राज शर्मा की कामुक कहानिया
सेक्सी हवेली का सच --21
अपने कमरे में पहुँच कर वो बिस्तर पर गिर पड़ी. ये दूसरी बार था के तेज ने उसे इस तरह से पकड़ा था. एक बार नशे में और दूसरी बार अंजाने में. उस्नी रूपाली की छाती को पकड़कर इतनी ज़ोर से दबाया था के रूपाली को अब तक दर्द हो रहा था. उसने अपनी छाती को सहलाया और तभी उसे तेज का वो चेहरा याद आया जब वो उसे खड़ा देख रहा था. और फिर जिस तरह से वो ये नही कह पाया था के उसने बिंदिया का सोचकर रूपाली को पकड़ा था वो सोचकर रूपाली की हल्की सी हसी छूट पड़ी. उसे क्या पता था के बिंदिया उससे चुदवा सिर्फ़ इसलिए रही है क्यूंकी रूपाली ने ऐसा कहा था.
आज की रात भी कोई अलग रात ना थी. आज की रात भी रूपाली बिस्तर पर पड़ी अपने जिस्म की आग में जल रही थी. उसे समझ नही आ रहा था के क्या करे. उसका जिस्म वासना से तप रहा था जैसे बुखार हो गया हो. थोड़ी देर के लिए उसने अपने हाथ का सहारा लेना चाहा पर बात बनी नही. उसका गला सूखने लगा था. उसने उठकर अपने कमरे में रखे जग की तरफ देखा पर उसमें पानी नही था. बिस्तर से उठकर उसने अपने कपड़े ठीक किए और नीचे उतरकर किचन की तरफ बढ़ी.
किचन में खड़ी वो पानी पी ही रही थी के उसे किसी के कदमो की आवाज़ सुनाई दी. रात का सन्नाटा हर तरफ फेल चुका था और उस खामोशी में किसी के चलने की आवाज़ सॉफ सुनाई दे रही थी. कोई सीढ़ियाँ चढ़ रहा था. रूपाली को हैरत हुई के इस वक़्त कौन हो सकता है. उसने किचन से बाहर निकालकर देखा तो इंदर सीढ़ियाँ चढ़कर कामिनी के कमरे की तरफ जा रहा था. उसके चलने का अंदाज़ ही चोरों जैसा था जैस वो घर में चुपके से चोरी करने के लिए घुसा हो. कामिनी के कमरे तक पहुँचकर उसने इधर उधर देखा और फिर धीरे से दरवाज़ा खोलने की कोशिश की. दरवाज़ा लॉक्ड था. रूपाली को सबसे ज़्यादा हैरत उस वक़्त हुई जब इंदर ने अपनी जेब से एक चाभी निकाली और कामिनी के कमरे का दरवाज़ा खोलकर अंदर दाखिल हो गया.
रूपाली एक पल के लिए वही खड़ी रही. वो इंदर से अभी कामिनी के बारे में बात नही करना चाहती थी. उसका ख्याल था के सही वक़्त देखकर इंदर के सामने ये बात उठाएगी पर इंदर को कामिनी के कमरे में यूँ घुसता देख रूपाली से रहा नही गया.
वो हल्के कदमों से सीढ़ियाँ चढ़कर पहले अपने कमरे में पहुँची. उसने अलमारी से कामिनी की डाइयरी निकाली और फिर कामिनी के कमरे के सामने आई इंदर ने अपने पीछे कामिनी का कमरा बंद अंदर से कर लिया था पर रूपाली के पास हवेली के हर कमरे की चाबी थी. उसने अपनी चाबी से रूम का लॉक खोला, हॅंडल घुमाया और एक झटके में पूरा दरवाज़ा खोल दिया.
सामने इनडर कामिनी की अलमारी के सामने खड़ा उसके कपड़ो में कुच्छ ढूँढ रहा था. दरवाज़ा यूँ खोल दिए जाने से वो पलटा और सामने रूपाली को देखकर उसके पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गयी. चेहरा यूँ सफेद हो गया जैसे काटो तो खून नही. हाथ में पकड़े कामिनी के कुच्छ कपड़े उसके हाथ से छूट कर ज़मीन पर गिर पड़े.
"क्या ढूँढ रहे हो इंदर?" कामिनी ने पुचछा
इंदर से जवाब देते ना बना
"क्या ढूँढ रहे थे?" रूपाली ने अपने पिछे दरवाज़ा बंद कर लिया और थोड़ी ऊँची आवाज़ में पुचछा
"जी दीदी ... वो .... मैं..... "इंदर की ज़ुबान लड़खड़ा गयी
रूपाली ने अपने हाथ में पकड़ी कामिनी की डाइयरी आगे की
"ये तो नही ढूँढ रहे थे?"
रूपाली के हाथ में डाइयरी देखकर इंदर समझ गया के उसका राज़ खुल चुका है. वो नज़रें नीची करके ज़मीन की और देखने लगा
"काब्से चल रहा था ये सब?" रूपाली ने वहीं खड़े खड़े पुचछा
जब इंदर ने जवाब ना दिया तो उसने अपना सवाल फिर दोहराया.
"जी आपकी शादी होने से तकरीबन एक साल पहले से....." इंदर को इस बार जवाब देना पड़ा.
इस बार हैरान होने की बारी रूपाली की थी
"तुम मेरी शादी होने से पहले से कामिनी को जानते थे?"
थोड़ी देर बाद वो दोनो रूपाली के कमरे में बैठे थे. रूपाली को लगा के यूँ कामिनी के कमरे में खड़े होकर बात करना ठीक नही होगा. कोई भी जाग सकता है. वो इंदर को अपने आठ अपने कमरे में ले आई.
"मुझे सब कुच्छ मालूम करना है, सब कुच्छ " रूपाली ने पहले कामिनी की डाइयरी बिस्तर पर इंदर के सामने फेंकी और फिर वो काग़ज़ जिसपर इंदर ने एक शेर लिखा था "और तुम शायरी काब्से करने लगे? और वो भी इतनी अच्छी उर्दू में?"
"मेरी नही हैं" इंदर सर झुकाए बोला " कामिनी को शायरी बहुत पसंद थी इसलिए मैं कहीं से पढ़कर उसे ये सब भेजता था. आप जानती हैं शायरी करना मेरे बस की बात नही"
"कैसे शुरू हुआ ये सब?" रूपाली अपने भाई के सामने बैठते हुए बोली
"मेरे एक दोस्त की शादी में मिली थी मुझे कामिनी. वो लड़की वालों की तरफ से आई थी. वहाँ हमारी जान पहचान हो गयी. घर आकर हम अक्सर फोन पर बात किया करते थे और ये कब ये दोस्ती प्यार में बदली मुझे पता ही नही चला" इनडर किसी तोते की तरह कहानी सुना रहा था.
"इरादा क्या था?" रूपाली का गुस्सा अब थोड़ा ठंडा हो चला था
"शादी करना चाहता था मैं उससे." रूपाली को इंदर की ये बात सुनकर बड़ा अजीब लगा. इंदर शकल सूरत से ऐसा था के वो जिस लड़की की तरफ देख लेता वो लड़की उसे अपनी खुश नसीबी समझती जबकि कामिनी एक बेहद मामूली सी शकल सूरत वाली लड़की थी.
"फिर इसे किस्मत कहिए या कुच्छ और के आपकी शादी भी कामिनी के घर में ही हुई. उस वक़्त हम लोग बहुत खुश थे. कामिनी खुद बहुत खुश थी. मैने कई बार चाहा के वो आपसे बात करे और हमारे बारे में बताए पर वो हमेशा आपके सामने इस बारे में बात करने से शरमाती थी. कहती थी के भाभी पता नही क्या सोचेंगी." इंदर ने आगे कहा
उसकी ये बात सुनकर रूपाली को जैसे अपने एक सवाल का जवाब मिल गया. तो ये वजह थी के कामिनी उसके सामने आने से कतरा जाती थी. उस वक़्त रूपाली बहुत ज़्यादा पूजा पाठ में रहा करती थी तो कामिनी का ये सोचना के कहीं वो उसके और अपने भाई के रिश्ते के खिलाफ ना हो जाए जायज़ था. उसकी जगह कोई भी लड़की होती तो डरती. ख़ास तौर से जब बाप और भाई ठाकुर शौर्या सिंग और तेज जैसे हों.
