राज शर्मा की कामुक कहानिया
सेक्सी हवेली का सच --22
थोड़ी देर बाद रूपाली दरवाज़ा खोलकर इंदर के कमरे में दाखिल हुई. इंदर बिस्तर पर सर पकड़े ऐसे बैठा था जैसे लुट गया हो.
"सच क्या है इंदर? मैं जानती हूँ तू कुच्छ च्छूपा रहा है मुझसे" वो इंदर के करीब जाते हुए बोली
इंदर ने कोई जवाब नही दिया. बस सर पकड़े बैठा रहा.
"तुझे बताया नही मैने पर अब सोचती हूँ के बता ही दूँ." रूपाली इंदर के ठीक सामने जा खड़ी हुई "कामिनी का पासपोर्ट मुझे यहीं हवेली में मिला. हर वो चीज़ जो वो जाने से पहले पॅक करके ले गयी थी वो यहीं हवेली में बंद एक कमरे में मिली. वो विदेश कभी गयी ही नही इंदर और कोई नही जानता के पिच्छले 10 साल से कहाँ है"
रूपाली की बात सुनकर इंदर ने उसकी तरफ नज़र उठाई. वो आँखें फेलाए रूपाली की तरफ देख रहा था. आँखों में एक खामोश सवाल था जैसे के वो रूपाली से पुच्छ रहा हो के क्या वो सच बोल रही है. रूपाली ने भी उसी खामोशी से हां में सर हिलाया
"मुझे खुद अभी 3-4 दिन पहले ही पता चला" रूपाली ने कहा
"और किसी ने उसके बारे में पता करने की कोशिश नही की?" इंदर को जैसे अब भी यकीन नही हो रहा था
"पता नही. जिससे पूछती हूँ वो यही कहता है के कामिनी विदेश में है. ठाकुर साहब हॉस्पिटल में हैं और उनके आक्सिडेंट होने से पहले मुझे ये बात पता नही थी इसलिए उनसे बात करना अभी बाकी है" रूपाली ने कहा
"मैं जानता था के कुच्छ गड़बड़ हुई है वरना ऐसा हो ही नही सकता था के वो एक बार भी मुझे फोन ना करे. आपने पोलीस में बताया?" इंदर की आवाज़ से सॉफ पता चल रहा था के उसे अब भी इस बात पर यकीन नही हो रहा था
"ख़ान ये बात पहले से ही जानता है. असल में उसने ही मुझसे ये बात सबसे पहले बताई थी" रूपाली ने कहा
"आपने कुलदीप को फोन नही किया? उसके पास ही तो गयी थी कामिनी" इंदर सोचता हुआ बोला
"उसके जितने नंबर मुझे मिल सके मैने सब ट्राइ किए. एक भी काम नही कर रहा" रूपाली ने कहा तो इंदर फिर अपना सर पकड़ कर बैठ गया
"मुझे लगता है के अब वक़्त आ गया है के तुम मुझे सब सच बताओ. शुरू से आख़िर तक." रूपाली ने पुचछा तो इंदर इनकार में सर हिलाने लगा
रूपाली ने उसका चेहरा अपने हाथों में लिया और उपेर उठाकर इंदर की आँखों में देखा
"एक वक़्त था जब तेरी हर बात मुझे पता होती थी इंदर. मैं तेरी बहेन से ज़्यादा तेरी दोस्त थी. हर छ्होटी बड़ी शरारत तू मुझे बताया करता था और मैं तुझे बचाया करती थी. अब क्या हुआ मेरे भाई? कब इतना बदल गया तू के अपनी बहेन से बातें च्छुपाने लगा?"
रूपाली की बात सुनकर इंदर की आँखों से पानी बहने लगा
"कल रात जब मैं कामिनी के कमरे में कुच्छ तलाश कर रह था और आप आ गयी थी तब मैने आपको कहा था के मैं वो पेपर्स ढूँढ रहा था जिसपर मैने शायरी लिखी हुई थी. ये बात कुच्छ अजीब नही लगी आपको? आख़िर कुच्छ काग़ज़ ही तो थे. ऐसी कोई बड़ी मुसीबत तो नही थी के मैं आधी रात को कामिनी के कमरे में जाता" इंदर ने कहा
"आजीब तो लगी थी पर तेरी हर बात पर यकीन करने की आदत सी पड़ गयी है मुझे इसलिए कुच्छ नही बोली" रूपाली ने इंदर का चेहरा छ्चोड़कर उसके साथ बिस्तर पर जा बैठी
"मैं वो रेवोल्वेर ढूँढ रहा था दीदी. मेरी रेवोल्वेर जंगल में नही खोई थी. वो मैने कामिनी को दी थी. आख़िरी कुच्छ दीनो में वो बहुत परेशान सी रहती थी. कहती थी के उसे हवेली में डर लगता है. अपने ही घरवाले उसे अजनबी लगते हैं क्यूंकी हर किसी ने अपने चेहरे पर एक नकली चेहरा लगा रखा था. एक दिन वो मुझसे मिलने आई तो रो रही थी. मैने पुचछा तो कुच्छ बोली नही बस मुझसे मेरी गन माँगी. मुझे अजीब लगा. मैं रेवोल्वेर उसे देना नही चाहता था पर उसके आँसू देख भी नही सकता था. दिल के हाथों मजबूर होकर मैने वो रेवोल्वेर कामिनी को दे दी."
उसने वापिस नही दी?" रूपाली हैरान सी इंदर को देख रही थी
"नौबत ही नही आई" इंदर ने सर झटकते हुए कहा "उसके 2 दिन बाद ही जीजाजी का खून हो गया और फिर मैं कामिनी से मिल नही सका. पिच्छले 10 साल से सोचता रहा के आकर उसका कमरा देखूं के शायद वो रेवोल्वेर यहीं कहीं रखा छ्चोड़ गयी हो पर हिम्मत नही पड़ी. एक दो बार आपसे मिलने के बहाने आया भी तो कामिनी के कमरे में जाने का मौका नही मिला"
"तेरे पास कामिनी के कमरे की चाभी कहाँ से आई?" रूपाली को अचानक याद आया के इंदर बड़ी आसानी से कमरा खोलकर अंदर चला गया था
"वो जब आखरी बार मिलने आई तो बहुर घबराई हुई थी. उसी घबराहट में चाभी मेरी गाड़ी में छ्चोड़ गयी थी" इंदर ने जवाब दिया
"शुरू से बता इंदर. सब कुच्छ" रूपाली ने कहा
"मैने कामिनी को अपने एक दोस्त की शादी में देखा था" इंदर ने बताना शुरू किया
पार्टी पूरे जोश पर थी. इंदर शराब नही पीता था पर आज उसके एक बहुत करीबी दोस्त की शादी थी इसलिए दोस्तों के कहने पर मजबूरन पीनी पड़ी. थोड़ी ही देर बाद उसे एहसास हो गया के नशा अब उसके सर पर चढ़ने लगा है. वो हमेशा से अपनी ज़ुबान पर काबू रखने वाला आदमी था. सिर्फ़ उतना ही बोलता था जितना ज़रूरी हो. कभी भी कहीं पर उसकी ज़ुबान से ऐसी बात नही निकलती थी जो वो ना कहना चाहता हो. पर इंसान नशे में हो तो ना खुद पर काबू रहता है और ना अपनी ज़ुबान पर और ये बात इंदर अच्छी तरह जानता था. पार्टी में मौजूद हर लड़की बस जैसे उसी की तरफ देख रही थी और उससे बात करने या उसके करीब आने की कोशिश कर रही थी. नशे की हालत में कहीं वो किसी के साथ कोई बदतमीज़ी ना कर दे ये सोचकर इंदर ने सबसे अलग कहीं अकेले जाकर बैठने का फ़ैसला किया. अभी वो नशे में था पर नशा इतना नही था के वो होश खो दे पर अगर दोस्तों के बीच रहता तो वो उसे और पीला देते और फिर बात काबू से बाहर हो जाती.
अकेला इंदर अपने दोस्त की ससुराल के घर की सीढ़ियाँ चढ़ता छत की और चला. छत पर पहुँचते ही ठंडी हवा का झोंका उसके चेहरे पर लगा और उसे कुच्छ रहट सी महसूस हुई. नीचे सिगेरेत्टे के धुएँ में उसका दम सा घुटने लगा था.
छ्हत पर कोई नही था. इंदर ने कोने में रखी एक चेर देखी और जाकर उसपर बैठ गया.
"हे भगवान " उसने ज़ोर से कहा "इंसान शराब क्यूँ पीता है"
तभी उसे छत के कोने पर कुच्छ आहट महसूस हुई. नज़र घूमकर देखा तो वहाँ एक लड़की खड़ी थी जो उसके ज़ोर से बोलने पर मुड़कर उसकी तरफ देख रही थी.
"माफ़ कीजिएगा" इंदर फ़ौरन चेर से उठ खड़ा हुआ "मैने आपको देखा नही. शायद ये चेर आप लाई हैं उपेर. आपकी है"
उस लड़की ने एक नज़र इंदर पर डाली और फिर आसमान की तरफ देखने लगी. इंदर को ये थोड़ा अजीब लगा. नीचे खड़ी हर लड़की बस उसी की तरफ देखे जा रही थी और इस लड़की ने उसपर एक नज़र डाली थी. आख़िर आसमान में ऐसा क्या है जिसके लिए उसे भी नज़र अंदाज़ कर दिया गया. ये सोचते हुए इंदर ने आसमान की तरफ नज़र उठाई.
"शिकन लिए मुस्कुराते लबों पे,बात आती है कभी कभी,
क़ुरबतों में पली वो ज़िंदगी, साथ आती है कभी कभी
आसमान से चाँद चुराकर कहीं ले जा तू आज सितम्गर,
जी लेने दे अंधेरे को, के अमावस की रात आती है कभी कभी"
आसमान की तरफ देखते हुए उस लड़की ने कहा
"जी?" इंदर ने उसकी तरफ देखा "अपने मुझसे कुच्छ कहा?"
वो लड़की फिर से इंदर की तरफ देखने लगी
"आप यहाँ उपेर अकेले में क्या कर रहे हैं? आइए नीचे चलें" लड़की ने कहा तो इस बार इंदर को और ज़्यादा हैरानी हुई. कहाँ तो हर लड़की अकेले में उससे बात करना चाह रही थी और कहाँ ये लड़की उसे वापिस नीचे जाने को कह रही थी.
इंदर ने एक नज़र उसपर डाली. वो एक मामूली सूरत की आम सी दिखने वाली लड़की थी. हल्का सावला रंग, गोल चेहरा, काली आँखें और काले बॉल.
"मैं अगर नीचे गया तो मुसीबत आ जाएगी. मेरे दोस्त फिर से मेरे हाथ में शराब थमा देंगे" उसने मुस्कुराते हुए उस लड़की से कहा
"तो क्या हुआ? यहाँ तो हर कोई पी रहा है" उस लड़की ने कहा
"जी हां पर अगर मैं पी लूँ तो मैं पागल हो जाता हूँ. अपने होश में नही रहता. अगर एक बार मुझे नशा चढ़ जाए तो मैं बीच बाज़ार में नाचना शुरू कर दूं" इंदर ने हल्का शरमाते हुए जवाब दिया
उसकी बात सुनकर वो लड़की हस पड़ी. उसके हासणे की आवाज़ ऐसी थी के इंदर बस उसे देखता रह गया. लड़की ने हाथ के इशारे से उसे फिर नीचे चलने को कहा तो इंदर ने फ़ौरन इनकार में सर हिला दिया
"जी बिल्कुल नही. ना तो मेरा आज पागल होने का इरादा है और ना कहीं नशे में नाचने का, ना बाज़ार में और ना ही यहाँ पार्टी में"
उसकी बात सुनकर वो लड़की उसके थोडा करीब आई और हल्की सी आवाज़ में ऐसे बोली जैसे कोई राज़ की बात बता रही हो
"आज बाज़ार में पबाजोला चलो
दस्त अफ्शान चलो,मस्त-ओ-रकसान चलो
खाक बरसर चलो,खून बदमा चलो
राह तकता है सब,शहेर-ए-जाना चलो
हाकिम-ए-शहेर भी, मजमा-ए-आम भी
तीर-ए-इल्ज़ाम भी, संग-ए-दुश्नाम भी
सुबह-ए-नाशाद भी, रोज़-ए-नाकाम भी
इनका दम्साज अपने सिवा कौन है
शहेर-ए-जाना में अब बसिफ़ा कौन है
दस्त-ए-क़ातिल के शायन रहा कौन है
रखत-ए-दिल बाँध लो, दिलफ़िगारो चलो
फिर हम ही क़त्ल हो आएँ यारो चलो"
"जी?" एक शब्द भी इंदर के पल्ले नही पड़ा "ये कौन सी भाषा थी"
उसकी बात सुनकर वो लड़की फिर खिलखिलाकर हस्ने लगी और सीढ़ियाँ उतरकर नीचे चली गयी.
