Tuesday, March 16, 2010

कामुक कहानिया सेक्सी हवेली का सच --२४ लास्ट

राज शर्मा की कामुक कहानिया


सेक्सी हवेली का सच --२४ लास्ट
हेलो दोस्तो ये कहानी का लास्ट पार्ट है मुझे खुशी इस बात की है आप लोगों ने इस कहानी को बहुत पसंद किया . दोस्तो मैने पार्ट -23 मैं आप लोगों से एक सवाल पूछा था की पुरुसोत्तम का कातिल कौन है मुझे बहुत सारे मेल मिले दोस्तो जिन दोस्तों के जवाब सही थे उन्हे जल्दी ही मेरी तरफ से 5 ब्रांड न्यू कहानी मैं पोस्ट करने वाला हूँ
ओक दोस्तो अब आप कहानी का मज़ा लीजिए
थोड़ी देर बाद ख़ान और रूपाली वापिस हवेली में दाखिल हुए. तेज के जाने के बाद रूपाली ने घर पर ताला लगा दिया था. देवधर वापिस शहेर चला गया था और ख़ान उसके साथ वापिस हवेली तक आया था.
रूपाली के दिमाग़ में लाखों बातें एक साथ चल रही थी. वो समझ नही पाई के कैसे उसको ये सब बातें पहले समझ नही आई. कामिनी का यूँ अपने ही घर में चुप चुप रहना. अगर उसके अपने भाई ही उसका फ़ायदा उठाएँ बेचारी अपने ही घर में भीगी बिल्ली की तरह तो रहेगी ही. वो हवेली में मिली लाश. रूपाली को उसी वक़्त समझ जाना चाहिए था के ये लाश किसकी है जब बिंदिया ने उसको भूषण की बीवी के बारे में बताया था. कुलदीप के कमरे में मिली ब्रा, बेसमेंट में रखे बॉक्स में वो कपड़े, सब उस बेचारी के ही थी जिसको मारकर यहाँ दफ़ना गया था. उसको हैरानी थी के उसको तभी शक क्यूँ नही हुआ जब ठाकुर ने ये कहा के उन्हें नही पता के वो लाश किसकी थी. ऐसा कैसे हो सकता है के घर के मलिक को ही ना पता हो के लाश कहाँ से आई. उस वक़्त हवेली के बाहर गार्ड्स होते थे, हवेली के कॉंपाउंड में रात को कुत्ते छ्चोड़ दिए जाते थे तो ये ना मुमकिन था के कोई बाहर का आकर ये काम कर जाता. वो खुद अपनी वासना में इतनी खोई हुई थी के उसको एहसास ही नही हुआ के कितनी आसानी से उसने पायल और बिंदिया को ठाकुर और तेज के बिस्तर पर पहुँचा दिया था.
हवेली के अंदर पहुँच कर उसने बिंदिया और पायल को आवाज़ लगाई पर दोनो कहीं दिखाई नही दे रही थी.
"ये दोनो कहाँ गयी" बैठते हुए रूपाली ने कहा. ख़ान उसके सामने रखी एक कुर्सी पर बैठ गया
"क्या लगता है कौन है आपके पति के खून के पिछे ? तेज?" ख़ान ने कहा तो रूपाली ने इनकार में सर हिलाया
"कामिनी." रूपाली ने कहा तो ख़ान ने हैरानी से उसको तरफ देखा
"कल आपके जाने के बाद इंदर से बात हुई थी मेरी. काफ़ी परेशन थी वो मेरे पति के मरने से पहले और गन उसने इंदर से ली थी" रूपाली ने कहा
"पर मुझे तो कहा गया था के ....." ख़ान ने कल की इंदर की बताई बात को याद करते हुए कहा
"झूठ बोल रहा था. गन उसने कामिनी को दी थी. बाद में बताया मुझे" रूपाली ने आँखें बंद करते हुए कहा
"सोचा नही था के ये सब ऐसे ख़तम होगा. मैं तो तेज पर शक कर रहा था और एक वक़्त पर तो मुझे आप पर भी शक हुआ था. पर कामिनी पर कभी नही" ख़ान ने कहा
"एक बात समझ नही आई" रूपाली ने आँखें खोलते हुए कहा "आपका मेरे पति से क्या रिश्ता था? किस एहसान की बात कर रहे थे?"
