राज शर्मा की कामुक कहानिया
सेक्सी हवेली का सच --20
हेलो दोस्तो अब आयेज की कहानी आपके लिए .......
रूपाली और तेज दोनो ही हवेली पहुँचे.
"आपको क्या ज़रूरत थी यूँ पोलीस स्टेशन जाने की?" तेज ने रूपाली से हवेली में घुसते ही पुचछा
रूपाली ने कोई जवाब नही दिया
"वो पोलीस वाला अपने आपको बहुत बड़ा शेर समझता है" तेज अब भी गुस्से में जल रहा था "1 दिन में हेकड़ी निकाल दूँगा. आज तक किसी की हिम्मत नही हुई के इस हवेली की शान में गुस्ताख़ी करे"
बोलकर तेज अपने कमरे की और बढ़ा ही था के रूपाली की आवाज़ सुनकर रुक गया
"कौन सी शान की बात कर रहे हो ठाकुर तएजवीर सिंग"
तेज रूपाली की तरफ पलटा
"इस हवेली में अब उल्लू भी नही बोलते. लोग इस तरफ आने से भी कतराते हैं. वो तो फिर गैर हैं छ्चोड़ो, यहाँ तो अपने भी हवेली में कदम नही रखते. किस शान की बात कर रहे हैं आप?" रूपाली ने पुचछा तो इस बार तेज के पास कोई जवाब नही था.
"ज़रा बाहर निकालकर नज़र डालिए तएजवीर जी. इस हवेली पर अब मनहूसियत बरसती है. बाहर से देखने से ऐसा लगता है जैसे यहाँ बरसो से कोई नही रहा. इस हवेली की शान में गुस्ताख़ी तो गुज़रते वक़्त ने कर दी है वो पोलीस वाला क्या करेगा." रूपाली बोलती रही और तेज चुप खड़ा उसकी तरफ देखता रहा
"हमारी ज़मीन हमारा ही अपना कोई हमारी नज़र के सामने से चुरा ले गया. जो रह गयी वो बंजर पड़ी हैं. बची हुई जो दौलत है वो ख़तम हो रही है. इस हवेली के मलिक हॉस्पिटल में पड़े हैं. आपके भाई को बीच सड़क किसी ने गोली मार दी थी. आपने नाम पर लोग हस्ते हैं. और आप हवेली की शान की बात कर रहे हैं?" रूपाली ने जैसे अपने दिल में जमा सारा ज़हेर तेज पर उगल दिया और अपने कमरे की तरफ बढ़ चली.
"और हां" जाते जाते वो फिर पलटी "जब घर के आदमियों का कहीं आता पता ना हो तो घर की औरतों को ही पोलीस स्टेशन जाना पड़ता है"
रूपाली ने एक आखरी ताना सा मारा और अपने कमरे की तरफ बढ़ चली. अपने पिछे उसे तेज गुस्से में पेर पटकता हुआ हवेली के बाहर जाता हुआ दिखाई दिया.
कमरे में पहुँच कर रूपाली के आँसू निकल पड़े. उसने जो कुच्छ तेज से कहा था वो गुस्से में था पर इन बातों ने उसके खुद के ज़ख़्म हरे कर दिए थे. कुच्छ देर तक यूँ ही आँसू बहाने के बाद उसने सामने रखा फोन उठाया और देवधर का नंबर मिलाया
"हां रूपाली जी कहिए" दूसरी तरफ से देवधर की आवाज़ आई
रूपाली को वो ज़माना याद आ गया जब देवधर जैसे उसे छ्होटी ठकुराइन के नाम से बुलाते थे. आज उसकी इतनी औकात हो गयी थी के उसे नाम से बुला रहा था. वो एक ठंडी आह भरकर रह गयी. दिल में जानती थी के ये ग़लती देवधर की नही बल्कि ठाकुर खानदान की ही है. जब अपने ही सिक्के खोटे हों तो कोई क्या करे.
"मैने आपसे कहा था ने के आने से एक दिन पहले फोन करूँगी." रूपाली ने जवाब दिया
"तो आप कल आ रही हैं?" देवधर उसकी बात का मतलब समझ गया
"हां" रूपाली ने जवाब दिया "कल सुबह यहाँ से निकलेंगे तो दोपहर तक आपके पास पहुँच जाएँगे."
"जैसा आप ठीक समझें" देवधर ने कहा "वैसे आप एक बार बता देती के किस बारे में बात करी है तो मैं पेपर्स वगेरह तैय्यार रखता"
"ये आकर ही बताती हूँ" कहकर रूपाली ने फोन काट दिया. अपनी हालत ठीक की और फिर नीचे आई.
पायल बड़े कमरे में बैठी टीवी देख रही थी.
"तेरी माँ कहाँ है?" रूपाली ने पुचछा
"जी वो नहाने गयी हैं" पायल ने टीवी की आवाज़ धीरे करते हुए कहा
"और चंदर?" रूपाली ने पुचछा तो पायल ने कंधे हिला दिए
"पता नही"
रूपाली हवेली से निकलकर बिंदिया के कमरे की तरफ बढ़ी. वो कमरे की नज़दीक पहुँची ही थी के बिंदिया के कमरे का दरवाजा खुला और वो माथे से पसीना साफ करती हुई बाहर निकली. पीछे चंदर था. रूपाली फ़ौरन समझ गयी के वो क्या करके आ रहे हैं पर कुच्छ नही बोली.
"अगर तू नहा ली हो तो मेरे कमरे में आ. कुच्छ बात करनी है" रूपाली ने कहा तो बिंदिया ने हां में सर हिला दिया.
रूपाली चंदर की तरफ मूडी
"और तुझे मैने कहा था सफाई के लिए. उस तरफ देख" रूपाली ने हवेली के कॉंपाउंड में उस तरफ इशारा किया जहाँ अब भी कुच्छ झाड़ियाँ थी. उसके चेहरे पर अब भी हल्के गुस्से के भाव थे. चंदर ने फ़ौरन इशारे से कहा के वो अभी सफाई शुरू कर देगा.
रूपाली अपने कमरे की तरफ बढ़ चली. कल रात के बाद उसने अब पहली बार चंदर को देखा था. जिस अंदाज़ से चंदर ने उसकी तरफ देखा था उससे रूपाली सोचने पर मजबूर हो गयी थी. उसमें ऐसा कोई अंदाज़ नही था जैसा की उसे चोदने के बाद होना चाहिए था. चंदर ने अब भी उसे उसी इज़्ज़त से देखा था जैसे पहले देखा था और अब भी वैसे ही उसका हुकुम माना था जैसे पहले मानता था.
थोड़ी देर बाद बिंदिया और रूपाली दोनो रूपाली के कमरे में बैठे थे और रूपाली गुस्से से बिंदिया को घूर रही थी.
"अपनी रंग रलियान ज़रा कम कर. दिन में इस वक़्त? वो भी तब जब तेरी बेटी यहीं बैठी थी? अगर तेज देख लेते तो काट देते तुझे और उस चंदर को भी"
माफ़ कर दीजिए मालकिन" बिंदिया ने सर झुकाए कहा "अब नही होगा"
रूपाली वहीं उसके सामने बिस्तर पर बैठ गयी
"कल रात का बता. क्या लगता है तुझे? खुश था चंदर तेरे साथ बिस्तर पर?" रूपाली ने बिंदिया से पुचछा तो वो मुस्कुरा उठी
"खुश? मालकिन कल पूरी रात सोने नही दिया मुझे" बिंदिया बोली
"तूने मनाया कैसे तेज को?" रूपाली ने पुचछा
"ज़रूरत ही कहाँ पड़ी मनाने की. वो तो पहले ही तैय्यार बैठे थे" बिंदिया ने जब देखा के रूपाली का गुस्सा थोड़ा कम हो रहा है तो वो भी खुलकर बात करने लगी
"मतलब?" रूपाली ने पुचछा
"मतलब ये के रात अपने कमरे में जाने से पहले उन्होने मुझसे कहा के एक कप चाय उनके कमरे में ले आओं. मैं उसी वक़्त इस समझ गयी की मुझे कुच्छ करने की ज़रूरत नही और मुझे कमरे में चाय के बहाने क्यूँ बुलाया जा रहा है. मैने चाय बनाई और लेकर उनके पास जाने से पहले पायल के कमरे में पहुँची. वहाँ जाकर में अपनी चोली उतारी और पायल की पहेन ली"
"पायल की चोली? वो क्यूँ?" रूपाली ने हैरत से पुचछा
"क्यूंकी पायल की छातिया मुझसे काफ़ी बड़ी हैं. कभी कभी तो मुझे खुद को हैरानी होती है. ज़रा सी उमर में ही उसकी छातिया मुझसे दुगुनी हो गयी हैं" बिंदिया ने कहा
"तू अपनी ही बेटी की छातिया क्यूँ देखती है?" रूपाली ने मुस्कुराते हुए पुचछा
"माँ हून मालकिन" बिंदिया ने कहा "जवान बेटी घर में हो तो सब देखना पड़ता है. और वैसे भी उस ज़रा सी बच्ची के जिस्म पर सबसे पहले उसकी बड़ी बड़ी छातिया ही दिखाई देती हैं"
रूपाली का दिल किया के उसको बताए के जिसे वो ज़रा सी बच्ची कह रही है उसके जिस्म में माँ से भी ज़्यादा आग है और एक लंड ले भी चुकी है.
"अच्छा वो छ्चोड़" रूपाली बोली "तूने पायल की चोली क्यूँ पहनी?"
"मालकिन उसकी चोली मुझे ढीली आती है क्यूंकी मेरी छातिया इतनी नही" बिंदिया ने अपनी चुचियों की तरफ देखते हुए कहा. रूपाली ने भी अपनी नज़र उधर ही डाली
"उसकी छातिया बड़ी होने की वजह से अगर मैं उसकी चोली पहेन लूँ तो सामने से इतनी ढीली हो जाती है के हल्का सा झुकते ही सारा नज़ारा सामने आ जाता है" बिंदिया ने समझाते हुए कहा
"ओह अब समझी. फिर?"
"फिर मैं चाय लेकर उनके कमरे में पहुँची और कप बिल्कुल उनके सामने रखा. कप रखते हुए मैं झुकी और बस. मेरी चूचियाँ आपके देवर के सामने थी" बिंदिया बोली
"तेज ने देखी?" रूपाली अब बेझिझक सवाल पुच्छ रही थी.