"हम लोग शहेर में ही मिला करते थे. वो अपने ड्राइवर और बॉडीगार्ड को हवेली में ही छ्चोड़कर मुझसे मिलने शहेर आ जाया करती थी." इंदर अब बिना पुच्छे ही सब बता रहा था
उसकी इस बात ने रूपाली के दूसरे सवाल का जवाब दे दिया.तो वो इंदर ही था जिससे मिलने कामिनी जाया करती थी, अकेले. तभी उसे बिंदिया की कही वो बात याद आई जब उसके मर्द ने खेतों में बने ट्यूबिवेल वेल कमरे में कामिनी को चुड़वाते हुए देखा था.
"जब शहेर में मिलते थे तो यहाँ खेतों में मिलने की क्या ज़रूरत थी? डर नही लगा तुम दोनो को?" रूपाली ने पुचछा
"खेतों में?" इंदर ने हैरानी से पुचछा "आप मज़ाक कर रही हैं? यहाँ मिलना तो खुद मौत को दावत देने जैसा था"
"क्या?" रूपाली कुच्छ ऐसे बोली के उसकी हैरानी उसकी आवाज़ में छलक उठी "तुम उसे ट्यूबिवेल वाले कमरे में नही मिलते थे?"
"ट्यूबिवेल?" इंदर ने पुचछा "कौन सा ट्यूबिवेल?"
रूपाली समझ गयी के उसे इस बारे में कुच्छ पता नही था और वो उसकी आँखें देखकर बता सकती थी के वो सच बोल रहा है
"नही कुच्छ नही" रूपाली बात टालने के अंदाज़ में बोली "वो उसकी डाइयरी पढ़कर मुझे लगा के तुम लोग यहीं खेतों में मिला करते थे"
"नही यहाँ कहीं आस पास तो वो खुद ही नही मिलना चाहती थी. मैने उसे कई बार कहा के हम घर पर बात कर लेते हैं पर वो जाने क्यूँ हर बार मना कर देती थी. और फिर वो धीरे धीरे बदलने लगी. मुझसे उसकी बात भी काफ़ी कम हो गयी. मैने कई बार उससे पुच्छने की कोशिश की पर उसने हर बार टाल दिया. और फिर एक दिन उसका फोन आया के वो मुझसे शादी नही करना चाहती क्यूंकी वो मेरे लायक नही है. ये कहकर उसने फोन रख दिया"
"कबकि बात है ये?" रूपाली ने पुचछा
"ठीक उसी दिन जब जीजाजी का खून हुआ था. उसका फोन रखने के थोड़ी देर बाद ही हमें हवेली के नौकर का फोन आया था और उसने मुझे बताया के बड़े भाई साहब का खून हो गया था." इंदर ने कहा
रूपाली की धड़कन तेज़ होने लगी पर उसने अपने चेहरे पर कुच्छ ज़ाहिर ना होने दिया
"फिर कभी बात नही हुई?" उसने इंदर से पुचछा
"मैने कई बार उसे फोन करने की कोशिश की पर वो हर बार मेरी आवाज़ सुनकर फोन काट देती थी. और फिर एक दिन मुझे पता चला के वो विदेश चली गयी और बस हमारी कहानी ख़तम हो गयी" इंदर सर झुकाए बोला
कमरे में थोड़ी देर खामोशी रही
"तो तुम अब उसके कमरे में क्या ढूँढ रहे थे?" रूपाली ने खड़े होते हुए पुचछा
"ये" इंदर ने उस काग़ज़ की तरफ इशारा किया जो रूपाली को कामिनी की डाइयरी से मिला था "और ऐसे कई और पेपर्स. मुझे डर था के अगर ये आप के हाथ कभी लग गया तो आप मेरी हॅंडराइटिंग पहचान जाएँगी.
अगले दिन सुबह रूपाली रूपाली इंदर के साथ हॉस्पिटल पहुँची. डॉक्टर ने बताया के ठाकुर की हालत में अब भी कोई सुधार नही आया था. भूषण अब भी ठाकुर के साथ हॉस्पिटल में ही था.थोड़ी देर वहीं रुक कर रूपाली हवेली वापिस आ गयी. सुबह के 10 बस चुके थे. तेज रूपाली को बड़े कमरे में बैठा मिला.
"तेज हमें आपसे कुच्छ बात करनी है. आप हमारे कमरे में आ जाइए" रूपाली ने तेज से कहा और उसके जवाब का इंतेज़ार किए बिना ही अपने कमरे में चली आई
थोड़ी देर बाद ही तेज रूपाली के कमरे में दाखिल हुआ
"दरवाज़ा बंद कर दीजिए" रूपाली ने तेज से कहा
दरवाज़ा बंद कर देते ही तेज ने अपने दोनो हाथ जोड़ दिए
"हमें माफ़ कर दीजिए भाभी. बहुत बड़ा पाप हो गया हमसे कल रात. पर वो सब अंजाने में हुआ"
रूपाली ने इशारे से तेज को बैठने को कहा.
"कोई बात नही. हमने उस बारे में बात करने के लिए नही बुलाया है आपको. हमें कुच्छ और ज़रूरी बात करनी है" कहते हुए रूपाली अपनी टेबल तक गयी और ड्रॉयर से पुरुषोत्तम सिंग की वसीयत निकाली
तेज हैरानी से उसकी और देख रहा था. उसे उम्मीद थी के रूपाली उससे कल रात के बारे में सवाल जवाब करेगी पर वो तो उस बारे में कोई बात ही नही करना चाह रही थी. जैसे कुच्छ हुआ ही ना हो
"आपने कामिनी से आखरी बार बात कब की थी?" रूपाली तेज की और देखते हुए बोली
"उसके विदेश जाने से पहले" तेज ने सोचते हुए कहा
रूपाली समझ गयी के तेज को कामिनी के बारे में कोई जानकारी नही है
"और कुलदीप से?" रूपाली ने पुचछा तो तेज सोच में पड़ गया
"शायद जब वो आखरी बार हवेली आया था तब."
"फोन पर बात नही हुई आपकी कभी?" रूपाली ने पुचछा तो तेज ने इनकार में सर हिला दिया. रूपाली को इसी जवाब की उम्मीद थी. तेज को अययाशी से टाइम मिलता तो अपने भाई और बहेन के बारे में सोचता
"ये कामिनी का पासपोर्ट है" रूपाली ने अपने हाथ में पकड़ा पासपोर्ट तेज को थमा दिया "अगर ये यहाँ है तो कामिनी विदेश में कैसी हो सकती है?"
तेज हैरानी से पासपोर्ट की तरफ देखने लगा
"मतलब? तो कहाँ है कामिनी?" उसने रूपाली से पुचछा
"हमें लगा के आपको पता होगा" रूपाली ने जवाब दिया
"ये कहाँ मिला आपको?" तेज ने फिर सवाल किया
"वो ज़रूरी नही है" रूपाली ने उसे बेसमेंट में रखे बॉक्स के बारे में बताना ज़रूरी नही समझा "ज़रूरी ये है के ये यहाँ हवेली में मिला, जबकि हिन्दुस्तान में ही नही मिलना चाहिए था"
तेज खामोशी से बैठा अपनी सोच में खोया हुआ था
"एक बात और है" रूपाली ने कहा और पुरुषोत्तम की वसीयत तेज के हाथ में थमा दी और चुप रही. तेज खुद ही वसीयत खोलकर पढ़ने लगा.जैसे जैसे वो पेजस पलट रहा था, वैसे वैसे उसके चेहरे के भाव भी बदल रहे थे. जब वो पूरी वसीयत पढ़ चुका तो वो थोड़ी देर तक ज़मीन की तरफ देखता रहा और फिर नज़र उठाकर रूपाली की तरफ देखा
"कुच्छ ग़लत मत सोचना तेज" इससे पहले के वो कुच्छ कहता रूपाल खुद बोल उठी "मैं ऐसा कुच्छ नही चाहती. मैं ये वसीयत खुद बदलने वाली हूँ"
तेज अब भी खामोशी से उसे देखता रहा
"मुझे ये दौलत नही चाहिए तेज. मैं सिर्फ़ अपने घर को, इस हवेली को एक घर की तरह देखना चाहती हूँ. तुम चाहो तो मैं अभी फोन करके वकील को बुला लेती हूँ. ये दौलत सारी मुझे मिल जाए, मैं नही चाहती के ऐसा हो"
"ऐसा मैं होने भी नही दूँगा" तेज ने कहा और इससे पहले के रूपाली कुच्छ कह पाती वो उठकर कमरे से बाहर चला गया
रूपाली जो करना चाहती थी वो हो गया. उसे देखना था के क्या तेज को दौलत को भूख है और वो उसने देख लिया था. अगर तेज खामोशी से बैठा रहता तो इस बात का सवाल ही नही होता था के इस दौलत के लिए उसने अपने भाई को मारा हो पर यहाँ तो उल्टा ही हुआ. रूपाली ने उसे अभी बताया था के उसकी बहेन 10 साल से गायब है और उसकी फिकर करने के बजाय वो हाथ से निकलती दौलत के पिछे चिल्लाता हुआ कमरे से चला गया था. जिसको अपनी बहेन की कोई फिकर नही, वो दौलत के लिए अपने भाई का खून क्यूँ नही कर सकता. बिल्कुल कर सकता है.