नीचे आकर इंदर ने पता किया तो लड़की का नाम कामिनी था और वो ठाकुर शौर्या सिंग की बेटी थी. कामिनी में ऐसा कुच्छ भी नही था जिसपर आकर किसी की नज़र थम जाए पर जाने क्यूँ इंदर की नज़र बार बार उसी पर आकर रुकती. जिस तरह से वो उपेर खड़ी आसमान को देख रही थी, जिस तरह से उसने हाथ से इशारा करके इंदर को नीचे चलने को कहा था, और जिस तरह से वो कुच्छ धीरे से कहती थी जो इंदर को समझ नही आया था, इन सब बातों में इंदर उलझ कर रह गया थे. पूरी रात पार्टी में वो बस कामिनी को ही देखता रहा और उसने महसूस किया के वो भी पलटकर उसी की तरफ देख रही थी. कई बार दोनो की नज़र आपस में टकराती और दोनो ने मुस्कुरा कर नज़र फेर लेते.
सुबह के 4 बाज रहे थे. इंदर लड़केवालों की तरफ से बारात के साथ आया था जबकि कामिनी लड़की वालो की तरफ से थी. विदाई की वक़्त हो गया था और हर कोई दूल्हा और दुल्हन के आस पास भटक रहा था. इंदर जानता था के थोड़ी देर बाद उसको जाना होगा पर वो कामिनी से एक बार बात करना चाहता था. जाने क्या था के उसकी नज़र पागलों की तरह भीड़ में कामिनी को तलाश रही थी पर वो कहीं नज़र नही आई. अचानक इंदर को छत का ख्याल आया और वो भागता हुआ फिर छत पर पहुँचा. जैसा की उसने सोचा था, कामिनी वहीं खड़ी फिर से आसमान की तरफ देख रही थी. इंदर भागता हुआ छत पर आया था इसलिए उसकी साँस फूल रही थी. उसके हाफने की आवाज़ सुनकर कामिनी उसकी तरफ पलटी और खामोशी से उसे देखने लगी. कुच्छ देर तक इंदर भी कुच्छ नही बोला और छत की दीवार का सहारा लेकर खड़ा हो गया.
"शुक्रिया" थोड़ी देर बाद कामिनी बोली
इंदर ने सवालिया नज़र से उसकी तरफ देखा
"किस बात के लिए?" उसने कामिनी से पुचछा
"आज रात के लिए. आज रात आप हमारे साथ रहे उसके लिए" कामिनी ने एक नज़र इंदर की तरफ देखा और फिर आसमान की तरफ देखने लगी
"मैं आपके साथ कहाँ था. आपको तो अपनी दोस्तों से वक़्त ही नही मिला" इंदर ने कामिनी की तरफ देखा. वो अब भी उपेर ही देख रही थी
"क्या देख रही हैं आप? क्या है आसमान में" आख़िर इंदर ने पुच्छ ही लिया
उसकी बात सुनकर कामिनी ने उसकी तरफ देखा और उसके सवाल को नज़र अंदाज़ कर दिया
"भले आप खुद हमारे साथ नही थे पर आपकी नज़र ने हमें एक पल के लिए भी अकेला कहाँ होने दिया. पूरी रात आपकी नज़र हमारे साथ रही" कामिनी ने कहा तो इंदर ने मुस्कुराते हुए नज़र नीची कर ली
"तो आप जानती थी?" उसने कामिनी से पुचछा
जवाब में कामिनी कुच्छ नही बोली. बस खामोशी से उसके करीब आई और फिर उसी हल्की सी आवाज़ में बोली, जैसे कोई बहुत बड़े राज़ की बात बता रही हो
"कुच्छ इस अदा से आप यूँ पहलू-नसहीन रहे
जब तक हमारे पास रहे, हम नहीं रहे
या रब किसी के राज़-ए-मोहब्बत की खैर हो
दस्त-ए-जुनून रहे ना रहे आस्तीन रहे"
इंदर को एक बार फिर पूरी तरह से कामिनी की बात समझ नही आई पर वो किस मोहब्बत के राज़ की बात कर रही थी ये वो अच्छी तरह समझ गया था. उसने कामिनी की तरफ देखा.
"दुआ करती हूँ के मैने जो अभी कहा है, इसके बाद की लाइन्स कहने की नौबत कभी ना आए" कामिनी ने धीरे से पिछे होते हुए कहा
"जी?" इंदर ने कामिनी की और देखते हुए पुचछा
कामिनी फिर से हस्ने लगी और इंदर फिर उसको एकटूक देखने लगा
"कभी इस जी के सिवा कुच्छ और भी कहिए ठाकुर इंद्रासेन राणा" कामिनी ने कहा और सीढ़ियाँ उतरकर नीचे चली गयी
इंदर समझ गया था के जिस तरह वो अपने दोस्तों से कामिनी के बारे में मालूम करने की कोशिश कर रहा था वैसे ही कामिनी ने भी उसका नाम कहीं से मालूम किया था. थोड़ी ही देर बाद बारात विदा हो गयी. जाते हुए इंदर को कामिनी कहीं नज़र नही आई पर वो जानता था के वो उसे फिर ज़रूर मिलेगा.
शादी के 2 दिन बाद इंदर अपने कमरे में सोया हुआ था. सुबह के 9 बाज रहे थे पर उसे देर से सोने और देर तक सोते रहने की आदत थी. उसके पास रखा फोन बजने लगा तो चिड़कर इंदर ने तकिया अपने मुँह पर रख लिया. फोन लगातार बजता रहा तो उसने गुस्से में फोन उठाया.
"हेलो" आधी नींद में इंदर बोला.
दूसरी तरफ से वही ठहरी हुई धीमी आवाज़ आई जिसने 2 दिन पहले इंदर को पागल सा कर दिया था.
लज़्ज़त-ए-घाम बढ़ा दीजिए,
आप यूँ मुस्कुरा दीजिए,
क़यामत-ए-दिल बता दीजिए,
खाक लेकर उड़ा दीजिए,
मेरा दामन बहुत साफ है
कोई इल्ज़ाम लगा दीजिए
"कामिनी" इंदर बिस्तर पर फ़ौरन उठ बैठा.
"हमें तो लगा के आप हमें भूल गये" दूसरी तरफ से कामिनी की आवाज़ आई
"कैसे भूल सकता हूँ पर आप अपने नंबर देकर ही नही गयीं" इंदर अपनी सफाई में बोला
"नंबर तो आपने भी नही दिया पर हमें तो मिल गया" कामिनी ने कहा तो इंदर के पास अब कोई जवाब नही था.
कुच्छ देर तक वो इधर उधर की बातें करते रहे. कामिनी ने उसे अपने बारे में बताया और इंदर ने कामिनी को अपने बारे में. खबर ही नही हुई के दोनो को बात करते करते कब 2 घंटे से ज़्यादा वक़्त हो गया. आख़िर में इंदर ने फिर से मिलने की बात की तो कामिनी खामोश हो गयी.
"क्या हुआ?" इंदर ने पुचछा "आप मिलना नही चाहती?"
"अगर इंसान के चाहने से सब कुच्छ हो जाया करता तो फिर दुनिया में इतनी मुसीबत ना हुआ करती" दूसरी तरफ से कामिनी की आवाज़ आई "हम फिर फोन करेंगे"
कहकर कामिनी ने फोन रख दिया. इंदर परेशान सा फोन की तरफ देखने लगा. इस बार भी कामिनी ने उसे अपना फोन नंबर नही दिया था.
"फिर क्या हुआ?" रूपाली खामोशी से बैठी इंदर की बात सुन रही थी
"उसने उस दिन फोन ऐसे ही रख दिया पर मैं समझ चुका था के वो भी मुझे चाहती है. मैने अपने उस दोस्त को फोन किया जिसकी शादी में मुझे कामिनी मिली थी और उसकी बीवी के ज़रिए मैने कामिनी का फोन नंबर निकाल लिया. यानी यहाँ हवेली का नंबर" इंदर ने कहा
":ह्म्म्म्मम "रूपाली ने हामी भारी
"पर मुसीबत ये थी के अगर मैं फोन करूँ तो पता नही कामिनी उठती या कोई और. फिर भी मैने कोशिश की. 3 दिन तक मैं लगातार कोशिश करता रहा पर हर बार कोई और ही फोन उठता और मुझे फोन काटना पड़ता. इस बीच कामिनी ने भी मुझे फोन नही किया. 3 दिन बाद एक दिन मैने फोन किया तो फोन कामिनी ने उठाया. पहले तो वो मेरे फोन करने पर ज़रा परेशान हुई के मुझे यूँ फोन नही करना चाहिए था और अगर घर में किसी को पता चला तो मुसीबत आ जाएगी. पर फिर खुद ही हस्कर कहने लगी के वो देखना चाहती थी के मैं फोन करूँगा या नही इसलिए खुद भी मुझे 3 दिन से फोन नही कर रही थी. ये थी मेरी और उसकी पहली मुलाक़ात. इसके बाद हम दोनो के बीच फोन शुरू हो गये और हम घंटो एक दूसरे से बातें करते रहते. मुझे खबर ही नही हुई के मैं कब कामिनी को इतना चाहने लगा था पर वो थी के मुझसे मिलने को तैय्यार ही नही होती थी. फिर तकरीबन 6 महीने बाद वो मुझसे मिलने को तैय्यार हुई." इंदर अब बिना रुके अपनी पूरी कहानी बता रहा था
"शहेर में मिलते थे तुम दोनो?" रूपाली ने पुचछा
"हां" इंदर ने हां में सर हिलाया "कामिनी गाड़ी अकेली ही लाती थी. ना ड्राइवर ना बॉडीगार्ड. उन दीनो वो काफ़ी खुश रहती थी. हम साथ रहते, बातें करते और कुच्छ वक़्त साथ गुज़रने के बाद वो वापिस चली आती. उन दीनो में ऐसा कुच्छ नही हुआ जो कुच्छ अजीब हो. बस एक लड़का लड़की मिलते और एक दूसरे का हाथ थामे घंटो बातें करते रहते. कुच्छ दिन बाद जाने कैसे पर आपकी शादी कामिनी के घर ही पक्की हो गयी. हम दोनो इस बात को लेकर बहुत खुश थे और इसे अपनी खुशमति मान रहे थे. मैं इसलिए खुश था के मैं आपकी शादी के बाद बिना किसी परेशानी के हवेली में आ जा सकता था और वो इसलिए खुश थी के उसे मेरे साथ शादी की बात चलाने का एक बहाना मिल गया था, यानी के आप. पर वो चाहकर भी कभी आपसे बात नही कर सकी और ना ही मैं और इसकी वजेह थी के आप मंदिर से कभी बाहर ही नही निकलती थी. हम दोनो ये सोचकर चुप रह जाते के जाने आप कैसे रिक्ट करेंगी. इसी उलझन में कब वक़्त गुज़रता चला गया हमें पता ही नही चला. कभी कभी मैं आपसे मिलने के बहाने हवेली आ जाया करता था पर अब भी हम ज़्यादातर बाहर ही मिला करते थे"
"कामिनी में बदलाव कब देखा तुमने" रूपाली ने पुचछा
"आखरी कुच्छ दीनो में. जीजाजी के मरने से कोई 2 महीने पहले से. एक दिन वो मुझसे मिलने शहेर आई" इंदर ने बताना शुरू किया
इंदर अपनी गाड़ी रोके कोई एक घंटे से कामिनी का इंतेज़ार कर रहा था. कभी ऐसा नही होता था के कामिनी देर से पहुँचे, बल्कि वो इंदर से पहले ही पहुँच जाती थी पर आज इंदर को इंतेज़ार करना पड़ रहा था. वो शहेर के बाहर एक सुनसान इलाक़े में गाड़ी रोके खड़ा था. कामिनी और वो अक्सर यहीं मिला करते थे.
थोड़ी देर बाद उसे कामिनी की गाड़ी आती हुई नज़र आई. वो अपनी कार से बाहर निकला. कामिनी ने उसकी कार के पिछे लाकर अपनी कार रोकी और उसकी तरफ चलती हुई आई.
"सॉरी" कामिनी ने करीब आते हुए कहा "आज देर हो गयी"
"कोई बात नही" इंदर ने मुस्कुराते हुए कहा "इतने वक़्त से तुम मेरा इंतेज़ार करती थी. आज मैने कर लिया तो कौन सी बड़ी बात है"
इंदर ने अपनी कार का दरवाज़ा खोला और वो दोनो उसकी कार की बॅक्सीट पर बैठ गये. दोपहर का वक़्त था और गर्मी सर चढ़कर बोल रही थी. इंदर ने कार का एसी ऑन कर दिया
कामिनी आज इंदर से पूरे 2 महीने बाद मिल रही थी. वो 2 महीने से कोशिश कर रहा था पर कामिनी मना कर देती थी. उसने हवेली जाने की सोची पर वहाँ वो अकेले में वक़्त नही बिता पाते थे.