"देखी? हाथ बढ़ाकर सीधा एक चूची पकड़ ली." बिंदिया हस्ते हुए बोली
रूपाली दिल ही दिल में तेज की हिम्मत की दाद दिए बिना ना रह सकी
"पकड़ ली? तूने क्या कहा?" उसने बिंदिया से पुचछा
"मैं क्या कहती. मैं तो पहली ही तैय्यार थी. चूची पकड़कर छ्होटे ठाकुर ने हल्का सा दबाव डाला और कहा के मेरी चूचियाँ काफ़ी सख़्त हैं. इस उम्र में ज़रा भी ढीली नही हैं. अब बारी थी मेरी तरफ से इशारे की."
रूपाली चुप चाप बैठी सुन रही थी
"मैं मुस्कुराइ और कहा के छ्होटे ठाकुर चोली के उपेर से हाथ लगाके कहाँ पता चलता है के चूचियाँ सख़्त हैं या उमर के साथ ढीली पड़ गयी हैं" बिंदिया ने बात जारी रखी "इतना इशारा काफ़ी था. वो उठे और चोली मेरे जिस्म से ऐसे अलग की जैसे फाड़ रहे हों. जब मैं उपेर से नंगी हो गयी तो उन्होने मेरी चूचियों पर हाथ फेरा और कहा के मैं सही था. तुम्हारी चूचियाँ सही में काफ़ी सख़्त हैं और हाथ से दबाने लगा. तब तक मैं खुद भी गरम हो चुकी थी. मैं उनके बाल सहलाने लगी. वो कभी मेरी चूचियो को दबाते तो कभी मेरे निपल्स को सहलाते. थोड़ी देर तक यही खेल चलता रहा. जब मुझसे और बर्दाश्त ना हुआ तो मैने उनका सर आगे को खींचा और उनका मुँह अपनी छाती पर दबा दिया. मेरा एक निपल सीधा उनके मुँह में गया और वो ऐसे चूसने लगे जैसे आज के बाद कोई औरत नंगी देखने को नही मिलेगी."
"तुझे मज़ा आया?"रूपाली ने पुचछा
"मेरे निपल्स मेरे शरीर का सबसे कमज़ोर हिस्सा हैं मालकिन. मुझे सबसे ज़्यादा मज़ा निपल्स चुसवाने में आता है " बिंदिया ने फिर एक बार अपनी चूचियों पर नज़र डाली "पर मेरी किस्मत के ना तो मेरा मर्द ये बात समझ सका और ना ही चंदर. दोनो ही मेरी चूचियों पर कुच्छ ख़ास ध्यान नही देते थे इसलिए जब छ्होटे ठाकुर ने तसल्ली के साथ मेरे निपल्स को रगड़ा तो मैं वही पिघल गयी. मैने खुद अपना ल़हेंगा खोलकर नीचे गिरा दिया और उनके सामने नंगी हो गयी. उनके हाथ मेरे पुर जिस्म पर फिरने लगे और जाकर मेरी गांद पर रुक गये. उन्होने मेरी आँखों में देखते हुए निपल मुँह से निकाला और बोले के उन्हें सबसे ज़्यादा मेरी गांद पसंद है और ये कहते हुए गांद को हल्के से दबा दिया."
"फिर?"रूपाली इतना ही कह सकी
"मैं समझ गयी के आज मेरी चूत के साथ साथ गांद का भी नंबर लगेगा. मैं मुस्कुराइ और बोली के ठाकुर साहब मैं तो पूरी आपकी हूँ पर पहले आपको तैय्यार तो कर दूँ. ये कहते हुए मैं उनके सामने बैठ गयी और उनका पाजामा नीचे सरका कर उनका लंड बाहर निकाला" बिंदिया ने कहा
कैसा था, ये बात रूपाली के मुँह से निकलते निकलते रह गयी. उसे फ़ौरन ये एहसास हुआ के वो अपने देवर के बारे में बात कर रही है और बिंदिया से इस तरह का कोई सवाल ग़लत साबित हो सकता है. दूसरा उसे खुद ये हैरत हुई के वो तेज के लंड के बारे में जानना चाहती है. उसने बात फ़ौरन अपने दिमाग़ से झटकी.
"थोड़ी ही देर बाद मैं नंगी उनके सामने बैठी थी और लंड मेरे मुँह में था" बिंदया ने कहा तो रूपाली मन मसोस कर रह गयी. वो उम्मीद कर रही थी के बिंदिया खुद ये कहेगी के उसे तेज का लंड कैसा लगा
"मेरा इरादा तो ये था के बिस्तर पर मैं जो जानती हूँ वो करूँ ताकि छ्होटे ठाकुर को खुश कर सकूँ पर ऐसा हो ना सका. थोड़ी देर बाद उन्होने लंड मेरे मुँह से निकाला और मुझे बिस्तर पर आने को कहा. मैं मुस्कुराते हुए बिस्तर पर आई और उनके सामने लेटकर अपनी टांगे फेला दी. पर उनका इरादा कुच्छ और ही था. उन्होने मेरी टांगे फिर बंद की और मुझे घूमकर उल्टा कर दिया" बिंदिया ने कहा
"मतलब तेरी......" रूपाली ने बात अधूरी छ्चोड़ दी
"हां" बिंदिया समझ गयी के वो क्या कहना चाह रही थी "मैं समझ गयी के पहला नंबर मेरी गांद का लगने वाला है और ऐसा ही हुआ. तेज ने अपने पुर लंड पर तेल लगा लिया और थोड़ा मेरी गांद पर. उनकी इस हरकत से मैं समझ गयी के वो पहले ही किसी औरत की गांद मार चुके हैं"
"फिर?" खुद रूपाली भी अब गरम हो रही थी
"फिर वो आकर मेरे उपेर आकर बैठ गये और दोनो हाथों से मेरी गांद को फेला दिया. और फिर लंड मेरी गांद पर दबाया और बिना रुके धीरे धीरे पूरा लंड अंदर घुसा दिया. मैं दर्द से कराह उठी" बिंदिया ने कहा
"दर्द? पर तू तो पहले भी ये कर चुकी है" रूपाली ने हैरान होते पुचछा
"तो क्या हुआ मालकिन" बिंदिया ने भी उसी अंदाज़ में पुचछा "कोई चूत थोड़े ही है के पहली बार में ही दर्द हो. गांद में लंड घुसेगा तो दर्द तो होगा ही. चाहे पहली बार हो या बार बार."
"अच्छा फिर ?" रूपाली ने उसे आयेज बताने को कहा
"छ्होटे ठाकुर भी बिस्तर पर खिलाड़ी थे. गांद में लंड जाते ही समझ गये की मैं आगे से क्या पिछे से भी कुँवारी नही हूँ. धीरे से मेरे कान में बोले के अच्छा तो यहाँ भी कोई हमसे पहले आके जा चुका है. मैं कहा के ठाकुर साहब ये कोई सड़क नही है जहाँ से लोग आए जाएँ तो सड़क खराब हो जाए. यहाँ तो कितने भी आकर चले जाएँ कोई फरक नही पड़ता. जगह वैसे की वैसी ही रहती है, थोड़ी देर बाद वो मेरे उपेर लेते थे और लंड मेरे अंदर बाहर हो रहा था. मुझे भी मज़ा आ रहा था इसलिए मैं भी पूरा साथ दे रही थी पर उल्टी लेटी होने की वजह से मैं ज़्यादा कुच्छ कर नही पा रही थी और ये बात ठाकुर भी समझ गये. थोड़ी देर ऐसे ही गांद मारने के बाद उन्होने मुझे उपेर आकर लंड गांद में लेने को कहा. फिर वो सीधा लेट गये और मैं उनके उपेर बैठ गयी. लंड एक बार फिर गांद में घुस गया. फिर मैं कभी आराम से हिलती तो कभी तेज़ी से उपेर नीचे होती. कभी अपनी चूचियाँ खुद दबाती तो कभी उनके मुँह में घुसा देती. बस ये मानिए के मैने तब तक हार नही मानी जब तक के मैं खुद भी झाड़ गयी और ठाकुर का पानी अपनी गांद में ना निकाल लिया. उपेर बैठकर सब मुझे करना था इसलिए मैं ख्याल रखा के कोई कमी नई रहने दूं और ठाकुर को खुश कर दूं" बिंदिया मुस्कुराते हुए ऐसे बोली जैसे कोई जुंग जीत कर आई हो
"शाबाश" रूपाली ने कहा "मतलब पूरी रात चूत और गांद ली गयी तेरी?"
"कहाँ मालकिन" बिंदिया ने कहा "ठाकुर ने चूत की तरफ तो ध्यान ही नही दिया. पूरी रात बस मेरी गांद में ही मारते रहे. कभी लिटाके मारी, तो कभी उपेर बैठके. कभी खड़ी करके मारी तो कभी झुकाके."
"पूरी रात?" रूपाली ने फिर हैरानी से कहा. "तूने कहा नही आगे से करने को?"
"मैं तो बस चूत में लंड लेने का सोचती ही रही पर कहा नही क्यूंकी मैं ठाकुर को जो वो चाहें बस वो करने देना चाहती थी." बिंदिया बोली
"फिर?" रूपाली ने पुचछा
"चंदर भी रात की ज़िद कर रहा था और मेरा भी चूत में लंड लेने का दिल हो रहा था इसलिए मैं उसे आने से पहले इशारा कर आई थी के रात को हवेली के पिछे जो तहखाना है वहाँ आ जाए" बिंदिया ने कहा तो रूपाली चौंक पड़ी
"क्या? बेसमेंट में? क्यूँ?"
"मालकिन अब ठाकुर के पास से उठकर अपने कमरे की तरफ जाती तो उन्हें शक हो सकता था क्यूंकी उनके कमरे की खिड़की से मेरा कमरा सॉफ नज़र आता है. ये मैने पहले ही देख लिया था इसलिए मैने चंदर को कह दिया था के अब से हर रात मुझे वहीं मिला करे क्यूंकी मैं रात को पायल के कमरे में सोया करूँगी और बाहर नही आ सकूँगी"
बिंदिया की ये बात सुनकर रूपाली को कल रात की कहानी समझ आ गयी और ये भी समझ आ गया के चंदर के बर्ताव में कोई बदलाव क्यूँ नही था. उसे तो पता भी नही था के बेसमेंट के अंधेरे में उसने बिंदिया की नही रूपाली की चूत मारी थी.
