Saturday, March 20, 2010

Raj sharma stories-ठाकुर की हवेली --2

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ठाकुर की हवेली--2

"तू पागल है जो ठाकुर साहेब से क्यों पूछता है? भानु ने फिर कहा.

तभी रणबीर और भानु को मालती चाची दीखाई पड़ी जो एक कमरे मे जा रही थी.

रणबीर ने पूछा, "ये मालती चाची यहाँ क्या कर रही है?"

"वो इस हवेली मे ठकुराइन की सेवा करती है." भानु ने जवाब दिया.

"तो ठाकुर ने ठकुराइन भी पाल रखी है?"

"हां... हमारे ठाकुर साहेब भी बड़े रंगीन मिज़ाज के हैं. एक बार शिकार पर गये थे और आए तो अपनी बेटी की उमर की एक लड़की साथ ले आए. कहने लगे की उन्हे इस हवेली का वारिस चाहिए... "

"और कौन कौन है ठाकुर साहब के खानदान मे?" रणबीर ने भानु से पूछा.

"बस एक बेटी है जो सहर मे डॉक्टोरी पढ़ रही है." भानु ने जवाब दिया. "कभी कभी आती है यहाँ पर, इस बार होली पर आएगी.... वो ठाकुर की पहली बीवी से है... मंज़ुलिका नाम है उसका."

"कितनी उमर की है ये ठकुराइन?" रणबीर जवान ठकुराइन के बारे मे जानने को उत्तावला हो रहा था.

"यही कोई 24-25 साल की बस."

"और कितने दिन पहले हुई थी इनकी शादी?"

"दो साल पहले." भानु ने रणबीर को बताया.

"दो साल हो गये शादी को लेकिन अभी तक ठाकुर साहेब को कोई औलाद नही हुई?" रणबीर के चेहरे पर एक शैतानी भरी मुस्कुराहट थी.

"तुम कहना क्या चाहते हो?" भानु रणबीर की आँखों मे झँकते हुए बोला.

"कुछ नही में तो यूँ ही पूछ रहा था... क्या नाम है इस ठकुराइन का?"

भानु रणबीर के बिल्कुल पास आ गया और उसके कान मे फुसफुसते हुए बोला, "रजनी नाम है इस ठकुराइन का."

"रजनी.... बड़ा प्यारा नाम है." रणबीर बदबूदा उठा.

"तू मरेगा किसी दिन... यहाँ हवेली मे ठकुराइन का नाम नही लिया जाता... कोई सुन लेगा तो जान के लाले पड़ जाएँगे." भानु ने उसे समझाते हुए कहा.

तभी मालती उस कमरे से बाहर आई और रणबीर और भानु को देखा तो झट कमरे मे वापस चली गयी और दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया.

"क्या हुआ तू वापस कैसे आ गयी?" ठकुराइन करवट के बल पलंग पर लेटी हुई थी पर जैसे ही उसने मालती को अंदर आते देखा तो पूछा.

"कुक्ककच... नाआहिन..... वो..ह़ बाहर खड़ा है." मालती ने काँपते हुए कहा.

"अरे कौन खड़ा है? कुछ नाम पता भी तो होगा उसका?" ठकुराइन ने पूछा.

"वही जिसने आज सुबह मेरी गांद फाड़ कर रख दी थी." मालती अभी तक रणबीर से डरी हुई थी.

"अक्च्छा. वो जो ठाकुर साहेब का नया वफ़ादार नौकर है..... क्या नाम है उसका?" ठकुराइन की दिलचस्पी रणबीर मे बढ़ने लगी.

"जीए.... रणबीर...." मालती ने जवाब दिया.

"ये रणबीर दीखने मे कैसा है?" ठकुराइन ने पूछा.

मालती वैसे तो हवेली की नौकरानी थी और ठकुराइन की सेवा करती ही थी लेकिन ठकुराइन उसे अपनी सहेली ज़्यादा मानती थी. रजनी को मालती के साथ सेक्सी और गंदी गंदी बातें करने मे बहोत मज़ा आता था.

शुरू मे तो ठकुराइन से 10 साल बड़ी मालती काफ़ी शरमाती थी पर रजनी ने उसे उकसा उकसा कर उसकी सारी झिझक ख़तम कर दी थी.

"मालकिन क्या बताउ, शकल से दीखने मे बहोत भोला लगता है, लेकिन साले ने अपने घोड़े जैसे लंड से मेरी गंद फाड़ कर रख दी.

