Tuesday, March 16, 2010

कामुक कहानिया सेक्सी हवेली का सच --23

राज शर्मा की कामुक कहानिया


सेक्सी हवेली का सच --23

अगले दिन इंदर कामिनी की बताई हुई जगह पर खड़ा इंतेज़ार कर रहा था. कामिनी ने 2 बजे आने को कहा था पर 3 दिन बज चुके थे और वो अब तक नही आई थी. कल रात से इंदर का सोच सोचकर दिमाग़ फटा जा रहा था. जान को ख़तरा? अपने अजनबी हो गये? कामिनी की कही कोई बात उसे समझ नही आ रही थी.
जब घड़ी में 3 बज गये तो वो समझ गया के कामिनी नही आएगी. उसने वापिस जाने का फ़ैसला किया और कार स्टार्ट ही की थी के रिव्यू कार में उसे कामिनी की गाड़ी आती हुई दिखाई दी. उसकी जान में जान आई. कामिनी ने उसकी कार के पिछे अपनी कार लाकर रोकी. इंदर अपनी गाड़ी से निकालने ही वाला था के कामिनी खुद अपनी कार से निकलकर जल्दी जल्दी इंदर की गाड़ी की तरफ आई और दरवाज़ा खोलकर अंदर आ गयी.
"गन लाए?" कामिनी ने गाड़ी में बैठते ही पुचछा
"हां लाया हूँ पर मेरी बात सुनो कामिनी" इंदर ने कुच्छ कहना चाहा ही था के कामिनी ने सामने रखी रेवोल्वेर देखी और जल्दी से उठा ली
"अभी कुच्छ कहने या सुनने का वक़्त नही है इंदर. मैं ये गन कुच्छ दिन बाद तुम्हें लौटा दूँगी और तब सब कुच्छ समझा दूँगी" कहकर कामिनी ने अपनी तरफ का दरवाज़ा खोला और इससे पहले के इंदर कुच्छ कह पता या कर पाता वो कार से बाहर निकल गयी. इंदर भी जल्दी से अपनी तरफ का दरवाज़ा खोलकर बाहर निकला. कामिनी तेज़ कदमों से चलती अपनी कार की तरफ जा रही थी और जब तक के इंदर उस तक पहुँचता, वो कार स्टार्ट कर चुकी थी.
"रूको कामिनी" इंदर भागता हुआ कामिनी की तरफ आया और कार की विंडो पर हाथ रखकर झुका "तुम मेरे साथ ऐसा नही कर सकती. तुम्हें बताना होगा के आख़िर हो क्या रहा है"
कामिनी उसकी तरफ देखकर मुस्कुराइ और इंदर के चेहरे पर प्यार से हाथ फेरा.
"इंदर" उसने मुस्कुराते हुआ कहा "मेरा इंदर"
"मैं हमेशा तुम्हारा हूँ कामिनी पर .... "इंदर ने कुच्छ कहना चाहा ही था के कामिनी ने उसके होंठ पर अपनी अंगुली रख कर उसे चुप करा दिया
"तुम्हें याद है इंदर जब हम पहली बार मिले थे तब मैने तुम्हें एक शेर सुनाया था और मैने कहा था के खुदा ना करे मुझे कभी इसकी आखरी लाइन्स भी तुम्हें कहनी पड़ें?" कामिनी ने पुचछा तो इंदर ने हां में सर हिला दिया
कामिनी खिड़की के थोडा नज़दीक आई और इंदर के गले में हाथ डालकर उसे थोड़ा नज़दीक किया. अगले ही पल दोनो के होंठ मिल गये. कामिनी उसे धीरे धीरे प्यार से चूमने लगी और फिर अपने होंठ इंदर के होंठ से हटाकर उसके कान के पास लाई. अपनी उसी अंदाज़ में फिर वो ऐसे बोली जैसे कोई बहुत बड़े राज़ की बात बता रही हो.


"कुच्छ इस अदा से आप यूँ पहलू-नॅशिन रहे
जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे

ये दिन भी देखना फाज़ था तेरी आश्की में,
रोने की हसरत है मगर आँसू नहीं रहे,

जा और कोई सुकून की दुनिया तलाश कर,
मेरे महबूब हम तो तेरे क़ाबिल नहीं रहे"


और इससे पहले के इंदर कुच्छ समझ पाता, कामिनी के कार उसकी आँखो से तेज़ी के साथ दूर होती जा रही थी.
"बस" इंदर ने एक लंबी साँस ली "इतनी ही थी हमारी कहानी. आप पुच्छ रही थी ना के हम कितना करीब आए थे? इतना करीब आए थे हम दीदी"
और इंदर अपना सर अपने हाथों में पकड़कर रोने लगा
"तुमने ये बात किसी से कही क्यूँ नही?" रूपाली ने पुचछा
"मैं क्या कहता? इंदर बोला "जीजाजी का खून होने के बाद अगर मैं किसी से ये कहता के मैने गन कामिनी को दी थी तो सब लोग क्या समझते? और अगर ये कहता के मेरे से गुम हुई है तो सब मेरे बारे में क्या सोचते? बिल्कुल वही सोचते जो इस वक़्त वो इनस्पेक्टर सोच रहा है"
रूपाली थोड़ी देर तक इंदर के सामने चुप बैठी रही. उसे समझ नही आ रहा थे के क्या कहे और इंदर को कैसे संभाले. माहौल को हल्का करने के लिए उसने बात बदलने की सोची
"एक लड़की के इश्क़ में यूँ रो रहे हो और हरकतें कुच्छ और कर रहे हो?" उसने इंदर के सर पर हल्के से थप्पड़ मारा
"क्या मतलब" इंदर ने अपना सर उपेर उठाया
"मैने देखा था बेसमेंट में. तुम्हें और वो कल की छ्छोकरी पायल को
इंदर का मुँह हैरानी से खुला रह गया. वो रूपाली के मुस्कुराते चेहरे को थोड़ी देर तक देखता रहा और फिर खुद शरमाता हुआ हस पड़ा
"आप वहाँ कब आई?"
"जिस तरह से वो पायल टेबल पर लेटी शोर मचा रही थी उससे तो मुझे हैरानी है के पूरा गाओं क्यूँ नही आ गया" रूपाली ने जवाब दिया तो दोनो भाई बहेन हस पड़े
"मैं क्या करता दीदी" इंदर ने कहा "कामिनी जिस तरह से गयी उससे मैं बोखला उठा था. सोचा मैं क्यूँ एक लड़की के इश्क़ में मारा जा रहा हूँ. उसके बाद जो सामने आई मैं नही रुका. पता नही क्या साबित करना चाह रहा था या पता नही दिल ही दिल में शायद कामिनी को दिखाना चाह रहा था के मैं उसके बिना जी सकता हूँ. कमी नही है मेरे पास"
उसके बाद रूपाली और थोड़ी देर इंदर के कमरे में बैठी रही. उसके बाद वो उठकर अपने कमरे में आ गयी. अचानक उसे कामिनी के कमरे में मिली सिगेरेत्टेस की बात याद आई. उसने सोचा के इंदर से पुच्छे के क्या वो कामिनी को सिगेरेत्टेस लाकर देता था? ये सोचकर वो वापिस इंदर के कमरे पर पहुँची तो कमरा अंदर से बंद था. रूपाली ने खोलने की कोशिश की तो कमरे को अंदर से लॉक पाया. वो इंदर का नाम पुकारने ही वाली थी के अंदर से आती पायल की आवाज़ सुनकर उसका हाथ रुक गया. आवाज़ से सॉफ पता चल रहा था के अंदर पायल और इंदर क्या कर रहे हैं.
रूपाली का मुँह हैरत से खुला रह गया. उसे अभी इंदर के कमरे से गये मुश्किल से 15 मिनट ही हुए थे. जो लड़का अभी थोड़ी देर पहले बैठा कामिनी के इश्क़ में आँसू बहा रहा था वो 15 मिनट में ही पायल पर चढ़ा हुआ था. वो भी भरे दिन में. तब जबकि उसकी अपनी बड़ी बहेन और पायल की माँ उसी हवेली में मौजूद थी.
रूपाली वापिस अपने कमरे की और चल पड़ी. इंदर की हरकत से उसे शक़ होने लगा था के जो इंदर ने कामिनी के और अपने बारे में कहानी रूपाली को सुनाई थी, क्या वो सच थी. और अगर सच थी तो कितनी सच थी.