"तो फिर तू गयी?" रूपाली पक्का करना चाहती थी के बिंदिया ने वहाँ आकर उसे चूड़ते हुए देखा तो नही
"कहाँ मालकिन" बिंदिया हस्ते हुए बोली "गांद में से लंड निकलता तो जाती ना"
"और चंदर?" रूपाली ने कहा
"सुबह इशारा कर रहा था के रात को बेसमेंट में मज़ा नही आया. अब वहाँ नही करेंगे. पता नही क्या कह रहा था. मैं तो वहाँ गयी ही नही तो मज़ा कैसा. पक्का कोई सपना देखा होगा और बेवकूफ़ उसे ही सच समझ बैठा" बिंदिया ने कहा तो रूपाली की जान में जान आ गयी.
वो रात गुज़ारनी रूपाली के लिए जैसे मौत हो गयी. उसके जिस्म में आग लगी हुई थी. बिंदिया के साथ की गरम बातों ने उसकी गर्मी को और बढ़ा दिया था. बिस्तर पर पड़े पड़े वो काफ़ी देर तक करवट बदलती रही और जब सुकून नही मिला तो उसने अपनी नाइटी को उपेर खींचा और चूत की आग को अपनी उंगलियों से ठंडी करने की बेकार कोशिश करने लगी.
तेज शाम ढले घर वापिस आ गया था और बिंदिया आज रात भी उसके कमरे में थी. रूपाली उस दिन हॉस्पिटल नही जा पाई थी पर फोन पर भूषण से बात हुई थी. ठाकुर की हालत अब भी वैसी ही थी. बिस्तर पर पड़े पड़े ठाकुर के दिमाग़ में सिर्फ़ ठाकुर का लंड घूम रहा था. जब उंगलियों से बात नही बनी तो वो परेशान होकर उठी और तेज के कमरे के सामने पहुँची. कान लगाकर सुना तो अंदर से बिंदिया के आ ऊ की आवज़ें आ रही थी. रूपाली थोड़ी देर तक वहीं खड़ी सुनती रही. अंदर से कभी बिंदिया के "धीरे ठाकुर साहब" तो कभी "आराम से करिए ना" की आवाज़ें आ रही थी. उसकी आवाज़ सुनकर रूपाली मुस्कुरा उठी. लगता है तेज उसके लिए बिस्तर पर काफ़ी भारी पड़ रहा था.
सुबह उठी तो रूपाली का पूरा जिस्म फिर से दुख रहा था. गयी पूरी रात वो बिस्तर पर परेशान करवट बदलती रही और ढंग से सो नही पाई. दिमाग़ में कयि बार उठकर पायल के पास जाने का ख्याल आया पर फिर उसने अपना इरादा बदल दिया और पायल को सुकून से सोने दिया.
उसने आज देवधर से मिलने जाना था. गाओं से शहेर तक जाने में उसे कम से कम 4 घंटे लगने वाले थे तो वो सुबह सवेरे ही उठकर निकल गयी. दोपहर के तकरीबन 11 बजे वो देवधर के ऑफीस में बैठी थी.
देवधर पटेल कोई 45 साल का एक मोटा आदमी थी. सर से आधे बॉल उड़ चुके थे. उसका पूरा खानदान वकील ही था और शुरू से वो ही ठाकुर का खानदानी वकील था. उससे पहले उसका बाप ये काम संभाला करता था और वकील बनने के बाद देवधर ने अपने बाप की जगह ले ली.
उसने रूपाली को फ़ौरन बैठाया और अपनी सेक्रेटरी को किसी को अंदर ना आने देने को कहकर रूपाली के सामने आ बैठा.
"कहिए छ्होटी ठकुराइन" उसने रूपाली से कहा
रूपाली उम्मीद कर रही थी के वो उसे नाम से बुलाएगा पर देवधर ने ऐसा नही किया.
"सीधे मतलब की बात पे आती हूँ" रूपाली ने कहा "मैं ठाकुर साहब की वसीयत के बारे में जानना चाहती हूँ"
"मुझे लगा ही था के आप इस बारे में ही बात करेंगी."देवधर मुस्कुराते हुए बोला "असल में वसीयत ठाकुर साहब की नही आपके पति की है, ठाकुर पुरुषोत्तम सिंग की"
रूपाली ये बात ख़ान के मुँह से पहले ही सुन चुकी थी
"मैं जानता हूँ के आप ये बात पहले से जानती हैं इसलिए इसमें आपके लिए हैरानी की कोई बात नही"
"आपको कैसे पता?" रूपाली ने पुचछा
"वो ख़ान पहले मेरे पास आया था. ज़ोर ज़बरदस्ती करके सब उगलवा गया. मैं जानता था के वो आपसे इस बारे में बात करेगा" देवधर ने चोर नज़र से रूपाली की और देखते हुए कहा
"आप एक खानदानी वकील हैं. और आपको पैसे हमारे घर के राज़ पोलीस को बताने के नही मिलते. और अगर आप कहें के एक पोलीस वाला आपसे ज़बरदस्ती सब उगलवा गया तो ये बात कुच्छ हजम नही होती देवधर जी" रूपाली ज़रा गुस्से में बोली
"मैं एक वकील हूँ छ्होटी ठकुराइन. मेरे भी हाथ कई जगह फसे रहते हैं जहाँ हमें पोलीस की मदद लेनी पड़ती है. ऐसी ही कई बातों में मुझे उलझाके सब मालूम कर गया वो कमीना पर मैं माफी चाहता हूँ" देवधर ने नज़र नीची करते हुए कहा
"खैर" रूपाली भी जानती थी के अब इस बात पर बहेस करने से कोई फ़ायदा नही "मतलब की बात पर आते हैं. ये सारी जायदाद मेरी कैसे है?"
"देखिए बात सॉफ है" देवधर कुच्छ काग़ज़ खोलते हुए बोला. एक काग़ज़ का उसने रूपाली की तरफ सरकाया "ये आपके ससुर ठाकुर शौर्या सिंग के पिता की वसीयत है जिसमें उन्होने अपना सब कुच्छ आपके पति के नाम कर दिया था. तब ही जब पुरुषोत्तम सिंग छ्होटे थे."
"पर ख़ान ने तो कुच्छ और ही कहा" रूपाली थोड़ी हैरान हुई "वो तो कह रहा था वसीयत सरिता देवी की थी"
"यहाँ आकर बात थोड़ी टेढ़ी हो जाती है" देवधर ने दूसरा काग़ज़ आगे सरकाया "ये पहली वसीयत है जिसमें सब कुच्छ ठाकुर शौर्या सिंग के भाई ठाकुर गौरव सिंग के नाम किया गया था.
फिर देवधर ने एक दोसरा काग़ज़ आगे सरकाया
"जब ठाकुर गौरव सिंग और उनकी पत्नी की कार आक्सिडेंट में मौत हो गयी और पिछे उनका एकलौता बेटा जय ही रह गया तो ये दूसरी वसीयत बनाई गयी जिसमें सब कुच्छ आपकी सास सरिता देवी के नाम किया गया था."
फिर एक चौथा काग़ज़ आगे किया
"और ये आपके पति की वसीयत है जो उन्होने मरने से कुच्छ दिन पहले बनाई थी. इसमें सब कुच्छ आपके नाम किया गया है."
रूपाली परेशान सी अपने सामने रखे पेपर्स को देखने लगी
"तो अब देखा जाए तो पहले ये जायदाद ठाकुर शौर्या सिंग के भाई के पास गयी, फिर उनकी पत्नी के पास, फिर उनके बड़े बेटे के पास और अब उनकी बहू के पास. उनके पास तो कभी आई ही नही."
रूपाली थोड़ी देर खामोश रही
"ये मुझे तब क्यूँ ना बताया गया जब मेरे पति की मौत हुई थी?" उसने देवधर से पुचछा
"आप शायद अपने ससुर को नही जानती. इस इलाक़े में राज था उनका जो कुच्छ हद तक अब भी है. इस इलाक़े के नेता और मिनिस्टर्स भी उनके आगे मुँह नही खोलते और आपके देवर तेज के तो नाम से लोगों की हवा निकल जाती थी. अपनी जान मुझे भी प्यारी थी. मेरी क्या मज़ाल जो मैं उनके हुकुम खिलाफ जाता" देवधर रूपाली की आँखों में देखते हुए बोला
"आपको ठाकुर साहब ने मना किया था?" रूपाली ने पुचछा तो देवधर ने हां में सर हिला दिया
"इस वसीयत के बारे में किस किसको पता है?" रूपाली ने काग़ज़ उठाते हुए कहा
"अब तो सबको पता है पर आपके पति के मरने के बाद सिर्फ़ ठाकुर साहब को पता था. आपके पति की मौत के बाद जब मैं आपसे मिलने हवेली पहुँचा तो मुझे आपसे मिलने नही दिया गया. आपके पति के मरने के बाद ही इस वसीयत का पता ठाकुर साहब को चला था. उससे पहले सिर्फ़ मैं जानता था के जायदाद आपके नाम हो चुकी है" देवधर ने जवाब दिया.
"एक बात समझ नही आई" रूपाली ने देवधर की और देखते हुए कहा "ठाकुर गौरव सिंग के नाम से जायदाद मेरी सास के नाम पर इसलिए गयी क्यूंकी वो मारे गये. पर मेरी सास के नाम से जायदाद हटाकर मेरी पति के नाम क्यूँ की गयी जो की उस वक़्त सिर्फ़ मुश्किल से 10 साल के थे? और दूसरी बात ये के क्यूँ कभी जायदाद ठाकुर के नाम नही हुई जो की अपने पिता की बड़े बेटे थे?"
देवधर की पास इन सवालों का कोई जवाब नही था
"ये बात तो शायद सिर्फ़ ठाकुर शौर्या सिंग के पिता भी बता सकते थे" देवधर बोला "ठाकुर के नाम जायदाद ना करने की वजह शायद उनका गुस्सा हो सकता था जो हमेशा से ही बड़ा तेज़ था. सिर्फ़ 15 साल की उमर में उन्होने घर के नौकर को गोली मार दी थी जबकि उनके पिता इसके बिल्कुल उल्टा थे. वो एक शांत आदमी थे जो हर किसी से प्यार से बात करते थे. शायद उन्हें ठाकुर शौर्या सिंग के गुस्से का डर था इसलिए उनके नाम कुच्छ नही किया. पर आपकी सास के नाम से जायदाद हटाने की वजह मैं खुद भी नही जानता."