रजनी ये बात इतनी दयनीए स्वर मे कहा की रजनी उसकी बात सुनकर गरम हो गयी.

"तेरी चूत भी तो चोदि थी उसने और क्या गंद भी मारता रहा?"

रजनी पेट के बल हो गयी थी और मालती से बातों का मज़ा लेना चाह
रही थी.

"मालकिन चोदने मे तो बहोत बड़ा उस्ताद है पर साले ने मेरी गंद चील कर रख दी. गंद मारने के पहले उसने एक बार चुदाई भी की थी." मालती ने अपनी गंद सहलाते हुए कहा.

फिर बात को बदलते हुए बोली, "आज ठाकुर साहब ने दावा खाई?" मालती ने टेबल पर पड़ी दवा की शीशी की तरफ इशारा करते हुए पूछा.

"दवा तो रोज़ ही खाते है पर फ़ायदा क्या, हर बार की तरह आज भी फिसल गये." रजनी ने नामार्द ठाकुर की हँसी उड़ाते हुए कहा.

"क्या लंड खड़ा हुआ था उनका?" मालती भी रंग मे आ गयी और खुले शब्दों मे पूछा.

"कहाँ साला खड़ा ही नही होता, हरदम सोया ही रहता है," दोनो इस बात पर हँसने लगी फिर रजनी ने पूछा, "रणबीर का लंड कैसा है दीखने मे?" इतना कहकर रजनी मालती के सामने पालती मार कर बैठ गयी.

"बहुत तगड़ा और मोटा लंड है साले का.... गोरा भी काफ़ी है पर साले ने बिना तेल के ही मेरी गंद मार दी.... अभी तक गंद मे दर्द हो रहा है."

"रणबीर का लंड चूसा था तूने?" रजनी ने पूछा.

"हां चूसा था... पहले तो जैसे ही मेने उसकी लंगोट उतारी उसने लंड को मुँह मे देकर ही चुदाई के खेल की शुरुआत की." मालती ने ऐसा कह रजनी का पल्लू नीचे गिरा दिया जिससे ठकुराइन की मस्त चुचियाँ ब्लाउस मे क़ैद उसके सामने आ गयी.

"कैसा लगता था उसका लंड चूसने मे?" रजनी ने आँखे बंद करली और मालती उसके ब्लाउस के हुक खोलने लगी.

"बहुत अक्च्छा लगा था मालकिन... क्या मोटा और लंबा लंड था... मेरे गले तक आ गया था... स्वाद भी अक्च्छा था थोडा नमकीन.... " मालती ने रजनी का ब्लाउस उत्तरते हुए कहा.

रजनी की मस्त और भारी भारी चुचियों सफेद ब्रा मे क़ैद थी. फिर दोनो एक दूसरे के आगोश मे समा गये. अब मालती ने ब्रा भी ठकुराइन के बदन से अलग कर दी और वा कमर से उपर तक नंगी हो गयी.

"ऑश मालती कितना रस है तेरी बातों मे.... कैसे चूसा था उसका लंड तूने..... देख ना लंड तो तूने चूसा था और गीली में हो रही हूँ.....बताओ ना?" रजनी ने मालती से पूछा और अपने खड़े हुए निपल को मालती के मुँह मे दे दिए.

"ऐसे... " ये कह कर मल्टी ने अपनी मालिकिन की चुचि को एक बच्ची की तरह चूसने लगी.

"ऑश ज़ोर से चूवसूऊ मालती बहुत हही अककचा लग रहा है.....जैसे तूने उसका लंड चूसा था वैसे ही अब मेरी चुचियों को भी चूस" फिर रजनी ने मालती को अपनी बाहों मे ले लिया और बोली, "चल अपनी गंद दीखा... देखने दे कैसे मारी है मेरी सहेली की फूली हुई गंद.." रजनी उसकी गंद पर हाथ रखते हुए बोली, "सच मालती अगर में मर्द होती तो तेरी गंद मारे बिना नही छोड़ती"

इतना कहकर रजनी ने मल्टी को झुका दिया और उसकी सारी और पेटिकोट सहित कमर तक उपर को उठा दी. मल्टी ने पॅंटी नही पहन रखी थी.

फिर रजनी ने मालती की गंद फैलाई और कहा, "लगता है रणबीर का लंड बहोत लंबा और मोटा है? देख तेरी गंद कैसे फैल गयी है," रजनी अब मल्टी की गंद मे अपनी उंगली डाल कर देख रही थी.

