, तो मेरी भी किसी दिन शादी हो ही जाएगी.....लेकिन तब तक तू कविता की जिंदगी से चला गया होगा.....!....क्या तू ऐसा चाहता हैं.....?...बात को समझ मुन्ना....!"

अब मुन्ना समझे तो क्या समझे....बहुत छ्होटे बच्चे थे दोनो, अनाथाश्रम मे होश सम्हाल ने वाले, सिर्फ़ एक दूसरे की मदद करके, सहारा बन के बड़े हुए थे, अब तक की जिंदगी मे सारे सुख दुख साथ मे बाँटे थे.......उसमे भी अगर रोहित का साथ नही होता तो ना कविता उसे मिलती, ना शादी की नौबत आती........ऐसी स्थिति मे रोहित के पहले अपनी शादी की बात मुन्ना के गले से नही उतर रही थी.......पर रोहित की बातो मे भी दम था......कविता की उम्र बढ़ रही थी, उसकी मा शादी को लेकर कई बार टोक चुकी थी.......अब मुन्ना को फ़ैसला लेना ही था


"भाई लेकिन तुम तो रेवती से प्यार करते हो ना......फिर उनसे ...?'......मुन्ना ने जान बूझकर बात को अधूरा छ्चोड़ा.

"सिर्फ़ मेरे प्यार करने से या चाहने से क्या होता हैं.......आज सिर्फ़ उसे इतना ही मालूम हैं की मैं अनाथ हू, लेकिन जब उसे ये पता लगेगा की मैं क्या करता आया हू.....तो वो मुझे प्यार तो छ्चोड़ नफ़रत के भी काबिल नही मानेगी.........मेरे लिए खुशी की बात तो यही हैं की रेवती ने मेरे मन मे, प्यार का अहसास जगाया हैं, आज तक जिस रोहित को सिर्फ़ सेक्स की उत्तेजना ही पता थी, उसका दिल अब प्यार की अनुभूति भी समझने लगा हैं, ऐसा लगता हैं, रेवती के आने से ही इस दिल ने धड़कना सीखा हैं,वरना अब तक तो ये शायद धड़कना भूल ही चुका होता........खैर तू मेरी चिंता छ्चोड़, अपने लिए ना सही, कविता के लिए कल हम कविता की मा से मिलेंगे....तेरी शादी की बात पक्की करेंगे.....ठीक हैं....?"

अब मुन्ना क्या कहे...?...कविता उसका प्यार थी तो जाहिर हैं, शादी की बात सुन कर उसका दिल उच्छलने लगा था........पर रोहित को लेकर थोड़ा उदास भी था.

अगले दिन कविता का ऑफ था, वो एक ट्रॅवेलिंग को मे काम करती थी, अच्छी तनख़्वाह पाती थी, लालबाग मे एक 1बेडरूम का फ्लॅट किराए पर लिया था, जो मुन्ना के दादर वाले गेराज के करीब ही था, ज़ोपड़पट्टि मे पलीबढ़ी कविता फ्लॅट मे आते ही निखर गयी थी, जिंदगी की जद्दोजहद से अब कुच्छ आराम की जिंदगी बिता रही थी, वो और उसकी मा दोनो ही जानती थी एस बदलाव के पिछे, रोहित और मुन्ना का हाथ हैं,अगर वो दोनो नही होते तो पता नही क्या होता,.......शायद कविता किसी इल्ज़ाम मे, अपने ना किए हुए गुनाह की सज़ा काट रही होती, और उसकी मा, बेटी के गम मे शायद दुनिया छ्चोड़ चुकी होती,.....उनकी जीवन की नैय्या तो उसी दिन से किनारे की तरफ बढ़ने लगी थी, जिस दिन मुन्ना ने उन्हे, अनाथाश्रम मे नौकरी दिलाई थी, रहने की जगह दी थी........ज़ोपड़पट्टि की बेहद असुरक्षित जिंदगी से च्छुटकारा दिलाया था........रोहित और मुन्ना ने ज़िद करके कविता को पढ़ने के लिए तैय्यार किया था, कॅंप्यूटर के कोर्सस कराए थे, अनाथाश्रम से निकलते ही रोहित ने एक गेराज मे काम करना शुरू किया था, पढ़ने का जुनून थोडा कम हुआ था, लेकिन फिर भी वो नाइट स्कूल मे जाकर पढ़ता था,.......एक साल बाद रोहित के पिछे पिछे मुन्ना भी अनाथाश्रम से बाहर आया और उसी गेराज मे काम करने लगा, दोनो मिल कर अपनी आमदनी से कविता और उसकी मा के खर्चे उठाते थे.