"वसीयत आपने ही बदली थी?" रूपाली ने पुचछा तो देवधर हस्ने लगा
"मैं तो उस कॉलेज में ही था शायद. वसीयत मेरे पिताजी ने बदली थी"
"और वो कहाँ हैं?" रूपाली ने पुचछा तो देवधर ने अपनी एक अंगुली आसमान की तरफ उठा दी. रूपाली समझ गयी के देवधर का बाप मार चुका था.
"और फिर मेरे नाम? वो वसीयत तो आपने बदली होगी?" रूपाली के इस सवाल पर देवधर ने हां में सर हिलाया
"मरने से कुच्छ दिन पहले ठाकुर पुरुषोत्तम मेरे पास आए थे. काफ़ी परेशान लग रहे थे. मैने वसीयत बदलने की वजह पुछि तो हॅस्कर कहने लगे के भाई आदमी का सब कुच्छ उसकी बीवी का ही तो होता है"
"तो अगर मैं कोर्ट में पहुँच जाऊं के ये सब मेरा है और बेचना शुरू कर दूँ तो मुझे कोई नही रोक सकता?" रूपाली ने पुचछा
"इतना आसान नही है" देवधर ने कहा "एक ये बात के वसीयत बार बार बदली गयी आपके खिलाफ जा सकती है. कोई भी आपके पति की वसीयत को कोर्ट में चॅलेंज कर सकता है और जब तक कोर्ट का फ़ैसला ना हो जाए, तब तक कुच्छ भी किसी को नही मिलेगा"
"कौन चॅलेंज कर सकता है?" रूपाली बोली
"कोई भी" देवधर ने हाथ फेलाते हुए जवाब दिया "ठाकुर साहब, आपके देवर ठाकुर तएजवीर, सबसे छ्होटे देवर कुलदीप, आपकी ननद कामिनी और सबसे बड़ी परेशानी खड़ी करेगा ठाकुर साहब का भतीजा जय"
"जय?" रूपाली फिर से हैरान हुई
"देखिए जय ने ठाकुर साहब की जायदाद आधी अपने नाम इस लिए कर ली क्यूंकी ठाकुर साहब के नाम पर कभी कुच्छ नही था. सब कुच्छ आपके पति के नाम पर था और ठाकुर साहब ने मुझे आपके पति की वसीयत का ज़िक्र करने से मना किया था. मैने नयी वसीयत के बारे में मुँह नही खोला और इस हिसाब से सब कुच्छ मौत के बाद भी आपके पति के नाम पर था. अब आपके पति को अपने कज़िन जय पर इतना भरोसा था के उन्होने उसे पोवेर ऑफ अटर्नी दे रखी थी जिसका फ़ायदा जय ने उनके मरने के बाद उठाया और धीरे धीरे प्रॉपर्टीस अपने नाम पर करता रहा. पेपर्स में उसने ये लिख दिया के असल मलिक अब ज़िंदा नही है और बिज़्नेस के भले के लिए ये फ़ैसला लिया जाना ज़रूरी है. अब अगर आप कोर्ट पहुँच जाती हैं ये कहते हुए के सब कुच्छ आपका है तो जो कुच्छ जाई ने अपने नाम पर किया था वो सब भी चॅलेंज हो जाएगा. क्यूंकी फिर ये बात उठ जाएगी के पति के मरते ही सब कुच्छ आपका हो गया था तो आपके पति की दी हुई पवर ऑफ अटर्नी भी बेकार हो जाती है. और उसका फ़ायदा उठाकर आपके पति के मरने के बाद उसने जो भी नये पेपर्स बनाए थे वो सब भी बेकार हो जाएँगे. इस हिसाब से सब कुच्छ फिर आपकी झोली में आ गिरेगा और जय सड़क पर आ जाएगा"
देवधर से थोड़ी देर और बात करके रूपाली वापिस हवेली की और चल पड़ी. ख़ान ने जो कुच्छ कहा था उस बात पर देवधर ने सच्चाई की मोहर लगा दी थी. रूपाली की आँखो के आगे दुनिया जैसे घूम रही थी. उसे समझ नही आ रहा था के किस्पर भरोसा करे और किस्पर नही. हर कोई उसे एक अजनबी लग रहा था. पिच्छले सवालों के जवाब मिले नही थे के नये कुच्छ और उठ खड़े हुए.
क्यूँ ठाकुर ने उस तक देवधर को पहुँचने नही दिया. क्यूँ उससे ये बात च्छुपाई गयी? शायद पहले ना बताने की वजह उसका चुप चुप रहना था पर एक बार जब वो ठाकुर के साथ सो चुकी थी तो तब ठाकुर ने उसको कुच्छ क्यूँ नही कहा? दूसरा उसे सब कुच्छ अपनी सास के नाम से हटाकर उसके पति के नाम पर कर देने की बात बहुत अजीब लगी? और पुरुषोत्तम मरने से पहले इतने परेशान क्यूँ थे? क्या उन्हें एहसास हो गया था के उन्हें नुकसान पहुँचाया जा सकता है और अगर हां तो उन्होने रूपाली से इस बात का ज़िक्र क्यूँ नही किया?
अब तक ये बात रूपाली के सामने सॉफ हो चुकी थी की उसकी पति की मौत की वजह ये सारी जायदाद ही थी. पर सवाल ये था के मौत का ज़िम्मेदार कौन था? उसके सामने सबके चेहरे घूमने लगे और उसे हर कोई एक हत्यारा नज़र आने लगा.
"जय ऐसा कर सकता था. सबसे ज़्यादा वजह उसी के पास थी क्यूंकी वो ठाकुर के खानदान से चिढ़ता था. पर तेज भी तो हो सकता है. अपनी अययाशी के लिए उसे पैसा चाहिए जो बहुत जल्दी मिलना बंद हो जाता क्यूंकी सारी जायदाद पुरुषोत्तम के पास थी. और सबसे छ्होटा भाई कुलदीप. वो भी तो उसके पति की मौत के वक़्त यहीं था. चुप चुप रहता है पर है बहुत तेज़ और इस बात का सबूत थी उसके कमरे से मिली वो ब्रा. क्या ठाकुर साहब खुद? हां क्यूँ नही. ये जायदाद बड़ा होने के नाते उन्हें मिलनी चाहिए थी पर मिली नही. कभी नही मिली. यहाँ से वहाँ होती रही पर उनके नाम नही हुई. और फिर देवधर को भी तो उन्होने मुँह खोलने से मना किया था. बिल्कुल कर सकते हैं वो ऐसा. सरिता देवी? ये सारी जायदाद अचानक ही उनके नाम से हटा दी गयी थी.हाथ आई इतनी सारी दौलत निकल जाए तो क्या बेटा और कहाँ का बेटा. हो सकता है उन्होने किया हो और पुरुषोत्तम मरने से पहले उन्हें ही तो छ्चोड़ने मंदिर गये थे. कामिनी? लड़की थी पर ऐसा करने की हिम्मत बिल्कुल थी उसमें. उसका किसी से प्यार था और ये बात ठाकुर बर्दाश्त ना करते. पर अगर सारी दौलत उसकी हो जाती तो कोई क्या कर सकता था"
कामिनी के प्रेमी के बारे में सोचते ही रूपाली को ध्यान आया के वो अब जानती है के उसका प्रेमी कौन था. उसका अपना छ्होटा भाई इंदर जिसने उससे हमेशा ये राज़ च्छुपाकर रखा. पर क्यूँ? उसको भला क्या ऐतराज़ होता अगर इंदर कामिनी से शादी करना चाहता. रूपाली अपने ख्यालों में इतना खोई हुई थी के कई बार आक्सिडेंट होते होते बचा. शाम के करीब 4 बजे वो हवेली वापिस पहुँची और हवेली में कदम रखते ही चौंक पड़ी. बड़े कमरे में खड़ा था उसका छ्होटा भाई इंदर. ठाकुर ईन्द्रसेन राणा.
"वो आए हैं महफ़िल में चाँदनी लेकर, के रोशनी में नहाने की रात आई है" रूपाली को आता देख इंदर खड़ा हुआ
"कब आया इंदर?" एक पल के लिए अपने भाई को देखकर रूपाली जैसे सब कुच्छ भूल गयी
"मैं तो सुबह ही आ गया था दीदी" इंदर बहेन के गले लग गया "पता चला के आप सुबह से कहीं गयी हुई हैं"
"हां कुच्छ काम था" रूपाली भाई के सर पर हाथ फेरते हुए बोली "आ बैठ ना"
"ठाकुर साहब के बारे में पता चला" तेज ने कहा "बहुत अफ़सोस हुआ. मैं आते हुए हॉस्पिटल होता हुआ आया था. अभी भी बेहोश हैं"
"हां जानती हूँ" रूपाली साँस छ्चोड़ते हुए बोली
इंद्रासेन राणा करीब 30 साल का एक बहुत खूबसूरत आदमी था. उसको भगवान ने ऐसा बनाया था के लड़कियाँ देखकर दिल थाम लें और लड़के जल जाए. लंबा चौड़ा कद, गोरा रंग, टन्द्रुस्त शरीर और जब बोलता था तो लगता था के जैसे फूल झाड़ रहे हों. रूपाली काफ़ी देर तक इंदर के साथ वहीं बैठी बात करती रही और पता ही नही चला के कब रात के 9 बज गये. वक़्त का एहसास तब हुआ जब तेज हवेली में दाखिल हुआ. इंदर को सामने बैठा देख वो एक पल के लिए रुका और फिर हाथ आगे करता इनडर की तरफ बढ़ा.