"नही अब और मत डालना बहोत दर्द हो रहा है... आज तो मुझसे चला भी नही जा रहा है.... तुमसे दुख बाँटने किसी तरह हवेली तक चल कर आ पाई हूँ."

"अरे देखने तो दे की किस तरह मारी है तेरी गंद उसने, " रजनी ने मालती को चारों हाथ पैर पर चोपाया बना दिया और पीछे हो उसकी गंद को जीभ की नोक से छेड़ने लगी और बोली, "अककचा लगा.. इससे तुम्हारा दर्द कम हो जाएगा."

"हां मेरी गंद पर बड़ी अजीब सुरसुरी हो रही है,"

रजनी अब उसकी गंद मे अपनी पूरी जीब डाल अंदर बाहर करते हुए पूछी, "अब बताओ कैसा लग रहा है?"

"बहुत अक्च्छा लग रहा है..." मालती को अब रजनी की जीब अपनी गंद पर किसी मलम की तरह लग रही थी. फिर रजनी अपनी जीब मालती की गंद से बाहर निकल पीछे से अपनी जीब उसकी चूत के अंदर घुसा दी, "कल यहीं पर रणबीर ने तुम्हे चोदा था ना... इसी के अंदर अपना बान ओह्ह्ह क्या कहते हैं लंड डाला था ना?"

"हाआँ यहीं पर.... नहीं इसके पूरी तरह भीतर... जहाँ तक जा सकता है वहाँ तक डाला कर मुझे चोदा था... हां आईसीए ही" मालती ऐसा कहते हुए रजनी के मुँह पर अपनी चूत दबाने लगी

रजनी अपनी प्यास ऐसे ही बुझाती थी. मालती से चूत चटवाती, गंद चटवाती, अपनी चुचियों को दबवाती और बदले मे मालती के साथ भी यही सब करती. जब किसी औरत का मर्द नमार्द होता है तो औरत अपना रास्ता खुद ढूंड लेती है और वही रास्ता रजनी को मालती मे मिल
गया था.

ठाकुर का कारवाँ अपने नियमित समय पर शिकार पर पहुँच गया था. एक बड़ा मंच सा बनाया गया था जिस पर ठाकुर अपनी बंदूक लिए बैठा था. कुछ छोटे मंच भी बनाए गये थे जिन पर ठाकुर के साथ आए उसके मुलाज़िम बैठे थे.

एक दम सन्नाटा छाया हुआ था, सभी को कड़ी हिदायत थी किसी के मच से हल्की भी आवाज़ ना निकले. नीचे पेड़ के साथ खूंती से एक बकरा बँधा था जिसकी बीच बीच मे मिमियने की आवाज़ आ रही थी

रणबीर और भानु एक ही मंच पर बैठे थे. तभी अंधेरे मे भानु ने रणबीर की जाँघ पर हाथ रख दिया.

"अरे ये क्या कर रहा है और अपना हाथ कहाँ घुसाए जा रहा है?"
रणबीर ने उँची आवाज़ मे भानु को डांटा.

तभी एक झाड़ी से एक हिरण निकल के भागा और ठाकुर ने रणबीर की तरफ गुस्से से देखा और बंदूक ले उसके पीछे भागा.

"क्या हुआ साले... क्यों हाथ लगा रहा था." रणबीर ने भी ठाकुर की क्रोध भारी नज़रें देख ली थी और सारा गुस्सा भानु पर उतारते हुए पूछा.

"कुछ नही .... बस मन कर रहा था इसलिए...." भानु ने खींसी निपोर्टे हुए कहा.

"मुझे ये सब बिल्कुल भी पसंद नही.. और आगे से ख़याल रहे ऐसा कुछ भी नही होना चाहिए?" रणबीर से कहा.

"तुम्हे पसंद नही तो क्या मुझे तो पसंद है.." भानु ने कहा.

"मेने कह दिया ना की मुझे पसंद नही है.. बस.." रणबीर थोड़ा क्रोधित होते हुए बोला.

"तो क्या पसंद है साले.... मालती चाची की गंद मारना?" भानु ने भी उसी तरह गुस्से से बिफर्ते हुए कहा.

यह बात सुनते ही रणबीर का चेहरा फक पड़ गया. इससे भानु की हिम्मत और बढ़ गयी और वो बोला, "साले औरत की गंद मारने मे मज़ा आता है और आदमी की गंद पसंद नही. आबे साले गंद गंद होती... क्या औरत की क्या मर्द की." भानु ने फिर कहा.

