हिंदी सेक्सी कहानिया
रेल यात्रा: --2
डिब्बे में चढ़ते ही आशीष ने उसको लपक लिया... वा पागलों की तरह उसके
मैइले कपड़ों के उपर से ही उसको चूमने लगा. रानी को कोई इंटेरेस्ट नही
था... वो तो बस अपने बापू के पास जाना चाहती थी...," अब जल्दी कर लो ना..
ये क्या कर रहे हो?
आशीष भी देरी के मूड में नही था.. उसने रानी के कमीज़ को उठाया और उसी
च्छेद से अपनी उंगली रानी के पिच्छवाड़े से उसकी चूत में डालने की कोशिश
करने लगा... जल्द ही उसको अपनी बेवकूफी का अहसास हुआ... वासना में अँधा
वा ये तो भूल ही गया था की अब तो वो दोनों अकेले हैं...
उसने रानी की सलवार का नडा खोलने की कोशिश की..
रानी बोली... "च्छेद में से ही डाल लो ना...!"
"ज़्यादा मत बोल... अब तूने अगर किसी भी बात को "ना" कहा तो मैं तभी भाग
जवँगा यहीं छ्चोड़ कर. समझी!" आशीष की धमकी काम कर गयी.... वो बिल्कुल
चुप हो गयी!
आशीष ने सलवार के साथ ही उसके कालू के रस में भीगे अंडरवेर को उतार कर
फैंक दिया... अंडर वेर नीचे गिर गया... डिब्बे से!
रानी बिल्कुल नंगी हो गयी... नीचे से!
आशीष ने उसको हाथ उपर करने को कहा और उसका कमीज़ और ब्रा भी उतार दी...
रानी रोने लगी..
"चुप करती है या जाऊ मैं!"
रानी फिर से चुप हो गयी!
आशीष ने बॅग में से ऑफ करके रखा हुआ मोबाइल निकाला और उसको ओं करके उसकी
लाइट ऑन कर दी...
आशीष ने देखा रानी डर से काँप सी रही है और उसके गाल गीले हो चुके थे
थ्होडी देर पहले रोने की वजह से...
आशीष ने परवाह ना की.... वो लाइट की बीम नीचे करता गया.. गर्दन से नीचे
लाइट पड़ते ही आशीष बेकाबू होना शुरू हो गया जो उसके घुटनो तक जाते जाते
पागलपन में बदल गया....
आशीष ने देखा रानी की चूचियाँ और उनके बीच की घाटी जबरदस्त सेक्सी लग रहे
थे... चूचियों के उपर निप्पल मानो भूरे रंग के मोटी चिपका रखे हो..
चुचियों पर हाथ फेरते हुए बहुत अधिक कोमलता का अहसास हुआ.. उसका पाते
उसकी च्चातियों को देखते हुए काफ़ी कमसिन था... उसने रानी को घुमा दिया..
गांद के कटाव को देखते ही उससे रहा ना गया और उन पर हल्के से काट खाया...
रानी सिसक कर उसकी तरफ मूड गयी... रोशनी उसकी चूत पर पड़ी... चूत बहुत
छ्होटी सी थी.. छ्होटी छ्होटी फाँक और एक पतली सी दरार.. आशीष को यकीन
नही हो रहा था की उसमें उसकी उंगली चली गयी थी... उसने फिर से करके
देखा... उंगली सुरर्र से अंदर चली गयी... चूत के हल्के हल्के बॉल
उत्तेजना से खड़े हो गये.. चूत की फांकों ने उंगली को अपने भीतर दबोच
लिया... उंगली पर उन्न फांको का कसाव आशीष सॉफ महसूस कर रहा था..
उसने रानी को निचले बर्त पर लिटा दिया. और दूसरी सिंगल सीट की तरफ ख्हींच
लिया... रानी की गांद हवा में थी... वो कुच्छ ना बोली..
आशीष ने अपनी पॅंट उतार फैंकी... और रानी की टाँगो को फैला कर एक दूसरी
से अलग किया... उसने नज़र मार कर देखा... चूत की फांके चौड़ी हो गयी थी..
आशीष का दिल तो चाहता था उसको जी भर कर चाते.. पर देर हो रही तही... और
आशीष का बॅग भी तो होटेल में ही था.. उसने लंड को अंडरवेर से बाहर
निकाला... वो तो पहले ही तैयार था... उसकी चूत की सुरंग की सफाई करके
चौड़ी करने के लिए...
आशीष ने चूत पर थूक़ थूक कर उसको नहला सी दिया... फिर अपने लंड की मंडी
को थूक से चिकना किया.. और चूत पर रखकर ज़ोर से दबा दिया... लंड की टोपी
चूत में जाकर बुरी तरह फँस गयी... रानी ने ज़ोर की चीख मारी... आशीष ने
डर कर बाहर निकालने की कोशिश करी पर रानी के चूतड़ साथ ही उठे रहे थे...
उसको निकालने में भी तकलीफ़ हो रही थी. उसका सारा श्रीर पसीने से भीग
गया... पर वो कुच्छ नही बोली.... उसको अपने बापू के पास जाना था...
आशीष का भी बुरा हाल था... उसने रानी को डराया ज़रूर था पर उसको लगता था
की रानी उसका लंड जाते ही सब कुच्छ भूल जाएगी... ऐसा सोचते हुए लंड नरम
पड़ गया और अपने आप बाहर निकल आया...