"बचपन में इसी गाओं में रहा करता था मैं. मेरे अब्बू यहीं के थे" ख़ान मुस्कुराते हुए बोला "ठाकुर साहब के खेतों में काम करते थे. एक बार ठाकुर साहब खेतों में शिकार कर रहे थे. वो जिस परिंदे पर निशाना लगा रहे थे मुझे उसपर तरस आ गया और मैने शोर मचाकर उसको उड़ा दिया. बस फिर क्या था. ठाकुर को गुस्सा आया और उन्होने बंदूक मेरी तरफ घुमा दी. उस वक़्त आपके पति वहाँ थे. उन्होने बचा लिया वरना उस दिन हो गया था मेरा काम"
रूपाली भी जवाब में मुस्कुराइ
"उसके बाद हम लोगों ने गाओं छ्चोड़ दिया. मैं शहेर में पाला बढ़ा, पोलीस जोइन की और उस बात को भूल गया. जब मेरा यहाँ ट्रान्स्फर हुआ तो मैने सोचा के आपके पति से मिलुगा पर यहाँ आके पता चला के उन्हें मरे तो 10 साल हो चुके हैं" ख़ान ने कहा
"नही शायद उन्हें मरे एक अरसा हो गया था. आज एक नया ही रूप देखा मैने ठाकुर पुरुषोत्तम सिंग का जो मेरे पति का तो बिल्कुल नही था. जो आदमी इस हद तक गिर जाए उसको अपना पति तो नही कह सकती मैं" रूपाली ने कहा "सच कहूँ तो आज इस हवेली के हर आदमी का एक नया चेहरा देखा. मेरी सास का भी"
"आपकी सास का? वो तो मर चुकी हैं ना?" ख़ान ने पुचछा
रूपाली ने अपने पर्स से वो तस्वीर निकली और ख़ान को थमा दी
"सुना है उनका भी कोई चाहने वाला था. यही जो इस तस्वीर में है. ये भी ठाकुर साहब के गुस्से की बलि चढ़ गया था." रूपाली ने फिर आँखें बंद कर ली
"पर चलिए आपको आपके सवालों के जवाब तो मिले" ख़ान अब भी तस्वीर को देख रहा था
"जवाब तो मिल गये पर अब समझ ये नही आ रहा के इन जवाबों के साथ आगे की ज़िंदगी कैसे गुज़रेगी" रूपाली ने फिर आँखें खोलकर ख़ान की तरफ देखा. वो अब भी तस्वीर को घूर रहा था.
"ऐसे क्या देख रहे हैं?" रूपाली ने पुचछा
"ये कामिनी नही है?" ख़ान ने कहा तो रूपाली हस्ने लगी
"मैने भी यही सोचा था पर ये मेरी सास की जवानी की तस्वीर है. कामिनी बिल्कुल उन्ही पर गयी थी" रूपाली बोली
"पता नही क्यूँ ऐसा लग रहा है के मैने इस आदमी कोई भी कहीं देखा है" ख़ान तस्वीर में खड़े आदमी की तरफ इशारा करता हुआ बोला
"इसको मरे तो एक अरसा हो चुका है" रूपाली बोली " और सच कहूँ तो कुच्छ सवाल अब भी ऐसे हैं जिनका जवाब मुझे समझ नही आ रहा"
"जैसे के?" ख़ान ने पुचछा
"जैसे के रात को हवेली में आने वाला आदमी कौन था, जैसे की कामिनी के साथ ट्यूबिवेल पर उस दिन दूसरा आदमी कौन था, जैसे की जो चाबियाँ मुझे हवेली में मिली उनकी असली किसके पास है और एक चाभी सरिता देवी के पास क्यूँ थी जबकि वो कभी खेतों की तरफ जाती ही नही थी" रूपाली ने कहा
ख़ान ने हैरत से उसकी तरफ देखा तो रूपाली को याद आया के वो इस बारे में कुच्छ नही जानता था.
"बताती हूँ" उसने कहना शुरू किया ही था के ख़ान ने उसको हाथ के इशारे से रोक दिया. उसने तस्वीर सामने टेबल पर रखी, जेब से पेन निकाला, तस्वीर में खड़े आदमी के चेहरे पर थोड़ी सी दाढ़ी बनाई, हल्के से नाक ने नीचे बॉल बनाए, सर के बॉल थोड़े लंबे किए और चेहरे पर झुर्रियाँ डाली और तस्वीर रूपाली की तरफ घुमाई.
"पहचानती हैं इसे?" ख़ान ने पुचछा
रूपाली ने तस्वीर की तरफ देखा तो उसके पैरों तले ज़मीन जैसे हिलने लगी. तस्वीर में सरिता देवी के साथ भूषण खड़ा था.
"अब जहाँ तक मेरा ख्याल है सिर्फ़ एक सवाल बाकी रह गया है. कामिनी कहाँ है?" ख़ान ने कहा
"मर चुकी है. हवेली के पिछे जहाँ मेरी बीवी की लाश मिली थी वहीं पास ही उसकी भी लाश दफ़न है" पीछे से आवाज़ आई तो ख़ान और रूपाली दोनो पलते. सामने भूषण खड़ा था.
पर ये भूषण वो नही था जिसे रूपाली ने हमेशा देखा था. सामने एक बुद्धा आदमी तो खड़ा था पर अब उसकी कमर झुकी हुई नही थी, अब वो शकल से बीमार नही लग रहा था और ना ही कमज़ोर. सामने जो भूषण खड़ा था वो सीधा खड़ा था और उसके हाथ में एक गन थी.
"आप यहाँ? ठाकुर साहब के साथ कौन है?" रूपाली ने पुचछा
"कोई नही क्यूंकी अब उसकी ज़रूरत नही. ठाकुर साहब नही रहे. गुज़र गये" भूषण ने कहा
उसके ये कहते ही ख़ान फ़ौरन हरकत में आया. उसका हाथ उसकी गन की तरफ गया ही था के भूषण के हाथ में थमी गन के मुँह ख़ान की तरफ मुड़ा, एक गोली चली और अगले पल रूपाली के कदमों के पास ख़ान की लाश पड़ी थी.