"क्या हुआ?" इंदर ने रूपाली के माथे पर हाथ फेरते हुए कहा "परेशान सी लग रही हो"
"कुच्छ नही" कामिनी ने ज़बरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा "तक गयी हूँ"
"इंदर कार की बॅक्सीट पर एक कोने में हो गया और कामिनी को इशारा किया के वो लेट जाए. कामिनी ने पहले तो मना किया पर इंदर के ज़ोर डालने पर वो लेट गयी और अपना सर इंदर की जाँघ पर रख लिया
"क्या हुआ आज हमेशा की तरह कोई शायरी नही?" इंदर ने पुचछा
"जब ज़िंदगी खुद अपनी शायरी सुनाना शुरू कर दे तो इंसान कहाँ शायरी कर पता है" कामिनी ने उदास सी आवाज़ में जवाब दिया
"क्या हुआ?" इंदर ने दोबारा पुचछा
"कुच्छ नही. बस इंसान का चेहरा देखकर कभी कभी समझ नही आता के असली कौन सा है और नकली कौन सा" कामिनी ने कहा और अपनी आँखें बंद कर ली
इंदर ने उसके उदास चेहरे की तरफ देखा और आगे कुच्छ ना पुछा. वो प्यार से कामिनी के सर पर हाथ फेरता रहा
कामिनी ने सलवार कमीज़ पहेन रखी थी. इंदर की गोद में लेटे होने की वजह से उसका दुपट्टा सरक कर कार में नीचे गिर पड़ा था. वो इस तरीके से लेटी हुई थी के दोनो टांगे भी उपेर सीट पर थी और उसका पूरा जिस्म मुड़ा हुआ था जिसकी वजह से नीचे दे दबाव पड़ने के कारण उसकी चूचियाँ कमीज़ के उपेर से बाहर को निकल रही थी.
इंदर की नज़र कामिनी की चूचियों पर पड़ी तो पहले तो उसने नज़र फेर ली पर फिर दोबारा उसी तरफ देखने लगा. कामिनी और उसके बीच अब तक कोई जिस्मानी रिश्ता नही बना था. कभी कभी वो दोनो एक दूसरे को चूम लेते थे और बस. ना तो कभी इससे आगे बात गयी और ना ही इंदर ने कोशिश की के इससे आगे कुच्छ और करे. पर आज कामिनी को यूँ इस हालत में देखकर उसके दिल की धड़कन तेज़ होने लगी.
उसका हाथ कामिनी के सर पर रुक गया था. कुच्छ देर तक आँखें बंद रखने के बाद कामिनी ने आँखें खोली और इंदर की तरफ देखा. इंदर की नज़र अब भी उसकी चूचियों पर थी. कामिनी ने शर्मा कर अपने दोनो हाथ अपने सीने पर रख लिए.
उसकी इस हरकत से इंदर ने उसकी आँखों में देखा. वो धीरे से नीचे झुका और अपने होंठ कामिनी के होंठ पर रख दिए. कामिनी के मुँह से आह निकल गयी और उसका हाथ इंदर का सर सहलाने लगा. दोनो के होंठ आपस में एक दूसरे से चिपक गये और ज़ुबान एक दूसरे की ज़ुबान से टकराने लगी. अपने होंठ कामिनी के होंठों से चिपकाए हुए ही इंदर ने अपने एक हाथ से कामिनी के हाथों को उसके सीने से हटाया. कामिनी ने इनकार करना चाहा पर इंदर की ज़िद के आगे हार मानकर अपने हाथ हटा दिए. इंदर का हाथ उसके गले से होते हुआ उसके सीने पर आया और कमीज़ के उपेर से ही कामिनी की चूचियाँ दबाने लगा. अब तक कामिनी की साँसें भी भारी हो चली थी. ये पहली बार था के वो और इंदर इतने करीब आए थे और इंदर ने उसके जिस्म को च्छुआ था. उसने भी पलटकर पूरे ज़ोर से इंदर को चूमना शुरू कर दिया.
थोड़ी देर कमीज़ के उपेर से ही चूचिया सहलाने के बाद इंदर का हाथ फिर कामिनी के गले पर आया और इस बार उसके कमीज़ के गले से होते हुए अंदर गया और फिर ब्रा के अंदर घुसता हुआ सीधा कामिनी की नंगी चूची पर आ गया. कामिनी का पूरा जिस्म ऐसा हिला जैसे उसे कोई ज़बरदस्त झटका लगा हो. उसने अपने होंठ इंदर के होंठ से हटाया, उसका हाथ पकड़कर बाहर खींचा और उठकर बैठ गयी. बैठकर वो ज़ोर ज़ोर से साँस लेने लगी और अपने बाल ठीक करने लगी. नीचे पड़ा दुपट्टा उठाकर उसने अपने गले में डाल लिया
"क्या हुआ?" इनडर ने पुचछा.
कामिनी ने जवाब नही दिया तो उसने अपना हाथ उसके हाथ पर रखा
"क्या हुआ कामिनी? बुरा लगा क्या?" इंदर ने उसके करीब होने की कोशिश की पर कामिनी दूर होती हुई कार का दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल गयी
"ओक आइ आम सॉरी" इंदर भी अपनी तरफ का दरवाज़ा खोलकर बाहर निकला "तुम जानती हो मैं तुमसे प्यार करना चाहता हूँ और शादी करना चाहता हूँ इसलिए शायद थोड़ा आगे बढ़ गया. कुच्छ ग़लत किया मैने?"
"नही. कुच्छ ग़लत नही किया"कामिनी पलटकर चिल्लाई "ये तो हमारे रिश्ते के लिए बहुत ज़रूरी था ना"
"कामिनी !!!!! " इंदर ने पहली बार कामिनी को यूँ चिल्लाते देखा था इसलिए हैरानी से उसकी तरफ देखने लगा
"इस जिस्म में ऐसा क्या है इंदर जो हर कोई पागल हुआ रहता है इसके पिछे. के अपनी आग लोगों से संभाली नही जाती" कामिनी अब भी गुस्से में थी
"क्या मतलब?" इंदर को समझ नही आ रहा था के कामिनी यूँ ओवर रिक्ट क्यूँ कर रही थी
"हर किसी को यही चाहिए, है ना? हर किसी को बस इसी एक चीज़ की ख्वाहिश लगी रहती है. फिर ना तो रिश्ते मतलब रखते हैं और ना कोई और चीज़. फिर चाहे जितना गिरना पड़े पर जिस्म की आग बुझनी चाहिए, चाहे किसी के साथ भी हो. फिर ये नज़र नही आता के कौन अपने घर का है और कौन ........." कामिनी ने बात अधूरी छ्चोड़ दी. इंदर अब भी उसको चुप खड़ा देख रहा था
"बस यही एक चीज़ चाहिए सबको" कामिनी ने दोनो हाथ हवा में फेलते हुए फिर अपनी बात दोहराई
"सबको मतलब" इंदर बस इतना ही कह सका. कामिनी उसकी बात का जवाब दिए बिना अपनी कार में बैठी और वहाँ से निकल गयी.
"उसके बाद?" रूपाली इंदर से पुचछा
"वो आखरी बार था जब कामिनी मेरे इतने करीब आई थी. उसके बाद अगले 2 महीने तक मैं फोन ट्राइ करता रहा पर उससे बात नही हो पाई. मैं कई बार हवेली आपसे मिलने आया पर वो मुझे देखकर अपने कमरे में चली जाती थी और तब तक बाहर नही आती थी जब तक के मैं वापिस ना चला जाऊं" इंदर बोला
"उसने कुच्छ नही बताया के वो किस बात को लेकर इतना परेशान थी?" रूपाली को समझ नही आ रहा था के क्या सोचे
"इस बात का मौका ही नही मिला दीदी के मैं उससे आराम से बैठकर बात कर पाता या कुच्छ पुच्छ पाता. उस दिन जब वो मिली तो मुझसे लड़कर चली गयी थी. पता नही किसका गुस्सा उसने मुझपर निकाला था और उसके बाद कभी हमें मौका ही नही मिला के आराम से बैठकर बात कर पाते" इंदर ने कहा
"तो अपनी रेवोल्वेर कब दी तुमने उसको?" रूपाली ने पुचछा
"जीजाजी के खून से 3 दिन पहले उसका मेरे पास फोन आया" इंदर ने आगे बताना शुरू किया
इंदर अपने कमरे में बैठा एक किताब पढ़ रहा था. फोन की घंटी बजी तो उसने आगे बढ़कर फोन उठाया. फोन के दूसरी तरफ से कामिनी के रोने की आवाज़ आई.
"कामिनी" इंदर जैसे चिल्ला उठा "ओह थॅंक गॉड कामिनी. मुझे तो लगा था के तुम मुझसे अब कभी बात ही नही करोगी. मेरी ग़लती की इतनी बड़ी सज़ा दे रही थी मुझे?"
दूसरी तरफ से कामिनी ने कुच्छ नही कहा. बस रोती रही. उसके रोने की आवाज़ ऐसी थी जैसे वो बहुत तकलीफ़ में हो. इंदर से बर्दाश्त नही हुआ. उसकी अपनी आँखो में पानी आ गया
"मुझे माफ़ कर दो कामिनी. मैं मानता हूँ के ग़लती मेरी है. मुझे शादी से पहले ऐसी हरकत नही करनी चाहिए थी. पर तुम जानती हो मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ. मैं आज ही तुमसे शादी करने को तैय्यार हूँ अगर तुम कहो तो. हम अपने घर में बात कर लेंगे. नही माने तो कोर्ट मॅरेज कर लेंगे. मेरा यकीन करो कामिनी" इंदर पागलों की तरह कहता जा रहा था.
कुच्छ देर दोनो खामोश रहे. थोड़ी देर बाद रूपाली ने रोते रोते कहा
"मुझे नही पता के अब मैं किसका यकीन करूँ और किसका नही इंदर. अब तो हर कोई अजनबी सा लगने लगा है. हर किसी की शकल देखकर ऐसा लगता है जैसे उसने अपनी शकल पर एक परदा सा डाल रखा हो. अंदर से कुच्छ और और बाहर से कुच्छ और. किस्मत का खेल तो देखो इंदर के जो अपने थे वो पराए हो गये और जो पराया था वो अपना गया."
"मैं कभी पराया नही था कामिनी. मैं तो हमेशा से तुम्हारा अपना था. तुम ऐसी बातें क्यूँ कर रही हो?" इंदर तदपकर बोला
फोन पर फिर थोड़ी देर तक खामोशी बनी रही
"मेरी जान को ख़तरा है इंदर" रूपाली ने रोना बंद करते हुए कहा
इंदर को ऐसा लगा जैसे उसको 1000 वॉट का झटका लगा हो
"किससे?" उसने पुचछा
"ये सब बातें बाद में. मैं अभी ज़्यादा देर बात नही कर सकती. तुम मेरी बात सुनो. तुम मुझे कोई हथ्यार दे सकते हो? हिफ़ाज़त के लिए? तुम्हारी कोई पिस्टल या रेवोल्वेर?" कामिनी अब बहुत धीरे धीरे बोल रही थी
"पिस्टल? ऱेवोल्वेर? तुम क्या कह रही हो मेरी कुच्छ समझ नही आ रहा" ईन्देर के सचमुच कुच्छ भी पल्ले नही पड़ रहा था
"अभी समझने का वक़्त नही है. तुम एक काम करो. कल दोपहर 2 बजे उसी जगह पर मेरा इंतेज़ार करना जहाँ हम आखरी बार मिले थे. और अपनी रेवोल्वेर लेकर आना" कामिनी ने कहा
"कामिनी मेरी बात सुनो" इंदर बोला "कल 2 बजे तो मैं आ जाऊँगा पर ......."
वो अभी कह ही रहा था के पिछे से सरिता देवी की आवाज़ आई"
"कामिनी बेटा"
और कामिनी ने फोन काट दिया.
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
(¨`·.·´¨) ऑल्वेज़
`·.¸(¨`·.·´¨) कीप लविंग &
(¨`·.·´¨)¸.·´ कीप स्माइलिंग !
`·.¸.·´ -- राज
sexi haveli ka such --22
Thodi der baad Rupali darwaza kholkar Inder ke kamre mein dakhil hui. Inder bistar par sar pakde aise betha tha jaise lut gaya ho.
"Sach kya hai Inder? Main janti hoon tu kuchh chhupa raha hai mujhse" Vo Inder ke kareeb jaate hue boli
Inder ne koi jawab nahi diya. Bas sar pakde betha raha.