"कैसे हैं ठाकुर इंद्रासेन?" वो हमेशा इंदर को उसके पूरे नाम से ही बुलाता था
"मैं ठीक हूँ बड़े भाय्या" इंदर ने भी आगे बढ़कर हाथ आगे मिलाया
"आज इस तरफ कैसे आना हुआ?" तेज ने पुचछा तो इंदर ने मुस्कुरा के कंधे झटकाए
"ऐसे ही आप लोगों की याद आई तो मिलने चला आया"
खाने की टेबल पर तीनो साथ थे. रूपाली ने ध्यान दिया के पायल की नज़र तेज पर कुच्छ ज़्यादा ही थी. वो उसका ख़ास तौर पर ध्यान रख रही थी. बार बार आकर उससे पुछ्ति के कुच्छ चाहिए तो नही. इंदर को देख कर मुस्कुराती. रूपाली भी दिल ही दिल में उसकी हरकत देख कर मुस्कुरा उठी. ये पहली बार नही था के उसने अपने भाई के आस पास लड़कियों की पागल होते हुए देखा था. उसके भाई के पिछे पागल होने वाली एक तो उसकी अपनी ननद ही थी.
इंदर को उसने ग्राउंड फ्लोर पर ही कमरे दे दिया. जब वो और तेज अपने कमरे में चले गये तो वो बिंदिया और पायल को किचन सॉफ करने का कहकर अपने कमरे में पहुँची. वो तेज से कामिनी के बारे में और आज हुई देवधर से मुलाक़ात के बारे में बात करना चाह रही थी इसलिए एक नाइटी पहेनकर तेज के कमरे में पहुँची.
तेज के कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ था. वो अंदर दाखिल हुई. एक नज़र केमर में दौड़ाई तो तेज कहीं नज़र नही आया. रूपाली ने उसे बुलाने के लिए आवाज़ देनी चाही ही थी के अचानक उसके पेर हवा में उठ गये. एक हाथ पिछे से उसकी कमर पर होता हुआ सीधा नाइटी के उपेर से उसकी चूत पर आया और दूसरा उसकी एक छाती पर और उसे हवा में थोडा सा उपेर उठा दिया गया. अपनी कमर पर उसे किसी की छाती महसूस हुई और नीचे से एक लंड उसकी गांद पर आ दबा.
"आज इतनी देर कहाँ लगा दी थी?" पीछे से तेज की आवाज़ आई
ये सब एक पल में हुआ. रूपाली को कुच्छ कहने या करने का मौका ही नही मिला. और उसके अगले ही पल तेज को एहसास हुआ के उसने बिंदिया को नही बल्कि रूपाली को पकड़ रखा है. उसके हाथ रूपाली के जिस्म से फ़ौरन हट गये जैसे रूपाली में अचानक से करेंट दौड़ गया हो. वो जल्दी से 2 कदम पिछे को हुआ और परेशान नज़र से रूपाली को देखने लगा.
"माफ़ कीजिएगा भाभी" उसे समझ नही आ रहा था के क्या कहे "वो मुझे लगा के..... के....."
उसे समझ नही आया के कैसे रूपाली से कहे के वो घर की नौकरानी को चोद रहा था.
दोनो के लिए वो सिचुयेशन इतनी अजीब हो गयी के रूपाली चाह कर भी कुच्छ कह ना सकी. वो तेज से कुच्छ बात करने आई थी पर उस वक़्त उसने कुच्छ ना कहना बेहतर समझा और चुपचाप कमरे से निकल गयी.
फिर मिलेंगे अगले पार्ट मैं तब तक के लिए विदा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
(¨`·.·´¨) ऑल्वेज़
`·.¸(¨`·.·´¨) कीप लविंग &
(¨`·.·´¨)¸.·´ कीप स्माइलिंग !
`·.¸.·´ -- राज
sexi haveli ka such --20
hello dosto ab aage ki kahaani aapke liye .......
Rupali aur Tej dono hi haweli pahunche.
"Aapko kya zaroorat thi yun police station jaane ki?" Tej ne Rupali se haweli mein ghuste hi puchha
Rupali ne koi jawab nahi diya
"Vo policewala apne aapko bahut bada sher samajhta hai" Tej ab bhi gusse mein jal raha tha "1 din mein hekdi nikal doonga. Aaj tak kisi ki himmat nahi hui ke is haweli ki shaan mein gustakhi kare"
Bolkar Tej apne kamre ki aur badha hi tha ke Rupali ki aawaz sunkar ruk gaya
"Kaun si shaan ki baat kar rahe ho Thakur Tejveer Singh"
Tej Rupali ki taraf palta
"Is haweli mein ab ullu bhi nahi bolte. Log is taraf aane se bhi katrate hain. Vo to phir gair hain chhodo, yahan to apne bhi haweli mein kadam nahi rakhte. Kis shaan ki baat kar rahe hain aap?" Rupali ne puchha to is baar Tej ke paas koi jawab nahi tha.
"Zara bahar nikalkar nazar daaliye Tejveer Ji. Is haweli par ab manhoosiyat barasti hai. Bahar se dekhne se aisa lagta hai jaise yahan barso se koi nahi raha. Is haweli ki shaan mein gustakhi to guzarte waqt ne kar di hai vo policewala kya karega." Rupali bolti rahi aur Tej chup khada uski taraf dekhta raha
"Hamari zameen hamara hi apna koi hamari nazar ke saamne se chura le gaya. Jo reh gayi vo banjar padi hain. Bachi hui jo daulat hai vo khatam ho rahi hai. Is haweli ke malik hospital mein pade hain. Aapke bhai ko beech sadak kisi ne goli maar di thi. Aapne naam par log haste hain. Aur aap haweli ki shaan ki baat kar rahe hain?" Rupali ne jaise apne dil mein jama saara zeher Tej par ugal diya aur apne kamre ki taraf badh chali.
"Aur haan" Jaate jaate vo phir palti "Jab ghar ke aadmiyon ka kahin ata pata na ho to ghar ki auraton ko hi police station jana padta hai"
Rupali ne ek aakhri taana sa maara aur apne kamre ki taraf badh chali. Apne pichhe use Tej gusse mein per patakta hua haweli ke bahar jata hua dikhai diya.
Kamre mein pahunch kar Rupali ke aansu nikal pade. Usne jo kuchh Tej se kaha tha vo gusse mein tha par in baaton ne uske khud ke zakhm harey kar diye the. Kuchh der tak yun hi aansu bahane ke baad usne saamne rakha phone uthaya aur Devdhar ka number milaya
"Haan Rupali ji kahiye" Doosri taraf se devdhar ki aawaz aayi
Rupali ko vo zamana yaad aa gaya jab Devdhar jaise use chhoti thakurain ke naam se bulate the. Aaj uski itni aukaat ho gayi thi ke use naam se bula raha tha. Vo ek thandi bharkar reh gayi. Dil mein janti thi ke ye galti Devdhar ki nahi balki thakur khandaan ki hi hai. Jab apne hi sikke khote hon to koi kya kare.
"Maine aapse kaha tha ne ke aane se ek din pehle phone karungi." Rupali ne jawab diya
"To aap kal aa rahi hain?" Devdhar uski baat ka matlab samajh gaya
"Haan" Rupali ne jawab diya "Kal subah yahan se niklenge to dopahar tak aapke paas pahunch jayenge."
"Jaisa aap theek samjhen" Devdhar ne kaha "Vaise aap ek baar bata deti ke kis baare mein baat kari hai to main papers vagerah taiyyar rakhta"
"Ye aakar hi batati hoon" Kehkar Rupali ne phone kaat diya. Apni halat theek ki aur phir neeche aayi.
Payal bade kamre mein bethi TV dekh rahi thi.
"Teri maan kahan hai?" Rupali ne puchha
"Ji vo nahane gayi hain" Payal ne TV ki aawaz dheere karte hue kaha
"Aur Chander?" Rupali ne puchha to Payal ne kandhe hila diye
"Pata nahi"
Rupali haweli se nikalkar Bindiye ke kamre ki taraf badhi. Vo kamre ki nazdeek pahunchi hi thi ke Bindiya ke kamre ka dawza khula aur vo maathe se paseena saaf karti hui bahar nikli. Pichhe Chander tha. Rupali fauran samajh gayi ke vo kya karke aa rahe hain par kuchh nahi boli.
"Agar tu naha li ho to mere kamre mein aa. Kuchh baat karni hai" Rupali ne kaha to Bindiya ne haan mein sar hila diya.
Rupali Chander ki taraf mudi
"Aur tujhe maine kaha tha safai ke liye. Us taraf dekh" Rupali ne haweli ke compound mein us taraf ishara kiya jahan ab bhi kuchh jhaadiyan thi. Uske chehre par ab bhi halke gusse ke bhaav the. Chander ne fauran ishare se kaha ke vo abhi safai shuru kar dega.
Rupali apne kamre ki taraf badh chali. Kal raat ke baad usne ab pehli baar Chander ko dekha tha. Jis andaaz se Chander ne uski taraf dekha tha usse Rupali sochne par majboor ho gayi thi. Usmen aisa koi andaz nahi tha jaisa ki use chodne ke baad hona chahiye tha. Chander ne ab bhi use usi izzat se dekha tha jaise pehle dekha tha aur ab bhi vaise hi uska hukum mana tha jaise pehle manta tha.
Thodi der baad Bindiya aur Rupali dono Rupali ke kamre mein bethe the aur Rupali gusse se Bindiya ko ghoor rahi thi.
"Apni rang raliyan zara kam kar. Din mein is waqt? Vo bhi tab jab teri beti yahin bethi thi? Agar Tej dekh lete to kaat dete tujhe aur us Chander ko bhi"
Maan kar dijiye Malkin" Bindiya ne sar jhukaye kaha "Ab nahi hoga"
Rupali vahin uske saamne bistar par beth gayi
"Kal raat ka bata. Kya lagta hai tujhe? Khush tha Chander tere saath bistar par?" Rupali ne Bindiya se puchha to vo muskura uthi
"Khush? Malkin kal poori raat sone nahi diya mujhe" Bindiya boli
"Tune manaya kaise Tej ko?" Rupali ne puchha
"Zaroorat hi kahan padi manane ki. Vo to pehle hi taiyyar bethe the" Bindiya ne jab dekha ke Rupali ka gussa thoda kam ho raha hai to vo bhi khulkar baat karne lagi
"Matlab?" Rupali ne puchha
"Matlab ye ke raat apne kamre mein jaane se pehle unhone mujhse kaha ke ek cup chaay unke kamre mein le aaon. Main usi waqt is samajh gayi ki mujhe kuchh karne ki zaroorat nahi aur mujhe kamre mein chaay ke bahane kyun bulaya ja raha hai. Maine chaay banayi aur lekar unke paas jaane se pehle Payal ke kamre mein pahunchi. Vahan jakar mein apni choli utari aur Payal ki pehen li"
"Payal ki choli? Vo kyun?" Rupali ne hairat se puchha
"Kyunki Payal ki chhatiyan mujhse kaafi badi hain. Kabhi kabhi to mujhe khud ko hairani hoti hai. Zara si umar mein hi uski chhatiyan mujhse duguni ho gayi hain" Bindiya ne kaha
"Tu apni hi beti ki chhatiyan kyun dekhti hai?" Rupali ne muskurate hue puchha
"Maan hoon malkin" Bindiya ne kaha "Jawan beti ghar mein ho to sab dekhna padta hai. Aur vaise bhi us zara se bachchi ke jism par sabse pehle uski badi badi chhatiyan hi dikhati deti hain"
Rupali ka dil kiya ke usko bataye ke jise vo zara si bachchi keh rahi hai uske jism mein maan se bhi zyada aag hai aur ek lund le bhi chuki hai.