अगर ज़्यादा कुछ बोला तो ठाकुर साहेब से बता दूँगा की तूने सुबह
मालती चाची के साथ क्या किया था. तुम तो जानते ही हो की ठाकुर पहले तो तेरी चाँदी उधेड़ेगा और जब तुम्हारे बुड्ढे बाप को ठाकुर से ये सब पता चलेगा तो तुम्हारी क्या हालत होगी." भानु ने रणबीर को ब्लॅकमेल करते हुए कहा.

"आख़िर तुम चाहते क्या हो?" रणबीर भी उसकी धमकी से नरम पड़ते हुए बोला.

"कुछ नही बस थोडा सा मज़ा और वो भी बाद मे." भानु ने हंसते हुए कहा. तभी वहाँ एक 18 साल का लड़का वहाँ आ गया जिसका नाम रघु था. वो और भानु आपस मे समलैंगीक कामो का आनंद साथ मैं लेते थे.

तभी ठाकुर लौट कर आ गया. उसने दो हिरण मारे थे इसलिए वो काफ़ी खुश था. टेंट लगा दिए गये थे.

सभी मुलाज़िमो को टेंट बाँट दिए गये थे और जो खाने पीने का सामान वो साथ लाए थे वो भी बाँट कर टेंट मे रखवा दिया गया था.

रात मे तीनो भानु रणबीर और रघु एक ही टेंट मे सोने के लिए आ गये. टेंट मे पहुँचते हू भानु ने रणबीर से कहा, "चल जल्दी से नंगा हो जा."

रणबीर ने झिझकते हुए अपने कपड़े उतारे और नंगा हो गया. भानु ने रघु के लंड को उसकी पॅंट से बाहर निकल लिया था.

भानु कुछ देर तक तो रघु के लंड को सहलाता रहा फिर उसे अपने मुँह मे ले चूसने लगा. रणबीर ने घृणा से अपना मुँह दूसरी और फेर लिया.

तभी भानु रघु के लंड को छोड़ रणबीर के लंड पर झुक पड़ा और उसके लंड को अपने मुँह मे ले लॉली पोप की तरह चूसने लगा. आख़िर लूँ लंड ही होता है.. भानु के मुँह की गर्मी पा वो तन्न्ने लगा और लोहे की तरह सख़्त हो गया.

तब भानु वहीं चोपाया हो गया और अपनी गंद मे उठा रणबीर से बोला, "चल अंदर डाल, साले थोड़ा थूक लगा लेना आज सुबह तूने चाची की तो सुखी ही मार दी थी. में सब वहाँ चुप कर देख रहा था.

रणबीर का आज पहली बार बालों से भरी किसी मर्द की गंद से पाला पड़ा था. आज तक वो औरतों की सॉफ और चिकनी गांद ही मारते आया था. पहले तो उसने भानु की गंद पर ढेर सारा थुका और फिर वहाँ अपना लंड लगा धीरे धीरे अंदर ठेलने लगा.

उधर भानु ने रघु को फिर अपने सामने बुलाया और उसके लंड को अपने मुँह मे लिया. रणबीर का ध्यान बँट गया और वो भानु की गंद मारना भूल भानु को रघु का लंड चूस्ते हुए देखने लगा.

"साले अंदर बाहर कर ना... सुबह मालती चाची की तो ऐसा मार रहा था की बेचारी एक साप्ताह तक तो ठीक से चल भी नही पाएगी."

अब रणबीर जोरोंसे भानु की गंद मारने लगा और थोड़ी ही देर मे उसका लंड भानु की गंद मे झाड़ गया.

"क्यों मज़ा आया? क्यों मालती चाची से कुछ अलग थी या वैसे ही थी." भानु ने पूछा.

रणबीर कुछ नही बोला पर मन ही मन वो प्रतिगया कर रहा था की इसका पूरा हिसाब वो सूमी से चुका लेगा.

दूसरे दिन सुबह ही ठाकुर का कारवाँ हवेली के लिए वापस चल पड़ा. भानु और रणबीर घर पहुँचते ही बिस्तर मे घुस पड़े और काफ़ी देर तक सोते रहे.

फिर दोपहर मे दोनो ने साथ साथ खाना खाया. भानु हवेली जाने के लिए तय्यार था उसने रणबीर से पूछा भी की उसे भी चलना है क्या, तो रणबीर को लगा की वो उसे साथ ले जाने मे ज़्यादा इंट्रेस्टेड नही है. ये रणबीर के लिए अछी बात थी, उसने सिर भारी होने का बहाना कर दिया.