"Tujhe bataya nahi maine par ab sochti hoon ke bata hi doon." Rupali Inder ke theek saamne ja khadi hui "Kamini ka passport mujhe yahin haweli mein mila. Har vo cheez jo vo jaane se pehle pack karke le gayi thi vo yahin haweli mein band ek kamre mein mili. Vo videsh kabhi gayi hi nahi Inder aur koi nahi janta ke pichhle 10 saal se kahan hai"
Rupali ki baat sunkar Inder ne uski taraf nazar uthayi. Vo aankhen phelaye Rupali ki taraf dekh raha tha. Aankhon mein ek khamosh sawal tha jaise ke vo Rupali se puchh raha ho ke kya vo sach bol rahi hai. Rupali ne bhi usi khamoshi se haan mein sar hilaya
"Mujhe khud abhi 3-4 din pehle hi pata chala" Rupali ne kaha
"Aur kisi ne uske baare mein pata karne ki koshish nahi ki?" Inder ko jaise ab bhi yakeen nahi ho raha tha
"Pata nahi. Jisse puchhti hoon vo yahi kehta hai ke Kamini videsh mein hai. Thakur Sahab hospital mein hain aur unke accident hone se pehle mujhe ye baat pata nahi thi isliye unse baat karna abhi baaki hai" Rupali ne kaha
"Main janta tha ke kuchh gadbad hui hai varna aisa ho hi nahi sakta tha ke vo ek baar bhi mujhe phone na kare. Aapne police mein bataya?" Inder ki aawaz se saaf pata chal raha tha ke use ab bhi is baat par yakeen nahi ho raha tha
"Khan ye baat pehle se hi janta hai. Asal mein usne hi mujhse ye baat sabse pehle batayi thi" Rupali ne Kaha
"Aapne Kuldeep ko phone nahi kiya? Uske paas hi to gayi thi Kamini" Inder sochta hua bola
"Uske jitne number mujhe mil sake maine sab try kiye. Ek bhi kaam nahi kar raha" Rupali ne kaha to Inder phir apna sar pakad kar beth gaya
"Mujhe lagta hai ke ab waqt aa gaya hai ke tum mujhe sab sach batao. Shuru se aakhir tak." Rupali ne puchha to Inder inkaar mein sar hilane laga
Rupali ne uska chehra apne hathon mein liya aur uper uthakar Inder ki aankhon mein dekha
"Ek waqt tha jab teri har baat mujhe pata hoti thi Inder. Main teri behen se zyada teri dost thi. Har chhoti badi shararat tu mujhe bataya karta tha aur main tujhe bachaya karti thi. Ab kya hua mere bhai? Kab itna badal gaya tu ke apni behen se baaten chhupane laga?"
Rupali ki baat sunkar Inder ki aankhon se pani behne laga
"Kal raat jab main Kamini ke kamre mein kuchh talash kar rah tha aur aap aa gayi thi tab maine aapko kaha tha ke main vo papers dhoondh raha tha jispar maine shayri likhi hui thi. Ye baat kuchh ajeeb nahi lagi aapko? Aakhir kuchh kagaz hi to the. Aisi koi badi museebat to nahi thi ke main aadhi raat ko Kamini ke kamre mein jata" Inder ne kaha
"Aajeeb to lagi thi par teri har baat par yakeen karne ki aadat si pad gayi hai mujhe isliye kuchh nahi boli" Rupali ne Inder ka chehra chhodkar uske saath bistar par ja bethi
"Main vo revolver dhoondh raha tha Didi. Meri revolver jungle mein nahi khoyi thi. Vo maine Kamini ko di thi. Aakhiri kuchh dino mein vo bahut pareshan si rehti thi. Kehti thi ke use haweli mein darr lagta hai. Apne hi gharwale use ajnabhi lagte hain kyunki har kisi ne apne chehre par ek nakli chehra laga rakha tha. Ek din vo mujhse milne aayi to ro rahi thi. Maine puchha to kuchh boli nahi bas mujhse meri gun maangi. Mujhe ajeeb laga. Main revolver use dena nahi chahta tha par uske aansoo dekh bhi nahi sakta tha. Dil ke hathon majboor hokar maine vo revolver Kamini ko de di."
Usne vapis nahi di?" Rupali hairan si Inder ko dekh rahi thi
"Naubat hi nahi aayi" Inder ne sar jhatakte hue kaha "Uske 2 din baad hi Jijaji ka khoon ho gaya aur phir main Kamini se mil nahi saka. Pichhle 10 saal se sochta raha ke aakar uska kamra dekhun ke shayad vo revolver yahin kahin rakha chhod gayi ho par himmat nahi padi. Ek do baar aapse milne ke bahane aaya bhi to Kamini ke kamre mein jaane ka mauka nahi mila"
"Tere paas Kamini ke kamre ki chaabhi kahan se aayi?" Rupali ko achanak yaad aaya ke Inder badi aasani se kamra kholkar andar chala gaya tha
"Vo jab aakhri baar milne aayi to bahur ghabrayi hui thi. Usi ghabrahat mein chabhi meri gaadi mein chhod gayi thi" Inder ne jawab diya
"Shuru se bata Inder. Sab kuchh" Rupali ne kaha
"Maine Kamini ko apne ek dost ki shaadi mein dekha tha" Inder ne batana shuru kiya
Party poore josh par thi. Inder sharab nahi peeta tha par aaj uske ek bahut kareebi dost ki shaadi thi isliye doston ke kehne par majbooran peeni padi. Thodi hi der baad use ehsaas ho gaya ke nasha ab uske sar par chadhne laga hai. Vo hamesha se apni zubaan par kaabu rakhne wala aadmi tha. Sirf utna hi bolta tha jitna zaroori ho. Kabhi bhi kahin par uski zubaan se aisi baat nahi nikalti thi jo vo na kehna chahta ho. Par insaan nashe mein ho to na khud par kaabu rehta hai aur na apni zubaan par aur ye baat Inder achhi tarah janta tha. Party mein maujood har ladki bas jaise usi ki taraf dekh rahi thi aur usse baat karne ya uske kareeb aane ki koshish kar rahi thi. Nashe ki halat mein kahin vo kisi ke saath koi badtameezi na kar de ye sochkar Inder ne sabse alag kahin akele jaakar bethne ka faisla kiya. Abhi vo nashe mein tha par nasha itna nahi tha ke vo hosh kho de par agar doston ke beech rehta to vo use aur pila dete aur phir baat kaabu se bahar ho jaati.
Akela Inder apne dost ki sasural ke ghar ki sidhiyan chadhta chhat ki aur chala. Chhat par pahunchte hi thandi hawa ka jhonka uske chehre par laga aur use kuchh rahat si mehsoos hui. Neeche cigerette ke dhuen mein uska dam sa ghutne laga tha.
Chhat par koi nahi tha. Inder ne kone mein rakhi ek chair dekhi aur jakar uspar beth gaya.
"Hey bhagwan " Usne zor se kaha "Insaan sharab kyun peeta hai"
Tabhi use chhat ke kone par kuchh aahat mehsoos hui. Nazar ghumakar dekha to vahan ek ladki khadi thi jo uske zor se bolne par mudkar uski taraf dekh rahi thi.
"Maaf kijiyega" Inder fauran chair se uth khada hua "Maine aapko dekha nahi. Shayad ye chair aap laayi hain uper. Aapki hai"
Us ladki ne ek nazar Inder par daali aur phir aasman ki taraf dekhne lagi. Inder ko ye thoda ajeeb laga. Neeche khadi har ladki bas usi ki taraf dekhe ja rahi thi aur is ladki ne uspar ek nazar daali thi. Aakhir aasman mein aisa kya hai jiske liye use bhi nazar andaz kar diya gaya. Ye sochte hue Inder ne aasman ki taraf nazar uthayi.
"Shikan liye muskurate labon pe,Baat aati hai kabhi kabhi,
Qurbaton mein pali vo zindagi, saath aati hai kabhi kabhi
Aasman se Chand churakar kahin le ja tu aaj sitamgar,
Jee lene de andhere ko, ke amavas ki raat aati hai kabhi kabhi"
Aasman ki taraf dekhte hue us ladki ne kaha
"Ji?" Inder ne uski taraf dekha "Apne mujhse kuchh kaha?"
Vo ladki phir se Inder ki taraf dekhne lagi
"Aap yahan uper akele mein kya kar rahe hain? Aaiye neeche chalen" Ladki ne kaha to is baar Inder ko aur zyada hairani hui. Kahan to har ladki akele mein usse baat karna chah rahi thi aur kahan ye ladki use vapis neeche jaane ko keh rahi thi.
Inder ne ek nazar uspar daali. Vo ek mamuli soorat ki aam si dikhne wali ladki thi. Halka saawla rang, gol chehra, kaali aankhen aur kaale baal.
"Main agar neeche gaya to museebat aa jayegi. Mere dost phir se mere haath mein sharab thama denge" Usne muskurate hue us ladki se kaha
"To kya hua? Yahan to har koi pee raha hai" Us ladki ne kaha
"Ji haan par agar main pee loon to main pagal ho jata hoon. Apne hosh mein nahi rehta. Agar ek baar mujhe nasha chadh jaaye to main beech bazar mein nachna shuru kar doon" Inder ne halka sharmate hue jawab diya
Uski baat sunkar vo ladki has padi. Uske hasne ki aawaz aisi thi ke Inder bas use dekhta reh gaya. Ladki ne haath ke ishare se use phir neeche chalne ko kaha to Inder ne fauran inkaar mein sar hila diya
"Ji bilkul nahi. Na to mera aaj pagal hone ka irada hai aur na kahin nashe mein nachne ka, na bazar mein aur na hi yahan party mein"
Uski baat sunkar vo ladki uske thoda kareeb aayi aur halki si aawaz mein aise boli jaise koi raaz ki baat bata rahi ho
"Aaj bazaar mein pabajola chalo
Dast afshaan chalo,Mast-o-raksaan chalo
khaak barsar chalo,khoon badama chalo
raah takta hai sab,Sheher-e-jaana chalo
Haakim-e-sheher bhi, Majma-e-aam bhi
Teer-e-ilzaam bhi, sang-e-dushnaam bhi
Subah-e-nashad bhi, Roz-e-nakam bhi
Inka damsaaz apne siwa kaun hai
Sheher-e-jaana mein ab basifa kaun hai
Dast-e-qatil ke shaayan raha kaun hai
Rakht-e-dil baandh lo, dilfigaro chalo
Phir ham hi qatl ho aayen yaaro chalo"
"Ji?" Ek shabd bhi Inder ke palle nahi pada "Ye kaun si bhasha thi"
Uski baat sunkar vo ladki phir khilkhilakar hasne lagi aur sidhiyan utarkar neeche chali gayi.
Neeche aakar Inder ne pata kiya to Ladki ka naam Kamini tha aur vo Thakur Shaurya Singh ki beti thi. Kamini mein aisa kuchh bhi nahi tha jispar aakar kisi ki nazar tham jaaye par jaane kyun Inder ki nazar baar baar usi par aakar rukti. Jis tarah se vo uper khadi aasman ko dekh rahi thi, jis tarah se usne haath se ishara karke Inder ko neeche chalne ko kaha tha, aur jis tarah se vo kuchh dheere se kehti thi jo Inder ko samajh nahi aaya tha, in sab baaton mein Inder ulajh kar reh gaya the. Poori raat party mein vo bas Kamini ko hi dekhta raha aur usne mehsoos kiya ke vo bhi palatkar usi ki taraf dekh rahi thi. Kai baar dono ki nazar aapas mein takrati aur dono ne muskura kar nazar pher lete.
Subah ke 4 baj rahe the. Inder ladkewalon ki taraf se baraat ke saath aaya tha jabki Kamini ladki walo ki taraf se thi. Vidayi ki waqt ho gaya tha aur har koi dulha aur dulhan ke aas paas bhatak raha tha. Inder janta tha ke thodi der baad usko jaana hoga par vo Kamini se ek baar baat karna chahta tha. Jaane kya tha ke uski nazar pagalon ki tarah bheed mein Kamini ko talash rahi thi par vo kahin nazar nahi aayi. Achanak Inder ko chhat ka khyaal aaya aur vo bhagta hua phir chhat par pahuncha. Jaisa ki usne socha tha, Kamini vahin khadi phir se aasman ki taraf dekh rahi thi. Inder bhagta hua chhat par aaya tha isliye uski saans phool rahi thi. Uske haafne ki aawaz sunkar Kamini uski taraf palti aur khamoshi se use dekhne lagi. Kuchh der tak Inder bhi kuchh nahi bola aur chhat ki deewar ka sahara lekar khada ho gaya.