रात ढाल चुकी थी. पिच्छली कुच्छ रातों की तरह ये रात भी अलग नही थी. रूपाली अपने बिस्तर पर पड़ी थी. पूरी तरह नंगी. टांगे फेली हुई, एक हाथ उसकी छाती पर और दूसरा टाँगो के बीच उसकी चूत पर. उसे अपने उपेर हैरत थी के कहाँ कल की एक सीधी सादी घरेलू औरत और कहाँ एक ये औरत जिससे अपने जिस्म की गर्मी एक रात भी नही संभाली जाती थी. उसने अपनी 3 अंगुलिया अपनी चूत में घुसा रखी थी पर जिस्म था के खामोश होने का नाम ही नही ले रहा था. चिढ़कर रूपाली ने अपना हाथ टाँगो के बीच से हटाया और गुस्से में बिस्तर पर ज़ोर से मारा.
रात के तकरीबन 9 बजे तेज वापिस आ गया था. उसने रूपाली या किसी और से कोई बात नही की थी. चुप चाप बस अपने कमरे में चला गया था. काम ख़तम करके बिंदिया को भी रूपाली ने उसके ही कमरे में जाते देखा था. आज की रात रूपाली ऐसा भी नही कर सकती थी के पायल के साथ ही अपने जिस्म की आग भुझाने की कोशिश करे क्यूंकी पायल भी अपने कमरे में नही थी और रूपाली अच्छी तरह जानती थी के इस वक़्त वो इंदर के कमरे में चुद रही होगी.
इस ख्याल से उसका जिस्म और भड़कने लगा. परेशान होकर वो बिस्तर से उठी और नीचे बड़े कमरे में जाकर टीवी देखने का फ़ैसला किया क्यूंकी नींद आँखो से बहुत दूर थी.
सीढ़ियाँ उतरती रूपाली के कदम अचानक से रुक गये. बड़े कमरे में टीवी ऑन था. इस वक़्त कौन देख रहा हो सकता है? टीवी आखरी बार वो खुद ही देख रही थी और उसको अच्छी तरह से याद था के वो टीवी बंद करके गयी थी. सोचती हुई वो सीढ़ियाँ उतरी और जैसे ही बड़े कमरे में आई उसकी आँखें खुली रह गयी.
कमरे में टीवी ऑन था और उसपर कोई गाना चल रहा था. सामने चंदर बैठा हुआ था. गाने में हेरोयिन भीगी हुई सारी में हीरो को रिझाने की कोशिश कर रही थी जो उसके करीब नही आ रहा था. चंदर सामने ज़मीन पर टांगे मोड बैठा था. उसका पाजामा नीचे था और कुर्ता उसने उपेर करके अपने गले में फसाया हुआ था.आँखें टीवी पर गाड़ी हुई और उसका हाथ लंड को पकड़े उपेर नीचे हो रहा था.
रूपाली उसे एक पल वहीं खड़ी देखती रही. चंदर टीवी में इतना खोया हुआ था के उसे रूपाली के आने का आभास ही नही हुआ. रूपाली कभी टीवी की तरफ देखती तो कभी चंदर के हाथ जो उपेर नीचे हो रहा था. रूपाली की आँखों के आगे फिर वो नज़ारा आ गया जब चंदर ने उसको बस्मेंट में बिंदिया समझकर अंधेरे में चोद दिया था. रूपाली की पहले से गीली चूत से जैसे नदी सी बहने लगी. उसका दिल किया के आयेज बढ़कर चंदर का लंड पकड़ ले पर फिर वो खुद ही रुक गयी और उसका दिल खुद से ही सवाल जवाब करने लगा
सवाल : "एक नौकर के साथ?"
जवाब : तो क्या हुआ. भूषण भी तो नौकर ही था. पायल के साथ भी रूपाली सोई थी और पायल भी तो नौकरानी थी.
सवाल : पर वो एक ठकुराइन है
जवाब : तो क्या हुआ. जब उसका भाई घर की नौकरानी को चोद सकता है तो वो क्यूँ नही. और आज से पहले कौन सा उसने इस बारे में सोचा था.
सवाल : और ठाकुर साहब? उनसे तो वो प्यार करती थी.
जवाब : तो क्या हुआ? उस रात रूपाली के कहने पर जब ठाकुर ने पायल को चोदा था तब उन्होने तो ऐसा कुच्छ नही सोचा
सवाल : किसी को पता लगा तो
जवाब : चंदर उससे डरता है. उसकी मज़ाल नही के किसी से कुच्छ कहे. और फिर वो तो गूंगा है. चाहे भी तो कुच्छ कह नही सकता
रूपाली अपने सवाल जवाब में ही उलझी हुई थी के टीवी पर गाना ख़तम हो गया. चंदर का ध्यान टीवी से हटा तो उसको एहसास हो गया के पिछे कोई खड़ा है. पलटा तो रूपाली को देखकर वो डर से काँप उठा. फ़ौरन खड़ा हो गया. उसको इतना भी होश नही रहा के उसका पाजामा नीचे था. बस उसने जल्दी से अपने दोनो हाथ जोड़ दिए.
रूपाली के दिल ने जैसे फ़ैसला कर लिया. वो आगे बढ़ी. उसे करीब आता देख चंदर और भी डर से काँपने लगा. आँखो से आँसू तक गिर पड़े.
रूपाली चुपचाप उसके करीब आई और कुच्छ भी नही कहा. एक पल चंदे की आँखो में देखा और हाथ से उसका लंड पकड़ लिया.