कहने को भानु कह कर गया की वो हवेली जा रहा है लेकिन रणबीर जनता था की भानु और रघु किसी एकांत जगह पर जा आपस मे मस्ती करेंगे.

मौका देख रणबीर ने सूमी से कह दिया था की वो शाम को खेत पर जा रहा है और मौका देख वो भी वहीं चली आए.

शाम हुई तो रणबीर नदी घूमने के बहाने घर से निकल पड़ा.

वो सीधा खेत पर पहुँच उस जगह आ गया जहाँ किसी का भी आना जाना नही था. खेत के कोने मे एक झोपड़ा बना हुआ था और अंदर एक चारपाई भी पड़ी थी जिसपर रुई का गद्दा पड़ा हुआ था. रणबीर वहीं झोपडे के बाहर बैठ कर सूमी का इंतेज़ार करने लगा. धीरे धीरे अंधेरा बढ़ने लगा था. कुछ देर बाद उसे एक छाया खेत की और आते दीखाई पड़ी. रणबीर उस छाया को देखता रहा और जब वो काफ़ी नज़दीक आई तो उसने पहचान लिया की वो सूमी ही थी. रणबीर उसका हाथ पकड़ उसे झोपडे मे ले गया.

"में तो समझा था की तुम आओगी ही नही," रणबीर सूमी को वहीं चारपाई पर बिठाते हुए बोला.

चारपाई के ठीक पीछे एक खिड़की बनी हुई थी जिसमे से ढलती शाम का हल्का हल्का प्रकाश झोपड़ी मे आ रहा था.

"रणबीर मुझे लगता है की मालती चाची जैसे मुझ पर नज़र रख रही हो... उनकी नज़र से छपते छुपाते आई हूँ... ज़्यादा देर नही रुक सकूँगी." सूमी ने कहा.

"भाभी ये क्या अभी अभी तो आई हो ठीक से बैठी भी नही और अभी से जाने की बात कर रही हो...." रणबीर ने सूमी को बाहों मे भरते हुए कहा.

"अपने इस देवर की बात रखने के लिए आना पड़ा." सूमी ने भी रणबीर के गले मे बाहें डाल दी.

"तो भाभी सारी रात रहोगी ना." इतना कहकर रणबीर ने अपने होठ सूमी के होठों पर रख उन्हे चूसने लगा. सूमी की बाहों का बंधन उसके इर्द गिर्द और कस गया.

अब तो घर पर ही दो बातें करने का मौका मिलता रहेगा." सूमी ने अपनी तनी हुई चुचियाँ को रणबीर के छाती पर रगड़ते हुए कहा.

"घर पर कहाँ बात करने का मौका मिलेगा भाभी, एक तो घर पर आपके वो होंगे और जब होंगे तो उनके साथ मुझे भी तो हवेली जाना होगा, " रणबीर ने सूमी के ब्लाउस के हुक खोलते हुए कहा.

"उसकी तो बात मत करो... उसे घर मे कौन दीखाई पड़ता है. उसे तो बस रघु और दो चार उस जैसे है सिर्फ़ वही दीखाई पड़ते है." सूमी ने घृणा से कहा.

रणबीर सूमी का ब्लाउस उतार चुका था. फिर उसने ब्रा के उपर से ही सूमी के कठोर चुचियों जो किसी कम्सीन लड़की जैसी कठोर थी मसल दिया.

फिर उसने अंजान बनते हुए कहा, "कौन रघु भाभी?"

अब रणबीर ने सूमी की ब्रा भी उतार दी और नीचे झुक कर एक चुचि को अपने मुँह मे ले चूसने लगा.

सूमी सिसकारी लेने लगी और उसका सिर अपनी चूची पर दबाते हुए बोली, "छोड़ो इन सब बातों का... तुम्हारा चुचि चूसना कितना अक्च्छा लग रहा है.... जिक्से लिए में बरसों से तड़प रही हूँ वो सुख तो वो कभी दे ना सका.

अब सूमी ने अपना हाथ रणबीर की पॅंट के उपर से उसके लंड पर रख दिया जो किसी लोहे की सलाख की तरह सख़्त हो गया था.

"भाभी भानु तो तकदीर वाला है की उसे तुम जैसी बीवी मिली."
रणबीर उसकी चुचियों को मसल्ते और चूस्ते हुए बोला.