रूपाली चीखने लगी और भूषण खड़ा हुआ उसको देखने लगा. रूपाली को उस वक़्त जो भी नाम याद आया उसने चिल्ला दिया. बिंदिया, पायल, चंदर, तेज, इंदर पर कोई नही आया.
उसने घबराकर चारों तरफ देखा और जब कोई नही दिखा तो उसने फिर भूषण पर नज़र डाली.
"बिंदिया और पायल" भूषण ने बोला "वहाँ किचन में पड़ी हैं. तेज की लाश बाहर कॉंपाउंड में पड़ी है, मेरे कमरे के पास. इंदर खून से सने अपने बिस्तर पर पड़ा है. वो तो बेचारा सोता ही रह गया. सोते सोते दिमाग़ में एक गोली घुसी और नींद हमेशा की नींद में बदल गयी"
भूषण रूपाली की तरफ बढ़ा तो रूपाली पिछे होकर फिर चिल्ल्लाने लगी.
"चिल्लओ" भूषण ने आराम से कहा "ये हवेली इतनी मनहूस है के किसी ने सुन भी लिया तो इस तरफ आएगा नही"
थोड़ी देर चिल्लाने के बाद रूपाली चुप हो गयी
"क्यूँ?" उसने भूषण से पुचछा
"क्यूँ?" भूषण बोला "क्यूंकी तुम अपने आपको झाँसी की रानी समझने लग गयी थी अचानक. मैं ये सब ऐसे नही चाहता था. मैं तो ठाकुर के खानदान को एक एक करके, सड़ सड़के, रिस रिसके मरते हुए देखना चाहता था. बची हुई इज़्ज़त को ख़तम होने के बाद मारना चाहता था. पर तुमने सारा खेल बिगाड़ दिया. क्या ज़रूरत थी वो तस्वीर दुनिया को दिखाते हुए फिरने की?"
"पर क्यूँ?" रूपाली ने सवाल फिर दोहराया
"क्यूंकी बर्बाद किया था मुझे ठाकुर ने. सारी ज़िंदगी मैने एक नौकर बनके गुज़ार दी. प्यार करता था मैं सरिता से और वो मुझसे पर क्यूंकी मैं ग़रीब उनके घर के नौकर का बेटा था इसलिए उसकी शादी मुझसे हो नही सकती थी. हम दोनो भाग जाने के चक्कर में थे के जाने कहाँ से ये शौर्या सिंग बीच में आ गया. ना सरिता कुच्छ कर सकी और ना मैं" भूषण गुस्से से चिल्लाते हुए बोला
"तो वो कहानी जो हॉस्पिटल में सुनाई थी?" रूपाली ने कहा
"झूठ थी. शादी के बाद मैने हार नही मानी. मैं सरिता के बिना ज़िंदा नही रह सकता था इसलिए यहाँ चला आया. पड़ा रहा एक नौकर बनके क्यूंकी यहाँ मुझे वो रोज़ नज़र आ जाती थी" भूषण ने कहा
"तो फिर ये सब क्यूँ?" रूपाली बोली
"2 वजह थी. पहली तो ये के इन्होने मेरी बीवी को मार दिया. सरिता के कहने पर मैने उस बेचारी से शादी की थी ताकि किसी को शक ना हो पर यहाँ लाकर तो मैने जैसे उसे मौत के मुँह में धकेल दिया. इन सबने उसे अपनी हवस का शिकार बनाया और फिर मारके पिछे ही दफ़ना दिया. जानती हो उसकी गर्दन पर तलवार से वार किसने किया था? तुम्हारे सबसे छ्होटे देवर कुलदीप ने जो उस वक़्त मुश्किल से 18-19 साल का था. और दूसरी वजह थी कामिनी. उसे पता चल गया था के वो मेरी बेटी है और सबको बता देना चाहती थी"
"आपकी बेटी?" रूपाली ने कहा
"हां मेरी बेटी थी वो. पर एक दिन उसने मुझे और सरिता को खेतों में नंगी हालत में देख लिया था और सरिता को उसको मजबूर होते हुए सब बताना पड़ा." भूषण की ये बात सुनते ही रूपाली को जैसे अपने बाकी सवालों के जवाब भी मिल गये.
टुबेवेल्ल पर बिंदिया के पति ने कामिनी और किसी आदमी को नही बल्कि सरिता देवी और भूषण को देखा था. क्यूंकी कामिनी की शकल सरिता देवी से मिलती थी इसलिए दूर से उसको लगा के कामिनी है क्यूंकी इस हालत में होने की उम्मीद एक जवान औरत से ही की जा सकती है, ना के एक जवान बेटी की माँ से. और इसलिए ट्यूबिवेल के कमरे की चाभी उसको सरिता देवी के पास से मिली थी. और यही वजह थी के कामिनी की शकल उसके भाइयों से नही मिलती थी. क्यूंकी वो ठाकुर की औलाद थी ही नही. जहाँ उसके चारों भाई बेहद खूबसूरत थे वहीं वो एक मामूली सी सूरत वाली थी क्यूंकी वो ठाकुर पर नही बल्कि अपनी माँ और घर के नौकर पर गयी थी.
"वो जो आदमी हवेली में रात को आता था" रूपाली ने पुचछा
"झूठ था. मैने तो तुम्हें पहले दिन ही कहा था के तुम्हारे पति की मौत का राज़ इसी हवेली में है. मैं था इस हवेली में पर तुम देख नही सकी. शुरू से मैं तुम्हें वो दिखाता रहा जो तुम देखना चाहती थी."