थोड़ी देर बाद रूपाली भी नीचे बड़े कमरे में आई. तेज का कहीं आता पता नही था. रूपाली ने खिड़की से बाहर देखा तो उसकी कार भी बाहर नही थी.
सामने रखे फोन को उठाकर रूपाली देवधर का नंबर मिलाने लगी.
"कहिए रूपाली जी" दूसरी तरफ से देवधर की आवाज़ आई
"मैं चाहती हूँ के कल आप हवेली आएँ" रूपाली ने देवधर से कहा. देवधर ने हां कर दी तो उसने फोन रख दिया और इंदर के कमरे में आई
इंदर अपने कमरे में नही था. रूपाली किचन में पहुँची तो वहाँ बिंदिया दोपहर का खाना बनाने में लगी हुई थी. चंदर उसके साथ खड़ा उसकी मदद कर रहा था
"इंदर को देखा कहीं?" रूपाली ने बिंदिया से पुचछा
"अभी थोड़ी देर पहले तो बड़े कमरे में ही थे" बिंदिया ने कहा
रूपाली ने हवेली के बाहर कॉंपाउंड में आकर देखा तो इंदर की कार वहीं खड़ी हुई थी. वो कॉंपाउंड में इधर उधर देखने लगी पर इंदर नज़र नही आया. उसे ढूँढती हुई वो हवेली के पीछे की तरफ आई तो देखा के बेसमेंट का दरवाज़ा खुला हुआ था
"ये किसने खुला छ्चोड़ दिया?" सोचते हुए रूपाली दरवाज़े के पास पहुँची. उसने दरवाज़ा बंद करने की सोची ही थी के बेसमेंट के अंदर से एक आवाज़ सुनाई दी. गौर से सुना तो वो आवाज़ पायल की थी.
"ये यहाँ क्या कर रही है?" सोचते हुए रूपाली ने पहली सीधी पर कदम रखा ही था के उसके कदम फिर से रुक गये
"आआअहह क्यार कर रहे हैं आप" ये आवाज़ पायल की थी
रूपाली ने अपने कदम धीरे धीरे सीढ़ियों पर रखे और किसी चोर की तरह उतरती हुई नीचे पहुचि. सीढ़ियों पर खड़े खड़े ही उसने धीरे से गर्दन घूमकर बेसमेंट में झाँका तो उसके पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गयी.
पायल एक टेबल पर बैठी हुई थी. ये वही टेबल थी जिसपर झुका कर चंदर ने उसे चोदा था. वो टेबल के किनारे पर बैठी हुई थी और हाथों के सहारे से पिछे को झुकी हुई थी. उसकी सलवार उतरी हुई एक तरफ पड़ी थी और दोनो टांगे सामने नीचे ज़मीन पर बैठे इंदर के कंधो पर थी. इंदर ने उसकी दोनो टाँगो को पूरी तरह फेला रखा था और बीच में बैठा पायल की चूत चाट रहा था.
"आआआह्ह्ह्ह्ह मालिक" पायल कराह रही थी.
रूपाली फ़ौरन फिर से दीवार की ओट में हो गयी. उसे यकीन नही हो रहा था. वो हमेशा अपने भाई को बहुत सीधा सा समझती थी और यही वजह थी के कामिनी के साथ उसके रिश्ते के बारे में सुनकर वो चौंक पड़ी थी. और यहाँ उसका भाई घर की नौकरानी की चूत चाट रहा था, वो भी उस नौकरानी की जिससे वो कल ही मिला था.
एक पल के लिए रूपाली ने सोचा के वहाँ से चली जाए पर फिर जाने क्या सोचकर वो फिर दीवार की आड़ में खड़ी इंदर और पायल को देखने लगी.
इंदर अब उठ खड़ा हुआ था और पायल की होंठ चूम रहा था. वो पायल की टाँगो के बीच खड़ा था और पायल ने अपनी टांगे उसकी कमर के दोनो तरफ लपेट रखी थी और हाथों से वो इंदर के सर को सहला रही थी. इंदर ने थोड़ी देर उसके होंठ चूमने के बाद उसकी चूचियों को कमीज़ के उपेर से ही चूमना शुरू कर दिया और उसकी नंगी जाँघो पर हाथ फेरने लगा. पायल वासना से अपने सर को ज़ोर ज़ोर से इधर उधर झटक रही थी.
"जल्दी कीजिए मालिक. कोई आ जाएगा" पायल ने आँखें बंद किए हुए ही कहा
उसकी बात सुनकर इंदर ने दोबारा उसके होंठ चूमने शुरू कर दिए और अपनी पेंट की ज़िप खोलने लगा. थोड़ी ही देर में उसकी पेंट सरक कर नीचे जा पड़ी और रूपाली फ़ौरन फिर से दीवार के पिछे हो गयी. वो अपनी ही छ्होटे भाई को नंगा नही देखना चाहती थी. एक पल के लिए उसने कदम उठाए के बेसमेंट से बाहर चली जाए पर तब तक खुद उसके जिस्म में आग लग चुकी थी. उसका एक हाथ कब उसकी चूत पर पहुँच गया था उसे पता भी नही चला था. उसने एक पल के लिए सोचा और फिर से इंदर और पायल को देखने लगी.
इंदर अपना कार्य करम शुरू कर चुका था. उसका लंड पायल की चूत में अंदर बाहर हो रहा था. अब पायल टेबल पर सीधी लेट गयी थी. उसकी गांद टेबल के बिल्कुल कोने पर थी और टांगे इंदर के कंधो पर जो उसकी टाँगो के बीचे खड़ा अपना लंड अंदर बाहर कर रहा था. पायल की कमीज़ उसने खींच कर उपेर कर दी थी और दोनो चूचियों को ऐसा मसल रहा था जैसे आता गूँध रहा हो.
"पहले भी करवा चुकी हो क्या?" उसने पायल से पुचछा
"नही" पायल ने सर हिलाते हुए जवाब दिया
"फिर तुम्हें ..... "इंदर ने कुच्छ कहना चाहा और फिर बात अधूरी छ्चोड़कर पायल की चूत पर धक्के मारने लगा
सीढ़ियों पर खड़ी रूपाली का हाथ उसकी चूत के साथ जुंग लड़ रहा था. उसे यकीन नही हो रहा था के वो च्छुपकर अपने भाई को किसी लड़की को चोद्ते हुए देख रही है और बजे वहाँ से जाने के खुद भी गरम हो रही थी.
इंदर के धक्के अब काफ़ी तेज़ हो चुके थे.
"और ज़ोर से मलिक" पायल अपनी आह आह के बीच बोल रही थी.
रूपाली को हैरत हुई के कहाँ तक कल की सीधी सी शर्मीली और कहाँ आज खुद ज़ोर से ज़ोर से का नारा लगा रही थी. उसकी खुद की हालत अब तक खराब हो चुकी थी और वो जानती थी के फिलहाल उसके पास चूत की आग भुझाने का कोई तरीका नही था. और जिस तरह से इंदर धक्के मार रहा था, रूपाली समझ गयी के अब काम ख़तम होने वाला है. उसने अपना हाथ चूत से हटाया, अपने कपड़े ठीक किए और धीरे से सीढ़ियाँ चढ़ती बेसमेंट से बाहर निकल गयी.
थोड़ी देर बाद इंदर और रूपाली दोनो बड़े कमरे में बैठे टीवी देख रहे थे. जबसे इंदर बेसमेंट में पायल को चोद्कर आया था तबसे उसके और रूपाली के बीच कोई बात नही हुई थी. रूपाली बैठी टीवी देख रही थी और इंदर उसके पास ही आके खामोशी से बैठ गया था.
रूपाली को समझ नही आ रहा था के अपने भाई के बारे में क्या सोचे. वो भाई जिसे वो दुनिया का सबसे सीधा इंसान समझती रही. जिसके सिर्फ़ 2 शौक हुआ करते थे, शिकार करना और अपना बिज़्नेस संभालना. पिच्छले कुच्छ वक़्त में वो कितना बदल गया था. उसके शौक में कब शायरी और लड़कियाँ जुड़ गयी रूपाली को पता ही ना चला. पर पता चल भी कैसे सकता था. इंदर से पिच्छले 10 साल में मुश्किल से उसने 10 बार बात की होगी और अब पता नही कितने वक़्त के बाद मिली है.