"Shukriya" Thodi der baad Kamini boli
Inder ne sawaliya nazar se uski taraf dekha
"Kis baat ke liye?" Usne Kamini se puchha
"Aaj raat ke liye. Aaj raat aap hamare saath rahe uske liye" Kamini ne ek nazar Inder ki taraf dekha aur phir aasman ki taraf dekhne lagi
"Main aapke saath kahan tha. Aapko to apni doston se waqt hi nahi mila" Inder ne Kamini ki taraf dekha. Vo ab bhi uper hi dekh rahi thi
"Kya dekh rahi hain aap? Kya hai aasman mein" Aakhir Inder ne puchh hi liya
Uski baat sunkar Kamini ne uski taraf dekha aur uske sawal ko nazar andaaz kar diya
"Bhale aap khud hamare saath nahi the par aapki nazar ne hamen ek pal ke liye bhi akela kahan hone diya. Poori raat aapki nazar hamare saath rahi" Kamini ne kaha to Inder ne muskurate hue nazar neechi kar li
"To aap janti thi?" Usne Kamini se puchha
Jawab mein Kamini kuchh nahi boli. Bas khamoshi se uske kareeb aayi aur phir usi halki si aawaz mein boli, jaise koi bahut bade raaz ki baat bata rahi ho
"Kuchh is ada se aap yun pehlu-nashin rahe
Jab tak hamare paas rahe, ham nahin rahe
Ya rab kisi ke raaz-e-mohabbat ki khair ho
Dast-e-junoon rahe na rahe aasteen rahe"
Inder ko ek baar phir poori tarah se Kamini ki baat samajh nahi aayi par vo kis mohabbat ke raaz ki baat kar rahi thi ye vo achhi tarah samajh gaya tha. Usne Kamini ki taraf dekha.
"Dua karti hoon ke maine jo abhi kaha hai, iske baad ki lines kehne ki naubat kabhi na aaye" Kamini ne dheere se pichhe hote hue kaha
"Ji?" Inder ne Kamini ki aur dekhte hue puchha
Kamini phir se hasne lagi aur Inder phir usko ektuk dekhne laga
"Kabhi is Ji ke siwa kuchh aur bhi kahiye Thakur Indrasen Rana" Kamini ne kaha aur sidhiyan utarkar neeche chali gayi
Inder samajh gaya tha ke jis tarah vo apne doston se Kamini ke baare mein malum karne ki koshish kar raha tha vaise hi Kamini ne bhi uska naam kahin se malum kiya tha. Thodi hi der baad baraat vida ho gayi. Jaate hue Inder ko Kamini kahin nazar nahi aayi par vo janta tha ke vo use phir zaroor milega.
Shaadi ke 2 din baad Inder apne kamre mein soya hua tha. Subah ke 9 baj rahe the par use der se sone aur der tak sote rehne ki aadat thi. Uske paas rakha phone bajne laga to chidkar Inder ne takiya apne munh par rakh liya. Phone lagatar bajta raha to usne gusse mein phone uthaya.
"Hello" Aadhin neend mein Inder bola.
Doosri taraf se vahi thehri hui dheemi aawaz aayi jisne 2 din pehle Inder ko pagal sa kar diya tha.
Lazzat-e-gham badha dijiye,
Aap yun muskura dijiye,
Qeeamt-e-dil bata dijiye,
Khaak lekar uda dijiye,
Mera daman bahut saaf hai
Koi ilzaam laga dijiye
"Kamini" Inder bistar par fauran uth betha.
"Hamen to laga ke aap hamen bhool gaye" Doosri taraf se Kamini ki aawaz aayi
"Kaise bhool sakta hoon par aap apne number dekar hi nahi gayin" Inder apni safai mein bola
"Number to aapne bhi nahi diya par hamen to mil gaya" Kamini ne kaha to Inder ke paas ab koi jawab nahi tha.
Kuchh der tak vo idhar udhar ki baaten karte rahe. Kamini ne use apne baare mein bataya aur Inder ne Kamini ko apne baare mein. Khabar hi nahi hui ke dono ko baat karte karte kab 2 ghante se zyada waqt ho gaya. Aakhir mein Inder ne phir se milne ki baat ki to Kamini khamosh ho gayi.
"Kya hua?" Inder ne puchha "Aap milna nahi chahti?"
"Agar insaan ke chahne se sab kuchh ho jaaya karta to phir duniya mein itni museebat na hua karti" Doosri taraf se Kamini ki aawaz aayi "Ham phir phone karenge"
Kehkar Kamini ne phone rakh diya. Inder pareshan sa phone ki taraf dekhne laga. Is baar bhi Kamini ne use apna phone number nahi diya tha.
"Phir kya hua?" Rupali khamoshi se bethi Inder ki baat sun rahi thi
"Usne us din phone aise hi rakh diya par main samajh chuka tha ke vo bhi mujhe chahti hai. Maine apne us dost ko phone kiya jiski shaadi mein mujhe Kamini mili thi aur uski biwi ke zariye maine Kamini ka phone number nikal liya. Yaani yahan haweli ka number" Inder ne kaha
":Hmmmmm "Rupali ne haami bhari
"Par museebat ye thi ke agar main phone karun to pata nahi Kamini uthati ya koi aur. Phir bhi maine koshish ki. 3 din tak main lagatar koshish karta raha par har baar koi aur hi phone uthata aur mujhe phone kaatna padta. Is beech Kamini ne bhi mujhe phone nahi kiya. 3 din baad ek din maine phone kiya to phone Kamini ne uthaya. Pehle to vo mere phone karne par zara pareshan hui ke mujhe yun phone nahi karna chahiye tha aur agar ghar mein kisi ko pata chala to museebat aa jayegi. Par phir khud hi haskar kehne lagi ke vo dekhna chahti thi ke main phone karunga ya nahi isliye khud bhi mujhe 3 din se phone nahi kar rahi thi. Ye thi meri aur uski pehli mulaqat. Iske baad ham dono ke beech phone shuru ho gaye aur ham ghanto ek doosre se baaten karte rehte. Mujhe khabar hi nahi hui ke main kab Kamini ko itna chahne laga tha par vo thi ke mujhse milne ko taiyyar hi nahi hoti thi. Phir takreeban 6 mahine baad vo mujhse milne ko taiyyar hui." Inder ab bina ruke apni poori kahani bata raha tha
"Sheher mein milte the tum dono?" Rupali ne puchha
"Haan" Inder ne haan mein sar hilaya "Kamini gaadi akeli hi laati thi. Na driver na bodyguard. Un dino vo kaafi khush rehti thi. Ham saath rehte, baaten karte aur kuchh waqt saath guzarne ke baad vo vapis chali aati. Un dino mein aisa kuchh nahi hua jo kuchh ajeeb ho. Bas ek ladka ladki milte aur ek doosre ka haath thaame ghanto baaten karte rehte. Kuchh din baad jaane kaise par aapki shaadi Kamini ke ghar hi pakki ho gayi. Ham dono is baat ko lekar bahut khush the aur ise apni khushmati maan rahe the. Main isliye khush tha ke main aapki shaadi ke baad bina kisi pareshani ke haweli mein aa ja sakta tha aur vo isliye khush thi ke use mere saath shaadi ki baat chalane ka ek bahana mil gaya tha, yaani ke aap. Par vo chahkar bhi kabhi aapse baat nahi kar saki aur na hi main aur iski vajeh thi ke aap mandir se kabhi bahar hi nahi nikalti thi. Ham dono ye sochkar chup reh jaate ke jaane aap kaise react karengi. Isi uljhan mein kab waqt guzarta chala gaya hamen pata hi nahi chala. Kabhi kabhi main aapse milne ke bahane haweli aa jaya karta tha par ab bhi ham zyadatar bahar hi mila karte the"
"Kamini mein badlav kab dekha tumne" Rupali ne puchha
"Aakhri kuchh dino mein. Jijaji ke marne se koi 2 mahine pehle se. Ek din vo mujhse milne sheher aayi" Inder ne batana shuru kiya
Inder apni gaadi roke koi ek ghante se Kamini ka intezaar kar raha tha. Kabhi aisa nahi hota tha ke Kamini der se pahunche, balki vo Inder se pehle hi pahunch jaati thi par aaj Inder ko intezaar karna pad raha tha. Vo sheher ke bahar ek sunsaan ilaake mein gaadi roke khada tha. Kamini aur vo aksar yahin mila karte the.
Thodi der baad use Kamini ki gaadi aati hui nazar aayi. Vo apni car se bahar nikla. Kamini ne uski car ke pichhe lakar apni car roki aur uski taraf chalti hui aayi.
"Sorry" Kamini ne kareeb aate hue kaha "Aaj der ho gayi"
"Koi baat nahi" Inder ne muskurate hue kaha "Itne waqt se tum mera intezaar karti thi. Aaj maine kar liya to kaun si badi baat hai"
Inder ne apni car ka darwaza khola aur vo dono uski car ki backseat par beth gaye. Dopahar ka waqt tha aur garmi sar chadhkar bol rahi thi. Inder ne car ka AC on kar diya
Kamini aaj Inder se poore 2 mahine baad mil rahi thi. Vo 2 mahine se koshish kar raha tha par Kamini mana kar deti thi. Usne haweli jaane ki sochi par vahan vo akele mein waqt nahi bita paate the.
"Kya hua?" Inder ne Rupali ke maathe par haath pherte hue kaha "Pareshan si lag rahi ho"
"Kuchh nahi" Kamini ne zabardasti muskurate hue kaha "Thak gayi hoon"
"Inder car ki backseat par ek kone mein ho gaya aur Kamini ko ishara kiya ke vo let jaaye. Kamini ne pehle to mana kiya par Inder ke zor daalne par vo let gayi aur apna sar Inder ki jaangh par rakh liya
"Kya hua aaj hamesha ki tarah koi shayri nahi?" Inder ne puchha
"Jab zindagi khud apni shayri sunana shuru kar de to insaan kahan shayri kar pata hai" Kamini ne udaas si aawaz mein jawab diya
"Kya hua?" Inder ne dobara puchha
"Kuchh nahi. Bas insaan ka chehra dekhkar kabhi kabhi samajh nahi aata ke asli kaun sa hai aur nakli kaun sa" Kamini ne kaha aur apni aankhen band kar li
Inder ne uske udaas chehre ki taraf dekha aur aage kuchh na puchha. Vo pyaar se Kamini ke sar par haath pherta raha
Kamini ne salwar kameez pehen rakhi thi. Inder ki god mein lete hone ki vajah se uska dupatta sarak kar car mein neeche gir pada tha. Vo is tareeke se leti hui thi ke dono taange bhi uper seat par thi aur uska poora jism muda hua tha jiski vajah se neeche de dabav padne ke karan uski chhatiyan kameez ke uper se bahar ko nikal rahi thi.
Inder ki nazar Kamini ki chhatiyon par padi to pehle to usne nazar pher li par phir dobara usi taraf dekhne laga. Kamini aur uske beech ab tak koi jismani rishta nahi bana tha. Kabhi kabhi vo dono ek doosre ko choom lete the aur bas. Na to kabhi isse aage baat gayi aur na hi Inder ne koshish ki ke isse aage kuchh aur kare. Par aaj Kamini ko yun is halat mein dekhkar uske dil ki dhadkan tez hone lagi.
Uska haath Kamini ke sar par ruk gaya tha. Kuchh der tak aankhen band rakhne ke baad Kamini ne aankhen kholi aur Inder ki taraf dekha. Inder ki nazar ab bhi uski chhatiyon par thi. Kamini ne sharma kar apne dono haath apne seene par rakh liye.
Uski is harkat se Inder ne uski aankhon mein dekha. Vo dheere se neeche jhuka aur apne honth Kamini ke honth par rakh diye. Kamini ke munh se aah nikal gayi aur uska haath Inder ka sar sehlane laga. Dono ke honth aapas mein ek doosre se chipak gaye aur zubaan ek doosre ki zubaan se takrane lagi. Apne honth Kamini ke honthon se chipkaye hue hi Inder ne apne ek haath se Kamini ke haathon ko uske seene se hataya. Kamini ne inkaar karna chaha par Inder ki zid ke aage haar mankar apne haath hata diye. Inder ka haath uske gale se hote hua uske seene par aaya aur kameez ke uper se hi Kamini ki chhatiyan dabane laga. Ab tak Kamini ki saansen bhi bhaari ho chali thi. Ye pehli baar tha ke vo aur Inder itne kareeb aaye the aur Inder ne uske jism ko chhua tha. Usne bhi palatkar poore zor se Inder ko choomna shuru kar diya.
Thodi der kameez ke uper se hi chhatiyan sehlane ke baad Inder ka haath phir Kamini ke gale par aaya aur is baar uske kameez ke galey se hote hue andar gaya aur phir bra ke andar ghusta hua sidha Kamini ki nangi chhati par aa gaya. Kamini ka poora jism aisa hila jaise usey koi zabardast jhatka laga ho. Usne apne honth Inder ke honth se hataya, uska haath pakadkar bahar khincha aur uthkar beth gayi. Bethkar vo zor zor se saans lene lagi aur apne baal theek karne lagi. Neeche pada dupatta uthakar usne apne gale mein daal liya
"Kya hua?" Inder ne puchha.