भूषण बोला

"और कुलदीप?" रूपाली बोली
"उस साले को तो मैने कामिनी से पहले ही मार दिया था. उसकी लाश भी वहीं आस पास है जहाँ मेरी बीवी की लाश मिली थी." भूषण बोला
"कामिनी को आपने मारा था?" रूपाली को यकीन नही हुआ "अपनी बेटी को"
"तो क्या करता. वो खुद अपनी माँ को मारना चाहती थी जिसके लिए वो गन तुम्हारे भाई से लाई थी. ये गन" भूषण गन रूपाली को दिखता हुआ बोला
रूपाली को धीरे धीरे बाकी बात भी समझ आने लगी. रूपाली अपनी माँ के बारे में बात कर रही थी ना की अपने बारे में जब उसने इंदर को ये कहा था के सबको बस जिस्म की भूख मिटानी है क्यूंकी उसने अपनी माँ को घर के नौकर के साथ नंगी हालत में देखा था. तब उसकी माँ ये भूल गयी थी के कौन अपने घर का उसका अपना पति है और कौन एक मामूली नौकर. इसलिए उसने इंदर को कहा था के वो उसके काबिल नही क्यूंकी इंदर एक ठाकुर था और वो एक नौकर की बेटी.
"ठाकुर साहब?" रूपाली ने पुचछा
"अभी अपने हाथों से गला दबाके मारकर आया हूँ. यहाँ इरादा तो तेज को ख़तम करने का था पर पहले कमरे में इंदर मिल गया. तो उसी को निपटा दिया. गोली की आवाज़ से बिंदिया और पायल आई तो उन दोनो को भी मारना पड़ा. अभी मैं तेज को ढूँढ ही रहा था के बाहर से उसकी कार आती हुई दिखाई दी. साले की मौत सही वक़्त पर ले आई थी उसको यहाँ. मैं वही घर का बुद्धा नौकर बनके उसके पास गया, कमर झुकाए हुए और जैसे ही वो करीब आया, एक गोली उसके जिस्म में. खेल ख़तम"
"कुलदीप और कामिनी के बारे में किसी को पता कैसे नही था?" रूपाली जैसे आखरी कुच्छ सवाल पुच्छ रही थी
"क्यूंकी उनको मैने रास्ते में मारा. क्या है के उन दोनो के साथ मैं उन्हें एरपोर्ट तक छ्चोड़ने गया था. गाड़ी का ड्राइवर बनके. मेरा काम था उनको छ्चोड़ना और गाड़ी वापिस लाना. दोनो को रास्ते में ख़तम किया और डिकी में लाश डालकर वापिस हवेली ले आया. रात को दफ़ना दिया" भूषण ने जवाब दिया. वो भी जैसे चाहता था के मारने से पहले रूपाली को सब बता दे.
"पर एक सवाल रहता है जिसने ये सारा बखेड़ा शुरू किया. मेरे पति को क्यूँ मारा?" रूपाली ने कहा
"उस दिन कामिनी सरिता को मारने के इरादे से निकली थी. वो सोच रही थी के जाकर सरिता को मंदिर में ही मारकर आ जाएगी तब जबकि पुरुषोत्तम उसको छ्चोड़के चला जाएगा. मुझे उसके इरादे नेक नही लग रहे थे इसलिए उसपर नज़र रखा हुआ था. वो हवेली से कुच्छ दूर ही गयी थी के मैने उसका पिच्छा करके उसको रास्ते में रोक लिया. उससे बात करते हुए मैने ये गन उसके हाथ से छीन ली और अभी हम बात कर ही रहे थे के पुरुषोत्तम जाने क्यूँ हवेली वापिस आ गया. कामिनी मुझपर चिल्ला रही थी और मेरे हाथ में रेवोल्वेर थी. जाने उसने क्या सोचा पर वो चिल्लाता हुआ मेरी तरफ बढ़ा. मैने गोली मार दी. ये मेरी किस्मत ही थी के उस वक़्त कोई भी नौकर वहाँ से नही गुज़रा वरना घर के सारे नौकर उसी रास्ते से उसी वक़्त घर वापिस जाते थे. पुरुषोत्तम को मारने के बाद मैने कामिनी को डराकर चुप तो कर दिया पर मुझे पता था के वो मुँह खोल देगी इसलिए उसको भी मारना पड़ा."
"अपनी ही बेटी को?" रूपाली ने कहा "प्यार नही था उससे?"
"मुझे सिर्फ़ सरिता से प्यार था" भूषण बोला
"क्या हो रहा है यहाँ?" दरवाज़े की तरफ से आवाज़ आई तो भूषण और रूपाली दोनो पलटे. दरवाज़े पर जय खड़ा था. इससे पहले के वो कुच्छ समझ पाता भूषण का हाथ फिर सीधा हुआ और ऱेवोल्वेर से गोली चली और जय के सीने पर लगी.