रूपाली का हाथ लंड पर पड़ते ही चंदर उच्छल पड़ा और 2 कदम पिछे को हो गया. रूपाली भी उसके साथ साथी ही आगे को बढ़ी और फिर से चंदर का लंड पकड़ लिया. डर के मारे चंदर का लंड बिल्कुल बैठा हुआ था. रूपाली ने थोड़ी देर पाजामे के उपेर से लंड को सहलाया और फिर धीरे से हाथ चंदर के कुर्ते के अंदर डाल कर उसका लंड पकड़ लिया.
चंदर ने इस बार फिर से पिछे होने की कोशिश की पर रूपाली ने उसका लंड अपनी मुट्ठी में पकड़ रखा था इसलिए पिछे हो नही पाया. वो परेशान नज़र से रूपाली की तरफ देखने लगा. रूपाली ने एक बार उसकी तरफ देखा और फिर अपने दोनो तरफ नज़र घुमाई. उसने चंदर का लंड छ्चोड़ा और उसे अपना पाजामा उपेर करने को कहा. चंदर ने जल्दी से अपना पाजामा उपेर करके बाँध लिया और फिर से अपने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया.
रूपाली ने उसका एक हाथ पकड़ा और उसे लगभग खींचते हुए अपने कमरे में लाई. दरवाज़ा बंद करने के बाद रूपाली चंदर की तरफ बढ़ी ही थी के रुक कर मुस्कुराइ. उसे बिंदिया के कही वो बात याद आ गयी जब उसने ये बताया था के चंदर कह रहा था रात बेसमेंट में मज़ा नही आया. रूपाली चंदर की तरफ बढ़ी और उसको धक्का देकर बिस्तर पर गिरा दिया.
चंदर बिस्तर पर गिरते ही दोबारा उठने लगा पर रूपाली ने उसको लेट रहने का इशारा किया. चंदर फिर बिस्तर पर लेट गया.
रूपाली अपनी अलमारी की तरफ बढ़ी और उसमें से अपने चार दुपट्टे निकाल लाई. चंदर अब भी उसको हैरान नज़र से देख रहा था. रूपाली उसके करीब आई और बिस्तर पर चढ़कर उसका कुर्ता उतारने लगी.चंदर ने मना करना चाहा तो उसने उसको घूरके देखा और चंदर ने अपने हाथ उपेर उठा दिया.
कुर्ता उतेर जाने के बाद रूपाली ने इशारे से चंदर को अपने दोनो हाथ उपेर करने को कहा जो उसने कर दिए. रूपाली ने मुस्कुराते हुए उसका एक हाथ पकड़ा और अपने दुपट्टे से उसका हाथ बिस्तर के कोने पर बाँध दिया. यही हाल उसने उसके दूसरे हाथ और फिर उसकी टाँगो का भी किया. अब चंदर बिस्तर पर पूरी तरह से बँधा हुआ पड़ा था.
जब रूपाली को यकीन हो गया के चंदर चाहकर भी नही हिल सकता तो वो उठकर सीधी खड़ी हुई. उसने महसूस किया के चंदर कमरे में नज़र घूमकर कुच्छ ढूँदने की कोशिश कर रहा है. जब रूपाली ने उसकी तरफ देखा तो चंदर ने अपने होंठ हिलाए. आवाज़ तो नही आई पर होंठ पढ़कर रूपाली समझ गयी के वो पुच्छ रहा है के बिंदिया कहाँ है. उसे याद आया के बिंदिया ने चंदर को ये कह रखा है के वो रात को रूपाली के साथ सोती है. रूपाली ने अपने कमरे के बीच के दरवाज़े की तरफ इशारा किया और कहा के बिंदिया उस तरफ दूसरे कमरे में है.
इशारा करके वो उठ खड़ी हुई. बिस्तर पर खड़े खड़े ही उसने अपनी नाइटी उपेर खींची और उतारकर फेंक दी. चंदर उसके नंगे जिस्म को घूरता ही रह गया. बड़ी बड़ी छातिया, भरा हुआ जिस्म, सॉफ की हुई चूत, चंदर की नज़र जैसे रूपाली के जिस्म का एक्स्रे कर रही थी. रूपाली एक पल के लिए यूँ ही बिस्तर पर खड़ी रही और चंदर को अपनी तरफ घूर्ने दिया.
थोड़ी देर बाद वो झुकी और अपनी दोनो चूचियाँ लाकर चंदर के मुँह पर दबा दी. चंदर का पूरा चेहरा उसकी चूचियों के बीच जैसे खो सा गया. रूपाली को इस सब में एक अजीब सा मज़ा आ रहा था. आज से पहले वो जितनी बार भी चुदी थी, वो चुद रही होती थी पर आज ऐसा लगा रहा था जैसे के वो खुद चुड़वा रही है. वो कंट्रोल में है. बिस्तर पर कोई और उसके जिस्म से नही खेल रहा बल्कि वो खुद एक मर्दाना जिस्म से खेल रही है.
चूचियो को थोड़ी देर चंदर के चेहरे पर रगड़ने के बाद वो थोड़ा सा उपेर हुई और अपने निपल्स उसके होंठों पर लगाने लगी. चंदर ने निपल अपने मुँह में लेने के लिए जैसे ही मुँह खोला रूपाली ने अपनी चूची पिछे कर ली. फिर वो बार बार ऐसा ही करती. चूची चंदर के मुँह के करीब लाती और जैसे ही वो निपल मुँह में लेने लगता वो पिछे को हो जाती. चंदर जैसे बोखला सा रहा था. वो चाहकर भी कुच्छ नही कर पा रहा था. उसके दोनो हाथ मज़बूती से बँधे हुए थे.
रूपाली थोडा नीचे खिसकी और अपनी चूचियाँ चंदर के सीने पर रगड़ने लगी. एक हाथ से उसने चंदर के पाजामे को खोलना शुरू किया और खींचकर नीचे कर दिया. चंदर का लंड फिर से खड़ा हो चुका था जिसे रूपाली अपने हाथ में पकड़कर उपेर नीचे करने लगी. रूपाली के हाथ के साथ साथ चंदर की कमर भी उपेर नीचे हो रही थी. रूपाली का दूसरा हाथ खुद उसकी चूत पर था.
जब उससे और बर्दाश्त नही हुआ तो वो उठ खड़ी हुई और चंदर के उपेर आ गयी. एक पल के लिए उसने नीचे होकर लंड चूत में लेने की सोची पर फिर इरादा बदलकर आगे को हुई और ठीक चंदर के चेहरे पर आकर खड़ी हो गयी. चंदर के चेहरा ठीक उसकी टाँगो के बीच था और नज़र रूपाली की चूत पर. रूपाली नीचे हुई और अपनी चूत लाकर चंदर के होंठो पर रख दी.
वो फ़ौरन पहचान गयी के चंदर ने आजसे पहले चूत पर मुँह नही लगाया था और शायद उसको पसंद भी नही था क्यूंकी वो अपना चेहरा इधर उधर करने की कोशिश कर रहा था पर रूपाली की भरी हुई गांद में जैसे उसका पूरा चेहरा दफ़न हो गया था. रूपाली को इसमें एक अलग ही मज़ा सा आ रहा था. उसे महसूस हो रहा था के वो आज जो चाहे कर सकती है, जैसे चाहे अपने जिस्म को ठंडा कर सकती है. उसने अपनी गांद आगे पिछे करनी शुरू की और चूत चंदर के मुँह पर रगड़ने लगी. उसकी साँस भारी हो चली थी और मुँह से आहह आहह की आवाज़ आनी शुरू हो गयी थी.
कुच्छ देर यही खेल खेलने के बाद वो फिर से खड़ी हुई और पिछे होकर फिर से नीचे बैठी पर इस बार उसकी चूत चंदर के मुँह के बजाय उसके लंड पर आई जो बहुत आसानी के साथ अंदर घुसता चला गया. लंड के अंदर जाते ही रूपाली के मुँह से एक लंबी आह निकल गयी. उसे लगा जैसे किसी प्यासे को पानी मिल गया हो. वो कुच्छ देर तक यूँ ही बैठी रही, लंड को चूत में महसूस करती रही, और फिर उपेर नीचे हिलना शुरू कर दिया. चंदर का लंड ठाकुर के लंड के मुक़ाबले कुच्छ भी नही था और रूपाली को इस बात की कमी खल रही थी पर इस वक़्त उसका वो हाल था के जो मिले वो अच्छा. वो किसी पागल की तरह चंदर के उपेर कूदने लगी. वो आगे को झुकती, अपने निपल्स चंदर के मुँह पर रगड़ती तो कभी उसकी चूची पर. लंड का चूत में अंदर बाहर होना बराबर जारी रहा.
थोड़ी देर बाद रूपाली के दिमाग़ में एक ख्याल आया. उसके पति और खुद ठाकुर ने कई बार उसकी गांद मारने की कोशिश की थी पर रूपाली ने करने नही दिया था. चंदर का लंड दोनो के मुक़ाबले छ्होटा था क्यूंकी वो खुद अभी बच्चा था. रूपाली ने कोशिश करने की सोची. वो थोड़ा सा उपेर हुई और लंड चूत से निकालकर हाथ में पकड़ लिया.
चंदर ने उसकी तरफ ऐसे देखा जैसे पुच्छ रहा हो के हो गया क्या? रूपाली मुस्कुराइ, उसके लंड को अपनी गांद पर रखा और धीरे धीरे नीचे होने की कोशिश करने लगी.
वो नीचे को होती और लंड जैसे ही गांद में जाता उसके जिस्म में दर्द होना शुरू हो जाता और वो फिर उपेर हो जाती. कई जब कई बार कोशिश करने पर भी वो लंड ले नही सकी तो उसने गुस्से में एक लंबी साँस खींची, अपनी आँखें बंद की, लंड गांद पर रखा और नीचे बैठती चली गयी.
दर्द की एक ल़हेर उसके जिस्म में उपेर से नीचे तक दौड़ गयी पर वो रुकी नही. अगले ही पल उसकी गांद नीचे चंदर की जाँघ से मिल गयी और लंड पूरी तरह गांद में समा गया. रूपाली से दर्द बर्दाश्त नही हो रहा था और आँखो से आँसू बह रहे थे. वो अभी रुक कर साँस ही ले रही थी के नीचे से चंदर ने नीचे से कमर झटक कर गांद पर एक धक्का मारा. रूपाली की चीख निकल गयी.