"कामिनी के साथ तेरा रिश्ता कहाँ तक पहुँचा था?" आख़िर में उसने खामोशी तोड़ी और इंदर से पुचछा
"मतलब?" इंदर ने उसकी तरफ नज़र घुमाई
तभी पायल के ग्लास में पानी लेकर कमरे में आई तो रूपाली खामोश हो गयी. रूपाली को पानी थमाते हुए पायल ने एक नज़र इंदर को देखा और मुस्कुरा कर वापिस चली गयी.
"मतलब के तुम लोग कितने करीब थे" रूपाली ने पानी पीते हुए कहा "मेरा मतलब ....."
वो थोड़ी अटकी और फिर अपनी बात कह ही दी
"मेरा मतलब जिस्मानी तौर पर"
इंदर इस बात के लिए तैय्यार नही था. वो चौंक पड़ा
"ये कैसा सवाल है?"
"सवाल जैसा भी है" रूपाली ने सीधा उसकी आँखों में देखते हुए कहा "जवाब क्या है?"
"मैं जवाब देना ज़रूरी नही समझता" इंदर ने गुस्से में कहा और उठकर कमरे से बाहर जाने लगा
"मालकिन" बिंदिया की आवाज़ पर रूपाली ने उसकी तरफ़ नज़र उठाकर देखा
"बाहर पोलीस आई है. वही खाड़ुस इनस्पेक्टर जो हमेशा आता है"
बिंदिया ने कहा तो इंदर के कदम भी रुक गये. उसने पलटकर रूपाली की तरफ देखा
"अंदर ले आओ" रूपाली ने बिंदिया से कहा
थोड़ी देर बाद कमरे में इनस्पेक्टर ख़ान दाखिल हुआ
"सलाम अर्ज़ करता हूँ" वो अपने उसी अंदाज़ में बोला
"तुम अपने कमरे में जाओ" रूपाली ने इंदर को इशारा किया
"अरे नही रुकिये ठाकुर साहब" ख़ान ने फ़ौरन इंदर को रोका "मुझे आपसे भी कुच्छ बात करनी है"
"मुझसे?" इंदर ने हैरानी से पुचछा
"जी आपसे. आइए बैठिए ना. अपना ही घर है" ख़ान ने उसे सामने रखी कुर्सी की तरफ इशारा करके बैठने को कहा
"आप जानते हैं ये कौन है?" रूपाली हैरत में पड़ गयी थी के इंदर से ख़ान क्या बात करना चाहता था
"आपके छ्होटे भाई हैं"ख़ान खुद भी एक चेर पर बैठता हुआ बोला "ठाकुर इंद्रासेन राणा"
"आप कैसे जानते हैं मुझे?" इंदर बैठते हुए बोला
"अजी आप एक ठाकुर हैं. सूर्यवंशी हैं. आपको ना पहचान सकूँ इतनी बड़ा भी बेवकूफ़ नही हूँ मैं" ख़ान ने कहा
ना रूपाली की समझ आया के ख़ान इंदर की तारीफ कर रहा था या मज़ाक उड़ा रहा था और ना खुद इंदर की
"आपके घर फोन किया था मैने तो पता चला के आप बढ़ी बहेन से मिलने गये हुए हैं. अब पोलीस स्टेशन आना तो आप ठाकुरों की शान के खिलाफ है तो मैने सोचा के मैने के मैं ही जाके मिल आऊँ" ख़ान ऐसे कह रहा था जैसे हवेली आकर उसने ठाकुर खानदान पर बहुत बड़ा एहसान किया हो
"कौन है ये आदमी?" इंदर चिड सा गया "और ये क्या बकवास कर रहा है"
"मतलब की बात पर आइए" रूपाली ने इंदर के सवाल का जवाब ना देते हुए ख़ान की तरफ पलटकर कहा
"चलिए मतलब की बात ही करता हूँ" ख़ान बोला और फिर इंदर की तरफ पलटा "वैसे आपको बता दूं के मुझे इनस्पेक्टर मुनव्वर ख़ान कहते हैं, वैसे मेरे चाहने वाले तो मुझे मुन्ना कहते हैं पर मुनव्वर ख़ान मेरा पूरा नाम है और इस इलाक़े में नया आया हूँ. आप चाहें तो आप भी मुझे मुन्ना कहते सकते हैं. अब तो हमारी जान पहचान हो ही गयी है"
"जैसा की आप जानती हैं के आपके पति के खून में मुझे कुच्छ ज़्यादा ही इंटेरेस्ट है" ख़ान रूपाली से बोला "और यकीन मानिए जबसे मैं यहाँ आया हूँ सुबह से शाम तक इसी बारे में सोचता रहता हूँ"
"पर क्यूँ?" रूपाली ने ख़ान की बात बीच में काट दी "मैं जानती हूँ के ये आपका काम है पर हमारे देश के पोलिसेवाले अपना काम काब्से करने लगे?"
रूपाली की बात सुनकर ख़ान हसणे लगा
"फिलहाल के लिए इतना जान लीजिए के मैं ये इसलिए नही कर रहा क्यूंकी ये मेरा काम है. और भी बहुत केस पड़े हैं जिनपर मैं अपना दिमाग़ खपा सकता हूँ. यूँ समझ लीजिए के आपके पति का एक एहसान था मुझपर जो मैं अब उतारने की कोशिश कर रहा हूँ"
"मेरे पति को मरे हुए 10 साल हो चुके हैं" रूपाली ने ख़ान को ताना मारा "अब याद आया है आपको एहसान का बदला चुकाना?"
"वो एक अलग कहानी है" ख़ान ने रूपाली की बात का जवाब नही दिया "फिर कभी फ़ुर्सत में बताऊँगा. फिलहाल मैं जिसलिए आया था वो बात करता हूँ. क्या है के जब आपके पति की मौत हुई थी उस वक़्त उनका पोस्टमॉर्टम नही हुआ था. पोस्टमॉर्टम के लिए बॉडी गयी ज़रूर थी पर बीच में आपके ससुर और आपका सबसे छ्होटा देवर बीच में आ गये थे. वहाँ उन्होने डॉक्टर्स के साथ मार पीट की और बॉडी उठा लाए. अब क्यूंकी वो यहाँ के ठाकुर थे और पोलिसेवाले उनकी जेब में थे इसलिए किसी ने मुँह नही खोला."
"तो?" इस बार रूपाली की जगह इंदर बोला
"तो ये ठाकुर साहब के पोस्टमॉर्टम तो पूरा नही हुआ पर रिपोर्ट्स में इतना ज़रूर लिखा हुआ था के ठाकुर पुरुषोत्तम की मौत कैसे हुई थी"
"गोली लगने से. ये तो हम सब जानते हैं" रूपाली ने कहा
"जी हां आप सब जानते हैं पर अब मैं कुच्छ ऐसा आपको बताता हूँ जो आप नही जानती" ख़ान ले बोलने का अंदाज़ अब कासी सीरीयस हो चुका था "रिपोर्ट्स के हिसाब से ठाकुर पुरुषोत्तम सिंग को एक रेवोल्वर से गोली मारी गयी थी और वो रेवोल्वेर ना तो इंडिया में बनती है और ना ही बिकती है."
रूपाली और इंदर चुप बैठे थे
"ठाकुर साहब को एक कोल्ट अनकॉंडा 6" बॅरल से गोली मारी गयी थी. इस तरह की रिवॉलवर्स अब इंडिया में मिलती हैं या नही ये तो मैं नही जानता पर आज से 10 साल पहले तो बिल्कुल नही मिलती थी. हां ऑर्डर करके मँगवाया ज़रूर जा सकती थी पर उसमें काफ़ी परेशानी होती थी क्यूंकी आप एक हथ्यार खरीद कर दूसरे देश से मग़वा रहे हैं. ये काम सिर्फ़ किसी ऐसी आदमी के बस में था जिसकी अच्छी पहुँच हो और खर्च करने के लिए पैसा बेशुमार हो.जैसे के कोई खानदानी ठाकुर"
"क्या मतलब है आपका" ईन्देर ने गुस्से में पुचछा
"बताता हूँ. सबर रखिए " ख़ान ने भी उसी अंदाज़ में जवाब दिया "तो मैने सोचा के ठाकुर साहब के खानदान से ही शुरू करूँ. अब ठाकुर शौर्या सिंग के खानदान में हथ्यार तो बहुत थे, गन्स भी थी, पर ज़्यादातर दोनाली राइफल्स और जो रिवॉलवर्स या पिस्टल थी वो यहीं इंडिया से खरीदी गयी थी. किसी के भी नाम पर किसी विदेशी बंदूक का रिजिस्ट्रेशन नही था. तो मैने सोचा के क्यूँ ना ठाकुर साहब के रिश्तेदारों में तलाश किया जाए. जब पता लगाया तो मालूम चला के ठाकुर इंद्रासेन राणा ने आज से 11 साल पहले एक कोल्ट अनकॉंडा 6" बॅरल मँगवाई थी."