जय लड़खदाया और अगले ही पल भूषण की तरफ बढ़ा. भूषण ने फिर फाइयर करने की कोशिश की पर वो पूरी 6 गोलियाँ चला चुका था. गन से फाइयर नही हुआ और जय उस तक पहुँच गया. उसने भूषण को गले से पकड़ा और पिछे की तरफ धकेलना शुरू कर दिया. पीछे रखे सोफे पर भूषण का पेर फँसा और दोनो नीचे टेबल पर गिरे और फिर ज़मीन पर.
रूपाली खड़ी दोनो की तरफ देख रही थी. भूषण नीचे गिरा हुआ था और जय उसके उपेर पड़ा था. भूषण के सर से खून नदी की तरह बह रहा था जो टेबल पर गिरने की वजह से लगी चोट से था. इसके बाद ना भूषण हिला और ना जय. रूपाली ने झुक कर जय को हिलाने की कोशिश की पर भूषण की चलाई गोली ने देर से सही मगर अपना असर ज़रूर दिखाया था. वो मर चुका था.
रूपाली उठकर खड़ी हो गयी. उसे आस पास 7 लाशें पड़ी थी और इनमें से एक लाश उस आदमी की भी थी जिसने उसके पति को मारा था. वो वहीं नीचे ज़मीन पर बैठ गयी. समझ नही आ रहा था के क्या करे. रात का अंधेरा धीरे धीरे फेलने लगा था.

वोसेक्सी हवेली आज भी वैसे ही सुनसान थी जैसे की वो पिच्छले 10 साल से थी दोस्तो ये सस्पेंस भरी कहानी आपको कैसी लगी
बताना मत भूलना मुझे आपके जबाब का इंतजार रहेगा दोस्तो फिर मिलेंगे एक और नई कहानी के साथ







साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) ऑल्वेज़
`·.¸(¨`·.·´¨) कीप लविंग &
(¨`·.·´¨)¸.·´ कीप स्माइलिंग !
`·.¸.·´ -- राज




sexi haveli ka such --24
hello dosto ye kahani ka last paart hai mujhe khushi is baat ki hai aap logon ne is kahaani ko bahut pasand kiya . dosto maine paart -23 main aap logon se ek sawaal poocha tha ki purusottam ka kaatil koun hai muje bahut saare mail mile dosto jin doston ke jawaab sahi the unhe jaldi hi meri taraf se 5 braand new kahaani main post karane wala hun
ok dosto ab aap kahaani ka majaa lijiye
Thodi der baad Khan aur Rupali vapis haweli mein daakhil hue. Tej ke jaane ke baad Rupali ne ghar par taala laga diya tha. Devdhar vapis sheher chala gaya tha aur Khan uske saath vapis haweli tak aaya tha.
Rupali ke dimag mein laakhon baaten ek saath chal rahi thi. Vo samajh nahi paayi ke kaise usko ye sab baaten pehle samajh nahi aayi. Payal ka yun apne hi ghar mein chup chup rehna. Agar uske apne bhai hi uska fayda uthayen bechari apne hi ghar mein bheegi billi ki tarah to rahegi hi. Vo haweli mein mili laash. Rupali ko usi waqt samajh jana chahiye tha ke ye laash kiski hai jab Bindiya ne usko Bhushan ki biwi ke baare mein bataya tha. Kuldeep ke kamre mein mili bra, basement mein rakhe box mein vo kapde, sab us bechari ke hi thi jisko markar yahan dafna gaya tha. Usko hairani thi ke usko tabhi shak kyun nahi hua jab thakur ne ye kaha ke unhen nahi pata ke vo laash kiski thi. Aisa kaise ho sakta hai ke ghar ke malik ko hi na pata ho ke laash kahan se aayi. Us waqt haweli ke bahar guards hote the, haweli ke compound mein raat ko kutte chhod diye jaate the to ye na mumkin tha ke koi bahar ka aakar ye kaam kar jata. Vo khud apni vasna mein itni khoyi hui thi ke usko ehsaas hi nahi hua ke kitni aasani se usne Payal aur Bindiya ko thakur aur Tej ke bistar par pahuncha diya tha.
Haweli ke andar pahunch kar usne Bindiya aur Payal ko aawaz lagayi par dono kahin dikhayi nahi de rahi thi.
"Ye dono kahan gayi" Bethte hue Rupali ne kaha. Khan uske saamne rakhi ek kursi par beth gaya
"Kya lagta hai kaun hai aapke pati ke khoon ke pichhe ? Tej?" Khan ne kaha to Rupali ne inkaar mein sar hilaya
"Kamini." Rupali ne kaha to Khan ne hairani se usko taraf dekha
"Kal aapke jaane ke baad Inder se baat hui thi meri. Kaafi pareshan thi vo mere pati ke marne se pehle aur Gun usne Inder se li thi" Rupali ne kaha
"Par mujhe to kaha gaya tha ke ....." Khan ne kal ki Inder ki batayi baat ko yaad karte hue kaha
"Jhooth bol raha tha. Gun usne Kamini ko di thi. Baad mein bataya mujhe" Rupali ne aankhen band karte hue kaha
"Socha nahi tha ke ye sab aise khatam hoga. Main to Tej par shak kar raha tha aur ek waqt par to mujhe aap par bhi shak hua tha. Par Kamini par kabhi nahi" Khan ne kaha
"Ek baat samajh nahi aayi" Rupali ne aankhen kholte hue kaha "Aapka mere pati se kya rishta tha? Kis ehsaan ki baat kar rahe the?"
