Tuesday, March 16, 2010

कामुक कहानिया हवेली का सच --17

राज शर्मा की कामुक कहानिया



सेक्सी हवेली का सच --17

दोस्तों मैं यानि आपका दोस्त राज शर्मा पार्ट -१7 लेकर आपके लिए हाजिर हूँ

दोस्तो जिन दोस्तो ने इस कहानी के इस पार्ट को पहली बार पढ़ा है उनकी समझ मैं ये कहानी नही आएगी इसलिए आप इस कहानी को पहले पार्ट से पढ़े

तब आप इस कहानी का पूरा मज़ा उठा पाएँगे आप पूरी कहानी मेरे ब्लॉग -कामुक-कहानियाँब्लॉगस्पॉटडॉटकॉ

म पर पढ़ सकते है अगर आपको लिंक मिलने मैं कोई समस्या हो तो आप बेहिचक मुझे मेल कर सकते हैं अब आप कहानी पढ़ें

बेसमेंट में खड़ी रूपाली एकटूक सामने रखे बॉक्स को देखने लगी. उसकी समझ नही आ रहा था के बॉक्स में किस चीज़ के होने की उम्मीद करे. वो अभी अपनी सोच में ही थी के उसे सीढ़ियों से किसी के उतरने की आवाज़ सुनाई दी. पलटकर देखा तो वो पायल थी.

"क्या हुआ?" उसने पायल से पुचछा

"छ्होटे मलिक आपको ढूँढ रहे हैं" पायल ने तेज की और इशारा करते हुए कहा

रूपाली ने बॉक्स बाद में खोलने का इरादा किया और वापिस हवेली में आई. तेज उपेर अपने कमरे में ही था.

"क्या हुआ तेज?" वो तेज के कमरे में दाखिल होती हुई बोली

"वो हमें कुच्छ काम से बाहर जाना था पर हमारी गाड़ी स्टार्ट नही हो रही. तो हम सोच रहे थे के क्या हम आपकी कार ले जा सकते हैं? घंटे भर में ही वापिस आ जाएँगे" तेज ने पहली बार रूपाली से कुच्छ माँगा था

रूपाली जानती थी के वो फिर कहीं शराब पीने या किसी रंडी के पास ही जाएगा पर फिर भी उसने पुचछा

"कहाँ जाना है? पूरी रात के जागे हुए हो तुम. आराम कर लो"

"आकर सो जाऊँगा" तेज ने कहा "कुच्छ ज़रूरी काम है"

रूपाली ने उससे ज़्यादा सवाल जवाब करना मुनासिब ना समझा. वो नही चाहती थी के तेज उससे चिडने लगे

"मैं कार की चाभी लाती हूँ" कहते हुए वो अपने कमरे की और बढ़ गयी.

अपने कमरे में आकर रूपाली ने चाभी ढूंढी और वापिस तेज के कमरे की और जाने ही लगी थी के उसे ख़ान की कही बात याद आई के ये सारी जायदाद अब उसकी है. उसने दिल ही दिल में कुच्छ फ़ैसला किया और वापिस तेज के कमरे में आई.

तेज तैय्यार खड़ा था. रूपाली ने उसे एक नज़र देखा तो दिल ही दिल में तेज के रंग रूप की तारीफ किए बिना ना रह सकी. उसका नाम उसकी पर्सनॅलिटी के हिसाब से ही था. उसके चेहरे पर हमेशा एक तेज रहता था और वो भी अपने बाप की तरह ही बहुत खूबसूरत था. वो तीनो भाई ही शकल सूरत से बहुत अच्छे थे. बस यही एक फरक था ठाकुर शौर्या सिंग की औलाद में. जहाँ उनके तीनो लड़के शकल से ही ठाकुर लगते थे वहीं उनकी बेटी कामिनी एक मामूली शकल सूरत की लड़की थी. उसे देखकर कोई कह नही सकता था के वो चारों भाई बहेन थे.

रूपाली ने चाभी तेज को दी और बोली

"अब पिताजी हॉस्पिटल में है तो मैं सोच रही थी के तुम कारोबार क्यूँ नही संभाल लेते?"

तेज हस्ता हुए उसकी तरफ पलटा

"कौन सा कारोबार भाभी? हमारी बंजर पड़ी ज़मीन? और कौन सी हमारी फॅक्ट्री हैं?"

"ज़मीन इसलिए बंजर है क्यूंकी उसकी देखभाल नही की गयी. तुम्हारे भैया होते तो क्या ऐसा होने देते?" रूपाली पूरी कोशिश कर रही थी के तेज को अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास हो.

भाई का ज़िक्र आते ही तेज फ़ौरन खामोश हो गया और फिर ठहरी हुई आवाज़ में बोला

"भाय्या हैं नही इसी बात का तो अफ़सोस है भाभी और उससे ज़्यादा अफ़सोस इस बात का है के जिसने उनकी जान ली वो शायद आज भी कहीं ज़िंदा घूम रहा है. और आप तो जानती ही हैं के मुझसे ये सब नही होगा. आप विदेश से कुलदीप कोई क्यूँ नही बुलवा लेती? और कितनी पढ़ाई करेगा वो?"