सूमी अब रणबीर की पॅंट के बटन खोलने लग गयी थी...

तभी रणबीर ने सूमी के घाघरे मे हाथ डाल दिया, उसने देखा की सूमी ने कोई पॅंटी नही पहन रखी थी. उसकी उंगलियाँ चूत पर उगी झांतो से टकराई.

"पर उसे दीखे तब ना... उ दया कितना बड़ा और मोटा है तुमहरा जो तुम्हारे नीचे आ गयी वो तो....." सूमी उसके लंड को आज़ाद कर अपनी मुति मे जकड़ते हुए बोल पड़ी.

"क्यों भाभी पसंद आया?' रणबीर उसकी चूत को सहलाते हुए बोला, "तुम्हारी चूत भी तो कितनी प्यारी, मुलायम और चिकनी है."

"जो करना है आज जल्दी कर लो कहीं मालती चाची को सक ना हो जाए.

तभी सूमी झुक कर रणबीर के लंड को मुँह मे ले चोसने लगी. रणबीर ने सूमी को चारपाई पर लीटा दिया और उसके घग्रे को कमर तक उठा दिया और अपना मुँह सूमी की चूत से लगा उसे चूसने और चाटने लगा.

दोनो एक दूसरे के अंगों को इसी तरह चूस्ते और चाटते रहे. सूमी सिसकारियाँ भरते हुए रणबीर के चेहरे को अपनी जांघों से जाकड़ रही थी.

"तेरी मालती चाची की तो गांद मारु.... तुम्हे मालूम है सूमी जबसे तुम्हे देखा मुझे तो कुछ अक्च्छा ही नही लगता... जानती हो कल ठाकुर से कहा सुनी हो जाती अगर भानु बीच मे ना आता तो.

सूमी अब पीठ के बल लेट गयी और उसने अपनी टाँगे फैला दी. वो इंतजार करने लगी की कब रणबीर अपना लंड उसकी चूत मे डाल उसकी प्यास बुझाए कब उसकी पॅयाषी चूत को अपने रस से सीँचे.

"ठाकुर से कहा सुनी क्यों हो जाती?" सूमी ने पूछा.

"कल जब उसने शिकार पर चलने के लिए कहा तो मेरे तो तन बदन मे आग लग गयी. एक बार तो मन किया की उसे वहीं छोड़ सीधा तुम्हारे पास चला आयुं." रणबीर अब सूमी के उपर आते हुए बोला.

"तुम मेरे लिए ठाकुर की नौकरी भी छोड़ देते." सूमी ने खुश होते हुए पूछा.

रणबीर का लंड सूमी की चूत के दरवाज़े पर टीका हुआ था. रणबीर की बात सुनकर उसके मन मैंउसके लिए ढेर सारा प्यार उमड़ पड़ा, वो उसे बेतहसहा चूमेने लगी और अपनी कमर को थोडा उपर उठा एक ही झटके मे उसके लंड को अपनी चूत के अंदर ले लिया.

जोश मे वो ऐसा कर तो गयी लेकिन उसके मुँह से एक "उईईई मा मर गयी..." भी निकल पड़ी.

"तुम्हारे लिए तो में ऐसी दस नौकरियाँ छोड़ दूँ." रणबीर अब उसकी चूत मे धक्के मारने लग गया था. कमजोर चारपाई की ठप ठप की आवाज़ झोपडे मे गूँज रही थी. सूमी अब रणबीर के हर धक्के का जवाब अपनी गंद उछाल कर दे रही ही. उसे रणबीर बहोत ही अक्च्छा लगा था और अब वो जी जान से उससे चुदवा रही थी. दोनो पर उत्तेजना अपनी चरम सीमा पर थी, दोनो एक दूसरे के अंगो को मसल रहे थे, काट रहे थे भींच रहे थे.

कुछ देर बाद रणबीर ने अपने धक्कों की रफ़्तार बढ़ा दी. दो दीवाने पूरे जोश के साथ अपनी मंज़िल पर पहुँचना चाह रहे थे.

"ओह रणबीर और ज़ोर से चोदूऊऊऊ ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह हाआँ और ज़ोर से.... ऑश हाआँ अंदर तक डाल दूऊऊऊ." सूमी की सिसकारियाँ गूँज रही थी.