कमरे में सन्नाटा छा गया. रूपाली और ख़ान दोनो ही इंदर की तरफ देख रहे थे.
"वो इसलिए क्यूंकी मुझे शिकार करने और हथ्यारो का शौक था" इंदर ने अपनी सफाई में कहा
"अब आपकी रिवॉलव कहाँ है ठाकुर?" ख़ान ने सवाल किया
"वो रिवॉलव 10 साल पहले खो गयी थी. मैं शिकार पर गया था और वहीं जंगल में कहीं गिर गयी थी" इंदर ने जवाब दिया
"आपने पोलीस में रिपोर्ट कराई?" ख़ान ने पुचछा
"हम ठाकुर हैं इनस्पेक्टर" इंदर गुस्से में बोलता हुआ खड़ा हुआ "हम अपने मामलो में पोलीस को इन्वॉल्व नही करते"
ये कहकर इंदर गुस्से में पेर पटकता हुआ कमरे से निकल गया
उसके जाने के बाद रूपाली और ख़ान दोनो खामोशी से बैठे रहे. कुच्छ देर बाद रूपाली ने बोलने के लिए मुँह खोला ही था के ख़ान ने उसकी बात बीच में काट दी
"आप ग़लत सोच रही हैं. मैं ये नही कहता के आपके पति को आपके भाई ने मारा है पर ये बहुत मुमकिन है के इन्ही के रेवोल्वेर से आपके पति को गोली मारी गयी."
रूपाली ने सहमति में सर हिलाया और कमरे में फिर खामोशी छा गयी. थोड़ी देर बाद ख़ान उठा
"मुझे यही पता करना था के वो रेवोल्वेर अब ठाकुर इंद्रासेन के पास है के नही. अगर होती तो मैं चेकिंग के लिए माँगता पर ये तो कह रहे हैं के गन ही खो गयी थी. मैं चलता हूँ"
ख़ान जाने लगा तो रूपाली ने उसे रोका
"आप कल सुबह हवेली आ सकते हैं? कुच्छ काम है मुझे"
ख़ान ने हां में सर हिलाया और कमरे से बाहर निकल गया
ओके दोस्तो फिर मिलेंगे अगले पार्ट के साथ
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
(¨`·.·´¨) ऑल्वेज़
`·.¸(¨`·.·´¨) कीप लविंग &
(¨`·.·´¨)¸.·´ कीप स्माइलिंग !
`·.¸.·´ -- राज
sexi haveli ka such --21
Apne kamre mein pahunch kar vo bistar par gir padi. Ye doosri baar tha ke Tej ne use is tarah se pakda tha. Ek baar nashe mein aur doosri baar anjane mein. Usni Rupali ki chhati ko pakadkar itni zor se dabaya tha ke Rupali ko ab tak dard ho raha tha. Usne apni chhati ko sehlaya aur tabhi use Tej ka vo chehra yaad aaya jab vo use khada dekh raha tha. Aur phir jis tarah se vo ye nahi keh paya tha ke usne Bindiya ka sochkar Rupali ko pakda tha vo sochkar Rupali ki halki si hasi chhut padi. Use kya pata tha ke Bindiya usse chudwa sirf isliye rahi hai kyunki Rupali ne aisa kaha tha.
Aaj ki raat bhi koi alag raat na thi. Aaj ki raat bhi Rupali bistar par padi apne jism ki aag mein jal rahi thi. Use samajh nahi aa raha tha ke kya kare. Uska jism vasna se tap raha tha jaise bukhar ho gaya ho. Thodi der ke liye usne apne haath ka sahara lena chaha par baat bani nahi. Uska gala sookhne laga tha. Usne uthkar apne kamre mein rakhe jug ki taraf dekha par usmein paani nahi tha. Bistar se uthkar usne apne kapde theek kiye aur neeche utarkar kitchen ki taraf badhi.
Kitchen mein khadi vo pani pee hi rahi thi ke use kisi ke kadmo ki aawaz sunai di. Raat ka sannata har taraf phel chuka tha aur us khamoshi mein kisi ke chalne ki aawaz saaf sunai de rahi thi. Koi sidhiyan chadh raha tha. Rupali ko hairat hui ke is waqt kaun ho sakta hai. Usne kitchen se bahar nikalkar dekha to Inder sidhiyan chadhkar Kamini ke kamre ki taraf ja raha tha. Uske chalne ka andaz hi choron jaisa tha jais vo ghar mein chupke se chori karne ke liye ghusa ho. Kamini ke kamre tak pahunchkar usne idhar udhar dekha aur phir dheere se darwaza kholne ki koshish ki. Darwaza locked tha. Rupali ko sabse zyada hairat us waqt hui jab Inder ne apni jeb se ek chabhi nikali aur Kamini ke kamre ka darwaza kholkar andar dakhil ho gaya.
Rupali ek pal ke liye vahi khadi rahi. Vo Inder se abhi Kamini ke baare mein baat nahi karna chahti thi. Uska khyaal tha ke sahi waqt dekhkar Inder ke saamne ye baat uthayegi par Inder ko Kamini ke kamre mein yun ghusta dekh Rupali se raha nahi gaya.
Vo halke kadmon se sidhiyan chadhkar pehle apne kamre mein pahunchi. Usne almari se Kamini ki diary nikali aur phir Kamini ke kamre ke saamne aayi Inder ne apne pchhe Kamini ka kamre band andar se kar liya tha par Rupali ke paas haweli ke har kamre ki chaabi thi. Usne apni chaabi se room ka lock khola, handle ghumaya aur ek jhatke mein poora darwaza khol diya.
Saamne Inder Kamini ki almari ke saamne khada uske kapdo mein kuchh dhoondh raha tha. Darwaza yun khol diye jaane se vo palta aur saamne Rupali ko dekhkar uske pairon ke neeche se zameen khisak gayi. Chehra yun safed ho gaya jaise kaato to khoon nahi. Haath mein pakde Kamini ke kuchh kapde uske haath se chhutkar zameen par gir pade.
"Kya dhoondh rahe ho Inder?" Kamini ne puchha
Inder se jawab dete na bana
"Kya dhoondh rahe the?" Rupali ne apne pichhe darwaza band kar liya aur thodi oonchi aawaz mein puchha
"Ji Didi ... vo .... main..... "Inder ki zubaan ladkhada gayi
Ruapli ne apne haath mein pakdi Kamini ki diary aage ki
"Ye to nahi dhoondh rahe the?"
Rupali ke haath mein diary dekhkar Inder samajh gaya ke uska raaz khul chuka hai. Vo nazaren neechi karke zameen ki aur dekhne laga
"Kabse chal raha tha ye sab?" Rupali ne vahin khade khade puchha
Jab Inder ne jawab na diya to usne apna sawal phir dohraya.
"Ji aapki shaadi hone se takreeban ek saal pehle se....." Inder ko is baar jawab dena pada.
Is baar hairan hone ki baari Rupali ki thi
"Tum meri shaadi hone se pehle se Kamini ko jante the?"
Thodi der baad vo dono Rupali ke kamre mein bethe the. Rupali ko laga ke yun Kamini ke kamre mein khade hokar baat karna theek nahi hoga. Koi bhi jaag sakta hai. Vo Inder ko apne aath apne kamre mein le aayi.
"Mujhe sab kuchh malum karna hai, SAB KUCHH " Rupali ne pehle Kamini ki diary Bistar par Inder ke saamne phenki aur phir vo kagaz jispar Inder ne ek sher likha tha "Aur tum shayri kabse karne lage? Aur vo bhi itni achhi urdu mein?"
"Meri nahi hain" Inder sar jhukaye bola " Kamini ko shayri bahut pasand thi isliye main kahin se padhkar use ye sab bhejta tha. Aap janti hain Shayri karna mere bas ki baat nahi"
"Kaise shuru hua ye sab?" Rupali apne bhai ke saamne bethte hue boli
"Mere ek dost ki shaadi mein mili thi mujhe Kamini. Vo ladki walon ki taraf se aayi thi. Vahan hamari jaan pehchaan ho gayi. Ghar aakar ham aksar phone par baat kiya karte the aur ye kab ye dosti pyaar mein badli mujhe pata hi nahi chala" Inder kisi tote ki tarah kahani suna raha tha.