रानी की चूत तड़प सी उठी.. पर वो कुच्छ ना बोली... हां उसको मज़ा तो आया
था... पर लंड निकालने पर... पर उस्स वक़्त जैसे ही आशीष ने कहा की कपड़े
पहन लो... उसने झट से ब्रा और कमीज़ डाला और अपना अंडरवेर ढ़हूँढने
लगी.... उससे डर लग रहा था पूचहते हुए.... उसने पूचछा ही नही और ऐसे ही
सलवार डाल ली... जिसके नीचे से रास्ता था......
आशीष ने कहा जल्दी चलो! वो तेज़ी से जाने लगे!
रानी सोच रही थी की बापू के पास जाते ही इश्स हरम्जादे की सारी करतूत बताउन्गि...
पर जब वो होटेल पहुँचे तो झटका सा लगा... ना बापू मिला और ना ही कृष्णा!
आशीष ने होटेल वाले से पूचछा तो उसने बताया वो तो आपके जाने के पाँच
मिनिट बाद ही खाना खाए बगैर ही चले गये थे...
रानी ने कहा," अब क्या करेंगे?"
"करेंगे क्या उनको ढ़हूँढेंगे!" आशीष ने कहा...
आशीष को याद आया उसके सारे कपड़े बॅग में ही चले गये! अच्च्छा हुआ उसने
छ्होटे बॅग में अपना पर्स और मोबाइल रखकर अपने पास ही रख था...
वो स्टेशन तक देख कर आए... पर उन्हे बापू और बेटी में से कोई ना दिखाई दिया.
सुबह हो चुकी थी पर उन्न दोनों का कोई पता ना चला... तक हार कर उन्होने
चाय पी और मार्केट की तरफ चले गये..
एक गारमेंट शॉप पर पहुँच कर आशीष ने देखा... रानी एक मॉडल पर टगी ड्रेस
को गौर से देख रही है...
"क्या देख रही हो?"
"कुच्छ नही!"
"ड्रेस चाहिए क्या?"
रानी ने अपनी सलवार को देखा फिर बोली "नही..."
"चलो! और वो रानी को शॉप में ले गया....."
रानी जब दुकान से बाहर निकली तो शहर की मस्त लौंडिया लग रही थी... सेक्सी!
रानी अब बहुत खुश थी....
आशीष ने उसको फिर से डरा कर उसको होटेल में ले जाकर छोड़ने की सोची....
"रानी!"
"हुम्म!"
"अगर तुम्हारे बापू और कृष्णा ना मिले तो....!"
"मैं तो चाहती हूँ वो मार जायें...."
आशीष उसको देखता ही रह गया.... क्या एक ही ड्रेस में ये अपने बापू को ही
भूल गयी................
" ये क्या कह रही हो तुम?"
"रानी कुच्छ ना बोली... एक बार आशीष की और देखा और बोली ट्रेन कितने बजे की है...?
आशीष कुच्छ ना बोला... एक बार रानी को देखा और बोला... रानी तुम वो क्या
कह रही थी... अपने बापू के बारे में...
उधर वो बापू और कृष्णा कहीं कमरे में नंगे लेते हुए थे....
"अब क्या करें... बापू ने कृष्णा की चूची भीचते हुए कहा...
"करें क्या... चलो स्टेशन....." कृष्णा उसके लंड को खड़ा करने की कोशिश
कर रही थी... " बॅग में तो कुच्छ मिला नही...
" उसने पोलीस बुला ली होगी तो!" बापू बोला....
" अब जाना तो पड़ेगा ही.... रानी को तो लाना ही है...
उन्होने अपने कपड़े पहने और स्टेशन के लिए निकल गये!
उधर आशीष के चेहरे की हवाईया उड़ रही थी," ये क्या कह रही हो तुम?"
"सच कह रही हूं किसी को बताना नही ...
फिर तुम इनके पास कैसे आई......
"ये मुझे खरीद कर लाए हैं... देल्ही से!" रानी आशीष पर कुच्छ ज़्यादा ही
विस्वास कर बैठी थी.." 50000 में...."
"तो तुम देल्ही की हो!" आशीष को उसकी बातों पर विस्वास नही हो रहा था...
"नही...वेस्ट बेंगल की!" रानी ने उसकी जानकारी और बढ़ाई....
"वहाँ से देल्ही कैसे आई!?" आशीष की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी..
"राजकुमार भैया लाए थे!"
"घर वालों ने भेज दिया?"
"हां!" वा गाँव से और भी लड़कियाँ लाता है....
"क्या काम करवाता है"
"मुझे क्या पता.... कहा तो यही था... की कोठियो में काम करवाएँगे...
बर्तन सफाई वग़ैरह!"
"फिर घर वालों ने उस्स पर विस्वास कैसे कर लिया उस्स पर"
रानी: वा सभी लड़कियों के घर वालों को हज़ार रुपए महीने के भेजता है!
आशीष: पर उसने तो तुम्हे बेच दिया है... अब वो रुपए कब तक देगा...
रानी: वो हज़ार रुपए महीना... ये देंगे! मैने इनकी बात सुनी थी... 50000
के अलावा...
आशीष: तो तुम्हे सच में नही पता ये तुम्हारा क्या करेंगे....
रानी: नही....
"तुम्हारे साथ किसी ने कभी ऐसा वैसा किया है", आशीष ने पूचछा
रानी: कैसा वीसा?
आशीष को गुस्सा आ गया...तेरी चूत मारी है कभी किसी ने....
रानी: चूत कैसे मारते हैं...