कुच्छ साल ऐसे ही चलता रहा.......फिर जब कविता की पढ़ाई पूरी हुई, तो रोहित ने बिना को कह कर कविता को इस कंपनी मे जॉब दिला दिया था, और उन्होने अपना खुदका गेराज शुरू कर दिया.......आज की तारीख मे, एक कविता की शादी की बात छ्चोड़ कर उसकी मा को कोई चिंता नही थी.......

"कविता, क्या मुन्ना ने इतने समय मे कभी तेरे से शादी की बात की हैं......कब करोगे तुम दोनो शादी...?"........कविता की मा आज फिर वही बात छेड़ बैठी, जो काफ़ी दीनो से उसके मन मे दबी हुई थी.
"मा तुम चिंता क्यू करती हो.....मेरी शादी होगी तो मुन्ना से ही होगी....कुच्छ मजबूरी हैं, वो चाहता हैं रोहित की शादी पहले हो जाय, फिर वो करेगा."
"लेकिन बेटी रोहित क्यू नही कर रहा शादी......अच्छा ख़ासा कमाता हैं, दिखता भी अच्छा हैं, पढ़ालिखा भी हैं.....फिर क्या परेशानी हैं...?"
"तुम नही समझोगी मा......और मैं तुम्हे समझा भी नही सकती"

दोनो की ये बाते चल ही रही थी की डोरबेल बजी..........कौन हो सकता हैं....!....सोचते हुए कविता ने दरवाजा खोला.......सामने मुन्ना और रोहित को देखते ही वो खिल उठी......उसका पिया घर आया था, लेकिन रोहित भी साथ होने की वजह से वो अपनी खुशी का ईजहार खुल के नही कर सकी.

"कैसी हो कविता....माजी कैसी हैं...?"......रोहित ने पुचछा.
"हम दोनो ही बिल्कुल ठीक हैं.....आप कैसे हैं".......रोहित को सामने पा कर कविता हमेशा की तरह शर्मा गयी.
दोनो अंदर आके कुर्सियो पर बैठ गये, मुन्ना जो कई बार कविता के फ्लॅट पर आया था, आज दुल्हन की तरह शरमा रहा था........कविता अंदर से पानी के ग्लास लेकर आई, आते वक़्त उसकी नज़र मुन्ना पर पड़ी, वो सर झुकाए ज़मीन की तरफ देख रहा था, कविता को अचरज हुआ........'अब इसे क्या हुआ हैं, ये आज ऐसा खामोश क्यू हैं'....वो मन ही मन सोच रही थी.......वैसे तो उसे एक और बात का ताज्जुब हो रहा था.......रोहित का आना .....क्यू की रोहित उसके फ्लॅट पर बहुत ही कम आता था........आज मुन्ना के साथ आया देख कर वो सोच मे पड़ गयी.....तब तक उसकी मा भी सामने आ गयी.

"अरे रोहित बेटे तुम...!.....कैसे आना हुआ...सब ख़ैरियत तो हैं...?".......मा उनके सामने पड़ी कुर्सी पर बैठ गयी.......कविता ने सबको पानी के ग्लास थमाए......और वो चाय बनाने के लिए किचन मे चली गयी.......लेकिन उसके कान बाहर की तरफ ही लगे हुए थे.

"माजी आज मैं आपसे कुच्छ खास बात करने आया हू.......कुच्छ माँगने आया हू...!"....रोहित ने तिरछि नज़ारो से मुन्ना को घुरते हुए कहा.....मुन्ना अब शरमाने मे लड़कियो से कॉंपिटिशन कर रहा था.

"मुझसे क्या चाहते हो बेटे , ये सब कुच्छ तो तुम दोनो का ही दिया हैं........अगर तुम लोग नही होते, तो हम मा बेटी......