"Irada kya tha?" Rupali ka gussa ab thoda thanda ho chala tha
"Shaadi karna chahta tha main usse." Rupali ko Inder ki ye baat sunkar bada ajeeb laga. Inder shakal surat se aisa tha ke vo jis ladki ki taraf dekh leta vo ladki use apni khush naseebi samajhti jabki Kamini ek behad mamuli si shakal soorat wali ladki thi.
"Phir ise kismat kahiye ya kuchh aur ke aapki shaadi bhi Kamini ke ghar mein hi hui. Us waqt ham log bahut khush the. Kamini khud bahut khush thi. Maine kai baar chaha ke vo aapse baat kare aur hamare baare mein bataye par vo hamesha aapke saamne is baare mein baat karne se sharmati thi. Kehti thi ke bhabhi pata nahi kya sochengi." Inder ne aage kaha
Uski ye baat sunkar Rupali ko jaise apne ek sawal ka jawab mil gaya. To ye vajah thi ke Kamini uske saamne aane se katra jaait thi. Us waqt Rupali bahut zyada pooja paath mein raha karti thi to Kamini ka ye sochna ke kahin vo uske aur apne bhai ke rishte ke khilaf na ho jaaye jayaz tha. Uski jagah koi bhi ladki hoti to darti. Khaas taur se jab baap aur bhai Thakur Shaurya Singh aur Tej jaise hon.
"Ham log sheher mein hi mila karte the. Vo apne driver aur bodyguard ko haweli mein hi chhodkar mujhse milne sheher aa jaaya karti thi." Inder ab bina puchhe hi sab bata raha tha
Uski is baat ne Rupali ke doosre sawal ka jawab de diya.To vo Inder hi tha jisse milne Kamini jaaya karti thi, akele. Tabhi use Bindiya ki kahi vo baat yaad aayi jab uske mard ne kheton mein bane tubewell wale kamre mein Kamini ko chudwate hue dekha tha.
"Jab sheher mein milte the to yahan kheton mein milne ki kya zaroorat thi? Darr nahi laga tum dono ko?" Rupali ne puchha
"Kheton mein?" Inder ne hairani se puchha "Aap mazak kar rahi hain? Yahan milna to khud maut ko dawat dene jaisa tha"
"Kya?" Rupali kuchh aise boli ke uski hairani uski aawaz mein chhalak uthi "Tum use tubewell wale kamre mein nahi milte the?"
"Tubewell?" Inder ne puchha "Kaun sa tubewell?"
Rupali samajh gayi ke use is baare mein kuchh pata nahi tha aur vo uski aankhen dekhkar bata sakti thi ke vo sach bol raha hai
"Nahi kuchh nahi" Rupali baat taalne ke andaz mein boli "Vo uski diary padhkar mujhe laga ke tum log yahin kheton mein mila karte the"
"Nahi yahan kahin aas paas to vo khud hi nahi milna chahti thi. Maine use kai baar kaha ke ham ghar par baat kar lete hain par vo jaane kyun har baar mana kar deti thi. Aur phir vo dheere dheere badalne lagi. Mujhse uski baat bhi kaafi kam ho gayi. Maine kai baar usse puchhne ki koshish ki par usne har baar taal diya. Aur phir ek din uska phone aaya ke vo mujhse shaadi nahi karna chahti kyunki vo mere layak nahi hai. Ye kehkar usne phone rakh diya"
"Kabki baat hai ye?" Rupali ne puchha
"Theek usi din jab Jijaji ka khoon hua tha. Uska phone rakhne ke thodi der baad hi hamen haweli ke naukar ka phone aaya tha aur usne mujhe bataya ke Bade Bhai sahab ka khoon ho gaya tha." Inder ne kaha
Rupali ki dhadkan tez hone lagi par usne apne chehre par kuchh zahir na hone diya
"Phir kabhi baat nahi hui?" Usne Inder se puchha
"Maine kai baar use phone karne ki koshish ki par vo har baar meri aawaz sunkar phone kaat deti thi. Aur phir ek din mujhe pata chala ke vo videsh chali gayi aur bas hamari kahani khatam ho gayi" Inder sar jhukaye bola
Kamre mein thodi der khamoshi rahi
"To tum ab uske kamre mein kya dhoondh rahe the?" Rupali ne khade hote hue puchha
"Ye" Inder ne us kagaz ki taraf ishara kiya jo Rupali ko Kamini ki diary se mila tha "Aur aise kai aur papers. Mujhe dar tha ke agar ye aap ke haath kabhi lag gaya to aap meri handwriting pehchaan jayengi.
Agle din subah Rupali Rupali Inder ke saath hospital pahunchi. Doctor ne bataya ke Thakur ki halat mein ab bhi koi sudhar nahi aaya tha. Bhushan ab bhi Thakur ke saath hospital mein hi tha.Thodi der vahin ruk kar Rupali haweli vapis aa gayi. Subah ke 10 bas chuke the. Tej Rupali ko bade kamre mein betha mila.
"Tej hamen aapse kuchh baat karni hai. Aap hamare kamre mein aa jaiye" Rupali ne Tej se kaha aur uske jawab ka intezaar kiye bina hi apne kamre mein chali aayi
Thodi der baad hi Tej Rupali ke kamre men dakhil hui
"Darwaza band kar dijiye" Rupali ne Tej se kaha
Darwaza band kar dete hi Tej ne apne dono haath jod diye
"Hamen maaf kar dijiye Bhabhi. Bahut bada paap ho gaya hamse kal raat. Par vo sab anjaane mein hua"
Rupali ne ishare se Tej ko bethne ko kaha.
"Koi baat nahi. Hamne us baare mein baat karne ke liye nahi bulaya hai aapko. Hamen kuchh aur zaroori baat karni hai" Kehte hue Rupali apni table tak gayi aur Drawer se Purushottam Singh ki vaseeyat nikali
Tej Hairani se uski aur dekh raha tha. Use ummeed thi ke Rupali usse kal raat ke baare mein sawal jawab karegi par vo to us baare mein koi baat hi nahi karna chah rahi thi. Jaise kuchh hua hi na ho
"Aapne Kamini se aakhri baar baat kab ki thi?" Ruapli Tej ki aur dekhte hue boli
"Uske videsh jaane se pehle" Tej ne sochte hue kaha
Rupali samajh gayi ke Tej ko Kamini ke baare mein koi jaankari nahi hai
"Aur Kuldeep se?" Rupali ne puchha to Tej soch mein pad gaya
"Shayad jab vo aakhri baar haweli aaya tha tab."
"Phone par baat nahi hui aapki kabhi?" Rupali ne puchha to Tej ne inkaar mein sar hila diya. Rupali ko isi jawab ki ummeed thi. Tej ko ayyashi se time milta to apne bhai aur behen ke baare mein sochta
"Ye Kamini ka passport hai" Rupali ne apne haath mein pakda passport Tej ko thama diya "Agar ye yahan hai to Kamini videsh mein kaisi ho sakti hai?"
Tej Hairani se Passport ki taraf dekhne laga
"Matlab? To kahan hai Kamini?" Usne Rupali se puchha
"Hamen laga ke aapko pata hoga" Rupali ne jawab diya
"Ye kahan mila aapko?" Tej ne phir sawal kiya
"Vo zaroori nahi hai" Rupali ne use basement mein rakhe box ke baare mein batana zaroori nahi samjha "Zaroori ye hai ke ye yahan Haweli mein mila, jabki hindustan mein hi nahi milna chahiye tha"
Tej Khamoshi se betha apni soch mein khoya hua tha
"Ek baat aur hai" Rupali ne kaha aur Purushottam ki vaseeyat Tej ke haath mein thama di aur chup rahi. Tej khud hi vaseeyat kholkar padhne laga.Jaise jaise vo pages palat raha tha, vaise vaise uske chehre ke bhaav bhi badal rahe the. Jab vo poori vaseeyat padh chuka to vo thodi der tak zameen ki taraf dekhta raha aur phir nazar uthakar Rupali ki taraf dekha
"Kuchh galat mat sochna Tej" Isse pehle ke vo kuchh kehta Rupal khud bol uthi "Main aisa kuchh nahi chahti. Main ye vaseeyat khud badalne wali hoon"
Tej ab bhi khamoshi se use dekhta raha
"Mujhe ye daulat nahi chahiye Tej. Main sirf apne ghar ko, is haweli ko ek ghar ki tarah dekhna chahti hoon. Tum chaho to main abhi phone karke vakeel ko bula leti hoon. Ye daulat saari mujhe mil jaaye, main nahi chahti ke aisa ho"
"Aisa main hone bhi nahi doonga" Tej ne kaha aur isse pehle ke Rupali kuchh keh paati vo uthkar kamre se bahar chala gaya
Rupali jo karna chahti thi vo ho gaya. Use dekhna tha ke kya Tej ko daulat ko bhookh hai aur vo usne dekh liya tha. Agar Tej khamoshi se betha rehta to is baat ka sawal hi nahi hota tha ke is daulat ke liye usne apne bhai ko mara ho par yahan to ulta hi hua. Rupali ne use abhi bataya tha ke uski behen 10 saal se gayab hai aur uski fikar karne ke bajay vo haath se nikalti daulat ke pichhe chillata hua kamre se chala gaya tha. Jisko apni behen ki koi fikar nahi, vo daulat ke liye apne bhai ka khoon kyun nahi kar sakta. Bilkul kar sakta hai.