आशीष: हे भगवान... जैसे मैने मारी थी रेल में...
रानी: हां!
आशीष: किसने?
रानी: तुमने और.... फिर गुस्से से बोली.... उस्स काले ने...
आशीष उसकी मासूमियत पर हंस पड़ा... ये चूत पर लंड रखने को ही चूत मारना
कह रही है...
आशीष: तू इनको बापू और भाभी क्यूँ कह रही थी...
रानी: इन्होने ही समझाया था....
आशीष: अच्च्छा ये बता... जैसे मैने तेरी चूत में लंड फँसाया था... अभी
स्टेशन के पास... समझी..
रानी: हां... मेरा अंडरवेर गुम हो गया... उसने खुली हुई टाँगो को भीच लिया.
आशीष : मैं क्या पूच्छ रहा हूँ पागल
रानी: क्या
आशीष: किसी ने ऐसे पूरा लंड दिया है कभी तेरी चूत में...
रानी: नही; तुम मुझे अंडरवेर और दिलवा देते... इसमें हवा लग रही है...
कहकर वो हँसने लगी.
आशीष: दिलवा दूँगा... पर पहले ये बता अगर तेरी चूत में मुंबई रोज 3-3 बार
लंड देगा तो तुझसे सहन हो जाएगा...
रानी: क्यूँ देगा कोई... फिर धीरे से बोली... चूत में लंड... और फिर हँसने लगी..
आशीष: अगर कोई देगा तो ले सकती हो...
रानी ने डर कर अपनी चूत को कस कर पकड़ लिया... "नही"
तभी वो बुद्धा और कृष्णा को उन दोनों ने देख लिया आते हुए...
रानी: उनको मत बताना कुच्छ भी... उन्होने कहा है किसी को भी बताया तो जान
से मार देंगे..!
बुड्ढे ने जब रानी को नये कपड़ों में देखा तो वो शक से आशीष की और देखने लगा...
रानी: बापू; मेरे कपड़े गंदे हो गये थे... इन्होने दिलवा दिए... इनके पास
बहुत पैसा है...
बापू: धन्यवाद बेटा... हम तो ग़रीब आदमी हैं....
कृष्णा इश्स तरह से आशीष को देखने लगी जैसे वो भी आशीष से ड्रेस खरीदना
चाहती हो...
आशीष: अब क्या करें... किसी होटेल में रेस्ट करें रात तक!
बुद्धा: देख लो बेटा; अगर पैसे हों तो...
आशीष: पैसे की चिंता मत करो ता उ जी... पैसा बहुत है...
बुद्धा इश्स तरह से आशीष को देखने लगा जैसे पूच्छना चाहता हो... कहाँ है पैसा....
और वो एक होटेल में चले गये.... उन्होने 2 कमरे रात तक के लिए ले लिए...
एक अकेले आशीष के लिए .... और दूसरी उस्स 'घर परिवार' के लिए.
थ्होडी ही देर में बुद्धा उन्न दोनों को समझा कर आशीष के पास आ गया...
बेटा मैं ज़रा इधर लेट लूँ... मुझे नींद आ रही है.. तुझे अगर गप्पे लड़ने
हों तो उधर चला जा... रानी तो तेरी बहुत तारीफ़ कर रही थी...
आशीष: वो तो ठीक है ता उ... पर आप रात को कहाँ निकल गये थे ?
बुद्धा: कहाँ निकल गये थे बेटा... वो... वो किसी ने हमें बताया की ऐसी
ऐसी लड़की तो शहर की और जा रही है... इससलिए हम उधर देखने चले गये थे..
आशीष उठा और दूसरे कमरे में चला गया.... योजना के मुताबिक... कृष्णा...
दरवाजा खुला छ्चोड़े नंगी ही शीशे के सामने खड़ी थी और कुच्छ पहने का
नाटक कर रही थी... आशीष के आते ही उसने एक दम चौकने का नाटक किया... वो
नंगी ही घुटनो के बाल बैठ गयी... जैसे अपने को ढकने का नाटक कर रही हो!
रानी बाथरूम में थी... उसको बाद में आना था अगर कृष्णा असर ना जमा पाए तो!
कृष्णा ने शरमाने की आक्टिंग शुरू कर दी..
आशीष: सॉरी भाभी!
कृष्णा: नही तुम्हारी क्या ग़लती है; मैं दरवाजा बंद करना भूल गयी थी...
कृष्णा को डर था वो कहीं वापस ना चला जाए... वो अपनी च्चातियों की झलक
आशीष को दिखाती रही... फिर आशीष को कहाँ जाना था... उसने छ्होटे कद की...
भाभी को बाहों में उठा लिया...
कृष्णा: कहीं बापू ना आ जायें...
आशीष ने उसकी बातों पर कोई ध्यान नही दिया... उसको बेड पर लिटा दिया... सीधा...
दरवाजा तो बंद कर दो...
आशीष ने दरवाजा बंद करते हुए पूचछा," रानी कहाँ है?"
कृष्णा: वो नहा रही है...
आशीष: वो बुद्धा तुम्हारा बाप है या ससुर...
कृष्णा: आ..आ..ससुर!
"कोई बचा भी होगा"
कृष्णा: ह..हाँ
आशीष: लगता तो नही है... छ्होटा ही होगा... उसने कृष्णा की पतली जांघों
पर हाथ फेरते हुए कहा!
कृषाना: हाँ! 1 साल का है..