अगले दिन रूपाली की आँख जल्दी खुल गयी. वो अब भी बिस्तर पर नंगी पड़ी थी और गांद में अब तक दर्द हो रहा था. कल रात उसने उस वक़्त तो गांद मारा ली थी क्यूंकी थोड़ी देर बाद मज़ा आने लगा था पर चंदर के जाने के बाद उसका सोना मुश्किल हो गया था. इतना दर्द तो उसे तब भी नही हुआ था जब वो शादी के बाद पहली बार चुदी थी.
वो बिस्तर से उठके नीचे आई और सबसे पहले देवधर को फोन करने की सोची जिसे उसने आज घर आने को कहा.
"मैं बस अभी निकल ही रहा था" देवधर ने कहा
"आप हवेली ना आएँ" रूपाली ने कहा
"जी?" देवधर की समझ ना आया
"आप सीधे जय के घर पहुँचे. मैं दोपहर 12 बजे आपसे वहीं मिलूंगी" रूपाली ने कहा और फोन रख दिया
तेज सुबह सुबह ही कहीं गायब हो गया था और इंदर अब तक सो रहा था. पायल और बिंदिया रूपाली को किचन में मिले.
बिंदया अब भी अपने पुराने कपड़े में ही खड़ी थी जबकि पायल ने रूपाली की दिए हुए कपड़े पहेन रखे थे.
बिंदिया को देखकर रूपाली के दिल में ख्याल आया के उसे भी कुच्छ कपड़े दे दे पर सवाल था के किसके. सोचा तो उसके दिमाग़ में अपनी सास का नाम आया. सरिता देवी के मरने के बाद से उनके कपड़े सब यूँ ही रखे थे.
रूपाली उस कमरे में पहुँची जिस में सरिता देवी ने अपने आखरी कुच्छ दिन गुज़ारे थे. बीमार होने के बाद उन्हें इस कमरे में शिफ्ट कर दिया गया था और उनका सारा समान भी यहीं था. रूपाली कमरे में आई और कपड़े उठा उठाकर देखने लगी
कुच्छ कपड़े पसंद करने के बाद वो कमरे से निकल ही रही थी के उसे वो डिब्बा नज़र आया जिसमें सरिता देवी अपनी दवाई रखा करती थी. कुच्छ गोलियाँ डिब्बे में अब भी थी. अब उनका कुच्छ काम नही था ये सोचकर रूपाली ने डिब्बा उठाया और खोला.
उसमें नीचे एक पेपर मॉड्कर रखा हुआ था और उसपर कुच्छ गोलियाँ रखी हुई थी. रूपाली ने डिब्बा उलटकर दवाइयाँ बिस्तर पर गिराई. गोलियों के साथ ही अंदर रखा वो काग़ज़ भी निकालकर बिस्तर पर गिर पड़ा और तब रूपाली का ध्यान पड़ा के वो असल में एक काग़ज़ नही बल्कि एक तस्वीर थी.
तस्वीर ब्लॅक आंड वाइट थी. उसमें कामिनी एक लड़के के साथ खड़ी हुई थी. लड़का कौन था ये रूपाली पहचान नही सकी पर सबसे ज़्यादा हैरत उसे कामिनी के कपड़ो पर हुई. कामिनी कभी इस तरह के कपड़े नही पेहेन्ति थी और तब रूपाली ने ध्यान से देखा तो उसको एहसास हुआ को वो लड़की कामिनी नही बल्कि खुद सरिता देवी थी. ये उनकी जवानी के दीनो की तस्वीर थी. कामिनी शकल सूरत से बिल्कुल अपनी माँ पर गयी थी इसलिए कोई भी इस तस्वीर को देखकर ये धोखा खा सकता था के तस्वीर में कामिनी खड़ी है.
रूपाली का ध्यान सरिता देवी के साथ खड़े लड़के पर गया. जहाँ तक उसको पता था सरिता देवी का कोई भाई नही था और फोटो में खड़ा लड़का ठाकुर साहब तो बिल्कुल नही थे. लड़का शकल सूरत से खूबसूरत था पर सरिता देवी से हाइट में छ्होटा था. रूपाली ने तस्वीर उठाकर अपने पास रख ली और कमरे से बाहर निकल आई.
बाहर आकर उसने इनस्पेक्टर ख़ान को फोन किया और उसको भी हवेली आने के बजाय जय के घर पर मिलने की हिदायत दी.
इंदर अब तक सो रहा था. रूपाली ने उसे जगाना चाहा पर फिर अपनी सोच बदलकर तैय्यार हुई और खुद ही अकेली कार लेकर निकल पड़ी.
थोड़ी देर बाद वो हॉस्पिटल पहुँची.
ठाकुर अब भी बेहोश थे. भूषण वहीं बेड के पास बैठा हुआ था. रूपाली को देखकर वो खड़ा हुआ.
रूपाली वो तस्वीर अपने साथ लाई थी जो उसे सरिता देवी के कमरे में मिली थी. वो जानती थी के अगर कोई उसको तस्वीर में खड़े लड़के के बारे में बता सकता था तो वो एक भूषण ही था.
रूपाली ने तस्वीर निकालकर भूषण को दिखाई.
"कौन है ये आदमी काका?" उसने भूषण से पुचछा
तस्वीर देखते ही भूषण की आँखें फेल गयी.
"आपको ये कहाँ मिली?" भूषण ने पुचछा
"माँ के कमरे से" रूपाली अपनी सास को माँ कहकर ही बुलाती थी "कौन है ये?"
"था एक बदनसीब" भूषण ने कहा "जिसकी मौत इस हवेली में लिखी थी और उसको यहाँ खींच लाई थी"
"मतलब?" रूपाली ने पुचछा
"ये ठकुराइन के बचपन का दोस्त था. ये लोग साथ में पले बढ़े थे. सरिता देवी इसको अपने भाई की तरह मनती थी पर इसके दिल में शायद कुच्छ और ही था. जब उनकी शादी ठाकुर साहब के साथ हुई तो इसने बड़ा बवाल किया था सुना है पर शादी रोक नही पाया क्यूंकी सरिता देवी खुद ऐसा नही चाहती थी."
"फिर?" रूपाली ने पुचछा
"फिर शादी हो गयी और सब इस बात को भूल गये. ठाकुर साहब को तो इस बात की खबर भी उस दिन लगी जब ये हवेली में आ पहुँचा"
"हवेली?"रूपाली बोली
"हां" भूषण ने कहा "शादी के कोई 1 महीने बाद की बात है. एक दिन ये हवेली के दरवाज़े पर आ खड़ा हुआ और इसकी बदक़िस्मती के सबसे पहले ठाकुर साहब से ही टकरा गया. उनसे गुहार करने लगा के वो ठकुराइन से प्यार करता है और उनके बिना जी नही सकता. और जैसे इसके दिल की मुराद पूरी हो गयी"
रूपाली खामोश खड़ी सुन रही थी
"ठाकुर साहब ने इसे इतना मारा के इसने वहीं दम तोड़ दिया. लोग प्यार में जान देते हैं मैने सुना था पर उस दिन देखा पहली बार था" भूषण ने कहा
रूपाली को अपने कानो पर यकीन नही हो रहा था. उसे समझ नही आ रहा था के क्या कहे और क्या सोचे. उसने अपनी घड़ी पर नज़र डाली. दोपहर होने को थी. उसने फ़ैसला किया के तस्वीर के बारे में बाद में सोचेगी और वहाँ से निकालकर जय के घर की तरफ बढ़ी.
12 बजने में थोड़ी ही देर थी जब रूपाली ने जय के घर के बाहर कार रोकी. देवधर और इनस्पेक्टर ख़ान बाहर ही खड़े उसका इंतेज़ार कर रहे थे.
"यहाँ क्यूँ बुलाया?" ख़ान ने रूपाली को देखते हुए पुचछा
"सोचा के जो मेरा है वो वापिस ले लिया जाए" रूपाली ने कहा तो देवधर और ख़ान दोनो उसकी तरफ हैरानी से देखने लगे
"आप ही ने कहा था ना के मेरे पति की मौत होते ही सब मेरे नाम हो गया था.पवर ऑफ अटर्नी बेकार थी तो मतलब के जय ने जिस हक से ये घर खरीदा वो भी ख़तम था. तो मतलब के ये घर मेरा हुआ?" रूपाली ने कहा तो ख़ान और देवधर दोनो मुस्कुरा दिए और उसके साथ जय के घर के गेट की तरफ बढ़े.
वॉचमन ने बताया के जय घर पर ही था और अंदर जाकर जय को उनके आने की खबर करके आया. कुच्छ देर बाद वो तीनो जय के सामने बैठे थे.
जाई तकरीबन पुरुषोत्तम की ही उमर का था. शकल पर वही ठाकुरों वाली अकड़. बैठा भी ऐसे जैसे कोई राजा अपने महेल में बैठा हो.
रूपाली को हैरत थी के वो कभी जाई से मिली नही थी. वो उसकी शादी से पहले ही अलग घर बनाकर रहने लगा था पर कभी किसी ने उसका ज़िक्र रूपाली के सामने नही किया था और ना ही रूपाली ने उसको अपनी शादी में देखा था जबकि वो उसके पति का सबसे करीबी था. पर इसका दोष उसने खुद को ही दिया. उन दीनो तो उसे अपनी पति तक की खबर नई होती थी, जाई की क्या होती.
"कहिए" उसने रूपाली को देखते हुए पुचछा
"गेट आउट" रूपाली ने उसे देखते हुए कहा
"क्या?" जाई ने ऐसे पुचछा जैसे अँग्रेज़ी समझ ही ना आती हो
"मेरे घर से अभी इसी वक़्त बाहर निकल जाओ" रूपाली ने कहा
"आपके घर से?" जाई ने हस्ते हुए पुचछा
रूपाली ने देवधर की तरफ देखा. देवधर आगे बढ़ा और वो सारी बातें जाई को बताने लगा जो उसने पहले रूपाली को बताया था. धीरे धीरे जाई की समझ आया के रूपाली किस हक से उसके घर को अपना कह रही थी और वो परेशान अपने सामने रखे पेपर्स को देखने लगा.
"और अगर मैं जाने से इनकार कर दूँ तो?" जाई ने पेपर्स एक तरफ करते हुए पुचछा
रूपाली ने खामोशी से इनस्पेक्टर ख़ान की तरफ देखा. वो जानती थी के जाई ऐसा बोल सकता है इसलिए ख़ान को साथ लाई थी
"मैं ये मामला अदालत में ले जाऊँगा. ऐसे कैसे घर आपका हो गया? मैं अपने वकील को बुलाता हूँ" जाई ने फोन की तरफ हाथ बढ़ाया
"बाहर एक एसटीडी बूथ है. वहाँ से करना. फिलहाल घर से बाहर निकल" ख़ान बीचे में बोल पड़ा
"तमीज़ से बात करो" जाई ख़ान पर चिल्लाते हुए बोला
"ये देखा है?" ख़ान ने अपना हाथ आगे किए "एक कान के नीचे पड़ा ना तो तमीज़ और कमीज़ में फरक समझ नही आएगा तुझे. चल निकल"
जाई चुप हो गया. वो उठकर घर के अंदर की तरफ जाने लगा.
"वहाँ कहाँ जा रहा है?" ख़ान फिर बोला "दरवाज़ा उस तरफ है"
"अपना कुच्छ समान लेने जा रहा हूँ" जाई रुकते हुए बोला
"वो समान भी मेरे पैसो से आया था तो वो भी मेरा हुआ. अब इससे पहले के मैं ये कपड़े जो तुमने पहेन रखे हैं ये भी उतरवा लूँ, निकल जाओ" रूपाली खड़ी होते हुए बोली
"फिलहाल तो जा रहा हूँ पर इतना आसान नही होगा आपके लिए मुझे हराना" जाई ने कहा तो रूपाली मुस्कुराने लगी
"आपको क्या लगता है के ये सब उस नीच ठाकुर का है जो अपने ही भाई को दौलत के लिए मार डाले? जो साले अपने घर की नौकरानी को भी नही छ्चोड़ते?" जाई ने रूपाली के करीब आते हुए कहा.
उसकी इस हरकत पर ख़ान उसकी तरफ बढ़ा पर रूपाली ने उसको हाथ के इशारे से रोक दिया
"क्या मतलब?" उसने जाई से पुचछा "क्या बकवास कर रहे हो?"
"सच कह रहा हूँ" जाई ने कहा "आपको शायद नही पता पर मैने देखा है. वो भूषण की बीवी, उसे ठाकुर के खानदान ने अपनी रखैल बना रखा था. ज़बरदस्ती सुबह शाम रगड़ते थे उसे. ठाकुर, तेज, कुलदीप और खुद आपके पति पुरुषोत्तम सिंग जी"
"भूषण की बीवी?" रूपाली हैरान हुई
"जी हां" तेज बोला "जब उस बेचारी ने जाकर सब कुच्छ भूषण या आपकी सास को बता देने की धमकी दी तो गायब हो गयी और बात ये फेला दी गयी के अपने किसी आशिक़ के साथ भाग गयी"
रूपाली के दिमाग़ की बत्तियाँ जैसे एक एक करके जलने लगी. हवेली में मिली लाश जो कामिनी की नही थी, कुलदीप के कमरे में मिला वो ब्रा. खुद ख़ान भी चुप खड़ा सुन रहा था.
"तुम्हें ये कैसे पता?" रूपाली ने पुचछा
"हवेली में बचपन गुज़ारा है मैने. देखा है सब अपनी आँखो से. जैसे ही वो हवेली में काम करने आई तो सबसे पहले ठाकुर की नज़र उस पर पड़ी तो पहले उन्होने काम किया. फिर उनकी देखा देखी उनके सबसे बड़े बेटे पुरुषोत्तम सिंग जिन्हें दुनिया भगवान राम का अवतार समझती थी उन्होने अपना सिक्का चला दिया बेचारी पर. जब बड़े भाई ने मुँह मार लिया तो बाकी के दोनो कहाँ पिछे रहने वाले थे. मौका मिलते ही तेज और कुलदीप ने फ़ायदा उठा लिया"
रूपाली की आँखों के आगे अंधेरा सा च्चाने लगा.
"बकवास कर रहे हो तुम" उसने जाई से कहा
"सच बोल रहा हूँ मैं. अपनी हवस संभाली नही जाती इन लोगों से, फिर चाहे वो औरत की हो या दौलत की और इसी के चलते पुरुषोत्तम भी मरा. आपसी लड़ाई थी वो इन लोगों की दौलत के पिछे. एक भाई ने दूसरे को मारा है" जाई ने कहा
पर रूपाली का दिमाग़ उस वक़्त दूसरी ही तरफ चल रहा था. उसे इंदर की कही बातें याद आ रही थी जो कामिनी ने उसको कही थी.
"बस जिस्म की आग बुझनी चाहिए. फिर नज़र नही आता के कौन अपने घर का है और कौन ........."
उसे अपने पति का वो रूप याद आया जो वो रोज़ रात को बिस्तर पर देखा करती थी. किस तरह से वो उसको नंगी करते ही इंसान से कुच्छ और ही बन जाता था. उसे याद आया के किस आसानी से बिंदिया तेज के बिस्तर पर पहुँच गयी थी और तेज ने मौका मिलते ही उसको चोद लिया था. उसको याद आया के किस आसानी से उस रात ठाकुर ने उसके सामने ही पायल को चोद लिया था. ज़रा भी नही सोचा था दोनो ने के वो एक मामूली नौकरानी है और वो वहाँ के ठाकुर. पर क्या कोई इतना गिर सकता था के अपनी ही बहेन के साथ? सोचकर रूपाली का दिमाग़ फटने लगा. तो ये वजह थी पायल के गायब होने की. अपने भाई को गोली मारकर छुपति फिर रही थी.
दोस्तो कैसा लगा ये पार्ट अपनी राय देना मत भूलना वैसे भी ये कहानी अब अपने अंत के पास आ चुकी है
दोस्तो दिमाग़ पर ज़ोर दीजिए ओर बताइए पुरूसोत्तम का कातिल कौन है




साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) ऑल्वेज़
`·.¸(¨`·.·´¨) कीप लविंग &
(¨`·.·´¨)¸.·´ कीप स्माइलिंग !
`·.¸.·´ -- राज





sexi haveli ka such --23

Agle din Inder Kamini ki batayi hui jagah par khada intezaar kar raha tha. Kamini ne 2 baje aane ko kaha tha par 3 din baj chuke the aur vo ab tak nahi aayi thi. Kal raat se Inder ka soch sochkar Dimag phata ja raha tha. Jaan ko khatra? Apne ajnabhi ho gaye? Kamini ki kahi koi baat use samajh nahi aa rahi thi.
Jab ghadi mein 3 baj gaye to vo samajh gaya ke Kamini nahi aayegi. Usne vapis jaane ka faisla kiya aur car start hi ki thi ke review car mein use Kamini ki gaadi aati hui dikhai di. Uski jaan mein jaan aayi. Kamini ne uski car ke pichhe apni car lakar roki. Inder apni gaadi se nikalne hi wala tha ke Kamini khud apni car se nikalkar jaldi jaldi Inder ki gaadi ki taraf aayi aur darwaza kholkar andar aa gayi.
"Gun laaye?" Kamini ne gaadi mein bethte hi puchha
"Haan laaya hoon par meri baat suno Kamini" Inder ne kuchh kehna chaha hi tha ke Kamini ne saamne rakhi revolver dekhi aur jaldi se utha li
"Abhi kuchh kehne ya sunne ka waqt nahi hai Inder. Main ye gun kuchh din baad tumhen lauta doongi aur tab sab kuchh samjha doongi" Kehkar Kamini ne apni taraf ka darwaza khola aur isse pehle ke Inder kuchh keh pata ya kar pata vo car se bahar nikal gayi. Inder bhi jaldi se apni taraf ka darwaza kholkar bahar nikla. Kamini tez kadmon se chalti apni car ki taraf ja rahi thi aur jab tak ke Inder us tak pahunchta, vo car start kar chuki thi.
"Ruko Kamini" Inder bhagta hua Kamini ki taraf aaya aur car ki window par haath rakhkar jhuka "Tum mere saath aisa nahi kar sakti. Tumhen batana hoga ke aakhir ho kya raha hai"
Kamini uski taraf dekhkar muskurayi aur Inder ke chehre par pyaar se haath phera.
"Inder" Usne muskurate hua kaha "Mera Inder"
"Main hamesha tumhara hoon Kamini par .... "Inder ne kuchh kehna chaha hi tha ke Kamini ne uske honth par apni anguli rakh kar use chup kara diya
"Tumhen yaad hai Inder jab ham pehli baar mile the tab maine tumhen ek sher sunaya tha aur maine kaha tha ke khuda na kare mujhe kabhi iski aakhri lines bhi tumhen kehni paden?" Kamini ne puchha to Inder ne haan mein sar hila diya
Kamini khidki ke thoda nazdeek aayi aur Inder ke gale mein haath daalkar use thoda nazdeek kiya. Agle hi pal dono ke honth mil gaye. Kamini use dheere dheere pyaar se choomne lagi aur phir apne honth Inder ke honth se hatakar uske kaan ke paas laayi. Apni usi andaaz mein phir vo aise boli jaise koi bahut bade raaz ki baat bata rahi ho.


"Kuchh is ada se aap yun pehlu-nashin rahe
Jab tak hamare paas rahe ham nahin rahe

Ye din bhi dekhna faz tha teri aashqi mein,
Rone ki hasrat hai magar aansoo nahin rahe,

Ja aur koi sukoon ki duniya talash kar,
Mere mehboob ham to tere qabil nahin rahe"


Aur isse pehle ke Inder kuchh samajh pata, Kamini ke car uski aankho se tezi ke saath door hoti ja rahi thi.
"Bas" Inder ne ek lambi saans li "Itni hi thi hamari kahani. Aap puchh rahi thi na ke ham kitna kareeb aaye the? Itna kareeb aaye the ham Didi"
Aur Inder apna sar apne haathon mein pakadkar rone laga
"Tumne ye baat kisi se kahi kyun nahi?" Rupali ne puchha
"Main kya kehta? Inder bola "Jijaji ka khoon hone ke baad agar main kisi se ye kehta ke maine gun Kamini ko di thi to sab log kya samajhte? Aur agar ye kehta ke mere se gum hui hai to sab mere baare mein kya sochte? Bilkul vahi sochte jo is waqt vo Inspector soch raha hai"
Rupali thodi der tak Inder ke saamne chup bethi rahi. Use samajh nahi aa raha the ke kya kahe aur Inder ko kaise sambhale. Mahaul ko halka karne ke liye usne baat badalne ki sochi
"Ek ladki ke ishq mein yun ro rahe ho aur harkaten kuchh aur kar rahe ho?" Usne Inder ke sar par halke se thappad maara
"Kya matlab" Inder ne apna sar uper uthaya
"Maine dekha tha basement mein. Tumhen aur vo kal ki chhokri Payal ko
Inder ka munh hairani se khula reh gaya. Vo Rupali ke muskurate chehre ko thodi der tak dekhta raha aur phir khud sharmata hua has pada
"Aap vahan kab aayi?"
"Jis tarah se vo Payal table par leti shor macha rahi thi usse to mujhe hairani hai ke poora gaon kyun nahi aa gaya" Rupali ne jawab diya to dono bhai behen has pade
"Main kya karta Didi" Inder ne kaha "Kamini jis tarah se gayi usse main bokhla utha tha. Socha main kyun ek ladki ke ishq mein mara ja raha hoon. Uske baad jo saamne aayi main nahi ruka. Pata nahi kya saabit karna chah raha tha ya pata nahi dil hi dil mein shayad Kamini ko dikhana chah raha tha ke main uske bina jee sakta hoon. Kami nahi hai mere paas"
Uske baad Rupali aur thodi der Inder ke kamre mein bethi rahi. Uske baad vo uthkar apne kamre mein aa gayi. Achanak use Kamini ke kamre mein mili cigerettes ki baat yaad aayi. Usne socha ke Inder se puchhe ke kya vo Kamini ko cigerettes laakar deta tha? Ye sochkar vo vapis Inder ke kamre par pahunchi to kamra ander se band tha. Rupali ne kholne ki koshish ki to kamre ko ander se lock paaya. Vo Inder ka naam pukarne hi wali thi ke andar se aati Payal ki aawaz sunkar uska haath ruk gaya. Aawaz se saaf pata chal raha tha ke andar Payal aur Inder kya kar rahe hain.
Rupali ka munh hairat se khula reh gaya. Use abhi Inder ke kamre se gaye mushkil se 15 mins hi hue the. Jo ladka abhi thodi der pehle betha Kamini ke ishq mein aansu baha raha tha vo 15 mins mein hi Payal par chadha hua tha. Vo bhi bhare din mein. Tab jabki uski apni badi behen aur Payal ki maan usi haweli mein maujood thi.
Rupali vapis apne kamre ki aur chal padi. Inder ki harkat se use shaq hone laga tha ke jo Inder ne Kamini ke aur apne baari mein kahani Rupali ko sunayi thi, kya vo sach thi. Aur agar sach thi to kitni sach thi.