Thodi der baad Rupali bhi neeche bade kamre mein aayi. Tej ka kahin ata pata nahi tha. Rupali ne khidki se bahar dekha to uski car bhi bahar nahi thi.
Saamne rakhe phone ko uthakar Rupali Devdhar ka number milane lagi.
"Kahiye Rupali Ji" Doosri taraf se Devdhar ki aawaz aayi
"Main chahti hoon ke kal aap haweli aayen" Rupali ne Devdhar se kaha. Devdhar ne haan kar di to usne phone rakh diya aur Inder ke kamre mein aayi
Inder apne kamre mein nahi tha. Rupali kitchen mein pahunchi to vahan Bindiya dopahar ka khana banane mein lagi hui thi. Chander uske saath khada uski madad kar raha tha
"Inder ko dekha kahin?" Rupali ne Bindiya se puchha
"Abhi thodi der pehle to bade kamre mein hi the" Bindiya ne kaha
Rupali ne haweli ke bahar compound mein aakar dekha to Inder ki car vahin khadi hui thi. Vo compound mein idhar udhar dekhne lagi par Inder nazar nahi aaya. Use dhoondhti hui vo haweli ke piche ki taraf aayi to dekha ke basement ka darwaza khula hua tha
"Ye kisne khula chhod diya?" Sochte hue Rupali darwaze ke paas pahunchi. Usne darwaza band karne ki sochi hi thi ke basement ke andar se ek aawaz sunai di. Gaur se suna to vo aawaz Payal ki thi.
"Ye yahan kya kar rahi hai?" Sochte hue Rupali ne pehli seedhi par kadam rakha hi tha ke uske kadam phir se ruk gaye
"Aaaaahhhhh kyar kar rahe hain aap" Ye aawaz Payal ki thi
Rupali ne apne kadam dheere dheere sidhiyon par rakhe aur kisi chor ki tarah utarti hui neeche pahuchi. Sidhiyon par khade khade hi usne dheere se gardan ghumakar basement mein jhanka to uske pairon ke neeche se zameen khisak gayi.
Payal ek table par bethi hui thi. Ye vahi table thi jispar jhuka kar Chander ne use choda tha. Vo table ke kinare par bethi hui thi aur haathon ke sahare se pichhe ko jhuki hui thi. Uski salwar utri hui ek taraf padi thi aur dono taange saamne neeche zameen par bethe Inder ke kandho par thi. Inder ne uski dono taango ko poori tarah phela rakha tha aur beech mein betha Payal ki choot chaat raha tha.
"AAAhhhhh malik" Payal karah rahi thi.
Rupali fauran phir se deewar ki ot mein ho gayi. Use yakeen nahi ho raha tha. Vo hamesha apne bhai ko bahut sidha sa samajhti thi aur yahi vajah thi ke Kamini ke saath uske rishte ke baare mein sunkar vo chaunk padi thi. Aur yahan uska bhai ghar ki naukrani ki choot chaat raha tha, vo bhi us naukrani ki jisse vo kal hi mila tha.
Ek pal ke liye Rupali ne socha ke vahan se chali jaaye par phir jaane kya sochkar vo phir deewar ki aad mein khadi Inder aur Payal ko dekhne lagi.
Inder ab uth khada hua tha aur Payal ki honth choom raha tha. Vo Payal ki taango ke beech khada tha aur Payal ne apni taange uski kamar ke dono taraf lapet rakhi thi aur haathon se vo Inder ke sar ko sehla rahi thi. Inder ne thodi der uske honth choomne ke baad uski chhatiyon ko kameez ke uper se hi choomna shuru kar diya aur uski nangi jaangho par haath pherne laga. Payal vasna se apne sar ko zor zor se idhar udhar jhatak rahi thi.
"Jaldi kijiye Malik. Koi aa jayega" Payal ne aankhen band kiye hue hi kaha
Uski baat sunkar Inder ne dobara uske honth choomne shuru kar diye aur apni pent ki zip kholne laga. Thodi hi der mein uski pent sarak kar neeche ja padi aur Rupali fauran phir se deewar ke pichhe ho gayi. Vo apni hi chhote bhai ko nanga nahi dekhna chahti thi. Ek pal ke liye usne kadam uthaye ke basement se bahar chali jaaye par tab tak khud uske jism mein aag lag chuki thi. Uska ek haath kab uski choot par pahunch gaya tha use pata bhi nahi chala tha. Usne ek pal ke liye socha aur phir se Inder aur Payal ko dekhne lagi.
Inder apna karya karam shuru kar chuka tha. Uska lund Payal ki choot mein andar bahar ho raha tha. Ab Payal Table par sidhi let gayi thi. Uski gaand table ke bilkul kone par thi aur taange Inder ke kandho par jo uski taango ke beeche khada apna lund andar bahar kar raha tha. Payal ki kameez usne khinch kar uper kar di thi aur dono choochiyon ko aisa masal raha tha jaise aata goondh raha ho.
"Pehle bhi karwa chuko ho kya?" Usne Payal se puchha
"Nahi" Payal ne sar hilate hue jawab diya
"Phir tumhein ..... "Inder ne kuchh kehna chaha aur phir baaat adhuri chhodkar Payal ki choot par dhakke marne laga
Sidhiyon par khadi Rupali ka haath uski choot ke saath jung lad raha tha. Use yakeen nahi ho raha tha ke vo chhupkar apne bhai ko kisi ladki ko chodte hue dekh rahi hai aur bajay vahan se jaane ke khud bhi garam ho rahi thi.
Inder ke dhakke ab kaafi tez ho chuke the.
"Aur zor se Malik" Payal apni aah aah ke beech bol rahi thi.
Rupali ko hairat hui ke kahan tak kal ki sidhi si sharmili aur kahan aaj khud zor se zor se ka naara laga rahi thi. Uski khud ki halat ab tak kharab ho chuki thi aur vo janti thi ke filhal uske paas choot ki aag bhujhane ka koi tareeka nahi tha. Aur jis tarah se Inder dhakke maar raha tha, Rupali samajh gayi ke ab kaam khatam hone wala hai. Usne apna haath choot se hataya, apne kapde theek kiye aur dheere se sidhiyan chadhti Basement se bahar nikal gayi.
Thodi der baad Inder aur Rupali dono bade kamre mein bethe TV dekh rahe the. Jabse Inder basement mein Payal ko chodkar aaya tha tabse uske aur Rupali ke beech koi baat nahi hui thi. Rupali bethi TV dekh rahi thi aur Inder uske paas hi aake khamoshi se beth gaya tha.
Rupali ko samajh nahi aa raha tha ke apne bhai ke baare mein kya soche. Vo Bhai jise vo duniya ka sabse seedha insaan samajhti rahi. Jiske sirf 2 shauk hua karte the, shikaar karna aur apna business sambhalna. Pichhke kuchh waqt mein vo kitna badal gaya tha. Uske shauk mein kab shayri aur ladkiyan jud gayi Rupali ko pata hi na chala. Par pata chal bhi kaise sakta tha. Inder se pichhle 10 saal mein mushkil se usne 10 baar baat ki hogi aur ab pata nahi kitne waqt ke baad mili hai.
"Kamini ke saath tera rishta kahan tak pahuncha tha?" Aakhir mein usne khamoshi todi aur Inder se puchha
"Matlab?" Inder ne uski taraf nazar ghumayi
Tabhi Payal ke glass mein paani lekar kamre mein aayi to Rupali khamosh ho gayi. Rupali ko paani thamate hue Payal ne ek nazar Inder ko dekha aur muskura kar vapis chali gayi.
"Matlab ke tum log kitne kareeb the" Rupali ne paani peete hue kaha "Mera matlab ....."