आशीष ने उसकी छ्होटी पर शख्त च्चातियों को अपने मुँह में भरकर उनमें से
दूध पीने की कोशिश करने लगा... दूध तो नही निकला... क्यूंकी निकलना ही
नही था... अलबत्ता उसकी जोरदार चुसाई से उसकी चूत में से पानी ज़रूर
निकलने लगा..
आशीष ने एक हाथ नीचे ले जाकर उसकी चूत को ज़ोर से मसल दिया... कृष्णा ने
आनंद के मारे अपने चूतड़ हवा में उठा
लिए...
आशीष ने कृष्णा को गौर से देखा," उसकी आक्टिंग अब आक्टिंग नही, रिलिटी
में बदलती जा रही थी... कृषाना ने आशीष की कमर
पर अपने हाथ जमा दिए और नाख़ून गाड़ने लगी...
आशीष ने अपनी कमीज़ उतार फैंकी... फिर बनियान और फिर पॅंट... उसका लंड
अंडरवेर को फाड़ने ही वाला था... अच्च्छा किया जो शमशेर ने बाहर निकाल
लिया... उसने बाथरूम का दरवाजा खोला और नंगी रानी को भी उठा लाया... और
बेड पर लिटा दिया..
आशीष ने गौर से देखा... दोनों का टेस्ट बिल्कुल अलग था... एक साँवली..
दूसरी गोरी... एक थोड़ी लुंबी एक छ्होटी... एक की मांसल गुदज जांघें
दूसरी की पतली... एक की छ्होटी सी चूत... दूसरी की फूली हुई से, मोटी...
एक की चूचियाँ मांसल गोल दूसरी की पतली मगर सेक्सी.. चोंच वाली... आशीष
ने पतली टाँगों को उपर उठाया और मोड़ कर उसके कान के पास दबा दिया...
उसको डर होने
लगा .... शायद इश्स आसान की आदत नही होगी...
मोटी जांघों वाली को उसने पतली टाँगों वाली के मुँह के उपर बैठा दिया
पतली टाँगों वाली की च्चातियों के पास घुटने रखवा कर..
कृष्णा के पैर रानी के पैरों तले दबकर वही जाम हो गये... उसके चूतड़ उपर
उठे हुए थे.. चूत को पूरा खोले हुए.. रानी की मांसल जंघें कृष्णा के
चेहरे के दोनों तरफ थी... और रानी की चूत कृष्णा के मुँह के उपर...
आशीष एक पल को देखता रहा.. उसकी कलाकारी में कहाँ कमी रह गयी और फिर मोटी
फांको वाली चूत का जूस निकालने लगा..अपनी जीभ से... सीधा करेंट कृष्णा के
दिमाग़ तक गया... वो मचल उठी और रानी की छ्होटी सी चूत से बदला लेने
लगी... उसकी
जीभ कृष्णा की चूत में आग लगा रही थी और कृष्णा की जीभ रानी को
चोदन्योग्य बना रही थी...
रानी में तूफान सा आ गया और वो भी बदला लेने लगी; कृष्णा की चूचियों को
मसल मसल कर...
न्यूटन का थर्ड लॉ ग़लत साबित हो रहा था... एक आशीष की जीभ से इतनी
एनर्जी कहाँ से कॉनवर्ट हुई की कमरे में जैसे सब कुच्छ घूमने लगे..
अब आशीष ने कृष्णा की चूत को अपने लंड से खोदने लगा. खोदना इसीलिए कह रहा
हूं क्यूंकी वो खोद ही रहा था... उपर से नीचे... चूत का मुँह उपर जो
था... जितना अधिक मज़ा कृष्णा को आता गया उतना ही मज़ा वो रानी को देती
गयी; अपनी जीभ से चोद कर...
अब रानी आशीष के सिर को पकड़ कर अपने पास लाई और अपनी जीभ आशीष के मुँह
में दे दी....
आशीष कृष्णा को खोद रहा था... कृष्णा रानी को चोद रही थी..(जीभ से) और
रानी आशीष को चूस रही थी...! सबका
सबकुछ बिज़ी था... कुच्छ भी शांत नही था...
आशीष ने खोदते खोदते अपना खोदना उसकी चूत से निकाला और खड़ा होकर रानी के
मुँह में फँसा दिया... अब रानी के दो च्छेद बिज़ी थे...
ऐसे ही तीन चार बार निकाल चूसा कर आशीष ने कृष्णा की गांद के च्छेद पर
थुका और उसमें अपना लंड फँसाने लगा... 1...2...3....4... आशीष धक्के
मारता गया... लंड हर बार थोड़ा थोड़ा सरकता गया औराख़िर में आशीष के
गोलों ने
कृष्णा के चूतदों पर दस्तक दी... कुच्छ देर बर्दस्त करने के बाद अब
कृष्णा को भी दिक्कत नही हो रही थी... आशीष ने
रानी को कृष्णा की चूत पर झुका दिया... वो जीभ से उसकी चूत के आसपास
चाटने लगी... अब सबको मज़ा आ रहा था...
अचानक रानी की चूत ने रस छ्चोड़ दिया.. कृष्णा के मुँह पर.. ज़्यादातर
कृष्णा के मुँह में ही गया... और कृष्णा की चूत भी तार हो गयी...
अब रानी की बारी थी... वो तैयार भी थी दर्द सहन करने को... आशीष ने सबका
आसन चेंज करा दिया... अब कृष्णा की जगह रानी थी और रानी की जगह कृष्णा!