Kamini ne jawab diya to usne apna haath uske haath par rakha
"Kya hua Kamini? Bura laga kya?" Inder ne uske kareeb hone ki koshish ki par Kamini door hoti hui car ka darwaza kholkar bahar nikal gayi
"Ok i am sorry" Inder bhi apni taraf ka darwaza kholkar bahar nikla "Tum janti ho main tumse pyaar karna chahta hoon aur shaadi karna chahta hoon isliye shayad thoda aage badh gaya. Kuchh galat kiya maine?"
"Nahi. Kuchh galat nahi kiyá"Kamini palatkar chillayi "Ye to hamare rishte ke liye bahut zaroori tha na"
"Kamini !!!!! " Inder ne pehli baar Kamini ko yun chillate dekha tha isliye hairani se uski taraf dekhne laga
"Is jism mein aisa kya hai Inder jo har koi pagal hua rehta hai iske pichhe. Ke apni aag logon se sambhali nahi jaati" Kamini ab bhi gusse mein thi
"Kya matlab?" Inder ko samajh nahi aa raha tha ke Kamini yun over react kyun kar rahi thi
"Har kisi ko yahi chahiye, hai na? Har kisi ko bas isi ek cheez ki khwahish lagi rehti hai. Phir na to rishte matlab rakhte hain aur na koi aur cheez. Phir chahe jitna girna pade par jism ki aag bujhni chahiye, chahe kisi ke saath bhi ho. Phir ye nazar nahi aata ke kaun apne ghar ka hai aur kaun ........." Kamini ne baat adhuri chhod di. Inder ab bhi usko chup khada dekh raha tha
"Bas yahi ek cheez chahiye sabko" Kamini ne dono haath hawa mein phelate hue phir apni baat dohrayi
"Sabko matlab" Inder bas itna hi keh saka. Kamini uski baat ka jawab diye bina apni car mein bethi aur vahan se nikal gayi.
"Uske baad?" Rupali Inder se puchha
"Vo aakhri baar tha jab Kamini mere itne kareeb aayi thi. Uske baad agle 2 mahine tak main phone try karta raha par usse baat nahi ho paayi. Main kai baar haweli aapse milne aaya par vo mujhe dekhkar apne kamre mein chali jaati thi aur tab tak bahar nahi aati thi jab tak ke main vapis na chala jaoon" Inder bola
"Usne kuchh nahi bataya ke vo kis baat ko lekar itna pareshaan thi?" Rupali ko samajh nahi aa raha tha ke kya soche
"Is baat ka mauka hi nahi mila Didi ke main usse aaram se bethkar baat kar pata ya kuchh puchh pata. Us din jab vo mili to mujhse ladkar chali gayi thi. Pata nahi kiska gussa usne mujhpar nikala tha Aur uske baad kabhi hamen mauka hi nahi mila ke aaram se bethkar baat kar paate" Inder ne kaha
"To apni revolver kab di tumne usko?" Rupali ne puchha
"Jijaji ke khoon se 3 din pehle uska mere paas phone aaya" Inder ne aage bata shuru kiya
Inder apne kamre mein betha ek kitaab padh raha tha. Phone ki ghanti baji to usne aage badhkar phone uthaya. Phone ke doosri taraf se Kamini ke rone ki aawaz aayi.
"KAMINI" Inder jaise chilla utha "Oh thank god Kamini. Mujhe to laga tha ke tum mujhse ab kabhi baat hi nahi karogi. Meri galti ki itni badi saza de rahi thi mujhe?"
Doosri taraf se Kamini ne kuchh nahi kaha. Bas roti rahi. Uske rone ki aawaz aisi thi jaise vo bahut takleef mein ho. Inder se bardasht nahi hua. Uski apni aankho mein pani aa gaya
"Mujhe maaf kar do Kamini. Main manta hoon ke galti meri hai. Mujhe shaadi se pehle aisi harkat nahi karni chahiye thi. Par tum janti ho main tumse kitna pyaar karta hoon. Main aaj hi tumse shaadi karne ko taiyyar hoon agar tum kaho to. Ham apne ghar mein baat kar lenge. Nahi maane to court marriage kar lenge. Mera yakeen karo Kamini" Inder pagalon ki tarah kehta ja raha tha.
Kuchh der dono khamosh rahe. Thodi der baad Rupali ne rote rote kaha
"Mujhe nahi pata ke ab main kiska yakeen karun aur kiska nahi Inder. Ab to har koi ajnabi sa lagne laga hai. Har kisi ki shakal dekhkar aisa lagta hai jaise usne apni shakal par ek parda sa daal rakha ho. Andar se kuchh aur aur bahar se kuchh aur. Kismat ka khel to dekho Inder ke jo apne the vo paraye ho gaye aur jo paraya tha vo apna gaya."
"Main kabhi paraya nahi tha Kamini. Main to hamesha se tumhara apna tha. Tum aisi baaten kyun kar rahi ho?" Inder tadapkar bola
Phone par phir thodi der tak khamoshi bani rahi
"Meri jaan ko khatra hai Inder" Rupali ne rona band karte hue kaha
Inder ko aisa laga jaise usko 1000 watt ka jhatka laga ho
"Kisse?" Usne puchha
"Ye sab baaten baad mein. Main abhi zyada der baat nahi kar sakti. Tum meri baat suno. Tum mujhe koi hathyaar de sakte ho? Hifazat ke liye? Tumhari koi pistol ya revolver?" Kamini ab bahut dheere dheere bol rahi thi
"Pistol? Revolver? Tum kya keh rahi ho meri kuchh samajh nahi aa raha" Inder ke sachmuch kuchh bhi palle nahi pad raha tha
"Abhi samjhane ka waqt nahi hai. Tum ek kaam karo. Kal dopahar 2 baje usi jagah par mera intezaar karna jahan ham aakhri baar mile the. Aur apni revolver lekar aana" Kamini ne kaha
"Kamini meri baat suno" Inder bola "Kal 2 baje to main aa jaoonga par ......."
Vo abhi keh hi raha tha ke pichhe se Sarita Devi ki aawaz aayi"
"Kamini beta"
Aur Kamini ne phone kaat diya.
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj
sexi haveli ka such --22
Thodi der baad Rupali darwaza kholkar Inder ke kamre mein dakhil hui. Inder bistar par sar pakde aise betha tha jaise lut gaya ho.
"Sach kya hai Inder? Main janti hoon tu kuchh chhupa raha hai mujhse" Vo Inder ke kareeb jaate hue boli
Inder ne koi jawab nahi diya. Bas sar pakde betha raha.
"Tujhe bataya nahi maine par ab sochti hoon ke bata hi doon." Rupali Inder ke theek saamne ja khadi hui "Kamini ka passport mujhe yahin haweli mein mila. Har vo cheez jo vo jaane se pehle pack karke le gayi thi vo yahin haweli mein band ek kamre mein mili. Vo videsh kabhi gayi hi nahi Inder aur koi nahi janta ke pichhle 10 saal se kahan hai"
Rupali ki baat sunkar Inder ne uski taraf nazar uthayi. Vo aankhen phelaye Rupali ki taraf dekh raha tha. Aankhon mein ek khamosh sawal tha jaise ke vo Rupali se puchh raha ho ke kya vo sach bol rahi hai. Rupali ne bhi usi khamoshi se haan mein sar hilaya
"Mujhe khud abhi 3-4 din pehle hi pata chala" Rupali ne kaha
"Aur kisi ne uske baare mein pata karne ki koshish nahi ki?" Inder ko jaise ab bhi yakeen nahi ho raha tha
"Pata nahi. Jisse puchhti hoon vo yahi kehta hai ke Kamini videsh mein hai. Thakur Sahab hospital mein hain aur unke accident hone se pehle mujhe ye baat pata nahi thi isliye unse baat karna abhi baaki hai" Rupali ne kaha
"Main janta tha ke kuchh gadbad hui hai varna aisa ho hi nahi sakta tha ke vo ek baar bhi mujhe phone na kare. Aapne police mein bataya?" Inder ki aawaz se saaf pata chal raha tha ke use ab bhi is baat par yakeen nahi ho raha tha
"Khan ye baat pehle se hi janta hai. Asal mein usne hi mujhse ye baat sabse pehle batayi thi" Rupali ne Kaha
"Aapne Kuldeep ko phone nahi kiya? Uske paas hi to gayi thi Kamini" Inder sochta hua bola
"Uske jitne number mujhe mil sake maine sab try kiye. Ek bhi kaam nahi kar raha" Rupali ne kaha to Inder phir apna sar pakad kar beth gaya
"Mujhe lagta hai ke ab waqt aa gaya hai ke tum mujhe sab sach batao. Shuru se aakhir tak." Rupali ne puchha to Inder inkaar mein sar hilane laga
Rupali ne uska chehra apne hathon mein liya aur uper uthakar Inder ki aankhon mein dekha
"Ek waqt tha jab teri har baat mujhe pata hoti thi Inder. Main teri behen se zyada teri dost thi. Har chhoti badi shararat tu mujhe bataya karta tha aur main tujhe bachaya karti thi. Ab kya hua mere bhai? Kab itna badal gaya tu ke apni behen se baaten chhupane laga?"
Rupali ki baat sunkar Inder ki aankhon se pani behne laga
"Kal raat jab main Kamini ke kamre mein kuchh talash kar rah tha aur aap aa gayi thi tab maine aapko kaha tha ke main vo papers dhoondh raha tha jispar maine shayri likhi hui thi. Ye baat kuchh ajeeb nahi lagi aapko? Aakhir kuchh kagaz hi to the. Aisi koi badi museebat to nahi thi ke main aadhi raat ko Kamini ke kamre mein jata" Inder ne kaha
"Aajeeb to lagi thi par teri har baat par yakeen karne ki aadat si pad gayi hai mujhe isliye kuchh nahi boli" Rupali ne Inder ka chehra chhodkar uske saath bistar par ja bethi
"Main vo revolver dhoondh raha tha Didi. Meri revolver jungle mein nahi khoyi thi. Vo maine Kamini ko di thi. Aakhiri kuchh dino mein vo bahut pareshan si rehti thi. Kehti thi ke use haweli mein darr lagta hai. Apne hi gharwale use ajnabhi lagte hain kyunki har kisi ne apne chehre par ek nakli chehra laga rakha tha. Ek din vo mujhse milne aayi to ro rahi thi. Maine puchha to kuchh boli nahi bas mujhse meri gun maangi. Mujhe ajeeb laga. Main revolver use dena nahi chahta tha par uske aansoo dekh bhi nahi sakta tha. Dil ke hathon majboor hokar maine vo revolver Kamini ko de di."
Usne vapis nahi di?" Rupali hairan si Inder ko dekh rahi thi
"Naubat hi nahi aayi" Inder ne sar jhatakte hue kaha "Uske 2 din baad hi Jijaji ka khoon ho gaya aur phir main Kamini se mil nahi saka. Pichhle 10 saal se sochta raha ke aakar uska kamra dekhun ke shayad vo revolver yahin kahin rakha chhod gayi ho par himmat nahi padi. Ek do baar aapse milne ke bahane aaya bhi to Kamini ke kamre mein jaane ka mauka nahi mila"
"Tere paas Kamini ke kamre ki chaabhi kahan se aayi?" Rupali ko achanak yaad aaya ke Inder badi aasani se kamra kholkar andar chala gaya tha
"Vo jab aakhri baar milne aayi to bahur ghabrayi hui thi. Usi ghabrahat mein chabhi meri gaadi mein chhod gayi thi" Inder ne jawab diya
"Shuru se bata Inder. Sab kuchh" Rupali ne kaha
"Maine Kamini ko apne ek dost ki shaadi mein dekha tha" Inder ne batana shuru kiya
Party poore josh par thi. Inder sharab nahi peeta tha par aaj uske ek bahut kareebi dost ki shaadi thi isliye doston ke kehne par majbooran peeni padi. Thodi hi der baad use ehsaas ho gaya ke nasha ab uske sar par chadhne laga hai. Vo hamesha se apni zubaan par kaabu rakhne wala aadmi tha. Sirf utna hi bolta tha jitna zaroori ho. Kabhi bhi kahin par uski zubaan se aisi baat nahi nikalti thi jo vo na kehna chahta ho. Par insaan nashe mein ho to na khud par kaabu rehta hai aur na apni zubaan par aur ye baat Inder achhi tarah janta tha. Party mein maujood har ladki bas jaise usi ki taraf dekh rahi thi aur usse baat karne ya uske kareeb aane ki koshish kar rahi thi. Nashe ki halat mein kahin vo kisi ke saath koi badtameezi na kar de ye sochkar Inder ne sabse alag kahin akele jaakar bethne ka faisla kiya. Abhi vo nashe mein tha par nasha itna nahi tha ke vo hosh kho de par agar doston ke beech rehta to vo use aur pila dete aur phir baat kaabu se bahar ho jaati.