Raat dhal chuki thi. Pichhli kuchh raaton ki tarah ye raat bhi alag nahi thi. Kamini apne bistar par padi thi. Poori tarah nangi. Taange pheli hui, ek haath uski chhatiyon par aur doosra taango ke beech uski choot par. Use apne uper hairat thi ke kahan kal ki ek sidhi saadi gharelu aurat aur kahan ek ye aurat jisse apne jism ki garmi ek raat bhi nahi sambhali jaati thi. Usne apni 3 anguliyan apni choot mein ghusa rakhi thi par jism tha ke khamosh hone ka naam hi nahi le raha tha. Chidhkar Rupali ne apna haath taango ke beech se hataya aur gusse mein bistar par zor se maara.
Raat ke takreeban 9 baje Tej vapis aa gaya tha. Usn Rupali ya kisi aur se koi baat nahi ki thi. Chup chap bas apne kamre mein chala gaya tha. Kaam khatam karke Bindiya ko bhi Rupali ne uske hi kamre mein jaate dekha tha. Aaj ki raat Rupali aisa bhi nahi kar sakti thi ke Payal ke saath hi apne jism ki aag bhujhane ki koshish kare kyunki Payal bhi apne kamre mein nahi thi aur Rupali achhi tarah janti thi ke is waqt vo Inder ke kamre mein chud rahi hogi.
Is khyaal se uska jism aur bhadakne laga. Pareshan hokar vo bistar se uthi aur neeche bade kamre mein jaakar TV dekhne ka faisla kiya kyunki neend aankho se bahut door thi.
Sidhiyan utarti Rupali ke kadam achanak se ruk gaye. Bade kamre mein TV on tha. Is waqt kaun dekh raha ho sakta hai? TV aakhri baar vo khud hi dekh rahi thi aur usko achhi tarah se yaad tha ke vo TV band karke gayi thi. Sochti hui vo sidhiyan utari aur jaise hi bade kamre mein aayi uski aankhen khuli reh gayi.
Kamre mein TV on tha aur uspar koi gaana chal raha tha. Saamne Chander betha hua tha. Gaane mein heroine bheegi hui saree mein hero ko rijhane ki koshish kar rahi thi jo uske kareeb nahi aa raha tha. Chander saamne zameen par taange mode betha tha. Uska pajama neeche tha aur kurta usne uper karke apne gale mein phasaya hua tha.Aankhen TV par gadi hui aur uska haath lund ko pakde uper neeche ho raha tha.
Rupali use ek pal vahin khadi dekhti rahi. Chander TV mein itna khoya hua tha ke use Rupali ke aane ka aabhas hi nahi hua. Rupali kabhi TV ki taraf dekhti to kabhi Chander ke haath jo uper neeche ho raha tha. Rupali ki aankhon ke aage phir vo nazara aa gaya jab Chander ne usko basment mein Bindiya samajhkar andhere mein chod diya tha. Rupali ki pehle se geeli choot se jaise nadi si behne lagi. Uska dil kiya ke aage badhkar Chander ka lund pakad le par phir vo khud hi ruk gayi aur uska dil khud se hi sawal jawab karne laga
Sawal : "Ek naukar ke saaath?"
Jawab : To kya hua. Bhushan bhi to naukar hi tha. Payal ke saath bhi Rupali soyi thi aur Payal bhi to naukrani thi.
Sawal : Par vo ek thakurain hai
Jawab : To kya hua. Jab uska bhai ghar ki naukrani ko chod sakta hai to vo kyun nahi. aur aaj se pehle kaun sa usne is baare mein socha tha.
Sawal : Aur thakur sahab? Unse to vo pyaar karti thi.
Jawab : To kya hua? Us raat Rupali ke kehne par jab thakur ne Payal ko choda tha tab unhone to aisa kuchh nahi socha
Sawal : Kisi ko pata laga to
Jawab : Chander usse darta hai. Uski majal nahi ke kisi se kuchh kahe. Aur phir vo to goonga hai. Chahe bhi to kuchh keh nahi sakta
Rupali apne sawal jawab mein hi uljhi hui thi ke TV par gaana khatam ho gaya. Chander ka dhyaan TV se hata to usko ehsaas ho gaya ke pichhe koi khada hai. Palta to Rupali ko dekhkar vo darr se kaanp utha. Fauran khada ho gaya. Usko itna bhi hosh nahi raha ke uska pajama neeche tha. Bas usne jaldi se apne dono haath jod diye.
Rupali ke dil ne jaise faisla kar liya. Vo aage badhi. Use kareeb aata dekh Chander aur bhi darr se kaanpne laga. Aankho se aansu tak gir pade.
Rupali chupchap uske kareeb aayi aur kuchh bhi nahi kaha. Ek pal Chande ki aankho mein dekha aur haath se uska lund pakad liya.