आशीष ने रानी की चूत पर गौर किया... वो सच में ही छ्होटी थी... उसके लंड
के लिए... पर एक ना एक दिन तो इसको बड़ा होना ही है... तो आज ही क्यूँ
नही!
आशीष ने पहले से ही गीली रानी की चूत पर थोड़ा थूक लगाया और उस्स पर अपना
लंड रखकर धीरे धीरे बैठने लगा... जैसे कृष्णा की गांद में बैठा था..
1...2...3...4.. और दर्द में बिलखती रानी ने कृष्णा की चूत को काट
खाया... कृष्णा
की चूत से काटने की वजह से ख़्हून बहने लगा और रानी की चूत से झिल्ली
फटने से खून बहने लगा... दोनों दर्द से दोहरी होती
गयी.....
झटके लगते रहे... फिर मज़ा आने लगा और जैसे ही रानी का मज़ा दोबारा पूरा
हुआ... आशीष ने उसकी चूत के रस को वापस ही भेज दिया.. अंदर.... अपने लंड
से पिचकारी मार कर... योनि रस की!
तीनों बेड पर अलग अलग बिखर गये... रानी भी औरत बन गयी...
ऐसा करके आशीष को एक बात तो कन्फर्म हो गयी... जब कृष्णा की चूचियों में
दूध नही है.... तो वो मा नही हो सकती एक साल के बच्चे की..
उधर बुढहे ने कमरे का एक एक कोना छान मारा.... पर उससे उन्न पैसों का कोई
सुराग नही मिला .... जिनके बारे में आशीष बार बार कह रहा था! की पैसे
बहुत हैं.... थक हार कर मन मसोस कर वो बिस्तेर पर लेट गया और आशीष के
बाहर आने का इंतज़ार करने लगा....
आशीष को याद आया उसको रिज़र्वेशन भी कराना है... तीन और टिकटो का....
वह बाहर निकल गया.... रलवे स्टेशन पर....
उसने तीन बजे की चार नयी सीट ही रिज़र्व करा ली... उसको उनके साथ वाली
सीट ही चाहिए थी...
उधर आशीष के जाते ही कृष्णा दूसरे कमरे में गयी...
"बापू! कुच्छ मिला?"
"कहाँ कृष्णा....! मैने तो हर जगह देख लिया...."
"कहीं उसके पर्स में ना हों"
रानी भी आ गयी...!
"तू पागल है क्या? भला पर्स में इतने रुपए होते हैं...." बुड्ढे ने कहा
"तो फिर चलें.... कृष्णा ने कहा..."वो तो बाहर गया है"
बुद्धा: क्या जल्दी है... रिज़र्वेशन में भी चलकर देख लेंगे.... उसने
कुच्छ किया तो नही.....
कृष्णा: किया नही...? ये देखो क्या बना दिया.... मेरी चूत और गांद का....
कृष्णा ने अपनी सलवार खोल कर दिखा दी... "चल रानी... तू भी दिखा दे!"
रानी ने कुच्छ नही दिखाया... वो चुपचाप सुनती रही...
कृष्णा: ओहो! वहाँ तो बड़ी खुश होकर चुद रही थी... तुझे भी बड़े लुंडों
का शौक है.......!
तीनो इक ठेही बैठे थे जब आशीष रिज़र्वेशन करा कर अंदर आया... आशीष को
देखते ही कृष्णा ने अपना पल्लू ठीक किया...
आशीष: ट्रेन 9:00 बजे की है... कुच्छ देर सो लो फिर खाना खाकर चलते हैं!
और आशीष के इशारा करते ही, वो तीनो वहाँ से उठ कर जाने लगे... तो आशीष ने
सबसे पीच्चे जा रही रानी का हाथ पकड़ कर खीच लिया...
रानी: मुझे जाने दो!
आशीष: दरवाजा बंद करते हुए....," क्यूँ जाने दू मेरी रानी?"
रानी: तुम फिर से मेरी चूत मरोगे!
आशीष: तो तुम्हारा दिल नही करता?
रानी: नही; चूत में दर्द हो रहा है... बहुत ज़्यादा... मुझे जाने दो ना...
आशीष ने उसको छ्चोड़ दिया; जाते हुए देखकर वो उसको बोला.. ," तुम इन
कपड़ों में बहुत सुंदर लग रही हो...
रानी हँसने लगी... और दरवाजा खोलकर चली गयी..
दूसरे कमरे में जाते ही बुड्ढे ने रानी को डांटा," तुमने उस्स लौंदे को
कुच्छ बताया तो नही?"
रानी डर गयी पर बोली," नही मैने तो कुच्छ नही बताया..."
कृष्णा: रानी; राजकुमार को तो तुमने हाथ भी नही लगाने दिया था... इससे
कैसे करवा लिया?
रानी कुच्छ ना बोली; वो कृष्णा की बराबर में जाकर लेट गयी...
बुड्ढे ने पूचछा," रानी! तुमने उसके पास पैसे वैसे देखे हैं...
रानी: हां! पैसे तो बहुत हैं... वो एक कमरे में गया था और वहाँ से पैसे
लाया था बहुत सारे!
बुद्धा: कमरे से? कौन से कमरे से?
रानी: उधर... मार्केट से
बुद्धा: साला ए टी एममें पैसे हैं इसके.. ऐसा करो कृष्णा! तुम इसको अपने
जाल में फाँस कर अपने गाँव में ले चलो... वहाँ इससे एटी एम भी छ्चीन
लेंगे और उसका वो नो. भी पूच्छ लेंगे जिसके भरने के बाद पैसे निकलते
हैं...