"Achha vo chhod" Rupali boli "Tune Payal ki choli kyun pehni?"
"Malkin uski choli mujhe dheeli aati hai kyunki meri chhatiyan itni nahi" Bindiya ne apni chuchiyon ki taraf dekhte hue kaha. Rupali ne bhi apni nazar udhar hi daali
"Uski chhatiyan badi hone ki vajah se agar main uski choli pehen loon to saamne se itni dheeli ho jaati hai ke halka sa jhukte hi saara nazara saamne aa jata hai" Bindiya ne samjhate hue kaha
"Oh ab samjhi. Phir?"
"Phir main chaay lekar unke kamre mein pahunchi aur cup bilkul unke saamne rakha. Cup rakhte hue main jhuki aur bas. Meri chhatiyan aapke dewar ke saamne thi" Bindiya boli
"Tej ne dekhi?" Rupali ab bejhijhak sawal puchh rahi thi.
"Dekhi? Haath badhakar sidha ek chhati pakad li." Bindiya haste hue boli
Rupali dil hi dil mein Tej ki himmat ki daad diye bina na reh saki
"Pakad li? Tune kya kaha?" Usne Bindiya se puchha
"Main kya kehti. Main to pehli hi taiyyar thi. Chhati pakadkar chhote thakur ne halka sa dabav daala aur kaha ke meri chhatiyan kaafi sakht hain. Is umar mein zara bhi dheeli nai hain. Ab baari thi meri taraf se ishare ki."
Rupali chup chap bethi sun rahi thi
"Main muskurayi aur kaha ke chhote thakur choli ke uper se haath lagake kahan pata chalta hai ke chhatiyan sakht hain ya umar ke saath dheeli pad gayi hain" Bindiya ne baat jaari rakhi "Itna ishara kaafi tha. Vo uthe aur choli mere jism se aise alag ki jaise phaad rahe hon. Jab main uper se nangi ho gayi to unhone meri chhatiyon par haath phera aur kaha ke main sahi tha. Tumhari chhatiyan sahi mein kaafi sakht hain aur haath se dabane laga. Tab tak main khud bhi garam ho chuki thi. Main unke baal sehlane lagi. Vo kabhi meri chhatiyon ko dabate to kabhi mere nipples ko sehlate. Thodi der tak yahi khel chalta raha. Jab mujhse aur bardasht na hua to maine unka sar aage ko khincha aur unka munh apni chhati par daba diya. Mera ek nipple sidha unke munh mein gaya aur vo aise choosne lage jaise aaj ke baad koi aurat nangi dekhne ko nahi milegi."
"Tujhe maza aaya?"Rupali ne puchha
"Mere nipples mere shareer ka sabse kamzor hissa hain malkin. Mujhe sabse zyada maza nipples chuswane mein aata hai " Bindiya ne phir ek baar apni chhatiyon par nazar daali "Par meri kismat ke na to mera mard ye baat samajh saka aur na hi Chander. Dono hi meri chhatiyon par kuchh khaas dhyaan nahi dete the isliye jab chhote thakur ne tasalli ke saath mere nipples ko ragda to main vahi pighal gayi. Maine khud apna lehenga kholkar neeche gira diya aur unke saamne nangi ho gayi. Unke haath mere poore jism par phirne lage aur jakar meri gaand par ruk gaye. Unhone meri aankhon mein dekhte hue nipple munh se nikala aur bole ke unhen sabs zyada meri gaand pasand hai aur ye kehte hue gaand ko halke se daba diya."
"Phir?"Rupali itna hi keh saki
"Main samajh gayi ke aaj meri choot ke saath saath gaand ka bhi number lagega. Main muskurayi aur boli ke thakur sahab main to poori aapki hoon par pehle aapko taiyyar to kar doon. Ye kehte hue main unke saamne beth gayi aur unka pajama neeche sarka kar unka lund bahar nikala" Bindiya ne kaha
Kaisa tha, ye baat Rupali ke munh se nikalte nikalte reh gayi. Use fauran ye ehsaas hua ke vo apne dewar ke baare mein baat kar rahi hai aur Bindiya se is tarah ka koi sawal galat saabit ho sakta hai. Doosra use khud ye hairat hui ke vo Tej ke lund ke baare mein jaanna chahti hai. Usne baat fauran apne dimag se jhatki.
"Thodi hi der baad main nangi unke saamne bethi thi aur lund mere munh mein tha" Bindya ne kaha to Rupali man masos kar reh gayi. Vo ummeed kar rahi thi ke Bindiya khud ye kahegi ke use Tej ka lund kaisa laga
"Mera irada to ye tha ke bistar par main jo janti hoon vo karun taaki chhote thakur ko khush kar sakun par aisa ho na saka. Thodi der baad unhone lund mere munh se nikala aur mujhe bistar par aane ko kaha. Main muskurate hue bistar par aayi aur unke saamne letkar apni taange phela di. Par unka irada kuchh aur hi tha. Unhone meri taange phir band ki aur mujhe ghumakar ulta kar diya" Bindiya ne kaha
"Matlab teri......" Rupali ne baat adhuri chhod di
"Haan" Bindiya samajh gayi ke vo kya kehna chah rahi thi "Main samajh gayi ke pehla number meri gaand ka lagne wala hai aur aisa hi hua. Tej ne apne poore lund par tel laga liya aur thoda meri gaand par. Unki is harkat se main samajh gayi ke vo pehle hi kisi aurat ki gaand maar chuke hain"
"Phir?" Khud Rupali bhi ab garam ho rahi thi
"Phir vo aakar mere uper aakar beth gaye aur dono hathon se meri gaand ko phela diya. Aur phir lund meri gaand par dabaya aur bina ruke dheere dheere poora lund andar ghusa diya. Main dard se karah uthi" Bindiya ne kaha
"Dard? Par tu to pehle bhi ye kar chuki hai" Rupali ne hairan hote puchha
"To kya hua malkin" Bindiya ne bhi usi andaz mein puchha "Koi choot thode hi hai ke pehli baar mein hi dard ho. Gaand mein lund ghusega to dard to hoga hi. Chahe pehli baar ho ya baar baar."
"Achha phir ?" Rupali ne use aage batane ko kaha
"Chhote thakur bhi bistar par khiladi the. Gaand mein lund jaate hi samajh gaye ki main aage se kya pichhe se bhi kunwari nahi hoon. Dheere se mere kaan mein bole ke achha to yahan bhi koi hamse pehle aake ja chuka hai. Main kaha ke thakur sahab ye koi sadak nahi hai jahan se log aaye jaayen to sadak kharab ho jaaye. Yahan to kitne bhi aakar chale jaayen koi farak nahi padta. Jagah vaise ki vaisi hi rehti hai, Thodi der baad vo mere uper lete the aur lund mere andar bahar ho raha tha. Mujhe bhi maza aa raha tha isliye main bhi poora saath de rahi thi par ulti leti hone ki vajah se main zyada kuchh kar nahi pa rahi thi aur ye baat thakur bhi samajh gaye. Thodi der aise hi gaand maarne ke baad unhone mujhe uper aakar lund gaand mein lene ko kaha. Phir vo sidha let gaye aur main unke uper beth gayi. Lund ek baar phir gaand mein ghus gaya. Phir main kabhi aaram se hilti to kabhi tezi se uper neeche hoti. Kabhi apni chhatiyan khud dabati to kabhi unke munh mein ghusa deti. Bas ye maaniye ke maine tab tak haar nahi maani jab tak ke main khud bhi jhad gayi aur thakur ka pani apni gaand mein na nikal liya. Uper bethkar sab mujhe karna tha isliye main khyaal rakha ke koi kami nai rehne doon aur thakur ko khush kar doon" Bindiya muskurate hue aise boli jaise koi jung jeet kar aayi ho
"Shabash" Rupali ne kaha "Matlab poori raat choot aur gaand li gayi teri?"
"Kahan malkin" Bindiya ne kaha "Thakur ne choot ki taraf to dhyaan hi nahi diya. Poori raat bas meri gaand mein hi marte rahe. Kabhi litake maari, to kabhi uper bithake. Kabhi khadi karke maari to kabhi jhukake."
"Poori raat?" Rupali ne phr hairani se kaha. "Tune kaha nahi aage se karne ko?"
"Main to bas choot mein lund lene ka sochti hi rahi par kaha nahi kyunki main thakur ko jo vo chahen bas vo karne dena chahti thi." Bindiya boli
"Phir?" Rupali ne puchha
"Chander bhi raat ki zid kar raha tha aur mera bhi choot mein lund lene ka dil ho raha tha isliye main use aane se pehle ishara kar aayi thi ke raat ko haweli ke pichhe jo tehkhana hai vahan aa jaaye" Bindiya ne kaha to Rupali chaunk padi
"Kya? Basement mein? Kyun?"
"Malkin ab thakur ke paas se uthkar apne kamre ki taraf jaati to unhen shak ho sakta tha kyunki unke kamre ki khidki se mera kamra saaf nazar aata hai. Ye maine pehle hi dekh liya tha isliye maine Chander ko keh diya tha ke ab se har raat mujhe vahin mila kare kyunki main raat ko Payal ke kamre mein soya karungi aur bahar nahi aa sakungi"
Bindiya ki ye baat sunkar Rupali ko kal raat ki kahani samajh aa gayi aur ye bhi samajh aa gaya ke Chander ke bartav mein koi badlav kyun nahi tha. Use to pata bhi nahi tha ke basement ke andhere mein usne Bindiya ki nahi Rupali ki choot maari thi.