Rupali ka haath lund par padte hi Chander uchhal pada aur 2 kadam pichhe ko ho gaya. Rupali bhi uske saath saathi hi aage ko badhi aur phir se Chander ka lund pakad liya. Darr ke maare Chander ka lund bilkul betha hua tha. Rupali ne thodi der pajame ke uper se lund ko sehlaya aur phir dheere se haath Chander ke kurte ke andar daal kar uska lund pakad liya.
Chander ne is baar phir se pichhe hone ki koshish ki par Rupali ne uska lund apni mutthi mein pakad rakha tha isliye pichhe ho nahi paya. Vo pareshan nazar se Rupali ki taraf dekhne laga. Rupali ne ek baar uski taraf dekha aur phir apne dono taraf nazar ghumayi. Usne Chander ka lund chhoda aur use apna Pajama uper karne ko kaha. Chander ne jaldi se apna pajama uper karke bandh liya aur phir se apne haath jodkar khada ho gaya.
Rupali ne uska ek haath pakda aur use lagbhagh khinchte hue apne kamre mein laayi. Darwaza band karne ke baad Rupali Chander ki taraf badhi hi thi ke ruk kar muskurayi. Use Bindiya ke kahi vo baat yaad aa gayi jab usne ye bataya tha ke Chander keh raha tha raat basement mein maza nahi aaya. Rupali Chander ki taraf badhi aur usko dhakka dekar bistar par gira diya.
Chander bistar par girte hi dobara uthne laga par Rupali ne usko lete rehne ka ishara kiya. Chander phir bistar par let gaya.
Rupali apni almari ki taraf badhi aur usmen se apne char dupatte nikal laayi. Chander ab bhi usko hairan nazar se dekh raha tha. Rupali uske kareeb aayi aur bistar par chadhkar uska kurta utarne lagi.Chander ne mana karna chaha to usne usko ghoorke dekha aur Chander ne apne haath uper utha diya.
Kurta uter jaane ke baad Rupali ne ishare se Chander ko apne dono haath uper karne ko kaha jo usne kar diye. Rupali ne muskurate hue uska ek haath pakda aur apne dupatte se uska haat bistar ke kone par baandh diya. Yahi haal usne uske doosre haath aur phir uski taango ka bhi kiya. Ab Chander bistar par poori tarah se bandha hua pada tha.
Jab Rupali ko yakeen ho gaya ke Chander chahkar bhi nahi hil sakta to vo uthkar sidhi khadi hui. Usne mehsoos kiya ke Chander kamre mein nazar ghumakar kuchh dhoondne ki koshish kar raha hai. Jab Rupali ne uski taraf dekha to Chander ne apne honth hilaye. Aawaz to nahi aayi par honth padhkar Rupali samajh gayi ke vo puchh raha hai ke Bindiya kahan hai. Use yaad aaya ke Bindiya ne Chander ko ye keh rakha hai ke vo raat ko Rupali ke saath soti hai. Rupali ne apne kamre ke beech ke darwaze ki taraf ishara kiya aur kaha ke Bindiya us taraf doosre kamre mein hai.
Ishara karke vo uth khadi hui. Bistar par khade khade hi usne apni nighty uper khinchi aur utarkar phenk di. Chander uske nange jism ko ghoorta hi reh gaya. Badi badi chhatiyan, bhara hua jism, saaf ki hui choot, Chander ki nazar jaise Rupali ke jism ka xray kar rahi thi. Rupali ek pal ke liye yun hi bistar par khadi rahi aur Tej ko apni taraf ghoorne diya.
Thodi der baad vo jhuki aur apni dono chhatiyan laaka Chande ke munh par daba di. Chander ka poora chehra uski chhatiyon ke beech jaise kho sa gaya. Rupali ko is sab mein ek ajeeb sa maza aa raha tha. Aaj se pehle vo jitni baar bhi chudi thi, vo chud rahi hoti thi par aaj aisa laga raha tha jaise ke vo khud chudwa rahi hai. Vo control mein hai. Bistar par koi aur uske jism se nahi khel raja balki vo khud ek mardana jism se khel rahi hai.
Chhatiyon ko thodi der Chander ke chehre par ragadne ke baad vo thoda sa uper hui aur apne nipples uske honthon par lagane lagi. Chander ne nipple apne munh mein lene ke liye jaise hi munh khola Rupali ne apni chhati pichhe kar li. Phir vo baar baar aisa hi karti. Chhati Chander ke munh ke kareeb laati aur jaise hi vo nipple munh mein lene lagta vo pichhe ko ho jaati. Chander jaise bokhla sa raha tha. Vo chahkar bhi kuchh nahi kar pa raha tha. Uske dono haath mazbooti se bandhe hue the.
Rupali thoda neeche khiski aur apni chhatiyan Chander ke seene par ragadne lagi. Ek haat se usne Chander ke pajame ko kholna shuru kiya aur khinchkar neeche kar diya. Chander ka lund phir se khada ho chuka tha jise Rupali apne haath mein pakadkar uper neeche karne lagi. Rupali ke haath ke saath saath Chander ki kamar bhi uper neeche ho rahi thi. Rupali ka doosra haath khud uski choot par tha.
Jab usse aur bardasht nahi hua to vo uth khadi hui aur Chander ke uper aa gayi. Ek pal ke liye usne neeche hokar lund choot mein lene ki sochi par phir irada badalkar aage ko hui aur theek Chander ke chehre par aakar khadi ho gayi. Chander ke chehra theek uski taango ke beech tha aur nazar Rupali ki choot par. Rupali neeche hui aur apni choot lakar Chander ke hontho par rakh di.
Vo fauran pehchaan gayi ke Chander ne aajse pehle choot par munh nahi lagaya tha aur shayad usko pasand bhi nahi tha kyunki vo apna chehra idhar udhar karne ki koshish kar raha tha par Rupali ki bhari hui gaand mein jaise uska poora chehra dafan ho gaya tha. Rupali ko ismein ek alag hi maza sa aa raha tha. Use mehsoos ho raha tha ke vo aaj jo chahe kar sakti hai, jaise chahe apne jism ko thanda kar sakti hai. Usne apni gaand aage pichhe karni shuru ki aur choot Chander ke munh par ragadne lagi. Uski saans bhaari ho chali thi aur munh se aahh aahh ki aawaz aani shuru ho gayi thi.
Kuchh der yahi khel khelne ke baad vo phir se khadi hui aur pichhe hokar phir se neeche bethi par is baar uski choot Chander ke munh ke bajay uske lund par aayi jo bahut aasani ke saath andar ghusta chala gaya. Lund ke andar jaate hi Rupali ke munh se ek lambhi aah nikal gayi. Use laga jaise kisi pyaase ko paani mil gaya ho. Vo kuchh der tak yun hi bethi rahi, lund ko choot mein mehsoos karti rahi, aur phir uper neeche hilna shuru kar diya. Chander ka lund Thakur ke lund ke muqable kuchh bhi nahi tha aur Rupali ko is baat ki kami khal rahi thi par is waqt uska vo haal tha ke jo mile vo achha. Vo kisi pagal ki tarah Chander ke uper koodne lagi. Vo aage ko jhukti, apne nipples Chander ke munh par ragadti to kabhi uski chhati par. Lund ka choot mein andar bahar hona barabar jaari raha.
Thodi der baad Rupali ke dimag mein ek khyaal aaya. Uske pati aur khud thakur ne kai baar uski gaand maarne ki koshish ki thi par Rupali ne karne nahi diya tha. Chander ka lund dono ke muqable chhota tha kyunki vo khud abhi bachcha tha. Rupali ne koshish karne ki sochi. Vo thoda sa uper hui aur lund choot se nikalkar haath mein pakad liya.
Chander ne uski taraf aise dekha jaise puchh raha ho ke ho gaya kya? Rupali muskurayi, uske lund ko apni gaand par rakha aur dheere dheere neeche hone ki koshish karne lagi.
Vo neeche ko hoti aur lund jaise hi gaand mein jaata uske jism mein dard hona shuru ho jaata aur vo phir uper ho jaati. Kai Jab kai baar koshish karne par bhi vo lund le nahi saki to usne gusse mein ek lambi saans khinchi, apni aankhen band ki, lund gaand par rakha aur neeche bethti chali gayi.
Dard ki ek leher uske jism mein uper se neeche tak daud gayi par vo ruki nahi. Agle hi pal uski gaand neeche Chander ki jaangh se mil gayi aur lund poori tarah gaand mein sama gaya. Rupali se dard bardasht nahi ho raha tha aur aankho se aansu beh rahe the. Vo abhi ruk kar saans hi le rahi thi ke neeche se Chander ne neeche se kamar jhatak kar gaand par ek dhakka maara. Rupali ki cheekh nikal gayi.