कृष्णा का उससे फिर से अपनी गांद चुदवाने का दिल कर रहा था... बड़ा मज़ा
आया था उसको... पैसों में तो उसको बुड्ढे ही ज़्यादा लेकर जाते थे," मैं
अभी जाउ..... फँसाने!"
बुद्धा: ज़्यादा जल्दी मत किया करो... अगर उसका मॅन तुमसे भर गया तो...
फिर नही चलेगा वो!
कृष्णा: तो फिर ये है ना... बड़ी मस्त होकर फेड्वा रही थी उससे..!
रानी: नही मैं नही करूँगी... मेरी तो दुख रही है अभी तक...
बुद्धा: तो अभी सो जाओ... रैल्गाड़ी में ही करना.. अब काम... उसके साथ ही
बैठ जाना... और तीनो लेट गये...
ठीक 9:00 बजे ट्रेन स्टेशन पर आई... जब आशीष ने उनको एक डिब्बा दिखाया तो
बुद्धा भाग कर उसमें चढ़ने की कोशिश करने लगा और उसके पीच्चे ही वो दोनो
भी भाग ली... उनको लगा जैसे पीच्चे रह गये तो सीट नही मिलेगी... तभी
बुद्धा खड़ा होकर हँसने लगा..," अरे रिज़र्ब्सेन में भी कोई भाग कर चढ़ता
है...यहाँ तो सीट मिलनी ही मिलनी है; चाहे सबसे बाद में चढ़ो!
आशीष हँसने लगा...
चारों ट्रेन में चढ़े... आशीष अपनी बर्त देखकर उपर जा बैठा... तो पीच्चे
पीच्चे ही वो भी उसी बर्त पर चढ़ गये...
आशीष: क्या हो गया ता उ? अपनी सीट पर जाओ ना नीचे!
ता उ: तो ये अपनी सीट नही है क्या?
आशीष उनकी बात समझ गया..," ता उ, सबकी अलग अलग सीट हैं... ये चारों सीट
अपनी ही हैं...
ता उ: अच्च्छा बेटा, मैं तो रिज़रबेशन में कभी बैठा ही नही हूँ... ग़लती हो गयी..
कहकर ता उ नीचे उतर गया... रानी भी... और कृष्णा सामने वाली बर्त पर उपर
जा बैठी. बुद्धा आशीष के ठीक नीचे था...! और रानी नीचे के सामने वेल बर्त
पर... उनको इश्स तरह करते हुए देख एक नकचाढ़ि लड़की बोली," कभी बैठे नही
हो क्या ट्रेन में?" कहकर वो हँसने लगी... बड़ी घमंडी सी मालूम होती थी
और बड़े घर की भी...
आशीष ने उस्स पर गौर किया... 22-23 साल की गोरी सी लड़की थी कोई... आशीष
को सिर्फ़ उसका चेहरा दिखाई दिया... वो लेटी हुई थी...
उसकी बात सुनकर कृष्णा तुनक कर लड़ाई के मूड में आ गयी," तुमको क्या है?
हम जहाँ चाहेंगे वहाँ बैठेंगे.. चारो सीट हमारी हैं... बड़ी आई है..
इश्स बात पर उस्स लड़की को भी गुस्सा आ गया," हे स्टुपिड विलेजर.. जस्ट
बे इन लिमिट... डोंट ट्राइ टू मेस व्ड मे..!
कृष्णा: अरे क्या बक बक कर रही है तू.. तेरी मा होगी स्टुपिड! कृष्णा को
बस स्टुपिड ही समझ में आया था और उसको पता था ये एक गाली होती है.
उस्स लड़की ने बात बिगड़ते देख आशीष को कहा," ए मिसटर! जस्ट शट उप यूअर
पेट्स... ओर इल....
आशीष: सॉरी मा'म; मैं...
"ई'आम नोट आ मा'म, यू नो! माइ नेम ईज़ मिस शीतल.."
आशीष: सॉरी मिस शीतल! माइ नेम ईज़ आशीष!
शीतल: आइ हॅव नोट एनी बिज़्नेस व्ड उर नेम ओर फेम.. जस्ट स्टॉप दा बास्टर्ड!
आशीष को लगा बड़ी तीखी है साली.. पर उसने कृष्णा को शांत कर दिया...
इतने में ही एक एक भाई साहब जो उसके बराबर वाली बर्त पर बैठे थे; उन्होने
सिर निकाल कर कहा... ," भैया! खुली हुई गधि के पीच्चे नही जाते... लात
मार देती है...
उस्स शीतल को उसकी कहावत समझ नही आई पर आशीष उसकी बात सुनकर ज़ोर ज़ोर से
हँसने लगा...
इससे शीतल की समझ आ गया की उसने उसी को गधि कहा है और वो उसी से उलझ
पड़ी...,"हाउ डेर योउ टू कॉल...
पर उस्स आदमी की हिम्मत गजब की थी...उसने शीतल को बीच में ही रोक कर अपनी
सुनानी शुरू कर दी," ए! डोंट थिंक मे लीके दिस ओर दट! फक्किंग दे गॅल्स
ईज़ माइ बिज़्नेस.. ओ.क. माइ नेम ईज़ संजय राजपूत. अरे गाँव वाले बेचारे
क्या इंसान नही होते... तुझे शर्म नही आई उन्न पर हंसते हुए... उ र ईवन
मोरे इल्लेत्रते दॅन दे आर... डर्टी बिच!"