"Bachpan mein isi gaon mein raha karta tha main. Mere abbu yahin ke the" Khan muskurate hue bola "Thakur sahab ke kheton mein kaam karte the. Ek baar thakur sahab kheton mein shikaar kar rahe the. Vo jis parinde par nishana laga rahe the mujhe uspar taras aa gaya aur maine shor machakar usko uda diya. Bas phir kya tha. Thakur ko gussa aaya aur unhone bandook meri taraf ghuma di. Us waqt aapke pati vahan the. Unhone bacha liya varna us din ho gaya tha mera kaam"
Rupali bhi jawab mein muskurayi
"Uske baad ham logon ne gaon chhod diya. Main sheher mein pala badha, police join ki aur us baat ko bhool gaya. Jab mera yahan transfer hua to maine socha ke aapke pati se miluga par yahan aake pata chala ke unhen mare to 10 saal ho chuke hain" Khan ne kaha
"Nahi shayad unhen mare ek arsa ho gaya tha. Aaj ek naya hi roop dekha main Thakur Purushottam Singh ka jo mere pati ka to bilkul nahi tha. Jo aadmi is hadh tak gir jaaye usko apna pati to nahi keh sakti main" Rupali ne kaha "Sach kahun to aaj is haweli ke har aadmi ka ek naya chehra dekha. Meri saas ka bhi"
"Aapki saas ka? Vo to mar chuki hain na?" Khan ne puchha
Rupali ne apne purse se vo tasveer nikali aur Khan ko thama di
"Suna hai unka bhi koi chahne wala tha. Yahi jo is tasveer mein hai. Ye bhi thakur sahab ke gusse ki bali chadh gaya tha." Rupali ne phir aankhen band kar li
"Par chaliye aapko aapke sawalon ke jawab to mile" Khan ab bhi tasveer ko dekh raha tha
"Jawab to mil gaye par ab samajh ye nahi aa raha ke in jawabon ke saath aage ki zindagi kaise guzregi" Rupali ne phir aankhen kholkar Khan ki taraf dekha. Vo ab bhi tasveer ko ghoor raha tha.
"Aise kya dekh rahe hain?" Rupali ne puchha
"Ye Kamini nahi hai?" Khan ne kaha to Rupali hasne lagi
"Maine bhi yahi socha tha par ye meri saas ki jawani ki tasveer hai. Kamini bilkul unhi par gayi thi" Rupali boli
"Pata nahi kyun aisa lag raha hai ke maine is aadmi koi bhi kahin dekha hai" Khan tasveer mein khade aadmi ki taraf ishara karta hua bola
"Isko mare to ek arsa ho chuka hai" Rupali boli " Aur sach kahun to kuchh sawal ab bhi aise hain jinka jawab mujhe samajh nahi aa raha"
"Jaise ke?" Khan ne puchha
"Jaise ke raat ko haweli mein aane wala aadmi kaun tha, jaise ki Kamini ke saath tubewell par us din doosra aadmi kaun tha, jaise ki jo chaabiyan mujhe haweli mein mili unki asli kiske paas hai aur ek chaabhi Sarita Devi ke paas kyun thi jabki vo kabhi kheton ki taraf jaati hi nahi thi" Rupali ne kaha
Khan ne hairat se uski taraf dekha to Rupali ko yaad aaya ke vo is baare mein kuchh nahi janta tha.
"Batati hoon" Usne kehna shuru kiya hi tha ke Khan ne usko haath ke ishare se rok diya. Usne tasveer saamne table par rakhi, jeb se pen nika, tasveer mein khade aadmi ke chehre par thodi si daadhi banayi, halke se naak ne neeche baal banaye, sar ke baal thode lambe kiye aur chehre par jhurriyan daali aur tasveer Rupapli ki taraf ghumayi.
"Pehchanti hain ise?" Khan ne puchha
Rupali ne tasveer ki taraf dekha to uske pairon tale zameen jaise hilne lagi. Tasveer mein Sarita Devi ke saath Bhushan khada tha.
"Ab jahan tak mera khyaal hai sirf ek sawal baaki reh gaya hai. Kamini kahan hai?" Khan ne kaha
"Mar chuki hai. Haweli ke pichhe jahan meri biwi ki laash mili thi vahin paas hi uski bhi laash dafan hai" Pichhe se aawaz aayi to Khan aur Rupali dono palte. Saamne Bhushan khada tha.
Par ye Bhushan vo nahi tha jise Rupali ne hamesha dekha tha. Saamne ek buddha aadmi to khada tha par ab uski kamar jhuki hui nahi thi, ab vo shakal se bimaar nahi lag raha tha aur na hi kamzor. Saamne jo Bhushan khada tha vo sidha khada tha aur uske haath mein ek gun thi.
"Aap yahan? Thakur sahab ke saath kaun hai?" Rupali ne puchha
"Koi nahi kyunki ab uski zaroorat nahi. Thakur Sahab nahi rahe. Guzar gaye" Bhushan ne kaha
Uske ye kehte hi Khan fauran harkat mein aaya. Uska haath uski gun ki taraf gaya hi tha ke Bhushan ke haath mein thami gun ke munh Khan ki taraf muda, ek goli chali aur agle pal Rupali ke kadmon ke paas Khan ki laash padi thi.