Vo thodi atki aur phir apni baat keh hi di
"Mera matlab jismani taur par"
Inder is baat ke liye taiyyar nahi tha. Vo chaunk pada
"Ye kaisa sawal hai?"
"Sawal jaisa bhi hai" Rupali ne seedha uski aankhon mein dekhte hue kaha "Jawab kya hai?"
"Main jawab dena zaroori nahi samajhta" Inder ne gusse mein kaha aur uthkar kamre se bahar jaane laga
"Malkin" Bindiya ki aawaz par Rupali ne uski tarf nazar uthakar dekha
"Bahar Police aayi hai. Vahi khadus inspector jo hamesha aata hai"
Bindiya ne kaha to Inder ke kadam bhi ruk gaye. Usne palatkar Rupali ki taraf dekha
"Andar le aao" Rupali ne Bindiya se kaha
Thodi der baad kamre mein Inspector Khan daakhil hua
"Salam arz karta hoon" Vo apne usi andaz mein bola
"Tum apne kamre mein jaao" Rupali ne Inder ko ishara kiya
"Are nahi rukiye Thakur Sahab" Khan ne fauran Inder ko roka "Mujhe aapse bhi kuchh baat karni hai"
"Mujhse?" Inder ne hairani se puchha
"Ji aapse. Aaiye bethiye na. Apna hi ghar hai" Khan ne use saamne rakhi kursi ki taraf ishara karke bethne ko kaha
"Aap jante hain ye kaun hai?" Rupali hairat mein pad gayi thi ke Inder se Khan kya baat karna chahta tha
"Aapke chhote bhai hain"Khan khud bhi ek chair par bethta hua bola "Thakur Indrasen Rana"
"Aap kaise jante hain mujhe?" Inder bethte hue bola
"Aji aap ek thakur hain. Suryavanshi hain. Aapko na pehchan sakun itni bada bhi bevakoof nahi hoon main" Khan ne kaha
Na Ruapli ki samajh aaya ke Khan Inder ki tareef kar raha tha ya mazak uda raha tha aur na Khud Inder ki
"Aapke ghar phone kiya tha maine to pata chala ke aap badhi behen se milne gaye hue hain. Ab police station aana to aap thakuron ki shaan ke khilaf hai to maine socha ke maine ke main hi jaake mil aaoon" Khan aise keh raha tha jaise haweli aakar usne thakur khandaan par bahut bada ehsaan kiya ho
"Kaun hai ye aadmi?" Inder chid sa gaya "Aur ye kya bakwaas kar raha hai"
"Matlab ki baat par aaiye" Rupali ne Inder ke sawal ka jawab na dete hue Khan ki taraf palatkar kaha
"Chaliye matlab ki baat hi karta hoon" Khan bola aur phir Inder ki taraf palta "Vaise aapko bata doon ke mujhe Inspector Munawwar Khan kehte hain, vaise mere chahne wale to mujhe Munna kehte hain par Munawwar Khan mera poora naam hai aur is ilaake mein naya aaya hoon. Aap chahen to aap bhi mujhe Munna kehte sakte hain. Ab to hamari jaan pehchan ho hi gayi hai"
"Jaisa ki aap janti hain ke aapke pati ke khoon mein mujhe kuchh zyada hi interest hai" Khan Rupali se bola "Aur yakeen maniye jabse main yahan aaya hoon subah se shaam tak isi baare mein sochta rehta hoon"
"Par kyun?" Rupali ne khan ki baat beech mein kaat di "Main janti hoon ke ye aapka kaam hai par hamare desh ke policewale apna kaam kabse karne lage?"
Rupali ki baat sunkar Khan hasne laga
"Filhal ke liye itna jaan lijiye ke main ye isliye nahi kar raha kyunki ye mera kaam hai. Aur bhi bahut case pade hain jinpar main apna dimag khapa sakta hoon. Yun samajh lijiye ke aapke pati ka ek ehsaan tha mujhpar jo main ab utarne ki koshish kar raha hoon"
"Mere pati ko mare hue 10 saal ho chuke hain" Rupali ne Khan ko taana maara "Ab yaad aaya hai aapko ehsaan ka badla chukana?"
"Vo ek alag kahani hai" Khan ne Rupali ki baat ka jawab nahi diya "Phir kabhi fursat mein bataoonga. Filhal main jisliye aaya tha vo baat karta hoon. Kya hai ke jab aapke pati ki maut hui thi us waqt unka postmortem nahi hua tha. Postmortem ki liye body gayi zaroor thi par beech mein aapke sasur aur aapka sabse chhota dewar beech mein aa gaye the. Vahan unhone doctors ke saath maar peet ki aur body utha laaye. Ab kyunki vo yahan ke thakur the aur policewale unki jeb mein the isliye kisi ne munh nahi khola."
"To?" Is baar Rupali ki jagah Inder bola
"To ye thakur sahab ke postmortem to poora nahi hua par reports mein itna zaroor likha hua tha ke Thakur Purushottam ki maut kaise hui thi"
"Goli lagne se. Ye to ham sab jante hain" Rupali ne kaha
"Ji haan aap sab jante hain par ab main kuchh aisa aapko batata hoon jo aap nahi janti" Khan le bolne ka andaz ab kaasi serious ho chuka tha "Reports ke hisab se Thakur Purushottam Singh ko ek revolver se goli maari gayi thi aur vo revolver na to India mein banti hai aur na hi bikti hai."
Rupali aur Inder chup bethe the
"Thakur sahab ko ek Colt Anaconda 6" Barrel se goli maari gayi thi. Is tarah ki revolvers ab India mein milti hain ya nahi ye to main nahi janta par aaj se 10 saal pehle to bilkul nahi milti thi. Haan order karke mangvaya zaroor ja sakti thi par usmen kaafi pareshani hoti thi kyunki aap ek hathyaar khareed kar doosre desh se magva rahe hain. Ye kaam sirf kisi aisi aadmi ke bas mein tha jiski achhi pahunch ho aur kharch karne ke liye paisa beshumar ho.Jaise ke koi khandani thakur"
"Kya matlab hai aapka" Inder ne gusse mein puchha
"Batata hoon. Sabar rakhiye " Khan ne bhi usi andaaz mein jawab diya "To maine socha ke thakur sahab ke khandaan se hi shuru karun. Ab Thakur Shaurya Singh ke khandaan mein hathyaar to bahut the, guns bhi thi, par zyadatar donali rifles aur jo revolvers ya pistol thi vo yahin India se kharidi gayi thi. Kisi ke bhi naam par kisi videshi bandook ka registraion nahi tha. To maine socha ke kyun na thaur sahab ke rishtedaron mein talash kiya jaaye. Jab pata lagaya to malum chala ke Thakur Indrasen Rana ne aaj se 11 saal pehle ek Colt Anaconda 6" Barrel mangvayi thi."
Kamre mein sannata chha gaya. Rupali aur Khan dono hi Inder ki taraf dekh rahe the.
"Vo isliye kyunki mujhe shikaar karne aur hathyaaron ka shauk tha" Inder ne apni safai mein kaha
"Ab aapki revolver kahan hai Thakur?" Khan ne sawal kiya
"Vo revolver 10 saal pehle kho gayi thi. Main shikar par gaya tha aur vahin jungle mein kahin gir gayi thi" Inder ne jawab diya
"Aapne police mein report karayi?" Khan ne puchha
"Ham thakur hain Inspector" Inder gusse mein bolta hua khada hua "Ham apne mamlo mein Police ko involve nahi karte"
Ye kehkar Inder gusse mein per patakta hua kamre se nikal gaya
Uske jaane ke baad Rupali aur Inder dono khamoshi se bethe rahe. Kuchh der baad Rupali ne bolne ke liye munh khola hi tha ke Khan ne uski baat beech mein kaat di
"Aap galat soch rahi hain. Main ye nahi kehta ke aapke pati ko aapke bhai ne maara hai par ye bahut mumkin hai ke inhi ke revolver se aapke pati ko goli maari gayi."
Rupali ne sehmati mein sar hilaya aur kamre mein phir khamoshi chha gayi. Thodi der baad Khan utha
"Mujhe yahi pata karna tha ke vo revolver ab Thakur Indrasen ke paas hai ke nahi. Agar hoti to main checking ke liye mangta par ye to keh rahe hain ke gun hi kho gayi thi. Main chalta hoon"
Khan jaane laga to Rupali ne use roka
"Aap kal subah haweli aa sakte hain? Kuchh kaam hai mujhe"
Khan ne haan mein sar hilaya aur kamre se bahar nikal gaya
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj
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