शीतल उसकी खरी खरी सुनकर अंदर तक काँप गयी... आगे कुच्छ बोलने का साहस
उसमें नही था.. उसने अपनी आँखो पर हाथ रख लिया और सुबकने लगी..!
लड़कियों की यही अदा तो मार देती है...
"सॉरी!" राजपूत ने कहा..
वो और ज़ोर से रोने लगी...
ये सब नाटक देखकर आशीष इतना तो समझ गया था की लड़की अकेली है....
आशीष उस्स लड़की को देखने की खातिर राजपूत के पास जा पहुँचा," हेलो
फ्रेंड, मेरा नाम आशीष है... आपका नाम तो सुन ही चुका हूँ"
राजपूत ने पिच्चे हटकर जगह दी," यार ये लड़कियों के नखरे अजीब होते
हैं... अभी खुद बीच में कूदी थी.. और मैं बोला तो रोने लगी... कोई समझाओ
यार इसको...
मैने कहा सॉरी शीतल जी!" उसने कह कर शीतल का माथे पर रखा हुआ हाथ पकड़ लिया.
"आए! डोंट टच मे!" शीतल ने अपना हाथ झटक दिया.
राजपूत का पारा फिर से गरम हो गया," अब देख लो! पहले तो इसके कपड़े
देखो... कुच्छ भी च्छूप रहा है... फिर कहती हैं... रेप हो गया!"
राजपूत की इश्स बात पर आशीष ने मुश्किल से अपनी हँसी रोकी... आशीष ने
शीतल को देखा... उसने घुटनो से भी उपर का स्कर्ट डाला हुआ था.. जो उसके
सीधे लेट कर घुटने मोड़ने की वजह से और भी नीचे गिरा हुआ था... उसकी
मांसल जांघे सॉफ दिखाई दे रही थी.... राजपूत के ड्रेस पर कॉमेंट करने के
बाद उसने अपनी टाँगों को सीधा कर लिया था... पर उसके लो कट ब्लाउस में
उसकी मोटी मोटी चुचिया और उनके बीच की घाटी काफ़ी अंदर तक दिखाई दे रही
थी...अब भी... बस यूँ समझ लीजिए एक इंच की दूरी पर निप्पल भी तने खड़े
थे...
"छ्चोड़ो यार!" आशीष ने बात को टालने की कोशिश करते हुए कहा.
"अरे भाई! मैने इसका अभी तक पकड़ा ही क्या है...हाथ छ्चोड़ कर.. सोचा था
फीमेल साथ वाली सीट पर होने से रात अच्च्ची गुज़रेगी.. पर इसकी मा की
चूत, सारा मूड ही खराब हो गया..!
ऐसी गली सुनकर भी वा कुच्छ ना बोली... क्या पता अपनी ग़लती का अहसास हो गया हो..
"और सूनाओ दोस्त!" आशीष ने राजपूत से कहा!
"क्या सुनाउ यार? अपने को तो ऑफीस से टाइम ही नही मिलता... मुंबाई जा रहा
हूँ किसी काम से... टाइम तो नही था पर दीपक के बुलाने पर आना ही पड़ा...
कुच्छ देर रुककर बोला.. दीपक मेरे दोस्त का नाम है...
आशीष ने सोचा यूँ तो ये रात यूँ ही निकल जाएगी," अच्च्छा भाई राजपूत! गुड नाइट!"
"कहे की गडनाइट यार! इतना गरम माल साथ है.. नींद क्या खाक आएगी!" राजपूत
ने शीतल को सुना कर कहा..
आशीष वापस आ गया.. कृष्णा उसी का इंतज़ार कर रही थी.. बैठी हुई..
आशीष ने देखा बुद्धा लेटा हुआ था आँखे बंद किए! उसने कृष्णा को अपने पास
आने का इशारा किया.. वो तो जैसे इंतज़ार ही कर रही थी... उठ कर पास आकर
बैठ गयी... रानी भी सोने लगी थी... तब तक!
आशीष ने अपने बॅग से चादर निकाली और दोनो के पैरों पर डाल ली... कृष्णा
ने देर ना करते हुए.. अपना हाथ पॅंट की ज़िप पर पहुँचा दिया और ज़िप को
नीचे खीच लिया..
आशीष की पंत में हाथ डालकर अंडरवेर के उपर से ही उसको सहलाने लगी... आशीष
का ध्यान उसी लड़की पर था... उसके लंड ने अंगड़ाई ली और तैयार हो गया.
आशीष को अंडरवेर उसके आनद में बता लगने लगा.. वा उतहा और बातरूम जाकर
अंडरवेर निकाला और पंत की जेभ में रखकर वापस आ गया.
चैन पहले से ही खुली थी... कृष्णा ने पॅंट से हथियार निकल लिया.. और उस्स
खड़े लंड को उपर नीचे करने लगी...
तभी शीतल ने करवट बदल ली और कृष्णा को आशीष के साथ कंबल में बैठे देख कर
चौंक सी गयी... कृष्णा किसी भी हाल में आशीष की पत्नी तो लगती नही थी....
उसने आँखें बंद कर ली... पर आशीष और कृष्णा को कोई परवाह नही थी... जब
मियाँ बीवी राज़ी तो क्या करेगा काज़ी.. हन बार बार वो नीचे देखने का
नाटक ज़रूर कर रही थी... कहीं बापू जाग ना जाए...