"To phir tu gayi?" Rupali pakka karna chahti thi ke Bindiya ne vahan aakar use chudte hue dekha to nahi
"Kahan malkin" Bindiya haste hue boli "Gaand mein se lund nikalta to jaati na"
"Aur Chander?" Rupali ne kaha
"Subah ishara kar raha tha ke raat ko basement mein maza nahi aaya. Ab vahan nahi karenge. Pata nahi kya keh raha tha. Main to vahan gayi hi nahi to maza kaisa. Pakka koi sapna dekha hoga aur bevakoof use hi sach samajh betha" Bindiya ne kaha to Rupali ki jaan mein jaan aa gayi.
Vo raat guzarni Rupali ke liye jaise maut ho gayi. Uske jism mein aag lagi hui thi. Bindiya ke saath ki garam baaton ne uski garmi ko aur badha diya tha. Bistar par pade pade vo kaafi der tak karwat badalti rahi aur jab sukoon nahi mila to usne apni nighty ko uper khincha aur choot ki aag ko apni ungliyon se thandi karne ki bekar koshish karne lagi.
Tej shaam dhale ghar vapis aa gaya tha aur Bindiya aaj raat bhi uske kamre mein thi. Rupali us din hospital nahi ja paayi thi par phone par Bhushan se baat hui thi. Thakur ki haalat ab bhi vaisi hi thi. Bistar par pade pade thakur ke dimag mein sirf thakur ka lund ghoom raha tha. Jab ungliyon se baat nahi bani to vo pareshan hokar uthi aur Tej ke kamre ke saamne pahunchi. Kaan lagakar suna to andar se Bindiya ke aah ooh ki aawzen aa rahi thi. Rupali thodi der tak vahin khadi sunti rahi. Andar se kabhi Bindiya ke "dheere thakur sahab" to kabhi "aaram se kariye na" ki aawazen aa rahi thi. Uski aawaz sunkar Rupali muskura uthi. Lagta hai Tej uske liye bistar par kaafi bhari pad raha tha.
Subah uthi to Rupali ka poora jism phir se dukh raha tha. Gayi poori raat vo bistar par pareshan karwat badalti rahi aur dhang se so nahi paayi. Dimag mein kayi baar uthkar Payal ke paas jaane ka khyaal aaya par phir usne apna irada badal diya aur Payal ko sukoon se sone diya.
Usne aaj Devdhar se milne jana tha. Gaon se sheher tak jaane mein use kam se kam 4 ghante lagne wale the to vo subah savere hi uthkar nikal gayi. Dopahar ke takreeban 11 baje vo Devdhar ke office mein bethi thi.
Devdhar Patel koi 45 saal ka ek mota aadmi thi. Sar se aadhe baal ud chuke the. Uska poora khandaan vakeel hi tha aur shuru se vo hi thakur ka khandaani vakeel tha. Usse pehle uska baap ye kaam sambhala karta tha aur vakeel banne ke baad Devdhar ne apne baap ki jagah le li.
Usne Rupali ko fauran bethaya aur apni secretary ko kisi ko andar na aane dene ko kehkar Ruapli ke saamne aa betha.
"Kahiye chhoti thakurain" Usne Rupali se kaha
Rupali ummeed kar rahi thi ke vo use naam se bulayega par Devdhar ne aisa nahi kiya.
"Sidhe matlab ki baat pe aati hoon" Rupali ne kaha "Main thakur sahab ki vaseeyat ke baare mein jaanna chahti hoon"
"Mujhe laga hi tha ke aap is baare mein hi baat karengi."Devdhar muskurate hue bola "Asal mein vaseeyat thakur sahab ki nahi aapke pati ki hai, thakur Purushottam Singh ki"
Rupali ye baat Khan ke munh se pehle hi sun chuki thi
"Main janta hoon ke aap ye baat pehle se janti hain isliye ismen aapke liye hairani ki koi baat nahi"
"Aapko kaise pata?" Rupali ne puchha
"Vo Khan pehle mere paas aaya tha. Zor zabardasti karke sab ugalva gaya. Main janta tha ke vo aapse is baare mein baat karega" Devdhar ne chor nazar se Rupali ki aur dekhte hue kaha
"Aap ek khandani vakeel hain. Aur aapko paise hamare ghar ke raaz police ko batane ke nahi milte. Aur agar aap kahen ke ek policewala aapse zabardasti sab ugalva gaya to ye baat kuchh hazam nahi hoti Devdhar ji" Rupali zara gusse mein boli
"Main ek vakeel hoon chhoti thakurain. Mere bhi haath kai jagah phase rehte hain jahan hamen police ki madad leni padti hai. Aisi hi kai baaton mein mujhe uljhake sab maalum kar gaya vo kameena par main mafi chahta hoon" Devdhar ne nazar neechi karte hue kaha
"Khair" Rupali bhi janti thi ke ab is baat par behes karne se koi fayda nahi "Matlab ki baat par aate hain. Ye saari jaaydad meri kaise hai?"
"Dekhiye baat saaf hai" Devdhar kuchh kagaz kholte hue bola. Ek kagaz ka usne Rupali ki taraf sarkaya "Ye aapke sasur Thakur Shaurya Singh ke pita ki vaseeyat hai jismein unhone apna sab kuchh aapke pati ke naam kar diya tha. Tab hi jab Purushottam Singh chhote the."
"Par Khan ne to kuchh aur hi kaha" Rupali thodi hairan hui "Vo to keh raha tha vaseeyat Sarita Devi ki thi"
"Yahan aakar baat thodi tedhi ho jaati hai" Devdhar ne doosra kagaz aage sarkaya "Ye pehli vaseeyat hai jismen sab kuchh Thakur Shaurya Singh ke bhai Thakur Gaurav Singh ke naam kiya gaya tha.
Phir Devdhar ne ek dosra kagaz aage sarkaya
"Jab Thakur Gaurav Singh aur unki patni ki car accident mein maut ho gayi aur pichhe unka eklauta beta Jai hi reh gaya to ye doosri vaseeyat banayi gayi jismen sab kuchh aapki saas Sarita Devi ke naam kiya gaya tha."
Phir ek chautha kagaz aage kiya
"Aur ye aapke pati ki vaseeyat hai jo unhone marne se kuchh din pehle banayi thi. Ismen sab kuchh aapke naam kiya gaya hai."
Rupali pareshan si apne saamne rakhe papers ko dekhne lagi
"To ab dekha jaaye to pehle ye jaaydad Thakur Shaurya Singh ke bhai ke paas gayi, phir unki patni ke paas, phir unke bade bete ke paas aur ab unki bahu ke paas. Unke paas to kabhi aayi hi nahi."
Rupali thodi der khamosh rahi
"Ye mujhe tab kyun nah bataya gaya jab mere pati ki maut hui thi?" Usne Devdhar se puchha
"Aap shayad apne sasur ko nahi janti. Is ilaake mein raaj tha unka jo kuchh hadh tak ab bhi hai. Is ilaake ke neta aur ministers bhi unke aage munh nahi kholte aur aapke dewar Tej ke to naam se logon ki hawa nikal jaati thi. Apni jaan mujhe bhi pyaari thi. Meri kya majaal jo main unke hukum khilaf jata" Devdhar Rupali ki aankhon mein dekhte hue bola
"Aapko thakur sahab ne mana kiya tha?" Rupali ne puchha to Devdhar ne haan mein sar hila diya
"Is vaseeyat ke baare mein kis kisko pata hai?" Rupali ne kagz uthate hue kaha
"Ab to sabko pata hai par aapke pati ke marne ke baad sirf thakur sahab ko pata tha. Aapke pati ki maut ke baad jab main aapse milne haweli pahuncha to mujhe aapse milne nahi diya gaya. Aapke pati ke marne ke baad hi is vaseeyat ka pata thakur sahab ko chala tha. Usse pehle sirf main janta tha ke jaaydad aapke naam ho chuki hai" Devdhar ne jawab diya.
"Ek baat samajh nahi aayi" Rupali ne Devdhar ki aur dekhte hue kaha "Thakur Gaurav Singh ke naam se jaaydad meri saas ke naam par isliye gayi kyunki vo maare gaye. Par meri saas ke naam se jaaydad hatakar meri pati ke nam kyun ki gayi jo ki us waqt sirf mushkil se 10 saal ke the? Aur doosri baat ye ke kyun kabhi jaaydad Thakur ke naam nahi hui jo ki apne Pita ki bade bete the?"
Devdhar ki paas in sawalon ka koi jawab nahi tha
"Ye baat to Shayad sirf Thakur Shaurya Singh ke pita bhi bata sakte the" Devdhar bola "Thakur ke naam jaaydad na karne ki vajah shayad unka gussa ho sakta tha jo hamesha se hi bada tez tha. Sirf 15 saal ki umar mein unhone ghar ke naukar ko goli maar di thi jabki unke pita iske bilkul ulta the. Vo ek shaant aadmi the jo har kisi se pyaar se baat karte the. Shayad unhen Thakur Shaurya Singh ke gusse ka dar tha isliye unke naam kuchh nahi kiya. Par aapki saas ke naam se jaaydad hatane ki vajah main khud bhi nahi janta."
"Vaseeyat aapne hi badli thi?" Rupali ne puchha to Devdhar hasne laga
"Main to us college mein hi tha shayad. Vaseeyat mere pitaji ne badli thi"
"Aur vo kahan hain?" Rupali ne puchha to Devdhar ne apni ek anguli aasman ki taraf utha di. Rupali samajh gayi ke Devdhar ka baap mar chuka tha.