थोड़ी ही देर मे दोनो थक कर चूर हो गये और दोनो झाड़ गये. दोनो कुछ देर तक एक दूसरे को बाहों मे भींचे ऐसे ही पड़े रहे. फिर सूमी रणबीर से अलग हुई और अपने घाहघरे से चूत से बहते रस को पौंचने लगी. फिर रणबीर के लंड को अक्च्ची तरह पौंचने लगी. फिर वो अपने कपड़े ठीक करने लगी.

बाहर रात का अंधेरा बढ़ने लगा था, उस अंधेरे मे सूमी जैसे कुछ देर पहले आई थी उसी तरह चुपके से वहाँ से चली गयी.

रणबीर भी खेत से बाहर आ गया और उसने तुरंत जाना उचित नही समझा और नदी की और चल पड़ा. कुछ देर चलने के बाद उसने देखा की सामने से भानु और रघु साथ साथ चले आ रहे थे.

"तो तुम हवेली से आ रहे हो?" रणबीर ने भानु से प्पुछा.

"हमारी छोड़ो तुम अपनी बताओ, तुम यहाँ क्या कर रहे हो? घर पर मालती चाची है ना?" भानु ने रणबीर से पूछा.

भानु की बात सुनकर रघु भी खिलखिला कर हंस पड़ा. फिर रघु वहाँ से अपने घर चला गया. रणबीर और भानु साथ साथ घर पहुँचे जहाँ पर रामानंद बरामदे मे बैठा हुक्का गडगडा रहा था. दोनो वहीं पर बैठ गये.

पीचली रात ही ठाकुर ने दो हिरण मारे थी इसलिए आज हवेली मैं उनका ही माँस पक रहा था. अपने हाथों से मारे हुए शिकार का माँस खाने का अलग ही मज़ा है. ठाकुर भी शराब के साथ उसी माँस का मज़ा ले रहा था. दो साल पहले ही ठाकुर ने अपनी बेटी की उमर की एक लड़की से शादी की थी.

रजनी एक ग़रीब घर की लड़की थी लेकिन इंटर तक पढ़ी थी. ठाकुर ने बहोत सारे जेवर अपार वस्त्रा यहाँ तक की हर खुशी दी थी रजनी को लेकिन जो एक जवान लड़की को अपने पति से चाहिए वो ठाकुर उसे देने मे असमर्थ था.

जहाँ चाह वहाँ राह और रजनी ने मालती के रूवप मे अपना रास्ता खोज लिया था. पर जब से मालती ने रणबीर के बारे मे बताया था तब से ठकुराइन ऐसा उपाय खोजने मे लगी थी की रणबीर हवेली मे रहने
लगे.

हिरण के माँस मे काम शक्ति बढ़ाने की ताक़त होती है और रजनी भी इससे बच नही सकी थी.

उधर ठाकुर भी आज पूरा मस्त था और रात मे साज धज कर अपनी नौजवान बीवी के कमरे मे पहुँचा. रोज की तरह ही ठाकुर ठकुराइन विशाल पलंग पर बैठ गये.

ठाकुर ने रजनी का सिर अपनी छाती पर टीका लिया और उसे अपने शिकार और अपनी बहादुरी की कहानियाँ सुनाने लगा, कैसे उसने हिरण आ पीछा किया और कैसे उसने उन्हे मार गिराया. बातों ही बातों मे शेर के शिकार वाली भी बात चल पड़ी और ठाकुर ने बताया की उस दिन कैसे रणबीर नाम के एक लौडे ने उसकी जान बचाई.

रणबीर का नाम सुनते ही रजनी के कान खड़े हो गये. वो झट से ठाकुर को अपना अससीम प्यार जताते हुए उसकी गोद मे बैठ गयी.ठाकुर का चेहरा अपने हाथ मे लेते हुए उसके गालों का एक चूँबन लेते हुए बोली,

"आप तो आजकल ज़्यादा तर शिकार पर ही रहते है और इतनी बड़ी हवेली मे रात को अकेले मुझे डर लगने लग जाता है. अभी पीछले महीने ही शेरा डाकू ने पास के गाओं से दो औरतों को उठा लिया था. अगले महीने तो मधुलिका भी छुट्टियों मे यहाँ आ जाएगी. आपको हमारी कुछ चिंता फिकर भी है की नही?

"शेरा डाकू की क्या मज़ाल की वो हमारी हवेली की तरफ आँख उठा कर भी देखे." ठाकुर ने रजनी की बड़ी बड़ी चुचयों को अपने हाथों मे ले चूमते हुए कहा.