Akela Inder apne dost ki sasural ke ghar ki sidhiyan chadhta chhat ki aur chala. Chhat par pahunchte hi thandi hawa ka jhonka uske chehre par laga aur use kuchh rahat si mehsoos hui. Neeche cigerette ke dhuen mein uska dam sa ghutne laga tha.
Chhat par koi nahi tha. Inder ne kone mein rakhi ek chair dekhi aur jakar uspar beth gaya.
"Hey bhagwan " Usne zor se kaha "Insaan sharab kyun peeta hai"
Tabhi use chhat ke kone par kuchh aahat mehsoos hui. Nazar ghumakar dekha to vahan ek ladki khadi thi jo uske zor se bolne par mudkar uski taraf dekh rahi thi.
"Maaf kijiyega" Inder fauran chair se uth khada hua "Maine aapko dekha nahi. Shayad ye chair aap laayi hain uper. Aapki hai"
Us ladki ne ek nazar Inder par daali aur phir aasman ki taraf dekhne lagi. Inder ko ye thoda ajeeb laga. Neeche khadi har ladki bas usi ki taraf dekhe ja rahi thi aur is ladki ne uspar ek nazar daali thi. Aakhir aasman mein aisa kya hai jiske liye use bhi nazar andaz kar diya gaya. Ye sochte hue Inder ne aasman ki taraf nazar uthayi.
"Shikan liye muskurate labon pe,Baat aati hai kabhi kabhi,
Qurbaton mein pali vo zindagi, saath aati hai kabhi kabhi
Aasman se Chand churakar kahin le ja tu aaj sitamgar,
Jee lene de andhere ko, ke amavas ki raat aati hai kabhi kabhi"
Aasman ki taraf dekhte hue us ladki ne kaha
"Ji?" Inder ne uski taraf dekha "Apne mujhse kuchh kaha?"
Vo ladki phir se Inder ki taraf dekhne lagi
"Aap yahan uper akele mein kya kar rahe hain? Aaiye neeche chalen" Ladki ne kaha to is baar Inder ko aur zyada hairani hui. Kahan to har ladki akele mein usse baat karna chah rahi thi aur kahan ye ladki use vapis neeche jaane ko keh rahi thi.
Inder ne ek nazar uspar daali. Vo ek mamuli soorat ki aam si dikhne wali ladki thi. Halka saawla rang, gol chehra, kaali aankhen aur kaale baal.
"Main agar neeche gaya to museebat aa jayegi. Mere dost phir se mere haath mein sharab thama denge" Usne muskurate hue us ladki se kaha
"To kya hua? Yahan to har koi pee raha hai" Us ladki ne kaha
"Ji haan par agar main pee loon to main pagal ho jata hoon. Apne hosh mein nahi rehta. Agar ek baar mujhe nasha chadh jaaye to main beech bazar mein nachna shuru kar doon" Inder ne halka sharmate hue jawab diya
Uski baat sunkar vo ladki has padi. Uske hasne ki aawaz aisi thi ke Inder bas use dekhta reh gaya. Ladki ne haath ke ishare se use phir neeche chalne ko kaha to Inder ne fauran inkaar mein sar hila diya
"Ji bilkul nahi. Na to mera aaj pagal hone ka irada hai aur na kahin nashe mein nachne ka, na bazar mein aur na hi yahan party mein"
Uski baat sunkar vo ladki uske thoda kareeb aayi aur halki si aawaz mein aise boli jaise koi raaz ki baat bata rahi ho
"Aaj bazaar mein pabajola chalo
Dast afshaan chalo,Mast-o-raksaan chalo
khaak barsar chalo,khoon badama chalo
raah takta hai sab,Sheher-e-jaana chalo
Haakim-e-sheher bhi, Majma-e-aam bhi
Teer-e-ilzaam bhi, sang-e-dushnaam bhi
Subah-e-nashad bhi, Roz-e-nakam bhi
Inka damsaaz apne siwa kaun hai
Sheher-e-jaana mein ab basifa kaun hai
Dast-e-qatil ke shaayan raha kaun hai
Rakht-e-dil baandh lo, dilfigaro chalo
Phir ham hi qatl ho aayen yaaro chalo"
"Ji?" Ek shabd bhi Inder ke palle nahi pada "Ye kaun si bhasha thi"
Uski baat sunkar vo ladki phir khilkhilakar hasne lagi aur sidhiyan utarkar neeche chali gayi.
Neeche aakar Inder ne pata kiya to Ladki ka naam Kamini tha aur vo Thakur Shaurya Singh ki beti thi. Kamini mein aisa kuchh bhi nahi tha jispar aakar kisi ki nazar tham jaaye par jaane kyun Inder ki nazar baar baar usi par aakar rukti. Jis tarah se vo uper khadi aasman ko dekh rahi thi, jis tarah se usne haath se ishara karke Inder ko neeche chalne ko kaha tha, aur jis tarah se vo kuchh dheere se kehti thi jo Inder ko samajh nahi aaya tha, in sab baaton mein Inder ulajh kar reh gaya the. Poori raat party mein vo bas Kamini ko hi dekhta raha aur usne mehsoos kiya ke vo bhi palatkar usi ki taraf dekh rahi thi. Kai baar dono ki nazar aapas mein takrati aur dono ne muskura kar nazar pher lete.
Subah ke 4 baj rahe the. Inder ladkewalon ki taraf se baraat ke saath aaya tha jabki Kamini ladki walo ki taraf se thi. Vidayi ki waqt ho gaya tha aur har koi dulha aur dulhan ke aas paas bhatak raha tha. Inder janta tha ke thodi der baad usko jaana hoga par vo Kamini se ek baar baat karna chahta tha. Jaane kya tha ke uski nazar pagalon ki tarah bheed mein Kamini ko talash rahi thi par vo kahin nazar nahi aayi. Achanak Inder ko chhat ka khyaal aaya aur vo bhagta hua phir chhat par pahuncha. Jaisa ki usne socha tha, Kamini vahin khadi phir se aasman ki taraf dekh rahi thi. Inder bhagta hua chhat par aaya tha isliye uski saans phool rahi thi. Uske haafne ki aawaz sunkar Kamini uski taraf palti aur khamoshi se use dekhne lagi. Kuchh der tak Inder bhi kuchh nahi bola aur chhat ki deewar ka sahara lekar khada ho gaya.
"Shukriya" Thodi der baad Kamini boli
Inder ne sawaliya nazar se uski taraf dekha
"Kis baat ke liye?" Usne Kamini se puchha
"Aaj raat ke liye. Aaj raat aap hamare saath rahe uske liye" Kamini ne ek nazar Inder ki taraf dekha aur phir aasman ki taraf dekhne lagi
"Main aapke saath kahan tha. Aapko to apni doston se waqt hi nahi mila" Inder ne Kamini ki taraf dekha. Vo ab bhi uper hi dekh rahi thi
"Kya dekh rahi hain aap? Kya hai aasman mein" Aakhir Inder ne puchh hi liya
Uski baat sunkar Kamini ne uski taraf dekha aur uske sawal ko nazar andaaz kar diya
"Bhale aap khud hamare saath nahi the par aapki nazar ne hamen ek pal ke liye bhi akela kahan hone diya. Poori raat aapki nazar hamare saath rahi" Kamini ne kaha to Inder ne muskurate hue nazar neechi kar li
"To aap janti thi?" Usne Kamini se puchha
Jawab mein Kamini kuchh nahi boli. Bas khamoshi se uske kareeb aayi aur phir usi halki si aawaz mein boli, jaise koi bahut bade raaz ki baat bata rahi ho
"Kuchh is ada se aap yun pehlu-nashin rahe
Jab tak hamare paas rahe, ham nahin rahe
Ya rab kisi ke raaz-e-mohabbat ki khair ho
Dast-e-junoon rahe na rahe aasteen rahe"
Inder ko ek baar phir poori tarah se Kamini ki baat samajh nahi aayi par vo kis mohabbat ke raaz ki baat kar rahi thi ye vo achhi tarah samajh gaya tha. Usne Kamini ki taraf dekha.
"Dua karti hoon ke maine jo abhi kaha hai, iske baad ki lines kehne ki naubat kabhi na aaye" Kamini ne dheere se pichhe hote hue kaha
"Ji?" Inder ne Kamini ki aur dekhte hue puchha
Kamini phir se hasne lagi aur Inder phir usko ektuk dekhne laga
"Kabhi is Ji ke siwa kuchh aur bhi kahiye Thakur Indrasen Rana" Kamini ne kaha aur sidhiyan utarkar neeche chali gayi
Inder samajh gaya tha ke jis tarah vo apne doston se Kamini ke baare mein malum karne ki koshish kar raha tha vaise hi Kamini ne bhi uska naam kahin se malum kiya tha. Thodi hi der baad baraat vida ho gayi. Jaate hue Inder ko Kamini kahin nazar nahi aayi par vo janta tha ke vo use phir zaroor milega.
Shaadi ke 2 din baad Inder apne kamre mein soya hua tha. Subah ke 9 baj rahe the par use der se sone aur der tak sote rehne ki aadat thi. Uske paas rakha phone bajne laga to chidkar Inder ne takiya apne munh par rakh liya. Phone lagatar bajta raha to usne gusse mein phone uthaya.
"Hello" Aadhin neend mein Inder bola.
Doosri taraf se vahi thehri hui dheemi aawaz aayi jisne 2 din pehle Inder ko pagal sa kar diya tha.
Lazzat-e-gham badha dijiye,
Aap yun muskura dijiye,
Qeeamt-e-dil bata dijiye,
Khaak lekar uda dijiye,
Mera daman bahut saaf hai
Koi ilzaam laga dijiye
"Kamini" Inder bistar par fauran uth betha.
"Hamen to laga ke aap hamen bhool gaye" Doosri taraf se Kamini ki aawaz aayi
"Kaise bhool sakta hoon par aap apne number dekar hi nahi gayin" Inder apni safai mein bola
"Number to aapne bhi nahi diya par hamen to mil gaya" Kamini ne kaha to Inder ke paas ab koi jawab nahi tha.
Kuchh der tak vo idhar udhar ki baaten karte rahe. Kamini ne use apne baare mein bataya aur Inder ne Kamini ko apne baare mein. Khabar hi nahi hui ke dono ko baat karte karte kab 2 ghante se zyada waqt ho gaya. Aakhir mein Inder ne phir se milne ki baat ki to Kamini khamosh ho gayi.
"Kya hua?" Inder ne puchha "Aap milna nahi chahti?"
"Agar insaan ke chahne se sab kuchh ho jaaya karta to phir duniya mein itni museebat na hua karti" Doosri taraf se Kamini ki aawaz aayi "Ham phir phone karenge"
Kehkar Kamini ne phone rakh diya. Inder pareshan sa phone ki taraf dekhne laga. Is baar bhi Kamini ne use apna phone number nahi diya tha.
"Phir kya hua?" Rupali khamoshi se bethi Inder ki baat sun rahi thi
"Usne us din phone aise hi rakh diya par main samajh chuka tha ke vo bhi mujhe chahti hai. Maine apne us dost ko phone kiya jiski shaadi mein mujhe Kamini mili thi aur uski biwi ke zariye maine Kamini ka phone number nikal liya. Yaani yahan haweli ka number" Inder ne kaha
":Hmmmmm "Rupali ne haami bhari
"Par museebat ye thi ke agar main phone karun to pata nahi Kamini uthati ya koi aur. Phir bhi maine koshish ki. 3 din tak main lagatar koshish karta raha par har baar koi aur hi phone uthata aur mujhe phone kaatna padta. Is beech Kamini ne bhi mujhe phone nahi kiya. 3 din baad ek din maine phone kiya to phone Kamini ne uthaya. Pehle to vo mere phone karne par zara pareshan hui ke mujhe yun phone nahi karna chahiye tha aur agar ghar mein kisi ko pata chala to museebat aa jayegi. Par phir khud hi haskar kehne lagi ke vo dekhna chahti thi ke main phone karunga ya nahi isliye khud bhi mujhe 3 din se phone nahi kar rahi thi. Ye thi meri aur uski pehli mulaqat. Iske baad ham dono ke beech phone shuru ho gaye aur ham ghanto ek doosre se baaten karte rehte. Mujhe khabar hi nahi hui ke main kab Kamini ko itna chahne laga tha par vo thi ke mujhse milne ko taiyyar hi nahi hoti thi. Phir takreeban 6 mahine baad vo mujhse milne ko taiyyar hui." Inder ab bina ruke apni poori kahani bata raha tha
"Sheher mein milte the tum dono?" Rupali ne puchha
"Haan" Inder ne haan mein sar hilaya "Kamini gaadi akeli hi laati thi. Na driver na bodyguard. Un dino vo kaafi khush rehti thi. Ham saath rehte, baaten karte aur kuchh waqt saath guzarne ke baad vo vapis chali aati. Un dino mein aisa kuchh nahi hua jo kuchh ajeeb ho. Bas ek ladka ladki milte aur ek doosre ka haath thaame ghanto baaten karte rehte. Kuchh din baad jaane kaise par aapki shaadi Kamini ke ghar hi pakki ho gayi. Ham dono is baat ko lekar bahut khush the aur ise apni khushmati maan rahe the. Main isliye khush tha ke main aapki shaadi ke baad bina kisi pareshani ke haweli mein aa ja sakta tha aur vo isliye khush thi ke use mere saath shaadi ki baat chalane ka ek bahana mil gaya tha, yaani ke aap. Par vo chahkar bhi kabhi aapse baat nahi kar saki aur na hi main aur iski vajeh thi ke aap mandir se kabhi bahar hi nahi nikalti thi. Ham dono ye sochkar chup reh jaate ke jaane aap kaise react karengi. Isi uljhan mein kab waqt guzarta chala gaya hamen pata hi nahi chala. Kabhi kabhi main aapse milne ke bahane haweli aa jaya karta tha par ab bhi ham zyadatar bahar hi mila karte the"
"Kamini mein badlav kab dekha tumne" Rupali ne puchha
"Aakhri kuchh dino mein. Jijaji ke marne se koi 2 mahine pehle se. Ek din vo mujhse milne sheher aayi" Inder ne batana shuru kiya
Inder apni gaadi roke koi ek ghante se Kamini ka intezaar kar raha tha. Kabhi aisa nahi hota tha ke Kamini der se pahunche, balki vo Inder se pehle hi pahunch jaati thi par aaj Inder ko intezaar karna pad raha tha. Vo sheher ke bahar ek sunsaan ilaake mein gaadi roke khada tha. Kamini aur vo aksar yahin mila karte the.