आशीष ने अपना हाथ उसकी जांघों के बीच रखा और उसकी सलवार और पनटी के उपर
से ही करीब एक इंच उंगली उसकी चूत में घुसा दी... कृष्णा 'आ' कर बैठी.
शीतल ने आँखें खोल कर देखा और फिर से बंद कर ली...
कृष्णा ने अपनी सलवार का नडा खोलकर उसको नीचे सरका दिया... और आशीष का
हाथ पकड़ कर अपनी पनटी की साइड में से अंदर डाल दिया...
आशीष को शीतल का बार बार आँखें खोल कर देखना और बंद कर लेना... कुच्छ
पॉज़िटिव लग रहा था.. की बात बन सकती है...
उसने कृष्णा की चूत में हाथ डाल कर ज़ोर ज़ोर से अंदर बाहर करनी शुरू कर
दी... कृष्णा सिसकने लगी और उसकी सिसकियाँ बढ़ती गयी...
शीतल की बेचैनी बढ़ती गयी... उसके चेहरे पर रखे हाथ नीचे चले गये... शायद
उसकी चूत पर..
आशीष ने उसको थोड़ा और तड़पाने की सोची... उसने कृष्णा का सिर पकड़ा और
चादर के अंदर अपने लंड पर झुका दिया...
अब चादर के उपर से बार बार कृष्णा का सिर उपर नीचे हो रहा था.. शीतल की
हालत नाज़ुक होती जा रही थी...
शीतल के बारे में सोच सोच कर आशीष इतना गरम हो गया था की 5 मिनिट में ही
उसने कृष्णा का मुँह अपने लंड के रस से भर दिया... ऐसा करते हुए उसने
कृष्णा का सिर ज़ोर से नीचे दबाया हुआ था और 'आहें' भर रहा था...
शीतल आँखें खोल कर ये सीन देख रही थी.... पर आशीष ने जैसे ही उसकी और
देखा... उसने मुँह फेर लिया....
शीतल का खून गरम होता जा रहा था... आशीष ने उसके खून को उबलने की सोची...
वो नीचे उतरा और रानी को उठा दिया... रानी सच में सो चुकी थी...
रानी: क्या है?
आशीष: उपर आ जाओ!
रानी: नही प्ल्स... दर्द हो रहा है अभी भी...
आशीष: तुम उपर आओ तो सही; कुच्छ नही करूँगा...
और वो रानी को भी उपर उठा लाया और कृष्णा के दूसरी और बिठा लिया.... यहाँ
से शीतल को रानी कृष्णा से भी अधिक दिखाई दे सकती थी...
आशीष ने रानी से चादर ओड़ कर अपनी सलवार उतारने को कहा... रानी ने माना
किया पर बार बार कहने पर उसने सलवार निकाल दी... अब रानी नीचे से नंगी
थी..
शीतल ने पलट कर जब रानी को चादर में बैठे देखा तो उसका रहा सहा शक भी दूर
हो गया... पहले वा यही सोच रही थी की क्या पता कृष्णा उसकी बाहू ही हो!
उसने फिर से उनकी तरफ करवट ले ली... आशीष ने उस्स पर ध्यान ना देकर धीरे
धीरे चादर को रानी की टाँगों पर से उठाना शुरू कर दिया... रानी की टांगे
शीतल के सामने आती जा रही थी और वो अपना साँस भूलती जा रही थी...
जब शीतल ने रानी की चूत तक को भी नंगा आशीष के हाथो के पास देखा तो उसमें
तो जैसे तूफान ही उठ गया... उसने देखा आशीष उसके सामने ही रानी की चूत को
सहला रहा है... तो उसको लगा जैसे वो रानी की नही उसकी चूत को रुला रहा
है... अपने हाथों से...!
अब शीतल से ना रहा गया... उसने आशीष को रिझाने की सोची... उसने मुँह
दूसरी तरफ कर लिया और अपने पैर आशीष के सामने कर दिए... अंजान बन-ने की
आक्टिंग करते हुए उसने अपने घुटनो को मोड़ लिया... उसका स्कर्ट घुटनो पर
आ गया... धीरे धीरे उसका स्कर्ट नीचे जाता गया और उसकी लाल मस्त जांघें
नंगी होती गयी...
अब तड़पने की बारी आशीष की थी... उसके हाथ रानी की चूत पर तेज़ चलने
लगे... और उसकी आँखें जैसे शीतल के पास जाने लगी... उसकी जांघों में...
स्कर्ट पूरा नीचे हो गया था... फिर भी जाँघ बीच में होने की वजह से वो
उसकी चूत का साइज़ नही माप पा रहा था... उसने ताव में आकर रानी को ही
अपना शिकार बना लिया... वैसे शिकार कहना ग़लत होगा क्यूंकी रानी भी गरम
हो चुकी थी..
आशीष ने रानी को नीचे लिटाया और उसकी टांगे उठा कर अपना लंड उसकी चूत में
घुसा दिया... रानी ने आशीष को ज़ोर से पकड़ लिया... तभी अचानक ही बाथरूम
जाने के लिए एक औरत वहाँ से गुजरने लगी तो रेल में ये सब होते देखकर वापस
ही भाग गयी; हे राम कहती हुई...
उधर कोई और भी था जो शीतल और आशीष के बीच एक दूसरे को जलाने की इश्स जंग
का फ़ायदा उठा रहा था.....वो था. राजपूत!
तो दोस्तो कहानी अभी बाकी है मिलेंगे रेल यात्रा पार्ट --3 मैं तब तक के
लिए अलविदा आपका दोस्त राज शर्मा
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