Agle din Rupali ki aankh jaldi khul gayi. Vo ab bhi bistar par nangi padi thi aur gaand mein ab tak dard ho raha tha. Kal raat usne us waqt to gaand mara li thi kyunki thodi der baad maza aane laga tha par Chander ke jaane ke baad uska sona mushkil ho gaya tha. Itna dard to use tab bhi nahi hua tha jab vo shaadi ke baad pehli baar chudi thi.
Vo bistar se uthke neeche aayi aur sabse pehle Devdhar ko phone karne ki sochi jise usne aaj ghar aane ko kaha.
"Main bas abhi nikal hi raha tha" Devdhar ne kaha
"Aap haweli na aayen" Rupali ne kaha
"Ji?" Devdhar ki samajh na aaya
"Aap sidhe Jai ke ghar pahunche. Main dopahar 12 baje aapse vahin milungi" Rupali ne kaha aur phone rakh diya
Tej subah subah hi kahin gayab ho gaya tha aur Inder ab tak so raha tha. Payal aur Bindiya Rupali ko kitchen mein mile.
Bindya ab bhi apne purane kapde mein hi khadi thi jabki Payal ne Rupali ki diye hue kapde pehen rakhe the.
Bindiya ko dekhkar Rupali ke dil mein khyaal aaya ke use bhi kuchh kapde de de par sawal tha ke kiske. Socha to uske dimag mein apni saas ka naam aaya. Sarita Devi ke marne ke baad se unke kapde sab yun hi rakhe the.
Rupali us kamre mein pahunchi jis mein Sarita Devi ne apne aakhri kuchh din guzare the. Bimar hone ke baad unhen is kamre mein shift kar diya gaya tha aur unka saara saman bhi yahin tha. Rupali kamre mein aayi aur kapde utha uthakar dekhne lagi
Kuchh kapde pasand karne ke baad vo kamre se nikal hi rahi thi ke use vo dibba nazar aaya jismein Sarita Devi apni dawai rakha karti thi. Kuchh goliyan dibbe mein ab bhi thi. Ab unka kuchh kaam nahi tha ye sochkar Rupali ne dibbar uthaya aur khola.
Usmen neeche ek paper modkar rakha hua tha aur uspar kuchh goliyaan rakhi hui thi. Rupali ne dibba ulatkar dawaiyan bistar par girayi. Goliyon ke saath hi andar rakha vo kagaz bhi nikalkar bistar par gir pada aur tab Rupali ka dhyaan pada ke vo asal mein ek kagaz nahi balki ek tasveer thi.
Tasveer black and white thi. Usmen Kamini ek ladke ke saath khadi hui thi. Ladka kaun tha ye Rupali pehchaan nahi saki par sabse zyada hairat use Kamini ke kapdo par hui. Kamini kabhi is tarah ke kapde nahi pehenti thi aur tab Rupali ne dhyaan se dekha to usko ehsaas hua ko vo ladki Kamini nahi balki khud Sarita Devi thi. Ye unki jawani ke dino ki tasveer thi. Kamini shakal soorat se bilkul apni maan par gayi thi isliye koi bhi is tasveer ko dekhkar ye dhokha kha sakta tha ke tasveer mein Kamini khadi hai.
Rupali ka dhyaan Sarita Devi ke saath khade ladke par gaya. Jahan tak usko pata tha Sarita Devi ka koi bhai nahi tha aur photo mein khada ladka Thakur Sahab to bilkul nahi the. Ladka shakal soorat se khoobsurat tha par Sarita Devi se height mein chhota tha. Rupali ne tasveer uthakar apne paas rakh li aur kamre se bahar nikal aayi.
Bahar aakar usne Inspector Khan ko phone kiya aur usko bhi Haweli aane ke bajay Jai ke ghar par milne ki hidayat di.
Inder ab tak so raha tha. Rupali ne use jagana chaha par phir apni soch badalkar taiyyar hui aur khud hi akeli car lekar nikal padi.
Thodi der baad vo hospital pahunchi.
Thakur ab bhi behosh the. Bhushan vahin bed ke paas betha hua tha. Rupali ko dekhkar vo khada hua.
Rupali vo tasveer apne saath laayi thi jo use Sarita Devi ke kamre mein mili thi. Vo janti thi ke agar koi usko tasveer mein khade ladke ke baare mein bata sakta tha to vo ek Bhushan hi tha.
Rupali ne tasveer nikalkar Bhushan ko dikhayi.
"Kaun hai ye aadmi Kaka?" Usne Bhushan se puchha
Tasveer dekhte hi Bhushan ki aankhen phel gayi.
"Aapko ye kahan mili?" Bhushan ne puchha
"Maan ke kamre se" Rupali apni saas ko maan kehkar hi bulati thi "Kaun hai ye?"
"Tha ek badnaseeb" Bhushan ne kaha "Jiski maut is haweli mein likhi thi aur usko yahan khinch laayi thi"
"Matlab?" Rupali ne puchha
"Ye thakurain ke bachpan ka dost tha. Ye log saath mein pale badhe the. Sarita Devi isko apne bhai ki tarah manti thi par iske dil mein shayad kuchh aur hi tha. Jab unki shaadi Thakur Sahab ke saath hui to isne bada bawal kiya tha suna hai par shaadi rok nahi paya kyunki Sarita Devi khud aisa nahi chahti thi."
"Phir?" Rupali ne puchha
"Phir shaadi ho gayi aur sab is baat ko bhool gaye. Thakur sahab ko to is baat ki khabar bhi us din lagi jab ye haweli mein aa pahuncha"
"Haweli?"Rupali boli
"Haan" Bhushan ne kaha "Shaadi ke koi 1 mahine baad ki baat hai. Ek din ye haweli ke darwaze par aa khada hua aur iski badkismati ke sabse pehle thakur sahab se hi takra gaya. Unse guhaar karne laga ke vo thakurain se pyaar karta hai aur unke bina jee nahi sakta. Aur jaise iske dil ki muraad poori ho gayi"
Rupali khamosh khadi sun rahi thi
"Thakur sahab ne ise itna mara ke isne vahin dam tod diya. Log pyaar mein jaan dete hain maine suna tha par us din dekha pehli baar tha" Bhushan ne kaha
Rupali ko apne kaano par yakeen nahi ho raha tha. Use samajh nahi aa raha tha ke kya kahe aur kya soche. Usne apni ghadi par nazar daali. Dopahar hone ko thi. Usne faisla kiya ke tasveer ke baare mein baad mein sochegi aur vahan se nikalkar Jai ke ghar ki taraf badhi.
12 bajne mein thodi hi der thi jab Rupali ne Jai ke ghar ke bahar car roki. Devdhar aur Inspector Khan bahar hi khade uska intezaar kar rahe the.
"Yahan kyun bulaya?" Khan ne Rupali ko dekhte hue puchha
"Socha ke jo mera hai vo vapis le liya jaaye" Rupali ne kaha to Devdhar aur Khan dono uski taraf hairani se dekhne lage
"Aap hi ne kaha tha na ke mere pati ki maut hote hi sab mere naam ho gaya tha.Power of Attorney bekaar thi to matlab ke Jai ne jis hak se ye ghar kharida vo bhi khatam tha. To matlab ke ye ghar mera hua?" Rupali ne kaha to Khan aur Devdhar dono muskura diye aur uske saath Jai ke ghar ke gate ki taraf badhe.
Watchman ne bataya ke Jai ghar par hi tha aur andar jakar Jai ko unke aane ki khabar karke aaya. Kuchh der baad vo teeno Jai ke saamne bethe the.
Jai takreeban Purushottam ki hi umar ka tha. Shakal par vahi thakuron wali akad. Betha bhi aise jaise koi raja apne mehel mein betha ho.
Rupali ko hairat thi ke vo kabhi Jai se mili nahi thi. Vo uski shaadi se pehle hi alag ghar banakar rehne laga tha par kabhi kisi ne uska zikr Rupali ke saamne nahi kiya tha aur na hi Rupali ne usko apni shaadi mein dekha tha jabki vo uske pati ka sabse kareebi tha. Par iska dosh usne khud ko hi diya. Un dino to use apni pati tak ki khabar nai hoti thi, Jai ki kya hoti.
"Kahiye" Usne Rupali ko dekhte hue puchha
"Get Out" Rupali ne use dekhte hue kaha
"Kya?" Jai ne aise puchha jaise angrezi samajh hi na aati ho
"Mere ghar se abhi isi waqt bahar nikal jao" Rupali ne kaha
"Aapke ghar se?" Jai ne haste hue puchha
Rupali ne Devdhar ki taraf dekha. Devdhar aage badha aur vo saari baaten Jai ko batane laga jo usne pehle Rupali ko bataya tha. Dheere dheere Jai ki samajh aaya ke Rupali kis hak se uske ghar ko apna keh rahi thi aur vo pareshan apne saamne rakhe papers ko dekhne laga.
"Aur agar main jaane se inkaar kar doon to?" Jai ne papers ek taraf karte hue puchha
Rupali ne khamoshi se Inspector Khan ki taraf dekha. Vo janti thi ke Jai aisa bol sakta hai isliye Khan ko saath laayi thi
"Main ye mamla adalat mein le jaoonga. Aise kaise ghar aapka ho gaya? Main apne vakeel ko bulata hoon" Jai ne phone ki taraf haath badhaya
"Bahar ek STD booth hai. Vahan se karna. Filhal ghar se bahar nikal" Khan beeche mein bol pada
"Tameez se baat karo" Jai khan par chillate hue bola
"Ye dekha hai?" Khan ne apna haath aage kiye "Ek kaan ke niche pada na to tameez aur kameez mein farak samajh nahi aayega tujhe. Chal nikal"
Jai chup ho gaya. Vo uthkar ghar ke andar ki taraf jaane laga.
"Vahan kahan ja raha hai?" Khan phir bola "Darwaza us taraf hai"
"Apna kuchh samaan lene ja raha hoon" Jai rukte hue bola
"Vo samaan bhi mere paiso se aaya tha to vo bhi mera hua. Ab isse pehle ke main ye kapde jo tumne pehen rakhe hain ye bhi utarva loon, nikal jao" Rupali khadi hote hue boli
"Filhal to ja raha hoon par itna aasan nahi hoga aapke liye mujhe harana" Jai ne kaha to Rupali muskurane lagi
"Apko kya lagta hai ke ye sab us neech thakur ka hai jo apne hi bhai ko daulat ke liye maar daale? Jo saale apne ghar ki naukrani ko bhi nahi chhodte?" Jai ne Rupali ke kareeb aate hue kaha.
Uski is harkat par Khan uski taraf badha par Rupali ne usko haath ke ishare se rok diya
"Kya matlab?" Usne Jai se puchha "Kya bakwaas kar rahe ho?"
"Sach keh raha hoon" Jai ne kaha "Aapko shayad nahi pata par maine dekha hai. Vo Bhushan ki biwi, use thakur ke khandaan ne apni rakhail bana rakha tha. Zabardasti subah shaam ragadte the use. Thakur, Tej, Kuldeep aur khud aapke pati Purushottam Singh ji"
"Bhushan ki biwi?" Rupali hairan hui
"Ji haan" Tej bola "Jab us bechari ne jaakar sab kuchh Bhushan ya aapki saas ko bata dene ki dhamki di to gayab ho gayi aur baat ye phela di gayi ke apne kisi aashiq ke saath bhaag gayi"
Rupali ke dimag ki battiyan jaise ek ek karke jalne lagi. Haweli mein mili laash jo Kamini ki nahi thi, Kuldeep ke kamre mein mila vo bra. Khud Khan bhi chup khada sun raha tha.
"Tumhein ye kaise pata?" Rupali ne puchha
"Haweli mein bachpan guzara hai maine. Dekha hai sab apni aankho se. Jaise hi vo haweli mein kaam karne aayi to sabse pehle thakur ki nazar us par padi to pehle unhone kaam kiya. Phir unki dekha dekhi unke sabse bade bete Purushottam Singh jinhen duniya bhagwan Ram ka avtaar samajhti thi unhone apna sikka chala diya bechari par. Jab bade bhai ne munh maar liya to baaki ke dono kahan pichhe rehne wale the. Mauka milte hi Tej aur Kuldeep ne fayda utha liya"
Rupali ki aankhon ke aage andhera sa chhane laga.
"Bakwaas kar rahe ho tum" Usne Jai se kaha
"Sach bol raha hoon main. Apni hawas sambhali nahi jaati in logon se, phir chahe vo aurat ki ho ya daulat ki aur isi ke chalte Purushottam bhi mara. Aapsi ladayi thi vo in logon ki daulat ke pichhe. Ek bhai ne doosre ko maara hai" Jai ne kaha
Par Rupali ka dimag us waqt doosri hi taraf chal raha tha. Use Inder ki kahi baaten yaad aa rahi thi jo Kamini ne usko kahi thi.
"Bas jism ki aag bujhni chahiye. Phir nazar nahi aata ke kaun apne ghar ka hai aur kaun ........."
Use apne pati ka vo roop yaad aaya jo vo roz raat ko bistar par dekha karti thi. Kis tarah se vo usko nangi karte hi insaan se kuchh aur hi ban jata tha. Use yaad aaya ke kis aasani se Bindiya Tej ke bistar par pahunch gayi thi aur Tej ne mauka milte hi usko chod liya tha. Usko yaad aaya ke kis aasani se us raat Thakur ne uske saamne hi Payal ko chod liya tha. Zara bhi nahi socha tha dono ne ke vo ek mamuli naukrani hai aur vo vahan ke thakur. Par kya koi itna gir sakta tha ke apni hi behen ke saath? Sochkar Rupali ka dimag phatne laga. To ye vajah thi Payal ke gayab hone ki. Apne bhai ko goli maarkar chhupti phir rahi thi.




साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
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