Rupali cheekhne lagi aur Bhushan khada hua usko dekhne laga. Rupali ko us waqt jo bhi naam yaad aaya usne chilla diya. Bindiya, Payal, Chander, Tej, Inder par koi nahi aaya.
Usne ghabrakar charon taraf dekha aur jab koi nahi dikha to usne phir Bhushan par nazar daali.
"Bindiya aur Payal" Bhushan ne bola "Vahan kitchen mein padi hain. Tej ki laash bahar compound mein padi hai, mere kamre ke paas. Inder khoon se saney apne bistar par pada hai. Vo to bechara sota hi reh gaya. Sote sote dimag mein ek goli ghusi aur neend hamesha ki neend mein badal gayi"
Bhushan Rupali ki taraf badha to Rupali pichhe hokar phir chilllane lagi.
"Chillao" Bhushan ne aaram se kaha "Ye haweli itni manhoos hai ke kisi ne sun bhi liya to is taraf aayega nahi"
Thodi der chillane ke baad Rupali chup ho gayi
"Kyun?" Usne Bhushan se puchha
"Kyun?" Bhushan bola "Kyunki tum apne aapko Jhansi ki rani samajhne lag gayi thi achanak. Main ye sab aise nahi chahta tha. Main to thakur ke khandaan ko ek ek karke, sad sadke, ris riske marte hue dekhna chahta tha. Bachi hui izzat ko khatam hone ke baad marna chahta tha. Par tumne saara khel bigad diya. Kya zaroorat thi vo tasveer duniya ko dikhate hue phirne ki?"
"Par kyun?" Rupali ne sawal phir dohraya
"Kyunki barbad kiya tha mujhe thakur ne. Saari zindagi maine ek naukar banke guzaar di. Pyaar karta tha main Sarita se aur vo mujhse par kyunki main gareeb unke ghar ke naukar ka beta tha isliye uski shaadi mujhse ho nahi sakti thi. Ham dono bhaag jaane ke chakkar mein the ke jaane kahan se ye Shaurya Singh beech mein aa gaya. Na Sarita kuchh kar saki aur na main" Bhushan gusse se chillate hue bola
"To vo kahani jo hosiptal mein sunayi thi?" Rupali ne kaha
"Jhooth thi. Shaadi ke baad maine haar nahi maani. Main Sarita ke bina zinda nahi reh sakta tha isliye yahan chala aaya. Pada raha ek naukar banke kyunki yahan mujhe vo roz nazar aa jati thi" Bhushan ne kaha
"To phir ye sab kyun?" Rupali boli
"2 vajah thi. Pehli to ye ke inhone meri biwi ko maar diya. Sarita ke kehne par maine us bechari se shaadi ki thi taaki kisi ko shak na ho par yahan lakar to maine jaise use maut ke munh mein dhakel diya. In sabne use apni hawas ka shikaar banaya aur phir maarke pichhe hi dafna diya. Janti ho uski gardan par talwar se vaar kisne kiya tha? Tumhare sabse chhote dewar Kuldeep ne jo us waqt mushkil se 18-19 saal ka tha. Aur doosri vajah thi Kamini. Use pata chal gaya tha ke vo meri beti hai aur sabko bata dena chahti thi"
"Aapki beti?" Rupali ne kaha
"Haan meri beti thi vo. Par ek din usne mujhe aur Sarita ko kheton mein nangi halat mein dekh liya tha aur Sarita ko usko majboor hote hue sab batana pada." Bhushan ki ye baat sunte hi Rupali ko jaise apne baaki sawalon ke jawab bhi mil gaye.
Tubewell par Bindiya ke pati ne Kamini aur kisi aadmi ko nahi balki Sarita Devi aur Bhushan ko dekha tha. Kyunki Kamini ki shakal Sarita Devi se milti thi isliye door se usko laga ke Kamini hai kyunki is halat mein hone ki ummeed ek jawan aurat se hi ki ja sakti hai, na ke ek jawan beti ki maan se. Aur isliye tubewell ke kamre ki chaabhi usko Sarita Devi ke paas se mili thi. Aur yahi vajah thi ke Kamini ki shakal usko bhaiyon se nahi milti thi. Kyunki vo thakur ki aulad thi hi nahi. Jahan uske charon bhai behad khoobsurat the vahin vo ek mamuli si soorat wali thi kyunki vo thakur par nahi balki apni maan aur ghar ke naukar par gayi thi.
"Vo jo aadmi haweli mein raat ko aata tha" Rupali ne puchha
"Jhooth tha. Maine to tumhein pehle din hi kaha tha ke tumhare pati ki maut ka raaz isi haweli mein hai. Main tha is haweli mein par tum dekh nahi saki. Shuru se main tumhein vo dikhata raha jo tum dekhna chahti thi."