"अरे वो सब छ्चोड़िए माजी......एक चीज़ हैं जो अभी भी सिर्फ़ आप की हैं, और हम वही माँगने आए हैं......घबराईये नही उसके बदले मे मैं भी आप को कुच्छ दूँगा.....!".......रोहित अब ज़रा मजाकिया मूड मे आ गया.......सब कुच्छ जानता मुन्ना अभी भी ज़मीन को ही घूर रहा था.....उधर किचन मे चाय बनाती कविता भी पेशोपेश मे पड़ गयी......मा के तो कुच्छ भी समझ मे नही आ रहा था.

"मेरे पास ऐसा क्या हैं बेटे, जो सिर्फ़ मेरा हैं, और जिसे लेकर तुम, बदले मे मुझे कुच्छ देने वाले हो....मैं कुच्छ समझी नही"

"माजी मैं आपकी बेटी के बदले आप को एक बेटा देना चाहता हू...!".........घुमा फिरा कर रोहित ने आख़िर वो बात कह डाली जिसे कहने वो आया था.........किचन मे कविता का दिल जोरो से धड़ाका.....क्या वो सही समझ रही हैं, क्या सचमुच रोहित उसके और मुन्ना के रिश्ते की बात करने आया हैं......क्या सचमुच इतना लंबा इंतजार अब ख़त्म होने वाला हैं.......वो खुशी से पागल हुए जा रही थी, गालो की लाली बढ़ गयी थी, होठ फड़फड़ने लगे........उसे अब याद नही आ रहा था, उसने चाय मे शक्कर डाली या नही......खुशी के आलम मे उसने फिर से शक्कर डाल दी.
उधर कविता की मा कुच्छ देरी से समझी, कि रोहित की बातों का मतलब क्या हैं......लेकिन जैसे ही समझी, उसकी आँखे बरस पड़ी........उसकी चिंता दूर हो रही थी.......उसका आख़िरी ख्वाब पूरा होने जा रहा था.......उसकी बेटी के हाथ पीले होने वाले थे.......वो बेटी की बिदाई करके उसे ससुराल भेजने वाली थी.......उसे मुन्ना जैसा कविता को बेहद प्यार करने वाला दामाद मिल रहा था........जो वाकई उसके लिए बेटे जैसा था.......रोहित ने बिल्कुल सही कहा था.....वो बेटी के बदले बेटा देने वाला था.

"मैं...मैं...क्या कहु बेटा.....कविता की शादी हो जाए, वो दुल्हन बने....उसके हाथो मेहंदी लगे.......मुझ ग़रीब विधवा को और क्या चाहिए.......मैं तुम्हारे अहसान कभी नही भूल सकती.........मुझे मुन्ना अपने जमाद के रूपमे.....माफ़ करना बेटे के रूप मे पहले से ही पसंद था"........कविता की मा रोते रोते कहा उठी.

कविता तो शर्म से ऐसी सिमटी जा रही थी की उसे अब बाहर आकर चाय देना भी मुश्किल लग रहा था.....लेकिन देना तो था ही.....खुशी से काँपते अपने हाथो मे चाय की ट्रे समहालती कविता जब सामने आई, तो उसकी भी नज़रे ज़मीन मे गढ़ी हुए थी.......पलको के किनारो से आँखे अपने पिया को देख रही थी........उसने चाय की ट्रे टेबल पर रखी......और वो अनायास ही रोहित के कदमो मे झुक गयी.....आख़िर उसका दोस्त, भाई, तो वो पहले से था, लेकिन आज वो उसका जेठ,ससुर और रिश्ते मे बाप भी बन गया था.....उसकी ससुराल का एक मात्र सदस्य.....उसके पति के अलावा..........रोहित ने भी उसके सर पर हाथ रख दिया.

मुन्ना के मन मे शाहनाएया बजने लगी,....अनार फूटने लगे.

दोस्तो इस पार्ट को मैं यही ख़तम करता हू आगे की कहानी जानने के लिए सेक्स मशीन -4 पढ़िए ओर हाँ कमेंट देना मत भूलना

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