Thodi der baad use Kamini ki gaadi aati hui nazar aayi. Vo apni car se bahar nikla. Kamini ne uski car ke pichhe lakar apni car roki aur uski taraf chalti hui aayi.
"Sorry" Kamini ne kareeb aate hue kaha "Aaj der ho gayi"
"Koi baat nahi" Inder ne muskurate hue kaha "Itne waqt se tum mera intezaar karti thi. Aaj maine kar liya to kaun si badi baat hai"
Inder ne apni car ka darwaza khola aur vo dono uski car ki backseat par beth gaye. Dopahar ka waqt tha aur garmi sar chadhkar bol rahi thi. Inder ne car ka AC on kar diya
Kamini aaj Inder se poore 2 mahine baad mil rahi thi. Vo 2 mahine se koshish kar raha tha par Kamini mana kar deti thi. Usne haweli jaane ki sochi par vahan vo akele mein waqt nahi bita paate the.
"Kya hua?" Inder ne Rupali ke maathe par haath pherte hue kaha "Pareshan si lag rahi ho"
"Kuchh nahi" Kamini ne zabardasti muskurate hue kaha "Thak gayi hoon"
"Inder car ki backseat par ek kone mein ho gaya aur Kamini ko ishara kiya ke vo let jaaye. Kamini ne pehle to mana kiya par Inder ke zor daalne par vo let gayi aur apna sar Inder ki jaangh par rakh liya
"Kya hua aaj hamesha ki tarah koi shayri nahi?" Inder ne puchha
"Jab zindagi khud apni shayri sunana shuru kar de to insaan kahan shayri kar pata hai" Kamini ne udaas si aawaz mein jawab diya
"Kya hua?" Inder ne dobara puchha
"Kuchh nahi. Bas insaan ka chehra dekhkar kabhi kabhi samajh nahi aata ke asli kaun sa hai aur nakli kaun sa" Kamini ne kaha aur apni aankhen band kar li
Inder ne uske udaas chehre ki taraf dekha aur aage kuchh na puchha. Vo pyaar se Kamini ke sar par haath pherta raha
Kamini ne salwar kameez pehen rakhi thi. Inder ki god mein lete hone ki vajah se uska dupatta sarak kar car mein neeche gir pada tha. Vo is tareeke se leti hui thi ke dono taange bhi uper seat par thi aur uska poora jism muda hua tha jiski vajah se neeche de dabav padne ke karan uski chhatiyan kameez ke uper se bahar ko nikal rahi thi.
Inder ki nazar Kamini ki chhatiyon par padi to pehle to usne nazar pher li par phir dobara usi taraf dekhne laga. Kamini aur uske beech ab tak koi jismani rishta nahi bana tha. Kabhi kabhi vo dono ek doosre ko choom lete the aur bas. Na to kabhi isse aage baat gayi aur na hi Inder ne koshish ki ke isse aage kuchh aur kare. Par aaj Kamini ko yun is halat mein dekhkar uske dil ki dhadkan tez hone lagi.
Uska haath Kamini ke sar par ruk gaya tha. Kuchh der tak aankhen band rakhne ke baad Kamini ne aankhen kholi aur Inder ki taraf dekha. Inder ki nazar ab bhi uski chhatiyon par thi. Kamini ne sharma kar apne dono haath apne seene par rakh liye.
Uski is harkat se Inder ne uski aankhon mein dekha. Vo dheere se neeche jhuka aur apne honth Kamini ke honth par rakh diye. Kamini ke munh se aah nikal gayi aur uska haath Inder ka sar sehlane laga. Dono ke honth aapas mein ek doosre se chipak gaye aur zubaan ek doosre ki zubaan se takrane lagi. Apne honth Kamini ke honthon se chipkaye hue hi Inder ne apne ek haath se Kamini ke haathon ko uske seene se hataya. Kamini ne inkaar karna chaha par Inder ki zid ke aage haar mankar apne haath hata diye. Inder ka haath uske gale se hote hua uske seene par aaya aur kameez ke uper se hi Kamini ki chhatiyan dabane laga. Ab tak Kamini ki saansen bhi bhaari ho chali thi. Ye pehli baar tha ke vo aur Inder itne kareeb aaye the aur Inder ne uske jism ko chhua tha. Usne bhi palatkar poore zor se Inder ko choomna shuru kar diya.
Thodi der kameez ke uper se hi chhatiyan sehlane ke baad Inder ka haath phir Kamini ke gale par aaya aur is baar uske kameez ke galey se hote hue andar gaya aur phir bra ke andar ghusta hua sidha Kamini ki nangi chhati par aa gaya. Kamini ka poora jism aisa hila jaise usey koi zabardast jhatka laga ho. Usne apne honth Inder ke honth se hataya, uska haath pakadkar bahar khincha aur uthkar beth gayi. Bethkar vo zor zor se saans lene lagi aur apne baal theek karne lagi. Neeche pada dupatta uthakar usne apne gale mein daal liya
"Kya hua?" Inder ne puchha.
Kamini ne jawab diya to usne apna haath uske haath par rakha
"Kya hua Kamini? Bura laga kya?" Inder ne uske kareeb hone ki koshish ki par Kamini door hoti hui car ka darwaza kholkar bahar nikal gayi
"Ok i am sorry" Inder bhi apni taraf ka darwaza kholkar bahar nikla "Tum janti ho main tumse pyaar karna chahta hoon aur shaadi karna chahta hoon isliye shayad thoda aage badh gaya. Kuchh galat kiya maine?"
"Nahi. Kuchh galat nahi kiyá"Kamini palatkar chillayi "Ye to hamare rishte ke liye bahut zaroori tha na"
"Kamini !!!!! " Inder ne pehli baar Kamini ko yun chillate dekha tha isliye hairani se uski taraf dekhne laga
"Is jism mein aisa kya hai Inder jo har koi pagal hua rehta hai iske pichhe. Ke apni aag logon se sambhali nahi jaati" Kamini ab bhi gusse mein thi
"Kya matlab?" Inder ko samajh nahi aa raha tha ke Kamini yun over react kyun kar rahi thi
"Har kisi ko yahi chahiye, hai na? Har kisi ko bas isi ek cheez ki khwahish lagi rehti hai. Phir na to rishte matlab rakhte hain aur na koi aur cheez. Phir chahe jitna girna pade par jism ki aag bujhni chahiye, chahe kisi ke saath bhi ho. Phir ye nazar nahi aata ke kaun apne ghar ka hai aur kaun ........." Kamini ne baat adhuri chhod di. Inder ab bhi usko chup khada dekh raha tha
"Bas yahi ek cheez chahiye sabko" Kamini ne dono haath hawa mein phelate hue phir apni baat dohrayi
"Sabko matlab" Inder bas itna hi keh saka. Kamini uski baat ka jawab diye bina apni car mein bethi aur vahan se nikal gayi.
"Uske baad?" Rupali Inder se puchha
"Vo aakhri baar tha jab Kamini mere itne kareeb aayi thi. Uske baad agle 2 mahine tak main phone try karta raha par usse baat nahi ho paayi. Main kai baar haweli aapse milne aaya par vo mujhe dekhkar apne kamre mein chali jaati thi aur tab tak bahar nahi aati thi jab tak ke main vapis na chala jaoon" Inder bola
"Usne kuchh nahi bataya ke vo kis baat ko lekar itna pareshaan thi?" Rupali ko samajh nahi aa raha tha ke kya soche
"Is baat ka mauka hi nahi mila Didi ke main usse aaram se bethkar baat kar pata ya kuchh puchh pata. Us din jab vo mili to mujhse ladkar chali gayi thi. Pata nahi kiska gussa usne mujhpar nikala tha Aur uske baad kabhi hamen mauka hi nahi mila ke aaram se bethkar baat kar paate" Inder ne kaha
"To apni revolver kab di tumne usko?" Rupali ne puchha
"Jijaji ke khoon se 3 din pehle uska mere paas phone aaya" Inder ne aage bata shuru kiya
Inder apne kamre mein betha ek kitaab padh raha tha. Phone ki ghanti baji to usne aage badhkar phone uthaya. Phone ke doosri taraf se Kamini ke rone ki aawaz aayi.
"KAMINI" Inder jaise chilla utha "Oh thank god Kamini. Mujhe to laga tha ke tum mujhse ab kabhi baat hi nahi karogi. Meri galti ki itni badi saza de rahi thi mujhe?"
Doosri taraf se Kamini ne kuchh nahi kaha. Bas roti rahi. Uske rone ki aawaz aisi thi jaise vo bahut takleef mein ho. Inder se bardasht nahi hua. Uski apni aankho mein pani aa gaya
"Mujhe maaf kar do Kamini. Main manta hoon ke galti meri hai. Mujhe shaadi se pehle aisi harkat nahi karni chahiye thi. Par tum janti ho main tumse kitna pyaar karta hoon. Main aaj hi tumse shaadi karne ko taiyyar hoon agar tum kaho to. Ham apne ghar mein baat kar lenge. Nahi maane to court marriage kar lenge. Mera yakeen karo Kamini" Inder pagalon ki tarah kehta ja raha tha.
Kuchh der dono khamosh rahe. Thodi der baad Rupali ne rote rote kaha
"Mujhe nahi pata ke ab main kiska yakeen karun aur kiska nahi Inder. Ab to har koi ajnabi sa lagne laga hai. Har kisi ki shakal dekhkar aisa lagta hai jaise usne apni shakal par ek parda sa daal rakha ho. Andar se kuchh aur aur bahar se kuchh aur. Kismat ka khel to dekho Inder ke jo apne the vo paraye ho gaye aur jo paraya tha vo apna gaya."
"Main kabhi paraya nahi tha Kamini. Main to hamesha se tumhara apna tha. Tum aisi baaten kyun kar rahi ho?" Inder tadapkar bola
Phone par phir thodi der tak khamoshi bani rahi
"Meri jaan ko khatra hai Inder" Rupali ne rona band karte hue kaha
Inder ko aisa laga jaise usko 1000 watt ka jhatka laga ho
"Kisse?" Usne puchha
"Ye sab baaten baad mein. Main abhi zyada der baat nahi kar sakti. Tum meri baat suno. Tum mujhe koi hathyaar de sakte ho? Hifazat ke liye? Tumhari koi pistol ya revolver?" Kamini ab bahut dheere dheere bol rahi thi
"Pistol? Revolver? Tum kya keh rahi ho meri kuchh samajh nahi aa raha" Inder ke sachmuch kuchh bhi palle nahi pad raha tha
"Abhi samjhane ka waqt nahi hai. Tum ek kaam karo. Kal dopahar 2 baje usi jagah par mera intezaar karna jahan ham aakhri baar mile the. Aur apni revolver lekar aana" Kamini ne kaha
"Kamini meri baat suno" Inder bola "Kal 2 baje to main aa jaoonga par ......."
Vo abhi keh hi raha tha ke pichhe se Sarita Devi ki aawaz aayi"
"Kamini beta"
Aur Kamini ne phone kaat diya.
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj
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