Bhushan bola

"Aur Kuldeep?" Rupali boli
"Us saale ko to maine Kamini se pehle hi maar diya tha. Uski laash bhi vahin aas paas hai jahan meri biwi ki laash mili thi." Bhushan bola
"Kamini ko aapne maara tha?" Rupali ko yakeen nahi hua "Apni beti ko"
"To kya karta. Vo khud apni maan ko marna chahti thi jiske liye vo gun tumhare bhai se laayi thi. Ye gun" Bhushan gun Rupali ko dikhata hua bola
Rupali ko dheere dheere baaki baat bhi samajh aane lagi. Rupali apni maan ke baare mein baat kar rahi thi na ki apne baare mein jab usne Inder ko ye kaha tha ke sabko bas jism ki bhookh mitani hai kyunki usne apni maan ko ghar ke naukar ke saath nangi halat mein dekha tha. Tab uski maan ye bhool gayi thi ke kaun apne ghar ka uska apna pati hai aur kaun ek mamuli naukar. Isliye usne Inder ko kaha tha ke vo uske kaabil nahi kyunki Inder ek thakur tha aur vo ek naukar ki beti.
"Thakur Sahab?" Rupali ne puchha
"Abhi apne haathon se gala dabake maarkar aaya hoon. Yahan irada to Tej ko khatam karne ka tha par pehle kamre mein Inder mil gaya. To usi ko nipta diya. Goli ki aawaz se Bindiya aur Payal aayi to un dono ko bhi maarna pada. Abhi main Tej ko dhoondh hi raha tha ke bahar se uski car aati hui dikhai di. Saale ki maut sahi waqt par le aayi thi usko yahan. Main vahi ghar ka buddha naukar banke uske paas gaya, kamar jhukaye hue aur jaise hi vo kareeb aaya, ek goli uske jism mein. Khel khatam"
"Kuldeep aur Kamini ke baare mein kisi ko pata kaise nahi tha?" Rupali jaise aakhri kuchh sawal puchh rahi thi
"Kyunki unko maine raaste mein maara. Kya hai ke un dono ke saath main unhen airport tak chhodne gaya tha. Gaadi ka driver banke. Mera kaam tha unko chhodna aur gaadi vaapis lana. Dono ko raaste mein khatam kiya aur dicky mein laash daalkar vapis haweli le aaya. Raat ko dafna diya" Bhushan ne jawab diya. Vo bhi jaise chahta tha ke maarne se pehle Rupali ko sab bata de.
"Par ek sawal rehta hai jisne ye saara bakheda shuru kiya. Mere pati ko kyun maara?" Rupali ne kaha
"Us din Kamini Sarita ko marne ke iraade se nikli thi. Vo soch rahi thi ke jaakar Sarita ko mandir mein hi maarkar aa jayegi tab jabki Purushottam usko chhodke chala jayega. Mujhe uske iraade nek nahi lag rahe the isliye uspar nazar rakha hua tha. Vo haweli se kuchh door hi gayi thi ke maine uska pichha karke usko raaste mein rok liya. Usse baat karte hue maine ye gun uske haath se chhin li aur abhi ham baat kar hi rahe the ke Purushottam jaane kyun haweli vapis aa gaya. Kamini mujhpar chilla rahi thi aur mere haath mein revolver thi. Jaane usne kya socha par vo chillata hua meri taraf badha. Main goli maar di. Ye meri kismat hi thi ke us waqt koi bhi naukar vahan se nahi guzra varna ghar ke saare naukar usi raaste se usi waqt ghar vapis jaate the. Purushottam ko maarne ke baad maine Kamini ko darakar chup to kar diya par mujhe pata tha ke vo munh khol degi isliye usko bhi maarna pada."
"Apni hi beti ko?" Rupali ne kaha "Pyaar nahi tha usse?"
"Mujhe sirf Sarita se pyaar tha" Bhushan bola
"Kya ho raha hai yahan?" Darwaze ki taraf se aawaz aayi to Bhushan aur Rupali dono palte. Darwaze par Jai khada tha. Isse pehle ke vo kuchh samajh pata Bhushan ka haath phir sidha hua aur Revolver se goli chali aur Jai ke seene par lagi.
Jai ladkhadaya aur agle hi pal Bhushan ki taraf badha. Bhushan ne phir fire karne ki koshish ki par vo poori 6 goliyan chala chuka tha. Gun se fire nahi hua aur Jai us tak pahunch gaya. Usne Bhushan ko gale se pakda aur pichhe ki taraf dhakelna shuru kar diya. Pichhe rakhe sofe par Bhushan ka per phansa aur dono neeche table par gire aur phir zameen par.
Rupali khadi dono ki taraf dekh rahi thi. Bhushan neeche gira hua tha aur Jai uske uper pada tha. Bhushan ne sar se khoon nadi ki tarah beh raha tha jo table par girne ki vajah se lagi chot se tha. Iske baad na Bhushan hila aur na Jai. Rupali ne jhuk kar Jai ko hilane ki koshish ki par Bhushan ki chalayi goli ne der se sahi magar apna asar zaroor dikhaya tha. Vo mar chuka tha.
Rupali uthkar khadi ho gayi. Use aas paas 7 laashen padi thi aur inmen se ek laash uski aadmi ki bhi thi jisne uske pati ko maara tha. Vo vahin neeche zameen par beth gayi. Samajh nahi aa raha tha ke kya kare. Raat ka andhera dheere dheere phelne laga tha.


Vo haweli aaj bhi vaise hi sunsaan thi jaise ki vo pichhle 10 saal se thi.dosto ye saspence bhari kahani kaisi lagi batana mat bhulana mujhe aapke jabaab ka intjaar rahega
dosto fir milenge ek nai kahani ke saath







साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
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