"Aur phir mere naam? Vo vaseeyat to aapne badli hogi?" Rupali ke is sawal par Devdhar ne haan mein sar hilaya
"Marne se kuchh din pehle Thakur Purushottam mere paas aaye the. Kaafi pareshan lag rahe the. Maine vaseeyat badalne ki vajah puchhi to haskar kehne lage ke bhai aadmi ka sab kuchh uski biwi ka hi to hota hai"
"To agar main court mein pahunch jaoon ke ye sab mera hai aur bechna shuru kar doon to mujhe koi nahi rok sakta?" Rupali ne puchha
"Itna aasan nahi hai" Devdhar ne kaha "Ek ye baat ke vaseeyat baar baar badli gayi aapke khilaaf ja sakti hai. Koi bhi aapke pati ki vaseeyat ko court mein challenge kar sakta hai aur jab tak court ka faisla na ho jaaye, tab tak kuchh bhi kisi ko nahi milega"
"Kaun challenge kar sakta hai?" Rupali boli
"Koi bhi" Devdhar ne haath phelate hue jawab diya "Thakur sahab, aapke dewar Thakur Tejveer, sabse chhote dewar Kuldeep, aapki nanad Kamini aur sabse badi pareshani khadi karega Thakur sahab ka bhateeja Jai"
"Jai?" Rupali phir se hairan hui
"Dekhiye Jai ne thakur sahab ki jaaydad aadhi apne naam is liye kar li kyunki thakur sahab ke naam par kabhi kuchh nahi tha. Sab kuchh aapke pati ke naam par tha aur thakur sahab ne mujhe aapke pati ki vaseeyat ka zikr karne se mana kiya tha. Maine nayi vaseeyat ke baare mein munh nahi khola aur is hisab se sab kuchh maut ke baad bhi aapke pati ke naam par tha. Ab aapke pati ko apne cousin Jai par itna bharosa tha ke unhone use power of attorney de rakhi thi jiska fayda Jai ne unke marne ke baad uthaya aur dheere dheere properties apne naam par karta raha. Papers mein usne ye likh diya ke asal malik ab zinda nahi hai aur business ke bhale ke liye ye faisla liya jana zaroori hai. Ab agar aap court pahunch jaati hain ye kehte hue ke sab kuchh aapka hai to jo kuchh Jai ne apne naam par kiya tha vo sab bhi challenge ho jaayega. Kyunki phir ye baat uth jaayegi ke pati ke marte hi sab kuchh aapka ho gaya tha to aapke pati ki di hui power of attorney bhi bekar ho jaati hai. Aur uska fayda uthakar aapke pati ke marne ke baad usne jo bhi naye papers banaye the vo sab bhi bekaar ho jaayenge. Is hisaab se sab kuchh phir aapki jholi mein aa girega aur Jai sadak par aa jayega"
Devdhar se thodi der aur baat karke Rupali vapis haweli ki aur chal padi. Khan ne jo kuchh kaha tha us baat par Devdhar ne sachchai ki mohar laga di thi. Rupali ki aankho ke aage duniya jaise ghoom rahi thi. Use samajh nahi aa raha tha ke kispar bharosa kare aur kispar nahi. Har koi use ek ajnabi lag raha tha. Pichhle sawalon ke jawab mile nahi the ke naye kuchh aur uth khade hue.
Kyun Thakur ne us tak Devdhar ko pahunche nahi diya. Kyun usse ye baat chhupayi gayi? Shayad pehle na batane ki vajah uska chup chup rehna tha par ek baar jab vo T hakur ke saath so chuki thi to tab Thakur ne usko kuchh kyun nahi kaha? Doosra use sab kuchh apni saas ke naam se hatakar uske pati ke naam par kar dene ki baat bahut ajeeb lagi? Aur Purushottam marne se pehle itne pareshan kyun the? Kya unhen ehsaas ho gaya tha ke unhen nuksaan pahunchaya ja sakta hai aur agar haan to unhone Rupali se is baat ka zikr kyun nahi kiya?
Ab tak ye baat Rupali ke saamne saaf ho chuki thi ki uski pati ki maut ki vajah ye saari jaaydad hi thi. Par sawal ye tha ke maut ka zimmedar kaun tha? Uske saamne sabke chehre ghoomne lage aur use har koi ek hatyara nazar aane laga.
"Jai aisa kar sakta tha. Sabse zyada vajah usi ke paas thi kyunki vo thakur ke khandaan se chidta tha. Par Tej bhi to ho sakta hai. Apni ayyashi ke liye use paisa chahiye jo bahut jaldi milna band ho jaata kyunki saari jaaydad Purushottam ke paas thi. Aur sabse chhota bhai Kuldeep. Vo bhi to uske pati ki maut ke waqt yahin tha. Chup chup rehta hai par hai bahut tez aur is baat ka saboot thi uske kamre se mili vo bra. Kya Thakur Sahab khud? Haan kyun nahi. Ye jaaydad bada hone ke naate unhen milni chahiye thi par mili nahi. Kabhi nahi mili. Yahan se vahan hoti rahi par unke naam nahi hui. Aur phir Devdhar ko bhi to unhone munh kholne se mana kiya tha. Bilkul kar sakte hain vo aisa. Sarita Devi? Ye saari jaaydad achanak hi unke naam se hata di gayi thi.Haath aayi itni saari daulat nikal jaaye to kya beta aur kahan ka beta. Ho sakta hai unhone kiya ho aur Purushottam marne se pehle unhen hi to chhodne mandir gaye the. Kamini? Ladki thi par aisa karne ki himmat bilkul thi usmen. Uska kisi se pyaar tha aur ye baat thakur bardasht na karte. Par agar saari daulat uski ho jaati to koi kya kar sakta tha"
Kamini ke premi ke baare mein sochte hi Rupali ko dhyaan aaya ke vo ab janti hai ke uska premi kaun tha. Uska apna chhota Bhai Inder jisne usse hamesha ye raaz chhupakar rakha. Par kyun? Usko bhala kya aitraaz hota agar Inder Kamini se shaadi karna chahta. Rupali apne khyaalon mein itna khoyi hui thi ke kai baar accident hote hote bacha. Shaam ke kareeb 4 baje vo haweli vapis pahunchi aur haweli mein kadam rakhte hi chaunk padi. Bade kamre mein khada tha uska chhota bhai Inder. Thakur Indrasen Rana.
"Vo aaye hain mehfil mein chandni lekar, ke roshni mein nahane ki raat aayi hai" Rupali ko aata dekh Inder khada hua
"Kab aaya Inder?" Ek pal ke liye apne bhai ko dekhkar Rupali jaise sab kuchh bhool gayi
"Main to subah hi aa gaya tha Didi" Indra behen ke gale lag gaya "Pata chala ke aap subah se kahin gayi hui hain"
"Haan kuchh kaam tha" Ruapli bhai ke sar par haath pherte hue boli "Aa betha na"
"Thakur Sahab ke baare mein pata chala" Tej ne kaha "Bahut afsos hua. Main aate hue hospital hota hua aaya tha. Abhi bhi behosh hain"
"Haan janti hoon" Rupali saans chhodte hue boli
Indrasen Rana kareeb 30 saal ka ek bahut khoobsurat aadmi tha. Usko bhagwan ne aisa banaya tha ke ladkiyan dekhkar dil thaam len aur ladke jal jaaye. Lamba chauda kad, gora rang, Tandrust shareer aur jab bolta tha to lagta tha ke jaise phool jhad rahe hon. Rupali kaafi der tak Inder ke saath vahin bethi baat karti rahi aur pata hi nahi chala ke kab raat ke 9 baj gaye. Waqt ka ehsaas tab hua jab Tej haweli mein dakhil hua. Inder ko saamne betha dekh vo ek pal ke liye ruka aur phir haath aage karta Inder ki taraf badha.
"Kaise hain Thakur Indrasen?" Vo hamesha Inder ko uske poore naam se hi bulata tha
"Main theek hoon bade bhaiyya" Inder ne bhi aage badhkar haath aage milaya
"Aaj is taraf kaise aana hua?" Tej ne puchha to Inder ne muskura ke kandhe jhatkaye
"Aise hi aap logon ki yaad aayi to milne chala aaya"
Khane ki table par teeno saath the. Rupali ne dhyaan diya ke Payal ki nazar Tej par kuchh zyada hi thi. Vo uska khaas taur par dhyaan rakh rahi thi. Baar baar aakar usse puchhti ke kuchh chahiye to nahi. Inder ko dekh kar muskurati. Rupali bhi dil hi dil mein uski harkat dekh kar muskura uthi. Ye pehli baar nahi tha ke usne apne bhai ke aas paas ladkiyon ki pagal hote hue dekha tha. Uske bhai ke pichhe pagal hone wali ek to uski apni nanad hi thi.
Inder ko usne ground floor par hi kamre de diya. Jab vo aur Tej apne kamre mein chale gaye to vo Bindiya aur Payal ko kitchen saaf karne ka kehkar apne kamre mein pahunchi. Vo Tej se Kamini ke baare mein aur aak hui Devdhar se mulaqat ke baare mein baat karna chah rahi thi isliye ek nighty pehenkar Tej ke kamre mein pahunchi.
Tej ke kamre ka darwaza khula hua tha. Vo andar dakhil hui. Ek nazar kamer mein daudayi to Tej kahin nazar nahi aaya. Rupali ne use bulane ke liye aawaz deni chahi hi thi ke achanak uske per hawa mein uth gaye. Ek haath pichhe se uski kamar par hota hua sidha nighty ke uper se uski choot par aaya aur doosra uski ek chhati par aur use hawa mein thoda sa uper utha diya gaya. Apni kamar par use kisi ki chhati mehsoos hui aur neeche se ek lund uski gaand par aa daba.
"Aaj itni der kahan laga di thi?" Pichhe se Tej ki aawaz aayi
Ye sab ek pal mein hua. Rupali ko kuchh kehne ya karne ka mauka hi nahi mila. Aur uske agle hi pal Tej ko ehsaas hua ke usne Bindiya ko nahi balki Rupali ko pakad rakha hai. Uske haath Rupali ke jism se fauran hat gaye jaise Rupali mein achanak se current daud gaya ho. Vo jaldi se 2 kadam pichhe ko hua aur pareshan nazar se Rupali ko dekhne laga.
"Maaf kijiyega Bhabhi" Use samajh nahi aa raha tha ke kya kahe "Vo mujhe laga ke..... ke....."
Use samajh nahi aaya ke kaise Rupali se kahe ke vo ghar ki naukrani ko chod raha tha.
Dono ke liye vo situation itni ajeeb ho gayi ke Rupali chah kar bhi kuchh keh na saki. Vo Tej se kuchh baat karne aayi thi par us waqt usne kuchh na kehna behtar samjha aur chupchap kamre se nikal gayi.
fir milenge agale paart main tab tak ke liye vida
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj
No comments:
Post a Comment