कहते हुए तेज कमरे के दरवाज़े की तरफ बढ़ा और इससे पहले के रूपाली कुच्छ कहती वो कमरे के बाहर निकल गया. जाते जाते वो कह गया के एक घंटे के अंदर अंदर वापिस आ जाएगा.



रूपाली खामोशी से तेज के कमरे में खड़ी रह गयी. उसकी कुच्छ समझ नही आ रहा था के क्या करे. दिमाग़ में लाखों सवाल एक साथ चल रहे थे. ख़ान की कही बात अब भी दिमाग़ में चल रही थी. वो तेज से बात करके ये भी जानना चाहती थी के क्या उसे इस बात का शक है के ये पूरी जायदाद रूपाली के नाम है पर ऐसा कोई मौका तेज ने उसे नही दिया.

उसने दिल ही दिल में ठाकुर के वकील से बात करने की कोशिश की. उसे जाने क्यूँ यकीन था के ख़ान सच बोल रहा था पर फिर भी उसने अपनी तसल्ली के लिए वकील से बात करने की सोची.

उसने तेज के कमरे पर नज़र डाली. वो तेज के कमरे की तलाशी भी लेना चाहती थी. भूषण की कही बात के उसके पति की मौत का राज़ हवेली में ही कहीं है उसे याद थी. एक पल के लिए उसने सोचा के कमरे की तलाशी ले पर फिर उसने अपना दिमाग़ बदल दिया. तेज हवेली में ही था और उसे शक हो सकता था के उसके कमरे की चीज़ें यहाँ वहाँ की गयी हैं. रूपाली चुप चाप कमरे से बाहर निकल आई.

नीचे पहुँचकर वो बड़े कमरे में सोफे पर बैठ गयी. तभी बिंदिया आई.

"छ्होटे मलिक कहीं गये हैं?" उसने रूपाली से पुचछा

"हाँ कहीं काम से गये हैं. क्यूँ?" रूपाली ने आँखें बंद किए सवाल पुचछा

"नही वो आपने कहा था ना के मैं उनके करीब जाने की कोशिश शुरू कर दूँ. तो मैने सोचा के जाकर उनसे बात करूँ" बिंदिया थोडा शरमाते हुए बोली

"दिन में नही.दिन में किसी को भी शक हो सकता है. तुझे मेहनत नही करनी पड़ेगी. रात को किसी बहाने से तेज के कमरे में चली जाना." रूपाली ने खुद ही बिंदिया को रास्ता दिखा दिया

बिंदिया ने हां में सर हिला दिया

रूपाली की समझ में नही आ रहा था के अब क्या करे. दिमाग़ में चल रही बातें उसे पागल कर रही थी. समझ नही आ रहा था के पहले वकील को फोन करे, या तेज के कमरे की तलाशी ले, या हॉस्पिटल जाकर ठाकुर साहब को देख आए या नीचे रखे बॉक्स की तलाशी ले.

एक पल के लिए उसने फिर बसेमेंट में जाने की सोची पर फिर ख्याल दिमाग़ से निकाल दिया. वो बॉक्स की तलाशी आराम से अकेले में लेना चाहती थी और इस वक़्त ये मुमकिन नही था. और तेज कभी कभी भी वापिस आ सकता था. उसने फ़ैसला किया के वो ये काम रात को करेगी.उसने सामने रखा फोन उठाया और ठाकुर साहब के वकील का नंबर मिलाया. दूसरी तरफ से ठाकुर साहब के वकील देवधर की आवाज़ आई.

"कहिए रूपाली जी" उसने रूपाली की आवाज़ पहचानते हुए कहा

"जी मैं आपसे मिलना चाहती थी. कुच्छ ज़रूरी बात करनी थी" रूपाली ने कहा

"जी ज़रूर" देवधर बोला "मुझे लग ही रहा था के आप फोन करेंगी"

देवधर की कही इस बात ने अपने आप में ये साबित कर दिया के जो कुच्छ ख़ान ने कहा था वो सच था

"मैं कल ही हाज़िर हो जाऊँगा" देवधर आयेज बोला

"नही आप नही" रूपाली ने फ़ौरन मना किया "मैं खुद आपसे मिलने आऊँगी"

वो जानती थी के गाओं से शहेर तक जाने में उसे कम से कम 3 घंटे लगेंगे पर जाने क्यूँ वो देवधर से बाहर अकेले में मिलना चाहती थी.

"जैसा आप बेहतर समझें" देवधर ने भी हां कह दिया

"अभी कह नही सकती के किस दिन आऊँगी पर आने से एक दिन पहले मैं आपको फोन कर दूँगी" रूपाली ने कहा

देवधर ने फिर हां कह दी तो उसने फोन नीचे रख दिया.





साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,

मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..

मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,

बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ

आपका दोस्त

राज शर्मा



(¨`·.·´¨) ऑल्वेज़

`·.¸(¨`·.·´¨) कीप लविंग &

(¨`·.·´¨)¸.·´ कीप स्माइलिंग !

`·.¸.·´ -- राज







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