तभी रजनी ठाकुर की गिरफ़्त से निकली और टेबल पर पड़ी एक दवा की शीशी से थोड़ी दवा ठाकुर को पीने के लिए दे दी. ठाकुर एक घूँट मे सारी दवा पी गया.

तभी रजनी फिर ठाकुर की गोद मे बैठ गयी और अपनी गंद ठाकुर के लंड पर रगड़ने लगी. उसे लगा की ठाकुर के लंड मे कुछ जान आ रही है. पर वो जानती थी की ठाकुर का लंड ज़्यादा देर तक टिकने वाला नही था.

"वैद्य जी की दवा बहोत ही असर दार है." रजनी ने ठाकुर का मुँह चूमते हुए कहा.

ठाकुर रजनी की बात सुनकर बहोत खुश हो गया और ठकुराइन की चुचियों नंगी कर दी और उन्हे चूसने लगा. इधर रजनी ने भी ठाकुर का लंड बाहर निकाल लिया और उसे मुँह मे ले चूसने लगी.

वो ठाकुर के झड़ने से पहले रणबीर के लिए हवेली मे कोई इंतज़ाम कर लेना चाहती थी.

"फिर भी इतनी बड़ी हवेली मे आपके उस नौजवान जैसा कोई पह्रादरी के लिए होना चाहिए."

"कम से कम एक नौजवान तो ऐसा होना चाहिए पह्रादरी के लिए जो शेरा डाकू से मुकाबला कर सके." रजनी ने ठाकुर के लंड से खेलते हुए कहा.

"आप मधुलिका के आने से पहले ही ये इंतज़ाम कर दीजिए.. कल कुछ हो गया तो जिंदगी भर के लिए पछतावा रह जाएगा."

अब ठाकुर रजनी मे समा जाना चाहता था, रजनी भी समझ गयी और पलंग पर चित होकर टाँगे चौड़ी कर लेट गयी. ठाकुर उसकी टॅंगो के बीच जगह बनाता हुआ बोला, "तुम्हारी जैसे तुम्हारी मर्ज़ी में कल ही उसे हवेली के पहरे का काम दे देता हूँ, लेकिन शिकार पर उसकी कमी मुझे बहोत खलेगी."

ठाकुर ने रजनी की चूत पर लंड टीका दिया और बहोत आसानी से उसका लंड अंदर चला गया. ठाकुर धीरे धीरे धक्के लगाने लगा लेकिन रजनी वैसे ही लेटी रही. वो जानती थी जैसे ही वो नीचे से ठप लगाएगी ठाकुर का लंड झाड़ जाएगा.

"हां ये अक्चा रहेगा, शिकार के लिए तो आपको रणबीर जैसों की क्या दरकार है, आप अकेले किसी से कम हैं क्या? इस उमर में भी शेर का पीछा कर उसे मार गिराते हैं.

रजनी ठाकुर को उकसा रही थी की कम से कम ये ठाकुर उसे एक बार तो उसकी चूत से पानी छुड़ा दे.

"हम ठाकुर लोग उमर के मोहताज़ नही होते." ठाकुर अब जोश मे आ रजनी की चूत मे कस के धक्के लगाने लगा था. उनका रजपूती खून अब रंग दीखा रहा था.

ठाकुर अब कस कस के लंड पेल रहा था और रजनी भी अपनी गंद उछाल उछाल कर नीचे से धक्के मार रही थी. कुछ देर बाद दोनो एक साथ झाड़ गये.

ऐसा बहोत कम बार हुआ था की दोनो एक साथ झाडे हो. शायद शराब और हिरण के माँस और रजनी के उकसाने का मिला जुला असर था की आज रजनी की चूत की भी प्यास बुझी थी. ठाकुर तो चुदाई ख़तम करते ही बिस्तर पर निढाल हो कर पड़ गया था और सुबह ही उसकी नींद
खुली.

दूसरे दिन 11.00 बजे रणबीर और भानु साथ साथ हवेली पहुँचे और ठाकुर के सामने आकर झुक कर सलाम किया. तभी ठाकुर ने रणबीर से कहा, "भाई हम तो तुम्हे हवेली के लिए ही तेरे बाप से तुझे माँग कर लाए थे और तुम्हारी सही जगह हवेली मे ही है. तुम आज से ही हवेली मे रहना शुरू कर दो अब इस हवेली की रखवाली का जिम्मा तुम्हारा है."

रणबीर मुँह बाए ठाकुर की और देखता रहा.






























































































































































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